नयी दिल्ली 26 अप्रैल, उच्चतम न्यायालय ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शिबू सोरेन को अपने निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में बरी करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन की पीठ ने उच्च न्यायालय के 22 अगस्त, 2007 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया। उच्च न्यायालय ने सोरेन को इस हत्याकांड में दोषी ठहराने का निचली अदालत का फैसला निरस्त कर दिया था। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और शशिनाथ के परिजनों ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि जांच एजेन्सी इस आदिवासी नेता के खिलाफ साक्ष्य जुटाने में बुरी तरह विफल रही है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में चार अन्य व्यक्तियों नंद किशोर मेहता , शैलेन्द्र भट्टाचार्य , पशुपति नाथ मेहता और अजय कुमार मेहता को भी इसी आधार पर सारे आरोपों से बरी कर दिया था। दिल्ली की एक अदालत ने 28 नवंबर 2006 को शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या के जुर्म में शिबू सोरेन और चार अन्य को दोषी ठहराया था। शशि नाथ झा 22 मई , 1994 को दक्षिण दिल्ली के धौला कुंआ इलाके से लापता हो गया था। उसे अगले दिन रांची में सोरेन के भरोसेमंद लोगों के साथ कथित रूप से रांची में देखा गया था।
शशिनाथ झा हत्या : फैसले में हस्तक्षेप से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार
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मोदी की कर्नाटक लूटने वालों को विधानसभा लाने की तैयारी : राहुल गांधी
नयी दिल्ली, 26 अप्रैल, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कड़ा हमला करते हुए आज कहा कि श्री मोदी ने कर्नाटक लूटने के आरोपियों को भी विधानसभा चुनाव लड़ने का टिकट दिया है। श्री गांधी ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक को लूटने वालों को सजा देकर राज्य की जनता के साथ न्याय किया लेकिन श्री मोदी अब उन्हीं लोगों को विधानसभा लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने इसे कर्नाटक की जनता का अपमान करार दिया। कांग्रेस अध्यक्ष ने ट्वीट किया “सत्ता में रहते हुए येदियुरप्पा और रेड्डी बंधुओं ने कर्नाटक को लूटा। हमारी सरकार ने लोगों को इंसाफ दिलाया। अब श्री मोदी ऐसे आठ लोगों को जेल से विधानसभा लाने का प्रयास कर रहे हैं।” कांग्रेस अध्यक्ष ने इस पर कडी आपत्ति जतायी और कहा “यह कर्नाटक के प्रत्येक ईमानदार आदमी का अपमान है।” भारतीय जनता पार्टी ने श्री येदियुरप्पा को राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह से रेड्डी बंधुओं, सोमशेखरन तथा करुनाकारा को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया गया है। इन सब पर विपक्ष ने भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया है। राज्य विधानसभा के चुनाव 12 मई को होने हैं और 15 मई को परिणाम घोषित किए जाएंगे।
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विशेष : निर्दोष शिल्पा से शिक्षा ने छीना सरपंची का मौका
यह कहानी है शिल्पा पडले की। शिल्पा महाराष्ट्र के सांगली जिले के मिरज तालुका के हरिपुर गांव की रहने वाली हैं। सावन के 35 वसंत देख चुकी शिल्पा ने कक्षा छह तक की शिक्षा हासिल की है। शिल्पा का विवाह मात्र 18 साल की आयु में हो गया था। परिवार में पति, स्वयं व दो बच्चो को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। परिवार की आय का मुख्य साधन कृषि है और मासिक आय 10-12 हजार रूपए है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार हरिपुर गांव की कुल जनसंख्या 7595 थी जबकि महिलाओं की कुल जनसंख्या 3704 थी। 2011 में गांव का कुल साक्षरता दर 86.29 प्रतिशत था जबकि महिला साक्षरता दर 81 प्रतिशत था।
शिल्पा एक सामान्य निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की महिला हैं। अन्य परिवारों की तरह उनके परिवार की भी सामाजिक मान्यताएं हैं। परिवार में जागरूकता की कमी के चलते शिल्पा केवल कक्षा छह तक ही शिक्षा हासिल कर सकीं। शिल्पा के गांव में स्कूल नहीं था और छठी कक्षा से आगे की पढ़ाई करने के लिए उन्हें गांव से बहुत दूर जाना पड़ता। लिहाज़ा घर वालों ने बीच में उनकी पढ़ाई छुड़वा दी। हालांकि शिल्पा आगे पढ़ना चाहती थी पर परिवार को लगता था कि लड़की है तो पढ़ लिखकर क्या करेगी? शिल्पा के पूरे गांव में लड़कियों की पढ़ाई को लेकर कमोवेश सभी लोगों की एक ही सोच थी। इस बारे में शिल्पा कहती हैं कि-‘‘गांव में मेरे उम्र की कोई भी लड़की पांचवी छठी कक्षा से ज्यादा नहीं पढ़ी है और कुछ तो शायद कभी स्कूल भी नहीं गयी हैं।’’ 18 वर्ष की उम्र में ही शिल्पा पर विवाह और परिवार की जिम्मेदारियां डाल दी गयीं। इसके चलते शिल्पा कभी पढ़ने के बारे में सोच ही नहीं पायीं। वह कहती हैं कि ‘‘वास्तव में उन्हें खुद भी शिक्षा का महत्व नहीं पता था। लेकिन आज वह महसूस करती हैं कि पढ़ना जरूरी है। इस दौर में पढ़ाई के बगैर कुछ भी संभव नहीं है।’’
शिल्पा के पास घर की बहुत जिम्मेदारियां नहीं हैं और आज वह गांव समाज में सक्रिय हैं। उनके पास समय भी है और पृष्ठभूमि भी। परिवार का गांव में अच्छा संपर्क है और एक समय उनके देवर पंचायत से जुड़े हुए थे। इसलिए पंचायत और उसकी गतिविधियों के लिए उनके परिवार में जानकारी भी है और समझ भी। वह शासन की योजनाओं का उपयोग गांव के विकास के लिए करना चाहती हैं किन्तु उनके पास यह सामथ्र्य नहीं है क्योंकि वह शासन में ऐसे किसी स्थान पर नहीं हैं जो इस काम को कर सकें। शिल्पा कहती हैं कि ऐसी बहुत सी योजनाएं हैं जो गांव तक नहीं पहुंच रही हैं। वह कहती हैं कि ‘‘गरीब महिलाओं को खेतों में दिहाड़ी पर काम करना पड़ता है और उनके लिए रोजगार उपलब्ध नहीं है। गांव में कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो घर व बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी वहन नहीं कर सकतीं। ऐसी महिलाओं को रोजगार मिलना बहुत जरूरी है। अगर मैं सरपंच का चुनाव लड़ती तो शायद ऐसी महिलाओं के लिए कुछ कर पाती। लेकिन मैं पंचायत के चुनावों के लिए शिक्षा के मानक को पूरा नहीं कर रही हूँ इसलिए मैं चुनाव में भाग नहीं ले सकती।
पिछले 2017 के चुनाव में हरिपूर की सीट महिला आरक्षित सीट थी। शिल्पा यहां से सरपंच का चुनाव लड़ना चाहती थीं। मगर राज्य में सरपंच के पद पर सातवीं पास शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते शिल्पा सरपंच का चुनाव लड़ने से वंचित रह गयीं। इस अवसर से चूक जाने का शिल्पा को खासा मलाल है। वह कहती हैं ‘‘आज मैं शिक्षा के महत्व को बहुत अच्छे से समझती हूँ । शैक्षिक योग्यता के नियम के तहत सातवीं पास न होने की वजह से मैं सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकी। हमारे यहां तकरीबन सात माह पहले चुनाव हुए थे। उस समय मैंने सरपंच के पद चुनाव लड़ने के लिए योग्यता नियमों के बारे में सुना था। उस समय मुझे पता लगा था कि शैक्षिक योग्यता न होने की वजह से मैं सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकती।’’ हालांकि शिल्पा शिक्षा के महत्व को स्वीकारती हैं पर उनका यह भी मानना है कि ‘‘अच्छा काम करने के लिए केवल शिक्षा ही जरूरी नहीं है। गैर पढ़े लिखे और कम पढ़े लिखे लोग भी अपने गांव समाज के विकास के मुद्दों को समझते हैं और उस पर काम कर सकते हैं।’’
दूसरी ओर शिल्पा यह भी मानती हैं कि शिक्षा के लिए घर के लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है। बच्चे को शिक्षा का महत्व बताना घर वालों का काम है अगर उन्होंने नहीं बताया तो यह उनकी गलती है। शिल्पा कहती हैं कि ‘‘अगर शादी के बाद मेरी पढ़ने की इच्छा होती तो ससुराल वाले मुझे जरूर पढ़ाते। मगर मेरी रूचि ही विकसित नहीं की गयी और मुझे पढ़ाने का उत्साह मेरे माता-पिता ने कभी दिखाया ही नहीं। लिहाजा मेंरी रूचि ही खत्म होती चली गयी।’’ वह कहती हैं कि ‘‘अब कभी मैं पढ़ने के बारे में सोचती हूँ तो एक संकोच सा होता है कि लोग क्या कहेंगे? हालांकि मुझे इस बात का सदा अफसोस रहेगा कि इसी शिक्षा की वजह से मैं सरपंच के चुनाव में भाग नहीं ले सकी।’’
यह बात सत्य है कि पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते जहां एक ओर पढ़े-लिखे नौजवान तबके की स्थानीय शासन में भागीदारी सुनिश्चित होगी तो वहीं इस नियम के चलते शैक्षिक योग्यता न रखने वाली बहुत सी महिलाएं चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकेंगी और यह तकरीबन एक पीढ़ी होगी जो अपने इस लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाएगी।
(निखिल शिंदे)
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आचार्य महाश्रमणः धरती पर थिरकता अध्यात्म का जादू
आचार्य महाश्रमण एक ऐसी आलोकधर्मी परंपरा का विस्तार है, जिस परंपरा को महावीर, बुद्ध, गांधी, आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने अतीत में आलोकित किया है। अतीत की यह आलोकधर्मी परंपरा धुंधली होने लगी, इस धुंधली होती परंपरा को आचार्य महाश्रमण एक नई दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। यह नई दृष्टि एक नए मनुष्य का, एक नए जगत का, एक नए युग का सूत्रपात कही जा सकती है। वे आध्यात्मिक इन्द्रधनुष की एक अनूठी एवं सतरंगी तस्वीर हैं। उन्हें हम ऐसे बरगद के रूप में देखते हैं जो सम्पूर्ण मानवता को शीतलता एवं मानवीयता का अहसास कराता है। इस तरह अपनी छवि के सूत्रपात का आधार आचार्य महाश्रमण ने जहाँ अतीत की यादों को बनाया, वहीं उनका वर्तमान का पुरुषार्थ और भविष्य के सपने भी इसमें योगभूत बन रहे हैं। विशेषतः उनकी विनम्रता और समर्पणभाव उनकी आध्यात्मिकता को ऊंचाई प्रदत्त रह रहे हैं। भगवान राम के प्रति हनुमान की जैसी भक्ति और समर्पण रहा है, वैसा ही समर्पण आचार्य महाश्रमण का अपने गुरु आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति रहा है।
आचार्य महाश्रमण जन्म से महाश्रमणता लेकर नहीं आए थे, महाश्रमण कोई नाम नहीं है, यह विशेषण है, उपाधि और अलंकरण है। गुरुदेव तुलसी ने इसे नामकरण बना दिया और आचार्य महाप्रज्ञ ने इसे महिमामंडित कर दिया, क्योंकि उपाधियाँ भी ऐसे ही महान् पुरुषों को ढूँढ़ती हैं जिनसे जुड़कर वे स्वयं सार्थक बनती हैं। महाश्रमण निरुपाधिक व्यक्तित्व का परिचायक बन गया और इस वैशिष्ट्य का राज है उनका प्रबल पुरुषार्थ, उनका समर्पण, अटल संकल्प, अखंड विश्वास और ध्येय निष्ठा। एमर्सन ने सटीक कहा है कि जब प्रकृति को कोई महान कार्य सम्पन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिये एक प्रतिभा का निर्माण करती है।’ निश्चित ही आचार्य महाश्रमण भी किसी महान् कार्य की निष्पत्ति के लिये ही बने हैं।
आचार्य महाश्रमण के जीवन के विविध आयाम हैं। लेकिन सबसे बड़ा आयाम है उनका समर्पण भाव। वे श्रद्धा और समर्पण की अंगुली पकड़कर गुरु की पहरेदारी में कदम-दर-कदम यूँ चले कि जमीं पर रखा हर कदम पदचिन्ह बन गया। सरस्वती के ज्ञान मंदिर में ऐसा महायज्ञ शुरू किया कि आराधना स्वयं ऋचाएँ बन गईं। संतता क्या जागी मानो अतीन्द्रिय ज्ञान पैदा हो गया। आत्मविश्वास के ऊँचे शिखर पर खड़े होकर वे सभी खतरों को चुनौती दे रहे हैं। न उनसे डरे, न उनके सामने कभी झुके और न ही उनसे पलायन किया। इसीलिए हर असंभव कार्य आपकी शुरुआत के साथ संभव होता चला गया। तेरापंथ धर्मसंघ के विकास के खुलते क्षितिज इसके प्रमाण हैं। आपने कभी स्वयं में कार्यक्षमता का अभाव नहीं देखा। क्यों, कैसे, कब, कहाँ जैसे प्रश्न कभी सामने आए ही नहीं। हर प्रयत्न परिणाम बन जाता कार्य की पूर्णता का। इसीलिए जीवन वृत्त कहता है कि गुरु तुलसी और गुरु महाप्रज्ञ संकल्प देते गए और शिष्य महाश्रमण उन्हें साधना में ढालते चले गए।
आचार्य महाश्रमण का बारह वर्ष के मुनि के रूप में लाडनूं में मेरा प्रथम साक्षात्कार मेरे बचपन की एक विलक्षण और यादगार घटना रही है। लेकिन उसके साढे़ चार दशक बाद उनके गहन विचारों से मेरा परिचय और भी विलक्षण घटना है क्योंकि उनके विचारों से मेरी मन-वीणा के तार झंकृत हुए। जीवन के छोटे-छोटे मसलों पर जब वे अपनी पारदर्शी नजर की रोशनी डालते हैं तो यूं लगता है जैसे कुहासे से भरी हुई राह पर सूरज की किरणें फैल गई। मन की बदलियां दूर हो जाती हैं और निरभ्र आकाश उदित हो गया है। आपने कभी देखा होगा ऊपर से किसी वादी को। बरसात के दिनों में अकसर वादियां ऐसी दिखाई देती हैं जैसे बादलों से भरा कोई कटोरा हो, और कुछ भी नजर नहीं आता। फिर अचानक कोई बयार चलती है और सारे बादलों को बहा ले जाती है और दृष्टिगत होने लगता है वृक्षों का चमकता हरा रंग। बस ऐसी ही बयार जैसे हैं आचार्य महाश्रमण के शब्द। बादल छंटते हैं और जो जैसा है, वैसा ही दिखाई देने लगता है।
