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मांझी की सरकार को नहीं गिरने देंगे : गिरिराज

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केन्द्रीय लघु सूक्ष्म और मध्यम उद्योग मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि बिहार में जीतन राम मांझी की सरकार को गिरने नही देंगे क्योंकि भारतीय जनता पार्टी .भाजपा. सरकार बनाने में भरोसा करती है गिराने में नही। श्री सिंह आज यहां कहा कि 2005 में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड की सरकार बनी थी। इस सरकार पर राज्य के लोगों ने भरोसा किया जिसके कारण 2010 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सबसे अधिक बहुमत वाली सरकार बिहार में बनी थी लेकिन नीतीश कुमार ने वादा खिलाफी की। उन्होंने कहा कि 16 जून 2013 को भाजपा से जदयू जब अलग हुई तब भी हमनें कहा था हम सरकार गिराने का काम नही करेंगे। 

श्री सिंह ने कहा कि अक्सर पूछा जाता है कि जीतन राम मांझी की सरकार को र्समथन देंगे तो मेरा कहना है कि भाजपा को सरकार बनाने में भरोसा है गिराने में नही। उन्होंने  कहा कि श्री मांझी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का मौलिक अधिकार है। श्री मांझी को कोई नहीं रोक सकता है। भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी बिहार में 75 लाख जिसमें नवादा में डेढ़ लाख सदस्य बनाए जाने का लक्ष्य है। उन्होंने सदस्यता अिभयान के रथ को रवाना किया। विनय कुमार की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में पूर्व मंत्री डा. प्रेम कुमार. विधायक अनिल सिंह. कन्हैया कुमार और भाजयुमो के जिलाध्यक्ष बबलू कुमार आदि मौजूद थे।

राष्ट्रपति ने अध्यादेशों की जल्दबाजी पर सरकार को चेताया

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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक के बाद एक अध्यादेश लाने को लेकर सरकार की जल्दबाज़ी पर सवाल उठाए हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि सत्ताधारी और विपक्षी दोनों ही दलों को इसके लिए व्यावहारिक समाधान ढूंढऩा होगा। एक कार्यक्रम के दौरान अपने भाषण में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ऐसी क्या ज़रूरत है कि सरकार लगातार अध्यादेश जारी करती जा रही है। हालांकि इसके साथ ही राष्ट्रपति ने विपक्ष को भी नसीहत दी है कि वह बार-बार सदन की कार्यवाही ठप्प न करे, कानून बनाना उसका काम है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने ये बातें कही।


राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि संविधान कार्यपालिका को असाधारण स्थिति में अध्यादेश लाने के सीमित अधिकार देता है। सामान्य और आम कानूनों के लिए इसका इस्तेमाल उचित नहीं है। संसदीय लोकतंत्र का मूल सिद्धांत यह है कि बहुमत के पास शासन का जनादेश होता है, जबकि विपक्ष के पास विरोध का इजहार करने और अगर संख्या हो तो सरकार गिराने का।

क़ानून बनाने में सबसे आसान होता है विधेयक पारित करना। मुश्किल होता है इसके लिए विपक्ष सहित सभी दलों की सहमति बनाना। एक विधायिका तभी असरदार हो पाती है जब इससे जुड़े सभी लोगों के मतभेद दूर कर सहमति बन जाती है।

स्थानीय नीति बनाये बगैर नियुक्ति का झामुमो करेगा विरोध : शिबू

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झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद शिबू सोरेन ने कहा है कि स्थानीय नीति तय किये जाने के बाद ही रिक्त पदों पर  बहाली की जाये। श्री सोरेन ने आज दुमका में संवाददताों से बातचीत में कहा कि यदि स्थानीय नीति तय किये बगैर बहाली की गयी तो इसकी जांच की जानी चाहिये 1 उन्होने कहा कि इसके बावजूद सरकार नयी नियुक्ति करती है तो झामुमो इसका विरोध करेगी। उन्होंने रघुवर दास सरकार द्वारा मंत्रिमंडल का विस्तार करने में देरी के सवाल पर कहा कि सरकार को मंत्रिमंडल का शीघ्र विस्तार करना चाहिये 

श्री सोरेन ने विरोधी दल के नेता हेमंत सोरेन द्वारा मंत्रिमंडल के विस्तार में देरी को लेकर राज्यपाल को दिये गये पत्र को जायज ठहराया है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण के सवाल पर कहा कि विभिन्न राज्यों मे अपनी सुविधा के अनुसार पूर्व से कानून बना हुआ है और झारखंड आदिवासी राज्य है और यहां भूमि संबंधी कानून पहले से बने हुये है फिर भी केन्द्र सरकार द्वारा इस तरह के कानून को बनाना उचित नहीं है।

हमने देश की राजनीति का पहला सबक सीखा लिया है : केजरीवाल

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arvind kejriwal
आम आदमी पार्टी  के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने आज एक बार फिर स्वीकार किया कि दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडकर उन्होंने गलती की थी लेकिन अब वह सबक सीख चुके हैं। श्री केजरीवाल ने मुस्तफाबाद में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें सरकार छोडने से पहले जनता से पूछना चाहिए था। गलती हुई है. गुनाह नहीं। पर हमने भारत की राजनीति का पहला सबक सीख लिया है। कुछ भी हो जाए इस्तीफा मत दो। जनता नाराज हो जाती है। इस बार ऐसा नहीं होगा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दस जनवरी की रैली में दिए गए भाषण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा ..प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं नक्सली हूं। मैं आपसे पूछता हूं कि क्या यह सही है। वह कहते हैं कि मुझे जंगल में भेज देना चाहिए। क्या मुझे जंगल में भेजा जाना चाहिए। हमें एकदूसरे पर गाली गलौज नहीं करनी चाहिए। हमें मुद्दों की राजनीति करनी चाहिए। उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार को आडे हाथों लेते हुए कहा ..अगर मैं दो दिन में बिजली के बिल कम कर सकता हूं तो भाजपा सात महीने में ऐसा नहीं कर सकती है।.. दिल्ली में सात फरवरी को विधानसभा चुनाव हैं जबकि परिणाम दस फरवरी को घोषित होंगे।

किरण बेदी होंगी मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार

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भाजपा संसदीय बोर्ड ने हाल में भाजपा में शामिल हुईं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को सात फरवरी को होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में संसदीय बोर्ड की बैठक में लिए गए फैसले की घोषणा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने की।

शाह ने कहा कि विधानसभा चुनाव प्रचार की कमान किरण बेदी संभालेंगी और पार्टी को पूरी उम्मीद है कि उनकी अगुवाई में भाजपा पूर्ण बहुमत हासिल करेगी। शाह ने कहा कि बेदी कृष्णानगर सीट से चुनाव लडेंगी। भाजपा अध्यक्ष ने इन खबरों को पूरी तरह से गलत बताया कि किरण बेदी को पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर किसी तरह का मतभेद है। उन्होंने कहा कि पार्टी का हर नेता, हर कार्यकर्ता संसदीय बोर्ड के फैसले से खुश और राजी है। 
    
किरण बेदी को बाहरी व्यक्ति बताए जाने पर शाह ने कहा कि पार्टी में हर सदस्य किसी समय बाहरी होता है। इसलिए किरण बेदी बाहरी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आईपीएस अधिकारी के रूप में वह अपनी प्रशासनिक काबिलियत सारी दुनिया को दिखा चुकी हैं और वह भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम भी चला चुकी हैं और पार्टी को उनकी नेतृत्व क्षमता में पूरा विश्वास है, इसलिए उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है।

 

आईएस कर सकता है भारत पर हमला : ब्रिटेन

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सीरिया और इराक में आतंक का पर्याय बन चुका इस्लामिक स्टेट (आईएस) अब भारत पर आतंकी हमला कर सकता है। ब्रिटेन ने इस अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन के संभावित खतरे के प्रति केंद्र सरकार को आगाह किया है। पिछले सप्ताह लंदन में दोनों देशों के बीच आतंकवाद के मसले पर एक संयुक्त बैठक के दौरान ब्रिटेन ने भारतीय अधिकारियों को आईएस के आतंकी हमले की आशंका के बारे में जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि आईएस भारत पर हमले की फिराक में है और सरकार को इसके प्रति आगाह किया था।



बैठक में शामिल हुए भारतीय अधिकारियों ने बताया कि भारत ने ब्रिटेन से पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संभावित हमले के प्रति अलर्ट करने का आग्रह किया है। इसी के तहत ब्रिटिश अधिकारियों ने बताया कि आईएस भारत में आतंकी हमले को अंजाम दे सकता है। यह आतंकी संगठन भारत में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है।



बताते चलें कि पिछले साल मई में मुंबई के चार युवक आईएस में शामिल होने के लिए इराक गए थे। नवंबर में आतंकी प्रशिक्षण लेकर भारत लौटे युवक को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मुंबई एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया था। पिछले महीने दिसंबर में बेंगलुरु में एक युवक को आईएस का ट्विटर हैंडल संचालित करने पर गिरफ्तार किया गया था। अमेरिका से लौटे एक संदिग्ध इंजीनियर को दो दिन पहले हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था।

पाकिस्तान सरकार लखवी भारत को सौंपें : अमेरिका-ब्रिटेन

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अमेरिका और ब्रिटेन ने पाकिस्तान सरकार से कहा कि वह मुंबई हमलों का सरगना जकीउर रहमान लखवी भारत को सौंप दे। ऐसा नहीं करने पर वह लखवी को इन दोनों देशों में से किसी एक को भी सौंप सकते हैं। इन देशों का कहना है कि इससे भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंध बेहतर हो सकेंगे।

