आर्यावर्त डेस्क,25 जून,2017,बैंगलोर कर्णाटक के गृह मंत्री जी.परमेश्वर का इस्तीफा मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या की सिफारिश पर राज्यपाल वज्जुभाई वाला ने स्वीकार कर लिया है.फ़िलहाल खाली हुए गृह मंत्री पद पर किसी की ताजपोशी नहीं हुयी है या यूं कहें कि कोई भी मंत्री गृह मंत्रालय सँभालने को राजी नहीं है.इस कारण अगली नियुक्ति तक गृह विभाग की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री के पास ही रहेगी. गौतलब है किअगले वर्ष २०१८ में कर्णाटक विधान सभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस किसी भी कीमत पर इस महत्वपूर्ण राज्य पर सत्ता बरक़रार रखना चाहती है.इसी रणनीति की वजह से कांग्रेस आलाकमान की तरफ से परमेश्वर को पुनः संगठन को मजबूत करने और चुनावी रणनीति को मजबूती प्रदान करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी है. २१०३ में भी परमेश्वर के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने लम्बे समय बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी.परमेश्वर २ नवंबर ,२०१५ को गृह मंत्री बने थे और पिछले साढ़े छह से कर्णाटक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
कर्णाटक के गृह मंत्री का इस्तीफा
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कर्णाटक में सिनेमा पर्यटन बढ़ेगा
आर्यावर्त डेस्क,27 जून,2017, बैंगलोर , कर्णाटक सरकार ने प्रदेश के पर्यटन और रमणीक स्थलों को सिनेमा की शूटिंग के लिए उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है.राज्य सरकार का मानना है कि सिनेमा के लावण्य से प्रदेश में देशी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने में सफलता मिलेगी .पर्यटन विभाग आगामी विधान सभा सत्र में इस विषय पर नीतिगत मसौदा प्रस्तुत करेगा.राज्य सरकार सिनेमा देशाटन पर फिल्म उद्योग से भी बातचीत कर रूप रेखा बना रही है.
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29 शहरों के साथ बैंगलोर स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल
आर्यावर्त डेस्क,27 जून,2017,बैंगलोर, पूरे विश्व में भारत के सिलिकॉन वैली के रूप में ख्यात कर्णाटक की राजधानी बैंगलोर शहर को केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना के तीसरे चरण में ३० नए स्मार्ट शहरों की सूची में शामिल किया गया है.जानकार बताते हैं कि राजधानी बैंगलोर के स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल होने के बाद अब राज्य के अन्य शहरों के लिए स्मार्ट सिटी में शामिल होने का रास्ता बंद हो गया है.सूत्रों के मुताबिक कर्णाटक सरकार ने बैंगलोर के अतिरिक्त ११ अन्य नगर निगम क्षेत्रों को इस परियोजना में शामिल करने का प्रस्ताव दिया था लेकिन प्रथम दो चरणों में राज्य के ६ अन्य शहरों को शामिल किये जाने की वजह से अब और शहरों को जोड़ने की गुंजाइश नहीं रह गयी है.कर्णाटक से राजधानी बैंगलोर के अलावा हुब्बली-धारवाड़ ,टुमकुरु,मैंगलोर,बेलगामी ,दावणगेरे और शिवमोगा को स्मार्ट सिटी परियोजना में जगह मिली है.देश में सबसे स्वच्छ शहरों में शामिल मैसूर स्मार्ट सिटी परियोजना में स्थान नहीं बना सका. २९ अन्य शहरों में तिरुवनंतपुरम, नया रायपुर, राजकोट, अमरावती, पटना, करीमनगर, मुजफ्फरपुर, पुडुचेरी, गांधीनगर, श्रीनगर, सागर, करनाल, सतना, शिमला, देहरादून, तिरुपुर, पिम्परी-चिंचवाड़, बिलासपुर, पासीघाट, जम्मू, दाहोद, तिरुनेलवेली, थुटकुड़ी, त्रिचिरापल्ली, झाँसी, आइज़ोल, इलाहाबाद, अलीगढ, गंगटोक शामिल है. इन ३० शहरों को स्मार्ट बनाने में ५७,३९३ करोड़ रुपयों के निवेश का प्रस्ताव है
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व्यंग्य : माननीयों का महाचुनाव....!!
देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद यानी राष्ट्पति के बारे में मुझेे पहली जानकारी स्कूली जीवन में मिली , जब किसी पूर्व राषट्रपति के निधन के चलते मेरे स्कूल में छुट्टी हो गई थी। तब में प्राथमिक कक्षा का छात्र था। मन ही मन तमाम सवालों से जूझता हुआ मैं घर लौट आया था। मेरा अंतर्मन किसी के देहावसान पर सार्वजनिक छुट्टी के मायने तलाशने लगा। इसके बाद बचपन में ही वायु सेना केंद्र में आयोजित एक समारोह में जाने का मौका मिला, जहां मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय मंचासीन थे। कॉलेज तक पहुंचते - पहुंचते राजनेताओं के सार्वजनिक जीवन में मेरी दिलचस्पी लगातार बढ़ती गई। प्रधानमंत्री - राष्ट्रपति , राज्यपाल - मुख्यमंत्री , विधानसभा अध्यक्ष या मुख्य सचिव जैसे पदों में टकरावों की घटना का विश्लेषण करते हुए मैं सोच में पड़ जाता कि कि आखिर इनमें ज्यादा ताकतवर कौन है। क्योंकि तात्कालीन पत्र - पत्रिकाओं में विभिन्न राजनेताओं के बीच अहं के टकराव से संबंधित खबरें मीडिया की सुर्खियां बना करती थी।तब की पत्र - पत्रिकाओं में इससे जुड़़ी खबरें चटखारों के साथ परोसी और पढ़ी जाती थी। मैं उलझन में पड़ जाता क्योंकि पद बड़ा किसी और का बताया जा रहा है जबकि जलवा किसी और का है।यह आखिर कैसा विरोधाभास है। युवावस्था तक देश में कथित बुद्धू बक्से का प्रभाव बढ़ने लगा। इस वजह से ऐसे चुनावों को और ज्यादा नजदीक से जानने - समझने का मौका मिलता रहा। राष्ट्रपति निर्वाचन यानी एक ऐसा चुनाव जिसमें सिर्फ माननीय ही वोट देते हैं।हालांकि इस चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ दल से ज्यादा विपक्षी दलों की उछल - कूद बड़ा रोचक लगता है। इस दौरान आम सहमति जैसे शब्दों का प्रयोग एकाएक काफी बढ़ जाता है। उम्मीदवार के तौर पर कई नाम चर्चा में है। वहीं कुछ बड़े राजनेता बार - बार बयान देकर खुद के राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने की संभावनाओं को खारिज भी करते रहते हैं। यह क्या जिस चुनाव को लेकर विपक्षी संगठन दिन - रात एक किए हुए हैं। वहीं सत्तापक्ष इसे लेकर अमूमन उदासीन ही नजर आता है। विपक्षी दलों की सक्रियता की श्रंखला में चैनलों पर एक से बढ़ एक महंगी कारों में सवार राजनेता हाथ हिला कर अभिवादन करते नजर आते हैं। थोड़ी देर में नजर आता है कि साधारणतः ऐसे हर मौकों पर एकाएक सक्रिय हो जाने वाले तमाम राजनेता किसी वातानुकूलित कक्ष में बैठकें कर रहे हैं। सोफों पर फूलों का गुलदस्ता करीने से सजा हैं। सामने मेज पर चाय - नाश्ते का तगड़ा प्रबंध नजर आता है। चुनाव का समय नजदीक आया और अमूमन हर बार विपक्षी संगठनों की सक्रियता के विपरीत शासक दल ने एक गुमनाम से शख्स का नाम इस पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर आगे कर दिया। लगे हाथ यह भी खुलासा कर दिया जाता है कि उम्मीदवार फलां जाति के हैं। उम्मीदवार के गुणों से ज्यादा उनकी जाति की चर्चा मन में कोफ्त पैदा करती है। लेकिन शायद देश की राजनीति