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पीडब्ल्यूडी घोटाला : पुलिस ने केजरीवाल के खिलाफ शिकायत एसीबी को भेजी

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नयी दिल्ली, 18 मार्च, दिल्ली पुलिस ने आज एक अदालत को बताया कि कथित पीडब्ल्यूडी घोटाले में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उनके रिश्तेदार और एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत को भ्रष्टाचार निरोधक शाखा :एसीबी: को स्थानांतरित कर दिया गया है । दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अभिलाष मल्होत्रा के समक्ष दायर की गई रिपोर्ट में कहा कि उसने शिकायत को लेकर जांच की और अब इसे एसीबी को भेज दिया गया है । आर्थिक अपराध शाखा :ईओडब्ल्यू: ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘शिकायत आगे की आवश्यक कार्रवाई के लिए भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को भेज दी गई है ।’’ अदालत ने शिकायत पर अगली सुनवाई के लिए मामले को 23 मार्च के लिए सूचीबद्ध कर दिया। अदालत ‘रोड्स एंटी करप्शन ऑर्गेनाइजेशन’ के संस्थापक राहुल शर्मा की शिकायत पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केजरीवाल, उनके रिश्तेदार सुरेंद्र बंसल और एक लोकसेवक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आग्रह किया गया है । शिकायत में दिल्ली में सड़कों और सीवर लाइनों से संबंधित ठेकों में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया है । शिकायतकर्ता की ओर से याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता के. पांडेय ने ‘‘भ्रष्टाचार की जड़ों के गहरे तक फैली होने’’ का आरोप लगाया है और कहा कि दस्तावेजों से पता चलता है कि कोई भी सामग्री असल में परियोजना कार्यान्वयन के लिए नहीं खरीदी गई । एक अन्य अदालत ने पूर्व में मजिस्ट्रेट मल्होत्रा की अदालत से मामले को स्थानांतरित करने का आग्रह करने संबंधी बंसल की याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि आवेदन विचार योग्य नहीं है । आर्थिक अपराध शाखा ने अदालत के समक्ष पूर्व में एक स्थिति रिपोर्ट दायर करते हुए अपनी जांच को पूरा करने के लिए समय मांगा था ।


रक्सौल से करोड़ रूपये का हेरोइन बरामद ,तस्कर गिरफ्तार

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रक्सौल 18 मार्च, भारत-नेपाल सीमा से लगे बिहार में पूर्वी चंपारण जिले के मुसहरवा बार्डर आउट पोस्ट के निकट से सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवानों ने कल रात एक तस्कर को गिरफ्तार कर करोड़ रुपये मूल्य का 210 ग्राम हेरोइन बरामद किया है । एसएसबी 17 वीं बटालियन समादेष्टा सोनम छेरिंग ने आज यहां बताया कि सूचना मिली थी तस्कर हीरोइन की आपूर्ति के लिये आने वाला है। इसी आधार पर बल के जवानों ने पिलर संख्या 387/5 के निकट संदेह के आधार पर एक व्यक्ति को रोककर उसकी तलाशी ली। तलाशी के दौरान उसके पास से 210 ग्राम हीरोइन ,दो मोबाइल फोन, 500 रूपए एवं नेपाली सिम बरामद किया गया है। गिरफ्तार तस्कर की पहचान जिले के घोड़ासहन थाना क्षेत्र के विजयी गांव निवासी नीरज कुमार के रूप में की गयी है । सूत्रों ने बताया कि बरामद हेरोइन का अंतरराष्ट्रीय मूल्य करीब एक करोड़ 10 लाख रूपये है । गिरफ्तार तस्कर  को आदापुर पुलिस को सौंप दिया गया है । पुलिस उससे पूछताछ कर रही है । 

युवा ही देश के कर्णधार : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू

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जमशेदपुर 18 मार्च, झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने युवाओं को देश का कर्णधार बताया और कहा कि इस युवा शक्ति को सार्थक दिशा देने के लिए समर्पित भाव से सभी को तत्पर रहने की जरुरत है। श्रीमती मुर्मू ने आज यहां कोल्हान विश्वविद्यालय अंतर्गत करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर में आयोजित यूथ फेस्टिवल में कहा , “ जहां तक युवावस्था की बात है, यह जीवन का सबसे महत्वपर्ण दौर है। एक तरह से देखें तो दुनिया में तीन ही प्रकार के लोग हैं - कुछ वे जो युवा होने वाले हैं , कुछ वे जो युवा थे और शेष युवा। पूरे जीवन की नींव तो बचपन में ही पड़ती है। कहने का अर्थ बचपन में ही दिशाएं तय होती हैं, लेकिन उसका ढाँचा युवा अवस्था में तैयार होता है।” राज्यपाल ने कहा कि युवा काल में किसी का झुकाव संगीत की ओर हो जाता है, किसी का कम्प्यूटर की ओर, किसी की रुचि इंजीनियरिंग या मेडिकल क्षेत्र की ओर। किसी का मन जनसेवा के कार्यों में लगने लगता है। यही कारण है कि विश्वविद्यालय की पढ़ाई के बाद सबके हाथों में डिग्रियां तो एक जैसी होती हैं, पर जिन्दगी की राहें अलग-अलग हो जाती हैं। किस युवा में क्या क्षमता है, क्या योग्यता है, क्या दक्षता है, क्या महारत है, यही देखने और परखने का बेहतर अवसर होता युवा महोत्सव। श्रीमती मुर्मू ने कहा कि युवा महोत्सवों में कुछ और बातें छुपी होती है। मिलकर काम करने की आदत का विकास, सहभागिता, सहयोग और टीम भावना का विकास, सबको ऐसे ही आयोजनों के माध्यम से सीखने का अवसर मिलता है। यही नहीं, इसी से बंधुत्व की भावना भी जन्म लेती है, आपसी सदभाव पनपता है। यही मूल है विश्व बंधुत्व की भावना का जो इस युवा महोत्सव का मूल विषय है। महोत्सव में शिरकत कर रहे युवाओं के लिए हार-जीत से अधिक महत्वपूर्ण है कि आपने इससे क्या सीखा।

बिहार में शराबबंदी के बाद अफीम की खेती बढ़ी

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पटना 18 मार्च, बिहार में पिछले साल अप्रैल से जारी पूर्ण शराबबंदी के बाद राज्य में कुछ जिलों में अफीम की अवैध खेती बढ़ गयी है। गया में पिछले तीन दिनों से कैंप कर रहे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के संयुक्त निदेशक टी. एन .सिंह ने आज यहां बताया कि गया जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों के सहयोग से एनसीबी ने अवैध अफीम की खेती के खिलाफ एक विशेष अभियान शुरू किया है। उन्होंने बताया कि गया में पिछले दो दिनों में चलाये गये विशेष अभियान के दौरान एनसीबी ने जिले के विभिन्न गांवों में 25 एकड़ से अधिक भूमि क्षेत्र में अवैध तरीके से उगाई अफीम की फसलों को नष्ट कर दिया है। इसके अलावा जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र के सोमिया गांव से चार किलोग्राम से अधिक अफीम जब्त की है जिसका अंतर्राष्ट्रीय मूल्य कई लाख रुपये है। श्री सिंह ने बताया कि जिलाधिकारी कुमार रवि ने गैरकानूनी ढंग से अफीम की खेती के खिलाफ एनसीबी के अभियान में काफी मदद की। इस संबंध में कुछ लोगों को भी हिरासत में लिया गया है। उन्होंने बताया कि राज्य के गया वैसे जिलों में शामिल है , जहां अवैध अफीम का उत्पादन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि एनसीबी ने राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह समेत विभिन्न विभागों के वरीय अधिकारियों के समक्ष भी अफीम की खेती का मुद्दा उठाया है। 

संविधान मर्यादा ग्रंथ , सभी को मिले प्रस्तावना की जानकारी : कोविंद

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मुजफ्फरपुर 18 मार्च, बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने भारतीय संविधान को मर्यादा ग्रंथ बताते हुए कहा कि देश के नागरिकों को कम से कम इसके प्रस्तावना की जानकारी दी जानी चाहिए। श्री कोविंद ने आज यहां श्री कृष्ण जुबली लॉ कॉलेज के तत्वावधान में हेमंत शाही सभागार में “भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन और कुर्बानियों की विरासत ” विषय पर आयोजित व्याख्यान में कहा , “ भारतीय संविधान मर्यादा-ग्रन्थ है। यह गीता , कुरान और बाइबल है। कम से कम संविधान के प्रस्तावना की जानकारी सभी को दी जानी चाहिए। लोकतंत्र में व्यक्ति नहीं, कानून के अनुसार राज होता है। जब कानून के अनुसार राज चलेगा तो देश का विकास होगा । ” राज्यपाल ने कहा कि जहां कानून के अनुसार राज नहीं होता है उसको जंगल राज कहते हैं। लॉ कालेज का महत्व इसलिए है कि देश में कानून का राज चलाना है। उन्होंनें लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट की चर्चा करते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी लोकतंत्र या राजकाज में ईमानदारी जरूरी है।

