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नेपाल : जनकपुर में मोदी, ओली से मंदिर में मुलाकात की

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जनकपुर (नेपाल), 11 मई, नेपाल के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को यहां के प्रसिद्ध राम जानकी मंदिर में नेपाली समकक्ष के.पी.ओली से मुलाकात की। मोदी की नेपाल की यह तीसरी यात्रा है। ओली ने मंदिर में भारतीय प्रधानमंत्री का स्वागत किया। दोनों नेताओं ने काठमांडू से लगभग 225 किलोमीटर की दूरी पर जनकपुर स्थित मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की। ओली की भारत यात्रा के एक महीने बाद मोदी नेपाल दौरे पर हैं। मोदी ने बयान में कहा, "ये उच्चस्तरीय और नियमित संवाद 'सबका साथ, सबका विकास'के हमारे उद्देश्य के साथ हमारे सरकार की 'पड़ोसी पहले'की नीति के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाते हैं।"मोदी और ओली द्वारा संयुक्त रूप से जनकपुर से उत्तर प्रदेश के अयोध्या के लिए सीधी बस सेवा को हरी झंडी दिखाकर रवाना कर सकते हैं। दोनों नेता भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत जनकपुर को रामायण सर्किट में शामिल किए जाने का भी उद्घाटन करेंगे। मोदी जनकपुर उपमहानगर द्वारा आयोजित नागरिक अभिनंदन समारोह में भी शामिल होंगे। ओली के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के लिए मोदी बाद में काठमांडू के लिए रवाना हो जाएंगे।

जनकपुर में मोदी के सिर पर सजा 'पाग'

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नई दिल्ली, 11 मई, नेपाल के दो दिवसीय राजकीय दौरे पर शुक्रवार को जनकपुर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाग पहनाकर उनका स्वागत किया गया। मिथिला में पाग सांस्कृतिक पहचान व सम्मान का प्रतीक है। इसलिए राजा जनक की धरती जनकपुर में भारत के प्रधानमंत्री का अभिनंदन पाग से किया गया। सिर पर पाग धारण किए मोदी की तस्वीर पर टिप्पणी करते हुए उनके ट्विटर अकाउंट पर एक फोलोवर ने लिखा है कि सिर पर मिथिला का पाग और गले में मिथिला पेंटिंग अंकित अंगवस्त्र देख मिथिलावासी गौरवान्वित हैं। ट्विटर पर मोदी के फोलोवर मनोज झा लिखते हैं- "प्रधानमंत्री जी, आपका जनकपुर यात्रा पूरे भारत और नेपाल के मैत्री संबंध को और प्रगाढ़ करता है आपके सर पर मिथिला का पाग और गले में मिथिला पेंटिंग का अंगवस्त्र पूरे मिथिला वासियों को गौरवान्वित महसूस करा रहा है।"इससे पहले नेपाल जनकपुरी पहुंचे मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा- "मैंने जनकपुर से अपना नेपाल दौरा आरंभ किया। यह भूमि हमारे घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंधों का प्रमाण है।"मिथिला की इस सांस्कृतिक पहचान पाग के महत्व को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने 2017 में पाग पर डाक टिकट जारी किया था।

सोनम कपूर की आनंद आहूजा के साथ शादी बेहद चर्चा में रही

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नई दिल्ली, 11 मई, अभिनेत्री सोनम कपूर की आनंद आहूजा के साथ शादी बेहद चर्चा में रही। मेहंदी, संगीत, शादी समारोह सब कुछ शानदार रहा, जिसमें कई बड़े फिल्मी सितारे शरीक हुए। अभिनेत्री के वेडिंग प्लानर का कहना है कि शादी समारोह को बेहतरीन बनाने के तनाव से दूर फिल्म 'वीरे दी वेडिंग'की अभिनेत्री ने शादी से जुड़ी तैयारियों की जिम्मेदारी परिवार पर छोड़ दी और अपना पूरा ध्यान शादी समारोह से जुड़े हर लम्हे का लुत्फ उठाने पर दिया। वेडिंग प्लानिंग एजेंसी वेदनिक्शा के निदेशकों में से एक भवनेश साहनी ने आठ मई को हुई सोनम की शादी के बारे में आईएएनएस को बताया, "सोनम एक शानदार शख्स हैं और उनकी गर्मजोशी किसी भी जश्न को निश्चित रूप से जीवंत बना देती है। वह बस जीभर कर लुत्फ उठा रही थीं और सारा फैसला उन्होंने अपने परिवार पर छोड़ दिया था।"उन्होंने कहा, "चूंकि यह एक पंजाबी शादी थी, मीका सिंह और गुरदीप मेंहदी जैसे गायकों ने जश्न में धमाल मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हर मेहमान ने डांस फ्लोर पर अपनी हाजिरी दर्ज कराई।"

शादी में शरीक हुए शाहरुख खान, सलमान खान, शिल्पा शेट्टी, करण जौहर, रणवीर सिंह ने जमकर डांस किया। सोनम के पिता अनिल कपूर और चचेरे भाई अर्जुन कपूर भी खूब झूमे। साहनी ने कहा, "अनिल कपूर और उनका परिवार प्यार और आतिथ्य के लिए जाना जाता है। वे हमसे शादी से जुड़ी हर चीज में इसी भवना का पुट चाहते थे। शादी प्यार और इस खास मौके का दोस्तों और परिवार के साथ मिलकर जश्न मनाने के बारे में था।"आम तौर पर शादी से जुड़े कार्यक्रम में सफदे रंग से लोग दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन सोनम के संगीत का थीम सफेद रंग पर आधारित था। साहनी ने कहा, "अब हम अंधविश्वास के दौर में नहीं हैं, मुझे लगता है कि यह फैसला सबकी सहमति से हुआ और सफेद परिधान में हर कोई खूबसूरत नजर आ रहा था।"साहनी ने कहा कि सोनम और आनंद की शादी मशहूर हस्तियों की शानदार ढंग से हुई शादी समारोहों में से एक रही है। ऐसा समारोह करीब एक दशक बाद देखने का मौका मिला।

भारत दुनिया का सबसे युवा देश : रघुवर दास

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रांची, 11 मई, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आज कहा कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है और यहां की युवा आबादी को हुनरमंद बनाकर हम विकास के पथ पर तेजी से बढ़ सकते हैं। मुख्यमंत्री दास ने यहां झारखंड मंत्रालय में राज्य कौशल प्रतिस्पर्धा के विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कृत करने के बाद लोगों को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि ज्ञान आधारित युग में आज केवल डिग्री के बल पर रोजगार नहीं मिल सकता है। उन्होंने कहा कि कम -पढ़ा लिखा हुआ व्यक्ति भी हुनरमंद हो, तो उसे अच्छा अवसर मिल सकता है।  मुख्यमंत्री ने कहा कि इस वर्ष राज्य में एक साथ 25 हजार युवाओं को रोजगार के लिए पत्र दिये गये। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक पल था। अगले वर्ष 12 जनवरी को एक लाख युवाओं को एक साथ रोजगार से जोड़ा जायेगा।

पत्रकार उपेन्द्र राय के खिलाफ ईडी की छापेमारी

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नयी दिल्ली , 11 मई, प्रवर्तन निदेशालय ने पत्रकार उपेन्द्र राय और उनके सहयोगियों के खिलाफ धन शोधन का मामला दर्ज कर दिल्ली और नोएडा में उनसे जुड़े परिसरों पर छापेमारी की है। अधिकारियों ने बताया कि राय फिलहाल न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। मुंबई के एक उद्योगपति के खिलाफ आयकर विभाग के मामले से छेड़छाड़ करने और फिरौती के कथित मामले में सीबीआई ने राय को गिरफ्तार किया था।  प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी ने राय और दो अन्य के खिलाफ धन शोधन निवारण कानून ( पीएमएलए ) के तहत मामला दर्ज किया है और सीबीआई की दो प्राथमिकियों पर संज्ञान लिया है।  उन्होंने बताया कि दिल्ली के ग्रेटर कैलाश -1 और पड़ोसी नोएडा शहर में कई परिसरों पर छापेमारी की जा रही है।  अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी जांच करेगी कि क्या पत्रकार ने अवैध तरीके से धन जुटाकर यह संपत्तियां अर्जित की हैं। 

भ्रष्टाचार, भेदभाव और शोषण से बिगड़ रही है सामाजिक संरचना : नायडू

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पनामा सिटी , 11 मई, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा है कि भ्रष्टाचार , भेदभाव , शोषण और बुनियादी मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण दुनिया भर में सामाजिक संरचना बिगड़ रही है जिससे अशांति , क्रोध , विद्रोह और चरमपंथ उत्पन्न होता है।  पनामा सिटी में राजनयिकों और छात्रों को संबोधित करते हुए नायडू ने वर्तमान दुनिया में बढ़ते अलगाव पर गंभीर चिंता व्यक्त की और गरीबी और असमानता जैसी बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए तीव्र सामूहिक वैश्विक प्रयास की मांग की।  उपराष्ट्रपति ने कहा , ‘‘ भ्रष्टाचार , भेदभाव , शोषण , हिंसा और बुनियादी मावाधिकार के उल्लंघन के कारण पूरे विश्व में सामाजिक संचरचना बिगड़ रही है।  सरकारी विज्ञप्ति में नायडू के हवाले से कहा गया है , ‘‘ शोषण और स्थापित शासन प्रणाली की विफलता की इन बुराइयों और धारणाओं में अशांति , क्रोध , विद्रोह और चरमपंथ का कारण बनता है। हम जितनी जल्दी इन मुद्दों का प्रभावी ढंग से समाधान करेंगे , उतना ही बेहतर होगा । ’’  नायडू ने जोर देकर कहा कि भारत देश के प्राचीन ज्ञान और मूल्यों के आधार पर एक नये वैश्विक व्यवस्था चाहता है जो सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व का आधार है ।  पनामा में करीब 40 देशों के राज दूतों ने बाद में नायडू से बातचीत की और केंद्र सरकार की ओर से उठाए गए प्रमुख कदमों की सराहना की तथा तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था की सराहना की ।  ग्वाटेमाला और पनामा की यात्रा के बाद दिन में , नायडू पेरू की राजधानी लीमा पहुंचे ।  इससे पहले बुधवार को नायडू की मुलाकात पनामा के राष्ट्रपति जुआन कार्लोस वरेला रोड्रिग्स से हुई थी जिसमें कृषि , व्यापार , स्वास्थ्य , संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में द्वीपक्षीय सहयोग पर चर्चा हुई थी ।

