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आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की प्रणव की अपील

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राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल में आज हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की है तथा इस समस्या के खिलाफ एकजुट होने की विश्व के देशों से अपील की है । श्री मुखर्जी ने कहा है कि इस तरह की जघन्य घटनाएं मानवता के सिद्धांत के खिलाफ हैं. यह कुछ और नहीं. बल्कि आतंकवादियों की मनोदशा को र्दशाता है कि वे किस हद तक जाने में सक्षम हैं.

राष्ट्रपति ने कहा विश्व समुदाय को एकजुट होकर प्रत्येक देश एवं समाज से आतंकवाद को समाप्त करने के लिए दोगुने प्रयास करने चाहिए. उन्होंने इस हमले में मारे गए निर्दोष लोगों के परिजनों के प्रति समवेदना जतायी तथा इसमें घायल हुए व्यक्तियों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की है ।

झारखंडवासियों को उनका वाजिब हक देना होगा : शिबू सोरेन

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झारखंड मुक्ति मोर्चा झामुमो के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने कहा  है कि खनिज संपदा से संपन्न झारखंड वासियों को उनका वाजिब हक देना होगा। श्री सोरेन ने आज  जामा विधानसभा क्षेत्र की झामुमो प्रत्याशी सीता सोरेन के पक्ष में शिकारपुर में आयोजित एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि झारखंड में लोहा  कोयला आदि बहुमूल्य पदार्थ है फिर भी यहां के लोग गरीब है । इसलिए यह चुनाव यहां के लोगों का उनका हक और सम्मान दिलाने के लिए है ताकि यहां के भविष्य को संवारा जा सके। उन्होंने कहा कि खदान से यहां की जमीन खराब होती है लेकिन खदान से प्राप्त राजस्व का वाजिब हिस्सा झारखंड को नहीं मिल पा रहा है। इस कारण यहां शिक्षा  स्कूल और गांवों का विकास नहीं हो पा रहा है। 

श्री सोरेन ने कहा कि इन खदान का लाभ बाहरी लोग उठा लेते है इसलिए यहां की धरती को बचाने के साथ यहां गांवों के विकास पर जोर देना होगा। उन्होंने कहा कि झामुमो ही इस क्षेत्र का विकास कर सकती है। उन्होंने लोगों को भाजपा के झूठे प्रचार से सावधान रहने की अपील की।

गीताप्रेस में अनिश्चितकालीन तालाबंदी

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धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिये देश दुनिया में विख्यात गीताप्रेस में वेतन विसंगति को लेकर कर्मचारीयों के आक्रोश के बीच आज अनिश्चितकाल के लिये तालाबंदी कर दी गयी। वेतन विसंगतियों को लेकर एक अरसे से कर्मचारीयों में पनप रहा आक्रोश पिछली तीन दिसम्बर को फूट पड़ा था जब कर्मचारीयों ने प्रबंधन के खिलाफ पहली बार आवाज बुलंद की थी। इस बीच कर्मचारी अपने मूल दायित्व को निभाते हुये कुछ अंतराल पर हडताल पर जाते रहे थे। तालाबंदी के पीछे प्रबंधन का तर्क है कि कल बगावती कर्मचारीयों के साथ बाहरी अराजक तत्वों ने उनके कक्ष में घुसकर अभद्रता की थी इसलिये मजबूरन प्रेस में तालाबंदी का निर्णय लेना पड़ा। कोतवाली क्षेत्र के भीडभाड़ वाले रेती रोड में स्थित कार्यालय में आज सुबह ड्यूटी के लिये पहुंचे कर्मचारी गेट पर ताला देखकर आगबबूला हो गये। कुछ ही देर मे वहां कर्मचारीयों का हुजूम जमा हो गया और प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गयी। 

कर्मचारी जुलूस की शक्ल में जिलाधिकारी आवास की ओर बढ़े। कर्मचारीयों के उग्र तेवरों को भांपकर पुलिस प्रशासन ने जरूरी इंतजाम कर रखे थे। अधिकारियों ने कर्मचारीयों को समझाने की कोशिश की और प्रबंधन से तालाबंदी खुलवाने का आश्वासन दिया तब जाकर कर्मचारी शांत हुये। वर्ष 1923 में गीताप्रेस की स्थापना श्री जयदयाल गोयनका ने की थी और तबसे यह प्रतिष्ठान एक दिन के लिये भी कभी बंद नहीं हुआ। श्रीमद्भागवत समेत हिन्दू धर्मग्रंथों के लिये विख्यात गीताप्रेस में हिन्दी और संस्कृत समेत 15 भाषाों में धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन होता है। संस्थान में मौजूदा समय में 189 र्कमचारी कार्यरत हैं। हाल ही में प्रबंधन ने र्कमचारियों के वेतन में 19 से 14 प्रतिशत तक की वृद्धि की थी मगर र्कमचारी वेतन में 10 प्रतिशत और की बढोत्तरी की मांग पर अड़े हुये हैं हालांकि प्रबंधन तीन प्रतिशत और वृद्धि के  लिये तैयार है।

अमित शाह के खिलाफ काफी सबूतः सीबीआई

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सीबीआई ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख फेक एनकाउंटर मामले से खुद को बरी करने की अपील का विरोध किया है। सीबीआई का कहना है कि उसके पास अमित शाह के इस मामले में शामिल होने के सबूत हैं। सीबीआई के वकील ने सीबीआई की विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान कहा कि चार्जशीट में शाह के खिलाफ सबूत और गवाहों के बयान हैं। वहीं, शाह के वकील एसवी राजू का कहना था कि किसी भी इंसान पर अफवाहों के आधार पर आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं।

इससे पहले बचाव दल ने कहा था कि कांग्रेस ने इस मामले में शाह को फंसाने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल किया था। सुनवाई के दौरान अपनी बारी आने पर शिकायतकर्ता रूबबुद्दीन शेख की वकील अनुभा रस्तोगी ने अदालत से कहा कि उन्होंने सोचा था कि सीबीआई ज्यादा समय तक बहस करेगी लेकिन उसने सिर्फ 30 मिनट में ही बहस खत्म कर दी। इसलिए, वह तैयारी करके नहीं आईं। सीबीआई ने उन्हें अगले मंगलवार को अपना पक्ष रखने को कहा है। इस मामले में अदालत ने अमित शाह को पेश नहीं होने की छूट दी हुई है।

विशेष आलेख : पानी की कमी के चलते चरमराती स्कूली शिक्षा

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जम्मू एवं कष्मीर में विधानसभा चुनाव की 16 सीटों पर तीसरे चरण के तहत 58 प्रतिषत मतदान हुआ। भारी ठंड और अलगावादियों के चुनाव बहिश्कार के बीच 1,781 मतदान केन्द्रों पर बड़ी संख्या में वोटर सुबह से लाइन में लगे थे। जम्मू एवं कष्मीर में जिस तरह से तीन चरणों के तहत होने वाले मतदान में लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है उससे साफ है कि राज्य की जनता सत्ता की कमान किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी को सौंपना चाहती है जो राज्य में बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए ज़रूरी कदम उठाए। बाढ़ के बाद राज्य मे स्थिति अभी भी बेहाल बनी हुई है। जम्मू प्रांत के पुंछ जि़ले में सितंबर माह में आई बाढ़ के बाद हर जगह पानी ही पानी था और इस पानी ने ज़बरज़स्त तबाही और बर्बादी मचाई थी। लेकिन अब लोगों को खाना-बनाने, पीने, कपड़े-धोने, नहाने और दैनिक जीवन की दूसरी आवष्यकताओं के लिए साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। जून, 2014 में एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 1823 गांव ऐसे हैं जहां पर हर किसी को पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह संख्या 13 प्रतिषत है। इसके अलावा सात प्रतिषत अर्थात् 950 गांवों ऐसे हैं जहां पानी की सुविधा अभी भी उपलब्ध नहीं है। 
           
कहने को तो जल ही जीवन है लेकिन जहां पर जल ही नहीं, वहां जीवन कैसा होगा, इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं। पुंछ के दूरदराज़ क्षेत्रों में लोगों दैनिक जीवन की आवष्यकताओं के लिए साफ पानी तो दूर, पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा है। पुंछ ब्लाक के झुलास गांव में पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। इस बारे में झुलास के मोहल्ला पटियां के स्थानीय निवासी मोहम्मद खालिद ने बताया कि हमें पानी डेढ़ किलोमीटर की दूरी से लाना पड़ता है। उनका कहना था कि बरसात के दिनों में खासतौर से पषुओं के लिए पीने के पानी का इंतेज़ाम करना एक बड़ी चुनौती है। यहां पर पानी का कोई साधन नहीं है। यहां लिफ्ट स्कीम ही पानी का एक मात्र विकल्प है जिससे पानी की समस्या दूर हो सकती है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह स्कीम कहीं नज़र नहीं आती है। झुलास के देरियां पब्लिक स्कूल में भी पानी की समस्या भी एक विकराल रूप लिए है। इस स्कूल में 3 अध्यापक हैं जबकि 31 छात्र-छात्राएं षिक्षा ग्रहण कर रहे हैंैं जिनमें 13 लड़के एवं 18 लड़कियां षामिल हैं। अध्यापक मोहम्मद आजि़म ने बताया कि स्कूल में मिड डे मील का खाना बनाने के लिए अथवा बच्चों के पीने के लिए पानी एक किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है। स्कूल में षौचालय भी नहीं है जिसकी वजह से बच्चों को षौच खुले में करना पड़ता है। अगर षौचालय बना भी दिया जाए तो उसके लिए पानी का कोई साधन नहीं है। उन्होंने आगे बताया कि 7-8 महीनों से लिफ्ट स्कीम का काम षुरू हुआ है लेकिन उससे भी पानी की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। इस बारे में जब पीएचई के जि़ला एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर सरवन सिंह से बात हुई तो उन्होंने कहा ‘‘जनसंख्या बढ़ने की वजह से लिफ्ट स्कीम अब सफल नहीं हो पा रही है। झुलास में पानी की आपूर्ति, सुधार और विस्तार के लिए नई योजना बनायी गयी है लेकिन इसके लिए अभी सरकार से पैसा नहीं आया है।’’ आगे सहायिका नसीम अख्तर ने पानी की समस्या के बारे में बताते हुए कहा कि स्कूल में पानी की व्यवस्था न होने के कारण से हमें खाना बनाने के लिए पानी दो-तीन किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है और उसके बाद बच्चों के लिए खाना बनाना पड़ता है। उन्होंने आगे बताया कि मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं जिसकी वजह से मेरे पास इतना समय नहीं होता कि मैं रोज़ इतनी दूर से पानी लाऊं।। इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल में गैस का इंतेज़ाम न होने की वजह से जंगल से खाना बनाने के लिए लकडि़या भी इकठ्ी करनी पड़ती हैं। 
            
