सरकार ने वापस लिया राज्य आंदोलनकारी आरक्षण विधेयक
- -इस विधेयक को अब अप्रैल माह में विधानसभा के विशेष सत्र में लाया जाएगा
देहरादून, 21 मार्च । उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र शनिवार को आवश्यक कार्य निपटाने के बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। सदन में सरकार ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान जेल गए और घायल आंदोलनकारियों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक वापस ले लिया है। इस विधेयक पर हुई चर्चा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई सदस्यों ने भाग लिया, ज्यादातर सदस्य इस विधेयक को प्रवर समिति को सौंपने के पक्ष में थे, लेकिन सरकार ने इस विधेयक चर्चा के बाद वापस लेने की घोषणा कर दी। सरकार ने घोषणा की है कि अब यह विधेयक अप्रैल माह में आयोजित होने उत्तराखंड विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान पेश किया जाएगा। शनिवार को पूर्वाह्न ग्यारह बजे सदन की कार्यवाही शुरु होते ही उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान जेल गए और घायल आंदोलनकारियों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक पर चर्चा हुई। चर्चा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई सदस्यों ने भाग लिया और अपने सुझाव पेश किए। चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने कहा कि इस विधेयक में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान जेल गए और घायल आंदोलनकारियों के अलावा सभी चिन्हित आंदोलनकारियों को भी शामिल किया जाए। राज्य गठन के 14 साल बाद भी यह मुद्दा नहीं सुलझ पाया। सरकार को राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण को कट आॅफ डेट तय करनी चाहिए। उनका कहना था कि इस विधेयक में पूर्व में जारी किए शासनादेश की बातों को भी शामिल किया जाए। उनका कहना था कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सरकारी कर्मचारियों की भी अहं भूमिका रही। कर्मचारियों ने राज्य आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। उनका कहना था कि या तो इसे प्रवर समिति को सौंपा जाए या फिर इसको पारित करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए। विधायक गणेश जोशी ने कहा कि मसूरी और खटीमा गोलीकांड के बाद ही उत्तराखंड राज्य आंदोलन ने गति पकड़ी थी। उनका कहना था कि कई वास्तविक राज्य आंदोलनकारियों का अभी तक चिन्हीकरण नहीं हो पाया है। कांग्रेस विधायक सुबोध उनियाल का कहना था कि जिन राज्य आंदोलनकारियों की उम्र ज्यादा हो चुकी है उनके पुत्र व पुत्री को सरकारी सेवा में आरक्षण की परिधि में लाया जाए। विधायक प्रेमचंद अग्रवाल ने कहना था कि सभी चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को सुविधाएं दी जाएं। कांग्रेस विधायक शैलारानी रावत और भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना का कहना था कि राज्य प्राप्ति में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है, मुजफ्फरनगर कांड की शिकार हुई 14 महिला आंदोलनकारियों को सरकार की ओर से हरसंभव मदद दी जाए। इन महिलाओं को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि यह 14 महिलाएं समाज की स्वीकार्यता के भय से अपने को राज्य आंदोलनकारी बताने से भी कतरा रही हैं। विधायक पुष्कर सिंह धामी का कहना था कि पूर्व में निर्गत शासनादेश को भी इस विधेयक में शामिल किया जाए। हरिद्वार जिले के भाजपा विधायक मदन कौशिक और आदेश चैहान का कहना था कि सरकार इस विधेयक को लाने में जल्दबाजी न करें, यह मामला बड़ा गंभीर विषय है। उनका कहना था कि सरकार या तो इस विधेयक को वापस ले या फिर प्रवर समिति को सौंपे। उनका कहना था कि इस मामले में सरकार की जल्दबाजी आगे भारी पड़ सकती है। विधायक भीमलाल आर्य का कहना था कि राज्य आंदोलन में वाहन स्वामियों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था, उन्हें मुआवजा मिला लेकिन वे आंदोलनकारी घोषित नहीं हो पाए। कांग्रेस विधायक ललित फस्र्वाण का कहना था कि राज्य आंदोलनकारी की परिभाषा स्पष्ट की जानी चाहिए, क्योंकि यहां का हर व्यक्ति राज्य आंदोलनकारी है, किसी न किसी रूप में उसकी राज्य आंदोलन में भागीदारी रही है। भाजपा विधायक पूरन फत्र्याल का कहना था कि इसका पुनः सर्वेक्षण किया जाए। राज्य आंदोलन में टेªड यूनियनों का भी अहं योगदान रहा है, उन्हें सम्मान पत्र जारी किए जाने चाहिए। कांग्रेस विधायक डा. जीतराम का कहना था कि आंदोलन के समय अखबारों में नाम के आधार पर राज्य आंदोलनकारी घोषित नहीं किए जा सकते हैं। कई आंदोलनकारी ऐसे थे जिन्होंने अपने नाम नहीं छपवाए। सरकार की ओर से चर्चा का जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री डा. इंदिरा ह्रदेयश का कहना था कि हर कोई राज्य आंदोलन में सक्रिय रहा है। उन्होंने इस विधेयक को वापस लेने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को अप्रैल माह में विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान लाया जाएगा। आवश्यक कार्य निपटाने के बाद शनिवार को सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया।
