आपदा राहत राशि घोटाले की सीबीआई से जांच से सरकार के कतराने पर उठ रहे तमाम सवालात, तब तो भाग जाएंगे सभी “कमाऊं पूत” !
- पुराने मांग लेंगे अपना पूरा हिसाब और किताब, नए सिपहसालार के आने की नहीं कोई उम्मीद
- सफेदपोशों का चोखा धंधा चैपट होने के आसार
देहरादून,9 जून। आपदा राहत राशि के बंटवारे को लेकर विपक्ष के तीखे आरोपों को शुरू से ही झेल रही सरकार को कैग की रिपोर्ट ने और भी झटका दिया है। इसके बाद भी सरकार सूचना आयुक्त कि सिफारिश के आधार पर मामले की सीबीआई जांच कराने की बजाय कुतर्क पर आमादा है। इस मामले की पड़ताल की तो पता चला कि मामले की सीबीआई से जांच होने की दशा में खुद के फंसने का अंदेशा तो है ही, सबसे बड़ा खतरा कमाऊं पूतों को यहां से पलायन और भविष्य में किसी नए की यहां न आने का संभावना से हैं। शायद यही वजह है कि तमाम आरोपों को झेल रही सरकार इस अहम मुद्दे को हवा में उड़ा रही है। आपदा राहत राशि घोटाले का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है। विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार पर हमलावर रुख अपनाए हुए है। इसमें आग में घी डालने का काम कैग की रिपोर्ट से हो चुका है। कैग की रिपोर्ट को दबाए बैठी सरकार के सामने इस मसले पर कोई बेहतरीन जवाब नहीं आ पा रहा है। इसके चलते सरकार की ओर से इसे नकारा जा रहा है कि संगठन के मुखिया भी अपने अंदाज में इसे झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ कैग की रिपोर्ट के जरिए मीडिया में रोजाना नए-नए मामले सामने आ रहे हैं तो सरकार उसी अंदाज में सभी को गलत करार देने की कोशिश में जुटी है। अब तक सामने आए मामलों पर गौर किया जाए तो साफ होगा कि घोटलों में गैर सरकारी लोगों की अहम भूमिका है। मसलन, प्रभावितों को मुआवजा गैर सरकारी संस्थाओं ने बांटा तो हेलीकाप्टरों पर करोड़ों रुपये गैर सरकारी कंपनी को ही गए। निर्माण कार्य भी अधिकतर गैर सरकारी संस्थाओं से ही कराए गए हैं। यानि काम भले ही सरकार का किया गया लेकिन उसे अंजाम दिया गैर सरकारी संस्थाओं ने। अब ऐसा क्यों हुआ यह तो जांच का विषय है। लेकिन एक बात तय है कि अगर कोई गैर सरकारी संस्था किसी जांच के दायरे में फंसती है तो इस समय राज्य में काम कर रही संस्थाएं तो यहां से अपना बोरिया-बिस्तरा समेट ही लेंगी, नई संस्थाएं भी इस राज्य में आने से पहले सौ बार हालात पर विचार करेगी। बात सिर्फ इतनी सी है कि एक का सौ बनाने में माहिर ये कंपनियां आखिर सीबीआई के शिकंजे में अपना सिर क्यों फंसाना चाहेंगी। जाहिर है कि अगर ये संस्थाएं यहां से चली जाएंगी और नई कोई यहां को तैयार नहीं होगी तो कमाई का जरिया बचेगा ही क्या। शायद यही वजह है कि चैतरफा दबाव झेल रही सरकार इस मामले में कोई सख्त कदम उठाने की बजाय अब तक हुए कामों का जायज ठहराने की कोशिश कर रही है। सूत्रों का कहना है कि उच्च स्तर पर मंथन किया जा रहा है कि झारखंड में भी एक बार इस तरह के हालात पैदा हो चुके हैं। वहां कई मामलों की जांच के बाद एक पूर्व मुख्यमंत्री तक जांच की आंच गई तो इसकी तपिश में कई कमाऊं पूत भी झुलस गए थे। उसके बाद से आज तक किसी कमाऊं पूत से झारखंड की ओर रुख नहीं किया। अब भाजपा की सरकार आने के बाद हालात भले ही कुछ बदले से दिख रहे हैं। नतीजा यह है कि सरकार को सीबीआई जांच से पूरी तरह से परहेज दिख रहा है।
कोर्ट क्यों नहीं जा रही भाजपा
इस मामले में एक अहम सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि तमाम सबूत होने का दावा करने वाली भाजपा इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने से क्यों कतरा रही है। एक काबीना मंत्री के आफिस आफ प्राफिट के मामले को लेकर तो भाजपा हाईकोर्ट जा सकती है। लेकिन करोड़ों के कथित घोटाले और आम जनमानस से जुड़े इस मुद्दे पर भाजपा नेताओं से खुद को केवल बयानबाजी तक ही सीमित कर रखा है। आखिर क्या कारण है कि भाजपा इस मुद्दे पर तीखे तेवर अपनाने की बजाय विरोध की रस्मअदायगी भर सीमित रह गई है। आने वाले चुनाव में इस देवभूमि की जनता कांग्रेस से तो सवाल पूछेगी ही, भाजपा से भी पूछा जाएगा कि आखिर उसके नेताओं ने दिखावा क्यों किया।
