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मोदी के क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट आदेश बाद भी तालाब पर अवैध कब्जा

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  • मुख्यमंत्री के सख्त निर्देश के बाद भी अधिकारी भूमाफियाओं के धनबल के आगे नतमस्तक 
  • ग्रामीणों का आरोप तहसील प्रशासन ने दस्तावेजों में हेरफेर कर कराया अतिक्रमण  

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तालाबों और जलाशयों पर अतिक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक भले ही सख्त हो, लेकिन प्रशाासन की मिलीभगत से भूमाफियाओं का कब्जा अब भी बरकरार हैं। जबकि सत्ता संभालने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत समस्त मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को निर्देशित कर रखा है कि जहां कहीं भी तालाबों, पोखरों, टीलों पर अवैध कब्जा हो उसे धराशायी कर न सिर्फ रिपोर्ट दें, बल्कि कब्जा करने वाले भूमाफियाओं पर रासुका के तहत कार्रवाई करें। इसके बावजूद अधिकारी एवं माफियाओं के गठजोड़ से धड़ल्ले से तालाबों और जलाशयों पर हवेलियां तन रही हैं। खासतौत से यह नंगा नाच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में खूब फल-फूल रहा हैं। ताजा मामला वाराणसी के पिंडरा तहसील के सिंधौरा का है, जहां पूरे तालाब को भूमाफियाओं ने कब्जा कर रखा है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 जनवरी 2016 के आदेश के तहत तत्कालीन सीएम समेत प्रमुख गृह सचिव, डीजीपी, मंडलायुक्त एवं जिलाधिकारी को उक्त तालाब पर किए गए अतिक्रमण को तत्काल हटाने को कहा है। 

बतातें हैं सिंधौरा बाजार स्थित लबे रोड से सटा हुआ एक बड़े भूभाग में सैकड़ों साल पुराना तालाब हैं, जो न सिर्फ लोगों के आस्था का केन्द्र है बल्कि सार्वजनिक स्थल होने के चलते बाजार समेत पास-पड़ोंस के लोगों के सभी कर्मकांड भी तालाब के किनारे ही संपंन होते हैं। लेकिन कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली में उग आएं अखिलेश राज के गुंडे व माफिया की नजर इस तालाब पर भी पड़ी और असलहों के नोक पर रातोंरात तालाब की भीटा समेत पूरा किनारा कब्जा करते हुए अपनी-अपनी हवेली तान ली। डरे-शहमें ग्रामीण इसकी शिकायत तहसील दिवसों से लेकर थाना दिवसों तक लिखित आवेदी देकर की, लेकिन भूमाफियाओं के आगे प्रशासन मौनी बाबा बना रहा, उल्टे प्रशासन ने ही ग्रामीणों को धमकी दे डाली कि अगर दुबारा शिकायत आई तो अफीम, चरस, गाजा का फर्जी मुकदमा दर्ज कर हवालात में डाल देंगे। पांच साल बाद जैसे ही सूबे में सत्ता बदली और योगी ने कमाल संभाली, गांव वाले मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर अवैध अतिक्रमण हटवाने और भूमाफियाओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। पत्र के जवाब में मुख्यमंत्री ने तत्काल अतिक्रमण हटाने का आदेश वाराणसी के मंडलायुक्त व जिलाधिकारी को तो दी। लेकिन भूमाफिया के धनबल के आगे प्रशासन भी बौना बना हुआ हैं। आरोप है कि तहसील प्रशासन भूमाफियाओं से बड़ी रकम लेकर न सिर्फ तालाब के भीटा एवं किनारों का काफी हिस्सा अपनी दस्तावेजों में उलटफेर कर उनके नाम कर दी है बल्कि ग्रामीणों को धमकाया भी है कि सभी को फर्जी मुकदमें में जेल भेजा जायेगा। परिणाम यह है कि भूमाफिया तेजी से अवैध निर्माण कार्य करा रहे हैं। 

इस संबंध में स्थानीय लोगों द्वारा प्रशासन को अवगत भी कराया जाता है लेकिन कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा है। इसे लेकर लोगों में रोष व्याप्त है। उक्त तालाब को लेकर विगत वर्षों भारी विरोध किया गया था। उस दौरान प्रशासन द्वारा पैमाइश भी कराई गई थी लेकिन इसके बाद मामला टायं टायं फिस्स हो गया। परिणामस्वरूप अतिक्रमणकारी पुनः सक्रिय हो गए हैं। परिणाम यह है कि अतिक्रमण के कारण सैकड़ों साल पुराना तालाब अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है। जबकि तालाब का उपयोग स्थानीय लोग नहाने धोने से लेकर पूजा-पाठ व अन्य कर्मकांड तालाब के किनारे ही करते हैं। वर्तमान में समय में गिरते भू-जल स्तर को रोकने के लिए तालाबों का रहना बहुत जरूरी हो गया है। ऐसी स्थिति में भी तालाबों पर अतिक्रमण की बात लोगों के गले नहीं उतर पा रही है। राज्य सरकार भी तालाबों को सुरक्षित करने के प्रयास में लगी हुई है। इसके बावजूद यह स्थिति बनी हुई है। लोगों ने मांग की है कि इसका सुंदरीकरण कराकर इसमें शुद्ध जल भरा जाए ताकि लोग पहले जैसे कार्य के लिए इस तालाब का उपयोग कर सकें। लेकिन सक्षम अधिकारी यह सब देखने के बाद भी मूक दर्शक बने हुए हैं। इस बाबत जब मुख्यमंत्री से बात की गयी तो उन्होंने कहा, सार्वजनिक तालाबों व पोखरी पर किसी ने भी अगर अवैध कब्जा किया है, यह क्षम्य नहीं है। आदेश के बावजूद अगर कार्रवाई नहीं हो रही है तो अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई होगी। अवैध कब्जा तो हर हाल में हटेगा। 




(सुरेश गांधी)

व्यंग्य : वाकई ! कुछ सवालों के जवाब नहीं होते ... !!

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वाकई इस दुनिया में पग - पग पर कंफ्यूजन है।  कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनके जवाब तो मिलते नहीं अलबत्ता वे मानवीय कौतूहल को और बढ़ाते रहते हैं।हैरानी होती है जब चुनावी सभाओं में राजनेता हर उस स्थान से अपनापन जाहिर करते हैं जहां चुनाव हो रहा होता है। चुनावी मौसम में देखा जाता है कि राजनेता हर उस स्थान को अपना दूसरा घर बताते रहते हैं जहां उनकी चुनावी सभा होती है। ऐसे में सहज ही मन में सवाल उठते हैं कि तब नेताओं के वास्तव में कितने दूसरे घर हैं। लेकिन ऐसे सवालों का भला कहां जवाब मिलता है। मसलन अक्सर टेलीविजन के पर्दे पर सर्वेक्षण रिपोर्ट की घुट्टी पीने को मिलती है कि फलां समूह के सर्वे से मालूम हुआ है कि फलां  राजनेता की लोकप्रियता के ग्राफ में भारी वृद्धि हुई है ... जबकि अमुक की जनप्रियता में गिरावट आई है। इस राजनेता को इतने फीसद लोग प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं... और फलां को इतने । आज यदि चुनाव हो जाएं तो इस पार्टी को इतनी सीटें मिलेंगी और उसे इतनी। ऐसे सर्वेक्षणों को देखने  और समझने की कोशिश के बाद मन में सवाल उठता है कि आखिर ये सर्वेक्षण करने वाले कौन हैं और इन्हें यह करने का अधिकार किसने दिया। ऐस सर्वेक्षणों का आधार क्या है और इससे भला देश व समाज को क्या हासिल होने वाला है। लेकिन सर्वेक्षण हैं कि होते ही रहते हैं,  कभी इस कंपनी का कभी उस कंपनी का।  80 से ऊपर की उम्र वाले उस स्मार्ट बुजुर्ग का वह मासूम सवाल भी बड़ा दिलचस्प था। उनकी दलील थी कि आजादी के बाद जब देश में पहला चुनाव हुआ तब तक वे होश संभाल चुके थे। लेकिन तब के चुनाव में भी गरीबी और बेरोजगारी का मुद्दा उतना ही महत्वपूर्ण था जैसा आज है। आखिर ऐसा क्यों...। लेकिन  इस सवाल का जवाब उस बुजुर्ग को जीवन संध्या तक नहीं मिल पाया। हैरानी तो तब भी होती है जब देखा जाता है कि हर राज्य का मुख्यमंत्री अपने प्रदेश को श्रेष्ट , स्वर्ग समान और नबंर एक बताता है। लेकिन उसी राज्य के विरोधी नेता प्रदेश को पिछड़ा और नर्क का पर्याय कैसे बताते हैं। यही नहीं अमूमन हर राज्य का मुख्यमंत्री अपने - अपने प्रदेश में निवेश को आकर्षित करने के लिए समय - समय पर देश - विदेश के दौरे करते रहते हैं। लौट कर बताते हैं कि फलां - फलां पूंजीपतियों ने राज्य में इतने निवेश का भरोसा दिया है। सम्मेलनों में धनकुबेर आयोजन से जुड़े राज्य को बेस्ट बताते हुए उसका बखान करते हैं। सूबे को अपना पसंदीदा और दूसरा घर बताते हुए जल्द ही मिल - कारखाना खोलने का भरोसा दिलाते हैं। इसे देख कर  धनकुबेरों से यह सोच कर सहानुभूति होने लगती है कि  बेचारों का पूरा दिन तो राज्य - राज्य घूम कर यही बतलाने में चला जाता होगा। पता नहीं क्यों उनकी हालत देख कस्बों के उस तबके की याद आने लगती है जिन्हें लोग पैसे वाले समझते हैं और देखते ही चंदे की रसीद ले दौड़ पड़ते हैं। ऐसे में उनका सारा दिन भागने - भगाने में व्यतीत होता है। महाआश्चर्य तो उस कमिटमेंट से भी होता है जिसमें  ब्रह्रांड सुंदरी से लेकर विश्व सुंदरी तक सोशल अॉबलिगेशन के प्रति अपना कमिटमेंट जाहिर करती है। सेलीब्रेटी बनने के बाद समाज के लिए कुछ करने की इच्छा जाहिर करती है। लेकिन आज तक किसी सुंदरी को जनकल्याण करते कोई नहीं देखा। सभा बंद ठंड कमरों में होने वाली सूटेड - बुटेड भद्रजनों की हो या बड़े - बड़े धनकुबेरों की , हर कोई गरीबों के प्रति हमदर्दी जाहिर करते हुए जनकल्याण और समाजसेवा को अपना लक्ष्य बताते हैं। ऐसी बैठकों में उपस्थिति के बाद मन में सवाल उठता है कि इतने सारे लोग यदि सचमुच जनकल्याण करना चाहते हैं तो कायदे से तो समाज में कल्याण करने वालों की संख्या अधिक होनी चाहिए और सेवा लेने या कल्याण कराने वाले कम। किंतु वास्तव में ऐसा होता क्यों नहीं। इस कड़ाके की ठंड में भी मैने ऐसे अनेक समारोह देखे जहां मुफ्त की कंबल लेने के लिए लाभुकों में खींचतान चलती रही।  यह स्थिति भी विचित्र विरोधाभास का आभास कराते हुए कौतूहल पैदा करती है। अचंभित करने  वाले सवाल यही नहीं रुक जाते। हमारे फिल्म निर्माता यह जानते हुए भी कि फिल्म इस - इस तरह के प्रसंग डालने से एक वर्ग की भावनाएं आहत हो सकती है। विरोध प्रदर्शन क्या  दंगा - फसाद  तक हो सकता है। विरोध करने वाले भी जानते हैं कि वे चाहे जितनी लानत - मलानत करें  लेकिन न्यायालय या अन्य किसी के हस्तक्षेप से फिल्म पर्दे तक पहुंचेगी और  दो - चार सौ करोड़ी क्लब में भी शामिल होगी लेकिन न फिल्म बनना रुकता है न विरोध - प्रदर्शन का सिलसिला।  वाकई दुनिया में कुछ सवालों के जवाब नहीं होते। 