इस्लामाबाद हाईकोर्ट में सोमवार को 54 वर्षीय लखवी की जमानत मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन ने बताया कि दोनों देशों ने लखवी भारत को सौंपने की मांग की है। पाकिस्तान गृह मंत्रालय के सूत्र के अनुसार, अमेरिका और ब्रिटेन ने पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर करने के लिए नवाज सरकार से इस संबंध में बात की है। कहा गया है या तो लखवी भारत को सौंप दें या उसकी स्वतंत्र सुनवाई के लिए उसे दोनों देशों में से किसी को सौंप दिया जाए।

इस दौरान न्यायाधीश ने कहा कि लखवी को किसी देश को सौंपना एक कूटनीतिक मुद्दा है, जो सरकार से संबद्ध है। अदालत का इससे कोई लेना-देना नहीं है। इस दौरान  सामने आया कि पाकिस्तान ने लोक सुरक्षा कानून के तहत लखवी की हिरासत अवधि बढ़ा दी है। अब  लखवी एक और महीने जेल में रहेगा।

 

केजरीवाल ने किरण बेदी को बहस की चुनती दी

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दिल्ली में भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनाए जाने के एक दिन बाद ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने आज किरण बेदी को सार्वजनिक बहस की चुनौती दी । बेदी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि वह उनके साथ ‘सदन के भीतर’ बहस करेंगी। आप नेता ने कहा, ‘ लोकतंत्र के लिए यह अच्छी पहल होगी यदि हमारे बीच विभिन्न मुद्दों पर बहस हो । लोग धर्म और जाति के नाम पर वोट देते हैं....वे मुद्दों के बारे में जागरूक नहीं हैं । करीब एक दो घंटे की बहस ठोस मुद्दों पर होनी चाहिए।’ केजरीवाल की चुनौती का जवाब देते हुए बेदी ने कहा कि आप प्रमुख ‘केवल बहस’ में यकीन रखते हैं जबकि उनका ध्यान सेवा करने पर है और वह ‘सदन के भीतर’ बहस करेंगी।

पूर्व आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘ अरविंद केवल बहस में यकीन करते हैं जबकि मैं काम करने में यकीन करती हूं । मैं उनके साथ सदन के भीतर बहस करूंगी।’’ सोशल मीडिया पर अपनी सक्रिय भूमिका के लिए जाने जाने वाले केजरीवाल ने बेदी से यह अपील भी की कि वह माइक्रोब्लागिंग साइट ट्विटर पर उन्हें ‘अनब्लॉक’ करें । उन्होंने ट्वीट किया, ‘किरण बेदीजी किरणजी , मैं आपको ट्विटर पर फालो करता रहा हूं । अब आपने मुझे ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया है । कृपया मुझे अनब्लॉक कर दें ।’ केजरीवाल के ट्विटर एकाउंट को ‘गंदा’ करार देते हुए बेदी ने केजरीवाल पर पलटवार करते हुए कहा कि उन्होंने उनको सालभर से भी पहले ब्लॉक किया था क्योंकि वह ‘नकारात्मकता फैला रहे थे।’

देर रात दिल्ली से भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित की गयीं बेदी ने कहा, ‘ मैंने उन्हें करीब 15 महीने पहले ब्लॉक कर दिया था जब उन्होंने खुद को अराजकतावादी बताया था। वह नकारात्मकता फैला रहे थे । नहीं चाहती थी कि मेरे चार मिलियन फालोअर नकारात्मकता को देखें। यह एक प्रदूषण फैलाने वाला एकाउंट था।’ देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी रहीं 65 वर्षीय बेदी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी संसदीय बोर्ड के साथ बैठक करने के बाद मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। घोषणा के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में आप ने कहा कि बेदी आप के लिए कोई चुनौती नहीं हैं और भाजपा की पसंद का उसकी अपनी साख पर गलत असर पड़ेगा।

वरिष्ठ आप नेता सोमनाथ भारती ने कहा, ‘ भाजपा ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है ताकि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा सके क्योंकि भाजपा , आप की बढ़ती लोकप्रियता और उसके बढ़ते आधार के चलते अपनी जीत के प्रति विश्वस्त नहीं है ।’ बेदी पूर्वी दिल्ली में कृष्णानगर सीट से चुनाव लड़ेंगी जिसे भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है । संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह , वित्त मंत्री अरूण जेटली , विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा अन्य कई नेताओं ने भाग लिया।

भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है।दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सोमवार को भाजपा की अहम बैठक के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने ये घोषणा की। भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी कुछ दिन पहले ही भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुई हैं।  

रेल किराया बढ़ने के संकेत

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रेल बजट पेश किए जाने से एक महीना पहले रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पैसेंजर किराया बढ़ाए जाने का संकेत दे दिया है। इंडियन रेलवेज में फॉरन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के विषय पर एक नैशनल सेमिनार में हिस्सा लेने के लिए यहां आए प्रभु ने कहा कि रेलवे को तेज विकास के लिए हरसंभव स्रोत से निवेश की जरूरत है।

यह पूछे जाने पर कि क्या रेलवे की माली हालत खराब होने के उनके बयान का मतलब यह है कि किराया बढ़ाया जाएगा, प्रभु ने कहा, 'रेलवे का बोझ आम आदमी का बोझ है क्योंकि रेलवे डिपार्टमेंट आम आदमी का ही है। हमें रेलवे को ठीक ढंग से चलाना है और आम आदमी को ज्यादा सुविधाएं देनी हैं।'उन्होंने किराये में हो सकने वाली बढ़ोतरी का और ब्योरा नहीं दिया।

विभिन्न स्रोतों से रेलवे को फाइनैंशल और टेक्नॉलजिकल इन्वेस्टमेंट की जरूरत पर जोर देते हुए प्रभु ने कहा कि फॉरन पेंशन फंड्स और दूसरे संस्थानों जैसे नए स्रोतों से निवेश जुटाने पर गौर किया जा रहा है। हालांकि उन्होंने यह बात सिरे से खारिज कर दी कि रेलवे का निजीकरण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसे सरकार ही चलाएगी। प्रभु ने कहा, 'इंडियन रेलवेज की ड्राइविंग वील रेलवे मिनिस्ट्री के हाथों में ही रहेगी।'उन्होंने कहा, 'फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस अच्छा रिटर्न तो चाहते हैं, लेकिन ओनरशिप नहीं लेना चाहते हैं।'

रेल मंत्री ने कहा कि पीपीपी और एफडीआई पर सरकार का कोई भी निर्णय इस आधार पर होगा कि रेलवे और इकॉनमी की ग्रोथ सुनिश्चित हो। उन्होंने रेलवे की क्षमता और उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया ताकि अधिक से अधिक रेवेन्यू जुटाया जा सके।

बिहार : मुसहरी से निकलता है सोना और चांदी

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पटना। मुसहरी से निकलता है सोना और चांदी। आप जरूर ही इसको अध्ययन करके आश्चर्य में पड़ गए होंगे? आप सोचते होंगे कि सभी किस्मत का मारा इंसान हैं।जो शहर के गगनचुम्बी कूड़ों के ढेर मक्खियों की तरह मंडराते रहते हैं। वहां पर इंसान और अवारा कुत्तों के साथ दो-दो हाथ करने को बाध्य होते हैं। आप इस तरह की मुसीबत को देखकर संवेदनशील हो गये होंगे? तुरंत ही सरकार से सवाल करने लगे होंगे कि आजादी के 67 सालों के बाद भी इंसान को नारकीय माहौल में 2 जून की रोटी के लिए पापड़ बेलना पड़ता है? अगर कद से बड़ा बोरा लेकर चलने वाले बच्चों को देखकर कहने को मजबूर हो जाते होंगे कि जिस हाथ में कलम और किताब होनी चाहिए थी? उस मासूम बच्चे के कंधे पर पहाड़ की तरह परिवार के सदस्यों के पेट भरने की जिम्मेवारी आ गयी है। 

कूड़ों के ढेर पर अजमाते हैं महादलित किस्मत: सुबह-सुबह मलाईदार समुह के लोग बाग-बगीचे में टहलने निकलते हैं। वहीं सुबह-सुबह 2 जून की रोटी की तलाश में महादलित मुसहर समुदाय के लोग घर से निकल जाते हैं। साथ में मासूम बच्चों को भी ले जाते हैं। हां, जितने हाथ उतने ही रद्दी कागज आदि बटोरने में सहायता मिलता है। मालिकों के कूड़ों में बहुत समान मिलता है।शराब के बोतल,दूध वाला प्लास्टिक, कागज, कलम, सोना और चांदी भी मिलता है। केवल कूड़ों के ढेर पर किस्मत अजमाने वाले फटेहाल व्यक्ति का दिन होना चाहिए। अगर दिन अनुकूल हुआ तो बोरा भर के रद्दी चुनकर घर लाते हैं। घर लाकर रद्दी का वर्गीकरण करते हैं। उसी समय सोना और चांदी नजर आता है। महादलित पारखी की तरह परखकर सोना और चांदी जमा कर लेते हैं। उसे घर में संभालकर रखते हैं। जब फेरी करने वाले व्यक्ति आते हैं तो सोना और चांदी को बेच देते हैं। 