आन्दोलनकारियों ने प्रदेश सरकार का पुतला फंूका
देहरादून, 21 मार्च । राज्य स्थापना के लिए अपना सब कुछ निछावर करने वाले आन्दोलनकारियों की हर स्तर पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए आन्दोलनकारियों ने शनिवार को प्रदेश सरकार का पुतला फंूककर अपना विरोध दर्ज कराया। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि आन्दोलनकारियों की उपेक्षा को कतई बर्दाश्त नही किया जाएगा। यदि सरकार उनकी जायज मांगों पर शीघ्र कोई ठोस कार्यवाही नही करती है, तो वे बड़ा आन्दोलन चलाने को बाध्य होंगे। अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार राज्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आन्दोलनकारी यहां कचहरी परिसर स्थित शहीद स्थल पर एकत्रित हुए और प्रदेश सरकारी की कार्यप्रणाली के खिलाफ नारेबाजी करते हुए विधानसभा की ओर निकल पड़े। इस मौके पर प्रिंस चैक पर आन्दोलनकारियों ने राज्य सरकार का पुतला भी फंूका। इससे पूर्व शहीद स्थल पर आयोजित सभा में प्रदर्शनकारी आन्दोलनकारियों ने कहा कि बार- बार स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा आश्वासन दिये जाने के बावजूद भी आन्दोलनकारियों के हितों से संबधित विधेयक विधानसभा में ही नहीं पहंुचे हंै। प्रदेश सरकार के इस छलावे से आंदोलनकारी त्रस्त हंै। उन्होंने कहा कि लगातार सरकार की ओर से आंदोलनकारियों की अनदेखी की जा रही है, हरबार आश्वासन मिलने के बाद भी आज तक इस दिशा में कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही है। वक्ताओं ने कहा कि सरकार व जिला प्रशासन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं और इसके लिए अब एक बडा आंदोलन चलाने की जरूरत है। जिसके लिए शीघ्र तैयारी की जाएगी। अन्य वक्ताओं ने कहा कि सभी सक्रिय आन्दोलनकारियों को पेंशन के दायरे में लेने व शासन में रूकी पेंशन की फाइलों का तत्काल निराकरण किया जाये और उन्हें 2009 से एक मुश्त पेंशन की व्यवस्था की जाये। वक्ताओं ने कहा कि चिन्हीकरण की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से पूर्ण किया जाये और पेंशन प्रदत्त करने हेतु पेंशन पट्टा प्रदान किया जाये और प्रत्येक पेंशन को पारिवारिक पेंशन में तब्दील कर और मृतक पेंशन धारक सेनानियों की पेंशन को उनके परिजनों को प्रदान की जाये। यही नहीं पेंशन निर्गत करने हेतु कारपोरेट फंड के स्थान पर राजकोषी बजट में पूर्ण प्रावधान किया जाये। रैली में प्रमिला रावत, वेद प्रकाश, शकुंतला भट्ट, रविन्द्र प्रधान, प्रभा नैथानी, प्रभात डंडरियाल, विपुल नौटियाल, मनोज ध्यानी, मुकेश कुमार, गणेश शाह, दान सिंह बिष्ट, चव्रफपाणि, धर्मेन्द्र बिष्ट, कांति कुकरेती आदि मौजूद थे।
हर्षोलास से मनाया गया हिन्दू नववर्ष
देहरादून, 21 मार्च । विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने हिन्दू नववर्ष प्रतिपदा विक्रम संवत 2012 को घंटाघर पर अंबेडकर की प्रतिमा पर हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस मौके पर शहर में रथ यात्रा भी निकाली गयी। शनिवार की सुबह विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू जागरण मंच के कार्यकर्ता घंटाघर स्थित बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के पास एकत्रित हुए और एक दूसरे को नववर्ष की बधाई दी। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि हिन्दू नववर्ष ही एक मात्र पूरे वर्ष में ऐसा समय होता है जब संपूर्ण भारतवर्ष मंे एक हर्ष की लहर होती है, इस समय किसानों की फसल भी पूर्ण हो जाती है एवं प्रकृति भी अपने एक नये स्वरूप धारण करती है। संघ के महानगर कार्यवाह अनिल नंदा ने कहा कि वर्तमान में हिन्दू अपनी संस्कृति को भूलते चले जा रहे हैं। जबकि किसी भी देश के विकास के लिए उसकी संस्कृति एक महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में होती है। उनका कहना है कि हिन्दूओं की विरासत को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा जो पहल की गई थी, अब समय आ गया है कि स्वयं सेवक संघ अब तत्परता से उस पहल को एक नवीन स्वरूप प्रदान कर हिन्दूओं के उत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगें। कार्यक्रम में सुशीला बलूनी, चन्द्रगुप्त विक्रम, महेन्द्र सिंह नेगी, रीता गोयल, शरद चैधरी सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद थे।
हरकी पैड़ी क्षेत्र में गंदगी की भरमार
देहरादून, 21 मार्च । यंू तो हरकी पैड़ी को विश्व मानचित्र में बड़े ही आदर भाव से देखा जाता है परंतु इस क्षेत्र में फैली गंदगी हमें शर्मशार भी करती दिखायी देती है। नगर निगम जैसी बड़ी संस्था के पास इसकी साफ-सफाई का जिम्मा होने के बावजूद गंदे कपड़े, व खाने का बचा खुचा सामान, दोने-पत्तल इधर-उधर बिखरे दिखायी देते हैं। माता के रूप में पूजे जाने वाली गाय इनमें मंुह मारते देखी जा सकती है। गंगा सभा जैसी कार्यदायी संस्था की भारी भरकम पदाधिकारी भी जाने क्यूं इस सबके समक्ष बौने नजर आते हैं। जबकि यहां सुबह से शाम तक इस संस्था के कार्यकर्ता आने वाले श्रद्धालुओं से चंदा काटते कहीं पर भी देखे जा सकते हैं। आखिर वे कौन से इतर व्यवस्थाएं जिन पर इस धन को खर्च किया जाता जो