वर्तमान समय में बौद्ध धर्म अत्यंत प्रासंगिक : दलाई लामा

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बिहारशरीफ 18 मार्च, बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने बौद्ध धर्म को करूणा, सहिष्णुता और शांति का मार्ग दिखाने वाला बताया और कहा कि वर्तमान समय में बौद्ध धर्म अत्यंत प्रासंगिक एवं जीवन के हर क्षेत्र में इसके सारगर्भित उपयोगिता परिलक्षित हो रहे हैं। धर्मगुरु श्री लामा ने राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में चल रहे तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के दूसरे दिन आयोजित धर्माचार्यों के सत्र का संबोधन करते हुए कहा, “ सभी धर्म अच्छे हैं। मैं किसी धर्म को गलत या सही नहीं कहता, लेकिन जिस धर्म में करूणा, सहिष्णुता, शांति के भाव न हो उस धर्म का मार्ग ठीक नहीं होता। मानव को ऐसे धर्म से बचना चाहिए।” दलाई लामा ने बौद्ध धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बौद्ध धर्म करूणा, सहिष्णुता और शांति का मार्ग दिखाता है। आज के समय में बौद्ध धर्म अत्यंत प्रासंगिक एवं जीवन के हर क्षेत्र में इसकी सारगर्भित उपयोगिता परिलक्षित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि बुद्धिज्म की उत्पत्ति भारत में हुई। भारत की विशालता को देख कर स्तब्ध हूं। भारत में ‘कास्टिज्म’ होते हुए भी यहां के लोग एक साथ बड़े ही प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं। भारत के लोगों में सर्व धर्म समभाव और अतिथि देवो भव: की भावना कूट-कूट कर भरी है। सम्मेलन के दौरान देश-दुनिया के विद्वानों ने अपने- अपने विचार प्रस्तुत किये, जिस पर चर्चा-परिचर्चा की गयी। दूसरे दिन कन्वेंशन सेंटर के पांच अलग-अलग हॉल में कुल 12 सत्र का आयोजन किया गया। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अगले लोकसभा चुनाव में बिहारी ही हरायेगा : तेजस्वी

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पटना 18 मार्च, बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने आज कहा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक बिहारी ही हरायेगा। उप मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने विधानसभा में पथ निर्माण विभाग की बजट मांग पर हुई चर्चा के जवाब के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम लिये बगैर कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में श्री मोदी को एक बिहारी ही हरायेगा। जिस तरह बिहार की जनता ने विधानसभा चुनाव में श्री मोदी को हराया था, आने वाले लोकसभा चुनाव में भी एक बिहारी ही श्री मोदी को शिकस्त देगा । श्री यादव ने कहा कि बिहार में महागठबंधन की सरकार अच्छा काम कर रही है। राज्य में विकास के काम हो रहे हैं। इसमें समय लगता है। राज्‍य में पैसे की उपलब्‍धता के अनुसार सड़कें बन रही है। सभी सड़कों को एकसाथ बनाना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में विकास कार्य में लगी सरकारी एजेंट को हर हाल में सुरक्षा दी जायेगी। विकास कार्य को प्रभावित नहीं होने दिया जायेगा। पथ निर्माण मंत्री ने कहा कि बिहटा में प्रस्तावित नये एयरपोर्ट को एक्सप्रेस वे से जोड़ने का कार्य आरंभ कर दिया गया है । इस एक्सप्रेस वे के बनने के बाद पटना बिहटा एयरपोर्ट की दूरी अधिकतम 20 से 25 मिनट में तय हो जायेगी । उन्होंने कहा कि एयरपोर्ट बनने के साथ ही एक्सप्रेस वे भी बनकर तैयार हो जायेगा 


श्री यादव ने पथ निर्माण विभाग पर राशि नहीं खर्च करने के विपक्ष के आरोप का जवाब देते हुए कहा कि विभाग को आवंटित राशि में से 91 प्रतिशत का उपयोग कर लिया गया है ,शेष राशि का उपयोग चालू वित्तीय वर्ष के समाप्त होने तक कर लिया जायेगा । पथ निर्माण मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में सड़क निर्माण के लिए 55 हजार करोड़ रूपये के विशेष पैकेज की घोषणा की थी लेकिन अभी तक राज्य सरकार को इस मद में एक भी रूपया नहीं मिला है । उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सिर्फ जुमला में विश्वास करती है जबकि महागठबंधन आम लोगों के कल्याण से संबंधित काम में विश्वास रखता है । श्री यादव ने कहा कि केन्द्र सरकार पहले नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क निर्माण के लिए 100 प्रतिशत राशि देती थी लेकिन मोदी सरकार के बनने के बाद इसमें बड़ा बदलाव कर दिया गया । अब केन्द्र सरकार इसके लिए मात्र 60 प्रतिशत राशि देती है जबकि राज्य सरकार को 40 प्रतिशत राशि खर्च करनी पड़ती है । उन्होंने कहा कि इस बदलाव के कारण राज्य सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा है । मंत्री के जवाब से असंतुष्ट भाजपा सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया । बाद में सदन ने वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए पथ निर्माण विभाग की 66 अरब 35 करोड़ 90 लाख आठ हजार रूपये की बजट मांग को ध्वनिमत से पारित कर दिया । इसके बाद सभा की कार्यवाही सोमवार 11 बजे दिन तक के लिए स्थगित कर दी गयी । 

देवबंद में मौलाना मसूद मदनी बलात्कार के मामले में गिरफ्तार

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देवबंद 18 मार्च, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के देवबंद में पूर्व राज्य दर्जाप्राप्त मंत्री मसूद मदनी को पुलिस ने बलात्कार के एक मामले में कल रात गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।  सहारनपुर के रेंज के उप पुलिस महानिरीक्षक(डीआईजी) जितेंद्र कुमार शाही ने आज यहां बताया कि हरियाणा के जींद जिले की 25 वर्षीय एक महिला ने देवबंद कोतवाली पहुंचकर श्री मदनी के खिलाफ कल शाम बलात्कार किए जाने का मामला दर्ज कराया था। मसूद मदनी जमीयत उलमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का सगा भाई व उत्तराखंड राज्य में नारायण दत्त तिवारी सरकार में राज्य मंत्री रह चुका है। श्री शाही ने इस मामले की जांच पुलिस अधीक्षक (देहात) रफीक अहमद को सौंपी थी। बाद में देवबंद पुलिस ने बलात्कार के आरोपी मसूद मदनी उनके आवास से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। पीडित महिला के बयान अदालत में सीपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गये। जिसमें महिला ने उसके साथ बलात्कार किए जाने की बात दर्ज कराई है। पुलिस ने महिला की चिकित्सीय परिक्षण के लिये भेज दिया है । श्री शाही ने बताया कि हरियाणा निवासी पीडित महिला निःसंतान है। कुछ दिन पूर्व वह रूड़की के पिरान कलियर दरगाह पर संतान होने की मंनत मांगने गई थी। वहां से उसे देवबंद मसूद मदनी के पास भेज दिया गया। तब उसके साथ उसका पति भी था। पुलिस के मुताबिक मसूद मदनी ने उससे अकेले में बात की और कहा कि वह अकेले में आकर मिले तो उसे संतान प्राप्ति के लिए टोना-टोटका किया जाना संभव होगा। पीडित महिला द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत में कहा गया कि वह 16 मार्च की शाम को मसूद मदनी के आवास पर गई। जहा उसने पूरी रात उसके साथ मनमानी की और बलात्कार किया। सुबह होने पर 17 मार्च को वह देवबंद कोतवाली पहुंची और उसने पुलिस अधिकारियों को अपनी आपबीती सुनाई। स्थानीय पुलिस ने इस मामले के बारे में उच्चाधिकारियों को अवगत कराया। आला अधिकारियों ने रिर्पोट दर्ज करने और कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए। आरोपी के बडे भाई महमूद मदनी जमीयत उलमाएं हिंद के राष्ट्रीय महासचिव एवं राष्ट्रीय लोकदल के पूर्व सांसद है। उनके चाचा मौलाना अरशद मदनी दारूल उलूम में हदीस के उस्ताद है और जमीयत उलमाएं हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। 