हरेक मुसहरी में जाकर फेरी करते हैंः अलग-अलग व्यक्ति मुसहरी में जाते हैं। महादलित व्यक्ति से वाकिफ हैं। उनको बुलाकर संग्रहित सोना और चांदी दिखाते हैं। तब वह सोना और चांदी को परखता है। इसके बाद बैंग से सिल्वर के चारकोना समान को निकालता है। एक में एसिड और दूसरे में सोना और चांदी को साफ करने वाला लोशन रहता है। उसके बाद सोना और चांदी की कीमत बताता है। उसके बाद तराजू निकालता है। उसे तौलने लगता है। आज दीघा मुसहरी में चांदी को व्यक्ति तौल रहा है। उसने चांदी परखकर कीमत तय कर दिए। कीमत तय किया 140 रूपए भरी। चांदी और अन्य समान 70 रू.का हुआ। ठग प्रवृत्ति के कारण 60 रू.ही दे रहा था। तब मुसहरनी के द्वारा 10 रू. और देने को कहने के बाद ही शेष राशि दिया। 

 अब आप जरूर ही समझ गए होंगे? इस बोलती तस्वीर को देकर ही आप जरूर ही सहज ढंग से विश्वास कर लिए होंगे।  अब आप भी हां-हां कहकर कहने लगे होंगे कि आम लोगों की लापरवाही के कारण ही कूड़ों के साथ सोना और चांदी भी कूड़े में चला जा रहा है। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप सचेत नहीं होंगे तो आपके घर से सोना और चांदी निकलकर गरीब महादलितों के पास चला जाएगा। मुसहरों के घर से ही सोना और चांदी निकलता ही रहेगा।  


आलोक कुमार
बिहार 

आलेख : मोहब्बत के शहर में नफरत की लकीरें

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पेशावर में बहाया गया मासूमों का खून अभी जमा भी नहीं था कि मजहबी पागलपन ने एक और हादसा अंजाम दे डाला है और इस बार नफरत की यह लकीर मोहब्बत के शहर कहे जाने वाले फ्रांस में खीची गयी है। नए साल के पहले हफ्ते में जब दुनिया भर में लोग शांति और प्रगति की कामना करते हुए एक दूसरे को शुभकामनायें दे रहे थे तो उसी दौरान पेरिस से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका के कार्यालय पर हमला करके 12 इंसानों को मार डाला गया। "शार्ली ऐब्डो"नाम की इस व्यंग्य-पत्रिका में इस्लाम के पैगंबर के कार्टून छापे गये थे। यह वही मैगजीन है जिससे तमाम कट्टरपंथी नाराज थे और इस मैगजीन से जुड़े तमाम लोग अलकायदा की हिटलिस्ट में शामिल थे। लेकिन जो हुआ उसका अंदाजा किसी को भी नहीं था। गौरतलब है कि इस हमले के कुछ दिन पूर्व ही मैगजीन ने टि्वटर पर आईएसआईएस चीफ अल बगदादी की तस्वीर वाली एक फोटो पोस्ट की थी। जिसमें व्यंग्य करते हुए बगदादी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की गई थी। इससे पूर्व 2011 में भी इस मैगजीन के ऑफिस पर बम फेंक कर से हमला किया गया था लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ था। हमें लगा था की इंसानियत अपने मतभेद जाहिर करने के लिए मारकाट का खूनी शगल बहुत पीछे छोड़ आई है लेकिन यहाँ मतभेद निपटाने का पुराना और घिनौना रूप ही लागू है और अब तो हमारे हाथों में इस पुराने खेल को जारी रखने के लिए आधुनिकतम हथियार भी हैं।

इस बार हमला “फ़्री स्पीच” पर था, और वह भी उस मुल्क में जो पिछले कुछ सदियों से  अभिव्यक्ति के आजादी बड़ा पक्षधर रहा है। फ्रांस आधुनिक सभ्यता और ज्ञानोदय का मरकज है, फ्रांस की क्रांति ने ही मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा की थी और इससे निकले समानता, स्वतंत्रता और भातृत्व के नारे आज आधुनिक समाजों के आधार स्तंभ हैं। पिछले करीब तीन सदियों से पूरी दुनिया विचारों,साहित्य और कलां के क्षेत्र में फ्रांस की ओर ही देखती रही है। 

दरयाऐ सेन के किनारे बसा इसका शहर पेरिस दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत और आधुनिक शहरों में से एक है।  पेरिस में 1777 में ही “जूरनाल द पारी” नाम की पहली पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था और देखते ही देखते दो सालों के दरमियान ही पेरिस से 79 पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगीं, उस दौरान वहां ऐसे लोग पैदा होने लगे थे जो फ्रांस की स्थितियों पर अपने कलम से व्यंग्य करते थे। ऐसे ही एक दार्शनिक विचारक थे “वोल्तेयर”(1694-1778) जिन्होंने तत्कालीन फ्रांस में चर्च पर व्यंग्य कसते हुए कहा था कि “अब तो कोई ईसाई बचा ही नहीं, क्योंकि एक ही ईसाई था और उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया।” उन्होंने उस समय कैथोलिक चर्च को उसके असहिष्णुता, अंधविश्वास और पाखंड के कारण उसे नष्ट करने का आह्वान किया था। 

“वोल्तेयर” अपने ही नहीं दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहुत तरजीह देते थे, उन्होंने यहाँ तक कहा था कि “मैं जानता हूँ कि जो तुम कह रहे हो वह सही नहीं है, लेकिन तुम कह सको इस अधिकार की लडाई में, मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ”।

फ्रांस की मजाहिया पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ द्वारा छापे जा रहे व्यंग्य को इस पृष्टभूमि के बिना नहीं समझा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि इसने सिर्फ इस्लाम और इसके पैगम्बर का ही मजाक उड़ाया हो, इसका लगभग सभी धर्मों उनके पोप, पैगंबरों,धार्मिक कट्टरपंथियों,  राष्ट्राध्यक्षों का मजाक उड़ाने का इतिहास रहा है। अगर इसने पैगंबर मोहम्मद साहेब के ये कार्टून पब्लिश किए हैं तो यहूदी समुदाय को भी नहीं बक्शा है। जाहिर सी बात है कि सब की भावनायें आहत हुई होंगी लेकिन सवाल यह है कि खून की यह होली इस्लाम के नाम पे ही क्यों खेली गयी? जो मजहब यह दावा करता हो कि वह पूरी इंसानियत के लिए है और उसका पैगाम शांति और मोहब्बत का पैगाम है वह आत्मालोचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में इतना डरावना क्यों नज़र आने लगता है ?

आज का फ्रांस अनेक देशी और विदेशी भाषाओं, बहु-जातीयताओं और धर्मों तथा क्षेत्रीय विविधता वाला देश है। कैथोलिक धर्म के बाद आज फ़्रांस में “इस्लाम” दूसरा सबसे बड़ा धर्म है और किसी भी पश्चिमी यूरोपीय देश की तुलना में इस देश में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है। हाल के वर्षों में फ़्रांस ही नहीं पूरे यूरोप में नस्लवादी और आप्रवासी-विरोधी भावनाएं बढ़ी हैं, इसका एक कारण वहां की आर्थिक स्थिति का कमजोर होना भी है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इराक़ और सीरिया में जो यूरोपीय जिहादी लड़ने गए हैं उनमें सबसे ज़्यादा फ़्रांस के हैं। 
इसी तरह से पेरिस हमले से चंद दिनों पहले ही जर्मनी में पेगिडा (पेट्रिओटिक यूरोपियन्स अगेंस्ट दि इस्लामिज़ेशन ऑफ़ दि वेस्ट) नाम के एक संगठन के एक रैली में क़रीब 18,000 लोगों ने हिस्सा लिया था। इस संगठन का मानना है कि यूरोप का 'इस्लामीकरण'हो रहा है और  इसके वे लगातार प्रदर्शन शुरू कर रहे हैं। वर्तमान में दुनिया का बड़ा हिस्सा मजहबी हिंसा और नफरतों के चपेट में है, ऐसा लग रहा है कि समय का पहिया रिवेर्स होकर हमें बर्बरता के दौर में वापस ले जा रहा है। एक तरफ सीरिया और इराक में जिहाद चल रहा है तो वहीँ इजराईल में एक फिलिस्तीनियों के लाशों पर “खुदा का मुल्क” बनाया जा रहा है. इधर पकिस्तान तो अपने ही खेल से लहुलाहान हुआ जा रहा है और  हिन्दुस्तान में भी उसी दिशा में  हांकने के पूरी कोशिश जारी है . नाईजीरिया से खबरें आ रही कि वहां बोको हराम ने “बागा” नाम के शहर को पूरी तरह से जला दिया है, इसमें कम से कम 2,000 इंसानों की जानें गयी हैं।

क्या मानव सभ्यता के केंद्र में मज़हब एक बार फिर वापस आ रहा है और ज्ञानोदय की लौ धीमी पड़ रही है? शायद इंसानियत ऐसे दौर में पंहुचा गयी है जहाँ मजहब अपनी रेलेवेंस खोते  जा रहे। इनसे इंसानियत को फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है, आस्था के नाम पर लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हुए जा रहे है। धर्माधिकारियों को "ऐसे हादसों को अंजाम देने वाले असल मजहब को नहीं जानते"कहकर इसकी आड़ लेना बंद करके आत्ममंथन करना चाहिए कि असल में गलती कहाँ हो रही है। प्राचीन यूनानी दार्शनिक-एपिक्युरस ने कहा था कि “वास्तव में धर्मविरोधी व्यक्ति वह नहीं है जो जन-साधारण द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं को नकारता है, बल्कि वह है जो देवताओं के बारे में जनसाधरण के मान्याताओं की पुष्टि करता है। सही में अब मान्यताओं के नकारने का समय है और यह काम आधे-अधूरे रूप में नहीं समग्रता में करना होगा।