‘कान फिल्म उत्सव’ के रेड कॉर्पेट पर कंगना, दीपिका ने बिखेरा जलवा

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कान , 11 मई, बॉलीवुड अदाकारा कंगना रनौत और दीपिका पादुकोण ने फ्रेंच रिवेरा में ‘ कान फिल्म उत्सव ’ के रेड कार्पेट पर अपना जलवा बिखेरा। पहली बार कान में शिरकत करने वाली कंगना स्लेटी रंग के बैकलेस गाउन में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थीं। स्लेटी रंग के झीने कपड़े के इस गाउन पर कशीदाकारी हुई थी। दूसरी बार कान फिल्म उत्सव में शिरकत करने वाली दीपिका पादुकोण डिजाइनर जुहेर मुराद की पोशाक में नजर आईं। उन्होंने बेहद मामूली मेक - अप किया हुआ था। इंस्टाग्राम पर उन्होंने लिखा , ‘‘ रॉक एंड रॉल को तैयार। कान 2018.. । ’’  ऐश्वर्या राय बच्चन 12-13 मई को ‘ कान फिल्म उत्सव ’ में शिरकत करेंगी। अभिनेत्री हुमा कुरैशी भी इस बार कान फिल्म उत्सव में शिरकत करेंगी। 

मोदी, ओली में रक्षा, सुरक्षा समेत कई क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति

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काठमांडू 11 मई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने आज यहां द्वीपक्षीय संबंधों पर विस्तृत विचार -विमर्श किया और दोनों देशों के बीच जल संसाधन उर्जा, संपर्क सुविधाओं, रक्षा तथा सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया गया। नेपाल के दो दिनों की यात्रा पर यहां पहुंचे श्री मोदी ने श्री ओली के साथ द्वीपक्षीय बैठक के बाद मीडिया के समक्ष अपने वक्तव्य में नेपाल कें विकास में सहयोग की भारत की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि बैठक में भारत-नेपाल साझेदारी के सभी आयामों की समीक्षा की गयी। भारत तथा नेपाल ने कृषि, नदी जलमार्गाें और रेलवे में कई परिवर्तनकारी पहलों की शुरुआत की है। इससे दोनों देशों के लोगों और व्यवसायों में आपसी संपर्क बढ़ेगा।  श्री मोदी ने कहा,“मैं नदी जलमार्गाें में हमारे सहयोग को विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानता हूँ। नेपाल लैंड लॉक्ड न रहे, बल्कि लैंड लिंक्ड और नदी जलमार्गाें से जुड़े। हम प्रधानमंत्री ओली जी के इस विचार को साकार करने में हर संभव सहायता और प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारे कृषि मंत्री शीघ्र ही मिलेंगे।”

विशेष आलेख : न्यायपालिका की स्वायत्तता का सवाल

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भारतीय लोकतंत्र के दो आधार स्तंभों के बीच की टकराहट अपने चरम पर पहुंच चुकी है और फिलहाल इसके थमने का आसार नजर नहीं आ रहा हैं, विधायिका और कार्यपालिका के बीच की हालिया टकराहट भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अभूतपूर्व है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी यह टिपण्णी कि “सरकार अब न्याय पालिका को अपने कब्जे में करना चाहती है और कार्यपालिका न्याय पालिका को मूर्ख बना रही है” स्थिति की गंभीरता को दर्शाने के लिये काफी है. हमारी न्यायपालिका एक मुश्किल दौर से गुजर रही है पिछले दिनों एक के बाद एक हुई घटनाओं ने पूरे देश का ध्यान खींचा है. केंद्र सरकार द्वारा न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाये जाने संबंधी कॉलेजियम की सिफारिश को पुनर्विचार के लिए वापस भेजने के बाद से ये टकराहट अपने चरम पर पहुंच चुकी है, लेकिन टकराहट अन्दर और बाहर दोनों से हैं. कॉलेजियम की सिफारिश वापस भेजने के बाद दो वरिष्ठ जजों द्वारा मुख्य न्यायधीश से इस मसले पर ‘फुल कोर्ट’ बुलाने की मांग की गयी थी लेकिन चीफ जस्टिस द्वारा जिस  इन चिंताओं पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया जाहिर है कॉलेजियम के चार सदस्यों और प्रधान न्यायाधीश  के बीच मतभेद की स्थिति लगातार बनी हुई है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट के 22 अन्य जजों को एक चिट्ठी लिखी गयी थी जिसमें उन्होंने देश के सर्वोच्च अदालत की स्थिति को लेकर गंभीर चिंतायें  जताई थीं अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट का वजूद खतरे में है और अगर कोर्ट ने कुछ नहीं किया तो इतिहास उन्हें (जजों को) कभी माफ नहीं करेगा. हमारे संविधान में सरकार के तीन अंगों में शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा है लेकिन कई कारणों से हम इनमें संतुलन नहीं बना पाए हैं. सुप्रीम कोर्ट की यह कहना कि “जब हम कुछ कहते हैं तो यह कहा जाता है कि यह तो न्यायिक सक्रियता का और आगे निकल जाना है” इन पूरे विवाद की जड़ को बयान करता है. भारत में न्यायपालिका की साख और इज्जत सबसे ज्यादा है ,चारों तरफ से नाउम्मीद होने के बाद अंत में जनता  न्याय की उम्मीद में अदालत का ही दरवाज़ा खटखटाती है. यह स्थिति हमारी कार्यपालिका और विधायिका की विफलता को दर्शाती है, इसी वजह से न्यायपालिका को उन क्षेत्रों में घुसने की जरूरत मौका मिल जाता है जिसकी जिम्मेदारी कार्यकारी या विधायिका के पास है. कार्यपालिका और विधायिका के नाकारापन के कारण ही देश के अदालतों को उन अपीलों में व्यस्त रहना पड़ता है जो उससे क्षेत्र में नहीं आते हैं.

लेकिन इधर सुप्रीम कोर्ट भी पिछले कुछ समय से लगातार गलत वजहों से सुर्ख़ियों में है अब स्थिति यहाँ तक पहुंच गयी है देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय हिन्दू- मुस्लिम राजनीति का अखाड़ा बनाया जाने लगा है. भारत सरककर द्वारा जस्टिस के एम जोसेफ के नियुक्ति की सिफारिश सुप्रीमकोर्ट वापस भेजे जाने के बाद कांग्रेस के सीनियर नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट किया कि “न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की नियुक्ति क्यों रुक रही है? इसकी वजह उनका राज्य या उनका धर्म अथवा उत्तराखंड मामले में उनका फैसला है ?” इसी तरह से मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ विपक्ष महाभियोग का प्रस्ताव पर सत्ताधारी खेमे द्वारा  ये सन्देश देने की कोशिश की गयी कि महाभियोग इसलिये लाया गया है ताकि चीफ जस्टीस राम मंदिर मामले में सुनवाई न कर सकें और इस पर फैसला ना आ सके. यह क खतरनाक स्थिति बन रही है अगर नायापलिका को भी हिन्दू- मुसलमान के चश्मे से देखा जाने लगा तो फिर इस देश को आराजकता की स्थिति में जाने से कोई नहीं बचा पायेगा.

जजों की नियुक्ति के तौर-तरीकों को लेकर मौजूदा सरकार और न्यायपालिका में खींचतान की स्थिति पुरानी है, लेकिन इसका अंदाजा किसी को नहीं था कि संकट इतना गहरा है. सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायधीश जब न्यायपालिका की खामियों की शिकायत लेकर पहली बार मीडिया के माध्यम से सामने आये तो यह अभूतपूर्व घटना थी जिसने बता दिया कि न्यायपालिका का संकट कितना गहरा है.   इन चार जजों ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि न्यायपालिका की निष्पक्षता व स्वतंत्रता दावं पर है उनके पास कोई और विकल्प ही नहीं बचा था इसलिये वे मजबूर होकर मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखने के लिये सामने आए हैं जिससे देश को इसके बारे में बता बता चल सके, उनका आरोप था कि ‘सुप्रीम कोर्ट में सामूहिक रूप से फैसले लेने की जो परंपरा रही है उससे किनारा किया जा रहा है और महत्‍वपूर्ण मामले खास पसंद की बेंच को असाइन किए जा रहे हैं. इस भेदभाव पूर्ण रवैए से न्‍यायपालिका की छवि खराब हुई है.’ इस दौरान उन्होंने देश की जागरूक जनता से अपील भी की कि अगर न्यायपालिका को बचाया नहीं गया तो लोकतंत्र नाकाम हो जाएगा. इस प्रेस कांफ्रेंस के महीनों बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है और हालत सुधरते हुये दिखाई नहीं पड़ रहे  हैं, संकट गहराता ही जा रहा है.

