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अंतरिम रेल बजट में 72 नई रेलगाड़ियों की सौगात

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rail budget
रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा बुधवार को लोकसभा में प्रस्तुत आगामी कारोबारी वर्ष के अंतरिम रेल बजट में यात्री या माल ढुलाई किराया नहीं बढ़ाया गया है। साथ ही 72 नई रेलगाड़ियां चलाने तथा पूर्वोत्तर के दो राज्यों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की घोषणा की गई है। यह उनका प्रथम और वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का आखिरी रेल बजट है। खड़गे ने किराया तय करने के लिए एक नया निकाय बनाने का वादा किया और कहा कि पूर्वी तथा पश्चिमी माल ढुलाई गलियारे पर काम अच्छी तरह से चल रहा है।

रेल मंत्री ने कुल मिलाकर 14 मिनट में अपने अंतरिम बजट भाषण का एक हिस्सा पढ़ा और उसके बाद अंतरिम रेल बजट तथा अगले कारोबारी साल के चार महीने के लिए लेखानुदान सहित अन्य संबंधित दस्तावेजों को सदन के पटल पर रख दिया। उन्होंने 72 नई रेलगाड़ियां शुरू करने की घोषणा की, जिसमें शामिल होंगी 17 प्रीमियम रेलगाड़ियां, 38 एक्सप्रेस रेलगाड़ियां, 10 पैसेंजर रेलगाड़ियां, चार उपनगरीय रेल सेवा और तीन मध्य दूरी की अंतरशहरी डीजल लोकोमोटिव।

उन्होंने कहा कि वित्तीय कठिनाइयों के बाद भी वर्तमान कारोबारी साल के लक्ष्य पूरे हो गए। उन्होंने कहा कि मौजूदा कारोबारी साल में अरुणाचल प्रदेश और मेघालय को रेल नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। अंतरिम रेल बजट में माल ढुलाई का लक्ष्य आगामी कारोबारी साल में 110 करोड़ टन रखा गया है, जो वर्तमान कारोबारी साल के संशोधित लक्ष्य से 4.97 करोड़ टन अधिक है। विद्युतीकरण के मामले में वर्तमान कारोबारी साल में 4,500 किलोमीटर मार्ग के लक्ष्य की जगह 4,556 किलोमीटर मार्ग का विद्युतीकरण पूरा हुआ। गेज दोहरीकरण भी 2,000 किलोमीटर के लक्ष्य की जगह 2,227 किलोमीटर पूरा हुआ।

उधमपुर-कटरा खंड पर सेवा जल्द शुरू होगी। इस सेवा से यात्री वैष्णो देवी के अधिकतम निकट तक पहुंच सकेंगे। उन्होंने कहा कि तीन नए कारखाने 2013-14 में शुरू हुए। ये हैं बिहार के छपरा जिले में रेल पहिया संयंत्र, उत्तर प्रदेश के रायबरेली में रेल कोच कारखाना और पश्चिम बंगाल के डानकुनी में डीजल कंपोनेंट कारखाना। उन्होंने कहा, "कश्मीर घाटी में विपरीत मौसमी परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से तैयार कोच को रेलगाड़ियों में लगाया गया है। यही नहीं 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले और अधिक भार उठाने में सक्षम जंग रोधी और हल्के वैगनों का भी विकास किया गया है।"

सुरक्षा के बारे में मंत्री ने कहा कि एक भी मानव रहित रेल फाटक शेष नहीं रहा। पैंट्री कार में खाना पकाने के लिए इंडक्शन आधारित चूल्हे का उपयोग शुरू किया गया है और रेल फाटकों पर आने वाली रेलगाड़ियों की जानकारी के लिए बेहतर ऑडियो-विडियो प्रणाली शुरू की गई है। मल्लिकार्जुन पिछले आठ महीने से ही रेल मंत्री हैं। उन्होंने रेल बजट प्रस्तुत करते हुए देश के सामाजिक आर्थिक विकास में रेलवे की भूमिका का बखान किया और कहा कि ढांचागत और वित्तीय संसाधन के अभाव के कारण यह कठिनाई से गुजर रहा है। उन्होंने कहा, "हमें रेलवे के लिए निवेश तथा अन्य जरूरतों पर अविलंब ध्यान देना चाहिए।"

