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रामालिंगा राजू ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को अदालत में दी चुनौती

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सत्यम कंप्यूटर के संस्थापक एवं अध्यक्ष रामालिंगा राजू और उनके भाई बी रामा राजू ने कंपनी में हुए करोड़ों रुपये के घोटाला मामले में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को निरस्त करने की अपील के साथ आज अदालत का दरवाजा खटखटाया। राजू बंधुओं ने तेलंगाना में नामपल्ली की अदालत में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। विशेष अदालत ने गत नौ अप्रैल को राजू बंधुओं समेत सभी 10 आरोपियों को सात-सात साल कारावास की सजा सुनायी। इसके साथ ही दोनों भाइयों पर पांच-पांच करोड़ रुपये का भारी जुर्माना भी किया गया। गौरतलब है कि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की चौथी बड़ी कंपनी रही सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज लिमिटेड (एससीएसएल) में हुये देश के सबसे बडे कार्पाेरेट घाेटाले के वर्ष 2009 में पर्दाफाश होने के बाद पूरी दुनिया का उद्योग जगत थर्रा गया था। 

मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत के न्यायाधीश बी.वी.एल.एन. चक्रवर्ती ने आज कंपनी के पूर्व अध्यक्ष बी. रामलिंगा राजू समेत सभी 10 आरोपियों को सात-सात साल कारावास की सजा सुनाई। राजू और उसके भाई रामा राजू पर पांच-पांच करोड़ रुपये जबकि शेष अन्य आठ आरोपियों पर 25-25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सभी दोषियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 409 (कारोबारियों के साथ विश्वासघात करने) , आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) के साथ ही 409, 407, 468, 471, 477-ए और 201 के तहत आरोप तय किये गये थे और उसी के तहत सजा भी सुनायी गयी है। इस मामले में राजू 10 जनवरी 2009 से 19 अगस्त 2010 तक जेल में रहें। उन्हें अगस्त 2010 में हैदराबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिली थी। उच्चतम न्यायालय से जमानत खारिज होने के बाद वह पुन: 10 नवंबर 2010 से पांच नवंबर 2011 तक जेल में रहें। फिलहाल सभी दोषी शहर के बाहरी इलाके में स्थित चेरलापल्ली केंद्रीय कारागार में बंद हैं। 

बाबा रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की तैयारी..

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बाबा रामदेव को हरियाणा में योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिये ब्रांड अम्बेसडर बनाने की घोषणा के बाद राज्य सरकार ने अब उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की तैयारी कर रही है। राज्य के शिक्षा मंत्री अनिल विज ने आज यहां ट्वीट कर और मीडिया को दिये गये बयान में यह पुष्टि की। उन्होंने कहा कि 21 अप्रैल को पंचकूला में बाबा रामदेव के सम्मान में एक अभिनंदन समारोह आयोजित किया जाएगा जिसमें योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिये उन्हें आधिकारिक रूप से ब्रांड अम्बेसडर नियुक्त करने तथा कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिये जाने का ऐलान किया जाएगा। 

उन्होंने कहा कि बाद में चंडीगढ़ स्थित सिविल सचिवालय में बाबा रामदेव की मौजूदगी में मंत्रिमंडल की बैठक होगी जिसमें 21 जून को करनाल में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को कैसे मनाया जाये तथा राज्य में हर उम्र के लोगों को योग की आेर कैसे प्रेरित किया जाये इस बारे में रणनीति पर विचार किया जाएगा। उधर, कांग्रेस ने बाबा रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की तैयारियों के लिये राज्य सरकार की निंदा की है। प्रदेश पार्टी प्रभारी शकील अहमद ने कहा कि बाबा रामदेव में चुनावों के दौरान और पहले भारतीय जनता पार्टी की मदद की है ऐसे में पार्टी अब उन्हें इसके लिये पुरस्कृत करना चाहती है। उधर प्रदेश भाजपा प्रभारी अनिज जैन ने भी बाबा रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के सरकार के प्रस्तावित कदम का स्वागत करते हुये कहा कि रामदेव अंतरराष्ट्रीय योग गुरू हैं और उन्हेंं यह सम्मान देना उचित है। 

आप असंतुष्ट गुट के बैठक में भाग लेने वालों को चेतावनी

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आम आदमी पार्टी (आप) ने बागी गुट योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण की तरफ से ‘ स्वराज संवाद’ के नाम पर कल बुलाई गयी बैठक पर कड़ा रूख अख्तियार करते हुये कहा है कि इस बैठक में सिरकत करने वालों पर पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी)कार्रवाई करेगी। बागी गुट ने अपनी भविष्यि की रणनीति तय करने के लिए हरियाणा के गुड़गांव में कल बैठक बुलायी है। इस बैठक में बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ताओं के हिस्सा लेने की उम्मीद व्यक्त की जा रही है। आप नेता संजय सिंह ने सभी पार्टी सदस्यों से आगाह किया है कि यदि असंतुष्ट गुट की कल होने वाली बैठक का न्यौता स्वीकार कर उसमें हिस्सा लेता है तो उस सदस्य के खिलाफ क्या कार्रवाई की जायेगी, इसका फैसला पीएसी करेगी1 

गौरतलब है कि चार मार्च की बैठक में श्री यादव और श्री भूषण को पीएसी से बाहर किया गया था। इसके बाद 28 मार्च को उन्हें राष्ट्रीय परिषद से बाहर कर दिया गया था। श्री सिंह ने कहा कि पीएसी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी स्वराज संवाद बैठक के बाद अगले कदम के बारे में फैसला करेगी। उन्होंने कहा ‘स्वराज संवाद’ आप पार्टी की बैठक नहीं है। पीएसी और राष्ट्रीय परिषद इस बारे में तय करेगी कि बैठक के बाद क्या कार्यवाही करने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि 28 मार्च की बैठक में राष्ट्रीय परिषद में पीएसी को यह अधिकार दिया गया था कि मीडिया में पार्टी के बारे में नकारात्मक बयान बाजी करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करे1 28 मार्च को हुयी बैठक में श्री यादव और श्री भूषण के साथ राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रोफेसर आनंद कुमार और अजीत झा को भी बाहर कर दिया गया था। इसके बाद से पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच तेजी से आराेप.प्रत्यारोप और पत्रों के जरिये एक दूसरे पर जमकर पार्टी के विधान के खिलाफ काम करने के दोष मढ़े गये थे । 

बिहार में साठ साल का तक काम करेंगे विकास मित्र- नीतीश

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलितों को विकास की मुख्य धारा में लाने के संकल्प को दुहराते हुए आज कहा कि उनकी सरकार ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के विकास की गति को तेज करने के उद्देश्य से शिक्षा, कौशल विकास एवं आवास के लिये कई योजनायें बनायी है। श्री कुमार ने यहां बाबा साहब भीमराव अंबेदकर जयंती के अवसर पर विकास मित्रों के लिये एकदिवसीय उन्मुखीकरण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुये घोषणा की कि विकास मित्र 60 साल तक कार्य करेंगे। उन्होंने कहा कि 18 से 50 साल तक विकास मित्र का चयन होगा तथा वे 60 साल की उम्र तक कार्य करेंगे। 60 वर्षों तक विकास मित्रों की नौकरी रहेगी। इस दौरान उन्होंने विकास मित्रों का मानदेय छह हजार रूपये से बढ़ाकर सात हजार रूपये करने की भी घोषणा की । मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने ऐसी व्यवस्था कर दी है कि अब विकास मित्रों को कोई हटा नहीं सकेगा तथा उनका मानेदय बढ़ता रहेगा। उन्होंने कहा कि डाॅ0 बाबा साहब भीमराव अंबेदकर की जयंती की पूर्व संध्या पर उन्मुखीकरण का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि पहले यह कार्यक्रम कल होना था।

श्री कुमार ने कहा कि विकास मित्र एवं राज्य के अनुसूचित जाति के लोग ही डाॅ0 बाबा साहब भीमराव अंबेदकर के वंशज हैं। उनलोगों का कार्यक्रम प्रचार के लिये है। आज कल तरह-तरह की प्रवृति राजनीति में हो गयी है। पता नहीं कल कौन-कौन से जुमले के लिये लोग इकट्ठा हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि महादलित जो हाशिये पर थे, उन्हें उनकी सरकार ने पहचान दिलाई जबकि हम पर ही दलितों काे बांटने का आरोप लग रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास मित्रों को महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गयी है। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के विकास की गति को तेज किया जाये, इसके लिये सरकार ने उनके शिक्षा, कौशल विकास एवं आवास के लिये योजना बनायी। अनुसूचित जाति समाज में एक बहुत बड़ा तबका था, जिनके पास रहने के लिये बास नहीं था, वह तबका महादलित का था। महादलित एवं दलित समाज के लोगों के लिये बास भूमि की योजना बनायी। श्री कुमार ने कहा कि इसके अलावा महादलितों के लिये रेडियो योजना, स्वास्थ्य, शौचालय, दशरथ माॅझी कौशल विकास योजना शुरू की गयी। पहले से अनुसूचित जाति के लिये चली आ रही योजनाओं के अतिरिक्त वर्तमान सरकार ने अलग से इन योजनाओं की शुरूआत की है। महादलितों के बांटने के आरोप को सिरे से खारिज करते हुए श्री कुमार ने कहा कि उन्होंने दलितों को बाॅटा नहीं बल्कि महादलितों को सशक्त किया। 

बदलाव का बिगुल फूंकेगा भाजपा का कार्यकर्ता समागम- नंदकिशोर

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भारतीय जनता पार्टी  के वरिष्ठ नेता और बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष नंद किशोर यादव ने आज कहा कि राजधानी पटना के गांधी मैदान में कल होने वाला पार्टी कार्यकर्ता समागम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली राज्य की जनविरोधी सरकार के खात्मे का बिगुल फूंकेगा। श्री यादव ने यहां कहा कि राज्य के कोने-कोने से समागम के लिए जुट रहे भाजपा कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त जोश है। उन्होंने साफ किया कि भाजपा के अनुशासित सिपाही जानते हैं कि हमारी लड़ाई दूसरे दलों की तरह सत्ता या कुर्सी के लिए नहीं, बल्कि बेहतर और विकसित बिहार के लिए है। पूरा बिहार भाजपा की ओर उम्मीद लगाए हुए है और पार्टी इन उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा नेता ने कहा कि जनता दल यूनाईटेड : जदयू : सरकार ख्रुफिया विभाग (आईबी) के अलर्ट को गंभीरता से लेते हुए गांधी मैदान में जुटे भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का पुख्ता प्रबंध करे। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी इस समागम में मौजूद रहेंगे, इसलिए सुरक्षा में किसी तरह की कोताही नहीं की जानी चाहिए। 

श्री यादव ने लोकसभा चुनाव के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा में हुए बम विस्फोट की चर्चा करते हुए कहा कि प्रदेश की नीतीश सरकार के शासन में बिहार इसी गांधी मैदान में नरेन्द्र मोदी जी की रैली में आतंकी धमाके देख चुका है। पटना के बहादुरपुर ब्लास्ट के तार भी आतंकी संगठन से जुड़े होने के साफ संकेत मिले हैं, बोधगया हमले में भी सरकार की नाकामी उजागर हुई थी। इसी कारण सुरक्षा को लेकर हमारी चिंता बढ़ गई है। भाजपा नेता ने कहा कि पिछले 24 घंटे में कटिहार के बलरामपुर में चार और सासाराम में दो लोगों को जिंदा जला दिया गया, सुपौल और मधेपुरा में लड़कियों को अगवा कर लिया गया, सीतामढ़ी में दलित छात्रावास में छात्र नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। हर दिन ऐसी घटनाएं बेरोक-टोक हो रही है और हर दिन जदयू नेता नीतीश कुमार पूरा वक्त राजद से विलय को लेकर बैठकों में ही गुजार रहे हैं। श्री यादव ने सवालिया लहजे में कहा कि नीतीश कुमार को यह बताना चाहिए कि सरकार की प्राथमिकता सूबे की कानून-व्यवस्था, लंबित विकास योजनाओं को पूरा करना, जनहित के मुद्दों का हल निकालना है या फिर राष्ट्रीय जनता दल से से विलय करना। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा .. आप विलय कीजिए....महाविलय कीजिए.... किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन बिहार को अपराधियों के भरोसे छोड़कर सूबे की जनता को मरने-लुटने के लिए तो नहीं कीजिए ।

