सवाल फिर से मुंह बाएं खड़ा है कि जिस छात्र संघ चुनाव को लेकर पूरा परिसर न सिर्फ हर रोज आग के गोले में दहकता रहा, छात्रावास माफियाओं की शरणस्थली बना रहा, सत्र एक-दो नहीं कई साल पीछे चल रहे थे, आईएएस-पीसीएस सहित वैज्ञानिकों का इस बगिया से निकलना बंद हो गया जैसे तमाम अनछूए पहलू क्या एक बार फिर से बीएचयू में घर करने लगी है। कहा जा सकता है समय रहते सबकुछ जल्द ठीक नहीं किया गया तो 18 साल बाद हम फिर से वहीं पहुंच जायेंगे जहां से तांडव की शुरुवात हुई थी। ताजा सर्वे भी बता रहे है कि 90 प्रतिशत विश्व विद्यालय नहीं चाहते छात्रसंघ चुनाव तो फिर क्यों मुठ्ठीभर लोग लोकतंत्र की बहाली के नाम पर क्यों बदनाम कर रहे है इस पूर्वांचल के आक्सफोर्ड को। कहीं अपनी नेतारुपी दुकान को चलाने की तैयारी तो नहीं। फिरहाल अशांति फैलाकर हक व अधिकार मांगना कहीं से भी न्याय संगत नहीं हो सकता
सब कुछ शांत। पठन-पाठन से लेकर सत्र तक बिल्कुल समयबद्ध। फिर 18 साल बाद ऐसी कौन सी आफत आॅन पड़ी, जो कुछ ही पलों में धूं-धूं कर दहक उठा। लाठियां चटकने लगी। बंदूक की गोलियां फीजा को दहशत में बदल दी। पूरा परिसर पुलिस-पीएसी छावनी में तब्दील हो गया। डाक्टर हो या प्रोफेसर या फिर पढ़ाकू छात्र सबके सब भाग खड़े हुए। जीं हां बात हो रही पं मदन मोहन मालवीय के हाथों लगाई उस पौधे की जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सर्वविद्या की राजधानी के रुप में जाना जाने लगा है। शिक्षा की बगिया बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में गुरुवार व शुक्रवार यानी 20-21 नवम्बर की सायंकाल कुछ ऐसा ही हुआ। अरसे से शांत पड़ा शिक्षा का परिसर फिर से अशांत हो चला है। जनवरी 1997 जैसा खौफनाक मंजर लोगों के आंखों के सामने फिर से ताजा हो गया। उस वक्त भी भगदड़, पथराव, फायरिंग के बीच दो छात्र मौत के आगोश में समा गए थे। हालांकि इस बार कुछ छात्रों सहित पुलिसकर्मियों के घायल होने के सिवा कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। लेकिन सवाल फिर से मुंह बाएं खड़ा है कि जिस छात्र संघ चुनाव को लेकर पूरा परिसर न सिर्फ हर रोज आग के गोले में दहकता रहा, छात्रावास माफियाओं की शरणस्थली बना रहा, सत्र एक-दो नहीं कई साल पीछे चल रहे थे, आईएएस-पीसीएस सहित वैज्ञानिकों का इस बगिया से निकलना बंद हो गया, जैसे तमाम अनछूए पहलू क्या एक बार फिर से बीएचयू में घर करने लगी है। कहा जा सकता है समय रहते सबकुछ जल्द ठीक नहीं किया गया तो 18 साल बाद हम फिर से वहीं पहुंच जायेंगे जहां से तांडव की शुरुवात हुई थी। मतलब साफ है, काशी के बुद्धजीवियों को देखना व समझना होगा कि इस षडयंत्र के पीछे कहीं राजनीतिक दल अपनी दुकान चलाने की घिनौनी साजिस तो नहीं रच रहे। अगर ऐसा है तो फिर शिक्षा की इस बगिया को बचाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। यहां जिक्र करना जरुरी है कि विश्व विद्यालय के छात्र कदापि नहीं चाहते कि विश्व विद्यालय परिसर एक बार फिर 18 साल पीछे के अपने इतिहास को दोहराएं। शायद यही वजह भी है कि आॅनलाइन कराएं गए सर्वे में 90 फीसदी छात्रों ने छात्रसंघ चुनाव को नकारने के लिए यानी खिलाफ अपनी वोटिंग की है।
