देहरादून में अब माउण्ट लिटरा जी स्कूल
- स्कूल अच्छे और बुद्धिमान छात्रों की प्रतिभा को तरासने का काम करेगा: निषंक
देहरादून,17 जनवरी। षिक्षा के क्षेत्र में भारत का कोई मुकाबला नहीं है यहां चन्द्रगुप्त तो बहुत है लेकिन चाणक्य की कमी है, यह स्कूल अच्छे और बुद्धिमान छात्रों की प्रतिभा को तरासने का काम करेगा। यह बात षनिवार को पूर्वमुख्यमंत्री व सांसद डा. रमेष पोखरियाल निषंक ने माण्उट लिटरा जी स्कूल की प्रदेश में चैथी शाखा के उद्घाटन के अवसर पर कही। उन्होने कहा यह स्कूल देष के लिए प्रमिभावान छात्र तैयार कर उन्हे भविष्य की चुनौतियों से लड़ने में पारगंत करेगा। यह स्कूल ं अभी नर्सरी से लेकर छठवी कक्षा तक के बच्चों को लेगा लेकिन यह स्कूल 12वीं तक का होगा। स्कूल के प्रबंधक ने बताया कि माउण्ट लिटरा जी स्कूल में बच्चों के संर्वागीर्ण विकास पर ध्यान दिया जाता है। जिसके लिए स्कूल परिसर में फुटबाल मैदान, टेबिल टेनिस कोर्ट, आॅडिटोरियम, संगीत एवं नृत्य की कक्षा एवं जूनियर छात्रों के लिए पुस्तकालय की व्यवस्था की गई है। स्कूल की प्रत्येक कक्षा में आईडब्ल्यूबी बोर्ड हैं एवं सभी कक्षाएं वातानुकूलित है। सुरक्षा के लिहाज से स्कूल परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है। माण्उट लिटरा जी स्कूल के शिक्षक उच्च शिक्षित हैं तथा उन्हें प्रबंधन की ओर से लगभग 60 घण्टे का अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाता है। ताकि बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा दे सके। स्कूल के निदेषक पवन चैधरी ने बताया कि निजी क्षेत्र के 12 स्कूलों की श्रंखला में माउण्ट लिटरा जी स्कूल देश भर में दूसरे नम्बर पर है। इस श्रंखला के देश भर में 78 स्कूल संचालित हैं। तथा 120 नए स्कूल संचालित किए जाने की योजना पर कार्य चल रहा है। माउण्ट लिटरा जी स्कूल सुभाष चन्द्रा के नेतृत्व वाले एस्सल गु्रप जी लिमिटेड का हिस्सा है। जिन्होंने 21वीं सदी के लीडर्स को तैयार करने के जी लर्न लिमिटेड की स्थापना की है। माउण्ट लिटरा जी स्कूल देहरादून के चेयरमैन चैनपाल सिंह ने कहा कि माउण्ट लिटरा जी स्कूल का प्रयास बच्चों का सर्वागीर्ण विकास करना है। ताकि भविष्य के जिम्मेदार नागरिक तैयार हो जो देश और समाज को नई दिशा दे सके। इसके लिए बच्चों को तकनीकी शिक्षा के साथ मूल्यपरक शिक्षा भी दी जायेगी। कार्यक्रम में विषिष्ठ अतिथि के रूप में पूर्व कबीना मंत्री प्रकाष पंत व क्षेत्रीय स्कूल निदेशक, जी लर्न की निधि निझावन के अलावा सागर, देवजीत कौर, धीरेन्द्र मुंजाल, पल्लवी, आर. के सिंह, सी.पी.एस. असवाल, गजेन्द्र चैहान, कैलाश भण्डारी, कमल पंत, नीतू गुलेरिया, कीर्ति बंसल, बिपिन बागड़ी, आशीष तिवारी, शाहना जबीं, अनिता चैहान आदि उपस्थित थे।
बीआरओ ने शुरू किया क्षतिग्रस्त डामर की मरम्मत का काम
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। बीआरओ ने ऋ षिकेश-गंगोत्री राष्ट्र्रीय राजमार्ग पर क्षतिग्रस्त डामर की मरम्मत का काम शुरू कर दिया है। आगराखाल में आस-पास सड़क पर बने गड्ढे हॉटमिक्स से भरे जा रहे हैं। सड़क का डामर उखडने से मार्ग की स्थिति खस्ताहाल बनी हुई थी। राष्ट्र्रीय राजमार्ग पर आगराखाल से नागणी तक बिछाया गया डामर दस माह में ही उखड़ गया था। मार्ग पर जगह-जगह गड्ढे बने होने के कारण यात्रियों को आवागमन में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। मार्ग पर बने गड्ढों से दुर्घटना की आशंका भी बनी हुई थी। इन गड्ढों पर बरसात का पानी जमा होने के कारण दुपहिया वाहनों का मार्ग पर चलना मुश्किल हो जाता था। आगराखाल से नागणी तक सड़क पर जगह-जगह बने गड्ढों की मरम्मत का कार्य शुरू कर दिया है। व्यापार मंडल अध्यक्ष पूरण सिंह रावत का कहना है कि सड़क के मरम्मत का कार्य शुरू होने से वाहन चालकों सहित आम नागरिकों को राहत मिली है।