न्यायपालिका और विधायिका के बीच इस विवाद के एक प्रमुख वजह जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर मतभेद का होना भी है. सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्टों में जजों की नियुक्ति के तरीके को लेकर इन दोनों संस्थानों के बीच का  विवाद पुराना है लेकिन नयी सरकार आने के बाद से विवाद और गहराया है . वर्तमान में जजों की नियुक्क्ति कोलेजियम के परामर्श के आधार पर की जाती है. इस व्यवस्था को बदलने के लिये पिछली यूपीए सरकार द्वारा 2013 में ज्युडिशियल अप्वाईंटमेंट कमीशन बिल लाया गया था जिसे  राज्य सभा द्वारा पारित भी करा लिया गया था लेकिन सत्ता परिवर्तन के कारण इसे  लोकसभा में पारित नहीं कराया जा सका था. इस बिल के प्रावधानों के तहत जजों की नियुक्ति करने वाले इस आयोग की अध्यक्ष भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगें उनके अलावा इसमें सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, क़ानून मंत्री और दो जानी-मानी हस्तियां होंगीं, दो जानी-मानी हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोक सभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दाल के नेता शामिल थे. इसमें खास बात ये थी कि कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफ़ारिश नहीं करेगा.

2014 में सत्ता में आने के बाद वर्तमान मोदी सरकार ने इस बिल को कुछ संशोधनों के साथ  लोकसभा और राज्यसभा दोनों से द्वारा पारित करवा लिया था.  लेकिन न्यायपालिका द्वारा ज्युडिशियल अप्वाईन्टमेंट कमीशन के प्रावधानों  को अपनी  स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मानते हुये इसका कड़ा विरोध किया जाता रहा . 2014 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम सिस्टम की व्यस्था को बेहतर बताते हुए इसमें किसी भी तरह के बदलाव किये जाने का विरोध किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन को असंवैधानिक घोषित करते हुए इसे खारिज कर दिया था और इसके साथ यह भी साफ कर दिया था कि जजों की नियुक्ति‍ पहले की तरह कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी. इसके पीछे सुप्रीम का तर्क था कि आयोग में मंत्रियों के शामिल होने की वजह से न्यायपालिका की निष्पक्षता पर आंच आने का अंदेशा है.  

इसके बाद केंद्र सरकार और सुप्रीमकोर्ट के बीच तल्खी और बढ़ गयी वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तीखी आलोचना करते हुये लिखा था कि “भारत के संविधान में सबसे अहम संसद है और बाद में सरकार लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर दिए अपने फैसले में भारत के संवैधानिक ढांचे को ही नजरअंदाज किया है..भारतीय लोकतंत्र में ऐसे लोगों की निरंकुशता नहीं चल सकती जो चुने नहीं गए हों”. हमारी लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था के चार स्तंभ हैं जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत से चलते हैं इसके तहत हमारे संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारक्षेत्र को लेकर स्पष्ट उल्लेख है इसके अनुसार विधायिका को कानून बनाने  कार्यपालिका को  इसे लागू करने और न्यायपालिका के पास विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के संविधान सम्मत होने की जांच करने का काम है. कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच टकराव पहले भी होते रहे हैं और दोनों एक दुसरे के  अधिकार क्षेत्र में अनधिकृत प्रवेश नहीं करने करने की हिदायत देते रहे हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का सर्वोच्च न्यायालय पर बैंच-फिक्सिंग और सरकार के साथ मिलकर काम करने के आरोप बहुत ही गंभीर मसला है यह सर्वोच्य न्यायलय की स्वायता और ईमानदारी से जुड़ा हुआ है इसलिए इन्हें किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच बढ़ता टकराव किसी भी तरह से लोकतंत्र के हित में नहीं है. किसी को नहीं पता की न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका का यह विवाद कौन सुलझाएगा. लेकिन सब को मिलकर किसी भी तरह से यह सुनिश्चित करना ही होगा कि लोकतंत्र के सभी स्तंभ बिना किसी आपसी दबाव या प्रभाव के स्वतंत्र रूप से काम कर सकें और उनका एक दुसरे पर नियंत्रण बना रहे. 





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जावेद अनीस 
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आलेख : भाषा के सन्दर्भ में फड़नवीस की अनूठी पहल

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने सरकार के सारे अंदरुनी काम-काज से अंग्रेजी के बहिष्कार का आदेश जारी कर दिया है, राष्ट्रीयता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक अनुकरणीय एवं सराहनीय पहल की है। ऐसा करके उन्होंने महात्मा गांधी, गुरु गोलवलकर और डाॅ. राममनोहर लोहिया का सपना साकार किया है। महाराष्ट्र सरकार के सारे सरकारी अधिकारी अब अपना सारा काम-काज मराठी में करेंगे, हिन्दी को भी प्राथमिकता दी जायेगी। केंद्र से व्यवहार करने में हिंदी का प्रयोग तो संवैधानिक आवश्यकता है। आजादी के 70 साल बाद भी सरकारें अपना काम-काज अंग्रेजी में करती हैं, यह देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फड़नवीस ने भाषा के मामले में देश के सभी मुख्यमंत्रियों को सही और अनुकरणीय रास्ता दिखाया है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी राष्ट्र एवं राज भाषा हिन्दी का सम्मान बढ़ाने एवं उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नयी ऊंचाई देने के लिये अनूठे उपक्रम किये हैं। राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय प्रतीकों की उपेक्षा एक ऐसा प्रदूषण है, एक ऐसा अंधेरा है जिससे ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। राष्ट्र-भाषा को लेकर छाए धूंध को मिटाने के लिये कुछ ऐसे ही ठोस कदम उठाने ही होंगे।

विकास की उपलब्धियों से हम ताकतवर बन सकते हैं, महान् नहीं। महान् उस दिन बनेंगे जिस दिन राष्ट्र भाषा, राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र-गान एवं राष्ट्र-गीत को उचित स्थान एवं सम्मान देंगे। जिस दिन शासन एवं प्रशासन में बैठे लोग अपनी कीमत नहीं, मूल्यों का प्रदर्शन करेंगे, राष्ट्रीयता के गौरव के लिये अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे। कितने दुख की बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी हमारे दूर-दराज के जिलों में भी राज्य सरकारें अपना काम-काज अंग्रेजी में करती हैं। लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फड़नवीस ने भाषा के मामले में चली आ रही भूल एवं घोर उपेक्षा को सुधारने का प्रयत्न किया है। उनको इससे आगे बढ़कर और हिम्मत का प्रदर्शन करना होगा और ऐसा करते हुए उन्हें विधानसभा में भी सारे कानून मूल हिंदी और मराठी में बनवाने की पहल करनी होगी। वे यही नियम महाराष्ट्र की अदालतों पर लागू करवाएं। महाराष्ट्र की सभी पाठशालाओं, विद्यालयों और महाविद्यालयों में चलनेवाली अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई पर प्रतिबंध लगाएं। जो भी स्वेच्छा से विदेशी भाषाएं पढ़ना चाहें, जरुर पढ़ें। यदि वे ऐसा करवा सकें तो वे भारत को दुनिया की महाशक्ति बनानेवाले महान पुरोधा माने जाएंगे। 
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हिन्दी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राजभाषा भी है, यह हमारे अस्तित्व एवं अस्मिता की भी प्रतीक है, यह हमारी राष्ट्रीयता एवं संस्कृति की भी प्रतीक है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद ही हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली राज्यों की राजभाषा भी है। राजभाषा बनने के बाद हिन्दी ने विभिन्न राज्यों के कामकाज में आपसी लोगों से सम्पर्क स्थापित करने का अभिनव कार्य किया है। लेकिन अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण आज भी हिन्दी भाषा को वह स्थान प्राप्त नहीं है, जो होना चाहिए। चीनी भाषा के बाद हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। भारत और अन्य देशों में 70 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। पाकिस्तान की तो अधिकांश आबादी हिंदी बोलती व समझती है। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी लाखों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। फिजी, सुरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देश तो हिंदी भाषियों द्वारा ही बसाए गये हैं। दुनिया में हिन्दी का वर्चस्व बढ़ रहा है, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं होना, बड़े विरोधाभास को दर्शाता है। हिन्दी को सही अर्थों में राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं मिलने के पीछे सबसे बड़ी बाधा सरकार के स्तर पर है क्योंकि उसके उपयोग को बढ़ावा देने में उसने कभी भी दृढ़ इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। सत्तर साल में बनी सरकारों के शीर्ष नेता यदि विदेशी राजनेताओं के साथ हिन्दी में बातचीत का सिलसिला बनाये रखते तो इससे तमाम सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा मिलता। प्रसन्नता हैं कि वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस दिशा में पहल की है। उन्होंने अपनी विदेश यात्राओं में हिन्दी में भाषण देकर और विदेशी प्रतिनिधियों से हिन्दी भाषा में ही बातचीत करके एक साहसिक उपक्रम किया है। प्रधानमन्त्री की यह भावना राष्ट्र भाषा के प्रति सम्मान और समर्पण को दर्शाती है।