आखिर क्या वजह है कि बीएचयू को रस्तोगी जैसा प्रशासनिक अधिकारी नहीं मिल रहा है। लिंगदोह कमेटी की उस रिपोर्ट को अगर मान भी लिया जाएं कि छात्रों को जनतांत्रिक प्रक्रिया से अलग नहीं किया जा सकता तो क्या उस जनतांत्रिक अधिकार को हासलि करने के लिए हंगामा ही एक रास्ता है। कदापि नहीं, इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती। लाठी या हंगामा या आंदोलन, अधिकार का हल नहीं है। इसे सुझबुझ व सहमति से ही गैर राजनीतिक बुद्धजीवियों को हल करना होगा, जो वाकई बीएचयू को दुनिया के उंचाई पर देखना चाहते है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, वर्ष 1915 महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् 1916 में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी। जिसे आज पूरब के ऑक्सफोर्ड के रूप में ख्याति प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी। इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर (1300 एकड़) वाराणसी में स्थित है। मुख्य परिसर में 3 संस्थान, 14 संकाय और 124 विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (2700 एकड़) पर स्थित है। यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। इसके प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर सहित सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुकडिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी. प्रशिक्षण केंद्र, हिंदू यूनिवर्सिटी नामक डाकखाना एवं सेवायोजन कार्यालय भी विश्वविद्यालय तथा जनसामान्य की सुविधा के लिए इसमें संचालित हैं। श्री सुंदरलाल, पं मदनमोहन मालवीय, डॉ एस. राधाकृष्णन् (भूतपूर्व राष्ट्रपति), डॉ अमरनाथ झा, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ रामस्वामी अय्यर, डॉ त्रिगुण सेन (भूतपूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री) जैसे मूर्धन्य विद्वान यहाँ के कुलपति रह चुके हैं। लेकिन जब से छात्र संघ के चुनाव की नींव इस विश्व विद्यालय में पड़ी, तभी से विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना तो बिगड़ी ही अध्यन अध्यापन का स्तर भी बिगड़ चुका था। 90 के दशक में जब प्रो रस्तोगी ने कमान संभाली तो ना सिर्फ सत्र रेगुलर हो गए बल्कि पठन-पाठन भी कुछ हद तक बेहतर हो चला था। लेकिन एक बार फिर आईएएस व डाक्टर-वैज्ञानिक पैदा करने की फैक्ट्री कहा जाने वाला यह विश्वविद्यालय आज केवल इतिहास के पन्नों में ही स्वर्णिम है, वर्तमान बहुत ही खराब है और इसी वर्तमान के भरोसे भविष्य भी अंधकार में है। आये दिन बवाल और पढ़ाई का गिरते स्तर की वजह से पूरब के ऑक्सफोर्ड का सूर्य अस्ताचल को जा रहा है।
एक बार फिर इन दिनों विश्वविद्यालय में चुनाव का माहौल बना और सभी दल अपने-अपने तरह से छात्रों को रिझाने में लगे हैं। कोई मोदी के नाम पर को तो कोई जेएएनयू के इतिहास पर। लेकिन गुरुवार को नामांकन प्रक्रिया के दौरान इस कदर माहौल बिगड़ा कि पूरा परिसर तोड़फोड व आगजनी की भेट चढ़ गया। फैली अराजकता के केंद्र में बिरला हॉस्टल रहा। यहां के ए, बी और सी हॉस्टल के सामने वाले मार्ग पर एक ओर छात्रों का दल तो दूसरी ओर पुलिस के जवान मोर्चा लिए हुए थे। मतलब गुरुवार को केंद्रीय कार्यालय में जो हुआ वह बीएचयू के सौ वर्षो के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। छात्रों