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विशेष आलेख : शहरों में बेहाल होता बचपन

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इन दिनों संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते (यूएनसीआरसी) की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में देशों द्वारा मंजूर की गई यह संधि, बच्चों के मानवाधिकारों का दस्तावेज है, जो वयस्कों को इस बात के लिए मजबूर करती है कि वह बच्चों को अधिकार-सम्पन्न व्यक्तियों के रूप में देखें, न कि वयस्कों पर निर्भर और उनके अधीन ‘प्रजा’ के रूप में। 

भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 39), राज्य को ऐसी नीतियां बनाने व लागू करने का निर्देश देते हंै जिनसे ‘‘बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और उनकी शोषण व नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए’’। भारत ने सन् 1992 में यूएनसीआरसी पर हस्ताक्षर कर, बच्चों के अधिकारों की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। यूएनसीआरसी में बच्चों की स्पष्ट परिभाषा दी गई है। इसके अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के सभी व्यक्ति, बच्चे हैं। परंतु भारत में बच्चों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और अलग-अलग कानूनों में बच्चों को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है। 

मध्यप्रदेश में शहरी बच्चों की स्थिति
मध्यप्रदेश में गरीबी के वर्तमान स्तर को देखते हुए यह स्पष्ट है कि राज्य के हर 10 शहरी झुग्गी निवासियों में से 4 गरीब हैं। योजना आयोग के अनुसार, राज्य की शहरी आबादी का 42 प्रतिशत से अधिक हिस्सा, गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने को मजबूर है। दुर्भाग्यवश, तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण, झुग्गियों में रह रहे गरीब बच्चों का स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और सुरक्षा बड़ी चुनौतियां बनकर उभरे हैं क्योंकि उन्हें न तो गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध हैं और ना ही खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छ व सुरक्षित वातावरण। इन कमियों का सबसे प्रतिकूल प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, विशेषकर नवजात शिशुओं और कम उम्र के बच्चों पर,  जिनका स्वास्थ्य, पूरी तरह से मां के दूध और पौष्टिक आहार की उपलब्धता, उनकी देखभाल करने वाले की योग्यता, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की गुणवत्ता और संपूर्ण समुदाय के सहयोग पर निर्भर करता है। 

बच्चों की उत्तरजीविता और पोषण-गंभीर चिंता के विषय
स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे की अपर्याप्तता, आर्थिक संसाधनों की कमी व खराब पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण, बच्चों की उत्तरजीविता पर प्रतिगामी प्रभाव पड़ता है, जो कि उनकी उच्च मृत्यु व रूग्णता दर में प्रतिबिंबित होता है। बच्चों के अधिकार का समझौता उन्हें उच्चतम स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर जोर देता है और कुपोषण व बीमारियों से उनकी रक्षा की जिम्मेदारी, राज्य को सौंपता है। शहरी गरीबों में, दो-तिहाई से अधिक (68 प्रतिशत) गर्भवती महिलाओं को कम से कम तीन प्रसूति-पूर्व स्वास्थ्य जांचों का लाभ नहीं मिलता, जिसकी अनुशंसा स्वास्थ्य विशेषज्ञ करते हंै। शहरी निर्धन वर्ग की महिलाओं की केवल 38 प्रतिशत प्रसूतियां प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में होती हैं। पिछले लगभग 10 सालों में, मध्यप्रदेश, देश में नवजात शिशुओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य बनकर उभरा है, जहां कि, नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के अनुसार, शिशु मृत्यु दर 56 प्रति हजार है। एसआरएस 2012 के आंकड़ों से यह पता चलता है कि मध्यप्रदेश, जन्मदर (26.6 प्रति हजार) की दृष्टि से तीसरे और मृत्युदर (8.1 प्रति हजार) की दृष्टि से देश के सभी राज्यों में दूसरे स्थान पर है। देश की औसत शिशु मृत्युदर 47 है जबकि सन् 2010 के आंकड़ांे के अनुसार, प्रदेश में यह दर 62 है। शहरी क्षेत्रों में देश की औसत शिशु मृत्युदर 31 है जबकि मध्यप्रदेश के शहरी इलाकों में यह 42 है। मध्यप्रदेश में नवजात मृत्युदर, देश के औसत 33 से कहीं ज्यादा, 44 है। जन्म के कुछ ही समय बाद, मध्यप्रदेश में 1000 बच्चों मंे से 34 की मृत्यु हो जाती है जबकि पूरे देश में यह दर 25 है। देश की प्रसवकालीन मृत्युदर 32 है और मध्यप्रदेश की 42। मध्यप्रदेश में हर 1000 बच्चों में से 8 मृत पैदा होते हैं जबकि देश में यह दर 7 है और मध्यप्रदेश के शहरी इलाकों में और अधिक, 10 है। पांच वर्ष की आयु के पूर्व बच्चों की मृत्युदर देश में 59 और मध्यप्रदेश में 82 है। शहरी इलाकों के संदर्भ में यह दरें क्रमशः 38 और 54 हैं। 5-14 आयु वर्ग के बच्चों की मृत्युदर, देश में 0.9 और मध्यप्रदेश में 1.1 है। इंस्टीट्यूट आॅफ डेवलपमेंट स्टडीज के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, देश में हर दिन 6 हजार बच्चे कालकवलित हो जाते हैं और इनमें से दो से तीन हजार बच्चों की मृत्यु कुपोषण के  कारण होती है। शहरी गरीब बच्चों में से केवल 53 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्रों में जाते हैं और केवल 10.1 प्रतिशत महिलाएं किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता के नियमित संपर्क में रहती हैं। मध्यप्रदेश के शहरी इलाकों में 69 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी प्रकार की खून की कमी से ग्रस्त हैं और 5 वर्ष की आयु से कम के 44 प्रतिशत बच्चे नाटे हैं अर्थात उनकी ऊँचाई, उनकी आयु के अनुरूप नहीं है और 32 प्रतिशत कमजोर हैं, यानी उनका वजन उनकी ऊँचाई के अनुरूप नहीं है। इसके पीछे कुपोषण या बीमारी या दोनांे हो सकते हैं। 

बच्चों का विकास-एक महत्वपूर्ण मुद्दा
झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैंः परिवार का बड़ा आकार, निम्न जीवनस्तर, खराब स्वास्थ्य, घर और आसपास के वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियां, प्रवास, भाषा की समस्या, अस्थिर जीविका व आर्थिक स्थिति, अभिभावकों का निम्न शैक्षणिक स्तर और स्कूलों में पर्याप्त सुविधाओं का अभाव। 6 से 14 वर्ष आयु समूह के बच्चों के एक अध्ययन में यह सामने आया कि उनमें से 50 प्रतिशत स्कूल नहीं जा रहे थे क्योंकि या तो उनका किसी स्कूल में दाखिला ही नहीं कराया गया था या उन्होंने बीच में पढ़ाई छोड़ दी थी। केवल 48.56 प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे थे या अपनी शिक्षा जारी रखे हुए थे। झुग्गियों में रहने वाले बच्चों में से अधिकांश अपने परिवार की पहली शिक्षित पीढ़ी होते हैं और उन मामलों में भी, जहां अभिभावक मात्र साक्षर हों, बच्चों को घर में उनकी पढ़ाई में कोई मदद नहीं मिलती। शहरी गरीबों की शैक्षणिक सुविधाओं तक पर्याप्त पहुंच नहीं है। सन् 2005 में शहरी क्षेत्रों में करीब 21 लाख बच्चे (पात्र आबादी का 4.34 प्रतिशत) स्कूल नहीं जा रहे थे, जबकि देश में ऐसे बच्चों की कुल संख्या 1 करोड़ 34 लाख थी। सन् 2007-08 में 15 साल या उससे अधिक आयु के शहरी निवासियों में से 18 प्रतिशत निरक्षर थे। जो साक्षर थे, उनमें से 0.9 प्रतिशत ने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी, 36.3 प्रतिशत ने माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा हासिल की थी और 28.1 प्रतिशत उच्च या उच्चतर माध्यमिक स्तर तक पढ़े थे। 

बाल सुरक्षा-अपारदर्शिता की स्थिति
बाल श्रम पूरे देश व राज्य में चिंता का विषय रहा है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 1.01 करोड़ बच्चे काम करते हैं, जिनमें से 25.33 लाख की आयु 5 से 9 वर्ष के बीच है। मध्यप्रदेश से संबंधित आंकड़े बताते हैं कि 14 वर्ष से कम आयु के 6,08,123 बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में और 92,116 बच्चे शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं। यह भयावह है कि राज्य में 9 वर्ष से कम आयु के 1,35,730 बाल श्रमिक हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 5 से 14 वर्ष की आयु के 1.5 करोड़ बच्चे विभिन्न उद्योगों में कार्यरत हैं। बच्चों को अक्सर ऐसे काम में लगाया जाता है जो उनकी आयु के हिसाब से बहुत कठिन होते हैं। उनके कार्यस्थलों पर साफ-सफाई नहीं होती और उन्हें अपने घर से बाहर रहकर कई घंटों तक काम करना पड़ता है। उन्हें उनके श्रम के अनुरूप वेतन नहीं मिलता और ना ही पेटभर खाना नसीब होता है। वह शिक्षा और अन्य लाभों से भी वंचित रहते हैं। पिछले एक दशक में, 20-24 वर्ष आयु वर्ग में बालवधुओं के प्रतिशत में केवल 6.8 की कमी आई है। सन् 1992-93 में यह आंकड़ा 54.2 प्रतिशत था जो 2005-06 में घटकर केवल 47.4 प्रतिशत हुआ। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पिछले तीन चक्रों के आंकड़ों से उभरी इस प्रवृत्ति को देखते हुए, अनुमानित है, कि सन् 2011 में बालवधुओं का प्रतिशत 41.7 रहा होगा। भारत में 20-24 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं (जनगणना 2011) में से 2.3 करोड़ बालवधु हैं। दुनिया की बालवधुओं में भारतीय बालवधुओं की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में 20 से 25 वर्ष की आयु की वह महिलाएं, जिनका विवाह उनकी 18वीं वर्षगांठ के पहले हो गया था, का प्रतिशत 53.8 है और उनमें से 72.3 प्रतिशत निरक्षर हैं। जो बच्चे बीच में स्कूल छोड़ देते हैं, उनमें से 69.4 प्रतिशत अपना विवाह हो जाने के कारण ऐसा करते हैं। नेशनल क्राईम रिकार्डस ब्यूरो की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, सन् 2011 में मध्यप्रदेश में बच्चों के विरूद्ध अपराध के 5,168 मामले दर्ज किए गए जो कि देश में हुए ऐसे कुल अपराधों का 13.54 प्रतिशत हैं। मध्यप्रदेश, शिशु हत्या (राष्ट्रीय औसत का 20.99 प्रतिशत), भ्रूण हत्या (राष्ट्रीय औसत का 30.48 प्रतिशत) व अन्य अपराधों (राष्ट्रीय औसत का 34 प्रतिशत) में देश में सबसे ऊपर है। सन् 2011 में बच्चों के विरूद्ध सबसे ज्यादा अपराध दिल्ली में हुए जबकि मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में क्रमशः बच्चों के बलात्कार और हत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा हुईं। मध्यप्रदेश में बच्चों के साथ बलात्कार की सबसे अधिक (1,262) घटनाएं हुईं। दूसरे स्थान पर रहा उत्तरप्रदेश (1,088) और तीसरे पर महाराष्ट्र (818)। देश में बच्चों के साथ बलात्कार की कुल घटनाओं में से 44.5 प्रतिशत इन तीन राज्यों में हुईं। स्कूलों, होस्टलों और बालगृहों में बच्चों को शारीरिक दंड देना सामान्य समझा जाता है और कुछ संस्थान, इसे बच्चों को सजा देने का सही तरीका मानते हैं। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब बच्चों के साथ शिक्षकों, वार्डनों इत्यादि ने क्रूर शारीरिक बर्ताव किया हो। 