मनुष्य का मन एक अद्भुत चीज है। बाहर हम जो कुछ भी देखते हैं, उसका अनुभव हम करते हैं पुरानी स्मृतियों के आधार पर और फिर नया प्रक्षेपण हमारे आने वाले अनुभवों को प्रभावित करने का आधार बनता चला जाता है। जहां ये सारे प्रक्षेपण इकट्ठे होते रहते हैं उसे मनोवैज्ञानिकों ने अचेतन का नाम दिया है। यह अचेतन किस प्रकार हमारी आंखों के सामने चित्र निर्मित करता है और हमें वह सब दिखाता है जो वहां है ही नहीं। मनोवैज्ञानिकों से इसे समझने चलें तो उनकी दुरूह व्याख्याओं के जाल में हम ऐसे फंस जाते हैं कुछ भी समझ में नहीं आता। अचेतन के संबंध में समझने के लिए मैंने आचार्य महाश्रमण को पढ़ना शुरू किया। आचार्य महाश्रमण जिस प्रकार से अचेतन और उसके प्रतिबिम्बों के संबंध में समझाते हैं, बाते गहरे बैठ जाती है। स्वल्प आचार्य शासना में आचार्य महाश्रमण ने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। कृष्ण, महावीर, बुद्ध, जीसस के साथ ही साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक संतों-आदि शंकराचार्य, कबीर, नानक, रैदास, मीरा आदि की परंपरा से ऐसे जीवन मूल्यों को चुन-चुनकर युग की त्रासदी एवं उसकी चुनौतियों को समाहित करने का अनूठा कार्य उन्होंने किया। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनोंध्विचारों से अस्पर्शित रहा हो। योग, तंत्र, मंत्र, यंत्र, साधना, ध्यान आदि के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या विस्फोट, पर्यावरण, हिंसा, जातीयता, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराधीकरण, भ्रूणहत्या और महंगाई के विश्व संकट जैसे अनेक विषयों पर भी अपनी क्रांतिकारी जीवन-दृष्टि प्रदत्त की है। जब उनकी उत्तराध्ययन और श्रीमद् भगवद गीता पर आधारित प्रवचन शृंखला सामने आई, उसने आध्यात्मिक जगत में एक अभिनव क्रांति का सूत्रपात किया है। एक जैनाचार्य द्वारा उत्तराध्ययन की भंाति सनातन परम्परा के श्रद्धास्पद ग्रंथ गीता की भी अधिकार के साथ सटीक व्याख्या करना न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि प्रेरक भी है। इसीलिये तो आचार्य महाश्रमण मानवता के मसीहा के रूप में जन-जन के बीच लोकप्रिय एवं आदरास्पद है। वे एक ऐसे संत हैं, जिनके लिये पंथ और ग्रंथ का भेद बाधक नहीं बनता। आपके कार्यक्रम, विचार एवं प्रवचन सर्वजनहिताय होते हैं। हर जाति, वर्ग, क्षेत्र और सम्प्रदाय की जनता आपके जीवन-दर्शन एवं व्यक्तित्व से लाभन्वित होती रही है।
आचार्य महाश्रमण का देश के सुदूर क्षेत्रों-नेपाल, आसाम, बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा आदि में अहिंसा यात्रा करना और उसमें अहिंसा पर विशेष जोर दिया जाना प्रासंगिक है। क्योंकि आज सारा संसार हिंसा के महाप्रलय से भयभीत और आतंकित है। जातीय उन्माद, सांप्रदायिक विद्वेष और जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं का अभाव- ऐसे कारण हैं जो हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं और इन्हीं कारणों को नियंत्रित करने के लिए आचार्य महाश्रमण प्रयत्नशील हैं। इन विविध प्रयत्नों में उनका एक अभिनव उपक्रम है-‘अहिंसा यात्रा’। आज अहिंसा यात्रा एकमात्र आंदोलन है जो समूची मानव जाति के हित का चिंतन कर रहा है। अहिंसा की योजना को क्रियान्वित करने के लिए ही उन्होंने पदयात्रा के सशक्त माध्यम को चुना है। ‘चरैवेति-चरैवेति चरन् वै मधु विंदति’ उनके जीवन का विशेष सूत्र बन गया है। इस सूत्र को लेकर वेे देश के सुदूर प्रांतों एवं पडौड़ी राष्ट्र नेपाल एवं भूटान के विभिन्न क्षेत्रों में अपने अभिनव एवं सफल उपक्रमों को लेकर पधारे हंै। आचार्य श्री महाश्रमण की इस अहिंसा यात्रा में हजारों नए लोग उनसे परिचित हुए। परिचय के धागों में बंधे लोगों ने अहिंसा दर्शन को समझा, आचार्य महाश्रमण के व्यक्तित्व को परखा और अहिंसा यात्रा को निर्बाध मानकर उसके राही बन रहे हैं।
आचार्य महाश्रमण का जिन-जिन प्रांतों में पदार्पण हुआ है वहां चारों ओर सकारात्मकता की नवीन दिशाएं प्रस्फूटित हुई है। जीवन-निर्माण का एक नया दौर शुरु हुआ है, स्वस्थ समाज निर्माण की संरचना का हर दिल और दिमाग में सपना जग रहा है। ऐसे समय में आचार्य महाश्रमणजी के प्रवास से और उनके प्रवचनों-कार्यक्रमों से आध्यात्मिक परिवेश निर्मित होना, न केवल हमारे देश के लिये बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिये उनका प्रवास एक कीमती तौहफा बना है। चैराहे पर खड़ी पीढ़ियों को सही दिशा और सही मुकाम मिल रहा है।
आचार्य महाश्रमण एक विशाल धर्मसंघ के अनुशास्ता हैं पर आम आदमी की उन तक पहुँच हैं। उनके पास जाने के लिए न सिफारिश चाहिए, न परिचय प्रमाण पत्र और न दर्शनों के लिए लंबी पंक्ति में खड़ा होने की जरूरत। न भय, न संकोच, न अपने-पराए का प्रश्न। संतों के दरवाजे सदा खुले रहते हैं। वे सबको सुनते हैं, सबको समाधान देते हैं। इसलिए जो भी इन चरणों में पहुँचता है वह स्वयं में कृतार्थता का अनुभव करने लगता है।
आचार्य श्री महाश्रमण के व्यक्तित्व से अहिंसा का जो आलोक फैला उससे देश के जटिल से जटिलतर हो रहे हिंसा का माहौल नियंत्रित हुआ है। अहिंसा यात्रा का यह आलोक जाति, वर्ग, वर्ण, प्रांत, धर्म आदि की सरहदों में सीमित नहीं है। एक व्यापक धर्म क्रांति के रूप में अहिंसा का विस्तार नई संभावनाओं के द्वार खोल रहा है। जहां राष्ट्र की मुख्य धारा से सीधा जुड़कर अहिंसा यात्रा का उपक्रम आज एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में सक्रिय है वहीं दुनिया के अनेक राष्ट्र इस तरह के प्रयत्नों से विश्व में शांति एवं अमन कायम होने की संभावनाओं को आशाभरी नजरों से देख रहे हैं। अहिंसा में बहुत बड़ी शक्ति छिपी हुई है, जिसे उजागर करने की भरसक चेष्टा आचार्य महाश्रमण ने की। अन्याय का मुकाबला हिंसा से भी किया जा सकता है, मगर उसमें दो खतरे रहते हैं। अन्याय करने वाले की हिंसा से अगर प्रतिकार करने वाले की हिंसा कुछ कम पड़ जाए तो उसकी सारी हिंसा बेकार हो जाती है। दूसरा खतरा यह है कि इस संघर्ष में एक हिंसा विजयी हो जाए तो भी समस्या समाप्त नहीं होती। पराजित पक्ष प्रतिशोध की भावना की आग उर में संजोए अधिक हिंसा और क्रूरता की तैयारी में लग जाता है। प्रतिशोध और हिंसा का जो सिलसिला इससे शुरू हो जाता है, वह लगातार चलता रहता है। वह कभी टूटता नहीं। हिंसा के इस अभिशाप से छुटकारा पाने के लिए आचार्य महाश्रमण ने अपनी नई और अनोखी अहिंसा का साधन मानव जाति को दिया है। ‘बैर से बैर नहीं मिटता’, बंदूक के बल पर शांति नहीं आती, हिंसा से हिंसा को समाप्त नहीं किया जा सकता-इन बुद्ध वचनों को उन्होंने नया जामा पहनाकर समस्त मानव-जाति को एक तोहफे के रूप में प्रदान किया है। यही उनकी विशेषता है जो संसार के इतिहास में एक नई सामुदायिक रूप में दिखाई दे रही है।
आचार्य महाश्रमण जितने दार्शनिक हैं, उतने ही योगी हैं। वे दर्शन की भूमिका पर खड़े होकर अपने समाज और देश की ही नहीं, विश्व की समस्याओं को देखते हैं। जो समस्या को सही कोण से देखता है, वही उसका समाधान खोज पाता है। आचार्यश्री महाश्रमण जब योग की भूमिका पर आरूढ़ होते हैं, तो किसी भी समस्या को असमाहित नहीं छोड़ते। अपनी आवाज की डोर से कोई लाखों-करोड़ों में रूहानी इश्क का जुनून भर दे और यह अहसास दिलवा दे कि यह कायनात उतनी ही नहीं है जितनी हमने देखी है-सितारों से आगे जहां और भी हैं-आज के दौर में तो यह आवाज आचार्य महाश्रमण की ही है। महाश्रमणजी ने बहुत बोला है बोल रहे हैं और पूरी दुनिया ने सुना है और सुन रही है- किसी ने दिल थामकर तो किसी ने आस्थाशील होकर। लेकिन उनकी आवाज सब जगह गूंज रही हंै। पर जितना भी उन्होंने बोला है, मैं समझता हूं कि उसका निचोड़ बस इतना है कि आदमी अपनी असलियत के रूबरू हो जाए। शाम को जब आसमान पर बादल कई-कई रंगों से खिल जाते हैं तो वहां मंै भावों का नृत्य होते देखता हूं, समंदर की लहरों में, वृक्षों में, हवाओं में-भाव, भाव और भाव। आचार्य महाश्रमण को सुनना भी मेरे लिए ऐसा ही है जैसे कि हृदय को कई-कई भंगिमाओं से गुजरने का अवसर देना।
मैंने जितने भी लम्हें उनकी पवित्र एवं पावन सन्निधि में बिताए उससे यह सुकून हो गया कि उनकी आवाज गूंजती रहेगी और आने वाली नस्लों तक पहुंचती रहेगी। यह आवाज हमारे वक्त की जरूरत है, आचार्य महाश्रमण हमारे वक्त की जरूरत है। आचार्य श्री महाश्रमण का जीवन इतना महान और महनीय है कि किसी एक लेख, किसी एक ग्रंथ में उसे समेटना मुश्किल है। यों तो आचार्य महाश्रमण की महानता से जुड़े अनेक पक्ष हैं। लेकिन उनमें महत्त्वपूर्ण पक्ष है उनकी संत चेतना, आँखों में छलकती करुणा, सोच में अहिंसा, दर्शन में अनेकांतवाद, भाषा में कल्याणकारिता, हाथों में पुरुषार्थ और पैरों में लक्ष्य तक पहुँचने की गतिशीलता। आचार्य महाश्रमण जैसे महामानव विरल होते हैं। गुरुनानक देवजी ने ऐसे ही महामानवों के लिए कहा है ऐसे लोग इस संसार में विरले ही हैं जिन्हें परखकर संसार के भंडार में रखा जा सके, जो जाति और वर्ण के अभिमान से ऊपर उठे हुए हों और जिनकी ममता व लोभ समाप्त हो गई है। आचार्य महाश्रमण के निर्माण की बुनियाद भाग्य भरोसे नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, पुरुषार्थी प्रयत्न, समर्पण और तेजस्वी संकल्प से बनी है। हम समाज एवं राष्ट्र के सपनों को सच बनाने में सचेतन बनें, यही आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा है और इसी प्रेरणा को जीवन-ध्येय बनाना हमारे लिए शुभ एवं श्रेयस्कर है। ऐसे ही संकल्पों से जुड़कर हम महानता की ओर अग्रसर हो सकते हैं। लांगफेलो ने सही लिखा है कि महापुरुषों की जीवनियाँ हमें याद दिलाती हैं कि हम भी अपना जीवन महान बना सकते हैं और जाते समय अपने पगचिन्ह समय की बालू पर छोड़ सकते हैं। यदि हम ऐसा कर पाए तो आचार्य महाश्रमण के 57वें जन्म दिवस पर उनकी वर्धापना में एक स्वर हमारा भी होगा।
(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला,
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली- 11 0051
फोन: 22727486, मोबाईल: 9811051133
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विशेष आलेख : आखिर मुखिया कौन
मील का पत्थर कहे जाने वाले 73वें संशोधन के तहत पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गयी। आशा थी कि महिलाएं पंचायत और गांव के विकास में अपनी भूमिका निभाएंगी और इस तरह गांवों का चहुंमुखी विकास होगा। किन्तु पितृसत्ता के शिकंजे में जकड़ी हुई महिलाएं अपने इस अधिकार का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं। देश के विभिन्न इलाकों में इस तरह की कहानियां बिखरी मिल जाएंगी। फिलहाल गुजरात के अहमदाबाद के धंधुका तालुका की बात करते हैं। इस तालुका की ग्राम पंचायतों में अधिकांशतः ऐसी महिलाएं सरपंच की भूमिका में हैं जिन्हें सरपंच बनने की तो अनुमति है पर पंचायत में बैठकर पंचायत का नेतृत्व करने या पंचायत के काम करने की नहीं। इन महिला सरपंचों को घर के बाहर सार्वजनिक स्थलों पर जाने अथवा अनजान पुरुषों से बात करने की मनाही है। पंचायत के सभी काम उनके परिवार के पुरुषों के द्वारा किया जाता है। वह केवल कागजों पर दस्तखत करने या अंगूठा लगाने भर के लिए सरपंच बन पाती हैं। धंधुका के गांवगुंजार, कडोल, कंजिया, कोथादिया गल्साना और मोरेसिया गाँवों की सरपंच महिलाएं हैं। गुंजार ग्राम पंचायत की सीट 2017 में महिलाओं के लिए आरक्षित थी और 35 वर्षीया जया बेन 2017 में 250 वोटों के साथ जीतकर सरपंच बनीं। जया बेन के परिवार में दो बच्चों के अलावा उनके पति हैं। जया स्वयं तो अशिक्षित हैं पर उनके पति कक्षा 6 तक पढ़े है। 4000 की आबादी वाले इस ग्राम पंचायत में अधिकतर लोग हीरा घिसने का काम करते हैं।
हालांकि जया की चुनाव में प्रतिभागिता करने की कोई इच्छा नहीं थी पर यह गांव वालों का दबाव था कि उन्हें चुनाव में जाना पड़ा। जया के पति कांजीभाई जादव गुंजार ग्राम पंचायत के पहले उप-सरपंच रह चुके हैं और वर्तमान में सरपंच पति की भूमिका में हैं। जया के पति ने ही उनका नामांकन भी भरा और उनके लिए प्रचार भी किया। जया सरपंच बनीं पर उनको सरपंच के कामों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि पंचायत की बैठकों में उनके पति ही जाते हैं और गांव के अधिकतर मामले वही निपटाते हैं। भविष्य के कामों और गांव की ज़रूरतों के बारे में भी जयाबेन को कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि ‘‘ पंचायत के काम काज के बारे में सारी जानकारी मेरे पति देंगे क्योंकि वही सारा काम देखते हैं और मैं तो तब ही पंचायत जाती हूँ जब मुझे कहीं अंगूठा लगाना होता है।“ कांजीभाई जादव (सरपंच पति) ने बताया कि उनकी पत्नी के कार्यकाल में गाँव की बच्चियों के लिए परिवहन विभाग में बात करके एक बस का इन्तजाम कराया ताकि बच्चियों को स्कूल जाने में कोई परेशानी न आए। पंचायत में रोड व गटर का निर्माण कराया गया। इसी धंधुका तालुका की एक और पंचायत है कोथाडिया। यह भी 2017 में महिला सीट थी। चुनाव में 189 वोटों से जीतकर यहां की सरपंच बनीं हंसाबेन मकवाना। हंसाबेन मकवाना बुनकर समुदाय से हैं। इनकी उम्र 36 साल है व इन्होंने कक्षा 3 तक शिक्षा हासिल की है। हालांकि हंसाबेन पढ़ लिख नहीं सकती हैं। इनके गांव की आबादी एक हज़ार है। तीन बच्चों, पति व हंसाबेन को मिलाकर परिवार में कुल पांच सदस्य हैं। बेहद सरल जीवन बिताने वाले इस परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हंसाबेन खुद खेतों में मज़दूरी करती हैं व पति बिजली का काम करते हैं। इस तरह दोनों से होने वाली आमदनी से परिवार का खर्च चलता है।