पानी की समस्या के बारे में झुलास गांव के मोहल्ला देरियां के रहने वाले मोहम्मद जै़द ने बताया कि जो भी छात्र या छात्रा सुबह उठकर मुंह हाथ धोगा वह स्कूल नहीं जाएगा। यह बात सुनकर पहले तो हमें हैरानी हुई कि ज़ैद क्या कहना चाहते हैं? बाद में उन्होंने विस्तार से बताया कि जो भी छात्र या छात्रा सुबह मुंह हाथ धोने के लिए दो-तीन किलोमीटर दूर जाएगा वह भला स्कूल कैसे जा पाएगा? कुछ बच्चे तो सुबह बिना मुंह हाथ धोए ही स्कूल चले जाते हैं और उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता है क्योंकि इसके सिवा उनके पास कोई चारा नहीं है। इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां के बच्चे किन-किन परेषानियों का सामना करके षिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। देखने के लिए तो इन गांवों और मोहल्लों में बहुत बड़ी-बड़ी पाइप लाइनें बिछी हुई हैं लेकिन वह भी किसी काम की नहीं है। लिहाज़ा फिलहाल इस गांव में पानी की समस्या ही सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि इसका असर प्रत्यक्ष रूप से बच्चों की षिक्षा पर देखने को मिल रहा है। यह समस्या गांव में बच्चे बच्चे की ज़बान पर है। इन लोगों को 23 दिसंबर की मतगणना के बाद राज्य में बनने वाली सरकार से बहुत उम्मीदंे हैं। षायद यही वजह है कि यहां की जनता ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इनकी समस्या का हल होता है या नहीं या फिर इनके सपनों पर भी पानी फिर जाएगा। 







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हरीष कुमार
(चरखा फीचर्स)

आलेख : मोदी के लिए कूटनीतिक कौशल की सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी

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धर्मांतरण का विवाद लगातार गरमाता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने सांसदों व पार्टी के अन्य नेताओं को हिदायत दी है कि वे विवाद पैदा करने वाली हरकतों से बाज आएं। दूसरी ओर यह भी स्पष्ट है कि घर वापसी के सारे कार्यक्रम संघ के इशारे पर और उसके आशीर्वाद से हो रहे हैं और योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा के महंत सांसदों का भी खुला समर्थन इस अभियान को प्राप्त है। यह एक बेहद विरोधाभासी स्थिति है जिसकी परिणति कुछ भी हो सकती है। मोदी को पहली बार अपनी कूटनीतिक क्षमताओं की परीक्षा देने की स्थिति में उलझना पड़ा है। देखें वे इससे कैसे पार पाते हैं।

मोदी और उनकी मुश्किलों को लेकर बातें फिर। अभी तो यह है कि धर्मांतरण पर चली बहस ने कई सैद्धांतिक पहलुओं पर नए सिरे से विचार करने का मौका दिया है। मोटे तौर पर नैसर्गिक न्याय के अनुरूप व्यवस्था और व्यक्तिगत आचरण की वकालत चाहे वह कोई राजनीतिक विचारक करे या धार्मिक पैगंबर तो उसके अनुयायी जो यह विचार करते हैं कि बेहतर दुनिया उसके पे्ररणा स्रोत के आदर्शों के आधार पर ही बनेगी। उनका यह अनिवार्य रूप से कर्तव्य होना चाहिए कि वे पूरी दुनिया में इसे लागू करने की जिद्दोजहद करें। तथागत बुद्ध ने भारत भूमि पर ही कहा था कि धर्म आडंबर पूर्ण कर्मकांड और अव्याकृत जटिल प्रश्नों का स्वरूप नहीं है। धर्म स्वयं के जीवन को और दूसरे सभी के जीवन को सुखी बनाने का उद्योग है। जब उनकी इस पक्षधरता के लोग कायल होते गए तो सम्राट अशोक ने सोचा कि भारत के साथ-साथ दुनिया के और दूसरे देशों में भी लोग तथागत बुद्ध के रस्ते पर चलें। इस कारण उन्होंने अपने पुत्र महेंद्रा व पुत्री संघमित्रा को दुनिया की अन्य देशों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलाने के लिए भेजा। इस्लाम व ईसाई धर्म द्वारा भी ऐसा करना लाजिमी था। राजनीतिक स्तर पर माक्र्स ने कहा कि दुनिया में सही राज तब आ सकता है जब बुद्धि विलास करने वाले बुर्जुवाओं की बजाय सत्ता मेहनतकशों के हाथ में हो। उनके विचारों में दम था। इस कारण दुनिया के तमाम देशों के लोग उन विचारों के अनुरूप राजनीतिक व्यवस्था को बनाने के लिए प्रेरित हुए। दुनिया के सारे वंचितों पीडि़तों के धर्म व पीडि़तों की राजनीतिक विचारधारा में एक बात सामान्य है कि इनमें व्यक्तियों के बीच समानता के मूल्यों को सर्वोच्च महत्व दिया गया है। इस रूप में सारे संसार में धर्म के सबसे प्रारंभिक गुण के रूप में समानता के मूल्य की पहचान की गई।

यहां से हम देखें तो पाएंगे कि जो लोग यह कहते हैं कि भारत ने अपने धर्म को दूसरों पर थोपने की कोशिश नहीं की वे तथ्यों को तोड़मरोड़ रहे हैं। भारत के ही धर्म ने सबसे पहले मिशनरी यानी प्रचारक गुण को अपनाया लेकिन अगर सनातन धर्म ऐसा न कर सका तो उसकी अपनी वजह थी। यह एक ऐसा अनोखा धर्म है जिसमें समता के सिद्धांत को रंचमात्र भी स्वीकार नहीं किया गया है। सामाजिक उपनिवेशवाद को धार्मिक जामा पहनाने का एक उपक्रम है सनातन धर्म। बाबा साहब अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच जब हिंदु धर्म को लेकर शास्त्रार्थ शुरू हुआ तो महात्मा गांधी ने स्वीकार किया कि सनातन धर्म की सबसे पहली विशेषता है वर्ण व्यवस्था। उन्होंने कहा कि वर्ण व्यवस्था सनातन धर्म का मौलिक और अभिन्न स्वरूप है। उन्होंने वर्ण व्यवस्था को महिमा मंडित करने के लिए अपने हिसाब से तर्क दिए। हर वकील अपने मुवक्किल के पक्ष को सही ठहराने के लिए दलीलें ढूंढ सकता है। यह संसार ही ऐसा है लेकिन वर्ण व्यवस्था का मतलब है एक ऐसा व्यवस्था जिसमें समाज के बहुत बड़े वर्ग को दासता की नियति स्वीकारने के लिए बाध्य किया जाए। वर्ण व्यवस्था के प्रवर्तक जानते थे कि इस बुनियाद पर उनके द्वारा बनाया गया धर्म किसी को हजम नहीं होगा इसलिए उन्होंने सनातन धर्म को एक बंद धर्म बनाया जिसमें न तो कोई बाहर का प्रवेश कर सकता है और जिसमें से अगर कोई बाहर हो गया तो भीतर नहीं आ सकता तो यह उनकी अपनी परिस्थितियों और अपने लक्ष्यों के अनुरूप था। इस कारण इस प्रवृत्ति को यह कहकर कि हम दूसरों पर अपना धर्म थोपने वाले नहीं रहे महिमा मंडित करना औचित्यपूर्ण नहीं है।

अब बात रही यह कि जिसे लोग यह समझते हैं कि यह दुनिया को बेहतर बनाने का रास्ता है उसका हामी सारे लोगों को बनाना उनके लिए लाजिमी है तभी तो उनके पैगंबर के विचारों के अनुरूप आदर्श संसार बन पाएगा। फिर वह पैगंबर राजनीतिक भी हो सकता है और धार्मिक भी। माक्र्सवादी जब चीन पर काबिज हो गए तो उन्होंने अपने पैगंबर यानी माक्र्स के अनुरूप चीन बनाने में सबसे बड़ी बाधा बुर्जुवा समाज को समझी। इस नाते उन्होंने सांस्कृतिक क्रांति में बुर्जुवा समाज का निर्ममता से दमन किया। धार्मिक व्यवस्थाओं में भी यही हुआ। हालांकि न तो चीन में माक्र्स के वर्गविहीन समाज का यूटोपिया साकार हो पाया। न ही धार्मिक निजामों में उनके पैगंबर और प्रभु पुत्रों के सपनों का संसार कायम हो पाया है। यह एक अलग बात है लेकिन सत्य यह है कि जिन्हें पूरी दुनिया को बेहतर बनाना था उन्होंने इसके लिए अपने से असहमत लोगों को राजीकुराजी अपने मत में दीक्षित करने पर जोर लगाया तो इसमें कुछ अनुचित नहीं था। दूसरी ओर हम बेहतर दुनिया के लिए नहीं सामाजिक उपनिवेशवाद के अपने गढ़ को बचाने के लिए सूत्र गढ़ रहे थे जिसके कारण हमारा उद्योग में ऐसी कशिश का अभाव लाजिमी ही था।

इसी के साथ यह बात उठती है कि आज हम जब घर वापसी का उपक्रम करते हैं तो हमें यह विचारना होगा कि क्या हम इस स्थिति में हैं कि सनातन धर्म अपने उक्त मूल लक्ष्य से विमुख होकर नए लक्ष्य को अपनाए जो न्याय संगत हो और समकालीन अवधारणाओं के अनुरूप हो। इसमें हमारी सीमाएं बहुत स्पष्ट हैं। आज भी सनातन समाज में इतनी कट्टर स्थिति है कि अगर कोई गैर धर्म में चला गया व्यक्ति या समूह अगर वापिसी चाहे तो उसे अपने बेटे-बेटियों के लिए रिश्ते ढूंढने में नाकों चने चबाने पड़ेंगे। यहां तक कि अगर वाल्मीकि समाज के लोग किसी जमाने में दूसरे धर्म की दीक्षा लेने की गलती कर बैठे हों और आज वे वापस आना चाहें तो वाल्मीकि समाज के लोग तक उनसे रिश्ता जोडऩे को कदापि तैयार नहीं होंगे। ऐसा नहीं है कि जो लोग घर वापिसी करा रहे हों वह इस हकीकत को न जानते हों। उनके मन में एक भावना बनी हुई है कि दूसरे धर्मों के जो राष्ट्र बने उनमें गैर धर्म वाले दोयम दर्जे के नागरिक समझे गए। हालांकि ऐसा करने के पीछे कोई तानाशाही या अतिवाद न होकर एक लाजिक है पर इससे क्या। आज दुनिया बदल चुकी है। धार्मिक राष्ट्र राज्य भी समानता व लोकतंत्र पर आधारित व्यवस्था वाले राज्यों में तब्दील हो रहे हैं लेकिन संघ परिवार के लिए इतिहास की घड़ी की सुई जहां की तहां थमी हुई है। भारत में जो कभी नहीं हुआ यानी कभी धार्मिक राज कायम नहीं किया गया उसे दूसरों की देखादेखी इस युग में अवतरित करने का सन्निपात इन पर सवार है। संविधान इसकी इजाजत नहीं देता लेकिन उनकी अपनी व्याख्या है कि मोदी की जीत ने भारत को एक धार्मिक राष्ट्र में बदलने का नया संविधान कायम कर दिया है। धार्मिक राष्ट्र के चरित्र के नाते गैर धर्म के लोगों को यह एहसास कराना जरूरी है कि वे अब इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक हो गए हैं। संघ परिवार के लोग घर वापसी की आड़ में मतांतरित हिंदुओं को मोहरा बनाकर इसी उद्देश्य की पूर्ति कर रहे हैं। उनका घर वापसी करने वालों का क्या हश्र होगा इससे कोई लेनादेना नहीं है।