बच्चों की भागीदारी-अब भी एक स्वप्न
बाल अधिकार समझौते में बच्चों की ‘विकसित होती क्षमताओं’ की अवधारणा शामिल की गई। ऐसा किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधि में पहली बार किया गया। समझौते के अनुच्छेद-5 के अनुसार, अभिभावकों और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी संभाल रहे अन्य व्यक्तियों के द्वारा बच्चों को दिशानिर्देश और मार्गदर्शन देते समय इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि बच्चों के अपने अधिकार भी हैं, जिनके इस्तेमाल का अवसर उन्हें मिलना चाहिए। यह  अवधारणा, बच्चों को उनके जीवन के बारे में निर्णयों में भागीदार बनाती है और उन्हें स्वतंत्रता उपलब्ध करवाती है। समझौते में इस बात पर जोर दिया गया है कि बच्चों के अधिकारों और उनकी क्षमताओं का सम्मान किया जाना चाहिए और उनकी योग्यता के अनुरूप, वयस्कों के अधिकार उन्हें हस्तांतरित किए जाने चाहिए। हर बच्चे को यह हक है कि वह अपने लिए प्रासंगिक जानकारियां प्राप्त करे, समझे और बताए। और उन्हें विचार करने व चयन करने की स्वाधीनता मिलनी चाहिए। कानून, नीतियों और आचरण में इस तरह के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तनों को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है जिनमें बच्चों के योगदान और उनकी क्षमताओं को अभिस्वीकृति मिले और अपने संबंध में निर्णय लेने के उनके अधिकार को मान्यता दी जाए। पिछले एक दशक में, इस समझौते के अनुच्छेद-12 के अनुरूप, बच्चों की भागीदारी के संबंध में जागृति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। परंतु बच्चों की सहभागिता मुख्यतः केवल उनकी राय लेने तक सीमित रहती है और उन्हें उन निर्णयों, नीतियों और सेवाओं - जो उनसे संबंधित हैं - को प्रभावित करने का अधिकार नहीं मिलता। कई बच्चे अदालतों, अस्पतालों, रहवासी व सुधारगृहों के संपर्क में आते हैं जहां जज, पुलिस, मजिस्ट्रेट, डाक्टर, नर्सें, मनोचिकित्सक, बच्चों की देखभाल करने वाले कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, युवा कार्यकर्ता व प्रशासक उनके बारे में सभी निर्णय लेते हैं। यह निर्णय बच्चों की क्षमताओं को ध्यान में रखे बगैर लिये जाते हैं। सामान्य प्रवृत्ति यह है कि बच्चों की क्षमताओं को कम करके आंका जाता है। यह न केवल बच्चों के अधिकारों के प्रति असम्मान है वरन् इससे समाज, चीजों को बच्चों के परिप्रेक्ष्य से नहीं देख पाता और ना ही उनकी योग्यता और क्षमता का इस्तेमाल कर पाता है। भारत में कानून तो पर्याप्त हैं परन्तु सबसे बड़ी समस्या उन्हें लागू करने की है। बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। बच्चों की आवाज को सुना जाना चाहिए और उनकी बेहतरी और विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अलग मंत्रालय बनाया जाना चाहिए। बच्चों के संबंध में नीतियां बनाने वालीं व उन्हें लागू करने वालीं संस्थाओं में बच्चों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। सभी बच्चों को समान अवसर उपलब्ध होने चाहिए चाहे वह किसी भी लिंग, वर्ग, धर्म, जाति या क्षेत्र के हों। निर्धन और हाशिए पर पड़े समुदायों के बच्चों को भी यह अवसर उपलब्ध होने चाहिए। भारतीय संविधान और संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते में बच्चों को उपलब्ध कराए गए अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। देश के सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 5 प्रतिशत बच्चों से जुड़ी योजनाओं और गतिविधियों पर खर्च किया जाना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बच्चे का वर्तमान बेहतर हो, तभी हम देश का भविष्य बेहतर बना पाएंगे। सरकारों को विधायी नीति व सेवाओं के संदर्भ में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों के साथ अधिकार-संपन्न नागरिकों की तरह व्यवहार किया जाए न कि एक ऐसे वर्ग के रूप में, जिसे केवल देखभाल की आवश्यकता है। ऐसी नीतियां बनाई जानी चाहिए जो सभी बच्चों को समान अधिकार उपलब्ध करवाएं, उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप विकास करने के अवसर मिलें और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध हो। और यह सब उन बच्चों को भी मिलना चाहिए जो वंचित वर्ग के हैं-जिनमें शामिल हैं लड़कियां, गरीब बच्चे, वह बच्चे जो सुधारगृहों आदि मंे निवास कर रहे हैं, विकलांग बच्चे और देशीय व अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चे। इस तरह का सांगठनिक ढांचा खड़ा किया जाना चाहिए जिसमें बच्चों के जीवन का़े प्रभावित करने वाले कानून या नीतियां बनाने से पहले उनकी राय ली जा सके। इसकी प्रक्रिया बच्चों की अलग-अलग क्षमताओं को ध्यान में रखकर निर्धारित की जानी चाहिए और उसमें सभी आयु वर्ग के बच्चों को शामिल किया जाना चाहिए। अंत में, सरकार को उपलब्ध संसाधनों में से अधिकतम संभव संसाधनों को बच्चों के सर्वोत्तम विकास के लिए निवेशित करना चाहिए। 






प्रदीप जुलु
(चरखा फीचर्स)

वेस्टइंडीज को हरा क्वार्टरफाइनल में पहुंचा भारत

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भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (नाबाद 45) ने एक बार फिर अपनी नेतृत्व क्षमता का दम दिखाते हुए आज वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट एसोसिएशन (वाका) मैदान पर हुए आईसीसी वर्ल्ड कप-2015 पूल-बी मुकाबले में वेस्टइंडीज को चार विकेट से मात देकर भारत को वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल में पहुंचा दिया। जीत के लिए 183 रनों के औसत लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम एक समय 30वें ओवर में 134 के कुल योग पर छह विकेट गंवा चुकी थी, लेकिन उसके बाद धोनी ने रविचंद्रन अश्विन (नाबाद 16) के साथ सातवें विकेट के लिए नाबाद 51 रनों की साझेदारी कर टीम को जीत दिला दी। भारत ने 39.1 ओवरों में छह विकेट पर 185 रन बनाकर चार विकेट से यह मैच जीत लिया। इस मैच के साथ धोनी के मुकुट में एक और हीरा जड़ गया और वह विदेशी धरती पर भी भारत के सबसे सफल कप्तान बन गए। धोनी के नेतृत्व में भारत की विदेशी धरती पर यह 59वीं जीत है, जिसे धोनी ने 112वें मैच में हासिल किया। 

इससे पहले यह कीर्तिमान सौरभ गांगुली के नाम था, जिन्होंने 110 मैचों में भारत को विदेशी धरती पर 58 मैचों में जीत दिलाई है। ओवरऑल जीत के मामले में धोनी पहले ही भारत के सबसे सफल कप्तान साबित हो चुके हैं। धोनी के नेतृत्व में आज भारतीय टीम ने 97वां मैच जीता। 90 जीत के साथ मोहम्मद अजहरुद्दीन इस सूची में दूसरे स्थान पर हैं। धोनी ने आज अजहरुद्दीन के भारत के लिए सर्वाधिक मैचों (174) में कप्तानी करने के रिकॉर्ड की भी बराबरी कर ली। भारत के लिए आज का दिन एक और उपलब्धि की बराबरी करने वाला रहा। भारत ने वर्ल्ड कप में लगातार सर्वाधिक आठ मैच जीतने के अपने पुराने रिकॉर्ड की बराबरी कर ली। भारतीय टीम पिछले वर्ल्ड कप के आखिरी चार मैचों में भी विजेता रहा था। इससे पहले भारत ने यह उपलब्धि 2003 के वर्ल्ड कप में हासिल की थी। वास्तव में भारतीय गेंदबाजों ने आज वाका स्टेडियम में भारत की जीत की नींव रखी। मैन ऑफ द मैच रहे मोहम्मद समी (35/3) की अगुवाई में भारतीय टीम ने कैरेबियाई टीम की पारी 44.2 ओवरों में 182 रनों पर समेट दी थी।

भारतीय पारी की शुरुआत भी अच्छी नहीं रही थी। रोहित शर्मा (7) के साथ भारतीय पारी की शुरुआत करने आए शिखर धवन (9) को पांचवें ओवर की पहली गेंद पर जेरोम टेलर ने पवेलियन भेजकर भारत को पहला झटका दे दिया। इस समय टीम की रनसंख्या केवल 11 थी। नौ रन बाद ही रोहित भी टेलर का शिकार हो गए।
इसके बाद विराट कोहली (33) और अजिंक्य रहाणे (14) ने मिल कर भारतीय पारी को संवारने की कोशिश की और तीसरे विकेट के लिए 43 रन जोड़े। आंद्रे रसेल ने हालांकि 15वें ओवर की आखिरी गेंद पर कोहली को मार्लन सैमुअल्स के हाथों कैच करा कर खतरनाक होती इस जोड़ी को तोड़ दिया। कुछ देर बाद ही अजिंक्य रहाणे भी रोच की गेंद पर विकेटकीपर दिनेश रामदीन को अपना कैच दे बैठे। उनका विकेट हालांकि विवादास्पद रहा। रामदिन द्वारा कैच पकड़े जाने के बाद रहाणे ने तीसरे अंपायर से रिव्यू मांगा था। सुरेश रैना 22 रन बनाकर आउट हुए।

समी के अलावा उमेश यादव और रवींद्र जडेजा ने दो-दो विकेट हासिल किए। रविचंद्रन अश्विन तथा मोहित शर्मा को एक-एक सफलता मिली। टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने उतरी वेस्टइंडीज के सात विकेट एक समय 25 ओवर से पहले ही 85 रनों पर गिर गए थे और ऐसा लगने लगा था कि कैरेबियाई टीम शायद 100 रनों के आस-पास सिमट जाएगी। इसके बाद लेकिन आठवें विकेट के लिए डारेन सैमी (26) और कप्तान जेसन होल्डर (57) के बीच हुई 39 रनों की साझेदारी ने टीम को इस संकट से उबार लिया। सैमी के पवेलियन लौटने के बाद जेरोम टेलर (11) के साथ होल्डर ने नौवें विकेट के लिए 51 रन जोड़े और टीम को 150 रनों के पार पहुंचाया। होल्डर ने 64 गेंदों की अपनी पारी में चार चौके और तीन छक्के लगाए और आखिरी बल्लेबाज के रूप में आउट हुए। इस दौरान हालांकि भारतीय क्षेत्ररक्षण बेहद औसत रहा और खिलाड़ियों ने कई कैच छोड़े।

कैरेबियाई टीम को पहला झटका पांचवें ओवर में आठ रनों के योग पर ड्वायन स्मिथ (6) के रूप में लगा। वेस्टइंडीज टीम के कुल योग में अभी सात रन ही और जुड़े थे कि मार्लन सैमुअल्स (2) दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से रन आउट हो गए। धीमी शुरुआत के बीच विस्फोटक बल्लेबाज क्रिस गेल (21) ने रनगति बढ़ाने की कोशिश की और नौवें ओवर की आखिरी गेंद पर एक शॉट हवा में उछाल बैठे। मोहित शर्मा ने उनका कैच लिया। गेल का विकेट समी ने हासिल किया। सबसे बड़ी सफलता मिलने के बाद अगले ही ओवर में भारतीय गेंदबाजों को दिनेश रामदीन (0) का भी विकेट मिल गया। उन्हें उमेश यादव ने बोल्ड किया। इसके बाद लेंडल सिमंस 9 रन और जोनाथन कार्टर 21 रन बनाकर पवेलियन लौटे। आंद्रे रसेल आठ रन बनाकर आउट हुए।

इस जीत के साथ भारत अपने चारों मैच जीतकर आठ अंकों के साथ पूल-बी में शीर्ष पर और मजबूत हो गया, जबकि पांच मैचों में दो जीत के साथ चार अंक हासिल करने वाली कैरेबियाई टीम के लिए आगे बढ़ने की संभावनाएं काफी धूमिल हो चुकी हैं।