दिखायी नहीं देता। दूर-दराज से आये पयर्टक व श्रद्धालु जब इस तरह की गंदगी मुख्य घाटों के आसपास देखते हैं तो वह सिहर उठते हैं और सहसा कह उठते हैं यह कैसा धर्मनगरी का रूप है। हरकी पैड़ी क्षेत्र में यूं तो नगर निगम अपने कर्मचारियों को साफ-सफाई की डयूटी सौंपे रहता है और गंगा सभा के भी कुछ लोग सफाई व्यवस्था देखते हैं परंतु यह कुछ व्यवस्था कुछ निष्चित स्थान तक ही दिखायी देती है। उससे आगे गंदगी का साम्राज्य दिखायी देने लगता है। खास तौर पर यहां घाटों के किनारे अवैध रूप से चलाये जा रहे लंगर इसमे महती भूमिका निभाते नजर आते हैं। यह लंगर धर्म ज्यादा व्यापार का लबादा ओढ़े है। इन लंगरों में दान का प्रसाद लेने के लिए एक ही भिखारी को कई बार खड़े देखा जा सकता है। यह आधा-अध्ूारा लंगर खाने के बाद दोना-पत्तल यहां इधर उधर फेंक देते हैे। इन्हें पास ही रखे कूड़ेदान से कोई सरोकार नहीं रहता। दान के पैसों व कपड़ो इत्यादि को लेने के लिए मारामारी होना भी यहां आम बात है। इन सबसे बेखबर प्रषासन चैन की बंसुरी बजाने में मषगूल नजर आता है।
कई मायनों में ऐतिहासिक रहा यह विधानसभा सत्रः सीएम
देहरादून, 21 मार्च । मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड की तृतीय विधान सभा का प्रथम सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है। उन्होंने कहा कि इस सत्र में 51 घंटे 38 मिनट कार्यवाही चली है, जबकि 02 घंटे 18 मिनट का व्यवधान रहा है। इसी प्रकार से सदन में सदस्यों की भागदारी का औसत भी 95 प्रतिशत रहा है। सत्र में कुल 14 विधेयक पेश किये गये, जिनमें से 12 पास हुए, जबकि एक प्रवर समिति को भेजा गया और एक वापस लिया गया। विधानसभा में आयोजित पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने विधानसभा सत्र की कार्यवाही को जीवंत रखने का काम किया है। इस भावना को भविष्य में भी बनाये रखने का कार्य किया जायेगा। उत्तराखण्ड के लिए यह अच्छी बात है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि आज जिस विधेयक को वापस लिया गया है, उसमें मंत्रिमण्डल व विधायकों द्वारा सुझाव दिया गया कि इस विधेयक में और अधिक सुधार किया जाये, ताकि अधिक से अधिक लोगों को लाभ मिल सकें। इस विधेयक को और अधिक सुधार व सुझाव के साथ अप्रैल माह में आयोजित होने वाले दो दिवसीय विशेष सत्र में रखा जायेगा। बजट को लेकर हमने फाॅलोअप शुरू कर दिया है। वर्ष 2012 के मापदंड को लेकर चले तो इस वर्ष हमारा खर्च दोगुना रहा है। जिला योजना का गठन देर से होने के बाद भी 95 प्रतिशत खर्च का औसत रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व बैंक व बाह्य सहायतित परियोजनाओं के खर्च में हमारा रिकार्ड ठीक नही रहा है, हमारा प्रयास रहेगा कि इस वर्ष इसके खर्च की गति को और बेहतर बनाया जायेगा। राज्य का खर्च बढ़ने से राज्य की आय बढ़ती है। हमने इस बार एक कदम और आगे बढ़ते हुए वर्ष 2015-16 के बजट को खर्च करने के लिए अप्रैल से ही तेजी लाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दे दिये है। हमारा प्रयास होगा कि मार्च में खर्च करने की गति को सितम्बर व अक्टूबर में ला सके। हमने एक और निर्णय लिया है कि प्रत्येक विभाग निर्माण कार्यों के लिए बनने वाली 5 करोड़ रुपये तक की टी.एस.सी. योजनाओं का विभाग में ही सेल बनाया जाय। इससे स्वीकृति की गति को तेजी मिलेगी। हमने बजट में 2500 करोड़ रुपये को खर्च करने की कार्ययोजना बनायी है। इसके लिए हमने निर्णय लिया है कि प्रोजेक्ट बनाते समय तकनीक का उपयोग किया जाय, जिसमें कास्ट रिडयूश हो। हमने नये क्षेत्र भी चिन्हित किये है, कि अधिक पानी का उपयोग करने वालों पर टैक्स लगाया जायेगा। वन विभाग को ईको टूरिज्म के माध्यम से जोड़ा जाय, ताकि आय के साधन बने। हमने सामाजिक क्षेत्र में भी ऐतिहासिक निर्णय लिये है, इसके लिए बजट की कमी को नही होने दिया जायेगा। हमारा प्रयास है कि राज्य से पलायन को रोका जाय। हमने जो कार्ययोजना बनायी है, उसके अनुसार अगले चार वर्ष में पलायन को पूरी तरह से रोक दिया जायेगा।
कैसे व कब दूर होगी पहाड़ों से पलायन की समस्या! 2014 तक 1059 गांव गैर आबाद हो चुके हैं
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से पलायन रूकने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। किसी न किसी कारण से आज भी पहाड़ी मूल की आबादी निचले इलाकों में आ रही है। सरकार की तमाम योजनाओं और कोशिशों के बावजूद आने वाले वर्षों में ये समस्या और भी बढ़ेगी। वास्तव में सरकार अभी भी पलायन की मूल वजह नहीं समझ पा रही है और पलायन को रोकने के लिए एसी योजनयें बना रही है जिसका वास्तव में पलायन रोकने से सीधा संबध नहीं है। 