व्यापारियों ने लगाया जाम, जनता बेहाल
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। चकराता रोड़ में एक व्यापारी वर्ग ने सरकार और प्राधिकरण की नीति का विरोध किया और जाम लगाया। जाम हटाने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स वहां पंहुची लेकिन व्यापारियों ने पुलिस की एक नहीं सुनी। वहीं पुलिस भी प्रदर्शनकारी व्यापारियों द्वारा जाम लगाए जा रहे जाम को खुलवाने में विफल साबित हुई। पुलिस की सुस्ती और व्यापारियों के प्रदर्शन के बीच आम जनता को फजीहत झेलनी पड़ी।
बताते चले कि चकराता रोड़ के कुछ व्यापारी गण सरकार के रि-डवलपमेंट प्लान का विरोध कर रहे हैं। रेजीडेंट वेलफेयर सोसायटी से जुड़े कई व्यापारियों ने आज चकराता रोड़ पर जाम लगाया। जिससे कुछ घंटो तक यहां यातायात रूक गया। यहां से गुजरने वाले वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। इस प्लान के तहत हाल में चकराता रोड़ में भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू की जा रही है। जिसके लिए बकायदा आदेश भी जारी हो चुका है। लेकिन इससे पहले ही रेजीडेंट वेलफेयर सोसायटी से जुड़े व्यापारियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। पहले भी कुछ व्यापारी गण इसका विरोध करते रहे हैं। आज सुबह ही व्यापारियों ने यहां जाम लगा दिया। जाम को खुलवाने के लिए सिटी मजिस्ट्रेट, पुलिस अधिकारी सहित फोर्स यहां पंहुची और व्यापारियों से जाम खुलवाने के लिए कहा। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की एक नहीं सुनी। जिससे काफी देर तक यहां जाम की स्थिति बनी रही।
अधर में लटकी है सीएम की घोषणाएं
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। उत्तराखंड राज्य में सरकारी योजनाओं की घोषणाएं करने में भले ही सियासदां जल्दबाजी में रहते हैं। लेकिन इनको अमली जामा पहनाने के लिए अफसरों को कोई जल्दी नहीं है। यही कारण है कि वर्तमान सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी योजनाओं पर काम करने की रफ्तार बहुत धीमी है। हजारों की संख्या में घोषणांए तो हुई लेकिन समय पर पूरा करने के लिए अधिकारियों की सुस्ती को तोडने में रावत सरकार भी विफल साबित हो रही है। सरकार की नरमी और अधिकारियों की हठधर्मिता के चलते घोषणाओं के जरिए सपने संजोने वाली जनता के पास मन मसोजने के अलावा कोई उपाय नहीं है। वर्तमान सरकार में रोजगार, निर्माण सहित तमाम घोषणाएं की गई। बहुगुणा सरकार में करीब १४०० घोषणांए हुई लेकिन कुछ ही घोषणाओं पर कार्य शुरू हो पाया है। वहीं नेतृत्व परिवर्तन के बाद रावत सरकार ने भी घोषणांओ की झड़ी लगा दी। फरवरी २०१४ से मार्च २०१४ तक करीब ३१३ घोषणाएं मुख्यमंत्री हरीश रावत ने की। इसके अलावा सीएम रावत ने भी कई घोषणांए की। लेकिन हैरत की बात है कि अपनी घोषणाओं को धरातल पर उतारने के लिए मशीनरी की सुस्ती को मुख्यमंत्री भी नहीं तोड़ पाए। लोकसभा चुनाव के दौरान भी सीएम हरीश रावत ने तमाम घोषणाएं की। शिक्षा विभाग में