निर्भया डॉक्युमेंट्री पर से हटे बैनः एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया

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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सरकार से निर्भया गैंगरेप पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री के प्रसारण पर लगाए गए बैन को हटाने की मांग की है। इस डॉक्युमेंट्री में 2012 के निर्भया गैंगरेप और मर्डर के बाद की स्थिति को दर्शाया गया है। गिल्ड ने कहा है कि यह कदम गैरजरूरी था। 

गिल्ड ने अपने बयान में कहा कि डॉक्युमेंट्री 'इंडियाज़ डॉटर'में एक ऐसे परिवार के साहस, समझबूझ और उदारवादी सोच को दर्शाया गया है जो अपनी बच्ची के साथ हुई इस तरह की बर्बरता से पीड़ित है और जहां महिलाओं के प्रति दोषी समेत वकील एवं शिक्षित वर्ग का इस तरह का शर्मनाक रुख है। 

एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में इस तर्क को खारिज किया जिसमें प्रतिबंध को न्याय के हित में और व्यवस्था बनाए रखने के लिए लगाने की बात कही जा रही है।

उत्तरपूर्वी नाइजीरिया में बोको हराम ने 68 की हत्या की

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बोको हराम का नाइजीरिया में आतंकी संगठन का आतंक जारी है । प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तरपूर्वी नाइजीरिया के जाबा गांव में एक नरसंहार में आतंकी संगठन बोको हराम के सदस्यों ने 68 लोगों की हत्या कर दी ।

मरने वालों में कई बच्चे शामिल हैं ।दो प्रत्यक्षदशियों एवं दो निगरानीकर्ताओं ने इस घटना की जानकारी दी । जान बचाने में सफल रही प्रत्यक्षदर्शी  ने मैडुगुरी में संवाददाताओं से कहा, भारी हथियारों से लैस आतंकी मंगलवार को बोर्नो प्रांत के गांव में सभी दिशाओं से घुस आए । उन्होंने भाग रहे स्थानीय लोगों पर गोलियां बरसायीं ।

मरने वालों लोगों में किशोर और बुजुर्ग शामिल थे। उसने कहा, मेरे वहां दोबारा लौटने की संभावना ना के बराबर है । मेरे चार पोते-पोतियों को मार दिया गया ।

बिहार : पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास का निधन

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और सत्ताधारी जनता दल (यूनाइटेड) के नेता राम सुंदर दास का शुक्रवार को यहां पर 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। परिवार के सदस्यों के मुताबिक, दास ने शुक्रवार तड़के पटना मेडिकल कॉलेज में अंतिम सांस ली। दास का विशेष परिधान कॉटन की धोती, कुर्ता और गांधी टोपी उनकी पहचान थी। उनके दो बेटे और एक बेटी है। कुछ वर्ष पहले उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया था। दास के निधन पर संवेदना व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इस सप्ताह की शुरुआत में दास को जब उम्र संबंधी बीमारियों के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया उसके पहले तक वह राजनीति में सक्रिय थे।

नीतीश कुमार ने कहा, ''दास का निधन पार्टी, बिहार और स्वयं मेरे लिए निजी तौर पर बड़ी क्षति है।''दास स्वयं किसी जगह पर बिना किसी सहारे के आ-जा नहीं सकते थे। उन्होंने 2014 में लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया राम विलास पासवान के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। जेडीयू के एक नेता ने कहा, ''पिछले साल वह लोकसभा में सबसे वृद्ध सदस्य थे और वह शायद लोकसभा के चुनाव में भी सबसे वृद्ध उम्मीदवार थे।''वह जनता पार्टी की सरकार में 1979 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। दास एक दलित नेता थे। वह 70 साल की उम्र में 1991 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे।

कांग्रेस लगातार चुनाव हारती रही तो पार्टी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

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बीते कुछ चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि कांग्रेस लगातार चुनाव हारती रही तो पार्टी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

जयराम रमेश ने कहा कि बीते कुछ चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा है. कांग्रेस अपने गढ़ राज्यों में भी हारी है. मजबूत बुनियाद वाले राज्यों में भी पार्टी हारी है. राहुल गांधी इस हकीकत को बखूबी समझते हैं. ये कोई एक या दो साल का काम नहीं है. ये 10 साल का काम है. राहुल इस बात को अच्छे से समझते हैं.

राहुल गांधी के छुट्टियों पर जाने की बात पर रमेश ने कहा कि मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता लेकिन ये तय है कि राहुल वापस लौटकर पार्टी को ऊर्जा प्रदान करने वाला नेतृत्व देंगे. रमेश ने मोदी सरकार को समाजिक आंदोलनों की तुलना में थिंक टैंक्स के प्रति ज्यादा संवेदनशील बताया है.

सायना नेहवाल ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन ओपन के सेमीफ़ाइनल में

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सायना नेहवाल ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन ओपन के सेमीफ़ाइनल में पहुंच गई हैं। उन्होंने क्वार्टर फ़ाइनल मुक़ाबले में चीन की यिहान वैंग को 21-19, 21-6 से हराया। सायना को ये मैच जीतने में महज 39 मिनट का समय लगा। ये पहला मौका है जब नेहवाल ने वैंग को हराया है। इसे उनके करियर की सबसे बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

सेमीफ़ाइनल में सायना का मुक़ाबला चीन के सून यू से होगा। सायना के करियर में ये दूसरा मौका है जब वे ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के सेमीफ़ाइनल में पहुंची हैं। इससे पहले 2010 में भी सायना नेहवाल यहां सेमीफ़ाइनल में पहुंची थीं, लेकिन यिहान वैंग की चुनौती से पार नहीं पा सकीं थी।

लेकिन इस बार चीन की शीर्ष तीन खिलाड़ी टूर्नामेंट के सेमीफ़ाइनल दौड़ से पहले ही बाहर हो चुकी हैं, ऐसे में सायना नेहवाल के सामने ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने का बेहतरीन मौका है। सायना अब तक इस खिताब को नहीं जीत सकी हैं। हालांकि 1980 में प्रकाश पादुकोण और 2001 में पुलेला गोपीचंद यहां कामयाबी हासिल कर चुके हैं।

‘जूते’ से मारने की सलाह देने वाली साध्वी के खिलाफ FIR दर्ज

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विहिप नेता साध्वी बालिका सरस्वती के खिलाफ भड़काऊ भाषण के जरिए सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में एक मामला दर्ज किया गया है। साध्वी बालिका सरस्वती यहां एक मार्च को आयोजित हिन्दू समाजोत्सव में प्रमुख वक्ता थीं। पुलिस ने बताया कि सांप्रदायिक सौहार्द पर जोर देने वाले एक संगठन कोमू सौहार्द वेदिके के दक्षिण कन्नड़ जिला अध्यक्ष सुरेश भट बक्रबेल की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया है। पुलिस के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत मामला दर्ज किया गया है।

साध्वी ने भारत में रह कर पाकिस्तान की प्रशंसा करने वाले लोगों के संबंध में विवादित टिप्पणी की थी। पुलिस ने पहले कहा था कि अगर भाषण के खिलाफ कोई शिकायत आती है तो मामला दर्ज किया जाएगा। इस बीच पुलिस उपायुक्त (कानून व्यवस्था) संतोष बाबू ने कहा कि मंगलुरू दक्षिण पुलिस स्टश्ोन को भी भाषण के खिलाफ एक शिकायत मिली थी। लेकिन एक ही घटना के संबंध में कई शिकायतें दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। इसलिए दोनों शिकायतों पर एक ही साथ जांच की जाएगी।

निर्भया डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर बैन की थरूर ने आलोचना की

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निर्भया डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर बैन के भारत सरकार के फ़ैसले की कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आलोचना की है। उन्होंने कहा कि निर्भया डॉक्यूमेंट्री पर बैन लगाकर सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को शर्मसार कर रही है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने निर्भया पर बनी डॉक्यूमेंटरी पर बैन लगाने को गलत बताया है। एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान जारी करके कहा है कि एक रेडियो स्टेशन रेडियो सिटी ने एपी सिंह के ख़िलाफ़ मुहिम तक शुरू कर दी है।

एडिटर्स गिल्ड ने पाबंदी हटाने की मांग की है। फ़िल्म पर पाबंदी पूरी तरह गलत है। ऐसा इस फ़िल्म के संदेश को लेकर गलतफ़हमी के चलते किया गया है। ये फ़िल्म निर्भया के परिवार के हौसले, उनकी संवेदनशीलता और उदार नज़रिए को दिखाती है। ये फ़िल्म गुनहगारों और उनके वकीलों की महिलाओं के प्रति शर्मनाक सोच को दिखाती है। गिल्ड का मानना है कि फ़िल्म लोगों को अपने बर्ताव को लेकर दोबारा सोचने पर मजबूर करती है। भारत सरकार तुरंत पाबंदी हटाए ताकि लोग एक सकारात्मक और दमदार डॉक्यूमेंटरी देख सकें। ये फ़िल्म महिलाओं की आज़ादी, उनके सम्मान और सुरक्षा से जुड़ी है।

निर्भया डॉक्यूमेंट्री : महिला विरोधी टिप्पणी पर वकीलों को कारण बताओ नोटिस

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बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने 16 दिसंबर 2012 को हुए गैंग रेप के मामले में बचाव पक्ष के दो वकीलों को कथित रूप से महिला विरोधी आपत्तिजनक टिप्पणियां करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किए।  बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कहा, 'हमने एम एल शर्मा और ए पी सिंह को बीबीसी की डॉक्युमेंटरी में कथित टिप्पणियां करने के मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं।'बीसीआई ने अपनी कार्यकारिणी समिति की बैठक के बाद करीब आधी रात को यह फैसला लिया। 

समिति ने पाया कि प्रथम दृष्ट्या यह इन वकीलों के खिलाफ पेशेवर कदाचार का मामला है। वकीलों को अधिवक्ता अधिनियम के प्रावधान के तहत नोटिस जारी किए गए हैं और यदि बीसीआई उनके जवाबों से संतुष्ट नहीं होती है तो वकालत करने के उनके लाइसेंस रद्द किए जा सकते हैं।  बीबीसी की विवादास्पद डॉक्युमेंट्री में शर्मा ने कथित रूप से कहा था कि यदि लड़कियां उपयुक्त सुरक्षा के बिना बाहर निकलती हैं तो उनके साथ ऐसी घटनाएं होगी ही। आरोप है कि दोनों वकीलों ने डॉक्युमेंट्री में महिलाओं के लिबास, शाम के बाद बाहर जाने, बॉयफ्रेंड के साथ जाने जैसी बातें का जिक्र कर कहा है कि इन कारणों से भी महिलाओं की सुरक्षा खतरे में पड़ती है। 

बीबीसी की डॉक्युमेंट्री में इन वकीलों के इंटरव्यू को आपत्तिजनक मान कर चौतरफा तौर पर कड़ी आलोचना हुई है। कार्रवाई करने की मांग उठने पर बार काउंसिल ने बैठक बुलाई। दोनों वकीलों ने अपनी सफाई में दिए मीडिया में दिए बयान में कहा है कि उन्होंने तो महिला सुरक्षा के तरीके सुझाए हैं और निर्भया केस के बारे में कुछ नहीं कहा है। शर्मा ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने किसी से कुछ भी गलत नहीं कहा है।