अम्बेडकर के बाद भाजपा की नजर अब कांशीराम पर

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लखनऊ, 18 मार्च, भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) की नजर अब डा0 भीमराव अम्बेडकर के बाद दलितों के दूसरे आदर्श और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम पर है। उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमण्डल का शपथग्रहण समारोह कल कांशीराम के नाम पर बने विशाल स्मृति उपवन में है। लखनऊ के इस भव्य उपवन का निर्माण बसपा अध्यक्ष मायावती ने अपने 2007 से 2012 के मुख्यमंत्रित्वकाल में कराया था। कांशीराम के नाम पर बने इस उपवन से दलितों का भावनात्मक लगाव है। कांशीराम के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उनके हजारों अनुयायी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। उपवन में उस दिन काफी चहल पहल रहती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार दलितों का एक बडा वर्ग कांशीराम को अपना आदर्श मानता है। इस वर्ग का कहना है कि कांशीराम ने उनमें स्वाभिमान की ललक पैदा की और सत्ता के मायने समझाये। इसी वजह से दलितों में राजनीतिक जागरूकता बढी। विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने उपवन में शपथग्रहण समारोह रखकर दलितों में पैठ बढाने की कोशिश की है। भाजपा डा0 अम्बेडकर के अनुयायियों को अपनी ओर खींचने की लगातार कोशिशें जारी कर रखी हैं। लखनऊ के हजरतगंज स्थित उनकी प्रतिमा के आस-पास सफाई करवाकर पार्टी के झंडे लगाये गये हैं। 


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुसंख्यकों के इस वर्ग से सीधा जुडाव स्थापित करने के लिए डा भीमराव अम्बेडकर से जुडे पांच स्थानों को ‘पंच तीर्थ’ के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। इसमें डा अम्बेडकर के लंदन स्थित पढाई के कमरे, महू (मध्य प्रदेश) स्थित उनकी जन्मस्थली, निर्वाण स्थली और मुम्बई में स्थित उनका घर शामिल है। इन स्थलों को दर्शनीय बनाने के लिए संग्रहालय के रूप में विकसित किया जा रहा है। डा अम्बेडकर के नाम पर सिक्का भी जारी किया गया है। डिजिटल लेन-देन के लिए ‘भीम’ एप जारी किया गया है। 14 अप्रैल को डा अम्बेडकर की आगामी जयंती पर बडे आयोजन और एक बडी योजना को शुरू करने का संकेत प्रधानमंत्री ने दिया है। राजनीतिक मामलों के जानकार राजेन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि श्री मोदी और उनकी पार्टी का यह प्रयास राज्य विधानसभा चुनाव परिणामों में भी दिखा। आमतौर पर दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बहुजन समाज पार्टी(बसपा) सिकुड गयी। राज्य की सत्ता पर चार बार काबिज रहने वाली बसपा को विधानसभा की कुल 403 सीटों में से केवल 19 हासिल हुई। यह दर्शाता है कि डा अम्बेडकर को लेकर मोदी के प्रयास कारगर साबित हुए। इससे उत्साहित भाजपा ने अब कांशीराम पर नजर गडा दी है। 

विशेष आलेख : अब बस देखना यह है कि इस सब में खून कितना बहेगा ?

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देश का भूगोल बहुत छोटा हो गया है क्योंकि आपको विकास चाहिये और ऐसा विकास चाहिये जिसमे आपको शहर में ही बिना पसीना बहाए ऐशो आराम का सब सामान मिलता रहे . इस तरह के विकास के लिये आपको ज़्यादा से ज़्यादा संसाधनों अर्थात जंगलों , खदानों , नदियों और गावों पर कब्ज़ा करना ही पड़ेगा . लेकिन तब करोंड़ों लोग जो अभी इन संसाधनों अर्थात जंगलों , खदानों , नदियों और गावों के कारण ही जिंदा हैं आपके इस कदम का विरोध करेंगे . आपको तब ऐसा प्रधानमंत्री चाहिये जो पूरी क्रूरता के साथ आपके लिये गरीबों के संसाधन लूट कर लाकर आपकी सेवा में हाज़िर कर दे .





असम की 15 वर्षीय युवा गायिका नाहिद आफरीन को गाने से रोकने के प्रयास की दसों दिशाओं में निंदा हो रही है।हम भी इसकी निंदा करते हैं लेकिन असहिष्णुता के इसी एजंडा के तहत संघ परिवार ने असम में विभिन्न समुदायों के बीच जो वैमनस्य, हिंसा और घृणा का माहौल बना दिया है,उसकी न कहीं निंदा हो रही है और न बाकी भारत को उसकी कोई सूचना है। इसी तरह मणिपुर में इरोम शर्मिला को नब्वे वोट मिलने पर मातम ऐसा मनाया जा रहा है कि जैसे जीतकर पूर्वोत्तर के हालात वे सुधार देती या जो सशस्त्र सैन्य बल विशेषाधिकार कानून मणिपुर में नागरिक और मानवाधिकार को,संविधान और कानून के राज को सिरे से खारिज किये हुए आम जनता का सैन्य दमन कर रहा है,जिसके खिलाफ इरोम ने चौदह साल तक आमरण अनशन करने के बाद राजनीति में जाने का फैसला किया और नाकाम हो गयी। मणिपुर में केसरिया सुनामी पदा करने के लिए नगा और मैतेई समुदायों के बीच नये सिरे से वैमनस्य और उग्रवादी तत्वों की मदद लेकर वहां हारने के बाद भी जिस तरह सत्ता पर भाजपा काबिज हो गयी,उस पर बाकी देश में और मीडिया में कोई च्रचा नहीं हो रही है।इसीतरह मेघालय, त्रिपुरा, समूचा पूर्वोत्तर,बंगाल बिहार उड़ीसा दजैसे राज्यों को आग के हवाले करने की मजहबी सियासत के खिलाफ लामबंदी के बारे में न सोचकर निंदा करके राजनीतिक तौर पर सही होने की कोशिश में लगे हैं लोग। मुक्त बाजार में भारतीय जनमानस कितना बदल गया है,जड़ और जमीन से कटे सबकुछ जानने समझने वाले पढ़े लिखे लोगों का इसका अंदाजा नहीं है और कोई आत्ममंथन करने को तैयार नहीं है कि खुद हम कहीं न कहीं सेट होने,पेरोल के मुताबिक वैचारिक अभियान चलाकर अपनी साख कितना खो चुके हैं। 

चुनावी समीकरण का रसायनशास्त्र सिरे से बदल गया है।
गांधीवादी वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता उपभोक्ता संस्कृति के शिकंजे में फंसे शहरीकृत समाज के जन मानस का शायद सटीक चित्रण किया है।शहरीकरण के शिकंजे में महानगर,उपनगर ,नगर और कस्बे ही नहीं हैं,देश में मौजूदा अर्थव्स्था के मुताबिक देहात में जो पैसा पहुंचता है और वहां बाजार का जो विस्तार हुआ है,वह भी महानगर के भूगोल में खप गया है और जनपदों का वजूद ही खत्म है।

हिमांशु जी ने जो लिखा है,वह अति निर्मम सच है और हमने अभी इस सच का समाना किया नहीं हैः
आप को मोदी को स्वीकार करना ही पड़ेगा . क्योंकि आपको विकास चाहिये और ऐसा विकास चाहिये जिसमे आपको शहर में ही बिना पसीना बहाए ऐशो आराम का सब सामान मिलता रहे . इस तरह के विकास के लिये आपको ज़्यादा से ज़्यादा संसाधनों अर्थात जंगलों , खदानों , नदियों और गावों पर कब्ज़ा करना ही पड़ेगा . लेकिन तब करोंड़ों लोग जो अभी इन संसाधनों अर्थात जंगलों , खदानों , नदियों और गावों के कारण ही जिंदा हैं आपके इस कदम का विरोध करेंगे . आपको तब ऐसा प्रधानमंत्री चाहिये जो पूरी क्रूरता के साथ आपके लिये गरीबों के संसाधन लूट कर लाकर आपकी सेवा में हाज़िर कर दे . इसलिये अब कोई लोकतांत्रिक टाइप नेता आपकी विकास की भूख को शांत कर ही नहीं पायेगा .इसलिये आप देखते रहिये आपके ही बच्चे मोदी को चुनेंगे . इसी विकास के लालच में ही आजादी के सिर्फ साठ साल बाद का भारत आदिवासियों के संसाधनों की लूट को और उनके जनसंहार को चुपचाप देख रहा है .  क्रूरता को एक आकर्षक पैकिंग भी चाहिये . क्योंकि आपकी एक अंतरात्मा भी तो है . इसलिये आप अपनी लूट को इंडिया फर्स्ट कहेंगे . लीजिए हो गया ना सब कुछ ?  कुछ लोगों को आज के इस परिणाम का अंदेशा आजादी के वख्त ही हो गया था पर हमने उनकी बात सुनी नहीं . 