प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार देने की कई घोषणाएं की और कई जगहों पर सीएम की घोषणाओं से संबधित बैनर, होर्डिंग भी लगाए गए। लेकिन आज तक इनमें से अधिकांश घोषणांए कागजों से बाहर नहीं निकल पाई है। वहीं नौकरशाही की सुस्ती को तोडने में फिसड्ड हो रही रावत सरकार के खिलाफ अब भाजपा भी मोर्चा खोलने की तैयारी कर रही है। कई घोषणाएं वित्त में पेंडिग रहने के कारण अटकी हुई है। अधिकारियों की हठधर्मिता के खिलाफ कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, गृह मंत्री प्रीतम सिंह, विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल भी अपनी पीड़ बंया कर चुके हैं। लेकिन उसके बावजूद भी रावत सरकार सुस्त मशीनरी को सुधारने का अलग अंदाज अपना रही है। सरकार के यह अंदाज अधिकारियों को तो खूब भा रहा है। लेकिन जनता के हक में की गई घोषणाओं के प्रति मशीनरी को जवाबदेही बनाने के लिए कारगार साबित नहीं हो रहा है। राज्य में इस समय नौकरशाही की कार्यप्रणाली को लेकर हल्ला मचा हुआ है। सरकार के पास अगले विधानसभा चुनाव के लिए समय कम है। फिर भी बड़ी संख्या में की गई घोषणाओं को पूरा करने के लिए तेजी नहीं दिखाई जा रही है।
बाघ का निवाला बने मासूम का शव बरामद
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। बाघ का निवाला बने बच्च्ेा का शव शनिवार सुबह वन विभाग के कर्मियों ने बरामद कर लिया हैै। बीते शाम करीब पौने छह बजे फुलसनी क्षेत्र के बाजेवाला गांव में झुग्गी में रहने वाले मजदूर के दस वर्षीय बच्चे को बाघ उठाकर ले गया था। जिसके बाद क्षेत्र के लोगों हडकंप मच गया। स्थानीय लोगों ने बच्चें की देर रात तलाश की मगर उसका कही पता नही लग सका। वहीं वन विभाग की टीम ने क्षेत्र के ही जंगल से बच्चे का छत-विक्षत शव बरामद कर लिया है। वहीं षनिवार सुबह भी स्थानीय लोगों द्वारा बाघ को देखा गया है। कैंट थाना क्षेत्र केे अंतर्गत फूलसैनी क्षेत्र के बाजेवाला गांव में दस वर्षीय बच्चे कृष्णा को बाघ द्वारा मारे जाने से दहशत का माहौल बना हुआ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र में काफी समय से बाघ की मौजूदगी की सूचना वन विभाग के कर्मियों को दी गई थी। जिसके बाद भी वन विभाग के आला अधिकारियों ने इस ओर ध्यान नही दिया। ेगुस्से से बौखलाई महिलाए बीती रात जंगलों में बच्चें को ढूढने निकल गई। वहीं कुछ महिलाओं का कहना था कि यदि वन विभाग बाघ को पकडने में असमर्थ है तो हम बाघ की तलाश में स्वयं निकलते हैं। क्षेत्र में बाघ का आतंक कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी क्षेत्र में बाघ द्वारा कहर बरपाया गया है। अलबत्ता अब आलम ये है कि क्षेत्र में बाघ की उपस्थिति के बावजूद भी वन विभाग के अधिकारी क्षेत्रवासियों की सुरक्षा की सुद नहीं लें रहे हैं। कुछ दिन पहले एफआरआई में रहने वाले लोगों पर भी बाघ ने हमला किया था। बात दे कि इस क्षेत्र में वनों की संख्या अधिक है जिस वजह से कई बार बाघ या भयानक जानवर आबादी बस्तियों में प्रवेश कर जाते हैं। जिसकी जिम्मदारी वन विभाग की बनती है। वहीं वन विभाग की लपरवाही को लेकर स्थानीय लोगों पुरजोर विरोध किया गया। लोगो का कहना है कि वन विभाग की लापरवाही की चलते ही मासूम की जान गई है। विभाग समय रहते सचेत हो जाता है तो मासूम को अपनी जान नहीं गवानी पड़ती। लेकिन वन विभाग इस ओर किसी भी तरह से अभी तक सचेत नहीं दिख रहा है। यदि वन विभाग इसी तरह से लापरवाही करता रहेगा तो बाघ का आतंक क्षेत्र में बढ़ता चला जायेगा और न जाने कितने मासूम लोगों को अपनी जान गवानी पड़ेगी। वहीं शासन के तरफ से भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। विश्व प्रसिद्ध एफआरआई भी बाघ आतंकी क्षेत्र में पड़ता है। वहीं शासन ने बाघ के हमले में मारे गये मासूम के परिवार वालों का न ही हाल पूछा और न ही किसी तरह के मआवजे की घोषणा की है।