किसी भी देश की भाषा और संस्कृति किसी भी देश में लोगों को लोगों से जोड़े रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। भाषा राष्ट्र की एकता, अखण्डता तथा प्रगति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। कोई भी राष्ट्र बिना एक भाषा के सशक्त व समुन्नत नही हो सकता है अतः राष्ट्र भाषा उसे ही बनाया जाता हैं जो सम्पूर्ण राष्ट्र में व्यापक रूप से फैली हुई हो। जो समूचे राष्ट्र में सम्पर्क भाषा के रूप में कारगर सिद्ध हो सके। राष्ट्र भाषा सम्पूर्ण देश में सांस्कृतिक और भावात्मक एकता स्थापित करने का प्रमुख साधन है। महात्मा गांधी ने सही कहा था कि राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की एकता और अखण्डता तथा उन्नति के लिए आवश्यक है।’ राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को प्रमुखता से स्वीकार किया गया है। क्योंकि इसे बोलने वालों की सर्वाधिक संख्या है। यह बोलने, लिखने और पढ़ने में सरल है। इसलिये शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा होनी चाहिए क्योंकि शिक्षा विचार करना सिखाती है और मौलिक विचार उसी भाषा में हो सकता है जिस भाषा में आदमी सांस लेता है, जीता है। जिस भाषा में आदमी जीता नहीं उसमें मौलिक विचार नहीं आ सकते। अंग्रेजी बोलने वाला ज्यादा ज्ञानी और बुद्धिजीवी होता है यह धारणा हिन्दी भाषियों में हीन भावना ग्रसित करती है। हिन्दी भाषियों को इस हीन भावना से उबरना होगा। हिन्दी किसी भाषा से कमजोर नहीं है। हमें जरूरत है तो बस अपना आत्मविश्वास मजबूत करने की। यह कैसी विडम्बना है कि जिस भाषा को कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे भारत में समझा जाता हो, उस भाषा के प्रति घोर उपेक्षा व अवज्ञा के भाव, हमारे राष्ट्रीय हितों में किस प्रकार सहायक होंगे। हिन्दी का हर दृष्टि से इतना महत्व होते हुए भी प्रत्येक स्तर पर इसकी इतनी उपेक्षा क्यों? इस उपेक्षा को देवेंद्र फड़नवीस द्वारा लिये गये साहसिक एवं प्रेरक निर्णयों एवं अनूठे प्रयोगों से ही दूर किया जा सकेगा। इसी से देश का गौरव बढ़ेगा। 




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(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला, 
डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051
फोनः 22727486, 9811051133

विचार : छद्मभूषणों से विभूषित लोग क्यों कर सोशल-मीडिया-मैदान छोड़ देते हैं?

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----> व्हाट्सएप-फेसबुक-फेक यूनिवर्सिटी के फेक स्कॉलरों के पाठ्यक्रम में इतना मनगठंथ झूठ एण्ड हेट शामिल हो चुका है कि व्हाट्सएप-फेसबुक-सोशल मीडिया के रियल-समर्पित लोग सच लिखते-लिखते थक कर व्हाट्सएप-फेसबुक छोड़ने को विवश हो जाते हैं, लेकिन व्हाट्सएप-फेसबुक-फेक यूनिवर्सिटी के फेक स्कॉलरों का संगठित गिरोह अपना फेक अभियान बंद नहीं करता है।

----> सोशल मीडिया से जुड़े भारतीय समाज के लिये वाट्सएप-फेसबुक-फेक यूनिवर्सिटी के फेक तथ्यों पर आधारित फेक शोधों के जरिये पीएचडी की फेक उपाधि धारण करने वाले फेक विद्वानों के फेक कारनामों से बचना लगभग असंभव होता जा रहा है।

----> अपुष्ट सूत्रों का कहना है कि व्हाट्सएप-फेसबुक-फेक यूनिवर्सिटी के फेक स्कॉलरों के इस फेक अभियान के लिये, उन्हें अपने फेक आकाओं की ओर से फेक सपने सपने दिखाये जाते हैं और फेक जरियों से कमाई गयी काली कमाई में से कुछ टुकड़े भी डाले जाते हैं!

----> यदि कोई साहसी व्यक्ति ऐसे फेक लोगों के संगठित और पेड गिरोह का विरोध करने की रियल हिम्मत जुटाने की कोशिश भी करता है तो उसे वाट्सएप-फेसबुक-फेक यूनिवर्सिटी फेक स्कॉलर, सोशल मीडिया के साथ-साथ अपने-अपने एरिया में भी ऐसे व्यक्ति को असामाजिक, गद्दार, अधार्मिक, अनैतिक, दलाल, देशद्रोही और न जाने किन-किन घटिया-छद्मभूषणों से विभूषित करके इस कदर बदनाम करना शुरू कर देते हैं, कि ऐसे व्यक्ति को सामान्य जीवन जीना तक हराम हो जाता है।

----> अंतत: इन छद्मभूषणों से विभूषित अधिकतर रियल लोग, फेक लोगों के फेक अभियान के आगे घुटने टेकने या मैदान छोड़ने को विवश हो जाते हैं। सबसे दु:खद पहलु वाट्सएप-फेसबुक-फेक यूनिवर्सिटी का ज्ञान अर्जित करके युवा तथा संस्कारित हो रही वर्तमान पीढी के लिये यह अपूर्णनीय क्षति है।




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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन
संपर्क : 9875066111

विशेष : कश्मीर सीमा पर चौकसी और हलचल

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कश्मीर घाटी में पिछले कुछेक महीनों से अगरचे आतंकी हमलों में तेज़ी आयी है,मगर उसी रफ़्तार से आंतकवादियों और जिहादियों का सुरक्षाकर्मियों द्वारा खात्मा भी किया जा रहा है। सुना है सीमा पर पर अत्यधिक चौकसी के कारण सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ में कमी तो आ गयी है मगर आतंकी संगठन स्थानीय तौर पर अब युवाओं को वर्गला कर अपने संगठन में शामिल करने के लिए बराबर प्रयासरत हैं।बेरोजगार युवकों को धनादि तथा अन्य सुविधाओं का प्रलोभन देकर इन्हें आतंकी गतिविधियाँ अंजाम देने के लिए प्रेरित किया जाता है। अपने आकाओं के कहने पर गुमराह हो रहे ये युवक अपना सबकुछ दांव पर लगा तो देते हैं, मगर कभी अपने मन से यह नहीं पूछते कि वे यह हिंसा क्यों और किसके लिए कर रहे हैं? कश्मीर के युवा सुरक्षा बलों को उनपर की जाने वाली ज्यादतियों के लिए दोषी ठहराते हैं, लेकिन वे कभी भी अलगाववादी समूहों के शीर्ष नेताओं से यह सवाल नहीं करते कि उनके खुद के बच्चे ‘आज़ादी’ के इस जिहाद में क्योंकर शामिल नहीं होते?

पिछले वर्ष जुलाई महीने में सुरक्षा बलों द्वारा हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी को मार गिराया गया।परिणामस्वरूप घाटी में कश्मीरियों द्वारा बड़े पैमाने पर नाराजगी और विरोध जताया गया। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच चली झड़पों में वानी के कई समर्थकों की मौत और सुरक्षा बलों के कुछ जवान हताहत भी हुए थे। बुरहान वानी कश्मीर में व्याप्त आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का एरिया-कमांडर था। वह सुरक्षा कर्मियों की कई हत्याओं के साथ-साथ कश्मीर के कुछ अन्य निर्दोष लोगों की हत्या के लिए ज़िम्मेदार एक खतरनाक और ‘मोस्ट वांटेड’ आतंकवादी था जिसे अपने किये का दंड मिल गया।

इसी महीने सुरक्षा बलों ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन  के अन्य कमांडर आकिब खान और समीर टाइगर को मार गिराया। इन आतंकियों में से समीर टाइगर अति खूंख्वार कैटिगरी का आतंकी था और लंबे समय से सुरक्षा बलों को उसकी तलाश थी। सुरक्षा बलों ने एक सर्च ऑपरेशन के दौरान समीर टाइगर को घेर लिया। 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से समीर टाइगर घाटी में आतंकियों का पोस्टर ब्वॉय बन गया था। समीर टाइगर ने एक धमकी भरा विडियो जारी किया था। इसमें उसने कहा था, 'शुक्ला को कहना शेर ने शिकार करना क्या छोड़ा, कुत्तों ने समझा जंगल हमारा है...अगर उसने अपनी मां का दूध पिया है ना तो उसको कहो सामने आ जाए।'फ़िल्मी अंदाज़ में कहे इस डायलॉग की कीमत टाइगर को चुकानी पड़ी । इसे भारतीय सेना के मेजर रोहित शुक्ला की बहादुरी और कर्तव्य-निष्ठा ही कहेंगे कि उन्हें खुलेआम चुनौती देने वाला दहशतगर्द विडियो जारी करने के एक दिन के अंदर-अंदर ही मार गिराया गया। 

कश्मीर के इन गुमराह युवाओं को अपने नेताओं से पूछने की जरूरत है कि क्यों उनकी अपनी बेटियां और बेटे विदेशों में या अन्य जगहों पर आरामदायक जीवन बिता रहे हैं, जबकि घाटी में इन गुमराहों ने बेवजह ही बंदूकें उठा रखी हैं और बेमतलब युद्ध कर रहे हैं और मर रहे हैं।कोई भी इन चतुर और घाघ अलगाववादी नेताओं से यह नहीं पूछता है कि बुह्रान वानी और टाइगर समीर उनके अपने परिवार से क्यों नहीं थे? असल में,ये अलगाववादी नेता इन निर्दोष और भटके हुए युवाओं के खून पर अपनी प्रतिष्ठा को चमकाते हैं और सौदेबाजी कर कमाते-खाते हैं। खुद तो अच्छी तरह से संरक्षित रहते हैं और इन मासूम युवा-कश्मीरियों को भारतीय सेना का सामना करने के लिए धकेल देते हैं। दूसरे शब्दों में शेरों से लड़ने के लिए मेमनों को बलि पर चढाया जाता है ।

कश्मीरियों, विशेष रूप से कश्मीरी युवाओं को, इन स्वार्थी,छद्म और आत्म-प्रचार में संलिप्त अलगाववादी नेताओं की चाल को समझना चाहिए और कश्मीरी समाज की मुख्यधारा में अपने को शामिल करना चाहिए। ‘कश्मीरियत’ से बढ़कर यह मुख्य धारा और कुछ नहीं हो सकती। सहिष्णुता, बंधुता,इंसानियत और करुणा इस धारा के मुख्य आधार हैं।




शिबन कृष्ण रैणा 
अलवर

बिहार : ईसाई समुदाय के लोगों पर बेवजह परेशान किया जा रहा है हुजूर !