बीसीसीआई से क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार को मान्यता देने की मांग

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क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ बिहार(सीएबी) के सचिव आदित्य वर्मा ने सोमवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड( बीसीसीआई) से अपने राज्य क्रिकेट संघ को मान्यता देने की अपील की। बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर को लिखे पत्र में आदित्य ने कहा, “इस समय बिहार में एक भी मान्यता प्राप्त क्रिकेट बोर्ड नहीं है जबकि तीन अगल अलग एसोसिएशन बिहार क्रिकेट संघ(बीसीए), क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ बिहार(सीएबी) और एसोसिएशन आॅफ बिहार क्रिकेट (एबीसी) राज्य में काम कर रही हैं।” उन्होंने पत्र में बताया कि तीनों एसोसिएशन के बीच इस बात पर कानूनी मसला फंसा है कि कौन सी एसोसिएशन राज्य की क्रिकेट गतिविधियों को चलायेगी। 

आदित्य ने कहा, “हम एक संस्था होने के नाते इस वक्त ऐसी स्थिति में हैं कि इस खालीपन को भर सकें। वर्ष 2002 से राज्य में क्रिकेट को प्रोत्साहित करने के लिये हम लगातार इस खेल से संबंधित गतिविधियों का आयोजन कर रहे हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि आपके सहयोग से हमें बीसीसीआई की पूरी सदस्यता मिल जायेगी। हमारे उद्देश्य भी वही हैं जो बीसीसीआई के हैं और हम बोर्ड के साथ काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।” आदित्य ने कहा, “हम बीसीसीआई की हर शर्त को मानने के लिये तैयार हैं। यदि बोर्ड को लगता है कि हमारी संस्था को अभी सदस्यता नहीं दी जानी चाहिये तो हम इस पर भी राजी हैं कि बीसीसीआई बिहार राज्य के लिये तदर्थ समिति बनाने की मंजूरी दे दे ताकि राज्य में क्रिकेट को प्रोत्साहित किया जा सके।

जनाधार घटता देख साम्प्रदायिक कार्ड खेल रही भाजपा : जदयू

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बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला करते हुए आज कहा कि प्रदेश समेत पूरे देश में अपनी खराब होती स्थिति को देखकर भाजपा ने हमेशा की तरह एक बार फिर सांप्रदायिक कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। जदयू प्रवक्ता निहोरा प्रसाद यादव ने यहां कहा कि भाजपा और उसके सहयोगी दल एक बार फिर भड़काऊ बातें कह कर देश में आग लगाना चाहते हैं। मुस्लिमों से मताधिकार छीन लेने और मुसलमानों और ईसाईयों की जबरन नसबंदी करने जैसी बातें इसी अभियान का ताजा उदहारण हैं। जनता को इस साजिश से सावधान रहना चाहिए। मुसलमानों और इसाईयों के खिलाफ आग उगल रही यह पार्टी कल को दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का भी जीना दूभर कर देगी। डा0 यादव ने कहा कि शिवसेना के मुखपत्र में छपा सम्पादकीय भाजपा के साथ उसकी मिली-जुली साजिश का हिस्सा है। इसी तरह हिन्दू महासभा की उपाध्यक्ष साध्वी देवा ठाकुर का मुसलमानों और ईसाईयों की जबरन नसबंदी सम्बन्धी बयान भी इससे अलग नहीं है।

जदयू प्रवक्ता ने कहा कि देशी-विदेशी पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथों बिक चुकी भारतीय जनता पार्टी एक ओर जहाँ किसानों की जमीन छीनकर इन्हें सौंप देने की तैयारी में है और एक-एक करके मुनाफे वाली सभी सरकारी परिसंपत्तियां भी इन्हें देती जा रही है, वहीं दूसरी ओर अपने मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इशारे पर पहले मुस्लिमों और आदिवासियों, फिर अन्य गैर हिन्दू धर्मावलम्बियों और आखिर में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों से मताधिकार भी छीनकर देश में शासन करना चाहती है। श्री यादव ने कहा कि राजनीतिक हित के लिए ऐसे दल किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं फिर चाहे देशभर में आग लगा देना पड़े या बड़ी संख्या में चुन-चुन कर असहाय नागरिकों का कत्लेआम करवाना पड़े। उन्होंने कहा कि जनता ऐसे दलों के बहकावे में नहीं आने वाली और उनकी साजिश को समझने लगी है और जनता दल (यूनाइटेड) का एक-एक कार्यकर्ता अपनी जान देकर भी समाज में आपसी भाईचारा और प्रेम व सौहार्द की रक्षा करेगा। जदयू नेता ने कहा कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता नंदकिशोर यादव प्रतिदिन बिहार में कानून-व्यवस्था और विकास कार्य का रोना रोते हैं और दावा करते हैं कि जबसे भाजपा को सत्ता से अलग किया गया है, तभी से बिहार की यह दुर्दशा हुई है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा .. क्या उन्हें केंद्र सरकार का कामकाज और उन राज्यों की स्थिति नहीं दिखलाई पड़ती है जहाँ भाजपा की सरकार है। केंद्र में सत्ता में आते ही देश को बेच डालने की शुरुआत और किसानों से उनकी जमीनें छीन लेने की उनकी तैयारी ने उनकी पार्टी का असली चेहरा पूरे देश के सामने बेनकाब कर दिया है। श्रम कानूनों में मालिकों के पक्ष में संशोधन और बैंकों में गरीबों का अकाउंट खुलवाने के नाम पर भूखी जनता से भी 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा गड़प लेने वाली मोदी सरकार को लोग पहचान चुके हैं.

विशेष : कट्टरता के पिंजरे में कैद उड़ानें

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वहाबीवाद का पोषक सऊदी अरब विश्व का सबसे मह्त्वपूर्ण और प्रभावी मुस्लिम देश है, यहाँ  सऊद द्वारा 1750 में एक इस्लामी राजतंत्र की स्थापना की गई थी। सऊदी अरब विश्व के अग्रणी तेल निर्यातक देशों में शामिल है। यहाँ गठित होने वाली घटनाओं पर दुनिया की नजर बनी रहती है। सऊदी अरब के बादशाह शाह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज अल सऊद का शुक्रवार को 90 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। अबदुल्ला की जगह अब उनके सौतेले भाई 79-वर्षीय सलमान सउदी अरब के नए शासक होंगें। शाह अब्दुल्ला की मौत के बाद उन्हें ‘मॉडर्न'सऊदी का जनक बताया जा रहा है, उनके तारीफ में कसीदे गढ़े जा रहे हैं, कहा जा रहा है कि उन्होंने महत्वपूर्ण राजनीतिक सुधारों के जरिये सऊदी अरब को आधुनिक बनाने की कोशिश की और अल कायदा के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का साथ देते हुए जिहादी आतंक के खिलाफ अपना सहयोग दिया।

दरअसल सऊदी अरब एक बंद और तानाशाही की जकड़बंदी झेल रहा मुल्क है, यहाँ आधुनिक दुनिया के विचारों और लोकतांत्रिक, समतावादी सोच पर पाबन्दी है और जहाँ किसी भी तरह के असहमती की सजा मौत है, यहाँ सजायें भी मध्युगीन तौर-तरीकों से ही अंजाम दिए जाते हैं। वर्ष 1926 से शाह अब्दुल्लाह और उनके खानदान के लोग इस मुल्क पर तानाशाही के तौर हुकूमत कर रहे हैं जो अपने सत्ता को कायम रखने के लिए किसी भी तरह की विपरीत आवाजों को बेहरहमी से कुचलते रहे है। लोकतंत्र की एक सामान्य सी व्यवस्था के लिए उठी मांग को तुरंत घोटने में कोई कोताही नहीं बरती गयी। इस काम में इस्लाम की ओंट का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया है। सऊदी अरब को मानवाधिकारों के उल्लंघन खासकर मौत की सजा और महिलाओं के साथ भेदभाव को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी है। कुल मिलकर सऊदी अरब में दमन का स्तर असाधारण और इसके तरीके पूर्व आधुनिक है।

ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार साल 2014 के दौरान सऊदी सरकार द्वारा जिन 87 लोगों को मौत की सजा दी गई उनमें से ज्यादातर का सिर कलम किया गया था, और सवाल उठने पर अब्दुल्ला सरकार ने इसे शरीयत कानून के अनुसार की गई कार्रवाई बताते हुए जायज ठहराया था। पिछले साल अब्दुल्ला सरकार का एक शाही आदेश भी खूब चर्चित हुआ था जिसमें नास्तिकता को आतंकवाद की श्रेणी में रखते हुए इसका दोषी पाए जाने पर बीस साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया था।

इसी तरह पिछले दिनों सऊदी अरब के ब्लॉगर रैफ़ बदावी को सार्वजनिक तौर पर दूसरी बार कोड़े लगाने की सज़ा को लेकर भी काफी हंगामा हुआ था। रैफी को सिर्फ एक ऑनलाइन फोरम चलाने पर इस्लाम के अपमान का दोषी बता दिया गया। इसके सजा के तौर पर उन्हें जून 2012 में गिरफ़्तार किया कर लिया गया था तथा 10 साल क़ैद और 1000 कोड़े मारे जाने की सज़ा दी गई थी। हालांकि पूरी दुनिया में विरोध की आवाजें उठने के बाद और रैफ़ बदावी की खराब सेहत की वजह से बाकी बचे 50 कोड़े रोक दी गई। 

सऊदी अरब सम्भवतः इस धरती पर सर्वाधिक अपारदर्शी और अस्वाभाविक देश है, यहाँ जिंदगी विशेषकर महिलाओं के लिए आसान नहीं है। यह  दुनिया का  अकेला देश है जहां महिलाओं के गाड़ी चलाने पर पाबंदी है ऐसा करने पर उनकी   गिरफ्तारी  हो सकती है, रेप जैसे अपराध में आरोपी को सजा तभी मिल सकती है, जब उसके चार चश्मदीद हों। हर महिला का एक पुरुष अभिभावक होना जरूरी है फिर वह चाहे उसका बेटा ही क्यों ना हो, लड़कियों की शादी भी कम उम्र में कर दी जाती है, वहां की शिक्षा व्यवस्था भी लैंगिक भेदवाव का शिकार है। समाज में स्त्रियों के लिए नौकरी का कांसेप्ट स्थापित नहीं हो पाया है।

दूसरी तरह वहां के मर्दों के किस्से पूरी दुनिया में बदनाम है। हिन्दुस्तान के सन्दर्भ में ही बात करें तो हैदराबाद में खाड़ी के मर्दों के घिनोने किस्से भरे पड़े हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में मोहम्मद वाजिहुद्दीन ने 2005 में अपने लेख “One minor girl,many Arabs” में इनके कारनामों को बयान करते हुए लिखा था कि “नई ऊर्जा वाले ये पुराने शिकारी हैं...प्राय: दाढ़ी रखने वाले और लहराते चोंगे के साथ पगड़ी पहनने वाले ये अरब ..हैदराबाद की गलियों में मध्यकाल के हरम में चलने वाले राजाओं की याद दिलाते हैं..जिसे हम इतिहास का हिस्सा मान बैठे हैं। वियाग्रा का सेवन करने वाले ये अरब इस्लामी विवाह के नियम “निकाह ” की आड़ में शर्मनाक अपराध को अंजाम देते हैं.. ये लोग उस परिपाटी का दुरुपयोग करते हैं जिसके द्वारा एक मुस्लिम एक साथ चार पत्नियां रख सकता है.. अनेक बूढ़े अरबवासी न केवल अधिकांश नाबालिग हैदराबादी लड़कियों से विवाह करते हैं, बल्कि एक बार में ही एक से अधिक नाबालिग लड़कियों से विवाह कर डालते हैं। इनकी पहली पसंद टीन एज की कुंवारी लड़कियों होती हैं, ये अरबवासी सामान्यत: इन लड़कियों से थोड़े समय के लिए विवाह करते हैं और कभी–कभी तो केवल एक रात के लिए। विवाह और तलाक की औपचारिकता एक साथ पूरी कर ली जाती है ।अरबवासियों का यह सेक्स पर्यटन भारत तक ही सीमित नहीं है दूसरे गरीब़ देशों में भी फैला है। 

