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विशेष : कांशीराम के व्यक्तित्व की विराटता को नजरअंदाज करना अभी भी जारी

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कांशीराम ने पुणे में सरकारी नौकरी में आने के बाद जातिगत भेदभाव को बहुत नजदीक से देखा। वे सामाजिक गतिविधियों के तटस्थ दर्शक बनकर अपनी जिंदगी चलाने वाले लोगों में से नहीं थे। उनके अंदर गलत व्यवस्था को बदलने का जज्बा था। वर्ण व्यवस्था के खिलाफ इसी कारण उन्होंने अपनी नौकरी दांव पर लगाकर संघर्ष छेड़ा। वे अच्छे वक्ता नहीं थे लेकिन बाबा साहब डा. अंबेडकर के विचारों का उन्होंने खूब हृदयंगम किया था। बाबा साहब डा. अंबेडकर अगर मेन आफ आयडिया थे तो कांशीराम मेन आफ एक्शन। उन्होंने बाबा साहब के इस मंत्र को आत्मसात किया कि सत्ता की चाबी हासिल करके व्यवस्था में बदलाव किया जा सकता है।

वे जब शुरू में राजनीति में आए तो सफलता उनसे बहुत नजर आ रही थी। फिर भी कांशीराम के जज्बे में कभी कोई कमी नहीं आई। बाबा साहब अंबेडकर ने स्थापित किया था कि वर्ण व्यवस्था से लडऩे के लिए हरावल दस्ते के लोगों को न केवल साधनों से मजबूत होना पड़ेगा बल्कि उसके पहले अपने व्यक्तित्व में नैतिक विराटता को तराशने पर ध्यान देना होगा। बाबा साहब पर उनके जीवन काल में भी और आज भी आरोप लगते हैं कि वे ब्रिटिश शासन के एजेंट थे लेकिन जब उनका देहावसान हुआ तो आने वाली पीढिय़ों के लिए विरासत में बहुत बड़ी धन संपदा छोडऩे की बजाय उन्हें कर्ज का बोझा छोड़कर इस दुनिया से जाना पड़ा। जो लोग अपने मुताबिक सही विचारधारा को जमीन पर उतारने का काम करते हैं उन्हें रणनीति के तहत काम करना पड़ता है। उनके अनुयायी जानते हैं कि वे अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह ईमानदार हैं। इस कारण अगर वे कोई ऐसा आभास कराने वाली क्रिया करें जिससे उनकी नैतिक साख पर दूसरे लोग संदेह करें तो अपने लोगों में उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध नहीं होती। ब्रिटिश शासन से समय-समय पर सहयोग लेने और देने का काम बाबा साहब ने रणनीति के तहत ही किया जिसकी वजह से वर्ग शत्रुओं ने भले ही उन्हें कितना बदनाम क्यों न किया हो लेकिन उन्हें मानने वाले उनके प्रति कभी शंकालु नहीं हुए।

बाबा साहब की तरह कांशीराम ने भी रणनीतिक तौर पर कई ऐसी युक्तियां आजमाईं जिनसे आलोचकों को उन पर आरोप लगाने का मौका मिलता। जब उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए हैलीकाप्टर की व्यवस्था हेतु जयंत मल्होत्रा का साथ लिया तो उन्हें बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। कांशीराम इससे विचलित नहीं हुए। क्रांतिकारी विचारधारा के क्षेत्र में दो तरह के लोग होते हैं। एक तो वे लोग जो यथास्थितिवादी वर्ग चेतना से वास्तविक तौर पर कभी ऊपर ुउठने का साहस नहीं कर पाते लेकिन नई और लीक से हटकर प्रतिपादित विचारधारा के प्रति उनके मन में आकर्षण इसलिए रहता है ताकि वे उससे जुडऩे का स्वांग करके अपनी व्यक्तिगत छवि अलग बना सकेें। विचारधारा की इस फैशन परस्ती में भारत के कम्युनिस्ट सबसे आगे हैं। वर्ग विहीन समाज का सपना साकार हो इसके लिए वे बहुत चिंतित नहीं थे। कम्युनिस्ट का लेबिल लगाकर उन्होंने खुद की छवि चमकाई इसीलिए वे किताबी जकड़बंदियों से पार जाकर कोई रणनीति नहीं बना सके। यही नहीं जिन लोगों ने इन जकड़बंदियों से अलग कोई प्रयोग करने की कोशिश की और उम्मीद यह थी कि उनके प्रयोग से ज्यादा प्रभावी हस्तक्षेप होगा उन्हें बदनाम करके ध्वस्त कर देने में भी उन्हें महारथ हासिल रही है। हद दर्जे के जातिवादी और शोषक वर्ग परस्ती वाले भारतीय कम्युनिस्टों की अलग ही नस्ल है जिन्होंने निर्णायक मौके पर हमेशा दगा करने का काम किया है।

बहरहाल बात हो रही थी कांशीराम की। बुर्जुवा लोकतंत्र में पार्टी चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। कांशीराम दलित अधिकारियों और कर्मचारियों से यह फंड शुरूआत में इकट्ठा करते थे। वामसेफ पर पहले पार्टी का अस्तित्व टिका रहा। आलोचक कहते थे कि कांशीराम निजी अयाशियों के लिए भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को चंदा वसूलकर संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। उन पर यहां तक आरोप लगा कि उन्हें भारत में एक और विभाजन का आधार तैयार करने के लिए सीआईए से पैसा मिल रहा है। कांशीराम ने सारे आरोप सहे और अपने रास्ते पर आगे बढ़ते गए। कांशीराम की जब मृत्यु हुई तो उन आरोपों का जवाब उनके वर्ग शत्रुओं को अपने आप मिल गया। कांशीराम ने अपने परिवार की जायदाद बढ़ाने के लिए पार्टी फंड का एक पैसा खर्च नहीं किया था इसलिए वे इतने बड़े नेता हो गए लेकिन उनका परिवार जहां का तहां रहा। उनका खुद का जीवन भी बेहद सादा था। हाफ शर्ट और पैंट भर पहनावा और कपड़ों के नाम पर कुछ जोड़ी ऐसे पैंट शर्ट। उन्होंने अपना कोई मकान नहीं बनवाया। विवाह नहीं रचाया कि उनकी संताने पार्टी फंड का दुरुपयोग कर पातीं। दूसरे वर्ग के ईमानदार नेताओं की बहुत चर्चा होती है पर कांशीराम किसी भी ईमानदार नेता से ज्यादा ईमानदार थे यह बात उनके जीवन का पूरा सच आ जाने के बावजूद कोई कहने के लिए तैयार नहीं है।

जिसे मीडिया कहते हैं हमेशा वह समाज के प्रभावशाली तबके का उपकरण होती है इसीलिए अपने लोगों के साथ संवाद के कांशीराम ने दूसरे साधन अपनाए। वे खुलेआम पत्रकारों को अपनी सभाओं से भगा देते थे। दबेकुचले समाज से सुदूर क्षेत्रों में जाकर सीधा संपर्क करने की उनकी रणनीति ने उनके आंदोलन को भ्रूण हत्या का शिकार होने से बचाया। अगर उन्होंने मीडिया का जरा भी सहारा लिया होता तो इससे जुड़ी मंथराएं उनके आंदोलन का किला वैसे ही भेद देतीं जैसे पश्चिमी मीडिया और समाज प्रेरित प्रतिमानों के सम्मोहन में गर्वाचोफ ने ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रका का नारा देकर सोवियत संघ को बर्बाद कर दिया। क्रांतिकारी बदलाव के लिए काम करने वाली शक्तियों को कांशीराम की इस मामले में सोच से हमेशा प्रेरणा लेनी होगी कि वे मुुनाफे पर विश्वास करने वाली और वर्गीय दृष्टिकोण पर अपनी मानसिकता में पूर्णतया आधारित मीडिया पर विश्वास न करें।
कांशीराम की सिद्धांत वादिता का दूसरा पहलू यह है कि उन्होंने सुरक्षित क्षेत्र से कभी चुनाव न लडऩे का संकल्प घोषित किया था और बार-बार चुनाव हारने के बावजूद इस संकल्प का उन्होंने अंत तक निर्वाह किया इसीलिए वे केवल एक बार इटावा से मुलायम सिंह के सहयोग से लोक सभा में पहुंच पाए थे। कांशीराम की जुबान बहुत खरी थी। वे बोलने और विचार व्यक्त करने में कभी भी कूटनीतिक कपट का सहारा नहीं लेते थे। जो उनका वोट बैंक था जरूरत पडऩे पर उन्होंने उसकी कमियों पर भी बेबाक टिप्पणी करने से गुरेज नहीं किया और उन्हें राजनीतिक तौर पर इसकी वजह से भारी हानि उठानी पड़ी।

लेकिन इंसान कितना भी महान क्यों न हो वह गलतियों का भी पुतला होता है। कांशीराम ने भी गलतियां कीं। जब वे देवीलाल और चंद्रशेखर जैसे घोर दलित विरोधी जातियों के रहनुमाओं के साथ मंडल आयोग की रिपोर्ट विफल करने के लिए हुई सभा में बैठ गए। वे उन शक्तियों के प्रति बहुत सतर्क रहते थे जो बहुजन वर्ग से न होते हुए भी उसके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष का दावा रखते थे। इसी कारण वे कम्युनिस्टों को हरा सांप कहते थे और जहां चंद्रशेखर से जुडऩे में उन्हें परहेज नहींथा वहीं वीपी सिंह के वे हद दर्जे के आलोचक थे। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के बतौर मायावती पर पूरा भरोसा करके भी बहुत गलती की। मायावती उन्हें भारत रत्न दिलाने के लिए तो संघर्ष कर रही हैं लेकिन उन्होंने बहुजन मिशन का तानाबाना छिन्नभिन्न करके उनके सारे संघर्ष और तपस्या को बेमानी कर दिया है। आज बसपा वर्ण व्यवस्था से कहीं नहीं लड़ रही बल्कि वर्ण व्यवस्था को जातिगत भाईचारा समितियां बनाकर उन्होंने और ज्यादा टानिक दिया है। उनके क्रियाकलापों से पिछड़ी जातियां दलित आंदोलन से हमेशा के लिए छिटक गई हैं। पूर्ण बहुमत से उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के बाद भी मायावती ने बसपा के एजेंडे को अमल में लाने की दृढ़ता नहीं दिखाई। पहले उन्होंने प्रचारित किया था कि वे जमीन की सीलिंग की सीमा घटाकर बारह एकड़ करेंगी लेकिन बाद में वे इससे मुकर गईं। आज वे वर्ण व्यवस्था विहीन समाज की रचना के लिए वोट नहीं मांगतीं बल्कि कांशीराम के मिशन की बजाय उन्हें अपनी गर्वनेंस के आधार पर वोट मांगना ज्यादा फलदाई लगता है। निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दशक में जितने मुख्यमंत्री बने उनमें मायावती का कार्यकाल सबसे बेहतर साबित हुआ है लेकिन बहुजन समाज ने कांशीराम के पीछे खड़े होकर जो संघर्ष किया और जो जोर जुल्म झेले उनका मकसद किसी अच्छे प्रशासक के हाथ में सत्ता सौंपकर तात्कालिक तौर पर संतुष्ट हो जाना नहीं था। मायावती के यथास्थितिवाद से बहुजन समाज के लिए आगे चलकर फिर शोषण और दमन की स्थितियां कायम हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। भारत में हर सामाजिक आंदोलन की नियति तार्किक परिणति पर पहुंचने के पहले ही स्खलित हो जाने की रही है। कांशीराम के आंदोलन के संदर्भ में भी बसपा के मायावती युग को देखते हुए यही बात कही जा सकती है।






के पी सिंह 
ओरई 

सारा लॉरेन की फिल्म "बरखा" 27 मार्च को प्रदर्शित होगी

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sara loren
नई दिल्ली(अशोक कुमार निर्भय) :  ज़हारा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म के निर्माता शबाना हाश्मी व सह निर्माता संजय बेड़िया है जिसमे सारा लॉरेन के साथ ताह शाह मुख्या किरदार में नज़र आएँगे।  फिल्म में रोमांस के साथ साथ काफी सारे रचनात्मक मोड़ है।  हॉट एंड बोल्ड अभिनेत्री सारा लॉरेन की हिंदी  फिल्म "बरखा"पूरे भारत में 27 मार्च को प्रदर्शित की जाएगी।  फिल्म के गाने काफी कर्णप्रिय है जो दर्शको को ध्यान में रखकर बनाये गए है।  फिल्म में दर्शको को अभिनेत्री सारा लॉरेन के  बोल्ड सीन के साथ साथ मन को भाने वाली लोकेशन भी देखने को मिलेंगी। 

फिल्म के नाम "बरखा"से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की फिल्म की कहानी "बरखा"का किरदार निभाने वाली अदाकारा सारा लॉरेन के इर्द गिर्द घूमती है. "बरखा"के जरिए दर्शको को मोहक अंदाज़ की "मर्डर ३"की निशा फिर से देखने को मिलेंगी। फिल्म के सह निर्माता संजय बेड़िया का कहना है की "बरखा एक महिला प्रधान फिल्म है. दर्शको को काफी अरसे बाद एक अच्छी कहानी वाली फिल्म देखने को मिलेगी।इस फिल्म को एसेल विज़न प्रोडक्शंस वितरक कंपनी  रिलीज़ कर रही है।  फिल्म के ट्रेलर को दर्शक सोशल मीडिया के ज़रिये देख सकते है. फिल्म के गाने सारे म्यूजिक चैनेलो पर धूम मचा रहे है। 

निर्माताओ को फिल्म से काफी उम्मीदें है इसलिये फिल्म को दुनिया भर में भी रिलीज़ करने की तैयारियां की जा रही है.  फिल्म के मुख्या कलाकार - सारा लॉरेन, ताहा शाह, प्रियांशु चटर्जी,स्वेता पंडित, पुनीत इस्सर आदि है, निर्माता शबाना हाश्मी व सह निर्माता संजय बेड़िया, निर्देशक शहदाब  मिर्ज़ा, छायांकन मुजाहिद राजा, एडिटर- मयूरेश सावंत, पटकथा व् संवाद - शहदाब  मिर्ज़ा  व लॉरेंस जॉन, डायलाग- लॉरेंस जॉन, संगीत - अमज़द नदीम, गीतकार- शादाब अख़्तर व समीर अनजान, गायक -शबरी ब्रदर्स ,सोनू निगम , राहत फ़तेह अली खान, श्रेया घोशाल, शहदाब  मिर्ज़ा , कृष्णा व् पी आर ओ संजय भूषण पटियाला है।      

हाशिमपुरा फैसला पर उपरी अदालत में चुनौती की तैयारी

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हाशिमपुरा नरसंहार मामले में निचली अदालत के फैसले पर निराशा जताते हुए प्रतिष्ठित नागरिकों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह ने आज कहा कि इस विषय को उपरी अदालत में ले जाया जाएगा. उन्होंने घटना के बाद की उत्तर प्रदेश की सरकारों के रूख को ‘शर्मनाक’ बताया.

पीड़ितों, उनके परिजनों, वकीलों और प्राध्यापकों के एक समूह में अदालती आदेश पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश राजिंदर सच्चर ने कहा कि इस विषय को उपरी अदालत में चुनौती दी जाएगी.

पीड़ितों की वकील विंद्रा ग्रोवर कहा , ‘‘हम अदालत में मामले की फिर से अपील करेंगे.’’ गौरतलब है कि 1987 में मेरठ के कुछ हिस्सों में दंगा होने के बाद उत्तर प्रदेश प्रोवेंशियल आम्र्ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) के कथित तौर पर 19 कर्मियों ने हाशिमपुरा से 40 से अधिक मुसलमानों को उठा लिया था और उनकी हत्या कर दी थी.

सच्चर ने घटना की जांच के बाद उस वक्त आईके गुजराल और अन्य के साथ तैयार की गई पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीज की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करने को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों की आलोचना की. घटना के वक्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे जबकि कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.

भारतीय पत्रकारिता के पुरौधा गणेश शंकर विद्यार्थी महान कर्मयोगी !!

