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आज होगी कांग्रेस की बैठक , संगठन में हो सकते हैं बड़े फेरबदल

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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद आज पार्टी में बड़े फेरबदल का ऐलान हो सकता है. हार के पोस्टमॉर्टम के लिए आज शाम 4 बजे पार्टी की कार्यसमिति बैठक बुलाई गई है. इस बीच सोनिया गांधी और राहुल गांधी के इस्तीफे की अटकलें थीं, लेकिन पार्टी की ओर से इसका खंडन किया गया है.

बैठक में हार की समीक्षा की जाएगी. माना जा रहा है कि पार्टी के भीतर कई सांगठनिक बदलाव हो सकते हैं और बड़े नेताओं पर भी गाज गिर सकती है. माना जा रहा है कि राहुल गांधी के करीबी जयराम रमेश, मधुसूदन मिस्त्री, मोहन गोपाल और सीपी जोशी से सवाल पूछे जा सकते हैं. इसके अलावा बड़बोले नेताओं से भी हार पर सवाल किए जा सकते हैं. इनमें बेनी प्रसाद वर्मा, मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह जैसे नेता शामिल हैं.

हालांकि नेतृत्व के इस्तीफे की खबर को कांग्रेस खारिज कर रही है, पर पार्टी में राहुल गांधी के खिलाफ पहली बगावत शुरू हो चुकी है. रविवार को इलाहाबाद में नाराज कांग्रेसियों ने इलाहाबाद में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की मांग करते हुए सिविल लाइंस में पोस्टर लगाए और प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने की मांग की. उन्होंने जो पोस्टर ले रखे थे, उन पर लिखा था, 'मइया दो आदेश, प्रियंका बढ़ाए कांग्रेस का कद, यूपी में अग्निपथ, अग्नि पथ, अग्नि पथ.'एक और पोस्टर पर लिखा था, 'आ जाओ प्रियंका और छा जाओ प्रियंका.'

सेंसेक्स-निफ्टी में तेजी, रुपये ने बनाया रेकॉर्ड

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केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने का सकारात्मक असर सोमवार सुबह शेयर बाजार में फिर देखने को मिला। सेंसेक्स 250 अंकों की मजबूती के साथ खुला, तो निफ्टी में करीब 75 अंकों की तेजी देखने को मिली। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स 275.82 अंक चढ़कर 24,397.56 पर पहुंचा जबकि निफ्टी 65.40 अंकों की बढ़त के साथ 7,268.40 तक गया। इस दौरान ने सेंसेक्स ने 24,427 और निफ्टी ने 7,290 की ऊंचाई छूई।

हालांकि, बाद में आईटी स्टॉक्स में कमजोरी के कारण बाज़ार की रफ्तार कुछ धीमी पड़ी। रुपये के 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के कारण आईटी स्टॉक्स पर दबाव बढ़ा। सुबह 11 निफ्टी करीब 20 अंकों की तेजी के साथ 7,222 पर और सेंसेक्स करीब 77 अंक मजबूत होकर 24,198 पर कारोबार कर रहे थे।

आज के कारोबार में रुपये में भी जबरदस्त मजबूती देखने को मिल रही है। भारतीय रुपया शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले 32 पैसे मजबूत होकर 58.47 पर पहुंच गया। यह 11 महीने में रुपये का उच्चतम स्तर है। इससे पहले रुपया 24 पैसे मजबूत होकर 58.55 पर खुला था।

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने से निवेशक उत्साहित हैं। बाजार को उम्मीद है कि मोदी सरकार आने वाले समय में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने के लिए मजबूत कदम उठाएगी। यही वजह है कि शेयर बाजार में लगातार तेजी देखने को मिल रही है।

रामदेव मोदी की जीत से खुश , आज करेंगे रोड शो

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लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नरेंद्र मोदी की शानदार जीत के बाद बाबा रामदेव काफी खुश हैं और आज वह संकल्प पूर्ति रोड शो करने वाले हैं। रोड शो दिल्ली के राजघाट शुरू होकर हरिद्वार तक चलेगा।

रोड शो के दौरान अलग-अलग जगहों पर बाबा रामदेव को सम्मानित भी किया जाएगा। गौरतलब है कि रामदेव ने संकल्प लिया था कि जब तक वह कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ नहीं फेंकेंगे, तब तक अपनी कर्मभूमि हरिद्वार नहीं लौटेंगे।

रामदेव पिछले नौ महीनों से पूरे देश में घूमकर भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे और नतीजा भी उम्मीदों के मुताबिक ही आया। इस जीत से खुश रामदेव ने कल (रविवार) दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संकल्प पूर्ति समारोह का आयोजन किया, जिसमें भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं ने शिरकत की थी।

समय आ गया है, भिखारियों से मुक्ति पाने का

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भारतवर्ष में बाहर से आने वाले लोगों को हमारी और कोई खासियत दिखे, न दिखे, पर सभी स्थानों पर भिखारियों और आवाराओं का जमघट देखने को मिल ही जाता है। कोई सा धर्म स्थल हो, प्राकृतिक, दर्शनीय, ऎतिहासिक, पुरातात्विक स्थल हो, या फिर होटलों, रेस्टोरेंट्स से लेकर गली-चौराहों, सर्कलों तक सभी जगह और कोई भले न मिले, कोई न कोई भिखारी जरूर मिल जाएगा जो किसी न किसी के नाम पर भीख माँगता नज़र जरूर आएगा।

इन भिखारियों का हुलिया और अभिनय भी ऎसा कि देखने वाले का मन पसीजे बगैर नहीं रहता। फिर धर्मभीरू भारतवर्ष में तो मानवीय संवेदनाएं और दान-धर्म के नाम पर पुण्य कमाने वालों की कोई कमी कभी नहीं रही। हम लोग किसी जरूरतमन्द की मदद भले न कर पाएं, वहाँ बार-बार कहे जाने पर हमारी मानवीय संवेदनाएं तनिक भी जग न पाएं, मगर नालायक और मलीन भिखारियों को देने में हम कभी पीछे नहीं रहते। लगता है जैसे ये जात-जात के हुलियों वाले भिखारी न होते तो शायद अपने देश से दान धर्म ही खत्म हो जाता।
अपना देश भिखारियों की वजह से काफी बदनाम है। सभी किस्मों के भिखारी अपने यहाँ हैं। बंद कमरों के शातिर भिखारियों को नज़रअंदाज कर देंं तब भी परिवेश हर तरफ में भिखारियों का जमावड़ा अपने देश की प्रतिष्ठा को कितना मटियामेट कर रहा है, यह हमारे लिए शर्म से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

देश मेंं जगह-जगह धर्मस्थलों एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में अन्न क्षेत्र चल रहे हैं, पीड़ितों की सेवा के लिए आश्रम खुले हुए हैं जहां सभी प्रकार के जरूरतमंदों और भिखारियों के लिए खाने-पीने और रहने का इंतजाम है। इसके बावजूद देश भर में गलियों से लेकर महानगरों और फोर लेन तक जहाँ-तहाँ पसरे बैठे भिखारियों का फैलाव आखिर किस बात को इंगित करता है। आखिर वे क्या कारण हैं कि जिनकी वजह से ये भिखारी सारे जरूरी प्रबन्धों के बावजूद किसी एक जगह रहना नहीं चाहते। इस मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र को आज गंभीरता से समझने की जरूरत है।

ऎसा नहीें है कि अपने यहां वास्तविक जरूरतमन्द नहीं हैं। इस किस्म के लोग हैं जरूर पर इनकी संख्या बहुत कम है। आमतौर पर भिखारियों के बारे में यह माना जाता है कि पहनने को कपड़े और खाने को भोजन मिल जाए, तो दिन निकालना ही भिखारियों का मूल काम रह गया है। लेकिन अपने यहाँ भिखारियों में कई किस्मे हैं।

इन भिखारियों की सर्वे की जाए तो हैरान कर देने वाले तथ्य ये सामने आएंगे कि जनसंख्या का कुछ प्रतिशत ऎसा है जिसने भीख को धंधा बना लिया है और कई सारे भिखारी ऎसे मिल जाएंगे जो ठेके पर भीख मंगवाने के धंधों में माहिर हैं। हर जगह कुछ न कुछ भिखारी ऎसे होते ही हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये लोग भीख मांग-मांग कर लखपति बन बैठे हैं और ब्याज पर पैसे चला रहे हैं। यह सच भी है।

ये भिखारी सामाजिक स्वच्छता के लिए भी बड़ा खतरा हैं। जिन इलाकों में भरपूर पानी है वहाँ भी ये भिखारी अपने आपको भीख मांगने लायक बनाए रखने के लिए नहाने से परहेज करते हैं और गंदे पात्र, सडांध मारते कपड़े पहने हुए परिवेश में प्रदूषण फैला रहे हैं। इनके बढ़े हुए नाखून और बालों तथा शरीर से आने वाली सडांध ही है जो इनकी भीख की मात्रा को बहुगुणित कर देने में समर्थ होती है।

हर इलाके में भिखारियों के भी अपने संगठन बने हुए हैं जो कि सामाजिक अर्थ व्यवस्था के दोहन और शोषण से लेकर कई पहलुओं में हावी हैं। मन्दिरों से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर भारत के गौरव और गरिमा की मजाक उड़ाते ये भिखारी शांति में भी ऎसा दखल देते हैं कि कई बार इनके कारण से आस्था स्थलों के प्रति लोकश्रद्धा समाप्त होने लगती है।