भारतीय रेल दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी रेल प्रणाली है। यह रोजाना 2.3 करोड़ यात्रियों को सेवा देती है और 26.5 लाख टन माल ढुलाई करती है। रेलवे रोजाना 64 हजार किलोमीटर से लंबे रेलनेटवर्क पर 7,083 स्टेशनों से 12 हजार यात्री रेलगाड़ियों और 7,000 मालगाड़ियों का संचालन करती है। 14 लाख कर्मचारियों के साथ यह सबसे बड़ी रोजगार प्रदाताओं में भी शामिल है। उद्योग जगत ने अंतरिम रेल बजट पर विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अगली सरकार आने पर पेश होने वाले पूर्ण रेल बजट में सुधार अपनाए जाने की उम्मीद की।

भारतीय उद्योग परिसंघ ने कहा, "कोष की समुचित उपलब्धता के लिए किराया ढांचे में सुधार, रेलवे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति और संयुक्त उपक्रम तथा सार्वजनिक-निजी साझेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।" फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने स्वतंत्र रेल किराया प्राधिकरण गठित किए जाने का स्वागत किया। फिक्की ने कहा, "इससे भारतीय रेल के यात्री और माल ढुलाई खंड में पारदर्शी व्यवस्था अपनाने में मदद मिलेगी।"

सीमांध्र के मंत्रियों ने लोकसभा में किया हंगामा, प्रधानमंत्री हुए दुखी

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manmohan singh on telangana
आंध्र प्रदेश के बंटवारा विरोधी केंद्रीय मंत्रियों ने बुधवार को लोकसभा में अप्रत्याशित हंगामा किया। कामकाज में पड़ रही बाधा को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दुख व्यक्त किया। तेलंगाना विधेयक को संसद में पेश करने की सरकार की कोशिशें तेज होने के बीच सीमांध्र (रायलसीमा और तटीय आंध्र) क्षेत्र से आने वाले केंद्रीय मंत्री भी बुधवार को लोकसभा में हंगामा करने वालों की जमात में शामिल हो गए।  हंगामे का हाल यह था कि रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे को अंतरिम रेल बजट पेश करते अपना अपना बजट भाषण संक्षिप्त करना पड़ा। रेल मंत्री ने महज 14 मिनट में बजट भाषण खत्म कर दिया।

स्थिति तब विषम हो गई जब कांग्रेस के एम. जगन्नाथ और तेलुगू देशम पार्टी के एन. शिवप्रसाद एक दूसरे की तरफ आक्रामक होकर झपट पड़े। लेकिन जनता दल-युनाइटेड के शरद यादव, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और कांग्रेस के जगदंबिका पाल की सतर्कता के कारण दोनों के बीच हाथापाई टल गई। हंगामा और मारपीट की नौबत पैदा हो जाने के कारण लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।

एकजुट आंध्र के समर्थन में बुधवार को चार केंद्रीय मंत्री के. एस. राव, डी. पुरंदेश्वरी, चिरंजीवी और सूर्य प्रकाश रेड्डी सीमांध्र के उन सांसदों के साथ कदम ताल मिला लिया जिन्हें सदन में व्यवधान उत्पन्न करने के कारण कांग्रेस ने मंगलवार को पार्टी से निकाल दिया। इतना ही नहीं दो और मंत्री एम. पल्लम राजू और करुपराणि किल्ली अपनी जगह पर खड़े होकर हंगामे को ताल दे रहे थे। अध्यक्ष की आसंदी के समीप की जगह युद्धभूमि में तब्दील हो गई क्योंकि तेलंगाना के समर्थक और विरोधी सदस्य नारेबाजी करते हुए वहां जुट गए और प्लेकार्ड लहराने लगे।