खनन रोकने पर सूबे के कई जिलों से आई रिपोर्ट में किया गया है तमाम दिक्कतों का खुलासा, हुजूर! यहां सवाल तो अवैध खनन का हो रहा है
- नियमानुसार चुगान में नहीं हैं किसी तरह की कोई दिक्कतें, पूरे सूबे में अवैध खनन को लेकर ही उठाए जा रहे सवाल
- अफसरों ने रिपोर्ट में इस मुद्दे पर नहीं की है कोई बात, चुगान को लेकर कहीं भी नहीं पेश आ रही कोई दिक्कत
देहरादून, 9 जून। सूबे में अवैध खनन रोकने के मामले को सरकारी नुमाइंदे नए अंदाज में घुमाने की कोशिश कर रहे हैं। चैतरफा दबाव में आई सरकार ने इस खनन को रोकने को लेकर जिलों से एक रिपोर्ट मांगी तो अफसरों ने किसी ऊपरी आदेश के चलते घुमा दिया है। जिलों से आई इन रिपोटर्स में कहा गया है कि इससे राजस्व का नुकसान तो होगा ही, अन्य तमाम तरह की दिक्कतों का सामना भी करना होगा। इस मामले में अहम बात यह है कि अफसरों ने खनन रुकने से होने वाली दिक्कतों पर फोकस किया। लेकिन यहां तो असली मुद्दा अवैध खनन का है और किसी भी जिले की रिपोर्ट में इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। मौजूदा सरकार को समय में अवैध खनन का मुद्दा सिर चढ़कर बोल रहा है। कई मंत्रियों से लेकर अन्य तरीकों से ताकतवर लोगों के इस धंधे में लिप्त होने की चर्चाएं अब आम हो चली हैं। अवैध खनन का यह मुद्दा कांग्रेस हाईकमान तक पहुंचा तो दूसरी तरफ हरिद्वार में मातृसदन के स्वामी शिवानंद से इस अवैध खनन को लेकर सरकार की चूलें हिला दी। इसके बाद सरकार ने तय किया कि खनन (अवैध नहीं) बंद करने से सरकार को क्या-क्या नुकसान होगा और अन्य लोगों के सामने क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं, इस बारे में जिलों से रिपोर्ट तलब की गई। सरकार ने बड़े जोरशोर से एलान किया कि जिलों से रिपोर्ट आने के बाद खनन के बारे में सख्त कदम उठाए जाएंगे। अब जिलों से रिपोर्ट आई तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। सभी जिलों के डीएम ने सरकार की मंशा के अनुरूप ही रिपोर्ट भेजी है। इसमें कहा गया है कि खनन बंद होने पर सरकार को राजस्व का नुकसान तो होगा ही, तमाम लोग असमय ही बेरोजगार हो जाएंगे। इतना ही नहीं राज्य में होने वाले विकास कार्यों की लागत भी बढ़ जाएगी। बताया जा रहा है कि कुछ बेहद काबिल अफसरों ने अपने नंबर बढ़ाने के चक्कर में रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा कर दिया है कि दूसरे प्रदेशों से खनन सामग्री मंगाने पर कितने पैसे अतिरिक्त देने होंगे। इस रिपोर्ट के बाद सरकार और अफसरों की मंशा पर तमाम सवालात खड़े हो रहे हैं। यह मामला पूरी तरह से अवैध खनन पर अंकुश लगाने का था और अफसरों ने इस खनन (चुगान) से जोड़ दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर नदियों से चुगान ( बारिश के पानी से साथ आए पत्थर और बजरी आदि) नहीं होगा तो नदियां अपना रास्ता बदलेगी और इसका नतीजा तबाही के रूप में सामने आएगा। इसी वजह से केंद्र सरकार ने भी चुगान की अनुमति दे रखी है। सूत्र बता रहे हैं कि पर्यावरण विभाग सेटेलाइट इमेजेज के जरिए यह तय करता है कि किस नदी से कितना चुगान किया जाना है। इसकी मात्रा भी तय कर दी जाती है। सरकार को इस तय मात्रा के अधिक माल पर रायल्टी लेने का कोई अधिकार नहीं हैं। अगर इसी आधार पर खनन किया जाता है तो इसे चुगान (वैध खनन) कहा जाता है। लेकिन अगर इसकी आड़ में नदियों का सीना ही चीर दिया जाए तो इसे अवैध खनन कहा जाता है, क्योंकि तयशुदा मात्रा के ज्यादा की रायल्टी सरकार अपने राजस्व