हालांकि कुछेक को छोड़कर सभी धर्मस्थलों पर अर्थतंत्र का बोलबाला है और खूब सारे लोगों ने धर्म को धंधा बना रखा है।  भिखारियों के कारण हमारा देश बदनाम हो रहा है।  गंदे कपड़ाेंं में पूरी मलीनता और कृत्रिम दया दर्शाकर भीख मांगने वालों में काफी लोग ऎसे हैं जिन्हें भीख मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन इन्होंने धंधा बना लिया है।

धर्म और दान-पुण्य के नाम पर भीख मांगने वालों में भिखारियों से लेकर उन बाबाओं की भूमिका भी कोई कम नहीं है जो हैं तो भिखारी, मगर अपने आपका स्टैण्डर्ड बढ़ाने और धर्मभीरूओं को उल्लू बनाने में ज्यादा आसान बने रहने के लिए तिलक-छापे, जात-जात की मालाएं, कड़े-कड़ियां और भगवे परिधान धारण कर मुफत में देश घूमने का बाबा छाप लाइसेंस पा चुके हैं। कोई असली भिखारी हो भी सही, तो उसका संबंध उसी दिन के लिए रोटी-पानी के जुगाड़ तक सीमित रहना चाहिए, जो संग्रह करे, जमा करने का आदी हो जाए और भीख को धंधा बना ले, वो काहे का भिखारी।

यह हमारा सामाजिक दायित्व है कि समाज के जरूरतमन्दों को उनकी जरूरतों के हिसाब से साधन-सुविधाएं और संबल प्राप्त हो। साथ ही यह भी हमारा दायित्व है कि भीख का धंधा करते हुए धर्म को भुनाने वाले नालायकों और गंदे लोगों को ठिकाने लगाया जाए जो कि हर कहीं भीख मांगते नज़र आते हैं और लोगों को परेशान करने में कोई चूक नहीं करते, तब तक पीछे लगे रहते हैं जब तक कि भीख न मिल जाए।

आजकल तो भिखारियों की एक अजीब ही किस्म आ गई है जो मुँहमांगी भीख न दो तो मनचाही हरकतें करने लगती है। देश की बहुत बड़ी शक्ति को हम नालायक बना रहे हैं। होना यह चाहिए कि इन भिखारियों को इनके लायक काम धंधा दिया जाए अथवा शहर से दूर रखा जाकर इनके लिए बुनियादी प्रबन्ध किए जाएं और भीख के नाम पर पैसा बनाने की मनोवृत्ति पर कड़ाई से लगाम लगायी जाए।

यह हम सभी की सामूहिक व नैतिक जिम्मेदारी है कि भिखारियों से अपने क्षेत्र और देश  को मुक्ति दिलाएं और सार्वजनिक स्थलों की पवित्रता, शांति तथा स्वस्थ माहौल को स्थापित करने में सशक्त एवं सार्थक भागीदारी अदा करें। यह हमेशा ध्यान रखें कि इन भिखारियों की वजह से हमारे देश के प्रति दुनिया भर में गलत संदेश जा रहा है और यह हमारी परंपरागत गरिमा और गौरव के खिलाफ भी है।





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---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

आलेख : उफ...! एक बुजुर्ग राजनेता की एेसी दुर्दशा ...!!

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अब काफी बुजुर्ग हो चुके वयोवृद्ध राजनेता नारायण दत्त तिवारी को मैं तब से जानता हूं, जब 80 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी प्रचंड बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री बने थे। बेशक उनकी सरकार में नंबर दो की हैसियत मध्य प्रदेश के अर्जुन सिंह की थी। लेकिन राजीव गांधी के मंत्रीमंडल में शामिल रहे नारायण दत्त तिवारी उस जमाने के निर्विवाद नेता के रूप में जाने जाते थे। संयोग से राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के शुरुआती कुछ महीनों  के बाद ही उनके मंत्रीमंडल के सदस्य बागी तेवर अपनाते हुए एक - एक कर उनका साथ छोड़ते गए। जिनमें अरुण नेहरू, अरुण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह , मोहम्मद आरिफ खान आदि शामिल थे। 

बोफोर्स कांड व स्विस बैंक प्रकरण के चलते राजीव गांधी काफी मुश्किलों से घिरे थे। तभी देश में आवाज उठी कि राजीव गांधी को अपने पद से इस्तीफा देकर नारायण दत्त तिवारी को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए।  तिवारी के दबदबे का  अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तब  प्रचार माध्यमों में खबर चली कि नारायण दत्त तिवारी भी राजीव से किनारा करने वाले हैं। बताया जाता है कि तब राजीव गांधी ने स्वयं तिवारी को बुला कर उनकी इच्छा जानी , और कहा कि यदि आप भी मेरा साथ छोड़ रहे हैं, तो मैं अभी इस्तीफा देता हूं। खैर बात अाई - गई हो गई। राजीव गांधी के जीवन काल तक तो कांग्रेस में तिवारी का कद काफी ऊंचा रहा, लेकिन उनकी अचानक मृत्य के बाद तिवारी का हाशिये पर जाना शुरू हो गया। 

मुझे याद है पी. वी. नरसिंह राव के प्रधानमंत्रीत्व काल में एक बार नारायण दत्त तिवारी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर अनशन शुरू किया। इससे नरसिंह राव काफी दबाव में आ गए। लेकिन खुद मुलायम सिंह यादव ने कहा कि तिवारीजी  को वे अपना गुरु मानते हैं, और उनके खिलाफ किए जा रहे आंदोलन के बावजूद उन्हें पंडितजी से कोई शिकायत नहीं है। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद उत्तराखंड बनने और तिवारी का उक्त राज्य का मुख्यमंत्री बनने तक भी सब कुछ ठीक - ठाक ही चलता रहा। कांग्रेस में सीताराम केसरी और सोनिया गांधी का कद बढ़ने के बाद से ही यूं तो तिवारी हाथिये पर जाते रहे, लेकिन कुछ साल पहले आंध्र प्रदेश का राज्यपाल रहने के दौरान तिवारी सेक्स स्कैंडल में जो फंसे, तो फंसते ही चले गए। उनके पितृत्व विवाद , पहले इन्कार और फिर स्वीकार तथा सबसे अंत में लगभग 90 की उम्र में ब्याह का  ताजा प्रकरण सचमुच हैरान करने वाला है। 

विश्वास नहीं होता कि ये वहीं एनडी हैं,  जो किसी जमाने में निर्विवाद और सर्वमान्य नेता माने जाते थे। जारी घटनाक्रम व विवादों में तिवारी कितने दोषी हैं  यह तो वही जाने , लेकिन उनकी मौजूदा हालत देख कर अफसोस जरुर होता है। एक वयोवृद्ध राजनेता की एेसी दुर्दशा। साथ ही यह सीख भी मिलती है कि किसी भी इंसान के जीवन में समय एक सा कभी नहीं रहता। 





तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934 
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।

16वीं लोकसभा में सर्वाधिक महिलाएं

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16वीं लोकसभा में 61 महिला उम्मीदवार जीत कर पहुंची हैं। यह अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है। 543 सदस्यीय लोकसभा में महिला उम्मीदवारों की संख्या 2009 के 58 से ज्यादा है।

पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के मुताबिक, "देश के इतिहास में लोकसभा पहुंचने वाली महिलाओं यह सर्वाधिक संख्या है। 2009 में 58 महिलाएं लोकसभा पहुंची थी।" प्रमुख महिला उम्मीदवार जो संसद का रास्ता तय करने में कामयाब रहीं उनमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (रायबरेली), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज (विदिशा), उमा भारती (झांसी), मेनका गांधी (पीलीभीत), पूनम महाजन (मुंबई उत्तर मध्य), किरन खेर (चंडीगढ़), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले (बारामती), समाजवादी पार्टी (सपा) नेता डिपल यादव (कन्नौज) हैं।

गौरतलब है इनमें सोनिया, सुषमा, उमा, मेनका, सुप्रिया, डिंपल पहले भी संसद जाने का अवसर पा चुकी हैं, जबकि पूनम, किरन के लिए यह पहला कार्यकाल होगा। इस चुनाव में कई प्रमुख महिला उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है, जिनमें कांग्रेस नेता अंबिका सोनी (अंबाला), कृष्णा तीरथ (उत्तर पश्चिम दिल्ली), गिरिजा व्यास (चित्तौड़गढ़), लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार (सासाराम), बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (सारण), उनकी पुत्री मीसा भारती (पाटलिपुत्र) शामिल हैं।

पश्चिम बंगाल से सबसे अधिक 13 महिला सांसद जीत कर संसद के निचले सदन पहुंचने में कामयाब रही, जबकि उत्तर प्रदेश से 11 महिलाओं को इस बार संसद जाने का मौका मिला है। 2009 में 58 महिला संसद पहुंची थी, जबकि 2004 में 45 और 1999 में 49 महिलाएं विजयी हुई थीं। लोकसभा में सबसे कम महिलाएं 1957 में दिखी थी, जब उनकी संख्या सिर्फ 22 थी।