liveaaryaavart dot com

तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर (पशिचम बंगाल) मेदिनीपुर 
संपर्कः 09434453934 , 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

विशेष : साहित्यकार स्व. सतीश चन्द्र झा की 89 वीं जयंती के अवसर पर एक अनुभव

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(जन्मः 29 जनवरी 1929 व पुण्य तिथिः 16 जून 2008)
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) ज्ंागल-पहाड़, नदी-घाटी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी व जनजातीय संस्कृति से ओत-प्रोत प्राचीन अंग जनपद का हिस्सा व वर्तमान संताल परगना की उर्वर भूमि जहाँ एक ओर भूगर्व वैज्ञानिकों, जीव वैज्ञानिकों, वनस्पति वैज्ञानिकों, इतिहासकारों पुरातत्ववेत्ताओं व पर्यावरणविद्ों के लिये सदियों से महान खोज का विषय रहा है, वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र की आदिम आवोहवा, भाषा-संस्कृति, पर्व-त्योहार, खान-पान, नृत्य-संगीत, आमोद-प्रमोद पर केन्द्रित अनुसंधान का कार्य भी वर्षों से जारी रहा, जो अब तक अक्षुण्ण बना हुआ है। इस क्षेत्र की साहित्यिक समृद्धि इस बात का गवाह रही है कि यहाँ से जुड़े साहित्यकारों/ रचनाकारों ने संताल परगना को ही अपनी रचनाधर्मिता का आदर्श बनाया तथा उसे आत्मसात करते हुए राष्ट्रीय फलक पर प्रत्यक्ष/ परोक्ष रुप से अपनी एक मुकम्मल पहचान बनाई। सृजन की लिपि चाहे जो भी रही हो, सृजन का विषय संताल परगना क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैचारिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित कथा, कहानी, कविता, लेख, दोहे, बीजक, एकांकी, नाट्य, प्रहसन, स्तंभ, उपन्यास, यात्रा वृतांत, झूमर, लोकगीत जैसी चीजें ही मुख्य रही हंै। हिन्दी, अंगिका, संताली, बंग्ला, भोजपुरी, संस्कृत, अवधी व ब्रज भाषाओं के कई एक स्वनामधन्य कवि/ लेखकों/ इतिहासकारों/ साहित्यकारो/ विद्धानों ने इस धरती पर जन्म लिया जिन्होनें अपने कृतित्व से इस क्षेत्र को गौरवान्वित, उद्भाषित व परिभाषित करने का प्रयास किया। 

ज्ञेय-अज्ञेय उद्भट विद्वानों, कवियो/ लेखकों, साहित्यकारों की इसी श्रृँखला में पूरी श्रद्धा के साथ संताल परगना के एक ऐसे कवि का भी नाम लिया जाता है, जिन्होनें मृत्युपर्यन्त हिन्दी साहित्य की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं एक ऐसे सरल, सौम्य, मृदुभाषी व प्रखर व्यक्तित्व के धनी कवि/ साहित्यकार स्व0 सतीश चन्द्र झा की, जिन्होनें जीवन में न तो कभी रोटी-दाल, घर-परिवार की चिन्ता की और न ही व्यवस्था के उच्चतम मानकों में जीवन जीने की लालसा ही मन में पाल रखी थी। किन्तु यह भी सत्य है कि समय-असमय उनकी कुटिया में पहुँचने वाले अतिथियों के सत्कार में उन्होनें कोई कसर नहीं छोड़ रखा था। यह दिगर बात है कि सतीश बाबू की जीवितावस्था में उनकी इच्छाओं/ निर्णयों को पराकाष्ठा तक पहुँचाने वाली उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चंपा देवी आज भी उसी श्रद्धाभाव से सतीश कुटिया में पहुँचने वाले कवियों/ साहित्यकारों का इस्तकबाल करती हैं, उनके जीवितावस्था में जैसा वे किया करती थीं। स्व0 सतीश बाबू की मृत्यु के बाद उनकी अनुपस्थिति के सूनेपन में टिमटिमाती रौशनी की तरह बूढ़ी हड्डियों में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चंपा देवी की मौजूदगी साहित्यकारों के लिये संजीवनी बूटी से कम नहीं रही हैं। स्व0 सतीश चन्द्र झा व उनकी धर्मपत्नी की इन्हीं संयुक्त सत्यकर्म प्रवृत्तियों का ही प्रतिफल है कि पूरी संजीदगी के साथ उनकी कुटिया में साहित्यिक गतिविधियाँ निरंतर विद्यमान है। सतीश स्मृति मंच उन्हीें प्रयासों का जीवित दस्तावेज बनकर उभरा है जिसकी छांव में स्थानीय साहित्यकार पल्लवित व पुष्पित हो रहे हैं। 

पिछले कई वर्षों से कई एक महत्वपूर्ण अवसरों पर स्व0 सतीश बाबू की कुटिया में आयोजित साहित्यिक संगोष्ठियों/ कवि गोष्ठियों में उनसे रुबरु होने व साहित्य की विभिन्न विद्याओं में दुर्लभ ज्ञान प्राप्त करने का अलौलिक अवसर मुझे प्राप्त होता रहा है। शास्त्री कद-काठी  के व लाल बहादुर शास्त्री जी की तरह ही कर्मठ किन्तु सरल, सौम्य व गंगाजल की तरह निर्मल स्व0 सतीश बाबू जब कभी भी कविताओं का पाठ किया करते तो प्रतीत होता मानो उनके मुख से निकलने वाला हर एक शब्द कृत्रिम जमीं पर प्राकृतिक छटा बिखेर रहा हो। कविता की एक-एक पंक्तियाँ उनकी आत्मा से जुड़ी होती थीं। उनकी कविता जितनी सधी हुआ करती, उसका अर्थ उतना ही सरल व व्यापक हुआ करता। पूरी मर्यादा के साथ रिश्तों/ संबंधों को जीने की काबिलियत रखने वाले स्व0 सतीश बाबू  आज भले ही हमारे बीच मौजूद न हों, किन्तु उनके स्मरण मात्र से ही उनकी पूर्ण उपस्थिति का आभाष प्राप्त हो जाता है। युवा कवियों के लिये तो वे एक बड़ी प्रेरणा से कम नहीं थे। उनके मार्गदर्शन में कई ऐसे नवोदित रचनाकारों ने पूरी आस्था व सम्मान के साथ लेखनी पकड़ी जिन्होनें बाद के वर्षों में साहित्यिक धरा पर एक मुकाम हासिल किया।
                                          