में दिखा भी नहीं सकती। साफ दिख रहा है कि चुगान और अवैध खनन में सरकार और अफसरों को कोई अंतर नजर नहीं आ रहा है। चुगान को लेकर किसी को कहीं कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन बड़ा सवाल इसकी आड़ में हो रहे अवैध खनन का है। अवैध खनन से सरकार को किसी तरह का कोई राजस्व तो मिलता नहीं है। हां, सफेदपोश लोग इस अवैध धंधे से मोटी कमाई जरूर कर रहे हैं। साथ ही इस अवैध खनन से पर्यावरण को भारी क्षति हो रही है। एक तरफ सरकार ग्रीन बोनस के नाम पर केंद्र सरकार के अरबों रुपये की रायल्टी की मांग करती नहीं थक रही है तो दूसरी तरफ अवैध खनन से हिमालयन बेल्ट को खोखला किया जा रहा है। जिलों से मिली सरकार को रिपोर्ट यह साफ इशारा कर रही है कि इस अवैध खनन को कहीं न कहीं बड़े स्तर पर संरक्षण मिला हुआ है। शायद यही वजह है कि कोई भी डीएम अपनी रिपोर्ट में यह ईमानदाराना पहल नहीं कर सका कि अवैध खनन को कैसे रोकने की जरूरत है। बहरहाल, अब यह साफ हो गया है कि सूबे में अवैध खनन रोकने को लेकर सरकार के स्तर की जा रही बातें महज हवाई ही हैं। हो सकता है कि जिलों से मिली इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार चुगान के नाम पर हो रहे इस अवैध खनन को आगे भी जारी रखने में किसी तरह की हिचकिचाहट न दिखाए।
पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय को राज्यपाल ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव
देहरादून, 9 जून (निस)। राज्य में कृषि एवं औद्यानिकी क्षेत्र की उत्पादकता में वृद्धि की दृष्टि से उत्तराखण्ड के राज्यपाल डा0 कृष्ण कांत पाल ने जी.बी. पंत कृषि एवं तकनीकी विश्व विद्यालय पंतनगर को कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। राज्यपाल ने कहा है कि विश्वविद्यालय द्वारा एक सलाहकार प्रकोष्ठ गठित किया जाये। प्रकोष्ठ द्वारा किए गये विकास खण्ड तथा जनपद स्तरीय विश्लेषण के आधार पर राज्य में कृषि विकास की बृहद राज्य स्तरीय एवं जनपद स्तरीय कार्य योजना बनायी जाये। राज्य में घट रहे अनाज के उत्पादन को नियंत्रित करने की दृष्टि से राज्यपाल ने यह भी सुझाव दिया है कि राष्ट्रीय स्तर के इस विश्वविद्यालय को वर्तमान परिस्थतियों के दृष्टिगत उत्तराखण्ड में कृषि सुधार को प्राथमिकता देने के लिए विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा। राज्यपाल ने, मुक्तेश्वर स्थित केन्द्रीय शीतोष्ण औद्यानिकी संस्थान की प्रयोगशाला द्वारा खेतों की उर्वरता के लिए किए जा रहे मृदा परीक्षण की जानकारी स्थानीय कृषकों, तथा जनपद स्तरीय अधिकारियों को दिए जाने को आवश्यक बताया ताकि काश्तकार उसी के अनुसार खेती करके समुचित लाभ ले सकें। इस वर्ष मौसम विभाग द्वारा जाहिर, मैदानी क्षेत्रों में कमजोर मानसून की आशंका के दृष्टिगत राज्यपाल ने कहा कि विशेष रूप से मैदानी क्षेत्रों के काश्तकारों व कृषकों को खरीफ और जायद में उत्पन्न होने वाले अनाज और दलहन की ऐसी प्रजातियों के बीज दिए जायें जो कम सिचाईं में भी अच्छी उपज दे सके, इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर ली जाये। राज्यपाल ने कहा कि स्थानीय जलवायु, मिट्टी की उर्वरता आदि के अनुकूल उन्नतिशील बीजों का प्रयोग व अन्य प्रयोगों के माध्यम से कृषि व्यवसाय को काश्तकारों के लिए लाभकारी बनाने की दृष्टि से नये अनुसंधानों व प्रयोगों को किसानों तक पहँुचाने के लिए उनका व्यापक प्रचार-प्रसार आवश्यक है।‘‘ उन्होनें उत्तराखण्ड में प्रसार कार्यक्रमों का इलैक्ट्रानिक नेटवर्क व अन्य प्रभावी संचार माध्यमों से व्यापक प्रचार करने का सुझाव दिया और यह भी कहा कि काश्तकारों को उन्नत व प्रगतिशील खेती से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराने के लिए समय-समय पर जिला स्तरीय किसान व कृषि मेलों, शिविरों का आयोजन होते रहने चाहिए। कृषि उत्पादन में वृद्धि के उपायों के साथ ही कृषि-उद्यान आधारित उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने तथा किसानों व काश्तकारों के उत्पादों के विपणन (मार्केटिंग) की पुख्ता व्यवस्था विकसित करने जैसे महत्वपूर्ण सुझाव भी राज्यपाल द्वारा दिए गये हैं।