भारतीय मछुआरे सरहद पार करेंगे तो गोली मार दी जाएगी: रानिल

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श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने तमिल न्यूज चैनल से एक इंटरव्यू में कहा कि हमारी नेवी कानून के मुताबिक भारतीय मछुवारों पर कार्रवाई करती है। उन्होंने कहा कि जब भारतीय मछुवारे श्रीलंका के जलक्षेत्र में प्रवेश करते हैं तभी उन पर बल प्रयोग किया जाता है, इसलिए मछुवारों को हमारे जलक्षेत्र से दूर रहना चाहिए। मछुवारों के मुद्दे पर दोनों तरफ से बातचीत जारी है और भारतीय प्रधानमंत्री अगले हफ्ते श्रीलंका की यात्रा पर पहुंचने वाले हैं, ऐसे में विक्रमसिंघे की बेहद सख्त टिप्पणी आई है। विक्रमसिंघे ने शुक्रवार रात थांती टीवी से इंटरव्यू में कहा, 'यदि कोई मेरा घर तोड़ने की कोशिश करता है तो मैं उसे शूट कर सकता हूं। यदि वह मारा जाता है तो मुझे कानून इसकी इजाजत देता है। यह हमारा जलक्षेत्र है। जाफना के मछुवारों को मछली पकड़ने की इजाजत मिलनी चाहिए। हमलोग मछली पकड़ने से रोक सकते हैं। यहां भारतीय मछुवारे क्यों आते हैं? जाफना के मछुवारे यहां के लिए सक्षम हैं। एक उचित बंदोबस्त की जरूरत है लेकिन हमारे उत्तरी मछुवारों की आजीविका की कीमत पर नहीं।'

विक्रमसिंघे ने कहा, 'मछुवारों पर गोलीबारी मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है। आप हमारे जलक्षेत्र में क्यों आ रहे हैं? आप हमारे जलक्षेत्र से मछली क्यों पकड़ रहे हैं? आप भारतीय हिस्से में ही रहें। इसके बाद कोई समस्या नहीं होगी। कच्चातिवु श्रीलंका के लिए एक अहम सवाल है। कच्चातिवु श्रीलंका का हिस्सा है। इस पर दिल्ली की राय भी हमारी तरह ही है लेकिन मैं जानता हूं कि यह तमिलनाडु की सियासत का भी हिस्सा है।'भारत-श्रीलंका संबंध में चीन फैक्टर पर श्रीलंकाई पीएम ने कहा, 'हम भारत-श्रीलंका संबंध को चीन-श्रीलंका संबंध से अलग रखना चाहते हैं। दोनों देश हमारे लिए अहम हैं।'भारतीय नेताओं के खंडन को खारिज करते हुए विक्रमसिंघे ने स्पष्ट कहा कि 2009 में एलटीटीई के खिलाफ युद्ध में भारत ने श्रीलंका को मदद दी थी। उन्होंने ताना कसते हुए कहा कि राजनेताओं के बीच स्मरण शक्ति का जाना बहुत सामान्य सी बात है।

तमिल शरणार्थियों की श्रीलंका वापसी पर विक्रमसिंघे ने कहा कि ये अपनी जन्मभूमि पर आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि अभी बिल्कुल सही हालात हैं। श्रीलंकाई पीएम ने कहा, 'यदि इनके मन में शंका है और ये कुछ वक्त चाहते हैं तो इन्हें और समय मिलना चाहिए।'तमिलों के खिलाफ नरसंहार के लिए श्रीलंकाई सरकार की प्रतिबद्धता वाले उत्तरी प्रांत द्वारा पास किए गए नए प्रस्ताव की विक्रमसिंघे ने कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह मुख्यमंत्री का बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैया है। विक्रमसिंघे ने कहा, 'मैं इससे सहमत नहीं हूं। जब मुख्यमंत्री इस तरह के प्रस्तावों को पास करता है तो उसके साथ संवाद मुश्किल हो जाता है। हम तमिल नैशनल अलायंस के एमपी आर संपथन और दूसरे तमिल नेताओं के जरिए समस्या के समाधान की कोशिश कर रहे हैं। हां, यहां युद्ध हुआ था। लोगों की हत्याएं हुईं लेकिन सभी तरफ से। याद कीजिए यहां तमिलों के साथ मुस्लिम और सिंघली भी मारे गए थे।'

विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे पर 2005 के इलेक्शन में एलटीटीई नेता वी प्रभाकरण को पैसे देने आरोप लगाया। उन्होंने कहा, '2005 में जाफना के लोगों को वोट देने की अनुमति दी जाती तो 2009 में यहां पर जो कुछ भी हुआ इससे बचा जा सकता था। राजपक्षे को राष्ट्रपति किसने बनाया? साउथ के लोगों ने नहीं, यह सच है। यह राजपक्षे और एलटीटीई के बीच की डील थी। राजपक्षे ने एलटीटीई को पैसे खिलाए थे। जिन्होंने पैसे खाए उनमें से अमीरकांथन भी एक है जो अब भी मध्य-पूर्व में कहीं मौजूद है। इसी कारण से वह अच्छी तरह से जाना जाता है।'

नारी विशेष : नारी की तस्वीर नहीं, तकदीर बदलें

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विश्व महिला दिवस जैसे आयोजनों एवं दिवसों की उपयोगिता और सार्थकता तभी है जब नारी की कोरी तस्वीर बदलने की ही कोशिश न हो बल्कि तकदीर बदलने की दिशा में गति हो। इस दिवस के सन्दर्भ में एक टीस से मन में उठती है कि आखिर नारी का जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा। बलात्कार, छेड़खानी, भू्रण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी? कब तक उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा? कब तक खाप पंचायतें नारी को दोयम दर्जा का मानते हुए तरह-तरह के फरमान जारी करती रहेगी? भरी राजसभा में द्रौपदी को बाल पकड़कर खींचते हुए अंधे सम्राट धृतराष्ट्र के समक्ष उसकी विद्वत मंडली के सामने निर्वस्त्र करने के प्रयास के संस्करण आखिर कब तक शक्ल बदल-बदल कर नारी चरित्र को धुंधलाते रहेंगे? ऐसी ही अनेक शक्लों में नारी के वजूद को धुंधलाने की घटनाएं- जिनमें नारी का दुरुपयोग, उसके साथ अश्लील हरकतें, उसका शोषण, उसकी इज्जत लूटना और हत्या कर देना- मानो आम बात हो गई हो।  महिलाओं पर हो रहे अन्याय, अत्याचारों की एक लंबी सूची रोज बन सकती है। न मालूम कितनी महिलाएं, कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी। कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी। दिन-प्रतिदिन देश के चेहरे पर लगती यह कालिख को कौन पोछेगा? कौन रोकेगा ऐसे लोगों को जो इस तरह के जघन्य अपराध करते हैं, नारी को अपमानित करते हैं।

एक कहावत है कि औरत जन्मती नहीं, बना दी जाती है और कई कट्ट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हारती रही है। इसीलिये आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। पूरे पृष्ठ, जितने पुरुषों को प्राप्त हैं। पर विडम्बना है कि उसके हिस्से के पृष्ठों को धार्मिकता के नाम पर ‘धर्मग्रंथ’ एवं सामाजिकता के नाम पर ‘खाप पंचायते’ घेरे बैठे हैं। पुरुष-समाज को उन आदतों, वृत्तियों, महत्वाकांक्षाओं, वासनाओं एवं कट्टरताओं को अलविदा कहना ही होगा जिनका हाथ पकड़कर वे उस ढ़लान में उतर गये जहां रफ्तार तेज  है और विवेक अनियंत्रण हैं जिसका परिणाम है नारी पर हो रहे नित-नये अपराध और अत्याचार। पुरुष-समाज के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने को विवश होना पड़ता है।

‘मातृदेवो भवः’ यह सूक्त भारतीय संस्कृति का परिचय-पत्र है।  ऋषि-महर्षियों की तपः पूत साधना से अभिसिंचित इस धरती के जर्रे-जर्रे में गुरु, अतिथि आदि की तरह नारी भी देवरूप में प्रतिष्ठित रही है। रामायण उद्गार के आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की यह पंक्ति- ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ जन-जन के मुख से उच्चारित है। प्रारंभ से ही यहाँ ‘नारीशक्ति’ की पूजा होती आई है फिर क्यों नारी अत्याचार बढ़ रहे हैं?
वैदिक परंपरा दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में, बौद्ध अनुयायी चिरंतन शक्ति प्रज्ञा के रूप में और जैन धर्म में श्रुतदेवी और शासनदेवी के रूप में नारी की आराधना होती है। लोक मान्यता के अनुसार मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुण्य, बल, लक्ष्मी पशुधन, सुख, धनधान्य आदि प्राप्त होता है, फिर क्यों नारी की अवमानना होती है? 

नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण सम्मानजनक स्थान है। नारी धरती की धुरा है। स्नेह का स्रोत है। मांगल्य का महामंदिर है। परिवार की पी़िढ़का है। पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा, शाीतलता और शांति की अनुभूति होती है वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। सुप्रसिद्ध कवयित्रि महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था-‘नारी सत्यं, शिवं और सुंदर का प्रतीक है। उसमें नारी का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है, लूटी जाती है?

जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया... इट हैपन्स ओनली इन इंडिया- जब भी कानों में इस गाने के बोल पड़ते हंै, गर्व से सीना चैड़ा होता है। लेकिन जब उन्हीं कानों में यह पड़ता है कि इन पायल, कंगन और बिंदिया पहनने वाली लड़कियों के साथ इंडिया क्या करता है, तब सिर शर्म से झुकता है। पिछले कुछ दिनों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए जब अहसास हुआ कि भू्रण में किसी तरह अस्तित्व बच भी जाए तो दुनिया के पास उसके साथ और भी बहुत कुछ है बुरा करने के लिए। बहशी एवं दरिन्दे लोग ही नारी को नहीं नोचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले लोग और पंचायतंे भी नारी की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है, स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है। विश्व नारी दिवस का अवसर नारी के साथ नाइंसाफी की स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें पुरुष-समाज श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेलकर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है। 

एक वक्त था जब आयातुल्ला खुमैनी का आदेश था कि ‘जिस औरत को बिना बुर्के देखो- उसके चेहरे पर तेजाब फैंक दो’। जिसके होंठो पर लिपस्टिक लगी हो, उन्हें यह कहो कि हमें साफ करने दो और उस रूमाल में छुपे उस्तरे से उसके होंठ काट दो। ऐसा करने वाले को आलीशान मकान व सुविधा दी जाएगी। खुमैनी ने इस्लाम धर्म की आड में और इस्लामी कट्टरता के नाम पर अपने देश में नारी को जिस बेरहमी से कुचला उसी देश में आज महिलाएं खुमैनी के मकबरे पर खुले मुंह और जीन्स पहने देखी जाती हैं। वे कहती हैं कि हम नहीं समझतीं हमारा खुदा इससे नाराज़ हो जाएगा। उनकी यह समझ कि कट्ट्टरता के परिधान हमें सुरक्षा नहीं दे सकते, इसके लिए हमें अपने में आत्मविश्वास जगाना होगा। वही हमारा असली बुर्का होगा।

 नारी को अपने आप से रूबरू होना होगा, जब तक ऐसा नहीं होता लक्ष्य की तलाश और तैयारी दोनों अधूरी रह जाती है। स्वयं की शक्ति और ईश्वर की भक्ति भी नाकाम सिद्ध होती है और यही कारण है कि जीने की हर दिशा में नारी औरों की मुहताज बनती हैं, औरों का हाथ थामती हैं, उनके पदचिन्ह खोजती हैं। कब तक नारी औरों से मांगकर उधार के सपने जीती रहेंगी। कब तक औरों के साथ स्वयं को तौलती रहेंगी और कब तक बैशाखियों के सहारे मिलों की दूरी तय करती रहेंगी यह जानते हुए भी कि बैशाखियां सिर्फ सहारा दे सकती है, गति नहीं? हम बदलना शुरू करें अपना चिंतन, विचार, व्यवहार, कर्म और भाव। मौलिकता को, स्वयं को एवं स्वतंत्र होकर जीने वालों को ही दुनिया सर-आंखों पर बिठाती है।

नारी सृष्टि की वह इकाई है जिसे जीवन के हर पड़ाव पर जागरूक पहरी की तरह जीना होगा। उसका कर्तव्य और दायित्व ईमानदार प्रयत्नों के साथ जब सृजनात्मक दिशा में बढेगा तो वह अनगिनत सफलता के शिखर छू सकेगी। मगर जहाँ भी जिम्मेदारी का पक्ष कमजोर या निरपेक्ष बना, हर सुख दुख में बदल जाता है। संघर्षों से उसका व्यक्तित्व और कर्तव्य घिर जाता है, इसलिए नारी को अपने कार्यक्षेत्र में विशेष सावधानियाँ रखनी होगीं। आँधी आने से पहले ही उसे अपने घर के दरवाजे बंद कर लेने होंगे ताकि घर का आँगन गंदा न हो। अतः हमें अपने आसपास के दायरों में खड़ी नारी को देखना होगा और यह तय करना होगा कि घर, समाज और राष्ट्र की भूमिका पर नारी के दायित्व की सीमाएँ क्या हो?