26 साल की नीतिशा मूल रूप से टिहरी की रहने वाली है। नीतिशा का घर टिहरी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर है और उसे यंहा आने के लिए 3- 4 घंटे लग जाते हैं। नीतिशा का एक बेटा है जो कि 5 साल का है और जब उन्होनें अपने दूसरे बच्चे की याजना बनाई तो वो टिहरी के अपने मुल स्थान से करीब डेढ सौ किलोमीटर दूर ऋषिकेश आ गई। नीतिशा का पति संजय मुंबई में छोटी मोटी नौकरी करता है और हर महिने परिवार चलाने के लिए खर्च भेजता रहता है। लेकिन अब उसे मुंबई में थोड़ा ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि उसका परिवार अब गांव से निकलकर शहर की ओर आ गया है। नीतिशा से जब गांव छोड़ने का कारण पूछा गया तो तस्वीर पूरी तरह से साफ हो गई। नीतिशा का कहना है कि उसका बेटा पांच साल का है जिसे स्कूल में भर्ती करनाा है। लेकिन वो देख रही है कि गांव के स्कूल में शिक्षकों का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं है। ज्यादातर समय स्कूलों में मास्टर साहब गायब रहते हैं। इससे गांव के स्कूल में पड़ रहे कई बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है। नीतिशा नहीं चाहती कि उसके बेटे की पढ़ाई पर भी नकारात्मक असर हो सो उसने अपने बेटे को ऋषिकेश में पढ़ाने का फैसला किया। नीतिशा की दूसरी समस्या स्वास्थ्य की है। हालाकि गर्भवती महिलाओं के लिए सरकारी योजनाओं का प्रसार गांव गांव तक हुआ है। लेकिन यदि किसी प्रकार की एमरजेंसी हो जाये तो गांव के अस्पतालों में एक्सपर्ट डाॅक्टर उपलब्ध नहीं हैं। एसे में शहर आने के लिए भी अच्छा खासा समय लगता है। सो दोनों ही कामों को अपनी प्राथमिकता सूची में रखते हुये नीतिशा और उसके पति ने ये फैसला किया। नीतिशा के दूसरे बेटे का जन्म ऋषिकेश में ही हुआ और उसका बड़ा बेटा भी अब स्कूल जाने लगा है। जाहिर है वो अभी बहुत छोटा है मगर उसे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलाया गया है। स्कूल में शिक्षक और अस्पताल में डाॅक्टर की समस्या से राज्य की हर सरकार जूझती रही है लेकिन इस समस्या को पिछले 15 साल में हल नहीं किया जा सका है। लेकिन पलायन की समस्या पर सरकारों की गंभीरता तो साफ दिखाई देती ही है। सरकारों ने इस समस्या को सुलझाने के लिए दर्जनों योजनायें बनाई। इन योजनाओं पर हजारों करोड़ रूपये भी खर्च हो चुका है लेकिन हालात आज और भी खराब होते जा रहे हैं। विधान सभा में एक सवाल के जवाब में नियोजन मंत्री दिनेश अग्रवाल ने लिखित उत्तर में बताया कि 2014 तक 1059 गांव गैर आबाद हो चुके हैं। यानी यंहा पर आबादी नहीं रह रही है या सिर्फ एक दो परिवार ही यंहा पर बचे हैं। ये बहुत आश्यर्च है कि पहाड़ी इलाकों से पलायन न हो इसके लिए पर्यटन, उद्योग, स्व रोजगार, चकबंदी, शिल्पकला, खाद्य सुरक्षा, मनरेगा और दूसरी कई महत्वपूर्ण योजनायें बनाई गई हैं। इन योजनाओं का निश्चित रूप से फायदा भी हुआ है। तभी शायद कई लोग गांव में रह भी रहे हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर योजनायेें कृषी, आजीविका और स्वरोजगार को बढ़ाने के लिए हैं। सरकारी आंकड़ों को देखे तो उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की आय लगातार कम होती जा रही है। नौजवान आज भी आजीविका तलाशने के लिए बाहर जा रहा है और जो परिवार गांव में रहते थे वो भी राज्य के निचले शहरों की तरफ आ रहे हैं। जाहिर है नीतिशा रोजगार की तलाश में ऋषिकेश नहीं आई बल्कि स्कूल और अस्पताल की जरूरत उसे टिहरी से विस्थापित कर गई। सरकार को इस बात का अंदाजा भी है कि बुनियादी सुविधायें नहीं पंहुच पाने के कारण गांवों में समस्या ज्यादा बढ़ रही है। लेकिन जब स्थानांतरण की कोई ठोस नीति नहीं है तो इस तरह की समस्याओं का हल निकाल पाना बेहद मुश्किल होगा। यदि आज भी सरकार इस पर कोई ठोस पहल कर पाये तो आने वाले दशकों में इसका परिणाम दिख पायेगा वरना पहाड़ों को खाली होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
गुलदार ने अटकाई ग्रामीणों की संासे
देहरादून, 21 मार्च(निस) । टिहरी जिले के चंबा क्षेत्र के खर्क भेंडी गांव में एक घर में गुलदार घुसने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि इसी क्षेत्र के दूसरे गांव खुरेत में गुलदार ने पांच घंटे तक ग्रामीणों की सांसें अटकाए रखी। बड़ी मुश्किल से ग्रामीणों ने इस गुलदार को कमरे में बंद किया। करीब तीन घंटे बाद मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने इसे पिंजरे में कैद किया और ऋषिकेश ले गए। चंबा के पास मसूरी रोड में खुरेत गांव में सुबह सात बजे अचानक एक गुलदार ग्रामीण धन सिंह के घर में घुस गया। गनीमत यह रही कि उस समय परिवार का कोई सदस्य गुलदार के सामने नहीं आया। लोग घर के अंदर ही थे। लोगों ने शोर मचाया तो अन्य ग्रामीण सतर्क हो गए। गुलदार वहीं पास में एक मंदिर में भी घुसा और उसके बाद दिलीप सिंह के घर में घुस गया। गुलदार के इस तरह बीच गांव में घूमने से पूरे गांव में अफरातफरी मच गई। ग्रामीणों नेे साथ मिलकर हिम्मत दिखाते हुए गुलदार को भगाने का प्रयास किया, तो गुलदार एक कमरे में घुस गया। इसी दौरान ग्रामीणों ने दरवाजा बंद कर दिया। ग्रामीणों की सूचना पर चंबा थानाध्यक्ष डीएस चैहान भी फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे। वहीं वन विभाग की टीम दो बजे मौके पर पिंजरा लेकर पहुंची और तीन बजे गुलदार को ऑपरेशन के बाद पिंजरे में कैद किया जा सका। रेंज अधिकारी वीएस पंवार ने बताया कि गुलदार चोटिल है और नर है। गुलदार की उम्र लगभग आठ वर्ष है। गुलदार को राजाजी राष्ट्रीय पार्क में छोड़ने के लिए ले जाया गया है। इससे पहले उसका ऋषिकेश में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों से उपचार कराया जाएगा।