उनकी कविता की इन पंक्तियों से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि अतिथियों का सत्कार वे किस हद तक करते होगें- आगत का स्वागत/ अभ्यागत में सेवारत/ यही संस्कृति यही धारणा/ नहीं विकृति का आभाष/ प्रेमभाव से करता आदर/ मै खुद हूँ एक विचार/ बना मैं, पर्णकुटी का पहरेदार।  स्व0 सतीश बाबू का मानना था ’एक व्यक्ति को ईश्वर ने जो आयु प्रदान किया है, पूरे उत्साह, पूरी पारदर्शिता व निष्पक्षता के साथ उसका उपयोग उसे परिवार, समाज व देश के निर्माण में करना चाहिए। कविता की इन पंक्तियों से यह बखूबी समझा जा सकता है- जश्म मनाओ इस तरह, बढ़े प्रेम परिवेश/ अन्तर्मन खिल-खिल उठे, रहे न कोई क्लेश। क्वार्टर पाड़ा, दुमका स्थित स्व0.सतीश बाबू की कुटिया थी तो काफी छोटी, किन्तु उस कुटिया में पहुँचने वाले लोग वैसे ही ज्ञानी हुआ करते थे, जिन्होनें राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान कायम की। सतीश चैरा में पहुँचने वालों को उनकी निम्न पंक्तियाँ हमेशा स्मरण कराती रहेगीं-इस कुटिया का हर एक पल हर क्षण/ तेरे चरणों पर है अर्पण/ तेरा रज कण मेरा चन्दन/ वन्दन बारंबार तुम्हारा/ आओ करता स्वागत तेरा।  भाषा-संगम, जिला हिन्दी सम्मेलन, अंगिका विकास समिति व अन्य कई अलग-अलग संस्थाओं की बैठकों सहित उनके कार्यक्रमों के संचालन व आगत अतिथियों के स्वागत की पूरी रुपरेखा ही सतीश कुटिया में तय हुआ करती। कहते हैं कवि/ साहित्यकार बड़े ही संवेदनशील प्राणी होते हैं। जो भी बातें आत्मा में चूभ गई या फिर आत्मा से जुड़ गई, उसके परिणाम / निराकरण की चिन्ता किये बिना सहज भाव से प्रकट कर दिया करते हैं। सतीश बाबू की यह बड़ी विशेषता थी।  सतीश बाबू के संदर्भ में कहा जाता है कि अर्थाभाव के बावजूद सेवा व समर्पण की भावना से वे ओतप्रोत थे। एक अल्पवेतन भोगी कर्मचारी जिसका अपना ही घर-संसार काफी बड़ा हो, अभावों के बाद भी उनके चेहरे की मुस्कुराहट से कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि किस परिस्थिति में उनके जीवन की बैलगाड़ी चल रही होगी। उनका कहना था घबड़ाने से समस्या का समाधान नहीं निकलता है। दृढ़ता के साथ उसका सामना करना ही पुरुषार्थ कहलाता है। उनकी कविता की एक बानगी देखिये-इन्सानों की दुनिया सुन लो/ देवों के आकाश/ मेरा रहा यही विश्वास।  मंजिल भी तो दूर बहुत है/ बैठ गया हूँ थककर/ थकन मिटाकर दूर बढ़ूँगा/ अपने जीवन-पथ पर/ रुका हुआ हूँ पर मत समझो/ हुआ बहुत निराश/ बची हुई है अब भी हममें बढ़ने की अभिलाष/ मेरा रहा यही विश्वास। 

वर्तमान संताल परगना प्रमण्डल के जिला गोड्डा के एक छोटे से गाँव सनौर में 29 जनवरी 1929 को जन्में स्व0 सतीश चन्द्र झा को भले ही साहित्य विरासत में प्राप्त हुआ हो, किन्तु बचपन से ही संघर्षशील अपनी मेहनत, लगन व स्वाध्याय के बल पर उन्होनें जो मुकाम हासिल किया, संताल परगना के साहित्यिक इतिहास में ’मील का पत्थर’, से कम नहीं है। उनके ज्येष्ठ पुत्र व सतीश स्मृति मंच के सचिव कुन्दन कुमार झा के अनुसार प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी व साहित्यकार पितामह के ज्येष्ठ भाई प0 बुद्धिनाथ झा कैरव व पितामह प0 अवध नारायण झा के सानिध्य/ संरक्षण व सहयोग का ही प्रतिफल था कि साहित्य व साहित्यकारों के प्रति बाबूजी की अगाध अभिरुचि व श्रद्धा थी। वे कहा करते थे-कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। ईश्वर ने पूरी मानव जाति को एक सांचे में ढाल रखा है, किन्तु मानव अपने संस्कारों अपनी अभिरुचियों, अपने उद्देश्यों, अपनी कल्पनाओं, अपने परिश्रम व अपनी सोंच की बदौलत ही एक-दूसरे से भिन्न होकर श्रेणीबद्ध हो जाता है। जो दूसरों के अच्छे-बुरे कार्यों का लेखा-जोखा करते हैं उन्हें यह ज्ञात ही नहीं रहता कि जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में वे क्या खो रहे हैं और पाने के लिये उनके पास बचा क्या हैं ? मध्य विद्यालय, बाराहाट में प्रारंभिक शिक्षा स्व0 सतीश चन्द्र झा ने अपने पिता स्व0 अवध नारायण झा के संरक्षण व मार्गदर्शन में प्राप्त किया था। रानी महकम कुमारी बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बाँका व टीएनजे महाविद्यालय, भागलपुर से स्व0 झा ने मैट्रिक व इन्टर की परीक्षाएँ पास की थी। वर्ष 1954 में हिन्दी अनुदेशक के महत्वपूर्ण व जिम्मेदारी भरे पद पर नौकरी करने के बावजूद सेवाकाल में ही सतीश बाबू ने एसपी महाविद्यालय, दुमका से बी ए की डिग्री हासिल की थी। 

स्व0 सतीश बाबू की धर्मपत्नी श्रीमती चंपा देवी के अनुसार क्वार्टर पाड़ा, दुमका स्थित सतीश कुटिया में साठोत्तर काल में कई ऐसे नामी-गिरामी कवि/ साहित्यकारों का समय-असमय आगमन होता रहा, जिनकी उपस्थिति मात्र से ही संताल परगना की धरती पुष्पित-पल्लवित हो जाती। श्रीराम गोपाल शर्मा रुद्र, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, डा0 लक्ष्मी नारायण सुधांशु, आनन्द शंकर माधवन, राम दयाल पाण्डेय, भागवत झा आजाद जैसे विद्धान/ मनीषियों का आर्शीवाद व प्रोत्साहन सतीश बाबू को प्राप्त होता रहा। इसी कुटिया की चारपाई पर बैठकर रचित उनकी रचनाएँ वनफूल, माटी कहे कुम्हार से, रजत शिखर, बाँस-बाँस बाँसुरी, वीर जवानों तुम्हें प्रणाम जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं, पुस्तकों व काव्य संकलनों में प्रकाशित हुई। स्व0 सतीश बाबू की सैकड़ों रचनाएँ अभी भी अप्रकाशित हैं जिनके प्रकाशन की जिम्मेवारी सतीश स्मृति मंच के लिये छोड़ दिया गया है। 16 जून 2008 को 79 वर्ष की आयु में सतीश बाबू ने इस संसार से अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके अन्तरंग डा0 आनन्द मोहन सोरेन ने अपना उद्गार प्रकट करते हुए कहा था-सतीश बाबू पिछले कुद वर्षों से बीमार चल रहे थे। मैं उन भाग्यवानों में से एक हूँ, जिन्हें उनकी सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। उनके नाम से एक ट्रस्ट बनाया जाय ताकि साहित्य के धरोहर को सुदृढ़ रुप से आगे बढ़ाया जा सके। इतना ही नहीं उनके सद्विचारों को जन-जन तक पहुँचाये जाने की आवश्यकता है। डा0 श्यामसुन्दर घोष ने कहा था-उनका आवास साहित्य तीर्थ था। अंगिका साहित्य के महाकवि स्व0 सुमन सुरो ने अपना उद्गार प्रकट करते हुए कहा था-यह कुटिया जो सूनी पड़ी है, दशकों तक साहित्यकारों के लिये सिद्धपीठ रही है। अपनी भावना से अवगत कराते हुए साहित्यकार डा0 रामवरण चैधरी ने कहा था-सतीश चैरा साहित्यकारों का रैन बसेरा है। प्रत्येक वर्ष स्व0 सतीश बाबू की जयन्ती पर साहित्य पर्व मनाने तथा हिन्दी व अंगिका के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले साहित्यकारों को सम्मानित करने की जरुरत है। यह अकाट्य सत्य है कि शरीर नश्वर है। व्यक्ति मरता जरुर है, किन्तु उसकी कृतियाँ उसे अमर बना देती हैं। सतीश बाबू हमारे बीच नहीं हैं किन्तु दानस्वरुप उन्होनें जो कुछ भी दिया है, उसे संभाल कर रखना ही उनके प्रति हम सबों की एक सच्ची श्रद्धाँजलि होगी।  
                                            
