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बिहार : हाय रे यह मजबूरी, स्कूल में है शौचालय और घर में नदारद

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मोकामा(पटना).आरती कुमारी छात्रा हैं आदर्श मध्य विघालय, मरांची में.वह महेश ठाकुर की सुपुत्री हैं.उसकी पिताश्री महेश ठाकुर नाई हैं.हजामत बनाकर जीविकोर्जन करते हैं.इनके परिवार में कुल 5 बच्चे हैं. 4 लड़कियां और 1 लड़का. आरती कुमारी कहती हैं सातवीं कक्षा की छात्रा हूं. मेरे स्कूल के बच्चे पुरानी किताब से पढ़ते हैं. अप्रैल माह में  नयी किताब मिलनी चाहिये जो नहीं मिली है. 75 प्रतिशत उपस्थिति के बावजूद भी 6  छठी कक्षा की छात्रवृति 1600 रू.नहीं मिली. अभी 7वीं क्लास की छात्रा है. उसे 25 सौ रू.मिलेगा. जिन बच्चों के घरों में शौचालय नहीं है. तो बच्चे स्कूल में ही जाकर  शौचक्रिया करते हैं.आरती के पास भी शौचालय नहीं है.

बिहार : तीन दिवसीय राजगीर महोत्‍सव आरंभ

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  • सीएम नीतीश ने किया उद्घाटन​

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नालंदा. नालंदा  की ऐतिहासिक नगरी है राजगीर. यहां तीन दिवसीय राजगीर महोत्सव आरंभ हो गया. सूबे सीएम नीतीश कुमार ने इसका उद्घाटन किया। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने ग्राम श्री मेला का उद्घाटन करने के बाद जीविका समूह की महिलाओं द्वारा हस्तनिर्मित चूड़ियों व थ्री पीस आदि को भी देखा तथा बेहतरीन कारीगरी की सराहना की. राजगीर के अंतरराष्‍ट्रीय कन्वेंशन सेंटर व जापानी मंदिर परिसर में महोत्‍सव की तैयारियां एक दिन पहले ही पूरी हो चुकी थीं. महोत्‍सव में ग्रामश्री मेला, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का मेला खादी पवेलियन, कृषि एवं सूचना जनसंपर्क व मत्स्य विभाग की प्रदर्शनी आदि आकर्षण का केंद्र बना. वहीं भगवान शंकर, सरस्वती माता और मां गंगा का संदेश सुनने वाले खुद को रोक नहीं पाये.ग्लोबल इंटरफेथ वॉश अलायंस जीवा द्वारा वॉश एण्ड व्हील का सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया जा रहा है. सीएम भी खुद को रोक नहीं पाये.आते ही स्वामी चिदानंद सरस्वती का कार्यक्रम कहकर रूचि दिखाने लगे. आगे डीएम डॉ.त्यागराजन एस एम ने सीएम को विस्तार से जानकारी दी. मौके पर ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार, सांसद कौशलेंद्र कुमार, विधायक रवि ज्योति, जीवा के साकेत सिंह, रंजीत कुमार सिंह,अरविंद कुमार आदि थे.

पुण्यतिथि विशेष : राजा साहेब की सियासत

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शतरंज के शौकीन वी पी सिंह ने जब सियासत कि बिसात पर मंडल का मोहरा चला तो उनका ये एक चाल उस वक्त के उनके तमाम विरोधियों को एक पल में ही चित कर दिया। शायद उन्हें क्या पता था की खुद की कुर्सी बचाने के लिए चला गया ये चाल आने वाले वक्त में कितनी नस्ल बर्बाद कर देगी ?  "राजा नहीं फ़कीर है। देश की तकदीर है।"का नारा देने वाले देश को आग की लपेट में धकेलकर उसके सुनहरे भविष्य से एक भूना हुआ मांस निकालेगा ! किसे पता था? जनता पार्टी के पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय इस पर असहमत होते हुए कहते हैं। "वीपी सिंह जी जो भी करते थे उसके आगे पीछे के सभी पहलूओं पर विचार करके ही करते थे।"लेकिन मंडल कमीशन के एक पुराने डेटा से बनाए गए रिपोर्ट को इतने जल्दबाजी में लागू करना क्या चूक नहीं थी? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार और लूटियन्स जोन पर गहरी पकड़ रखने वाले कुलदीप नैयर कहते हैं। "वी पी सिंह से अगर सबसे बड़ी कोई भूल हुई थी तो वो मंडल कमीशन को हड़बड़ी में लागू करना था । जो उसके राजनीतिक कैरियर के खात्मे का भी बड़ा कारण था।" 

क्या वी पी सिंह को पता था कि मंडल कि ये चाल उनके राजनीतिक कैरियर को बर्बाद कर सकती है? या उसने जानबूझकर उस वक्त के पिछड़े नेता देवीलाल और चंद्रशेखर को मात देने के लिए चला था? इस सवाल पर हंसते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरूण शौरी कहते हैं। चाहे कुछ भी हो वी पी सिंह की ये चाल उनके लिए खुद गले की फांस बन गई।"(ताकि सनद रहे कि मंडल कमीशन के विरोध के कारण ही अरूण शौरी इंडियन एक्सप्रेस के संपादक पद से हटा दिए गए थे) क्या सच में मंडल कमीशन लागू करना वीपी सिंह के गले की फांस बन गई? क्या सच में मंडल कमीशन को लागू कर वी पी सिंह ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार लिया? जिस ५२% वोटरों को खुश करने के लिए मंडल कमीशन लागू किया गया क्या उसने भी वी पी सिंह को अकेला छोड़ दिया?

अपने अंतिम समय में वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी से बात करते हुए वी पी सिंह निराश थे। और ये निराशा उनके मुंह पर साफ दिख रही थी। उनने निराश भाव से अपने अंदर की पीड़ा को मुख पर लाते हुए ठहर गये और बोल बैठे; "प्रभाष जी दलितों और ओबीसी ने मुझपर विश्वास नहीं किया सिर्फ इसलिए कि मैं स्वर्ण था !"

(आज वी पी सिंह का जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर ये एक छोटी सी विवेचना लिखने का प्रयास किया है)


अविनीश मिश्र 
(लेखक माखनलाल विवि में पत्रकारिता​ के छात्र है)

बिहार : लालू के नाम पर ‘भभके’ सुशील मांझी के नाम पर पड़े ‘मंद’

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बिहार विधान मंडल का शीतकालीन आज से शुरू हो गया। शुक्रवार तक चलने वाले सत्र के पहले दिन दिवंगत आत्‍माओं की श्रद्धांजलि के साथ कार्यवाही कल तक के लिए स्‍थगित कर दी गयी। दोनों सदनों की कार्यवाही समाप्‍त होने के बाद परिसर में पत्रकारों से घिरे नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव ने एक ‘चिनगारी’ उछाल दी। इसे लपकने की होड़ पत्रकारों में लग गयी। उन्‍होंने कहा कि केंद्र सरकार ने लालू यादव की वीवीआईपी सुरक्षा वापस ले ली है। उनके साथ कोई अनहोनी होती है तो इसके जिम्‍मेवार केंद्र और राज्‍य सरकार होगी। इस चिनगारी को उछालते हुए पत्रकार उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी के कमरे में पहुंचे और चिनगारी उनके सामने फेंक दी। इस चिनगारी से 53 विधायक वाला इंजन भभक गया और लपटें लहराने लगीं। सुशील मोदी ने कहा कि लालू यादव को किससे डर है। उनसे तो पूरा देश डरता है। नेताओं की सुरक्षा को लेकर मोदी ने कहा कि सुरक्षा व्‍यवस्‍था और श्रेणी नेताओं के लिए एस्टेटस सिंबल बन गया है। इसके साथ लालू यादव को लेकर कई अन्‍य आरोप भी मढ़े। इसी क्रम में पत्रकारों ने पूर्व मुख्‍यमंत्री जीतनराम मांझी के बयान पर भी सवाल पूछ डाले। मांझी ने भी अपनी सुरक्षा श्रेणी कम किये को लेकर सवाल खड़ा किया था। मांझी के बयान पर सुशील का पारा अचानक नीचे आ गया और वे मंद पड़ गये। उन्‍होंने कहा कि नेताओं की सुरक्षा की श्रेणी केंद्र सरकार तय करती है। वही इसका मानदंड तय करती है।

इससे पहले हम 71 विधायक वाले बड़े इंजन के पास पहुंचे थे। हालांकि ‘बड़का दरबार’ में हम देर से पहुंचे। काफी बातें निकल चुकी थीं और मुख्‍यमंत्री विधान सभा से जाने की तैयारी में थे। उन्‍होंने कहा कि राजगीर भी जाना है। इसके साथ दरबार ‘वाइंड अप’ हो गया। हमने अपनी पत्रिका ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ की कॉपी मुख्‍यमंत्री के हाथों में दी। पत्रिका को अपने आप्‍त सचिव को देकर वे अपने कक्ष से बाहर निकल गये। हम करीब 11 बजे विधान मंडल परिसर में पहुंचे थे। रास्‍ते में घंटी सुनायी दी। हम तेजी से भागते हुए विधानसभा के प्रेस दीर्घा में पहुंचे। मुख्‍यमंत्री, उपमुख्‍यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के साथ बड़ी संख्‍या में सदस्‍य भी सदन में मौजूद थे। करीब 20 मिनट की कार्यवाही के बाद सदन कल तक के लिए स्‍थगित कर दी गयी।