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  • विद्यार्थी जी के 84 वाॅ वलिदान दिवस पर बिशेष आलेख-
  • शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान -याद रखेगा हिन्दुस्तान -संतोष गंगेले:

ganesh-shankar-vidyarthi-punytithiभोपाल- आजादी के पूर्व भारत देश को आजाद कराने के लिए भारतीय पत्रकारिता में देश के साहित्यकार, समाजसेवी, राजनेताओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है ।  भारत को आजाद कराने में राजा राममोहन राय, पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालगंगाधर तिलक, पं.दीनदयाल उपाध्याय जैसे साहित्यकारों के बीच गणेषषंकर विद्यार्थी जी ने पत्रकारिता की कलम पकड़ी थी । षहीद गणेषषंकर विद्यार्थी जी के बलिदान भारतीय पत्रकारिता के लिए प्रेरणा स्त्रोत व मार्गदर्षन बना । उनके बलिदान को याद रखेगा हिन्दुस्तान । इसके साथ ही महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पत्र अभ्युदय से भी जुड़ गये । इन समाचार पत्रों से जुड़े और स्वाधीनता के लिए समर्पित पंडित मदन मोहन मालवीय की विचाार धारा के साथ समाज वे देष सेवा में लगे रहे । 

भारत देश की आजादी के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने बाले भारतीय पत्रकारिता के पुरौधा शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म आश्विन शुक्ल चतुर्दशी संवत् 1947 दिनांक 26 अक्टूवर 1889 को श्रीमती गोमती देवी श्रीवास्तव (कायस्थ) की कोख से हुआ, उस समय श्रीमती गोमती देवी अपने पिता जी के घर अतरसुईया मोहल्ला इलाहावाद में थी इसलिए उनका जन्म ननिहाल में हुआ । इनके पिता का नाम बाबू जय नारायण लाल एक शिक्षक थें , यह परिवार ग्वालियर राज्य के मुुंगावली (अशोकनगर )में रहा करता था, । सामप्रदायिक एकता के प्रतीक अमरषहीद गणेष षंकर विद्यार्थी जी के प्रपितामह (परदादा) का नाम मुंशी देवी प्रसाद था जो हथगाॅव जिला फतेहपुर उत्तर प्रदेश के निवासी थें । इनके दादा जी का नाम बंशगोपाल उनके पुत्र बाबू जय नारायण लाल थें जो शिक्षक रहे ।   गणेश शंकर विद्यार्थी जी का विवाह 19 बर्ष की आयु में हेा गया था । अपनी अल्य आयु में जो कार्य किए वह समाज व देश हितों के लिए किए गये , उन्हे भारतीय इतिहास में उचित स्थान दिया गया है ।   देष की स्वतंत्रता के लिए किए गए गणेष शंकर विद्यार्थी जी के सराहनीय प्रयासों को कभी भुलाया नही जा सकता हे । उन्होने जाति - धर्म के भेद-भाव को मिटाकर मानव-धर्म को सर्वोपरि माना और अंततः इसी के लिए उन्होने अपने प्राणों को भी बलिदान कर दिया । विद्यार्थी जी देश भक्त, समाजसेवी, कुशल वक्ता और महान राजनीतिज्ञ ही नही , बल्कि वह देष के निर्भीक पत्रकारों में से थे ।  अंग्रेजों की गुलामी के समय भारत देष में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में कर्मयोगी और उर्दू में स्वराज्य नामक समाचार पत्रों के माध्यम से विद्यार्थी जी ने अपनी लेखनी से लिखना शुरू किया था, देश के लोगों को जगाने का काम यहीं से शुरू किया ।  जब विद्यार्थी जी को यह लगने लगा कि हम अपनी लेखनी स्वतंत्र नही चला पाते है तो उन्होने अपना स्वयं का समाचार पत्र प्रताप का प्रकाशन किया । उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य मानव जाति का कल्याण उनका उद्देश्य रहा उन्होने हमेशा प्रताप समाचार पत्र के माध्यम से गरीव, असहाय, जनता की अवाज बुलंद किया करते थें । उनकी मृत्यू 25 मार्च 1931 को हुई थी । यह दिन बलिदान दिवस के रूपमें मनाया जाता है । 

साहसी, वुध्दिमान, योग्यता के साथ साथ मानवता के धनी गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने अपने मित्र पंडित सुन्दर लाल के सम्पर्क में आने के बाद उन्हे पत्रकारिता से मोह हो गया और उन्होने क्राॅतिकारी महर्षि अरविन्द घोष के कर्मयोगिन से प्रभावित होकर एक पत्र कर्मयोगी  समाचार पत्र को अपने लेख लिखने लगे यही से उन्होने पत्रकारिता की शुरूआत की इसके बाद अनेक समाचार पत्रों से जुड़ते चले गये ।  उन्होने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सरस्वती समाचार पत्र में संपादन के साथ अनेक सालों तक वह पत्रकारिता के साथ जुड़े रहे । उन्होने तय किया कि वह देश की स्वाधीनता के लिए स्वयं अपना समाचार पत्र प्रकाशित कर कार्य करेगे ।   उन्होने अभ्युदय समाचार पत्र से कार्य छोड़कर पंडित शिवनारायण मिश्र के साथ बिचार विमर्ष करने के बाद स्वंय का समाचार पत्र प्रकाशन करने का तय किया । विधिक कार्यावाही करने के वाद 9 नवम्बर 1913 को प्रताप समाचार पत्र का उदय हुआ था । षहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने कड़ी मेहनत व त्याग परिश्रम के साथ पत्रकारिता को जीवित रखा । वह स्वंय समाचार पत्र तैयार करते थें तथा उसको छापकर साईकिल से वितरण किया करते थें , कानपुर से निकलने वाली सभी रेल गाडि़यों में समाचार पत्र वितरण करना एवं अपने समाचार पत्र प्रताप का प्रचार-प्रसार करना उनकी दिनचर्या हो चुकी थी । उन्होने पत्रकारिता को समाजसुधार व देश प्रेम के लिए कलम का उपयोग किया ।            

शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी  जी ने  देश व समाज के लिए समाचार प्रकाशित करने का होसला बुलंद किया । वह  अंग्रेजी हुकुमत के सामने झुके नही जिस कारण अनेकों वार प्रताप समाचार पत्र को बंद किया गया तथा गणेश शंकर विद्यार्थी जी को जेल भेजा गया ।   23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी सरकार ने सरदार भगत सिंह को फाॅसी दी जिससे  जनता बोखला गई तथा सरकार के खिलाफ नारे बाजी दंगों में परिवर्तन हो गई । कानपुर में हिन्दु मुस्लिम दंगों को अनेकोवार रोकने के बाद भी दंगे शांत को पूरा प्रयास किया लेकिन कुछ समाज विरोधी लोगों ने उनकी हत्या कर दी । वह काला दिवस  25 मार्च 1931 को अपने साथी राम रतन गुप्त जी चैवे गोला मोहल्ला से होते हुए मठिया पहुॅचे जहां कुछ देषद्रोही लोगों ने घेर कर गणेष षंकर  विद्यार्थी जी की हत्या कर दी । वह देश प्रेमी तथा समाजसुधारक रहे । उनकी कलम व साहस को आज हम सभी प्रणाम करते है । 

उम्मीदों पर खरा उतरेगी आस्ट्रेलियाई टीम- क्लार्क

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michael clarke
आस्ट्रेलिया के कप्तान माइकल क्लार्क ने कहा है कि उन्हें पूरा भरोसा है कि गत चैंपियन भारत के खिलाफ गुरूवार को होने वाले सेमीफाइनल मुकाबले में उनकी टीम अपने देश के क्रिकेट प्रेमियों की उम्मीदों पर खरा उतरेगी। क्लार्क ने कहा 'आस्ट्रेलिया विश्व की नंबर एक टीम है इसलिए जाहिर तौर पर हमसे उम्मीदें जुड़ी हुई हैं और हमें सेमीफाइनल में इसपर खरा उतरने में कोई परेशानी नहीं होगी। हमें पता है कि दबाव में कैसा प्रदर्शन करना है और पाकिस्तान के खिलाफ क्वार्टरफाइनल मुकाबले में टीम के खिलाड़ियों ने इसका शानदार उदाहरण भी पेश किया है।' 

उन्होंने कहा 'आस्ट्रेलियाई टीम में एक तरफ तो मेरे अलावा शेन वाटसन और मिशेल जॉनसन जैसे खिलाड़ी हैं जिन्हें विश्वकप में खेलने औैैैैर चैंपियन बनने का अनुभव है वहीं दूसरी तरफ जोश से भरे हुए बिल्कुल निडर युवा खिलाड़ी हैं जिनमें गजब की क्षमता है। हमारी टीम बेहद संतुलित है इसलिए हम सेमीफाइनल मुकाबले के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।'क्लार्क ने कहा 'इस मुकाबले को हम एक सामान्य मैच की ही तरह ले रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा विकेट लेना और अधिक से अधिक रन बनाना ही हमरी मुख्य रण्नीति होगी। पिछले कुछ समय से हम अपनी तैयारी में निरंतरता के साथ ही प्रदर्शन में सुधार कर रहे हैं और यही हमारे लिए जीत का मूलमंत्र है।

टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश) की खबर (25 मार्च)

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प्रोफेसर डाॅ.उषा सिंह ने इण्टरनेशनल सेमिनार में लिया भाग

tikamgarh news
टीकमगढ़। गत दिवस इंदौर के क्रिश्चयन काॅलेज में समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित और म.प्र. विज्ञान एवं टैक्नोलाॅजी परिषद भोपाल से प्रायोजित‘‘साइंस टैक्नोलाॅजी एण्ड सोसायटी’’ पर केन्द्रित इण्टरनेशनल सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें टीकमगढ़ की राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय पुस्तकों की लेखिका एवं शासकीय कन्या महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की प्रोफेसर डाॅ. उषा सिंह ने टीकमगढ़ जिले का प्रतिनिधित्व करते हुये अपना ‘‘जनसंचार तकनीक’’ समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव’’ पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया यही नही उनके शोध पत्र को इण्टरनेशनल स्टेण्डर्ड बुक नम्बर की पुस्तक ‘‘सांइस टैक्नोलाॅजी एण्ड सोसाइटी’’ में प्रकाशित भी किया गया इस अवसर पर लेखकों प्रोफसरों साहित्यकारों एवं शुभचिन्तकों द्वारा अपनी शुभकामनायें दी है। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि फिजी में भारत सरकार के पूर्व राजदूत प्रो.आई.एस. चैहान विशिष्ट अतिथि के रूप में मध्याचंल सोशलाॅजीकल सोसाइटी के अध्यक्ष डाॅ.महेश शुक्ला तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के डाॅ.के.एन.भट्ट रहे तथा अध्यक्षता डाॅ.डेविड ने की। इण्टरनेशनल सेमिनार में प्रदेश-देश और विदेशो के समाजशास्त्रियांे वैज्ञानिकों ने बड़ी संख्या में सहभागिता कर अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये

कोलगेट मामले में मनमोहन पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

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कोयला ब्लॉक आवंटन मामले घोटाला मामले में निचली अदालत द्वारा तलब किये जाने के आदेश के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री डॉ़ मनमोहन सिंह ने आज उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। यह मामला उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला की कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज को ओडिशा के तालाबिरा में कोयला ब्लॉक आवंटित करने में कथित गड़बड़ी से जुड़ा है। 

डॉ़ सिंह उस वक्त कोयला मंत्रालय भी संभाल रहे थे। कोयला ब्लॉक घोटाले से संबंधित विशेष अदालत ने पिछले दिनों डॉ़ सिंह, एवं तत्कालीन कोयला सचिव पी सी पारेख को आठ अप्रैल को तलब किया है। डॉ़ सिंह की याचिका की सुनवाई इसी सप्ताह हो सकती है

विशेष : देश में राष्ट्रीय दलों को चुनौती देते क्षेत्रीय दल

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नई दिल्ली। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में 543 में से 44 सीटें ही मिलने से ऐसी राजनीतिक तस्वीर नजर आने लगी है कि राष्ट्रीय पार्टी की सरकार को क्षेत्रीय दल की एक चुनौती नजर आने लगी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा स्पष्ट बहुमत लेकर सत्ता में है, जबकि गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गोवा व झारखंड राज्यों में स्पष्ट बहुमत से विजयी परचम लहराए हुए है। पंजाब, महाराष्ट्र और हाल ही में बनी जम्मू कश्मीर सरकार  में भी भाजपा की भागीदारी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला, जबकि भाजपा को 70 में से 3 क्षेत्रों में ही जीत हासिल हुई थी। 

बहुजन समाज पार्टी सीपीआई और सीपीएम लंबे समय से राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त किए हुए है, मगर अब उनकी मान्यता पर भी ग्रहण लगने के आसार नजर आने लगे है और जल्द ही यह भी क्षेत्रीय पार्टियों की कतार में लग सकती है। बसपा, सीपीआई और सीपीएम का जनाधार भी तेजी से सिकुड़ता जा रहा है। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल से सीपीआई और सीपीएम का अस्तित्व हाशिए पर पहुंच गया है और इन तीनों राज्यों में इनकी उपस्थिति राष्ट्रीय पार्टी का तगमा सुरक्षित नहीं रख सकती। लोकसभा में सीपीएम के नौ तथा सीपीआई का एक सांसद है। क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता आंकड़ा जिस प्रकार से बढ़ रहा है, भविष्य में देश की राजनीति पर भारी पड़ सकता है। 

भारतवर्ष में विधेयक लोकसभा के साथ साथ राज्यसभा से भी पारित करवाना होता है और राज्यसभा के सदस्य राज्यों की विधानसभाओं से चुनकर आते है। लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का नजरिया अलग-अलग होता है,जिसकी पुष्टि दिल्ली में हुए लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव के परिणाम करते है। मतदाताओं ने दर्शा दिया कि यह आवश्यक नहीं कि जिस पार्टी की केंद्र में हो, प्रदेशों में भी उसकी परचम लहराया जाए। लोकसभा में बहुमत हासिल हो और राज्यसभा में भी, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि राज्यसभा में प्रत्येक दो वर्ष उपरांत एक तिहाई नए सदस्य चुनकर आते है। अब यदि राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें होगी, तो जाहिर है कि राज्यसभा में भी उनके प्रतिनिधि दस्तक देंगे। ऐसी स्थिति में लोकसभा में बहुमत पाकर भी सरकार अपनी मर्जी मुताबिक कानून बनाने में सफल नहीं हो सकेगी, क्योंकि क्षेत्रीय दलों की दबदबे वाली राज्यसभा सेे विधेयक पारित करवाना उसके लिए आसान नहीं रहेगा। 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शानदार विजय से ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जाने लगी थी कि इसका उभार भी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में हो सकता है, मगर आप की मौजूदा स्थिति संभावनाओं को खारिज करती है। आम आदमी पार्टी से जो लोगों को उम्मीदें थी, उन पर ग्रहण लगता दिखाई देने लग गया है और यह  भी एक क्षेत्रीय दल तक ही सिमट कर रह जाएगी। देश के कई राज्य उड़ीसा, तमिलनाडू इत्यादि में क्षेत्रीय दल विजयी परचम लहराए हुए है। राष्ट्र का मौजूदा राजनीतिक मानचित्र दर्शाता है कि भविष्य मे देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। 




अशोक कुमार निर्भय 
वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

महान सम्राट अशोक की जयंती पटना में

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महान सम्राट अशोक की जयंती ‘दी बुद्धिस्ट सोसायटी आॅफ इण्डिया (बिहार शाखा) समता सैनिक दल (दोंनो संगठनों के संस्थापक अध्यक्ष डा॰ बी॰आर॰ अम्बेडकर है) सम्राट अशोक फाउंडेशन, अ॰भा॰ सम्राट अशोक विचार मंच के संयुक्त तत्वावधान में सन् 2009 से पटना में पुनः मनायी जा रही है। भारत का प्राचाीन इतिहास, बौद्ध ग्रंथ महावंश एवं दीब्यावदान के अनुसार सम्राट अशोक की जयंती चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को बड़े धूम धाम से तत्कालीन देशवासियों द्वारा मनायी जाती थी जो सम्राट अशोक की सातवीं पीढ़ी के सम्राट बृहद्रथ के शासन तक एक पर्व का रूप धारण कर चुका था। वृहद्रथ की हत्या कर पुष्पमित्र शुंग ने शासन व्यवस्था पर कब्जा जमा लिया। शंुग ने सिर्फ शासन व्यवस्था पर ही कब्जा नहीं किया बल्कि यहाँ के लोगों के धर्म, संस्कार एवं परम्पराओं को भी मिटाने की भरपूर कोशिस की। परिणाम स्वरूप तत्कालीन रीति-रिवाज ही नष्ट नहीं हुए बल्कि भारत टुकड़े-टुकडे़ में बट गया लोग अंधविश्वास एवं रूढि़वादिता का गुलाम बन कर रह गये। सोने की चिडि़या कहलाने वाला देश कंगालों एवं मदारियों का देश कहलाने लगा। जिस धरती से पैदा हुये बुद्ध धम्म को विश्व गुरू का दर्जा प्राप्त हुआ, जिस धरती को नमन करने दुनिया भर के लोग भारत की यात्रा करते है। वहाँ के वासिंदे लगभग आठ सौ वर्षो तक उस ज्ञान विज्ञान से अछूते रहे।
बाबा साहब डा॰ बी॰आर॰ अम्बेडकर ने ‘दी बुद्धिस्ट सोसायटी आॅफ इण्डिया की स्थापना कर बुद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ किया। वे सम्राट अशोक की शासन व्यवस्था से काफी प्रभावित थे। उनकी प्रेरणा से सम्राट अशोक से जुड़े महत्वपूर्ण पर्वों को पुनः जागृत कर देश की गौरवशाली परम्परा की शुरूआत बिहार में फिर से की गयी है। 27 मार्च को प्रातः 8 बजे समता शांति सद्भावना मार्च कार्यक्रम स्थल से शहीद स्मारक तक बेली रोड, आयकर गोलम्बर, आर ब्लाक के रास्ते जायेगा, जहाँ शहीदों को नमन कर पुनः कार्यक्रम स्थल लौटेगा। मुख्य कार्यक्रम दोपहर दो बजे से प्रारम्भ होगा। कार्यक्रम का शुभारम्भ भंते प्रज्ञा दीप (बोधगया) के नेतृत्व में भिक्खु संध के बुद्ध बंदना मंगल पाठ से होगा कार्यक्रम में श्री अवधेश प्र॰ कुशवाहा मंत्री निबंधन, उत्पाद एवं मद्य निषेध, श्री नौशाद आलम मंत्री अल्पसंख्यक कल्याण, श्री सी.पी. सिंहा अध्यक्ष किसान आयोग डा॰ रेणु कुमारी स॰वि॰स॰पूर्व मंत्री सहित दर्जनों मंत्री पूर्व मंत्री, सांसद, विधायक एम.एल.सी भाग लेने की स्वीकृति दे चुके है। कार्यक्रम में सम्मिलित होने हेतु राज्य के कोने-कोने से करीब दस हजार आयोजक संगठनों के प्रतिनिधि पटना पधार रहे है। कार्यक्रम का उद्देश्य फिर से भारत की गौरवशाली परम्परा की वापसी एवं समाज में करूणा मैत्री एवं भाईचारे की भावना को जागृत करना है।