जिस घर में नारी सुघड़, समझदार, शालीन, शिक्षित, संयत एंव संस्कारी होती है वह घर स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर लगता है क्योंकि वहाँ प्रेम है, सम्मान है, सुख है, शांति है,सामंजस्य है, शांत सहवास है। सुख-दुख की सहभागिता है। एक दूसरे को समझने और सहने की विनम्रता है। नारी अनेेक रूपों जीवित है। वह माँ, पत्नी, बहन, भाभी, सास, ननंद, शिक्षिका आदि अनेेक दायरोें से जुड़कर सम्बधों के बीच अपनी विशेष पहचान बनाती है। उसका हर दायित्व, कर्तव्य, निष्ठा और आत्म धर्म से जुड़ा होता है। इसीलिए उसकी सोच, समझ, विचार, व्यवहार और कर्म सभी पर उसके चरित्रगत विशेषताओं की रोशनी पड़ती रहती है। वह सबके लिए आदर्श बन जाती है।

नारी अपने घर में अपने आदर्शों, परंपराओ, सिद्धांतो, विचारों एवं अनुशासन को सुदृढ़ता दे सकें, इसके लिए उसे कुछेक बातों पर विशेष ध्यान देना होगा। नारी अपने परिवार में सबका सुख-दुख अपना सुख-दुख माने। सबके प्रति बिना भेदभाव के स्नेह रखे। सबंधों की हर इकाई के साथ तादात्मय संबंध जोड़े। घर की मान मर्यादा, रीति-परंपरा, आज्ञा- अनुशासन, सिद्धंात, आदर्श एंव रूचियों के प्रति अपना संतुलित विन्रम दृष्टिकोण रखें।अच्छाइयों का योगक्षेम करें एंव बुराइयों के परिष्कार में पुरषार्थी प्रयत्न करें। सबका दिल और दिमाग जीतकर ही नारी घर में सुखी रह सकती है।

बदलते परिवेश में आधुनिक महिलाओं के लिए यह आवश्यक है कि मैथिलीशरण गुप्त के इस वाक्य-”आँचल में है दूध“ को सदा याद रखें। उसकी लाज को बचाएँ रखें और भू्रणहत्या जैसा घिनौना कृत्य कर मातृत्व पर कलंक न लगाएँ। बल्कि एक ऐसा सेतु बने जो टूटते हुए को जोड़ सके, रुकते हुए को मोड़ सके और गिरते हुए को उठा सके। नन्हे उगते अंकुरों और पौधों में आदर्श जीवनशैली का अभिसिंचन दें ताकि वे शतशाखी वृक्ष बनकर अपनी उपयोगिता साबित कर सकें।

जननी एक ऐसे घर का निर्माण करे जिसमें प्यार की छत हो, विश्वास की दीवारें हों, सहयोग के दरवाजे हों, अनुशासन की खिड़कियाँ हों और समता की फुलवारी हो। तथा उसका पवित्र आँचल सबके लिए स्नेह, सुरक्षा, सुविधा, स्वतंत्रता, सुख और शांति का आश्रय स्थल बने, ताकि इस सृष्टि में बलात्कार, गैंगरेप, नारी उत्पीड़न जैसे शब्दों का अस्तित्व ही समाज हो जाए। 






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(बेला गर्ग)
फोन: 22727486 मो. 9811051133

बेटी की बलि ही क्यूँ?

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हाल ही में निर्भया कांड का एक प्रमुख आरोपी मुकेश ने जिस निर्लज्जता से घटना के लिए निर्भया को ही ज़िम्मेदार ठहराया, वह किसी भी सभ्य समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा है. फांसी के फंदे का इंतज़ार कर रहे इस आरोपी का बयान दरअसल हमारे घिनौने समाज का चेहरा उजागर करता है, जिसका सामना एक नारी रोज़ करती है. भले ही हम महिला सुरक्षित समाज की बात करते हों लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है. हर साल 8 मार्च को अंतरराश्ट्रीय महिला दिवस भी मनांते है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देष्य महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अधिकार दिलाने के साथ उनकी सुरक्षा भी सुनिष्चित करना है। इस दिन को पूरे विष्व की महिलाएं जात-पात, रंग-भेद, वेष-भूशा, भाशा से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस महिलाओं को अपनी दबी-कुचली आवाज़ को अपने अधिकारों के प्रति बुलंद करने की प्रेरणा भी देता है. लेकिन अब भी यह रस्मी कार्यक्रम से अधिक कुछ नहीं बन सका है.

इसमें कोई शक नहीं कि महिलाएं हर क्षेत्र में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। लेकिन 21 वीं सदी के इस दौर में जहां एक तरफ महिला सषक्तिकरण की बातें हो रहीं है, वहीं लाखों महिलाएं आज भी अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं। हमारे देश  में महिलाओं के साथ भेदभाव की कहानी पारिवारिक स्तर से शुरू हो जाती है। कई बार तो लड़की को दुनिया में आने से पहले ही बोझ समझकर गर्भ में खत्म कर दिया जाता है। अगर लड़की परिवार में जन्म ले भी लेती है तो लड़के के मुकाबले उसके साथ हर स्तर पर भेदभाव किया जाता है और तो और लड़कों के मुकाबले लड़कियों को षिक्षा देने में भी कमी की जाती है। इसके पीछे रूढ़िवादी समाज की सोच यह होती है कि लड़की पढ़ लिखकर क्या करंेगी, इसको तो षादी कर अपने घर जाना है? घर का सारा काम करने के बावजूद आज भी ज़्यादातर परिवारों में महिलाएं पुरूशों के बाद ही खाना खाती है। लड़कियों के अधिकारों का हनन तो सबसे पहले पारिवारिक स्तर पर ही होता है।

कहने को ज़माना बदल चुका है लेकिन कुछ लोग आज भी पुरानी सोच के साथ जी रहे हैं। लड़कियों को आज भी समाज में बुरी नज़र से देखा जाता है। इस आधुनिक दौर में भी कुछ लोग ऐसा करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। ऐसे परिवारों में अगर लड़का होता है तो पूरे घर में खुषी का माहौल छा जाता है। लेकिन लड़की पैदा हो जाए तो मातम सा छा जाता है। आखिर ऐसा क्यों? जंग का मैदान हो या खेल का मैदान या राजनीति अथवा कोई भी प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र, लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। इसके बावजूद लड़कियों को परिवार या समाज में उनका अधिकार मिलना तो दूर उन्हें जन्म से पहले ही मां के गर्भ में खत्म कर देने का घिनौना पाप जारी है। इसके अलावा अगर लड़की जन्म ले भी लेती है तो उसकी भावनाओं का हर पल गला घोटा जाता है। हमारे देश में आज भी ऐसे कई परिवार हैं जहां लड़कियां अपनी इच्छा के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं। इसके अलावा कुछ परिवारों में लड़की को नाना-नानी और दूसरे रिष्तेदारों के यहां भी जाने की इजाज़त नहीं क्योंकि माता-पिता को हमेषा इस बात का डर रहता है कि यदि उनकी बेटी बाहर निकली तो उसके साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए। ऐसी बातें सुनते-सुनते लड़कियां स्वयं भी घर से बाहर जाने से डरने लगी हैं। इसके पीछे बहुत से कारण है क्योंकि घर के साथ-साथ समाज में महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। अब समय की मांग है कि एक ऐसा वातावरण तैयार किया जाये जहाँ नारी के अधिकारों का हनन करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए. इसके लिए स्वयं महिलाओं को ही आगे आना होगा।

राजस्थान के बीकानेर से 100 किलोमीटर दूर बज्जु नामी एक गांव की निशा इसकी मिसाल है. यह वह क्षेत्र हैं जहाँ आज भी लड़कियों के जन्म पर आंसू बहाये जाते हैं. गैर सरकारी संगठन उरमुल सीमांत से जुड़ी निषा महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को रोकने के लिए पिछले कई सालों से काम कर रही हैं। निषा अपने स्तर पर लड़कियों के साथ अत्याचार को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। वह लड़कियों केे भेदभाव करने वाले लोगों को घृणा की निगाहों से देखती हैं। निषा ने फैसला किया कि वह अपने गांव में जन्म से पहले मार देने वाली बच्चियों को मरने से बचाएंगी। इसका एक जिंदा उदाहरण एक पांच साल की बच्ची है जिसकी पालन-पोशण वह स्वयं कर रही हैं। यह कहानी भी हमारे समाज की बच्चियों के प्रति घृणित सोच का उजागर करती है। निषा को जब इस बच्ची के जन्म से पहले पता चला कि इसकी मां गर्भवती है तो उसने इसकी मां की निगरानी शुरू कर दी. जब उसे डिलीवरी के लिए अस्पताल ले जाया गया तो उस महिला ने इस बच्ची को जन्म दिया। घर वाले बच्ची के पैदा होने से खुष नहीं थे। निषा ने उन्हें बहुत समझाया कि लड़की घर की लक्ष्मी होती है। इस बच्ची को आप लोग अपना लीजिए। निषा के लाख समझाने पर भी वह लोग नहीं माने और उल्टा निषा को ही कहने लगे कि अगर तुम्हें यह बच्ची इतनी पसंद है तो तुम्ही इसे गोद क्यों नहीं ले लेती? परिवार वालों के बच्ची को ठुकराने के बाद निषा ने बच्ची को गोद ले लिया और आज वह बच्ची पांच साल की है।

आप सोच सकते हैं कि आज भी हमारे देष में इस तरह की सोच रखने वालों की एक बड़ी तादाद है जो बच्ची को जन्म से पहले ही ठुकरा देते हैं या जन्म के बाद। निषा आज उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो लड़की को बोझ समझकर ठुकरा देते हैं। निषा ने बिना सोच समझे उस बच्ची को गोद लिया जिसे उसने जन्म भी नहीं दिया है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा और लड़कियों को ठुकराने के बजाय उन्हें अपनाना होगा। निषा जैसी बनकर हर बच्ची को बचाना होगा। सबसे पहले हमें बेटी बचानी होगी और उसके बाद उसे अच्छी षिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार देने होंगे तभी हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकते हैं। कहते एक मां के पढ़ने से एक पीढ़ी शिक्षित होती है क्योंकि बच्चे की परविष और उसको अच्छा-बुरा बनाने में मां का एक अहम योगदान होता है।
           
लड़कियों के पैदा होने पर खुष न होने की एक बड़ी वजह यह भी होती है कि अक्सर माता-पिता सोचते हैं कि गरीबी में हमारा जिंदगी गुज़रना मुष्किल हो रहा है। ऐसे में इसके बड़े होने पर हम इसकी षादी कैसे करेंगे। इसके विपरीत बेटे के प्रति अक्सर माता-पिता की सोच होती है कि यह पढ़ लिखकर हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। यही वजह है बेटों के मुकाबलेे बेटियों से भेदभाव होता है। हमें अपनी इस सोच को बदलना होगा। राज्य सरकारों, केंद्र सरकार, तमाम सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के लाख प्रयासों के बावजूद कन्या भ्रूण-हत्या के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। दुर्भाग्य से शिक्षित और संपन्न तबके में यह कुरीति ज्यादा है। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्‍तर्गत, गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्‍म से पहले कन्‍या भ्रूण-हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, इसके लिए सहयोग देना व विज्ञापन करना कानूनी अपराध है, जिसमें 3 से 5 वर्ष तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस कानून के तहत लिंग जांच करवाने वाले व करने वाले दोनों ही दोशी होते हैं। कानून के अनुसार लिंग जांच करने वाले चिकित्सक का पंजीयन हमेषा के लिए रद्द हो सकता है। बावजूद इसके कन्या भ्रूण-हत्या के मामलों में लगातार इजाफा होता जा रहा है। कन्या भ्रूण-हत्या के बढ़ते मामलों की वजह से स्त्री-पुरूश लिंगानुपात में कमी हो रही है और यह समाज के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है।