बिहार : हां,हां, आप विक्रांत से सबक ले सकते हैं, बस निशान ही बाकी

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TB in bihar
पटना। जी हां, यक्ष्मा यानी टी.बी.बीमारी जानलेवा नहीं रह गया है। हां, केवल समय पर टी.बी.रोग की पहचान हो जाएं। आजकल सुशासन सरकार की जनता दरबार की तरह स्वास्थ्य केन्द्रों पर दवा उपलब्ध है। आपको स्वास्थ्य केन्द्र में जाना है। वहां पर नाम रजिस्टर करवाना है। बलगम और एक्स-रे जांच करने के जांचोपरांत दवा की उपलब्धता करा दी जाएगी।दवा देने वाले स्वास्थ्यकर्मी के मार्गदर्शन में दवा को ग्रहण करना है। हां, ध्यान रहे कि जबतक चिकित्सक अथवा स्वास्थ्यकर्मी दवा सेवन करने की मनाही नहीं करते,तबतक नियमित दवा सेवन करना ही करना है। ऐसा करने से जानलेवा टी.बी.बीमारी का खौफ रसातल में चला जाएगा। 

आप आप ध्यान से पढ़े। पटना नगर निगम अन्तर्गत वार्ड नम्बर 1 में शबरी काॅलोनी है। इसे दीघा मुसहरी भी कहा जाता है। इसी मुसहरी में विक्रांत कुमार का घर है। वह लम्बे समय तक ग्लैंड टी.बी.से बेहाल था। ग्लैंड टी.बी.का प्रसार गले से उतरकर छाती तक पसर गया था। वह घांव के कारण वस्त्र नहीं पहन सकता था। घांव को जमाने से छुपाने के लिए चादर लपेटकर रहता था। वह कई बार ग्लैंड टी.बी.की दवाई खाए और कुछ ठीक होने के बाद दवा को ही परित्याग कर देता। इसके कारण दवा देने वाले और उसके परिजन परेशान हो गए थे। अन्ततः भगवान ने विक्रांत कुमार को सुबुद्धि दिए। वह नियमित दवा सेवन किया। आखिरकार परिणाम सामने है। वह हाईटेक हो गया है। पाॅकेट में मोबाइल रखा है। मोबाइल को इयर फोन से जोड़कर आधुनिक गानों से लुफ्त उठाते रहता है। 

TB in bihar
महादलित मुसहर समुदाय के लोग दीघा मुसहरी में रहते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि हम गरीबी में जन्म लेते हैं और बुढ़ापा देखे बिना ही जवान में ही मर जाते हैं। हमलोग जन प्रतिनिधियों की तकदीर और तस्वीर बनाते हैं। परन्तु खुद की तकदीर और तस्वीर नहीं बना पाते हैं। रोजगार के अभाव में महिलाएं महुंआ और मिठ्ठा की शराब बनाती हैं।बच्चे रद्दी कागज आदि चुनने जाते हैं। नौजवान ठेका पर जमकर काम करते हैं। मेहनती काम करने के नाम पर शराब डकारते हैं। इसी श्रेणी में विक्रांत कुमार के मां और बाप हैं। जो शराबखोर हैं। विक्रांत पर ध्यान ही नहीं देते हैं। विक्रांत भी रद्दी कागज आदि चुनकर खुद खाता है और मां-बाप को भी खिलाता है। 

कुर्जी होली फैमिली अस्पताल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केन्द्र के द्वारा मुसहरी में सामाजिक कार्य किया जाता था। उसी समय विक्रात की दशा देखकर दवा दी गयी। वहां पर खाता था और छोड़ देता था। इसके कारण केन्द्र के स्वास्थ्यकर्मी विक्रांत से खफा हो जाते। टी.बी.की दवा नियमित सेवन नहीं करने से टी.बी.के जीवाणु शक्तिशाली होते चले जाते हैं। फिर से दवा चालू करते वक्त हाई डोज चलाना पड़ता है। जो शरीर के वजन और उम्र के अनुसार ही दिया जाता है।

खैर, अब विक्रांत के शरीर से दुःख भाग गया है। अब वह साहब की तरह शर्ट-पैंट पहनकर घुमफिर सक रहा है। उसमें अब नयापन आ गया है। यूं कहे कि न्यू लाइफ मिल गया है। अब मां-बाप शादी की तैयारी करने में जुट गए हैं।



आलोक कुमार
बिहार 

बिहार : नीतीश कुमार ने लोगों को राह दिखाने का कार्य किया है

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nitish kumar
पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों को राह दिखाने का कार्य किया है। सुशासन बाबू के द्वारा बहाल है विकास मित्र।इनका कार्य है कि सरकारी योजनाओं की जानकारी लोगों के बीच में जाकर दें। यूं समझे कि सरकार और आम जनता के बीच में विकास मित्र ‘सेतु’ की तरह कार्यशील हंै। सरकार के द्वारा विकास मित्र को बतौर मानदेय के रूप में चार हजार रू.दिया जाता है। सरकारी मापदंड के अनुसार मुख्यतः महादलित समुदाय के ही बीच के होते हैं विकास मित्र। जो अपने ही घर के आंगन वालों को सरकारी योजना के बारे में जानकारी अपनी बोली में सहजता से दे सके। अब गैर सरकारी संस्था वालों ने मुख्यमंत्री के राह को चलकर ‘सरकार के विकास मित्र और एनजीओ के आरएसबीवाई मित्र’ को अपनाने का निर्णय लिया है। इसकी कवायद तेज कर दी गयी है।  

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तरह आरएसबीवाई मित्र का चयन 20 मई तक कर लेना है। आरएसवीवाई मित्र को कम से कम सातवां उत्र्तीण होना चाहिए। विकास मित्र की तरह आरएसबीवाई मित्र को किसी तरह के मानदेय नहीं दिया जाएगा। टी.ए. और डी.ए. से ही संतोष करना पड़ेगा। सभी आरएसबीवाई मित्र का प्रशिक्षण 25 मई से लेकर 25 जून तक कर देना है। जिला स्तरीय त्रिदिवसीय आवासीय आरएसबीवाई मित्र का प्रशिक्षण होगा। एक साथ अधिकतम 25 लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। एक एनजीओ से 5 से 10 प्रशिक्षणार्थी शामिल होंगे। कुल मिलाकर 32 प्रशिक्षण होगा। एक जिले को अधिकतम 16 प्रशिक्षण करने की मेजबानी सौंपा जाएगा। इसके लिए 5 प्रशिक्षकों का चयन कर लिया गया है। हर प्रशिक्षण में 2 प्रशिक्षकों को रहना अनिवार्य कर दिया गया है। तीन अन्य हो सकते हैं।

फिलवक्त मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र नालंदा और नक्सल प्रभावित क्षेत्र भोजपुर से आरएसबीवाई मित्र का आगाज हो गया है। यह कार्य क्षेत्र प्रगति ग्रामीण विकास समिति का है। नालंदा जिले के जिला समन्वयक चन्दशेखर और भोजपुर जिले के जिला समन्वयक सिंधु सिन्हा ने आरएसबीवाई मित्र का चयन करके सूची कार्यालय में प्रेषित कर दिया गया है। पूअरेस्ट एरिया सिविल सोसायटी पैक्स ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के स्मार्टकार्डधारियों को फायदा पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर आरएसबीवाई मित्र का सहयोग लेंगे। इस पायलेट प्रोग्राम के बाद गया, जहानाबाद, बांका, दरभंगा, अररिया, कटिहार आदि जिले में भी आरएसबीवाई मित्र मनाया जाएगा। ये लोग कार्डधारियों को हाॅस्पिटल पहुंचाने में मदद करेंगे और लोगों के बीच में जागरूकता पैदा भी करेंगे।




आलोक कुमार
बिहार 

बिहार : दो दिवसीय महिला नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का समापन

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जमुई। ऑक्सफैम के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति के बैनर तले महिला नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का समापन हो गया।इस प्रशिक्षण शिविर में शिरकत करने वालों को कृषि और भूमि सुधार के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। 

जमुई जिले के सिकन्दरा प्रखंड में स्थित कृषि भवन में दो दिवसीय महिला नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत मिलने वाले अनुदानों का जिक्र किया गया।अनुदान प्राप्त करने के लिए तरकीब बताया गया। दलित एव आदिवासियों को आजीविका के क्षेत्र में किस तरह तरक्की करेंगे। उसके बारे में प्रक्रिया के तहत कदम उठाने पर बल दिया गया। शिरकत करने वाली महिलाओं का आह्वान किया गया कि अपनी समस्याओं को लेकर संबंधित अधिकारियों के साथ वार्ता करें। ऐसा करने से अधिकारीगण समस्याओं का समाधान करने की दिशा में पहल करेंगे। 

इस शिविर में शामिल झमियां देवी ने बताया कि काफी परिश्रम करने के बाद सिकन्दरा प्रखंड से 13 महिला किसानों को बीज और डीजल आदि का अनुदान मिला है। इनको जैविक और रसायनिक खाद भी मिला। कुछ महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड भी मिला है। इसका संचालन सुधीर मांझीए मीना देवीए हजारी प्रसाद वर्माए मंजू डुंगडुंग आदि ने किया।




आलोक कुमार
बिहार 

मोदी ने भंग किए सभी जीओएम, ईजीओएम

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modi desolve gom egom
गठबंधन की राजनीति की युक्ति को खत्म करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सभी 30 मंत्रिस्तरीय समूहों को भंग करने का फैसला लिया ताकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी पूरी जवाबदेही से तीव्र फैसले ले सकें। वर्तमान में नौ मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह हैं और 21 मंत्रिस्तरीय समूह हैं जिनका गठन विभिन्न मुद्दों पर मंत्रिमंडल के विचार से पूर्व फैसला लेने के लिए किया गया था।