विदिशा (मध्यप्रदेश) की खबर (25 मार्च)

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शपथ ग्रहण समारोह आज, वन मंत्री शामिल होंगे

प्रदेश के वन मंत्री डाॅ गौरीशंकर शेजवार 26 मार्च गुरूवार को विदिशा आएंगे। वन मंत्री का प्राप्त दोैरा कार्यक्रम अनुसार गुरूवार की दोपहर 2.30 बजे रायसेन से प्रस्थान कर दोपहर तीन बजे विदिशा आएंगे और जिला पंचायत के सभागार कक्ष में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे। ज्ञातव्य हो कि जिला पंचायत के नवनिर्वाचित अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सदस्यों के लिए शपथ ग्रहण समारोह 26 मार्च की दोपहर तीन बजे से जिला पंचायत के सभागार कक्ष में आयोजित किया गया है।

एसडीएम ने किया मंडी का निरीक्षण 

विदिशा एसडीएम श्री आरपी अहिरवार और सीएसपी श्री नागेन्द्र पटेरिया ने आज जिला मुख्यालय की कृषि उपज मंडी का औचक निरीक्षण किया। उनके द्वारा कृषक विश्राम गृह और मंडी की कैंटीन के संबंध में आवश्यक निर्देश दिए गए। 

कार्यवाही
एसडीएम श्री अहिरवार ने मंडी प्रागंण में कृषकों के लिए संचालित कैंटीन के निरीक्षण के दौरान वहां दूषित खाद्य सामग्री पाए जाने, दो घरेलू सिलेण्डर का उपयोग करते पाए जाने एवं नीला केरोसिन तेल जप्त करने की कार्यवाही उनके द्वारा की गई है। वही खाद्य सामग्री के नमूने लिए गए और परीक्षण हेतु प्रयोगशाला प्रेषित किए गए। कैंटीन में साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल पूर्ति के संबंध में उनके द्वारा कैंटीन संचालक को आवश्यक कार्यवाही करने हेतु कहा गया है। 

परीक्षण केन्द्र का जायजा
मंडी प्रांगण मंे स्थित मिट्टी परीक्षण केन्द्र का भी दोनो अधिकारियों के द्वारा जायजा लिया गया। वहां उपस्थित अधिकारियों के द्वारा बताया गया कि किसानों से प्राप्त होने वाली मिट्टी का परीक्षण दो घंटे की अवधि में पूरा किया जाता है। एक साथ यदि सौ से अधिक किसान भी मिट्टी परीक्षण हेतु मिट्टी उपलब्ध कराते है तो दो घंटे के अंतराल में ही परीक्षण कार्य पूर्ण किया जा सकता है। परीक्षण के उपरांत किसानों को स्वाइल हेल्थ कार्ड पर समुचित जानकारी अंकित कर उपलब्ध कराई जाती है। एसडीएम श्री अहिरवार ने संबंधित अधिकारी से कहा कि किसानों को भी परीक्षण विधि की जानकारी दे और संभव हो सके तो उनके द्वारा लाई गई खेतों की मिट्टी का परीक्षण उनके समक्ष करें ताकि वे अधिक से अधिक संतुष्ट हो सकें। 

विश्राम गृह
एसडीएम श्री अहिरवार ने किसानांे के लिए मंडी प्रागंण में बनाएं गए विश्राम गृह का भी अवलोकन किया और वहां साफ-सफाई नियमित कराए जाने एवं कृषकों के लिए स्वच्छ पेयजल आपूर्ति, बिजली व्यवस्था ठीक कराने के निर्देश मंडी सचिव को दिए। 

चर्चा
एसडीएम श्री अहिरवार और सीएसपी श्री पटेरिया ने मंडी प्रागंण में गल्ला व्यापारियों और मंडी अध्यक्ष के प्रतिनिधि से वार्तालाप की। जिसमें मुख्य रूप से मिर्जापुर रोड़ पर बनाई गई नवीन कृषि उपज मंडी में शिफ्ट होने में अनाज व्यापारियों को क्या दिक्कते आ रही है के संबंध में जानकारी प्राप्त की। उन्होंने अनाज व्यापार संघ के अध्यक्ष श्री विनोद जैन, उपाध्यक्ष श्री अजय जैन और महामंत्री श्री राजेश अग्रवाल एवं मंडी सचिव श्री राजेश शर्मा से मंडी शिफ्ट कराए जाने के संबंध में गहन विचार विमर्श किया। 

यातायात
एसडीएम श्री अहिरवार ने इस दौरान संबंधितों से कहा कि विदिशा नगर में यातायात बाधित ना हो इसके लिए समुचित प्रबंध सुनिश्चित किए जा रहे है। इस कार्य में अनाज व्यापार संघ का भी सहयोग आवश्यक है। 

गुलाब भेंट कर हेलमेट लगाने का संदेश दिया

विदिशा एसडीएम श्री आरपी अहिरवार और सीएसपी श्री नागेन्द्र पटेरिया ने आज दो पहिया वाहन चालकों को हेलमेट लगाने का संदेश गुलाब स्टीक भेंट कर दिया। दोनो अधिकारियों ने जालोरी पेट्रोल पम्प पर पहुंचकर पूर्व में जारी आदेश तदानुसार हेलमेट लगाकर आने वाले वाहन चालकों को ही पेट्रोल प्रदाय किया जाएगा का निरीक्षण किया। एसडीएम श्री अहिरवार ने दो पहिया वाहन चालकों को हेलमेट की उपयोगिता से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि गणमान्य नागरिकों के सुझाव पर दो दिन की मियांद और दी गई है। इसके पश्चात् यदि कही किसी पेट्रोल पम्प में बिना हेलमेट के पेट्रोल देता हुआ पाए जाने पर पेट्रोल पम्प के संचालक पर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। पेट्रोल पम्प पर जिन दो पहिया वाहन चालकों द्वारा हेलमेट लगाकर पेट्रोल लिया जा रहा था उनका एसडीएम द्वारा उत्साहवर्धन किया गया। उनसे कहा कि जब भी वाहन चलाएं हेलमेट का उपयोग जरूर करें। सीएसपी श्री पटेरिया ने दो पहिया वाहन चालकों को समझाईंश देते हुए हेलमेट लगाने के फायदों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि दो दिन के बाद पुलिस द्वारा सघन जांच की जाएगी। जो भी दो पहिया वाहन चालक बिना हेलमेट के वाहन चलाते अथवा पेट्रोल लेते पाया जाएगा तो उसके खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही होगी।

समर्थन मूल्य पर 125 उपार्जन केन्द्रांे पर खरीदी कार्य जारी
  • स्टील सायलों में 25 हजार मैट्रिक टन गेहूं भण्डारित किया जाएगा
  • किसानों को एसएमएस से सूचनाएं प्रेषित

विदिशा जिले में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी का कार्य 25 मार्च से प्रारंभ हो गया है जो 19 मई तक किया जाएगा। इसके लिए जिले में 125 उपार्जन केन्द्र बनाएं गए है। अपर कलेक्टर श्रीमती अंजू पवन भदौरिया ने जानकारी देते हुए बताया कि समर्थन मूल्य पर गेहूं उपार्जन के लिए जिले में पंजीकृत समस्त कृषकों को एसएमएस के माध्यम से खरीदी केन्द्र पर अपनी उपज लाने हेतु सूचित किया गया है। 

स्टील सायलो
जिले में पहली बार समर्थन मूल्य पर किसानों से क्रय किए गए गेहूं के भण्डारण हेतु स्टील सायलो का उपयोग किया जाएगा। जिसका निर्माण राज्य भण्डार निगम द्वारा किया गया है। खरीदी केन्द्र पठारी हवेली स्थित सायलो पर ही खरीदी का कार्य 30 मार्च से किया जाएगा। जिसकी सूचना संबंधित क्षेत्र के दस ग्रामों के पंजीकृत कृषकों को एसएमएस से दी गई है। पठारी हवेली में बनाएं गए स्टील सायलों में दस खरीदी केन्द्रों का 25 हजार मैट्रिक टन गेहूं भण्डारित किया जाएगा। उक्त केन्द्र पर मार्केटिंग विदिशा, पैक्स विदिशा, डाबर, रंगई, खमतला, भदरवाडा गांव, लश्करपुर, पैरवारा, इमलिया एवं हांसुआ क्षेत्र के कृषकों का गेहूं उपार्जन सीधे सायलो भंडार केन्द्र से जोड़ा गया है। 

क्षमता
स्टील सायलों पर प्रतिदिन लगभग तीन सौ ट्रालियों को तौलने की क्षमता है एक समय पर एक साथ 12 ट्रालियों की तुलाई की जा सकती है। इससे किसानों के समय की बचत होगी एवं तुलाई हेतु अधिक समय तक इंतजार नही करना होगा। जिले के ऐसे कृषक जिनका रकवा अधिक होने से उपार्जन अधिक होता है तो उनका गेहूं दो से तीन दिन तक खरीदी केन्द्र पर तुलता रहता है जिससे छोटे किसानों को ही अधिक समय तक इंतजार करना पड़ता है। परन्तु सायलो केन्द्र पर समस्त बडे एवं छोटे किसानों की उपज की तुलाई शीघ्र की जा सकती है। 

वारदानों से मुक्ति
सायलो में बिना वारदाने के गेहूं की तुलाई कम से कम समय में की जाती है। जबकि अन्य खरीदी केन्द्रों पर वारदानो में गेहूं भरकर तुलाई की जाती है जिस कारण से तुलाई में अधिक समय लगता है। सायलो से जहां किसानों को समय की बचत और परेशानियों से एवं  हम्मालांे द्वारा उनका गेहूं अधिक मात्रा में तौल लिया जाता है जैसी शिकायत से निजात मिलेगी। सायलों में किसान के समक्ष पूरी ट्राली की तौल इलेक्ट्राॅनिक तौल कांटे पर की जाएगी। 

पशु वध कर मांस विक्रय पर प्रतिबंध

आगामी रामनवमी 28 मार्च को और महावीर जयंती दो अपै्रल को विदिशा निकाय क्षेत्र में किसी भी प्रकार के पशु का वध कर मांस विक्रय नही किया जाएगा के आदेश निकाय के स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा जारी किए गए है। आदेश में उल्लेख है कि निकाय सीमा क्षेत्र में पूर्व उल्लेखित तिथियों में यदि कोई मांस विक्रय करते पाया जाता है तो उसके खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की जाएगी। 

आपदा प्रबंधन के उपायांे से अवगत हुए ग्राम पंचायतों के सचिव

जिले की ग्राम पंचायतों में पदस्थ सचिवों के लिए दो दिवसीय आपदा प्रबंधन कार्यशाला का आयोजन डिस्ट्रिक होमगार्ड कार्यालय में आयोजित किया गया था। डीएमआई भोपाल के श्री सौरभ कुमार ने आपदा प्रबंधन पर विस्तृत जानकारी दी। उनके द्वारा बाढ़ से जनधन हानि को रोकने तथा अचानक आई प्राकृतिक आपदा जैसे भूकम्प, आगजनी इत्यादि के दौरान बरती जाने वाली सावधनियों से भी अवगत कराया। इस अवसर पर ग्राम पंचायतो के सचिवों की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया गया। कार्यशाला को डिवीजनल कमाण्डेंट होमगार्ड श्री केएस परिहार, डिस्ट्रिक कमाण्डेंट श्री संतोष कुमार शर्मा तथा कंपनी कमाण्डर श्री यूके तिवारी ने भी सम्बोधित किया। 

आठ प्र्रकरणों में आर्थिक मदद जारी

कलेक्टर श्री एमबी ओझा ने आठ प्रकरणों में आरबीसी के प्रावधानों के तहत आर्थिक मदद जारी करने के आदेश जारी कर दिए है। जारी आदेश में उल्लेख है कि सर्पदंश से कुरवाई तहसील के ग्राम बढोह के बल्लू की मृत्यु हो जाने पर मृतक के भाई श्री रूप सिंह को पचास हजार रूपए की तथा सिरोंज में गोपालनगर की श्रीमती सूरजबाई की मृत्यु हो जाने पर मृतिका के पति श्री बाबूलाल को पचास हजार रूपए की तथा आकाशीय बिजली से नटेरन तहसील के ग्राम सकराई के ओमप्रकाश की मृत्यु हो जाने पर मृतक के पिता श्री चतर सिंह को एक लाख रूपए की और आगजनी के पांच प्रकरणों में भी आर्थिक मदद जारी की गई है जिसके अनुसार लटेरी के श्री हफीज को 19 हजार पांच सौ रूपए, श्री अब्दुल सलाम को 33 हजार रूपए, सिरोंज के ग्राम मुगलसराय के रणधीर सिंह को तीन हजार रूपए और कुरवाई के बाजीराबाद निवासी श्री प्रहलाद पुरी को पांच हजार नौ सौ रूपए एवं ग्यारसपुर तहसील के ग्राम खिरियाजागीर के श्री रमेश देवाराम को तीन हजार रूपए की आर्थिक मदद जारी की गई है। 

सरस्वती षिषु/विद्या मंदिर केषवनगर में वार्षिक पुरस्कार वितरण   समारोह सम्पन्न

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सरस्वती षिषु/विद्या मंदिर केषवनगर टीलाखेडी में वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया गया । जिसमें मुख्य अतिथि के रूप मे ड्राॅ जे0 एस0 चैहान ने भैया/बहिनो को पुरस्कार वितरित किये । तथा अपने अतिथि उद्बोधन मे कहा कि- ‘‘बच्चो से बड़ा दुनिया में कोई धर्म नही होता, इनको पढ़ाना, लिखाना व आगे बढ़ाना संस्था का दायित्व है । ’’ कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री धर्मनारायण जी चतुर्वेदी ने की व उन्होने अपने उद्बोधन मे ‘‘ बच्चों को सदा अपनी उन्नति की ओर अग्रसर रहने के लिये प्रेरित किया ’’ पुरस्कार वितरण समारोह के अन्र्तगत (चित्रकला, रंगोली, निबंध, स्वरचित कविता, गीतापाठ, अंत्याक्षरी, तात्कालिक भाषण, एकल अभिनय, प्रष्नमंच, शास्त्रीय नृत्य, व्यक्तिगत गीत, तबला वादन, विज्ञान चलित-अचलित माॅडल तथा विद्यालय की नैमित्यिक गतिविधियों, अनेकानेक उत्सव, कक्षा सज्जा, गणवेष सज्जा, बस्ता सज्जा आदि) इसके अतिरिक्त षिषु वर्ग के खेल आदि में क्रमषः स्नेहा शर्मा, विनिता ठाकुर, विकास मीना, प्रिया सोनी, नीलू नरवरिया इत्यादि भैया/बहिनो को पुरस्कार वितरित किए गए । विद्यालय की बहिनों द्वारा इस अवसर राजस्थानी नृत्य प्रस्तुत किया गया । विद्यालय प्राचार्य श्री योगेन्द्र जी कुलश्रेष्ठ ने पुरस्कृत सभी भैया/बहिनो को शुभकामनाऐं दी तथा आभार व्यक्त किया । इस अवसर पर समस्त विद्यालय परिवार का सहयोग सराहनीय रहा । कार्यक्रम संचालन सुश्री रिचा उपाध्याय द्वारा किया गया । 