2011 की जनगणना के अनुसार राश्ट्रीय स्तर पर जहां एक हजार पुरूशों के मुकाबले 940 महिलाएं हैं वहीं जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार यह संख्या 922 थी। इसका मुख्य कारण यह है कि गर्भावस्था के दौरान ही बहुत से लोग यह पता करने की कोषिष करते हैं कि मां जिस बच्चे को जन्म देने वाली है वह लड़का है या लड़की। अगर वह लड़की होती है तो दुनिया में आने से पहले ही मां के गर्भ में खत्म कर दिया जाता है। यही वजह है कि देष में स्त्री-पुरूश अनुपात घट रहा है। हालांकि इसमें कमी अवश्य आई है. परंतु इसे अधिक संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता है. इसके लिए अभी भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। इसके लिए राज्य सरकारों, केन्द्र सरकार और गैर सरकारी संगठनो को एक मंच पर आकर साथ काम करना होगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 315 एवं 316 के अनुसार जन्म से पहले व जन्म के बाद कन्या षिषूू हत्या कानूनी अपराध है। लिंग चयन का मूल कारण पुरूष-प्रधान समाज में महिलाओं और लड़कियों की निम्‍न स्थिति है जो लड़कियों के साथ भेदभाव करता है। पुत्र को महत्व देने की संस्‍कृति के चलते लिंग निर्धारण के लिए अल्‍ट्रासाउंड तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिसके बाद प्रायः कन्‍या भ्रूण की हत्‍या कर दी जाती है। लिंग चयन दहेज प्रथा का समाधान नहीं है। दहेज प्रथा तब तक कायम रहेगी जब तक लोग बेटियों को भार समझते रहेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि समाज में महिलाओं को दोयम स्थिति से निकालकर बराबरी का दर्जा दिया जाए। लड़कियों को संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिले तो दहेज की मांग रूकने के साथ उन्हें बराबरी का दर्जा भी मिलेगा। इससे लोग बेटियों को बोझ नहीं समझेंगे जिससे कन्या भ्रूण हत्या पर भी लगाम लग सकेगी।
             
खतरे की घंटी बज चुकी है, इससे पहले की खतरा सिर पर आ जाए हमें इसके लिए जरूरी कदम उठाने होंगे। सोनोग्राफी के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सरकार की ओर से बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। बावजूद इसके इस तकनीक का गलत इस्तेमाल आज भी जारी है। जो लोग समाज और इंसानियत के कातिल हैं और जिन लोगों ने लड़कियों के कत्ल को अपना पेषा बना लिया है, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। लोगों को भी चाहिए कि वह मिलकर रोषनी की एक नई षमा जलाएं और समाज को रूढि़वादी सोच से निकालकर बुलंदी की ओर ले जाएं। हमें गंभीरता से सोचना होगा कि यदि हम घर में खुशियां चाहते हैं तो केवल लक्ष्मी की पूजा से यह संभव नहीं है। हमें बेटियों के जीवन और उसकी महत्ता को समझना होगा। वंश की चाहत में अंधे समाज को समझना होगा कि बेटी को जि़दगी दिये बिना बेटे के जन्म का सपना हक़ीक़त में नहीं बदल सकता। इस महत्ता को जितनी जल्दी समझा जायेगा भविष्य को उतना ही बेहतर बनाया जा सकेगा। (चरखा फीचर)

-रूखसार कौसर महर-

विशेष : भारतीय नारी का आभूषण लज्जा, संयम ही उसका चरित्र है

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परमपिता परमेश्वर अंनत है उनका चरित्र अनंत है उनकी लीलाओं का वर्णन करना कठिन है ,लेकिन हिन्दू धर्म के ग्रन्थों, वेद पुराण, शास्त्रों, उप निषद, धार्मिक साहित्य में  संसार के जीवों में मानव काया को सर्वोपरि बताया और सही भी है । संसार में कोई भी ऐसा जींव या व्यक्ति नही है जिसका कुछ न कुछ महत्व न हो, संसार के प्रत्येक प्राणीओं में ईष्वर का अंष है ईश्वरी कृपा ही प्रकृति का संचालन कर रही है । प्रकृति संचालन में आदि काल से शक्ति रूपा माॅ का पूरा दायित्व रहा है, भारतीय नारी पूज्यनीय है, हिन्दू धर्म ग्रन्थों में श्रीराम चरित मानस में मानव को जीने की कला दी गई हैं तथा महिलाओं को भारतीय संस्कृति व संस्कारों महारथी बताया गया है, देखा व सुना भी गया है आखिर चार दसक में महिलाओं का चरित्र क्यो गिर गया है, ?नारी अपना सम्मान क्यो खो रही है ? नारी का सम्मान क्या घट रहा है? नारी दहेज की बली क्यो चढ़ रही है ? महिलाओं में आत्महत्या या  हत्याओं की प्रबृति क्यो बढ़ी ? समाज की कथित महिलायें देह व्यापार में क्यो जा रही है ? इन सभी प्रश्नों के जबाब  भारत सरकार, राज्य सरकार, जिला सरकार व पंचायतें नही दे सकती है इन सभी प्रश्नों का उत्तर आज प्रत्येक मानव को सोचने केलिए बेबष करेगा, यह सोच हमारे व आप तक सीमित न रहे बल्कि प्रत्येक नागरिक को सोचना होगी । अन्यथा भारत की धर्म भूमि राक्षसों की भूमि होने जा रही है ।  इस संस्कृति व संस्कारों को केवल भारत की पूज्यनीय नारी महिलाये ही अपनी आत्मषक्ति साहस र्धेय,संयम त्याग तपस्या को जाग्रत कर ही जीवित रख सकती है । भारतीय नारी की आत्म ष्षक्ति जगाने केलिए यह आलेख लिखा जा रहा है । 

बुन्देलखण्ड के बाॅदा जिले में राजापुर नामक एक ग्राम है इस ग्राम में आत्माराम दूवे नाम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राम्हण रहते थें उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था संवत् 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में इन्ही भग्यवान् दम्पति के यहाॅ बारह महीने तक गर्भ में  रहने के पष्चात गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ । ऐसा लिखा व कहा गया है कि बालक पैदा होते ही रोता है लेकिन  बाबा तुलसीदास जी पैदा होने के साथ रोये नही किन्तु उनके मुख से भगवान श्री राम का नाम राम का शब्द ही निकला उनके मुख में पूरे बत्तीस दाॅत भी मौजूद थी । माता हुलसी ने इस बालक केे जन्म देने के साथ ही अपनी दासी चुनियाॅ को बालक के पालन पोषण की जिम्मेदारी देकर कहा कि इसकी जिम्मेदारी तू करेगी और अचानक माॅ हुलसी का निधन हो गया । पाॅच साल तक दासी चुनियाॅ ने तुलसीदास जी का पालन पोषण किया और उसका भी निधन हो गया । बाबा तुलसीदास जी का पालण पोषण भगवान शिव व माॅ पार्वती जी की कृपा से हुआ । आपको इधर यह बताना भी आवष्यक हो गया है कि माॅ दुर्गा के परम भक्त रामकृष्ण परमहंस थें उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माॅ काली उनको प्रसाद ग्रहण कराती थी । यह भारतीय संस्कृति का उदाहरण सामने आता है , इस प्रकार भारतीय महिलाओं के चरित्र का इतिहास यहीं से समझ लेना चाहिये कि एक माॅ का बालक के प्रति अगाध प्रेम व दासी पर बिश्वास, दासी चुनियाॅ ने किसी प्रकार से अपना कर्तव्य का निर्वाहन किया ।  भारतीय धर्म में जो भी देवी देवता है उनका अपना एक परिवार रहा , परिवार के साथ ही उन्होने इस संसार का कल्याण किया तथा सृष्टि का संचालन किया । बाबा तुलसीदास जी एक अनाथ होने के बाद भी उन्होने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया ज्ञान अर्जित किया तथा 15 साल की आयु में वह भगवान की लीलाओं को जीवन में अपना चुके थें लेकिन व्यक्ति की उम्र के साथ ही इन्द्रियाॅ विकसित होती है, प्रत्येक व्यक्ति को काम क्रोध लोभ मोह प्रेरित करता हैं इसी कारण तुलसीदास जी ने अपना वैबाहिक जीवन शुरू किया , वह अपनी पत्नि को अगाध प्रेम करते थें, इस कारण उनकी पत्नि मायके जाने पर वह भी एक दिन वह काम बासना से प्रेरित होकर पत्नी के घर रात्रि में गये और घर के दरवाजे बंद होने पर वह पीछे से मकान के अंदर प्रवेष कर गये तो पत्नी ने उन्हे प्रेरणा देते हुये कहा कि मेरे इस हाड़ माॅस केक शारीर में जितनी  तुम्हारी आशक्ति है उसे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा कल्याण हो जाता , आखिर यहाॅ भी  प्रेरणा देने बाली उनकी पत्नी भी भारतीय नारी थी । इसी कारण बाबा तुलसीदास जी भारत के महान संतो महापुरूषों में पहुॅचे । 

हम भारतीय है हम अपनी संस्कृति व संस्कारों को नही भूलना चाहिये, यदि हम अपनी संस्कृति व संस्कारों को भूल रहे है तो हम अपने कुल व बंशज का अपमान कर रहे है, आज हमें ईश्वरी प्रेरणा हुई कि हम अपनी संस्कृति व संस्कारों को अपनी बुध्दि विवके व ज्ञान का कुछ प्रकाश ऐसे लोगों के पास तक भेजे जो बर्तमान भौतिकवादी युग के चकाचैध में कुल, बंश, परिवार समाज को त्याग कर संस्कृति व संस्कारों का त्याग कर रहे है, बिदेषी सभ्यता के आगे झुक कर अपने अपने तर्क दे रहे है ।  हमारी संस्कृति व संस्कारों को बचाने केलिए हमें अपने बेद, पुराण,षास्त्र, उपनिषद, ग्रन्थ भागवत कथा, का अध्ययन करने का समय मिले न मिले लेकिन यदि आप हिन्दू है और आप हिन्दू धर्म में विष्वास करते है तो आपको बाबा तुलसीदास रचित श्रीराम चरित कथा का अध्ययन पठन पाठन आवसहयक करना चाहिये । यदि हम सकल्प के साथ बाबा तुलसीदास जी ने एक काव्य रचना ग्रन्थ जिसका नाम श्री राम चरित मानस है का संवत् 1631 में लिखना शुरू किया था जो दो साल सात महीने छब्बीस दिन में ग्रन्थ का लेखन समाप्त हुआ । 

इस ग्रन्थ में बाबा तुलसीदास जी ने मानव के  जन्म से लेकर मृत्यू तक के जीवन जीने की कला का चित्रण किया है । आखिर कुछ ही बर्षो में हमारी भारतीय संस्कृति व संस्कारों का विनाष क्यो होता जा रहा है मुझे ज्ञात है कि आज से लगभग 40 साल पूर्व प्रत्येक पंडितों के घरो में पूजा घर हुआ करता था, प्रत्येक ब्राम्हण परिवार में श्री रामचरित मानस ग्रन्थ हुआ करता था, सुबह नित्यक्रिया के बाद पूजा अर्चना होती थी, भगवान की लीलाओं का गायन पाठ होता था, प्रत्येक हिन्दू परिवारों में तुलसीघरा होता था ,तुलसी का पौधा आवष्यक होता था, हमारी घर परिवार की महिलायें, कन्यायेे मातायें बहनों में पूजा अर्चना, भजन पूजन, आरती की इतनी बड़ी आस्था होती थी कि बिना स्नान के जल या अन्य ग्रहण नही होता था, सप्ताह में दो से तीन उपवास हुआ करते थें, भोजन बनाते समय रसाई घर की मर्यादायें हुआ करती थी, साफ सफाई स्वच्छता होती थी, । 