जहां तक इस आशंका का प्रश्न है कि अगर ईसाई और मुसलमान बने रहे तो देश टूट जाएगा तो यह भी एक बहुत बड़ी खामख्याली है। यह देश जब एक धर्म के तहत परिचालित था तब कभी राजनीतिक रूप से अखंड नहीं रहा। जहां तक मतांतरित ईसाइयों और मुसलमानों का सवाल है वे धर्म बदलने के बावजूद भी आज भी ऐसे भारतीय हैं कि दुनिया के दूसरे देशों में उनके धर्म के लोग उनको आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। इस्लाम और ईसाइयत को भारत में फैलाने के लिए अपने आप में कितनी तब्दीलियां करनी पड़ीं। इससे यह बात समझी जा सकती है। सोलहवीं शताब्दी में मदुरई को केेंद्र बनाकर एक इटालवी पादरी राबर्ट डिनो विली ने लगभग एक लाख हिंदुओं का धर्मांतरण कराया लेकिन यह काम वह तब कर सका जब उसने अपने आपको घोषित किया कि वह रोम में रहने वाले ब्राह्म्ïाणों का आखिरी वंशज है। उसे बाइबिल को पांचवां वेद घोषित करना पड़ा। अपने आपको उसने आखिरी तक हिंदु आडंबरों से ओतप्रोत रखा। उसके तरीकों की कभी मान्यता न तो ईसाई विश्व में पहले हो पाई न आज हो सकती है। बाबा साहब अंबेडकर ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि लगभग सभी धर्मांतरित ईसाई पूजा-अर्चना में हिंदु पद्धति को अपनाए हुए हैं। यह साबित करता है कि भारतीयता की जड़ें कितनी गहरी हैं जो धर्म परिवर्तन के बावजूद भी नहीं बदल पातीं। इस कारण हिंदुस्तानी मुसलमान और हिंदुस्तानी ईसाई शेष इस्लामिक विश्व अथवा ईसाई विश्व में खप ही नहीं सकता। उसके द्वारा भारतीयता के अस्तित्व को खतरे की बात नितांत काल्पनिक है। जहां तक आदिवासियों की बात है उनके हर कबीले का अपना कुलदेवता है। उनके अपने टोटके हैं। भारतीय संविधान में लिखा गया है कि अनुसूचित जातियां माने वे आदिवासी जो सनातन धर्म के तहत बनाई गई वर्ण व्यवस्था में से किसी वर्ण से नहीं आते। उनका संस्कृतिकरण दुनिया बदलने के साथ-साथ होना था। यह काम सनातनियों ने इसलिए नहीं किया क्योंकि उनके धर्म ध्वजा वाहक धर्म के लिए समाज द्वारा उन्हें सौंपी गई जायदाद से निजी अयाशियां करना चाहते हैं जबकि ईसाई संतों ने पूरी निष्ठा के साथ धर्म के लिए मिले चंदे का उपयोग हृदय परिवर्तन में किया। उन्होंने धन का ही सही इस्तेमाल नहीं किया बल्कि लोगों का दिल जीतने के लिए उनके बीच कष्टपूर्ण जीवन में रहना भी गवारा किया। आप कहें कि दूसरे लोग अभाव और अनगढ़ स्थितियों में रह रहे लोगों की परवाह न करें तो यह नहीं हो सकता। ऐसा करना तो अन्याय भी है। जब संघ के निष्ठावान प्रचारकों ने ईसाई मिशनरियों की तरह वनवासियों के बीच में काम किया तो वे उनकी ईसाई धर्म में सामूहिक दीक्षा पर लगाम लगाने में भी सफल हुए।
इस कारण जरूरत इस बात की है कि अगर भारत को एक बेहतर देश बनाना है तो अपने धर्म को हमें धार्मिक बनाने की मशक्कत सबसे पहले करनी पड़ेगी। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है धर्म की पहली पहचान समता का मूल्य है। वर्ण व्यवस्था को तिलांजलि देकर समता को सनातन धर्म के केेंद्र में लाएं उसे ईसाइयों की तरह दीनदुखियों की सेवा का धर्म बनाएं। जहां तक धर्मांतरण का सवाल है यह आसान नहीं होता। जो लोग सनातन धर्म में बुराई देखते हैं वे भी अपना घर छोड़कर जाना गवारा नहीं कर रहे और न करेंगे इसलिए एक दिन हिंदु धर्म समाप्त हो जाएगा। ऐसा कहने वाले इंसानी फितरत के जानकार नहीं हैं। धर्मांतरण, लव जिहाद, दूसरों के पूजा स्थलों को अपना बताकर ध्वस्त करने की कोशिश करना यह न तो मोदी सरकार के हित में है और न ही भारत राष्ट्र राज्य के हित में। मोदी ने जैसी फसल बोई है वैसी ही उन्हें काटनी पड़ रही है। संघ परिवार को सद्बुद्धि देने के लिए अब उन्हीं को अपने नेतृत्व कौशल का परिचय देना पड़ेगा।







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के पी सिंह 
ओरई 

विशेष आलेख : क़ानून नहीं, मानसिकता बदलनी होगी

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दिल्ली में रेडियो टैक्सी ड्राइवर द्वारा एक महिला के साथ बलात्कार की वारदात को अभी हफ़्ता भी नहीं बीता था कि दिल्ली के ही अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ग्राउंड स्टाफ द्वारा एक महिला के साथ छेड़छाड़ की घटना ने न सिर्फ सभ्य समाज को शर्मिंदा किया है बल्कि क़ानून व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है. महिलाओं के साथ जिस प्रकार से सरेआम छेड़छाड़ की घटनाओं को अंजाम दिए जाने की ख़बरें आ रही हैं उससे 16 दिसंबर 2012 की घटना फिर से ताज़ा हो गई. इस घृणित अपराध के बाद एक बात तो साबित हो गया है कि कड़े से कड़े क़ानून बना देना ही मसले का हल नहीं है. फांसी की सजा का प्रावधान भी बलात्कार की घटना को समाप्त करने में कारगर साबित नहीं हो सका है. दो साल पहले निर्भया कांड के बाद जिस प्रकार से देश में गुस्से की लहर देखी गई थी वह हर बलात्कार की घटना के बाद भी बदस्तूर जारी है. हालांकि उस घटना के बाद सरकार ने अपराध के क़ानून को और भी सख़्त बनाया था. जिसके बाद यह उम्मीद बंधी थी कि मानवता को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाओं पर रोक अवश्य लगेगी। लेकिन बीते दो वर्षों में इसमें कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है. सख़्त सज़ा के प्रावधान के बावजूद बीते दो वर्षों में रेप केस में दोगुने की वृद्धि दर्ज की गई है. तीन साल की मासूम बच्ची से लेकर 73 साल की वृद्धा तक के यौन हिंसा के शिकार होने का सिलसिला नहीं रुका है. दफ्तर से लेकर बाज़ार और घर से लेकर स्कूल तक बलात्कार की ख़बरें सुर्खियां बनी हुई हैं. देखा जाए तो इस वक़्त भारत में बलात्कार एक संक्रमण की तरह फैलता जा रहा है. यौन हिंसा के मामले में भारत विश्व में तीसरे नंबर पर है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में औसतन 93 महिलाएं रोज़ाना बलात्कार की शिकार होती हैं. आंकड़े बताते हैं कि 2012 में यौन हिंसा के जहाँ 24,993 मामले सामने आये वहीं यह 2013 में बढ़कर 33,707 हो गए. वह भी इस स्थिति में जबकि रेप के पांच फीसद से भी कम केस दर्ज किये जाते हैं. सरकारी आकंड़ों के अनुसार अकेले देश की राजधानी में ही पिछले सालों की तुलना में इस वर्ष यौन हिंसा के मामलों में इज़ाफ़ा हुआ है. सरकार ने संसद में दिए आंकड़ों में इस बात को स्वीकार किया है कि दिल्ली में हर रोज़ महिलाओं से जुड़े अपराध के करीब 40 मामले थानों में दर्ज होते हैं. महज़ 11 महीनों में ही राजधानी के विभिन्न थानों में महिला हिंसा से जुड़े 13 हज़ार से अधिक रिपोर्ट दर्ज हुए हैं. जो पिछले साल की तुलना में 15 फीसद अधिक है.

बलात्कार की घटना जहाँ सभ्य समाज को शर्मिंदा कर देता है वहीँ इसकी शिकार पीड़िता को मानसिक रूप से तोड़ देता है. वह चाह कर भी इस घटना से उबर नहीं पाती है. अफ़सोस तो इस बात की है कि समाज के माथे पर यह कलंक केवल देश के छोटे शहरों में नहीं होता है बल्कि दिल्ली जैसी अतिसुरक्षित क्षेत्र, बंगलुरु जैसे शिक्षित इलाक़ों और शांत समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाक़ों में भी ऐसे घृणित कार्य अंजाम दिए जा रहे हैं. हाल ही में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक सात साल की मासूम बच्ची का शादी समारोह से अपहरण और फिर बलात्कार और हत्या इस बात की ओर इशारा करता है कि ऐसी गन्दी मानसिकता से अब साफ़ दिल कहलाने वाला पहाड़ी क्षेत्र भी सुरक्षित नहीं है. ऐसे बहुत से केस हैं जो हमें इस बात को सोचने के लिए विवश कर देता है कि आखिर हमारी नैतिकता का पतन क्यूँ हो रहा है? क्यूँ हमारी मानसिकता नारी को केवल भोग की वस्तु समझने लगी है. कुछ तो कारक हैं जो हमारे समाज में विकार पैदा कर रहे हैं. यदि ऐसे कुछ कारकों की पड़ताल की जाये तो यौन हिंसा की भावना को प्रोत्साहित करने वाले बहुकारक तथ्यों में एक नशा यानि शराब है. यूएस डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस के आंकड़े बताते हैं कि अधिकतर अपराध नशे की हालत में अंजाम दिए जाते हैं. सर्वे बताते हैं कि अल्कोहल 40% अपराध के लिए ज़िम्मेदार होती हैं जिनमे 37% अपराध बलात्कार के होते हैं. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ अलकोहॉलिस्म एंड एब्यूज के एक अध्ययन में अत्यंत ही चौकाने वाली बात सामने आई है. जिसमे यह पाया गया है कि आधा से ज़्यादा रेप के मामलों में अपराधी और पीड़ित घटना के दौरान नशे में थे. ये आंकड़े कितने विश्वसनीय कहे जा सकते हैं यह ज़रूर बहस का मुद्दा हो सकता है. हमारे देश में यौन हिंसा के बढ़ते मामलों में शराब के साथ साथ अश्लील फ़िल्में, विज्ञापन और फ़ूहड़ बोल वाले गाने भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार होते जा रहे हैं. जो समाज में यह सन्देश पहुंचा रहे है कि महिला भोग और कामुकता की पूर्ति मात्र है.