संताल परगना के प्रमण्डलीय मुख्यालय जिला दुमका में स्व0 सतीश बाबू के महाप्रयाण के बाद विरासत में प्राप्त संस्कारों व साहित्यिक आवोहवा में रच बस गई रिक्तता को पाटने, पुरानी अभिरुचियों को पुनर्जीवित करने व उदास कुटिया की हरियाली को बनाए रखने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चंपा देवी व उनके कर्मयोंगी समर्थ पुत्र-पुत्रियों कुन्दन कुमार झा, विद्यापति झा, नूतन झा, आशीष कुमार झा, पवन कुमार झा व अन्य के संयुक्त पहल व प्रयास से गठित सतीश स्मृति मंच के तत्वावधान में पिछले 9 वर्षों से उनके जन्मदिन 29 जनवरी को प्रतिवर्ष श्रद्धांजलि सभा, विचार गोष्ठी व सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता रहा है। इस कार्यक्रम में अंग क्षेत्र, संताल परगना व शेष झारखण्ड के अलग-अलग हिस्सों से स्वनामधन्य कवियों, साहित्यकारों, लेखकों का जुटान होता है जिनकी उपस्थिति में एक ऐसे साहित्यकार को स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र, अंगवस्त्र व नकद राशि से सम्मानित किया जाता है, आमंत्रित कृतियों में जिनकी कृति भिन्न विशेषताओं से युक्त होती है। सतीश स्मृति विशेष सम्मान से भी कई-कई साहित्यकारों को इस अवसर पर नवाजा गया है। साहित्यकारों की कृतियों पर पूरी पारदर्शिता के साथ निर्णायक मंडल की स्वीकृति/ सहमति अनिवार्य होती है। अभिभावक तुल्य प्रो0 मनमोहन मिश्र जी के अनन्यतम योगदान व उनके आर्शीवाद से यह संस्था लगातार अपनी छटा बिखेरता रहा है। उनका मार्गदर्शन आज भी निर्विवाद जारी है।  

लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार व अंगिका भाषा के महाकवि स्व0 सुमन सुरो, प्रो0 ताराचंद खवाड़े, श्री शंभू नाथ मिस्त्री, डा0 रामवरण चैधरी, डा0 शंकर मोहन झा, डा0 प्रमोदनी हांसदा, जैसे विद्वतजनों सहित युवा कवियों यथा-अशोक सिंह, राजीव नयन तिवारी, उमाशंकर उरेन्दु व अमरेन्द्र सुमन का अथक सहयोग व समर्थन भी इस संस्था को निःस्वार्थ भाव से प्राप्त होता रहा है। फिलवक्त कई ऐसे युवा व उर्जावान कवि/ साहित्यकार हैं, जिनमें सतीश स्मृति मंच से जुड़कर साहित्य की धारा को अविरल बनाए रखने की प्रतिबद्धता देखी जा रही है। विदित हो, इस मंच के तत्वावधान में वर्ष 2009 में अंगिका खण्डकाव्य ’कागा की संदेश उचारे के लिये डा0 अनिरुद्ध प्र0  विमल व ’सांवरी’ सहित अन्य कृतियों के लिये धनंजय मिश्र को सतीश स्मृति सम्मान से नवाजा गया था। वर्ष 2010 में हिन्दी व अंगिका साहित्य में उत्कृष्ट योगदान व अनवरत सेवा के लिये डा0 अमरेन्द्र को सम्मानित किया गया था। वर्ष 2011 में उपन्यास ’कुँवर नटुआ दयाल’ के लिये श्री रंजन को व वर्ष 2012 में गजल संग्रह ’दर्द के गाँव’ के लिये अरविंद अंशुमन को सतीश स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष गोपाल कृष्ण प्रज्ञ को अंगिका साहित्य में अमूल्य योगदान के लिये सतीश स्मृति विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2013 में डा0 प्रतिभा राजहंस को उनके उपन्यास प्रतिशोध के लिये जहाँ एक ओर सम्मानित किया गया था, वहीं दूसरी ओर हिन्दी साहित्य की अमूल्य सेवा के लिये स्व0 डा0 श्याम सुन्दर घोष को सतीश स्मृति विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया था। सतीश स्मृति सम्मान समारोह की इसी कड़ी में वर्ष 2014 में आयोजित कार्यक्रम में हेना चक्रवर्ती को उनकी कविता संग्रह ’आना पीयूष बन के’ के लिये सम्मानित किया गया था। हिन्दी साहित्य की निरंतर सेवा व महत्वपूर्ण प्रकाशनों के लिये उत्तम पीयूष को इसी अवसर पर सतीश स्मृति विशेष सम्मान से नवाजा गया था। वर्ष 2015 में सतीश स्मृति मंच की ओर से प्रहलाद चंद दास को कहानी संग्रह ’पराये लोग’ के लिये सतीश स्मृति सम्मान व हिन्दी साहित्य की निरंतर सेवा व उनकी कविता संग्रह ’तुम्हारे शब्दों से अलग’ के लिये सतीश स्मृति विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया था। सतीश स्मृति मंच के तत्वावधान में वर्ष 2016 में प्रतिभा प्रसाद को सतीश स्मृति सम्मान से नवाजा गया था।  

मालूम हो, वर्ष 2011 में क्वार्टर पाड़ा स्थित सतीश चैरा में सतीश स्मृति मंच के तत्वावधान में स्व0 सतीश चन्द्र झा के जन्मदिन (29 जनवरी) के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में ’’साहित्य और समाज’’ विषयक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था, जबकि वर्ष 2012 में ’’कविता का पारंपरिक काव्य-शिल्प और समकालीन कविता’’ पर आयोजित था यह कार्यक्रम। वर्ष 2013 में ’’समकालीन कविता एवं काव्य संस्कार’’ पर केन्द्रित कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जबकि वर्ष 2014 में ’’समकालीन कविताः दशा एवं दिशा’’ गोष्ठी समारोह का मुख्य विषय रखा गया था। वर्ष 2015 में मंच ने ’’हिन्दी कविता के पचास वर्ष एवं अंग जनपद के कवियों का योगदान’’, विषय पर केन्द्रित कार्यक्रम का आयोजन किया था, जबकि वर्ष 2016 में ’’समकालीन साहित्य में पीढ़ियों का अंतराल’’ विषय पर। 

आखिरी टेस्ट को रद्द कर देना चाहिए था एल्गर

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जोहानिसबर्ग 28 जनवरी, दक्षिण अफ्रीका के लिये तीसरे टेस्ट की चौथी पारी में नाबाद 86 रन की पारी खेलने वाले सलामी बल्लेबाज डीन एल्गर ने कहा कि पिच पर असमान उछाल के कारण वहां जोखिम लेने लायक स्थिति नहीं थी और इस मैच को रद्द किया जाना चाहिए था। तीसरे दिन दक्षिण अफ्रीकी पारी के नौवें ओवर में गेंद एल्गर के हेलमेट पर लगी जिसके बाद मैच अधिकारियों ने खेल को रोक दिया, हालांकि अगले दिन दोनों कप्तानों और मैच अधिकारियों के बीच विचार-विमर्श के बाद चौथे दिन फिर से खेल शुरू हुआ।  एल्गर ने कहा, ‘‘ मैं ऐसा सोचता हूं ( मैच को पहले ही रद्द कर दिया जाना चाहिये था।)। तीसरे दिन विकेट अच्छा नहीं था। बल्लेबाजों को कई बार चोट लगी। इसे जल्द ही रद्द किया जाना चाहिये था।’’  ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिल ह्यूज की नवंबर 2014 में गेंद सिर में लगने से हुई मौत की ओर इशारा करते हुए एल्गर ने कहा, ‘‘ हमारे सामने ऐसा मामला है जब गेंद सिर में लगी, यहां ऐसी घटना हो सकती थी जैसा कि ऑस्ट्रेलिया में हुआ। लोग टेस्ट क्रिकेट देखना चाहते है लेकिन हम भी इंसान है।’’  उन्होनें कहा, ‘‘ हमे ये स्वीकार नहीं है कि हम चोटिल हो और वहां गेंद के सामने शरीर लाये। इस स्थिति से जल्दी निपटा जा सकता था।’’  एल्गर ने कहा कि उन्होंने कभी वांडरर्स में ऐसा असमान्य उछाल नहीं देखा था और अगर अंपायर इस मैच को जल्दी रद्द करने की घोषणा करते तो मैं मैदान छोड़ने पर खुश होता। उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने पहले भी कई तेज गेंदबाजों का सामना किया है और मुझे पता है कि वांडरर्स की विकेट पर उछाल होती है, लेकिन मैने कभी ऐसा अनुभव नहीं किया। जिसकी वजह से अंपायरों के मन में भी संदेह था।’’