की यह नियति बन चुकी है। फिर शुरू होता है बहस और तर्क - वितर्क का सिलसिला। विश्लेषण से पता चलता है कि चूंकि उम्मीदवार इस जाति से हैं तो सत्तारूढ़ दल को इसका लाभ फलां - फलां प्रेदेशों के चुनाव में मिलना तय है। तभी विरोधी संगठनों की ओर से भी पूरे ठसक के साथ अपने उम्मीदवार की घोषणा संबंधित की जाति के खुलासे के साथ कर दिया जाता है। इस दौरान एक और महा आश्चर्य से पाला पड़ता है। वह उम्मीदवार को समर्थन के सवाल पर अलग - अलग दलों का एकदम विपरीत रुख अख्तियार कर लेना। समझ में नहीं आता कल तक जो राजनैतिक दल एक मुंह से भोजन करते थे। वे देश के सर्वोच्च पद के लिए होने वाले चुनाव के चलते एक दूसरे के इतना खिलाफ कैसे हो सकते हैं। भला कौन सोच सकता था कि यूपीए उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए शिवसेना उस भाजपा के खिलाफ जा सकती है जिसके साथ उसने लंबा राजनीतिक सफर तय किया था। या नीतीश कुमार लालू को छोड़ उस भाजपा का दामन थाम सकते हैं जिसके नाम से ही उन्हें कभी चिढ़ होती थी। विस्मय का यह सिलसिला यही नहीं रुकता। चुनाव संपन्न होने के बाद तमाम दल फिर - अपने - अपने पुराने स्टैंड पर लौट आते हैं। वाकई अपने देश में कहीं न कहीं कोई न कोई चुनाव तो होते ही रहते हैं, लेकिन देश के सर्वोच्च पद के लिए होने वाले चुनाव की बात ही कुछ और है।
तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर (पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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मधुबनी : ईद की खुशियों झूमे मुस्लिम सामुदायिक के बच्चे
अंधराठाढी/मधुबनी ( मोo आलम अंसारी) अंधराठाढी क्षेत्र में सोमवार को ईद मनायी गई । ऐमाम हाजी रहमतूल्लाह शम्सी ने बताया रमजानूल मुबारक के मोकम्मल रोजे पूरे आदरो एहतराम के साथ पूरे होने की खुशी में ईदुल फितर की नमाज बाशिंदगाने जमैला बाजार ने पूरे जोशो खरोश के साथ जमैला बाजार की ईदगाह में बहूत बड़ी तादाद में आपसी इत्तेहादी मिल्ल्त के मुसलमानों ने अदा की जो काबिले दीद थी । मौलाना तैयब रजा ने बताया की एक महीना मुसलमान के लिऐ बहूत ही बा बरकत हो ता है जिस का नाम रमजान नुल्ल मुबारक है ।छोटे बड़े औरत मर्द ,रोजारखने के साथ साथ सौमौसला की पाबंदी करते हैं अजब किसिम का कैफोशुरू का एेहसा होता है ।पूरे महीने रोजा रखने के बाद जब ईद का चाँद नज़र आता है तो हर रोजेदार खुशी से झूम जाता है इसी रमजान मुबारक के अमणो आमना के साथ गुजर जाणे पर सूकरराने तौर पर दो रिकात नमाज आदा करते हैं जिसे ईद फितर की नमाज कहते ! अंधराठाढी प्रखंड विकास पदाधिकारी आलोक कुमार शर्मा ने ईद के मौके पर सब को दिया ईद की हार्दिक शुभकामनाए । युवा मोर्चा के अंधराठाढी प्रखंड अध्यक्ष शैलेन्द्र कुमार मिश्रा ने मुस्लिम धर्म के लोक से जाके मिले ।मुफ्ती कैय्यूम , अतिक रीजब्बी ,मोo एमामूल ,मो.अजीम ,मो.ऐजाज.मो.फैजअकरम उर्फ मुन्ना,आदि मौजूद थे ।
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विशेष आलेख : कोविंद गढ़ सकेंगे पद के नये मानक
इन दिनों की कुछ घटनाएं पूरे राष्ट्र के मानस पटल पर छाई रही हैं। जिनमेें बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद की जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में घोषणा की, वह आश्चर्यकारी एवं अद्भुत घटना है। राजनीतिक गलियारों में अब जबकि राष्ट्रपति पद के पक्ष एवं विपक्ष के उम्मीदवार की घोषणा हो चुकी है, कोविंद की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके समर्थकों के पास इतना संख्या बल है कि वह अपने उम्मीदवार को आसानी से जिता सकते हैं। इसलिये देश के 14वें राष्ट्रपति के रूप में कोविंदजी के प्रति संभावनाएं व्यक्त की जा सकती है कि वे राष्ट्रपति के रूप में नये मानक एवं पद की नयी परिभाषा गढ़ेंगे। यह तो तय था कि प्रधानमंत्री मोदी जिसे चाहेंगे, वही देश का अगला राष्ट्रपति बनेगा, लेकिन देश का राष्ट्रपति सर्वसम्मति से बने, यह एक आदर्श स्थिति है और इसके लिये विपक्ष को सारी परिस्थितियों को देखते हुए इस तरह का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। राजनीति में आदर्श की आशा कैसे संभव हो सकती है? वहां व्यावहारिकता का कोई स्थान नहीं है। आवश्यकता इसी बात की है देश का यह सर्वोच्च पद दलगत राजनीति की सीमाओं का किसी भी रूप में बंदी नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र की सफलता इसी में है और इसका तकाजा है कि राष्ट्रपति के पद को किसी राजनीतिक गणित का हिस्सा भी न बनाया जाये।
हो सकता है राष्ट्रपति चुनाव तक इस पद को लेकर राजनीति होती रहे, लेकिन जैसे ही कोविंदजी राष्ट्रपति बनकर अपनी भूमिका के लिये तैयार होेंगे, उनका हर कार्य और कदम इस सर्वोच्च पद की गरिमा को बढ़ाने वाला होगा, इसमें किसी तरह का सशंय नहीं है। क्योंकि वे एक राजनीतिक व्यक्तित्व ही नहीं है बल्कि एक राष्ट्रीय मूल्यों के प्रतीक पुरुष भी है, वेे हमंे अनेक मोड़ों पर नैतिकता का संदेश देते रहेंगे कि घाल-मेल से अलग रहकर भी जीवन जिया जा सकता है। निडरता से, शुद्धता से, स्वाभिमान से। स्वतंत्र, निष्पक्ष और विवेकपूर्ण निर्णय लेकर वे इस पद की अस्मिता एवं अस्तित्व की रक्षा करेंगे। यह देश की अस्मिता का प्रतीक पद है। इसलिए जरूरी है कि किसी राजनीति दल से जुड़े रहने के बावजूद देश का राष्ट्रपति दलीय राजनीति से ऊपर हो, निष्पक्ष हो। अब तक के कोविंदजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से यही उजागर हुआ है। राष्ट्रपति बनने के बाद वे राजनीति की भांति ही संवैधानिक जिम्मेदारियों को भी बेखूबी निभायेंगे, ऐसी आशा है।
भाजपा की एक पहचान उच्च वर्ण की पार्टी के रूप में भी रही है और वोटों के गणित के तकाजे को देखते हुए भाजपा अपनी इस छवि को बदलने के लिए अक्सर सजग रही है। एक दलित को सर्वोच्च पद पर बिठाकर अब वह कह सकती है कि उसे ब्राह्मणों-बनियों की पार्टी कहना भी गलत है और ‘सूट-बूट की सरकार’ कहना भी। असल में आज राजनीति को इन्हीं मूल्यों की जीवंतता के लिये जागरूक करने की जरूरत है। मोदी के जादुई व्यक्तित्व ने पहले जीत के कीर्तिमान गढ़े और राजनीति की विसंगतियों के लिये वे तत्पर हंै। राष्ट्रपति पद के लिये उन्होंने जिस व्यक्ति का चयन किया है, निश्चित ही इससे राजनीति की नयी दिशाएं उद्घाटित होंगी। अब कल्पना की जा सकती है कि राजनीति में सभी जाति, वर्ग, वर्ण, क्षेत्र का समतामूलक प्रतिनिधित्व हो सकेगा। एक गरीब दलित को राष्ट्रपति बनाने का असर निश्चित ही सकारात्मक होगा। कोई आदिवासी भी ऐसे ही किसी उच्च पद को शोभित कर सकेगा, इन संभावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता। यही है भारत की राजनीति की उन्नत होती दिशाएं।