कोथाडिया में अधिकतर दरबार समुदाय के लोग रहते हैं। उनके कहने पर ही हंसा बेन को पंचायत चुनाव में सरपंच पद का उम्मीदवार बनाया गया। हंसा अपने घर के कामों में ही व्यस्त रहती हैं, जबकि उनकी सरपंची के निर्णय उनके पति गाँव वालों के कहने के अनुसार ही लेते है। हंसाबेन के मुताबिक वह अभी तक अपनी सरपंच की कुर्सी पर भी नहीं बैठी हैं। हालांकि उनके कार्यकाल में पंचायत में विकास के काम हुए हैं। पर हंसाबेन को इस बारे में जानकारी नहीं कि गांव में 200 लोगों के लिए गैस चूल्हे के लिए फार्म भरवाए गए, 80 लोगों के गैस के चूल्हे आ गए हैं और बाकी लोगों को दिलवाने की योजना है। आवास योजना के तहत लोगो के लिए रहने के लिए घर बनवाने की बात भी कार्य योजनाओं में शामिल है। गाँव में आगंनबाड़ी,पंचायत भवन की मरम्मत, गाँव में नालियों और सड़क का निर्माण का काम हुआ। पर सभी कार्यो को उनके पति के ज़रिए किए गए। हंसाबेन की एक सरपंच के तौर पर इसमें न कोई राय है न ही कोई जानकारी। धंधुका तालुका की कोटड़ा ग्राम पंचायत सीट भी 2017 में महिलाओं के लिए आरक्षित थी। मावू धनजी राठौर यहां की सरपंच बनीं। माबू के परिवार में उनके पति के अलावा दो बच्चे और सासू माँ हैं। कोटड़ा ग्राम पंचायत में 6000 लोग हैं जिसमें ठाकुर, राठौर, कोड़ी पटेल, भरवाड, और पगी इत्यादि जातियां हैं। केवल पांच ही घर भरवाड समुदाय से है जिसमें माबू बेन का परिवार भी एक है। कक्षा 6 तक पढ़ी माबूबेन केवल पंचायत के कागजों पर हस्ताक्षर करने भर की सरपंच हैं। उन्हें पंचायत व पंचायत के कामों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।
दो घंटा उनके घर में गुज़ारने के बाद भी माबू बहन पंचायत के कामों के बारे में कुछ नहीं बता सकीं। पूरे इंटरव्यू के दौरान वह ज़मीन पर बैठी रहीं और हर सवाल पर वह अपने पति धनजी भाई की ओर देखतीं फिर शांत होकर सब कुछ सुनती रहतीं। माबू धनजी से बात करना भी आसान नहीं था। उनके पति ने शुरू में कहा कि वह खेत गयी हैं और जो भी सवाल हों वह धनजीभाई से करें क्योंकि वह केवल हस्ताक्षर करती हैं बाकी सारे काम उनके पति द्वारा ही किये जाते हैं। धनजी भाई का कहना था कि जब तक वह बैठे हैं माबू काम करके क्या करेगी ? उसे कुछ काम नहीं आता और वास्तव में वह ही सरपंच हैं। माबू के चुनाव में खड़े होने के पीछे प्रेरणा और अन्य निजी प्रशनों का उत्तर भी उनके पति ने ही दिया। उन्होंने कहा कि यदि सामान्य सीट होती तो वह स्वयं चुनाव में खड़े होते परन्तु महिला सीट होने की वजह से उन्होंने माबू को चुनाव में खड़ा किया। उसका नामांकन भरा और सभी दस्तावेज जमा किये। दरअसल माबू की तो चुनाव में जाने की कोई इच्छा ही न थी।
माबू जीतीं इसलिए कि वो धनजीभाई की पत्नी हैं। धनजी भाई राठौर ने बताया कि उन्होंने गांव में पानी की व्यवस्था करने के लिए अपने निजी कोष से धन की व्यवस्था की और गांव को पानी के संकट से मुक्त किया। इसलिए गांववालों ने उनकी पत्नी को वोट दिया अन्यथा असली सरपंच तो वही हैं। कंजिया ग्राम पंचायत की सरपंच रेखाबेन के पति ने बताया कि रेखाबेन के कार्यकाल में उन्होंने अपने प्रयासों से 84 लाख रूपए की लागत से सड़क निर्माण का कराया गया, आंगनबाड़ी की मरम्मत व उसकी हालात में सुधार करवाया गया। आंगनबाड़ी स्टाफ को स्थायी कराया गया। मोरेसिस गाँव की लड़कियां शिक्षा के लिए बस से धंधुका तालुका जाती हैं। रास्ते में दूसरे गाँव के लड़कों द्वारा उनके साथ छेड़छाड़ की घटनाएं होती थीं। सरपंच के पति ने तालुका दफ्तर में अर्जी लगाई लिहाज़ा अब मोरेसिस गाँव से धन्दुका तालुका तक बस सीधी जाती है। इस तरह छेड़-छाड़ की घटनाओं पर रोक लगी ।
कुछ महिला सरपंचों से बातचीत में यह बात सामने आयी कि पहली बार सरपंच बनने वाली महिला को लगातार प्रशिक्षण देने की जरुरत है जबकि व्यवस्था केवल एक ही प्रशिक्षण की है। उसमें भी उनको गांधीनगर जाकर प्रशिक्षण लेना होता है जिसमें सरपंचों और महिलाओं की संख्या बेहद कम रहती हैं। जयाबेन कहती हैं कि ‘‘महिलाओं को इतनी दूर उनके घर वाले जाने ही नहीं देते और इस सरकारी प्रशिक्षण में सरकार के पास महिला सरपंच पतियों के फोन नम्बर होते हैं जिससे सारी बातचीत उन्हीं तक सीमित रहती है और उनको प्रशिक्षण के बारे में पता ही नहीं चलता। मावूबेन बस एक बात बोल सकीं कि अगर उनको भी प्रशिक्षण लगातार मिले तो उनको भी जानकारी हो सकती है कि एक सरपंच के तौर पर उनकी जिम्मेदारियां क्या हैं या पंचायत की समस्याओं को लेकर किस विभाग के पास जाएँ। मावू की बातों से ऐसा भी निकल कर आया कि यदि उनको इस बारे में जानकारी होगी तो उनके घर के पुरूष सदस्य उनके कामों में दखलंदाजी कम या बंद कर देंगे इसके साथ ही वह भी अपने कामों को लेकर आत्मनिर्भर हो जाएँगी।
(सुनीती शर्मा)
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बिहार : बच्चों को हांकने के बाद भी बच्चे स्कूल आते नहीं, क्लास रूम में रखते हैं जलावन
बकिया.बकिया ग्राम पंचायत में है कामास्थान.इसी जगह से संचालित है प्राथमिक विद्यालय,कामास्थान. इस विद्यालय में पांच कक्षा तक की पढ़ाई होती है. इसमें 400 बच्चों का नामांकन हुआ है.इन बच्चों को पढ़ाने के लिए केवल दो महिला शिक्षक बहाल हैं.उसमें एक प्रधानाध्यापिका और दूसरी बीओ हैं. दोनों कार्य निपटारा करने ऑफिस और फील्ड में आते जाते रहते हैं.इनकी परेशानियों को परिजन भापकर बच्चों को स्कूल भेजना ही बंद कर दिये हैं.इस उपकार को देखकर शिक्षक भी कर्तव्य निभा रहे हैं.मिड डे मील का भंडारा चला रहे हैं.खुद भी खाते हैं और स्कूल के बगल में रहने वाले पड़ोसियों को खिलाकर पड़ोसी प्रेम दिखा रहे हैं कि कोई जांच करने आये तो नकारात्मक बात सामने न जाए.
जी हां यही स्थिति व परिस्थिति कमोबेश है.सवाल यहां के 400 बच्चों का भविष्य से है? जिसे मोटी रजिस्टर पर अंकित कर बंद कर दिया है.भूले बिछड़े शिक्षा विभाग के अफसर आते हैं.डेली एटेडेंस व एडमिशन रजिस्टर देख खुश हो जाते है. कोई 15 तरह के रजिस्टर स्कूल में है जिसे अद्यतन करके रखना पड़ता है.बहरहाल इस विद्यालय में किसी भी बच्चे को पढ़ते व पढ़ाते नहीं देखा गया. क्लास रूम के द्वार किसी बच्चे ने बुक रखी है.यहां पर दो कुर्सी है.एक पर महिला टीचर बैठी है.दूसरी खाली है. प्रधानाध्यापिका बच्चों को हांककर लाने गयी हैं.उनके हांकने से भी बच्चे नहीं आये.दूसरी खाली कुर्सी पर बैठे देखकर तीसरी कुर्सी पर बैठ गयीं. कुर्सी पर बैठकर प्रधानाध्यापिका कहती हैं कि यहां अनेक रूम हैं.इसके कारण एक रूम में लकड़ी रखवा रहे हैं.अलग से जलावन का भंडारण करने का घर नहीं है.इसका उपयोग कर रहे हैं.मिड डे मील चलाना है.स्कूल चले या न चले. वार्ड नम्बर-12 के पूर्व वार्ड सदस्य रामलाल ऋषि कहते हैं कि स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है.इस लिए बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं.मिड डे मील पर सवाल उठाकर बंद कर देने पर बल दिया.
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बिहार : सोमनाथ मंदिर के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, सादगी के प्रतिमूर्ति थे राजन बाबू
मुजफ्फरपुर. ये जगजाहिर है कि जवाहल लाल नेहरू सोमनाथ मंदिर के पक्ष में नहीं थे. महात्मा गांधी जी की सहमति से सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का काम शुरु किया था. पटेल की मौत के बाद मंदिर की जिम्मेदारी के एम मुंशी पर आ गई. मुंशी नेहरू की कैबिनेट के मंत्री थे. गांधी और पटेल की मौत के बाद नेहरू का विरोध और तीखा होने लगा था. एक मीटिंग में तो उन्होंने मुंशी की फटकार भी लगाई थी. उन पर हिंदू-रिवाइवलिज्म और हिंदुत्व को हवा देने का आरोप भी लगा दिया. लेकिन, मुंशी ने साफ साफ कह दिया था कि सरदार पटेल के काम को अधूरा नहीं छोड़ेगे. के एम मुंशी भी गुजराती थे इसलिए उन्होंने सोमनाथ मंदिर बनवा के ही दम लिया. फिर उन्होंने मंदिर के उद्घाटन के लिए देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को न्यौता दे दिया. उन्होंने इस न्यौते को बड़े गर्व से स्वीकार किया लेकिन जब जवाहर लाल नेहरू की इसका पता चला तो वे नाराज हो गए. उन्होंने पत्र लिख कर डा. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाने से मना कर दिया. राजेंद्र बाबू भी तन गए. नेहरू की बातों को दरकिनार कर वो सोमनाथ गए और जबरदस्त भाषण दिया था. जवाहर लाल नेहरू को इससे जबरदस्त झटका लगा. उनके इगो को ठेंस पहुंची. उन्होंने इसे अपनी हार मान ली. डा. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाना बड़ा महंगा पड़ा क्योंकि इसके बाद नेहरू ने जो इनके साथ सलूक किया वो हैरान करने वाला है.
सोमनाथ मंदिर की वजह से डा. राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरू के रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ गई कि जब राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति पद से मुक्त हुए तो नेहरू ने उन्हें दिल्ली में घर तक नहीं दिया. राजेंद्र बाबू दिल्ली में रह कर किताबें लिखना चाहते थे. लेकिन, नेहरू ने उनके साथ अन्याय किया. एक पूर्व राष्ट्रपति को सम्मान मिलना चाहिए, उनका जो अधिकार था उससे उन्हें वंचित कर दिया गया. आखिरकार, डा. राजेंद्र प्रसाद को पटना लौटना पड़ा. पटना में भी उनके पास अपना मकान नहीं था. पैसे नहीं थे. नेहरू ने पटना में भी उन्हें कोई घर नहीं दिया जबकि वहां सरकारी बंगलो और घरों की भरमार है. डा. राजेंद्र प्रसाद आखिरकार पटना के सदाकत आश्रम के एक सीलन भरे कमरे में रहने लगे. न कोई देखभाल करने वाला और न ही डाक्टर. उनकी तबीयत खराब होने लगी. उन्हें दमा की बीमारी ने जकड़ लिया. दिन भर वो खांसते रहते थे. अब एक पूर्व राष्ट्रपति की ये भी तो दुविधा होती है कि वो मदद के लिए गिरगिरा भी नहीं सकता. लेकिन, राजेंद्र बाबू के पटना आने के बाद नेहरू ने कभी ये सुध लेने की कोशिश भी नहीं कि देश का पहला राष्ट्रपति किस हाल में जी रहा है?
इतना ही नहीं, जब डा. राजेंद्र प्रसाद की तबीयत खराब रहने लगी, तब भी किसी ने ये जहमत नहीं उठाई कि उनका अच्छा इलाज करा सके. बिहार में उस दौरान कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. आखिर तक डा. राजेन्द्र बाबू को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलीं. उनके साथ बेहद बेरुखी वाला व्यवहार होता रहा. मानो ये किसी के निर्देश पर हो रहा हो. उन्हें कफ की खासी शिकायत रहती थी. उनकी कफ की शिकायत को दूर करने के लिए पटना मेडिकल कालेज में एक मशीन थी. उसे भी दिल्ली भेज दिया गया. यानी राजेन्द्र बाबू को मारने का पूरा और पुख्ता इंतजाम किया गया. एक बार जय प्रकाश नारायण उनसे मिलने सदाकत आश्रम पहुंचे. वो देखना चाहते थे कि देश पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष आखिर रहते कैसे हैं. जेपी ने जब उनकी हालत देखी तो उनका दिमाग सन्न रह गया. आंखें नम हो गईं. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वो क्या कहें. जेपी ने फौरन अपने सहयोगियों से कहकर रहने लायक बनवाया. लेकिन, उसी कमरे में रहते हुए राजेन्द्र बाबू की 28 फरवरी,1963 को मौत हो गई.
डा. राजेंद्र प्रसाद की मौत के बाद भी नेहरू का कलेजा नहीं पसीजा. उनकी बेरुखी खत्म नहीं हुई. नेहरू ने उनकी अंत्येष्टि में शामिल तक नहीं हुए. जिस दिन उनकी आखरी यात्रा थी उस दिन नेहरू जयपुर चले गए. इतना ही नहीं, राजस्थान के राज्यपाल डां. संपूर्णानंद पटना जाना चाह रहे थे लेकिन नेहरू ने उन्हें वहां जाने से मना कर दिया. जब नेहरु को मालूम चला कि संपूर्णानंद जी पटना जाना चाहते हैं तो उन्होंने संपूर्णानंद से कहा कि ये कैसे मुमकिन है कि देश का प्रधानमंत्री किसी राज्य में आए और उसका राज्यपाल वहां से गायब हो. इसके बाद डा. संपूर्णानंद ने अपना पटना जाने का कार्यक्रम रद्द किया. यही नहीं, नेहरु ने राजेन्द्र बाबू के उतराधिकारी डा. एस. राधाकृष्णन को भी पटना न जाने की सलाह दी. लेकिन, राधाकृष्णन ने नेहरू की बात नहीं मानी और वो राजेन्द्र बाबू के अंतिम संस्कार में भाग लेने पटना पहुंचे. जब भी दिल्ली के राजघाट से गुजरता हूं तो डा. राजेंद्र प्रसाद के साथ नेहरू के रवैये को याद करता हूं. अजीब देश है, महात्मा गांधी के बगल में संजय गांधी को जगह मिल सकती है लेकिन देश के पहले राष्ट्रपति के लिए इस देश में कोई इज्जत ही नहीं है. ऐसा लगता है कि इस देश में महानता और बलिदान की कॉपी राइट सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार के पास है.