फेडरर ने आस्ट्रेलियन ओपन ट्राफी जीती, 20वां ग्रैंडस्लैम खिताब अपने नाम किया

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मेलबर्न, 28 जनवरी, रोजर फेडरर ने पांच सेट तक चले फाइनल में क्रोएशिया के छठे वरीय सिलिच को हराकर छठी आस्ट्रेलियाई ओपन ट्राफी और 20वां ग्रैंडस्लैम खिताब अपने नाम किया।  स्विट्जरलैंड के गत चैम्पियन फेडरर ने राड लावेर एरीना में तीन घंटे तीन मिनट तक चले फाइनल में 6-2, 6-7, 6-3, 3-6, 6-1 से जीत दर्ज की। उन्होंने इस दौरान टूर्नामेंट का अपना एकमात्र सेट गंवाया।  अपना 30वां ग्रैंडस्लैम फाइनल खेलने वाले फेडरर इस तरह नोवाक जोकोविच और आस्ट्रेलिया के महान रॉय इमर्सन के साथ सबसे ज्यादा आस्ट्रेलियाई ओपन पुरूष खिताब जीतने वाले खिलाड़ियों की सूची में शामिल हो गये। इस तरह उनका मेलबर्न में जीत-हार का रिकार्ड 94-13 हो गया है। उनका ग्रैंडस्लैम में यह रिकार्ड 332-52 है। टूर्नामेंट की ‘हीट पालिसी (तापमान संबंधित नीति)’ के अंतर्गत छत को ढक दिया गया क्योंकि शाम का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था। फेडरर ने छह महीने चोटिल होने के बाद पिछले साल वापसी शुरू की जिसके बाद उनका सफर शानदार चल रहा है। चार वर्षों तक वह कोई मेजर खिताब अपनी झोली में नहीं डाल सके थे लेकिन अब उन्होंने पिछले पांच ग्रैंडस्लैम से तीन में जीत दर्ज की। छत्तीस वर्षीय फेडरर ने इस तेजी और स्फूर्ति से शुरूआत की कि सिलिच भी हैरान रह गये। उन्होंने पहले और तीसरे गेम में सर्विस ब्रेक की और अपने प्रतिद्वंद्वी को महज 12 अंक के बाद नया रैकेट लेने पर बाध्य कर दिया। फेडरर ने शुरूआती सेट में केवल दो अंक गंवाये जो सिर्फ 24 मिनटतक चला। लेकिन सिलिच ने अपने बड़े फोरहैंड की बदौलत दूसरे सेट में वापसी की। हालांकि 10वें गेम में फेडरर की सर्विस पर सेट प्वाइंट गंवाने के बाद उन्होंने टाईब्रेकर में बराबरी हासिल कर मैच को 1-1 से बराबर कर लिया।

आफ्सपा पर किसी पुनर्विचार का समय नहीं आया : सेना प्रमुख

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नयी दिल्ली, 28 जनवरी, सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कहा है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफ्सपा) पर किसी पुनर्विचार या इसके प्रावधानों को हल्का बनाने का समय नहीं आया है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना गड़बड़ी वाले जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में काम करते समय मानवाधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त सावधानी बरती रही है। रावत की टिप्पणियां काफी महत्व रखती हैं क्योंकि ये इन खबरों के मद्देनजर आई हैं कि आफ्सपा के ‘‘कुछ प्रावधानों को हटाने या हल्का करने’’ पर रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय के बीच कई दौर की उच्चस्तरीय चर्चा हुई है। यह कानून गड़बड़ी वाले क्षेत्रों में विभिन्न अभियान चलाते समय सुरक्षाबलों को विशेष अधिकार और छूट प्रदान करता है। जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर में विभिन्न तबकों की ओर से इस कानून को हटाने की लंबे समय से मांग होती रही है। जनरल रावत ने एक साक्षत्कार में कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि इस वक्त आफ्सपा पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है।’’   उनसे इन खबरों के बारे में पूछा गया था कि सरकार इन राज्यों में आफ्सपा के हल्के स्वरूप की मांग को लेकर समीक्षा कर रही है। सेना प्रमुख ने कहा कि आफ्सपा में कुछ कठोर प्रावधान हैं, लेकिन सेना अधिक नुकसान को लेकर और यह सुनिश्चित करने को लेकर चिंतित रहती है कि कानून के तहत उसके अभियानों से स्थानीय लोगों को असुविधा न हो।

उन्होंने कहा, ‘‘हम (आफ्सपा के तहत) जितनी कठोर कार्रवाई की जा सकती है, उतनी कठोर कार्रवाई नहीं करते हैं। हम मानवाधिकारों को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। हम निश्चित तौर पर अधिक नुकसान को लेकर चिंतित रहते हैं। इसलिए ज्यादा चिंता न करें, क्योंकि हम पर्याप्त कदम और सावधानी बरतते हैं।’’  जनरल रावत ने कहा कि सेना के पास यह सुनिश्चित करने के लिए हर स्तर पर कार्य नियम होते हैं कि आफ्सपा के तहत कार्रवाई करते समय लोगों को कोई असुविधा न हो। उन्होंने कहा, ‘‘आफ्सपा सक्षम बनाने वाला एक कानून है जो सेना को विशेष तौर पर काफी कठिन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति देता है और मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि सेना का काफी अच्छा मानवाधिकार रिकॉर्ड रहा है।’’  यह पूछे जाने पर कि जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने के लिए क्या सेना के तीनों अंगों को शामिल कर संयुक्त दृष्टिकोण अपनाने का समय आ गया है, रावत ने कोई सीधा उत्तर नहीं दिया, लेकिन कहा कि सशस्त्र बलों के पास विभिन्न तरह के अभियान चलाने के लिए ‘‘विकल्प उपलब्ध’’ होते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हां विभिन्न तरह के अभियानों को अंजाम देने के लिए हमारे पास विकल्प होते हैं, लेकिन हमारे द्वारा किए जाने वाले अभियानों की प्रकृति की वजह से इन्हें उजागर नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे केवल दूसरा पक्ष सतर्क होगा।’’  जनरल रावत ने कहा कि आप अभियान की योजना बनाते हैं तो यह सर्वश्रेष्ठ होता है कि सुरक्षाबल जिस ढंग से अभियान चलाना चाहते हैं, वह उन्हीं पर छोड़ दिया जाए। जिस ढंग से अभियान किया जाना हो और जिस तरह से उस पर योजना बनानी हो और जिस तरह से उन्हें अंजाम दिया जाना हो, यह कभी उजागर नहीं किया जाता। यह पूछे जाने पर कि जम्मू कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए क्या बाह्य और आंतरिक खुफिया जानकारी जुटाने के लिए तालमेल की आवश्यकता है, रावत ने कहा कि सशस्त्र बल और अन्य एजेंसियां एक होकर काम करती रही हैं। सेना प्रमुख ने कहा, ‘‘इस मोड़ पर खुफिया एजेंसियों के बीच हमारा जिस तरह का सहयोग है, वह काफी उच्च दर्जे का है। आज सभी खुफिया एजेंसियां और सुरक्षाबल एक होकर काम कर रहे हैं। हम सभी के बीच शानदर तालमेल है और मुझे नहीं लगता कि इस समय जो हो रहा है, उससे हम इसे अगले उच्च स्तर पर ले जाएं। मुझे लगता है कि यह सर्वश्रेष्ठ और सही तरीका है।’’

कासगंज में तनावपूर्ण शांति, अब तक 80 लोग गिरफ्तार

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कासगंज, 28 जनवरी, गणतंत्र दिवस पर उत्तर प्रदेश के कासगंज में दो समुदायों के बीच हिंसा के बाद इलाके में तनावपूर्ण शांति बनी हुई है। हालात सुधारने के उपायों पर चर्चा के लिये आज शांति समिति की बैठक हुई। अलीगढ़ जोन के पुलिस महानिरीक्षक संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि हालात को पटरी पर लाने के भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। हालांकि आज शहर के नदरई गेट इलाके के बाकनेर पुल के पास एक गुमटी में आग लगा दी गयी। नामजद आरोपियों के घरों पर दबिश दी जा रही है।  पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि हिंसा में शामिल लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की तामील की जाएगी। अब तक 80 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। घर-घर में तलाशी ली जा रही है। कुछ जगहों से विस्फोटक तत्व बरामद हुए हैं। सिंह ने कहा कि गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय पर्व है और इसे मनाने के लिये किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है। इस बीच, हालात के मद्देनजर कासगंज में शांति समिति की बैठक आयोजित की गयी।  आगरा जोन के अपर पुलिस महानिदेशक अजय आनन्द ने बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में दावा कि शहर में डर का माहौल नहीं है। पुलिस ने वारदात पर रोक लगायी है और घटनाओं में शामिल किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है।  उन्होंने कहा कि शांति समिति की बैठक में शहर के गणमान्य लोग शामिल थे और बैठक में तय किया गया कि सभी दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें खोलेंगे।

आगरा के मण्डलायुक्त सुभाष चन्द्र शर्मा ने कहा कि बैठक के दौरान सभी पक्षों ने अपना-अपना नजरिया पेश किया और मौजूदा हालात को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। प्रशासन ने उनकी हरसम्भव मदद का आश्वासन दिया है। बैठक में शामिल लोगों से अपने-अपने इलाकों में निगरानी रखने को कहा गया है। शर्मा ने कहा कि दुकानदारों से कहा गया है कि वे अपने-अपने प्रतिष्ठान खोलें। प्रशासन सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। दुकानें खुलेंगी तो हालात धीरे-धीरे सामान्य हो जाएंगे। जिला प्रशासन वीडियो फुटेज के आधार पर उपद्रवियों को चिह्नित कर रहा है और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। इस बीच, प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कासगंज में हुई घटना को दुखद बताते हुए इसकी निन्दा की। उन्होंने कहा कि जो लोग भी इसके लिये दोषी हैं, उनमें से एक भी व्यक्ति नहीं बख्शा जाएगा।  उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद हालात की समीक्षा की है। अपराधी चाहे जितना बड़ा या प्रभावशाली हो, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कुछ लोग लूटपाट कराने और आपसी मतभेद कराने कोशिश कर रहे हैं। दंगे करने वालों के साथ-साथ फसाद की साजिश करने वाले भी दण्डित होंगे। मालूम हो कि गणतंत्र दिवस पर विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा कासगंज के बड्डूनगर में मोटरसाइकिल रैली निकाले जाने के दौरान दोनों पक्षों के बीच पथराव और गोलीबारी हुई थी, जिसमें एक युवक की मौत हो गयी थी तथा एक अन्य जख्मी हो गया था। वारदात के दूसरे दिन भी शहर में हिंसा जारी रही। उपद्रवियों ने तीन दुकानों, दो निजी बसों और एक कार को आग के हवाले कर दिया था। प्रशासन ने आज रात दस बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं।  आगरा जोन के अपर पुलिस महानिदेशक, अलीगढ के मंडलायुक्त, अलीगढ रेंज के पुलिस महानिरीक्षक लगातार मौके पर हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ही होंगे : वशिष्ठ नारायण सिंह