किसी दलित का राष्ट्रपति बनना मानवीय दृष्टिकोण से अनूठी घटना है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब राष्ट्रपति भवन में कोई दलित बैठेगा। इससे पहले कांग्रेस ने एक दलित परिवार में जन्मे के. आर. नारायणन को देश का दसवां राष्ट्रपति बनाया था। लेकिन जब-जब ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने का साहस दिखाया जाता है, तब-तब इन ऐतिहासिक निर्णयों को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जाती है, इस तरह का संकीर्ण राजनीतिक नजरिया लोकतंत्र की सफलता एवं सार्थकता को धूमिल ही करता है। यह कहना कि दलित को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा अपने वोट बैंक को सुदृढ़ कर रही है, अपनी राजनीतिक छवि को विस्तृत बना रही है, क्या इससे पहले भाजपा ने जो जीत के कीर्तिमान स्थापित किये हैं, वे ऐसी ही किसी संकीर्ण राजनीति का परिणाम थे? तब कौन दलित को उसने राष्ट्रपति घोषित करके अपनी जीत के कीर्तिमान गढ़े? जब कांग्रेस ने के. आर. नारायणन को राष्ट्रपति बनाया तब भी इसे वोटों की राजनीति का हिस्सा बताते हुए कहा गया था कि दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए तत्कालीन सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने यह दांव खेला है। लेकिन उस निर्णय से भी कांग्रेस के वोटों का गणित किसी चमत्कारी प्रभाव से लाभान्वित हुआ हो, प्रतीत नहीं होता। इसलिये कोविंद के नाम को, किसी दलित के राष्ट्रपति बनने को राजनीतिक नजरिये से नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बदलती फिजां के रूप में देखना चाहिए। इस तरह राजनीति स्वच्छ होती हुई दिखाई दे रही है और उसका स्वागत करना चाहिए। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो हमारे राष्ट्रपतियों की परंपरा बहुत शानदार रही है। निश्चित ही देश का नया राष्ट्रपति इस शानदार परंपरा की कड़ी को आगे बढ़ायेगा।
श्री रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति के रूप में एक नये युग की शुरुआत होने जा रही है। क्योंकि वे नैतिक मूल्यों एवं राष्ट्रीयता को मजबूत करने वाले व्यक्तियों की शंृखला के प्रतीक के रूप में है। इससे राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, पारदर्शी राजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की महिमा को समझा जा सकेगा। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों एवं राजनीति में विभिन्न पदों पर रहकर कार्य किया। ऐसे व्यक्ति जब भी रोशनी में आते हैं तो जगजाहिर है- शोर उठता है। कोविंद के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। लेकिन वे सक्रिय राजनीति में रहे, अनेक पदों पर रहे, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। ऐसे व्यक्तित्व जब एकाएक किसी ऊंचाई पर पहुंचते और वह भी बिना किसी दांवपेच के तब वह ऊंचाई उस व्यक्ति की श्रेष्ठता का शिखर होता है और ऐसे शिखर से प्रकाश तो फैलता ही है।
हमारा संविधान यह नहीं कहता कि राष्ट्रपति पद पर राजनीतिक व्यक्ति को नहीं आना चाहिए और राष्ट्रपति बनने के बाद उसे हर मोर्चे पर निष्क्रिय हो जाना चाहिए। यह निश्चित है कि हमारा राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर ही काम कर सकता है, लेकिन यह भी सही है कि वह अपनी विवेकपूर्ण सलाह से सरकार को सही राह भी दिखा सकता है। संविधान की मर्यादाओं में रहते हुए भी वह सरकार को दलीय स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखने के लिए बाध्य कर सकता है। उनसे सिर्फ दो मोर्चों पर निष्क्रियता की अपेक्षा की जाती है। एक तो उनसे राजनीति में सक्रिय न रहने की अपेक्षा की जाती है, ताकि उसकी निष्पक्षता बनी रहे और वह किसी खास दल के प्रति भेदभाव या पक्षपात न बरते। दूसरे, वह राष्ट्रपति को सरकार के किसी भी अंग-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के परिचालन में सीधे हस्तक्षेप करने से रोकता है। इन दोनों मोर्चों पर कोविंद को सफलता हासिल करते हुए इस पद को एक नयी ऊंचाई प्रदत्त करनी है। इसके लिये हमेशा उन्हें अपनी आंखें खुली और विवेक को जाग्रत रखना होगा। वे इसमें सफल होंगे ही, क्योंकि उनका लम्बा राजनीतिक अनुभव है, संवैधानिक बारीकियों के वे जानकर एवं विशेषज्ञ है। भारतीय राजनीति में उनके अभिन्न योगदान को जिस तरह से नकारा नहीं जा सकता वैसे ही एक सफल एवं यादगार राष्ट्रपति के रूप में उनकी यह पारी स्मरणीय रहेंगी। ऐसे विरल व्यक्तित्व को राष्ट्रपति बनाया जाना इस देश की जरूरत की ओर इंगित करता है।
(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486
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बिहार में ‘सौराठ सभा’ शुरू, दर्जनों जोड़े परिणय सूत्र में बंधेंगे
मधुबनी, 27 जून | बिहार के मिथिलांचल की 700 साल पुरानी ऐतिहासिक सौराठ सभा मधुबनी जिले के सौराठ गांव में शुरू हो गई है। मिथिलालोक फाउंडेशन के तत्वाधान में इस वर्ष यहां सैकड़ों मैथिल ब्राह्मण वर-वधू परिणय सूत्र में बंधेंगे। प्राचीन संस्कृति एवं वैवाहिक व्यवस्था के लिए प्रख्यात सौराठ सभा का आयोजन प्रतिवर्ष मधुबनी जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित सौराठ गांव में किया जाता है। इस वर्ष 25 जून से तीन जुलाई तक चलने वाले इस सौराठ सभा का उद्घाटन कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ़ सर्वनारायण झा ने रविवार को किया। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “इस धरोहर को आधुनिक तकनीक से जोड़कर युगानुकूल बनाने की जरूरत है।” मिथिलालोक फाउंडेशन के इस पहल की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि मिथिला की संस्कृति विशेषकर सौराठ सभा का ‘कंसेप्ट’ विश्व के लिए आदर्श बन सकता है। इस अवसर पर मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. बीरबल झा ने कहा, “देश-विदेश से आए हुए प्रतिभागियों की यह जिम्मेदारी है कि हम अपनी संस्कृति और धरोहर को संजोकर रखें, अन्यथा हमारी आनेवाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।”
उन्होंने कहा कि मिथिला सहित सारे बिहार में अगले महीने से फाउंडेशन द्वारा ‘दहेजमुक्त विवाह अभियान’ चलाया जाएगा। इस अभियान का केंद्रबिंदु ऐतिहासिक सौराठ सभा यानी सभा गाछी होगा। डॉ़ झा ने मिथिला की संस्कृति पर गर्व करते हुए कहा, “आठवीं सदी के आचार्य मंडन मिश्र-आदि शंकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ की पंरपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, जिससे कि आने वाली पीढ़ी में बौद्धिकता का विकास हो सके। इसी क्रम में 29 जून को यहीं सौराठ में मिथिला के कई विद्वान विभिन्न विषयों पर शास्त्रार्थ करेंगे।” अंग्रेजी भाषा के जाने माने विद्वान एवं दर्जनों पुस्तकों के लेखक झा ने कहा कि मिथिला ज्ञान की भूमि है, इसके सर्वागीण विकास के लिए सरकार द्वारा स्वीकृत त्रिभाषा फार्मूला को अपनाने की आवश्यकता है, जिसके तहत लोग मैथिली और हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी अपनाएं। इस वर्ष सौराठ सभा की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि दर्जनों योग्य वरों ने विवाह के लिए आवेदन दिया है। साथ ही प्रख्यात चार्टर्ड अकाउंटेंट संजय झा ने अपनी डॉक्टर पुत्री के विवाह के लिए यहां आवेदन दिया है।