व्यवसायियों पर की गई कार्रवाई का विरोध
देहरादून, 21 मार्च(निस) । केदारघाटी होटल आनर्स एसोसिएशन ने बैंकों की ओर से होटल व्यवसायियों पर की गई कार्रवाई का विरोध किया है। उन्होंनेे इसे आपदा पीडि़त क्षेत्र के व्यापारियों के साथ मजाक बताया है। उन्होंने केदारनाथ पैदल मार्ग पर स्थानीय व्यापारियों को रोजगार दिए जाने की मांग की है। होटल आनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शिशुपाल सिंह गजवाण ने कहा कि आपदा के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री व उनके मंत्रियों ने आपदाग्रस्त क्षेत्र के व्यापारियों को ऋण माफी व मुआवजा दिए जाने की बात की थी। लेकिन, सरकार की ओर से की गई गई घोषणाएं धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। ऋण लेने वाले पर्यटन व्यवसायियों से बैंक जबरन वसूली कर रहा है। इसके अलावा बिजली व पानी के मनमाने बिल भी व्यापारियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि केदारघाटी की तर्ज पर पूरे प्रदेश को आपदाग्रस्त घोषित किया जाना वास्तविक आपदा प्रभावितों के साथ घोर अन्याय है। केदारनाथ पैदल मार्ग पर स्थानीय लोगों को रोजगार खोलने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि केदारनाथ यात्रा पर आने वाले पर्यटकों की संख्या निर्धारित किया जाना उचित नहीं है। यह संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
विकास में गरीबों व वंचित वर्गों की भागीदारी जरूरीः सीएम
देहरादून, 21 मार्च(निस) । मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि प्रदेश का विकास तभी सार्थक है जब इसमें गरीबों व वंचित वर्गों की भी भागीदारी हो। राज्य सरकार ने समाज कल्याण में कई नई शुरूआत की है। वृद्धावस्था, विधवा, विकलांग पेंशन की राशि को बढ़ाया गया है जबकि किसान, शिल्पकारों, लोककलाकारों, दुर्घटना का शिकार होने वाली महिलाओं के अशक्तता पेंशन, परित्यक्ता के लिए स्वप्रमाणन के आधार पर पेंशन, जन्म से विकलांग को भरण पोषण राशि की व्यवस्था की गई है। कालसी में आयोजित कार्यक्रम में जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता बढ़ती प्रति व्यक्ति आय का लाभ गरीबों व गांवों तक पहुंचाना है। विकास को सार्थकता प्रदान करने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना जरूरी है। मुख्यमंत्री ने कालसी व चकराता क्षेत्र के विकास के लिए अनेक घोषणाएं कीं। उन्होंने दर्जनों सड़कों के निर्माण, डामरीकरण व विस्तारीकरण को स्वीकृति दी। कालसी व चकराता में हाईस्कूल, क्षेत्र में एक आईटीआई, कालसी विकासखण्ड मे ंदो मिनी स्टेडियम, पीएचसी कालसी में अल्ट्रासाउन्ड मशीन, अटाल में एएनएम सेंटर सहित अन्य घोषणाएं की गईं। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार विकास का मार्ग तैयार कर सकती है, परंतु बड़े परिवर्तन के लिए लोगों को भी अपने आपको तैयार करना होगा। गांवों में कृषि, बागवानी व दुग्ध उत्पादों के उत्पादन में वृद्धि के लिए संकल्प इच्छाशक्ति के साथ प्रयास करने होंगे। राज्य निर्माण के बाद बड़ी संख्या में सड़कों का निर्माण हुआ है, परंतु इनके माध्यम से बाहर के उत्पाद हमारे गांवों में जा रहे हैं जबकि होना यह चाहिए कि हमारे गांवों के उत्पाद दूसरे क्षेत्रों तक जाएं। इसके लिए हमने विशेष प्रोत्साहन योजनाएं तैयार की हैं। दुग्ध सहकारी समितियों को प्रति लीटर बोनस का प्राविधान किया गया है। इसी प्रकार हमारा पेड़ हमारा धन, चाल खाल आदि के लिए प्रोत्साहन राशि दिए जाने की योजनाएं प्रारम्भ की गईं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्व.गुलाब सिंह जी के नाम पर देहरादून में कला संस्कृति का संग्रहालय स्थापित किया जा रहा है।। कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री रावत के नेतृत्व में राज्य के विकास को नई दिशा दी जा रही है। विकास में आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है। पिछड़े क्षेत्रों व गरीबों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए अनेक योजनाएं प्रारम्भ की गई हैं। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष चमन सिंह, मिल्कीराम अग्रवाल, चंदन रावत, राजेंद्र शाह सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
आन्दोलनकारियों की भावना के अनुरूप में सदन में पेष होगा विधेयकः हरीष रावत
देहरादून, 21 मार्च, (निस)। मुख्यमंत्री हरीश रावत से विधान सभा स्थित उनके कार्यालय में उत्तराखण्ड आन्दोलकारी मंच के प्रतिनिधिमण्डल ने भेंट की। आन्दोलनकारी मंच के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया कि उनके द्वारा आन्दोलनकारियों की भावना के अनुरूप में सदन में विधेयक पेश किया गया। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य सरकार आन्दोलनकारियों की भावना का सम्मान करती है। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हम प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा जो विधेयक पेश किया गया था, उसमें कुछ और सुधार करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी को देखते हुए हमने विधेयक वापस लिया, जिसे अप्रैल माह में आयोजित होने वाले विशेष सत्र में फिर से लाया जायेगा। मुख्यमंत्री ने सभी आन्दोलनकारियों से अपील की कि वे राज्य के विकास में अपना सक्रिय योगदान दे। इस अवसर पर उत्तराखण्ड आन्दोलकारी मंच के रामलाल खण्डूड़ी, मोहन खत्री, प्रदीप कुकरेती, क्रांति कुकरेती, धनंजय घिल्डियाल, गणेश शाह, वीरेन्द्र गुसांई, लक्ष्मण भण्डारी, अव्वल सिंह रावत, गोकुल शाह आदि उपस्थित थे।