2011 के दौरान अरब मुल्कों में तानाशाही के खिलाफ और आजादी, लोकतंत्र के पक्ष में हुए  आन्दोलनो का सऊदी अरब मुखर विरोधी रहा है, उसे डर था की कहीं अरब बसंत की हवायें रियाद तक ना पहुँच जायें और वहां भी लोग बदलाव के लिए इस तरह की आवाजें उठाने के लिए खड़े हों जाये, इसीलिए अरब बसंत के बाद किंग अब्दुल्ला ने कुछ कानूनों में सुधार कराने की शुरुआत की। जिसके तहत सऊदी अरब में पहली बार महिलाओं को स्थानीय निकाय चुनावों में वोट डालने का अधिकार दिया गया है, सऊदी अरब जैसे कट्टर समाज में महिला को उनके अधिकार देने की दिशा इन्हें नाकाफी कि माना जायेगा । 

सऊदी अरब इस्लाम के रूढ़िवादी और असहिष्णु वर्जन “वहाबीवाद” का मुख्य पोषक रहा है, शुरआत में ओसामा बिन लादेन को सऊदी व्यवस्था ने ही पाला-पोसा था, इन सब कारनामों के बावजूद किंग अबदुल्ला और उनका खानदान हमेशा से अमेरिका के काफी करीब रहा है, एक अनुमान के मुताबिक सऊदी अरब शाही परिवार की कुल निजी संपत्ति तकरीबन 1.4 ट्रिलियन डॉलर (करीब 86 लाख करोड़ रु) है जी कि भारत की कुल जीडीपी 2 ट्रिलियन डॉलर (123 लाख करोड़ रु) के 70 फीसदी के बराबर मानी काटी है  है।

दुनिया में मानवाधिकार के सबसे बड़े दरोगा और मानव-अधिकारों का उल्लंघन करने वाले सबसे बड़े राष्ट्र की इस दोस्ती पर कोई भी हैरान नहीं होता है। क्योंकि सबको पता है कि सऊदी अरब के पास बड़ी तेल संपदा हैं, और उस तक अमरीका की पहुँच में कोई रोक टोक नहीं है। 

दरअसल सऊदी अरब वहाबी चरमपंथियों  को समर्थन देने वाला सबसे बड़ा मुल्क है, समय- समय पर  सऊदी अरब द्वारा सीरिया, इराक, यमन, लेबनान जैसे मुल्कों में चरमपंथी  समूहों को लड़ाई के लिए पैसा और हथियार बांटने के खबरें उजागर होती रही हैं ।अलक़ायदा जैसे संगठन अमरीका और  उसके कुछ अरब साथी देशों की ही देन हैं। दरअसल अमेरिका और उसके साथी पश्चिमी मुल्कों की ने हमेशा से  ही  इस्लामिक दुनिया में बैठे तानाशाहों और गैर कट्टरवादी  शक्तियों  की सरपरस्ती की है और अपने हितों के खातिर  सिलसिलेवार तरीके से एक के बाद एक  इराक में सद्दाम हुसैन, इजिप्ट में हुस्नी मुबारक और लीबिया में कर्नल गद्दाफी आदि को उनकी सत्ता से बेदखल किया है, इन हुक्मरानों का आचरण परम्परागत तौर पर सेक्यूलर रहा है। आज यह सभी मुल्क भयानक खून- खराबे और अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं और अब वहां धार्मिक चरमपंथियों का बोल बाला है ।  सीरिया संकट में  तो सऊदी अरब का हस्तक्षेप जगजाहिर है,सऊदी अरब, अमेरिका और उसके साथियों ने राष्ट्रपति बशर अल असद  को हटाकर सीरियाई विद्रोहियों की हुकूमत स्थापित करने के पक्ष खुल कर काम किया है, इन्होने  सीरिया  विद्रोह को  आज़ादी के लिए हो रहे लोकतांत्रिक आंदोलन साबित करने तक में कोई कसर नहीं छोड़ी था ।आज हम देखते हैं कि इस्लामिक स्टेट इराक़ और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा चुका है, उनका मकसद चौदहवी सदी के सामाजिक-राजनीतिक प्रारुप को फिर से लागू करना हैं, जहाँ असहमतियों की कोई जगह नहीं है, उनकी सोच है कि या तो आप उनकी तरह बन जाओ नहीं तो आप का सफाया कर दिया जायेगा। एकांगी इस्लाम में विश्वास करने वाले इस्लामिक स्टेट ने तो सूफी और ग़ैर-सुन्नी मुसलमान को भी  पूरी निर्ममता के साथ अपना  निशाना  बनाया है ,इस्लामिक स्टेट के लोग गुलामीप्रथा के वापसी की वकालत कर रहे हैं जिसमें औरतों कि गुलामी भी शामिल है , इस्लामिक स्टेट की अधिकृत पत्रिका‘”दबिक” में “गुलामी प्रथा की पुनस्र्थापना” नाम से एक लेख छपा था जिसके अनुसार इस्लामिक स्टेट अपनी कार्यवाहियों  के दौरान ऐसी प्रथा की पुनस्र्थापना कर रहा है जिसे ‘शरिया  में मान्यता प्राप्त है। पत्रिका में बताया गया है कि शरिया के अनुसार ही वे पकड़ी गई महिलाओं और बच्चों का बंटवारा कर रहे हैं । उनका मानना है है कि यह उनका  अधिकार है कि वे इन महिलाओं के साथ जैसा चाहे सुलूक करें, वे उन्हें गुलामों की तरह भी रख सकते हैं। 

आईएसआईएस के गठन में सीआईए और मोसाद जैसी खुफिया एजेंसियों की सक्रिय भूमिका की ख़बरें भी आती रही हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व अधिकारी एडवर्ड इस्नोडन ने खुलासा किया है कि इस्लामिक स्टेट का मुखिया अबू बकर अलबगदादी अमेरिका और इसराइल का एजेंट है और उसे इसराइल में प्रशिक्षण प्रदान किया गया। एडवर्ड के अनुसार सीआईए ने ब्रिटेन और इजरायल के खुफिया एजेंसियों के साथ मिल कर इस्लामिक स्टेट जैसा  जिहादी संगठन बनाया है जो दुनिया भर के चरमपंथियों को आकर्षित कर सके, इस  नीति को 'द हारनीटज़ नीसट'का नाम दिया गया, अमरीका के पुराने इतिहास को देखते हुए एडवर्ड इस्नोडन  के इस खुलासे को झुठलाया भी नहीं जा सकता है, आखिरकार यह अमरीका ही तो था जिसने अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीनों की मदद की थी, जिससे आगे चल कर अल-क़ायदा का जन्म हुआ था। अमरीका के सहयोगी खाड़ी देशों पर आईएस की मदद करने के आरोप हैं, साथ ही इस संगठन के पास इतने आधुनिक हथियार कहां से आये इसको लेकर भी सवाल है ?

भारत के सन्दर्भ में बात करें तो  अगर यहाँ के मुसलमान अभी भी अपने आप को  “रेडिकल: होने से बचाये हुए है तो इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में इस्लाम का इतिहास करीब हजार साल पुराना है और इस दौरान यहाँ सूफियों का ही वर्चस्व रहा हैं,इस दौरान इस्लाम कि अपनी भारतीय समझ भी फली – फूली है जिसका प्रभाव आज भी इस मुल्क के बहुसंख्यक मुसलमानों पर कायम है,  लेकिन अब पिछली चंद घटनायें बताती है कि भारतीय मुसलमान आईएसआईएस, अलकायदा जैसे जिहादी संगठनों और सऊदी अरब पोषित वहाबी  इस्लाम के निशाने पर है ।  इधर भारत में वहाबियत के प्रमुख स्तंभ  जाकिर नाईक को "सऊदी अरब मार्का इस्लाम"कि सेवा के लिए वहां की तानाशाह सरकार ने 2015 के King Faisal International Prize (KFIP) से नवाजने का एलान किया है , जाकिर नाईक पिछले कई सालों से भारतीय इस्लाम और मुसलामानों का अरबीकरण करने का काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं. उपदेशक डॉ जाकिर नायक और आतंकवाद और स्यूसाइड बोम्बिंग के समर्थन में बयान देकर भी काफी चर्चित रहे हैं ।

चंद सालों पहले सऊदी अरब की विख्यात नारीवादी लेखिका वाजेहा अल-हैदर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के नाम खुला पत्र लिखा था जिसके चंद हिस्सों पर नज़र डालना जरूरी है, ओबामा को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा था कि “माननीय राष्ट्रपति जी, ...मैं मेक्सिको की खाड़ी के पक्षियों को देख रही हूँ जो काले तेल के छीटों से पूरी तरह ढ़ँक गए हैं। इनके दुख के साथ मैं सऊदी औरतों की पीड़ा की समानता देख पा रही हूँ। ये पंछी मुश्किल से हिलडुल पाते हैं, अपने जीवन पर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता, वे स्वाधीन रूप से उड़कर ऐसी जगह नहीं जा सकते जहाँ शांति से रह सकें। यही हाल सऊदी औरतों का हैं। मैं उनकी पीड़ा से परिचित हूँ। मैंने पूरे जीवन इसे झेला है....मेक्सिको की खाड़ी की चिड़ियाँ और सऊदी अरब की महिलाएँ समान त्रासद परिस्थितियों से गुजर रहीं हैं, उन्हें अत्यंत ही दुरूह स्थितियों में अपने ही प्राकृतिक,सहज परिवेश में कैद कर दिया गया है। उन्हें मदद की ज़रूरत है ताकि वे पुन: बच सकें,जी सकें। जब आप बादशाह अब्दुल्ला बिन अब्दुल-अज़ीज़ से मिलें कृपया उनकी सहायता करें जिससे कि वे देख सकें कि सऊदी मर्दों के संरक्षण की व्यवस्था का सऊदी महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ा है। बच्चों को अभिभावक चाहिए, परिपक्व स्त्रियों को नहीं”।


उम्मीद के मुताबिक वाजेहा अल-हैदर नाम की इस बहादुर अरब महिला को लोकतंत्र और मानव अधिकारों के कागजी शेर से नाउम्मीदी ही हाथ लगी है।




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(जावेद अनीस)
ईमेल : Javed4media@gmail.com

चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री के द्वारा विकास मित्रों को तोहफे की भरमार

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  • संविदा में ही रहेंगे और 60 साल साथ-साथ चलते रहेंगे
  • ऐसी व्यवस्था कर देंगे कि कोई नौकरी से निकाल नहीं सकेगा

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पटना।बखूबी विपक्षी दलों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पस्त कर दिए।पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के समक्ष कदम बढ़ाने वाले विकास मित्रों को बैंकफुट पर आने को मजबूर कर दिए।जब कुर्सी पर जीतन राम मांझी थे तब विकास मित्रों का मानदेय में ही बढ़ोतरी कर देते थे। नौकरी स्थायी करने की दिशा में मूकदर्शक बन जाते थे। इसके आलोक में विकास मित्र उप मुख्यमंत्री और उनके दलों के नेताओं के पास जाकर स्थायीकरण करने की मांग करते। 

मुख्यमंत्री ने महादलित विकास मिशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ऐलान कर दिया कि अब आप 60 साल तक रहेंगे। इसकी चिंता मत करें। मंहगाई बढ़ती है तब आपका मानदेय भी बढ़ता ही चले जाएगा। 6 हजार में 1 हजार रूपए का बढ़ोतरी करके मानदेय 7 हजार रूपए कर दिया गया है। ऐसा उपाय करके जाएंगे कि आने वाले कोई नौकरी से हटा न सके और न ही मानदेय में कमी कर सके। मौके पर श्याम रजक,श्रवण कुमार और रमई राम ने भी संबोधित किया। बिहार सरकार के अधिकारी एसएम राजू ने विस्तार से विकास मित्रों के कत्र्तव्य और अधिकारों के बारे में जानकारी दिए।  इस तरह सत्तासीन समय में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी चहेते बने विकास मित्र को अपने खेमे में ले आने में सफल हो गए। अब तो 60 साल तक कार्य करते रहना है। मानदेय भी बढ़ता ही रहेगा। 