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पटना. ईसाई समुदाय के लिए 29. 04.2018 अन्याय के दिन साबित हुआ. कुछ कट्टर धार्मिक स्वभाव के लोगों ने शांतिप्रिय परिवार के द्यर में हेलकर प्रार्थना करने वाले परिवार पर जबरन धर्मान्तरण कराने के झूठे आरोप गढ़ दिये. इस ईसाई समुदाय में हैं मिलिट्री पुलिस के सब इंस्पेक्टर सुभाष कुमार परियार, उनकी पत्नी दुर्गा परियार तथा उनकी बहन रजनी प्रधान.इन लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने के बाद उनके ही खिलाफ रूपसपुर थाना में जाकर शिकायत दर्ज करा दिये.इतना करने के उपरांत सुभाष परियार को दानापुर तथा दोनों महिलाओं को बेउर जेल भेज दिया गया है।समुदाय के लोगों का कहना है कि बिना उचित जांच पड़ताल के ही उन्हें जेल में डाल दिया गया है। 

इसी तरह बेतिया के संत जेवियर हायर सेकेण्डरी स्कूल के प्रिंसिपल फादर जॉर्ज नेडूमेटम पर घूस लेकर एडमिशन करने तथा छात्र के माथे पर लगे  टीका को हटाकर स्कूल में दाखिल होने के झूठे इल्जाम में उनपर केस किया गया है।हकीकत है कि वह लड़का इंट्रेंस एक्जाम पास नहीं कर सका था. इस सन्दर्भ में अल्पसंख्यक ईसाई कल्याण संघ ने बिहार के माननीय मुख्य मंत्री नीतीश कुमार जी के साथ अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जी को पत्र लिख लिखकर न्याय दिलाने का अनुरोध किया है तथा बिहार सरकार के प्रधान सचिव आमिर सुभानी से मुलाक़ात कर उपरोक्त दोनों घटनाओं में फंसाये गए लोगों को दोषमुक्त कराने में सहयोग करने, भविष्य में ईसाई समुदाय के किसी भी ब्यक्ति पर गलत दोषारोपण न हो इसपर रोक लगाने तथा संविधान के तहत ईसाई समुदाय को अपने धार्मिक  कार्य करने तथा सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया गया।इसके लिए उनकी तरफ से आश्वासन दिया गया है।

विशेष आलेख : पारिवारिक सौहार्द का प्रशिक्षण जरूरी

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संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा है। 1995 से यह सिलसिला जारी है। परिवार की महत्ता समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्पष्ट है कि किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार ही हर उम्र के लोगों को सुकून पहुँचाता है। दरअसल सही अर्थों में परिवार वह संरचना है, जहां स्नेह, सौहार्द, सहयोग, संगठन, सुख-दुःख की साझेदारी, सबमें सबके होने की स्वीकृति जैसे जीवन-मूल्यों को जीया जाता है। जहां सबको सहने और समझने का अवकाश है, अनुशासना के साथ रचनात्मक स्वतंत्रता है। निष्ठा के साथ निर्णय का अधिकार है। जहां बचपन सत्संस्कारों में पलता है। युवकत्व सापेक्ष जीवनशैली में जीता है। वृद्धत्व जीए गये अनुभवांे को सबके बीच बांटता हुआ सहिष्णु और संतुलित रहता है। ऐसे परिवार रूपी परिवेश सुखी जीवन का स्रोत प्रवहमान रहता आया है। लेकिन आज इस परिवार की संरचना में आंच आयी हुई है। अपनों के बीच भी परायेपन का अहसास पसरा हुआ है। विश्वास संदेह में उतर रहा है। कोई किसी को सहने और समझने की कोशिश नहीं कर रहा है। इन स्थितियों पर नियंत्रण की दृष्टि विश्व परिवार दिवस मनाये जाने की प्रासंगिकता आज अधिक सामने आ रही है।  

परिवार सामाजिक संगठन की मौलिक इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना भी दुष्कर है। प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य रहा है या फिर है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा नहीं जा सकता है। भारत की संस्कृति और सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने को परिष्कृत कर ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों में परिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में हम पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि अनुभव करते हैं। बावजूद इसके क्यों परिवार बिखर रहे हैं, परिवार संस्था के अस्तित्व पर क्यों धुंधलके छा रहे हैं- इस तरह के प्रश्न समाधान चाहते हैं। सच है कि आज संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। एकल परिवार भी तनाव में जी रहे हैं। बदलते परिवेश में पारिवारिक सौहार्द का ग्राफ नीचे गिर रहा है, जो एक गंभीर समस्या है। परिवार से पृथकता तक तो ठीक है, किंतु उसके मूल आधार स्नेह में भी खटास पड़ जाती है। स्नेह सूत्र से विच्छिन्न परिवार, फिर ‘घर’ के दिव्य भाव को नहीं जी पाता क्योंकि तब उसकी दशा ‘परिवार के सदस्यों की परस्पर अजनबी समूह’ जैसी हो जाती है।

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समस्या आदिकाल से है, किंतु वह अब तक इसलिए है क्योंकि अधिकांश परिवारों ने समाधान के अति सरल उपायों पर विचार ही नहीं किया या फिर यों कहें कि अपनी रूढ़िवादिता की झोंक में विचार करना पसंद ही नहीं किया। मेरे विचार से, स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता की सूत्रत्रयी ही समाधान का मूल है। यदि तीनों का परस्पर अंतर्संबंध समझकर उसे आचरण में उतार लें, तो घर को ‘स्वर्ग’ बनते देर नहीं लगेगी। दुनिया भर की धन दौलत व्यक्ति को वह सुकून नहीं दे सकती, जो स्नेह और सम्मान का मधुर भाव देता है।  आप स्वयं ही विचार करें कि एक व्यक्ति अपने परिवार से और क्या चाहेगा ? मात्र सास बहू के संबंध में ही नहीं बल्कि  पिता और पुत्र, माॅ और बेटी, देरानी जेठानी, ननद और भाभी, भाई भाई आदि हर रिश्ते पर यह बात लागू होती है। आप सामने वाले को स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता दीजिए, प्रतिफल में आपको भी उससे यही मिलेगा। आप अपनी बुद्धि और विवेक से यह विचारें कि पारिवारिक सुख शांति अधिक महत्वपूर्ण है अथवा रूढ़िवादिता या आधुनिकता? बंधी बंधाई लीक पर चलकर कोई उपलब्धि भी हासिल न हो बल्कि जो कुछ अच्छा था, वह भी छूटता जाए तो फिर ऐसा नियम पालन किस काम का? साड़ी और सिर पर पल्लू की अनिवार्यता, पति समेत घर के सभी सदस्यों से पहले भोजन न करने की कड़ाई, सास ससुर से हास-परिहास न करने की कूपमण्डूपता, ननद देवर के छोटे-छोटे बच्चों को जी और आप कहने की औपचारिकता, पति के साथ भ्रमण व मनोरंजन न करने और महत्वपूर्ण व्यक्तिगत व पारिवारिक फैसलों में भागीदारी न होने की कथित संस्कारशीलता से आज तक कौनसा परिवार कोई ऐसी महान उपलब्धि हासिल कर पाया है, जिससे उपर्युक्त आचरण की सार्थकता सिद्ध होकर उसका नाम इतिहास के स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया हो? सच तो यह है कि ऐसे परिवार, जहां की आधा प्रतिशत जनसंख्या ऐसे घुटन भरे माहौल में जीती है, उपलब्धि की दृष्टि से औसत और पारस्परिक संबंधों की दृष्टि से यांत्रिक बनकर रह जाते हैं।

जिस प्रकार आयुर्वेद में नीरोगी काया के लिए वात, पित्त और कफ का संतुलन अनिवार्य बताया गया है, उसी प्रकार पारिवारिक सुख और शांति के लिए स्नेह, सम्मान और स्वतंत्रता का संतुलन जरूरी है। ‘जैसा बोया, वैसा काटोगे’ के सर्वकाल सत्य के आधार पर कहा जा सकता है कि जो भाव और व्यवहार हमारा दूसरों के प्रति होगा, वही हमें भी प्रतिफल में मिलेगा। तभी ‘सुख’ अपनी पूर्णता को प्राप्त करेगा और तब आपका घर ऐसे अटल सुख, मंगल व शांति से भर उठेगा, जिसकी सुगंध से आपके मन प्राण ही नहीं, आत्मा भी तृप्त होगी और आत्मा की तृप्ति ही तो समस्त तृप्तियों का मूल है। सुखद पारिवारिक जीवन के लिये संस्कार और सहिष्णुता भी जरूरी है। जिनके पास संस्कारों की सृजना होती है, उनके लिए वे संस्कार आलम्बन बन जाते हैं और व्यक्ति और परिवार संभल जाते हंै। गृहस्थ समाज में सुखी गृहस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए सहिष्णुता की बहुत जरूरत है, अपेक्षा है, जिसकी आज बहुत कमी होती जा रही है। सहन करना जानते ही नहीं हैं। पत्नी हो, मां-बेटे, मां-बेटी, भाई-भाई, भाई-बहन, सास-बहू, गुरु-शिष्य कहने का अर्थ है कि प्रायः सभी में सहिष्णुता की शक्ति में कमी हो रही है। एक व्यक्ति अपने भाई को सहन नहीं करता, माता-पिता को सहन नहीं करता और पड़ोसी को सहन कर लेता है, अपने मित्र को सहन कर लेता है। यह प्रकृति की विचित्रता है। सहन करना अच्छी बात है। लेकिन घर में भी एक सीमा तक एक-दूसरे को सहन करना चाहिए, तभी छोटी-छोटी बातों को लेकर मनमुटाव व नित्य झगड़े नहीं होंगे।