शरद गुट ने किया नयी पार्टी के गठन का ऐलान

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नयी दिल्ली, 27 नवंबर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गुट वाले जनता दल (यू) से ‘तीर’ चुनाव चिह्र हारने के बाद पार्टी के बागी शरद गुट ने एक हफ्ते के अंदर नयी पार्टी गठित करने का आज ऐलान किया लेकिन अभी उसका कोई नाम तय नहीं किया है। शरद गुट की यहां बुलायी गयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की आपात बैठक में यह फैसला किया गया । फिलहाल तमिलनाडु पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के राजशेखरन को राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष चुना गया है । गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शरद गुट ने चुनाव लड़ने के लिए अपने पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष छाेटुभाई वासवा के नेतृत्व में भारतीय ट्राइबल पार्टी नाम का नया दल पंजीकृत कराया है । इसलिए श्री राजशेखरन के नया अध्यक्ष बनाया गया है । पार्टी महासचिव अरूण श्रीवास्तव ने बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में यह जानकारी दी।

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार लघु खनिज नियमावली 2017 पर लगायी रोक

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पटना 27 नवम्बर, पटना उच्च न्यायालय ने लघु खनिजों का थोक व्यापार बिहार राज्य खनन निगम के माध्यम से कराने संबंधी बिहार सरकार की नयी लघु खनिज नियमावली पर आज तत्काल रोक लगा दी और इसे चुनौती देने वाली याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन और न्यायाधीश ए के उपाध्याय की खंडपीठ ने बिहार लघु खनिज नियमावली 2017 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद उसे विस्तार से सुनने के लिए स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही अदालत ने बिहार लघु खनिज नियमावली 2017 के अनुपालन पर तत्काल रोक लगा दी। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि बिहार लघु खनिज नियमावली 2017 के नियम 35, 37 और 63 (2) विधि सम्मत नहीं है। बिहार सरकार के नये नियम के अनुसार लघु खनिज की बिक्री का मूल्य तय करने का अधिकार है जो खान एवं खनिज अधिनियम 1957 की धारा 15 के साथ ही आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के भी विरूद्ध है। गौरतलब है कि बिहार लघु खनिज नियमावली 2017 का बालू और गिट्टी व्यवसायी संघ और खनन से जुड़े कारोबारी विरोध कर रहे हैं।

सरकार ने कर्मचारियों के लिये प्रतिनियुक्ति भत्ता दोगुना किया

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नयी दिल्ली, 27 नवंबर, केंद्र सरकार के कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति पर दिया जाने वाला भत्ता दो गुना बढ़ाकर 2,000 रुपये से 4,500 रुपये मासिक कर दिया गया है। कार्मिक मंत्रालय ने एक आदेश में यह जानकारी दी। सातवें केन्द्रीय वेतन आयोग की सिफारिश के आधार पर यह कदम उठाया गया है। बयान के अनुसार, ‘‘एक ही स्थान पर प्रतिनियुक्ति होने पर भत्ता मूल वेतन का पांच प्रतिशत होगा जो अधिकतम 4,500 रुपये मासिक तक हो सकता है।’’ कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने शुक्रवार को जारी आदेश में कहा कि अगर प्रतिनियुक्ति दूसरे शहर में की जाती है तो भत्ता मूल वेतन का 10 प्रतिशत तथा अधिकतम 9,000 रुपये मासिक होगा। इसके अनुसार महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत बढ़ने पर इस भत्ते की सीमा को 25 प्रतिशत बढ़ाया जायेगा। अब तक एक स्थान पर प्रतिनियुक्ति भत्ता मूल वेतन का 5 प्रतिशत और अधिकतम 2,000 रुपये था। वहीं दूसरी जगह पर प्रतिनियुक्ति के मामले में यह मूल वेतन का 10 प्रतिशत और अधिकतम 4,000 रुपये था।

सेंसेक्स में लगातार आठवें दिन तेजी, 45 अंक और चढ़ा

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मुंबई, 27 नवंबर, बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज लगातार आठवें दिन सकारात्मक रुख के साथ बंद हुआ। हालांकि, स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने भारत की सॉवरेन रेटिंग में बदलाव नहीं किया है, इसके बावजूद बाजार पर इसका असर नहीं हुआ। घरेलू संस्थागत निवेशकों की लिवाली तथा यूरोपीय बाजारों के सकारात्मक संकेतों से भी बाजार को तेजी मिली। नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी भी मामूली लाभ के साथ बंद हुआ। बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स कमजोर रुख के साथ खुलने के बाद लगातार नकारात्मक दायरे में रहा। लेकिन कारोबार के आखिरी घंटे में लिवाली का सिलसिला चलने से सेंसेक्स अंत में 45.20 अंक या 0.13 प्रतिशत के लाभ से 33,724.44 अंक पर बंद हुआ। पिछले सात सत्रों में सेंसेक्स 918.80 अंक चढ़ चुका है। नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी स्थिर रुख के साथ 9.85 अंक या 0.09 प्रतिशत की मामूली बढ़त के साथ 10,399.55 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान यह 10,340.20 से 10,407.15 अंक के दायरे में रहा। पिछले सात सत्रों में सेंसेक्स में बढ़त की प्रमुख वजह मूडीज द्वारा भारत की रेटिंग में सुधार और कुछ बड़ी कंपनियों के उम्मीद से बेहतर तिमाही नतीजे रहे हैं। हालांकि, उसके बाद एसएंडपी ने भारत की रेटिंग को स्थिर परिदृश्य के साथ बीबीबी माइनस पर कायम रखा है। आज कारोबार के दौरान बिजली, रीयल्टी, बुनियादी ढांचा, टिकाऊ उपभोक्ता सामान और पूंजी सामान कंपनियों के शेयर लाभ में रहे।

भाग्यशाली हूं कि एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ा होकर खेल रहा हूं : रोहित

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नागपुर, 27 नवंबर, एक साल से भी अधिक समय बाद पहला टेस्ट खेलते हुए शतक जड़ने वाले रोहित शर्मा ने श्रीलंका के खिलाफ दूसरे क्रिकेट टेस्ट में भारत की पारी और 239 रन की जीत के बाद कहा कि वह भाग्यशाली है कि एक बार फिर अपने पैरों पर खड़े होकर क्रिकेट खेल रहे हैं। रोहित ने करियर के लिए खतरा बनी जांघ की चोट से उबरने के बाद श्रीलंका के खिलाफ यहां दूसरे टेस्ट में नाबाद 102 रन की पारी खेलते हुए अपना तीसरा टेस्ट शतक जड़ा जो लंबे प्रारूप में चार साल से अधिक समय में उनका पहला शतक है। दस साल के अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान सिर्फ 22 टेस्ट खेलने के संदर्भ में पूछने पर रोहित ने दूसरे टेस्ट के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘आपके जीवन में हमेशा ही मलाल होते हैं। यहां तक कि अगर आप 10000 रन बनाओगे तो भी आपको लगेगा कि मुझे 15000 रन बनाने चाहिए थे या लोग आपसे कहेंगे, ‘आपको 15000 रन बनाने चाहिए थे।’।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ा हूं क्योंकि जब मैं इस चोट (2016 में जांघ की सर्जरी) से गुजर रहा था तो एक समय मैं सोच रहा था कि क्या मैं दोबारा चल भी पाऊंगा या नहीं।’’ रोहित ने कहा, ‘‘मैं भाग्यशाली हूं कि एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ा हूं, खेल रहा हूं और रन बना रहा हूं, इसलिए हां, मैं खुश हूं।’’ वनडे क्रिकेट में भारतीय टीम के नियमित सदस्य रोहित ने कहा कि वह वर्तमान में जीना चाहते हैं और अतीत के बारे में नहीं सोचते। उन्होंने कहा, ‘‘मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो अतीत में हो चुकी चीजों के बारे में सोचे। मैं उन चीजों को देखना चाहता हूं जो मेरे सामने हैं और मैं चीजों को इसी तरह से देखता हूं। जब मैं अनुभवहीन था और टीम में आया ही था तब मैं काफी चीजों के बारे में सोचा करता था लेकिन अब नहीं।’’ 