विकास मित्र सुधीर कुमार मांझी ने कहा कि महादलित विकास मिशन के द्वारा 2010 में विकास मित्रों की बहाली शुरू की गयी। उस समय विकास मित्रों को 3 हजार रू.मानदेय दिया जाता था। मिशन के द्वारा 9875 विकास मित्र बहाल करना है। अभी बिहार में 9464 विकास मित्र हैं। इसमें 50 प्रतिशत महिला विकास मित्र हैं। श्री मांझी ने कहा कि हमलोग सर्वें का कार्य करते हैं। बीपीएल,आवास,पेयजल आदि का सर्वें करते हैं। सामुदायिक भवन सह क्रेश शेड निर्माण में अभिकर्ता बनते हैं। दशरथ कौशल विकास योजना की जानकारी देना और महादलितों का नामांकन करवाने में सहयोग देते हैं। गांवघर और परिवार वालों को शौचालय निर्माण करवाने को प्रोत्साहित करते हैं। इसके बारे में लोगों को जानकारी देते हैं। टोला में बैठक कर विकास और कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देते हैं। 

सनद रहे कि महादलित विकास मिशन के द्वारा सबसे पहले महादलित मुसहर समुदाय के ही लोगों को विकास मित्र बनाया गया है। इस समय पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी विपक्षी भूमिका में हैं। श्री मांझी ने ‘हम’ संगठन के द्वारा 20 अप्रैल को गरीब स्वाभिमान रैली शंखनाद कर रखी है। पूर्व मुख्यमंत्री महादलितों पर ही आसरा लगा बैठे हैं। ऐलान भी कर रखेंगे है कि अगर ऐतिहासिक गांधी मैदान में 5 लाख लोगों की संख्या नहीं होगी तब जाकर राजनीति से संयास ले लेंगे? अब देखना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा लाॅलीपाॅप देने के बाद विकास मित्र किस डगर पर अग्रसर हो रहे हैं? 


आलोक कुमार
बिहार 

अपनी निजी जिंदगी में दीपक कुमार बहुत ही अलग है

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अभिनेता दीपक कुमार किसी एक किरदार की अपेक्षा विविधतापूर्ण किरदार जीने की चाह रखते है।वह कहते है कि  फिल्म लासा फोट’ में पहली बार अपने अभिनय के रंग बिखरने के बाद में अब उनकी दूसरी फिल्म फिल्म ‘रंग -ए -रसिया’ 24 अप्रैल को रीलिज होगी । फिल्म में उनका नेगेटिव रोल है, अपनी फिल्म को लेकर वे क्या सोचते है। जानते है उनकी ही जुबानी । 

इस फिल्म में अपने किरदार के बारे में कुछ बताइये ?
इस फिल्म में सेकंड लीड हूँ जिसमे मेरे किरदार का नाम है विराट ठाकुर जो काफी घमंडी और अमीर खानदान का बेटा है.उसे जो पसंद आता है वह वो पाना चाहता है किसी भी कीमत पर.

दीपक कुमार कितना अलग है विराट से अपने वास्तविक जीवन में ?
अपनी निजी जिंदगी में दीपक बहुत ही अलग है विराट से .मैं अपने  जीवन में काफी व्यवहारिक हूँ .मैं वही करता हूँ जो मेरा दिल करने की इजाजत दे.मैं सभी से प्रेम और सभी का पूरा ख्याल रखता हूँ.

इस फिल्म की कहानी के बारे में पूछे तो क्या कहेंगे ?
यह एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी है जिसमे रोमांस ,थ्रिलर दर्शको को देखने मिलेगा.

यह फिल्म किस तरह दूसरे फिल्मो से अलग है?
यह लव स्ट्रोरी फिल्म है जिसमे भरपूर रोमांस है जो शायद दर्शको को अब तक की फिल्मो में देखने न मिला हो .

‘रंग-ए-इश्क’ आपकी पहली फिल्म है?
 नहीं यह मेरी दूसरी फिल्म है .पहली फिल्म मैंने की थी ‘लासा फोट’ जो कान फेस्टिवल तक गई थी.

शूटिंग के दौरान की कोई यादे?
फिल्म की पूरी शूटिंग भारत के अलग -अलग लोकेशन जैसे नॉएडा,दिल्ली,शिमला जैसे शहरों में हुई है जो काफी याद रहेगी.

अपने बारे में कुछ बताइये ?
मेरा जन्म एक बहुत छोटे शहर मोतिहारी, बिहार में हुआ है.उसके बाद मेरा पालन-पोषण सीतामढी में हुआ .मैंने अपनी पढाई पटना में की उसके बाद इंजीनियरिंग की पढाई की.उसके बाद मैंने २ साल इंजीनियर के तौर पर काम भी किया.

एक इंजीनियर होने के बाद आपने अपने आप को एक एक्टर के रूप में कैसे ढाला?
बाजीगर यह फिल्म देखने के बाद .मैं शाहरुख खान का बहुत बड़ा फैन हो गया फिर मैंने एक्टर बनने की तैयारी शुरू कर दी.काजोल मेरी फेवरेट एक्ट्रेस है.

रंग-ए -इश्क फिल्म से कितनी उम्मीद है?
जो भी ऊपर वाला चाहे वो,  मैंने तो बहुत मेहनत की है ,अपनी पूरी जान लगा दी है मैंने .जो होगा अच्छा ही होगा.

रंग-ए-इश्क के बाद की योजना ?
दो फिल्म है मेरी जो बहुत जल्द आएगी जिसमे से एक रोमांटिक फिल्म होगी.


  
(प्रेमबाबू शर्मा )

मुंबई फिर से आतंकी निशाने पर

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सुरक्षा एजेंसियों ने मुंबई सहित देश के कई शहरों में आतंकी हमले का अलर्ट जारी किया है। एजेंसियों के मुताबिक, आतंकी संगठन 'लश्कर-ए-तैयबा'अगले दो से तीन महीने में कई शहरों में एक के बाद एक कई हमले कर सकता है। 

एजेंसियों के अनुसार, ये आतंकी समंदर के रास्ते मुंबई में घुस सकते हैं और इनकी संख्या आठ से दस तक हो सकती है। समंदर के रास्ते मुंबई में दाखिल होने के बाद इन आतंकियों के निशाने पर सभी बड़े रेलवे स्टेशन और पांच सितारा होटल हो सकते हैं। मुंबई रेल पुलिस आयुक्त ने शहर के सभी रेल पुलिस थानों को एक पत्र लिखकर सभी को सतर्क रहने और जरूरी सुरक्षा उपाय करने को कहा है।

हालांकि एनडीटीवी को इंटेलिजेंस ब्यूरो और रॉ के सूत्रों ने साफ किया है कि यह एक सामान्य किस्म का अलर्ट है, जो कुछ दिन पहले सभी राज्यों को जारी किया गया था। इस अलर्ट में किसी एक शहर या टारगेट की तरफ़ इशारा नहीं किया गया है। यह अलर्ट पहले के अलर्ट के सिलसिले को ही आगे बढ़ाता है, क्योंकि मई 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही देश में लश्कर द्वारा आतंकी हमला किए जाने की लगातार आशंका बनी हुई है।

सुरक्षा एजेंसियों द्वारा यह अलर्ट 26/11 हमले के मुख्य़ आरोपी ज़की-उर-रहमान लखवी की रिहाई के तुरंत बाद जारी किया गया। दरअसल, लखवी को पिछले हफ्ते ही लाहौर की एक कोर्ट से जमानत मिली थी, हालांकि भारत ने लखवी की रिहाई के खिलाफ अपना विरोध भी दर्ज कराया है। वैसे, पाकिस्तान से आ रही खबरों के अनुसार, इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने मुंबई में हुए 26/11 हमले की सुनवाई खत्म करने के लिए दो महीने की समयसीमा तय की है। 26/11 के साज़िशकर्ता 55-वर्षीय आतंकवादी सरगना ज़की-उर-रहमान लखवी को दी गई जमानत रद्द करने के लिए दायर की गई सरकारी अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को चेताया कि अगर उसने दो महीने की समयसीमा के भीतर मामले की सुनवाई पूरी नहीं की, तो वह (हाईकोर्ट) लखवी की जमानत रद्द करने की पाकिस्तान सरकार की अपील मंजूर कर लेगी।

हास्य - व्यंग्य : मीडिया में माफी और मार....!!​

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media and ministers
सचमुच मीडिया से माननीयों का रिश्ता भी बड़ा अजीब है। मीडिया को ले हमारे  माननीयों का रवैया न  निगलते बने न उगलते वाली जैसी है। सुबह किसी सेमिनार में प्रेस की स्वतंत्रता पर लंबा व्याख्यान दिया और शाम को उसमीडिया पर बरसने लगे। कभी फटकार तो कभी पुचकार। क्या आपकी नजर में एेसा कोई  सप्ताह बीता है जिस  दौरान किसी बड़े आदमी ने मीडिया को गालियां न दी हो या यह न कहा हो कि  मेरा आशय यह नहीं था ... मेरी बातों का गलत मतलब निकाला गया... अथवा  तथ्यों को तोड़ - मरोड़ कर पेश किया गया।  कुछ दिनों की चिल्ल पों और फिर सब कुछ सामान्य गति से चलने लगता है। दरअसल प्रेस - पुलिस औऱ पॉलिटिक्स का क्षेत्र ही एेसा है कि यहां आप चाहे जितना जुते रहें , लेकिन आपके हिस्से आएगी तो सिर्फ गालियां ही। इनके बिना किसी का काम भी नहीं चलता लेकिन गरियाने से भी लोग नहीं चूकते। पहले जो चाहे कह डालो  और जब  बवाल मचने लगे तो सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ कर अपनी राह निकल लो। हस्ती फिल्म जगत की हो या राजनीति अथवा खेल की दुनिया की। 

सभी पहले प्रेस की पालकी पर सवार होकर सफर पर निकलेंगे और फिर मंजिल पर पहुंच कर उसी को कोसेंगे। मेरे एक मित्र की बड़ी खासियत यह थी कि शाम ढलने के बाद वे दूसरी दुनिया में चले जाते थे औऱ दूसरी खासियत यह कि जिस किसी के प्रति उनके मन में रंज होता उसे पहले भरी सभा में बेइज्जत कर बैठते। लेकिन अपमान  की आग में जलता हुअा भुक्तभोगी बेचारा सुबह नींद से जाग भी नहीं पाता था कि वही महानुभाव सामने खींसे निपोरते हुए खड़े मिलते थे कि... भैया... रात की मेरी बात का बुरा नहीं मानना... दरअसल कल कुछ ज्यादा ही चढ़ गई थी... वर्ना मैं तो आपको बड़े भाई का दर्जा देता हूं ... अब बेचारे भुक्तभोगी की हालत जबरा मारै पर रोवय न देवे ... वाली हो जाती । बचपन में मैने एक मोहल्ले के एेसे दादा को देखा है जो किसी से नाराज होने पर पहले उसकी जम कर पिटाई कर पूरे मोहल्ले पर धौंस जमाता और फिर मामला कुछ ठंडा होने पर उसे किसी होटल में बैठा कर जम कर नाश्ता करवाता।  

अंधेरी दुनिया के एक माफिया डॉन की खासियत यह थी कि किसी से नाराज होने पर पहले वह उसे बुला कर सब के सामने बुरी तरह से डांटता। गंभीर परिणाम की चेतावनी भी दे डालता। लेकिन मामला कुछ ठंडा पड़ने पर अकेले में उससे मिल कर यह जरूर कहता कि वह उसकी बातों का बुरा न माने। दरअसल कई शिकायतें मिली थी , जिसके चलते उस रोज वह उस पर बिगड़ बैठा। लेकिन उसके दिल में कुछ नहीं है। किसी भी तरह की जरूरत हो तो वह उससे बेखटके मिल या बोल सकता है।  मीडिया का भी कुछ एेसे ही भुक्तभोगियों जैसा हाल है। बेचारा जिसे सिर पर उठा कर ऊंचाई तक पहुंचाता है, उसी से गालियां खाता है। तिस पर गालियां देने वाले की तिकड़में उसे अलग परेशान करती है। प्रत्यक्ष बातचीत में प्रेस की स्वतंत्रता पर लंबा व्याख्यान लेकिन अलग परिस्थितयों में अलग ही रूप। समझ मेें नहीं आता कि जनाब किस तरफ हैं। यह हाल राजधानी से लेकर शहर - कस्बों तक में समान रूप से देखने में मिलता है। दायरा बढ़ने के चलते छोटे शहरों में भी आजकल माननीय मीडिया का इस्तेमाल करने के साथ उसे जब - तब गरियाते भी रहते हैं। बिल्कुल पल में तोला - पल में माशा वाली हालत है। कभी कलमकारों को गले लगाएंगे तो बदली परिस्थिति में उसे दुत्कारने से भी बाज नहीं आएंगे।  लगता है मीडिया को इसी तरह माननीयों व सेलिब्रिटियों की गालियां खाते हुए अपनी राह चलते रहना पड़ेगा। 





तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934 
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

अतिथि शिक्षक पर -१५ अप्रैल के बाद रोजी रोटी का संकट जायज माँगोँ को सरकार मांगे

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  • जायज माँगोँ को सरकार मांगे---

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म० प्र० अतिथि शिक्षक संघ के तत्वाधान में  भोपाल में धरना चल रहा है  किन्तु उनकी जायज मांगो को सरकार ने अनसुनी कर दिया और  आन्दोलन स्थल तक कोई नहीं आया,क्योकि सरकार अतिथि शिक्षको की जायज मांगो को मानना नहीं चाहती। हमारी सिर्फ "१ मांग  सभी अतिथि शिक्षक को नियमित किया जाये" 

अब होगा विशाल धरना, 
सरकार  योग्य अनुभवी ईमानदार अथिति शिक्षको को 15 अप्रैल से  सेवा से बाहर न करे इससे सम्पूर्ण शिक्षक जाति का अपमान हो रहा है सरकार को इन अथिति शिक्षको ने ऐसे वक्त मेँ सहारा दिया जब म.प्र. के  स्कूलो मेँ शिक्षको की भारी कमी थी पूरी पढ़ाई व्यवस्था शिक्षको की कमी के कारण चौपट थी तब सरकार ने प्रदेश के इन शिक्षित योग्य बेरोजगारो को अथिति शिक्षको के रुप मेँ स्कूलो मेँ पढ़ाने के लिए आंमत्रित किया और इन्हे शिक्षको के समान सम्मान दिया स्कूल के बच्चो का इनसे गुरु शिष्य का रिश्ता बनाया इनको मानदेय दैनिक मजदूरोँ की भाँति प्रतिदिन के हिसाब से दिया जाता है लेकिन इन्होने गरीबी बेरोजगारी और अपनी परिवारिक समस्याऔ के कारण मजबूरी मेँ यह अथिति शिक्षक का पद स्वीकार किया लेकिन अब सरकार इन्हे चार 7 वर्ष की सेवा के बाद इन्हे निकाल बाहर कर रही है इन गरीबो का परिवार महिनो रोता है स्कूल के बच्चे अपने प्रिय शिक्षक को खो कर भारी दुखी होते है  इस व्यवस्था से सम्पूर्ण शिक्षक जाति का अपमान हो रहा है ऐसा हाल कभी शिक्षाकर्मियो का भी नही किया गया था जैसा अन्याय अपमान सरकार इन अथिति शिक्षको के साथ कर रही है सरकार से इनकी माँग है कि सरकार हमारी योग्यता की जैसी परीक्षा लेने चाहे ले ले और हमेँ भी अनुदेशको की भाँति अनुभव और योग्यता के अनुसार अध्यापक बनने का अवसर प्रदान करे लेकिन आज तक इनकी जायज माँगोँ को सरकार ने नही मानी अतिथि शिक्षक संघ  इन माँगो को अब पूरी ताकत से उठायेगी 

फिर गरमा रहा है कश्मीरी पंडितों की घर-वापसी का मुद्दा !!

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कश्मीरी पंडितों की घर-वापसी का मुद्दा एक बार फिर गरमा रहा है.एक बार तो तय हो गया था कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को अलग से एक आवासीय कॉलोनी में बसाया जायगा और इसके लिए भूमि,राजस्व आदि मुहैया करने की भी बात चली थी.अभी बात चली ही थी कि वादी के अलगाववादियों के कान खड़े हो गये और उन्होंने राज्य-केंद्र सरकार के इस बहुप्रतीक्षित प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया और गत शनिवार को घाटी में बंद का आवाहन भी किया.अलगाववादियों के रुख को देखकर या फिर उनके दबाव में आकर राज्य के मुख्यमंत्रीजी ने भी उनके सुर में सुर मिलकर घोषणा की कि पंडितों को किसी अलग ‘टाउनशिप’ में बसाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.पंडित चाहें तो वे अपने पुराने घरों में वापस आकर रह सकते हैं. मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में इस मुद्दे पर ‘यू टर्न’ लेने पर कई सवाल खड़े हुए हैं.कश्मीरी-पंडित समर्थक एक विधायक ने कहा है कि क्या अब आतंकी/अलगाववादी कश्मीरी पंडितों का भविष्य तय करेंगे? विधायक ने स्पष्ट किया  कि हुर्रियत नेता और अलगाववादी पाकिस्तानी एजेंडे पर वादी में काम कर रहे हैं.पंडितों को कश्मीर वापस लुटने-पीटने या  गोली खाने के लिए नहीं भेजा जा सकता.यह उनके साथ अन्याय होगा.

इधर, एक बात और सामने आई है.सुना है जम्मू कश्मीर राज्य के स्वतंत्र विधायक इंजीनियर रशीद ने एक बयान जारी कर कहा है कि कश्मीर से पंडित अपनी मर्जी से चले गये हैं और उसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए.हालांकि उनके इस बेहूदा बयान को राज्य सरकार ने अस्वीकार करते हुए माना है कि विषम और भयावह परिस्थितियों के कारण ही पंडितों को वादी से पलायन करना पड़ा मगर रशीद का यह बयान पंडितों के जख्मों पर नमक छिडकने से कम नहीं माना जा सकता.कश्मीरी पंडितों के कई संगठनों ने रशीद के इस अजीबोगरीब बयान पर अपनी कड़ी आपत्ति व्यक्त की है.
यहाँ पर केंद्र और राज्य सरकार के अलगाववादियों के प्रति नर्म रुख की चर्चा करना अनुचित नहीं होगा.जो लोग आये दिन कश्मीर के लिए आज़ादी की गुहार लगा रहे हों,जिनका भारत के संविधान में विश्वास नहीं हो ,जो कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा लहराते हों आदि,क्या ऐसे देश-विरोधी इस लायक हैं कि उन्हें जनता के टैक्स के पैसे से सुरक्षा मुहैया की जाय?एक खबर के मुताबिक जिन अलगाववादियों/आतंककारियों ने बन्दूक की नोक पर कश्मीर से पंडितों को मार भगाया,पिछले अनेक वर्षों से उन्हीं की सुरक्षा के लिए सरकारें(केंद्र/राज्य)करोड़ों रूपये उनकी सिक्यूरिटी पर खर्च कर रही है.यह कैसी कूटनीति है?एक सवाल यह भी उठता है कि जिन अलगाववादियों/आतंककारियों ने अनेक मासूम और बेगुनाह पंडितों को मौत के घाट उतारा,उनके घर जलाये,लूटपाट की आदि उनपर मुकद्दमे क्यों नहीं चलते या फिर वे जेल के अंदर क्यों ठूसें नहीं जाते?उल्टा,ऐसे अपराधी निःशंक घूम-फिर रहे हैं और धौंस दिखाकर सरकार से हर तरह की सुविधा भी ले रहे हैं. कहना न होगा कि कश्मीरी अलगाववादियों को भारत-देश की कोई भी चीज़ स्वीकार्य नहीं है:भारतीय संविधान,भारतीय कानून,भारतीय झंडा,भारतीय राष्ट्रगान आदि-आदि।अगर कोई चीज़ स्वीकार्य है तो वह है देश की करेंसी/मुद्रा जिससे उनको परहेज़ नहीं है.

सरकारें आयीं और चली गयी मगर कश्मीरी पंडितों के कष्ट अभी तक दूर हुए नहीं हैं.सचाई यह है कि चूंकि इस अमन-पसन्द कौम का अपना कोई वोट बैंक नहीं है, इसी लिए शायद इनकी कोई सुनता भी नहीं है और अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं.आशा की जानी चाहिए कि नई सरकार इनके दुःख-दर्द जल्दी ही दूर करेगी और इनके लिए एक अलग और सुरक्षित आवासीय कॉलोनी या होमलैंड बनाने के इनके 25 वर्ष पुराने सपने को साकार कराने की पहल करेगी।वोट मांगने के लिए वायदे करना एक बात है और उन्हें निभाना दूसरी बात।



शिबन कृष्ण रैणा
अलवर 

स्थापना से आज तक अजा/अजजा के कर्मचारियों के साथ भेदभाव जारी

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  • एनसीआरटी की स्थापना से आज तक अजा/अजजा के कर्मचारियों के साथ भेदभाव जारी कार्यवाही हेतु हक रक्षक दल के प्रमुख ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री को लिखा पत्र 

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जयपुर। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) में अजा/अजजा के कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन, अत्याचार, भेदभाव और मनमानी के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने के सम्बन्ध में हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली और मानव संसाधन मंत्री भारत सरकार, नयी दिल्ली को पत्र लिखकर मांग की है कि अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को जानबूझकर क्षति पहुंचाने वाले गैर अजा/अजजा प्रशासकों के खिलाफ कठोर dandaatmk कार्यवाही की जावे और अभियान चलाकर अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नतियां प्रदान की जावें। 

पत्र में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने लिखा है कि हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नयी दिल्ली और संसाधन मंत्री को लिखा है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार-भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग के अधीन संचालित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद में इसकी स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा के कर्मचारियों को संविधान में निर्धारित प्रावधानों और सरकारी नीति तथा प्रक्रियानुसार पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिये विधिवत रोस्टर बनाकर लागू नहीं किया गया है। रोस्टर में जानबूझकर विसंगतियॉं छोड़ने वाले कर्मचारियों को अनारक्षित वर्ग के उच्चाधिकारियों का दुराशयपूर्ण संरक्षण प्राप्त है। अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों के उच्च श्रेणी में पद रिक्ति होने के वर्षों बाद तक डीपीसी का गठन नहीं किया जाता है। यही नहीं अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों की पदोन्नति की पात्रता में किसी भी प्रकार की छूट का नियम लागू नहीं किया गया है। जबकि भारत सरकार की सभी मंत्रालयों में इस प्रकार की छूट के स्पष्ट प्रावधान लागू हैं।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने आगे लिखा है कि इस प्रकार उपरोक्त कारणों से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अनारक्षित वर्ग के उच्च पदस्थ प्रशासकों द्वारा निम्न से उच्च पदों पर अजा एवं अजजा के कर्मचारियों की पदोन्नति दुराशयपर्वक बाधित की जाती रही हैं और इस कारण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक उच्चतम पदों पर अजा एवं अजजा वर्गों का संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार पर्याप्त और निर्धारित प्रतिनिधित्व सम्भव नहीं हो पाया है। जिसके चलते अजा एवं अजजा के निम्न स्तर के कर्मचारियों का संरक्षण और उनका उत्थान असंसभव हो चुका है। परिषद के उच्च पदस्थ गैर-अजा एवं अजजा वर्ग के प्रशासकों का यह कृत्य अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने उपरोक्त तथ्यों से अवगत करवाकर प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री से आग्रह है कि-

1. अजा एवं अजजा वर्गों के कर्मचारियों को पदोन्नति की क्षति पहुँचाने वाले गैर-अजा एवं अजजा वर्गों के उपरोक्तानुसार लिप्त रहे सभी प्रशासकों के विरुद्ध अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (9) के तहत आपराधिक मुकदम दर्ज करवाकर उन्हें कारवास की सजा दिलवाई जावे और साथ ही साथ ऐसे प्रशासकों के विरुद्ध विभागीय सख्त अनुशासनिक कार्यवाही भी की जावे। जिससे भविष्य में अजा एवं अजजा वर्गों के हितों को नुकसान पहुँचाने की कोई गैर-अजा एवं अजजा वर्गों का प्रशासक हिम्मत नहीं जुटा सके।
2. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की स्थापना से आज तक अजा एवं अजजा वर्गों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिये किसी बाहरी स्वतन्त्र और निष्पक्ष ऐजेंसी से सभी पदों का सही रोस्टर बनवाया जावे और भारत सरकार की नीति के अनुसार पदोन्नति पात्रता में शिथिलता प्रदान करते हुए अजा एवं अजजा वर्गों के समस्त रिक्त पदों को अभियान चलाकर तुरन्त प्रभाव से भरवाये जाने के आदेश प्रदान किये जावें।