सीएम कुमांयू दौरे पर
देहरादून, 9 जून (निस)। मुख्यमंत्री हरीश रावत 10 जून, 2015 से 15 जून, 2015 तक कुमांयू मण्डल के जनपदों के भ्रमण पर रहेंगे। इस दौरान मुख्यमंत्री रावत जनता से सीधा संवाद करेंगे। जनपदीय अधिकारियों के साथ समीक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री श्री रावत अपना दौरा जनपद नैनीताल से शुरू करेंगे। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुख्यमंत्री श्री रावत 10 जून, 2015 को प्रातः 11 बजे नैनीताल क्लब पहुंचेंगे, जहां पर वे कार्यकर्ताओं के साथ भेंट, इसके बाद जन समस्या सुनवाई एवं समाधान शिविर और जनपदीय अधिकारियों के साथ विभागीय योजनाओं की समीक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री श्री रावत रात्रि विश्राम नैनीताल में करने के बाद 11 जून को रानीखेत पहुंचेंगे, जहां वे पूर्व विधायक स्व. पूरन सिंह माहरा की तेरहवीं में शामिल होंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री अपरान्ह् 2 बजे बागेश्वर पहुंचकर कार्यकर्ताओं के साथ भेंट, जन समस्या सुनवाई एवं समाधान शिविर और जनपदीय अधिकारियों के साथ विभागीय योजनाओं की समीक्षा करेंगे। रात्रि विश्राम बागेश्वर में करने के बाद मुख्यमंत्री श्री रावत 12 जून, 2015 को अल्मोड़ा पहुंचेंगे, जहां पर अपरान्ह् 1 बजे से कार्यकर्ताओं के साथ भेंट, इसके बाद जन समस्या सुनवाई एवं समाधान शिविर और जनपदीय अधिकारियों के साथ विभागीय योजनाओं की समीक्षा करेंगे। रात्रि विश्राम अल्मोड़ा में करने के बाद मुख्यमंत्री श्री रावत 13 जून, 2015 को प्रातः 6 बजे अल्मोड़ा से मानसरोवर यात्रियों के जत्थे के रवानगी कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसके बाद जनपद पिथौरागढ़ पहुंचेंगे। जहां प्रातः 11 बजे विकास भवन पिथौरागढ़ में विभिन्न विकास योजनाओं का शिलान्यास एवं उदघाटन करेंगे। इसके बाद कार्यकर्ताओं के साथ भेंट, जन समस्या सुनवाई एवं समाधान शिविर और जनपदीय अधिकारियों के साथ विभागीय योजनाओं की समीक्षा करेंगे। रात्रि विश्राम पिथौरागढ़ में करने के बाद मुख्यमंत्री श्री रावत 14 जून 2015 को पिथौरागढ़ पहुंचकर रं छात्रावास का उदघाटन करेंगे। इसके बाद जी.आईसी. मैदान डीडीहाट में प्रातः लगभग 11.30 बजे कार्यकर्ताओं के साथ भेंट, इसके बाद जन समस्या सुनवाई एवं समाधान कार्यक्रम में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री श्री रावत देर सायं चम्पावत जनपद पहुंचकर रात्रि विश्राम करेंगे। 15 जून, 2015 को मुख्यमंत्री श्री रावत जनपद चम्पावत के फूलीगाड पूर्णागिरी में रोपवे का शिलान्यास करेंगे। इसके बाद तहसील परिसर टनकपुर में कार्यकर्ताओं के साथ भेंट, इसके बाद जन समस्या सुनवाई एवं समाधान शिविर और जनपदीय अधिकारियों के साथ विभागीय योजनाओं की समीक्षा करेंगे। मुख्यमंत्री श्री रावत 15 जून 2015 को देर सायं देहरादून वापस लौट आयेंगे।
पंचायतीराज संस्थाओं को अधिकार संपन्न बनाया जाए
- -भाजपा पंचायत प्रकोष्ठ का सुराज आंदोलन