स्वास्थ्य : टीबी का टीका विकसित करने की दिशा में वैज्ञानिकों ने की अहम खोज

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लंदन, 27 नवंबर, वैज्ञानिकों ने विश्व के सबसे घातक, संक्रामक क्षय रोग (टीबी) के खिलाफ एक प्रभावशाली टीका विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण खोज की है। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि टीबी के कारण हर वर्ष विश्वभर में अनुमानित 17 लाख लोगों की मौत होती है। किसी अन्य संक्रमण की तुलना में टीबी के कारण मरने वालों लोगों की संख्या सर्वाधिक है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी पर एंटीबायोटिक्स का असर समाप्त होता जा रहा है लेकिन वैश्विक स्तर पर 20 वर्षों के लगातार प्रयासों के बावजूद कोई प्रभावशाली टीका विकसित नहीं हो पाया है। हालिया प्रयासों में संक्रमण से लड़ने के लिए आवश्यक परंपरागत मानवीय टी कोशिका की माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस (एमटीबी) में पाए जाने के वाले प्रोटीन के अंशों पर प्रतिक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया गया। टी कोशिका श्वेत रक्त कोशिका है और एमटीबी वह जीवाणु है जिसके कारण टीबी होता है। इंग्लैंड में साउथैम्पटन और बांगोर विश्वविद्यालयों के अनुसंधानकर्ताओं ने अब बताया है कि विशेष प्रकार के लिपिड अन्य ‘गैरपरंपरागत’ प्रकारों की टी कोशिकाओं की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय कर सकते हैं। पत्रिका पीएनएएस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार टीम ने दिखाया कि लिपिड के समूह, जिन्हें माइकोलिक एसिड कहा जाता है वे प्रतिरोधी प्रतिक्रिया तय करने में अहम हो सकते हैं। ये एसिड एमटीबी कोशिका के अहम घटक हैं। साउथैम्पटन विश्वविद्यालय के सालाह मंसौर ने कहा, ‘‘यह टीबी के मरीजों के लिए संभावित चिकित्सकीय प्रभावों के संबंधों में उत्साहित करने वाली खोज है।’’ उन्होंने कहा कि इससे टीका विकसित करने की मुहिम में मदद मिल सकती है। 

न्यायालय ने केन्द्र को दार्जिलिंग से केन्द्रीय बलों को वापस बुलाने की अनुमति दी

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नयी दिल्ली, 27 नवंबर, उच्चतम न्यायालय ने आज केन्द्र को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कालिम्पोंग जिलों से केन्द्रीय सशस्त्र अर्द्धसैनिक बलों की आठ में से अधिकतम चार कंपनियों को वापस बुलाने की अनुमति दे दी। केन्द्र ने गुजरात में चुनाव से पहले वहां सुरक्षा ड्यूटी के लिए कंपनियों को वापस बुलाने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने हिंसाग्रस्त पश्चिगम बंगाल में मौजूद बलों में से आधे को गुजरात भेजने की आज अनुमति दे दी। न्यायालय ने इससे पहले 27 अक्तूबर को केन्द्र को दार्जिलिंग और कालिम्पोंग जिलों से सीएपीएफ की 15 कंपनियों में से सात कंपनियां हटाकर उन्हें जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों और चुनावी राज्यों गुजरात तथा हिमाचल में तैनात करने की अनुमति दी थी। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इससे पहले दार्जिलिंग से सीएपीएफ की कंपनियां हटाने पर 27 अक्तूबर तक के लिये रोक लगा दी थी। इसके बाद ही केन्द्र ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।

उच्चतम न्यायालय ने केरल की महिला को आगे पढाई के लिये तमिलनाडु के सलेम भेजा

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नयी दिल्ली, 27 नवंबर, उच्चतम न्यायालय ने कथित लव जिहाद प्रकरण में केरल की महिला से बातचीत की और उसे होम्योपैथी की शिक्षा आगे जारी रखने के लिये तमिलनाडु के सलेम भेज दिया प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने हादिया को सुरक्षा प्रदान करने और यथाशीघ्र उसका सलेम पहुंचना सुनिश्चित करने का केरल पुलिस को निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने सलेम स्थित होम्योपैथिक कालेज के डीन को हादिया का संरक्षक नियुक्त करने के साथ ही उन्हें किसी भी परेशानी की स्थिति में न्यायालय आने की छूट प्रदान की है। न्यायालय ने कालेज और विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि हादिया को फिर से प्रवेश दिया जाये और उसे छात्रावास की सुविधा उपलब्ध करायी जाये। हादिया पिछले कई सप्ताह से अपने पिता के घर में रह रही थी। इस मामले की दो घंटे से भी अधिक समय तक चली सुनवाई के दौरान हादिया ने कहा कि वह अपने पति शफीं जहां के साथ जाना चाहती है। शीर्ष अदालत हादिया के साथ शफीं की शादी को अमान्य करार देने के केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शफी की याचिका पर जनवरी के तीसरे सप्ताह में आगे विचार करेगी। शफी जहां ने 20 सितंबर को शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर करके हिन्दू युवती द्वारा धर्म परिवर्तन के बाद उसके साथ विवाह करने के इस विवादास्पद मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेन्सी को सौंपने का आदेश वापस लेने का अनुरोध किया था।

शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त को राष्ट्रीय जांच एजेन्सी को इस घटना की जांच शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर वी रवीन्द्रन की देखरेख में करने का निर्देश दिया था। शफी जहां ने इस हिन्दू युवती से पिछले साल दिसंबर में विवाह किया था। लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा इस विवाह को अमान्य घोषित करने के फैसले को चुनौती देते हुये उसने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की जिसमें उसने इस निर्णय को देश में महिलाओं की स्वतंत्रता का अपमान बताया था। उच्च न्यायालय ने केरल पुलिस को इस तरह के मामलों की जांच करने का भी आदेश दिया था। इस युवती के पिता अशोकन के एम ने आरोप लगाया था कि उसे सीरिया में इस्लामिक स्टेट मिशन द्वारा भर्ती किया गया हैऔर जहां तो सिर्फ एक मोहरा है। उनका यह भी आरोप था कि धर्म परिवर्तन और इस्लामिक कट्टरता के लिये एक ‘सुव्यवस्थित तंत्र’ काम कर रहा है।

गुजरात चुनाव विकास पर विश्वास और वंशवाद की राजनीतिक के बीच है : मोदी

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भुज :गुजरात:, 27 नवंबर, कांग्रेस पर तीखा प्रहार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि यह चुनाव विकास पर विश्वास और वंशवाद की राजनीति के बीच हो रहे हैं और प्रदेश की जनता गुजरात के बेटे के खिलाफ झूठ फैलाने के कांग्रेस पार्टी के प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगी । कच्छ जिले के भुज में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि गुजरात में जहां एक ओर विकास में विश्वास है वहीं दूसरी ओर वंशवाद है। गुजरात की जनता ने कभी कांग्रेस को स्वीकार नहीं किया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत विपक्षी नेताओं के आरोपों को खारिज करते हुए मोदी ने कहा कि वे गुजरात आते हैं , गुजरात के बेटे के बारे में झूठ फैलाते हैं और बेबुनियाद आरोप लगाते हैं । उन्होंने :कांग्रेस ने: सरदार पटेल के बारे में भी ऐसा ही किया था । कोई भी गुजराती उनके झूठ को स्वीकार नहीं करेगा । उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पिछले कुछ समय से मोदी सरकार पर राफेल सौदे को लेकर निशाना साधती रही है।

मोदी ने कहा कि ‘एक तरफ विकास है तो दूसरी तरफ वंशवाद है। यह चुनाव विकास पर विश्वास और वंशवाद की राजनीतिक के बीच है ।’’ कांग्रेस पार्टी पर प्रहार जारी रखते हुए प्रधानमंत्री ने सवाल किया कि जब हमारे सैनिक 70 दिनों तक डोकलाम में आमने सामने खड़े थे तब आप चीनी राजदूत को गले क्यों लगा रहे थे । भाजपा के चुनाव चिन्‍ह कमल का उल्‍लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘क से कच्‍छ होता है और क से कमल होता है।’’ उन्‍होंने कहा, ‘‘मैं गुजरात की जनता का आशीर्वाद लेने आया हूं और यहां किसानों की मेहनत को सलाम करता हूं।’’ मोदी ने कहा कि साल 2001 के भूकंप में हमने यहां बहुत काम किया। जब 2001 में कच्‍छ में भूकंप आया, तब अटल बिहारी वाजपेयी ने मुझे यहां काम करने को भेजा था जिसने मुझे काफी कुछ सिखाया। प्रधानमंत्री आज कई चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे । उनका बुधवार को सौराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात में भी चुनावी सभाएं करने का कार्यक्रम है । गुजरात में दो चरणों में 9 और 14 दिसंबर को मतदान होने है और मतगणना 18 दिसंबर को होगी ।