कई मायनों में ऐतिहासिक रहा यह विधानसभा सत्रः सीएम
- -सत्र में 51 घंटे 38 मिनट चली कार्यवाही, 2 घंटे 18 मिनट का रहा व्यवधान
- -सदन में सदस्यों की भागदारी का औसत 95 प्रतिशत रहा, 12 विधेयक हुए पेश
देहरादून, 21 मार्च । मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड की तृतीय विधान सभा का प्रथम सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है। उन्होंने कहा कि इस सत्र में 51 घंटे 38 मिनट कार्यवाही चली है, जबकि 02 घंटे 18 मिनट का व्यवधान रहा है। इसी प्रकार से सदन में सदस्यों की भागदारी का औसत भी 95 प्रतिशत रहा है। सत्र में कुल 14 विधेयक पेश किये गये, जिनमें से 12 पास हुए, जबकि एक प्रवर समिति को भेजा गया और एक वापस लिया गया। विधानसभा में आयोजित पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने विधानसभा सत्र की कार्यवाही को जीवंत रखने का काम किया है। इस भावना को भविष्य में भी बनाये रखने का कार्य किया जायेगा। उत्तराखण्ड के लिए यह अच्छी बात है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि आज जिस विधेयक को वापस लिया गया है, उसमें मंत्रिमण्डल व विधायकों द्वारा सुझाव दिया गया कि इस विधेयक में और अधिक सुधार किया जाये, ताकि अधिक से अधिक लोगों को लाभ मिल सकें। इस विधेयक को और अधिक सुधार व सुझाव के साथ अप्रैल माह में आयोजित होने वाले दो दिवसीय विशेष सत्र में रखा जायेगा। बजट को लेकर हमने फाॅलोअप शुरू कर दिया है। वर्ष 2012 के मापदंड को लेकर चले तो इस वर्ष हमारा खर्च दोगुना रहा है। जिला योजना का गठन देर से होने के बाद भी 95 प्रतिशत खर्च का औसत रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व बैंक व बाह्य सहायतित परियोजनाओं के खर्च में हमारा रिकार्ड ठीक नही रहा है, हमारा प्रयास रहेगा कि इस वर्ष इसके खर्च की गति को और बेहतर बनाया जायेगा। राज्य का खर्च बढ़ने से राज्य की आय बढ़ती है। हमने इस बार एक कदम और आगे बढ़ते हुए वर्ष 2015-16 के बजट को खर्च करने के लिए अप्रैल से ही तेजी लाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दे दिये है। हमारा प्रयास होगा कि मार्च में खर्च करने की गति को सितम्बर व अक्टूबर में ला सके। हमने एक और निर्णय लिया है कि प्रत्येक विभाग निर्माण कार्यों के लिए बनने वाली 5 करोड़ रुपये तक की टी.एस.सी. योजनाओं का विभाग में ही सेल बनाया जाय। इससे स्वीकृति की गति को तेजी मिलेगी। हमने बजट में 2500 करोड़ रुपये को खर्च करने की कार्ययोजना बनायी है। इसके लिए हमने निर्णय लिया है कि प्रोजेक्ट बनाते समय तकनीक का उपयोग किया जाय, जिसमें कास्ट रिडयूश हो। हमने नये क्षेत्र भी चिन्हित किये है, कि अधिक पानी का उपयोग करने वालों पर टैक्स लगाया जायेगा। वन विभाग को ईको टूरिज्म के माध्यम से जोड़ा जाय, ताकि आय के साधन बने। हमने सामाजिक क्षेत्र में भी ऐतिहासिक निर्णय लिये है, इसके लिए बजट की कमी को नही होने दिया जायेगा। हमारा प्रयास है कि राज्य से पलायन को रोका जाय। हमने जो कार्ययोजना बनायी है, उसके अनुसार अगले चार वर्ष में पलायन को पूरी तरह से रोक दिया जायेगा।
कैसे व कब दूर होगी पहाड़ों से पलायन की समस्या! 2014 तक 1059 गांव गैर आबाद हो चुके हैं
- स्कूल और हास्पिटल भी एक बड़ी वजह है पलायन की दर्जनों योजनाओं के होते हुये भी स्थानीय लोग मजबूर
- कुछ कड़े फैसले लेने होंगें सरकार को
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से पलायन रूकने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। किसी न किसी कारण से आज भी पहाड़ी मूल की आबादी निचले इलाकों में आ रही है। सरकार की तमाम योजनाओं और कोशिशों के बावजूद आने वाले वर्षों में ये समस्या और भी बढ़ेगी। वास्तव में सरकार अभी भी पलायन की मूल वजह नहीं समझ पा रही है और पलायन को रोकने के लिए एसी योजनयें बना रही है जिसका वास्तव में पलायन रोकने से सीधा संबध नहीं है। 26 साल की नीतिशा मूल रूप से टिहरी की रहने वाली है। नीतिशा का घर टिहरी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर है और उसे यंहा आने के लिए 3- 4 घंटे लग जाते हैं। नीतिशा का एक बेटा है जो कि 5 साल का है और जब उन्होनें अपने दूसरे बच्चे की याजना बनाई तो वो टिहरी के अपने मुल स्थान से करीब डेढ सौ किलोमीटर दूर ऋषिकेश आ गई। नीतिशा का पति संजय मुंबई में छोटी मोटी नौकरी करता है और हर महिने परिवार चलाने के लिए खर्च भेजता रहता है। लेकिन अब उसे मुंबई में थोड़ा ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि उसका परिवार अब गांव से निकलकर शहर की ओर आ गया है। नीतिशा से जब गांव छोड़ने का कारण पूछा गया तो तस्वीर पूरी तरह से साफ हो गई। नीतिशा का कहना है कि उसका बेटा पांच साल का है जिसे स्कूल में भर्ती करनाा है। लेकिन वो देख रही है कि गांव के स्कूल