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बिहार : शैक्षणिक अराजकता को लेकर एआईएसएफ का राजभवन तक मार्च
पटना (आर्यावर्त डेस्क) 27 अप्रैल, एआईएसएफ ने मगध विश्वविद्यालय में व्याप्त शैक्षणिक अराजकता को लेकर राजभवन मार्च किया। मार्च शुरू होने से पहले ही दिनकर गोलंबर पर भारी संख्या में पुलिस की तैनाती कर दी गई थी। छात्रों ने दिनकर गोलंबर से नाला रोड होते हुये गांधी मैदान जेपी गोलंबर तक मार्च किया। छात्रों के जत्था को देख पहले से ही जिला नियंत्रण कक्ष के मजिस्ट्रेट एम खान, टाउन डीएसपी एसए हाशमी सहित भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी। मार्च को पुलिस ने जेपी गोलंबर पर ही रोक दिया। जिला नियंत्रण कक्ष के मजिस्ट्रेट एम खान ने छात्रों को बताया कि राजभवन में अभी कोई सक्षम अधिकारी मौजूद नही हैं। जिसपर छात्र भड़क गये उसके बाद मजिस्ट्रेट एम खान ने छात्रों के मांगो को जिलाधिकारी के माध्यम से राजभवन भेजने एवं 3 मई को AISF के प्रतिनिधिमंडल को राजभवन में मिलाने का आश्वासन दिया। तब जाकर छात्र शांत हुए। मांग पत्रों में मुख्य रूप से मगध विश्वविद्यालय स्नातक द्वितीय खंड एवं वोकेशनल परीक्षाफल सत्र 2016-17 के उत्तरपुस्तिकाओं का पुर्नमूल्यांकन करा परीक्षाफल में सुधार कराने, स्नातकोत्तर 2015-17 सत्र के तृतीय सेमेस्टर की परीक्षाफल शीघ्र प्रकाशित करने, चतुर्थ सेमेस्टर की परीक्षा तिथि शीघ्र घोषित करने, सभी छात्राओं एवं SC/ST के छात्रों को PG तक निःशुल्क शिक्षा सुनिश्चित कराने, सत्र नियमित कराने सहित सात सूत्री मांगें शामिल रही। मार्च में एआईएसएफ के राज्य सह सचिव रंजीत पंडित, राज्य कार्यकारणी सदस्य सुभाष पासवान, पटना जिला सचिव सुशील उमाराज, पटना जिला अध्यक्ष राजीव कुमार, पटना जिला उपाध्यक्ष सुधा कुमारी, मो. तौशिफ, मो. अफरोज आलम, मो.आफ़ताब आलम, किरण, मिशा भारती, स्वाति कुमारी, सोनी कुमारी, कोमल कुमारी, नेहा कुमारी, मधु, शिखा प्रकाश, प्रगति, शिवानी प्रिया सहित दर्जनों छात्र-छात्रा मौजूद रहे।
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विशेष : समरस पंचायत और महिलाओं का इस्तेमाल
समरस पंचायत का अर्थ है जहाँ पर गाँव वालों की आपसी सहमति से पंचायत को चुना जाता हैं। इसमें वोटिंग नहीं होती है। जो ग्राम पंचायत समरस के तहत अपनी पंचायत का निर्माण करती है उस पंचायत को राज्य सरकार प्रशंसा स्वरूप एक तय धनराशी देती है। जसपुरिया पंचायत के कन्नू भाई बताते हैं कि गाँव का सौहार्द बनाएं रखने, फिजूल खर्ची से बचाव और विवाद से बचने के लिए ही समरस पंचायत की जाती हैं।’ जबकि मधु कहती हैं कि- ‘‘इन पंचायतों में पुरुष ही सरपंच बनते हैं। कभी किसी महिला को सरपंच या पंच बनने का मौका नहीं मिलता है अगर वह सीट महिला के लिए आरक्षित न हो। महिलाओं को समरस में चुन कर लाने का केवल दो ही कारण होते हैं, एक या तो वह महिला सीट हो या फिर समरस करके सरकार से अधिक ग्रांट लेना हो।’’ मधु के पति कन्नू भाई की राय में ‘ओपेन सीट तो पुरुष सीट होती है और उस पर महिला नहीं आ सकती, ठीक वैसे ही जैसे महिला सीट पर पुरुष नहीं आ सकते।’’ कन्नू भाई और उन जैसे अनेक लोगों का मानना है कि “खुली सीट केवल पुरुषों के लिए ही होती है और महिला केवल आरक्षित सीट पर ही चुनाव लड़ सकती है।’’ समरस की इन तीन कहानियों में यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि शासन में स्वतंत्र रूप से चुनकर आना और आत्म निर्भर होकर काम करना महिलाओं के लिए सरल नहीं है। महिला सीटों पर महिलाओं को लाना एक मजबूरी होती है और गांव के प्रभुत्वशाली लोग अपनी सत्ता को हाथ से जाने नहीं देना चाहते तो अपने परिवार की अनिच्छुक महिलाओं को रबर स्टैम्प बनाकर स्वयं शासन करते हैं, वैसे ही जैसे वे करना चाहते हैं। ऐसे में महिलाओं को बाहर लाने और समान अवसर व स्थान दिलाने की नीतिकारों की मंशा फलीभूत होती नहीं दिखती। अगर किसी पंचायत में कोई जागरूक महिला अपने दम पर आना भी चाहे तो प्रभुत्वशालियों की पैनी चालों के आगे उसकी एक नहीं चलती और वह किसी न किसी तरह सत्ता से बाहर कर दी जाती है।
एक ऐसी ही कहानी भावनगर के पिपरला ग्राम पंचायत की है। इस गांव में आजादी के बाद पहली बार 2010 में चुनाव इसलिए हुआ, क्योंकि गीता ने चुनाव कराने का मन बना लिया था । गीता एक आशा वर्कर है और वह अपने काम के माध्यम से गाँव के लोगों में लोकप्रिय हैं। 2010 के चुनाव में पिपरला पंचायत की सीट ओपन सीट थी, और गीता ने समरस के बजाय चुनाव की वकालत की। तीसरी कक्षा पास गीता ने चुनाव मंे प्रतिभाग किया और हार गयीं, इस तरह समरस में पहले से तय चंदू भाई जोशी की जीत हुई। गाँव के कुछ चुनिंदा लोग जिनका गाँव में प्रभुत्व होता वही समरस करने के लिए आपसी सहमति बनाते है। गीता को जब 2010 में पता चला कि एक बार फिर से उनकी पंचायत समरस होने जा रही है तो उन्होंने गाँव वालों के सामने इस बात को रखा कि वह चुनाव लड़ना चाहती हैं। गीता को काफी समझाया गया कि वह ऐसा न करें परन्तु गीता नहीं राजी हुईं। वह कहती है कि समरस में केवल वही चुन कर आता हैं जिसको गाँव के प्रभुत्वशाली पुरूष वर्ग चुनते हैं। चाहे उसमें लगन हो या न हो, चाहे वह काम करना जानता हो या नहींे इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। जब कोई सीट महिला आरक्षित होती हैं तभी किसी महिला को समरस के तहत सरपंच बनने का मौका दिया जाता हैं, उसमें भी उस महिला को जो गाँव के मुखिया या अपने पति के अनुसार काम करे।
गीता एक जागरूक और तार्किक महिला हैं।वह गाँव में काम करने वाली एक स्थानीय महिला संस्था के साथ जुड़ी हुई है जिससे उन्हें पंचायत की प्रक्रियाओं और काम की काफी जानकारी है। उन्होंने इस बात को महसूस किया कि आजादी के बाद से उनके गाँव में अभी तक कोई महिला सरपंच नहीं हुई है। इसके पीछे की वजह उन्हें यही लगी कि गाँव में चुनाव ही नहीं होते थे और और समरस में किसी महिला का नाम प्रस्तावित नहीं होता था। अतः उन्होंने इस परम्परा को तोड़ने का विचार किया और चुनाव में प्रतिभाग करने को तत्पर रहीं। उस बरस तो वह हार गयीं लेकिन इसका खामियाज़ा उन्हें भुगतना ही पड़ा जब अगले चुनावों में उन्हें जीत के छह महीने बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटा दिया गया। मेहसाणा जिला गुजरात की राजधानी गांधीनगर से तकरीबन 80 किलोमीटर की दूरी पर है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार ज़िले की कुल आबादी तकरीबन 1.84 लाख हैं। मेहसाणा जिले में एक तालुका हैं सतलासण जिसकी ग्राम पंचायत जसपुरिया एक समरस पंचायत है। जसपुरिया ग्राम पंचायत तीन गाँव की पंचायत हैं । जिसमें वसईजुत एक और वसईजुत दो और जसपुरिया गाँव शामिल हैं। मधुबा इसी पंचायत की रहने वाली हैं और वह पहली महिला हैं जो पिछले 20 वर्षों में पहली बार जसपुरिया पंचायत में समरस के तहत सरपंच बनी हैं क्योंकि 2017 में यह महिला सीट थी। वह परमार समुदाय से हैं जो गुजरात में अनुसूचित जाति है। मधुबा के दो बच्चे हैं और उन्होंने कक्षा 8 तक शिक्षा ली है। पति ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की हैं। मधुबा के पति कन्नू भाई गाँव के एक स्कूल में मिड डे मील का प्रबंध देखते हैं। परिवार की मासिक आमदनी तकरीबन 10000/- है। मधुबा के पति कन्नू भाई गाँव में सभी की ज़रूरत में काम आते हैं। इसीलिए गांव में लोगों में लोकप्रिय हैं। मधु की न तो कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि है और न ही उनकी इच्छा सरपंच बनने की थी पर कन्नू भाई के कहने से उन्हें सरपंच के चुनाव में भाग लेना लिया। यही वजह है कि सरपंच बनने के बाद भी उनके पति ही उनके स्थान पर सरपंच के सभी काम काज सँभालते हैं ।
हालांकि मधुबा अपने पति कन्नू भाई के माध्यम से काम करती हैं फिर भी मधुबा के अब तक के कार्यकाल में अभी तक वसईजुत एक और दो में आर.सी.सी. रोड का निर्माण कराया, बंद पड़े स्ट्रीट लाईट को चालू कराया, जसपुरिया के विभिन्न मौहल्लों में आर.सी.सी.की दीवार भी बनवाई और इन सबके साथ उन्होंने सतलासण में बच्चों के लिए क्रिकेट का टूर्नामेंट भी कराया। अपने बाकी बचे कार्यों में सबसे पहले तीनों गांवों में इंदिरा आवास योजना के तहत 30 परिवारों को घर देने पर काम कर रही हैं । तीसरी कहानी भावनगर के शिहोर तालुका में बसे लाजपत नगर पंचायत (बदला हुआ नाम) की है। इस पंचायत में आजादी के बाद से अब तक केवल 3 बार ही पंचायत चुनाव हुए हैं। मगर इन तीनों ही चुनाव में न तो किसी महिला को चुनाव लड़ने का मौका मिला और न ही कोई महिला सरपंच बनी। लाजपत नगर पंचायत कि कुल आबादी 890 हैं, जिसमें तकरीबन 425 महिलाएं होंगी इसके बावजूद भी यहाँ महिलाओं को ग्राम पंचायत में सर्वोच्च पद से वंचित रखा जाता रहा । यह 2018 के चुनाव थे जिनमें ही पहली बार कोई महिला सरपंच बनी है, वह भी केवल इसलिए कि पिछले चुनाव में यह गाँव महिला ओपन सीट के लिए आरक्षित थी। वर्तमान में इस पंचायत की सरपंच हैं वर्षा। वर्षा के साथ ही उनकी पंचायत में सभी 8 पंचों में महिलाओं को समरस के तहत चुना गया है। इन 8 पंचों में केवल 3 पंच ऐसी है जोकि पढ़ी लिखी हैं,
52 वर्षीय वर्षा कक्षा 8 तक पढ़ी हैं । वर्षा के परिवार में 3 एकड़ खेती है और उनको खेती से हर महीने तकरीबन 7000 से 8000 तक की आमदनी हो जाती है। वर्षा क्षत्रिय समुदाय से आती हैं। लाजपत नगर ग्राम पंचायत एक क्षत्रिय बहुल गाँव है जिसकी वजह से यहां ज़्यादातर सरपंच इसी समुदाय से बनते हैं। वर्षा तो संयोग से इस पंचायत में सरपंच बनीं। दरअसल उनके देवर प्रवीण सिंह (बदला हुआ नाम) अपनी पत्नी भानुमती गोहिल (बदला हुआ नाम) के लिए चुनाव की तैयारी कर रहे थे। मगर उनके तीन बच्चें होने की वजह से वह चुनाव में भाग नहीं ले सकीं। इसलिए उन्होंने गाँव के बड़े लोगों से बात करके अपनी भाभी वर्षा का नाम सरपंच पद के लिए प्रस्तावित कर दिया। वर्षा निस्सन्तान हैं इसलिए वह सरपंच बन सकती थीं। रणनीतिक तौर से उनके देवर प्रवीण सिंह ने गाँव को एक बार फिर से समरस ग्राम पंचायत करने की गुहार भी लगाई। उन्हें चुनाव के नतीजों पर कम भरोसा था और वह सशंकित थे कि उनकी भाभी वर्षा चुनाव जीत पाएंगी और फिर समरस पंचायत को अलग से ग्रांट मिलती है। वर्षा या मधु समरस के तहत सरपंच तो बनीं हैं मगर सरपंची का काम अधिकतर उनके पति व देवर ही करते हैं। वह सरपंच बनी क्योंकि उनके परिवार वाले चाहते थे। वर्षा बताती हैं कि वह एक ऐसे समुदाय से आती हैं, जहां पर महिलाओं को अपने मन मुताबिक कहीं भी बाहर जाने की इजाज़त नहीं होती। इसलिए उनको अपने समुदाएँ की परम्परा का सम्मान रखते हुए घर के काम काज ही देखने पड़ते हैं । घर से बाहर के कामकाज और पंचायत के कामकाज उनके घर के पुरूष ही कर लेते हैं । ऐसे में यह सवाल उठना बेहद लाजमी हो जाता हैं कि महिलाओं को पंचायत में लाया तो जा रहा है, किन्तु क्या उनको भागीदारी करने का सही मौका मिल पा रहा है ? दूसरी ओर गीता जैसी बहुत ही कम महिलाएं होंगी जोकि गाँव के प्रभुत्वशाली लोगों के खिलाफ जाने का हौसला करती होंगी और यदि किसी महिला ने ऐसा प्रयत्न करेगी भी तो उसको हार का सामना करना पड़ेगा।
(सुनीति शर्मा)
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जनअधिकार पदयात्रा साम्प्रदायिक फासीवादी-मनुवादी भाजपा को गद्दी से उतार फेंकने के लिए: दीपंकर
- बिक्रमगंज से चली यात्रा आरा, गया व अरवल की यात्रा जहानाबाद, दरभंगा से चली यात्रा मुजफ्फरपुर पहुंची. बिहारशरीफ से आज चैथा जत्था पटना की ओर रवाना.