जैसे ही खड़गे ने रेल बजट पेश करना शुरू किया, सीमांध्र के कुछ सदस्य एकजुट आंध्र प्रदेश के समर्थन वाले प्लेकार्ड लिए सत्ताधारी पक्ष की ओर बढ़े। इस तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, शरद पवार और संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ बैठे थे। सीमांध्र सदस्यों ने प्लेकार्ड उनकी ओर उछाल दिया लेकिन वे किसी नेता तक पहुंचने से पहले ही जमीन पर गिर गए। कमलनाथ ने तत्परता दिखाते हुए प्लेकार्ड हटा लिए। इतना कुछ होने पर भी सोनिया शांत बैठी रहीं और किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी।

खड़गे के बजट भाषण के आखिर में कुछ सदस्यों ने तेलंगाना विधेयक के टुकड़े किए और रेल मंत्री की तरफ उछाल दिया। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी एक प्लेकार्ड उठाए हुए थे जिस पर लिखा था, 'आंध्र प्रदेश बचाओ।'चिरंजिवी ने हंगामे का दोष सरकार पर मढ़ते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश को बांटने में उनके सुझावों को अनदेखा कर दिया गया। उन्होंने कहा कि वे सीमांध्र के लिए 'न्याय'चाहते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कथित रूप से कहा कि संसद में हो रही रोजना की बाधा से उनका दिल रो रहा है।

एक विश्वस्त सूत्र ने मीडिया को बताया कि मनमोहन सिंह ने सांसदों के एक समूह से कहा, "मेरा दिल यह देख कर रोता है कि सदन में हो क्या रहा है।"उन्होंने कहा, "यह लोकतंत्र के लिए दुखद है कि शांति की तमाम अपीलों के बावजूद यह सब हो रहा है।"उधर प्रधानमंत्री ने बुधवार को दिन के भोजन पर भाजपा नेताओं के साथ मुलाकात की और तेलंगाना के गठन से संबंधित विधेयक पर चर्चा की। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के साथ लोकसभा और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता क्रमश: सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने बैठक में हिस्सा लिया।

सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेताओं ने कहा कि उन्हें विधेयक से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन दोनों पक्षों की चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए। भाजपा नेताओं ने सरकार से 'सदन में व्यवस्था बहाल'करने के लिए भी कहा, क्योंकि सदन में अव्यवस्था उत्पन्न करने वालों में कांग्रेस के सांसद आगे हैं। इस बैठक के दौरान केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम, ए. के. एंटोनी, कमलनाथ और सुशीलकुमार शिंदे भी मौजूद थे।

बिहार के मधुबनी में थाना प्रभारी 1 लाख रुपये रिश्वत लेते गिरफ्तार

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बिहार राज्य निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (विजिलेंस) की एक टीम ने बुधवार को मधुबनी जिले के खुटौना के थाना प्रभारी महाकांत सिंह को बतौर रिश्वत एक लाख रुपए लेते रंगेहाथ गिरफ्तार किया। ब्यूरो के एक अधिकारी ने बताया कि विभाग को एक लिखित शिकायत मिली थी कि खुटौना में एक खाद व्यवसायी को मदद करने के लिए खुटौना के थाना प्रभारी ने एक लाख रुपये की मांग की है। इसी आधार पर विभाग ने इस मामले की जांच करवाई तब मामला सही पाया गया और ब्यूरो द्वारा एक टीम का गठन किया गया। 

खुटौना के थाना परिसर में सुबह जैसे ही व्यवसायी विनोद कुमार साह का एक एजेंट मिंटो शहजादा बतौर रिश्वत एक लाख रुपये थाना प्रभारी को दे रहा था तभी ब्यूरो की टीम ने थाना प्रभारी और एजेंट को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार एजेंट और थाना प्रभारी को पूछताछ के लिए पटना मुख्यालय लाया जा रहा है, पूछताछ के बाद उन्हें विशेष न्यायालय में पेश किया जाएगा। 