मोदी के खिलाफ अभियान को रोकने के लिए जेड प्लस सुरक्षा हटायी गयी : लालू

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पटना 27 नवम्बर, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने आज कहा कि उन पर खतरे की आशंका को देखते हुए केन्द्र की तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय से ही उन्हें जेड प्लस  श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करायी गयी थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ  उनके अभियान को रोकने के उद्देश्य से उनकी यह सुरक्षा हटा दी गयी है।  श्री यादव ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मौजूदा समय में राजनीतिक का स्तर गिरता जा रहा है। सत्ता में बैठे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अहंकार में राजनीति का स्तर काफी नीचे चला गया है। उन्होंने कहा कि ओछेपन की राजनीति हो रही है।  राजद अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा का मुखर विरोधी होने और श्री मोदी के समक्ष घुटना नहीं टेकने के कारण उन्हें और उनके परिवार को परेशान किया जा रहा है। पहले फर्जी मुकदमें के माध्यम से जहां एक ओर उन्हें फंसाया गया वहीं अब उन्हें जेल भेजने की तैयारी भी की जा रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ गयी है।  श्री यादव ने कहा कि चाहे जो भी नतीजा हो वह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के समक्ष घुटना टेकने वाले नहीं हैं । उनकी पार्टी ‘भाजपा भगाओ देश बचाओ’ नारे के साथ लोगों को एकजुट करने में लगी है। उन्होंने कहा कि देश के बेरोजगार और नौजवानों की पूरी सहमति उनकी पार्टी के साथ है। उन्होंने कहा कि भाजपा अध्यक्ष श्री शाह के पुत्र जय शाह पर साक्ष्य के आधार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा लेकिन उस पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं  हुयी। 


राजद अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है और देश अब तानाशाह की ओर बढ़ रहा है। लोकतंत्र नहीं बचेगा तो देश के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि आरएसएस और भाजपा देश बांटने  की एक बड़ी साजिश में लगी है।  श्री यादव ने कहा कि संप्रग सरकार के समय से ही उन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध थी जिसे साजिश के  तहत हटाया गया है। श्री मोदी और भाजपा को डर है कि यदि वह गुजरात विधानसभा के चुनाव में प्रचार के लिए गये तो  उनका बंटाधार होना तय है। उन्होंने कहा कि भाजपा और श्री मोदी के खिलाफ उनकी पार्टी का अभियान लगातार जारी  रहेगा और सुरक्षा हटा लेने से वह डरने वाले नहीं हैं, वह गुजरात जायेंगे।  राजद अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा के छुटभैये नेताओं को भी जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली हुयी है । ऐसे में उनका  और पूर्व मुख्यमंत्री एवं हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी को मिली सुरक्षा कैसे हटायी  गयी । श्री मांझी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र से आते हैं और उन्हें भी जान का खतरा है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि  क्या सुरक्षा बलों की कमी हो गयी है जिसे देखते हुए सुरक्षा हटा ली गयी है।  श्री यादव ने कहा कि सुरक्षा हटाये जाने के बावजूद वह डरने वाले नहीं है और बिहार का बच्चा-बच्चा उनकी रक्षा एवं सुरक्षा के लिए तैयार है। भाजपा कहीं न कहीं उनके लिए खतरा उत्पन्न करने में लगी है। उन्होंने कहा कि यदि उनपर किसी तरह का हमला होता है तो इसके लिए श्री मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिम्मेवार होंगे ।

विशेष : क्या विश्व महाविनाश के लिए तैयार है

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अमेरीकी विरोध के बावजूद उत्तर कोरिया द्वारा लगातार किए जा रहे हायड्रोजन बम परीक्षण के परिणाम स्वरूप ट्रम्प और किम जोंग उन की जुबानी जंग लगातार आक्रामक होती जा रही है। स्थिति तब और तनावपूर्ण हो गई जब जुलाई में किम जोंग ने अपनी इन्टरकाँन्टीनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। क्योंकि न तो ट्रम्प ऐसे उत्तर कोरिया को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जिसकी इन्टरकाँटीनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइलें न्यूयॉर्क की तरफ तनी खड़ी हों और न ही उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम बन्द करने के लिए। इस समस्या से निपटने के लिए ट्रम्प का एशिया  दौरा महत्वपूर्ण समझा जा रहा है क्योंकि इस यात्रा में उनकी विभिन्न एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से उत्तर कोरिया पर चर्चा होने का भी अनुमान है। मौजूदा परिस्थितियों में चूंकि दोनों ही देश एटमी हथियारों से सम्पन्न हैं तो इस समय दुनिया एक बार फिर न्यूक्लियर हमले की आशंका का सामना करने के लिए अभिशप्त है। निश्चित ही विश्व लगभग सात दशक पूर्व द्वितीय विश्वयुद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए न्यूक्लियर हमले और उसके परिणामों को भूल नहीं पाया है और इसलिए उम्मीद है कि स्वयं को महाशक्ति कहने वाले राष्ट्र मानव जाति के प्रति अपने दायित्वों को अपने अहं से ज्यादा अहमियत देंगे।

यह बात सही है कि अमेरिका 1985 से ही उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को बंद करने की  कोशिश में लगा है। इसके बावजूद अमेरिका द्वारा उत्तर कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंध या फिर उसकी किसी भी प्रकार की कूटनीति अथवा धमकी का असर किम जोंग पर कम ही पड़ता दिखाई दे रहा है। ट्रम्प की चिंता समझी जा सकती है लेकिन समस्या का हल ढूंढने के लिए किम जोंग और उनकी सोच को समझना ज्यादा जरूरी है। और इसे समझने के लिए उत्तर कोरिया का इतिहास समझना आवश्यक है। दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध से पहले तक  कोरिया पर जापान का कब्जा था। इस युद्ध में जापान की हार के बाद कोरिया का विभाजन किया गया जिसके परिणामस्वरूप उत्तर कोरिया जिसे सोवियत रूस और चीन का समर्थन मिला और दक्षिण कोरिया जिसे अमेरिका का साथ मिला ऐसे दो राष्ट्रों का उदय हुआ। जहाँ एक तरफ अमेरिकी सहयोग से दक्षिण कोरिया आज विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विश्व के लगभग 75% देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंध हैं, वहीं उत्तर कोरिया आज भी एक दमनकारी सत्तावादी देश है जिस पर किम जोंग और उनके परिवार का शासन है। रूस और चीन के सहयोग के बावजूद उत्तर कोरिया का विकास समिति ही रहा क्योंकि एक तरफ इसकी मदद करने वाला सोवियत रूस 1990 के दशक में खुद ही विभाजन के दौर से गुजर रहा था इसलिए इसे रूस से मिलने वाली आर्थिक सहायता बन्द हो गई वहीं दूसरी तरफ इस देश ने उसी दौर में भयंकर सूखे का भी सामना किया जिसमें उसके लाखों नागरिकों की मौत हुई और साथ ही देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई।
रही चीन की बात तो उसने उत्तर कोरिया के सामरिक महत्व को समझते हुए इसे केवल अमेरिका को साधने का साधन मात्र बनाए रखा।  उत्तर कोरिया के साथ अपने व्यापार को चीन ने केवल अपने स्वार्थों तक ही सीमित रखा, उसे इतना भी नहीं बढ़ने दिया कि उत्तर कोरिया खुद एक सामर्थ्यवान अर्थव्यवस्था बन जाए।

नतीजन आज उत्तर कोरिया के सम्पूर्ण विश्व में केवल चीन के ही साथ सीमित व्यापारिक संबंध हैं। इन हालातों में दुनिया को किम जोंग तर्कहीन और सनकी लग सकते हैं लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो उनका मौजूदा व्यवहार केवल अपनी सत्ता और सल्तनत को बचाने के लिए है। क्योंकि किम ने  सद्दाम हुसैन और मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी का हश्र देखा है। इसलिए इन हथियारों से किम  शायद केवल इतना ही सुनिश्चित करना चाहते हैं कि किसी भी देश की उन पर आक्रमण करने की न तो हिम्मत हो और न ही कोशिश करे। अब देखा जाए तो अपने अपने नजरिये से दोनों ही सही हैं। आज की कड़वी सच्चाई यह है कि विकसित देशों की सुपर पावर बनने की होड़ और उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं ने वर्तमान परिस्थितियों को जन्म दिया है। इन हालातों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जब विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए एक साथ बैठेंगे तो वे किसका हल तलाशेंगे ,"समस्या"  का या फिर "किम जोंग"का? इस प्रश्न के ईमानदार उत्तर में ही शायद  समस्या और उसका समाधान दोनों छिपे हैं। इसके लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम चर्चा में शामिल होने वाले राष्ट्र खुद को सुपर पावर की हैसियत से नहीं  पृथ्वी नाम के इस खूबसूरत ग्रह के संरक्षक के रूप में शामिल करें।
ईश्वर की बनाई इस धरती और उसमें पाए जाने वाले जीवन का वे एक हिस्सा मात्र हैं मालिक नहीं इस बात को समझें।