पत्र के अंत में डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने लिखा है की पत्र पर की जाने वाली कार्यवाही सेहक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन को अवगत करवाने का कष्ट करें।



(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख

झारखण्ड : बालिकाएँ सबल व सशक्त बनकर चाहती हैं अपने पैरों पर खड़ा होना

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महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में अब पुरुषों से कम नहीं रहना चाहतीं। वे चाहती हैं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना। वे चाहती है अपना अलग अस्तित्व। एक गृहणि मात्र की सीमाओं में बंध कर नहीं रहना चाहतीं आज की बालिकाएँ। समाज के हर क्षेत्र से वे चाहती हैं पूरी निष्ठा के साथ जुड़ना। समाज के अनुभवों को आत्मसात करना। पढ़ाई के साथ-साथ अपने आत्मरक्षार्थ आज की बालिकाएँ सीख रहीं हैं मार्शल आर्टस ताकि भय के वातावरण से बाहर निकल स्वच्छंद जीवन वे जी सकें। कस्तुरबा गाँधी आवासीय विद्यालय, जामा में तैयार हो रही हैं ऐसी बालिकाएँ जिन्होनें जीवन में अपने लक्ष्य खोज रखे हैं। आर्थिक रुप से कमजोर दलित, हरिजन व पिछड़ी जातियों की बच्चियों के लिये कस्तुरबा गाँधी आवासीय विद्यालय  एक वरदान से कम नहीं। इस विद्यालय में बच्चियाँ क्या कुछ सोंचती हैं इसकी पड़ताल कर वापस लौटे वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र सुमन की कलम से जानिये इनके मन की बात।  
             

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खुद के बलबूते उड़ान भरने की चाहत ने बालिकाओं को काफी सबल बना दिया है। पुरुषों के भरोसे जिन्दगी जीने की असमर्थता को वे पूरी तरह खारिज कर देना चाहती हैं। वे चाहती हैं अपने दो पैरों पर खड़ा होकर जिन्दगी की गाड़ी खींचना। बिना किसी बाहरी सहायता व विरोध के। कस्तुरबा गाँधी बालिका विद्यालय जामा (दुमका) की छात्राओं ने अपने आत्मरक्षार्थ मार्शल आटर्स सीख कर विद्यालय में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रखी हैं। बिना सहायता के आगे बढ़ने की प्रेरणा से बालिकाएँ पूरी तरह लवरेज हैं। वे चाहती हैं प्राप्त करना जीवन में स्वच्छंदा। खुद निर्णय लेने की स्वतंत्रता।  पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की समानता। जीवन पथ पर आगे बढ़ने की पराकाष्ठा। कस्तुरबा गाँधी आवासीय विद्यालय, जामा की 10 वीं कक्षा की छात्रा सुमिता सोरेन कहती हैं पढ़ाई के साथ-साथ विद्यालय की बच्चियों को जहाँ एक ओर पेटिंग्स, कढ़ाई-बुनाई सिखाई जाती है वहीं उन्हें अपने आत्मरक्षार्थ मार्शल आटर्स भी सिखलाए जाते हैं। नवम्बर 2014 से विद्यालय की छात्राओं को मार्शल आटर्स का प्रशिक्षण भी दिया गया ताकि वे अपनी रक्षा खुद कर सकें।  पूरे धैर्य के साथ छः महीनें तक मार्शल आर्टस का कोर्स कर बालिकाओ ने भी दिखला दिया है कि मन में कुछ करने की तमन्ना उनमें अभी भी बची है। इस विद्यालय की बालिकाएँ कहती हैं, तमाम कठिनाईयों के बाद भी लोग चाहें तो अपने लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। 10 वीें कक्षा की अन्य छात्राएँ-किरण कुमारी, रोजमेरी सोरेन, पालती हाँसदा व सुनीता टुडू को मार्शल आटर्स सीख लेने की आत्मीय खुशी है। इन बालिकाओं का कहना है इस विद्यालय में उन्होनें वह सबकुछ प्राप्त कर लिया जो परिवार के बीच रहकर भी असंभव सा प्रतीत होता है। इसी तरह वर्ग नौ की छात्रा गीता कुमारी व कक्षा आठ की छात्रा सरिता कोलिन व मीना कुमारी ने भी खुद को धन्य बतलाया जो कस्तुरबा गाँधी आवासीय विद्यालय में निःशुल्क शैक्षणिक योग्यता प्राप्त कर रही हैं। विद्यालय की वार्डन रुपा कुमारी सहित अन्य शिक्षिकाओं की भूमिका पर भी विद्यालय की बालिकाएँ गर्व करती हैंैै उपरोक्त का कहना है माता-पिता अथवा अन्य किसी अभिभावक की कोई कमी नहीं खलती। एक परिवार में माँ-बाप व बच्चे जिस तरह रहते है, यह विद्यालय उनके लिये एक परिवार है जहाँ विभिन्न स्थानों से बच्चियाँ तो पढ़ने के निमित्त पहुँचती हैं किन्तु सभी एक रंग, एक संस्कृति में ढल जाती हैं। वार्डन रुपा कुमारी व अन्य शिक्षिकाएँ सुनीता टेरेसा हाँसदा, एलिसा टुडू, ज्ञानवती कुमारी बच्चियों में कोई भेदभाव नहंी करतीं। सभी बच्चियाँ शिक्षिकाओं के लिये एक समान हैं। भले ही सरकार की धरातल पर चल रही सैकड़ों योजनाओं की प्रतिदिन समीक्षा होती हो। योजनाओं की आलोचनाएँ विभिन्न स्तरों पर होती हो किन्तु आर्थिक रुप से कमजोर दलित, हरिजन व पिछड़ी जातियों के लिये शिक्षा का यह मंदिर एक वरदान है। 



अमरेन्द्र सुमन
दुमका 

विशेष आलेख : त्याग एवं बलिदान का महापर्व है बैसाखी

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जी हां, हर साल वैशाखी देश की सुरक्षा के लिए लोगों को जागरुक तो करती ही है बीरता की अनगिनत कहानी भी बयां करता है। वैशाखी पर दिया गया जलियावाला बाग के बलिदानियों को दी जायेगी श्रद्धांजलि 

baisakhi बैसाखी
सवालाख से एक लड़ाऊँ, गुरुगोविंद सिंह नाम कहाऊँ। ....वाहे गुरुजीका खालसा, वाहे गुरुजीकी फतेह। जिन मुख निसरत सबद गुण बाचें जय-जय हिंद नानक वंश उजास मय, बंदहूँ गुरु गोविन्द.. इन पुत्रन के वास्ते सीस दिए सत चार-चार मोह तो क्या हुआ जीवत कई हजार, जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल.... भला इन नारों को कौन नहीं जानता। विश्व-इतिहास में शायद ही त्याग-बलिदान और उत्कट देश-प्रेम का दूसरा कोई नाम दशमेश गुरु गोविन्द सिंह जी के सम्मुख टिक सके! अपने अदम्य-पराक्रम और सहज जीवन से उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को एक ऐसा आदर्श दिया जिससे भारतीयता का परचम और गगनचुम्बी हो सका! अपने चारो पुत्र राष्ट्र-रक्षा यज्ञ में आहूत कर देने वाले भारतीयता के महान रक्षक, स्वधर्म के प्रतिपालक, भगवतस्वरुप दशमेश गुरु गोविन्दसिंह जी का नाम आएं और बशाखी की चर्चा न हो, ये हो नहीं सकता। जी हां, बैसाखी का त्योहार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों के अलावा देश के स्वतंत्रता संग्राम से भी गहरा संबंध रखता है। बैसाखी का पवित्र दिन हमें गुरू गोविन्द सिंह जैसे महापुरूषों के महान आदर्शों एवं संदेशों को अपनाने तथा उनके बताएं वसूलों पर चलने के लिए प्रेरित करता है। संदेश देता है कि हमें अपने राष्ट्र में शांति, सद्भावना एवं भाईचारे के नए युग का शुभारंभ करने की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए। इस तथ्य को जो भलीभांति आत्मसात कर लेता है बोलता है यानी व्यवहार में लाता है वो निहाल हो जाता है, आनंद से भर उठता है। 

baisakhi बैसाखी
आज भी हम खासतौर से सिखों में अभिवादन के लिए सत्श्री अकाल का प्रयोग करते हुए देखते हैं, जो हमें संसार की नश्वरता का सच हमेशा याद दिलाता रहता है। गुरुवाणी में है कि जो उपजे सो बिनस है, परे आज या काल, यानी जो जन्मता है वही मरता है, लेकिन ईश्वर कभी नहीं मरता क्योंकि उसका तो जन्म ही नहीं हुआ। इस बात को गुरु गोविंद सिंह ने तत्कालीन समाज में धर्मो खासकर ऊंच-नीच जातियों में बंटे लोगों को एक कर सारी मनुष्य जाति को एक ही ईश्वरीय शक्ति के अधीन मानते हुए अपनी एक रचना ‘अकाल उस्तति’ में स्पष्ट लिखा। किस तरह 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने कमजोर वर्गो की रक्षा करने व तानाशाही शासकों के अत्याचारों को रोकने के लिए श्री आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की। वैसे भी प्रकृति का एक नियम है जब भी किसी जुल्म, अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा होती है, तो उसे हल करने अथवा उसके उपाय के लिए कोई न कोई कारण भी बन जाता है। इसी नियमाधीन जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा जुल्म, अन्याय व अत्याचार की हर सीमा लांघ, श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चाँदनी चैक पर शहीद कर दिया गया, तभी गुरु गोविंदसिंहजी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व नेकी (भलाई) के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना। कहा जाता है पुराने रीति-रिवाजों से ग्रसित निर्बल, कमजोर व साहसहीन हो चुके लोग, सदियों की राजनीतिक व मानसिक गुलामी के कारण कायर हो चुके थे। निम्न जाति के समझे जाने वाले लोगों को जिन्हें समाज तुच्छ समझता था, दशमेश पिता ने अमृत छकाकर सिंह बना दिया। 