उत्तराखंड की विस्तृत खबर (25 मार्च)

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विधायक ने किया केदारनाथ में श्रमदान, निम के मजदूरों का किया हौसला अफजाई 
  • 14 कोटेज बनकर तैयार, 37 भवन तोड़े क्षतिग्रस्त 

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देहरादून, 25 मार्च (निस)। केदारनाथ में कार्य कर रहे नेहरू पर्वतारोहण संस्थान निम के मजदूरों के हौसला अफजाई को संसदीय सचिव एवं विधायक शैलारानी रावत धाम पहुंची। उन्होंने मजदूरों को मोटीवेट किया और उनके कार्यों की सराहना भी की। विधायक शैलारानी के यात्रा से पहले धाम में पहुंचने पर निम के अधिकारी-कर्मचारियों ने उनका जोरदार स्वागत किया और निम के हवलदार रंजीत नेगी ने धाम का विजीट करवाकर विधायक शैलारानी रावत को कार्यों की जानकारी दी। इस दौरान विधायक श्रीमती शैलारानी रावत ने केदारनाथ में श्रमदान भी किया। उन्होंने कहा कि यात्रा शुरू होने में महज एक माह का समय शेष रह गया है। ऐस में जरूरी है कि जल्द से जल्द धाम में व्यवस्थाएं बना ली जांय। जिससे यात्रियों को कोई परेशानी का सामना न करना पड़े। उन्होंने कहा कि निम के अधिकारी और कर्मचारियों के साथ मजदूर बधाई के पात्र हैं, जिनकी बदौलत धाम की सूरत बदली जा रही है। निम के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने केदारनाथ की विधायक का धन्यवाद ज्ञापित। वहीं केदारनाथ में इन दिनों कोटेज बनाने का कार्य किया जा रहा है। अब तक 14 कोटेज बन गये हैं। इसके साथ ही बर्फ हटाने का कार्य किया जा रहा है। गौरीकंुड से केदारनाथ पैदल मार्ग को दुरूस्त करने में निम के मजदूर जुटे हुए हैं। आपदा से क्षतिग्रस्त भवनों को तोड़ा जा रहा है। निम के मजदूरों ने 37 सरकारी भवनों को तोड़ दिया है। इस दौरान विधायक श्रीमती शैलारानी के साथ लोनिवि के सेकेक्ट्री अरविंद यांकी भी मौजूद थे। 

डा नंदन पाण्डे के खिलाफ दर्ज होगी याचिका 

देहरादून, 25 मार्च (निस)। उत्तराखण्ड के राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पाल ने राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति की हैसियत से, कुमायूँ विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में मई 2013 में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर डा. हेमवती नंदन पाण्डे की नियुक्ति के विरूद्ध डा. सीमा पाण्डे द्वारा, उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 यथाप्रवृत्त उत्तराखण्ड राज्य, के अन्तर्गत दायर याचिका पर निर्णय दिया है। इस संदर्भ में, सर्वाेच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों का संज्ञान लेने के साथ-साथ चयन हेतु यू.जी.सी द्वारा निर्धारित तथा विश्वविद्यालय द्वारा अंगीकृत अर्हता नियमों की परिधि में वर्णित चयन का परीक्षण करने पर पाया गया कि चयन समिति द्वारा संदर्भित प्राविधानों के अनुरूप कार्यवाही नहीं की गयी।  कुलाधिपति द्वारा, डा. हेमवती नंदन पाण्डे के चयन को नियमों के विपरीत मानते हुए विश्वविद्यालय की कार्य परिषद को, विश्वविद्यालय के नियमों व उपनियमों के अन्तर्गत अग्रेतर कार्यवाही करने के लिए आदेशित किया गया है।   

गोरखा भर्ती रैली पौंटा साहिब में 9 अप्रैल को 

देहरादून, 25 मार्च (निस)। निदेशक भर्ती, सेना भर्ती कार्यालय शिमला हिमाचल प्रदेश ने अवगत कराया है कि देहरादून जनपद के गोरखा युवा आवेदकों हेतु जनपद सिरमौर हिमाचल प्रदेश के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल तरूवाला पौंटा साहिब में 9 अप्रैल 2015 को भर्ती रैली का आयोजन किया गया है। इच्छुक व पात्र आवेदक निर्धारित स्थान पर अपने समस्त प्रमाण पत्र (कक्षा आठ,हाईस्कूल, इन्टरमीडिएट, गोरखा कलास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, चरित्र प्रमाण पत्र, अविवाहित प्रमाण पत्र, दस रंगीन पासपोर्ट साईज फोटोग्राफ,आधार कार्ड) की सत्यापित छायाप्रति तथा मूल प्रमाण पत्र के साथ 9 अपै्रल 2015 प्रतिभाग कर सकते है।

अमृता ने सात करोड़ पचास लाख की योजनाएं स्वीकृत कराईं

देहरादून, 25 मार्च (निस)। राज्य की पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं रामपुर क्षेत्र की विधायक अमृता रावत ने कहा कि अपने इस वर्तमान कार्यकाल में वे लगभग सात करोड़ पचास लाख लागत की योजनाएं अपने रामपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए स्वीकृत कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013-14 तक की लगभग सभी योजनाओं का निर्माण किया जा चुका है और वर्ष 2014-15 की योजनाओं पर कार्य प्रगति पर है। उन्होंने स्पष्ट किया कि योजनाओं के निर्माण में गुणवत्ता पर किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा और कार्यदायी संस्थाओं को निर्धारित समय सीमा के अन्दर ही योजना का निर्माण पूरी गुणवत्ता एवं पारदर्शिता के साथ पूरा करना होगा।
विधायक अमृता रावत ने स्पष्ट किया कि सी0सी0 मार्गांे के निर्माण, छोटी पुलियों का निर्माण, पैदल मार्गों का निर्माण, लघु सिंचाई योजनाओं आदि निर्माण महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना के अन्तर्गत किया जा सकता है इसलिए इन योजनाओं के निर्माण हेतु विधायक निधि से धनराशि स्वीकृत करने की मांग कम से कम की जाय। उन्होंने कहा कि विधायक निधि से ऐसी योजनाओं का निर्माण किया जाय जिससे ग्राम पंचायतों की परिसम्पत्ति में वृद्धि हो सके और योजना का लाभ स्थानीय जनमानस को मिल सकें। उन्होंने क्षेत्रीय निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों से भी अपेक्षा की है कि विधायक निधि से स्वीकृत योजनाओं के निर्माण में गुणवत्ता बनाए रखने हेतु अपना सहयोग प्रदान करेंगे।

पब्लिक स्कूलों की मनमानी के खिलाफ दून में प्रदर्शन

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देहरादून, 25 मार्च (निस)। उत्तराखंड महिला मंच के आह्वान पर विभिन्न संगठनों व अभिभावकों ने पब्लिक स्कूलों की मनमानी के खिलाफ नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। अभिभावकों का कहना है कि यदि पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर अंकुश न लगा तो शीघ्र ही उग्र आंदोलन किया जाएगा। विभिन्न संगठनों से जुडे़ लोग बुधवार को गांधी पार्क के पास एकत्रित हुए और पब्लिक स्कूलों की मनमानी के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। संगठनों का कहना था कि पब्लिक स्कूल लगातार अपनी मनमानी पर उतर आये हंै, वह अभिभावकों का शोषण कर रहे हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। सरकार को चाहिए की ऐसे पब्लिक स्कूलों के खिलाफ ठोस कानून बनाकर अंकुश लगाया जाए। स्कूली शिक्षा को लेकर सरकार की गैर गंभीरता के चलते सरकारी स्कूल बर्बादी के कगार पर आ चुके हंै, इसे बचाने के लिए एक आंदोलन शुरू किया जायेगा। उन्होंने अंग्रेजी स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने पर तत्काल रोक लगाये जाने की मांग सरकार से की है। सभी ने एकजुटता का परिचय देते हुए स्कूलों के खिलाफ मोर्चा खोलने का आह्वान किया। उनका कहना है कि उत्तराखंड की आम जनता के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा व अंग्रेजी स्कूलों की बढ़ती जा रही लूट के प्रति बेपरवाह बनी सरकार को जगाते हुए प्रभावी कार्यवाही किये जाने को लेकर पूर्व में भी इस दिशा में ज्ञापन दिया गया, एक सप्ताह का समय दिया गया था, लेकिन आज तक किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की गई है। सरकारी स्कूलों की दुर्दशा में सुधार और अंग्रेजी स्कूलों की लूट पर रोक लगाये जाने की आवश्यकता है।

विश्व शांति के लिए बौद्ध दर्शन की जरूरतः डा. अयूब 

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मसूरी, 25 मार्च (निस)। एमपीजी कालेज में बौद्ध दर्शन, प्राचीन गौरव व भविष्य में संभावनाएं विषय पर आईसीएचआर के तत्वाधान में आयोजित राष्टीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि तेलांगना विवि के इतिहास विभाग के अध्यक्ष एवं साउथ इंडिया हिस्ट्री कांग्रेस के अध्यक्ष डा. अयूब अली ने कहा कि विश्व शांति के लिए वर्तमान पीढ़ी को बौद्ध के दर्शन से अवगत कराना जरूरी है। एमपीजी कालेज प्रांगण में आयोेजित सेमिनार में डा. अयूब अली ने कहा कि देश में कई बड़े व सुविधायुक्त विवि हैं लेकिन वहां ऐसे प्रेरणादायी सेमिनार आयोजित नहीं होते। उत्तराखंड के मसूरी में छोटे महाविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर की गोश्ठी कर महान  महत्वपूर्ण कार्य कर दिखाया है। इसके लिए संयोजक व कालेज प्रबंधन धन्यवाद का पात्र है। उन्होंने कहा कि भारत में विभिन्न धर्मों के साथ ही बौद्धधर्म आया और यहां पर उसके विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया जो निश्चित ही गोष्टी की सफलता का प्रतीक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नालंदा विवि के इतिहास विभाग के अध्यक्ष व बौद्ध शिक्षा के विद्वान डा. आरसी नेगी ने कहा कि संसार में ज्ञान के कई माध्यम हैं लेकिन फिर भी मानस की तृप्ति नहीं होती। भारतीय संस्कृति प्राचीन है जिसे बचाये रखने का प्रयास किया जाना चाहिए। बुद्ध ने पूरे विश्व को शांति का संदेश दिया है। बुद्ध दर्शन मंे कोई बंधन नहीं है उसमें लिंग, देश, जाति, अमीर गरीब का भेद नहीं है। इससे पूर्व प्रधानाचार्य डा. सुधीर गैरोला ने सेमिनार में आये देश के विद्वानों का स्वागत व अभिनंदन किया व कहा कि बुद्ध दर्शन में दर्द वेदना है कुछ भी शास्वत नहीं है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह सेमिनार बुद्ध दर्शन को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण होगा।  कार्यक्रम का संचालन डा. प्रमोद भारतीय ने किया। इस मौके पर संयोजक डा. अजय परमार, डा. श्याम प्रसाद व्यास, आरएन त्रिपाठी, जयनारायण सहित बड़ी संख्या में देश के विभिन्न विश्व विद्यालय के प्रतिनिधियों सहित रमेश भंडारी, विनोद सेमवाल, डा. सुनील पंवार, डा. लीपिका कंबोज, डा. आरएस शुक्ला, शालिनी गुप्ता, डा. रमेश चैहान, गंगाशरण राजपूत आदि मौजूद थे।

सुमित हत्याकांड में एक अरोपी चढा पुलिस के हत्थे
  • हत्या का मास्टर माइंड सुरेन्द्र नेगी ऊर्फ सूरी अब पुलिस की पहुच से बाहर

कोटद्वार, 25 मार्च (निस)। कोटद्वार के बहुचर्चीत सुमित पटवाल हत्याकांड का पुलिस ने खुलासा करते हुये बताया कि हत्या कांड का मास्टर मांइड सुरेन्द्र नेगी ऊर्फ सूरी नेगी है। पुलिस द्वारा तीन दिन दिन की भागदौड के बाद हत्याकांड में गाईड की भुिमका निभाने वाले गुर्गे दीपक रावत को सीसीटीबी पुटेज के आधार पर दीपक और हत्यारो की बाईक के आधार पर दबोचा। दीपक के अनुसार सुमित पटवाल ने उसे कई बार धमकाया और पीटा। इसी बीच दीपक का सम्पर्क सुरेन्द्र नेगी से हुआ। सुरेन्द्र नेगी और सुमित पटवाल के बीच झण्डीचैड स्थित 10 बीघा भूमि के मामले विवाद चल रहा था। इस भूमि में पहले दोनो पार्टनर थे। पैसे के लेने देने को लेकर दोनो के बीच मनमुटाव हो गया। जो बाद में दुशमनी में बदल गया। सूरी ने पटवाल को मारने की रणनीती बनायी जिसके लिये उसने दीपक को मोहरा बनाते हुये उसे कोटद्वार के भूमि सम्बन्धि मामलो में पटवाल की जगह पार्टनर बनाने का लालच दिया। दीपक ने सूरी के झासे में आकर सूरी को सहयोग देना शुरू कर दिया। सूरी ने पटवाल की हत्या करने के लिये रूडकी के दो सूटरो ढाई लाख में तैयार किया। दीपक को सूटरो को गाईड करने का काम दिया गया। जिसमें दीपक ने सूटरो को पटवाल के आने जाने के रास्तो सहित तमाम उन जगहो की जानकारी दी जहां पर सुमित पटवाल का उठना बैठना अक्सर रहता था। दीपक के बताये गये रास्तो और जगहो की हत्यारो ने पूर्व में 13 मार्च को कोटद्वार पहुचकर रैकी की और 14 मार्च को रूडकी चले गये थे। फिर 21 मार्च को कोटद्वार पहुचे हत्यारो की योजना पटवाल को पदमपुर में हो रहे जागरण में मारने की योजना थी लेकिन यहा भी सुमित उनके हाथ नही लगा। 22 मार्च को हत्यारो ने सुमित का सुबह से ही पीछा शुरू कर दिया। और उन्हे मौका सांम पौन छः बजे लगा जब सुमित अपने घर बेलाडाट चैराहे होते हुये जा रहा था तो हत्यारो ने बेलाडाट चैराहे पर उसे रोक कर कुछ मिनट बात कर उलझाया और इसी दौरान 30 एमएम पिस्टल से सर से सटा कर फायर झौक दी। साथ ही 315 बोर के कट्टे से भी एक फायर झौका। जब तक आसपास के लोेग कुछ समझते हत्यारे प्लानिग के अनुसार स्टेशन रोड पहुचकर अपनी बाईक खडी कर जीप से फरार हो गये। प्लानिग के अनुसार हत्यारो ने अपनी बाईक को रेलवे स्टेशन पर छोड दिया उसके बाद दीपक की बाईक से राष्ट्रीय राजमार्ग से  जीप में बैठकर फरार हो गये। हत्यारे रूडकी निवासी विशाल ऊर्फ जौली 20 पुत्र विजेन्द्र कुमार दूसरा जौनी वास्तविक नाम मालूम नही है जोकि दोनो हरिद्वार के बाहदराबाद में एक चाक्लेट फैक्ट्री में कार्यरत बताये जा रहे है। पुलिस ने मृतक की माता की रिपार्ट के आधार पर धारा 120/बी,302 और 320 के तहत मुकदमा चार लोगो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया। तीन दिन बीत जाने के बाद चार आरोपीयो में पुलिस के हाथ हत्यारो का गुर्गा ही हाथ लगा। पुलिस के अनुसार गोल्डी और चैधरी नाम के दो लोगो के शामिल होने की बात भी कही जा रही, लेकिन यह जांच पुलिस की केवल सपनो की उडान तक ही है। क्योकि पुलिस को इन दोनो लोगो का वास्तविक नाम और पता मालूम नही है। पुलिस को सुमित पटवाल के घर की तलाशी में अपने ही विरूद्ध एक प्रमाण मिला है। जिसमें सुमित पटवाल ने 2 फरवरी 2014 को पुलिस को तहरीर देकर कुछ लोगो से अपनी जान की सुरक्षा की गुहार लगायी थी। जिसे कोटद्वार पुलिस ने रिसीव तक नही किया था। मामले को हल्के में लेकर टालने का प्रयास किया। जिसका का खामियाजा सुमित और उसके परिवार को भुगतना पडा।

जी जिंदगी का नया शो‘ ‘वक्त ने किया क्या हसीं सितम’

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Waqt Ne Kiya Kya Haseen Sitam
अजादी के बाद देश का बंटबारा और उसके बाद त्रासदी के बीच पनपते प्यार को बखूबी से दर्शाया गया है, जी जिंदगी के नये शो ‘वक्त ने किया क्या हसीं सितम’ में। जो 23 मार्च सोमवार से शनिवार राम 8 बजे दर्शकोें के बीच है। वैसे तो इस कथानक को टीवी शो ‘तमश’,डिस्कवरी आफ इंडियाए फिल्म गर्म हवा,गदर एक प्रेम कहानी और पिंजर में भुनाया जा चुका है।यह दिल को छू लेने वाली इश्क की ऐसी दास्तां है,जो उन असंख्य लोगों की  भावनाओं को दर्शाती है,जिससे होकर वह गुजरते है।