भाजपा भगाओ-बिहार बचाओ, लोकतंत्र बचाओ-देश बचाओ के नारे के साथ भाकपा-माले द्वारा आयोजित जनअधिकार पदयात्रा भीषण गर्मी व अन्य संकटों का सामना करते हुए लगातार पटना की ओर बढ़ रही है. आज बिहारशरीफ से चैथा जत्था भी पटना की ओर कूच कर गया है. भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर ने आज आरा का दौरा किया और बिक्रमगंज से आने वाली यात्रा का स्वागत किया. उनके साथ पार्टी के वरिष्ठ नेता काॅ. स्वेदश भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल आदि नेता शामिल थे. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भाजपा के पास नफरत, गुंडागर्दी, उन्माद और उत्पात के अलावा और कोई दूसरा विचार नहीं है। बिहार में भी भाजपा यही कर रही है। नीतीश कुमार ने जनादेश के साथ गद्दारी करके भाजपा को नफरत की खेती करने की छूट दे रखी है। कहा कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के साथ-साथ उसकी राजनीति को खारिज करने के लिए जनता की बड़ी गोलबंदी की तैयारी में लगी है। बिहार में भाकपा-माले की ओर से जनाधिकार पदयात्राएं निकली हैं। 1 मई को मजदूूर दिवस के दिन पटना में जनाधिकार महासम्मेलन होगा। का. दीपंकर ने यह भी कहा कि 5 मई को कार्ल मार्क्स की 150वीं जयंती है, उस दिन भाकपा-माले गांव-गांव में उन पर कार्यक्रम करेगी। बदलाव की लड़ाई के लिए मार्क्स के विचार बेहद जरूरी हैं। का. दीपंकर ने यह भी कहा कि 5 मई को कार्ल मार्क्स की 200 वीं जयंती है, उस दिन भाकपा-माले गांव-गांव में उन पर कार्यक्रम करेगी। बदलाव की लड़ाई के लिए मार्क्स के विचार बेहद जरूरी हैं।
माले महासचिव का. दीपंकर ने कहा कि 23 अप्रैल से जनाधिकार पदयात्रा जारी है। गांवों में भारी संकट हैं, पर सरकारें इस संकट से बेखबर हैं। बिहार मेें सरकार ने शराबबंदी कानून के नाम पर गरीब-दलित लोगों को जेलों में डाल दिया है, जबकि शराब माफियाओं को खुली छूट मिली हुई है। दलित उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हुई हैं। गरीब, किसान, मजदूर, दलित, महिला, अल्पसंख्यक, छात्र-नौजवान सबके भीतर भारी आक्रोश है। वे अपने लोकतांत्रिक सवालों को लेकर लड़ न सकें इसीलिए भाजपा उन्माद और उत्पात की राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए भी है कि भाजपा 2014 में किए गए एक भी वायदे को पूूरा नहीं कर सकी है। उसके सारे वायदे जुमले साबित हुए हैं। लोग समझ चुके हैं कि वह सिर्फ समाज को बर्बाद करने वाली पार्टी है। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। एससीध्एसटी कानून की जो सुरक्षा थी उसे और आरक्षण के प्रावधान को तरह-तरह से खत्म करने की साजिश की जा रही है। भाजपा-आरएसएस द्वारा सिर्फ लेनिन ही नहीं, बल्कि अंबेडकर और पेरियार की मूर्तियां भी तोड़ी जा रही हैं। इसलिए मामला विचारधारा के देशी-विदेशी होने का ही नहीं है, बल्कि जो राजनीति समाज और लोकतंत्र का विनाश कर रही है। उन्होंने कहा कि जिस शासन में बलात्कार की घटनाओं की बाढ़ आ गई है और बलात्कारियों को जिसका राजनैतिक संरक्षण मिल रहा है, असल मामला उस राजनीति को शिकस्त देने का है। उन्होंने यह भी कहा कि 2 अप्रैल के अभूतपूर्व भारत बंद में शामिल लोगो को सरकार जानबूझकर निशाना बना रही है। उन्होंने सांप्रदायिक फासीवादी और मनुवादी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हुए कहा कि भीषण गर्मी और शादियों की व्यस्तता के बावजूद गांव के लोग सड़कों पर संघर्ष के लिए उतरे हैं, उनका संघर्ष निर्णायक साबित होगा। आरा से पहले तेतरिया में ग्रामीणों द्वारा स्वागत के बाद कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, कॉ. स्वदेश भट्टाचार्य व कुणाल पदयात्रा में शामिल हुए।
बिहारशरीफ से आरंभ हुआ चैथा जत्था
आज बिहारशरीफ के श्रमकल्याण केंद्र मैदान(अस्पताल चैराहा) से नालन्दा और नवादा जिले के पदयात्रियों की ‘भाजपा भगाओ, बिहार बचाओ-जनअधिकार पदयात्रा’ अपराहन 3 बजे प्रारम्भ हुई और रांची रोड, भराव चैराहा, रामचंद्रपुर होते देवीसराई चैराहे पर स्थित बाबा साहेब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस अवसर पर नालन्दा और नवादा जिले के पदयात्रियों का स्वागत करते माले केन्द्रीय कमिटी सदस्य व ऐपवा बिहार राज्य सचिव कॉमरेड शशि यादव ने कहा कि आज बिहार में जंहा भी नजर जाती है जनता लाल झंडा लिए सभी जिलों से इस पदयात्रा में शामिल हो अपना हक मांगने निकल पड़ी है जो 1 मई को पटना गांधी मैदान में होने वाले ‘जनअधिकार महासम्मेलन’ में शिरकत कर बिहार और देश मे बेरोक बढ़ती सांप्रदायिक आक्रामकता,बढ़ती लैंगिक-जातीय उत्पीड़न, बढ़ती मंहगाई, बढ़ी कॉरपोरेट लूट, विरोध की आवाजों का क्रूर दमन, विस्फोटक बेरोजगारी, राज्य उत्पीड़न और राज्य समर्थित निजी स्तर की हिंसा, विश्वविद्यलयों और तमाम शैक्षिक संस्थानों का ज्ञान-अभिव्यक्ति और जनतंत्र की पाठशाला के बजाय भगवा राजनीति का अखाड़ा बनाने और भाजपा-संघ के फासिस्ट हिन्दू राष्ट्र की ओर बिहार और हिन्दुस्तान को धकेलने के खिलाफ आवाज बुलंद कर जनता का बिहार और भारत बनाने का आहवान किया है जो फासीवाद की गहराती साया में पूरे देश को प्रेरणा देने का काम करेंगें. उन्होंने कहा कि महिला स्कीम कामगारों जैसे अशाकर्मी, विद्यालय रसोईया, जीविका कर्मी,आंगनवाड़ी कर्मी की हालत काफी बुरी है।इन्हें मामूली मानदेय-प्रोत्साहन राशि पर काम लिया जा रहा है जिससे इन सरकारों का महिला विरोधी रवैया स्पष्ट है। बिहारशरीफ से बाबा साहेब की प्रतिमा पर माल्यर्पाण करने के बाद पदयात्रियों का जत्था यहां से परवलपुर के लिए रवाना हो गया जहां रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन एकंगरसराय ,हिलसा होते पदयात्री पटना जाएंगे। माले महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य 29 अप्रैल की सुबह इस पदयात्रा में हिलसा में शरीक होंगे। बिहारशरीफ में पदयात्रियों का स्वागत इंसाफ मंच नालंदा के सरफराज खान, वरिष्ठ अधिवक्ता इकवालूज जफर, मो नासिर आदि लोगों ने भी किया। बिहारशरीफ से प्रारंभ इस जनअधिकार पदयात्रा का नेतृत्व नालन्दा माले जिला सचिव कॉमरेड सुरेन्द्र राम, नवादा जिला सचिव नरेंद्र कुमार सिंह, मनमोहन, भोलाराम, उमेश पासवान,पाल बिहारी लाल, रामधारी दास, सुनील कुमार, ऐपवा नेत्री सुदामा देवी, सावित्री देवी, सफाईकर्मी संघ राजगीर के छोटू डॉम, आइसा के नालंदा जिला संयोजक जयंत के अलावा नालन्दा और नवादा के सभी जिला कमिटी सदस्य कर रहे हैं।
दरभंगा से चली पदयात्रा आज मुजफ्फरपुर पहुंची.
दरभंगा से चली जनअधिकार पदयात्रा का पड़ाव 26 अप्रैल की रात बोचहां उच्च विद्यालय परिसर में था। अहले सुबह पदयात्री नित्य क्रिया से निवृत्त होकर यात्रा पर निकल गए। पाटिया पंचायत के नागरिकों की ओर से गांव के लीची गाछी में नास्ते की व्यवस्था हुई थी। पटिया शा चैक पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए पदयात्रा की अगुवाई दरभंगा से कर रहे माले के केंद्रीय कमिटी के सदस्य सह खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा ने कहा कि मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था, बैंक, रोजगार, कारोबार और सामाजिक माहौल को बर्बाद कर दिया है। सरकार देश पर बोझ बन गयी है,इस बोझ को उताड़ने से ही राष्ट्र की भलाई है। बखरी चैक पर पदयात्रियों का भव्य स्वागत किया गया और वहां से मार्च अहियापुर गांव पहुंचा। वहां ग्रामीणों की और से पदयात्रियों को भोजन कराया गया। राज्य कमिटी के सदस्य शत्रुघ्न सहनी, रामबालक सहनी, रामनंदन पासवान, संतोष सहनी, पूर्व सैनिक एल बी यादव आदि ने किया।पदयात्रियों का दल शहीदे आजम भगत सिंह की मूर्ति,जीरो मील पहुंचा। धीरेन्द्र झा, मीणा तिवारी, सत्यदेव राम, बैद्यनाथ यादव, अभिषेक कुमार आदि ने भगत सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। जीरो माइल पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए पार्टी के केंद्रीय कमिटी के सदस्य और ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि भगत सिंह के सपनों के हिंदुस्तान को मोदी सरकार नेस्तनाबूद करने पर तुली है। शिक्षा-रोजगार के सारे अवसर खत्म किये जा रहे हैं और उन्माद-पाखंड का विष घोला जारहा है। उन्होंने नौजवानों से नफरत नहीं अधिकार चाहिए, शिक्षा और रोजगार चाहिए नारे को बुलन्द करना चाहिए। पदयात्रियों का काफिला शहर में मार्च करते हुए अखड़ाघाट पहुंचा जहां आयोजित सभा को संबोधित करते हुए अभिषेक कुमार और बैद्यनाथ यादव ने कहा कि तीन दिनों से पदयात्रा करते हुए जनता से मिलते हुए हमने पाया कि जनता मोदीराज से मुक्ति चाहती है। पदयात्रा का कारवां दिनभर शहर में चलता रहा और पदयात्रियों ने शहीद खुदीराम बोस और बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्तियों पर फूलमाला चढ़ाया।कंपनीबाग में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए माले विधायक सत्यदेव राम ने कहा कि इस ऐतिहासिक पदयात्रा ने दलित-गरीबों में हौसलाआ फजाई की है और अक्लियतों में यह विश्वास पैदा किया है कि भारत में लोकतंत्र जिन्दा है। इसके साथ ही इसके साथ ही ब्रह्मपुरा, मोतीझील,कल्याणी आदि जगहों पर सभाएं हुई।सैकड़ों संख्या में मौजूद पदयात्री शहर में ही रात्रि विश्राम करेंगे और कल पटना के लिये प्रस्थान करेंगे। भाकपा माले के महासचिव आज ही देर रात मुजफ्फरपुर पहुंचेंगे और सुबह पदयात्रियों को रवाना करेंगे तथा मीडिया को संबोधित करेंगे. कॉ खुदीराम बोस के साथ प्रफुल्ल चाकी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया. मुजफ्फरपुर के जीरो माइल चैक पर शहीदे-आजम भगत सिंह के मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया। पद यात्रियों की ओर से शहीदे आजम भगत सिंह की मूर्ति पर भाकपा(माले) के केंद्रीय कमिटी सदस्य कॉ धीरेन्द्र झा, कॉ मीना तिवारी, खेग्रामस के सम्मानित राज्य अध्यक्ष सह विधायक सत्यदेव राम, राज्य स्थायी समिति सदस्य बैद्यनाथ यादव, राज्य कमिटी सदस्य अभिषेक कुमार, शत्रुध्न सहनी,ऐपवा नेत्री शनिचरी देवी, चास-वास् बचाओ बागमती संघर्ष मोर्चा के मोनाजिर हसन आदि ने माल्यार्पण किया। चैक पर नुक्कड़ सभा हुयी जिसे सत्यदेव राम, कॉ मीना तिवारी और धीरेन्द्र झा ने संबोधित किया।
गया से चली यात्रा जहानाबाद पहुंची
गया से चली जनअधिकार पदयात्रा आज जहानाबाद पहुंच गई. इस पदयात्रा में आज अरवल के भी साथी शामिल हो गए. जहानाबाद जिले के साथियों ने गया व अरवल से आने वाली पदयात्राओं का स्वागत किया और फिर कारवां एक साथ आगे बढ़ चला. पदयात्रा टेहटा, सरथुआ, मई हाॅल्ट, होते जहानाबाद पहुंची. इस पदयात्रा का नेतृत्व पार्टी की राज्य स्थायी समिति के सदस्य महानंद, निरंजन कुमार, रीता बर्णवाल, रामबलि प्रसाद, रामाधार सिंह, श्रीनिवास शर्मा आदि नेता कर रहे हैं. इस बीच पदयात्रियों ने बाबा साहेब भीमर ाव अंबेदकर और भगत सिंह की मूर्तियों पर माल्यार्पण किया.