अब बस देखना यह है कि इस सब में खून कितना बहेगा ?
हिमांशु जी के इस आकलन से मैं सहमत हूं कि अपनी उपभोक्ता हैसियत  की जमीन पर खड़े इस देश के नागरिकों के लिए देश का भूगोल बहुत छोटा हो गया है।लोग अपने मोहल्ले या गांव,या शहर हद से हद जिला और सूबे से बाहर कुछ भी देखना सुनना समझना नहीं चाहते। बाकी जनता जिंदा जलकर राख हो जाये,लेकिन हमारी गोरी नर्म त्वचा तक उसकी कोई आंच न पहुंचे,यही इस उपभोक्ता संस्कृति की विचारधारा है। सभ्यता के तकाजे से रस्म अदायगी के तौर पर हम अपना उच्च विचार तो दर्ज करा लेना चाहते हैं,लेकिन पूरे देश के हालात देख समझकर नरसंहारी संस्कृति के मुक्तबाजार का समर्थन करने में कोताही नहीं करेंगे,फिर यही भी राजनीति हैं।
हमारे मित्र राजा बहुगुणा ने उत्तराखंड के बारे में लिखा है,वह बाकी देश का भी सच हैः
इस बार के चुनाव नतीजे इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि उत्तराखंड में भाजपा-कांग्रेस संस्कृति की जडें और गहरी हुई हैं।दोनों दलों को मिलने वाले मत जोड़ दिए जाएं तो साफ तस्बीर दिखाई दे रही है।इसका मुख्य कारण है कि अन्य राजनीतिक ताकतो में स़े कुछ तो इसी कल्चर की शिकार हो खत्म होती जा रही हैं और अन्य के हस्तक्षेप नाकाफी साबित हो रहे हैं ? इस लूट खसौट संस्कृति का कसता शिकंजा तोड़े बिना उत्तराखंड की बर्बादी पर विराम लगना असंभव है ?

पहाड़ से कल तक जो लिखा जा रहा था,उसके उलट नया वृंदगान हैः
त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी को उत्तराखंड के 9वें मुख्य मंत्री बनने पर हार्दिक शुभकामनाये । आशा है की आप कृषि मंत्री रहते हुए किया गया कमाल । मुख्य मंत्री रहते हुए नही दोहराएंगे । हम त्रिवेंद्र सिंह रावत जी को नहीं जानते।गनीमत है कि ऐन मौके पर पालाबदल करने वाले किसी दलबदलू बड़े नेता को संघ परिवार ने नेतृत्व के लिए चुना नहीं है। संघ परिवार नेतृत्व बदलने के लिए अब लगातार तैयार दीख रहा है जबकि उसके विरोध में चुनाव हारने वाले राजनीतिक दल पुराने नेतृ्त्व का कोई विकल्प खोज नहीं पा रहे हैं।क्योंकि इन दलों का संगठन संस्थागत नहीं है और न्यूनतम लोकतंत्र भी वहां नहीं है। जनता जिन्हें बार बार आजमाकर देख चुकी है,मुक्तबाजार की अत्याधुनिक तकनीक, ब्रांडिंग,मीडिया और मार्केटिंग के मुकाबले उस बासी रायते में उबाल की उम्मीद लेकर हम फासिज्म का राजकाज  बदलने का क्वाब देखते रहे हैं। हमने पहले ही लिखा है कि चुनाव समीकरण से चुनाव जीते नहीं जाते। जाति,नस्ल,क्षेत्र से बड़ी पहचान धर्म की है।संघ परिवार को धार्मिक ध्रूवीकरण का मौका देकर आर्थिक नीतियों और बुनियादी मुद्दों पर चुप्पी का जो नतीजा निकल सकता था, जनादेश उसी के खिलाफ  है,संघ परिवार के समर्थन में या मोदी लहर के लिए नहीं और इसके लिए विपक्ष के तामाम राजनीतिक दल ज्यादा जिम्मेदार हैं।
 
अब यह भी कहना होगा कि इसके लिए हम भी कम जिम्मेदार नहीं है।
हम फिर दोहराना चाहते हैं कि गैर कांग्रेसवाद से लेकर धर्मनिरपेक्षता की मौकापरस्त राजनीति ने विचारधाराओं का जो अंत दिया है, उसीकी फसल हिंदुत्व का पुनरूत्थान है और मुक्तबाजार उसका आत्मध्वंसी नतीजा है। हम फिर दोहराना चाहते हैं कि हिंदुत्व का विरोध करेंगे और मुक्तबाजार का समर्थन,इस तरह संघ परिवार का घुमाकर समर्थन करने की राजनीति के लिए कृपया आम जनता को जिम्मेदार न ठहराकर अपनी गिरेबां में झांके तो बेहतर। हम फिर दोहराना चाहते हैं किबदलाव की राजनीति में हिटलरशाही संघ परिवार के हिंदुत्व का मुकाबला नहीं कर सकता,इसे समझ कर वैकल्पिक विचारधारा और वैकल्पिक राजनीति की सामाजिक क्रांति के बारे में न सोचें तो समझ लीजिये की मोदीराज अखंड महाभारत कथा है। अति पिछड़े और अति दलित संघ परिवार के समरसता अभियान की पैदल सेना में कैसे तब्दील है और मुसलमानों के बलि का बकरा बनानाे से धर्म निरपेक्षता और लोकतंत्र की बहाली कैसे संभव है,इस पर आत्ममंथन का तकाजा है। मोना लिज ने संघ परिवार के संस्थागत संगठन का ब्यौरा दिया है,कृपया इसके मुकाबले हजार टुकड़ों में बंटे हुए संघविरोधियों की ताकत का भी जायजा लें तो बेहतरः

60हजार शाखाएं
60 लाख स्वयंसेवक
30 हजार विद्यामंदिर
3 लाख आचार्य
50 लाख विद्यार्थी
90 लाख bms के सदस्य
50लाख abvp के कार्यकर्ता
10करोड़ बीजेपी सदस्य
500 प्रकाशन समूह
4 हजार पूर्णकालिक
एक लाख पूर्व सैनिक परिषद
7 लाख, विहिप और बजरंग दल के सदस्य
13 राज्यों में सरकारें
283 सांसद
500 विधायक 

बहुत टाइम लगेगा संघ जैसा बनने में...
तुम तो बस वहाबी देवबंदी-बरेलवी ,,शिया -सुन्नी जैसे आपस में लड़ने वाले फिरकों तक ही सिमित रहो.........और मस्लक मस्लक खेलते रहो........ ... एक दूसरे में कमियां निकालते रहो। अकेले में बैठकर सोचें कि आप अपने आने वाली नस्लों के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं।


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(पलाश विश्वास)

राजनीति : गलती कांग्रेस की, ठीकरा राज्यपाल पर

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उत्तरप्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद जो वातावरण बना है, उसमें पंजाब को छोडक़र कांग्रेस पार्टी को अपमान का स्थिति का सामना करना पड़ा है। अपमान इसलिए भी कहा जा सकता है कि गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सबसे बड़े होने के बाद भी बहुमत का आंकड़ा जुटा पाने में असफल साबित हुई है। ऐसे में कहा जाने लगा है कि राजनेता वर्तमान में कांग्रेस से दूर भागने लगे हैं। सभी जानते हैं कि राज्य में सरकार बनाने के लिए संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना होता है। कांग्रेस इन संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना भूल गई और सब कुछ भविष्य के छोड़ देना ही कांग्रेस को सत्ता दिलाने से वंचित कर गया। अब कांग्रेस की भूमिका लेकर स्वयं ही सवाल उठने लगे हें कि क्या कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं को यह लगने लगा था कि उनकी सरकार नहीं बन सकती ? अगर यह समझा जाने लगा था फिर वर्तमान में कांग्रेस द्वारा गोवा में राज्यपाल की भूमिका को लोकतंत्र की हत्या कहकर जनता को गुमराह करने का कोई मतलब नहीं है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक हालात के लिए उसके नेता स्वयं जिम्मेदार माने जा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस द्वारा संसद की कार्यवाही को बाधित करना निश्चित रुप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर कुठाराघात ही माना जाएगा।