देहरादून, 9 जून (निस)। ग्रामीण विकास व शहरी विकास, ग्रामीण बुनियादी सुविधाएँ व शहरी बुनियादी सुविधाओं के बीच के बहुत बड़े अंतर को दूर करने के लिए, पंचायती राज संस्थाओं को अधिकार सम्पन बनाने के लिए भाजपा पंचायती राज प्रकोष्ठ द्वारा चलाए जा रहे ग्राम सुराज आन्दोलन के तहत ग्राम सुराज सैनानी हल्ला बोल कार्यक्रम में हरिद्वार ग्रामीण के पंचायत प्रतिनिधि व भारी संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया। प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए भाजपा पंचायतीराज प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष दिगम्बर सिंह नेगी ने कहा कि देश के विकास की चाभी सिर्फ व सिर्फ ग्राम सुराज है। उन्होंने कहा कि आज पहाड़ी जिलों में खेत बंजर व गाँव खण्डर हो गए हैं। मैदानी जिलों में खेतों में कंक्रीट के जंगल उग गए हैं। खेतों और गाँवों को आबाद करने के लिए भाजपा द्वारा ग्राम सुराज आन्दोलन चलाया जा रहा है। ग्राम सभा की पंचायतों की योजनाओं में सहभागिता सुनिश्चित होने पर ही गाँव किसान खुशहाल होंगे। जन सहभागिता आधारित विकास की अवधारणा पंचायतीराज व्यवस्था में ही है। इसलिए पंचायतों का शक्तिसम्पन्न होना अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सत्ता के विकेन्द्रीकरण व लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाने के लिए पंचायतीराज व्यवस्था का अधिकार सम्पन्न होना अतिआवश्यक है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड पंचायतीराज एक्ट का निर्माण किया जाए, पंचायतों को 29 विषयों का अधिकार दिए जाएं, पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। अन्य निधियों की भांति ब्लाॅक प्रमुख निधि पुनः आरम्भ की जाए। बी0पी0एल0 का नया सर्वे कराया जाए। जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाॅक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता से करवाया जाए। किसानों को जंगली जानवरों व पक्षियों द्वारा फसल बर्बादी का मुआवजा दिया जाए। पंचायत सेके्रट्रियों की भर्ती कर रिक्त पड़े पदों को भरा जाए। पंचायत प्रतिनिधियों को 10,000 रू0 का मासिक मानदेय दिया जाए। इस कार्यक्रम में कुलदीप गुप्ता, जितेन्द्र सैनी, डाॅ. राकेश कुमार, त्रिलोक चौहान, नितिन पाल, अश्वनी पाल, नकली सैनी, दिनेश चैहान, सूर्यनारायण झा, डाॅ. यशपाल, विनोद चैहान, जय भगवान, दिनेश सिंह, मीर हसन, वाजिद अली, योगेन्दर कुमार, राजकुमार, पवन कुमार, डाॅ. विजेन्द्र सिंह चैहान, चन्द्रपाल, राजकुमार चैहान आदि शामिल रहे।
ग्रामीणों ने किया जल सत्याग्रह
देहरादून, 9 जून (निस)। पौड़ी जनपद के यमकेश्वर प्रखंड के अंतर्गत राजाजी नेशनल पार्क की गौरी रेंज के खिलाफ आंदोलन कर रहे ग्रामीणों ने आंदोलन के तहत ढाई घंटे का जल सत्याग्रह किया। इसके तहत ग्रामीण गंगा के पानी में जाकर खड़े रहे और नारेबाजी करते रहे। इससे पहले ग्रामीण पांच जून को भी जल सत्याग्रह कर चुके हैं। सुबह 11.30 बजे से ग्रामीण गंगा में उतरे। इस दौरान वे मांगों के समर्थन में नारे लगाते रहे। करीब ढाई घंटे तक उनका जल सत्याग्रह चला। प्रखंड के डांडामंडल व किमसार न्याय पंचायत क्षेत्र के करीब 82 गांवों के ग्रामीण तीन सूत्रीय मांग को लेकर गंगा भोगपुर गांव में आंदोलन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि राजाजी नेशनल पार्क क्षेत्र में कौडि़या-किमसार सड़क का निर्माण, पुल का निर्माण व गंगा भोगपुर क्षेत्र में गंगा से बाढ़ सुरक्षा को तटबंध का निर्माण किया जाए। मांगो को लेकर आंदोलनरत ग्रामीण हर दिन आंदोलन को नया रूप दे रहे हैं। ग्रामीण पार्क की गौहरी रेंज में तालाबंदी के साथ ही चीला मार्ग पर जाम भी लगा चुके हैं। इस बीच ग्रामीण भैंस के आगे बीन बजाकर भी प्रदर्शन कर चुके हैं। साथ ही शुक्रवार की सुबह साढ़े दस बजे से आधा घंटा तक गंगा में उतरकर जल सत्याग्रह भी कर चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि हर बार आश्वासन के बावजूद उनकी समस्या पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। अभी तो जल सत्याग्रह सांकेतिक था। यदि मांगे नहीं मानी जाती तो इसे अनिश्चिकालीन किया जाएगा।
ग्राम प्रधान का अनशन जारी, सीएम को भेजा ज्ञापन, जान का बताया खतरा