भारत को आज रेप कैपिटल की उपाधि दी जा रही है. दुनिया भर में इसकी छवि महिलाओं के लिए एक असुरक्षित देश के रूप में प्रचारित की जा रही है. जो 21वीं सदी में उभरते भारत की साख पर बट्टा है. कभी लड़कियों के कम कपड़ों  पहनने के ख़िलाफ़ फरमान जारी होता है तो कभी मोबाइल फ़ोन नहीं रखने का हुक्म सुनाया जाता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज महिलाओं पर ज़बरदस्ती इच्छा थोपी नहीं जा सकती है. उनके कपड़ों की साइज से उनकी मानसिकता का पता लगाना भी गलत है. दरअसल कम कपड़े पहनने से समाज में विकार नहीं आता है बल्कि अमर्यादित कपड़े इसके ज़िम्मेदार होते हैं. ऐसे लोगों का यह तर्क कि भड़काऊ कपड़े पहनने वाली महिलाएं यौन हिंसा की ज़िम्मेदार होती है, पूरी तरह से सत्य नहीं है तो असत्य भी नहीं है. हम इस तर्क से मुँह नहीं मोड़ सकते हैं कि ऐसे कपड़े जिनसे अंग प्रदर्शन होते हैं, आंशिक तौर पर महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराध के लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं. आसपास के बदलते हालात और फिल्मों में नारी को कामुकता के रूप में प्रस्तुत किया जाना पुरुषों में मानसिक विकार उत्पन्न होने का एक अहम कारक बनता जा रहा है. मनोवैज्ञानिक अपनी शोध में इस बात को साबित कर चुके हैं कि फिल्मों में अश्लीलता या पोर्न फ़िल्में अथवा साइटें बलात्कार की प्रवृर्ति को उजागर करने में सबसे अहम कारक होते है. पोर्न देखते समय इंसान के दिमाग़ में एक रासायनिक स्राव होता है जो उसे कामुक सुख का एहसास कराती है. जिससे मनुष्य यौन सुख प्राप्ति की इच्छा जागृत करता है और यही क्रिया बार बार दुहराने से वह इंसान मानसिक विकार का शिकार हो जाता है. कुछ ऐसा ही कैब ड्राईवर शिव कुमार यादव में देखने को मिला। जिसके मोबाइल में पुलिस को अश्लील फ़िल्में मिली हैं. जब कोई महिला अंग प्रदर्शन करती है तो मानसिक विकार के शिकार ऐसे पुरुषों में उन्हें और कम कपड़ों में देखने और उनके साथ यौन सुख का आनंद उठाने की इच्छा जागृत हो जाती है. जो बलात्कार की संभावनाओं को अधिक बढ़ाते हैं. 2012 में किये गए एक सर्वे में 56% पोर्न फ़िल्में देखने वालों ने इस बात को स्वीकार किया कि उनकी रूचि इसमें लगातार बढ़ती जाती है और वह सामान्य पोर्न फिल्मों से आगे बढ़कर हिंसक पोर्न फ़िल्में देखने के आदी हो जाते हैं. ऐसी फ़िल्में देखने के बाद उन्हें अपनी इच्छा पूर्ति करनी होती है. इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार होते हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि बलात्कार उसी वक़्त, उसी स्थान पर और उसी महिला के साथ हो जिसने कम कपड़े पहना हुआ हो. अपराधी अपनी यौन इच्छा की पूर्ति के लिए शिकार तलाशता है. इसके लिए वह किसी अकेली असहाय महिला के साथ दुष्कर्म कर सकता है, यहाँ तक कि मासूम अबोध बच्ची को भी अपनी दरिंदगी का शिकार बनाने से नहीं झिझकता है. उसका केवल एक लक्ष्य होता है और वह है किसी भी प्रकार से अपनी हवस को मिटाना। कई बार ऐसी ख़बरें भी सुनने को मिली हैं जब एक कपूत ने नशे की हालत में अपनी माँ के साथ दुष्कर्म किया है. जब एक पिता ने अपनी पुत्री को हवस का शिकार बनाया है. जब धोखे से एक पुरुष मित्र ने नशा देकर अपनी महिला मित्र से बलात्कार कर मित्रता के रिश्ते को तार तार किया है. यह भी ज़रूरी नहीं है कि सभी पोर्न उपभोक्ता बलात्कारी हों मगर वास्तविकता से मुँह भी मोड़ा नहीं जा सकता है. 

ऐमेनस्टी इंटरनेशनल की ओर से किये गए एक सर्वे में 27% लोगों ने यह माना कि भड़काऊ कपड़े दुष्कर्म की एक प्रमुख वजह होती है. उत्तेजक कपड़े पहनने के हिमायती चाहे जो भी दलीलें दें, चाहे पुरुषों को जितनी भी नसीहतें दें वास्तविकता तो यही है कि हमारा समाज अभी इतना अपडेट नहीं हुआ है कि खुलापन को आम जनजीवन का हिस्सा मानें। दूसरी बात यह है कि ऐसे कपड़े फैशन तक सीमित हो तो अच्छा लगता है, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से भी इसे उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है. ऐसा नहीं है कि नारी अपने आप को चारदीवारी में क़ैद कर ले और दासी का जीवन जीने को मजबूर हो जाये। आज बाज़ार में ऐसे कई परिधान उपलब्ध हैं जिसमे एक औरत खूबसूरत और मॉर्डन होने के साथ साथ स्वयं को सुरक्षित भी महसूस कर सकती है. नारी कुदरत की एक अनमोल तोहफा है जिसमे ममता के साथ साथ सुंदरता भी शामिल है. इसे दिखाने के लिए किसी अंग प्रदर्शन की ज़रूरत नहीं है. अगर फिर भी कोई यह तर्क देता है कि छोटे कपड़े यौन हिंसा के लिए ज़िम्मेदार नहीं होते हैं तो एक नारी होने के नाते मेरा उनसे एक साधारण सा सवाल है कि आखिर बार गर्ल्स, पोल डांसर और जिस्म की मंडी में पेश की जाने वाली औरत को कम और उत्तेजित करने वाले कपड़ों में क्यूँ प्रस्तुत किया जाता है? ऐसे कई तर्क़ हैं जिनका जवाब ढूँढना सभ्य समाज के हित में है. केवल क़ानून में बदलाव या फिर उसे सख़्त बनाने से इस मसले का कभी हल नहीं निकाला जा सकेगा, यदि कुछ बदलना है तो वह है अपनी मानसिकता और यह ज़िम्मेदारी सभी पर लागू होती है. 






(निशात खानम)

आलेख : 'बटरिंग 'से ज्यादा कुछ नहीं चैनलों का महामंच...!!

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क्या खबरों की दुनिया में भी कई 'उपेक्षित कोने  ' हो सकते हैं। मीडिया का सूरतेहाल देख कर तो कुछ एेसा ही प्रतीत होता है। खबरों की भूख शांत करने औऱ देश- दुनिया की पल - पल की खबरों के मामले में अपडेट रहने के लिए घर पर होने के दौरान चैनलों को निहारते रहना आदत सी  बन चुकी है और मजबूरी भी। लेकिन पता नहीं क्यों पिछले कुछ दिनों से मुझे चैनलों पर समाचार  देखने - सुनने में बड़ी  बोरियत सी महसूस होने लगी है। एक ही तरह की खबरें देख - सुन कर इन दिनों काफी बोर और परेशान हो जाता हूं। इसकी कई ठोस वजहें भी हैं। क्योंकि खबरों के मामले में संतुलन कतई नजर नहीं आता। 

वही राजधानी  दिल्ली और आस - पास की खबरों का बार - बार महाडोज। मैं जिस पश्चिम बंगाल में रहता हूं वहां के सारधा घोटाले ने सूबे की राजनीति में भूचाल सा ला दिया है। इससे बंगाल की शेरनी कही जाने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हालत बेहद खराब है। कई हजार करोड़ रुपयों के इस महाघोटाले में अब तक सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का एक मंत्री और दो राज्यसभा सदस्य समेत राज्य पुलिस के एक रिटायर्ड डीजी को सीबीअाई ने गिरफ्तार किया है। जबकि कई सांसदों और विभिन्न क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है। चिटफंड घोटाला कहे जाने वाले इस मामले में असम पुलिस के एक रिटायर्ड डीजी ने आत्महत्या कर ली है। वहीं असम का एक प्रख्यात गायक सह अभिनेता तथा ओड़िशा राज्य में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल का एक सांसद  तथा इसी पार्टी और भाजपा के एक - एक विधायक को भी सीबीअाई ने गिरफ्तार कर जेल भेजा है। इस घोटाले से प्रभावित लोगों में अब तक 83 ने आत्महत्या कर ली है। 

पश्चिम बंगाल से शुरू हो कर इस घोटाले ने अास - पास के कुल छह राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। जिससे संबंधित सूबों की राजनीति भी बुरी तरह से प्रभावित है। लेकिन किसी चैनल ने अब तक इसकी सुध लेना भी जरूरी नहीं समझा। कहना  मुश्किल है कि इतने बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला इससे बड़ा घोटाला अब तक देश में कहीं हुआ है या नहीं। लेकिन इससे जुड़ी एक भी खबर किसी चैनल पर नजर नहीं आती। बहुत बड़ी घटना होने पर एकाध चैनल पर पट्टी  दौड़ती जरूर दिखाई देती है। लेकिन उसमें भी गलत - सलत लिखा नजर आता है। अभी कुछ दिन पहले इस मामले में सीबीअाई ने राज्य के एक मंत्री को गिरफ्तार किया। लेकिन एक चैनल पर चल रही पट्टी में उसे सांसद बताया जाता रहा। दूसरा सिरदर्द इन चैनलों के कथित महामंच का है। आत्मप्रवंचना की भंग  हर किसी पर चढ़ी  नजर आती है। एक चैनल पर इसके मालिक अक्सर नौजवानों की क्लास लेते रहते हैं कि भैया... जब हम इतनी दूर आ गए तो आप क्यों नहीं एेसी ऊंचाई हासिल कर सकते हो। दूसरे  चैनल ने अपने एक कार्य़क्रम के कुछ साल होने पर नामी - गिरामी हस्तियों का पूरा जमावड़ा ही लगा दिया। जिसका कोई मतलब अपने पल्ले नहीं पड़ा। 