में शिक्षकों का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं है। ज्यादातर समय स्कूलों में मास्टर साहब गायब रहते हैं। इससे गांव के स्कूल में पड़ रहे कई बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है। नीतिशा नहीं चाहती कि उसके बेटे की पढ़ाई पर भी नकारात्मक असर हो सो उसने अपने बेटे को ऋषिकेश में पढ़ाने का फैसला किया। नीतिशा की दूसरी समस्या स्वास्थ्य की है। हालाकि गर्भवती महिलाओं के लिए सरकारी योजनाओं का प्रसार गांव गांव तक हुआ है। लेकिन यदि किसी प्रकार की एमरजेंसी हो जाये तो गांव के अस्पतालों में एक्सपर्ट डाॅक्टर उपलब्ध नहीं हैं। एसे में शहर आने के लिए भी अच्छा खासा समय लगता है। सो दोनों ही कामों को अपनी प्राथमिकता सूची में रखते हुये नीतिशा और उसके पति ने ये फैसला किया। नीतिशा के दूसरे बेटे का जन्म ऋषिकेश में ही हुआ और उसका बड़ा बेटा भी अब स्कूल जाने लगा है। जाहिर है वो अभी बहुत छोटा है मगर उसे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलाया गया है। स्कूल में शिक्षक और अस्पताल में डाॅक्टर की समस्या से राज्य की हर सरकार जूझती रही है लेकिन इस समस्या को पिछले 15 साल में हल नहीं किया जा सका है। लेकिन पलायन की समस्या पर सरकारों की गंभीरता तो साफ दिखाई देती ही है। सरकारों ने इस समस्या को सुलझाने के लिए दर्जनों योजनायें बनाई। इन योजनाओं पर हजारों करोड़ रूपये भी खर्च हो चुका है लेकिन हालात आज और भी खराब होते जा रहे हैं। विधान सभा में एक सवाल के जवाब में नियोजन मंत्री दिनेश अग्रवाल ने लिखित उत्तर में बताया कि 2014 तक 1059 गांव गैर आबाद हो चुके हैं। यानी यंहा पर आबादी नहीं रह रही है या सिर्फ एक दो परिवार ही यंहा पर बचे हैं। ये बहुत आश्यर्च है कि पहाड़ी इलाकों से पलायन न हो इसके लिए पर्यटन, उद्योग, स्व रोजगार, चकबंदी, शिल्पकला, खाद्य सुरक्षा, मनरेगा और दूसरी कई महत्वपूर्ण योजनायें बनाई गई हैं। इन योजनाओं का निश्चित रूप से फायदा भी हुआ है। तभी शायद कई लोग गांव में रह भी रहे हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर योजनायेें कृषी, आजीविका और स्वरोजगार को बढ़ाने के लिए हैं। सरकारी आंकड़ों को देखे तो उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की आय लगातार कम होती जा रही है। नौजवान आज भी आजीविका तलाशने के लिए बाहर जा रहा है और जो परिवार गांव में रहते थे वो भी राज्य के निचले शहरों की तरफ आ रहे हैं। जाहिर है नीतिशा रोजगार की तलाश में ऋषिकेश नहीं आई बल्कि स्कूल और अस्पताल की जरूरत उसे टिहरी से विस्थापित कर गई। सरकार को इस बात का अंदाजा भी है कि बुनियादी सुविधायें नहीं पंहुच पाने के कारण गांवों में समस्या ज्यादा बढ़ रही है। लेकिन जब स्थानांतरण की कोई ठोस नीति नहीं है तो इस तरह की समस्याओं का हल निकाल पाना बेहद मुश्किल होगा। यदि आज भी सरकार इस पर कोई ठोस पहल कर पाये तो आने वाले दशकों में इसका परिणाम दिख पायेगा वरना पहाड़ों को खाली होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
गुलदार ने अटकाई ग्रामीणों की संासे
देहरादून, 21 मार्च(निस) । टिहरी जिले के चंबा क्षेत्र के खर्क भेंडी गांव में एक घर में गुलदार घुसने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि इसी क्षेत्र के दूसरे गांव खुरेत में गुलदार ने पांच घंटे तक ग्रामीणों की सांसें अटकाए रखी। बड़ी मुश्किल से ग्रामीणों ने इस गुलदार को कमरे में बंद किया। करीब तीन घंटे बाद मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने इसे पिंजरे में कैद किया और ऋषिकेश ले गए। चंबा के पास मसूरी रोड में खुरेत गांव में सुबह सात बजे अचानक एक गुलदार ग्रामीण धन सिंह के घर में घुस गया। गनीमत यह रही कि उस समय परिवार का कोई सदस्य गुलदार के सामने नहीं आया। लोग घर के अंदर ही थे। लोगों ने शोर मचाया तो अन्य ग्रामीण सतर्क हो गए। गुलदार वहीं पास में एक मंदिर में भी घुसा और उसके बाद दिलीप सिंह के घर में घुस गया। गुलदार के इस तरह बीच गांव में घूमने से पूरे गांव में अफरातफरी मच गई। ग्रामीणों नेे साथ मिलकर हिम्मत दिखाते हुए गुलदार को भगाने का प्रयास किया, तो गुलदार एक कमरे में घुस गया। इसी दौरान ग्रामीणों ने दरवाजा बंद कर दिया। ग्रामीणों की सूचना पर चंबा थानाध्यक्ष डीएस चैहान भी फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे। वहीं वन विभाग की टीम दो बजे मौके पर पिंजरा लेकर पहुंची और तीन बजे गुलदार को ऑपरेशन के बाद पिंजरे में कैद किया जा सका। रेंज अधिकारी वीएस पंवार ने बताया कि गुलदार चोटिल है और नर है। गुलदार की उम्र लगभग आठ वर्ष है। गुलदार को राजाजी राष्ट्रीय पार्क में छोड़ने के लिए ले जाया गया है। इससे पहले उसका ऋषिकेश में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों से उपचार कराया जाएगा।
व्यवसायियों पर की गई कार्रवाई का विरोध