देहरादून, 9 जून (निस)। मलेथा में क्रशर बंद करने की मांग को लेकर हिमालय बचाओ आंदोलन के समीर रतूड़ी व ग्राम प्रधान शूरबीर बिष्ट का आमरण दूसरे दिन भी जारी रहा। समीर ने क्रशर बंद करने व दोषी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर अन्न के साथ ही जल त्याग भी किया है। इस मौके पर उनके समर्थन में मलेथा पहुंचे पदम् भूषण डॉ.अनिल जोशी ने कहा कि यदि सरकार ग्रामीणों की मांग नहीं मानती है तो 21 जून को मलेथा में ऋषिकेश बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर चक्काजाम कर यात्रा रोक दी जाएगी। उन्होंने कहा कि मलेथा में महिलाओं पर लाठीचार्ज की घटना शर्मनाक है। उनके साथ आये विरेन्द्र पैन्यूली ने कहा कि मलेथा को बचाने को लेकर वह पूरी तरह ग्रामीणों के साथ है और इसके लिए अब मलेथा के लोग अपने जानवरों के साथ देहरादून में टेंट लगाकर धरना देंगे जिसकी व्यवस्था वह स्वयं करेंगे। इस मौके पर कमला पंत ने भी विचार रखे। इस मौके पर प्रो.जार्ज ए जेम्स, जगदंबा प्रसाद रतूड़ी, देव सिंह नेगी, खेम सिंह चैहान, भूप सिंह राणा सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं मौजूद थे। वहीं मलेथा में क्रशरों के विरोध को लेकर जल व अन्न त्याग कर धरना स्थल पर बैठे समीर रतूड़ी ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा जिसमें कहा गया कि वह मलेथा के ग्रामीणों की हक की रक्षा के लिए ग्रामीणों के साथ संघर्षरत है। उन्होंने पुलिस पर धमकी देने व कानूनी दाव में फंसाने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। उन्होंने थानाध्यक्ष पर क्रशर माफिया के साथ मिला होने का आरोप लगाते हुए कहा कि छह जून को रात में दरोगा ने मुझ पर लाठीचार्ज किया गया। वह उन्हें मारने का षडयंत्र रच रहे हैं। इधर उत्तरकाशी जिले के विभिन्न जनसंगठनों से जुड़े लोगों ने जिलाधिकारी के जरिये मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया। ज्ञापन में कहा गया है कि मलेथा में स्टोन क्रशर के विरोध में बैठे ग्रामीणों पर लाठीचार्ज की घटना निंदनीय है। उन्होंने लाठीचार्ज में शामिल गैर जिम्मेदार अधिकारियों व पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग उठाई। वहीं उत्तरकाशी जनपद में मानकों को ताक पर रखकर चल रहे स्टोन क्रशरों के खिलाफ भी कार्यवाही की मांग की गई। इस मौके पर गणेशपुर की ग्राम प्रधान पुष्पा चैहान, रामचंद्र चमोली, राधिका पंवार, सतेंद्र, द्वारिका सेमवाल, शांति परमार, प्रताप पोखरियाल, संदीप, गणेशपुर, शांतिप्रताप, संदीप आदि शामिल थे।
लकड़ी-चारा ढोने वाली बन रही हैं अब ‘कैरियर’, ग्रामीण महिलाओं से कराई जा रही नशे की तस्करी
- करोड़ों की अपफीम बरामद होने के बाद चेता महकमा
देहरादून, 9 जून (निस)। नशे के कारोबार को उत्तराखंड में फैलने से रोकने के लिए चलाए जा रहे पुलिस के अभियान को जोर का झटका लगा है। अब तक नशे के सामान के लिए हिमाचल प्रदेश, बरेली और बिहारीगढ को गढ मान रही पुलिस नेपाल से भारी मात्रा में तस्करी से सकते में है। चिंता का विषय तो यह है कि नशे के इस सामान को तस्करी करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की भोली-भाली महिलाओं को कैरियर के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। बिना हाड़तोड़ मेहनत के आसानी से मिलने वाले पैसे के लालच में ग्रामीण महिलाएं इस धंधे में झोंकी जा रही है। यह खुलासा हुआ है एसएसबी द्वारा जब्त की गयी करोड़ों रूपए की अफीम की बरामदगी के बाद। इस खेल में बड़े नाम अब भी पुलिस के लिए एक बड़ा रहस्य बने हुए हैं। इस पूरे प्रकरण में करोड़ों रूपए की इस अपफीम की तस्करी का रहस्य महज दो नेपाली महिलाओं तक ही आकर सीमित हो गया है। उत्तराखंड मं नशे के कारोबार को रोकने के लिए इन दिनों प्रदेश स्तर पर अभियान छेड़ा गया है। हालांकि अभियान अभी अपनी शैशव अवस्था में ही है और केवल चंद