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इस तरह बैशाखी के दिन 13 अप्रैल, 1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। अहंकारी अत्यंत सूक्ष्म अहंकार के शिकार हो जाते हैं। ज्ञानी, ध्यानी, गुरु, त्यागी या संन्यासी होने का अहंकार कहीं ज्यादा प्रबल हो जाता है। यह बात गुरु गोविंदसिंहजी जानते थे। इसलिए उन्होंने न केवल अपने गुरुत्व को त्याग गुरु गद्दी गुरुग्रंथ साहिब को सौंपी बल्कि व्यक्ति पूजा ही निषिद्ध कर दी। अप्रैल, 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की और मूर्ति पूजा के बजाय वेदों को अपना मार्गदर्शक माना। संयोगवश तब यह दिन बैसाखी के शुभ अवसर पर ही था। बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी मानते हैं कि महात्मा बुद्ध को इसी दिन दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः यह दिन उनके लिए भी विशेष महत्व रखता है। 

baisakhi बैसाखी
वैसे तो वैशाखी देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से इस पर्व को किसी न किसी रुप में हर तबका मनाता है, लेकिन सिख समुदाय का यह एक विशेष पर्व है। पश्चिम बंगाल में ‘नबा वर्ष’ यानी ‘पोएला बैसाख’ यानी साल का पहला दिन, केरल में ‘विशू’ तथा असम में ‘बीहू’ के नाम से इस पर्व की धूम रहती है। जबकि पंजाब के किसान फसल के पकने पर अपनी खुशी के इजहार के रुप मे बैसाखी पर्व मनाते हैं। इस पर्व पर पंजाब के लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार भांगडा और गिद्धा तो करते ही हैं साथ ही लोकसंगीत, लोकगीत, लोकनाट्य प्रस्तुत कर इसे और सुनहरा बना देते हैं। पंजाब के गांवों में कई जगहों पर नई फसल की खुशी में वैसाखी मेले भी लगते हैं। मेले में जहां पंजाब के गबरू रंगीन पोशाकों और पगड़ी में भांगड़ा करते नजर आते हैं वहीं मुटियारें पारंपरिक नृत्य ‘गिद्दा’ कई तरह की बोलियों के साथ करती हैं। पूरा माहौल आनंद उत्सव से नहा उठता है। बैसाख माह की शुरुवात या यूं कहें सूर्य के मेष राशि में प्रवेश होते ही बैसाखी पर्व होती है। इस बार वैशाख मास की षष्ठी तिथि यानी 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। वैशाखी पर्व विशेष रुप से कृषि पर्व है। इसके आगमन के साथ ही प्रकृत्ति में परिवर्तन का होना शुरु हो जाता है। बैसाखी पर्व का महत्व इस वजह से भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन से विक्रमी संवत् की शुरूआत होती है और भारतीय संस्कृति के उपासक बैसाखी को ही नववर्ष का शुभारंभ मानकर इसी दिन से अपने नए साल का कार्यक्रम बनाते हैं और पंचांग भी विक्रमी संवत् के अनुसार ही तैयार किए जाते हैं। बैसाखी के ही दिन दिन-रात बराबर होते हैं, इसीलिए इस दिन को ‘संवत्सर’ भी कहा जाता है। सनातन धर्म में नए साल के रूप में भी मनाया जाता है। बहुत से स्थानों पर व्यापारी लोग आज के दिन नए वस्त्र धारण करके अपने बही-खातों का आरम्भ भी करते हैं। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। भारत के सिख समुदाय के लोग इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। इस पर्व को हिंदु स्नान, भोग लगाकर और पूजा करके मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हजारों साल पहले देवी गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थीं। उन्हीं के सम्मान में हिंदू धर्मावलंबी पारंपरिक पवित्र स्नान के लिए गंगा किनारे एकत्र होते हैं। 

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गौर करने वाली बात यह है कि पंजाब अन्य राज्यों के मुकाबले सर्वाधिक अन्न उत्पादक क्षेत्र है। यहां के किसान अपने खेतों को फसलों से लहलहाते देखता है तो वह इस दिन खुशी से झूम उठता है और खुशी के इसी आलम में शुरू हो जाता है गिद्दा और भांगड़ा का मनोहारी दौर। बैसाखी पर्व के संबंध में कुछ अंधविश्वास भी प्रचलित हैं। माना जाता है कि यदि बैसाखी के दिन बारिश होती है या आसमान में बिजली चमकती है तो उस साल बहुत अच्छी फसल होती है। ‘इसे कृषि और उत्पादन का पर्व माना जा सकता है क्योंकि जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालों से की जाती है। हम इस पर्व को अच्छी खेती और फसल पकने का प्रतीक मानते हैं। लोहड़ी आई यानी फसल पकने लगी और फिर खेतों की रखवाली शुरू हो जाती है। बैसाखी तक पकी फसल काटने का समय आ जाता है।’ शायद यही वजह है कि कृषि प्रधान राज्य पंजाब में इसका खास महत्व है। लोग शाम को एक जगह एकत्र होते हैं। पूजा कर लोहड़ी जलाई जाती है और इसके आसपास सात चक्कर लगाते समय आग में तिल डालते हुए, ईश्वर से धनधान्य भरपूर होने का आशीर्वाद मांगा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिसके घर पर भी खुशियों का मौका आया, चाहे विवाह के रूप में हो या संतान के जन्म के रूप में, लोहड़ी उसके घर जलाई जाएगी और लोग वहीं एकत्र होंगे.’ ढोलक की थाप पर लोकगीतों पर गिद्दा करती महिलाएं जहां लोहड़ी को अनोखा रंग दे देती हैं वहीं ढोल बजाते हुए भांगड़ा करते पुरुष इस पर्व में समृद्ध संस्कृति की झलक दिखाते हैं। ठंड के दिनों में आग के आसपास घूम घूम कर नृत्य करते समय हाथों में रखे तिल आग में डाले जाते हैं। अवलाश कहते हैं, ‘लोगों के घर जा कर लोहड़ी जलाने के लिए लकडि़यां मांगी जाती हैं और दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं। 

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बताते है बैसाखी का पर्व था। आनंदपुर की पावन धरती धन्य हो रही थी। लगभग 80 हजार विशाल जनसमुदाय एकत्रित था। गुरुजी ने उनमें जीवटता, स्वाभिमान, निडरता, त्याग, उत्सर्ग एवं परोपकार का भाव सुदृढ़ कराने के लिए दाएँ हाथ में शमशीर को फहराते हुए सिंह गर्जना के साथ आह्वान किया कि धर्म एवं राष्ट्र रक्षा के लिए 5 शीशों का बलिदान चाहिए। सभी स्तब्धता से गुरुदेवजी को देखने लगे, लेकिन सन्नाटे को चीरते हुए श्रद्धा भावना के साथ लाहौर निवासी 30 वर्षीय खत्री जाति के भाई दयारामजी आगे आए और विनीत भाव से बोले- मेरा शीश हाजिर है मेरे स्वामी। गुरुजी उन्हें तंबू में ले गए। तलवार के एक झटके की आवाज आई। कुछ समय पश्चात रक्तरंजित तलवार लिए मंच पर वापस आ गए। उन्होंने दूसरे सिर की माँग की। इस बार देहली के 33 वर्षीय जाट भाई धरमदासजी ने स्वयं को गुरु के चरणों में समर्पित किया। उन्हें भी तंबू में ले गए, जहाँ उसी प्रकार तलवार के झटके की आवाज आई। तीसरी बार द्वारकापुरी के 36 वर्षीय छीबा, भाई मोहकमचंद तथा चैथी बार जगन्नाथपुरी के कहार 38 वर्षीय भाई हिम्मतरायजी तथा पाँचवीं बार बिदर निवासी भाई साहबचंदजी ने गुरुजी के समक्ष नतमस्तक हो बड़ी श्रद्धा, भक्तिभाव से सहर्ष स्वयं को उनके समक्ष समर्पित कर दिया। गुरुजी पुनः मंच पर इन शूरवीर, त्याग, उत्सर्ग के प्रतीत 5 प्यारों के साथ पधारे। अमृत के दाता गुरु गोबिंदसिंघजी ने इन्हें संत-सिपाही का स्वरूप प्रदान करने के लिए सर्वलोह के पात्र में निर्मल जल डालकर सर्वलोह के खंडे से घोटते हुए पवित्र बाणी जपजी साहब से भक्ति, जाप साहब से शक्ति, सवहयों से बैराग, चैपई साहब से विनम्रता एवं आनंद साहब से आनंद भाव लेकर अमृत तैयार किया। माता जीतोजी ने उसमें बताशे डालकर मिठास डाल दी। इस प्रकार खड़ग की आन, वाणी की रूहानी शक्ति तथा बताशे की मिठास एवं गुरुजी की आत्मशक्ति से अमृत तैयार हुआ। गुरुजी ने पाँचों प्यारों को अपने हस्तांजुलियों से वाहै गुरुजी का खालसा वाहै गुरुजी की फताहि के घोष के साथ उनके शीश, नेत्र में अमृत के 5-5 छींटे डाले। कड़ा, कृपाण, केश, कंघा तथा कछहरा इन 5 कंकारों से सुसज्जित किया और घोषणा की कि खालसा अकाल पुरख की फौज। खालसा प्रगटिओं परमात्म की मौज अर्थात् खालसा की सृजना ईश्वर की आज्ञा से हुई है।

गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना के साथ ही दो नारे भी दिये, जिनमें एक था- वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह तथा दूसरा- बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल! पहले नारे का विश्लेषण करें तो यही है कि खालसा वही जो खालिस है, पवित्र है तथा वाहेगुरु का है यानी ईश्वर का है तथा किसी भी कार्य में या युद्ध में उसकी फतेह (जीत) भी ईश्वर की ही इच्छा से है। यहां मनुष्य के अपने अहंकार को तिलांजलि देने का फलसफा है। इसके साथ ही सत्श्री अकाल यानी जो काल से परे है वही एकमात्र सत्य है बाकी सब मिथ्या है। गुरु गोविंद सिंह ने पांच वैसे सिख जो खालिस हों पवित्र हों या नी सचमुच खालसा हों तो उन्हें ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप माना है और उनका निर्णय तथा आदेश सर्वोपरि कहा तो है ही, एक बार मुगलों के साथ युद्ध में एक कच्चे किले से न चाहते हुए भी सुरक्षित निकल जाने के खालसा के आदेश को उन्हें मानना पड़ा था। उन्होंने शस्त्र उठाने तथा युद्ध करने को भी तभी तर्कसंगत माना था, जब अत्याचारी, अन्यायी बातचीत या शांति की भाषा समझना ही न चाहता हो, तब शमशीर को हाथ में उठाना ही धर्म है। उन्होंने औरंगजेब को इन्हीं भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए अपने फारसी में लिखे पत्र ‘जफरनामा’ में कुछ यूं बयां किया है-चूं कार अज हमा हीलते दर गुरश्त, हलाल अस्त बुरदन व शमशीर दस्त। 

बैसाखी के दिन होने वाले प्रमुख आयोजन 
इस दिन सिख लोग वैसाखी के दिन पंज प्यारों का रूप धारण कर स्मरण करते है। इस दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है। शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहां पंथ की नींव रखी गई थी  सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है  दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे पंचबानी गाते हैं  दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है  प्रसाद लेने के बाद सब लोग गुरु के लंगर में शामिल होते हैं  श्रद्धालु इस दिन कारसेवा करते हैं  दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में कीर्तन गाते हैं  ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवक-युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं। एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं  बैसाखी पंजाब के युवा वर्ग को उस भाईचारे की याद दिलाती है जहां माता अपने दस गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी गुरु गोविंद सिंह ने इस मौके शीशों की मांग की, जिसे दया सिंह, धर्म सिंह, मोहकम सिंह, साहिब सिंह व हिम्मत सिंह ने अपने शीशों को भेंट कर पूरा किया। इन पांचों को गुरु के ‘पंच-प्यारे’ कहा जाता है, जिन्हें गुरु ने अमृत पान कराया इस दिन समस्त उत्तर भारत की पवित्र नदियों में स्नान करने का माहात्म्य माना जाता है। इस दिन प्रातःकाल नदी में स्नान करना हमारा धर्म हैं 

बैसाखी का स्वरूप निर्मल एवं सत्य है। इस स्वरूप में खालसा की सृजना कर उनमें सदियों से चली आ रही जात, पात, वर्ग, कुल तथा क्षेत्रीयता की दीवारें समाप्त कर दीं  खुशहाली, हरियाली और अपने देश की समृद्धि की कामना करते हुए पंजाबी समुदाय के लोग पूजा-अर्चना, दान-पुण्य एवं दीप जलाकर बैसाखी पर ढोलों की ताल पर गिद्दा ते भंगड़ा, नाच-गाकर यह पर्व मनाते हैं  बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेज जनरल डायर द्वारा क्रूरतापूर्ण सैकड़ों लोगों को गोलियों का निशाना बनाकर मार दिया गया, तभी से उन अमर शहीदों को बैसाखी के दिन श्रद्धांजलि दी जाती है केरल में इस दिन धान की बोवनी शुरू होती है। इस दिन हल और बैलों को रंगोली से सजाया जाता है, पूजा-अर्चना की जाती है और बच्चों को उपहार दिए जाते हैं  तमिल के लोग नया साल पुथांदू मनाते हैं। असम में लोग नया वर्ष बिहू मनाते हैं  कश्मीर में नवरेह नाम से इसे नववर्ष के महोत्सव के रूप में मनाया जाता है  आंध्रप्रदेश में इसे उगादि तिथि अर्थात युग के आरंभ के रूप में मनाया जाता है  कहा यह भी जाता है कि इस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया और समय ने आज से चलना प्रारंभ किया था। यह श्रीखंड और पूड़ी का भी त्योहार है। महिला एवं बच्चों को उपहार दिए जाते हैं। वहीं गरीबों को भोजन एवं दान दिया जाता है और घरों में कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं 