मान्यताओं के आधा-अधूरा नकारने का खामियाजा हम भारतीय भी भुगत रहे हैं और भारत में सेक्युलरिज्म की हालत इतनी पतली क्यों है इसका अंदाजा पेरिस हादसे के बाद तथाकथित सेकुलरिज्म के झंडाबरदारों द्वारा दिए गये बयानों से लगाया जा सकता है जिसमें वे भारतीय मुसलमानों की शास्वत पीड़ित मनोग्रंथि को एक्स्प्लोईटेशन करने की कोशिश में एक तरह से पेरिस हमले को जायज ठहरा रहे हैं। इसी आधी-अधूरी सेकुलरिज्म के बल पर ही हाजी याकूब  जैसे लोग नेता पेरिस के हमलावरों के काम को सही ठहराते हुए उन्हें बतौर इनाम 51 करोड़ रुपये देने का एलान करने का कारनामा अंजाम देते हैं और इन्हीं गुनाहों के बल पर संघ मंडली को भारत का तकदीर तय करने का भरपूर मौका मिल जाता है।

वोल्तेयर की ही एक उक्ति है “ईश्वर ना होता तो उसके अविष्कार की आवश्यकता पड़ती।” ईश्वर के अविष्कार की आवश्यकता तो नहीं पड़ रही है लेकिन ईश्वर और उसके मजहबों को बनाया- बिगाड़ा जा रहा है और यह खेल बहुत जानलेवा साबित हो रहा है।








liveaaryaavart dot com

---जावेद अनीस---
ई मेल:  javed4media@gmail.com

आलेख : अच्‍छे दिन मे जनता की कमाई से भरेगा खजाना

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केंद्र की सियासत पर नरेन्‍द्र मोदी के कदम पड़ते ही महंगाई के सबसे बड़े गुनहग़ार पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में धड़ाम होने लगीं।दिल्‍ली मे उनकी ताजपोशी के बाद से अब तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत आधे से भी कम हो गई है । जून 2014 में दुनिया के बाजार में तेल के दाम करीब 107 डॉलर प्रति बैरल थे यानी 6324 रुपये में एक बैरल तेल था और अब दाम 50 डॉलर से भी कम प्रति बैरल हो गया। फरवरी महीने के लिए दुनिया के बाजार में तेल के दाम की बोली 45 से 47 डॉलर प्रति बैरल तक लगाई जा रही है।इसे प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की किस्‍तम कहा जाये या फिर दुनियां मे तेल के बड़े खिलाड़ी अमेरिका का अपने दुश्‍मनों को नीचा दिखाने और उनकी माली हालत को कमजोर करने का शातिराना खेल ।चाहे जो हो लेकिन ओपेक देशों और ईरान के बीच इस गलाकाट प्रतियोगिता का फायदा भारत को पुरा हो रहा है । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत के लिहाज से भारत में पेट्रोल की कीमत अब तक आधी हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं ।पेट्रोल की कीमतें प्रधानमंत्री से ये सवाल पूंछ रही हैं कि क्‍या आम आदमियों को सब्‍ज़ बाग दिखा कर सत्‍ता हासिल करने वाली सरकार ने तेल की कीमतें लगातार घटने के बावजूद लोगो को अच्‍छे दिन का तोहफा देने के बजाय अपना खजाना भरना शुरू कर दिया है ? दुनियां मे तेल के दामों मे बीते पांच साल मे आई आधे से ज्‍़यादा की गिरावट मे मुनाफा कमाने का उपाय खोजते देश के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्‍द्र प्रधान के सामने भी जनता का ये यक्ष प्रश्‍न खड़ा है कि आखिर पेट्रोल का सारा फायदा कहां जा रहा है ।सरकार ने भारी दबाव के बाद तेल की कीमतों मे कटौती तो कि लेकिन ये कटैती ना काफी मानी जा रही है ।केन्‍द्र सरकार ने अब तक चार बार मे पेट्रोल पर पौने आठ रूपये और डीजल पर साढ़े छह रूपये के आसपास उत्‍पाद शुल्‍क बढ़ाया है ।अगर ये बढ़ोत्‍तरी भी ना कि जाती तो भी जनता को बड़ी राहत मिल जाती ।लेकिन सरकार तो राजकोषीय संतुलन के फेर मे खजाने मे बजट तक 20 हजार करोड़ का अतिरिक्‍त राजस्‍व जुटाना चाहती है ।सरकारी खजाने मे ये रकम आम आदमी और किसानों का हक मार कर जा रही है ।
                                   
ऐसा लगता है कि गरीबों के नाम पर हमेशा टेसुए बहाने वाली यूपीए सरकार की तरह मोदी सरकार ने भी पेट्रोल को अमीरों का ईधन मान लिया है ।जबकि हकीकत यह है कि देश के साठ फीसदी से ज्यादा दुपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में होती है। महानगरों में निम्न मध्यवर्ग ही पेट्रोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।देश की तेल कम्‍पनियां और सरकार के दावे मे कितना दम है इसको कुछ इस तरह से समझा जा सकता है । भारत के 90 फीसदी तेल कारोबार पर सरकारी कंपनियों का नियंत्रण है और सरकार की मानें तो ये कंपनियां जनता को सस्ता तेल बेचने के कारण भारी घाटे में हैं। दूसरी ओर, फॉच्र्यून पत्रिका कि एक पुरानी रपट के मुताबिक दुनिया की आला 500 कंपनियों में भारत की तीनों सरकारी तेल कंपनियां- इंडियन ऑयल (98), भारत पेट्रोलियम (271) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (335)- शामिल हैं। तेल और गैस उत्खनन से जुड़ी दूसरी सरकारी कंपनी ओएनजीसी भी फॉच्र्यून 500 में 360 वे पायदान पर है। आखिर यह कैसे संभव है कि सरकार घाटे का दावा कर रही है लेकिन तेल कंपनियां की बैलेंसशीट खासी दुरुस्त है। दरअसल भारत में रोजाना 34 लाख बैरल तेल की खपत होती है और इसमें से 27 लाख बैरल तेल आयात किया जाता है। आयात किए गए कच्चे तेल को साफ करने के लिए रिफाइनरी में भेज दिया जाता है। तेल विपणन कंपनियों के कच्चा तेल खरीदने के समय और रिफाइनरी से ग्राहकों को मिलने वाले तेल के बीच की अवधि में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे
होती हैं। यहीं असली पेंच आता है । फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 50  डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे है और अंडररिकवरी हमेशा मौजूदा कीमतों के आधार पर तय की जाती है।जानकारों का कहना है कि  तेल कम्‍पनियां प्रति बैरल के पुराने भाव से अंडररिकवरी की गणना करके भारी-भरकम आंकड़ों से जनता को छलती है। तेल विपणन कंपनियों का कथित घाटा भी आंकड़ों की हेराफेरी है। सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) इसका सबूत है। कच्चे व शोधित तेल की कीमत के बीच के फर्क को रिफाइनिंग मार्जिन कहा जाता है और भारत की तीनों सरकारी तेल विपणन कंपनियों का जीआरएम दुनिया में सबसे ज्यादा है।
                                      
दरअसल देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने तेल विपणन को खजाना भरने का जरिया बना लिया है। पेट्रोल पर तो करों का बोझ इतना है कि ग्राहक से इसकी दोगुनी कीमत वसूली जाती है। ताजा कटौती के बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 58 रुपए 91 पैसे प्रति लीटर हो गयी है और जबकि तेल विपणन कंपनियों के सारे खर्चों को जोड़कर पेट्रोल की प्रति लीटर लागत 30 रुपए से भी कम ठहरती है। केंद्र सरकार पेट्रोलियम पर कस्‍टम के साथ – साथ छह तरह का अतिरिक्‍त कर वसूल करती है ।इसी तरह राज्य सरकारें भी वैट, सरचार्ज, सेस और प्रवेश शुल्‍क के मार्फत तेल में तड़का लगाती हैं। दिल्ली , राजस्‍थान , मध्‍य प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ मे पेट्रोल पर 20 से 28.75 फीसदी के आसपास वैट है ।जबकि मध्य प्रदेश सरकार एक फीसदी प्रवेश शुल्‍क लेती है वहीं राजस्थान और उत्‍तर प्रदेश मे भी वैट के अलावा प्रति लीटर सेस लिया जाता है।इसी लिए देश के हर राज्‍यों मे कीमतें भी अलग – अलग हैं ।केन्‍द्र सरकार जहां एक लीटर पर 17.48 की कमाई कर रही है तो उत्‍तर प्रदेश, दिल्‍ली ,हरियाणा ,पंजाब , उत्‍तराखण्‍ड और छत्‍तीसगढ़ जैसे प्रदेश 10 रूपये से लेकर 13.85 पैसे तक की कमाई कर रहें हैं ।जिन राज्‍यों मे कीमतें अधिक हैं उन राज्‍यों मे बिक्री पर भी असर पड़ता है । भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश हैं जहां सरकार की भ्रामक नीतियों के कारण विमान में इस्तेमाल होने वाला एयर टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ, पेट्रोल से सस्ता है। दिल्ली और नागपुर जैसे शहरों में तो एटीएफ, पेट्रोल से 3 से लेकर 15 रुपए तक सस्ता है। विमान के ईधन और पेट्रोल की कीमतों के बीच यह अंतर शुल्क की अलग-अलग दरों के कारण है।
                    