देहरादून, 21 मार्च(निस) । केदारघाटी होटल आनर्स एसोसिएशन ने बैंकों की ओर से होटल व्यवसायियों पर की गई कार्रवाई का विरोध किया है। उन्होंनेे इसे आपदा पीडि़त क्षेत्र के व्यापारियों के साथ मजाक बताया है। उन्होंने केदारनाथ पैदल मार्ग पर स्थानीय व्यापारियों को रोजगार दिए जाने की मांग की है। होटल आनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शिशुपाल सिंह गजवाण ने कहा कि आपदा के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री व उनके मंत्रियों ने आपदाग्रस्त क्षेत्र के व्यापारियों को ऋण माफी व मुआवजा दिए जाने की बात की थी। लेकिन, सरकार की ओर से की गई गई घोषणाएं धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। ऋण लेने वाले पर्यटन व्यवसायियों से बैंक जबरन वसूली कर रहा है। इसके अलावा बिजली व पानी के मनमाने बिल भी व्यापारियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि केदारघाटी की तर्ज पर पूरे प्रदेश को आपदाग्रस्त घोषित किया जाना वास्तविक आपदा प्रभावितों के साथ घोर अन्याय है। केदारनाथ पैदल मार्ग पर स्थानीय लोगों को रोजगार खोलने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि केदारनाथ यात्रा पर आने वाले पर्यटकों की संख्या निर्धारित किया जाना उचित नहीं है। यह संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
विकास में गरीबों व वंचित वर्गों की भागीदारी जरूरीः सीएम
देहरादून, 21 मार्च(निस) । मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि प्रदेश का विकास तभी सार्थक है जब इसमें गरीबों व वंचित वर्गों की भी भागीदारी हो। राज्य सरकार ने समाज कल्याण में कई नई शुरूआत की है। वृद्धावस्था, विधवा, विकलांग पेंशन की राशि को बढ़ाया गया है जबकि किसान, शिल्पकारों, लोककलाकारों, दुर्घटना का शिकार होने वाली महिलाओं के अशक्तता पेंशन, परित्यक्ता के लिए स्वप्रमाणन के आधार पर पेंशन, जन्म से विकलांग को भरण पोषण राशि की व्यवस्था की गई है। कालसी में आयोजित कार्यक्रम में जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता बढ़ती प्रति व्यक्ति आय का लाभ गरीबों व गांवों तक पहुंचाना है। विकास को सार्थकता प्रदान करने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना जरूरी है। मुख्यमंत्री ने कालसी व चकराता क्षेत्र के विकास के लिए अनेक घोषणाएं कीं। उन्होंने दर्जनों सड़कों के निर्माण, डामरीकरण व विस्तारीकरण को स्वीकृति दी। कालसी व चकराता में हाईस्कूल, क्षेत्र में एक आईटीआई, कालसी विकासखण्ड मे ंदो मिनी स्टेडियम, पीएचसी कालसी में अल्ट्रासाउन्ड मशीन, अटाल में एएनएम सेंटर सहित अन्य घोषणाएं की गईं। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार विकास का मार्ग तैयार कर सकती है, परंतु बड़े परिवर्तन के लिए लोगों को भी अपने आपको तैयार करना होगा। गांवों में कृषि, बागवानी व दुग्ध उत्पादों के उत्पादन में वृद्धि के लिए संकल्प इच्छाशक्ति के साथ प्रयास करने होंगे। राज्य निर्माण के बाद बड़ी संख्या में सड़कों का निर्माण हुआ है, परंतु इनके माध्यम से बाहर के उत्पाद हमारे गांवों में जा रहे हैं जबकि होना यह चाहिए कि हमारे गांवों के उत्पाद दूसरे क्षेत्रों तक जाएं। इसके लिए हमने विशेष प्रोत्साहन योजनाएं तैयार की हैं। दुग्ध सहकारी समितियों को प्रति लीटर बोनस का प्राविधान किया गया है। इसी प्रकार हमारा पेड़ हमारा धन, चाल खाल आदि के लिए प्रोत्साहन राशि दिए जाने की योजनाएं प्रारम्भ की गईं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्व.गुलाब सिंह जी के नाम पर देहरादून में कला संस्कृति का संग्रहालय स्थापित किया जा रहा है।। कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री रावत के नेतृत्व में राज्य के विकास को नई दिशा दी जा रही है। विकास में आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है। पिछड़े क्षेत्रों व गरीबों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए अनेक योजनाएं प्रारम्भ की गई हैं। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष चमन सिंह, मिल्कीराम अग्रवाल, चंदन रावत, राजेंद्र शाह सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
आन्दोलनकारियों की भावना के अनुरूप में सदन में पेष होगा विधेयकः हरीष रावत
देहरादून, 21 मार्च, (निस)। मुख्यमंत्री हरीश रावत से विधान सभा स्थित उनके कार्यालय में उत्तराखण्ड आन्दोलकारी मंच के प्रतिनिधिमण्डल ने भेंट की। आन्दोलनकारी मंच के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया कि उनके द्वारा आन्दोलनकारियों की भावना के अनुरूप में सदन में विधेयक पेश किया गया। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य सरकार आन्दोलनकारियों की भावना का सम्मान करती है। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हम प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा जो विधेयक पेश किया गया था, उसमें कुछ और सुधार करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी को देखते हुए हमने विधेयक वापस लिया, जिसे अप्रैल माह में आयोजित होने वाले विशेष सत्र में फिर से लाया जायेगा। मुख्यमंत्री ने सभी आन्दोलनकारियों से अपील की कि वे राज्य के विकास में अपना सक्रिय योगदान दे। इस अवसर पर उत्तराखण्ड आन्दोलकारी मंच के रामलाल खण्डूड़ी, मोहन खत्री, प्रदीप कुकरेती, क्रांति कुकरेती, धनंजय घिल्डियाल, गणेश शाह, वीरेन्द्र गुसांई, लक्ष्मण भण्डारी, अव्वल सिंह रावत, गोकुल शाह आदि उपस्थित थे।