अपनी महत्वाकांक्षाओं के अलावा आने वाली पीढ़ियों के प्रति भी उनके कुछ फर्ज हैं इस तथ्य को स्वीकार करें। अवश्य ही हममें से कोई भी अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसा उजड़ा चमन छोड़ कर नहीं जाना चाहेगा जहाँ की हवा पानी पेड़ पौधे फल अनाज मिट्टी सभी इस कदर प्रदूषित हों चुके हों कि इस धरती पर हमारे बच्चों के लिए आस्तित्व का संघर्ष ही सबसे बड़ा और एकमात्र संघर्ष बन जाए। यह बात सही है कि हथियारों की दौड़ में हम काफी आगे निकल आए हैं लेकिन उम्मीद अब भी कायम है कि  "असंभव कुछ भी नहीं"। "जीना है तो हमारे हिसाब से जियो नहीं तो महाविनाश के लिए तैयार हो जाओ"  यह रवैया बदलना होगा और   "चलो सब साथ मिलकर इस धरती को और खूबसूरत बनाकर प्रकृति का कर्ज चुकाते हैं", इस मंत्र को अपनाना होगा। जरूरत है सोच और नजरिया बदलने की परिस्थितियों अपने आप बदल जाएंगी।



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डाँ नीलम महेंद्र

विशेष आलेख : संकीर्णता नहीं, स्वस्थ राजनीतिक मुद्दें हो

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मुंबई में पिछले दो सप्ताह से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बाहर से आकर बसे और कारोबार कर रहे लोगों के खिलाफ हिंसक आंदोलन चला रही है, उन्हें खदेड़ रही है, उनके रोजी-रोटी को बाधित कर रही है, इस तरह अपनी राजनीति को मजबूत करने की सोच एवं रणनीति लोकतांत्रिक दृष्टि से कत्तई उचित नहीं है। देश में जातिवाद और रंगभेद आम समस्या है और हमारे लोग इसी के शिकार होते हैं। बढ़ते विस्थापन के कारण देश में कई जातियां-जनजातियां प्रवासी मजदूर बनने के लिए अभिशप्त हैं। वे चाहे बिहारी हों या ओडिया भाषी या झारखंडी, बंगाली, नेपाली सभी को भारत के महानगरों में दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है, उनके साथ न केवल बेगानों जैसा व्यवहार किया जाता है बल्कि उनको हिंसक तरीके से महानगरों से खदेड़ने की कोशिश की जाती है, जो असंवैधानिक होने के साथ-साथ अलोकतांत्रिक भी है। मुंबई विभिन्न समुदायों, जातियों, प्रान्तों और उनकी संस्कृतियों और परंपराओं का समन्वय स्थल है, भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है। इस गौरवमय संस्कृति एवं छवि को धुंधलाने की कोशिशों को नाकाम किया जाना जरूरी है। मुंबई में बाहरी लोगों के साथ जो हुआ, या हो रहा है वह बहुत बुरा है, निन्दनीय है और विडम्बनापूर्ण है।

मुंबई में इन दिनों बाहर से आकर बसे और कारोबार कर रहे लोगों पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कहर बरपा रही है। उसके कार्यकर्ता पटरी पर रेहड़ी लगाने वालों, फेरी वालों को मार-पीट रहे हैं, उन्हें वापस जाने को कह रहे हैं। इस बीच फेरीवालों के समर्थन में उतरे कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर भी मनसे कार्यकर्ताओं ने हिंसक हमले किए। इस क्रम में उन्होंने बाहरी लोगों का समर्थन कर रहे अभिनेता नाना पाटेकर को भी आड़े हाथों लिया। प्रश्न है कि मनसे को यह अधिकार किसने दिया? प्रश्न यह भी है कि वहां की सरकार चुपचाप यह सब क्यों होने दे रही है? मनसे मुंबई पुलिस को कैसे चेतावनी दे सकती है? इस तरह की दादागिरी एवं तनाशाही प्रवृत्ति लोकतंत्र का मखौल है, कानून और व्यवस्था का मजाक है। 

एक बार पुुलिस को चेतावनी देकर खुद मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा बाहरी प्रांतों से आकर यहां फेरी लगाने, रिक्शा वगैरह चलाने वालों को हटाने की कार्रवाई किया जाना, किस तरह से उचित एवं लोकतांत्रिक माना जा सकता है? लेकिन मुंबई में इस तरह की दुखद घटनाएं हो रही है, मनसे के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और फेरी, खोमचा लगाने वालों का सामान फेंकना, तोड़-फोड़ और उनके साथ मार-पीट करना शुरू कर दिया। हालांकि शिवसेना और मनसे के कार्यकर्ता ऐसा पहली बार नहीं कर रहे हैं। चूंकि उनकी पूरी राजनीति मराठी अस्मिता को अक्षुण्ण रखने के संकल्प से जुड़ी है, इसलिए वे मौका पाकर जब-तब बाहरी लोगों के खिलाफ हिंसक आंदोलन शुरू कर देते हैं। रविवार को मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने एक बार फिर यह कह कर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने और मराठी भावना को भुनाने का प्रयास किया कि जब तक बाहरी लोगों को यहां से भगा नहीं दिया जाता, महाराष्ट्र के लोगों को उनका हक हासिल नहीं हो पाएगा। 

अपने राजनीतक धरातल को मजबूत एवं राजनीतिक स्वार्थों की रोटियां सेंकने के लिये बाहरी लोगों के साथ हिंसा करके उन्हें अपने अपने क्षेत्रों में लौट जाने को विवश करना विडम्बनापूर्ण त्रासद स्थितियां हैं। अपने ही वतन में बेवतन एवं बेगानों जैसा व्यवहार क्यों? लोकतंत्र के विचार को प्रभावी होने के लिए एकदेशिकता काफी नहीं, सार्वदेशिकता और अन्तर्राष्ट्रीयतावादी चेतना के बिना वह अर्थपूर्ण नहीं हो सकती। यह आज समझना तो और भी आवश्यक है कि लोकतंत्र की सफलता राष्ट्रवाद के संकुचित दायरे में नहीं हो सकती। मानवाधिकार के सिद्धांत ने कई क्षेत्रों में राष्ट्र की सीमाओं को अप्रासंगिक कर दिया है। फिर अपने ही देश में अपने ही देश के नागरिकों के साथ यह भेदभाव कब तक?

दरअसल, जब से शिव सेना दोफाड़ हुई है, दोनों घटकों के बीच मराठी अस्मिता की राजनीति कुछ अधिक आक्रामक हुई है। मनसे अपने को शिव सेना से अधिक मराठी मानुस की हितैषी साबित करने की कोशिश करती है। कुछ महीने पहले राज ठाकरे ने इसी तरह बाहरी प्रदेशों से आकर मुंबई में रिक्शा चलाने वालों को बाहर खदेड़ने के लिए आंदोलन चलाया था। हालांकि अब महाराष्ट्र के लोग भी शिव सेना और मनसे की संकीर्ण राजनीति को समझ चुके हैं, इसलिए उनके आंदोलनों का बहुत असर नहीं दिखाई देता, पर हैरानी की बात है कि उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ कभी कड़े कदम नहीं उठाए जाते। किसी भी शहर या राज्य से बाहरी लोगों को खदेड़ना या परेशान करना संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक ढांचे के विरुद्ध है। ऐसा नहीं कि यह बात शिव सेना और मनसे के लोग नहीं जानते, पर वे इसी तरह बाहुबल के आधार पर अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास करते आए हैं, इसके लिये वे लोगों को विनाश की विध्वंसकारी आग में धकेलते हैं। इससे बाहरी लोगों का जीवन अशांत, असुरक्षित, वहशत एवं दहशत के विषाक्त वातावरण सना हो जाता है। सद्भावना जख्मी हो जाती है, विविधता में एकता धुंधली होती है, सहजीवन आहत होता है। इस तरह का यह उनका राजनीति करने का एक ढर्रा बन चुका है। लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं एवं संरचनाओं में इस तरह की राजनीति की कोई जगह नहीं है।

मुंबई को देश की व्यावसायिक राजधानी, सपनों का शहर, ग्लैमर की नगरी आदि नामों से जाना जाता है। मुंबई एक जीवंत सांझा संस्कृति वाला और कभी न सोने वाला शहर है, जिसमें विभिन्न जातियों व धर्मों के और अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं। इन लोगों के अलग-अलग खानपान, संगीत व साहित्य व विविध कामधंधे इस शहर को विविधताओं की नगरी भी बनाते हैं, यही इसकी ताकत भी है और पहचान भी। यह शहर कई अलग-अलग संस्कृतियों का मिलन स्थल है। इसकी संस्कृति के निर्माण में यहां रहने वालों और बाहर से आकर यहां बसने वालों दोनों का समान योगदान है। मुंबई एक ऐसा आईना है जिसमें बंगाल, महाराष्ट्र, आसाम, बिहार, औडिसा, मणिपुर, नागालैंड, हर प्रदेश को अपनी सूरत नजर आएगी। मुंबई में ऐसे स्थानों का एक बड़ा खजाना है जो शहर की अचंभित कर देने वाली विविधिता और उसकी समृद्ध विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन इस विविधता को खंडित करने का प्रयास किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।