कोशिश शायद यही बताने की रही होगी कि देखो कितने  बड़े - बड़े लोगों से अपनी छनती है। जनाब लोग एक बुलावे पर दौड़े चले आते हैं। अब दूसरे कहां चुप रहने वाले थे। बस लगा दिया महामंच। आक्रामक अग्रिम प्रचार देख - सुन कर एेसा लगा कि शायद देश की महत्वपूर्ण समस्याओं पर कोई गंभीर चर्चा होगी। लेकिन नहीं। महामंच के नाम पर वही पेज थ्री कल्चर वाले नामी - गिरामी चमकते - दमकते चेहरों का जमावड़ा। यहां भी संदेश यही कि हस्ती फिल्मी दुनिया की हो या क्रिकेट जगत की। हमारा न्यौता कोई नहीं ठुकरा सकता। देखो सब हमसे किस तरह गलबहियां डाल कर बातें करते हैं। इस कथित महामंच पर बिग बी यानी अमिताभ बच्चन भी आए। अब किसी कार्यक्रम में बिग बी आएं और बाबूजी की कविताएं ... पर बात न हो, यह हो नहीं हो सकता। लिहाजा खूब बतकहीं हुई। लेकिन मन में सवाल उठा कि ये चैनल वाले कभी - कभार बाबूजी से इतर दूसरे कवियों और साहित्यकारों को भी याद कर लेते तो कितना अच्छा रहता। खैर अपने चाहने से क्या होता है। चैनल वाले दावे चाहे जितने करे, लेकिन उनके बहस - मुबाहिशे और कथित महामंच पता नहीं क्यों मुझे बटरिंग से ज्यादा कुछ नहीं लगते। जन सरोकार से जुड़े किसी विषय पर इससे स्तरीय बहस तो भाषाई चैनलों पर नजर आते हैं।






तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934 

विशेष : पाकिस्तान में जख्म, हिन्दुस्तान में दर्द

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स्कूलों में शोक श्रद्धांजलि, तो स्वयंसेवी संगठनों ने निकाला कैंडिल मार्च तो राजनेताओं से लेकर धार्मिक गुरुओं ने शांति सभा कर की खौफनाक घटना की निंदा 

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भदोही। पेशावर के सैनिक स्कूल में आतंकी हमले से एक तरफ पाकिस्तान कराह रहा है तो हिन्दुस्तान के स्कूलों से लेकर स्वयंसेवी संगठनों व राजनेताओं में दर्द झलकता नजर आया। करीब-करीब सभी स्कूलों में दो मिनट का मौन रखकर बच्चों ने मृतक बच्चों की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की तो स्वयंसेवी संगठनों ने आतंकियों द्वारा निरीह बच्चों को मौत के घाट उतारने और हाल में ही सिडनी में आतंकियों द्वारा कई लोगों की हत्या के विरोध में जगह-जगह कैंडिल मार्च निकाला। साझा संस्कृति मंच, वाराणसी से जुड़े सामाजिक संगठनों के कार्यकताओं ने शास्त्री घाट वरुनापुल पर बुधवार की शाम को शांति सभा का आयोजन किया, जिसमे सर्वधर्म शांति पाठ किया गया। इसके बाद आतंकी घटनाओं में मारे गए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की गयी। आयोजित शांतिसभा में वक्ताओं ने कहा कि पूरे विश्व में आतंकी घटनाओं और निरीह लोगों की हत्याओं की घटनाएं बढ़ी हैं जो चिता का विषय है। अभी हाल में सुकुमा जिले में नक्सलियों द्वारा सेना के जवानो को मार डाला गया। हत्याएं किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। किसी की भी हत्या निंदनीय है। आतंकी घटनाओं में आये दिन निर्दोष लोगों  की जाने जा रही है जो किसी भी धर्म में जायज नहीं कही जा सकती। ऐसे में गाँधी जी की अहिंसा की सीख पूरे विश्व के लिए एक मात्र मार्ग बचता है। 

अहिंसा के रास्ते चलकर ही वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजना होगा। ‘साझा संस्कृति मंच’ हिंसा की इन तमाम घटनाओं की निंदा करता है और पूरे विश्व में शांति स्थापित करने की अपील करता है। मृतकों के प्रति शोक संवेदना के बाद आतंकी घटनों के विरोध में एक कैंडिल मार्च भी निकाला गया जो कचहरी चैराहे से होता हुआ अम्बेडकर चैराहा स्थित गाँधी जी की लौह प्रतिमा के यहाँ समाप्त हुआ। कार्यक्रम में फादर आनंद, डा आनंद प्रकाश तिवारी, मूसा आजमी, नन्दलाल मास्टर, सतीश सिंह, जागृति राही, दयाशंकर पटेल, डा लेनिन रघुवंशी,  दीन दयाल सिंह, प्रदीप सिंह, निजामुद्दीन गुड्डू, वल्लभ, गिरसंत, मानसी, प्रेम प्रकाश, फिरोज, गोपाल पाण्डेय, कमलेश, श्रुति नागवंशी, राजेश श्रीवास्तव, विनय कुमार सिंह, किरण देवी आदि शामिल थे। कांग्रेस नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने पेशावर के आर्मी स्कूल में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने बुधवार को आजमगढ़ में कहा कि पाकिस्तान आतंक का घर बन चुका है। जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों को सह देना बंद नहीं करेगा, तब तक इसका निराकरण नहीं हो सकता है। आतंकवाद से लड़ने के लिए सभी देशों को एक साथ आगे बढ़ना होगा।




(सुरेश गांधी)

विशेष आलेख : दरिंदगी आतंक की।

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आज पूरा विश्व आंतकवाद की समस्या से जूझ रहा है। हर तरफ आतंक का कहर है। धर्म, जाति मजहब से खेलना इनके आका बखूबी जानते है। आखिर ये चाहते क्या हैं? इनकी सोच क्या है? मासूमों का कत्ल करना। बस यही इनका पेशा है। इन्हें समर्थन देने वाला पाकिस्तान भी इस समस्या से ग्रस्त होता जा रहा है। कहते हैं जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। 15 दिसम्बर सोमवार को ईरानी मूल के हारून मोनिस ने लगभग 40 लोगों को एक कैफ़े के अंदर बंधक बना लिया था। बड़ी मशक्कत के बाद करीब 16 घंटे के बाद सिडनी पुलिस ने एक कमांडो ऑपरेशन किया।  कैफ़े में बंधक बनाए गए लोगों को कमांडो ऑपरेशन के बाद छुड़ा लिया गया था। लेकिन इस ऑपरेशन में हमलावर समेत तीन लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।  इस हमले में एक पुलिसकर्मी समेत चार लोग घायल भी हुए। 

सिडनी के कैफ़े में लोगों को बंधक बनाने वाले ईरानी मूल के हारून मोनिस राजनीतिक शरण पर 1996 में ऑस्ट्रेलिया गए थे। मोनिस पर कई हिंसक अपराधों के लिए ऑस्ट्रेलिया में मुक़दमा चल रहा है।  उन पर अपनी पूर्व पत्नी की हत्या का भी आरोप है। सिडनी क़ैफे की वारदात को देखते हुए एक बार फिर मुम्बई में 26/11   आतंकवाद हमले का याद ताजा हो गई। लोगों को ऐसे बंदूक की नोक पर बंधक बनाकर रखना। क्या बीतती होगी उनके दिलों पर जो बंधक बनाए जाते हैं। इन दहशतगर्दों को इससे क्या मतलब। इंसानियत भूल गए हैं ये हैवान बन गए। मामला आस्ट्रेलिया का शांत नही हुआ था कि आंतक का जन्मदाता कहे जाने वाले पाकिस्तान के पेशावर में आतंकियों ने 16 दिसम्बर एक प्रसिद्ध आर्मी स्कूल में बड़ा हमला कर दिया है। इस हमले में हमले में लगभग 120 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई है। बहुत सारे बच्चे हमले घायल हो गए । 

आखिर इन बच्चों ने उनका क्या बिगाड़ा था। जो उन बेचारे मासूमों पर इतना बड़ा कहर बरपा दिया। अपने बचेचों का भी ख्याल नही आया उन जल्लादों को। आएगा भी कैसे? अपने बच्चों को तो कलम की जगह बंदूक पकड़ने की शिक्षा देते हैं। इस साल बच्चों के खिलाफ यह अब तक का सबसे बर्बर हमला है।  ये तालिबानी अर्धसैनिक फ्रंटियर कॉर्प्स की वर्दी में आए आठ से 10 आत्मघाती हमलावर वरसाक रोड स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल में घुस गए और अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे जिसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए। सिर्फ बच्चों की संख्या 100 से ज्यादा बताई जा रही है। पूरा विश्व जब आतंक पर बात करता है। तब पाक के मुंह में दही जमी होती है। भारत को अपना जानी दुश्मन समझते है। भारत में दहशत का खेल–खेलना चाहते है। लेकिन सच्चाई ये है जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता वही उसी में गिरता है। बच्चों पर किया गया ये हमला बहुत ही निंदनीय है। लेकिन क्या इस वारदात के बाद इनके नेता चेतेगे। दो तीन दिन बाद फिर से कश्मीर का राग गाने लगेगें। अगर आस्तीन में सॉप पालोगे तो कभी न कभी घूम कर काट ही लेगें। 

एक महीने पहले 2 नवम्बर को पाकिस्तान में वाघा सीमा के नजदीक हुए आत्मघाती हमला हुआ था। है। इस हमले में 70 लोगों की मौत हो गई है। विस्फोट वाघा सीमा से 500 मीटर दूर हुआ था। इस हमले में 200 से अधिक लोग घायल भी हो गए थे। दिसम्बर में ये दूसरा हमला फिर भी इनकी आंखे बंद रहेगी। विश्व के साथ खड़े होकर ये आतंक के खिलाफ नही लड़ेगें। उन परिवार वालों को जाकर देखों जिनके जिगर के टुकड़े इस हमले में मारे गए और घायल हुए हैं। उनके परिवार वालों पर गम़ का पहाड़ टूट पड़ा है। घर से बच्चों को भेजने वाले माता-पिता के दिलों पर सॉप लोट गया। जैसे ही आतंक के इन दरिंदों ने इस वारदात को अंजाम दिया। भारत के लिए आंतकवाद समस्या बन गया है। पाक के लिए भी । तो मिलकर इस समस्या को दूर क्यों नही करते। पाकिस्तान आर्मी को भी सोचना चाहिए। जम्मू कश्मीर की सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करके आतंकवादियों की मद्द कर भारत की सीमा के अंदर प्रवेश दिलाना कहा तक उचित है। 