सरकार सब्सिडी खत्म करने का भी तर्क देती है। सब्सिडी को अर्थशास्त्र गरीब मानव संसाधन में किया गया निवेश मानता है लेकिन देश की सरकारें इस सब्सिडी को रोककर तेल कंपनियों का खजाना भरना चाहती है।वित्‍तीय हालात को मजबूत बनाने में जुटी मोदी सरकार अब सरकारी कंपनियों के जरिए खजाना भरने की तैयारी कर रही है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के अंतिम समय में जो कवायद तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री पी. चिदंबरम ने की थी, कुछ वैसी ही कवायद मौजूदा वित्‍त मंत्री अरुण जेटली कर रहे हैं।सरकार का कहना है कि शंल्‍क के जरिए वसूली गयी रकम को वह जनउपयोगी कार्यक्रमों पर खर्च करना चाहती है । इस पैसे से सरकार 15 हजार किलोमीटर  की सड़क बनाना चाहती है। सरकार के मुताबिक ऐसा करने से रोजगार बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी ।पहली नजर मे सरकार का इरादा तो नेक दिखता है ।लंकिन हकीकत मे सड़क बनाने के नाम पर सरकार पहले से ही पेट्रोल के जरिए पैसे वसूल रही है।  साल 2000 से हर लीटर पेट्रोल पर वसूला जाने वाला सेस (एक तरीके का टैक्स) सेंट्रल रोड फंड में जाता है । साल 2000 में वाजपेयी सरकार के दौरान ही सेंट्रल रोड फंड एक्ट अमल में आया था । इस कानून के प्रावधान के मुताबिक पेट्रोल की कीमत के साथ सेस वसूला जा सकता है । इस सेस के पैसे का इस्तेमाल नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे, रेलवे और देश भर की
सड़कें बनाने में किया जाता है ।

सवाल है कि जब पहले से पेट्रोल पर सेस लगाकर सड़कें बनाने के लिए पैसा वसूला जा रहा है तो फिर ये अतिरिक्त शुल्‍क वसूली क्यों?  2013-14 की कंन्‍द्र सरकार के परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1 नवंबर 2000 से लेकर 31 दिसंबर 2012 तक देश भर में 6859 विभिन्‍न कार्यो के लिए सेंट्रल रोड फंड से करीब 23780 करोड़ रुपए जारी किए गए।सरकार ने सेस के जरिए आज तक कितने पैसे उगाहे हैं इसका कोई ताजा और पुख्‍ता आंकड़ा मौजूद नहीं है । लेकिन पुराने आंकड़ों के मुताबिक सन 2000 से लेकर 2008 तक पेट्रोल और हाईस्पीड डीजल के सेस के जरिए 69268 करोड़ रुपए जमा किए थें। इस हिसाब से ही एक अनुमान तो लगाया जा सकता है ।विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार पेट्रोल ज्यादा सस्ता नहीं कर सकती , इसकी दो वजह समझ में आती है। एक आर्थिक और दूसरी राजनीतिक , मोदी सरकार ने देश से वादा किया है कि वो महंगाई कम कर देंगे। महंगाई कम करने करने के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमत कम करनी जरूरी है। लेकिन ये सरकार के हाथ में पूरी तरह से नहीं है। क्योंकि पेट्रोल-डीजल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत के आधार पर तय होती है।वैसे तो अभी भी तेल कंपनिया सरकार से सलाह मशविरा करके ही पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ाती या घटाती है।लेकिन सरकार को डर है कि अगर पेट्रोल सस्ता कर दिया गया तो लोगों को सस्ते पेट्रोल-डीजल की आदत लग सकती है ।ये जरूरी नही कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल हमेशा सस्ता ही रहेगा । ऐसे में कभी न कभी पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ेगी। अगर कीमत बढ़ाई तो जनता गुस्सा हो सकती है। मोदी सरकार को अब तक ये गुस्सा झेलना नहीं पड़ा है। लेकिन जनता का भरोसा नही ऐसी नौबत कभी भी आ सकती है। जनता अपना गुस्सा वोट के जरिए दिखा सकती है। ऐसे में पेट्रोल-डीजल ज्यादा सस्ता न किया जाए तो ही बेहतर है। सरकारें अपना राजकोषीय संतुलन बनाने और वित्‍तीय घाटा कम करने के लिए पेट्रोलियम पर अतिरिक्‍त शुल्‍क का सहारा लेती है ।फिलहाल दुनियां के तेल बाजार के ताजा हालात मे मोदी सरकार को बिना मंहगाई बढ़ाए ये आमदनी हो रही है । इसके अलावा ये तर्क भी है कि अगर इस पैसे से सड़क बनेगी तो इसमें भी
तो देश की जनता की ही भलाई है । पेट्रोल-डीजल की कीमत कम करना ही जनता को फायदा पहुंचाने का एकमात्र तरीका नहीं है।
                            
सरकार के सारे तर्क जायज हो सकतें हैं लेकिन ये भी सवाल खड़ा होता हे कि देश मे रेल किराया ,माल भाड़ा सरकारी परिवहन बसों का किराया तेल कीमतें घटने के बाद भी कम क्‍यों नही हुआ ।दूघ ,फल ,सब्‍जी और जिन्‍सों के दाम क्‍यों कम नही हुए ।जनता की अदालत मे यही सबसे बड़ा सवाल है कि अच्‍छे दिनों मे पेट्रोलियम के दम कम होने के बाद भी आंकड़ों के खेल से इतर बाजार मे मंहगाई की रफ्तार जस की तस क्‍यों हैं?आखिर इस की जवबदेही सरकारें किस पर डालेगी ।
                         




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** शाहिद नकवी **

विशेष आलेख : पंचायत चुनाव में महिलाओं की दावेदारी

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लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह पंचायत चुनाव को राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया कवरेज नहीं मिलता है। लेकिन कई राज्यों में महिलाओं की इसमें हिस्सेदारी इस चुनाव को काफी महत्वपूर्ण बना देती है। पंचायतों में महिलाओं के पचास प्रतिषत आरक्षण को लेकर समाज में चाहे जो भी धारणा हो, किन्तु महिलाओं ने यह साबित किया है कि ‘‘विकास सिर्फ पुरूषों के बूते की बात नहीं है, बल्कि महिलाएं भी उसे बखूबी अंजाम दे सकती है।’’ मध्यप्रदेष के पंचायत चुनाव में यही बात साफतौर से देखी जा सकती है। आज से बीस साल पहले यानी पंचायती राज कानून लागू होने से पूर्व, आरक्षित सीटों पर भी महिलाएं खड़ी होने से झिझकती थीं और चुनाव प्रचार मंे पुरूष अपनी पहचान को आगे रखते थे तथा अनारक्षित सीटों पर सिर्फ पुरूषांें की ही दावेदारी रहती थी, वहीं इस बार के चुनाव में अनारक्षित सीटों पर महिलाएं भी अपनी दावेदारी जता रही हंै। 
             
यह स्पष्ट है कि पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था में गांव की सत्ता और विकास के फैसलों में कुछ संपन्न एवं दबंग लोगों का ही वर्चस्व रहता आया है। पंचायतों में दलित, आदिवासी एवं महिलाओं के आरक्षण से वर्चस्व की यह डोर थोडी ढीली जरूर हुई, किन्तु पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाई। इन दिनों हो रहे पंचायत चुनाव में यह साफ देखा जा रहा है कि महिलाएं अब अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए अनारक्षित सीटों पर बराबरी से सामने आई हैं। 
             
प्रदेष के मालवा, निमाड़, बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड में आज पंचायती चुनाव में महिलाओं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। इस दौरान कई महिलाएं तो ऐसी पाई गई, जो अनारक्षित सीटों पर पुरूषो के मुकाबले चुनाव लड़ रही है। झाबुआ जिले की ग्राम पंचायत महूंडीपाड़ा की सरपंच रही राजूड़ीबाई पिछले पंचायत चुनाव में जहां घूघट से बाहर नहीं आ पा रही थीं, वही इस चुनाव में वह सरपंच की अनारक्षित सीट पर पांच पुरूषांें के मुकाबले खुद चुनाव प्रचार कर रही हैं। 9 गांवों वाली इस ग्राम पंचायत में वह सुबह से ही अपने समर्थकों के साथ निकल जाती है और गांव-गावं में सम्पर्क कर अपनी बात रखती हैं। खास बात यह है कि साथ चलने वाले उनमें समर्थकों में उनके पति, भाई या कोई परिवार के सदस्य नहीं है, बल्कि गांव के कुछ महिला-पुरूष है, जो मानते हैं कि राजू़ड़ीबाई में पंचायत का विकास करने की काबिलयत है। 
             
मध्यप्रदेष के बघेलखण्ड क्षेत्र के रीवा जिले की ग्राम पंचायत छिरहटा की सरपंच रही गुडडीबाई भी इस बार अनारक्षित सीट पर अपना जोर आजमा रही है। उनके सामने खड़े पुरूष प्रत्याषियों ने पहले तो पुरूष सीट का भ्रम फैलाकर उनके नामांकन फार्म भरने में बाधा उत्पन्न करने कोषिष की, किन्तु उन्हें पक्का भरोसा था कोई भी सीट पुरूषों के लिए नहीं होती। कई धमकियां मिली और कहा गया कि पिछली बार तो महिला सीट थी, इसलिए हमने कुछ नहीं कहा, लेकिन इस बार चुनाव लड़ा तो ठीक नहीं होगा। लेकिन गुड्डीबाई के पास भी इसका जवाब था -‘‘चुनाव लड़ने का अधिकार मुझे भारत के संविधान से मिला, और मेरा यह अधिकार कोई नहीं छीन सकता। जिताना और हराना जनता के हाथ में है, लोग जो फैसला करेंगे वह मानूंगी, लेकिन चुनाव जरूर लडूंगी।’’ इस संकल्प के साथ गुडडीबाई आज चुनाव के मैदान में है। वह अपनी सभा में भाषण देती है, विरोधियों के सवालों का जवाब देती है और अपने सरपंचीय कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाती हैं। 
           