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पटना, 28 जनवरी, बिहार में भाजपा के साथ सत्ताधारी पार्टी जदयू ने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव 2019 में एक साथ संभव नहीं बताते हुए आज स्पष्ट कर दिया कि विधानसभा का चुनाव 2020 में ही होंगे। जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार की अध्यक्षता में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के बाद जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और कोषाध्यक्ष रणवीर नंदन के साथ आज पत्रकारों को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव :संगठन: आरसीपी सिंह ने चुनाव खर्च को कम करने के लिए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराये के लिए हमारी पार्टी सैद्धांतिक तौर पर सहमत है। उन्होंने कहा कि ऐसा पूरे देश में हो और यह नहीं कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव करा दिया जाये।

सिंह ने कहा कि बिहार विधानसभा का चुनाव अपने निर्धारित समय 2020 में ही होगा और हमारी पार्टी दोनों चुनावों को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी भी कर रही है। यह पूछे जाने पर अगर 2019 में लोकसभा के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव अगर होता है तो क्या उसके लिए आपकी पार्टी तैयार है, सिंह ने कहा कि अभी गुजरात में चुनाव हुए और क्या वहां के विधानसभा का चुनाव लोकसभा के साथ कराया जाना संभव था। उन्होंने कहा कि उसी प्रकार से भविष्य में नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है, तो क्या इन स्थानों का चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराया जाना संभव है। सिंह ने कहा कि हर प्रदेश की अपनी अलग अलग परिस्थितियां हैं उसके अनुसार लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव को तुरंत लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा का चुनाव 2020 में ही होगा, 2019 में नहीं हो सकता है।

भ्रष्टाचार एवं कालेधन के खिलाफ लड़ाई नहीं रुकेगी : प्रधानमंत्री

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नयी दिल्ली, 28 जनवरी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जोर देकर कहा कि भ्रष्टाचार एवं कालेधन के खिलाफ लड़ाई भारत के युवाओं के भविष्य की लड़ाई है और यह लड़ाई नहीं रुकेगी, भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी व्यक्ति अब बच नहीं पायेगा। एनसीसी के एक समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय था जब भ्रष्टाचार की चर्चा होती थी और लोग मानते थे कि बड़े-बड़े लोगों का कुछ नहीं होता है। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। आज भ्रष्टाचार के कारण तीन पूर्व मुख्यमंत्री जेल में हैं। उन्होंने कहा कि आज देश का नौजवान भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। भ्रष्टाचार के प्रति नफरत का भाव समाज में पैदा हो गया है। मोदी ने कहा कि लेकिन सिर्फ भ्रष्टाचार से नफरत करने, रोष प्रकट करने से काम नहीं चलेगा । फिर तो लड़ाई लम्बी चलानी पड़ेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह लड़ाई रुकने वाली नहीं है । भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई देश के नौजवानों के भविष्य के लिये है। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई नहीं रुकेगी । उन्होंने कहा कि वह देश के नौजवानों, एनसीसी कैडेटों से कुछ मांगना चाहते हैं और उन्हें उम्मीद है कि वे उन्हें निराश नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि वह न तो वोट मांग रहे हैं और न ही राजनीतिक मंच से कुछ कह रहे हैं । ‘‘ मैं आपसे भारत को भ्रष्टाचार रूपी दीमक से मुक्ति दिलाने की अपील कर रहा हूं।’’ मोदी ने कहा कि वह अपील कर रहे हैं कि जवाबदेही और पारदर्शिता से जुड़ी डिजिटल लेनदेन की पहल से 100 नये परिवारों को जोड़ें । प्रधानमंत्री ने एनसीसी कैडेटों समेत युवाओं से अपने मोबाइल पर भीम ऐप डाउनलोड करने और डिजिटल लेनदेन करने की अपील की । उन्होंने इस संबंध में पारदर्शिता लाने में आधार की भूमिका का भी जिक्र किया।

बिहार : मंदिर के प्रमुख पुजारी की हत्या

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हाजीपुर, 28 जनवरी, बिहार के वैशाली जिला के राघोपुर थाना क्षेत्र में कल देर रात अज्ञात अपराधियों ने एक मंदिर के मुख्य पुजारी की गोली मारकर हत्या कर दी जबकि उनके एक अनुयायी को गंभीर रूप से जख्मी कर दिया। राघोपुर थाना अध्यक्ष रूपेश कुमार ने बताया कि मृतक का नाम मौनी बाबा (65) है और वे राम जानकी मठ मंदिर के मुख्य पुजारी थे। उन्होंने बताया कि गंभीर रूप से जख्मी छोटानाथ दास को बेहतर इलाज के लिए पटना स्थित नालंदा मेडिकल कालेज अस्पताल भेजा गया है। रूपेश ने बताया कि मौनी बाबा के एक अनुयायी परिमणि राय जो उक्त मंदिर की छत पर सो रहे थे। सुबह उठने पर अपने गुरू को मृत और छोटन दास को जख्मी पाकर इसकी सूचना पुलिस को दी। उन्होंने बताया कि मौनी बाबा 25 साल पहले इस क्षेत्र में आए थे और राम जानकी मठ की स्थापना की थी और उक्त मंदिर के महंत के पद पर भी आसीन थे।

सीलिंग अभियान के विरोध में आप नेता संसद तक मार्च करेंगे

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नयी दिल्ली, 28 जनवरी, राष्ट्रीय राजधानी में बाजारों में सीलिंग अभियान को रोकने के लिए केंद्र के त्वरित और ठोस कदम की मांग करते हुए आप नेता कल संसद तक मार्च करेंगे । संसद का बजट सत्र कल शुरू हो रहा है । आप की दिल्ली इकाई के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने बताया कि उनकी पार्टी कहती रही है कि दिल्ली में मौजूदा सीलिंग अभियान कन्वर्जन चार्ज को लेकर होना था और दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के तहत जरूरी है। भारद्वाज ने कहा ये दोनों (कन्वर्जन चार्ज और दिल्ली मास्टर प्लान 2021) नगर निगमों और दिल्ली विकास प्राधिकरण के दायरे में हैं । भारद्वाज ने कहा कि आप नेता कल संसद तक मार्च करेंगे और इस संबंध में अध्यादेश लाने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने का प्रयास करेंगे ।

अभिनेत्री तमन्ना भाटिया पर जूता फेंका गया

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हैदराबाद, 28 जनवरी, हैदराबाद के हिमायतनगर इलाके में एक कार्यक्रम के दौरान अभिनेत्री तमन्ना भाटिया पर आज 31 वर्षीय व्यक्ति ने कथित पर जूता फेंका। तमन्ना ने ‘बाहुबली फिल्म में काम किया है। पुलिस ने बताया कि अभिनेत्री पर जूता तब फेंका गया जब वह जेवरातों के एक स्टोर का उद्घाटन कर रही थी।  उन्होंने बताया कि जूता स्टोर के एक कर्मचारी को लगा। नारायणगुडा थाने के इंस्पेक्टर बी रविंद्र ने कहा कि बीटेक में स्नातक और मुशीराबाद के रहने वाले करीमुल्लाह ने तमन्ना पर कथित रूप से तब जूता फेंका जब वह स्टोर से बाहर आ रही थीं। इंस्पेक्टर ने बताया, ‘‘ करीमुल्लाह को तुरंत हिरासत में ले लिया गया और पूछताछ में उसने बताया कि वह अभिनेत्री द्वारा हाल की फिल्मों में निभाई गई भूमिकाओं को लेकर निराश था।’’  उन्होंने बताया कि जिस कर्मी को जूता लगा था उसकी शिकायत पर आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।  तमन्ना ने हिन्दी, तेलुगू और तमिल फिल्मों में काम किया है।

दरभंगा : छात्र संघ चुनाव की तैयारी जोरों पर

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दरभंगा (आर्यावर्त डेस्क), 28 जनवरी ,ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव को लेकर कार्यक्रम चल रही है. इसी कड़ी में आज मतदाता सूची का प्रकाशन किया गया है. इधर प्रकाशित मतदाता सूची को बेवसाईट पर अपलोड करने के लिए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रतन कुमार चौधरी ने सभी अंगीभूत महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के संकायों को निर्देश देते हुए कहा है कि बेवसाईट पर डाल देने से छात्रों को इसे डाउनलोड करने में कठिनाई नहीं होगी. वहीं छात्र संगठनों द्वारा चुनाव को लेकर बनाये गये नियमावली पर आपत्ति दर्ज कराने के बाद भी छात्र संगठनों द्वारा चुनाव की तैयारी चल रही है. महाविद्यालयों में इसके लिए संचालन समिति गठित की गई है. चुनाव में सभी दल से संबंधित छात्र संगठन अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. जिसको लेकर अभी से छात्रों के बीच गहमा-गहमी बनी हुई है. छात्र संगठनों के अलावे संबंधित मुख्य दलों की ओर से भी दात्र संघ चुनाव में दिलचश्पी ली जा रही है. जिसको लेकर चुनाव रोचक रूप लेता जा रहा है.