इन्सान की पहचान उसके संस्कारों से बनती है। संस्कार उसके समूचे जीवन को व्याख्यायित करते हैं। संस्कार हमारी जीवनी शक्ति है, यह एक निरंतर जलने वाली ऐसी दीपशिखा है जो जीवन के अंधेरे मोड़ों पर भी प्रकाश की किरणें बिछा देती है। उच्च संस्कार ही मानव को महामानव बनाते हैं। सद्संस्कार उत्कृष्ट अमूल्य सम्पदा है जिसके आगे संसार की धन दौलत का कुछ भी मौल नहीं है। सद्संस्कार मनुष्य की अमूल्य धरोहर है, मनुष्य के पास यही एक ऐसा धन है जो व्यक्ति को इज्जत से जीना सिखाता है और यही सुखी परिवार का आधार है। वास्तव में बच्चे तो कच्चे घड़े के समान होते हैं उन्हें आप जैसे आकार में ढालेंगे वे उसी आकार में ढल जाएंगे। मां के उच्च संस्कार बच्चों के संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले परिवार संस्कारवान बने, माता-पिता संस्कारवान बने, तभी बच्चे संस्कारवान चरित्रवान बनकर घर की, परिवार की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकेंगे। अगर बच्चे सत्पथ से भटक जाएंगे तो उनका जीवन अंधकार के उस गहन गर्त में चला जाएगा जहां से पुनः निकलना बहुत मुश्किल हो जाएगा। प्रख्यात साहित्यकार जैनेन्द्रजी ने इतस्तत में कहा है,“परिवार मर्यादाओं से बनता है। परस्पर कत्र्तव्य होते हैं, अनुशासन होता है और उस नियत परम्परा में कुछ जनों की इकाई हित के आसपास जुटकर व्यूह में चलती है। उस इकाई के प्रति हर सदस्य अपना आत्मदान करता है, इज्जत खानदान की होती है। हर एक उससे लाभ लेता है और अपना त्याग देता है”।

 आज की भोगवादी संस्कृति ने उपभोक्तावाद को जिस तरह से बढ़ावा दिया है उससे बाहरी चमक-दमक से ही आदमी को पहचाना जाता है। यह बड़ा भयानक है। उससे ही अपसांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है और ये ही स्थितियां पारिवारिक बिखराव का बड़ा कारण बन रही है।  वही आदमी श्रेष्ठ है जो संस्कृति को शालीन बनाये। वही औरत शालीन है जो परिवार को इज्जतदार बनाये। परिवार इज्जतदार बनता है तभी सांस्कृतिक मूल्यों का विकास होता है। उसी से कल्याणकारी मानव संस्कृति का निर्माण हो सकता है। भारत को आज सांस्कृतिक क्रांति का इंतजार है। यह कार्य सरकार तंत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता है। सही शिक्षा और सही संस्कारों के निर्माण के द्वारा ही परिवार, समाज और राष्ट्र को वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र बनाया जा सकता है इसी उद्देश्य को लेकर श्रद्धेय गणि राजेन्द्र विजयजी के मार्गदर्शन में सुखी परिवार अभियान चलाया जा रहा है। मेरी दृष्टि में इस अभियान के माध्यम से बदलते पारिवारिक परिवेश पर गंभीरता से चिन्तन-मनन हो रहा है और समय-समय पर पारिवारिक संरचना को सुदृढ़ बनाने के लिये प्रभावी प्रयत्न भी किये जा रहे हैं। हाल ही में गुजरात के बडोदरा एवं छोटा उदयपुर जिले के हजारों आदिवासी परिवारों में गणि राजेन्द्र विजयजी ने पारिवारिक सौहार्द का जो प्रशिक्षण दिया, उसके परिणाम भी सुखद रहे हैं। पारिवारिक सौहार्द के इस तरह के प्रयत्न हमारे परिवारों के लिये संजीवनी बन सकती है। इससे जहां हमारी परिवार परम्परा और संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठापित किया जा सकेगा। वहां स्वस्थ तन, स्वस्थ मन और स्वस्थ चिन्तन की पावन त्रिवेणी से स्नात होने का दुर्लभ अवसर भी प्राप्त हो सकेगा। 




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(ललित गर्ग)
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विशेष : जिग्नेश मेवानी को करेड़ा में सभा व रैली की अनुमति नहीं !

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बडगाम ,गुजरात के निर्दलीय विधायक एवं राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के मुखिया जिग्नेश मेवानी की सभा और रैली को राजस्थान पुलिस ने अनुमति देने से इंकार कर दिया है ।ऐसा राजस्थान में दूसरी बार हुआ है ,इससे पूर्व 15 अप्रेल को नागोर जिले के मेड़ता रोड पर आयोजित सभा में जिग्नेश मेवानी के पंहुचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था ,उनको जयपुर एयरपोर्ट पर ही रोक लिया गया , गौरतलब है कि जिग्नेश मेवानी ने  टीम राजस्थान द्वारा 1 अप्रेल को जयपुर में आयोजित एक सम्मेलन में करेडा में दलितों पर अमानवीय अत्याचार पर एक फैक्ट फाईन्दिंग्स रिपोर्ट " 14 मई को करेड़ा चलो"का आह्वान किया था ,उसी सिलसिले में मेवानी की करेड़ा में जनसभा रखी गई । करेड़ा में जिग्नेश की रैली और सभा के लिए बनी आयोजन समिति के सदस्य बाबू लाल चावला ने 4 मई को उपखंड अधिकारी और थानाधिकारी करेड़ा को लिखित आवेदन दे कर 14 मई को करेड़ा के हनुमान दरवाजा पर सभा और बीज गौदाम से सभा स्थल तक रैली की अनुमति चाही थी ,उसके जवाब में पुलिस ने 11 मई को देर शाम को आयोजको को बताया कि इलाके में शांति भंग की आशंका के चलते जिग्नेश मेवानी की सभा को अनुमति नहीं दी जा सकती हैं। उधर आयोजन से ठीक पहले इस तरह सभा पर रोक लगाने के राजस्थान पुलिस के नादिरशाही फैसले की जिले के दलित व मानव अधिकार संगठनों ने कड़ी भर्त्सना करते हुए इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला करार दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने बताया कि दलित नेता जिग्नेश मेवानी करेड़ा में हो रहे दलित अत्याचार के मामलों के पीड़ितों से मिलने और यहां पर आयोजित सभा को संबोधित करने वाले थे , करेड़ा आने का आह्वान स्वयं जिग्नेश मेवानी का था , उनकी यहां पर शांतिपूर्ण सभा होने वाली थी , जिसे बेवजह रोका जा रहा है, यह दलित समुदाय के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है, बार बार जिग्नेश मेवानी की सभाओं को रोका जाना एक राजनीतिक षड्यंत्र है ।राजस्थान की सरकार मेवानी से डर गई है ,इसलिए वह गैरकानूनी तरीके से उनकी सभाओं को रोक रही है ,भाजपा सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा । मेघवंशी ने बताया कि जिग्नेश मेवानी 13 ,14 और 15 मई को राजस्थान के दौरे पर रहेंगे .

मधुबनी : नशा मुक्ति जागरूकता अभियान का शुभारंभ

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मधुबनी (आर्यावर्त डेस्क) : जिला पदाधिकारी, मधुबनी के द्वारा शनिवार को बाबूवरही प्रखंड के सोनमती पंचायत स्थित आदर्ष मध्य विद्यालय,खोजपुर के परिसर में नषामुक्ति जागरूकता अभियान का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर श्री गणनाथ झा,आई0आर0ए0एस0, मो0 जहांगीर अली, जिप सदस्य, श्री रंधीर खन्ना, अध्यक्ष,व्यापार मंडल, श्री शोभाकांत राय,पूर्व प्रमुख, श्री राम अयोध्या राय, पूर्व प्रमुख श्री सतीष कुमार, अंचल अधिकारी,बाबूवरही, श्री प्रकाष कुमार,प्रखंड विकास पदाधिकारी,बाबूवरही समेत काफी संख्या में स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला पदाधिकारी ने कहा कि नषामुक्त होकर व्यक्ति अपने परिवार एवं बच्चों का परवरिष बेहतर ढ़ंग से कर सकता है। नषा के षिकार लोग अपनी गाढ़ी कमाई को नषीले पदार्थाे के सेवन में खर्च कर देते है। जिससे उनके परिवार का विकास रूक जाता है। नषा के षिकार हुए एक व्यक्ति के कारण कई पीढ़ियों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति नषे के चंगुल से मुक्त हो जाता है,तो वह नषीले पदार्थों में होने वाले खर्च को अपने बच्चों के पठन-पाठन सामग्री एवं उनके विकास में लगायेगा। जिससे उसके परिवारिक स्तर बेहतर होगा, और वह खुषहाल जिंदगी व्यतीत करेगा। खासकर बालिकाओं द्वारा शुरू किये गये इस अभियान के लिए जिला पदाधिकारी ने कहा कि स्कूल से नषामुक्ति जागरूकता अभियान का बहुत ही व्यापक संदेष समाज में जायेगा। षिक्षा से ही संस्कार की शुरूआत होती है। उन्होने कहा कि नषामुक्ति के लिए आमलोगों के द्वारा आयोजित इस अभियान में प्रषासन का भी सहयोग रहेगा। एवं नषा का व्यापार करनेवाले लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जायेगी। 