कटनी जिले के ग्राम पंचायत लखाखेरा की तुलसीबाई अपनी पंचायत की अनारक्षित सीट पर मैदान में है। यह सीट पूरी तरह अनारक्षित है, यानी किसी भी जाति-समुदाय के कोई भी महिला-पुरूष प्रत्याषी चुनाव लड़ सकती हैं। ऐसी सीटांे पर आमतौर पर सामान्य वर्ग के पुरूष ही चुनाव लड़ते हैं। किन्तु इस सीट पर आदिवासी समुदाय की तुलसीबाई ने दावेदारी करते हुए सबको चैका दिया। इसी जिले की ग्राम पंचायत नन्हवारा कला की सरपंच रही कौषल्याबाई जनपद पंचायत सदस्य की अनारक्षित सीट पर चुनाव लड़ कर जमीनी राजनीति की अगली सीढ़ी पर कदम रख रही है। सरपंच के रूप में पिछले पांच सालों में समाज के दबंग लोगों से संघर्ष करती रही सतना जिले की मुन्नीबाई इस बार उन्हीं लोगों के सामने चुनाव मैदान में है। वह कहती है कि ‘‘चुनाव में मै नहीं, मेरा काम ही बोलता है।’’

अनारक्षित सीटों पर चुनाव मैदान में डटी महिलाओ की यह सूची यहीं खत्म नहीं होती। शहडोल जिले की ग्र्राम पंचायत कनाड़ीकला की सुषीलासिंह एवं धनियाबाई और ग्राम पंचायत झिरियाटोला की सुमंत्रा भी जमीनी राजनीति की दौड़ में पीछे नहीं है। सतना जिले की ग्राम पंचायत देवरा की रानीदेवी, हरदा जिले की ग्राम पंचायत छुरीखाल की  उर्मिला धुर्वे, ग्राम पंचायत पड़वा की सुषीलाबाई, ग्राम पंचायत बाबडि़या की जयंति सोलंकी, छतरपुर जिले की ग्राम पंचायत बंधा चमरोई की शकुंतला और ग्राम पंचायत रंजिता की ललिता सहित कई महिलाएं चुनावी समर में शामिल है। 
             
इस तरह मध्यप्रदेष में पंचायत चुनाव में सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया साफतौर पर दिखाई दे रही है। कई महिला प्रत्याषियों के बैनर पोस्टर में जहां उनके पति या परिवार के सदस्यों फोटो और नाम भी प्रमुखता से पाए जाते हैं, वहीं उपरोक्त महिला प्रत्याषियों के पोस्टर में उनके पुरूष रिष्तेदारांें का कोई स्थान नहीं है। यह महिलाएं  अपने नाम, अपने काम और अपनी पहचान के बल पर चुनाव मैदान में है, जो सामाजिक-राजनैतिक बदलाव का खास संकेतक है। बहुत जल्द यह बदलाव मध्यप्रदेश से निकल कर देश के अन्य भागों के पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए मिसाल बन जायेगा। 







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राजेन्द्र बंधु
(चरखा फीचर्स)

केजरीवाल का रोड शो दो बजे

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां से स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी, उसी मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर से आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को रोड शो की शुरुआत की। यहां से उनका रोड शो आरके आश्रम लेन, गोल मार्केट, पेशवा रोड, बिरला मंदिर, अशोक रोड व पटेल चौक होते हुए जंतर-मंतर में सभा में तब्दील हो जाएगी। वहां वह दिल्ली चुनाव को लेकर अपना एजेंडा रखेंगे। इसके बाद वह दो बजे नामांकन दाखिल करने जाएंगे।

खुली जीप में सवार केजरीवाल ने रोड शो के दौरान कहा कि दिल्लीवासी आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत देकर इतिहास रचते हुए 49 दिन की सरकार को पांच साल में बदलेंगे। केजरीवाल ने कहा कि भाजपा झूठ और अफवाह फैलाने वाली पार्टी है। उल्लेखनीय है कि केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार किरण वालिया और भाजपा की नुपूर शर्मा चुनौती दे रही हैं। सूत्रों ने बताया कि दिल्ली में भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी बुधवार को कृष्णानगर सीट से अपना नामांकन दाखिल करेंगी। उन्हें कांग्रेस की ओर से बंशीलाल और आप के उम्मीदवार एसके बग्गा चुनौती पेश करेंगे।

दिल्ली पुलिस शशि थरूर से दोबारा पूछताछ कर सकती है: दिल्ली पुलिस कमिश्नर

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कॉंग्रेस नेता शशि थरूर ने पुलिस से पूछताछ के दौरान माना है कि उनकी और सुनंदा पुष्कर की शादीशुदा ज़िंदगी में कुछ दिक्कतें पैदा हो गईँ थी। थरूर ने ये बयान दिल्ली पुलिस की पूछताछ के दौरान दिया। सुनंदा पुष्कर की पिछले साल दिल्ली के एक पाँचसितारा होटल में मौत गई थी। थरूर ने साल भर पहले सुनंदा की मौत के बाद भी कहा था कि उन दोनों के बीच कुछ ग़लतफहमियाँ पैदा हो गईं थी, लेकिन दोनों एक दूसरे के साथ बेहद खुश थे।

दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बी एल बस्सी के अनुसार, थरूर पूछताछ के दौरान पूरी तरह से सहयोग कर रहे थे। हम उनसे घटना के बैकग्राउंड, पहले उन दोनों के बीच क्या-क्या हुआ, इन सभी विषयों पर बातचीत कर रहे हैं। बस्सी के मुताबिक थरूर से दूसरे दौर की पूछताछ इस हफ्ते की जा सकती है, जिसमें उनके और मेह़र तरार के संबंधों के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की जाएगी। सोमवार रात को की गई थी पूछताछ के दौरान थरूर से, उनके नौकर द्वारा दिए गए बयानों पर सवाल-जवाब किए गए।

बी.एल.बस्सी के मुताबिक इस मामले में आगे कुछ और लोगों से पूछताछ किए जाने की संभावना है। बस्सी ने कहा, ''हमने शशि थरूर से बात की है और हम बैठकर इस बातचीत का विश्लेषण करेंगे।'' बस्सी के अनुसार, ''हमने संबंधित मुद्दे पर तीन घंटे से ज्या़दा बातचीत की है, जिसे भी इस घटना की जानकारी है उससे पूछताछ की है और आगे भी करते रहेंगे। हम दोबारा जब भी शशि थरूर को दोबारा पूछताछ के लिए बुलाएंगे तो आप लोगों को इसके बारे में बताएंगे।'' सूत्रों के अनुसार, 4 अफसरों द्वारा की जा रही पूछताछ के दौरान थरूर बिल्कुल शांत थे और सभी 50 सवालों के जवाब दिए। पूरी बातचीत तक़रीबन 3 घंटे तक चली।  

बी.एल.बस्सी ने ये भी कहा कि आईपीएल में थरूर और पुष्कर का क्या रोल था, या दोनों इस खेल से किस तरह से जुड़े थे इसकी भी जाँच की जाएगी। बस्सी के मुताबिक, ''आईपीएल से जुड़े सवाल, पूरी जाँच में काफी अहम् है और उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया सकता है।'' दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने ये भी कहा कि, ''थरूर से की जा रही है पूछताछ, एक चश्मदीद के तौर पर है ना कि एक संदिग्ध के तौर पर। हम खुले दिमाग से इस मामले की जाँच कर रहे हैं और जल्दबाज़ी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते हैं।''
 

अगले पांच साल में वैश्विक बेरोजगारी बढ़ेगी.

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वैश्विक स्तर पर बेरोजगारों की संख्या अगले पांच साल में 1.1 करोड़ बढऩे की उम्मीद है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर नरम रहेगी। यह चेतावनी जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में दी गई। विश्वबैंक अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की वैश्विक रोजगार सामाजिक दृष्टिकोण रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 21.2 करोड़ हो जाएगी जबकि मौजूदा दौर में बेरोजगारों की संख्या 20.1 करोड़ है।

रिपोर्ट में कहा गया कि 2014 में 15 से 24 साल की उम्र के करीब 7.4 करोड़ युवा रोजगार की तलाश में रहे और कुल 20.1 करोड़ लोग बेरोजगार रहे। यह संख्या 2008 के वैश्विक संकट के शुरू होने से पहले के मुकाबले 3.1 करोड़ अधिक है। इस रूझान से युवा महिलाओं पर गैर-आनुपातिक तरीके से प्रभाव पड़ा। आईएलओ के महानिदेशक गाय रायडर ने कहा, 'वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है और इसका स्पष्ट रूप से असर हो रहा है।'आईएलओ एक विशिष्ट एजेंसी है जो सामाजिक न्याय के संवद्र्धन और मानव एवं श्रम अधिकारों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए काम करती है। उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, रोजगार तथा सामाजिक अंतराल को पाटने में नाकाम रही है। 2008 के वित्तीय संकट के हालात खराब हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि आय में असमानता ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और रोजगार में सुधार की प्रक्रिया में देरी बढ़ाई है।

औसतन 10 प्रतिशत सबसे अमीर लोग 30 से 40 प्रतिशत आय जबकि सबसे गरीब 10 प्रतिशत लोग कुल आय का करीब दो प्रतिशत अर्जित करते हैं। आईएलओ की रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 तक रोजगार के 28 करोड़ अतिरिक्त मौके पैदा करने होंगे ताकि वित्तीय संकट से पैदा अंतराल को पाटा जा सके

एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और आपात सेवाओं के वाहनों पर लालबत्ती लगाने की अनुमति

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सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों, दिल्ली पुलिस, एंबुलेंस,  फायर ब्रिगेड विभाग एवं अन्य आपात सेवाओं के वाहनों पर लालबत्ती लगाने की अनुमति दे दी है. साथ ही कहा है कि इन सेवाओं के वाहनों में जरूरत के मुताबिक अन्य रंगों की बत्ती का प्रयोग भी किया जा सकता है.