का समूह कुलपति व रेक्टर कार्यालय में पहुंचा, तोड़फोड़ की। कुलपति व रेक्टर से भी हाथापाई की। यहां पर एक छात्र की ही पल्सर बाइक को छात्रों ने आग के हवाले कर दिया। छात्रों के पत्थर फेंकने से जब कुछ पुलिसकर्मी चोटिल हुए, तब पुलिस ने एंटी राइट गन का इस्तेमाल किया और रबर बुलेट छोड़ने के साथ ही आंसू गैस के गोले दागे। पुलिस की कार्रवाई के बाद भी छात्र मानने को तैयार नहीं थे। अंततः भारी उपद्रव के बीच आइपीएस क्षेत्रधिकारी कोतवाली शालिनी ने छात्र परिषद चुनाव स्थगित करने का एलान किया, चीफ प्रॉक्टर प्रो. एके जोशी ने भी इसकी पुष्टि कर दी। हालांकि छात्रसंघ की मांग को लेकर आंदोलनरत छात्रों पर लाठीचार्ज और फायरिंग को पूर्व छात्र नेता बीएचयू प्रशासन की साजिश मानते हैं, तो बुद्धजीवी तबका दलगत-जातीयता के साथ ही विश्व विद्यालय के ही प्रशासनिक अफसरों के बीच चल रही गुटबाजी बताते है। गृह मंत्रालय को भेजी गई खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में भी कुछ इसी तरह की बात कही गयी है। कहा गया है कि प्रशासनिक अफसरों के बीच चल रही ब्राह्मण बनाम ठाकुर की उपज ही घटना का कारण है। इन्हीं के सह पर छात्रसंघ चुनाव व छात्र परिषद विवाद की नींव पड़ी। इन्हीं दो गुटों में आपस की जातिगत होड़ कैंपस से लेकर पान की दुकानों तक अक्सर लोगों के बीच चर्चा होती रही है। रिपोर्ट में जातिगत गुटों के मुखिया के साथ परिसर से रिटायरमेंट होने के बाद भी कुछ छात्र व शिक्षकों अपनी वजूद बनाएं रखने के लिए विवादों को समय-समय पर हवा देते रहते है। बीएचयू कुलपति ने जिन दो अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की है, वह भी गुटबाजी राजनीति के खिलाड़ी है। छात्रों पर लाठीचार्ज भी प्रशासनिक अफसरों के एक गुट के सह पर की गई है।
फिरहाल वाराणसी प्रधान मंत्री का संसदीय क्षेत्र है। बावजूद इसके वे मूकदर्शक बने हैं। अभी हाल में यहां आईं मानव संसाधन व विकास मंत्री स्मृति ईरानी से छात्रों ने मुकम्मल छात्रसंघ की मांग की थी। शतरुद्र प्रकाश, पूर्व मंत्री व बीएचयू के पूर्व छात्र नेता का आरोप है कि बीएचयू प्रशासन चाहता ही नहीं कि यहां छात्रसंघ बने। इसमें केवल कुछ ऐसे शिक्षकों की भूमिका प्रभावी है जिनकी गतिविधियां छात्रसंघ बनने पर रुक जाएंगी। भ्रष्टाचार की पोल खुल जाएगी इसलिए जब जब छात्रसंघ की बात उठती है, बीएचयू में गोली चलती है। भूपेंद्र सिंह रिंटू, बीएचयू छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री का कहना है कि छात्रसंघ छात्रों व विवि प्रशासन के बीच एक मजबूत प्लेटफार्म होता है, विवि को इस बात पर ध्यान देना चाहिए था। छात्रसंघ, कर्मचारी संघ व शिक्षक संघ के रहने से विवि में अराजकता का माहौल नहीं बनता। छात्रसंघ की मांग कर छात्र गुनाह नहीं कर रहे। प्रमोद कुमार मिश्र, पूर्व छात्र नेता बीएचयू कहते है कि लंबे समय से बीएचयू में तानाशाही चल रही है। यहां के कुछ लोग किसी भी कुलपति को आते ही घेर लेते हैं और अपने मन से निर्णय करवाने लगते हैं। जब-जब छात्रसंघ की बात आती है तो यही बताते हैं कि यहां के छात्र अराजक हैं। छात्रसंघ बनते ही स्थिति विकट हो जाएगी जबकि ऐसा नहीं है। इसी शहर के दूसरे विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव हुए, कहीं कुछ नहीं हुआ, लेकिन बीएचयू में शिक्षकों ने उपद्रव करवा दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. गिरीशचंद्र त्रिपाठी बीएचयू के नए कुलपति होंगे, यह अच्छी खबर है। लेकिन उनके सामने चुनौतियों ढेरों होंगी। उन्हें रस्तोगी जैसे वाइस चांसलर के नक्शे-कदम या फिर कहें उनसे भी अधिक कड़ा रुख अपनाते हुए साहसिक कदम शिक्षा के इस बगिया को बचाने के लिए उठाने ही पड़ंगे। फिरहाल बीएचयू में गुरुवार और शुक्रवार को हुई हिंसा की जांच इलाहाबाद हाईकोट के रिटायर जज जस्टिस शैलेंद्र सक्सेना करेंगे, तो बुद्धजीवियों को उम्मीद जगी है कि वह न्याय करेंगे। अपनी कुछ न कुछ ठोस सोच देंगे, कि आखिर क्या वजह रही जो शिक्षा की इस बगिया को हिंसा की आग में झोका गया और कौन लोग इसके जिम्मेदार है। दो दिन बीएचयू को हिंसा की आग में झोंकने वाले बाहरी अराजक तत्व थे या अंदर के ही लोग थे यह तो जांचोपरांत ही पता चल पायेगा। बीएचयू में छात्रसंघ चुनाव की मांग को लेकर हुए संघर्ष से बिगड़े हालात पर राष्ट्रपति को भी दखल देने की जरुरत है। प्रधानमंत्री को अपने निर्वाचन क्षेत्र के इस हिंसक वारदात पर चुप्पी तोड़नी ही चाहिए। विवि की गौरवशाली परंपरा रही है। इसका ख्याल रखना प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है। यहां अधिकतम छात्र शांतिपूर्ण माहौल चाहते हैं। कुछ ऐसे हैं, जिन्हें बाहरी तत्व अपने प्रभाव में लेकर अशांति फैलाते हैं। आखि रवह कौन लोग है जो बाहरी छात्रों को बुलाकर अपनी दुकान चलाना चाह रहे है। इस पर भी गहन विचार व कार्यवाई की जरुरत है। यह अफसोस है कि पिछले कई वषो से बीएचयू प्रशासन बीएचयू का हित सोचने वाले बुद्धजीवियों को सहभागिता का अवसर नहीं देती। परिसर का माहौल छात्रसंघों की वजह से अक्सर बिगड़ा है। किसी भी शिक्षण संस्थान में अराजक तत्वों की गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। परिसर को स्वस्थ और स्वच्छ बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं जाना चाहिये। कहा जा सकता है कि जब से बीएचयू से छात्र राजनीति खत्म हुई, काफी कुछ सुधार देखने को मिलने लगा था। परिसर में माफियाओं के जमावड़ा पर विराम लग गया था। बीएचयू के कुछ संकायों की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी थी। कुछ लोग मानते है कि बदले माहौल में प्रधानमंत्री का पूरा फोकस संसदीय क्षेत्र व आसपास के इलाकों के विकास पर है। विकास का मानक व्यापार और पर्यटन से पूर्ण होता है। इनके विकास के लिए अनुकूल माहौल चाहिए। छात्रसंघ के रहते माहौल नहीं बन पाएगा। सन-90 के पहले के माहौल की याद कर व्यापारी, उद्यमी अब भी सिहर जाते हैं। दो दशक पहले तक रहे छात्रसंघ के चलते किन-किन परेशानियों से दो-चार होना पड़ता था। उस तरह के माहौल के दोहराव से बचने के लिए छात्रसंघ चुनाव न हो तो अच्छा है। पीएमओ के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्रलय को भी कमोवेश कुछ इसी तरह के फीडबैक दिए गए है।