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्लचंद्र झा की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विदेश्वर झा, विद्यापति सेवा संस्थान (दरभंगा) के महासचिव वैद्यनाथ चौधरी, अंतर्राष्ट्रीय मैथिल महासंघ के अध्यक्ष डॉक्टर धनाकर ठाकुर भी उपस्थित रहे। उल्लेखनीय है कि सौराठ सभा मिथिलांचल क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगने वाला एक विशाल सभा है, जिसमें योग्य वर का चयन यहां आए कन्याओं के पिता करते हैं। 22 बीघा जमीन पर लगने वाली इस सभा में मैथिल ब्राह्मण समुदाय के लोग योग्य वर, वधुओं की तलाश में इकट्ठे होते हैं। पंजीकार वैवाहिक रिकार्ड (पंजी) देखने के बाद विवाह की स्वीकृति देते हैं।
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पुस्तक समीक्षा : मोदी राजनीति का दस्तावेज 'मोदी युग'
यह मानने में किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि हमारे समय में भारतीय राजनीति के केंद्र बिन्दु नरेन्द्र मोदी हैं। राजनीतिक विमर्श उनसे शुरू होकर उन पर ही खत्म हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से लेकर बाकि राजनीतिक दलों की राजनीतिक रणनीति में नरेन्द्र मोदी प्राथमिक तत्व हैं। विधानसभा के चुनाव हों या फिर नगरीय निकायों के चुनाव, भाजपा मोदी नाम का दोहन करने की योजना बनाती है, जबकि दूसरी पार्टियां मोदी की काट तलाशती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थक जहाँ प्रत्येक सफलता को नरेन्द्र मोदी के प्रभाव और योजना से जोड़कर देखते हैं, वहीं मोदी आलोचक (विरोधी) प्रत्येक नकारात्मक घटना के पीछे मोदी को प्रमुख कारक मानते हैं। इसलिए जब राजनीतिक विश्लेषक संजय द्विवेदी भारतीय राजनीति के वर्तमान समय को 'मोदी युग'लिख रहे हैं, तब वह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। अपनी नई पुस्तक 'मोदी युग : संसदीय लोकतंत्र का नया अध्याय'में उन्होंने वर्तमान समय को उचित ही संज्ञा दी है। ध्यान कीजिए, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) और कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को कब और कितना 'मनमोहन सरकार'कहा जाता था? उसे तो संप्रग के अंग्रेजी नाम 'यूनाइटेड प्रोगेसिव अलाइंस'के संक्षिप्त नाम 'यूपीए सरकार'से ही जाना जाता था। इसलिए जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और भाजपानीत सरकार को 'मोदी सरकार'कहा जा रहा है, तब कहाँ संदेह रह जाता है कि भारतीय राजनीति यह वक्त 'मोदीमय'है। हमें यह भी निसंकोच स्वीकार कर लेना चाहिए कि आने वाला समय नेहरू, इंदिरा और अटल युग की तरह मोदी युग को याद करेगा। यह समय भारतीय राजनीति की किताब के पन्नों पर हमेशा के लिए दर्ज हो रहा है। भारतीय राजनीति में इस समय को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। इसलिए 'मोदीयुग'पर आई राजनीतिक चिंतक संजय द्विवेदी की किताब महत्वपूर्ण है और उसका अध्ययन किया जाना चाहिए।
लेखक संजय द्विवेदी की पुस्तक 'मोदी सरकार'के तीन साल के कार्यकाल का मूल्यांकन करती है। श्री द्विवेदी के पास राजनीतिक विश्लेषण का समृद्ध अनुभव है। पत्रकारिता में भी शीर्ष पदों पर रहकर उन्होंने राजनीति को बरसों बहुत करीब से देखा है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के पहले से नरेन्द्र मोदी की राजनीति पर लेखक की पैनी नजर रही है। नरेन्द्र मोदी की राजनीति पर केंद्रित उनकी एक पुस्तक वर्ष 2014 में आई थी- 'मोदीलाइव'। यह पुस्तक 2014 के अभूतपूर्व चुनाव का अहम दस्तावेज थी। जबकि 'मोदी युग'मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल और इन तीन साल में मोदी राजनीति का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। मोदीयुग नाम से ऐसा नहीं समझा जाना चाहिए कि यह पुस्तक मोदी सरकार का गुणगान करती है। ऐसा भ्रम होना स्वाभाविक है, क्योंकि इस समय मोदी की खुशामद में अनेक पुस्तकें आ रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी हमारे समय का ऐसा राजनीतिक व्यक्तित्व हैं कि उन पर अनेक लोग अपने-अपने अंदाज से लिख रहे हैं। मोदीयुग में मोदी की जय-जयकार होगी, कुछ लोगों को ऐसा भ्रम इसलिए भी हो सकता है क्योंकि लेखक संजय द्विवेदी की पहचान 'राष्ट्रीय विचारधारा के लेखक'के नाते भी है। किन्तु, मोदी राजनीति पर केंद्रित अपने आलेखों में लेखक ने अपने लेखकीय धर्म को बहुत जिम्मेदारी से निभाया है। उन्होंने मोदी सरकार की लोककल्याणकारी नीतियों का समर्थन भी किया है, तो अनेक स्थानों पर सवाल भी खड़े किए हैं। एक अच्छे लेखक की यही पहचान है कि जब वह राजनीति का ईमानदारी से विश्लेषण करता है, तब अपने वैचारिक आग्रह को एक तरफ रखकर चलता है। वैसे भी राष्ट्रवादी विचारकों के लिए अपने वैचारिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए राजनीति साधन नहीं है, जिस प्रकार कम्युनिस्टों के लिए राजनीति ही उनके वैचारिक लक्ष्यपूर्ति का साधन है। यहाँ वैचारिक धरातल पर खड़े रहकर राजनीति का निष्पक्ष मूल्यांकन संभव है। आवरण के बाद दो पृष्ठ पलटने के बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का चित्र देखकर भी यह भ्रम हो सकता है कि इस पुस्तक में भाजपा और मोदी की आलोचना संभव ही नहीं है। लेखक ने यह पुस्तक अपने मार्गदर्शक श्री होसबाले को समर्पित की है। क्योंकि, किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए यह समझना मुश्किल है कि 'राष्ट्र सबसे पहले'की अवधारणा में भरोसा करने वाले व्यक्ति के लिए राजनीति अलग विषय है और विचार अलग।
मोदीयुग के पहले ही लेख में लेखक श्री द्विवेदी लिख देते हैं कि कैसे यह वक्त 'भारतीय राजनीति का मोदी समय'है। वह लिखते हैं- 'राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए यह समय वास्तव में स्वर्णयुग है, जबकि पूर्वांचल के असम में सरकार बनाकर उसने कीर्तिमान रच दिया। हरियाणा भी इसकी एक मिसाल है, जहाँ पहली बार भाजपा की अकेले दम पर सरकार बनी है। मणिपुर जैसे राज्य में उसके विधायक चुने गए हैं। ऐसे कठिन राज्यों में जीत रही भाजपा अपने भौगोलिक विस्तार के रोज नए क्षितिज छू रही है। भाजपा और संघ परिवार को ये अवसर यूँ ही नहीं मिले हैं... नरेन्द्र मोदी दरअसल इस विजय के असली नायक और योद्धा हैं, उन्होंने मैदान पर उतर कर एक सेनापति की भाँति न सिर्फ नेतृत्व दिया बल्कि अपने बिखरे परिवार को एकजुट कर मैदान में झोंक दिया।'लेखक का स्पष्ट कहना है कि भाजपा के विस्तार और लगातार विजयी अभियान के पीछे नरेन्द्र मोदी की नीति और मेहनत का निवेश है।