देश के राजनीतिक और लोकतांत्रिक इतिहास का अध्ययन किया जाए तो गोवा में दूसरे नम्बर के दल की सत्ता बनना कोई नई बात नहीं है। इससे पूर्व भी देश में ऐसे प्रयोग कई बार हो चुके हैं। इतना ही नहीं इसमें कांग्रेस की भी भूमिका रही है। पहले, दूसरे और तीसरे सबसे बड़े दल की बात छोड़िए देश में तो चौथे नम्बर पर आने वाले राजनीतिक दल को सत्ता पाने का अवसर प्राप्त हो चुका है। इतना ही नहीं देश के कई राज्यों भी ऐसे प्रयोग किए गए हैं। जिसमें सबसे बड़े दल के बाद भी दूसरे और तीसरे दल ने मिलकर सत्ता हथियाने का काम किया। इसे जनमत का नाम दिया जाए तो गोवा में जनमत आज भाजपा के साथ है और वहां के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर ने विश्वासमत जीतकर इसको प्रमाणित भी कर दिया है। यह सब संवैधानिक मर्यादा को ध्यान में रखकर ही किया गया है। वास्तव में सरकार के गठन के लिए राज्यपाल का यह विशेषाधिकार है कि वह पूर्ण बहुमत की संख्या जुटाने वाले दल को राज्य की सत्ता बनाने के लिए आमंत्रित करे। गोवा की राज्यपाल ने भी वही किया है।
जहां तक कांग्रेस द्वारा संसद में हंगामा किए जाने की बात है तो यह पूरी तरह से गलत ही माना जाएगा, क्योंकि कांग्रेस की भूमिका के बारे में देश की न्यायपालिका ने स्पष्ट तौर पर कह दिया था कि जब कांग्रेस के पास संख्या बल है तो उसे राज्यपाल के पास जाना चाहिए। कांग्रेस राज्यपाल के पास नहीं गई, सीधे न्यायालय के पास पहुंच गई। इसके साथ ही सवाल यह आता है कि जब कांग्रेस के पास संख्या बल था तो उसे विश्वासमत के दौरान दिखाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस विश्वासमत के दौरान बुरी तरह से पराजित हो गई, इतना ही नहीं कांग्रेस का एक विधायक अपने वरिष्ठ नेताओं की भूमिका पर सवाल उठा चुका है। यह ऐसे सवाल हैं जिससे कांग्रेस पीछा नहीं छुड़ा सकती। सवालों के जवाब तलाशने की बजाय कांग्रेस देश को गुमराह करने की राजनीति करती हुई दिखाई दे रही है।

जहां तक गठबंधन की राजनीतिक की बात है तो देश में कुछ गठबंधन चुनाव से पूर्व होते हैं तो कई राजनीतिक दल चुनाव के बाद गठबंधन की संभावनाओं पर विचार मंथन करते हुए सत्ता प्राप्त करने का उपक्रम करते हैं। दोनों प्रकार के गठबंधन संवैधानिक रुप से सही हैं। दिल्ली के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर दूसरे नम्बर पर आने वाले दल की सत्ता बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था। अगर कांग्रेस वर्तमान में सबसे बड़े दल को सत्ता सौंपने को सही मानती है तो उस समय दिल्ली में केवल भाजपा की सरकार बनती। ऐसा ही प्रयोग उत्तरप्रदेश में उस समय किया गया, जब भाजपा सबसे बड़े दल के रुप में चुनाव जीतकर आई थी। इस समय सपा, बसपा ने मिलकर सरकार बनाई थी। कांग्रेस ने इनका साथ दिया।
देश के पांच राज्यों के चुनाव परिणाम उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा व कांग्रेस के लिए एक सबक है तो पंजाब का चुनाव भाजपा के लिए। इन राज्यों में प्रमुख राजनीतिक दलों की दुर्गति होना निश्चित रुप से चिन्ता करने वाली बात है, लेकिन इसके विपरीत लगता है कि कांग्रेस ने इन चुनावों से भी कोई सबक नहीं लिया। कांग्रेस द्वारा जिस प्रकार से विरोध की राजनीतिक की जा रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि कांग्रेस का वर्तमान में एक मात्र उद्देश्य केवल विरोध करना ही रह गया है। केवल विरोध के लिए ही विरोध करना लोकतांत्रिक दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को केवल पंजाब में ही संजीवनी मिली है। राजनीतिक विश्लेषणों में इस जीत को कांग्रेस के लोकप्रिय होने का प्रमाण कम, स्थानीय नेतृत्व की सही नीतियों का परिणाम ज्यादा माना जा रहा है।

कहा जाने लगा है कि गोवा में जिस प्रकार की राजनीतिक स्थितियों का प्रादुर्भाव हुआ है। वह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बहुत बड़ी भूल का परिचायक मानी जा रही है। गोवा के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने चुनाव परिणाम के समय जो खुशी मनाई थी, वरिष्ठ नेताओं ने उस पर पानी फेरने का काम किया है। कांग्रेस के कार्यकर्ता वरिष्ठ नेताओं को गोवा में भाजपा की सरकार बनने के लिए दोषी मान रहे हैं। कार्यकर्ताओं को इस गुस्से को देखते हुए ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने गोवा मामले को लोकतंत्र की हत्या करार दे दिया। इस विरोध के कारण संभवत: कार्यकर्ताओं में यह संदेश तो जाएगा ही कि वरिष्ठ नेताओं ने विरोध तो किया, लेकिन कार्यकर्ताओं के मानस को कौन समझाए। कांग्रेस की यह जन्मजात शैली मानी जाती है कि उसे अपने अंदर कोई दोष दिखाई नहीं देता। वह यही मानती है कि हम चाहे भ्रष्टाचार करें या तुष्टीकरण, देश हमारा हमेशा समर्थन करे। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस वर्तमान में भी अपने आपको शासक मानकर व्यवहार करती दिखाई दे रही है। वह यह समझने का प्रयास भी नहीं कर रही कि आज देश में सरकार बदल गयी है और लोकतांत्रिक दृष्टी से वह विपक्ष का दर्जा भी खो चुकी है। ऐसे में कांग्रेस को दूसरों को दोष देने से पहले स्वयं के गिरेबां में झाँककर देखना चाहिए।

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि देश को अब कांग्रेस की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों पर नजर डाली जाए तो यही परिलक्षित होता दिखाई देता है कि देश की जनता ने महात्मा गांधी की बात पर अमल करना प्रारंभ कर दिया है। क्योंकि इन पांच राज्यों में से चार राज्यों में भाजपा की सरकार बन चुकी है या बनने वाली है। वर्तमान में पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के सपने को साकार करने के लिए अपने कदम बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है। पांच राज्यों के जो चुनाव परिणाम आए हैं, वह कांग्रेस के लिए फिर से एक सबक है। लेकिन सवाल यह आता है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद कोई सबक नहीं लिया तो इन चुनावों के बाद वह अपनी हार के कारणों पर आत्म मंथन करेगी, ऐसा कम ही लगता है। लोकसभा चुनावों के बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार सिमटती चली जा रही है। भाजपा को तीन और राज्यो में सत्ता संचालन का अवसर मिला है यानी देश के अधिकतर भाग में भाजपा का राज है। आज उत्तर भारत के मुस्लिम बाहुल्य राज्य जम्मू कश्मीर में भाजपा समर्थित सरकार है, तो पश्चिम के राज्य गुजरात में भी भाजपा का परचम है। इसी प्रकार पूर्व के असम और अब मणिपुर में भी भाजपा का जलवा हो गया है और दक्षिण के गोवा में भी फिर भाजपा की सरकार विराजमान हो गयी है। इसके अलावा भारत के केंद्र में आने वाले राज्यों में भी भाजपा की सरकारें हैं। इससे यह आसानी से कहा जा सकता है कि देश के चारों कोने जहां भाजपा का प्रभाव है, वहीं कांग्रेस देश के चारों कोनों से विदा हो गई है। 



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सुरेश हिंदुस्थानी
मोबाइल 09455099388

वरिष्ट पत्रकार आलोक तोमर की स्मृति में आज संगोष्ठी का आयोजन

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आलोक तोमर की स्मृति में नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब एनेक्सी में रविवार 19 मार्च को शाम 4 बजे से परिसंवाद बदलाव की इबारत का आयोजन किया जाएगा। जिसमें इतिहासकार आदित्य मुखर्जी, कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा, संसद सदस्य मोहम्मद सलीम और वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा शामिल होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफा करेंगी। कार्यक्रम में प्रोफेसर आनन्द प्रधान भी भाग लेंगे। वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर का लंबी बीमारी के बाद 20 मार्च 2011 को निधन हो गया था। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में 1960 में जन्मे तोमर का हिंदी पत्रकारिता में विशेष योगदान है।