उन हैवानों ने आप के बच्चों को निशाना बना लिया है। ऐसे में ये बात तो साफ़ हो जाती है कि ये किसी के नही है। अपने आका की बातों को सिर्फ मानते हैं। अगर आका ने कह दिया कि अपने बेटे को मार दो तो जन्नत मिलेगी। तो बेटे का क़त्ल करने में ज़रा सा परहेज नही करेगें। हर तरफ से आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए हाथ बढ़ाए जा रहे हैं । पाकिस्तान को भी अब इसमें शरीक हो जाना चाहिए। वरना दूसरों को मिटाने की चाह में खुद का शर्वनास कर डालेंगें।




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रवि श्रीवास्तव
लेखक, कवि, व्यंगकार, कहानीकार
माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से 
पत्रकारिता में परास्नातक किया है।
फिलहाल एक टीवी न्यूज़ ऐजेंसी से जुड़े है।

विशेष : इस्लामिक दानिशमंदों के लिए कुछ कर गुजरने का वक्त

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पाकिस्तान के पेशावर में सैनिक स्कूल के सवा सौ से अधिक मासूम बच्चों को गोलियों से भूनने वाले दहशतगर्द दीन के लिए लडऩे वाले जेहादी नहीं हो सकते। यह लोग मानवता के दुश्मन हैं। दहशतगर्दों ने अपने आपको इस्लाम के चेहरे के रूप में पेश करते हुए कुछ समय से जिस तरह की करतूतों को अंजाम देना शुरू किया है उसकी यह भयानक परिणति अब सहने की चरमसीमा है। दुनिया भर के मुस्लिम दानिशमंदों को इनकी कड़ी मजम्मत करने और इस्लाम के असल उसूल क्या हैं यह बताने के लिए आगे आना होगा वरना इतिहास में वे भी आगे चलकर खलनायक के तौर पर दर्ज किए जाएंगे।

इस्लाम पर्याय है अमन का। पैगंबर साहब ने नए मजहब के लिए जानबूझकर यह नाम चुना था जिससे समझा जा सकता है कि वे दीन के जरिए कैसी दुनिया स्थापित करने का सपना संजोए हुए थे। उन्होंने धर्म को फैलाने के लिए कभी तलवार नहीं उठाई। शुरू में तो वे उन लोगों के साथ भी सहअस्तित्व के लिए तैयार थे जो मजहबी दुनिया में दूसरे ध्रुव पर खड़े थे लेकिन जब उन्होंने पैगंबर साहब की जिंदगी दुश्वार कर दी उन्हें मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा। उसके बाद उन्होंने आत्मरक्षा के लिए लड़ाइयां लड़ीं लेकिन धर्मयुद्ध की गरिमा के अनुरूप उन्होंने लड़ाइयों में दुश्मनों की महिलाओं और बच्चों पर ज्यादतियां न होने देने का ख्याल रखा। मुसलमानों पर जेहाद आयद करते हुए उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि अपने मजहब को दूसरे पर थोपने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए। जेहाद से उनका मतलब था अपने अंदर के शैतान से संघर्ष करते हुए उन कामों को किसी भी कीमत पर करने के लिए तैयार न होना जिन्हें हराम कहा गया है। जेहाद में यह था कि पहले तो दीन के खिलाफ कही गई बात का समर्थ हो तो इस हद तक विरोध करो कि सामने वाले को उसे रोकना पड़े। अगर वह बराबरी का हो तब भी उससे दीन के उसूलों के लिए टक्कर लेने में न हिचको और अगर वह इतना ताकतवर है कि उससे लडऩा मुमकिन न हो तो मन से कभी उसको साथ न हो। एक प्रतिबद्ध इंसान बनाने के लिए जेहाद के उसूल से बेहतर उसूल कोई नहीं हो सकते थे। मोहम्मद साहब के न रहने के बाद मौलवियों और मौलानाओं से इसे इस्लाम के विस्तार से जोड़ दिया। फिर भी यह साफ किया गया कि जेहाद का ऐलान स्टेट द्वारा किया जाएगा किसी व्यक्ति या गैर सरकारी तंजीम द्वारा नहीं। इस तरह देखें तो तालिबान से लेकर अल कायदा तक ने जो जेहाद छेड़ा है उसके लिए वे कतई अधिकृत नहीं हैं।

इस्लाम अन्य धर्मों से इस बात पर जुदा है कि इसमें यतिवृत्ति को हतोत्साहित किया गया है। दुनिया छोडऩा, सन्यासी होना यह इस्लामी उसूलों के मुताबिक ठीक नहीं है। दुनिया को नेक बनाना यह इस्लाम का लक्ष्य है। इसके तहत गृहस्थी और परिवार में रहते हुए ही वह अल्लाह की याद पांच वक्त की नमाज के साथ करते हुए यह काम कर सकता है। इसमें बहुत ही विशिष्ट तौर पर चिह्निïत किया गया है कि नेकी के काम क्या हैं। उदाहरण के तौर पर इस्लाम के अलावा किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि कारोबार को भी नैतिक बनाया जाना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि ब्याजखोरी पर पूरी लगाम लगाई जाए। ब्याज को हराम घोषित करना बहुत ही क्रांतिकारी अवधारणा थी और इस पर अमल करना बहुत बड़े त्याग के बराबर था पर अमल के मामले में इस्लाम बहुत कठोर रहा इसीलिए कहते हैं कि तीसरे खलीफा हजरत उमर ने जब दुनिया के तमाम दौलतमंद मुल्क अपने कब्जे में कर लिए थे तब भी वे इतनी सादगी से रहते थे कि उनका पूरा सामान एक ऊंट पर आ जाता था जिसमें लकड़ी के बर्तन होते थे। खजूर, आटा और थोड़ा-बहुत और सामान। इस्लाम ने विलासिता की भावना को सबसे ज्यादा शैतानी माना। तमाम बंदिशें विलासिता की इच्छाओं से बहकने से इंसान को रोकने के लिए बनाई गईं। शुरूआत में इस्लाम दार्शनिक उलझनों से मुक्त था लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब इस्लाम का दार्शनिक स्तर पर अभूतपूर्व विकास हुआ। सूफियों की परंपरा का जिक्र इस सिलसिले में किया जा सकता है। मोतजली संप्रदाय के अलगजाला ने इस्लाम की मूलभूत अवधारणाओं को तर्क की कसौटी पर कसा तो वे नास्तिकता की ओर बढ़ गए लेकिन बाद में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि तर्क वहां तक कारगर हैं जहां तक ज्ञान बोधगम्य है लेकिन ज्ञान का क्षितिज इससे भी आगे है। जब साधना की पराकाष्ठा पर साधक पहुंच जाता है तब इस ज्ञान की उसे अनुभूति होती है यानी उसे इलहाम होता है। उन्होंने कहा कि सहज ज्ञान तर्कों से बंधा हुआ नहीं है और वह इस कारण कभी गलत नहीं होता। इस्लाम के दार्शनिक विकास की ही अवस्था थी जब हार्रून रशीद खलीफा हुए जिन्होंने बगदाद से अपने छात्रों को गणित और ज्योतिष के अध्ययन के लिए हिंदुस्तान भेजा। अपने चिकित्सा शास्त्र के विकास के लिए उन्होंने हिंदुस्तान के वैद्यों को अपने दरबार में स्थान दिया। इस्लाम को उन्होंने ज्ञान-विज्ञान की चकाचौंध से भरकर नए आयाम प्रदान किए।

आज इस्लाम के इस गौरवमय अतीत को याद करने की जरूरत है। अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान की उत्तरी बजीरिस्तान सीमा तक जनजाति कबीलों को शासन है। महापंडित राहुल सांक्रत्यायन ने वोल्गा से गंगा तक में सभ्यता के विकास का इतिहास लिखा है। वोल्गा तट उनकी किताब में सभ्यता का प्रस्थान बिंदु है जिसमें भूख बढऩे पर मां तक अपने बेटे को खाकर क्षुधा शांत करने में हिचक महसूस नहीं करती थी। सभ्यता गंगा तक पहुंचते-पहुंचते मानवीय आदर्श कितने ऊंचे हो गए। मां द्वारा बेटे को किसी भी आपात स्थिति में खा लेने की कल्पना तो दूर गैर के बेटे तक के खाने का उसका कलेजा नहीं बचा। सुकुमार भावनाएं, कोमल संवेदनाएं मानव सभ्यता की उज्ज्वल धरोहर बन गए। अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे में जहां सभ्यता आज तक ठहरी हुई है उन समाजों में बर्बरता का कितना खतरा रहता है। यद्यपि अफगानी आज से कुछ दशक पहले बहुत ही मासूम थे। रविंद्र नाथ टैगोर ने काबुली वाला के नाम से जो कहानी लिखी है वह उनकी मासूमियत का विह्वल कर देने वाला दस्तावेज है। सरहदी गांधी की याद आती है। यह पखतून नेता आखिर तक गांधी जी के उसूलों को पाकिस्तान में रहकर जीता रहा। अफगानिस्तान के कबीलाई समाज में जहर घोलने का काम अमेरिका ने किया। जब सोवियत संघ ने वहां वामपंथी क्रांति को निर्यात किया था। जब नजीबुल्ला अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो सभ्यता के सकारात्मक विकास की एक बहुत बड़ी पहल अफगानी समाज में हुई थी। अमेरिका को यह रास न आया। उसने जेहाद की गलत व्याख्या के साथ बिना पढ़े-लिखे जाहिल मौलवियों की देखरेख में जगह-जगह वहां मदरसे स्थापित करा दिए गए। उनके छात्रों यानी तालिबानों का अपने लिए इस्तेमाल किया। जेहाद के नाम पर उन्हें हिंसा की ऐसी घुट्टी पिलाई कि आज वे न केवल खुद युद्धोन्माद की ऐसी गिरफ्त में हैं जिस तंद्रा से मरकर ही बाहर हो पाएंगे बल्कि उन्होंने मारकाट करने का नशा पूरी इस्लामिक दुनिया में तारी कर दिया है। जब से अमेरिका पोषित जेहाद छिड़ा है तब से इस्लाम के दार्शनिक विकास की राह बंद हो गई है। उदार इस्लामिक व्याख्याओं की कोई गुंजाइश नहीं बची है। इस्लाम के स्वर्णकाल की तुलना में यह उसका कैसा अंधेरा युग है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन भस्मासुर जेहादियों ने सारी दुनिया में इस्लाम को कायम करने के नाम पर मुसलमान कौम के ही सफाए का ठेका ले लिया है। जो लोग इस्लाम को उसकी सादगी में अटूट निष्ठा की वजह से अपना सबसे ज्यादा शत्रु समझते हैं उनके लिए इससे ज्यादा बेहतर समय क्या होगा। इस्लाम की शिक्षाओं को बारीकी से देखें तो साफ जाहिर हो जाएगा कि इस्लाम के लिए उपभोक्ता वाद वर्ग शत्रुओं की संस्कृति है। इस कारण अगर वर्ग शत्रु सचेत हैं तो उन्हें इस्लाम को अपने रास्ते से हटाने के लिए हर जतन करना ही पड़ेगा और वे यही कर रहे हैं।