पुर्ननिर्माण के लिये मांग 20 करोड़, प्रस्ताव बने 27 करोड़
- वर्श 2014 के आपदा के पुर्ननिर्माण में मात्र 1.50 करोड़ रूपये मिले
- भाजपा ने राज्यपाल को भेजा पत्र
देहरादूऩ, 17 जनवरी(निस)। उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री के पुर्ननिर्माण के लिये किये जा रहे प्रतिबद्धता की पोल खुल गयी है। मुख्यमन्त्री के विधान सभा के जिले में इस वर्श की आपदा से क्षतिग्रस्त पैदल मार्ग व सड़क, पेयजल सहित आवष्यक जन सुविधाओं की बहाली के लिये अभी तक मात्र 1.50 करोड़ रूपये ही मिले है। जिले के आपदा विभाग ने 20 करोड़ रूपये की मांग राज्य सरकार से की है। जबकि 27 करोड़ रूपये के पुर्ननिर्माण के प्रस्ताव जिला कार्यालय में जमा हो चुके है। वित्तीय वर्श की समाप्ति में ढाई माह का समय षेश बचा है। भाजपा ने राज्यपाल को डीएम के माध्यम से पत्र भेजकर आपदा से क्षतिग्रस्त योजनाओं के निर्माण के लिये बजट जारी करने की मांग की। भाजपा जिला प्रवक्ता जगत मर्तोलिया के अगवाई में षनिवार को डीएम के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन भेजा गया। भाजपा ने राज भवन में दस्तक देकर राज्य सरकार पर प्रभावी दबाव बनाने की मांग भी की है। भाजपा नेता जगत मर्तोलिया ने बताया कि उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री हरीष रावत आपदा के बाद क्षतिग्रस्त योजनाओं के पुर्ननिर्माण के लिये नित नये दावे कर रहे है। जबकि हकीकत कुछ और है। उन्होंने कहा कि वर्श 2013 की आपदा से क्षतिग्रस्त 60 प्रतिषत योजनाओं का निर्माण पहले से ही अधर में लटका था। वर्श 2014 में भी योजनाऐं आपदा से क्षतिग्रस्त हुई है। राज्य सरकार ने मई के महिनें में 1.50 करोड़ रूपये की टोकन मनी क्षतिग्रस्त योजनाओं के निर्माण के लिये भेजी थी। साढे़ सात माह के बाद भी राज्य सरकार ने आपदा से क्षतिग्रस्त योजनाओं के पुर्ननिर्माण के लिये एक रूपया भी नहीं भेजा है। आपदा से क्षतिग्रस्त पैदल व मोटर मार्ग, पेयजल योजना, स्कूल आदि योजनाओं के पुर्ननिर्माण के मामले अधर में लटके है। आपदाग्रस्त क्षेत्रों में इस कारण आम जन जीवन पटरी में नहीं आ पाया है। स्वयं मुख्यमन्त्री आपदाग्रस्त धारचूला और मुनस्यारी तहसील का प्रतिनिधित्व करते है। उन्होंने कहा कि मुख्यमन्त्री को आपदाग्रस्त क्षेत्र की कोई चिन्ता नहीं है। मर्तोलिया ने बताया कि राज्यपाल जी से यह अनुरोध किया गया है वे राज भवन की ओर से सरकार पर दबाव बनाकर आपदा से क्षतिग्रस्त योजनाओं के निर्माण के लिये तत्काल 30 करोड़ रूपये की राषि जारी करने के लिये कहें।
पर्वतीय वानिकी रूपांतरण को लेकर पांच दिवसीय संगोष्ठी आज से
- -हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्रों में पर्वतीय वानिकी पर केन्द्रित किया जाएगा ध्यान