मधुबनी : टी 20 क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घटन किया गया

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अंधराठाढ़ी/मधुबनी (मोo आलम अंसारी) अंधराठाढी मदरसा हंसिया अरबी कॉलेज जमैला गीदरगंज के मैदान में रविवार को बरकत अली टी 20 टूर्नामेंट का उद्घाटन हुआ। प्रखंड राजद अध्यक्ष सह मुखिया पति मोo कमरुजम्मा उद्घाटक थे। एम सी सी क्रिकेट क्लब इस का आयोजक है । टूर्नामेंट के प्रथम दिन चनोरा गंज  बनाम अंधराठाढी टीमों का भिरान्त हुआ। चनोरागंज ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाजी करने  का निर्णय लिया।चनोरागंज ने मात्र 58 रण पर सिमट गई अंधराठाढी ने 9 अभर में 4 विकेट खोकर मैच को जीत ली  आयोजन समिति के मोo मुन्ना पसन्स  मोo शाकिर अली ,फिरोज, मंजर ,शकील ,अरमान, नौशाद, ग़ालिब, सोनी , दस्तगीर , शमशाद, तूफान, तौसीफ राशिद आदि ने बताया कि फाइनल विजेता को सील के साथ नगद 15000 हजार दिए जाएंगे। उप विजेता टीम को कप के साथ ₹8 हजार 100 सौ मिलेंगे उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि मोo जियाउद्दीन थे।

'पद्मावत'देख लगा, जैसे मैं 'योनि'मात्र हूं : स्वरा भास्कर

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मुंबई, 28 जनवरी, अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावत'देखने के बाद बेहद तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा, "फिल्म देखने के बाद मैं खुद को योनि मात्र महसूस कर रही हूं।"  मुंब उन्हें लगता है कि इस फिल्म ने यह सवाल उठाया है कि विधवा, दुष्कर्म पीड़िता, युवती, वृद्धा, गर्भवती या किसी किशोरी को जीने का अधिकार है या नहीं। शनिवार रात 'द वायर'पर प्रकाशित उनके खुले पत्र में स्वरा ने फिल्म में 'सती'और 'जौहर'जैसी आत्मबलिदान के रिवाजों के महिमामंडन की निंदा की। 'अनारकली ऑफ आरा'की अभिनेत्री ने भंसाली को इतनी परेशानियों के बावजूद 'पद्मावत'को रिलीज करने के लिए बधाई देते हुए अपने पत्र की शुरुआत की। इस दौरान पत्र में उन्होंने कुछ ऐसा लिखा कि जिसके लिए सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ाया जाने लगा। अभिनेत्री ने फिल्म देखने के बाद अपनी चिंताएं सोशल मीडिया पर बांटने का निश्चय किया। उन्होंने दो टूक कहा कि फिल्म 'पद्मावत'ने उन्हें स्तब्ध कर दिया। उन्होंने लिखा, "आपकी महान रचना के अंत में मुझे यही लगा। मुझे लगा कि मैं एक योनि हूं। मुझे लगा कि मैं योनि तक सीमित होकर रह गई हूं।"उन्होंने लिखा, "मुझे ऐसा लगा कि महिलाओं और महिला आंदोलनों को वर्षो बाद जो सभी छोटी उपलब्धियां, जैसे मतदान का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, 'समान काम समान वेतन'का अधिकार, मातृत्व अवकाश, विशाखा आदेश का मामला, बच्चा गोद लेने का अधिकार मिले.. सभी तर्कहीन थे। क्योंकि हम मूल प्रश्न पर लौट आए।"

उन्होंने लिखा, "हम जीने के अधिकार के मूल प्रश्न पर लौट आए। आपकी फिल्म देखकर लगा कि हम उसी काले अध्याय के प्रश्न पर ही पहुंच गए हैं कि क्या विधवा, दुष्कर्म पीड़िता, युवती, वृद्धा, गर्भवती, किशोरी को जीने का अधिकार है?"उन्होंने जोर देते हुए कहा कि महिलाओं को दुष्कर्म के बाद पति, पुरुष रक्षक, मालिक और महिलाओं की सेक्सुएलिटी तय करने वाले, आप उन्हें जो भी समझते हों, उनकी मृत्यु के बाद भी महिलाओं को स्वतंत्र होकर जीने का हक है। उन्होंने फिल्म के आखिरी दृश्य को बहुत ज्यादा असहज बताया, जिसमें अभिनेत्री दीपिका पादुकोण (रानी पद्मावती) कुछ महिलाओं के साथ जौहर कर रही थीं। उन्होंने कहा, "महिलाएं चलती फिरती योनि मात्र नहीं हैं। हां, उनके पास योनि है, लेकिन उनके पास उससे भी ज्यादा बहुत कुछ है। उनकी पूरी जिंदगी योनि पर ही ध्यान केंद्रित करने, उस पर नियंत्रण करने, उसकी रक्षा करने और उसे पवित्र बनाए रखने के लिए नहीं है।"उन्होंने कहा, "अच्छा होता अगर योनि सम्मानित होती। लेकिन दुर्भाग्यवश अगर वह पवित्र नहीं रही तो उसके बाद महिला जीवित नहीं रह सकती, क्योंकि एक अन्य पुरुष ने बिना उसकी सहमति के उसकी योनि का अपमान किया है।"उन्होंने लिखा कि योनि के अलावा भी दुनिया है, इसलिए दुष्कर्म के बाद भी वे जीवित रह सकती हैं। सपाट शब्दों में कहें, तो जीवन में योनि के अलावा भी बहुत कुछ है।

स्वरा ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि भंसाली अपनी इस फिल्म में 'सतीप्रथा'और 'जौहर'की कुछ हद तक निंदा करेंगे। उन्होंने लिखा, "आपका सिनेमा मुख्य रूप से प्रेरणाशील, उद्बोधक और शक्तिशाली है। यह अपने दर्शकों की भावनाओं को नियंत्रित करता है। यह सोच को प्रभावित कर सकता है और सर, आप अपनी फिल्म में जो दिखा रहे हैं और बोल रहे हैं, इसके लिए सिर्फ आप ही जिम्मेदार हैं।"पत्र के अंत में उन्होंने लिखा, "स्वरा भास्कर, जीवन की आकांक्षी"।

सीबीएफसी को खत्म कर दिया जाए : मनीष तिवारी

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नई दिल्ली, 28 जनवरी, कांग्रेस सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे मनीष तिवारी ने रविवार को कहा कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को खत्म कर दिया जाना चाहिए।  तिवारी ने ट्वीट किया, "मेरी समझ से प्रसून जोशी को जयपुर साहित्य उत्सव में ससम्मान शामिल होना चाहिए। अच्छे लोगों को बुराई को अच्छाई तक लाने के लिए कुछ नहीं करना होता है। मैं मानता हूं कि फिल्म प्रमाणन बोर्ड को खत्म कर देना चाहिए। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जैसे मुद्गल कमेटी के साथ किया था। जब तक फिल्म प्रमाणन बोर्ड है, तब तक मंत्रालय और बोर्ड को इसकी गरिमा का सम्मान करते रहना चाहिए।"कांग्रेस नेता ने करणी सेना की धमकी मिलने के बाद फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी द्वारा जयपुर साहित्य उत्सव में शामिल होने का कार्यक्रम रद्द करने के संदर्भ में यह बयान दिया। करणी सेना ने प्रसून जोशी द्वारा फिल्म 'पद्मावत'को हरी झंडी देने के कारण उन्हें जयपुर साहित्य उत्सव में शामिल नहीं होने की धमकी दी थी।

इससे पहले जोशी ने 'पद्मावत'मुद्दे पर बयान दिया था, "मैंने अपना काम किया और ईमानदारी से संतुलित निर्णय लिया। जैसा कि मैं पहले ही बोल चुका हूं कि फिल्म का प्रमाणन एक निश्चित प्रक्रिया के तहत होता है, जिसमें समाज और फिल्म की कहानी को ध्यान में रखकर सभी जायज सुझावों पर विचार किया जाता है।"सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संजय लीला भंसाली की 'पद्मावत'को भारत भर में रिलीज की अनुमति मिलने के बाद भी यह फिल्म कुछ राज्यों में रिलीज नहीं हो सकी है। इसलिए जहां भी इस फिल्म का प्रदर्शन हो रहा है, उन सिनेमाघरों में लंबी कतारें लगी हुई हैं।

महिला पत्रकार को बयान बदलने पर मजबूर किया गया : रमेश चेन्निथला

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तिरुवनंतपुरम, 28 जनवरी, कांग्रेस ने केरल की सत्तारूढ़ वाम सरकार की नकली नैतिकता बघारने की आलोचना करते हुए रविवार को कहा कि उस महिला पत्रकार को बयान बदलने पर मजबूर किया गया, जिसने राकांपा नेता ए.के. ससींद्रन के खिलाफ अश्लील बातें करने के लिए एक मामला दायर किया था।  ससींद्रन को शनिवार को इस मामले में बरी कर दिया गया। महिला पत्रकार द्वारा अपने बयान से पीछे हटने के बाद यहां एक निजी अदालत ने शनिवार को ससींद्रन को बरी कर दिया। मार्च 2017 में ससींद्रन ने एक ऑडियो क्लिप के बाहर आने के बाद परिवहन मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। क्लिप में उन्हें एक महिला पत्रकार से अभद्र भाषा में बात करते हुए सुना जा सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि यह अजीब है कि केरल में वामदल हमेशा नैतिकता की बात करते हैं, लेकिन ससींद्रन के पक्ष में फैसला आने से वामदल की स्थिति का खुलासा हो चुका है।