मोदी-पॉवेल मुलाकात के बड़े मायने नहीं : अमेरिका

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modi powell
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के साथ भारत में अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल की मुलाकात की घोषणा को मोदी के प्रति अमेरिका के रुख में बदलाव माना जा रहा था। लेकिन अमेरिका ने कहा है कि मोदी और पॉवेल की मुलाकात राजनेताओं से संपर्क के प्रयासों का हिस्सा मात्र है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जेन साकी ने मंगलवार को मोदी के प्रति अमेरिका के रुख में बदलाव के सवाल पर कहा, "जैसा कि आप जानते हैं कि हम अक्सर वरिष्ठ राजनेताओं और व्यवसाइयों से संपर्क करते हैं।"

"हमने महीनों पहले इसकी शुरुआत की थी, जाहिर है कि यह भारत-अमेरिका के संबधों को जारी रखने और उन पर रोशनी डालने के लिए है। हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।"गौरतलब है कि 2002 के गुजरात दंगों में मोदी को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का जिम्मेदार मानते हुए अमेरिका ने 2005 में मोदी को वीजा देने से मना किया था। 

लेकिन मोदी के राष्ट्रीय नेता बनकर उभरने के बाद से अमेरिकी व्यवसायी उनसे संपर्क साधने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले साल तीन रिपब्लिकन सांसदों ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ अहमदाबाद में मोदी से मुलाकात की थी। एक वरिष्ठ राजनयिक भी उस बैठक में शामिल थे। लेकिन अभी तक किसी अमेरिकी राजदूत ने मोदी से मुलाकात नहीं की है। मोदी-पॉवेल की मुलाकात पर भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की प्रतिक्रिया थी कि यह मुलाकात मानवाधिकार मुद्दों से जुड़ी है। इस पर साकी ने कहा, "हम निश्चित तौर पर उस धारणा या दावे का खंडन करते हैं।"

यह पूछने पर कि क्या अमेरिकी रुख में इस बदलाव का, आगामी चुनावों में मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से कुछ लेना-देना है, साकी ने कहा, "हम चुनावों पर अपने रुख नहीं बदलते और यह इस बात का उदाहरण नहीं है कि हम अपना रुख स्पष्ट कर रहे हैं।"वीजा नीति में बदलाव पर साकी ने कहा, "हमारी लंबे समय से चली आ रही वीजा नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह एक सामान्य मुलाकात है। हमारी वीजा नीति में कुछ नहीं बदला है।"

असली चाय वाला तो मैं हूं : लालू प्रसाद यादव

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lalu prada yadav tea
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने बुधवार को गुजरात के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि वे तो नकली चाय वाले हैं, असली चाय वाला तो मैं हूं। पटना में पत्रकारों से चर्चा करते हुए एक रहस्योद्घाटन किया कि वे बचपन में चाय और बिस्कुट बेचा करते थे और उनके भाई की दुकान आज भी है।

उन्होंने कहा कि चाय दुकान में वे खुद रहते थे और चाय बनाकर लोगों को पिलाते थे। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार मोदी के दावे को खोखला बताते हुए उन्होंने कहा कि मोदी खुद को चाय वाला बताते हैं परंतु हकीकत में उन्होंने चाय कभी नहीं बेची है। उन्होंने तो खून बेचा है, मोदी तो खून का सौदागर है।

उन्होंने कहा कि लोग नहीं जानते हैं कि असल में मैंने न केवल चाय बनाकर बेचा है बल्कि वहां बिस्कुट भी बेचा है। बिस्कुट के विभिन्न प्रकारों को बताते हुए उन्होंने कहा कि असली चाय वाला तो मैं हूं।

संदर्भ - प्रेम दिवस : बहाएँ प्रेम की गंगा

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प्रेम जीवन अैार जगत् की वह महान् शक्ति है, जिससे न केवल परिवार और समाज की वरन् राष्ट्र और विश्व की अनगिनत समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है। अगर दुनिया में प्रेम न होता तो यह दुनिया चार दिन भी जीने के काबिल नहीं रहती। प्रेम ही वह रसधार है जिससे जीवन में समरसता और आनंद का संचार होता है।