छोटे लोग ही पुलिस के हाथ लग पाए हैं, लेकिन यहां एक दूसरा पक्ष यह भी है कि तस्करी का एक बड़ा नेटवर्क पड़ोसी देश नेपाल से चलाया जा रहा है। बता दें कि पड़ोसी देश नेपाल से तस्करी कर लायी जा रही एक करोड़ मूल्य की 11 किलो 285 ग्राम अफीम के साथ एसएसबी ने चैकिंग के दौरान दो नेपाली महिला तस्करांे को पकड़ा। दोनों नेपाली महिलाएं हिमाचल प्रदेश में मजदूरी करती है तथा इस डील में उन्हें गांव के ही एक व्यक्ति ने यह माल बनबसा तक पहुचाने के लिए कहा था। तमाम कोशिशें करने के बाद भी महिलाएं एसएसबी की नजरों से नहीं बच पाई और धरी गयीं। हालांकि नेपाल में हालांकि अफीम की खेती होती नहीं है लेकिन पहली बार भारत-नेपाल सीमा पर नशे के तौर पर प्रयोग की जाने वाली अफीम खेप पकड़े जाने के बाद सुरक्षा एजेंसियां भी सतर्क हो गयी हैं। एसएसबी के अधिकारियों की कहना है कि यह नेपाली महिलाएं पैदल ही आ रही थीं और चेकिंग करने पर दोनो महिलाओं के बैगो से 11 किलो 285 ग्राम अफीम बरामद हुई। यह पूरा प्रकरण इस लिहाज से भी बेहद चिंता का विषय है कि तस्करों ने अब नए पैंतरे अपनाने शुरू कर दिए हैं और जंगलांे में चारा व लकडि़यां लेने जाने वाली ग्रामीण महिलाओं को ‘कैरियर’ के तौर पर प्रयोग करना शुरू कर दिया है। भोली-भाली ग्रामीण महिलाएं भी चंद पैसों के लालच में आकर ऐसे काम करने के परिणामों से अंजान रहती हैं और तस्करी करने को तैयार हो जाती हैं। माना तो यह भी जा रहा है कि इन महिलाओं के अलावा भी कई बाद सीमा से इस प्रकार की खेप तस्करी की गयी है। तस्करों के इस नए प्रयोग पर कैसे उत्तराखंड पुलिस और एसएसपी पूरी तरह से रोकथाम लगा सकते हैं इस पर अब अधिकारियों में मंथन शुरू हो चुका है।
उत्तराखंड में खाकी को ‘संजीवनी’ की तलाश, राजधानी सहित पूरे प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक वारदातें
- तकनीकी एवं परंपरागत काम में अनुभवहीन बन रहे पुलिसकर्मी
देहरादून, 9 जून (निस)। देवभूमि में तीव्र गति से बढ रहे अपराधों पर लगाम कसने के लिए खाकी को संजीवनी की तलाश है। हालांकि अभी तक महकमे को वह ‘हनुमान’ नहीं मिल पाया है जो अपराधों से उपजे जख्मों पर इस संजीवनी का लेप लगा सके। न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरा प्रदेश अपराधियों का गढ बनता जा रहा है बल्कि शांत रहने वाले पहाड़ भी अपराधों से गुंजयमान हो रहे हैं। हल्द्वानी में मासूम कशिश की हत्या का मामला भला कैसे भुलाया जा सकता है या फिर हरिद्वार के पथरी गांव में 11 साल की बच्ची से दुराचार का मामला या फिर चकराता में प्रेमी युगल की हत्या एवं युवती का बलात्कार। यह ऐसे मामले थे जो कि अमूमन उत्तराखंड में कम ही देखे जाते रहे हैं, खासतौर पर पहाड़ों में। लेकिन फिर भी यह घटनाएं हुईं, जाहिर है कि उत्तराखंड पुलिस इकबाल ही कमजोर हुआ है। बढते अपराधों पर अधिकारियों का टका सा जवाब बाहरी लोगों की प्रदेश में दखल तक आकर ही सीमित हो जाता हैै जिस कारण यह लोग अक्सर अपराध करने के बाद फरार होने में भी कामयाब रहते हैं। दून पुलिस का तो हाल बेहद बुरा है। कहने को भारी जमावड़ा है लेकिन अधिकांश मामलों के लिए एसटीएपफ पर ही निर्भरता रहती है। वारदात के बाद अधिकांश मामलों में एसटीएफ को भी पुलिस टीम के साथ घटना का खुलासा करने के लिए लगा दिया जाता है। दून पुलिस इस नाकामी के कारण एसटीएपफ को अपने मूल कार्य से भटक कर चोर और उठाईगिरों को उठाना पड़ रहा है। राजधानी में बढ रहे अपराधों के बाद तो यह भी सवाल उठने लगे हैं कि यहां विभाग मंे ही संवादहीनता की खाई बनी हुई है। यहां लंबे समय से बाहरी प्रदेशों के बदमाशों ने दून में एक के बाद एक बड़ी वारदातों को अंजाम देकर पुलिस अफसरों को खुली चुनौती दी है। दून में होने वाले अधिकांश बड़े अपराधों में बाहरी प्रदेशों के बदमाशों का ही गिरोह सामने आया है। हर