भारतीय नारी का  जीवन उसके जन्म से माॅ की गोद से ही शुरू होता है, माॅ की गोद ही मानव की पहली गोद होती है इस गोद में नर हो या नारी सभी को संसार का पहला प्यार, सुख, सही शिक्षा, सामाजिक, व्यवहारिक,नैतिक शिक्षा के साथ साथ संस्कृति व संस्कार मिलते है ।  पिता का महत्व तो परिवार का संचालन रहा है । माता का घर परिवार समाज में सबसे ऊॅचा स्थान रहा है ।  भारतीय नारी का जहां सम्मान होता है वहाॅ देवताओं का निवास बताया गया है , यह बात सही भी है , संसार में स्वर्ग की कल्पना करने बालों केलिए बाबा तुलसीदास जी लिखते हैं जहां सुमति तहां संपत्ति नाना- जहां कुमति तहां विपती निधाना ।। इसलिए परिवार में संस्कृति एवं संस्कारों के साथ सुमति आवाष्यक है । यदि हम इस चैपाई मंत्र को चिन्तन करें व जीवन में पालन करने का प्रयास करना ष्षुरू करदें तो जीवन में अमूल्य परिवर्तन नजर आ सकते है । इसी प्रकार एक महापुरूष ने लिखा है बिना बिचारे जो करें पाॅछे के पछताॅय, काम बिगारे आपनो जग में होत हॅसायें , इसलिए बिना सलाह व बिचार के कोई कार्य नही करना चाहिये । 

हमारी संस्कृति को बाबा तुलसीदास जी भगवान शंकर जी व सती  जी के संवाद से संदेश दिया कि पति-पत्नि के बीच संदेह ही विवाद का कारण होता है, भगवान षिव जी भगवान श्रीराम को मन से  प्रणाम करते है, माॅ सती जी को अह्म होता है कि मेरे पति से बड़ा कौन है जो उन्हे प्र्रणाम करते है ?  पति के मना करने पर वह भगवान श्री राम की परीक्षा लेती है और पति के पूॅछने पर वह झूठ बोलती है एक झूठ बोलने के कारण माॅ  सती जी का त्याग हुआ तथा  दूसरा अपराध माॅ ने पिता जी के यहाॅ यज्ञ उत्सव होने पर बिना बुलाये जाने पर अपने त्याग करना पड़े आत्म हत्या करना पड़ी,, । यदि भगवान श्री षिव के साथ सती जी ने मन से कथा सुनी होती तो उन्हे आत्म हत्या नही करना होती । दूसरा यहाॅ माॅ सती ने भगवान से मरते समय यह बर माॅगा कि मेरा यह तन केवल जीवन जन्म-जन्म तक षिव जी को समर्पित है, दूसरे केलिए नही है । इसलिए उनका अवतार भगवान केलिए ही हुआ है । प्रत्येक महिलाओं को जीवन संचालन करने केलिए पति पत्नि के बिचारों को मिलाकर चलाना होता है । पति का भी दायित्व है कि जो भावना अपनी पत्नि से रखता है वह अपने जीवन में भी उनको उतारे ।  कामबासना क्षणिक आनंद है इस है इसको संयम में रखे । 
        
श्रीराम चरित मानस में भगवान श्रीराम अवतार लेने के बाद भी अपनी माॅ को अपने रहस्य को बताते है उजागर करते है , अपनी बाल लीलाओं, भाईयों का प्रेम, गुरू षिष्य की मार्याओं, का किस तरह पालन किया राजा दषरथ जी व राजा जनक ने अपनी मर्याओं का किस तरह से पालन किया । आज आवश्याकता है कि हम अपनी संस्कृति में आ रही गिरावट को बचाने केलिए हम सबसे पहिले अपना सुधार करे अपने परिवार में सुधार करें , अपने घर में श्रीराम चरित मानस पाठ शुरू करावे , घर में बच्चों को अध्यात्मिकता से जोड़े उन्हे अपनी धर्म संस्कृति से जोड़े ।  

राजा जनक जी ने अपनी पुत्रिओं को किस तरह से संस्कार दिये, राजा जनकी की धर्म पत्नि ने विदाई के समय अपनी पुत्रिओं को किस तरह के उपदेष षिक्षा दी । यहां राजा दरषथ जी ने  अपनी पत्निओं को संस्कृति व संस्कार देते हुये विवाह के बाद बहुओं के अपने घर आगमन पर उपदेष देते हुये कहते है कि हमारी बहुये दूसरे घर से हमारे घर आई है उनकी देख भाल सुरक्षा आॅखों के बीच नयन की तरह करना , यह संस्कृति है ।  मर्यादाओं को ध्यान रखते हुये बहुत के सेज रत्नों से जडि़त सजाये जाते है, बच्चों को सुलाया जाता है सभी कार्य हम आप जानते हुये भी संस्कारों एवं मर्यादों में अच्छे लगते है । घर मे आग किस तरह लगाई जाती है परिवारों में किस तरह से बटवारा हो , महिलाओं की बुध्दि महिलाये किस तरह समाप्त या नष्ट करती है यह कुवड़ी मंथरा से सीखना चाहिये , यदि आपके घर में सुख ष्षाॅति है तो मंथरा पूरे परिवार को बिखराने में मदद करती है हमें आज प्रत्येक बिन्दुओं पर चिन्तन करना होगा ।  यह प्रेरणा केवल हमे श्री राम चरित मानस ही देती है । जहां तक माता-पिता, गुरू की आज्ञा का पालन की संस्कृति है तो हमें भगवान श्री राम के जीवन से ही सीखना होगी ।  भगवान श्रीराम जब पिता की आज्ञा से बन जाते है तो यहां भारतीय संस्कृति व संस्कारों की किस तरह से परीक्षा हुई जिसका विवरण करना कठिन है लेकिन बाबा तुलसीदास ने मर्याओं को ध्यान में रखकर राज महन की मर्यादाओं, राजा एवं प्रजा की मर्यादाओं राजा व मंत्री की मर्यादाओं को पूरी तरह से प्रदर्षित किया ।  आज देष में छुआ छूत व जातिओं में बिभाजन की बात है तो हिन्दुओं में सैकड़ों जातियाॅ हो चुकी है । हिन्दुओं ने धर्म का परिवर्तन क्यो किया ...? इस पर चिन्तन नही किया ।  यदि भारत में हम हिन्दू है हम भारतीय है तो यह समस्यायें नही होती । लेकिन भगवान श्री राम चन्द्र जी जब बन जाते है तो वह दीन हीन दलितों को ही अपना मित्र बनाते है उनका साथ लेते है , सबरी के जूठे बैर खाकर यह सन्देष देते है कि निर्मल मन का प्यार ही  प्रभु से जोड़ता है ।  आज का प्रेम या प्यार कामबासना तक ही समिटता जा रहा है । आखिर मानव का पतन क्यो हो रहा है ? इन बातों केलिए न तो व्यक्ति के पास समय है  नही चिन्तन कर रहा है । इसका सीधा कारण है कि जिन  महिलाओं में भारतीय संस्कृति व संस्कारों को नही अपनाया है वह न तो अपने पति से स्वंय सन्तुष्ट रहती है न पति को सन्तुष्ट कर पाती है ।  अपनी इच्छाओं की साधना नही कर पाती है । माता जानकी जी अपने पति का विरह सहन नही कर सकी और 14 साल बनवास में साथ रही पति की सेवा किस तरह की इसका अपना इतिहास है । माता जानकी जी ने कहा कि जिस प्रकार बिना जींव के देह ष्षरीर बेकार है , बिना पानी के नदी है उसी प्रकार पत्नि केलिए उसका जीवन पति के बिना अधूरा है, ।  भाई प्रेम तपस्या हमें लक्ष्मन जी व भरत जी के त्याग व परिश्रम से सीखने को मिलता है  ।  नारी को किस तरह जीवन जीना चाहिये यह हमारे ग्रन्थ काव्य संग्रह बताते है । आज भारत देष में महिलाओं के सहन सहन व उनके भोजन को लेकर बहस छिड़ जाती है ।  हमारे इतिहास में नारद जी ने भी पत्रकारिता का कार्य किया लेकिन उन्होने समाज व देष हित केलिए पत्रकारिता की  पापीओं व दुष्टो राक्षसो का बिनाष कराया, अपराध करने बाला व्यक्ति अपना आत्मबल समाप्त कर देता है  तीन लोकों में ष्षासन करने बाला रावण जब गलत कार्य करने गया तो उसकी बुध्दि नष्ट हो गई और वह चोर व कुत्ते की तरह हो गया उसका बिरोध एक छोटे से गीध राज ने किया और उसे घायल किया , भले ही गीध राज की मौत हुई लेकिन उसने बिरोध किया , वही अंगद राजा थें और एक असहाय महिला का अपहरण होकर रावण लेकर जा रहा है उसने उसकी मदद नही की हम इस प्रकार कह सकते है कि यहांॅ भी माता जानकी जी ने दयाभाव व अभिषाप के डर से रेखा का उल्लघंन किया जिससे उन्हे परेषानी हुुई और एक रावण बंष का नाष हुआ । बाबा तुलसीदास जी ने जो ग्रन्थ लिखा है उस पर संवत् 1631 से आज तक लाखों लोगों ने चिन्तन किया और लिखा है करोड़ों  लोगों ने अपने जीवन का आंनद उठाया तो हम आप क्यो भूले हुये है । अपने जीवन को भगवान भक्ति के साथ साथ मर्यादाओं व संस्कृति सस्कारो को अपना लेना चाहिये ।  यह जीवन क्षणिक है उसका महत्व समझों , हमार अंदर क्या बुराईयाॅ है उन्हे खोजे उनका त्याग करें , दूसरो की बुराईओं को खोजने की अपेक्षा उनकी अच्छाईयों को खोजकर उसे प्रेरित करें तथा उन्हे अपनाये ।  महिलायें संस्कारों से भरी है , सरल व सहज होती है उन्हे प्रोत्साहित करते हुये उनके चरित्र की रक्षा करें । महिलाओं का आत्मबल उनकी लज्जा उनका चरित्र होता है , किसी भी हालत में महिलाओं को अपने चरित्र का हनन नही होना देने चाहिये भले ही उनका जीवन समाप्त हो जाये क्यो महिलाये ही सृष्टि की संचालन कर्ता होती है वह मायके व ससुराल दो परिवार की संचालन कर्ता हैं इसलिए अपना जीवन का महत्य समझे  ।   संमस्याओं से मुकावला करना सीखे आत्म हत्या कोई समाधान नही होता है ।  कोई भी कार्य करने के पूर्व उसके परिणामों को सोचें ।  आत्म सम्मान से जीने बाली  महिलायें ही समाज में सम्मान पाती है ।          






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(लेखक-संतोष गंगेले)
अध्यक्ष गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब मध्य प्रदेष


वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता का निधन

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वरिष्ठ पत्रकार और लेखक विनोद मेहता नहीं रहे। लम्बी बीमारी के कारण आज उनका निधन हो गया। वह 73 वर्ष के थे। आउटलुक पत्रिका के संस्थापक संपादक ने अखिल भारतीय अयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली जहां उन्हें भर्ती कराया गया था। एम्स के प्रवक्ता अमित गुप्ता ने कहा कि उनका निधन विभिन्न अंगों के काम करना बंद करने के कारण हुई।

मेहता का जन्म 1942 में रावलपिंडी में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। मेहता साहसपूर्ण पत्रकार के रूप में जाने जाते थे। वह फरवरी 2012 तक आउटलुक के एडिटर इन चीफ थे। आउटलुक में काम करने से पहले उन्होंने तीन दशक पहले दिल्ली में पायनियर अखबार को सफलतापूर्वक पेश किया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेहता के निधन पर शोक प्रकट किया है। मोदी ने ट्वीट किया, अपने विचार में स्पष्ट और बेबाक विनोद मेहता को एक शानदार पत्रकार और लेखक के रूप में जाना जायेगा। उनके निधन पर उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं।