मधुबनी : कृषक प्रषिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन

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मधुबनी (आर्यावर्त डेस्क) : जिला पदाधिकारी, मधुबनी के द्वारा शनिवार को बेनीपट्टी स्थित कृषि भवन में आयोजित कृषक प्रषिक्षण कार्यक्रम सह कृषक-वैज्ञानिक वार्तालाप कार्यक्रम का दीप प्रजव्लित कर उद्घाटन किया गया।  इस अवसर पर श्री मुकेष रंजन, अनुमंडल पदाधिकारी,बेनीपट्टी, श्री रेवती रमण, जिला कृषि पदाधिकारी,मधुबनी श्री पुष्कर कुमार, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी,बेनीपट्टी, श्री अभय कुमार, प्रखंड विकास पदाधिकारी,बेनीपट्टी, श्री पूरेन्द्र कुमार सिंह,अंचल अधिकारी,बेनीपट्टी, श्री अषोक कुमार चैधरी, उप प्रमुख,बेनीपट्टी, श्री नित्यानंद झा, पूर्व प्रमुख सह अध्यक्ष, आत्मा, श्री रामराजी सिंह, किसान भूषण, श्री महेष्वर ठाकुर, प्रगतिषील किसान,श्री सुमीत कुमार झा समेत काफी संख्या में किसान एवं कृषि विभाग से जुड़े अन्य पदाधिकारीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला पदाधिकारी ने कहा कि किसानों के विकास के बिना देष का विकास संभव नहीं है। सरकार के द्वारा किसानों की आमदनी को दोगुणा करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाये चलायी जा रही है। जिसका लाभ उठा कर किसान अपनी आमदनी को दोगुणा कर सकता है। उन्होने कृषि विभाग के पदाधिकारियों को निदेष दिया कि वे वैसे गांवों/पंचायतों का चयन करें, जहां के 75 प्रतिषत किसान लिखित रूप में आगे आये कि वे अपनी आमदनी को दोगुणा करना चाहते है। वैसे गांवों/पंचायतों को प्राथमिकता के आधार पर लेते हुए सरकारी योजनाओं के लाभ और तकनीकी तरीकों को अपना कर उनकी आमदनी को दोगुणा करने में मदद करें।  जिला पदाधिकारी ने कहा कि वे किसानों में जागरूकता फैलाने के उद्देष्य से ही कृषि टास्क फोर्स की बैठक प्रगतिषील किसानों के खेतों में करेंगे,ताकि उससे प्रेरित होकर अन्य किसान भी लाभ उठायंे। उन्होने कहा कि किसान मेहनत करें, प्रषासन उन्हें आमदनी बढ़ाने के तरीकों एवं लाभकारी योजनाओं के लाभ दिलाने में मदद करेंगी। सभी कृषकगण वैसे धान के बीजों का प्रयोग करें, जो 8-10 दिन तक पानी में डूबे रहने पर भी फसल बर्बाद न होने पाये। उन्होने कहा कि बिहार में खासकर मधुबनी की मिट्टी खेती के लिए काफी बेहतर है।  जिला पदाधिकारी ने कृषि विभाग के अधिकारियों को कृषक समिति का गठन शीघ्र कराने का निदेष दिया। 

दुमका : डॉ प्रभावती बोदरा की पुस्तक फारेस्ट एंड प्लान्टेशन का विमोचन

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दुमका (आर्यावर्त डेस्क) कुलपति एसकेएमयू, दुमका प्रो मनोरंजन प्रसाद सिन्हा की अध्यक्षता में डॉ  प्रभावती बोदरा की पुस्तक फारेस्ट एंड प्लान्टेशन का विमोचन कार्यक्रम दिन शनिवार (12 मई 2018) को विवि कुलपति चेम्बर में  संपन्न हुआ। डॉ बोदरा ने पिछले आठ वर्षों के शोध के आधार पर  फारेस्ट एंड प्लान्टेशन  लिखा है, इसमें उन्होंने वनो की कटाई एवं उसकी जगह लगाए जाने वाले कई पौधों का ज़िक्र किया है जो मिट्टी को विषाक्त करती है. कार्यक्रम में डॉक्टर ए पी अम्बुज , और वनस्पति विज्ञान के अध्यक्ष डॉक्टर संजय सिन्हा ने भी डॉक्टर बोदरा की पुस्तक पर अपने विचार रखे . पुस्तक विमोचन करते हुए कुलपति प्रो सिन्हा ने कहा की इस तरह की पुस्तक वि वि के क़द को ऊँचा करती है .उन्होंने अन्य शिक्षकों से भी अपने विषय में पुस्तक लिखने की अपील की . उन्होंने कहा कि वि वि ऐसी पुस्तकों के प्रकाशन में पूरा सहयोग करेगा . इस कार्यक्रम में विवि के सभी पदाधिकारी , स्नातकोत्तर विभागों सहित एस पी कॉलेज के कई शिक्षक एवं छात्र मौजूद थे . कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर अजय सिन्हा ने किया .

विशेष : भारत की 90% वंचित आबादी की दुर्दशा तथा कुटने-पिटने और लुटने के कारणों पर नजर डालने की फुर्सत हो तो इस लेख को अवश्य पढ़ें?

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उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलितों को भागवत कथा सुनने हेतु सार्वजनिक रूप से बैठने पर रोका गया। नहीं रुकने पर मारपीट की गयी। समाचार पत्र की खबर में संविधान को धता बतलाते हुए दलित जाति का उल्लेख किया गया है। पुलिस को तहरीर अर्थात रिपोर्ट नहीं मिली। अतः मामला दर्ज नहीं किया गया। यह खबर अनेक सवाल खड़े करती है:-

----> 01. यूपी में संघ नियंत्रित भाजपा की सरकार है। संघ-भाजपा का कहना है कि दलित हिंदू हैं। मगर यूपी में भागवत कथा सुनने का हक दलितों को नहीं है।

----> 2. अजा वर्ग के विद्वान लोगों को दलित शब्द लिखे या बोले जाने से घोर आपत्ति होती है। मगर इस खबर में तो दलित जाति का उल्लेख किया गया है। अब क्या होगा?

----> 3. अजा वर्ग/दलित जो आमतौर पर सोशल मीडिया पर खुद को हिंदू नहीं होने का दम भरते हैं। यूपी में चार बार उनकी बसपा की सरकार रह चुकी, फिर भी वे भागवत कथा में जाकर पिट रहे हैं। इसके लिये प्राथमिक जिम्मेदारी किसकी है?

----> 4. खबर में पिटने वालों की पहचान दलित जाति के रूप में सार्वजनिक की गयी है, लेकिन पीटने वालों की पहचान और उनके नाम प्रकाशित तक नहीं किये गये हैं। जिससे प्रिंट मीडिया की निष्पक्षता संदेह के घेरे में है!

----> 5. बसपा के लोगों ने पिटने वाले कथित दलित जाति के लोगों के हालचाल पूछे, लेकिन उनकी ओर से पीटने वालों के खिलाफ तुरन्त रिपोर्ट दर्ज करवाने की कार्यवाही की गयी या नहीं, खबर से कुछ पता नहीं चलता?

----> 6. उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्षी बसपा, सपा तथा कांग्रेस जैसे मजबूत राजनीतिक दलों की नाक के नीचे यूपी में संघी हिंदुओं का गुंडाराज कायम है, मगर इन सब दलों की चुप्पी क्या अपराधियों तथा सरकार के अवैधानिक कुकृत्यों को बढ़ावा और परोक्ष समर्थन नहीं दे रही?

----> 7. यूपी में ही भीम आर्मी के पराक्रमी और महाबली लोग भी हैं, जो सारे देश से हिंदू आतंक को समूल मिटाने की बात कहकर आम वंचित लोगों को हिन्दुओं के विरुद्ध उकसाते रहते हैं, मगर उत्तर प्रदेश में ही उनके ही लोग हिंदू धर्म कथा सुनने के मोह में पिट रहे हैं?

----> 8. मूलनिवासी षड्यन्त्र के संचालक तथा आदिवासियों को हमेशा को नेस्तनाबूद करने को आतुर वामन मेश्राम, जो बसपा, कांशीराम तथा अम्बेडकर के कार्यों को भी नेस्तनाबूद करके ब्राह्मणों को विदेशी बोलकर खुद को भारत का इंडीजीनियश घोषित करके भारत के 85% लोगों को शूद्र बतलाकर, अपने आप को संसार का सबसे बड़ा शूद्र हितैषी घोषित करता रहता है।  वह भी अपने ही लोगों को हिंदू कथा सुनने से नहीं रोक सका?

----> 9. बहुजन को सर्वजन घोषित करके, बसपा को ब्राह्मणों के यहां गिरवी रख चुकी मायावती 4 बार सत्ता में रहकर भी एक भी ऐसा कानून नहीं बना पाई, जिसके भय से वंचितों की ओर उंगली उठाने वाले गुंडा तत्व थर-थर कांपने लगे? बजाय इसके मायावती ने यूपी की मुख्यमंत्री रहते हुए एट्रोसिटी एक्ट को ही निलंबित कर दिया था। मगर तब बसपा भक्त चुप्पी साधे बैठे रहे!