वारदात से पहले या बैठकों में पुलिस अफसर दावे ठोकते हैं कि अपराधियों पर नजर रखने के लिए सघन चैकिंग की जाती है लेकिन हैरानी वाली बात है कि जब भी राजधानी में कोई बड़ा अपराध होता है तो उसके बाद अपराधी पुलिस को चकमा देकर कैसे बैरियरों से फरार हो जाने में कामयाब हो जातेे हैं? एक ओर सरकार के मुखिया राज्य में बढ़ रहे अपराधों को लेकर गृह विभाग व पुलिस के आला अफसरों को लताड़ पिलाते आ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी पुलिस अपराधियों पर नकेल लगाने के लिए किसी टास्क के तहत काम करने को नजर नहीं आ रही है। बाहरी प्रदेशों के बदमाश कोई भी बड़ी वारदात करने से आखिरकार क्यों नहीं डरते यह काफी चिंता का विषय है। कहा तो यह भी जाता है कि राजधानी में पुलिस के कई अफसरों व दरोगाओं के बीच आपस में ही कोई नेटवर्क या ट्यूनिंग ही नहीं है लाभ सीधे तौर पर अपराधियों को ही हो रहा है। जनता के साथ संवाद करना तो बहुत दूर की बात है, पुलिस अधिकारी या थानेदार उनके फोन तक नहंी उठाते। प्रदेश की राजधानी में आला अधिकारी कुंडली जमाए बैठे हैं और इन्हींे अधिकारियों की नाक के नीचे ही अपराध तेजी से पनप रहे हैं। अधिकांश पुलिस अधिकारी पहाड़ांे तक में चढने के लिए तैयार नहीं। महज पुलिस मुख्यालयों से जारी किए जाने वाले आदेशों पर कितना अमल हो रहा है यह प्रदेश के आपराधिक ग्रापफ देखकर साफ हो ही जाता है। जरूरी है कि पुलिस अब अपने काम करने के ढर्रे में परिवर्तन लाए। बाहरी लोगों की बढ रही संख्या को सीमित करने या पिफर ऐसे लोगों के सत्यापन कार्य को महज औपचारिकताओं में न समेटा जाए बल्कि गंभीरता से ऐसे लोगों की गतिविधियों पर नजर रखी जाए। काम थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन बार-बार की फजीहत से तो अच्छा है कि इसे एक अभियान एवं रूटीन के तौर पर प्रयोग करके देख ही लिया जाए।
तीन माह बाद हत्या का मुकदमा हुआ दर्ज, कद्दूवाला में पेड़ से लटका मिला था शव
देहरादून, 9 जून (निस)। लगभग चार महीने पुराने एक मामले में बिसरा की रिपोर्ट आने के बाद परिजनेां की ओर से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया है। परिजनों का आरोप है कि षड़यंत्रा रच कर युवक को घर से बुलाया गया था और घर से निकलने के पांच दिन बाद युवक का शव कद्दूवाला के जंगलों में पेड़ से लटका मिला था। बता दें कि दीपनगर निवासी तीस वर्षीय पवन कुमार पाल 27 फरवरी को अपने घर से रात के समय बाईक लेकर निकला था। दो दिन तक जब पवन घर नहीं आया तो परिजनों ने उसकी गुमशुदगी की शिकायत नेहरू काॅलोनी थाने में दर्ज कराई। पुलिस ने भी औपचारिकताएं निभाते हुए मामला दर्ज किया लेकिन लापता पवन को तलाश करने की जहमत नहंी उठाई गयी। उधर 3 मार्च को कद्दूवाला के जंगलांे में स्थानीय लोगों ने पेड़ पर एक शव लटकता हुआ देख कर इस बात की सूचना पुलिस को दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को नीचे उतार कर जब उसकी शिनाख्त की युवक को पवन कुमार पाल के रूप में पहचाना किया। मौके पर पहंुचे परिजनों ने इस बात की पुष्टि तो की ही, लेकिन साथ ही हत्या की भी आशंका जताई। हालांकि पुलिस ने तब भी हत्या का मुकदमा दर्ज नहीं किया। शव का पोस्टमार्टम किया गया लेकिन उसमें हत्या के कारणों पूरे तौर पर पुष्टि न होने पर बिसरा को जांच के लिए भेजा गया। बिसरे की रिपोर्ट आने के बाद अब मृतक पवन कुमार पाल के भाई दीपनगर निवासी दीपनगर ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस को दी गयी शिकायत में उन्होंने बताया है कि पवन कुमार को पूरी तरह से षड़यंत्र रच कर घर से बुलाया गया और बाद में उसकी हत्या कर शव को पेड़ पर लटका दिया गया जिससे कि मामला आत्महत्या का लगे। एसओ नेहरू काॅलोनी के अनुसार परिजनों की शिकायत के बाद सभी बिंदुओं को ध्यान मंें रख कर जांच की जा रही है।