व्यंग्य : छेड़छाड़: हमारा राष्ट्रीय स्वभाव

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छेड़छाड़ करना हमारा राष्ट्रीय स्वभाव है। राष्ट्र और राष्ट्रीयता से जुडी चीज़ों से हमें भावनात्मक लगाव होता है और उन चीज़ों को हम तार-तार नहीं होने दे सकते है बल्कि उनके विस्तार हेतु प्रयत्नरत रहते है। छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाए इस बात की गवाही देती है कि छेड़छाड़ करना एक आदत मात्र नहीं रही है बल्कि ये एक ध्येय बन चुकी है। सड़क किनारे जा रही लड़की से लेकर ठप्पा खाकर ऑफ स्टंप से बाहर जा रहीं स्विंग बॉल से छेड़छाड़ करने में हमें महारथ हासिल है। कड़े कानून और पुलिस की सख्ती भी छेडछाड़ पर रोक लगाने में असहाय साबित हो रही है और यही छेड़छाड़ के प्रति हमारे कमिटमेंट और निष्ठा को दर्शाता है।


राह चलते छेड़छाड़ करना अब पिछड़ेपन की श्रेणी में आता है इसलिए अब छेड़छाड़ ने फेसबुक पर "पोक"और इनबॉक्स में हाय-हैलो का सोफिस्टिकेटेड़ रूप भी धारण कर लिया है क्योंकि अब फेसबुक पर ये काम लोगो की  नजरो से बचकर भी किया जा सकता है। छेड़छाड़ का स्वभाव  केवल आमजनता तक सीमित नहीं  रहा है, हाल ही में सरकार ने नोटबंदी के दौरान पुराने और नए नोटों के साथ-साथ जनता के धैर्य के साथ भी छेड़छाड़ की। सरकार द्वारा छेड़छाड़ को प्रमोट करने से इसका भविष्य उज्ज्वल लगता है। 

नोटबंदी से पहले ही त्रस्त विपक्ष अब 5 राज्यो में चुनावी हार की ज़िम्मेदारी भी सरकार द्वारा ईवीएम मशीनों में की गई छेड़छाड़ पर डाल रहा है। विपक्ष का कहना है की अगर हराना ही था तो बूथ कैप्चरिंग करके हराते, उसमे कम से कम पारदर्शिता तो रहती, ईवीएम में छेड़छाड़ होने से तो पता ही नहीं चल पा रहा की जो सीटे हमने हारी थी केवल उन्ही पर ईवीएम में गड़बड़ी हुई है या फिर जो जीती थी उन पर भी हुई है। सरकार की तरफ से चुनाव आयोग ने ईवीएम में किसी भी तरह की गड़बड़ी या छेड़छाड़ का खंडन किया है लेकिन सरकार के अंदरुनी सूत्रो के मुताबिक ईवीएम में छेड़छाड़ डिजिटल इंडिया की चुनाव-सुधारो पर टेस्टिंग करने के उद्देश्य से की गई थी।

हम छेड़छाड़ के परंपरागत  तरीको से आगे बढ़ चुके है, साइबर फ्रॉड, क्रेडिट कार्ड क्लोनिंग, हैकिंग जैसे नए "हथियारो"ने छेड़छाड़ का "मेकओवर"कर दिया है। छेड़छाड़ के लिए हाई-टेक और डिजिटल साधनो का प्रयोग हो रहा है जिससे कम समय में अधिक परिणाम आ रहे है और हमने प्रति घंटा छेड़छाड़ करने के अपने पिछले औसत को काफी पीछे छोड़ दिया। तकनीक ने हर चीज़ को बदल कर रख दिया लेकिन तकनीक हर जगह अंगुली करने की हमारी आदत को नहीं बदल पाई,  अंतर केवल इतना आया है कि अब हम हर जगह अंगुली, टच-स्क्रीन के माध्यम से करते है। 

पुराने अनुभवी लोगो का मानना है की टेक्नोलॉजी चाहे कितनी भी तरक्की कर ले लेकिन अगर मानव हस्तक्षेप ख़त्म हो गया तो फिर छेड़छाड़ में भावनात्मक पुट का अभाव हो जाएगा जिससे देर-सबेर एक बड़ा तबका छेड़छाड़ रूपी राष्ट्रीय धर्म से दूर हो जाएगा, जैसे मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद जन-सामान्य कांग्रेस से दूर हो गया था। 

हम छेडछाड़ के क्षेत्र को ग्लोबल बनाने में पूरा बल लगा रहे है और इस विषय में निरंतर चिंतनशील और प्रगतिशील रहते है। मेरा मानना है की  छेड़छाड़ करने के नए-नए तरीके खोजने और छेड़छाड़ करने वालो की प्रतिभा को सवांरने और उन्हें बहुमुखी आयाम प्रदान करने के लिए हमारे पास पर्याप्त "मैन-पॉवर"मौजूद है और इस क्षेत्र में हम दक्षिण-एशिया का नेतृत्व कर सकते है। 

भारत सरकार चाहे तो अगले सार्क-सम्मलेन में इस विषय को चर्चा के एजेंडे में शामिल कर बाकि देशो को भी भरोसे में लेकर आने वाले वित्तीय वर्षो में छेड़छाड़ के निर्यात और उससे जीडीपी में होने वाली वृद्धि के लक्ष्य को बजट में  प्रस्तावित कर सकती है।




---अमित शर्मा---

बिहार : यह है बिहार मानवाधिकार आयोग।

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पटना। यह है बिहार मानवाधिकार आयोग। इस आयोग पर कार्यवाही करने की अवधि निर्धारित नहीं। इसके कारण 191 दिनों के बाद भी आवेदन पर कार्रवाही नहीं की जाती है। इस तरह आवेदकों के महत्वपूर्ण 6 माह से अधिक दिन गुजार दिया जा रहा है। दिव्यांग विक्टर केरोबिन ने बिहार मानवाधिकार आयोग में न्याय की तलाश में 20 दिसम्बर, 2016 को आवेदन दिया। बिहार मानवाधिकार आयोग द्वारा 1 मार्च, 2017 को 101 दिनों के बाद एसएमएस भेजा गया। यह बताया गया कि आपका आवेदन संख्या-30253 है। केस नम्बर-300/2017 आवंटित है। माननीय चेयरपर्सन जस्टिस बिलाल नजकी के बेंच में है। द्वितीय एसएमएस 16 मार्च,2017 को आया और कहा गया कि केस नम्बर -300/2017 को बिहार मानवाधिकार आयोग में 12 जून,2017 को उपस्थित होना है। उस दिन आवेदन को नहीं ले जाना जरूरी नहीं है। इस तरह कुल 191 दिनों के बाद भी आवेदन पर कार्रवाई नहीं शुरू की जाएगी।


दीघा थानान्तर्गत मखदुमपुर बगीचा में रहते हैं दिव्यांग विक्टर केरोबिन। पहले यह क्षेत्र दीघा ग्राम पंचायत में था। अब पटना नगर निगम के नूतन राजधानी अंचल में है। वार्ड नम्बर- 22 ए है।दिव्यांग विक्टर केरोबिन ने आपबीती बयान किया और 20 दिसम्बर,2016 को बिहार मानवाधिकार आयोग से कहा गया कि ‘दिव्यांग को सामाजिक सुरक्षा पेंशन में विलम्ब होने पर प्र्र्रस्ताव पारित करें। बिहार मानवाधिकार आयोग से 80 दिनों के बाद मोबाइल पर 1 मार्च को मैसेज आया। आवेदक प्राप्तांक 30253/2016 है। केस नम्बर- सीओएमपी/300/2017 है। माननीय चेयरपर्सन जस्टिस बिलाल नजकी के बेंच में है। आवेदन के विषय के आलोक में कहना है कि मैं विक्टर केरोबिन हूं। स्व0 केरोबिन सोलोमन के पुत्र हूं। इस समय गांव मखदुमपुर बगीचा,शिवाजी नगर,(रामस्वरूप ठेकेदार के मकान के सामने ), पो0दीघा घाट, थाना दीघा, पंचायत पश्चिमी दीघा, प्रखंड पटना सदर,जिला पटना और बिहार का निवासी हूं। मेरा आधार संख्या 3801 2000 6204 है। निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देकर दिव्यांग को सामाजिक सुरक्षा पेंशन में विलम्ब होने पर प्रस्ताव पारित करने का कष्ट करेंगे।

