बेकसूर कुलभूषण को बिना ठोस आधार व सबूत के पाकिस्तानी सेना द्वारा फांसी की सजा देने का ऐलान से साबित होता है कि वह भारत का कितना बड़ा कट्टर दुश्मन है। हालांकि गृहमंत्री ने साफ तौर पर कहा है कि पाक की यह हरकत सीधे तौर पर हत्या है? इसका वह हर संभव जवाब देंगे। कुलभूषण को बचाने का पूरा प्रयास करेंगे। मामला अंतष्ट्रीय मंच पर ले जायेंगे?
हो जो भी, सच तो यही है कि एक के बाद एक भारत की तरफ से दी जा रही चुनौतियों से पाकिस्तान बौखला गया है। अपनी आतंकी जमातों पर काबू ना कर पाने की विफलता के बीच अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की कोशिशों से अलग-थलग पड़ता पाकिस्तान कुलभूषण जाधव के बहाने भारत से बदला लेना चाहता है। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बलोचिस्तानियों के प्रति हमदर्दी का इजहार करना पाकिस्तान पचा नहीं पा रहा है। माना जा रहा है कि निर्दोष कुलभूषण को फांसी का ऐलान किया जाना उसी का एक हिस्सा है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या कुलभूषण को फांसी देकर पाकिस्तानी सेना बलोचिस्तान का बदला लेना चाहती है? या फिर यह नवाज शरीफ की मोदी को छद्म युद्ध की चुनौती है? फिरहाल, कुलभूषण को मौत की सजा सुनाकर पाकिस्तान ने अपनी ओछी हरकत का जीता-जागता सबूत पेश किया है। माना जा रहा है कि पाकिस्तान की यह हरकत भारत से संबंध सुधार की रही-सही उम्मीदों पर बट्टा लगाने का ही काम किया है। गौर करने वाली बात यह है कि कुलभूषण जाधव मामले में भारत ने सख्त रुख अपनाया है। विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित को तलब करते हुए कहा है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि कुलभूषण को फांसी की सजा दी जाएं। लेकिन पाकिस्तान यदि अपने नापाक इरादों के साथ आगे बढ़ता है तो भारत इसे एक हत्या की तरह देखेगा। भारत द्वारा पाकिस्तान को आगाह करने का ही परिणाम है कि अब पाकिस्तान का रुख नरम पड़ता दिख रहा है। रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा है कि जाधव को फांसी की सजा पर तुरंत अमल नहीं किया जाएगा। कानून के तहत अभी उनके पास तीन बार अपील करने का विकल्प है। पाकिस्तान की यह नरमी भारतीयों के लिए गर्व की बात है, लेकिन उसके दोगलेपन से वाकिब हर भारतीय जानना चाहता है कि बेकसूर कुलभूषण को बचाने का भारत के पास आखिरी रास्ता क्या है? वैसे भी कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन नहीं किया है। भारत सरकार ने 11 बार लिखित रूप में और 2 बार मौखिक रूप में जाधव को वकील मुहैया कराने की पेशकश की, जिसे पाकिस्तान ने ठुकरा दिया। मतलब साफ है कुलभूषण को यदि फांसी दी गयी तो यह इंसानियत और कानून के खिलाफ होगा। क्योंकि बलूचिस्तान में कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सैन्य-तंत्र ने जिस तरह कब्जे में लिया, उसे कोई भी सभ्य मुल्क गिरफ्तारी की संज्ञा नहीं देगा। यह सीधे-सीधे एक विदेशी नागरिक को अगवा करने की कार्रवाई थी। अगवा करने के बाद जाधव पर जासूसी के आरोप मढ़े गये और पाकिस्तानी सैन्य-अदालत ने गुपचुप मुकदमा चला कर मात्र एक साल के भीतर फांसी की सजा भी सुना दी। किसी विदेशी नागरिक को फांसी की सजा सुनाने के मामले में ऐसी हड़बड़ी का परिचय शायद ही किसी सभ्य मुल्क ने दिया हो। पाकिस्तान फांसी की सजा के पक्ष में जो सबूत पेश कर रहा है, उसे अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ लचर बता रहे हैं।