क्या कारण है कि जन्मभूमि को जननी समझने वाला भारतवासी आज भूख और अभावों से आकुल होकर महानगरों की ओर भागता है और वहंा जाकर उसे उपेक्षा के दंश झेलने पड़ते है, प्रताड़ित होना पड़ता है, खदेड़ा जाता है। क्या कारण है कि शस्य श्यामला भारत भूमि पर आज अशांति, आतंक, अलगाव, भूख और हिंसा का ताण्डव हो रहा है? कारण है -शासन, सत्ता, संग्रह और पद के मद में चूर संकीर्ण राजनीति, जिसने जनतंत्र द्वारा प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग किया और जनतंत्र की रीढ़ को तोड़ दिया है। सरकारें हैं-प्रशासन नहीं। कानून है--न्याय नहीं। साधन हंै-अवसर नहीं। राजनीतिक स्वार्थ की भीड़ में राष्ट्रीय चरित्र खो गया है। उसे खोजना बहुत कठिन काम है। बड़े त्याग और सहिष्णुता की जरूरत है। उसे खोजने के लिए आंखों पर से जातीयता, क्षेत्रीयता, भाषा और साम्प्रदायिकता का संकीर्ण काला चश्मा उतारना होगा। विघटनकारी प्रवृत्तियों को त्याग कर भावात्मक एकता के वातावरण का निर्माण करना होगा। विघटन के कगार पर खड़े राष्ट्र को बचाने के लिए राजनीतिज्ञों को अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को त्यागना होगा।

यह जाहिर है कि जबसे भाजपा ने अपने दम पर चुनाव जीता और सरकार बनाई है, शिव सेना और मनसे एक तरह से अलग-थलग पड़ गई हैं। उन्हें अपना जनाधार बढ़ाने की चिंता सताने लगी है, इसलिए भी वे जब-तब कभी सरकार को घेरने के मकसद से, तो कभी मराठी भावना को भुनाने की मंशा से अपने कार्यकर्ताओं को आन्दोलन के लिए उकसाती रहती हैं। पर इस हकीकत से उन्हें आंख नहीं चुराना चाहिए कि जिस दमखम और रणनीति के तहत बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में अपना सिक्का जमाया था, अब उसे शिव सेना और मनसे के लिए बहुत देर तक भुनाना संभव नहीं है। विधानसभा और फिर कुछ नगर निकाय चुनावों में महाराष्ट्र के लोग इस बात का संकेत भी दे चुके हैं। इसलिए लोकतांत्रिक ढांचे को क्षत-विक्षत करने के बजाय अगर वे स्वस्थ राजनीतिक मुद्दों पर अपना जनाधार मजबूत करने का प्रयास करें तो शायद वे अपने अस्तित्व को बचाए रख सकती हैं। यही इन पार्टियों के इतिहास की दृष्टि प्रासंगिक होगा और ऐसा करके ही वे अपने गौरव को अक्षुण्ण रख पाएंगी। बाहरी मजदूरों की इज्जज एवं उम्मीद के पंखों को काटने की बजाय उन्हें खुला आसमान दिया जाये, यही इन बिखरी एवं टूटती पार्टियों के लिये संभावनाभरी उडान हो सकती है।    




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(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला, 
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051
फोनः 22727486, 9811051133

विशेष आलेख : अभिव्यक्ति की आज़ादी और जम्हूरियत के चौथे स्‍तंभ पर खूनी हमलों का दौर

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दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत पत्रकारिता के लिहाज से सबसे खतरनाक मुल्कों की सूची में बहुत ऊपर है. रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स  द्वारा 2017 में जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के अनुसार इस मामले में 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर है. यहाँ अपराध, भ्रष्टाचार, घोटालों, कार्पोरेट व बाहुबली नेताओं के कारनामें उजागर करने वाले पत्रकारों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. इसको लेकर पत्रकारों के सिलसिलेवार हत्याओं का लम्बा इतिहास रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो सालों के दौरान देश भर में पत्रकारों पर 142 हमलों के मामले दर्ज किये हैं जिसमें सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश (64 मामले) फिर मध्य प्रदेश (26 मामले) और बिहार (22 मामले) में दर्ज हुए हैं. इधर एक नया ट्रेंड भी चल पड़ा है जिसमें वैचारिक रूप से अलग राय रखने वालों, लिखने पढ़ने वालों को डराया, धमकाया जा रहा है, उनपर हमले हो रहे हैं यहाँ तक कि उनकी हत्यायें की जा रही हैं. आरडब्ल्यूबी की ही रिपोर्ट बताती है कि भारत में कट्टरपंथियों द्वारा चलाए जा रहे ऑनलाइन अभियानों का सबसे बड़े शिकार पत्रकार ही बन रहे हैं, यहां न केवल उन्हें गालियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि शारीरिक हिंसा की धमकियां भी मिलती रहती हैं.

पिछले दिनों वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश को बेंगलुरु जैसे शहर में उनके घर में घुसकर मार दिया गया. लेकिन जैसे उनके वैचारिक विरोधियों के लिये यह काफी ना रहा हो. सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी समूहों के लोग उनकी जघन्य हत्या को सही ठहराते हुए जश्न मानते नजर आये. विचार के आधार पर पहले हत्या और फिर जश्न यह सचमुच में डरावना और ख़तरनाक समय है. गौरी लंकेश की निर्मम हत्या ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हामियों को झकझोर दिया है, यह एक ऐसी घटना है जिसने स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले लोगों में गुस्से और निराशा से भर दिया है. आज गौरी लंकेश दक्षिणपंथी राजनीति के खिलाफ प्रतिरोध की सबसे बड़ी प्रतीक बन चुकी है. जाहिर है उनके कहे और लिखे की कोई अहिमियत रही होगी जिसके चलते उनकी वैचारिक विरोधियों ने उनकी जान ले ली. गौरी एक निर्भीक पत्रकार थीं, वे सांप्रदायिक राजनीति और हिन्दुतत्ववादियों के खिलाफ लगातार मुखर थी. यह उनकी निडरता और ना चुप बैठने की आदत थी जिसकी कीमत उन्होंने अपनी जान देकर चुकाई है. गौरी की हत्या बिल्कुल उसी तरह की गयी है जिस तरह से उनसे पहले गोविन्द पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर,एमएम कलबुर्गी की आवाजों को खामोश कर दिया गया था. ये सभी लोग लिखने,पढ़ने और बोलने वाले लोग थे जो सामाजिक रूप से भी काफ़ी सक्रिय थे.

गौरी लंकेश की हत्या के बाद एक फेसबुक पोस्ट में कहा गया कि “गौरी लंकेश की हत्या को देश विरोधी पत्रकारिता करने वालों के लिए एक उदाहरण के तौर पर पेश करना चाहिए, मुझे उम्मीद है कि ऐसे देश द्रोहियों की हत्या का सिलसिला यही खत्म नहीं होगा और शोभा डे, अरुंधति राय, सागरिका घोष, कविता कृष्णन एवं शेहला रशीद आदि को भी इस सूची में शामिल किया जाना चाहिए.” जाहिर है हत्यारों और उनके पैरेकारों के हौंसले बुलंद हैं. भारतीय संस्कृति के पैरोकार होने का दावा करने वाले गिरोह और साईबर बन्दर बिना किसी खौफ के नयी सूचियाँ जारी कर रहे हैं, धमकी और गली-गलौज कर रहे हैं, सरकार की आलोचना या विरोध करने वाले लोगों को देशद्रोही करार देते हैं और अब हत्याओं के बाद शैतानी जश्न मन रहे हैं. गौरी लंकेश को लेकर की हत्या के बाद जिस तरह से सोशल मीडिया पर उन्हें नक्सल समर्थक, देशद्रोही और हिन्दू विरोधी बताते हुए उनके खिलाफ घृणा अभियान चलाया गया वैसा इस देश में पहले कभी नहीं देखा गया. इसमें ज्यादातर वे लोग हैं, दक्षिणपंथी विचारधारा और मौजूदा सरकार का समर्थन करने का दावा करते हैं. जश्न मनाने वालों को किसकी शह मिली हुई है यह भी दुनिया के सामने है. यह हैरान करने वाली बात है कि इस हत्या को जायज़ बताने वालों में वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्विटर पर फॉलो करते हैं. निखिल दधीच का उदाहरण सबके सामने है जिसने बेहद आपत्तिजनक और अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हुए गौरी लंकेश की हत्या को जायज ठहराया. गौरी की हत्या के कुछ समय बाद ही उसने यह ट्वीट किया था कि ‘एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे है’. निखिल दधीच को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा फॉलो किया जाता है. निखिल की कई ऐसी तस्वीरें भी वायरल हो चुकी है जिसमें वह केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ नजर आ रहा है.