देहरादूऩ, 17 जनवरी(निस)। एकीकृत पर्वतीय विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र (आईसीआईएमओडी) नेपाल तथा वन अनुसंधान संस्थान देहरादून हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्र में लोगों के कल्याण, वन एवं पर्यावरण के लिए पर्वतीय वानिकी को रूपान्तरित करने की दिशा में एक संगोष्ठी का आयोजन करेंगे। यह संगोष्ठी वन अनुसंधान संस्थान में रविवार को शुरु होगी, जो कि 22 जनवरी तक चलेगी। यह संगोष्ठी ऐसी पहली संगोष्ठी है, जिसमें विशेषकर हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्रों में पर्वतीय वानिकी पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। इस संगोष्ठी में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली का देहरादून में स्थित वन अनुसंधान संस्थान, जर्मन एजेंसी फाॅर इन्टरनेशनल काॅआपरेशन (जी आई जेड), डीएफआईडी- यू के एड और आॅस्ट्रियन डेवलपमेन्ट एजेन्सी सहयोग कर रहे हैं। वन अनुसंधान संस्थान में आयोजित पत्रकार वार्ता में संस्थान के निदेशक डा. पीपी भोजवैद ने कहा कि हिन्दू कुश हिमालय के करीब 25 प्रतिशत भाग में वनावरण है और यह अहम पारितंत्र सेवाएं उपलब्ध कराता है। ये प्रकाष्ठ और गैरप्रकाष्ठ संसाधन उपलब्ध कराते हैं, जो स्थानीय आजीविकाओं को बनाए रखने में सहायता करते हैं, खाद्य, जल और ऊर्जा को सुनिश्चित करते हैं और कार्बन पृथक्करण के द्वारा पर्यावरण को सुरक्षित करते हैं। बाली में 2007 यू एन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और 2008 विश्व वानिकी कांग्रेस ने विशेषकर हिन्दू कुश हिमालयन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं न्यूनीकरण में सहायता करने में वनों की भूमिका के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित किया, तथापि अनेकों वन पारितंत्रों का स्वास्थ्य और ओज जलवायु परिवर्तन और त्वरित सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों के फलस्वरूप धीरे-धीरे अपरदित हो रहा है। इस संदर्भ में, हिन्दू कुश हिमालयों में हितधारकों के लिए यह अनिवार्य है कि वे वन प्रबंधन को शामिल करते हुए ऐसी पोषणीयता को प्रोत्साहित करें जो पद्धति, नीति और विज्ञान को एक साथ ला सकें। इसके अलावा, वानिकी प्रबंधन यथा, वन उत्पादों का अवैध व्यापार, गलियारा संयोजकता, मानव वन्यजीव संघर्ष, जल प्रबंधन और मूल्य श्रृंखला पोषणीयता से संबंधित मुद्दे राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं हैं और पृथक-पृथक प्रयासों के जरिए इनका समाधान नहीं किया जा सकता। यह महत्वपूर्ण है कि मजबूत परासीमा सहयोग पर आधारित समाधानों को खोजा जाए। यह पर्वतीय वानिकी संगोष्ठी उन पोषणीय वन प्रबंधन पद्धतियों एवं नीतियों की पहचान करने के लिए 200 से अधिक क्षेत्रीय और विश्व विशेषज्ञों के लिए एक मंच उपलब्ध कराएगी, जो हिन्दू कुश हिमालयों में परिवर्तनशील अवस्थाओं का समाधान कर सके और ऐसा रास्ता सुझाएंगे जो विकास सहित संरक्षण का समाधान कर सके। हिन्दू कुश हिमालयों के सभी आठ देश साथ ही साथ मुख्य विश्व पर्वतीय वानिकी केन्द्र इस संगोष्ठी में भाग लेंगे। सहभागियों में नीति निर्माता, वैज्ञानिक, व्यावसायिक, दाता, सिविल सेवक, मीडिया, मार्केट एक्टर और वैधानिक विशेषज्ञ शामिल हैं। सहभागियों में भारत के सभी पर्वतीय राज्यों से उच्च स्तरीय प्रतिनिधि, साथ ही साथ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और भारत सरकार के अन्य मुख्य मंत्रालयों से भी प्रतिनिधि शामिल हैं। पांच दिवसीय संगोष्ठी के अनेकों विशिष्ट उद्देश्य हैं। इसमें हिन्दू कुश हिमालयों में पर्वतीय वन पारितंत्रों के प्रबंधन और वन पारितंत्र