प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "यह (गुरुवार को लिया गया फैसला) फैसला लेने की प्रक्रिया में तेजी लाएगा और प्रणाली में व्यापक जवाबदेही सुनिश्चित होगी।""ईजीओएम और जीओएम के सामने लंबित मुद्दों पर अब संबंधित मंत्रालय और विभाग प्रक्रिया शुरू करेंगे तथा अपने स्तर पर उपयुक्त फैसला लेंगे।"

एक प्रकार से इस फैसले के बाद खुद मोदी पर भी जवाबदेही बढ़ जाएगी क्योंकि जिन मुद्दों पर उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के बीच मतभेद रहेगा उस पर सहयोगियों के बीच चर्चा होने के बजाय उन्हें ही निर्णय लेना होगा।

सुलभ इंटरनेशनल ने की गंगा सफाई में मदद की पेशकश

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bindeshwar-pathak
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने गंगा सफाई के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को अपने संगठन द्वारा मदद देने की पेशकश की है। पटना में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी की नेतृत्व वाली सरकार द्वारा गंगा नदी की सफाई के लिए मदद करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का ध्यान सभी की स्वच्छता पर होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि खुले में शौच की समस्या खत्म होनी चाहिए। इसके लिए वे मोदी को पत्र भी लिखने जा रहे हैं। 

शौचालय नहीं होने पर पति से तलाक की मांग करने वाली पार्वती को शनिवार को सुलभ इंटरनेशनल द्वारा नकद और सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। पार्वती के ससुराल सदीशोपुर में शौचालय का निर्माण कार्य पूरा कर दिया गया है। 

उल्लेखनीय है कि पटना के बिहटा के सदीशोपुर निवासी अलख निरंजन तिवारी की पत्नी पार्वती ने पिछले वर्ष अप्रैल में ससुराल में शौचालय नहीं होने पर महिला हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराई थी। 

वह इसके लिए पति से बराबर शिकायत करती थी तो अक्सर वह मारपीट करता था। वर्ष 2012 में पार्वती को पति ने मायके भेज दिया था। पार्वती ने तब तलाक की मांग की थी। इसके बाद सुलभ इंटरनेशनल पार्वती की मदद के लिए सामने आया। 

विदिशा (मध्यप्रदेश) की खबर (31 मई)

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सरकार और समाज मिलकर विकास करेगें-मुख्यमंत्री श्री चैहान
  • विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा बढे़गी-विदेश मंत्री श्रीमती स्वराज

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विदिशा, दिनांक 31 मई 2014, विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान सपत्नी श्रीमती साधन सिंह सहित आज विदिशा में अभिनंदन व मतदाताओं के प्रति कृृतज्ञता प्रकट करने हेतु आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। माधवगंज चैराहा पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री चैहान ने कहा कि प्रदेश के विकास के लिए अब नई इबारत सरकार और समाज मिलकर लिखेंगे। विकास के सभी द्वार खुल गए है विदिशा अब भारत के नक्शे में और अधिक विकास के रूप में परलिक्षित होगा। मुख्यमंत्री श्री चैहान ने इस दौरान प्रदेश में जो अभियान चलाए जा रहे हंै उनमें समाज की भूमिका को अतिमहत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि विदिशा का स्वर्णिम विकास जन सामान्य की सहभागिता से संभव है राज्य सरकार विकास के लिए कोई कोर कसर नहीं छोडे़गी। मुख्यमंत्री श्री चैहान ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘‘स्कूल चले हम अभियान’’ का उद्धेश्य है गांव, शहरों के सभी बच्चे नियमित स्कूल जाएं इसके लिए सरकार द्वारा प्रेरक नियुक्त किए जा रहे हैं। इसी प्रकार आगामी अभियान पानी रोको, पर्यावरण संरक्षण हेतु भी सरकार और समाज मिलकर काम करेंगे। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने मतदाताओं के प्रति कृृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि उनके विश्वास को टूटने नही दूंगी। उन्होंने विदेशों में भारत सशक्त बनकर उभरे इस हेतु लिए गए लक्ष्य को भी रेखांकित किया। श्रीमती स्वराज ने कहा कि संसदीय क्षेत्र अब नए विकास के रूप में देखा जाएगा। उन्होंने संसदीय क्षेत्र के लोगों से सतत् सम्पर्क बनाएं रखने की बात कही। उन्होंने कहा कि विदिशा के साथ-साथ प्रदेश का अब चैगुना विकास होगा। कार्यक्रम को सागर संसदीय क्षेत्र के नवनिर्वाचित सांसद श्री लक्ष्मीनारायण यादव, विदिशा विधानसभा के नव निर्वाचित विधायक श्री कल्याण सिंह ठाकुर ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में प्रदेश के राजस्व, पुर्नवास एवं जिले के प्रभारी मंत्री श्री रामपाल सिंह राजपूत, विधायक शमशाबाद श्री सूर्यप्रकाश मीणा, विधायक कुरवाई श्री वीर सिंह पंवार, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सुनीता सोनकर, भाजपा जिलाध्यक्ष श्री तोरण सिंह दांगी, विदिशा नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती ज्योतिशाह, पूर्व विधायकगण, श्री मुकेश टण्डन, श्री उमाकांत शर्मा समेत अन्य जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन श्री श्यामसुन्दर शर्मा ने और आगंतुकों के प्रति आभार श्री अरविन्द श्रीवास्तव ने व्यक्त किया। 

प्रभारी मंत्री द्वारा न्यूज चैनल के कार्यालय का शुभारंभ
      
विदिशा, दिनांक 31 मई 2014, राजस्व, पुर्नवास और जिले के प्रभारी मंत्री श्री रामपाल सिंह राजपूत ने शनिवार को राजीवनगर में सुदर्शन न्यूज चैनल के कार्यालय का शुभारंभ फीता काटकर किया। इस अवसर पर भाजपा जिलाध्यक्ष श्री तोरण सिंह दांगी समेत अन्य जनप्रतिनिधि मौजूद थे। 

गंगा का शुद्धिकरण बेहद जरूरी : स्वामी निश्चलानंद

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swami nischalananda in bihar
पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद ने शनिवार को जम्मू एवं कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त करने की वकालत की। उन्होंने कहा कि गंगा के शुद्धिकरण को बेहद जरूरी बताते हुए कहा कि यह उस राज्य का दायित्व है, जहां से वह गुजरी। बिहार के नालंदा जिले के राजगीर पहुंचे शंकराचार्य ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा, "गंगा का शुद्धिकरण पुण्य का कार्य है, जिसमें केंद्र को भी सहयोग करना चाहिए।" 

उन्होंने गंगा के शुद्धिकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, "जब देश में अंग्रेजों की सरकार थी तब उन्होंने गंगा को साफ रखने के लिए कुछ नियम बनाए थे परंतु धीरे-धीरे यह नियम शिथिल हो गया।" उन्होंने गंगा को जीवन रेखा बताते हुए कहा कि इसके प्रति लापरवाही उचित नहीं है। 

उन्होंने कहा, "जम्मू एवं कश्मीर मामले में अनुच्छेद-370 को समाप्त करना देशहित में होगा। इस अनुच्छेद को आजादी के बाद केवल 10 वर्षो के लिए लाया गया था परंतु एक वर्ग विशेष को लाभ पहुंचाने की नीयत से इसे बढ़ाया जाता रहा है।" उन्होंने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री को यह अनुच्छेद बेजा ताकत दे देता है, जो ठीक नहीं है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में किए गए सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय हित में मोदी को कठोर फैसले लेने चाहिए। मोदी सरकार को नीति निपुणता और अध्यात्म के साथ चलने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि देश के लोगों को इस सरकार से काफी आशाएं हैं। 

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने की बात प्रारंभ करने की बात कही थी। इसके बाद पूरे देश में इस पर विवाद मच गया है। तब मंत्री ने इस बयान से पीछे हटते हुए मीडिया पर बयान को तोड़मोड़ कर पेश करने की बात कही थी। 

दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील की संपत्ति जब्त करने के आदेश

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daud ibrahim
दिल्ली की एक अदालत ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील और उसके तीन अन्य सहयोगियों की संपत्ति जब्त करने की कार्यवाही शुरू करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले के तहत ये आदेश दिए। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भारत पाराशर ने ये आदेश जारी किए। दरअसल, दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने अदालत को बताया था कि स्पॉट फिक्सिंग मामले के तहत इन आरोपियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था। लेकिन पुलिस इन्हें खोज पाने में नाकामा रही क्योंकि वह भारत में ज्ञात पते पर नहीं रहते।

दाऊद और शकील के अलावा पाकिस्तान में रह रहे जावेद छुटानी, सलमान मास्टर और एतेशाम के खिलाफ भी गैर-जमानती वारंट जारी हुए थे। अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि वह भारत में आरोपियों के तमाम ज्ञात स्थानों पर नोटिस चिपकाए और अखबारों में भी इस बारे में विज्ञापन छपवाए जाएं।