 
उल्लेखनीय है कि  दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में बदलाव की मांग करते हुए दलील दी थी कि नीलीबत्ती की तुलना में लालबत्ती काफी दूर से देखी जा सकती है और इसकी रोशनी इतनी तेज होती है कि कोहरे को भी भेद सकती है. इसलिए आपात सेवाओं के वाहनों को इसके प्रयोग की अनुमति दी जा सकती है.
 
 प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा दी गयी  अर्जी पर 10 दिसंबर, 2013 के अपने आदेश में बदलाव करते हुए सशस्त्र बलों, दिल्ली पुलिस, एंबुलेंस, अगिAशमन विभाग एवं अन्य आपात सेवाओं के वाहनों में लालबत्ती के उपयोग की अनुमति दी. आदेश में कहा गया है कि संविधान में उल्लिखित आठ सेवाओं-प्रतिष्ठानों को ही फ्लैश के साथ या उसके बगैर लालबत्ती लगाने की अनुमति रहेगी. आपात सेवाओं तथा पुलिस के वाहनों पर नीली बत्ती का उपयोग किया जा सकता है.
 
खंडपीठ ने कहा कि वर्दी वाले और गैर प्रतिबंधित एजेंसियां जिसे अपना दायित्व पूर करने के लिए तुरंत मौके पर पहुंचना होता है, आपातकालीन सेवा में लगे वाहन, जैसे - एंबुलेंस, अगिAशमन सेवाएं और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले पुलिस के वाहनों पर लालबत्ती नहीं लगायी जा सकती है, बल्कि ऐसे वाहनों पर नीली, सफेद और बहुरंगी बत्ती लगायी जा सकती है.

अवैध खनन मामले में जनार्दन रेड्डी को मिली जमानत

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उच्चतम न्यायालय ने खनन कारोबारी और कर्नाटक के पूर्व मंत्री जी जनार्दन रेड्डी को आज जमानत प्रदान कर दी। जनार्दन रेड्डी अवैध खनन मामले में आरोपी हैं, जिनमें उनकी ओबुलापुरम माइनिंग कंपनी (ओएमसी) जुड़ी है। शीर्ष अदालत ने उन्हें तब जमानत प्रदान की, जब सीबीआई ने कहा कि इसमें रेडडी से संबंधित मामले की जांच का काम पूरा हो गया है और आरोपपत्र एवं पूरक आरोपपत्र दायर किये जा चुके हैं।

एजेंसी की बात को रिकॉर्ड में दर्ज करते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच एल दत्तू के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि चूंकी जांच एजेंसी को जमानत देने पर कोई आपत्ति नहीं है, हम याचिकाकर्ता (रेड्डी) को जमानत देते हैं। पीठ में न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा भी शामिल है और इन्होंने भी अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह और रेड्डी के वकील दुष्यंत दवे की दलील पर विचार किया कि वह करीब चार वर्षों से जेल में हैं।

रेड्डी को जमानत देते हुए पीठ ने कुछ शर्ते भी लगाई जिसमें यह कहा गया है कि रेड्डी को जेल से छोड़ने के लिए 10-10 लाख रुपये के दो मुचलके पेश करने होंगे और वह अदालत के आदेश के बिना देश से बाहर नहीं जायेंगे। उनसे अपना पासपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया गया। शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि वह किसी भी रूप में गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे या साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे। रेड्डी ने उच्च न्यायालय द्वारा उनकी जमानत याचिका रदद किये जाने को चुनौती देते हुए 2013 में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। वह कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं और आंध्रप्रदेश जेल में बंद हैं। उन्हें 2011 में गिरफ्तार किया गया था। जनार्दन रेड्डी और उनके साले बी वी श्रीनिवास रेड्डी (ओएमासी के प्रबंध निदेशक) को कर्नाटक के बेल्लारी से सीबीआई ने 5 सितंबर 2011 को गिरफ्तार किया था और उन्हें हैदराबाद लाया गया था।

उत्तराखंड की विस्तृत खबर (20 जनवरी)

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समानान्तर सरकार चला रही सूबे की अफसरशाही
  • सीएम, मंत्री और अफसर एक-दूसरे तो पढ़ा रहे नसीहत का पाठ

देहरादून,20 जनवरी। उत्तराखंड राज्य में इस समय अफसर एक समानान्तर सरकार चलाने की भूमिका निभाते दिख रहे हैं। मंत्रियों की बात तो छोडि़ए मुख्यंत्री तक के आदेशों को दरकिनार किया जा रहा है। अफसर नियमों की अपने अंदाज में व्याख्या करके मनमानी कर रहे हैं और सरकार के सीएम और मंत्री महज अपनी बे-बसी का इजहार करने में लगे हैं। इन हालात में जनता की सुध कौन लेगा यह एक बड़ा सवाल फिजा में तैर रहा है। सूबे में ब्यूरोक्रेसी के निरंकुश होने की बात मंत्री सरेआम कह रहे हैं। मंत्री जनहित के किसी मुद्दे पर कोई निर्देश देता है अफसर उसे हवा में उड़ा दे रहे हैं। पैसा होने के बाद भी सूबे की जीवनरेखा बन चुकी 108 की गाडि़यों के पहिए कई रोज तक थम जाते हैं। सूबे के सबसे बड़े अस्पताल दून हास्पीटल में गरीबों को दवाएं मिलना बंद हो जाती है। बेरोजगारों को नियम के तहत होने वाले काम के लिए सड़को पर आकर प्रदर्शन करना पड़ रहा है। रोजाना कोई न कोई मंत्री अपने विभागीय सचिव की हुकुमउदूली का कोई नमूना मीडिया के सामने पेश कर रहा है। मंत्रियों को अफसरों की वजह से इस्तीफे तक की चेतावनी देनी पड़ रही है। यह बात अफसरों की समझ में आ गई है कि न तो कोई इस्तीफा देगा और न ही कोई एक्शन लेने की हिम्मत जुटा पाएगा। ऐसे में चलाते रहो अपनी समानान्तर सरकार। मामला मंत्रियों तक ही सीमित नहीं रह गया है। सीएम हरीश रावत के आदेशों और निर्देशों पर भी अफसर कान नहीं दे रहे हैं। उनके आदेश भी रद्दी की टोकरी में डाले जा रहे हैं। सीएम तमाम बार चेतावनी भी दे रहे है लेकिन किसी पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। परेशान सीएम को एक सार्वजनिक मंच से यहां तक कहना पड़ा कि अफसर उनके आदेशों की भी जलेबियां बना रहे हैं। पता नहीं क्या मजबूरी है कि सीएम को यहां तक कहना पड़ा कि वे होम्योपैथी (आसान करीके) से ही ब्यूरोक्रेसी का इलाज करेंगे। सवाल यह है कि जहां मेजर आपरेशन (सख्त कार्रवाई) की जरूरत हो वहां होम्योपैथी क्या करेगी। एक मजेदार बात यह भी है कि सीएम की ओर से मंत्रियों को और अफसरों की ओर से मंत्रियों को नसीहत दी जा रही है। सूबे के एक बेहद चर्चित अफसर ने तो एक काबीना मंत्री को उतवला तक कह डाला। इस पर भी अफसर का बाल बांका नहीं हुआ। जाहिर है कि अफसर इस राज्य में अपनी समानान्तर सरकार चला रहे हैं। ऐसे में जनहित के मुद्दे हाशिए पर हैं और एक-दूसरे तो नसीहत देने का दौर चल रहा है।

स्पीकर भी हैं नाराज
ब्यूरोक्रेसी की इस तरह का चाल से स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल भी बेहद आहत हैं। स्पीकर अफसरों की इस मनमानी पर कई बार अपनी पीड़ा जाहिर कर चुके हैं। इसके बाद भी सरकार ने अफसरों की समानान्तर सरकार पर अंकुश लगाने की कोई पहल नहीं की।

यहां तो सब बावन गज के
सूबे में बनी इस निरंकुशता की एक बड़ी वजह यह है कि यहां नेता हो या फिर अफसर, कोई खुद को किसी से कम समझता हीं नहीं हैं। हर कोई अहम ब्रह्मास्मि की तर्ज पर काम कर रहा है।

हरिद्वार में चल रहे खनन के खेल का असली जिम्मेदार आखिर कौन
  • खनन के खेल पर राज्य की ब्यूरोक्रेसी आखिर क्यों है मौन