तथाकथित जेहाद की असलियत को इस परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है तभी सारी दुनिया को नेक बनाने का पैगंबर साहब के संकल्प को बचाया जा सकेगा। क्या पेशावर के मासूम बच्चों की शहादत मुसलमानों को इस कोण से झकझोरते हुए सार्थक इस्लामिक या दीन क्रांति के लिए प्रेरित कर पाएगी। अगर ऐसा हुआ तो यह उन जन्नतनशीन बच्चों के लिए सबसे सही खिराजे अकीदत पेश करना होगा। 




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के पी सिंह 
ओरई 

महंगाई : सब्जी से सेंसेक्स तक गिरावट जारी है

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थोक महंगाई दर हो, कच्चे तेल की कीमत हो, पेट्रोल-डीजल के दाम हो, भारतीय रूपया हो, मौसम का तापमान हो या सेंसेक्स हर तरफ तरफ गिरावट जारी है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिंसो की कीमतों में जोरदार गिरावट के कारण नवंबर महीने में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति घटकर शून्य पर आ गयी है  जो पिछले महीने 1.77 प्रतिशत पर थी। थोक महंगाई का यह स्तर पिछले पांच साल का न्यूनतम है। शून्य पर आई थोक महंगाई ने रिज़र्व बैंक पर ब्याज दरों में कटौती के लिए दबाव बढ़ा दिया है।

वहीँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत भी पांच साल के निचले स्तर पर है।  इस वजह से पेट्रोल-डीजल के कीमतों में भी लगातार गिरावट जारी है। अक्टूबर के बाद से पेट्रोल - डीजल के दाम चार बार घटाए गए जबकि अगस्त के बाद यह लगातार आठवीं गिरावट है।

भारतीय रूपया भी बुरे दौर से गुजर रहा है और इसमें भी लगातार गिरावट जारी है। रूपये ने पिछले तेरह महीने का न्यूनतम स्तर छू दिया है। परिस्थितियां भी ऐसी बन रही है जिससे गिरावट थमने की उम्मीद कम ही है।

पिछले दिनों बारिश और बर्फबारी के कारण मौसम के तापमान में गिरावट देखने को मिली जो आने वाले दिनों में और भी गिरेगा। मेरी सलाह है तापमान के गिरावट में खुद को बचाइये और बेसहारों को भी।

अगर सेंसेक्स में गिरावट की बात करें तो यहां हाहाकार मचा हुआ है। सेंसेक्स में लगातार हो रही गिरावट ने निवेशकों और शेयर कारोबारियों के नाक में दम कर रखा है। सेंसेक्स गिरकर 27000 के निचे जबकि निफ़्टी 8100 के निचे आ चूका है। कुछ विशेषज्ञों को निफ़्टी में 300 से 500 अंकों के और गिरावट का अंदेशा है। हालांकि वर्ष 1980 से 2013 तक सिर्फ 6 बार ही मार्केट ने दिसंबर के महीने में निगेटिव रिटर्न दिया है।





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राजीव सिंह
संपर्क  : rajivr.singh@yahoo.co.in

सुप्रीमकोर्ट ने जयललिता की जमानत अवधि छह माह बढाई

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उच्चतम न्यायालय ने आय के ज्ञात स्त्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के मामले में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता को बडी राहत प्रदान करते हुए उनकी जमानत अवधि चार महीने और बढा दी है। सुश्री जयललिता की याचिका की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि अन्नाद्रमुक प्रमुख की जमानत अवधि 18 अप्रैल 2015 तक बढाई जाती है। न्यायालय ने र्कनाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कहा है कि वह सुश्री जयललिता की निचली अदालत के फैसले के खिलाफ की सुनवाई यथाशीघ्र करें। 
     
गत 17 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने सुश्री जयललिता की सजा पर दो माह के लिए रोक लगा दी थी और उन्हें कहा था कि वह अपील संबंधी पेपरबुक दो महीने के भीतर उच्च न्यायालय में पेश करेंगी और सुनवाई स्थगित करने का आग्रह उच्च न्यायालय से नहीं करेंगी। उन्होंने पिछले दिनों उच्च न्यायालय में पेपरबुक जमा करा दिया है।

11वां अन्तरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन नेपाल के जनकपुर में होगा

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ग्यारहवां अन्तरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन का आयोजन सीता की जन्मभूमि नेपाल के जनकपुर में 22 एवं 23 दिसम्बर को होगा. अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन के अध्यक्ष एवं विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डा0 वैद्यनाथ चौधरी ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मैथिली अधिकार दिवस के अवसर पर नेपाल के जनकपुर में 22 एवं 23 दिसम्बर को दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया है । इस सम्मेलन का उद्घाटन नेपाल के राष्ट्रपति डा. रामवरण यादव करेंगे जबकि मुख्य अतिथि नेपाल के भूतल परिवहन मंत्री विम्लेन्दू निधि होंगे. डा0 चौधरी ने कहा कि उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति डा0 साकेत कुशवाहा करेंगे. समारोह के पूर्व मिथिला की पारंपरिक पोशाक में एक शोभा यात्रा निकाली जायेगी तथा रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा. इस सम्मेलन में देश विदेश के एक हजार से अधिक प्रतिनिधि भाग लेंगे.

मैथिली सम्मेलन के अध्यक्ष ने कहा कि दूसरे दिन 23 दिसम्बर को भारत नेपाल के मिथिला भूभाग का र्सवांगीण विकास विषय पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया है । इसकी अध्यक्षता कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डा0 देव नारायण झा करेंगे. उन्होंने कहा कि सम्मेलन में मिथिला राज्य की स्थापना को लेकर चलाये जा रहे आंदोलनात्मक काया6 की भी समीक्षा की जायेगी. इस मौके पर बिहार राज्य मैथिली अकादमी के अध्यक्ष एवं अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन के कला एवं सांस्कृतिक प्रभारी कमला कांत झा ने कहा कि वर्ष 2003 में 22 दिसम्बर को ही मैथिली भाषा को संविधान की अष्टम अनुसूचि में शामिल किया गया था। इसके बाद से ही सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है । श्री झा ने कहा कि मैथिली भाषा को संविधान की अष्टम अनुसूचि में शामिल होने का पूरा लाभ आज भी नहीं मिल रहा है । उन्होंने कहा कि दरभंगा स्थित केन्द्र सरकार का गीत एवं नाटक प्रभाग का कार्यालय और आकाशवाणी केन्द्र मृतप्राय: हो गया है । बारशबार पत्र लिखे जाने के बाद भी इसके पुनरुद्धार के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है. उन्होंने कहा कि समस्तीपुर रेल मंडल के तहत विभिन्न स्टेशनों पर मैथिली भाषा में किये जाने वाले उद्घोषणा को भी एक साजिश के तहत बंद कर दिया गया है ।

हमास को आतंकवादी संगठन की सूची से निकाला जाये : ईयू अदालत

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यूरोपीय संघ .ईयू. की एक अदालत ने कहा कि फिलीस्तान के इस्लामिक संगठन हमास को संघ की आतंक वादी संगठनों की सूची से निकाला जाये। यूरोपीय संघ के  दूसरे सबसे बड़े न्यायाधिकरण ने कल एक फैसले में कहा कि हमास को आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल करने का फैसला मीडिया रिपोर्टों पर आधारित था और उसमें विश्लेषकों को शामिल नहीं किया गया था। अदालत ने कहा कि संघ के सदस्य देश हमास की संपत्ति को अगली समीक्षा के लिये समय देते हुये तीन महीनों तक फ्री  कर सकते हैं या अपील कर सकते हैं। 

ईयू के प्रवक्ता माजा कोसिजेनिक ने कहा कि संघ हमास को आतंकवादी संगठन की सूची में रखना जारी रखेगा। उन्होंने कहा ..यह प्रक्रियात्मक आधार पर अदालत की न्यायिक सुनवाई का मामला है। हम इस मामले को देखेंगे और उपयुक्त कार्रवाई के बारे में कोई निर्णय करेंगे। गाजा के बाहर कई वषोर्ं से जारी अंधाधुंध रॉकेट हमलों और आत्मघाती हमलों को देखते हुये अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश हमास को आतंकवादी संगठन मानते हैं।

जीएसएलवी मार्क-तीन राकेट का सफल प्रक्षेपण

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन .इसरो. ने आज देश के सबसे वजनी राकेट जीएसएलव एलवीएम मार्क-3 का सफल प्रायोगिक प्रक्षेपण करते हुए अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की दिशा में एक अहम कदम बढा लिया। इस राकेट को सुबह साढे नौ बजे आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण केंद्र से एक मानवरहित केयर माड्यूल के साथ प्रक्षेपित किया गया। माड्यूल जैसे ही राकेट से अलग हुआ इसरो के मिशन कंट्रोल रूम में मौजूद वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड गयी। प्रक्षेपण के 5.4 मिनट बाद केयर 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर राकेट से अलग हो गया और उसने पुन: पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया। माड्यूल पोर्ट ब्लेयर से 600 किमी दूर बंगाल की खाडी में गिरा जहां पहले से ही तैनात भारतीय तटरक्षक बल ने उसे खोज निकाला।