शो की कहानी आजादी से पूर्व 1946 की कहानी है,जब दोनों मुल्क एक थे। हसन, बानों से प्यार करते है,लेकिन बदलतें हालात दोनों को जुदा कर देते है। गदर में बानो का पूरा परिवार मारा जाता है,लेकिन परिस्थितियों के चलते उसे हालत किस मोड पर खडा कर देते है उसी का चित्रण है। शो के माध्यम से फवाद खान एक बार फिर से प्रेमी हसन के रूप में जिंदगी पर वापिसी कर रहे है। बानो के किरदार में  सनम बलोच है। इस शो में समीना पीरजादा,अहसान खान,सबा कमर अरैर मेहरीन राहील सहित अनेक पाकिस्तानी कलाकार नजर आएंगें।जी जिंदगी की बिजनिस हेड प्रियंका दत्ता ने कहा ‘ इस रियल्टी शो में प्यार और जुदाई की जाटिल समस्याओं को बेहद खूबसूरती से दर्शाया गया है।जो आम दर्शको की पंसद कहा जा सकता है।



अशोक कुमार निर्भय 
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर (25 मार्च)

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कुऐ मे डुबने दो भाईयो की मोत, छोटे को बचाने मे गई बडे भाई की जान

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पारा--यहा से करिब पांच किलो मिटर दुर ग्राम खयडूबडी के तलाबपाडा फलिया मे बडी हदय विदारक घटना घटी।यहा कुऐ मे नहाने गए प्रेम बारीया के दो पुत्र अनिल 8वर्ष व मडीया 6 वर्ष की कुऐ मे डुबने से मोत होगई। बताया जाता हे कि दोनो भाई करिब दो बजे पहुचे जहा कुए की मुडेर का एक हिस्सा टुटा हुआ था ।इसी दोरान मडीया का संतुलन बिगड गया ओर वह कुए मे जा गिरा उसे डुबता देख बडा भाई उसे बचाने के लिए गया ओर वह भी डुब गया।सुचना मिलने पर ग्रामीणे ने कुए को खाली करवा कर शव कां निकलवाया इस दोरान पुलिस ने वहा मोके पर पहुच कर पंचनामा बनाकर झाबुआ कोतवाली मे मर्ग कायम किया।

समग्र स्वच्छता अभियान का आयोजन, ग्रामिणो को दिलवाई शोचालय निर्माण की शपथ

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पिटोल---स्वच्छता चोपाल एवं षौचालय के प्रति जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 20 मार्च 2015 को ख्याति फुडस सामुदायीक विकास कार्यक्रम के अन्र्तगत ग्राम नोगाव मे राष्टिय पेयजल स्वच्छता एवं जागरूकता का अभियान का आयोजन ग्राम पंचायत नोगाव मे किया गया जिसमे झाबुआ जिले के कुल 16 गाॅवों की महिलाओं एवं जन प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की षुरूआत षोषल इन्टरप्राईज मेनेजर श्री रघुवीर सिंह ठाकुर द्वारा स्वच्छता एवं षोचालयों की जरूरतों पर चर्चा से की गई। इसके बाद पी एच ई विभाग के उपयंत्री श्री पी के द्विवेदी द्वारा षुद्व पेयजल के लाभ एवं दुषित जल से होने वाली बिमारी के बारें मे बताया गया तथा लोगो से सुरक्षित जल पिने का आग्रह किया। इसके बाद मेघनगर जनपद की समंवयक श्री मति रजनी मेडा एवं झाबुआ जनपद समंवयक श्री सागर सिंह पचाया द्वारा लोगो को षोचालयों की जरूरते एवं सम्रग स्वच्छता अभियान के अन्र्तगत षौचालय निर्माण मे मिलने वाले सहयोग के बारे मे जानकारी दी इसके बाद लोगो ने अपने गाॅव एवं षहर मे षौचालय निर्माण की षपथ ली । अन्त मे नोगाव पंचायत के सचिव श्री प्रकाष वसुनिया ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर ग्राम पंचायत नोगाव कि सरपंच श्री मति लक्ष्मी पति दिपा मावी, छायन पंचायत सरपंच श्रीमति दुर्गा पति जुवानसिंह निनामा ,सहित सुखलाल पाल गा्रम बावडी एवं ख्याति फुडस सीनियर सुपरवायजर श्री अमरलाल वर्मा एवं समस्त स्टाफ मौजूद थे।

दि नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित झाबुआ के कार्य एवं प्रगति को भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारी प्रबंधक अनिल कालभोरे द्वारा सराहना 

झाबुआ ---झाबुआ जिले मे सेवारत झाबुआ एवं अलिराजपुर कार्यक्षैत्र मे पिछले 18 वर्षो के अल्प कार्यकाल मे आदिवासी जनसंख्या वाली दि नागरिक सहकारी बैंक झाबुआ ने काफी प्रगति के आयाम छुए है, यह प्रषंसा रिजर्व बैंक इंडिया क्षैत्रिय कार्यालय भोपाल के प्रबंधक श्री अनिल कालभोरे ने अपने 10 दिवसीय सूक्ष्म निरीक्षण के बाद बैंक के संचालक मंडल की बैठक को संबोधित करते हुवे व्यक्त की । श्री कालभोरे ने कहा कि मैने अपने निरीक्षण के दौरान इस वर्ष 5 शहरी सहकारी बैंको का निरीक्षण कार्य पूर्ण किया है  इसमे झाबुआ बैंक इन सभी बैंको से श्रैष्ठ रही है । बैंक का परफारमेन्स सराहनीय रहा है । इस आदिवासी जिले मे विषेषतः चांदी के आभूषण तारण पर दिये जाने वाले ऋण मे साहुकारो द्वारा आदिवासीयो का भयकंर शोषण होता है वही इस बैंक ने अपने स्वयं के ऋण का 90 प्रतिषत से अधिक ऋण चांदी के तारण पर दिया गया है और जिले के गरीब वर्ग के लोगो को साहूकारो के चुंगल से छुड़ाया है इस ऋण की अवधि 1 वर्ष होती है का पालन इस बैंक मे हुआ है । निरीक्षण अधिकारी ने बैंक प्रबंधक श्री प्रदीप त्रिपाठी एवं बैंक के मात्र 2 स्टाफकर्मी के होते जो कार्य किया है - वह प्रषंसनीय है रिजर्व बैंक के सभी नाम्र्स का शत प्रतिषत पालन हुआ है तथा बैंक अपने प्रारंभ काल से ही लाभ की स्थिति मे है । वित्तीय वर्ष 2013-14 के अंकेक्षण मे बैंक को ”अ” वर्ग प्रदान किया गया है । श्री कालभोरे ने सुझाव दिया कि बैंक हाउसिंग लोन, व्यवसायिक ऋण, वाहन ऋण का भी फैलाव करे ।श्री कालभोरे ने कहा कि रिजर्व बैंक के कड़े नियमो का भी बैंक ने पूर्णतः पालन किया है । बैंक ने साढ़े बाईस प्रतिषत धन वेष्ठन शासकीय प्रतिभूति मे किया है । आपने संचालक मंडल के सदस्यो के प्रष्नो का भी समाधान किया । प्रदेश के वरिष्ठ सहकारी नेता बैंक के संस्थापक अध्यक्ष श्री लक्ष्मीनारायण पाठक की अध्यक्षता मे आयोजित बैठक मे श्रीमती किरण शर्मा, पुरूषोत्तम प्रजापति(उपाध्यक्ष), संचालक-गण शैलेष दुबे, विजय नायर, श्रीमती आषुका लोढ़ा, राजेन्द्र उपाध्याय, डाॅ. भगवानदास काबरा, नामदेव आचार्य, भैरूसिंह राठौर, पीटर बबेरिया आदि समस्त संचालक गण उपस्थित थे ।

किसान गेहूॅ खरीदी केन्द्र से उर्वरक भी ले सकते है, किसान अग्रिम भण्डारण योजना का ले लाभ

झाबुआ---खरीफ 2015 में कृषको को विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों की सहज सुलभता के उददेश्य से मध्यप्रदेश शासन के द्वारा रासायनिक उर्वरकों के अग्रिम भण्डारण की योजना संचालित है। उर्वरक अग्रिम भण्डारण योजना 01 मार्च 2015 से प्रभावशील है। योजना अन्तर्गत जिले में म.प्र. राज्य सहकारी विपणन संघ मार्कफेड तथा जिले में कार्यरत प्राथमिक सहकारी साख समितियों में विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में भण्डारण किया गया है। जो कृषक अपनी खरीफ फसलों के लिए आवश्यक उर्वरक अग्रिम भण्डारण योजना अवधि के दौरान ही प्राप्त करेगे उन्हें इस पर ब्याज की छुट प्राप्त हो सकेगी। खरीफ मौसम के दौरान उर्वरक उठाने में विभिन्न प्रकार की असुविधाओं से बचने और उर्वरक की कीमत पर ब्याज की आकर्षक छूट का लाभ लेने के लिए किसान भाई अग्रिम भण्डारण योजना के तहत अपने क्षेत्र की प्राथमिक सहकारी साख समिति से तत्काल उर्वरक प्राप्त कर शासन की योजना का लाभ ले सकते है। अग्रिम भण्डारण पर होने वाले व्यय की प्रतिपूर्ति शासन के द्वारा की जावेगी। किसान असुविधा से बचने के लिये अग्रिम भण्डारित रासायनिक उर्वरक से अपनी आवश्यकतानुसार प्राप्त करने पर खरीफ 2015 में उर्वरक की कमी जैसी परेशानियों से बच सकेगे। जिले के कलेक्टर द्वारा भी किसान भाईयों से अग्रिम भण्डारण योजना का लाभ लेते हुए उर्वरक समय पूर्व प्राप्त करने की अपील की है। खरीफ 2015 के लिये झाबुआ जिले के लिये 01 मार्च 2015 से 31 मई 2015 तक का विपणनसंघ का डी.ए.पी. का 3300 मेट्रिक टन, काम्पलेक्स का 373 मेट्रिक टन, यूरिया का 7682 मेट्रिक टन, म्यूरेट आॅफ पोटाश का 770 मेट्रिक टन एवं सहकारी समितियों के लिये डी.ए.पी. का 2640 मेट्रिक टन, काम्पलेक्स का 298 मेट्रिक टन, यूरिया टन, यूरिया का 6402 मेट्रिक टन, म्यूरेट आॅफ पोटाश का 578 मेट्रिक टन एवं इसी प्रकर कृषको के लिये डी.ए. पी. का 1760 मेट्रिक टन, काम्पलेक्स का 224 मेट्रिक टन, यूरिया को 3841 मेट्रिक टन, म्यूरेट आॅफ पोटाश का 385 मेट्रिक टन कुल लक्ष्य रखा गया है। उपरोक्त लक्ष्य के विरूद्ध आज दिनांक तक विपणनसंघ में डी.ए.पी.का 1805 मेट्रिक टन, काम्पलेक्स का 125 मेट्रिक टन, यूरिया का 2561 मेट्रिक टन, म्यूरेट आॅफ पोटाश का 270 मेट्रिक टन का भण्डारण किया जा चुका है। इसी प्रकर जिले की सहकारी समितियों में आज दिनांक तक विपणनसंघ में पी.ए.पी. का 897 मेट्रिक टन, काम्पलेक्स का 103 मेट्रिक टन, यूरिया का 622 मेट्रिक टन, म्यूरेट आॅफ पोटाश का 83 मेट्रिक टन का भण्डारण किया जाकर उत्तरोत्तर भण्डारण कार्य निरंतर जारी है। किसानो की सुविधा के लिए कलेक्टर ने खरीदी केन्द्रो पर उर्वरक भी रखवाने के लिये सहकारी बैंक के महाप्रबंधक श्री कुर्मी को निर्देशित किया है।

नव निर्वाचित जिला पंचायत अध्यक्ष/उपाध्यक्ष/सदस्यों का प्रथम सम्मेलन आज 26 मार्च को

झाबुआ---म.प्र. शासन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग भोपाल से प्राप्त निर्देशों के तहत नव निर्वाचित जिला पंचायत अध्यक्ष/उपाध्यक्ष/सदस्यों का प्रथम सम्मेलन दिनांक 26 मार्च 2015 को प्रातः 11 बजे जिला पंचायत झाबुआ के परिसर में आयोजित होगा। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत झाबुआ धनराजू एस.ने बताया कि आयोजित प्रथम सम्मेलन में जिला पंचायत के वरिष्ठ सदस्य द्वारा समस्त सदस्यों को संकल्प का वाचन करवाया जाकर अध्यक्ष जिला पंचायत द्वारा पद गृहण किया जायेगा।

बैंक ऋण समय पर नियमानुसार चुकाये -- कलेक्टर
  • स्वरोजगार योजना के उद्यमियों का सम्मेलन संपन्न

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झाबुआ---मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना एवं प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत जिन युवाओं को स्वरोजगार के लिए ऋण दिया गया। ऐसे युवाओं को ऋण योजना एवं बैंक ऋण लौटाने के संबंध में जानकारी देने के लिए उद्यमी सम्मेलन का आयोजन आज 25 मार्च को महा प्रबंधक उद्योग कार्यालय परिसर में किया गया। सम्मेलन में आये युवाओं को बताया गया कि बैंक ऋण की किश्ते समय पर नियमानुसार चुकाये। सम्मेलन को संबोधित करते हुए कलेक्टर बी.चन्द्रशेखर ने कहा कि  ऋण वितरण में इस वर्ष जिले का प्रदेश में प्रथम स्थान है यह एक उपलब्धि है किन्तु इसकी सफलता तभी मानी जाएगी जब उद्यमी अपना अच्छा स्वरोजगार स्थापित कर पायेगे। उद्योग विभाग आगे भी उन युवाओं के स्वरोजगार की स्थिति जानकर उन्हे मोटीवेट करते रहे। सम्मेलन को मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्री धनराजू एस ने भी संबोधित किया। शासन की ऋण वितरण योजनाओं में अच्छा कार्य करने वाले बैंक शाखा प्रबंधको को प्रशंसा पत्र वितरित किये गये।

इन्हें मिला प्रशंसा पत्र
बैक आॅफ बडौदा के मुख्य प्रबंधक श्री मीणा, बैक आॅफ इण्डिया के उज्जवल कन्नौजिया, एस.एस.खान कैनरा बैंक, श्री बोहरा आर.आर.बी राणापुर, निरंजन गर्ग आर.आर. बी. उमरकोट के प्रबंधक को ऋण वितरण में सराहनीय कार्य के लिए प्रशंसा पत्र कलेक्टर ने प्रदान किये। सम्मेलन में एलडीएम श्री प्रीतेष पाण्डे ने बैंक से लोन प्राप्त करने एवं बैंक लोन को वापस करने संबंधी प्रावधानों की विस्तृत जानकारी दी। आर सेटी के निर्देशक श्री बंटालू ने आर सेटी द्वारा संचालित प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में बताया। महाप्रबंधक उद्योग श्री मोरे ने उद्योग विभाग की योजनाओं की जानकारी दी। उद्योग विभाग के हितग्राही को गाडी की चाबी भी कलेक्टर ने सौपी।

आज 25 मार्च से गेहूॅ खरीदी प्रारंभ

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झाबुआ---आज 25 मार्च से गेहूॅ खरीदी केन्द्रो पर गेहूॅ खरीदी प्रारंभ हो गई है। शासन द्वारा 1450 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेहॅ खरीदा जा रहा है। किसान को उसके गेहूॅ का भुगतान बैंक खाते में किया जाएगा।

एसएमएस से दी गई जानकारी
जिले के किसान को किस दिन किस केन्द्र पर अपना गेहॅू विक्रय करना है इस संबंध में उसके मोबाइल पर खरीदी केन्द्र से एसएमएस से जानकारी भेजी गई है। अगले दो दिनों में जिन किसानो को गेहूॅ विक्रय करना है उनको दो दिन पूर्व एसएमएस कर दिये गये है। जिला आपूर्ति अधिकारी श्री खांन ने किसानो से अपील की है कि जिन किसानों को एसएमएस भेजे गये है वहीं किसान केन्द्र पर पहूचे ताकि अनावश्यक रूप से उन्हें खरीदी केन्द्र पर इन्तजार नहीं करना पडे।

सीर पर पत्थर मारकर की हत्या 
        
झाबुआ--- फरियादी अंति पिता भजा डामर, उम्र 16 निवासी छोटी गोला ने बताया कि उसके पिता भजा व माही (मौसी) मनीषा, तीनों मोसा0 पर उसके मामा के गांव डुंगरा मिलने जा रहे थे तो उसकी माही व बां (पिता) दोनो आपस में गाली-गलौच कर झगडने लगे, डंूगरा के पास आरोपी भजा ने मो0सा0 रोक दी व उसकी माही(मौसी) मनीषा को पत्थर मारा, जो सिर पर लगा, जिससे मनीषा की मृत्यु हो गयी। प्र्रकरण में थाना रानापुर में अपराध क्रमांक 113/15, धारा 302 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया। 

छेडछाड़ का अपराध पंजीबद्ध 
          
झाबुआ--- फरियादिया ने बताया कि वह शादी में से वापस घर आ रही थी। आरोपी अमरसिंह पिता रूग्गा उर्फ रूगनाथ निवासी रेलापाड़ा पीछे से आया व बुरी नीयत से पकड लिया व चिल्लाने पर भाग गया। प्र्रकरण में थाना पेटलावद में अपराध क्रमांक 109/14, धारा 354 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

हुड्डा सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा को नाजायज फायदा पहुचाया: कैग

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कैग ने हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस की पिछली सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने डीएलएफ के साथ जमीन समझौते में रॉबर्ट वाड्रा को नाजायज फायदा पहुंचाया.वाड्रा की कंपनी स्काइलाइट हॉस्पिटलिटी ने गुड़गांव जिले के मानेसर में साल 2008 में 3.5 एकड़ जमीन डीएलएफ के हाथ 58 करोड़ रुपये में बेची थी. हुड्डा सरकार की मंजूरी से इस जमीन के भूमि उपयोग में परिवर्तन (CLU) के बाद इसे डीएलएफ को बेच दिया गया.