जैसा कि ऊपर लिखा गया है कि पुस्तक में मोदी सरकार का प्रशस्ति गान नहीं है। लेखन ने जहाँ जरूरी समझा, वहाँ नागफनी से चुभते सवाल खड़े किए हैं। नोटबंदी को उन्होंने 'कालेधन के खिलाफ आभासी'लड़ाई लिखा है। नोटबंदी के आगे सरकार के कैशलेस के विचार को खारिज करते हुए लेखक श्री द्विवेदी ने इस व्यवस्था को 'भारतीय मन और प्रकृति के खिलाफ'बताया है। कैशलेस को उन्होंने नोटबंदी से उपजा शिगूफा भी कहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबंध में अकसर यह कहा जाता है कि वह अभी तक चुनावी मोड से बाहर नहीं निकल सके हैं। जहाँ तक मेरी समझ है, इसका एक बड़ा कारण उनकी भाषण शैली है। बाकि यह भी सच है कि वह अब भी विपक्ष पर उसी तरह हमलावर हैं, जैसे कि सत्ता में आने से पहले थे। यहाँ लेखक प्रधानमंत्री मोदी से अपेक्षा व्यक्त करते हैं कि उन्हें शक्ति को सृजन में लगाना चाहिए। विपक्ष पर हल्लाबोल की मुद्रा से बाहर आना चाहिए। उनका कहना सही है- 'रची जा रही कृत्रिम लड़ाइयों में उलझकर भाजपा अपने कुछ समर्थकों को तो खुश रखने में कामयाब होगी, किंतु इतिहास बदलने और कुछ नया रचने की अपनी भूमिका से चूक जाएगी।'लेखक संजय द्विवेदी ने यह भी लिखा है कि मोदी सरकार को अत्यधिक डिजिटलाइजेशन से बचना चाहिए। बौद्धिक और राष्ट्रप्रेमी समाज बनाने की चुनौती पर काम करना चाहिए। इसके लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र बुद्धिजीवियों से सरकार को संपर्क करना चाहिए। अपने एक लेख में उन्होंने 'एफडीआई'पर भाजपा सरकार की नीति पर भी चुभते हुए सवाल उठाए हैं।
मोदीयुग में लेखक संजय द्विवेदी एक ओर मोदी सरकार की नीतियों और व्यवहार की आलोचना करते हैं, तो वहीं उसे सचेत भी करते हैं। इसके साथ ही लेखक उन लोगों और संस्थाओं को भी उजागर करते हैं, जो दुर्भावनापूर्ण ढंग से मोदी सरकार को बदनाम करने का षड्यंत्र रचती हैं। खासकर, मोदी सरकार को एक समुदाय का दुश्मन सिद्ध करने के लिए देश में 'असहिष्णुता'का बनावटी वातावरण बनाने वाली बेईमान बौद्धिकता पर लेखक ने खुलकर चोट की है। इस असहिष्णु समय में, लिखिए जोर से लिखिए किसने रोका है भाई, आभासी सांप्रदायिकता के खतरे, कौन हैं जो मोदी को विफल करना चाहते हैं और कुछ ज्यादा हड़बड़ी में हैं मोदी के आलोचक सहित दूसरे अन्य लेखों में भी आप पढ़ पाएंगे कि कैसे कुछ ताकतें भ्रम उत्पन्न करके एक पूर्ण बहुमत की सरकार को बेकार के प्रश्नों में उलझाने की साजिश कर रही हैं। बहरहाल, पिछले तीन साल में भारत में एक अलग प्रकार की राजनीतिक हलचल देखने को मिली है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी 'सबका साथ-सबका विकास'का दावा और वायदा करती हुई अपना विस्तार करती जा रही है, वहीं दूसरी ओर अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के संकट से जूझ रहे कुछेक राजनीतिक दल और विचारधाराएं सुनियोजित तरीके से ऐसे मुद्दों एवं घटनाओं को चर्चा के केंद्र में बनाकर रखे हुए हैं, जिनसे आम समाज का कोई भला नहीं होना है। हालाँकि यह भी सच है कि इन प्रयासों से उनका राजनीतिक एजेंडा भी पूरा होता नहीं दिखता है। इस समय की राजनीति को जानना और समझना बेहद जरूरी है। 'मोदीयुग'पुस्तक इस काम में हमारी भरपूर मदद कर सकती है। महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की टिप्पणियों को पढ़कर भी इस पुस्तक की गहराई को समझा जा सकता है। प्रख्यात लेखक विजय बहादुर सिंह, नवोदय टाइम्स के संपादक अकु श्रीवास्तव, लोकसभा टीवी के संपादक आशीष जोशी, ख्यातिनाम कथाकार इंदिरा दांगी, लेखिका एवं मीडिया शिक्षक डॉ. वर्तिका नंदा, ईटीवी उर्दू के वरिष्ठ संपादक तहसीन मुनव्वर और सुविख्यात एंकर सईद अंसारी ने भी पुस्तक के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं। छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लेखक संजय द्विवेदी की लेखनी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुस्तक की प्रस्तावना मूल्यानुगत मीडिया के संपादक और वरिष्ठ मीडिया अध्यापक प्रोफेसर कमल दीक्षित ने लिखी है और प्रख्यात लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने भूमिका लिखी है। पुस्तक में 63 लेख शामिल किए गए हैं। यह पुस्तक का पहला संस्करण है, जो हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई, 2017 के सुअवसर पर आया है।
समीक्षक : - लोकेन्द्र सिंह
पुस्तक : मोदीयुग : संसदीय लोकतंत्र का नया अध्याय
लेखक : संजय द्विवेदी
मूल्य : 200 रुपये
प्रकाशक : पहले पहल प्रकाशन, 25 ए, प्रेस कॉम्प्लेक्स, एमपी नगर, भोपाल (मध्यप्रदेश) - 462011
वितरक : मीडिया विमर्श, 428-रोहित नगर, फेज-1, भोपाल (मध्यप्रदेश)- 462039
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गरीबों को स्थायी तौर पर बसाने के लिए माले का दो दिवसीय अनशन आरंभ
पटना 27 जून, पटना के गर्दनीबाग के एक से 40 नंबर रोड के बीच भवन निर्माण की 182 एकड़ जमीन में कम से कम 20 एकड़ जमीन पर गरीबों को स्थायी तौर पर बसाने अथवा आरक्षित करने, बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए गरीबों केे उजाड़े जाने पर रोक लगाने, बन्द राशन-किरासन की आपूर्ति चालू कराने व जिला प्रशासन द्वारा गरीबो के नष्ट की गयी झोपड़ियों का मुआवजा देने सहित अन्य मांगों पर आज भाकपा-माले व ऐपवा का दो दिवसीय अनशन का कार्यक्रम गर्दनीबाग धरनास्थल पर आरंभ हुआ. अनशन पर भाकपा-माले के लोकप्रिय नेता मुर्तजा अली, ऐपवा नेता काॅ. रेखा देवी, बबीता देवी और राधा देवी को पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य काॅ. अमर व केंद्रीय कमिटी की सदस्य शशि यादव ने अनशन पर बैठाया. इस मौके पर केंद्रीय कमिटी सदस्य काॅ. केडी यादव भी उपस्थित थे.
भूख हड़ताल शुरू होने के अवसर पर सभा को भाकपा माले के कई राज्यस्तरीय नेतागण ने संबोधित किया. नेताओं ने कहा कि गर्दीनीबाग के भवन निर्माण की उपलब्ध 182 एकड़ जमीन के कई हिस्सों पर गरीब लोग लंबे समय से बसे हुए हैं. इन गरीबों के लिए कम से कम 20 एकड़ जमीन आरक्षित करने की मांग पर यह अनशन आरंभ हुआ. माले पोलित ब्यूरो सदस्य काॅ. अमर ने कहा कि सरकार गरीबों को बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए उजाड़ना चाहती है, जबकि कोर्ट का आदेश है कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए सरकार गरीबों को नहीं उजाड़ सकती है. लेकिन व्यवहार में ठीक इसका उलटा हो रहा है.
सभा का संचालन भाकपा-माले की राज्य कमिटी के सदस्य रणविजय कुमार और नवीन कुमार ने किया. इस मौके पर पार्टी नेता रामबली प्रसाद, राज्य कमिटी की सदस्य समता राय, अनीता सिन्हा, आकाश कश्यप, टेंपो यूनियन के नेता नवीन मिश्रा, रामकल्याण जी आदि उपस्थित थे.