----> 10. जो सुप्रीम कोर्ट एट्रोसिटी एक्ट के दुरुपयोग की बात कहकर एट्रोसिटी एक को मृतप्रायः घोषित कर चुका है, उस सुप्रीम कोर्ट को यह घटना दिखायी देगी। ऐसी उम्मीद करना वंचितों को खुद को ही धोखे में रखने के समान होगा।

----> 11. ‎एट्रोसिटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को गलत कहकर असहमति व्यक्त करने वाली नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार इन घटनाओं के बाद भी वंचितों के हितों की रक्षा हेतु जागेगी, ऐसी उम्मीद कम ही है?

----> 12. ‎अजा एवं अजजा के लिये सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित विधायक और सांसद ऐसी घटनाओं पर लम्बा मौन साध लेते हैं। किसी अज्ञात स्थान पर छिप जाते हैं। ऐसे में संघ नीतियों को लागू करने के लिए ईवीएम की जादूई तकनीक से यूपी के मुख्यमंत्री बनाये गये अकेले योगी को दोष देने से क्या हासिल होगा?

----> 13. ‎यूपीएससी द्वारा क्लास वन का ठप्पा लगा देने के बाद भ्रष्टाचार की गंगोत्री में नहाकर महामानव बन चुके अजा एवं अजजा के ब्यूरोक्रेट्स की पद पर रहते हुए 70 साल की चुप्पी टूटने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। बेशक उनकी बला से समस्त वंचित समुदायों को सार्वजनिक रूप से बेइज्जत क्यों न कर दिया जाए? क्योंकि उन्होंने तो अगली सात पीढ़ियों की सुरक्षा का इंतजाम कर लिया है।

----> 14. ‎आम वंचितों पर हो रहे अत्याचार के लिये, आम व्यक्ति लंबे समय से अंगड़ाई लेते हुए हुंकार भर रहा था। जिसका प्रतिबिम्ब 2 अप्रेल, 2018 को देश और दुनिया ने देखा। मगर हमारे ही गुलाम राजनेताओं ने 2 अप्रेल के नायकों को जेल में बंद करवा दिया। जो आज तक यातना झेल रहे हैं। अनेक तो ऐसे धूर्त हैं, जो इन निर्दोषों को छुड़वाने के कथित प्रयासों के एवज में अपने सिर युद्ध जीतने जैसा सेहरा बंधवा रहे हैं और अंधभक्त जयकारे लगा रहे हैं!

----> 15. ‎हम वंचित समुदाय जिनकी आबादी 90% है, अपने संवैधानिक हकों की रक्षा के बजाय हिंदू धर्म रक्षा में लगे हुए हैं। दिनरात रामायण, भागवत कथा, यज्ञ करवाने में मशगूल हैं। मंदिर बनवा रहे हैं और क्लास वन इन कामों को संवैधानिक हक बताकर बढ़ावा दे रहे हैं। हम भी लगे हुए हैं। लगें भी क्यों नहीं-ब्राह्मण हमारे दिमांग में बैठकर हमें नर्क का भय दिखा रहा है और साथ ही स्वर्ग प्रलोभन दे रहा है! 

उपरोक्त दर्दनाक और आत्मघाती हालातों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिन लोगों को नक्सलवाद के नाम पर हर दिन मारे जा रहे हजारों निहत्थे आदिवासियों की हत्याओं तथा आदिवासी महिलाओं तथा नाबालिग बच्चियों के साथ जारी बलात्कार की खबरे बेअसर सिद्ध हो रही हैं, उनमें से उत्तर प्रदेश में धर्मकथा सुनते हुए पिटे दलितों की पिटाई की जिम्मेदारी कौन लेगा?





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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन
संपर्क : 9875066111

बिहार : जेजा के बिहार समन्वय का आज छज्जूबाग में हुआ एकदिवसीय कन्वेंशन.

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  • देश के कई संगठनों ने मिलकर बनाया - जन एकता जन आंदोलन अभियान (जेजा).
  • कन्वेंशन में 16 से 22 मई तक पोल खोल हल्ला बोल अभियान और 23 मई को पटना में विशाल प्रतिरोध सभा को सफल बनाने पर हुई बातचीत.

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पटना (आर्यावर्त डेस्क) मोदी सरकार के खिलाफ देश के कई ट्रेड यूनियनों, जनसंगठनों, सामाजिक संगठनों और मुद्दा विशेष को लेकर आंदोलनरत सामाजिक समूहों ने जनाधिकारों पर बढ़ते हमले के खिलाफ देश, समाज और लोकतंत्र-संविधान को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक बृहत्तर मंच जन एकता जन अधिकार आंदोलन का गठन किया है, जिसे संक्षेप में जेजा नाम दिया गया है. यह मंच मोदी सरकार के विनाशकारी 4 साल के खिलाफ जनसमुदाय में व्यापक जनअभियान संचालित करेगा. आज पटना के छज्जूबाग में इसके बिहार चैप्टर की बैठक हुई और राष्ट्रीय स्तर पर तय निर्णयों को मजबूती व प्रभावी तरीके से लागू करने पर गंभीर बातचीत हुई.  ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, किसान नेता रामाधार सिंह, किसान नेता ललन चैधरी, एआईएमयू के नृपेन कृष्ण महतो और सूर्यंकर जितेन्द्र की पंाच सदस्यी टीम ने कन्वेंशन की अध्यक्षता की. कन्वेंशन का संचालन खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा व सीटू के गणेश प्रसाद सिंह ने किया.
कन्वेंशन में राष्ट्रव्यापी संयुक्त अभियान के तहत 16 से 22 मई तक मोदी सरकार के खिलाफ पोल खोल - हल्ला बोल कार्यक्रम को प्रभावी तरीके से जिलों में संचालित करने तथा 23 मई को पटना में आयोजित विशाल प्रतिरोध सभा को सफल बनाने के विभिन्न पहलूओं पर बातचीत हुई. इसे लेकर जेजा ने 26 सूत्री मांग पत्र भी जारी किया है. विभिन्न संगठनों से जुड़े वक्ताओं ने कहा कि समय आ गया है कि मोदी सरकार के खिलाफ एकताबद्ध लड़ाई लड़ी जाए और इस तानाशाह-फासीवादी सरकार को उखाड़ फेंका जाए. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का चार साल - देश के लिए बेहद निराशाजनक दौर रहा है. समाज का संपूर्ण ताना-बाना, संविधान, लोकतंत्र आदि खतरे में पड़ गया है और भाजपा-संघ के लोग नफरत, उन्माद व उत्पात के जरिए देश में सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति कर रहे हैं. मजदूरों-किसानों के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. आमलोगों के भूमि, आवास, भोजन, शिक्षा-स्वास्थ्य, रोजगार और पेंशन अधिकार छीने जा रहे हैं. वहीं राष्ट्रीय धरोहरों, संपदाओं और कंपनियों को औने-पौने दाम पर बेचा जा रहा है. भाजपा द्वारा न्यायपालिका, चुनाव आयोग और सीबीआई जैसे चोटी के प्रतिष्ठित संस्थाओं का खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है. 

 बिहार की भाजपा-जदयू सरकार की जनविरोधी कार्रवाइयांे को अंजाम दे रही है. दलित-गरीबों को भूमि और आवास से बेदखल किया जा रहा है. आधार कार्ड के नाम पर राशन-किरासन-पेंशन-मनरेगा पर रोक लगा दी गई है. किसानों की फसल क्षति-कर्ज माफी को लेकर बेरूखी है और गन्ना किसानों का बकाया कब से लंबित है. स्कीम वर्करों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिल रही है. न्यायालय के आदेश के बावजूद र समान काम के लिए समान वेतन नहीं मिल रहा है. लूट-भ्रष्टाचार भी संस्थाबद्ध हो गया है. ये सब मुद्दे हमारे अभियान के मुद्दे होंगे. 16 से 22 मई तक चलने वाले अभियान में हम गांव-गांव जायेंगे और मोदी सरकार के खिलाफ जनमत का निर्माण करेंगे. गांवों से जनमत का निर्माण करते हुए 23 मई को पटना के गांधी मैदान में ऐतिहासिक प्रतिरोध सभा होगी. आज के कन्वेंशन को अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, बिहार राज्य किसान सभा के महामंत्री अशोक प्रसाद सिंह, बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की बिहार राज्य अध्यक्ष शशि यादव, अनुबंध-मानदेय कर्मचारी मोर्चा के नेता रणविजय कुमार, डीवाईएफआई के मनोज कुमार चंद्रवंशी, इनौस के नवीन कुमार, एआईडीवाईओ के अनिल कुमार चांद, एआईवाईएफ के रौशन कुमार, अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के विश्वनाथ सिंह, एआईएमएसएस केे बिहार राज्य सचिव अनामिका, खेतिहर मजदूर यूनियन के भोला प्रसाद, एटक के नारायण पूर्वे, आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष मोख्तार, एआईएसएफ के बिहार राज्य सचिव सुशील कुमार, एआईडीएसओ के निकोलोई शर्मा, सीटू के दीपक भट्टाचार्य, ऐडवा की गीता सागर, एआईएमयू के नृपेन्द्र कृष्ण महतो आदि वक्ताओं ने संबोधित किया. इनके अलावा कार्यक्रम में आइसा के बिहार राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन, जसम के संतोष सहर व संतोष झा, किसान सभा के रवीन्द्र नाथ राय, मो. दानिश, रामजी यादव, रविन्द्र यादव, अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार राज्य सचिव रामाधार सिंह व अध्यक्ष विशेश्वर प्रसाद यादव,सहित कई लोग कन्वेंशन में शामिल थे., रणविजय कुमार, जन एकता जन अभियान, बिहार समन्वय की ओर से.
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