देहरादून, 20 जनवरी । खनन को लेकर उत्तराखण्ड की राजनीति गरम है, हरियाणा से लेकर पष्चिमी उत्तरप्रदेष के तमाम खनन माफियाओं को पहले तो उत्तराखण्ड के मैदानी जिलों में खनन व्यवसाय करने के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन अब तो इनको राज्य की षान्त पर्वतीय वादियों की फि़जा खराब करने के लिए पहाड़ों तक पर खनन करने का ठेका दे दिया गया है। बात जहां तक हरिद्वार जिले की है कहने को वहां खनन पूर्णतः बंद है लेकिन वहां खनन मफियाओं द्वारा खनन अधिकारियों व राज्य के बड़े आला अधिकारी की षह पर आज भी खनन बदस्तूर जारी है। जिसका प्रमाण बीते दिनों मुख्यमंत्री द्वारा बनायी गयी एक टीम के सामने आ चुका है। गौरतलब हो कि प्रदेष के मुख्यमंत्री ने षासन स्तर राज्य के तीन तेज तर्रार अधिकारियों सचिव दलीप जावलकर व श्रीधर बाबू अदांकी सहित डीआइजी संजय गुंजियाल के नेतृत्व में एक टीम बनाकर हरिद्वार में खनन की जानकारी के लिए छापे मारने भेजी तो मामले सामने आये उनसे मुख्यमंत्री तो क्या समूचे प्रदेषवासियों की आंखें फटी की फटी रह गयी, इस टीम ने एक साथ 45 स्थानों पर चल रहे स्टोन क्रेषरों पर छापेमारी की जिसमें करोड़ों की खनन सामग्री पकड़ी गयी। हालांकि माफियाओं में से किसी ने पौड़ी तो किसी ने देहरादून से खनन सामग्री लाने की पर्चियां दिखायी लेकिन यह बात टीम की समझ में साफतौर पर आ गयी कि आखिर यह खनन सामग्री आयी कहां से है। खैर मामले की अभी जांच जांच चल रही है। लेकिन यह बात सबके सामने आ चुकी है कि राज्य के औद्योगिक विकास विभाग का एक आला अधिकारी व खनन विभाग से जुड़े अधिकारी इसके पीछे हैं। वहीं यह बात भी सामने आ चुकी है कि हरिद्वार में खनन न होने की बात कहने वाले अधिकारी मुख्यमंत्री सहित समूची सरकार को बरगला रहे थे। वहीं हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी की भूमिका को भी इस मामले में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता जिसने राज्य सरकार द्वारा 76 खनन पट्टों की अधिकारिक स्वीकृती के बाद भी उनको हरिद्वार क्षेत्र में वैधानिक रूप से खनन करने की स्वीकृति नहीं दी। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि तत्कालीन जिलाधिकारी व सरकार में बैठे एक आला अधिकारी की षह पर ही अब तक हरिद्वार में अवैध खनन चल रहा है। जिसमें सहारनपुर जिले सहित हरियाणा के कुछ खनन माफियाओं की इनसे सांठ-गांठ रही है और इस गोरखधंधे में एक अपर मुख्यसचिव का मुंह लगा खनन अधिकारी भीषामिल है। छापेमारी के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि जब हरिद्वार जिले में खनन पर पूर्णतः रोक है तो करोड़ों की खनन सामग्री कैसे हरिद्वार में आ गयी और इसका जिम्मेदार कौन है। क्योंकि राज्य सरकार द्वारा एक आदेष के तहत जिस जिले में खनन कार्य किया जा रहा है वहां की खनन सामग्री दूसरे जनपदों में ले जाना प्रतिबंधित है। इस छापेमारी के बाद क्या उन खनन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाही होगी अथवा जिनके संरक्षण में राज्य में अवैध खनन चल रहा है उन आला अधिकारियों का क्या होगा यह सवाल राज्य में गूंज रहा है। नैनीताल व उधमसिंह नगर सहित हरिद्वार में खनन को लेकर वर्तमान में जो माहौल खूनी माहौल है वह राज्यवासी देख चुके हैं। लेकिन खनन के इस खेल से उत्तराखण्ड कीषांत फि़जांओं का माहौल अब खनन के खेल खेलने वाले बर्वाद करने वाले हैं क्योंकि एक जानकारी के अनुसार राज्य के टिहरी, चमोली व पौड़ी सहित बागेष्वर चम्पावत व अल्मोड़ा जिलों तक की नदियों में खनन माफियाओं की नजर लग चुकी है और इनको वहां जाने की इजाजत तक मिल चुकी है। 

2018 में होने वाले राष्ट्रीय खेल राज्य के लिए एक बड़ा अवसर: मुख्यमंत्री

uttrakhand news
देहरादून 20 जनवरी (निस)।  अगले दो तीन वर्ष खेलों को समर्पित होंगे। वर्ष 2018 में उŸाराखण्ड में होने वाले राष्ट्रीय खेल राज्य के लिए एक बड़ा अवसर है। महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज, रायपुर में एथलेटिक सिंथेटिक ट्रेक का लोकार्पण करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि आगामी दो तीन वर्षाें में राज्य में विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। राष्ट्रीय खेलों से उŸाराखण्ड खेल के क्षेत्र में उभरेगा। राज्य में ग्रामीण, स्कूली, एनसीसी, महिला, वेटरन आदि खेल प्रतियोगिताएं आयोजित कर खेल का माहौल बनाया जाएगा। इसके लिए ब्लूप्रिन्ट तैयार किया जा रहा है। सीएम ने कहा कि विकास के लिए जनता की भागीदारी आवश्यक है। इसके लिए सरकार ने योजनाएं तैयार की हैं। स्मार्ट सिटी के साथ ही स्मार्ट विलेज विकसित किए जाएंगे। गांवों में आवश्यक सुविधाएं जुटाई जाएंगी। स्मार्ट विलेज के लिए स्थानीय जनप्रतिधियों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी बढ़ चढ़कर भागीदारी करनी होगी। गांवों में सामुदायिक सुविधाओं जैसे कि आंगनबाड़ी केंद्रों, स्कूल भवनों, के लिए स्थानीय लोग भवन बनाकर सरकार को किराए पर दे सकते हैं। सरकार द्वारा इसका बेहतर प्रतिफल दिया जाएगा। वृद्ध महिलाओं के एकाकीपन को देखते हुए आंगनबाड़ी केंद्रों पर उनके लिए दोपहर के भोजन की योजना प्रारम्भ की गई है।  मुख्यमंत्री ने कहा कि देहरादून का रायपुर क्षेत्र खेलों से जुड़ रहा है। एक समय आएगा खेलों से रायपुर की पहचान होगी। राज्य सरकार यहां अवस्थापनात्मक सुविधाएं विकसित कर रही है। इसमें स्थानीय लोगों का सहयोग भी जरूरी है। प्रारम्भ में कुछ कठिनाई आ सकती है परंतु जब ये सुविधाएं विकसित हो जाएंगी, क्षेत्रवासियों को इससे लाभ होगा। योजनागत विकास में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सीएम ने कहा कि हमने एमडीडीए के नजरिए को बदला है। एमडीडीए को केवल चालान की भूमिका तक न रखकर इसे निर्माण कार्यों का जिम्मा दिया गया है। सीएम ने कहा कि राज्य सरकार ने खेलों की बहुत सी सुविधाएं विकसित की हैं। परंतु इनका उपयोग भी होना चाहिए। एक के बाद एक खेलों का आयोजन किया जाएगा। वर्ष 2018 के राष्ट्रीय खेलों के लिए सरकार ने कमर कस ली है। इसमें खेल प्रशिक्षकों, खिलाडि़यों व खेल से जुड़े अन्य लोगों को भी आगे आना होगा। आशा है कि इससे यहां के खिलाडि़यों को बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने खेलों के विकास के लिए खेल नीति बनाई है। इसमें इस तरह के प्राविधान किए जा रहे हैं जिससे यहां अच्छे खिलाड़ी तैयार हों व खिलाडि़यों को रोजगार के पर्याप्त अवसर मिल सकें। सीएम ने महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज प्रबंधन को छात्रों की डाईट बढ़ाने के भी निर्देश दिए। खेल मंत्री दिनेश अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री के प्रयासों से 2018 के राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी का अवसर उŸाराखण्ड को मिला है। पूरा खेल विभाग इसकी तैयारियों में जुट गया है। पूरा प्रयास किया जाएगा कि राष्ट्रीय खेल पूरी भव्यता से आयोजित हों व इसमें उŸाराखण्ड राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी खेल शक्ति के रूप में उभर कर सामने आए। महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज को सेंटर आॅफ एक्सीलेंस बनाया जाएगा। क्षेत्रीय विधायक व संसदीय सचिव उमेश शर्मा काउ ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया। अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा, सचिव खेल शैलेश बगोली, सीएम के सलाहकार संजय चैधरी व अन्य विशिष्टजन मौजूद थे। इस अवसर पर गोल्डन माईल रेस का आयोजन हुआ। सीएम ने इसके विजेताओं को पुरस्कृत किया।

नीतीश कुमार के घर पर JDU की बैठक

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बिहार में राजनीतिक हालात का जायजा लेने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर पर जेडीयू नेताओं की बैठक शुरू हो गई है. यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और नीतीश के बीच कथित सत्ता संघर्ष और अंतर्कलह की खबरें हवा में हैं. नीतीश के 7 सर्कुलर रोड आवास पर पार्टी के जिला प्रमुखों और अन्य नेताओं के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी हिस्सा नहीं ले रहे हैं. मुख्यमंत्री ने केंद्रीय ग्रामीण विकास और स्वच्छता राज्य मंत्री रामकृपाल यादव के साथ मंगलवार को यहां एक घंटे लंबी बैठक की. गौरतलब है कि रामकृपाल कभी आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के विश्वासपात्र थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. रामकृपाल ने कहा कि जेडीयू के कुछ नेताओं के अवांछनीय बयानों से हुए विवाद से मुख्यमंत्री आहत महसूस कर रहे हैं.

जेडीयू के प्रदेश प्रवक्ता अजय आलोक ने नरेंद्र सिंह सहित राज्य के तीन मंत्रियों पर बीजेपी के कथनानुसार काम करने का आरोप लगाते हुए उनसे मंत्री पद छोड़ने की मांग की थी. नरेंद्र ने नीतीश के आवास पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के पहले जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से मुलाकात की और पार्टी के भीतर अनुशासन का कड़ाई के साथ पालन करने की मांग की. अजय आलोक ने जिन मंत्रियों पर यह टिप्पणी की थी उनमें वृषिण पटेल और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के पुत्र नीतीश मिश्र भी शामिल हैं. वशिष्ठ से मुलाकात के बाद नरेंद्र ने पत्रकारों से कहा कि उन्होंने अजय आलोक की टिप्पणी को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त की.



 
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