गेहूं को पंजाबी किसान कनक यानि सोना मानते हैं। यह फसल किसान के लिए सोना ही होती है, उसकी मेहनत का रंग दिखायी देता है  ढोल हमेशा से ही पंजाबियों का साथी रहा है। ढोल से धीमे ताल द्वारा मनमोहक संगीत निकलता है। पिछली सदियों में आक्रमणकारियों से होशियार करने के लिए ढोल बजाया जाता था। इसकी आवाज दूर तक जाती थी। ढोल की आवाज से लोग नींद से जाग जाते थे। संकट समय ढोल की आवाज लोगों को सूचना दे देती थी और घरों से निकलकर वे दुश्मन पर टूट पड़ते थे  गुरु गोविंद सिंह जी ने दुश्मनों से लोगों को होशियार कराने के लिए नगाड़ा बनवाया था। नगाड़ा गधे या ऊंट की खाल से बनाया जाता था ककार (केस, कंघा, कड़ा, कच्छ एवं कृपाण) धारण करने का विधान बनाया 




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(सुरेश गांधी)

भारत के 76 फीसदी लोग खुद को धार्मिक मानते हैं: सर्वे

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एक नए विश्वव्यापी सर्वेक्षण में कहा गया कि भारतीय स्वभाव से काफी धार्मिक होते हैं. करीब 76 फीसदी भारतीय ने खुद को ‘‘धार्मिक’’ कहा और बहुत कम लोगों ने खुद को नास्तिक कहा. करीब 65 देशों में किए गए विश्लेषण में भारत के जिन लोगों से सर्वेक्षण से जुड़े सवाल किए गए उनमें 76 फीसदी ने खुद को ‘‘धार्मिक’’ कहा जबकि महज 21 फीसदी ने खुद को ‘‘धार्मिक नहीं’’ कहा. महज दो फीसदी लोगों ने खुद को ‘‘पूरी तरह नास्तिक’’ करार दिया.

‘विन..गॉल अप इंटरनेशनल’ की ओर से किए गए इस विश्वव्यापी सर्वेक्षण में थाइलैंड में सबसे ज्यादा 94 फीसदी लोगों ने खुद को धार्मिक बताया जबकि चीन में महज सात फीसदी लोगों ने खुद को धार्मिक करार दिया. पड़ोसी पाकिस्तान में ‘‘धार्मिक लोगों’’ का प्रतिशत जहां 88 दर्ज किया गया, वहीं 10 फीसदी ने खुद को ‘‘धार्मिक नहीं’’ बताया. सिर्फ एक फीसदी लोगों ने खुद को नास्तिक बताया.

‘विन..गॉल अप इंटरनेशनल’ के अध्यक्ष ज्यां-मार्क लेगर ने कहा कि वैश्विक रूप से औसतन दो-तिहाई लोग अब भी खुद को धार्मिक मानते हैं. आर्मेनिया, बांग्लादेश, जॉर्जिया और मोरक्को में 93-93 फीसदी लोगों ने खुद को धार्मिक बताया. जापान में महज 13, स्वीडन में 19 और चेक गणराज्य में 23 फीसदी लोगों ने खुद को धार्मिक माना. ब्रिटेन में महज 30 फीसदी लोगों ने खुद को धार्मिक करार दिया और 53 प्रतिशत ने कहा कि वे धार्मिक नहीं हैं. सर्वेक्षण में करीब 63,898 लोगों से सवाल पूछे गए थे.

डा0 भीमराव अम्वेडकर जयन्ती पर दलित बस्तिओं में हुआ मिष्ठान वितरण

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छतरपुर - गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब प्रान्तीय समिति ने कस्बा नौगाॅव के वार्ड नं0 17 एवं 19 में रहने वाले बरिष्ठ दलित अधिबक्ता श्री पूरन लाल जी करोसिया, सेवा निवृत अध्यापक श्री गोविन्द दास जी जाटव को स्वागत व सम्मान के बाद दलित बस्ती में मिष्ठान वितरण कराया । इस आयोजन में प्रान्तीय अध्यक्ष संतोष गंगेले, कोषाध्यक्ष के के रिछारिया नगर सचिव श्री लक्ष्मी प्रकाष बबेले, ब्लाक अध्यक्ष श्री नन्हे राजा बुन्देला, भाजपा डा0 मुष्ताक अन्सारी ,अनिल अहिरवार नेता श्री हरप्रसाद जाटव, कल्लू नेता, मिठ्ठू लाल अहिरवार, कल्लू मास्टर, विकाष जाटव, अजय जाटव बैजनाथ जाटव गोपाल जाटव, सहित मोहल्ला के अनेक लोगों के साथ बच्चों ने बाबा साहब की जयन्ती धूम धाम से मनाई तथा प्रेस क्लब की ओर से युवा पत्रकार श्री कमलेष जाटव ने मिष्ठान वितरण किया । इस अवसर पर बरिष्ठ पत्रकार श्री संतोष गंगेले ने डा0 भीम राव अम्वेडकर जी की जयन्ती के बारे में कहा कि उनका जन्म एक महार जाति दलित परिवार में 14 अप्रेल 1891 को भीमा बाई की चैदहवीं संतान के रूप में इन्दौर के पास महू में हुआ था उनके पिता का नाम श्री राम जीराव था । उनकी षिक्षा का भार बड़ौदा के महाराज गायकवाड़ जी ने उठाया उन्हे संविधान सभा के अध्यक्ष पद तक पहुॅचने में पूरी मदद की । आज आवष्यकता है ऐसे महापुरूषों की जीवन का अध्ययन कर अपने जीवन में अपनाने की । 

डा0 भीमराव अम्वेडकर जयन्ती पर एक षिक्षक एवं एक अधिबक्ता के सम्मान होने पर श्री गोविन्द दास जी जाटन ने कहा कि  गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब नौगाॅव का नही प्रदेष का गोरव स्थापित कर रहा है ।  प्रेस क्लब की सराहना करते हुए कहा कि राजनैतिक नेता चुनाव के समय दलितों को याद करते है उसके वाद उन्हे नकार दिया जाता है ,। षिक्षक श्री गोविन्द दास जाटव ने कहा कि मुझे गर्व है कि हमारे छात्र रहे श्री संतोष गंगेले ने सामाजिक समरसता के लिए अपनी योग्यता व षिक्षा का दान किया है । ऐसे महान छात्र ने नगर के नाम को रोषन किया है । नौगाॅव नगर के अधिबक्ता एवं समाजसेवी श्री पूरन लाल करोरिया ने कहा कि मुझे याद है कि संतोष गंगेले लगभग 35 सालों से नगर व जिला में कुछ न कुछ समाज के लिए सामाजिक कार्य करने वाले समाजसेवी व्यक्ति है ऐसे समाजसेवी का मध्य प्रदेष सरकार एवं भारत सरकार को सम्मान करना चाहिए । 
                       
गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब के सचिव श्री कमलेष जाटव ने कहा कि हमारा संगठन षिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, समरसता एवं समाज को लेकर प्रदेष में कार्य कर रहा है आने वाले समय में संगठन समाज की दिषा बनेगा । 

नरकटियागंज (बिहार) की खबर (14 अप्रैल)

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डाॅ. एजाज की गली में बिजली का खम्भा लगाने का एसडीओ ने दिया निर्देश
  • खुर्शीद आलम का अतिक्रमण हटाया जाएगा 

नरकटियागंज(पश्चिम चम्पारण) नरकटियागंज में अतिक्रमण हटाओ अभियान के अन्तर्गत वार्ड संख्या नौ (09) की जनता की शिकायत पर अनुमण्डल पदाधिकारी कौशल कुमार ने पुरानी बाजार के खुर्शीद आलम द्वारा किए गये अतिक्रमण की जाँच करने पहुँचे। पुरानी बाजार के वार्ड संख्या 09 निवासी डाॅ.एजाज अहमद के निजी क्लिनीक के पास बिजली का खम्भा नहीं लगाए जाने की शिकायत भी एसडीओ से की गई थी। जिसकी जाँच भाप्रसे अधिकारी सह अनुमण्डल पदाधिकारी कौशल कुमार द्वारा की गई। नरकटियागंज के एसडीएम कौशल कुमार आवाम की शिकायत पर अपराहन् करीब चार बजे पुरानी बाजार स्थित खुर्शीद आलम के घर के पास पहुँचे और हालात को देखा। उन्होने प्रथम द्रष्ट्या पाया कि रास्ते की जमीन का अतिक्रमण कर लिया गया है। उन्होने रास्ते की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कर देने को खुर्शीद आलम के परिजनों से कहा। बिजली के खम्भा को लगाने का विरोध करने वालो को सख्त हिदायत देते हुए डाॅ.एजाज अहमद, आरके मेमोरियल हाॅस्पीटल वाली गली में बिजली के (पोल) खम्भा लगाने का निर्देश भाप्रसे अधिकारी सह अनुमण्डल पदाधिकारी कौशल कुमार ने बिजली विभाग के कर्मियांे को दी।

उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय नरकटियागंज में अम्बेदकर की 125वी जयन्ती सम्पन्न

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नरकटियागंज(पश्चिम चम्पारण) नरकटियागंज स्थित उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय के सभागार में भारतीय संविधान के जनक कहे जाने वाले स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री डाॅ. भीम राव अम्बेदकर की 125 वीं जयन्ती मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता प्रभारी प्रधान अध्यापक हर्ष मिश्र ने की। कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र रहे अवधेश कुमार वि़द्यालंकार उर्फ अवधेश पाण्डेय ने कहा कि लोग महामानवों को एक समाज विशेष का बनाकर संकुचित दायरे में रख देते है। भारत एक विशिष्ट देश है जहाँ सभी वर्ग के लोगांें को जीने की पूरी स्वतंत्रता है और इसके लिए भारतीय संविधान की आत्मा डाॅ. अम्बेदकर धन्यवाद के पात्र है। अन्य वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व से सीख लेने पर बल दिया और कहा कि भीमराव अम्बेदकर तत्कालीन समाज मंें व्याप्त कुरीतियों के विरूद्ध संघंर्ष किया और आने वाले भविष्य के लिए नई नींव रखी। जिसपर समाज के कतिपय लोगों ने अट्टालिका खड़ी कर ली है और समाज के दलित वर्ग को दरकिनार कर उनके ही नाम पर अपनी राजनीति की रोटी सेंकने का काम कर रहे है। अम्बेदकर जयन्ती को लेकर विद्यालयों में अवकाश के बावजूद बड़ी संख्या में छात्र मौजूद रहे। अम्बेदकर जयन्ती के कार्यक्रम में आफताब आलम, हंकारमणि तिवारी(विशिष्ट अतिथि), अवध किशोर सिन्हा, विजयमणि तिवारी, शंभू शरण आर्य, अवधेश तिवारी और प्रो वीरेन्द्र मिश्र चंचरिक मुख्य रूप से शामिल हुए। अम्बेदकर जयन्ती कार्यक्रम का संचालन डाॅ. अरविन्द तिवारी ने किया।

अलग-अलग घटना में करीब आधा दर्जन घर जले, लाखों की सम्पत्ति खाक

नरकटियागंज(पश्चिम चम्पारण) सोमवार की रात्री शिकारपुर थाना के एक भुसौली में लगी आग से कुण्डिलपुर पंचायत के गौरीपुर मंझरिया गाँव के तीन घर जलकर राख हो गये। हालाकि किसी जानवर या आदमी के जलने की कोई सूचना नहीं है। बताते है कि गौरीपुर मंझरिया के धु्रव कुशवाहा का दो और अनिल कुशवाहा का एक घर जलकर राख हो गया। घर वालों की चैकसी और गाँव के लोगों तत्परता से भयंकर हादसा टल गया, किन्तु धु्रव कुशवाहा के घर से मात्र एक मोटर साईकिल को निकाला जा सका शेष सभी सामान आग के आगोश में समा गये। इसके पूर्व रविवार को लछनौता गाँव में आग लगी की घटना सामने आई, जिसमें करीब एक दर्जन पशु जल मरे और करीब लाखों की सम्पत्ति खाक में तब्दिल हो गयी। फिलहाल कोई जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी या प्रतिनिधि पीडि़तों की सुधि लेने नहीं पहुँचा।
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