पुलिस ने अदालत से कहा कि वह भारत में मौजूद दाऊद की संपत्ति की एक सूची तैयार करेगी और उसे अदालत के सामने रखेगी। अदालत इस मामले में अगली सुनवाई 16 अगस्त को करेगी। इससे पहले पुलिस ने अपने आरोपपत्र में आइपीएल स्पॉट फिक्सिंग के लिए दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील को जिम्मेदार ठहराया था। 

इस मामले में निलंबित क्रिकेट खिलाड़ी एस. श्रीसंत, अजीत चंदीला और अंकित चह्वाण के खिलाफ भी आरोपपत्र दायर किया गया था। गौरतलब है कि आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग का मामला मई 2013 में तीनों खिलाड़ियों की गिरफ्तारी के बाद सामने आया था। तीनों खिलाड़ी फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं।

अनुच्छेद 370 पर विवाद ध्यान बंटाने के लिए : यासीन मलिक

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yasin malik
जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक ने यह दावा करते हुए कि एक केंद्र सरकार के मंत्री ने अनुच्छेद 370 पर विवाद इसलिए छेड़ दिया है ताकि कश्मीर की आजादी पर से बहस का रुख केंद्र-राज्य संबंधों की तरफ मुड़ जाए। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी शीघ्र ही 'कश्मीर छोड़ो'आंदोलन शुरू करेगी। जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष ने कहा, "केंद्र सरकार के एक कनिष्ठ मंत्री ने यह बयान कि अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया जाएगा, एक सोची समझी रणनीति के तहत दिया है। इससे कश्मीर सहित देश में चर्चा का तूफान खड़ा हो गया है। कश्मीर में हर तरफ लोग अनुच्छेद 370 के भविष्य पर चर्चा कर रहे हैं।"

उन्होंने कहा, "इस चर्चा की अग्रिम पंक्ति में भारत समर्थक पार्टियां हैं। (मुख्यमंत्री) उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि यदि अनुच्छेद 370 खत्म किया जाता है तो कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा।"मलिक ने उल्लेख कि भारत सरकार या संसद के पास 370 को खत्म करने की वैधानिक शक्ति हासिल नहीं है।

उन्होंने कहा कि यह शक्ति राज्य विधानसभा में निहित है और यह ऐतिहासिक सत्य है कि इस कठपुतली विधायिका ने अनुच्छेद 370 को कमजोर किया है और भारतीय कानूनों को जम्मू एवं कश्मीर में लागू करने में मदद की है।

मीरा कुमार ने लोकसभा टीवी के सीईओ को दिया हटने का आदेश

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meira kumar
लोकसभा अध्यक्ष से हटने के कुछ ही दिनों पहले मीरा कुमार ने लोकसभा टीवी के सीईओ को बिना किसी कारण के तत्काल प्रभाव से हटने का आदेश दिया था।  प्रभावित अधिकारी राजीव मिश्र ने कहा कि अचानक से उनका कार्यकाल समाप्त करने का कोई कारण नहीं बताया गया।

30 मई की तारीख से जारी पत्र की प्रति में कहा गया है, "अध्यक्ष ने लोकसभा टीवी के मुख्य कार्यकारी श्री राजीव मिश्र के कार्यकाल को 31 मई 2014 तक सीमित कर दिया है।"इस मामाले में मीरा कुमार से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका है।

मिश्र ने आरोप लगाया कि उन्हें निकाले जाने के पीछे चैनल पर मीरा कुमार के चुनाव में बिहार के सासाराम से हारने की खबर चलाया जाना है। मिश्र ने कहा, "मेरे साथियों ने बताया कि सासाराम सीट से उनके हारने की खबर चल जाने से मैडम बेहद नाराज हैं।"

लोकसभा के नए अध्यक्ष का चुनाव होने तक मीरा कुमार कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। 16वीं लोकसभा का सत्र 4 से 12 जून के बीच आयोजित किया जाएगा जिसमें नए सदस्य शपथ लेंगे और नए अध्यक्ष का चुनाव भी होगा।

भटकाव छोड़ें परमसत्ता का आश्रय पाएँ

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हर इंसान अपने पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है। इनमें कई अपनी प्रतिभाओं, ज्ञान और सामथ्र्य पर भरोसा करते हैं।  कई सारे ऎसे हैं जो भाग्यवादी होकर जीते हैं लेकिन खूब सारे ऎसे हैं जो दूसरों की ऊर्जा और सहारा पाकर  आगे बढ़ना चाहते हैं, इनमें कुछ लोग खुद भी मेहनत करते हैं लेकिन काफी सारे लोग खुद कुछ नहीं करना चाहते बल्कि किसी न किसी शोर्ट कट की तलाश में हमेशा बने रहते हैं और पूरी जिंदगी इधर से उधर भटकते रहने के आदी हो जाते हैं।

दुनिया में वह सब कुछ पाया जा सकता है जिसे दुनिया बनाने वाले ने बनाया है। यह तय मानकर चलना चाहिए कि जो कुछ मिलता है वह परमसत्ता की कृपा से प्राप्त होता है। न कोई इंसान कुछ दे सकता है, न वे लोग जिन्हें हम अधीश्वर मानकर उनकी चरणवंदना और प्रशस्तिगान में लगे रहते हुए परिक्रमाएं करते रहते हैं।

इन सभी की हालत भी हमारी ही तरह है।  ये सारे के सारे भी दिन-रात किसी न किसी से कुछ न कुछ माँगते रहते हैं। लेकिन माँगने का मजा भी तब है जब देने वाला इतने सामथ्र्य से परिपूर्ण हो कि जो माँगो, वही मिल जाए। ऎसा किसी भूत-प्रेत, पितर या बाबाओं की शक्ल में जमा भीड़ से संभव नहीं है। 

जो लोग अपने जीवन में कुछ बनना चाहते हैं, कुछ पाना चाहते हैं या जीवन के सम्पूर्ण आनंद की प्राप्ति चाहते हैं उन्हें चाहिए कि वे सारे भटकाव को छोड़कर परम सत्ता का आश्रय प्राप्त करें और उसी दिशा में चिंतन-मनन करते हुए शुचिता के साथ अपने कत्र्तव्य कर्म करते रहें। 

जीव और ईश्वर के बीच कोई अपने आपको कितना ही सिद्ध और चमत्कारिक माने, यह सब व्यथा है और हमें भरमाने के लिए है। जो लोग पॉवर में हुआ करते हैं, जो हमारे काम आ सकते हैं उन लोगों में भी इतना दम नहीं होता कि वे हमारी हर इच्छा को पूर्ण कर सकें।

इसके साथ ही यह भी मानना चाहिए कि जो लोग ईश्वर और हमारे बीच दूरियां पैदा करते हैं, बीच में फालतू के तंत्र-मंत्र-यंत्र, सिद्धियों, आडम्बरों और भटकाव के पड़ावों पर ठहरा देते हैं, वे सारे के सारे हमारे शत्रु हैं।कुछ न हो सके तो रोजाना कम से कम आधा घण्टा परमसत्ता का ध्यान करें और परमेश्वर से ही प्रार्थना करें, इससे अपने आप कार्यसिद्धि निश्चित है। हमेशा सुप्रीम पॉवर का आश्रय पाने का प्रयास करें, तभी जीवन के सारे लक्ष्यों की सहज प्राप्ति संभव है और वह भी शाश्वत आनंद और आत्मसंतोष के साथ।




live aaryaavart dot com

---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

विशेष आलेख : कैसे बदले बनारस ...!!

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banaras train
भारी भीड़ को चीरती हुई ट्रेन वाराणसी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंच चुकी थी। मैं जिस डिब्बे में सवार था, कहने को तो वह आरक्षित था। लेकिन यर्थार्थ में वह जनरल डिब्बे जैसा ही था। चारों तरफ भीड़ ही भीड़। कोई कहता भाई साहब आरएसी है। कोई वेटिंग लिस्ट बताता। किसी की दलील होती कि बस दो स्टेशन जाना है। खैर , ट्रेन के प्लेटफार्म पर रुकते ही यात्रियों का बेहिसाब रेला डिब्बे में घुस आय़ा, जिसे देख कर मेरे हाथ - पांव फूलने लगे। इस बीच मेरी नजर कुछ दक्षिण भारतीय यात्रियों पर पड़ी। जो बेतरह परेशान होकर अपनी सीट ढूंढ रहे थे। उन्हें देख कर लग रहा था कि शायद वे सैर - सपाटे के लिए वाराणसी आए थे, और वापस लौट रहे थे। लेकिन मुश्किल यह थी कि डिब्बे में मौजूद यात्रियों में ज्यादातर अंग्रेजी नहीं समझते थे, और वे दक्षिण भारतीय यात्री हिंदी। उनमें केवल एक बूढ़ा व्यक्ति ही टूटी - फुटी हिंदी बोल पा रहा था। 

करीब एक घंटे की तनावपूर्ण तलाश और भारी तिरस्कार और उलाहना झेलने के बाद वे यात्री अपनी - अपनी बर्थ तक पहुंच सके। उन्हें देख कर मेरे मन में 1987 में की गई अपनी दक्षिण भारत यात्रा की यादें कौंध गई। तब ट्रेनों के आरक्षित  डिब्बों में अनारक्षित यात्रियों के प्रवेश पर रोक का नियम नहीं बना था, लेकिन क्या मजाल कि कोई भी अनारक्षित यात्री रिजर्व डिब्बे में प्रवेश कर जाए। हर डिब्बे के दरवाजे पर ही मुस्तैद ट्रेन टिकट परीक्षक इक्का - दुक्का अनारक्षित यात्रियों को दरवाजे पर ही रोक लेता, और उनसे डपटते हुए स्थानीय भाषा में पूछते कि क्या उनका रिजर्वेशन है। जवाब न में मिलने पर ही दरवाजे से उन्हें चलता कर दिया जाता। एक एेसे अनुशासित क्षेत्र से आए ये दक्षिण भारतीय यात्री अपनी इस यात्रा की अराजकता पर क्या सोच रहे होंगे, मन ही मन मैं यह सोच कर परेशान हो रहा था। 