हरियाणा विधानसभा में मंगलवार को CAG की रिपट पेश की गई जिसके मुताबिक, 'विशेष आवेदक (वाड्रा की कंपनी) को अनुचित लाभ देने की संभावना खारिज नहीं की जा सकती.'रिपोर्ट में हुड्डा सरकार द्वारा वाड्रा की कंपनी को ज्यादा तवज्जो देने पर भी सवाल उठाया गया है. हुड्डा सरकार ने अपनी तरफ से सीयूएल के लिए तत्काल मंजूरी देकर करके वाड्रा के प्रति एक तरह से आभार जताया. वरिष्ठ अधिकारी अशोक खेमका ने इस सौदे को अवैध बताते हुए इसे रद्द करने का आदेश दिया था.

यह विवाद तब राष्ट्रीय मुद्दा बन गया, जब विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार दिल्ली तथा दिल्ली के आसपास विवादित भूमि सौदों में वाड्रा की मदद के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. गौरतलब है कि वाड्रा ने दिल्ली के निकट हरियाणा के चार जिलों- गुड़गांव, पलवल, फरीदाबाद तथा मेवात में जमीन खरीदी थी. खेमका ने आरोप लगाया था कि वाड्रा के जमीन सौदों से राज्य को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है. उन्होंने साल 2005 के बाद वाड्रा की कंपनी द्वारा खरीदे गए सभी जमीनों के सौदे की जांच के आदेश दिए. लेकिन हुड्डा सरकार ने वाड्रा को क्लिन चिट दे दी और इस आदेश के लिए खेमका पर ही आरोप पत्र दाखिल कर दिया था.

वाजपेयी को 27 मार्च को घर पर दिया जाएगा भारत रत्न

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 27 मार्च को भारत रत्न प्रदान किया जाएगा। वहीं, शिक्षाविद् और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय के परिवार को 30 मार्च को भारत रत्न दिया जाएगा। 

बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर पर देश के इस सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाजा जाएगा। वाजपेयी लंबे समय से बीमार हैं और घर पर ही रहते हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाजपेयी के आवास पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे।

विशेष आलेख : आजादी की ओर बढ़तीं ‘‘कठपुतलियां’’

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‘‘इस बार सरपंच पद अनारक्षित महिला वर्ग का है, कई उम्मीदवार होंगे, मैं भी एक उम्मीदवार हंू, मैं आपके बीच की ही एक सामान्य नागरिक हंू, ना मेरे पास धनबल है, ना बाहुबल और ना ही राजनीतिक छल, बस मेरे पास तो आपका जनबल है जिसके विश्वास से मैंने चुनाव में उतरने का फैसला किया है।” उपरोक्त लेख हाल ही में संपन्न मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में भागीदारी कर रही श्रीमती पदमावती के चुनावी पर्चे का है, एक पेज के इस पर्चे में आगे उन्होंने कई चुनावी वायदे भी किये हैं जिसमें आवासीय पट्टे, राशन की दूकान, गरीबी रेखा, सामजिक सुरक्षा पेंशन में नाम जुड़वाने, आगंनबाडी, सौ दिन का रोजगार और शौचालय जैसे ज़मीन से जुड़ेे और वास्तविक मुद्दे शामिल हैं।  महिला जनप्रतिनिधियों के साथ दशकों से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता इस बात की तस्दीक करते हैं कि जहां भी महिलाओं को पुरुषों के प्रभाव के बिना चुनाव लड़ने का मौका मिलता हैं वहां वह इसी तरह से लोगों के जीवन से जुड़ेे मुद्दों को अपना चुनावी एजेंडा बनाने का प्रयास करती हैं।
          
यही नहीं महिलायें नयी राजनीतिक संस्कृति की मिसाल भी पेश कर रही है, शहडोल जिले की कुसिया बाई पूर्व में तीन बार सरपंच रह चुकी है, इस बार भी वह चुनाव लड़ी थीं, उनके घर की दीवार उनके विरोधी प्रत्याशियों के पोस्टर-पम्फलेट से पटे पड़ेे थे लेकिन उनका खुद का पोस्टर- बैनर दिखाई नहीं पड़ता था, पूछने पर निरुत्तर करने वाला जवाब देते हुए कहती हैं कि “अपने घर पर खुद का ही पोस्टर-बैनर लगाने से क्या फायदा, यहाँ तो सब जानते हैं कि हम चुनाव लड़ रहे हैं।” हालिया चुनाव में सतना जिले के रामपुर बाघेलान से जनपद पंचायत सदस्य के लिए चुनाव लड़ चुकीं कला दाहिया और सरस्वती सिंह की कहानी तो और दिलचस्प है, यह दोनों एक ही सीट से चुनाव लड़ रही थीं और चुनावी प्रतिद्वन्दी होते हुए भी अकसर एक ही साथ चुनाव प्रचार करते हुई दिख जाती थीं, दोनों का तर्क होता था कि हम दोनों अरसे से एक दुसरे की सहेलियां हैं और फिर यह तो मात्र एक चुनाव है, चुनाव तो आते-जाते रहते हैं हमें तो हमेशा एक ही गांव में साथ रहना है और फिर जनता जिसको ज्यादा वोट देगी वही जीतेगा, ऐसे में एक दूसरे के बीच दुश्मनी पाल लेना कोई मायने नहीं रखता है।
           
विकेंद्रीकरण और समावेशी विकास के बीच गहरा संबंध है। समावेशी विकास का मुख्य उद्देश्य नागरिकों में यह एहसास लाना है कि एक नागरिक के तौर पर उनके जेंडर, जाति, धर्म या निवास स्थान के साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना नीति निर्धारण की प्रक्रिया में सभी की भागेदारी महत्वपूर्ण है। हमारे देश में आजादी के बाद ही महिलाओं की समानता और उनकी सभी स्तरों पर भागीदारी का विचार सामने आ सका लेकिन इस विचार को जमीन पर उतारने में हम फिसड्डी साबित हुए हैं। सत्ता में महिलाओं की भागीदारी के संबंध में आई हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत का स्थान 103 वां है। जबकि हमारे पड़ोेसी पाकिस्तान,चीन,नेपाल और अफगानिस्तान की स्थिति हमसे बहुत बेहतर है जो क्रमशः  64 वें, 53 वें 35वें और 39वें स्थान पर हैं। इस मामले में अफ्रीका के सबसे गरीब और पिछड़े समझे जाने वाले कई मुल्क हमसे आगे हैं।
           
तमाम प्रयासों और दबाओ के बावजूद सांसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण विधेयक पारित नहीं हो सका है। लेकिन स्थानीय निकायों में महिलाओं को मौके मिल सके हैं। वर्ष 1956 में बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर त्रि-स्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था लागू हुई थी। लेकिन पंचायतों में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी 1992 में 73 वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद ही सुनिश्चित हो सकी। निश्चित रूप से 73 वां संवैधानिक संशोधन महिलाओं के सशक्त भागीदारी की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुआ है। हालांकि अभी भी एक वर्ग द्वारा इसपर सवाल खड़ा करते हुए कहा जा रहा है, कि महिलाएं इस जिम्मेदारी को उठाने में सक्षम नहीं हैं और उनमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे समाज में सदियों से महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया था और उनके सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में भागेदारी को दबाने का ही काम किया गया। लेकिन जब कभी भी महिलाओं को आगे आने का मौक़ा मिला है, उन्होंने अपने आप को साबित किया है। पंचायतों में महिलाओं की भागेदारी से न सिर्फ उनका निजी, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण हो रहा है, बल्कि स्वशासन और राजनीति में भी गुणवत्तापरक एवं परिमाणात्मक सुधार आ रहे हैं। 
          
एक मिसाल मध्यप्रदेश के धार जिले की जानीबाई भूरिया की है जो 2010 चुनाव जीतकर सरपंच बनीं। उस समय गांव में नशे की बड़ी समस्या थी, उन्होंने पूरे गांव में नशे पर पाबंदी लगा दी, फिर घर-घर जाकर लोगों को समझाया, नहीं मानने पर सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान करते पकड़े जाने पर 200 रु. का जुर्माना लगा दिया। गुटखा-पाउच जब्त किए गये, इसके लिए उन्हें खासा विरोध झेलना पड़ा लेकिन वह इसपर कायम रहीं, आज उनके इस अभियान का असर गांव में दिखने लगा है और गांव में नशा कम हुआ है। 
            
अनूपपुर जिले के ग्राम पंचायत पिपरिया की आदिवासी महिला सरपंच श्रीमती ओमवती कोल के हिम्मत की दास्तान अपने आप में एक मिसाल है, ओमवती कोल निरक्षर हैं, वंचित समूह की होने के कारण वह शुरू से ही गांव के बाहुवलियों के निशाने पर थीं, उनपर तरह-तरह से दबाव डालने, डराने धमकाने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने दबंगों का रबर स्टाम्प बनने से साफ़ इनकार कर दिया और अपने बल पर ग्राम में स्वच्छता को लेकर उल्लेखनीय काम करते हुए गांव में खुले में शौच करने वालों को इससे होने वाले स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं और  सामाजिक दुष्परिणाम से जागरूक किया और उन्हें शासन से सहायता प्राप्त करके सस्ते और टिकाऊ शौचालय बनवाने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने शासन द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहायता एवं तकनीकी जानकारी की मदद से गांव की सड़कें बनवायी। शासन द्वारा उनके गांव को निर्मल ग्राम भी  घोषित किया गया ।
          
महिलाओं ने अपने भागीदारी और इरादों से पंचायतों में न सिर्फ विकास के काम किये हैं साथ ही साथ उन्होंने विकास की इस प्रक्रिया में महिलाओं व गरीब-वंचित समुदायों को जोड़ने के काम को भी अंजाम दिया है। इस दौरान उनका सशक्तिकरण तो हुआ ही है, उन्होंने सदियों से चले आ रहे भ्रम को भी तोड़ा है कि महिलायें पुरुषों के मुकाबले कमतर होती हैं और वह  पुरुषों द्वारा किये जाने वाले कामों को नहीं कर सकती हैं।
           
पिछले दिनों मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकारों के फैसलों ने भागीदारी के इन दरवाजों को बन्द करने का काम किया है, राजस्थान सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है जिसके अनुसार केवल  साक्षर लोग ही चुनाव लड़ सकते हैं। सरपंच पद के लिए कम से कम आठवीं कक्षा(अनुसूचित तबकों के लिए पांचवी कक्षा) और जिला परिषद एवं पंचायत समिति के चुनाव लड़ने के लिए कम से कम दसवीं पास होना अनिवार्य कर दिया गया है। इस फैसले का सबसे ज्यादा असर गेंदाबाई इवनाती जैसी बेहतरीन काम कर रही महिला जनप्रतिनिधियों पर पड़ेगा जिनके लिए पचास फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है और वह पढ़ी लिखी नहीं होते हुए भी काबलियत रखती हैं। गेंदाबाई खुद कहती है कि “हमने पहले कभी ऐसी बात सोची भी नहीं थी कि महिला को भी आधो में आधो अधिकार बनता है, लेकिन जब कानून  हमारे साथ है तो हम भी आगे बढ़ने का साहस कर रहे हैं और अब महिलायें पुरूष सीट (अनारक्षित ) पर भी चुनाव लड़ने का साहस कर  सकती  हैं । 
            
इधर पंचायत चुनाव से ठीक पहले मध्य प्रदेश सरकार द्वारा निर्विरोध पंचायतों को पांच लाख रूपए का ईमान देने तथा विकास कार्यों के लिए 25 प्रतिशत अधिक धनराशि उपलब्ध कराई जाने की घोषणा की गयी है, जो एक तरह से जनता के वोट देने के लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात है दूसरी तरफ अभी भी हमारा समाज अलोकतांत्रिक हैं और सामाजिक व्यवस्था में गैर-बराबरी कायम है, उससे पंचायत राज अधिनियम द्वारा वंचित समूहों के अधिकारों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। निर्विरोध चुनाव की असली कहानी मध्यप्रदेश के एक ग्राम पंचायत के  उदाहरण से समझी जा सकती है जहां गांव के प्रमुख दबंग व्यक्तियों के द्वारा निर्विरोध सरपंच लाने के लिये हुई बैठक में एक भी महिला सदस्य को नहीं बुलाया गया,  हालांकि यह महिला सीट थी। बैठक में सभी पुरुषों ने मिल बैठ कर यह निर्णय लिया कि किसकी पत्नी को सरपंच बनाया जाये और इस तरह से निर्विरोध पंचायत चुनाव संपन्न हुआ। 
           
निश्चित रूप से अभी भी महिलाओं को उनके राजनीतिक सशक्तिकरण के सफर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। निर्वाचित हो जाने के बाद भी उन्हें जेण्डर आधारित भेदभाव, जातिगत भेद, निम्न और दूसरी पारम्परिक और गैरबराबरी आधारित सामाजिक संरचनाओं से जुझना पड़ता है। इसी तरह से पंचायतीराज संस्थान व्यवस्थागत प्रणाली और अपने दायित्वों की पूर्ण जानकारी ना होना भी उनके लिए एक चुनौती है। पति,परिवार के अन्य सदस्यों या गावं के किसी अन्य दबंग व्यक्ति द्वारा संचालित होने का खतरा तो बना ही रहता है। अभी भी बड़े पैमाने पर ‘‘प्रधान पति’’ या ‘‘सरपंच पति’’ का चलन एक कड़वी सच्च्याई है। चुनाव प्रचार में अभी भी श्रीमती पदमावती जैसी महिलाओं को अपने पति की तस्वीर और नाम के उपयोग की मजबूरी बरकरार है । 
         
इन सब के बावजूद उनकी उपलब्धियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, आधो में आधो अधिकार का नारी सच हकीकत में उतर रहा है। हाल ही में मध्य प्रदेश संपन्न हुए जिला अध्यक्ष के चुनाव में कुल पचास जिलों में से करीब चालीस जिलों पर महिलाओं ने जीत दर्ज की है। लेकिन अभी भी महिलाओं के सशक्तिकरण और भागीदारी  का सफर लम्बा है, इस दिशा में ओर ज्यादा प्रयास करना पड़ेगा, यह लड़ाई अभी कई ओर मोर्चों पर लड़ी जानी  बाकि है।  





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जावेद अनीस 
(चरखा फीचर्स)

आलेख : राहुल की जांच, फिजूल का बखेड़ा

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जब कोई व्यक्ति लम्बे समय तक मुफ्त की सुविधाओं का लाभ उठाता है, तो एक समय बाद वही सुविधाएं उसका स्वभाव बन जाती हैं, और जब उसकी यह सुविधाएं छूट जाती हैं, तब उसके स्वभाव और आचरण में उसके लिए छटपटाहट आसानी से देखी जा सकती है। इसके अलावा वह लोकप्रियता के दायरे से बहुत पीछे हो जाए तो वह उसे आसानी से पचा भी नहीं सकता, लेकिन वह अपने बयानों से यही प्रमाणित करने का प्रयास करता है कि उसकी प्रमाणिकता और प्राभाविकता बरकरार है।