गतिकी की एक आम समझ स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा ताकि एक परासीमा पैमाने पर शोध और विकास का एजेन्डा निर्धारित किया जा सके। क्षेत्र में विभिन्न देशों के सहभागी वन पारितंत्र अनुकूलन में अच्छी पद्धतियों को आपस में साझा करेंगे और प्रोत्साहन-आधारित क्रियाविधियों (पारितंत्र सेवाओं के लिए आर ई डी डी$, भुगतान) को मुख्य धारा में लाने का रास्ता तलाशेंगे। वे नीति कमियों की पहचान और एक परा सीमा पैमाने पर अनुकूलन को शामिल करके अच्छे वन अभिशासन को सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकता कार्रवाइयों का प्रस्ताव भी करेंगे ताकि जलवायु परिवर्तन और भूमण्डलीकरण प्रक्रियाओं का समाधान किया जा सके। इस संगोष्ठी का दूसरा मुख्य उद्देश्य सहभागी शोध, विकास और नीति समर्थन के लिए विश्व, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय सहभागिता एवं नेटवर्कों को प्रोत्साहित करना है। कार्यशाला में हरित पातन पर रोक, मानव-वन्यजीव संघर्ष, सूदूर संवेदी विज्ञान और वन अभियांत्रिकी की भूमिका जैसे अनेकों मुद्दों पर मुख्य सत्र, समानांतर प्रस्तुतिकरण एवं पैनल विचार-विमर्श और परिणामोन्मुखी गहन विचार-विमर्श सत्र शामिल होंगे। इस आयोजन के सत्र में से एक मुख्य सत्र ‘‘नीतिनिर्माता एवं मंत्री सत्र’’ होगा, जिसमें सार्क से वन मंत्री और भारतीय पर्वतीय राज्यों के सांसद एवं वन मंत्री एक साथ होंगे। इसमें मोटे तौर पर पांच विषय कवर किए जाएंगे, जैसे संस्थाए और अभिशासन; वन गतिकी और प्रबंध; प्रोत्साहन आधारित क्रियाविधि; क्षेत्रीय बाजार के लिए सुअवसर और जानकारी साझा करना और क्षेत्रीय सहयोग। कार्यशाला से पहले कुछ सहभागी मसूरी पहाडि़यों के समीप जलसंभर प्रबंध एवं जैवविविधता संरक्षण क्षेत्र, बांज वन जलसंभर और वन पंचायत (स्थानीय वन परिषदों) में दिनभर क्षेत्र भ्रमण करेंगे। आयोजन का मुख्य आकर्षण एक क्राफ्ट मेला और पोस्टरों के प्रदर्शन का भी होगा, जिसमें हिन्दू कुश हिमालय क्षेत्र में वन पारितंत्रों की स्थिति और वनों द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे सुअवसरों को दर्शाया जाएगा।
भारत नेपाल शांति मैत्री सन्धि 1950 विषय पर सेमीनार का आयोजन
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। भारतीय गोर्खा परिसंघ उत्तराखंड राज्य शाखा भारत नेपाल शांति मैत्री संधि 1950 विषय पर मानेकशां भवन गोर्खाली सुधार सभा में सेमीनार का आयोजन किया गया जिसमें वक्ताओं ने इस विषय पर मंथन कर दस्तावेज तैयार किये। यहां मानेकशां भवन गोर्खाली सुधार सभा में राज्य शाखा अध्यक्ष सेनि कर्नल डी एस खडका ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी के प्रथम नेपाल भ्रमण के दौरान इस संधि के विषय में दोनों देश के प्रधानमंत्रियों के बीच चर्चा हुई और संभावित संशोधन के प्रति इच्छा जाहिर हुई है, चूंकि इस संधि के एक आर्टिकल सात के कारण भारतीय गोर्खाओं के चिन्हारी के ऊपर एक खास असर पड रहा है। उनका कहना है कि इसलिए इस खामी को किस प्रकार सुधार किया जाये, जिससे भारतीय गोर्खाओं की चिन्हारी को सुरक्षित किया जा सके, इसका चिंतन मनन करना हमारे लिए आवश्यक समझा गया, इसी उददेश्य से इस संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है और इसी विषय के ऊपर एक संगोष्ठी कालीग्पोग में गत वर्ष नवम्बर माह में आयोजित किया गया। संधि के संशोधन एवं पुनर्विचार के वक्त भारतीय गोर्खाओं