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मधुबनी - अतिक्रमण के विरोध में मुखिया का आमरण अनशन शुरू ॥
खुटौना/मधुबनी (रमेश कुमार) - खुटौना के सिहुला गॉव में अतिक्रमण खाली कराने गई पुलिस बैरंग वापस हो गई । अतिक्रमण कारियो के आगे पुलिस की एक न चली और पुलिस कर्मी मुक दर्शक बनी रहीं। याचिकाकर्ता र्इंदू देवी के पक्ष में उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भी मजिस्ट्रेट राम किशोर पँजियार के साथ आये बल के जवानों के सामने न्यायालय का आदेश टाई टाई फिस हो गई । अतिक्रमणकारी जमीन खाली नहीं करने पर अरे थे और प्रशासन मौन खरा था तकरीबन तीन दर्जन से अधिक फोर्स के सामने अतिक्रमणकारी सीना ठोक कर खरा रहा लिहाज प्रशासन को बैक फुट पर खरा होना पड़ा |
न्यायालय के निर्देश पर अतिक्रमण को खाली कराया गया थाना क्षेत्र के सिहुला गॉव में आम रास्ता को बल पूर्वक अतिक्रमण किये जाने के विरोध में खुटौना C.O रामकिशोर पँजियार के द्वारा जिला से मागं किये गये बल के जवानों ने अतिक्रमण को खाली कराया |यहां बता दें कि यह मामला मान्य उच्च न्यायालय में 2010 से लंबित था जो 09 सितम्बर 2014 में ही इसे खाली करवाने का आदेश न्यायालय द्वारा पारित हो चुका था |आवेदिका इंदु देवी ने पटना उच्च न्यायालय एवं जिला पदाधिकारी ने सिहुला गॉव के 81 नंबर सड़क का अतिक्रमण खाली करने का निर्देश SDO फुलपरास को दिया था | आनन फानन में पूर्ण अतिक्रमण मुक्त नहीं होने पर पूनः आवेदिका इंदू देवी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटायी जिस पर CWJC N० 11212 के तहत सुनवाई करते हुए न्यायालय ने इसे दुबारा 03 मार्च 2017 को पूर्ण अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश पारित किया जो बुधवार को स्थानीय प्रशासन के द्वारा खाली कराने गए प्रशासन को बैरंग लौटना पड़ा |
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भारत, अमेरिका ने आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने का लिया संकल्प, मतभेदों को करेंगे दूर
वाशिंगटन, 27 जून, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड्र ट्रम्प भारत-अमेरिका आथर्कि भागीदारी को प्रगाढ़ बनाने पर सहमत हुए जिससे दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हो। साथ ही दोनों पक्षों ने मतभेदों को दूर करने के लिये सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करने पर बल दिया है। व्हाइट हाउस में मोदी और ट्रम्प की पहली बैठक के बाद विदेश सचिव एस जयशंकर ने संवाददाताओं से कहा, आथर्कि मोर्चे पर दोनों पक्षों की काफी सार्थक बातचीत हुई। दोनों देशों में आथर्कि बदलाव नई मांग सृजित कर रहे हैं और भारत और अमेरिका के बीच उच्च स्तरीय संतोषजनक स्थिति होने पर दूसरा सहयोगी उन मांगों को पूरा करने में बेहतर स्थिति में है। जयशंकर ने नागर विमानन बाजार तथा प्राकृतिक गैस जैसे सहयोग वाले क्षेत्रों का जिक््र किया और कहा कि अगले साल से तरलीकृत प्राकृतिक गैस :एलएनजी: अमेरिका से भारत जाने लगेगी। उन्होंने अनुमान जताते हुए कहा कि अगले कुछ साल में भारत-अमेरिका एलएनजी व्यापार 40 अरब डालर से अधिक होगा। जयशंकर के अनुसार यह धारणा बनी है कि दोनों देशों को एक-दूसरे को इस रूप से प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए जिससे ऐसे मुद्दों पर वे एक स्वभाविक और पसंसदीदा सहयोगी हों। उन्होंने कहा, व्यापार मामलों, बाजार पहुंच, नियामकीय मुद्दों तथा बाधाओं पर चर्चा हुई। दोनों नेताओं मुक्त और निष्पक्ष व्यापार के महत्व को रेखांकित किया। एच-1बी वीजा से जुड़े एक सवाल के जवाब में विदेश सचिव ने कहा कि अनुसंधान और डिजिटल भागीदारी के क्षेत्र में सहयोग पर चर्चा हुई। उन्होंने कहा, एच-1बी वीजा के मुद्दे पर उद्योग दिग्गजों के साथ काफी चर्चा हुई और दोनों नेताओं ने डिजिटल भागीदारी के बारे में बातचीत की।
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फेडरर 2018 सत्र की शुरआत होपमैन कप से करेंगे
सिडनी, 27 जून, स्विट्जरलैंड के महान टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर 2018 में आस्ट्रेलिया ओपन टेनिस टूर्नामेंट में खिताब की रक्षा के अपने अभियान की तैयारी पर्थ में होपमैन कप के साथ करेंगे। फेडरर इस साल भी चोट के बाद वापसी करते हुए मिश्रित टीम स्पर्धा होपमैन कप में खेले थे और इसका उन्हें अच्छा नतीजा मिला था। फेडरर ने चिर प्रतिद्वंद्वी रफेल नडाल को हराकर इस साल आस्ट्रेलिया ओपन का खिताब जीता था। इसके बाद वह मियामी, इंडियन वेल्स और हाले में भी खिताब जीतने में सफल रहे। दुनिया के पूर्व नंबर एक खिलाड़ी फेडरर एक बार फिर इस टूर्नामेंट में हमवतन बेलिंडा बेनसिच के साथ जोड़ी बनाएंगे।
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प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका यात्रा समाप्त कर नीदरलैंड रवाना
वाशिंगटन, 27 जून , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अमेरिका यात्रा समाप्त कर नीदरलैंड रवाना हो गए। मोदी की तीन देशों की यात्रा का यह आखिरी पड़ाव है। मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ आज की बैठक में आतंकवाद के खिलाफ अपने सहयोग को सुदृढ़ करने का संकल्प किया। भारत और अमेरिका ने पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसकी धरती का इस्तेमाल सीमा पार आतंकी हमलों के लिए न हो। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने ट्वीट किया इभारतअमेरिकी रिश्तों में एक नया मील का पत्थर स्थापित कर, एक ऐतिहासिक यात्रा खत्म करते हुए। मोदी नीदरलैंड के लिए रवाना, तीन देशों की यात्रा का आखिरी पड़ाव। मोदी नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट से आधिकारिक मुलाकात कर, उनसे आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन सहित कई वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे। वह नीदरलैंड में कंपनियों के सीईओ से मुलाकात करेंगे और उन्हें भारत के विकास के सफर में साझेदार बनने को प्रेरित करेंगे। तीन देशों की यात्रा पर जाने से पहले उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में कहा था, मैं नीदरलैंड के राजा विलेम-अलेक्जेंडर और रानी मैक्सिमा से भी मुलाकात करूंगा। प्रधानमंत्री मोदी वहां भारतीय प्रवासियों को भी संबोधित करेंगे।
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योगी सरकार ने जारी किया अपना रिपोर्ट कार्ड: कहा- 100 दिनों का कार्यकाल एक प्रभावी पहल
लखनउ, 27 जून, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज अपनी सरकार के 100 दिन के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड पेश किया और कहा कि एकात्म मानव समाज के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के सपने को साकार करने की दिशा में इन 100 दिनों की कार्यावधि एक प्रभावी पहल है और इसके सकारात्मक परिणाम दिखायी देने लगे हैं। मुख्यमंत्री ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जनता ने केन्द्र की उपलब्धियों और पार्टी की नीतियों पर भरोसा करते हुए भाजपा को गत विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत दिया। परिवर्तन, विकास और गरीबों के सशक्तीकरण के लिये गत 19 मार्च को शपथग्रहण करने वाली इस सरकार का मात्र 100 दिन छोटा सा कार्यकाल हुआ है। उसके सामने जो चुनौती थी, उसे हमने स्वीकार किया है। इन 100 दिनों की उपलब्धियों पर हमें संतोष का अनुभव हो रहा है। इन दिनों के कामकाज के सकारात्मक परिणाम दिखायी देने लगे हैं। उन्होंने कहा कि एकात्म मानव समाज के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के सपने को साकार करने की दिशा में उनकी सरकार के 100 दिनों का कार्यकाल प्रभावी पहल है। वह प्रदेशवासियों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि राज्य सरकार प्रदेश को विकास और खुशहाली के रास्ते पर तेजी से ले जाने के प्रभावी प्रयास शुरू कर चुकी है। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये सरकार ने भाजपा के लोककल्याण संकल्प पत्र के वादों को पूरा करने की दिशा में अहम निर्णय लिये हैं।