बता दें, पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाई गई है। पाकिस्तान में उनकी पिछले साल तीन मार्च को गिरफ्तारी हुई थी। उन्हे पाकिस्तान के बलूचिस्तान में गिरफ्तार किया गया था और पाकिस्तान ने उनपर भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के एजेंट होने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान ने 6 मिनट का एक वीडियो जारी किया था। जिसमें जाधव को स्वीकार करते हुए दिखाया गया था कि वो रॉ के एजेंट है और वो अभी भी भारतीय नौसेना के साथ है। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि कुलभूषण के खिलाफ पाकिस्तान के पास पर्याप्त सूबत हैं। जबकि मुंबई निवासी कुलभूषण जाधव के बाबत भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर जारी बयान में कहा गया था कि गिरफ्तार व्यक्ति के बयान से साफ संकेत मिलता है कि यह सिखा पढ़ा कर तैयार कराया गया वीडियो है। या फिर इस वीडियों के साथ छेड़छाड़ किया गया है। पाकिस्तान की पोल तब भी खुली थी जब पाकिस्तानी सेना की ओर से यह दावा किया गया था कि उनके सेनाध्यक्ष ने इस्लामाबाद की यात्रा पर आए ईरान के राष्ट्रपति से कुलभूषण के मामले में बात की है। जबकि ईरानी राष्ट्रपति ने तत्काल ही ऐसी किसी बातचीत को बकवास करार दिया था। खास यह है कि कोई भी मुल्क जासूसी के मिशन पर अपने सैन्य-अधिकारी को उसकी वास्तविक नागरिकता जाहिर करने वाले पासपोर्ट के साथ नहीं भेजता। इस ढीलापोली के बावजूद पाकिस्तान की फौजी अदालत को जाधव के लिए मृत्युदंड ही उचित लगा तो उसकी नीयत को समझना होगा। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में इस अदालत के खिलाफ पहले से ही मुकदमा कायम है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान इकलौता मुल्क है, जिसकी फौज सड़क चलते लोगों को उठाकर बंद कमरे में उनपर मुकदमा चलाती है। दुनिया के तमाम देशों में फौजी अदालते हैं, भारत में भी हैं, लेकिन वे फौज से जुड़े मामले ही देखती हैं। बाकी सारे मामले, चाहे वे कितने भी विकट क्यों न हो, नागरिक अदालतों में ही अपने अंजाम तक पहुंचते हैं। मुंबई आतंकी हमले के बाद अजमल कसाब पर दो साल मुकदमा चला, सारे सबूत खुली अदालत में पेश हुए और पाकिस्तान को उनमें से एक पर भी एतराज करते नहीं बना। इतना ही नहीं, भारत-पाक बंटवारे के बाद से भारत ने जितने भी पाकिस्तानी जासूस पकड़े, एक को भी सजा-ए-मौत नहीं दी। कुलभूषण जाधव का मामला पाकिस्तान में लोकतंत्र की हैसियत भी जाहिर करता है। इस देश को सोचना होगा कि निराधार आरोप के तहत एक भारतीय को सबसे बड़ी सजा सुनाकर वह दोनों देशों के रिश्ते इतने खराब कर लेगा, कि वहां से वापसी बहुत मुश्किल हो जाएगी।
गृह मंत्रालय भारत की ओर से उसी वक्त बताया गया था कि कुलभूषण भारतीय है, नौसेना से सेवानिवृत्त हो चुका है और रिटायरमेंट के समय से ही उसका सरकार से कोई संपर्क नहीं रहा है। संभव है पाक सेना उसका किडनैपिंग की हो। जबकि मार्च, 2016 में पाकिस्तान आर्मी ने जाधव के कथित कबूलनामे का वीडियो जारी किया था। वीडियो में जाधव ने कहा कि वह मुंबई में रहता है। अब भी वह भारतीय नौसेना का अधिकारी है, जिसकी सेवानिवृत्ति 2022 में होनी है। उसने कहा कि उसने वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद खुफिया विभाग में काम करने से करियर शुरू किया था। बाद में उसने ईरान में छोटे स्तर पर व्यापार शुरू किया। जिसकी वजह से उसे पाकिस्तान आने-जाने में सहूलियत होने