नागालैंड में बलात्कार के एक आरोपी की पीटकर हत्या मामले में 18 लोग गिरफ्तार

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दीमापुर में भीड़ द्वारा जेल से खींचकर बलात्कार के एक आरोपी की पीटकर हत्या करने के मामले में कम से कम 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उधर राज्‍य में इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं कल शाम 6 बजे तक के लिए रद्द कर दी गई हैं। एक वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया कि दीमापुर में भीड़ द्वारा जेल तोड़कर आरोपी को बाहर निकालने के मामले में किसी भी अधिकारी के संलिप्‍त होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

एनडीटीवी से बात करते हुए नागालैंड के आईजी(रेंज) वबांग जमीर ने बताया, 'हम और लोगों की पहचान करने में जुटे हैं और हमें उम्‍मीद है कि आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां होंगी। उन्‍होंने बताया कि स्थिति तनावपूर्ण मगर नियंत्रण में है। कर्फ्यू जारी है और गाड़ियों अथवा लोगों की आवाजाही पूरी तरह बंद है।

वहीं हत्या के इस मामले में असम के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी है। पुलिस ने कहा कि इस घटना की मोबाइल वीडियो क्लिपिंग के आधार पर गिरफ्तारियां की गई हैं। करीमगंज समेत असम के विभिन्न हिस्सों में पीटकर की गई हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की खबरें आई है और किसी अप्रिय घटना से निपटने के लिए सख्त नजर रखी जा रही है।

बलात्कार के आरोपी सैयद फरीद खान के शव को शनिवार को उसके गृह शहर करीमगंज ले जाया गया जब नगालैंड के अधिकारियों ने इसे सुपूर्द किया। खान को दीमापुर में एक महिला से बलात्कार करने के आरोप में 24 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था और उसे अगले दिन दीमापुर केंद्रीय कारागार में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। पांच मार्च को भीड़ ने जेल तोड़कर उसे बाहर निकाला और नंगा करके पीटाई की और पत्थरों से मारा और घसीटा। इसके कारण घायल होने से उसकी मौत हो गई।

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय महिला की चाकू मारकर हत्या

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ऑस्ट्रेलिया में आईटी सलाहकार एक भारतीय महिला (41) की उसके घर से महज 300 मीटर की दूरी पर बर्बर तरीके से चाकू मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने इस हमले की जांच शुरू कर दी है।

पुलिस ने रविवार को बताया कि सिडनी के उपनगर में जब भयानक हमला हुआ तब प्रभा अरूण कुमार अपने परिवार के किसी सदस्य से फोन पर बात कर रही थीं।

 पार्क को जाने वाला यह रास्ता उनके वेस्टमीड स्थित घर से बेहद करीब था। बीती रात को प्रभा की पैरामैट्टा पार्क में चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी, उनका एक बच्चा भी है। पुलिस ने इसे बेहद ‘बर्बर हमला’ करार दिया। उनके शव को एक व्यक्ति ने देखा था और उनके शरीर से बहुत खून बह रहा था। प्रभा के एक मित्र ने डेली टेलीग्राफ को बताया कि उन्होंने प्रभा को कई बार पार्क के खतरे से आगाह किया था।

पैरामैट्टा पुलिस के सुपरींटेंडेंट वायनेक्स कॉक्स ने इससे पहले कहा था कि महिला तब स्टेशन छोड़ चुकी थीं और वह आर्गाइल स्ट्रीट के साथ साथ पार्क पैरेड पर चल रही थीं, तभी पैरामैट्टा पार्क में उन पर हमला हुआ।

भूमि अधिग्रहण विधेयक पर लोकसभा में आज होगी चर्चा

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भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा और सदन में इस विधेयक पर चर्चा की जाएगी। लोकसभा में आज इस विधेयक को चर्चा कर पारित किये जाने की संभावना है। गौर हो कि विवादास्पद भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर विचार विमर्श के लिए आठ घंटे तय किए गए हैं। लोकसभा में चर्चा आज शुरू होगी और मंगलवार को भी जारी रह सकती है।

भूमि विधेयक पर संशोधनों को लेकर विपक्ष के हमले का सामना कर रही सरकार ने अपनी परियोजनाओं के लिए भूमि का अधिग्रहण करने वाले निजी निकाय की परिभाषा को संभवत: सीमित किया है। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने जमीन विधेयक में संशोधन के संकेत भी दिए हैं। भूमि अधिग्रहण विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए लोकसभा में लाए जाने के पहले सरकार ने विपक्ष को संकेत दिया कि वह प्राइवेट एनटिटी (निजी इकाई) शब्द को बदल कर प्राइवेट इंटरप्राइज (निजी उद्यम) करने के लिए सरकारी संशोधन लाएगी।

इस कदम से निजी क्षेत्र के उन लोगों पर अंकुश लग सकेगा जिनकी योजना भूमि अधिग्रहण की है। ऐसी चिंता जताई गई थी कि कोई निजी व्यक्ति किसी कालेज या किसी संस्थान आदि के लिए जमीन अधिग्रहण करने की खातिर अपने को ‘निजी इकाई’ के रूप में पेश कर सकता है। सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्री अरुण जेटली, ग्रामीण विकास मंत्री बीरेंद्र सिंह और संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू लोकसभा के विभिन्न दलों के नेताओं के साथ आज सुबह इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे। सूत्रों ने कहा कि समझा जाता है कि जेटली, नायडू और सिंह ने रविवार को बैठक की और इस मुद्दे के विभिन्न आयामों पर विचार विमर्श किया।

गौर हो कि संप्रग सरकार के 2013 के कानून में कहा गया था कि निजी कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहीत की जा सकती है। राजग अध्यादेश और बाद में 26 फरवरी को लोकसभा में पेश किए गए संबंधित विधेयक में निजी कंपनी के स्थान पर प्राइवेट एनटिटी लिखा गया है। इस विवादित संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए आठ घंटे का समय आवंटित किया गया है।

मसरत विवाद पर राजनाथ सिंह संसद में देंगे बयान

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रिपोर्ट के अंदर कहा गया है कि रिहाई न्याय प्रक्रिया के तहत की गई है. आज संसद में भी मसरत आलम की रिहाई पर हंगामा होने के आसार है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी आज मुफ्ती सरकार की रिपोर्ट और मसरत आलम की रिहाई पर अपनी बात संसद में रखेंगे. सूत्रों के अनुसार मुफ्ती सरकार एक और कैदी आसिफ हुसैन फक्तू की रिहाई पर भी विचार कर रही है. वहीं कांग्रेस ने मसरत आलम रिहाई मामले पर संसद के दोनों सदनों में स्थगन प्रस्ताव पेश कर दिया है.

जम्मू कश्मीर में बीजेपी पीडीपी का विवाद बढता जा रहा है. मुफ्ती के फैसलों से नाराज विश्व हिंदू परिषद ने मुफ्ती मोहम्मद सईद से माफी मांगने की मांग की है. प्रवीण तोगड़िया ने कहा है कि अगर मुफ्ती पाकिस्तान परस्ती नहीं छोड़ते तो फिर उन्हें कान पकड़कर हटा देना चाहिए. वीएचपी की ओर से मांग तो उठी ही है. बीजेपी विधायक रवींद्र रैना ने भी साफ कहा है कि भारत मां के लिए एक नहीं हजार सरकार कुर्बान करने को तैयार हैं.

जम्मू में बीजेपी विधायकों और बड़े नेताओं की बीच कल बैठक भी हुई. बैठक में मुफ्ती के फैसलों और विवादित बयानों को लेकर चर्चा की गई. बीजेपी ने कहा ऐसे फैसलों से गठबंधन को खतरा है. कांग्रेस ने पीएम से जवाब मांगा है. हफ्ते भर में ही बात अब गठबंधन टूटने तक पर आ गई है. बीजेपी ने साफ कहा है कि मसरत के मुद्दे पर पार्टी को अंधेरे में रखा गया. विवाद की शुरुआत तो पहले ही दिन हो गई थी . लेकिन यहां तक बात तब पहुंची जब मुफ्ती ने बीजेपी की बात सुननी ही बंद कर दी. पार्टी ने विरोध जताया था फिर भी अलगाववादी नेता मसरत आलम को जेल से रिहा कर दिया गया.

घाटी में मसरत आलम की पहचान देश विरोधी कट्टरपंथी नेता की है. मसरत मुस्लिम लीग का नेता है जो बारामूला की जेल में बंद था. मसरत पर 2010 में भारत विरोधी आंदोलन चलाने का आरोप था जिसकी वजह से गिरॆफ्तारी हुई थी. 11 जून 2010 से शुरू हुई पत्थरबाजी की घटना सितंबर महीने तक चली थी. जिसमें सौ से ज्यादा लोगों की जान गई थी और इस घटना के पीछे मसरत का हाथ माना जाता है. मसरत की रिहाई को लेकर कांग्रेस पीएम से जवाब मांग रही है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना करते हुए ट्विटर पर अपनी राय रखी. उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘बीजेपी-पीडीपी सरकार ने श्रीनगर में मसर्रत आलम को रिहा किया, जम्मू में भाजपा ने विरोध जताया, दिल्ली में सवालों से बचने वाले मिस्टर प्रधानमंत्री बताइये..वह राजनीतिक बंदी है या आतंकवादी?’’ युवा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख और पार्टी सांसद राजीव सातव ने भी सरकार पर निशाना साधा.

मसरत के मुद्दे पर बाहर से लेकर घर के अंदर तक बीजेपी घिर गई है.  आरएसएस के मुखपत्र में पूर्व सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह ने लेख लिखा है कि बीजेपी मुफ्ती मोहम्मद से पूछे कि वो भारतीय हैं या नहीं. कुल मिलाकर अभी हालत ये है कि बीजेपी को न तो मुफ्ती निगलते बन रहे हैं और ना ही उगलते . जम्मू में जो बैठक हुई है उसमें सरकार में शामिल कई पार्टी के कई मंत्री मौजूद नहीं थे . ऐसे में सवाल ये है कि क्या अगली बैठक के बाद वाकई में बीजेपी मुफ्ती को बाय बाय कर देगी ? या फिर ऐसे ही चलता रहेगा .

मोदीजी विपक्ष पर व्यंग्य कसने से बाज नहीं आते: सीताराम येचुरी

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मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यंग्य पर पलटवार कर उन्हें आईना दिखा दिया. येचुरी ने दिल्ली विधानसभा के हाल ही में हुए चुनाव में बीजेपी की करारी हार और संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव बिना संशोधन पारित कराने में सरकार की विफलता पर कटाक्ष किया. यहां के ब्रिज पैरेड मैदान में माकपा की रैली को संबोधित करते हुए पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य येचुरी ने स्वीकार किया कि माकपा ने अपनी चूकों से सबक सीखा है.

येचुरी ने कहा, "मोदीजी विपक्ष पर व्यंग्य कसने से बाज नहीं आते हैं, कहते हैं कि यह इतना छोटा है कि सभी विपक्षी सदस्य एक बस में सवार होकर संसद आ सकते हैं. लेकिन दिल्ली चुनाव के बाद उसी भाजपा की हालत यह हो गई कि उसके तीन सदस्यों को ढोने के लिए एक ऑटो रिक्शा ही काफी है."उन्होंने आगे कहा, "यहां तक कि पिछले सप्ताह संसद में लाल झंडा (कम्युनिस्ट पार्टियों का) के नगण्य होने का मजाक उड़ाया गया. मजेदार है कि उसी दिन मोदीजी को सबसे बड़ा धक्का तब लगा जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हमने संशोधन लाया और वह राज्यसभा में मंजूर हो गया."

मोदी के चुनावी नारे 'अच्छे दिन आने वाले हैं'पर व्यंग्य कसते हुए येचुरी ने किशोर कुमार के लोकप्रिय गाने का उल्लेख किया कि देश के लोग अब इसकी जगह गा रहे हैं 'कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन.'उन्होंने कहा, "अच्छे दिन केवल पूंजीवादियों और कारपोरेट घरानों के लिए है. घरवापसी की बात छोड़ मोदीजी धनवापसी पर बात करने लगे हैं, लेकिन हमने कालाधन वापस लाने के लिए इस सरकार की ओर से कोई कदम उठता हुआ नहीं देख रहा."
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