- गोपाल कृष्ण गांधी को राष्ट्रपति उम्मीदवार के बतौर पेश करने का माले का प्रस्ताव, वाम दलों में सहमति.
पटना 12 जून, आज जहां एक ओर विजय माल्या जैसा कारोबारी सरकारी बैंकों का हजारो-हजार करोड रुपया लेकर विदेशों में मौज कर रहा है और देश की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है, वहीं वही सरकार लाख-हजार की कर्ज माफी के सवाल पर आंदोलनरत किसानों पर गोलियों चलवा रही है और उनकी हत्यायें करवा रही है. भाजपा शासित प्रदेशों में चाहे वह महाराष्ट्र हो या फिर मध्यप्रदेश हर जगह किसानों पर दमन ढाया जा रहा है. मंदसौर में 6 किसानों की निर्मम हत्या शर्मसार कर देने वाली है. किसान आंदोलन के दवाब में तो महाराष्ट्र सरकार ने कर्ज माफी की घोषणा की है, लेकिन यह काफी नहीं है. भाकपा-माले मांग करती है कि पूरे देश में किसानों की कर्ज माफी हो और स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं को लागू किया जाए. सभी फसलों के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान किया जाए. किसानों पर बर्बर पुलिसिया दमन के खिलाफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इस्तीफे, सरकारी व महाजनी कर्ज की माफी और सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के सवाल पर आगामी 15 जून को भाकपा-माले व अखिल भारतीय किसान महासभा की ओर से पूरे राज्य में प्रतिवाद किया जाएगा. 16 जून को राष्ट्रीय स्तर पर किसान संगठनों का संयुक्त प्रतिरोध का कार्यक्रम लिया जा रहा है. इसे भी हमारा शत-प्रतिशत समर्थन होगा.
आज जब भाजपा देश में तमाम संवैधानिक पदों को हड़प कर फासीवाद को थोप देने के लिए बेचैन है, ऐसी स्थिति में हमें अगले महीन होने वाले राष्ट्रपति पद की गरिमा को बचाए रखने के लिए आगे आना होगा. भाकपा-माले का प्रस्ताव है कि महात्मा गांधी के परपौत्र, पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन के नजदीकी व बंगाल के पूर्व गर्वनर तथा जनांदोलनों से गहरे सरोकार रखने वाले श्री गोपाल कृष्ण गांधी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जाए. इस सवाल पर वामदलों के बीच चर्चा हुई है और हम चाहते हैं कि अन्य दल भी इस प्रस्ताव के साथ आगे आयें. आज जब भाजपा ने गांधी जी पर भी हमला बोल दिया है, ऐसी स्थिति में इस प्रस्ताव की साथर्कता काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. भाजपा का सांप्रदायिक अभियान के खिलाफ आज छात्र-नौजवान-किसान और दलित समुदाय के लोग खुलकर लड़ रहे हैं. यूपी में योगी राज में न केवल सांप्रदायिक उत्पात मचाया जा रहा है, बल्कि दलितों पर भी नई किस्म की हिंसा देखने को मिल रही है, तब भीम आर्मी का गठन एक स्वागतयोग्य पहलकदमी है. इस तरह के आंदोलनों की व्यापक एकता की जरूरत है. बिहार में नीतीश सरकार ढोंग के सिवा कुछ नहीं कर रही है. नाम तो वह गांधी का लेती है, चंपारण सत्याग्रह का लेती है, लेकिन आज पूरे बिहार में जमीन से गरीबों की बेदखली की जा रही है. चंपारण में लाखों एकड़ जमीन गैरमजरूआ, सीलिंग से फाजिल मिल मालिकों के कब्जे में है, लेकिन सरकार उसे गरीबों के बीच वितरित नहीं करवा रही है. ऐसी स्थिति में सरकार कौन सा सत्याग्रह शताब्दी वर्ष मना रही है.
जिस प्रकार से भूमि के अतिमहत्वपूर्ण सवाल से नीतीश सरकार ने किनारा कर लिया है, शिक्षा का भी सवाल उसके लिए गौण विषय है. शिक्षा को सरकार ने धंधा बना दिया है. पिछले साल टाॅपर घोटाला हुआ और इस बार के शिक्षा घोटाले ने तो सरकार की पूरी असलियत खोल दी है. साढ़े आठ लाख बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है. छात्र न्याय मांगने जाते हैं, तो उनपर लाठियां चलती हैं. यह कहां का सामाजिक न्याय है? हमारी पार्टी, खेग्रामस व किसान महासभा आगामी विधानसभा के सत्र के दौरान भूमि के सवाल को प्रमुखता से विधानसभा के समक्ष उठाएगी और दो दिवसीय धरना देगी.