01.04.1986सामाजिक सुरक्षा पेंशन की स्वीकृति। लेखा संख्या 1102/1986-87 है। 16 साल मिलने के बाद 2002 में बंद कर दिया गया। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की पुस्तिका खो जाने से बंद कर दिया गया। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की पुस्तिका की छाया प्रति उपलब्ध है। 18 मार्च 2010 में जिलाधिकारी पटना को सामाजिक सुरक्षा पेंशन चालू करने का आग्रह स्वरूप आवेदन दिया गया। जिलाधिकारी महोदय के कार्यालय से राज्यकर्मी घर पर आये। आवेदन और उपलब्ध सामाजिक सुरक्षा पेंशन की पुस्तिका की छाया प्रति के आधार पर पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत अन्तर्गत वार्ड नम्बर 13 की वार्ड सदस्य गुड़िया देवी को निर्देशित किया कि पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत की मुखिया ममता देवी जी के पास जाकर दिव्यांग को सामाजिक सुरक्षा पेंशन शुरू करा दें। मगर वार्ड सदस्य गुड़िया देवी ने किसी तरह का कदम नहीं उठाया।

बिहार : मिशनरी पिछड़ी जाति के ईसाइयों को सुनों

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पटना। ईसाई समुदाय खंड-खंड में विभक्त है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, अगड़ी जाति, एंग्लो-इंडियन समुदाय आदि। सबकी अपनी -अपनी समस्याएं है। संविधान के अनुसार ईसाई धर्म कबूलने के बाद भी समस्याएं पूर्व रह गयी। यहां तक और बढ़ ही गयी। केवल धर्म बदलने के बाद भी अनुसूचित जनजाति को आरक्षण मिलता है। इस तरह का प्रावधान भारतीय संविधान में निहित है। वहीं धर्म परिवर्तन करने के बाद दलित पिछड़ी जाति के श्रेणी में आ जाता है और उसे पिछड़ी जाति का आरक्षण दिया जाता है। धर्म के साथ भेदभाव शुरू कर दिया जाता है। केवल मुसलमान और ईसाई समुदाय को निशाना बनाया गया। एंग्लों-इंडियन समुदायः इस समुदाय को लोक सभा और विधान सभा में एक पद आरक्षित कर दिया गया। 15 नवम्बर, 2000 में झारखंड विभाजन के बाद एंग्लो-इंडियन समुदाय का गढ़ झारखंड में चले जाने से झारखंड विधान सभा में समुदाय के प्रतिनिधि विधायक बन पाते हैं। इस समुदाय की संख्या बिहार में कम होने के कारण बिहार विधान सभा में समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है। हालांकि कई प्रयास किया गया। परन्तु सफलता चरण नहीं छू पायी है। 


ईसाई पिछड़ी जातिः क्रिश्चियन वेलफेयर कमिटी द्वारा पिछड़ी जाति के ईसाइयों को आरक्षण दिलवाने का प्रयास चला। इसमें सफलता भी मिली। Christian converts from other backward classes अर्थात हिन्दू ओबीसी से धर्मान्तरण करके ईसाई बने लोग व जातियां भी रहेगी ओबीसी। मगर ईसाई समुदाय फायदा नहीं उठा सके। बहुत ही कम अनुपात में आरक्षण मिलने से समुदाय प्रयास ही नहीं करता है। कुछ होशियार लोग फायदा उठाते हैं। किसी तरह के मिशन-विजन को लेकर मिशनरी लोग संस्था बना रखे हैं। इन संस्थाओं में भी पिछड़ी जाति के ईसाइयों को उपेक्षित कर दिया जाता है। इसमें आदिम जाति,दलित और एंग्लों-इंडियन समुदाय को प्रमुखता दी जाती है। पिछड़ी जाति को सरकार और मिशनरियों से लाभ नहीं मिल पाता है। आदिम जाति को आरक्षण मिलने के बाद भी आदिम जाति की स्थिति खराब है। सरकार के द्वारा खास फोकस नहीं दिये जाने से परेशान रहते हैं। महानगरों में घरेलु नौकर बनकर रह जाते हैं। जहां शारीरिक शोषण भी होता है। वहीं दलित समुदाय दोहरी जातीयता से परेशान हैं। सनातन धर्म को सामने रखकर आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। मिशन में शिक्षा ग्रहण करते हैं और सरकारी नौकरी में हाथ साफ करते हैं।  धर्म परिवर्तन करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को पिछड़ी जाति के रूप में आरक्षण नहीं है। जबकि अल्पसंख्यकों में भी गरीब और लाचार लोग हैं। यहीं पिछड़ी जाति के अल्पसंख्यक अधिकार की मांग सरकार और मिशनरी से करते हैं। ऐसा नहीं होने पर बवाल काटते हैं।

संवैधानिक अधिकार रूपी आरक्षण प्राप्त करने के बाद भी मिशनरियों द्वारा अनुसूचित जनजाति के लोगों को ही ख्याल रखा जाता है। इनको सहुलियत से मिशन में कार्य देते हैं। प्रशिक्षण में भी प्रमुखता देते हैं। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के के लोग धर्म परिवर्तन के बाद भी आरक्षण सुविधा पा रहे हैं। Christian converts from SC अर्थात एससी/अनुसूचित जाति से कन्वटेंड होकर धर्मान्तरण किये हुए हिंदु लोग एवं जातियां एक पायदान ऊपर चढ़कर ओबीसी/पिछड़ी जाति बन जाती है। उन पर हुए हजारों साल के अत्याचार की दास्तान खत्म ? ईसाई धर्म के बदले सनातन धर्म कहकर लाभान्वित हो रहे हैं। ऐसे लोगों को भी मिशनरी आश्रय देते हैं। नौकरी और प्रशिक्षण में प्रश्रय देते हैं। पिछड़ी जाति के लोगों को ठेंगा दिखाने पर अमादा हैं। कई मिशनरी सबक सिखाने पर अमादा हैं। ऐसे लोगों को सबक सिखाने की जरूरत है। 

बिहार : मिशनरियों के कोपभाजन के शिकार एण्ड्रू आंजिलों

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  • श्रम न्यायालय और पटना उच्च न्यायालय में दौड़ लगाने को बाध्य

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पटना। श्रम न्यायालय और पटना उच्च न्यायालय में दौड़ लगाने को बाध्य हैं एण्ड्रू आंजिलों। संत जेवियर हाई स्कूल में कार्यरत थे। यहां के प्रबंधकों ने शारीरिक अक्षमता का आरोप लगाकर एण्ड्रू उर्फ मुन्ना को नौकरी से बाहर कर दिया। इस अन्याय के खिलाफ न्याय प्राप्त करने के प्रयास में महत्वपूर्ण 18 साल गुजर गया। अगर नौकरी में रहते तो 2018 में अवकाश ग्रहण करते। अभी दीघा क्षेत्र के बालूपर मोहल्ला में रहते हैं। गौरतलब है कि मिशनरी फादरों द्वारा नौकरी से बाहर करने के बाद भी ‘धर्म’ को टा-टा-बाई-बाई नहीं किये। कितने लोग हैं जो पादरियों के कुकृत्य के कारण धर्म को छोड़ देते हैं। मिस्सा-पूजा से नफरत करने लगते हैं। परन्तु ऐसा एण्ड्रू ने नहीं किया। आजकल ईसाई समुदाय का दुखभोग चल रहा है। ईसा मसीह को 40 दिन-रात तकलीफ दी गयी थी। आखिरकार क्रूस पर चढ़ाकर मार दिया गया। उक्त यातना को 14 खंडों में दर्शाया गया है। इसे 14 मुकाम कहा जाता है। इसी 14 मुकाम में श्रद्धापूर्वक एण्ड्रू भाग लिये। 


मौके पर उन्होंने कहा कि ईसा मसीह 40 दिन-रात कष्ट सहें। हम तो 18 साल से परेशान हैं। परेशान करने वाले ईसा मसीह के ही प्रतिनिधित्व करने वाले पादरी हैं। जो दुख के समन्दर में डाल दिया है। 18 साल से परेशानी के दलदल में हूं। कोई भी राहत देने के मूड में नहीं हैं। समझा जाता है कि अवकाश ग्रहण करने के साल 2018 में समझौता करेंगे। श्रम न्यायालय और पटना उच्च न्यायालय ने नौकरी में रखने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। एक दिन बहाल करने के बाद कहा गया कि अंतिम प्रस्ताव आने के बाद नौकरी में रखेंगे। फिलवक्त मामले को अधर में मिशनरियों ने लटका दिया है। 