लगी। वर्ष 2013 में उसे रॉ एजेंट बना लिया गया। उसके मुताबिक उसे 3 मार्च को ईरान से पाकिस्तान में घुसने की कोशिश के दौरान ही गिरफ्तार किया गया। पाकिस्तान ने आरोप लगाया था, जाधव इंडियन नेवी का सर्विंग अफसर है। उसे सीधे रॉ चीफ हैंडल करते हैं। वो एनएसए के भी टच में है। आपका मंकी (जासूस) हमारे पास है। उसने वो कोड भी बताया है, जिससे वह रॉ से कॉन्टैक्ट करता था। उसके पास से बरामद पासपोर्ट में उसका नाम हुसैन मुबारक पटेल लिखा है। उसका जन्मस्थान महाराष्ट्र का सांगली बताया गया है। पाकिस्तान ने उसके पास ईरान का वैध वीजा होने का भी दावा किया था। हालांकि 7 दिसंबर, 2016 को नवाज शरीफ के फॉरेन अफेयर्स एडवाइजर सरताज अजीज ने पाकिस्तानी टीवी चैनल जिओ के एक इंटरव्यू में कहा था, ‘गिरफ्तार किए गए भारतीय जासूस जाधव ने सिर्फ बयान दिया है, लेकिन इसके अलावा उसके खिलाफ हमारी सरकार और एजेंसियों के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। भारत को दिए जाने वाले डोजियर में जो सबूत हमने रखे हैं, वो काफी नहीं हैं। अब एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि वो जाधव के खिलाफ सबूत जुटाने में कितना वक्त लगाती हैं।
सूत्रों की मानें तो कूलभूषण को ईरान से गिरफ्तार किया गया था। जबकि पाकिस्तान की तरफ से उस वक्त कहा गया कि जाधव को बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया गया है। इसके बाद से ही भारत सरकार कूलभूषण से मिलने की पाकिस्तान सरकार से कई बार इजाजत मांगी थी। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने आजतक इजाजत नहीं दी। अब इसी बात को लेकर भारत सरकार पाकिस्तान से इस फैसले पर जवाब तलब कर सकती है। फिरहाल, जिस पाकिस्तान की बुनियाद ही नफरत और मजहब के नाम पर पड़ी है उससे न्याय की उम्मींद करना बेमानी है। लेकिन पाकिस्तान को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है, जो झुकना नहीं चाहते। बावजूद इसके भारत ने आपा ना खोते हुए मामले को न्याय के अंतराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की बात कह कर समझदारी भरा कदम उठाया है। अगर पाकिस्तान की सरकार दुनिया के महत्वपूर्ण देशों की नजर में आगे और अविश्वसनीय नहीं होना चाहती और अपने मुल्क में लोकतंत्र की हिफाजत के लिए सचमुच प्रतिबद्ध है, तो उसे जाधव के मामले में इंसाफ के अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों का हर हाल में पालन करना चाहिए। कुछ उसी अंदाज में गृहमंत्री के बयान को भी लिया जा सकता है। जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि बेकसूर जाधव के खिलाफ कोई भी कार्रवाई भारत सहन नहीं करेगा। यह भी एक तथ्य है कि खुद पाकिस्तान में अनेक लोग यह मानते हैं कि कुलभूषण जाधव को अगवा कर उसे रॉ एजेंट इसलिए करार दिया गया, क्योंकि पाकिस्तानी सेना को प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की भारत से संबंध सुधार की कोशिश रास नहीं आ रही थी। चूंकि अब नवाज शरीफ राजनीतिक रूप से और कमजोर हो चुके हैं इसलिए इसकी उम्मीद कम है कि वह अपनी ही सेना की गंदी हरकत के खिलाफ कुछ कर सकेंगे। ऐसे में यह और आवश्यक हो जाता है कि भारत सरकार कुलभूषण जाधव का हश्र सरबजीत जैसा न होने दे। इसके लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए। भारत को इस्लामाबाद ही नहीं, सारी दुनिया को यह संदेश देने की जरूरत है कि पाकिस्तान किसी भारतीय नागरिक से मनमानी नहीं कर सकता।
(सुरेश गांधी)