योगी ने प्रदेश के पिछड़ेपन का ठीकरा पूर्ववर्ती सपा और बसपा की सरकारों के सिर फोड़ते हुए कहा कि सभी जानते हैं कि विगत 14-15 वर्ष के दौरान उ}ार प्रदेश काफी पिछड़ गया था। अन्य दलों की सरकारों के कार्यकाल में भ्रष्टाचार और परिवारवाद के साथ बदहाल कानून-वयवस्था ने जनता का भारी नुकसान किया। हमने जनता के कल्याण के लिये अविलम्ब प्रभावी कार्वाई शुरू की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के Þसबका साथ, सबका विकास Þ के संकल्प का अनुसरण कर रही है। इसके लिये शासन-प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित की गयी है। आवास, सड़क, पेयजल तथा शौचालय जैसी मूलभूत सेवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ कानून-व्यवस्था के लिये सरकार सजग है।
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भारत और अमेरिका ने पाक से आतंकवाद पर काबू को कहा,
- जैश ए मुहम्मद, लश्कर और डी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई का संकल्प
वाशिंगटन, 27 जून, पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए आज भारत और अमेरिका ने उससे यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसकी धरती का इस्तेमाल सीमा पार आतंकी हमलों के लिए नहीं हो। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आईएसआईएस, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और डी कंपनी जैसे आतंकी समूहों के खिलाफ लड़ाई तेज करने का संकल्प लिया। व्हाइट हाउस में हुई दोनों नेताओं की पहली बैठक में इनके बीच काफी तालमेल देखने को मिला। दोनों देशों ने पाकिस्तान से कहा कि वह पाकिस्तान आधारित संगठनों द्वारा किए गए मुंबई, पठानकोट हमलों और सीमापार आतंकी हमलों के साजिशकर्ताओं को न्याय के कठघरे में लाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद से लड़ने और आतंकियों की शरणस्थलियों को नष्ट करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को मजबूत करने का भी संकल्प लिया।
मोदी ने व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ अपने संयुक्त संबोधन में संवाददाताओं से कहा, आतंकवाद का खात्मा हमारी शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है। दोनों नेताओं के बीच बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल अन्य देशों के खिलाफआतंकी हमलों के लिए न होने दे। बैठक से पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कश्मीरी आतंकी समूह हिज्बुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकी घोषित करके सम्मलेन की दिशा तय कर दी थी। विदेश मंत्रालय के इस कदम ने भारत को नुकसान पहुंचा रहे पाकिस्तान से उपजने वाले आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश भेजा। अपनी बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने अल-कायदा, आईएसआईएस, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, डी कंपनी और उनके सहयोगियों से उपजने वाले आतंकी खतरों के खिलाफ सहयोग मजबूत करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की। प्रतीकों की प्रधानता वाली इस बैठक के दौरान एच-1बी वीजा सुधार और जलवायु परिवर्तन जैसे विवादित मुद्दों का कोई जिक््र नहीं किया गया। ट्रंप प्रशासन ने इस बात की पुष्टि की कि उसने भारत को लाखों डॉलर के परिवहन वाहक की बिक््री के लिए मंजूरी दे दी है। इसके अलावा लगभग 20 गाजर्यिन ड्रोनों की बिक््री की मंजूरी दी गई है।
प्रेस को बयान देते समय ट्रंप ने मोदी से कहा, मैं कहना चाहूंगा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध कभी इतने मजबूत और बेहतर नहीं रहे। उन्होंने कहा, श्रीमान प्रधानमंत्री, मैं आपके साथ काम करने के लिए, हमारे देशों में रोजगार सृजन के लिए, हमारी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने के लिए और निष्पक्ष एवं पारस्परिक व्यापारिक संबंध बनाने के लिए उत्सुक हूं। मोदी ने अपनी सरकार द्वारा किए गए आथर्कि सुधारों और देश में कारोबार को सुगम बनाने के लिए उठाए गए कदमों को रेखांकित किया। मोदी ने कहा भारत के सामाजिक-आथर्कि सुधार के लिए अपने सभी प्रमुख कार्यक््रमों और योजनाओं में हम अमेरिका को अपना प्रमुख साझीदार मानते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप की ओर से दिए गए नारे के संदर्भ में मोदी ने कहा, मुझे यकीन है कि नए भारत के लिए मेरे नजरिए और राष्ट्रपति ट्रंप के मेकिंग अमेरिका ग्रेटअगेन में तालमेल हमारे सहयोग को एक नया आयाम देगा। हालांकि बैठक में प्रमुख चर्चा सीमा पार के आतंकवाद को लेकर हुई। नेताओं ने खुफिया जानकारी साझा करके और आतंकवाद विरोधी सहयोग को विस्तार देकर आतंकवादियों की यात्रा को रोकने और उनके द्वारा वैश्विक तौर पर की जाने वाली भतर्यिों को बाधित करने के लिए सहयोग बढ़ाने की घोषणा की। संयुक्त बयान में कहा गया कि नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जुड़े संयुक्त राष्ट्र समग्र समझौते के प्रति समर्थन व्यक्त किया।यह समझौता वैश्विक सहयोग का ढांचा मजबूत करेगा और इस संदेश को स्थापित करेगा कि किसी भी कारण या कष्ट के आधार पर आतंकवाद को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
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ट्रम्प ने कहा, अमेरिकी निर्यात के राह की बाधाएं दूर करे भारत
वाशिंगटन, 26 जून, राष्ट्रपित डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिल कर भारत और अमेरिका के बीच एक एक न्यायोचित एवं बराबरी का व्यापार संबंध बनाना चाहते हैं । साथ ही उन्होंने अमेरिका से भारत बाजारों में किए जाने वाले निर्यात के रास्ते की बाधाएं खत्म किए जाने और आपसी व्यापार में अपने देश का व्यापार घाटा कम करने के उपायों की मांग भी की है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत में माल एवं सेवा कर :जीएसटी: की नयी व्यवस्था की सराहना करते हुए इसको भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा कर सुधार बताया और कहा कि वह भी अपने यहां नीतियों और कार्यक््रमों में सुधार करने में लगे हैं। भारत में जीएसटी एक जुलाई से लागू किया जा रहा है। अमेरिका यात्रा पर आए प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी पहली शिखर बैठक के बाद यहां हवाइट हाउस के रोज गार्डेन में अपने संबोधन में ट्रम्प ने कहा, मैं अपने दोनों देशों (अमेरिका और भारत) में रोजगार के नए अवसर सृजित करने, आथर्कि वृद्धि और दोनों के बीए एक ऐसा व्यापार संबंध बनाने के लिए आप के साथ मिल कर काम करना चाहता हूं जो न्यायोचित और बराबरी पर आधारित हो। राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारतीय बाजार में अमेरिकी माल के प्रवेश की राह में कथित बाधाएं दूर किए जाने पर बल देते हुए कहा कि ऐसा करना और परस्पर व्यापार में अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना महत्वपूर्ण है।