प्रेम न तो देखा जाता है, न चखा जाता है, न सूंघा जाता है, वह तो मात्र अनुभव किया जा सकता है। प्रेम कोई लेन-देन की चीज नहीं है वह तो अनुभूति का आस्वाद है इसलिए प्रेम के विषय में कुछ लिखना भी कठिन है। प्रेम स्थूल नहीं सूक्ष्म है और सूक्ष्म तत्त्व को दुनिया नहीं जान सकती। दुनिया के लोग तो राग को समझ सकते हैं पर प्रेम की गहराई को नहीं जान पाते। जो अखण्ड रहे वह प्रेम है, जो टूट जाए वह प्रेम नहीं हो सकता। लोग कहते हैं- ‘मेरा उनसे बहुत प्रेम था पर अब वह प्रेम टूट गया, तो समझ लेना कि वह प्रेम नहीं था।
वर्तमान युग में प्रेम का रूप ही बदल गया है। वासना, आकर्षण और कामना को प्रेम का रूप दे दिया गया जिससे कई समस्याएं व प्रश्न उपस्थित हुए हैं। भक्तिसूत्र में नारद ने प्रेम की यथार्थता बताते हुए मुख्य दो तत्त्वों को समझाया है। पहला तत्त्व है ‘गुणरहित’ और दूसरा तत्त्व है ‘कामनारहित’ अर्थात् प्रेम गुणरहित और कामनारहित होता है।

प्रेम का आधार गुण नहीं हो सकता। यदि कोई कहे कि तुम बहुत गुणों के धारक हो, इसलिए मैं तुमसे प्रेम करता हूं- तुम बहुत बुद्धिमान हो, त्यागी हो, समझदार हो इसलिए मैं तुमसे प्रेम करता हूं। यह प्रेम नहीं मात्र प्रेमाभास है। जब तक गुण दिखेंगे तभी तक प्रेम टिकेगा क्योंकि संसारी प्राणी के गुण सदा नहीं टिकते। आज एक व्यक्ति में उदारता दिखाई देती है तो कल भी उसमें उदारता होगी ही यह संभव नहीं है। जो गुणों को देखकर प्रेम करेंगे वे दोषों को देखकर द्वेष भी अवश्य करेंगे। इसलिए नारदजी ने प्रेम को निर्गुण बनाने की प्रेरणा दी है।

प्रेम का दूसरा तत्त्व है ‘कामना से रहित होना।’ अन्यथा जब इच्छा पूरी नहीं होगी तब प्रेम नष्ट हो जायेगा। जहां कामना से प्रेम किया जाता है वहां मन में स्वार्थ की भावना आ जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए ‘प्रेम’ शब्द की गहराई को जानना आवश्यक है। क्योंकि जो लोग प्रेम का स्वरूप नहीं जानते वे प्रेम की जगह विविध कामनाओं में भटक जाते हैं। 

इस दुनिया में माता अपने बच्चे को प्रेम करती है, वरन् अपने भाई से प्रेम करती है, पिता अपने पुत्र से प्रेम करता है, पत्नी अपने पति से प्रेम करती है किन्तु वे सब प्रेम का वास्तविक स्वरूप नहीं जानते। प्रेम क्या है? प्रेम आकाश की तरह अनन्त व सागर के समान गहरा है। प्रेम की सुगंध सभी खुशबुओं से श्रेष्ठ, प्रेम का स्वाद सभी व्यंजनों से स्वादिष्ट है। प्रेम एक ऐसा रसायन है जो विष को भी अमृत में परिवर्तित करने की शक्ति रखता है। यदि इस धरती पर प्रेम नहीं होता तो यह धरती किसी के लायक नहीं रहती। किसी चिन्तक ने सही कहा है-

स्पमि पे सिवूमत ंदक सवअम पे जीमपत ेउमससण्ण्ण् जैसे बिना सुवास के फूल का कोई महत्त्व नहीं रहता, ऐसे ही बिना प्रेम के जीवन भी अर्थहीन हो जाता है। जिस प्रार्थना, पूजा, इबादत, अनुष्ठान व साधना में यदि प्रेम या समपर्ण नहीं है तो वह मात्र दिखावा है। किताबों को पढ़कर पाण्डित्य प्रदर्शित करने वाले, शास्त्रार्थ और प्रवचन करने वले के मन में यदि ‘प्रेम’ तत्त्व नहीं है तो मात्र आकृति से पण्डित है। 