इस प्रसंग का जिक्र मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी से चर्चा में आए  वाराणसी के कायाकल्प की उम्मीद और इस पर लग रही अटकलों के चलते कर रहा हूं। क्योंकि किसी नगर या क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता जितनी जरूरी है, वहां के परिवेश में आमूलचूल परिवर्तन भी उतना ही महत्वपूर्ण । क्योंकि मेरा मानना है कि इसके अभाव में वाराणसी क्या किसी भी तीर्थ या दर्शनीय स्थल का कायाकल्प नहीं किया जा सकता। क्योंकि बात सिर्फ वाराणसी तक ही सीमित नहीं है। कुछ महीने पहले एक निकट संबंधी की मृत्यु पर अस्थि - विसर्जन के लिए मेरे कुछ रिश्तेदार इलाहाबाद गए, तो वहां सामान्य पूजा - पाठ के लिए पंडों ने उनसे करीब 10 हजार रुपए ऐठ लिए। वह भी पूरी ठसक के साथ। ना - नुकुर करने पर पंडों ने भौंकाल भरा कि बाप का अस्थि - विसर्जन करने आए हो, यह कार्य क्या रोज - रोज होता है। पैसे नहीं हैं, तो कोई बात नहीं। लेकिन लेंगे तो दस हजार ही। झक मार कर मेरे रिश्तेदारों को मुंहमांगी रकम पंडों के हवाले करनी पड़ी। 

कुछ साल पहले अपनी पुरी यात्रा के दौरान मैने पाया कि मुख्य शहर व मंदिर में अब पंडों का आतंक कुछ कम हुआ है। लेकिन अन्य केंद्रों के बारे में दूसरे श्रद्धालुओं की धारणा कुछ वैसी ही  मिली। कुछ महीने पहले  पत्नी की जिद पर मैने पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल तारकेश्वर जाने का निश्चय किया। जाने से पहले कुछ जानकारों से सलाह लेने की गरज से मैने एक परिचित से संपर्क किया तो उसने झट मुझे वहां न जाने की सलाह दी। हैरानी से कारण पूछने पर उसने बताया कि वहां हर समय गुंडे - बदमाशों का जमावड़ा लगा रहता है। वे हर जोड़े को संदेह की नजरों से देखते हैं, और उन्हें परेशान करने और मुद्रा नोचन का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते। इससे पहले कई बार तारकेश्वर जा चुका था, , लिहाजा मुझे पता है कि वहां पंडे - पुजारियों की तो छोड़िए आम दुकानदार ही किस प्रकार श्रद्धालुओं को परेशान करते हैं। एक रुपए की चीज पूरी ठसक के साथ दस रुपए में बेचेंगे। तिस पर तुर्रा यह कि यहां पुण्य कमाने आए हो तो क्या इतना भी नहीं करोगे। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलों के बारे में मेरी जानकारी बहुत ही कम है। लेकिन सुना है कि वहां से आने वाली ट्रेनों में चोर - उचक्के खासकर हिजड़े यात्रियों को काफी परेशान करते हैं।  

एेसे में वाराणसी ही क्यों अन्य किसी तीर्थ या दर्शनीय स्थल के कायाकल्प की उम्मीद के बीच इस अप्रिय  पहलू पर भी गंभीरता से विचार होना चाहिए। क्योंकि किसी राजनेता के व्यक्तिगत प्रयास या महज पैसों से तीर्थ या दर्शनीय स्थलों की यह भद्दी सूरत नहीं बदली जा सकती।  महज चकाचौंध पर जोर न देते हुए हर तीर्थ व दर्शनीय स्थलों को आम आदमी के लिए आदर्श स्थान बनाने का प्रयास ही लोगों में इनकी प्रासंगिकता को प्रतिष्टित करेगा। 





तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934 
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।

आलेख : जति-बंधन मे फंसी राजनीति और मोदी सरकार से आशायें

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देश के राजनीतिक दलों ने वोट-बैंक की खातिर जनता को जातिगत आधार पर विभाजित करने का काम किया है। सन् 1947 मे मजहबी कसोटी पर भारत विभाजन के बाद महात्मा गान्धी, सरदार पटैल, जवाहरलाल नेहरू, समाजवादी बिचारक राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, एकात्ममानववाद के प्रणेता दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेई आदि नेताओं को तत्समय यह अनुमान नहीं था कि भारत के शासकीय-अशासकीय कार्यालयों मे, प्रत्येक गली मुहल्लों मे, शैक्षणिक संस्थाओं मे, राजनीतिक पटल के प्रत्येक स्तर पर, चुनाव के समय टिकिट निर्धारण से लेकर चुनाव प्रचार मे, समाज के प्रत्येक स्तर पर जातिगत भेद-भाव की कैंसर रूपी बीमारी से देश की जनता ग्रसित होने लगेगी। अनुमान यह भी नहीं था कि स्वतंत्रता के छः दशक व्यतीत होने के बाद जाति-भेद मे द्वेष एवं ईष्र्या के साथ-साथ जाति-गत वैमनस्यता का बिकराल स्वरूप प्रकट होने लगेगा। देश की भोगोलिक सीमाओं की समस्या की तरह चिन्ताजनक अब यह भी है कि आम-जनता राष्ट्रहित एवं अपने क्षेत्र के विकास की भावना से परे हो कर जातिगत आधार पर निर्णय लेने लगी है। विषय बहुत गम्भीर है और इस पर यदि ध्यान नहीं दिया गया तो देश मे जातिगत आधार पर झगड़े-फसाद होने की संभावना से भी इन्कार नही किया जा सकता, बल्कि सच तो यह है कि अनेंकों प्रान्तों मे जातिगत झगड़े होने लगे हैं। डर यह है कि आने वाले समय मे जातिगत आधार पर क्षेत्र, गांव, मोहल्लों का विभाजन होने लगेगा और गृह-युद्ध जैसी स्थिति भी पनप सकती है। इसका प्रमुख कारण एक यह है कि देश के राजनेता जातिगत कट्टरता के साथ जनता को चिन्हित करते हुये ’’फूट डालो और राज्य करो’’ की नीति पर सियासती चालें चल रहे हैं। बंदायू मे दो नावालिग लड़कियों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या के पीछे दबंगियों की जातिगत दबंगी से इन्कार नही किया जा सकता है। प्रशासनिक स्तर पर यह एक अनकहा सत्य है कि उत्तर प्रदेश मे प्रशासन पर जातिगत भावना भारी पड़ रही है। 