जुलाई से भारत में लागू की जाने वाली जीएसटी प्रणाली की प्रसंशा में अमेरिकी राष्ट्रपति ने मोदी को संबोधित करते हुए कहा कि यह आपके देश के इतिहास का सबसे बड़ा कर सुधार है। उन्होंने कहा, हम भी ऐसा ही कर रहे हैं। हम अपने नागरिकों के लिए नए अवसर पैदा कर रहे हैं। आपने :मोदी: बुनियादी ढांचे को सुधारने का बड़ा सपना संजो रखा है। आप सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं। लोकतांóािक व्यवस्था के लिए भ्रष्ट्राचार हमेशा से ही एक गंभीर खतरा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक भारतीय एयरलाइन से अमेरिकी कंपनी को मिले 100 हवाई जहाजों की खरीद के आर्डर पर प्रसन्नता प्रकट की। उन्होंने इसे अपनी तरह का सबसे बड़ा व्यावसायिक सौदा बताया और कहा कि इससे अमेरिका में रोजगार के हजारों नए अवसर उत्पन्न होंगे। ट्रम्प ने कहा कि उनकी सरकार भारत को ईंधन की आपूर्त िकी व्यवस्था किए जाने पर भी विचार कर रही है। तेजी से फैल रही भारत की अर्थव्यवस्था को इसकी जरूरत है। इसके तहत भारत को दीर्घावधिक अनुबंधों के आधार पर गैस की आपूर्त िकिए जाने की बात है। इस समय इस पर वार्ताए चल रही हैं और हम इसपर हस्ताक्षर जरूर करेंगे। हमारी कोशिश है कि दाम थोड़ा और अच्छा मिल जाए।
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पुरषों से तुलना के बाद सेरेना ने मैकेनरो से सम्मान देने को कहा
न्यूयार्क, 27 जून, सेरेना विलियम्सन ने दिग्गज खिलाड़ी जान मैकेनरो पर पलटवार किया है जिन्होंने कहा था कि 23 बार की महिला एकल ग्रैंडस्लैम चैंपियन पुरष टेनिस सकर्टि में 700वीं रैंकिंग पर होती। सेरेना ने इसके बाद दो ट्वीट करके सात बार के पुरष एकल चैंपियन मैकेनरो को जवाब दिया। उन्होंने लिखा, प्रिय जान, मैं आपका सम्मान करती हूं लेकिन कृपया मुझे अपने उन बयानों से दूर रखो जो तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं। सेरेना ने फिर ट्वीट किया, मैं कभी उस रैंकिंग वाले के साथ नहीं खेली हूं और ना ही मेरे पास समय है। मेरा और मेरी निजता का सम्मान कीजिए। आपका दिन शुभ हो सर।
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ओबीसी विधेयक के संसद के मानसून सत्र में पारित होने के आसार
नयी दिल्ली, 26 जून, संसद की एक समिति में पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के बारे में आम सहमति बन गयी है जिससे अगले माह शुरू होने जा रहे संसद के मानसून सत्र के इससे संबंधित विधेयक के राज्यसभा में पारित होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस विधेयक को इसी अप्रैल में लोकसभा की मंजूरी मिल गयी थी। किन्तु राज्यसभा में विपक्ष के विरोध को देखते हुए सरकार को झुकना पड़ा और विधेयक को उच्च सदन की प्रवर समिति के समक्ष भेज दिया गया। प्रवर समिति के एक सदस्य ने बताया कि इसमें पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने के बारे में आम सहमति बन गयी है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक सांविधिक संस्था है। सदस्य ने बताया कि भाजपा सांसद भूपेन्द्र यादव की अध्यक्षता वाली इस समिति द्वारा 17 जुलाई से संभावित रूप से शुरू होने जा रहे मानसून सत्र के पहले सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने की उम्मीद है। राज्य सभा की 25 सदस्यीय इस प्रवर समिति में शरद यादव, रामगोपालय यादव, सतीश मिश्रा और प्रफुल्ल पटेल जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं।
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2017 को गरीब कल्याण वर्ष के रुप में मनायेगी योगी सरकार
लखनऊ 27 जून, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 को गरीब कल्याण वर्ष के रुप में मनाने की घोषणा करते हुए आज कहा कि पिछले 15 वर्षो की सरकारों ने उत्तर प्रदेश को भ्रष्टाचार और परिवारवाद के जरिये बदहाल कर दिया, अपनी सरकार के 100 दिन पूरा होने पर श्री योगी ने पत्रकारों से कहा कि वह ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे के साथ काम कर रहे हैं, जाति और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) का नाम लिये बगैर मुख्यमंत्री ने कहा कि 14-15 वर्षो में राज्य को भ्रष्टाचार के दलदल में धकेल दिया गया। परिवारवाद का नंगा नाच किया गया। कानून व्यवस्था को सुदृढ करने के लिये ठोस उपाय नहीं किये गये। युवाओं में जोश भरने के लिये 24 जनवरी को उत्तर प्रदेश दिवस मनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार कानून का राज स्थापित करने के लिये कडे कदम उठा रही है। बगैर भेदभाव के कार्रवाई सुनिश्चित कराया जा रहा है। कानून व्यवस्था के साथ ही शिक्षा के उन्नयन के लिये कई कदम उठा रही है। उनका कहना था कि गरीबों का सशक्तिकरण उनकी सरकार का लक्ष्य है। अपनी सरकार के 100 दिनों के कार्यो को दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय योजना की पहल बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य को विकास के रास्ते पर आगे बढाना है। लक्ष्य और संकल्प के साथ सुशासन की स्थापना के गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं।
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यूरोपीय संघ ने गूगल पर लगाया 270 करोड़ डॉलर का जुर्माना
ब्रुसेल्स 27 जून, यूरोप के विश्वासघात नियामक यूरोपीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने अमेरिकी कंपनी एल्फाबेट की सर्च इंजन इकाई गूगल पर 270 करोड़ डॉलर (करीब 17,415 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया है, यह यूरोपीय संघ द्वारा विश्वासघात के मामले में किसी एक कंपनी पर लगाया गया अब तक का सबसे बड़ा जुर्माना है। यह जुर्माना उस पर चल रहे तीन में से एक मामले में लगाया गया है। गूगल पर आरोप है कि वह खोजों में अपनी शॉपिंग सेवाओं को प्राथमिकता देती है। यूरोपीय आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि गूगल 90 दिन के भीतर सर्च परिणामों में अपनी शॉपिंग सेवाओं को तरजीह देना बंद कर दे अन्यथा उस पर प्रति दिन के हिसाब से एल्फाबेट के औसत दैनिक वैश्विक कारोबार का पाँच प्रतिशत अतिरिक्त जुर्माना लगाया जायेगा। आज के आदेश में उस पर एल्फाबेट के कारोबार का तीन प्रतिशत जुर्माना लगाया गया है। इससे पहले सर्च में कदाचार के आरोप के कारण वर्ष 2013 में अमेरिका में भी उस पर जुर्माना लगाया गया था। हालाँकि, उस समय उसने बिना कोई जुर्माना अदा किये अपनी सर्च में मौजूद खामियों को दूर कर मामला सुलझा लिया था। यूरोपीय प्रतिस्पर्द्धा नियामक ने गूगल को अपने मोबाइल सिस्टम एंड्रॉयड का इस्तेमाल अपने प्रतिद्वंद्वियों को नुकसान पहुँचाने के लिए करने का दोषी भी पाया है। उस पर ऑनलाइन सर्च प्रायोजन में प्रतिद्वंद्वी कंपनियों की प्रचार सामग्रियों को ब्लाॅक करने का भी आरोप है। यूरोपीयन कॉम्पिटिशन कमीशनर माग्रेथ वेस्तागर ने कहा “गूगल ने जो किया है वह यूरोपीय संघ के विश्वासघात नियमों के तहत अवैधानिक है। उसने दूसरी कंपनियों से गुणवत्ता के दम पर प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार का अधिकार छीना है। सबसे महत्वपूर्ण बात, कि उसने यूरोपीय उपभोक्ताओं को सेवाओं में वास्तविक पसंद और नवाचार के पूर्ण लाभ से वंचित किया है।” गूगल ने इस फैसले से असहमति जताई है। उसने कहा कि उसके आँकड़े दिखाते हैं कि लोग वेबसाइट पर बार-बार सर्च करने की बजाय अपने पसंदीदा उत्पादों तक सीधे पहुँचाने वाले लिंक पसंद करते हैं। गूगल के अधिवक्ता ने एक बयान में कहा “हम पूरे सम्मान के साथ आज दिये गये आदेश से असहमति जताते हैं। हम अपील पर विचार कर रहे हैं और उससे पहले आयोग के फैसले की विस्तृत समीक्षा करेंगे। हमें अपना पक्ष साबित करने को लेकर आशांवित हैं।”
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