भारत के प्रधानमंत्री सोशल मीडिया पर गाली गलौज और नितांत आपत्तिजनक पोस्ट करने वालों के अनुसरण किये जाने को लेकर पहले भी सुर्खियाँ बटोर चुके हैं. पिछले साल सत्याग्रह पोर्टल पर इसको लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें बताया गया था कि प्रधानमंत्री ट्विटर पर विपक्ष के किसी भी नेता को फॉलो नहीं करते थे लेकिन वे ऐसे दर्जनों लोगों को फॉलो करते हैं जो निहायत ही शर्मनाक और आपतिजनक पोस्ट करते हैं. सांप्रदायिक द्वेष व अफवाहों को फैलाने में मशगूल रहते हैं और महिलाओं को भद्दी गलियां देते हैं. सत्याग्रह पोर्टल के अनुसार रिपोर्ट प्रकाशित होने के कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री ने विपक्ष के दर्जनों नेताओं को तो फॉलो करना तो शुरू कर दिया था लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ऐसे लोगों को फॉलो करना नहीं छोड़ा जो ट्विटर पर गाली-गलौज और नफरत फैलाते है. स्वाति चतुर्वेदी जिन्होंने ‘आई एम अ ट्रोल: इनसाइड द सीक्रेट डिजिटल आर्मी ऑफ द बीजेपी’ किताब लिखी है, बताती हैं कि प्रधानमंत्री कई अकाउंट को फॉलो करते हैं, जो खुले आम बलात्कार, मौत की धमकियां भेजते हैं, सांप्रदायिक भावनाएं भड़काते हैं. हत्या के बाद सत्ताधारियो पार्टी और इसके संगठनों से जुड़े कुछ नेता भी दबे और खुले शब्दों में इस हत्या को जायज ठहराते हुए नजर आये. कर्नाटक के भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री डीएन जीवराज ने बयां दिया कि ‘गौरी लंकेश जिस तरह लिखती थीं, वो बर्दाश्त के बाहर था, अगर उन्होंने आरएसएस के ख़िलाफ़ नहीं लिखा होता तो आज वह ज़िंदा होतीं’. इसी तरह से केरल हिंदू ऐक्य वेदी आरएसएस समर्थक संगठनों का साझा मंच है, के राज्य प्रमुख केपी शशिकला टीचर का बयान देखिये जिसमें वे कह रही हैं कि “मैं सेकुलर लेखकों से कहना चाहूंगी कि अगर वो लंबा जीवन चाहते हैं तो उन्हें मत्युंजय जाप कराना चाहिए नहीं तो आप भी गौरी लंकेश की तरह शिकार बनोगे”.

भारत हमेशा से ही एक बहुलतावादी समाज रहा है जहाँ हर तरह के विचार एक साथ फलते-फूलते रहे हैं यही हमारी सबसे बड़ी ताकत भी रही है लेकिन अचानक यहाँ किसी एक विचारधारा या सरकार की आलोचना करना बहुत खतरनाक हो गया है इसके लिए आप राष्ट्र-विरोधी घोषित किये जा सकते हैं और आपकी हत्या करके जश्न भी मनाया जा सकता है. बहुत ही अफरा-तफरी का माहौल है जहाँ ठहर कर सोचने–समझने और संवाद करने की परस्थितियाँ सिरे से गायब कर दी गयी हैं, सब कुछ खांचों में बट चूका है हिंदू बनाम मुसलमान, राष्ट्रवादी बनाम देशद्रोही. सोशल मीडिया ने लंगूर के हाथ में उस्तरे वाली कहावत को सच साबित कर दिया है जिसे राजनीतिक शक्तियां बहुत ही संगठित तौर पर अपने हितों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. पूरे मुल्क में एक खास तरह की मानसिकता और उन्माद को तैयार किया जा चूका है. यह एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज बहुत महंगा साबित होने वाला है और बहुत संभव है कि यह जानलेवा भी साबित हो. समाज से साथ–साथ मीडिया का भी ध्रुवीकरण किया गया है. समाज में खींची गयीं विभाजन रेखाएं, मीडिया में भी साफ़ नजर आ रही है. यहाँ भी अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहमति की आवाजों को निशाना बनाया गया है इसके लिए ब्लैकमेल, विज्ञापन रोकने, न झुकने वाले संपादकों को निकलवाने जैसे हथखंडे अपनाये गये हैं, इस मुश्किल समय में मीडिया को आजाद होना चाहिए था लेकिन आज लगभग पूरा मीडिया हुकूमत की डफली बजा रहा है. यहाँ पूरी तरह एक खास एजेंडा हावी हो गया है, पत्रकारों को किसी एक खेमे में शामिल होने और पक्ष लेने को मजबूर किया जा रहा है.
 
किसी भी लोकतान्त्रिक समाज के लिये अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहमति का अधिकार बहुत ज़रूरी है. फ्रांसीसी दार्शनिक “वोल्तेयर” ने कहा था कि “मैं जानता हूँ कि जो तुम कह रहे हो वह सही नहीं है, लेकिन तुम कह सको इस अधिकार की लडाई में, मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ”. एक मुल्क के तौर पर हमने भी नियति से एक ऐसा ही समाज बनाने का वादा किया था जहाँ सभी नागिरकों को अपनी राजनीतिक विचारधारा रखने, उसका प्रचार करने और असहमत होने का अधिकार हो. लेकिन यात्रा के इस पड़ाव पर हम अपने संवैधानिक मूल्यों से भटक चुके हैं आज इस देश के नागरिक अपने विचारों के कारण मारे जा रहे हैं और इसे सही ठहराया जा रहा है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हम एक ऐसे समय में धकेल दिये गये हैं जहाँ असहमति की आवाजों के लिये कोई जगह नहीं है गौरी लंकेश एक निडर और दुस्साहसी महिला थीं और बहुत ही निडरता के साथ अपना पक्ष रखती थीं और अपनी कलम और विचारों से अपने विरोधियों को लगातार ललकारती थी. वे अपनी कलम लिए शहीद हुईं हैं. चुप्पी और डर भरे इस महौल में उन्होंने सवाल उठाने और अभिव्यक्ति जताने की कीमत अपनी जान देकर चुकायी है. शायद इसका पहले से अंदाजा भी था, पिछले साल एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "मेरे बारे में किए जा रहे कॉमेंट्स और ट्वीट्स की तरफ जब मैं देखती हूं तो मैं चौकन्नी हो जाती हूं... मुझे ये डर सताता है कि हमारे देश में लोकतंत्र के चौथे खम्भे की अभिव्यक्ति की आजादी का क्या होगा... ये केवल मेरे निजी विचारों की बात है, इसका फलक बहुत बड़ा है."

गौरी लंकेश की हत्या एक संदेश है जिसे हम और अनसुना नहीं कर सकते हैं, इसने अभिव्यक्ति की आज़ादी और पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है. यह हमारी सामूहिक नाकामी का परिणाम है और इसे सामूहिक रूप से ही सुधार जा सकता है. यह राजनीतिक हत्या है जो बताती है कि वैचारिक अखाड़े की लड़ाई और खूनी खेल में तबदील हो चुकी है. इस स्थिति के लिए सिर्फ कोई विचारधारा, सत्ता या राजनीति ही जिम्मेदार नहीं है इसकी जवाबदेही समाज को भी लेनी पड़ेगी. भले ही इसके बोने वाले कोई और हों लेकिन आखिरकार नफरतों की यह फसल समाज और सोशल मीडिया में ही तो लहलहा रही है. नफरती राजनीति को प्रश्रय भी तो समाज में मिल रहा है. नागरिता की पहचान को सबसे ऊपर लाना पड़ेगा. लोकतंत्रक चौथे स्तंभ को भी अपना खोया सम्मान और आत्मविश्वास खुद से ही हासिल करना होगा .