जाति-भेद को कट्टरता के साथ चिन्हित करते हुये जनसामान्य का विभाजन करने का कार्य और चुनाव के समय उसका लाभ लेने का उद्देश्य विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय से प्रारम्भ हुआ था। उन्होंने मण्डल कमीशन के नाम पर अगड़े और पिछड़ों को विभाजित किया था। यद्यपि पिछड़े वर्ग को अपग्रेड किया जाना चाहिये, लेकिन प्रश्न तो यह है, पिछड़ा कौन है ? पिछड़ेपन की परिभाषा क्या है ? पिछड़ा होने की कसौटी क्या है ? लेकिन बिडम्बना तो यह है कि आर्थिक रूप से पीडि़त होना, सामाजिक स्तर पर तिरस्कृत होना, अशिक्षित होना, आदि अयोग्यतायें पिछड़ेपन की परिभाषा मे समाहित नहीं हैं और ऐसी ही अयोग्यताओं से सामान्य जाति के भी जो लोग पीडि़त हैं, वे दुखी हो रहे हैं। देश के समक्ष समाज की एक तस्वीर यह भी है कि पिछड़ी व अनुसूचित जाति के अनेकों चिन्हित व्यक्ति आर्थिक रूप से सम्पन्न भी हैं, पढ़े-लिखे हैं, सामाजिक स्तर पर प्रतिष्ठित भी हैं और राजनीतिक स्तर पर स्थापित हैं, फिर भी उन्हें पिछड़े व दलित कहा जा रहा है। यह कसौटी भले ही लाभ प्राप्त करने के लिये स्वपेक्षी होकर सही मानी जाने लगे लेकिन प्रश्न तो यह है कि क्या यह उचित है ? जातिगत आधार पर चिन्हित ऐसे दलित एवं पिछड़ों को स्वाभिमानी होकर क्या यह आवाज उन्हें स्वयं नहीं उठाना चाहिये कि दलित एवं पिछड़े जैसे विशेषण से उन्हें सम्बोधित नहीं किया जाये ? यदि वे ऐसा करेंगे तो उनके स्थान पर अंतिम पंक्ति मे बैठे जरूरतमन्द को ही लाभ मिलेगा। ऐसे पिछड़े व दलित भी तो अपने भाईयों के लिये कुछ त्याग करें। आरक्षंण का यही उद्देश्य है। परन्तु हो यह रहा है, सड़क किनारे फुटपाथ पर बैठे उस दलित व पिछड़े को, जो आर्थिक, सामाजिक रूप से तिरस्कृत है, उसे कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है और उसके लिये जाति के आधार पर लाभ समेटने वाले भी कोई प्रयास नही कर रहे हैं। वस्तुतः हो यह भी रहा है कि जातिगत संगठन के तथाकथित नेता अपने दबाव और प्रभाव के परिणाम स्वरूप निजी स्वार्थपूर्ति मे सलग्न हैं।
देश मे जाति के आधार पर वोट बटोरने का कार्य बड़ी कट्टरता तथा बिना किसी हया और शर्म के साथ मायावती, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नितीश कुमार ने एक मुहिम चलाते हुये प्रारम्भ किया है। जब से राजनीति मे प्रमुखता के साथ इनका उद्भव हुआ है, तभी से अपनी-अपनी राजनीतिक चालों को चलते हुये जाति विशेष तक सीमित होकर रह गये हैं। ऐसे राजनेता, जो जातिभेद का विभाजन और उससे लाभ लेने और देने का व्यवसाय सियासत के गलियारों मे करने लगे हैं, उससे ऐसा प्रकट हो रहा है कि इन्होंने ऐसी नीति बना ली हो कि, ‘‘जाति-लाभ की लूट है लूट सके तो लूट, अंत काल पछतायेंगे जब चुनाव जायेंगे छूट।’’ परन्तु इन्हें यह ध्यान नहीं है कि इतने विशाल देश मे किसी एक जाति के वोट बैंक के आधार पर सर्व मान्य राजनेता की स्थापना कभी नहीं हो सकती है। इन्हें सबको साथ लेकर चलने की नीति बनाना होगी तभी देश मे समरसता व एकता रह पायेगी। राजनीतिक स्वार्थ को देखते हुये यह बात मायावती को कुछ-कुछ समझ मे भी आई थी कि ‘‘तिलक तराजू और तलवार’’ का नारा अब नहीं चलने वाला है तथा कांशीराम और मायावती के जातिगत विष-वमन के भाषणों को जनता स्वीकार नहीं करने वाली। तभी तो उन्होंने उ.प्र. मे सतीश चन्द्र मिश्रा को आगे करके ब्राह्मण सम्मेलन मे ब्राह्मणों का टींका-माहुर करने का आयोजन कराया था। परन्तु एक बार सफलता प्राप्त कर सत्ता मे आने के पश्चात मायावती भी अपने राजनीतिक लाभ तक सीमित रहीं और कट्टरता के साथ जातिभेद पनपातीं रहीं, परिणामतः उस टींकाकरण के बाद वह सफल नहीं हो सकीे। उसका कारण यही है कि उनके उद्देश्य मे सामाजिक समरसता की भावना नहीं थी बल्कि जाति भेद के आधार पर राजनीतिक स्वार्थ से पे्ररित रही। परन्तु भारत का आम नागरिक जातिगत बन्धन के भ्रमजाल से मुक्त होकर भारत के विकास और सुशासन की ओर उन्मुख होते हुये भृष्टाचार और मंहगाई से निजात पाना चाहता है। 

जाति के आधार पर राजनीतिक लाभ लेने की होड़ हैं, इस दौड़ मे राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख दल के नेता भी पीछे नहीं हैं। गत 02 मई 2014 को म.प्र. के एक मन्त्री सामूहिक विवाह सम्मेलन के अवसर पर कैलारस के बैहरारा स्थान पर पहुंचे, उन्होंने सम्वोधित किया था कि ‘‘प्रदेश मे यादवों की संख्या 80 लाख है, तो विधायक सिर्फ 7-8 ही क्यों बनते हैं, जिसकी जितनी संख्या उसके हिसाब से एम.एल.ए. होना चाहिये, यादव समाज का मुख्यमन्त्री क्यों नहीं हो सकता ?’’ ऐसा वक्तव्य पढ़कर मुझे प्रथम बार पता चला कि मन्त्री जी ‘‘यादव’’ हैं। मैं तो उन्हें सिर्फ एक सफल इन्सान और राजनेता ही समझता था। उन्होंने भी अपने आप को जातिगत चिन्हित करते हुये मुख्यमन्त्री नहीं बन पाने की पीढ़ा जाहिर कर दी। अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने यह भी कह दिया कि यादव एम.एल.ए. अधिक से अधिक होते तो जाति के आधार पर मुलायम सिंह की तरह वह भी मुख्य मन्त्री बनने का दावा ठोकते। ऐसे राजनेता संभवतः यह बिचार नहीं करते कि जातिगत अलंकार से विभूषित होने पर उनका कार्य-क्षेत्र संकुचित होता है या विस्तृत ? इन्हें यह भी नहीं पता कि जातिगत भावना का प्रसार करने पर उसकी सापेक्षता मे जितना लाभ नहीं होता, उतना संकुचित दायरे मे रहते हुये नुकसान अवश्य हो सकता है। मध्य प्रदेश मे भाजपा के एक कैबिनेट मन्त्री मेरे अच्छे परिचित हैं, उन्हें मेरे लेख और पत्र बहुत पसन्द आते हैं, वह अपनी ही जाति के प्रदेश-अध्यक्ष हैं, उनका एक कार्यक्रम अखबार मे इस प्रकार प्रकाशित हुआ कि (’फंला’ जाति) के प्रदेश अध्यक्ष एवं मध्य प्रदेश शासन के मन्त्री श्री ं ं ं दतिया पधार रहे हैं। यह समाचार भी उन्हीं की जाति के जिला अध्यक्ष द्वारा प्रसारित कराया गया और यह जानकर मुझमे प्रतिक्रिया हुई कि इनकी पहचान इनके कार्य और पद से नहीं है बल्कि जातिगत है, मुझे अनुभव हुआ कि मै परिचित होते हुये भी दूर हो गया हूं और वे लोग जो उनसे अपरिचित हैं और भिन्न बिचारधारा के हैं, लेकिन स्वजातीय हैं, वे निकट हो गये हैं। न्यूटन ने एक सिद्धान्त स्थापित किया था ‘‘प्रत्येक क्रिया की बिपरीत और बराबर प्रतिक्रिया होती है।’’ शायद इन्हें नहीं पता कि समाज मे जातिगत रहने पर इन्हें कितना संकुचित माना जाने लगता है।  कुछ वर्ष पूर्व ग्वालियर-चम्बल संभाग मे एक जाति-विशेष के समाज का सम्मेलन सम्पन्न हुआ था, उसमे समस्त राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला व तहसील स्तर के राजनेताओं ने भाग लिया था। अन्य स्थानीय नेताओं को उसमे इस कारण से शामिल नही किया गया था क्यों कि वे उस जाति-विशेष के नही थे। सम्मेलन मे एक साझा मंच पर इकट्ठे बिभिन्न राजनीतिक दलों एवं मतो के उन नेताओं के सम्बोधनों मे यह भी उभरकर आया था कि वे, चाहे किसी भी दलं मे कार्य कर रहें हों लेकिन अपनी जाति को वे हमेंशा सहयोग करेंगे और तत्समय चर्चा यह भी थी कि इस संदर्भ मे शपथ भी ली गई थी। यहां प्रश्न यह है कि ऐसे सम्मेलनों के आयोजन मे विभिन्न राजनीतिक दलों के आपस मे बिरोधी विचारधारा के राजनेता एक मंच पर क्या अपनी ही पार्टी के साथ बेईमानी नहीं कर रहे हैं ? हमे वह समय भी याद है जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल मे कानपुर से ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि पंडितों ने अटल जी से निवेदन किया था कि कानपुर मे ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करते हुये वे अटल जी का अभिनन्दन करना चाहते है,ं तो इस पर अटल जी ने साफ इन्कार करते हुये उन्हें जवाब दिया था कि वह अपनी जाति मे संकुचित होकर नहीं रहना चाहते, वह एक हिन्दू हैं और जाति-भेद की भावना से परे हैं। अटल जी जैसे अनेकों विचारक इस देश मे हैं और विषय पर सुसंगत रहते हुये ग्वालियर संभाग के आर.एस.एस. के तत्कालीन संघ चालक श्री रामरतन तिवारी को भी ब्राह्मण समाज के सम्मेलन मे अभिनन्दन हेतु आहूत किया गया था, तो उन्होंने भी जाति-भेद से ऊपर उठकर कार्य करने की प्रेरणा देते हुये आदर के साथ अस्वीकार कर दिया था। 
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात देश के समस्त राजनेता अंग्रेजों के सिद्धान्त ‘‘डिवाईड एण्ड रूल’’ की नीति पर कार्य कर रहे हैं। इसी कारण बड़ी कट्टरता के साथ हिन्दू और मुस्लिम मे बटवारा, हिन्दू की जातियों मे बटवारा कराने का कार्य कर रहे हैं। मुसलमान की हालत तो ऐसी कर दी है कि कांग्रेस, मुलायम सिंह, मायावती, लालू यादव, ममता बेनर्जी आदि विभिन्न प्रकार के नकारात्मक वक्तव्यों को प्रसारित करते हुये, उन्हें हिन्दू से डराते हुये वोट बटोरने का कार्य कर रहे हैं। मुस्लिम वर्ग भी बिचलित हो जाता है कि ‘मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं या मोदी जी से डर जाऊं।’ 