बिहार में 18 वर्षों से मुन्ना संघर्षरत है मिशनरियों सेः आप केवल नाम पर नहीं जाये। अब ‘मुन्ना’ मुन्ना नहीं रहा वरण मिशनरियों को नाक में दम करने वाले हस्ति बन गये हैं। यह तो निश्चित है कि अकेले मुन्ना बहुत कुछ नहीं कर सकता है। ईसाई समुदाय से सहयोग नहीं मिलता है। कोई संस्था/संगठन नहीं है जो सहायता कर सके। केवल मुन्ना की धर्मपत्नी ही सहायक है। उनकी धर्मपत्नी सोनिया जैकब हैं। सरकारी टीचर हैं। जो आर्थिक सहायता प्रदान करती है। दोनों के बीच संबंध प्रगाढ़ है। घर के अंदर तनाव नहीं है। दोनों मिलकर मुकाबला कर रहे हैं। वहीं मिशनरियों को भी किसी को सलीब पर लटकाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मिशनरियों के आंतक के शिकार कोई नहीं हो। इस पर महाधर्माध्यक्ष को कदम उठाने की जरूरत है।

बिहार : विकास के डगर पर नहीं पहुंच पाएं हैं मुसहर समुदाय

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पटना। आजादी के सात दशक के बाद भी विकास के डगर पर नहीं पहुंच पाएं हैं मुसहर समुदाय। सीएम नीतीश कुमार ने सत्ता आसीन की पहली पाली में ही महादलित आयोग निर्माण कर दिया। दलितों में केवल छोड़ ‘दुसाध’को छोड़कर सभी दलितों को महादलित आयोग में शामिल किया गया। जब बिहार सरकार के द्वारा गठित महादलित आयोग से मुसहर समुदाय का विकास नहीं हो सका तो विपक्ष के लोग मिलकर महादलित आयोग के अभिन्न अंग मुसहर समुदाय को अनुसूचित जाति से निकालकर अनुसूचित जन जाति में शामिल करने की मांग करने लगे। इसमें मुसहर समुदाय के नेतृत्व करने वाले जीतन राम मांझी, उमेश मांझी, अयज मांझी आदि नेताओं ने ताबड़तोड़ मांग करने लगे। परन्तु अपनी मांग को पूर्ण करवाने में असफल रहें।


खैर, किसी तरह से जीतन राम मांझी को सीएम बनने का मौका मिला। अपने कार्यकाल में पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी अपनी मांग को पूर्ण करने की दिशा में कारगर कदम नहीं उठाया। इसका परिणाम सामने हैं। जानकार लोगों का कहना है कि अभी महादलित मुसहर समुदाय के लोग अनुसूचित जाति की श्रेणी में हैं। अगर उनको अनुसूचित जाति की श्रेणी से निकालकर अनुसूचित जन जाति में शामिल करना है तो उनकी इथनोग्राफी रिपोर्ट( नृवंशविज्ञान रिपोर्ट) पेश करनी चाहिए। तब जाकर साफ जाहिर होगा कि अनुसूचित जन जाति मूल से संबंधित है। जो सरकार और विपक्षी करवाने के मूड में नहीं है।

बिहार : राजधानी में त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत का खात्मा

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पटना। राजधानी में त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत का खात्मा। इसमें पूर्वी मैनपुरा ग्राम पंचायत, पश्चिमी मैनपुरा ग्राम पंचायत, उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत, पूर्वी दीघा ग्राम पंचायत और पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत शामिल है। अब पटना नगर निगम के अभिन्न अंग है। अबतक त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत द्वारा कार्य अधूरा छोड़ा गया है। उसे पूरा करने का दायित्व पटना नगर निगम के जिम्मे आ गया है। अब इस तरह का आसरा लोग करने लगे हैं। सबसे अधिक उम्मीद पाल रखे हैं दीघा थाना क्षेत्र में है बांसकोठी क्रिश्चियन कॉलोनी के लोग। यहां के अल्पसंख्यक ईसाइयों के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अख्तियार किया है जन प्रतिनिधियों ने। इन तथाकथित जन प्रतिनिधियों ने केवल पटना-दीघा मुख्य मार्ग से संर्पक मार्ग को ही शाइनिंग इंडिया की तरह शाइनिंग बना रखे हैं। शेष मार्ग चलने लायक भी नहीं है। मार्ग पर जल जमाव और कांदों का राज है। खैर, अभी तक बांसकोठी क्रिश्चियन कॉलोनी उपेक्षित रहा है पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधियों से। खासकर विकास कार्य देखने वाले मुखिया और सदस्य ने सुधारात्मक कदम उठाया ही नहीं। केवल राशि का रोना रोकर लोगों को नरक में जीने को बाध्य कर दिया। अब जबकि ग्राम पंचायत को अधिग्रहण कर नगर निगम बना दिया गया है। अब वार्ड काउंसिलरों का दायित्व होगा। जो लोगों को नारकीय परिवेश से बाहर निकाल सके। 

बिहार : राजधानी पटना में नगर परिषद चुनाव

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municipel-corporation-electionपटना। राजधानी पटना में नगर परिषद दानापुर निजामत,पटना नगर निगम, पटना सिटी अंचल,नूतन राजधानी अंचल में चुनाव होने वाला है। संभवतः मई माह के प्रथम सप्ताह में चुनाव होगा। पटना नगर निगम अन्तर्गत नूतन राजधानी अंचल है। इसमें वार्ड नम्बर-1 है। इस वार्ड में एक्स.टी.टी.आई. है। प्रारंभ में पटना-दीघा मुख्य मार्ग से सम्र्पक मार्ग से ही एक्स.टी.टी.आई. आवाजाही करते थे। इस सम्र्पक मार्ग की बायीं और दायीं ओर मकान बना है। मुख्य सड़क से आने पर बायीं ओर पांच गली है। इसमें जन प्रतिनिधियों के सहयोग से गली का निर्माण कर पक्का कर दिया गया है। 2 गली आगे और 2 गली पीछे को पक्का कर दिया गया है। बीच वाले को छोड़ दिया गया है। यह समझ से परे की बात है। आखिर आगे और पीछे निर्माण किये गये और बीच वाले को छोड़ दिया गया। इस उपेक्षित गली को निर्माण करने की जरूरत है। इससे लोगों के बीच गलतफहमी दूर होगा। जनप्रतिनिधियों द्वारा पक्षपात किया गया है। राजधानी पटना में नगर परिषद दानापुर निजामत और पटना नगर निगम से निर्मित अंचल में चुनाव होने वाला है। संभवतः मई माह के प्रथम सप्ताह में चुनाव होगा। यहां पर येसु समाज में शामिल होने वालों की पढ़ाई होती है। नवशिष्यालय के लोग मरियम टोला है। 


प्यार, नफरत, विश्वास, धोखे, और जुनून की कहानी है फिल्म "मिर्ज़ा जूलिएट"

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ख्वाहिशों और जुनून से भरी इस दुनिया में अलग-अलग लोगों की अलग तरह की इच्छाएं और महत्वाकांक्षायें हैं.. जहाँ कुछ लोग पॉवर के लिए दिन रात एक कर रहे हैं तो वहीँ कुछ लोग केवल अपने प्यार को पाने के लिए जान की बाजी लगाए हुए हैं... सवाल उठता है कि अपने पॉवर या प्यार को पाने के लिए कोई इंसान कैसा आदर्श प्रस्तुत कर सकता है या किस हद तक गिर सकता है.. प्रेम, नफरत, वासना, विश्वास, दोस्ती,  हेरफेर और सभी मिश्रित भ्रम की तरह मजबूत भावनाओं की कहानी है मिर्ज़ा-जूलिएट.. 7 अप्रैल को सिनेमाघरों में आने के लिए तैयार फिल्म मिर्ज़ा-जूलिएट का निर्देशन किया है “राजेश राम सिंह” ने और “मैरीकॉम, एन एच 10, और सरबजीत” जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके दर्शन कुमार फिल्म फ़िल्म मिर्ज़ा-जूलिएट के मिर्ज़ा बने हैं और दक्षिण भारत की दर्जनों हिट फिल्मों के आलावा हिंदी फिल्म “लाल रंग” में सराही गयी अभिनेत्री पिया बाजपेयी बनी हैं मिर्ज़ा की जूलिएट.. 


किसी भी फिल्म का मुख्य आकर्षण होता है उसका गीत-संगीत.. निर्माता अमित सिंह बताते हैं कि गीत-संगीत के मामले में मिर्ज़ा-जूलिएट एक कम्प्लीट एल्बम है.. फिल्म का पहला गाना “टुकड़ा-टुकड़ा” ही युवाओं के बीच लोकप्रिय हो चुका है और बाकी के गाने भी जुबान पर चढ़ने में वक्त नहीं लेंगे... ७ अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म मिर्ज़ा-जूलिएट ऐसी प्रेम कहानी है जिससे आज का युवा वर्ग अपने आप को आसानी से जोड़ पायेगा.... 

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