के विचार और प्रस्ताव को भी ध्यान में रखा जा सके। उनका कहना है कि केन्द्र की सरकार को इस दिशा में शीघ्र ही ठोस कार्यवाही करने की आवश्यकता है जिससे गोर्खा समाज को आजादी मिल सके और केन्द्र सरकार इस दिशा में एक बिल तैयार कर गोर्खा समाज को लाभ दें। इस संगोष्ठी में प्रमुख प्रवक्ता महेन्द्र पी लामा पूर्व उप कुलपति सिक्किम यूनिवर्सिटी, जोएल राई, ब्रिगेडियर सी एस थापा सहित अन्य वक्ताओं ने संबोधित करते हुए दस्तावेज तैयार करने व केन्द्र सरकार को सौंपने की बात कही, जिससे की गोर्खा समाज को लाभ मिल सके। इस अवसर पर राज्य शाखा अध्यक्ष सेनि कर्नल डी एस खडका ने कहा कि राज्य शाखा इस दिशा में प्रयासरत है और सभी को एक मंच पर लाने का प्रयास किया गया है और उम्मीद है कि इस प्रयास से गोर्खा समाज को मजबूती मिलेगी। इस दौरान महासचिव सूरज राई, शिव लाल आले, उपासना थापना, वी के बंसल, कर्नल वी के शर्मा, के के राई, कैप्टन नील कुमार थापा, उमा उपाध्याय, कुमारी पूजा सुब्बा आदि मौजूद थे।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने हरीश सरकार को कटघरे में किया खड़ा
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत ने प्रदेश की हरीश सरकार को कटघरे में खडा करते हुए कहा कि सरकार के मुखिया लगातार भाजपा विधायकों की अनदेखी कर रहे है और जिसे अब सहन नहीं किया जायेगा। उनका कहना है कि कांग्रेस में अंर्तकलह से विकास कार्य नहीं हो पा रहे है और प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। यहां भाजपा मुख्यालय पर पत्रकारों से रूबरू होते हुए तीरथ सिंह रावत ने कहा कि लगातार मुख्यमंत्री प्रदेश का भ्रमण कर वहां पर शिलान्यास व लोकार्पण कर रहे है लेकिन आज तक धरातल पर किसी भी प्रकार का कोई विकास कार्य नहीं हो पा रहे है और जनता के लुभावने वायदे किये जा रहे है, लेकिन विकास कार्यों को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है। केवल जनता के साथ झूठे वायदे किये जा रहे है। उनका कहना है कि सरकार व मंत्री अधिकारियों से काम लेना नहीं जानते है और लगातार एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते हुए आ रहे है कि नौकरशाह नकारा हो गये है और कोई कुछ आदेश करता है तो दूसरी ओर मंत्री के आदेशों को अधिकारी बदल रहे है। उन्होंने कहा कि राज्य की कानून व्यवस्था, कर्मचारियों में पनप रहे असंतोष तथा ठप पड़े विकास और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा ने अभी सचिवालय का घेराव किया गया लेकिन इसके बाद भी किसी भी प्रकार की कोई विकास कार्यों में तत्परता नहीं दिखाई दी और शीघ्र ही एक बार फिर से सरकार को जगाने के लिए सचिवालय का घेराव किया जायेगा और जनता के बीच सरकार का असली चेहरा ले जाया जायेगा। उन्होंने कहा कि सूबे की वर्तमान सरकार अपनी सुरक्षा में ही जुटी हुई है। मंत्रियों के बीच आपसी खींचतान जारी है। सरकार को अपने अस्तित्व में बने रहने की चिंता से ही फुर्सत नहीं है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा का सदस्यता अभियान पूरी सफलता से जारी है। उन्होंने कहा कि अब तक लक्ष्य से अधिक लोग भाजपा की सदस्यता ले चुके हैं। उन्होंने कहा कि आगामी तीन दिनों में भाजपा अपने सदस्यता अभियान केा और भी प्रभावी ढंग से चलायेगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हरीश रावत को अपने सहयोगियों से इतनी चुनौतियां मिल रही है कि वह अपनी अंदरूनी