नेता प्रतिपक्ष चेन्निथला ने कहा, "जो अदालत में हुआ वह एक नाटक था। जब क्लिप टीवी पर प्रसारित किया गया तब हम सभी ने ससींद्रन की आवाज सुनी और जव वह खबर प्रसारित हुई, तब ससींद्रन ने यह नहीं कहा कि यह उनकी आवाज नहीं है। उन्होंने अपना पद छोड़ दिया। यह दोष की भावना थी, जिसने उन्हें अपना पद छोड़ने पर मजबूर किया।"पिछले साल एक टीवी चैनल ने ससींद्रन के ऑडियो क्लिप को प्रसारित किया था, जिसके बाद पत्रकार ने उनके खिलाफ अदालत में एक याचिका दायर की थी। लेकिन पिछले सप्ताह पत्रकार ने अदालत में कहा कि ससींद्रन ने कभी उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया और न ही उन्हें पता है कि जिसने फोन पर उनसे बात की, वह ससींद्रन ही थे। इसी बयान के कारण अदालत ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता को बरी कर दिया। राकांपा नेतृत्व से मिलने और कैबिनेट में दोबारा शामिल होने के लिए दिल्ली जाने से पहले रविवार को ससींद्रन ने मीडिया से कहा कि वह खुशी और राहत महसूस कर रहे हैं। अपने अगले कदम पर उन्होंने कहा, "मेरी पार्टी का नेतृत्व ही फैसला लेगा और वह हमारी पार्टी के लिए फायदेमंद होगा।"

प्रधानमंत्री ने बिहार की 13000 किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला को सराहा

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नई दिल्ली, 28 जनवरी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को बिहार सरकार द्वारा राज्य में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ विश्व की सबसे लंबी मानव श्रंखला बनाने के प्रयास की सराहना की। यह श्रंखला करीब 13,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबी थी। स्वसशक्तीकरण और आत्म सुधार भारतीय समाज की मुख्य बातें हैं, जिनपर जोर देते हुए मोदी ने कहा, "कुछ दिन पहले बिहार ने एक अनूठी पहल की। समाजिक कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए राज्य में एक 13 हजार किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला बनाई गई।"मोदी ने अपने मासिक मन की बात कार्यक्रम के 40वें संस्करण में कहा, "इस पहल के माध्यम से लोगों ने बाल विवाह, दहेज प्रथा के साथ दूसरे मुद्दों को उठाया।"इस पहल में सभी उम्र के और स्तर के लोगों ने हिस्सा लिया, जो 21 जनवरी को पटना के गांधी मैदान से शुरू हुई थी।

मोदी ने लोगों से सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, ताकि सही मायनों में विकास के फायदे मिल सकें। मोदी ने कहा, "हम साथ मिलकर इन कुरीतियों के खिलाफ लड़ें और इन्हें हमारे समाज से बाहर करें, ताकि एक नए भारत का निर्माण हो सके। मैं बिहार के लोगों, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्य सरकार की इस तरह की पहल के लिए सराहना करता हूं।"उन्होंने यह भी कहा कि देश में जन औषधि केंद्रों ने स्वास्थ्य क्षेत्र को वहनीय बनाया है और साथ ही जीवन को आसान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। उन्होंने कहा, "तीन हजार से ज्यादा जन औषधि केंद्र ब्रांडेड दवाओं से 50 से 90 फीसदी तक कम कीमत पर बाजार में उपलब्ध हैं। जिसने स्वास्थ्य क्षेत्र को वहनीय बनाया है और साथ ही जीवन को आसान बनाने के लिए प्रोत्साहन दिया है।"मोदी ने कहा कि इसके पीछे का सिर्फ यही उद्देश्य था कि गरीब से गरीब लोगों तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता और स्वास्थ्य क्षेत्र को वहनीय बनाना था, ताकि एक स्वस्थ और समृद्ध भारत बन सके। उन्होंने महाराष्ट्र में मोरना नदी को साफ करने के लिए अकोला के 6,000 से अधिक लोगों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह लोगों को उसी दिशा में प्रयास करने के लिए प्रेरणा देगा।

मेरी किताब ने ट्रंप के चुने जाने की भविष्यवाणी कर दी थी : सलमान रुश्दी

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कार्टाजेना (कोलम्बिया), 28 जनवरी, भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी ने कहा कि उनकी किताब 'द गोल्डन हाउस'ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के चुने जाने की भविष्यवाणी कर दी थी।  हालांकि, उन्हें हिलेरी क्लिंटन की जीत का भरोसा था। समाचार एजेंसी एफे के मुताबिक, 2013 में हेंस क्रिश्चियन एंडरसन पुरस्कार जीत चुके रुश्दी ने यहां शनिवार को हे महोत्सव के 13वें संस्करण में कोलम्बियाई लेखक जुआन गैब्रिएल वास्क्वेज के साथ एक चर्चा में भाग लिया। मुंबई में जन्मे 70 वर्षीय लेखक ने कहा कि उनकी किताब जानती थी कि क्या होने वाला है, लेकिन उन्हें इसका भान नहीं था क्योंकि उपन्यास का अपना विवेक होता है। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि कला का एक हिस्सा कलाकार से कहीं ज्यादा जानता है। रुश्दी ने स्पष्ट किया कि 'द गोल्डन हाउस'किताब ट्रंप पर नहीं बल्कि अमेरिका में ध्रुवीकरण पर आधारित है। उन्होंने किताब लिखने की तुलना सांड की लड़ाई से की, जहां सांड की लड़ाई लड़ने वाले को उसके सींगों से घायल होने और खूनी चोट से जख्मी होने के अंदेशे के बीच उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ना पड़ता है। लेखक ने कहा कि किताब लिखना बेहद रोमांचक अनुभव होता है क्योंकि यह एक तरह से सांड से बच निकलने के जैसा ही है। अगर, किसी ने इसे खराब लिखा तो यह गुजरे कल के अखबार की तरह बेमतलब और अप्रासंगिक हो जाएगा, लेकिन अगर यह सफल हुआ तो यह एक ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बन सकता है। रुश्दी ने उस फतवे को भी याद किया, जिसे उनके खिलाफ ईरानी धर्मगुरु अयातुल्ला खोमेनी ने 'द सैटनिक वर्सेज'किताब लिखने पर ईशनिंदा करने का आरोप लगाते हुए जारी किया था। रुश्दी के उपन्यास 'मिड नाइट चिल्ड्रन'को लोगों ने बुकर प्राइज के 40 सालों के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ विजेता के रूप में चुना। उन्होंने कहा कि जब वह कोई बात किताब में लिखते हैं और वह बात सच हो जाती है, तो उन्हें इस बात से घृणा होती है। लेखक ने कहा कि उन्हें भविष्यवक्ता बनने की इच्छा नहीं है।

समानता भारतीय संविधान की आधारशिला : न्यायमूर्ति चेलमेश्वर

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विजयवाड़ा, 28 जनवरी, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर ने रविवार को कहा कि दुनिया के सभी देशों में असमानता देखने को मिलती है लेकिन भारत में कुछ ज्यादा ही असमानताएं रही हैं, जबकि भारतीय संविधान का मूलाधार समानता है। संविधानवाद और सभ्य समाज के विषय पर अपने व्याख्यान में चेलमेश्वर ने कहा, "सभी देशों के अलग-अगल रूपों में और विभिन्न कारणों से असमानता है। लेकिन इस देश में यह ज्यादा है।"शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश चेलमेश्वर ने कहा कि असमानता धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के मामले में रहती है और इसके ऐतिहासिक कारण भी हैं। उन्होंने कहा, "असमानता सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि यह हर जगह है। यहां तक कि अमेरिका में भी है, जिसको बहुत सारे लोग स्वर्ग समझते हैं और अमेरिका को लोकतंत्र का प्रतिमान समझा जाता है।"शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय संविधान में असमानता दूर करने का तरीका बताया गया है।

उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के तहत सरकार को जीवन के हर क्षेत्र में समानता सुनिश्चित करने के निर्देश का जिक्र करते हुए कहा, "समानता भारतीय संविधान की आधारशिला है।"उन्होंने कहा, "संविधान कोई अन्य पुस्तक या कुछ आलेखों का संग्रह नहीं है। यह राष्ट्र व समाज की जीवन पद्धति की अभिव्यक्ति है, जिस तरीके से वह रहना पसंद करता है।"उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा कि संविधान राजनीतिक व्यवस्था या शासन के नियमों का संग्रह नहीं है बल्कि इसपर देश का भविष्य निर्भर करता है। न्यायमूर्ति अपने गृह राज्य आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ कॉलेज में के. रवींद्रराव स्मारक व्याख्यान दे रहे थे। गौरतलब है कि 12 जनवरी को न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने शीर्ष अदालत के तीन अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ दिल्ली में एक अभूतपूर्व पत्रकार वार्ता के दौरान मामलों के आवंटन संबंधी संवेदनशील मुद्दा समेत सर्वोच्च न्यायालय प्रशासन से जुड़े कई मसलों को सार्वजनिक रूप से उठाया था।
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