देश के समक्ष जाति-भेद एक गम्भीर समस्या है। सन् 1947 की स्वतंत्रता के पूर्व जातिगत ईष्र्या एवं द्वेष की राजनीति नहीं थी और राजनीति मे जाति-भेद भी नहीं था। देश की इस बर्तमान दुर्दशा के लिये राजनीतिक दल अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते हैं। अब यह अनुभव किया जा रहा है कि जाति-भेद की भावना मे दूसरी भिन्न जाति के प्रति वैमनस्यता, ईष्र्या, दुर्भावना रूपी बीमारी फैल रही है। जातिगत सम्मेलनों मे अपने स्वयं के सजातीय उत्थान और विकास पर चर्चायें कम होती हैं और दूसरी भिन्न जाति के प्रति विष-वमन अधिक होता दिख रहा है। सिर्फ अपनी ही जाति को फायदा पहुुंचाने की नीति मे अप्रत्यक्ष रूप से दूसरी जाति को नुकसान पहुंचाने का भाव भी समाहित है। इसका सर्वाधिक लाभ राजनीतिक दल उठा रहे हैं और जाति-भेद को समाप्त करने हेतु सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थायें निष्क्रिय हो चुकी हैं। जो जातिगत सम्मेलनों मे भाग लेकर जातिगत भावना पर कार्य करने को उकसाते हैं, राजनीतिक दल अपने ऐसे नेताओं के बिरूद्ध क्यों कोई कार्यवाही नहीं करते हैं ? इस दिशा मे सख्ती के साथ यदि अंकुश लगाना है तो शासकीय स्तर पर, कानून के स्तर पर, सामाजिक स्तर पर कुछ ठोस एवं कठोर कदम उठाना होंगे। 

देश की आम जनता को यह पूरा भरोसा है कि भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी न केवल जातिगत राजनीति के बिरोधी हैं, बल्कि भारत की आम जनता मे जाति-भेद के वर्गीकरण को पनपने नहीं देंगे। नवगठित 16वीं लोकसभा के कार्यकाल मे देश के समक्ष इस गम्भीर समस्या के निदान के लिये श्री नरेन्द्र भाई मोदी को देश हित मे तथा देश की एकता एवं अखण्ड़ता को स्थापित करने के लिये उन्हें कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे। मेरा सुझाव है कि प्रथमतः यह कार्य करना होगा कि जितने भी जातिगत संगठन इस देश मे संचालित हैं अथवा पंजीकृत हैं, उन पर प्रतिबन्ध लगाना होगा। जातिगत संगठनों का पंजीकरण पूर्णतः बन्द करना होगा। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप मे आयोजित जातिगत सम्मेलन इस सीमा तक प्रतिबंधित करना होंगे कि जो भी जातिगत सम्मेलन का आयोजन करेगा अथवा ऐसे आयोजनों मे जो भी शामिल होगा, उसे अपराध की श्रेणी माना जावे और इस हेतु दण्ड विधान मे संशोधन करना होंगे। सख्ती के साथ नियम बनाना होगा कि केन्द्र अथवा राज्य सरकार का कोई भी मन्त्री अथवा शासकीय अधिकारी अथवा शासकीय सेवक अपनी अथवा किसी भी जातिगत संगठन का पदाधिकारी एवं सदस्य नहीं होगा और न ही ऐसे जातिगत कार्यक्रमों मे भाग लेगा। राजनीतिक दलों के सन्दर्भ मे भी नियम बनाना होंगे कि जातिगत समीकरण के आधार पर इनके कार्य एवं उद्बोधन होने पर इनकी मान्यतायें समाप्त करना होंगी।  किसी भी प्रकार के ऐसे जातिगत कार्य जिनमे किसी अन्य दूसरी जाति के प्रति द्वेषात्मक उद्बोधन हों अथवा राजनेताओं के जातिगत वक्तव्य, पूर्णतः प्रतिबंधित करना चाहिये। इस कार्य मे उच्च-जाति, निम्न-जाति, अगड़े, पिछड़े के भेदभाव से परे हो कर कार्य करना होगा।  


               

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---राजेन्द्र तिवारी---
अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक विषयों के समालोचक होने हैं। 

विशेष आलेख : आखिर कब होगा हमारी समस्याओं का हल?

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narendra modi
नई सरकार का गठन हो चुका है। नरेन्द्र मोंदी भारत के 15 वें प्रधानमंत्री के रूप में  सत्ता की बागडोर संभाल चुके हैं। नरेन्द्र मोदी 30 साल बाद एक ऐसे दल के प्रधानमंत्री बने हैं जिसके पास स्पश्ट बहुमत है। ज़ाहिर है ऐसे में जनता की उनसे अपेक्षाएं भी बहुत ज़्यादा हैं। सवाल यह है कि क्या नरेन्द्र मोदी देष के विकास को एक नई गति दे पाएंगे? ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ  सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए प्रधानमंत्री की क्या भूमिका होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि देष की स्वतंत्रता के 66 साल भी ग्रामीण क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। खासतौर से सीमावर्ती इलाकों में तो हालात और भी ज़्यादा बदतर हैं। जम्मू एवं कष्मीर के सरहदी जि़ले पुंछ में भी मूलभूत सुविधाओं का हाल भी कुछ इसी तरह का है। पुंछ जि़ले की तहसील सुरनकोट के नाड़मनकोट गांव में लोग तमाम मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली, षिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क आदि से वंचित तो हैं ही लेकिन यहां सबसे बड़ी परेषानी पुल की है। इस गांव के बीचों बीच एक नाला है। इस नाले में साल भर पानी रहता है लेकिन बरसात के दिनों में इस नाले में पानी बहुत ज़्यादा भर जाता है, जिसकी वजह से लोगों को बड़ी कठिनाईयोें का सामना करना पड़ता है। नाले पर पुल निर्माण न होने की वजह से लोगों को अपनी जान जोखिम में डालकर इस नाले को पार करना पड़ता है। खासतौर से उस वक्त लोगों की परेषानी और बढ़ जाती है, जब कोई बीमार पड़ता है। मरीज़ को अस्पताल पहुंचाने के लिए इसी तेज़ रफ्तार नाले को पार करना पड़ता है। कई बार तो नाले को पार करते वक्त मरीज़ को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। इन कठिन परिस्थितियों में यहां के लोगों की जिंदगी जी का जंजाल बन गयी है। खुदा के दरबार में देर है, पर अंधेर नहीं, यह कहकर यहां के लोग अपनी जिंदगी गुज़ार रहे हैं। 
          
इस गांव की आबादी लगभग 14000 हज़ार है। स्कूल जाने के लिए बच्चों को इसी नाले से गुज़रना पड़ता है। इस बारे में गांव की स्थानीय निवासी बेगम जान कहती हैं कि सर्दी के मौसम में भी स्कूल और काॅलेज के छात्र-छात्राओं को नाले के ठंडे पानी से होकर गुज़रना पड़ता है। यह नाला इस गांव की लाइफलाइन है, मगर किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान इस नाले के निर्माण को लेकर नहीं है। नाले पर पुल के निर्माण होने के बारे में नाड़मनकोट के नायब सरपंच हरनाम सिंह कहते हैं कि पुल निर्माण के लिए कई बार सरकार ने पैसा अधिकृत किया है लेकिन मालिक और ठेकेदार के आपसी झगड़े की वजह से पुल के निर्माण का काम षुरू होने से पहले ही बंद हो जाता है या फिर ऐसे मौसम में षुरू होता है, जब बारिष बहुत ज़्यादा होती है। यह प्रषासन की एक बड़ी कमज़ोरी है जिस पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है। इस बारे में पंचायत मेंबर मोहम्मद सगीर कहते हैं कि एक ओर तो नाले में बह रहा पानी लोगों के लिए मुष्किल खड़ी कर रहा है, वहीं दूसरी इस गांव के लोगों को पानी की एक एक बंूद के लिए तरसना पड़ता है। इस गांव के लोग अपने मवेषियों की प्यास बुझाने के लिए डेढ़ किलोमीटर दूर से नाला पार करके पानी लाते हंै। सरकार हर जगह पाइपों के ज़रिए पानी पहुंचा रही है लेकिन नाड़मनकोट गांव में टैंक तो बने हैं, मगर टैंकों में पानी न होने की वजह से घरों में सप्लाई नहीं किया जाता। इस गांव के विकास के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इस गांव के हर अधूरे काम के लिए सरकार का ढुलमुल रवैया जि़म्मेदार है। यहां के लोगों की स्थिति को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां इंसाफ के नाम पर इंसाफ का गला दबाया जा रहा है। इस बारे में गांव के स्थानीय निवासी मोहम्म्द षरीफ कहते हैं कि ऐसी कौन सी समस्या है जिसका सामना हम लोगों ने नहीं किया है। इस लेख को पढ़ते समय पाठकों को इतना विष्वास हो गया होगा कि नाले पर पुल निर्माण के बिना यह गांव विकास की राह पर गामज़न नहीं हो सकता। ऐसे में सरकार को जल्द से जल्द इस नाले पर पुल निर्माण के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है। नाले पर पुल का निर्माण न होना सरकार की इस गांव की जनता के प्रति बेरूखी को उजागर करता है। इस उम्मीद के साथ कि नाले पर कभी तो पुल बनेगा, यहां के लोग तमाम मुष्किलों से दो चार हुए भी जीवन के सफर में आगे बढ़ रहे हैं। 




रूखसार कौसर
(चरखा फीचर्स)
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