यहां कबीर का जगत प्रसिद्ध दोहा स्मरण में आ जाता है-

पोथी पढि़-पढि़ जग मुआ, पण्डित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पण्डित होय।।

परमात्मा के प्रेम में विभोर होकर मीरा विष को भी अमृत बना जाती है तो प्रेम में डूबकर ही राधा वृंदावन की कुंज गलियों में रास रचाने लगती है, जब प्रेम ईश्वर (भगवान) के प्रति हो तो भक्ति बन जाता है। भक्ति रूपी प्रेम में सराबोर शबरी ने राम को झूठे बेर खिलाए, विदूर की शाक-भाजी सुदामा के चावल खाए कृष्ण ने। यह सब प्रेम ही था। प्रभु महावीर भी गौतम स्वामी से कह उठे- हे गौतम! तेरा-मेरा स्नेह-अनुराग एक भव का नही  कई भवों का है। तभी प्रभु महावीर के निर्वाण के अवसर पर गौतम गणधर फूट-फूट कर रो पड़े। महात्मा गांधी ने कहा- प्रेम ही संसार की सूक्ष्मतम् शक्ति जिसने दुनिया पर शासन किया है। इसलिए कहा भी है-

‘‘किसी को जीतना है हृदय के प्यार से जीतो।

कटु व्यवहार से नहीं, मधुर व्यवहार से जीतो।।

प्रकृति की हर वस्तु प्रेम की प्यास लिए हुए है, प्रेम केवल व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि समस्त जीव जगत् परमात्मा तक विस्तार होने में ही उसकी सार्थकता है। पर प्रारम्भ हम परिवार से करें। आज हम देख रहे हैं कि हर परिवार तनाव के दौर से गुजर रहा है क्योंकि प्रेम की रसधार सूख गयी है। फलस्वरूप हर घर क्लेश की कालिमा से द्वेष के दावानल से सुलग रहा है, जहां स्नेह नहीं होता वहां सहिष्णुता की भावना नहीं होती, परस्पर सामंजस्य की भावना नहीं होती है।

भाई-भाई में प्रेम होना चाहिए राम-भरत जैसा।

सास-बहु का प्रेम होना चाहिए सीता-कौशल्या जैसा।
गुरु-शिष्य का प्रेम हो महावीर-गौतम जैसा।।

कैसी भी परिस्थिति में भी प्रेम को निभाने के लिए तत्पर रहना चाहिए। प्रेम कांच के बर्तन जैसा नहीं होना चाहिए जो हल्की सी टक्कर लगने पर टूट जाये, प्रेम होना चाहिए, दूध-पानी के समान। यदि एक बार प्रेम टूट जाता है तो-

रहिमन धागा प्रेम का, मत छोड़ो छिटकाय।
टूटे सो फिर ना जुड़े, जुड़े तो गांठ पड़ जाये।।

इसलिए प्रेम के सूत्र को तोड़ने का अवसर नहीं आने देना चाहिए।
प्रेम के कई रूप हैं- जब प्रेम दीन-दुःखी, जीव-जन्तु के साथ जुड़ता है तो वह करुणा का रूप ले लेता है। जब वह सामान्य मनुष्य के साथ जुड़ता है तो वह मैत्री का रूप लेता है, और यदि परमात्मा के साथ जुड़ता है तो भक्ति का रूप ले लेता है। वह प्रेम धन्य होता है जो प्रार्थना का रूप ले लेता है। प्रभु महावीर को प्रेम सर्व-जीवों के प्रति था उनका जीवन करुणा का सागर था। यही वजह थी कि उन्होंने विष से भरे सर्प को अमृत से भर दिया। परमात्मा के साथ प्रेम जोड़ा था सुदर्शन ने, सुलसा ने, अमर कुमार ने, जिन्होंने प्राणों की परवाह तक नहीं की। महावीर और बुद्ध के युग में अहिंसा और करुणा मानवता के हित के लिए प्रसारित हुई। पर आज स्वार्थ और आतंक भरी दुनिया में इन सबके स्थान पर प्रेम मानवता के समाधान का हिस्सा बन सकता है। जरुरत है प्रेम भरे व्यवहार की। भले वह कैसा भी सम्बन्ध हो उसमें स्नेह की सरिता, प्रेम की पवितत्र गंगा बहती है तो जीवन की गगियां खिल सकती है।