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जावेद अनीस 
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विशेष : कालीन उद्योग ही नही, पुश्तैनी काम, परम्परा और संस्कृति भी है

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कारपेट एक्स्पों, ऐसा आयोजन है, जिसमें देश के कई राज्यों के निर्यातक एक साथ एक जगह पर रंग-बिरंगी डिजाइनों में देश की छबि झलक रही है। कोई सिल्क वुलेन, तो कोई काॅटन वुलेन तो साड़ी कतरन तो कोई जूट आदि से निर्मित कालीनों व दरी में बुनकरों ने अपनी कला को उकेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक छत के नीचे ऐसे कई बुनकरों द्वारा उनकी कला देखने को मिला जिसमें भारतीय जीवन शैली का भी चित्रण देखने को मिला। उनके इन कलाकृतियों ने  सात समुंदर पार से आएं खरीदारों का दिल जीत लिया। इस एक्स्पों का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ लाखों लोगों की कमाई का जरिया बना कारपेट इंडस्ट्री को बढ़ावा देना है 

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देश की पारंपरिक कलाएं जो लुप्त हो जा रही है, जिनकी लोकप्रियता कम होते जा रही है। उन सभी कलाओं को लोकप्रिय बनना, इसके प्रति लोगों को जागरुक करना सरकार की प्राथमिकता तो है ही, इसके जरिए रोजगार सृजन भी एक बड़ा काम हैं। एक्स्पों में बेहतर तरीके से मार्केटिंग होने से निर्यातकों को कई तरह के लाभ मिल सकते हैं। सरकार इनकी मदद के लिए आॅनलाइन मार्केटिंग की मदद लेगी। कालीन मेले में निर्यातकों के विश्वस्तरीय कारपेट स्टाल दिखाई दे रहे हैं। जिन्हे अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर डेवलप किया गया है। कालीन मेले में इस तरह के प्रयोग तेजी से बढ़ रहे हैं, इससे विदेशी आयातक इन स्टालों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। मेले में लगाए गए स्‍टालों में कालीनों के कलर संयोजन की तरह स्टाल में भी बेहतर कलर और डिजाईन का प्रयोग कर निर्यातक अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग कर रहे हैं साथ ही यह प्रयोग मेले को काफी आकर्षक बना रहा है। यही वजह है कि अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मार्केटिंग के लिए एक्स्पों एक बड़ा माध्यम साबित हो रहा है। मेले में कई ऐसे निर्यातक हैं जिन्‍होने पहली बार किसी फेयर में अपना स्टाल लगाया है। इससे उन्हे फायदा भी मिल रहा है। मेंले में 274 स्टालों और सात हजार वर्ग मीटर क्षेत्र ने आयातकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस कारण निर्यातक ऐसे स्टाल बनाने पर जोर दे रहे हैं। जो आयातकों को अपने तरफ आकर्षित कर स्टाल में आने के लिए प्रेरित करें। 

वाराणसी के संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्वविद्यालय में वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से कालीन निर्यात संवर्धन परिषद द्वारा आयोजित चार दिवसीय 34वें अंतर्राष्ट्रीय कालीन मेले के समापन के दौरान मेले में पहुंचे सांसद वीरेन्द्र सिंह मस्त ने कहा, निर्यातकों व बुनकरों के हाड़तोड़ मेहनत व कारीगरी का नतीजा है कि मेले में अन्तर्राष्ट्रीय मार्केटिंग और ब्राडिंग की छाप स्टालों पर देखने को मिली है। श्री सिंह ने कहा कि कालीन एक कुटीरपरक उद्योग हैं। जो सिर्फ उद्योग ही नहीं पुस्तैनी काम के साथ परम्परा और संस्कृति भी है। लाखों लोगों की कमाई का जरिया है। खास यह है कि इस उद्योग में काम करने वाले लोग खेती के साथ साथ बुनाई का काम करते हैं। यह ऐसा काम है जो गरीब से गरीब को भी स्‍वावलंबी बनाने में मददगार होती है। यह एक ऐसा उद्योग है जिससे जुड़े बुनकरों की कारीगरी से दुनिया भर में भारत की पहचान बनती है। मोदी सरकार इनके लिए कई योजनाएं भी लाई है जिसमें बुनकरों के पेंशन, पुरस्‍कार देकर उन्‍हे उत्‍साहित कर रही है। मुद्रा लोन के माध्‍यम से भी सरकार स्‍वरोजगार को भी बढ़ावा दे रही है। चूकि कालीन भेड़ के बालों से बनता है, इसलिए सरकार ने भेड़ पलकों के लिए खास स्कीम बनाई है। इस स्कीम में नबार्ड के जरिए भेड़पालकों को स्वावलंबी बनाने के लिए 10 भेड़ पर बगैर किसी ब्याज के एक लाख व 100 भेंड़ पर दस लाख रुपये की राशि देंगी। परिणाम यह है कि आज मुद्रा लोन लेकर गरीब बुनकर मजदूर खुद अपना व्‍यसाय कर रहे हैं। 

परिषद के अध्यक्ष महावीर शर्मा का कहना है कि मेले को लेकर निर्यातक नए नए प्रयोग कर रहे हैं वहीं परिषद का यह मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो चुका है। यही कारण है कि अब नए देशों के आयातक भी मेले में काफी संख्या में आए हैं और भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों के प्रति उनका रूझान तेजी से बढ़ा है। ग्लोबल ओवरसीज के निर्यातक संजय गुप्ता ने कहा कि मेले में स्टाल के माध्यम से अगले छह महीने के लिए निर्यात ऑर्डर बुक करने का प्रयास होता है। इस चार दिवसीय मेले में स्टाल लगाने के लिए पूरे वर्ष काम करना पड़ता है। हम प्रयास करते हैं की हमारा स्टाल अधिक से अधिक हमारे प्रोडक्ट को डिस्प्ले कर सके साथ ही स्टाल को सुंदर बना सके। परिषद के प्रथम उपाध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह ने बताया कि पहला मेला सिर्फ 250 वर्ग मीटर के साथ शुरू किया गया था। उस दौरान काफी साधारण स्टाल बनाए जाते थे और कुछ निर्यातक ही उसमें शिरकत करते थे लेकिन आज यह मेला विश्‍व स्‍तर पर एक ब्रांड बन चुका है। श्री शर्मा ने बताया कि चार दिनों में 275 आयातक व आयातकों के 304 प्रतिनिधियों ने मेले में अपनी भागीदारी दिखाई। परिषद के प्रयासों से कई प्रमुख देशो के बड़े आयातक भी मेले में पहुंचे और निर्यातकों के साथ व्यापारिक अनुबंध किया। 




(सुरेश गांधी)

बिहार : बालू को लेकर ट्रक ऑनर चांदी काट रहे है

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पटना(मोकामा). बिहार में बालू को लेकर हाहाकार है. इस तरह की मारामारी रोकने के लिए ट्रक ऑनर चांदी काट रहे है. पड़ोसी प्रदेश झारखंड व बंगाल से ट्रक भर बालू लेकर आते हैं और मोटी रकम वसूल रहे हैं.  हैवी ट्रक में कम राशि देकर अधिक मात्रा में बालू लेकर आते हैं. मात्र 15 हजार रू. में झारखंड व बंगाल से 11सौ फीट बालू ले ट्रक चालक चलते हैं. हर पुलिस चौकी में कर्तव्यनिष्ट पुलिसों को देते हैं 500 रू०. तब   डोमेस्टिक डॉग बन जाते हैं. जैसे कि  चालक के सहायक द्वारा कम राशि दी जाती है तो कर्तव्यनिष्ट पुलिस दबंग हो जाते हैं. 6 से अधिक थाने और चौकियों में 500 रू.से अधिक चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है. बिहार में घुसते ही 15 हजार रू.में क्रय बालू  55 से 75 हजार रू. में बिकता है. 500 रू. में 100 फीट बिक रहा है.मांग के अनुसार कीमत अधिक और कम की जाती है.

बिहार : भाकपा ने तीन महादलित की जघन्य हत्या की घोर निन्दा की

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पटना, 28 नवम्बर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने  25 नवम्बर, 2017 की रात भागलपुर जिला के विहपुर थानान्तर्गत झंडापुर गांव में एक ही महादलित परिवार के तीन लोगों की जघन्य हत्या की घोर निन्दा की है। पार्टी ने राजधानी पटना समेत पूरे बिहार में कानून व्यवस्था की लगातार गिरती स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए सरकार से हत्यारों की अविलम्ब गिरफ्तारी की मांग की है। आज यहां राज्य कार्यालय से जारी एक बयान में पार्टी के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह, पूर्व विधायक ने कहा कि पूरे राज्य में कानून व्यवस्था अनियंत्रित हो गयी है। राजधानी समेत पूरे राज्य में अपराधी वेखौफ अपराधकर्म में लिप्त है। भागलपुर जिले के बिहपुर थाना का झंडापुर गांव इसी तरह के अपराध में जुड़ी एक नयी कड़ी है। बिहपुर थाना के झंडापुर ओपी के अन्तर्गत पष्चिम पंचायत के वार्ड नं॰-06 के काली कबूतरा स्थान के पास स्थित महादलित होने में 25 नवम्बर (षनिवार) की रात एक नाबलिग लड़की के साथ रेप करने का विरोध करने पर अपराधियों ने उस लड़की के पिता कनिक उर्फ गायत्री राम (55 वर्ष), माता मीना देवी (50 वर्ष) तथा भाई छोटू (10 वर्ष) की घातक हथियार से हमला कर जघन्यतापूर्वक हत्या कर दी तथा उस लड़की को भी बूरी तरह घायल कर दिया जो अभी पी.एम.सी.एच. में जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। सत्य नारायण सिंह ने इस जघन्य हत्या की निन्दा करते हुए सरकार से अपराधियों की अविलम्ब गिरफ्तारी तथा उन्हें कठोर दण्ड देने की मांग की है। इसके साथ ही श्री सिंह ने पटना मेडिकल काॅलेज अस्पताल में जीवन-मौत से जुझ रही नाबालिक बच्ची बिन्दी कुमारी के जीवन की सुरक्षा उसका बेहतर इलाज और मृतक परिवार को 10-10 लाख मुआवजे की भी मांग की है।  
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