सवाल यह है कि छात्रसंघ बहाली की मांग को लेकर जो छात्र या नेता लोकतंत्र की दुहाई देते विश्व विद्यालय परिसर में व्याप्त भ्रष्आचार व विश्व विद्यालय प्रशासनिक अधिकारियों पर भ्रष्टाचार व मनमानी की बात कहकर चुनाव की बात कर रहे है उसे अन्य तरीकों से भी आवाज उठा सकते है। क्या जरुरी है कि भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए छात्र संघ ही जरुरी है। छात्रसंघ की आड़ में क्या-क्या होता हे यह भी किसी से छिपा नहीं है। छात्रों सहित विश्व विद्यालय का हितेषी होने का ढ़ोंग रचने वालों को यह जान लेना चाहिए कि अहिंसात्मक तरीके से भी अपनी बातें मनवाई जा सकती है। विश्व विद्यालय के अधिकारियों की कथित भ्रष्टाचार वाले आरोपों को सबूतों के साथ प्रदर्शन से लेकर कोर्ट-कचहरी तक का सहारा ले सकते है। अपनी मांगों को लेकर शांतिप्रिय आंदोलन खड़ा कर सकते है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनका यह चुनाव क्षेत्र भी है तक अपनी बात पहुंचा सकते है, लेकिन वह ऐसा करना ही नहीं चाहते। उन्हें तो छात्रसंघ चुनाव की आड़ में अपनी नेतागिरी की दुकान जो चटकानी है। अगर वाकई में विश्व विद्यालय का छात्र चुनाव चाहता तो आनलाइन कराएं गए सर्वे में 90 फीसदी छात्र छात्रसंघ चुनाव के खिलाफ अपनी वोटिंग क्यों करते। सच तो यह है कि विश्व विद्यालय के छात्र चुनाव के पक्ष में है ही नहीं। चुनाव तो वही चाहते है जो इस आड़ में अध्यक्ष, महामंत्री आदि चुने जाने के बाद विधायक-सांसद होने का ख्वाब देख रहे है। खास बात यह है कि छात्रसंघ चुनाव कराने के लिए जो तोड़फोड़ का सहारा ले रहे है या बाहरी विद्यालयों के बच्चों को बुलाकर परिसर में अराजकता का माहौल पैदा कर रहे है वह किसी न किसी मंत्री, विधायक या सांसद के खानदान-परिवार से जुड़े है। सूत्र बताते है कि परिसर में चुनाव की नामांकन प्रक्रिया बिल्कूल शांत तरीके से चल रही थी। लेकिन सपा व राछास समर्थकों का एक साथ दिखना विद्यार्थी परिषद को रास नहीं आया तो बाकी के संगठनों के मन में अपनी मजबूती को लेकर शंकाए होने लगी। नामांकन प्रक्रिया की नोकझोंक को आधार बनाकर प्रदर्शन के साथ तांडव पर उतर आएं। इस तांडव में किसकी कितनी भागीदारी है यह तो जांच का विषय है, लेकिन कहा जा सकता है कि परिसर में जो कुछ भी हुआ इसके लिए राजनीतिक दल ही जिम्मेदार है। क्योंकि यदि इन राजनीतिक दलों से जुड़े समर्थकों की पैठ इतनी ही मजबूत होती तो बीएचयू के 90 प्रतिशत छात्रों ने छात्रसंघ के खिलाफ अपनी राय न दी होती। पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रमों को देखकर लगने लगा है कि परिसर के भीतर पूर्णतः अराजकता की स्थिति व्याप्त हो गई है। दमन के साथ-साथ छात्र आक्रोश बढ़ता जा रहा है और हर वर्ग का छात्र अपने तरीके से अपनी भड़ास निकालने पर आमादा है। शुक्रवार की घटना छात्रों के बढ़ते हुए आक्रोश के दबाव से फूटी क्रोधाग्नि रही। इसने यह तय कर दिया है कि प्रशासन, छात्रों की मानसिक हालत समझने में नाकाम रहा है। इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार माने जा रहे सुरक्षातंत्र से जुड़े लोगों ने समय समय पर आग में घी डालने का ही काम किया। फायरिंग, लाठीचार्ज, आगजनी, और छात्र परिषद चुनाव के समर्थन व विरोध की आवाज भले ही अब दब गई हो लेकिन बीएचयू के खराब हालात के संदेश कुछ और ही गुल खिला सकते हैं। छात्र आंदोलन का जो विकृत रूप परिसर में दिखाई पड़ा, उसे लाठी व अनुशासनात्मक कार्रवाई के बल पर भले दबा दिया गया लेकिन विश्वविद्यालय खुलने के बाद की क्या स्थिति होगी, समय बताएगा।
(सुरेश गांधी )