कांगे्रस पार्टी के साथ वर्तमान में कुछ इसी प्रकार का घटनाक्रम घटित हो रहा है। लोकसभा चुनावों में अभूतपूर्व पराजय का सामना कर चुकी कांगे्रस के नेता इस प्राकृतिक सत्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। कांगे्रसी नेताओं का आचरण आज भी शासक वाला ही दिखाई देता है। कांगे्रसियों के लिए सब कुछ कहे जाने वाले राहुल गांधी आज निर्वासन की मुद्रा में हैं। वे कहां हैं किसी को भी नहीं पता, कहा जाता है कि राहुल कांगे्रस में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा के लेकर विदेश (?) यात्रा पर हैं। वर्तमान में कांगे्रसी नेताओं की लम्बी फौज राहुल की तारीफ के पुल बांधने में व्यस्त है, उनको लगता है कि ऐसा करने से शायद उनका भी भविष्य सुरक्षित हो जाए। कांगे्रस में राहुल गांधी तमाम प्रयोग करने के बाद भी असफल ही साबित हुए हैं।

दिल्ली पुलिस द्वारा की गई कथित जासूसी के मामले में कांगे्रस अपने आपको सक्रिय दिखाने का प्रयास कर रही हो, लेकिन यह जासूसी का मुद्दा फिजूल में ही खड़ा कर दिया गया है, जिसके लिए कांगे्रस पार्टी माहिर है। वर्तमान में कांगे्रस के पास राजनीति करने के लिए न तो कोई मुद्दा है और न ही नेतृत्व कर्ताओं के पास दिशादर्शन। कांगे्रस की राजनीति को देखकर यह कहा जा सकता है कि कांगे्रस में जितने भी सदस्य होते हैं वे कार्यकर्ता न होकर केवल नेता बने रहना चाहते हैं। वास्तव में काम तो कार्यकर्ता ही करता है, पर कांगे्रस में कार्यकर्ता ही नहीं है, तब कार्य कौन करेगा, कांगे्रस के सामने आज यही सबसे बड़ा सवाल है।

मुद्दे की तलाश में भटक रही कांगे्रस पार्टी के पास एक ऐसा मुद्दा हाथ हाथ लगा है जो वास्तविकता में मुद्दा है ही नहीं। अतिविशिष्ट लोगों की जानकारी के नाम पर दिल्ली पुलिस द्वारा राहुल गांधी की जानकारी प्राप्त करना वास्तव में उस प्रक्रिया का ही हिस्सा है जो कांगे्रस पार्टी की सरकारों के समय से चली आ रही है। इसे कांगे्रस ने ही प्रारंभ किया है। दिल्ली के पुलिस आयुक्त का साफ कहना है कि हमारे पास सरकार द्वारा बनाया गया एक प्रारूप है, हम उसी प्रारूप के अनुसार ही अपने कार्य को कर रहे हैं। केवल राहुल गांधी ही नहीं अन्य अतिविशिष्ट लोगों की भी जानकारी हमारे इसी प्रारूप के अनुसार ली गई है। कांगे्रस की समझ देखिए या इसे बौखलाहट में उठाया गया कदम कहिए, उसने इस जांच प्रक्रिया को जासूसी करार दे दिया।

60 वर्षों तक नेहरू गांधी परिवार की कुटिल चालों को समझने में लगी रही जनता अब पूरी तरह इस परिवार की चालाकियों से परिचित हो चुकी है। राहुल बाबा सत्ता से दूर होते ही वीआईपी हो गए हैं। अब तो लगता है कि उन्हें भारतीय नागरिक की तरह कानून का पालन करना या नियमों का पालन करना भी अपना अपमान महसूस होता है। यही कारण है कि हाल ही में दिल्ली पुलिस ने सामान्य प्रक्रिया के तहत राहुल गांधी के संबंध में पूछताछ क्या की, पूरी कांग्रेस बौखला उठी। यह किसी से छुपी बात नहीं है कि कांग्रेसियों ने ऐसा स्वत: ही बल्कि अपने कांग्रेसी आका के इशारे पर किया है। आखिर क्यों राहुल बाबा आम भारतीय नागरिक से विपरीत आचरण और व्यवहार कर रहे हैं। दिल्ली के अन्य नागरिकों के समान ही राहुल बाबा अगर हिन्दुस्तान और दिल्ली के नागरिक हैं तो पुलिस को पूरा अधिकार है कि वह सामान्य लोगों की तरह उनके बारे में पूरी जानकारी रखे। पुलिस ने अगर राहुल गांधी की जानकारी मांगी है तो इस तरह की जानकारी भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी से भी मांगी गई है। इस प्रक्रिया से गुजरकर अगर श्री आडवाणी अपमानित नहीं होंगे तो फिर राहुल बाबा इससे कैसे लज्जित हो सकते हैं? अगर राहुल बाबा खुद को हिन्दुस्तानी आम नागरिक नहीं मानकर इग्लैंड के नागरिक मानते हैं तो निश्चित ही दिल्ली की पुलिस को कोई अधिकार नहीं है कि हिन्दुस्तानी नागरिक की तरह उनकी व्यक्तिगत जानकारियों का रिकार्ड अपने पास रखें। अगर नहीं तो राहुल बाबा को स्वयं आगे बढ़कर दिल्ली पुलिस की इस पहल का स्वागत करना चाहिए तथा अपनी माँ श्रीमती सोनिया गांधी से जुड़ीं आवश्यक जानकारियां भी पुलिस को उपलब्ध कराना चाहिए।

कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी हमेशा से ही उस अवसर पर देश से बाहर रहते हैं, जब उनकी कांगे्रस और देश की जनता को जरूरत होती है। अभी पिछले महीने जब संसद का शीतकालीन सत्र प्रारंभ हुआ तो राहुल गांधी विदेश यात्रा पर रवाना हो गए। एक सांसद के तौर पर राहुल गांधी लोकसभा का हिस्सा हैं। ऐसे में क्या राहुल गांधी को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करना चाहिए? लेकिन राहुल ने अपने सार्वजनिक जिन्दगी से किनारा करके अपनी निजी जिन्दगी जीने को प्रधानता दी। अमेठी की जनता ने उनको सांसद चुना, वहां की जनता का शायद यही भाव होगा कि राहुल अपने संसदीय जीवन में अमेठी का पूरा पूरा प्रतिनिधित्व करेंगे, लेकिन शायद अमेठी की जनता की यह सोच उस समय धराशायी हो गई होगी, जब राहुल संसद के महत्वपूर्ण सत्र को छोड़कर किसी अज्ञात स्थान पर रवाना हो गए। कांगे्रस ने हालांकि राहुल के कथित जासूसी मुद्दे को तिल का ताड़ बना दिया हो, लेकिन कांगे्रस की यह राजनीति रचनात्मक कतई नहीं मानी जा सकती। 

मनमोहन पर कोयले की कालिख
कहते हैं बुरे काम का परिणाम भी बुरा ही होता है, लेकिन इससे भी ज्यादा बुरा होता है बुराई को आंख बन्द करके देखना। वास्तव में प्रत्येक बुरे काम का विरोध होना ही चाहिए, वह भी दमदार तरीके से। अगर हम बुरे काम को निष्क्रिय भाव से देखते रहे तो एक दिन वही बुराई हम पर ही हावी हो जाएगी। भारत की वर्तमान राजनीतिक कार्यप्रणाली में यह बुराई का खेल अपनी चरम अवस्था को प्राप्त कर चुका है। केन्द्र की पिछली सरकार के मुखिया के रूप में जिम्मेदारी संभालने वाले मनमोहन सिंह आज कटघरे में हैं। वैसे पूरी कांगे्रस ही घोटाले जैसे बुरे कार्य में संलग्र रही है, यह कई अवसरों पर सिद्ध हो चुका है, और धीरे धीरे कई घोटालों पर से परदा उठ भी रहा है। परदा उठने के बाद किस प्रकार का चित्र और चरित्र प्रदर्शित होगा, इससे कांगे्रसी राजनीति के धुरंधर राजनेताओं के कान खड़े होना स्वाभाविक है।

कांगे्रस के दामन पर लगी कोयले की कालिख में भोले भाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ भी काले होते हुए दिखाई दे रहे हैं। मनमोहन सिंह ने कहा है कि एक दिन सत्य उजागर हो जाएगा। यह सही है कि इस घोटाले का सच उजागर होना ही चाहिए। लेकिन हम जानते हैं कि जिस प्रकार से शराब पीने वाले के आस पास रहने भर से ही एक शरीफ आदमी के बारे में भी शराबी की धारणा निर्मित होने लगती है, या फिर जैसी संगत होगी हमारा आचरण भी उसी के अनुसार ही हो जाता है अथवा दिखाई देता है। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में यह कई बार प्रदर्शित हो चुका था कि उनकी सरकार में तीन तीन निर्णायक ध्रुव रहे थे। जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी ने सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह को कितना महत्व दिया था, हम सभी जानते हैं। राहुल गांधी की हिम्मत तो देखिए सरकार के अध्यादेश तक को फाड़ कर फेंक दिया था। राहुल गांधी द्वारा यह कदम पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित ही कहा जाएगा। हालांकि इस विधेयक को अध्यादेश का रूप उस कैबिनेट ने ही प्रदान किया था, जिसे सोनिया राहुल अपनी ही समझते थे, इससे यह बात तो जग जाहिर है कि यह अध्यादेश बनाने में इनकी सहमति अवश्य ही रही होगी। बाद में राहुल का यह कदम हाथी के दांत जैसा ही साबित हुआ।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने कोयला घोटाले में खात्मा करने की रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस खात्मे की रिपोर्ट को खारिज करते हुए मनमोहन सिंह पर शिकंजा कस दिया और उन्हें न्यायालय में उपस्थिति होने के लिए आदेश दे दिया। इससे यह बात तो प्रमाणित होती ही है कि कोयला घोटाले में कांगे्रस सरकार दोषी है, अब इसमें मनमोहन की भूमिका कितनी है, यह समय बताएगा। लेकिन जैसा मनमोहन सिंह ने कहा है कि आने वाले समय में सच उजागर हो जाएगा, उस सच को आज पूरा देश जानने को उतावला है। अब सवाल यह भी आता है कि क्या मनामेहन सिंह इस सच को स्वयं उजागर करेंगे या फिर अपने स्वभाव के अनुसार मौन साधकर बैठे रहेंगे।



---सुरेश हिन्दुस्थानी---
लश्कर, ग्वालियर म.प्र.
मोबाइल - 9425101815

विशेष : गणगौर: महिलाओं के सौभाग्य का लोकपर्व

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liveaaryaavart dot comराजस्थान अपने यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक एवं धार्मिक मेलांे एवं उत्सवों के लिये प्रसिद्ध है। गणगौर इसे और विशिष्ट रूप प्रदान करता है। गणगौर का त्यौहार सदियों पुराना हैं। हर युग में कुंआरी कन्याओं एवं नवविवाहिताओं का ही नहीं अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा संबंध इस पर्व से जुड़ा रहा है। यद्यपि इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है किन्तु जीवन मूल्यों की सुरक्षा एवं वैवाहिक जीवन की सुदृढ़ता में यह एक सार्थक प्रेरणा भी बना है। 

गणगौर का पर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती से जुड़ा है। गणगौर माता याने की माँ पार्वती की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशरजी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और कठोर तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गयी । बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां मन इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए पूजा करती है। इस दृष्टि यह पर्व वैवाहिक जीवन की खुशहाली से जुड़ा है।

कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शंकर ने अपनी अद्र्धांगिनी पार्वती को तथा पार्वती ने तमाम स्त्रियों को सौभाग्य वर प्रदान किया था। प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके कन्याएँ व महिलाएँ, शहर या ग्राम से बाहर सरोवर अथवा नदियों तक जाती हैं, जहाँ से शुद्ध जल और उपवनों से हरी घास-दूब तथा रंग-बिरंगे पुष्प लाकर गौरा देवी के गीत गाते हुए समूह में अपने घरों को लौटती हैं और घर आकर सब मिलकर गौराजी की अर्चना और पूजा आराधना करती हैं। गौरा पार्वती देवी का ही रूप है, जिनकी आराधना से मनवांछित फल प्राप्त करने की आकांक्षा ही गणगौर के इस पावन पर्व की आधारशिला है। अतः गणगौर का यह पर्व महिलाओं के सौभाग्य का लोकपर्व बन गया है।

गणगौर शब्द का गौरव अंतहीन पवित्र दाम्पत्य जीवन की खुशहाली से जुड़ा है। कुंआरी कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए और नवविवाहिताएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं, व्रत करती हैं, सज-धज कर सोलह शृंगार के साथ गणगौर की पूजा की शुरुआत करती है। पति और पत्नी के रिश्तें को यह फौलादी-सी मजबूती देने वाला त्यौहार है, वहीं कुंआरी कन्याओं के लिए आदर्श वर की इच्छा पूरी करने का मनोकामना पर्व है। यह पर्व नारी आदर्शों की ऊंची मीनार है, सांस्कृतिक परम्पराओं की अद्वितीय कड़ी है एवं रीति-रिवाजों का मान है।

गणगौर का त्यौहार होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाता है जो पूरे अठारह दिन तक लगातार चलता है। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से कुुंआरी कन्याएं और नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ला द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। 

अठारह दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में होली की राख से सोलह पीण्डियां बनाकर पाटे पर स्थापित कर आस-पास ज्वारे बोए जाते हैं। ईसर अर्थात शिव रूप में गण और गौर रूप में पार्वती को स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। मिट्टी से बने कलात्मक रंग-रंगीले ईसर गण-गौर झुले में झुलाए जाते हैं। सायंकाल बींद-बींनणी बनकर बागों में या मोहल्लों में रंग-बिरंगे परिधान, आभूषणों में किशोरियां और नवविवाहिताएं आमोद-प्रमोद के साथ घूमर नृत्य करती हैं, आरतियां गाती हैं, गौर पूजन के गीत गाकर खुश होती हैं। जल, रोली, मौली, काजल, मेहंदी, बिंदी, फूल, पत्ते, दूध, पाठे, हाथों में लेकर वे कामना करती हैं कि हम भाई को लड्डू देंगे, भाई हमें चुनरी देगा, हम गौर को चुनरी धारण करायेंगे, गौर हमें मनमाफिक सौभाग्य देगी।

गणगौर त्यौहार विशेषतः पश्चिम भारत खासतौर से राजस्थान, गुजरात, निमाड़-मालवा में मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के अलग-अलग जगह के अलग-अलग तरीके हैं। कन्याएं कलश को सिर पर रखकर घर से निकलती हैं तथा किसी मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं। जोधपुर में लोटियों का मेला लगता है। वस्त्र और आभूषणों से सजी-धजी, कलापूर्ण लोटियों की मीनार को सिर पर रखे, हजारों की संख्या में गाती हुई नारियों के स्वर से जोधपुर का पूरा बाजार, गलियां और मौहल्ले गूंज उठते हंै।

नाथद्वारा में सात दिन तक लगातार सवारी निकलती है। सवारी में भाग लेने वाले व्यक्तियों की पोशाक भी उस रंग की होती है जिस रंग की गणगौर की पोशाक होती है। सात दिन तक अलग-अलग रंग की पोशाक पहनी जाती हैं। आम जनता के वस्त्र गणगौर के अवसर पर निःशुल्क रंगे जाते हैं। उदयपुर में गणगौर की नाव प्रसिद्ध है। जयपुर में ़ित्रपोलिया गेट से आज भी राजशाही तरीके से गणगौर की सवारी अतीत की परम्परा को जीवंत करती है। इस प्रकार पूरे राजस्थान में गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 

नाचना और गाना तो इस त्यौहार का मुख्य अंग है ही। घरों के आंगन में, सालेड़ा आदि नाच की धूम मची रहती है। परदेश गए हुए इस त्यौहार पर घर लौट आते हैं। जो नहीं आते हैं उनकी बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा की जाती है। आशा रहती है कि गणगौर की रात को जरूर आयेंगे। झुंझलाहट, आह्लाद और आशा भरी प्रतीक्षा की मीठी पीड़ा को व्यक्त करने का साधन नारी के पास केवल उनके गीत हैं। ये गीत उनकी मानसिक दशा के बोलते चित्र हैं। 
गणगौर का पर्व दायित्वबोध की चेतना का संदेश हैं। इसमें नारी की अनगिनत जिम्मेदारियों के सूत्र गुम्फित होते हैं। यह पर्व उन चैराहों पर पहरा देता है जहां से जीवन आदर्शों के भटकाव की संभावनाएं हैं, यह उन आकांक्षाओं को थामता है जिनकी गति तो बहुत तेज होती है पर जो बिना उद्देश्य बेतहाशा दौड़ती है। यह पर्व नारी को शक्तिशाली और संस्कारी बनाने का अनूठा माध्यम है। वैयक्तिक स्वार्थों को एक ओर रखकर औरों को सुख बांटने और दुःख बटोरने की मनोवृत्ति का संदेश है। गणगौर कोरा कुंआरी कन्याओं  या नवविवाहिताओं का ही त्यौहार ही नहीं है अपितु संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं को प्रेम और एकता में बांधने का निष्ठासूत्र है। इसलिए गणगौर का मूल्य केवल नारी तक सीमित न होकर मानव मानव के मनों तक पहुंचे। 