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सीहोर (मध्यप्रदेश) की खबर 27 अप्रैल
गुण नियंत्रण उडन दस्ता दल का गठन
खरीफ वर्ष 2018 में उर्वरक / कीटनाशक औषधि एवं बीज गुण नियंत्रण हेतु उर्वरक / कीटनाशक एवं बीज विक्रेताओं के विक्रय केन्द्र / बीज उत्पा. सह. समितियों का आकस्किम निरीक्षण करने एवं नमूने लेने हेतु जिला स्तर पर गुण नियंत्रण उडनदस्ता दल का गठन कर दिया गया है। इस सिलसिले में उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास सीहोर व्दारा आदेश जारी कर दिए गए हैं। जारी आदेशानुसार सहायक संचालक कृषि श्री एस.के.राठौर को दल का प्रभारी अधिकारी, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी संबंधित विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी को सहायक प्रभारी अधिकारी तथा कृषि विकास अधिकारी संबंधित विकासखंड के कृषि विकास अधिकारियों को सहायक प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया गया है। इसके अलावा अनुविभागीय कृषि अधिकारी उपसंभाग सीहोर / बुधनी एवं सभी विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी / कृषि विकास अधिकारी पदेन उर्वरक / कीटनाशी / बीज निरीक्षक भी कृषि आदान गुण नियंत्रण हेतु जिम्मेदार रहेंगे।
पर्यवेक्षकों की समीक्षा बैठक संपन्न
जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास श्री संजय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में गत दिवस पर्यवेक्षको की समीक्षा बैठक संपन्न हुई। बैठक में पाया गया कि परियोजना सीहोर शहरी की पर्यवेक्षकों श्रीमती अल्का सीटोके, श्रीमती क्लेमेंटीनो टोप्पो, श्रीमती भूपेन्द्र अहिरवार, श्रीमती सीमा शर्मा एवं परियोजना इछावर की पर्यवेक्षको श्रीमती अन्नपूर्णा सवासिया, श्रीमती ज्योति केन, श्रीमती लक्ष्मी पाठक, श्रीमती नाजमा खान, सुश्री सारिका राठौर द्वारा अपने-अपने सेक्टरो से एनआरसी में बच्चों को भर्ती कराने में कोई रूची नहीं ली जा रही है। निरंतर निर्देश देने के वाबजूद इन पर्यवेक्षको द्वारा एनआरसी में बच्चे भर्ती नहीं कराये जा रहे है। इस संबंध में जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुये इन सभी पर्यवेक्षको को दो वेतन वृद्धि रोके जाने के संबंध में नोटिस जारी कर 07 दिवस में जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिये गये। जवाब के आधार पर इन कर्मियों की आगामी कार्यवाही सुनिश्चित की जावेगी।
दो फरार आरोपियों पर नगद पुरस्कार की उद्घोषणा
पुलिस अधीक्षक श्री सिद्धार्थ बहुगुणा ने उद्घोषणा जारी की है कि जो व्यक्ति थाना रेहटी के दो फरार आरोपियों की गिरफ्तारी में सहायक होगा, या गिरफ्तार करायेगा अथवा ऐसी उर्पयुक्त सूचना देगा जिससे आरोपी को गिरफ्तारी संभव हो सकेगी उसे प्रति आरोपी नगद पुरस्कार से पुरूस्कृत किया जाएगा। सूचना देने वाले का नाम सर्वथा गोपनीय रखा जाएगा। उक्त पुरस्कार वितरण के संबंध में पुलिस अधीक्षक जिला सीहोर का निर्णय अंतिम होगा। अभी तक आरोपियों का कोई पता नहीं चल सका है। आरोपियों की गिरफ्तारी हेतु जनसहयोग की आवश्यकता है। पुलिस अधीक्षक श्री बहुगुणा द्वारा जारी उद्घोषणा अनुसार पहला अज्ञात आरोपी की गिरफ्तारी पर जिस पर अपहृता कुमारी पूजा पुत्री भूरेलाल केवट उम्र 16 साल निवासी गांजीद थाना रेहटी की दस्तयाबी के अथक प्रयास किये जा रहे हैं, इस अज्ञात आरोपी पर 4 हजार रूपये तथा दूसरा अज्ञात आरोपी की गिरफ्तारी पर जिस पर अपहृता बालक अर्जुन आत्मज मोतीलाल कीर उम्र 11 साल निवासी बांया थाना रेहटी की दस्तयाबी के अथक प्रयास किये जा रहे हैं, इस अज्ञात आरोपी पर 5 हजार रूपये का नगद पुरस्कार घोषित किया गया है। इन दोनों फरार आरोपियों पर थाना रेहटी में धारा 363 के तहत मामले दर्ज हैं।
जनपद पंचायत स्तर पर लगेंगे, नि:शक्तता प्रमाण पत्र एवं कृत्रिम अंग शिविर
सीहोर जिले में वर्ष 2018-19 में जनपद पंचायत स्तर पर विभिन्न तिथियों में स्पर्श अभियान अंतर्गत नि:शक्तता प्रमाण पत्र एवं कृत्रिम अंग वितरण हेतु शिविर आयोजित किए जाएंगे। इस सिलसिले में कलेक्टर श्री तरूण कुमार पिथोडे व्दारा जिले के समस्त जनपद पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को दिशा निर्देश जारी कर दिए गए हैं। जारी दिशा निर्देशानुसार 30 एवं 31 मई,2018 को जनपद पंचायत बुधनी में, 1 एवं 2 जून,2018 को जनपद पंचायत नसरूल्लागंज में, 5 एवं 6 जून,2018 को जनपद पंचायत इछावर में, 7 एवं 9 जून,2018 को जनपद पंचायत सीहोर में तथा 13 एवं 14 जून,2018 को जनपद पंचायत आष्टा में शिविरों का आयोजन किया जाएगा। कलेक्टर व्दारा उक्त तिथियों में आयोजित शिविरों हेतु व्यवस्था सुनिश्चित करनें हेतु निर्देशित किया गया है कि शिविर में उपस्थित होने वाले हितग्राहियों, चिकित्सीय दल, तैनात अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अतिरिक्त संस्था के समस्त उपस्थित सदस्यों के लिए छायादार भवन की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। नि:शक्तजनों हेतु नवीन यूडीआई डी कार्ड तैयार कर स्पर्श पोर्टल पर दर्ज कराने की कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। वंचित रहे दिव्यांगजनों को एवं जिनके पुराने प्रमाण पत्र की अवधि समाप्त हो गई उन्हें शिविर स्थल तक लाने ले जाने हेतु जनपद पंचायतों के पीसी/समग्र अधिकारियों / सचिव / रोजगार सहायक को निर्देशित किया जाए। शिविर की जानकारी से स्थानीय जनप्रतिनिधियों, अध्यक्ष, जिला पंचायत, जनपद पंचायत अध्यक्ष, अध्यक्ष नगरपालिका, नगर परिषद एवं सदस्य जिला पंचायत, सरपंच ग्राम पंचायत को आवश्यक रूप से सूचित करे ताकि अधिक से अधिक संख्या में दिव्यांगजन उपस्थित हो सके। शिविर में नि:शक्त्जनों को उपलब्ध कराई जा रही सामग्री का लेखाजोखा विधिवत रखते हुए संख्यात्मक जानकारी तत्काल उपलब्ध करायें। शिविर में टेन्ट, माईक, पीने का पानी, भोजन आदि की व्यवस्था मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत व्दारा की जाए।
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विदिशा (मध्यप्रदेश) की खबर 27 अप्रैल
व्हीसी के माध्यम से तैयारियों की जानकारी दी गई
नीति आयोग के मापदण्डों पर स्वास्थ्य शिक्षा और पोषण आहार इत्यादि बिन्दुओं पर विदिशा जिला आकांक्षी जिलों में शामिल होने के कारण आयोग के मापदण्डों अनुरूप कार्यो का सम्पादन कराए जाने हेतु जिले में किए जा रहे नवाचारांे से व्हीसी के माध्यम से आज अतिरिक्त सचिव एवं एमडी एनएचएम श्री मनोज झलानी और आयोग के प्रतिनिधियों को जानकारियां दी गई है। कलेक्टेªट के व्हीसी कक्ष में इस अवसर पर स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव श्रीमती गौरी सिंह, आयुक्त डाॅ मनोहर अगनानी, मिशन निदेशक एनएचएम श्री एस विश्वनाथन के अलावा कलेक्टर श्री अनिल सुचारी, जिला पंचायत सीईओ श्री दीपक आर्य तथा भोपाल से आए स्वास्थ्य विभाग एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारीगण मौजूद थे। प्रमुख सचिव श्रीमती गौरी सिंह ने आकांक्षी जिलों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाआंे के क्रियान्वयन तथा रिकार्ड अपडेट संधारण एवं रिक्त पदों की पूर्ति के लिए किए गए प्रबंधों से अवगत कराया। कलेक्टर श्री सुचारी ने इससे पहले विदिशा जिले में स्वास्थ्य विभाग का अमला खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में डाक्टरों की कमियांें को मुख्य रूप से अवगत कराते हुए जिले में किए जा रहे नवाचारो से अवगत कराया। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग की पोर्टलों पर दर्ज की जाने वाली विभिन्न जानकारियों के लिए निर्धारित मापदण्ड, प्रबंधन का क्रियान्वयन कैसे करें से अवगत कराया गया। वीडियो कांफ्रेसिग के माध्यम से गर्भवती एवं धात्री माताआंे के साथ-साथ बच्चों में कुपोषण ना हो इसके लिए जिला स्तर पर संचालित कार्यक्रमों खासकर टीएचआर की जानकारियां दी गई। इस दौरान जिला, प्रदेश, राष्ट्रीय स्तर के दर्ज आंकडो पर समीक्षा अनुपातिक रूप में की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने के लिए किए जाने वाले प्रबंधों, डोर-टू-डोर सम्पर्क करने के अलावा स्वास्थ्य और महिला बाल विकास का ग्रामीण अमला ग्राम के चिन्हित हितग्राहियों पर सतत नजर रखे तथा अवधिवार दी जाने वाली औषधियां परीक्षण इत्यादि से उन्हें अवगत कराते हुए सुविधाएं मुहैया कराएं। मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए किए जाने वाले प्रबंधों पर भी इस दौरान विचार विमर्श किया गया है और आकांक्षी जिलों में क्रियान्वयन के संबंध में गाइड लाइन तय की गई है।
चार ग्रामों के सचिव निलंबित
जिला पंचायत सीईओ श्री दीपक आर्य ने चार ग्राम पंचायतों के सचिवों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए है। जारी आदेश में उल्लेख है कि चारो ग्राम पंचायतों के सचिवों द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के अपात्र हितग्राहियों के अपात्रता संबंधी दस्तावेंज उपलब्ध नही कराने के फलस्वरूप निलंबन की कार्यवाही की गई है। जिन ग्रामों के सचिवों को निलंबित किया गया है उन्हेें नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ता देय होगा। निलंबितों की जानकारी तदानुसार ग्राम पंचायत धमनोदा के गजेन्द्र्र सिंह किरार, ग्राम पंचायत छीरखेडा के राजेन्द्र प्रसाद शर्मा का निलंबन अवधि में मुख्यालय जनपद पंचायत नटेरन नियत किया गया है। इसी प्रकार ग्राम पंचायत बर्रो के ओमप्रकाश विश्वकर्मा तथा भदारबडागांव के सचिव श्री विजय सिंह लोधी के खिलाफ भी निलंबन की कार्यवाही की गई है। उक्त निलंबित दोनो सचिवों का मुख्यालय जनपद पंचायत ग्यारसपुर नियत किया गया है।
हिट एण्ड रन के दो प्रकरणों में आर्थिक मदद जारी
कलेक्टर श्री अनिल सुचारी ने हिट एण्ड रन के दो प्रकरणों में आर्थिक मदद के आदेश जारी कर दिए है। जारी आदेशानुसार विदिशा के पूरनपुरा गली नम्बर दो निवासी शंकरलाल की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर मृतक की पत्नी श्रीमती सावित्री बाई को 15 हजार रूपए की एवं रायसेन जिले के ग्राम साचेत निवासी शीतल कुमार सड़क दुर्घटना में घायल हो जाने पर सात हजार पांच सौ रूपए की आर्थिक मदद जारी की गई है।
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मधुबनी : जिला कार्यक्रम पदाधिकारी का औचक मिरिक्षण
मधुबनी (आर्यावर्त डेस्क) 27 अप्रैल : श्री विनोद कुमार पंकज, वरीय उप समाहत्र्ता, सह जिला प्रोग्राम पदाधिकारी,आई0सी0डी0एस0,मधुबनी के द्वारा शुक्रवार को बाल विकास परियोजना के टी0एच0आर0 वितरण दिवस 27.04.18 को औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के क्रम में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर भारी पैमाने पर अनियमितता पायी गयी। निरीक्षण के क्रम में रहिका प्रखंड के भौआड़ा पंचायत अंतर्गत केन्द्र संख्या-208 पर सेविका श्रीमती सीता देवी अनुपस्थित पायी गयी। सहायिका द्वारा बताया गया कि सेविका पोषक क्षेत्र में गयी है। केन्द्र स्थल पर टीकाकरण का कार्य चल रहा था। लेकिन टी0एच0आर0 वितरण से संबंधित कोई भी गतिविधि नहीं पायी गयी, न ही सहायिका के द्वारा टी0एच0आर0 वितरण पंजी प्रस्तुत किया गया। भौआड़ा पंचायत अंतर्गत केन्द्र संख्या 101 लक्ष्मीसागर पर टी0एच0 आर0 की कोई गतिविधि नहीं पायी गयी, न ही सेविका एवं सहायिका को केन्द्र पर उपस्थित पाया गया। केन्द्र सं0 269 पर सेविका मनीषा कुमारी के यहां टी0एच0 आर0 पंजी के अवलोकन से स्पष्ट हुआ कि सभी लाभुकों को सामग्रियों का वितरण नहीं किया गया था। साथ ही सामग्री की मात्रा भी निर्धारित मात्रा से कम वितरित की जा रही थी। केन्द्र सं0 115 सेविका रेखा देवी एवं सहायिका रेणु देवी केन्द्र पर पोषाक में उपस्थित नहीं थी। केन्द्र पर विभाग द्वारा दिये गये सामग्रियों उपलब्ध नहीं पाया गया यथा वत्र्तन, बच्चों के खाने की थाली, मापक मषीन समेत अन्य सामग्री केन्द्र पर अनुपलब्ध पाया गया। इनके द्वारा भी टी0एच0आर0 का राषन कम मात्रा में वितरित की जा रही थी।
निरीक्षण के क्रम में पंडौल प्रखंड अंतर्गत केन्द्र सं0 150 सेविका राम सुंदरी कुमारी पोषाक में पायी गयी, लेकिन उनके द्वारा टी0एच0आर0 का वितरण कम मात्रा में किया जा रहा था। टी0एच0आर0 वितरण विभागीय निदेष के अनुकूल नहीं था। केन्द्र पर निरीक्षण के दौरान स्पष्ट हुआ कि कुछ महिला पर्यवेक्षिकाओं के द्वारा भी सेविका और सहायिका को उचित मार्गदर्षन नहीं दिया जा रहा है। ना ही महिला पर्यवेक्षिकाओं के द्वारा केन्द्रों का गहन पर्यवेक्षण किया जा रहा है। प्रभारी जिला प्रोग्राम पदाधिकारी द्वारा अनियमितता पाये जाने वाले केन्द्रों की सेविकाओं को चयनमुक्ति हेतु स्पष्टीकरण पूछा गया है। और उनके विरूद्ध नियमानुसार कड़ी कारवाई की जायेगी। साथ ही संबंधित महिला पर्यवेक्षिकाओं एवं बाल विकास परियोजना पदाधिकारियों को भी अपने-अपने क्षेत्र के केन्द्रों पर सुचारू रूप से केन्द्र को संचालित करने का निदेष दिया गया।
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बिहार : ब्लड मोटिवेटर आरती राठौर की सड़क दुर्घटना में मौत
पटना. रक्तदाता जीवनदाता संचालित करने वालों में एक बमबम ने बताया कि आज शुक्रवार का दिन कष्टदायक सिद्ध हो रहा है. आगे कहा कि बड़े दुःख के साथ बताना पड़ रहा है कि आज रक्तदान समूह की महिला टीम की ब्लड मोटिवेटर आरती राठौर नहीं रहीं. वह (आरु)O-ve ब्लड ग्रुप की लाइव डोनर थीं. जब वह आज अपने कॉलेज से पढ़ कर घर जा रही थीं कि उनका बस से एक्सिडेंट हो गयी. बस की टायर आरती पर जा चढ़ा.मौके पर ही दम तोड़.इस तरह से हमलोग प्यारी आरती बहन को खो दिये.वह सभी को छोड़ कर भगवान को प्यारी हो गई.भगवान हमारी बहन की आत्मा को शान्ति दें.
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बिहार : ईसाई समुदाय से उभरते नेता राजन क्लेमेंट साह पर हमला
- बुर्जुग दीघा में रहने वाले हमलावर धर्मेंद्र यादव पर एफ.आई.आर.दर्ज
पटना. धर्मसंकट में हैं बी .जे.पी.के विधायक डॉ.संजीव चौरसिया. क्षेत्रीय मंडल के अध्यक्ष हैं धर्मेंद्र यादव. दूसरी ओर राजन क्लेमेंट साह हैं प्रदेश मंत्री, अल्पसंख्यक मोर्चा,बीजेपी के हैं.धर्मेंद्र यादव ने राजन क्लेमेंट साह पर हमला कर दिया है.दोनों बीजेपी से ही है इसको लेकर विधायक चौरसिया मौनधारण कर लिये हैं. सूत्रों का कहना है कि दोनों भाजपाई में वर्चस्व की लड़ाई है.कहते हैं कि खुद को क्षेत्रीय पार्टी के दादा समझ लिये हैं मंडल अध्यक्ष.इसके आलोक में नवान्तुक उदयीमान अल्पसंख्यक ईसाइयों के नेता राजन पर दादागीरी दिखाने लगे. अपने कार्यकुशलता के बल पर राजन ने बीजेपी विधायक फंड से कुर्जी कब्रिस्तान की चहारदीवारी निर्माण कार्य करवा रहे हैं. समझा जाता है कि दलाल किस्म के लोगों को कब्रिस्तान की ठेकेदारी नहीं देने से लोग बौखला गये थे. ईसाई समुदाय व मिशन पर हाबी होने की रणनीति पर धर्मेंद्र यादव ने राजन क्लेमेंट पर जोरदार हमला कर दिया.मामला दीद्या थाना तक जा पहुंचा.हमला करने वाले पर एफ.आई.आर. दर्ज हो गया है.इसमें धर्मेंद्र यादव को नामदर्ज हमलावर करार दिया है. इस विधायक मौनधारण कर लिये हैं. वहीं ईसाई समुदाय में आक्रोश हैं कि देश के वर्तमान स्थिति के विपरित क्रिश्चियन होकर बीजेपी का दामन थामा है.बहुत ही कम दिनों में बीजेपी व ईसाई समुदाय का दिल जीत लिया है. सबका साथ सबका विकास हो को लेकर 24 द्यंटे कार्यशील हैं.राजन को सुरक्षा प्रदान करने की मांग जा रही है. इस संदर्भ में इग्नासियुस फिलिप लिखते हैं कि मिशनरी पादरियों/धर्म बहनों पर जब जब मुसीबतें आई उन्होंने सभी इसाई समुदाय को आवाज़ दी।हम सब भी उनके साथ खड़े हुए जुलूस मे भी शामिल हुए।और जब किसी ईसाई भाई/बहन की समस्या आई तो यही मिशनरी बगलें क्यों झाँकने लगते हैं?