इस मिशन की सफलता से इसरो की दो साल के भीतर अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की महत्वाकांक्षी परियोजना को गति मिलेगी। मिशन की सफलता से प्रफुल्लित इसरो के अध्यक्ष डा. के राधाकृष्णन ने मिशन कंट्रोल सेंटर में वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा ..आधुनिक प्रक्षेपण यान के विकास में भारत के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है। यह राकेट चार से पांच टन वजनी उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाएगा। उन्होंने कहा ..भारत ने एक दशक पहले इस राकेट के विकास की शुरुआत की थी। हमने जीएसएलवी..एमके.3 की पहली प्रायोगिक उडान पूरी कर ली है। इसके दो ठोस चरणों और तरल कोर स्टेज का प्रर्दशन उम्मीदों के मुताबिक रहा। प्रायोगिक माड्यूल का प्रर्दशन भी काफी अच्छा रहा। इस माड्यूल में तीन लोग जा सकते हैं। यह माड्यूल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक बंगाल की खाडी में गिरा। जीएसएलवी एमके-3 के परियोजना निदेशक एस सोमनाथ ने कहा कि इस प्रक्षेपण यान के विकास का सपना 1990 के दशक में देखा गया था जो आज पूरा हो गया। उन्होंने कहा ..भारत के शक्तिशाली प्रक्षेपण यान का सपना पूरा हो गया है। इसकी भार ले जाने की क्षमता दूसरों के मुकाबले ज्यादा है। इसकी सफलता से भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने का हमारा आत्मविश्वास बढा है। इस राकेट की पूर्व विकसित उडान में अभी दो साल का समय लगेगा।

कुल 630 टन वजनी और 42.4 मीटर लंबे जीएसएलवी एमके.3 की प्रायोगिक उडान में एक्टिव दो ठोस बूस्टर. एक तरल कोर स्टेज और एक पैसिव क्रायोजेनिक स्टेज का इस्तेमाल किया गया। प्रक्षेपण के 330 सेकेंड बाद माड्यूल 126 किमी की ऊंचाई पर राकेट से अलग हो गया और करीब 80 किमी की ऊंचाई पर उसने फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। तीन पैराशूटों की मदद से माड्यूल की रफतार को नियंत्रित किया गया और वह सफलतापूर्वक समुद्र में उतर गया। राकेट के प्रक्षेपण से लेकर माड्यूल के समुद्र में उतरने की प्रक्रिया में कुल 20 मिनट का समय लगा। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य नए राकेट की जटिल प्रक्रिया खासकर एयरोडायनेमिक और कंट्रोल विशेषताों की जांच करना था जिन्हें ग्राउंड पर जांचना संभव नहीं है। चार टन वजनी केयर माड्यूल के परीक्षण का मकसद ऐसी तकनीक की जांच करना था जो फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सके। इस माड्यूल का बाहरी आवरण वैसा ही था जैसा कि मानव मिशनों में इस्तेमाल होता है। जीएसएलवी एमके.3 के माध्यम से इसरो का मकसद साढे चार से पांच टन वजनी इन्सैट.4 वर्ग के संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना है। इससे भारत करोडों डालर के व्यावसायिक प्रक्षेपण बाजार में भी अपनी पैठ बना सकेगा।

वाम दलों को उग्रवादी बताये जाने पर सदन में हंगामा

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सत्तापक्ष के एक सदस्य द्वारा परिचर्चा के दौरान छत्तीसगढ में जारी नक्सलवाद में वामपंथी उग्रवादियों के शामिल होने के बयान पर राज्यसभा में वामदलों के सदस्यों ने उक्त सदस्य से माफी की मांग की जिसके कारण सदन में कुछ समय तक हंगामे की स्थिति रही। कार्यवाही शुरू होते ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा ने इस मुद्दे को उठाते हुये कहा कि सत्तापक्ष के सदस्य तरूण विजय ने कल परिचर्चा के दौरान वामपंथियों को उग्रवादी करार दिया जो आपत्तिजनक है। इस पर उप सभापति पी जे कुरियन  ने कहा कि इसको कार्यवाही से हटाया जा चुका है। 

इस पर श्री राजा ने कहा कि इस तरह के बयान को कार्यवाही से हटाना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि संबंधित सदस्य को इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। वामपंथियों को किसी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी ने कहा कि श्री विजय को माफी मांगनी पडेगी और सभापति को इसके लिए आदेश देना चाहिए। 

श्री कुरियन ने कहा कि जो आपत्तिजनक था उसे हटाया जा चुका है और वह सदस्य को इसके माफी मांगने का आदेश नहीं दे सकते हैं। इस पर श्री विजय ने कहा कि वह श्री राजा का सम्मान करते हैं और उन्होंने माक्र्सवादी लेनिनवादी वामपंथियों के बारे में यह बात कही थी। उनका इरादा सदस्यों को आहत करने की नहीं थी। हांलाकि उन्होंने माफी  नहीं मांगी जिसके कारण सदन में कुछ समय तक हंगामे की स्थिति रही। 

सरकार सीबीआई का दुरूपयोग कर रही है : ममता बनर्जी

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सारदा चिटफंड घोटाले में तृणमूल कांगे्रस के नेताों की गिरफतारी से विफरी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज संसद भवन परिसर में अपने आक्रोश का इजहार करते हुये कहा कि भारतीय जनता पार्टी.भाजपा. की सरकार सीबीआई का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रही है लेकिन वह झुकेंगी नहीं। सुश्री बनर्जी ने संसद के बाहर पत्रकारेां से कहा कि सरकार सीबीआई पर दबाव डालकर उनकी पार्टी के लोगों को गिरफतार कर रही है और वह उन्हें भी फंसाने की साजिश रच रही है। उन्होंने कहा कि संसद के भीतर और बाहर उनकी पार्टी के सांसद भाजपा का खुलकर विरेाध करते रहेंगे. 

उन्होंने कहा कि वह संसद में विभिन्न नेताों और अपने मित्रों से मिलने आयी हैं। राजनीति में कोई भी व्यक्ति अछूत नहीं होता है । इसलिये वह सभी लोगों से मिलकर अपनी बात कहेंगी तथा उन्हें बताएंगी कि किस तरह भाजपा सीबीआई का दुरूपयोग मेरी पार्टी के खिलाफ कर रही है । उन्होंने कहा कि अगर सरकार को वाकई न्याय करना है और घोटाले के दोषियों को पकडना है तो वह सहारा को क्यों बचा रही है । गौरतलब है कि कल तृणमूल कांगे्रस के सदस्यों ने काली पट्टी बांधकर संसद परिसर में अपना विरोध प्रकट किया था और वे लगातार संसद में भाजपा पर हमले भी कर रहे है । उन्होंने बताया कि वह आज राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से भी मिलेंगी और उनसे मिलकर उनके स्वास्थ्य का हाल चाल पूछेंगी. गौरतलब है कि गत दिनों राष्ट्रपति के हृदय का आपरेशन हुआ है ।

पाकिस्तानी सेना ने 57 आतंकी मार गिराए

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पेशावर में स्कूल पर हुए बर्बर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तानी सेना ने आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज कर दिया है। पाकिस्तानी सेना द्वारा खैबर इलाके में किए गए हवाई हमले में 57 आतंकियों के मारे जाने की खबर है। पाकिस्तानी अखबार 'द डॉन'ने सेना के वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा है, 'मंगलवार को हुई दर्दनाक घटना के बाद आतंकियों के खिलाफ नए सिरे से ऑपरेशन चलाया गया है। ' 

तालिबानी हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अभियान तेज करने की भी मांग हो रही है। पेशावर की आतंकी घटना के बाद से पाकिस्तानी सेना 20 हवाई हमले कर चुकी है। पाकिस्तानी सेना के अधिकारी का कहना है कि आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन जारी है। 

फिलहाल स्पाइसजेट का संकट टला, उड़ानें शुरू

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नकदी संकट से जूझ रही विमानन कंपनी स्पाइसजेट की उड़ानें बहाल हो गईं। तेल विपणन कंपनियों द्वारा कंपनी के विमानों को ईंधन देने से इनकार करने के बाद से उसकी 150 से अधिक उडानें रद्द हुईं और कम किराये वाली इस विमानन कंपनी को कल शाम जेट इंर्धन खरीदने के लिए तीन करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा। हवाईअड्डा सूत्रों ने कहा ''अब तक परिचालन पहले से तय समयसारणी के मुताबिक चल रहा है।''सुबह 10 बजे तक दिल्ली से विमानन कंपनी के विमानों ने मुंबई, जयपुर, पोर्ट ब्लेयर, कोच्चि और वाराणसी के लिए पांच उड़ाने भरी हैं।

विमानन कंपनी को आज थोड़ी राहत मिली। स्पाइसजेट की उड़ानें करीब 10 घंटे के लिए बंद रहीं जिसके बाद उसने तेल कंपनियों को तीन करोड़ रुपये का आंशिक भुगतान किया जिससे आंशिक परिचालन बहाल करना संभव हुआ। कंपनी ने 243 सूचीबद्ध उड़ानों में से कल शाम चार बजे के बाद से 75 उड़ानों के परिचालन का दावा किया है। स्पाइसजेट के मूल प्रवर्तकों में से एक अजय सिंह ने नागर विमानन सचिव वी सोमसुंदरम से मुलाकात की, जिससे ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रवर्तक की विमानन कंपनी में फिर से निवेश की योजना है। यह पूछने पर कि क्या वह निवेश करेंगे, सिंह ने इसका जवाब देने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि स्पाइसजेट में बहुत संभावनाएं हैं।

स्पाइसजेट की मूल कंपनी सन समूह के मुख्य वित्त अधिकारी एस एल नारायणन ने कहा ''हमें थोडी गुंजाइश चाहिए। यदि हमें बैंकों से थोड़ा समय मिलता है और कलानिधि मारन गारंटी देने के लिए तैयार हो जाते हैं तो हम फिर से सामान्य तौर पर काम-काज कर सकते हैं। संकलन होने पर हम भुगतान करने लगेंगे।''नारायणन ने कहा कि मारन पिछले तीन साल में करीब 820 करोड़ रुपये का निवेश कर चुके हैं और जब भी विमानन कंपनी को धन की जरुरत पड़ी है, उन्होंने निवेश किया है। नागर विमानन मंत्रालय का स्पाइसजेट को 30 दिन से अधिक की बुकिंग करने की मंजूरी नहीं देना इसके हित में नहीं रहा और इसकी दैनिक आय प्रभावित हुई। इससे मंत्रालय को अपना फैसला रोकना पड़ा।

कंपनी ने तेल कंपनियों और हवाईअड्डा परिचालकों से कहा था वे स्पाइसजेट को 15 दिन के लिए उधार की सुविधा दें ताकि विमानन कंपनी को बंद होने से बचाया जा सके। मंत्रालय का हस्तक्षेप हालांकि इस शर्त के साथ हुआ कि संकटग्रस्त विमानन कंपनी जल्द से जल्द पूंजी डालने की प्रतिबद्धता जताएगी। विमानन कंपनी पर कुल 2,000 करोड़ रुपये की देनदारी है जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकार का बकाया शामिल है। उल्लेखनीय है कि दो साल पहले एक अन्य विमानन कंपनी, किंगफिशर, का बढ़ते नुकसान कारण परिचालन रका था, जिस पर करीब 6,000 करोड रुपये का बकाया था और यह कंपनी बंद हो गई।
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