गुटबाजी की राजनीति में ही उलझ कर रह गये हैं। राज्य में शीतकालीन चारधाम यात्रा की उपलब्धि यों को शून्य बताते हुए उन्होंने कहा कि जब यात्री और पर्यटक ही नहीं आ रहे हैं तो यात्रा क्या सफल होगी यह भी धरातल पर नहीं है और सरकार प्रचार प्रसार में लगी हुई है । प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री हरीश रावत पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधानसभा सत्र समाप्त होने के बाद सभी भाजपा विधायकों के क्षेत्रों में होने वाले कामकाज की समीक्षा करने की बात कही थी लेकिन अब वह भूल गये हैं कि उन्होंने क्या वायदा किया था। १५ दिन में समीक्षा करने की बात की गयी थी लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी उन्होंने समीक्षा का काम शुरू नहीं किया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि सरकार अपने कामकाज का ढोल पीट रही है लेकिन धरातल पर विकास कार्य ठप पड़े हैं। सरकार द्वारा चलाई जाने वाली विकास योजनाओं को जनता के बीच नहीं ले जाया जा रहा है और कांग्रेस में आपस में ही गुटबाजी हावी हो रही है और एक दूसरे पर लगातार आरोप लगाये जा रहे है और मुख्यमंत्री उन्हें मनाने में ही समय व्यतीत कर रहे है। सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जनांदोलन किया जायेगा और रणनीति तैयार की जायेगी।
बिना चिकित्सकों के कैसे होगा ट्रॉमा सेंटर का संचालन
देहरादून, 17 जनवरी(निस)। डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे श्रीनगर के बेस अस्पताल में सरकार ने ट्रॉमा सेंटर का उद्घघाटन तो कर दिया, लेकिन बिना डॉक्टरों के ट्रॉमा सेंटर का संचालन कैसे और कब तक होगा, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। ट्रॉमा सेंटर में न्यूरो सर्जरी विभाग के साथ ही अन्य विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता चैबीसों घंटे जरूरी होती है। लेकिन, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में न्यूरो सर्जन भी तैनात नहीं हैं। मानकों के अनुसार एक ट्रॉमा सेंटर में न्यूरो, इमरजेंसी मेडिसन सर्जरी और आर्थोपेडिक मुख्य विभाग होते हैं। इसके अलावा पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और रेडियोडाइग्नोसिस सहायक विभाग होते हैं। श्रीनगर का बेस अस्पताल इन सभी विभागों में डॉक्टरों की कमी से पहले से ही जूझ रहा है। सड़क दुर्घटना, प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही अन्य दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायलों को तत्काल उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने को लेकर ट्रॉमा सेंटर की स्थापना की जाती है। इसमें न्यूरो सर्जन के साथ ही स्पाइनल सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट और आर्थोपेडिक, जनरल सर्जन, ईएनटी सर्जन सहित विशेष प्रशिक्षित नर्सिग और सपोर्टिग पैरास्टाफ की चैबीसों घंटे तैनाती होनी भी जरूरी है। बेस अस्पताल पहले से ही डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहा है। ऐसे में विशेषज्ञ डॉक्टरों की बात तो दूर की कौड़ी है। श्रीनगर बेस अस्पताल की ओर से ट्रॉमा सेंटर में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति को लेकर मार्च 2014 में शासन को प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन, दस महीने बाद भी ट्रॉमा सेंटर के लिए डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हुई।