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भारत और चीन के पास एक साथ मिलकर काम करने का ‘बड़ा मौका’ है : मोदी
वुहान , 27 अप्रैल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सदियों पुराने चीन - भारत संबंधों की प्रशंसा करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से कहा कि दोनों देशों के पास अपने लोगों और विश्व की भलाई के लिए एक साथ मिलकर काम करने का एक ‘‘ बड़ा अवसर ’’ है। राष्ट्रपति शी के साथ मध्य चीनी शहर में अनौपचारिक शिखर बैठक में प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के दौरान मोदी ने कहा कि इस तरह की अनौपचारिक बैठकें दोनों देशों के बीच एक परंपरा बन गई है। मोदी ने शी से कहा ,‘‘ यदि 2019 में भारत में हम इस तरह की अनौपचारिक बैठक का आयोजन कर सके तो मैं खुश होऊंगा। ’’ मोदी ने कहा कि दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी के लिए काम करने की जिम्मेदारी भारत और चीन के ऊपर है और दोनों देशों के पास अपने लोगों और विश्व की भलाई के लिए एक साथ मिलकर काम करने का एक बड़ा मौका है। पिछले वर्ष 73 दिनों तक चले डोकलाम गतिरोध के बाद भारत और चीन अपने संबंधों को सुधारने और फिर से विश्वास बहाली के लिए प्रयास कर रहे है। मोदी ने याद किया कि इतिहास के 2000 वर्षों के दौरान , भारत और चीन ने एक साथ मिलकर विश्व अर्थव्यवस्था को गति और ताकत प्रदान की थी और लगभग 1600 वर्षों तक इस पर दबदबा कायम रखा था। प्रधानमंत्री ने कहा , ‘‘ दोनों देशों ने 1600 वर्षों के लिए एक साथ विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा बनाया और बाकी दुनिया द्वारा 50 प्रतिशत साझा किया गया। ’’ मोदी ने कहा कि भारत के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि राष्ट्रपति शी ने राजधानी से बाहर आकर दो बार उनकी अगवानी की। प्रधानमंत्री ने कहा ,‘ शायद मैं पहला ऐसा भारतीय प्रधानमंत्री हूं , जिसकी अगवानी के लिए आप दो बार राजधानी ( बीजिंग ) से बाहर आए। ’’
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धनबाद में घुमंतु गायों के लिए खाद्य बैंक
धनबाद , 27 अप्रैल, झारखंड के धनबाद में अंतरराज्यीय ग्रैंड ट्रंक रोड पर भटकने वाली गायों के भोजन की व्यवस्था करने के लिए एक अनोखा ‘ वेजिटेबल पील बैंक ’ स्थापित किया गया है । धनबाद जिले के एक अधिकारी ने बताया कि मारवाडी युवा बिग्रेड नामक संगठन के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर भटकती तथा गोशालाओं में रखी गई गायों के भोजन की व्यवस्था के लिए अपनी तरह का यह अनूठा कदम उठाया है । उन्होंने बताया कि हर महीने अंतरराज्यीय सीमा से लगभग 125 से 150 गायों को बचाया जाता है । ब्रिगेड के सदस्य आवासीय सोसाइटियों और वहां स्थि त घरों से हर सुबह सब्जियों के छिलके और बचा हुआ भोजन एकत्र करते हैं ताकि भटकने वाली गायों के भोजन की जरूरत को पूरा किया जा सके । वेजिटेबल पील बैंक के संयोजक कृष्ण अग्रवाल ने बताया कि बिग्रेड के कार्यकर्ताओं ने कुछ चुनिंदा अपार्टमेंटों में प्रत्येक तल पर दो दो डिब्बे रख दिये हैं । एक में सूखी खाद्य वस्तुएं रखी जाती हैं जबकि दूसरे में बचा हुआ गीला भोजन रखा जाता है। रोज सुबह इसे एकत्र कर एक गाडी के माध्यम से गौशालाओं में भेज दिया जाता है। यह परियोजना शेखर शर्मा नामक एक व्यापारी के दिमाग की उपज है जो आवासीय परिसर के 48 अपार्टमेंट के साथ तीन महीने पहले संपर्क में थे । शर्मा ने बताया , ‘‘ यह गायें पोलीथीन खा कर एवं नाले का पानी पी कर अपना पेट भरती थीं । अब उन्हें ताजा और हरा भोजन रोज सुबह मिलता है । ब्रिगेड ने क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर इन गायों के लिए पानी के टब भी रखे हैं । उन्होंने बताया कि पिछले तीन महीने में आधा दर्जन आवासीय परिसरों के लोग इस कार्य में शामिल होने पर सहमत हो गए हैं । शर्मा ने बताया कि ब्रिगेड की योजना अगले कुछ महीनों में शहर के बैंकमोड़ इलाके में स्थित तीन बड़े और पॉश आवासीय परिसरों तक पहुंचने की है । उन्होंने कहा , ‘‘ इस परियोजना की सफलता का श्रेय क्षेत्र के सभी पशु प्रेमियों को जाता है जिन्होंने स्वेच्छा से कंटेनर दान किए और अन्य तरीकों से सहयोग किया है । ’’ गौशाला तक खाना ले जाने में वाहन पर आने वाला खर्च ब्रिगेड के सदस्य वहन करते हैं । इस मुहिम की सराहना करते हुए धनबाद के महापौर चंद्रशेखर अग्रवाल ने कहा कि ब्रिगेड अगर संपर्क करती है तो प्रशासन इस काम में उनकी मदद करने का इच्छुक है ।
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विशेष : आखिर मुखिया कौन
मील का पत्थर कहे जाने वाले 73वें संशोधन के तहत पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गयी। आशा थी कि महिलाएं पंचायत और गांव के विकास में अपनी भूमिका निभाएंगी और इस तरह गांवों का चहुंमुखी विकास होगा। किन्तु पितृसत्ता के शिकंजे में जकड़ी हुई महिलाएं अपने इस अधिकार का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं। देश के विभिन्न इलाकों में इस तरह की कहानियां बिखरी मिल जाएंगी। फिलहाल गुजरात के अहमदाबाद के धंधुका तालुका की बात करते हैं। इस तालुका की ग्राम पंचायतों में अधिकांशतः ऐसी महिलाएं सरपंच की भूमिका में हैं जिन्हें सरपंच बनने की तो अनुमति है पर पंचायत में बैठकर पंचायत का नेतृत्व करने या पंचायत के काम करने की नहीं। इन महिला सरपंचों को घर के बाहर सार्वजनिक स्थलों पर जाने अथवा अनजान पुरुषों से बात करने की मनाही है। पंचायत के सभी काम उनके परिवार के पुरुषों के द्वारा किया जाता है। वह केवल कागजों पर दस्तखत करने या अंगूठा लगाने भर के लिए सरपंच बन पाती हैं। धंधुका के गांवगुंजार, कडोल, कंजिया, कोथादिया गल्साना और मोरेसिया गाँवों की सरपंच महिलाएं हैं। गुंजार ग्राम पंचायत की सीट 2017 में महिलाओं के लिए आरक्षित थी और 35 वर्षीया जया बेन 2017 में 250 वोटों के साथ जीतकर सरपंच बनीं। जया बेन के परिवार में दो बच्चों के अलावा उनके पति हैं। जया स्वयं तो अशिक्षित हैं पर उनके पति कक्षा 6 तक पढ़े है। 4000 की आबादी वाले इस ग्राम पंचायत में अधिकतर लोग हीरा घिसने का काम करते हैं।
हालांकि जया की चुनाव में प्रतिभागिता करने की कोई इच्छा नहीं थी पर यह गांव वालों का दबाव था कि उन्हें चुनाव में जाना पड़ा। जया के पति कांजीभाई जादव गुंजार ग्राम पंचायत के पहले उप-सरपंच रह चुके हैं और वर्तमान में सरपंच पति की भूमिका में हैं। जया के पति ने ही उनका नामांकन भी भरा और उनके लिए प्रचार भी किया। जया सरपंच बनीं पर उनको सरपंच के कामों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि पंचायत की बैठकों में उनके पति ही जाते हैं और गांव के अधिकतर मामले वही निपटाते हैं। भविष्य के कामों और गांव की ज़रूरतों के बारे में भी जयाबेन को कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि ‘‘ पंचायत के काम काज के बारे में सारी जानकारी मेरे पति देंगे क्योंकि वही सारा काम देखते हैं और मैं तो तब ही पंचायत जाती हूँ जब मुझे कहीं अंगूठा लगाना होता है।“ कांजीभाई जादव (सरपंच पति) ने बताया कि उनकी पत्नी के कार्यकाल में गाँव की बच्चियों के लिए परिवहन विभाग में बात करके एक बस का इन्तजाम कराया ताकि बच्चियों को स्कूल जाने में कोई परेशानी न आए। पंचायत में रोड व गटर का निर्माण कराया गया। इसी धंधुका तालुका की एक और पंचायत है कोथाडिया। यह भी 2017 में महिला सीट थी। चुनाव में 189 वोटों से जीतकर यहां की सरपंच बनीं हंसाबेन मकवाना। हंसाबेन मकवाना बुनकर समुदाय से हैं। इनकी उम्र 36 साल है व इन्होंने कक्षा 3 तक शिक्षा हासिल की है। हालांकि हंसाबेन पढ़ लिख नहीं सकती हैं। इनके गांव की आबादी एक हज़ार है। तीन बच्चों, पति व हंसाबेन को मिलाकर परिवार में कुल पांच सदस्य हैं। बेहद सरल जीवन बिताने वाले इस परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हंसाबेन खुद खेतों में मज़दूरी करती हैं व पति बिजली का काम करते हैं। इस तरह दोनों से होने वाली आमदनी से परिवार का खर्च चलता है।
कोथाडिया में अधिकतर दरबार समुदाय के लोग रहते हैं। उनके कहने पर ही हंसा बेन को पंचायत चुनाव में सरपंच पद का उम्मीदवार बनाया गया। हंसा अपने घर के कामों में ही व्यस्त रहती हैं, जबकि उनकी सरपंची के निर्णय उनके पति गाँव वालों के कहने के अनुसार ही लेते है। हंसाबेन के मुताबिक वह अभी तक अपनी सरपंच की कुर्सी पर भी नहीं बैठी हैं। हालांकि उनके कार्यकाल में पंचायत में विकास के काम हुए हैं। पर हंसाबेन को इस बारे में जानकारी नहीं कि गांव में 200 लोगों के लिए गैस चूल्हे के लिए फार्म भरवाए गए, 80 लोगों के गैस के चूल्हे आ गए हैं और बाकी लोगों को दिलवाने की योजना है। आवास योजना के तहत लोगो के लिए रहने के लिए घर बनवाने की बात भी कार्य योजनाओं में शामिल है। गाँव में आगंनबाड़ी,पंचायत भवन की मरम्मत, गाँव में नालियों और सड़क का निर्माण का काम हुआ। पर सभी कार्यो को उनके पति के ज़रिए किए गए। हंसाबेन की एक सरपंच के तौर पर इसमें न कोई राय है न ही कोई जानकारी। धंधुका तालुका की कोटड़ा ग्राम पंचायत सीट भी 2017 में महिलाओं के लिए आरक्षित थी। मावू धनजी राठौर यहां की सरपंच बनीं। माबू के परिवार में उनके पति के अलावा दो बच्चे और सासू माँ हैं। कोटड़ा ग्राम पंचायत में 6000 लोग हैं जिसमें ठाकुर, राठौर, कोड़ी पटेल, भरवाड, और पगी इत्यादि जातियां हैं। केवल पांच ही घर भरवाड समुदाय से है जिसमें माबू बेन का परिवार भी एक है। कक्षा 6 तक पढ़ी माबूबेन केवल पंचायत के कागजों पर हस्ताक्षर करने भर की सरपंच हैं। उन्हें पंचायत व पंचायत के कामों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।
दो घंटा उनके घर में गुज़ारने के बाद भी माबू बहन पंचायत के कामों के बारे में कुछ नहीं बता सकीं। पूरे इंटरव्यू के दौरान वह ज़मीन पर बैठी रहीं और हर सवाल पर वह अपने पति धनजी भाई की ओर देखतीं फिर शांत होकर सब कुछ सुनती रहतीं। माबू धनजी से बात करना भी आसान नहीं था। उनके पति ने शुरू में कहा कि वह खेत गयी हैं और जो भी सवाल हों वह धनजीभाई से करें क्योंकि वह केवल हस्ताक्षर करती हैं बाकी सारे काम उनके पति द्वारा ही किये जाते हैं। धनजी भाई का कहना था कि जब तक वह बैठे हैं माबू काम करके क्या करेगी ? उसे कुछ काम नहीं आता और वास्तव में वह ही सरपंच हैं। माबू के चुनाव में खड़े होने के पीछे प्रेरणा और अन्य निजी प्रशनों का उत्तर भी उनके पति ने ही दिया। उन्होंने कहा कि यदि सामान्य सीट होती तो वह स्वयं चुनाव में खड़े होते परन्तु महिला सीट होने की वजह से उन्होंने माबू को चुनाव में खड़ा किया। उसका नामांकन भरा और सभी दस्तावेज जमा किये। दरअसल माबू की तो चुनाव में जाने की कोई इच्छा ही न थी।
माबू जीतीं इसलिए कि वो धनजीभाई की पत्नी हैं। धनजी भाई राठौर ने बताया कि उन्होंने गांव में पानी की व्यवस्था करने के लिए अपने निजी कोष से धन की व्यवस्था की और गांव को पानी के संकट से मुक्त किया। इसलिए गांववालों ने उनकी पत्नी को वोट दिया अन्यथा असली सरपंच तो वही हैं। कंजिया ग्राम पंचायत की सरपंच रेखाबेन के पति ने बताया कि रेखाबेन के कार्यकाल में उन्होंने अपने प्रयासों से 84 लाख रूपए की लागत से सड़क निर्माण का कराया गया, आंगनबाड़ी की मरम्मत व उसकी हालात में सुधार करवाया गया। आंगनबाड़ी स्टाफ को स्थायी कराया गया। मोरेसिस गाँव की लड़कियां शिक्षा के लिए बस से धंधुका तालुका जाती हैं। रास्ते में दूसरे गाँव के लड़कों द्वारा उनके साथ छेड़छाड़ की घटनाएं होती थीं। सरपंच के पति ने तालुका दफ्तर में अर्जी लगाई लिहाज़ा अब मोरेसिस गाँव से धन्दुका तालुका तक बस सीधी जाती है। इस तरह छेड़-छाड़ की घटनाओं पर रोक लगी ।
कुछ महिला सरपंचों से बातचीत में यह बात सामने आयी कि पहली बार सरपंच बनने वाली महिला को लगातार प्रशिक्षण देने की जरुरत है जबकि व्यवस्था केवल एक ही प्रशिक्षण की है। उसमें भी उनको गांधीनगर जाकर प्रशिक्षण लेना होता है जिसमें सरपंचों और महिलाओं की संख्या बेहद कम रहती हैं। जयाबेन कहती हैं कि ‘‘महिलाओं को इतनी दूर उनके घर वाले जाने ही नहीं देते और इस सरकारी प्रशिक्षण में सरकार के पास महिला सरपंच पतियों के फोन नम्बर होते हैं जिससे सारी बातचीत उन्हीं तक सीमित रहती है और उनको प्रशिक्षण के बारे में पता ही नहीं चलता। मावूबेन बस एक बात बोल सकीं कि अगर उनको भी प्रशिक्षण लगातार मिले तो उनको भी जानकारी हो सकती है कि एक सरपंच के तौर पर उनकी जिम्मेदारियां क्या हैं या पंचायत की समस्याओं को लेकर किस विभाग के पास जाएँ। मावू की बातों से ऐसा भी निकल कर आया कि यदि उनको इस बारे में जानकारी होगी तो उनके घर के पुरूष सदस्य उनके कामों में दखलंदाजी कम या बंद कर देंगे इसके साथ ही वह भी अपने कामों को लेकर आत्मनिर्भर हो जाएँगी।
(सुनीती शर्मा)
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आलेख : नीतियों की बाधा से भी बड़ी बाधा है उत्पीड़न
गुजरात की राजधानी गांधीनगर के कई गांवों में एक गाँव है राचड़ा, जहाँ की सरपंच हैं रूपा भीखाजी ठाकोर। रूपा 2017 से राचड़ा पंचायत की सरपंच हैं। राचड़ा ग्राम पंचायत गांधीनगर के कलोल तालुका में आता है जो गांधीनगर से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर है। पंचायत की कुल आबादी तकरीबन 3924 है जिसमें महिलाओं की कुल संख्या तकरीबन 1100 होगी । रूपाबेन यहां अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती हैं। इनके पति प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं जिससे परिवार का गुज़र बसर होता है। रूपा पहली बार सरपंच का पद संभाल रही हैं। 2017 में जब राचड़ा ग्राम पंचायत की सीट महिला के लिए आरक्षित हुई तो रूपा के पति भिकाजी ने रूपा को सरपंच के पद के आवेदन भरवा दिया जबकि रूपा का इसके लिए कोई मन नहीं था और न ही रूपा के बच्चें ऐसा चाहते थे। रूपा बेन 2017 में सरपंच बनीं और तब से वह गांव में विकास से जुड़े अनेक काम करा चुकी हैं। गाँव में सूखे पड़े तालाब में पशुओं के लिए पानी भरवा दिया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास दिलवाए, सड़कों का निर्माण कराया, पानी निकासी के लिए गटर लाईन डलवाई, बिजली के खम्बे लगवाए व पानी की समस्या को दूर करने के लिए नल लगवाए। सरपंच के तौर पर काम करने में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