 बेला गर्ग 
आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

‘बरखा’ अलग तरह की फिल्म है-संजय बेडिया

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27 मार्च को रीलिज होने जा रही फिल्म ‘बरखा’ आम फिल्मों की लीक से हटकर एक अलग तरह की फिल्म है यह कहना है सह-निर्माता संजय बेडिया का। संजय कहा कि फिल्म में हमने माजिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने का प्रयास किया है। जोहरा प्रोडक्शन के बैनर तले निर्मित निर्मात्री शबाना हाशमी  की फिल्म ‘बरखा’ इन दिनों चर्चा में है,पाकिस्तानी अभिनेत्री लॉरेन के हाॅट सींन्स को लेकर।  इस फिल्म से संजय को काफी उम्मींदे है। फिल्म एक साथ छह सौ थिएटरों में प्रदर्शित हो रही है। इस रोमांटिक थ्रिलर के बारे में वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक अशोक कुमार निर्भय ने सह निर्माता संजय बेड़िया  से हुई बातचीत की प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुख अंश हुई। 

ऐसा लगता है कि आपकी फिल्म कहीं तब्बू अभिनीत फिल्म ‘चांदनी बार’ की कहानी से प्रभावित है? 
 रत्ती भर भी नहीं। ‘बरखा’ बार गर्ल की कहानी नहीं है .यह एक जुनूनी लड़की के संघर्ष की यात्रा है.देखने के बाद आप इसे समझ पाएंग। ऐसे कथानक पर एक फिल्म चमेली भी बनीं थीं।लेकिन हमारी फिल्म नारी प्रधान है।

लेकिन हमारे यहां पारी प्रधान फिल्मों का जोखिम कम ही निर्माता उठाते है?
ऐसा नहीं है,मदर इंडिया,फूल बनें अंगारे,उमराव जान,चमेली.... जैसी अनेकों फिल्मों के बाद बरखा भी नारी प्रधान फिल्म है। मेरा मानना है कि कहानी में दम है तो फिल्म चलेगी।

फिल्म का टाईटल ‘बरखा’ रखने की कोई वजह ? 
वैसे तो आजकल फिल्मों के टाईटलं एक चुनौती है, मेरे दिमाग के अनेक नाम आएं, लेकिन बाद में ‘बरखा’ पर सबकी सहमती बनीं।‘ बरखा’ फिल्म की नायिका का नाम है। 

लगता है कहानी में बरखा का जीवन ही रेखाकिंत किया है?
जी हाॅ। आज हमारी युवा पीढी कहीं ग्लैमरस से प्रभावित है। बरखा हिमाचल के छोटे से कस्बे से है। छोटे शहर से होने के चलते वह सुपरस्टार बनने का सपना लेकर बड़ी होती है। वह एक आम नारी नहीं है। उसके अंदर ढेर सारी इच्छाएं है,जो दबी है। जिंदगी में उसका मकसद एक सफल हीरोइन बनना है,और मुमंई की ओर रुख करने की तैयारी करने लगती है.

फिल्म बरखा के सघर्ष की कहानी है,इस प्रकार के कथानक पर कई फिल्में बन चुकी फिर इसकी कहानी में क्या नयापन ? 
कहानी की सूत्रधार बरखा जिंदगी में अपने सपनों को पूरा करने के लिए जब अंजाने शहर की और निकलती है,तो उसको अनेक परिस्थितियों से जूझना पंडता है, उसके जीवन के उतार चढाब को दर्शाया है। अनेक घटनाओं के चलते उसकी जिंदगी का एक नया मोड़ है। यहां से शुरू होता है एक नये रिश्तें का दौर। हालत उसे अभिनेत्री तो नही बार बाला बना देती है,बस यहीं कहानी का नयापन है।

बरखा को बार की जिंदगी पसंद है या मजबूरी वह ले जाती है?
ना पसंद उसकी बार है ,ना ही कोई मजबूरी है पर जिंदगी को एक नयी राह देने के लिए उसे किसी-न-किसी पत्थर पर तो रगड़ना पड़ेगा इसलिए वह इसे एक चुनौती के रूप में लेती है और बार गर्ल बन जाती है.

फिर कोई हादसा होता है?
नहीं ,वह अपना ख्याल रखना जानती है.वह जतिन उसे मिलता है.जतिन बरखा पर लट्टू हो जाता है और प्यार करना शुरू करता है ,बरखा इस बात से बिलकुल अंजान रहती है।फिर आगे का प्रेम-प्रकरण परवान चढ़ता है।
यही तो खास बात है इस फिल्म की जो थिएटर में देखने पर पता चलेगा.‘बरखा’ सचमुच की एक अलग फिल्म है.एक लंबे अरसे से किसी मौलिक कथानथ को लेकर कोई ऐसी फिल्म नहीं आयी। 

 ‘बरखा’ का किरदार में कौन है ऑफ -स्क्रीन परिचय दे?
सारा लॉरेन ने इस फिल्म बरखा के किरदार में नजर आएगीं। वह पिछली बार ‘मर्डर 3‘ में देखा होगा। सारा भारत ही नहीं पाकिस्तान में भी लोकप्रिय है। उनकी पाकिस्तानी फिल्मों‘अंजुमन’ (पाक ) हिट फिल्म थी।

और जतिन कौन है ?
जतिन सबरवाल की भूमिका ताहा शाह ने निभायी है।ताहा को आपने ‘गिप्पी और लव का द एंड’ में देखा होगा.लव का द एंड में वह निगेटिव भूमिका में थे,मगर यहाँ वह बिलकुल ही बदले अंदाज में दिखेंगे।

फिल्म में संगीत का एक अलग महत्व होता है ?
जी हाॅ,अमजद नदीम ने इंडियन वेस्र्टन संगीत के मिश्रण सेे तैयार किया है मिला जुला म्यूजिक । गीत भी लुभावने बने है। जो आम लोगों की पंसद है। .हालाँकि हमारी फिल्म का टारगेट ऑडियंस युथ है लेकिन यह फिल्म सबको पसंद आएगी ।

पूरी टीम नयी है,फिर भी आप इतने आस्वस्थ कैसे है?
क्योंकि हमने फिल्म एक मिशन के रूप में बनायीं है। हमे अच्छी फिल्म बनानी थी सो हमने बनायीं .इसके लिए मैं शबाना जी को धन्यवाद दूंगा जिन्होंने मुझे प्रोत्साषित किया और मैं अपने निर्देशक शादाब मिर्जा को खुली छूट दी। नतीजा -‘बरखा’ के रूप में एक अच्छी फिल्म हमारे हाथ में है।इसको हम छह सौ सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज कर रहे है और आस्वस्त है की हमारी ‘बरखा’ आपको भी प्रभावित करेगी.


अशोक कुमार निर्भय 
वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

आलेख : नई कोपल को मौका के लिए मायावती भी लाईं पतझड़

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बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपने उत्तराधिकारी के बतौर मायावती को मजबूत करने के लिए जब शुरूआती दौर में रामाधीन जैसे कई कद्दावर नेताओं को बिना कारण पार्टी से बाहर कर दिया था तो इस संंवाददाता ने उनकी इस कार्रवाई के औचित्य के बारे में एक पत्रकार वार्ता में सवाल किया जिस पर वे बोले कि पतझड़ में पुराने पत्ते गिरते हैं तभी नई कोपलें जन्म ले पाती हैं। इस तरह उन्होंने निष्कासन की कार्रवाई का कारण बताने से भी अपने को बचा लिया और निष्कासित नेताओं पर उन्हें कोई आरोप लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। कांशीराम का इतिहास ही शायद अब मायावती दोहरा रही हैं। वे आज उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां उस समय कांशीराम थे। इस कारण उन्होंने भी पार्टी में पतझड़ लाकर पुराने पत्ते गिराने शुरू कर दिए हैं। बुंदेलखंड में उनकी कार्रवाई के बुलडोजर की चपेट में पूर्व ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद आ गए हैं जो कल तक उनके अत्यंत विश्वासपात्र लोगों में शुमार थे। दस्यु सरगना ददुआ जिसने कभी बांदा और चित्रकूट जिलों में पैर जमाने में बसपा को बहुत मदद दी थी और जिसके मारे जाने से एक बड़ी कौम बसपा के खिलाफ चली गई। मायावती ने अपनी सरकार में उसका एनकाउंटर पुलिस से इसीलिए करवाया क्योंकि दद्दू प्रसाद यही चाहते थे। इस कारण यह सवाल होना लाजिमी है कि आखिर ऐसी क्या वजह हो गई जिससे दद्दू प्रसाद उनकी नजरों से उतर गए। आज मायावती पार्टी में सर्वमान्य नेता हैं और उनके नेतृत्व को कोई चुनौती दे सके इसकी संभावना भी फिलहाल एक प्रतिशत तक नहीं बची है। इन हालातों की रोशनी में उक्त सवाल और ज्यादा जरूरी लग रहा है।

दद्दू प्रसाद के निष्कासन का असर बुंदेलखंड में बसपा के असर पर गहरा घाव करने वाला साबित हो सकता है। बसपा के इतिहास में बुंदेलखंड वह अंचल है जिसकी अलग ही अहमियत है। वजह यह है कि इसी अंचल से बसपा ने चुनावी फतह का खाता खोलना शुरू किया था। 1989 के विधान सभा चुनाव में बसपा के पक्ष में जीत का पहला एलान हुआ था और यह एलान था जालौन जिले की कोंच सीट से चैनसुख भारती के निर्वाचन का जिन्हें बाद में मायावती ने पहली बार अपनी सरकार गठित होने पर कैबिनेट मंत्री बनाया। चैनसुख भारती कांशीराम के जमाने के मिशनरी नेता हैं लेकिन मायावती ने पार्टी में अपना दबदबा कायम करने के बाद उन्हें भी हाशिए पर ढकेल दिया था। यह दूसरी बात है कि चैनसुख भारती ने इसके बावजूद उनके खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत नहीं की जबकि दलित नेता होने की वजह से अगर वे ऐसा करते तो मायावती को पार्टी के इस सबसे मजबूत गढ़ में उसी समय काफी नुकसान हो सकता था। मायावती ने बुंदेलखंड में दलितों में एक समय बृजलाल खाबरी को सर्वेसर्वा बना दिया था जब वे 1999 में जालौन जिले से लोकसभा की सीट स्वयं जीत हासिल करके पार्टी की झोली में डालने में सफल रहे थे जबकि इसके पहले जिले में सारी विधान सभा सीटें जीतने का रिकार्ड बनाने के बावजूद बसपा यहां की लोकसभा सीट का चुनाव नहीं जीत पा रही थी पर पार्टी के लिए इतने लकी होने के बावजूद वे भी मायावती की नजरों में गिरने से अपने को नहीं बचा पाए। 2007 के विधान सभा चुनाव के पहले उन्हें भी बहुत ही नाटकीय ढंग से मायावती ने बसपा से निकाल फेेंका था पर उन्होंने भी उनके खिलाफ अपने असंतोष का संवरण किया और कहीं भी बगावती तेवर प्रकट नहीं होने दिए इसलिए तीन साल बाद मायावती ने उन्हें यह कह चुकने के बावजूद पार्टी में वापस ले लिया कि अगर बृजलाल नाक भी रगड़ेगा तब भी उसे कभी पार्टी दोबारा नहीं अपनाएगी।

मायावती को दद्दू प्रसाद से भी उम्मीद रही होगी कि वे भी निष्कासन से हुए अपमान का घूंट चुपचाप पी लेंगे और बाद में जब वे रहम की बहुत भीख मांगेंगे तब उन्हें भी क्षमा कर दिया जाएगा पर यह भी एक तथ्य है कि इतिहास अपने आपको हमेशा नहीं दोहराता। दद्दू प्रसाद ने मायावती के आंकलन को फेल कर दिया। उन्होंने अगले ही दिन बगावती तेवर साध लिए और टिकट के बहाने पार्टी को बेचने की उनकी कोशिश के खिलाफ जंग छेडऩे का एलान कर दिया। दद्दू प्रसाद बहुत अ'छे आइडिलाग हैं और उनमें तार्किक ढंग से अपनी बात रखने की क्षमता है इसलिए मायावती उनके अभियान से घबड़ा गईं। महोबा के बाद जब उन्होंने 6 फरवरी को उरई में अपने समर्थकों के साथ गोपनीय तौर पर अनौपचारिक बैठक की तो पार्टी हाईकमान के इशारे पर बसपा के उग्र कार्यकर्ता वहां पहुंच गए। उन्होंने तोडफ़ोड़ और उपस्थित लोगों के साथ झूमाझटकी की। यहां तक कि दद्दू प्रसाद को भी एक-दो हाथ पड़ गए। मौके पर पुलिस पहुंच गई थी लेकिन दद्दू प्रसाद ने पैंतरा बदल दिया। बजाय घटना की रिपोर्ट कराने के उन्होंने रणनीति के तहत मायावती से सीधे टकराव का रास्ता बदल लिया तब से दद्दू प्रसाद ने कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किया है पर उनकी हर गतिविधि मायावती के रडार पर है। जालौन जिले में 17 फरवरी को माधौगढ़ थाने के सुरपतपुरा में ठाकुरों ने एक दलित युवक अमर सिंह के साथ बदसलूकी कर दी। यह घटना माधौगढ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज होने के कारण दब सी गई थी लेकिन दद्दू प्रसाद अमर सिंह को लेकर झांसी में डीआईजी से मिलने चले गए और उन्होंने घटना का सनसनीखेज प्रस्तुतीकरण किया। मायावती को उसी दिन यह खबर लग गई और वे इसके बाद इतनी विचलित हुईं कि रात में ही उन्होंने पार्टी के बुंदेलखंड प्रभारी एमएलसी तिलक चंद्र अहिरवार की क्लास ले ली। तत्काल जालौन जिले के पार्टी अध्यक्ष मान सिंह ने घटना पर कड़ा बयान जारी किया। तिलक चंद्र अहिरवार ने इस मुद्दे को विधान मंडल के बजट सत्र में जोरदारी से उठाने का एलान कर डाला। जाहिर था कि यह सब दद्दू प्रसाद की सक्रियता से पैदा हुए संकट के अंदेशे का आनन-फानन में प्रबंधन करने की योजना के तहत हुआ था।

दद्दू प्रसाद गोपनीय तौर पर बसपा से जुड़े रहे या अभी भी बसपा में मौजूद घनघोर मिशनरी दलित नेताओं से तार जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। रामाधीन से, जिन्हें वह अपना मार्गदाता कहते हैं उनके कांग्रेस में होते हुए भी अपने अभियान की कामयाबी के लिए उन्होंने खुले तौर पर आशीर्वाद मांगा है लेकिन गोपनीय तौर पर अपने लोगों के जरिए चैनसुख भारती को भी कुरेदने की कोशिश की है। दद्दू प्रसाद की बृजलाल खाबरी से बिल्कुल नहीं पटती लेकिन बृजलाल खाबरी को भी मायावती ने इन दिनों बुंदेलखंड बदर कर रखा है जिसे लेकर उनमें बेचैनी होना स्वाभाविक है और उनकी इस बेचैनी को अपने ढंग से कैश कराने में भी दद्दू प्रसाद पीछे नहीं हैं। दद्दू प्रसाद की ब्यूह रचना मायावती के लिए बेहद घातक है। इस कारण मायावती को अपने गुरू कांशीराम की रणनीति की लगता है शिद्दत से याद आ रही है। भले ही कांशीराम का ही नाम लेकर दद्दू प्रसाद उनके खिलाफ अपनी चुुनौती को प्रबलतम बना रहे हैं। जिस तरह से कांशीराम ने उस समय पार्टी में उभरते मायावती के नए नवेले नेतृत्व की कोपल को महत्व दिया था वैसे ही मायावती भी बुंदेलखंड में पार्टी में नए अखुआ फूटने की जमीन तैयार कर रही हैं। उन्होंने बड़ा सांगठनिक फेरबदल इस अंचल में किया है जिसमें पार्टी की बड़ी जिम्मेदारियां सचिन पलरा जैसे छात्र नेताओं को सौंप दी हैं। उन्होंने दलितों में नए खून के लगभग आधा दर्जन दलित नेता रातोंरात बुंदेलखंड में उभार दिए हैं जो उनका जबरदस्त जनरेशन गैप की वजह से मनोवैज्ञानिक तौर पर पूरा अदब करने को मजबूर रहेंगे। साथ ही उनकी युवा उमंग पुराने गढ़ में पार्टी में नए ज्वार को उठाने का भी लाभ दे सकती है। मायावती बनाम दद्दू प्रसाद की कुरुभूमि बन चुके बुंदेलखंड में इस जद्दोजहद के बीच राजनीति का रंग बेहद चटख हो गया है।




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के पी सिंह 
ओरई 
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