रूपा 2012 में सरपंच बनने से पहले पंच का पद संभाल चुकी हैं। दरअसल राचड़ा पंचायत के एक पंच ने 2012 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और पंच का काफी समय के लिए खाली पड़ा रहा। पंच पद के लिए किसी और उम्मीदवार की ओर से नामांकन नहीं भरा गया। लिहाज़ा रूपा को एक साल के लिए निर्विरोध पंच चुन लिया गया । राचाड़ा ग्राम पंचायत में इस समय कुल 9 सदस्य हैं जिसमें 4 महिलाएं हैं और 5 पुरूष हैं । रूपा सरपंच पद के लिए हुए चुनावी नतीजों को लेकर थोड़ा घबराई हुई थीं। शायद रूपा और उनके बच्चों को यह बात पहले से ही पता थी कि उनकी पंचायत में सरपंच के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है। पंचायत में विकास कामों से जुड़े निर्णय वह सभी पंचों की सलाह से लेती हैं। सरकारी दफ्तरों में कैसे कामकाज निकलवाना हैं या कैसे कोर्ट कचहरी में काम होता हैं, इस सब कामों की जानकारी उनके पति उन्हें देते हैं। रूपा पंचायत से जुड़े कार्यों से संबंधित सलाह अपने पति से लेती हैं। प्राप्त जानकारी के आधार पर पंचायत के विकास के लिए ग्रांट लाने में सफल रही हैं। सरपंच बनने के बाद सरकार की तरफ से उन्हें केवल एक बार ही ट्रेनिंग मिली है। रूपा कहतीं हैं कि सरपंच के कामों को समझने के लिए एक ट्रेनिंग में मैं बहुत ज़्यादा नहीं समझ पाई थी। सरपंच के कामों को समझने में उनके पति भिकाजी भाई ने उनकी मदद की। इसके अलावा रूपा ने अपनी मदद के लिए एक कानूनी सलाहकार को रखा है, जिसको वह महीने में तकरीबन 4000 से लेकर 5000 तक देती है ।
रूपा नाम का उल्लेख किये बगैर अपने गांव के एक व्यक्ति के बारे बताती हैं जिसका किसी राजनैतिक दल से संबंध है और वह उनको अप्रत्यक्ष तौर पर मानसिक रूप से परेशान करता है। यह व्यक्ति तालुका पंचायत में एक शक्तिशाली सदस्य हैं। उसके कहने पर राचड़ा गाँव में उसके पक्षधर लोग देर रात रूपा से बेवजह की मदद मांगने के लिए शराब पी कर आते हैं और यदि रूपाबेन उनसे कहें कि वह सुबह आकर बात करें तो वह गाली गलौज करना शुरू कर देते हैं। बकौल रूपा पिछले दिनों उनके पति व बेटे पर जान लेवा हमला किया गया जिसमें रूपा का बेटा बाल-बाल बचा। रूपा और उसके परिवार ने जब इस मामलें कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो रूपा के परिवार को पुलिस में रिपोर्ट न दर्ज कराने के लिए धमकी भी दी गयी कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो अगली बार उनका बेटा नहीं बचेगा। रूपा के मुताबिक उसके साथ इस तरह का अत्याचार इसीलिए किया जा रहा हैं ताकि वह सरपंच का पद छोड़ दे । एक महिला सरपंच के तौर पर रूपा का मनोबल तोड़ने का यह इकलौता प्रयास नहीं है। रूपा बताती हैं कि गांव में एक बैंक के उद्घाटन के मौके पर उनका मनोबल तोड़ने के लिए वर्तमान सरपंच के बजाय पंचों का सम्मान किया गया और रूपा बेन को अनदेखा किया गया। जबकि गांव की किसी भी गतिविधि में सरपंच एक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। रूपा के मुताबिक बैंक मैनेजर ने यह सब तालुका पंचायत में एक मंत्री के कहने पर यह सब किया। यह सब इसलिए कि वह एक महिला हैं, और वह अपनी स्वतंत्र समझ से काम करती है।
रूपा के पति ने बताया कि उनके पति व रूपा पर यह आरोप भी लगाया कि उन्होंने पंचायत में एक सूखे पड़े तालाब को एक प्राइवेट बिल्डर को बेच दिया। जबकि वह तालाब अपनी जगह वैसे का वैसा ही है। इतना ही नहीं इस खबर को मीडिया में भी प्रकाशित करा दिया। रूपा अपने पति और अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं, उनका कहना है कि उनके लिए उनके परिवार की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है चाहे उनको इसके लिए सरपंची छोड़नी क्यों न पड़ जाये? रूपा ने बताया कि वर्तमान में जो सचिव है वह पहले के सरपंचों से खाली चेक पर ही हस्ताक्षर करवा लिया करता था। रूपा ने खाली चेक पर हस्ताक्षर करने से मना दिया। इसलिए सचिव ग्राम पंचायत का ग्रांट पास करने में मुश्किलें पैदा करने लगा। जब वह कभी रूपा जिला अधिकारी को गाँव के विकास कार्य के लिए अपनी तरफ से बजट देती थी तो सचिव उस बजट को गलत बता देता था और राजकीय पक्ष भी सचिव की बात को मानकर उनको ग्रांट को कम करके ही देता था । रूपाबेन अपने गाँव के लिए शिक्षा, गरीब लोगों के लिए मकान और पानी के मसले पर और काम करना चाहती हैं, वाई फाई की सुविधा लाना चाहती हैं जिससे बच्चे इन्टरनेट के माध्यम से अपनी शिक्षा को और बेहतर कर सकें। पर गांव राचड़ा़ में विकास कार्य रूका हुआ है क्योंकि मानसिक परेशानियों के चलते रूपाबेन महत्वपूर्ण मूद्दों पर अपना ध्यान नहीं दे पा रही हैं। गुजरात सरकार ने महिलाओं को ग्राम पंचायत में 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें शासन में शामिल होने का मौका तो दिया है किन्तु आज भी औरतों के प्रति समाज का नज़रिया, राजनैतिक समीकरण और भ्रष्टाचार की वजह से पंचायतों में बैठी औरतों का मनोबल तोड़ने की कोशिशें जारी हैं। आज भी हम महिलाओं के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। रूपा ठाकोर इसका एक बड़ा उदाहरण हैं। वह भले ही राज्य स्तरीय नीतियों की बाधा को पार कर आयी हैं किन्तु उनके मनोबल को तोड़ने की यह कोशिशें अन्ततः उनको अपना रास्ता बदलने को मजबूर कर सकती हैं। आश्चर्य नहीं कि किसी दिन उन्हें अविश्वास प्रस्ताव की गिरफ्त में ले लिया जाए या वह स्वयं आहत होेकर अपना पद छोड़ दें। रूपा शायद यह फैसला अपने परिवार की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए ले सकती हैं।
--आसिफ गौहर--
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विशेष आलेख : अपराधी को क्षमा के लिये सबरीना की पहल
क्षमा लेना और देना भारतीय संस्कृति की स्वस्थ परम्परा है। इसी माटी में ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जब किसी अपने या परिजन के हत्यारे को भी माफ कर दिया जाता है। ये बड़े दिल वाले और उनसेे जुड़ी बड़ी बातें सुनना और देखना सुखद आश्चर्य का सबब है। ऐसा ही एक अनुकरणीय एवं प्रेरक उदाहरण सामने आया है सबरीना लाल का। वे प्रसिद्ध मॉडल जेसिका लाल की बहन है। जिनकी 19 वर्ष पूर्व मनु शर्मा ने निर्मम हत्या कर दी थी। सबरीना आज उसी को क्षमा करने की बात कर रही हैं। इस तरह का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिये सचमुच बहुत बड़ा दिल चाहिए। वे क्षमा करने की सिर्फ बात ही नहीं कर रही हैं, बल्कि उन्होंने इस बाबत दिल्ली की तिहाड़ जेल के अधिकारियों को एक चिट्ठी भी लिखी है कि अगर मनु शर्मा को रिहा कर दिया जाता है, तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा। यह क्षमा का एक आदर्श उदाहरण है।
क्षमा मांगने वाला अपनी कृत भूलों को स्वीकृति देता है। भविष्य में पुनः न दोहराने का संकल्प लेता है। यह उपक्रम व्यक्ति के अहं को झुकाकर उसे ऊंचा उठा देता है, अपराध मुक्त जीवन की ओर अग्रसर कर देता है। लेकिन सबरीना ने अपने मन की आवाज को सुनकर बिना मांगे क्षमा देने की मिसाल कायम की है। उसने आग्रहमुक्त होकर उदारता के साथ बिना किसी स्पष्टीकरण के सभी निमित्तों को सहते हुए मृत्यु-दंड के मुहाने पर खड़े अपराधी को क्षमा करके मानवीयता का उदाहरण रखा है। उसका यह निर्णय उसकी विवेकशीलता, पवित्रता, गंभीरता और क्षमाशीलता का प्रतीक बना है। ऐसा व्यक्ति किसी को मिटाता नहीं, सुधरने का मौका देता है। जबकि मनु शर्मा ने उनके पूरे परिवार को तबाह कर दिया था, लेकिन सबरीना का मानना है कि अब अच्छा यही है कि इन सबको भूलकर आगे बढ़ा जाए। निस्संदेह, सबरीना की यह सोच तारीफ के काबिल है। ऐसा नहीं है कि उनको वह कठिन दौर याद नहीं होगा, जो जेसिका की हत्या के बाद कहर बनकर उनके परिवार पर टूटा था। एक बड़े राजनीतिक और उद्योगपति परिवार के बिगड़ैल लड़के को सजा दिलवाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, यह सब भी सबरीना को अच्छी तरह याद होगा। निचली अदालत ने तो मनु शर्मा को तकरीबन रिहा ही कर दिया था। बाद में किसी तरह उसे शीर्ष अदालत से सजा दिलाई जा सकी।
अपराध तय हो जाने एवं सजा भी सुना देने के बाद क्षमा की बात होना- क्षमा का वास्तविक हार्द उद्घाटित करता है। क्योंकि उस परिवेश और परिस्थिति में क्षमा का उदाहरण कभी नहीं विकसित हो सकता जहां स्वार्थों एवं संकीर्णता की दीवारें समझ से भी ज्यादा ऊंची उठ जाएं। विश्वास संदेहों के घेरे में घुटकर रह जाए। समन्वय और समझौते के बीच अहं आकर खड़ा हो जाए, क्योंकि अहं की उपस्थिति में आग्रह की पकड़ ढीली नहीं होती और बिना आग्रह टूटे क्षमा तक पहुंचा नहीं जा सकता। लेकिन सबरीना ने सारी सच्चाइयों के बावजूद अपनी बहन के हत्यारे को क्षमा करके एक नयी सोच को पल्लवित होने का अवसर दिया है। जबकि मनु शर्मा अभी भी सुधरने की तैयारी में नहीं दिखाई दे रहा है। गत एक दशक का उसका आचरण अभी भी विववादास्पद है। जब-जब वह पेरोल पर बाहर निकला तो रिहाई के दौरान भी वह कई बार विवादों में रहा। एक बार मां की बीमारी के नाम पर पेरोल पर आया, तब भी वह एक नाइट क्लब में घूम रहा था, जबकि उसकी मां एक सम्मेलन में भाग ले रही थीं। एक पेरोल के दौरान उसने किसी पब में हंगामा ही बरपा दिया था। एक बार तो उसकी एक पेरोल की सिफारिश के लिए दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी थी। और भी किस्से चर्चित रहे हैं। इन सब घटनाक्रम की जानकारी सबरीना को पता न हो, ऐसा नहीं हो सकता, फिर भी अगर वह सब कुछ भूलकर मनु शर्मा को माफ करने की बात करती हैं, तो उनकी तारीफ होनी चाहिए। हालांकि उनकी चिट्ठी का इसके अलावा कोई बड़ा अर्थ नहीं है। भारत की न्याय व्यवस्था में पीड़ित या पीड़ित के परिवार वालों के पास अपराधी को माफ करने का कोई अधिकार नहीं होता। यह अधिकार सिर्फ सरकार के पास होता है। और वहां भी माफी की बाकायदा एक प्रक्रिया है। लेकिन इस इस दिशा में अग्रसर होने की भूमिका तैयार करना भी आदर्श की स्थिति है। सबरीना ने यह चिट्ठी उस वक्त लिखी है, जब तिहाड़ जेल से 90 कैदियों की रिहाई पर विचार चल रहा है। इनमें से ज्यादातर कैदी वे हैं, जिन्होंने लंबा समय जेल में गुजार लिया है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिनके ‘आचरण’ के कारण उनकी रिहाई की सिफारिश की गई है। इस सूची में दिल्ली के तंदूर कांड के अभियुक्त सुशील शर्मा का नाम भी है। सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी को न सिर्फ गोली मारी थी, बल्कि उनके शरीर को एक होटल के तंदूर में जला दिया था। इन दो नामों से यह सूची विवादों में आ गई है।
बात सबरीना की नहीं है, बात कानून की भी नहीं है, यहां बात भारतीय संस्कृति के मूल्यों की है। सबरीना के क्षमा करने से मनु की सजा पर कोई फर्क पडे़गा या नहीं, लेकिन दुनिया में भारतीय संस्कृति और उसके उच्च मूल्य मानकों का सम्मान जरूर होगा। हमें एक सन्देश जरूर मिलेगा कि यदि हमारे व्यवहार से औरों को कुछ कष्ट होता है तो उसके लिए विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना कर लेनी चाहिए। यदि हम दूसरों को क्षमा नहीं कर सकते तो परमात्मा कैसे हमारी अनंत भूलों, पापों को माफ करेगा। यह मान के चलिये कि मनुष्य गलतियों का पुतला है। फिर भी दूसरों की त्रुटियां क्षम्य है, लेकिन अपनी स्वयं की गलती के लिए प्रायश्चित करना चाहिए। अपने सभी कर्मों को भगवान को समर्पित कर अपनी गलती के लिए सदैव सजग व जागरूक रहना चाहिए। यही गुणों को जीवन में विकसित करने का रास्ता है। गौतम बुद्ध ने प्रेरक कहा है कि पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सद्गुण की महक सब ओर फैलती है। ईसा ने अपने हत्यारों के लिए भी प्रभु से प्रार्थना की कि प्रभु इन्हें क्षमा करना, इन्हें नहीं पता कि ये क्या कर रहे हैं। ऐसा कर उन्होंने परार्थ-चेतना यानी परोपकार का संदेश दिया। इन आदर्श एवं प्रेरक उदाहरणों से वातावरण को सुवासित करना- वर्तमान की बड़ी जरूरत है, इसी से कानून के मन्दिरों पर बढ़ते बोझ को कुछ कम किया जा सकता है।
सह-जीवन एवं आपसी संबंधों की सुरक्षा में आवश्यक है सहिष्णुता। प्रतिकूल वस्तु, व्यक्ति, वातावरण या विचार के प्रति प्रतिक्रिया न करना। जो सहना नहीं जानता वह कलह, विवाद, निरर्थक तर्कों में उलझकर सुख और आनंद की पकड़ ढीली कर देता है। सच तो यह है कि दुश्मन से भी ज्यादा दोस्त को सहना जरूरी है, क्योंकि अपनों के बीच टूटता विश्वास, उठता विरोध, पनपता मनभेद ज्यादा घातक होता है। इसलिए अपराध एवं बुराइयों पर नियंत्रण महत्वपूर्ण प्रयोग है-गलती बताओ, पर छिद्रान्वेषी बनकर नहीं, हितैषी बनकर। अंतिम क्षण तक व्यक्ति को सुधरने का मौका दो, उसे टूटने मत दो, क्योंकि बदलना धर्म का शाश्वत सत्य है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर ने बहुत सटीक कहा है कि हमारे जीवन का उस दिन अंत होना शुरू हो जाता है जिस दिन हम उन विषयों के बारे में चुप रहना शुरू कर देते हैं जो मायने रखते हैं। इसलिये अपराधी से ज्यादा जरूरी है अपराध को समाप्त करने की स्थितियां खड़ी करना। इसके लिये सबरीना एक नयी सुबह लेकर आयी है।
(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला,
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051
फोनः 22727486, 9811051133
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