प्रेम की भाषा जो एक बार जान गया।
सचमुच वह आदमी को पहचान गया।।

पाष्चात्य संस्कृति की नकल करने में वर्तमान समय में प्रेम के स्वरूप में परिवर्तन आ रहा है। आज विषुद्ध प्रेम के स्थान का स्थान फूहड़ता/उच्छृंखलता लेती जा रही है। इस बदलते परिवेष में आज का युवक प्रेम के नाम से दिग्भ्रमित हो रहा है। प्रेम की सात्विकता और निष्काम भावना प्रायः समाप्त होती जा रही है। यदि प्रेम के सम्बन्ध में इसी प्रकार का दृष्टिकोण और आचरण रहा तो मुझे लगता है कि प्रेम का मौलिक स्वरूप ही नष्ट हो जायगा। प्रेम का समर्पण भाव कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा। अतः इस पर गम्भीरता से विचार करने की आवष्यकता है और पाष्चात्य संस्कृति का त्याग कर भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में प्रेम पर विचार और आचरण करने की आवष्यकता है। ऐसा करना मानवता के हित में है। यदि ऐसा हुआ तो मानव-मानव के बीच पनप रही घृणा समाप्त हो जायगी और प्रेम का निर्झर फूट पड़ेगा।


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---आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म.---

बिहार : आखिर कबतक मामूली रकम के आगे खाकी वर्दी मजबूर होती रहेगी?

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पटना। जब खाकी वर्दीधारी ही मजबूर हो जाए तो सामान्य इंसाफ के लिए किधर जाए....? इसी तरह आज कुछ हुआ। आज शाम कुर्जी में कुर्जी गए थे। वहां पर मॉडम रिचार्ज करवाना था। मॉडम रिचार्ज कराने के बाद कुर्जी मोड़ टेम्पू पकड़ने आए। कुर्जी मोड़ को जाम से बचाने के लिए एक लम्बे कद काठी और बड़े और रोबदार मुंछ वाले खार्की वर्दीधारी मोर्चा संभाले थे। उसके पीठ पर गन और हाथ में छड़ी लेकर जाम न हो जाए। इसके आलोक में छड़ी से टेम्पू चालकों को हड़काते रहा। मगर खाकी वर्दी और छड़ी का प्रभाव टेम्पू चालकों पर नहीं पड़ रहा था। इसका कारण है कि वर्दी की आड़ में टेम्पू चालकों से अवैध उगाही है। मात्रः 5 रूपए लेकर रोड पर ही सवारी चढ़ाने की सहुलियत दे देते हैं। इसके कारण टेम्पों चालकों का मनोबल बढ़ा हुआ है।

जाम कुर्जी मोड़ के पास न लगे। खाकी वर्दीधारी बड़े और रोबदार मुंछ वाले पुलिए ने छड़ी से टेम्पू पर मारकर हड़काता और रकम वसूली भी करता रहा। वर्दीधारी आकर टेम्पू चालक से रकम वसूली करना चाहा। मगर टेम्पू चालक ने यह कहकर वसूलने वाले को अगंूठा दिखा दिया कि अभी-अभी टेम्पू निकासी किये हैं। अभी ही पटना से दानापुर जा रहे हैं। जब अबकी बार आएंगे तो जरूर ही रकम दे देंगे।

अभी चालक टेम्पू स्टार्ट ही करने वाला था। दो लड़किया बैठने आ गयीं। दोनों को जगह देने के क्रम में वह एक सवारी को आगे वाली सीट पर बैठ जाने को कहने लगा। पहले से सीट पकड़ कर बैठे सवारी ने साफ इंकार कर दिया। हम किसी भी कीमत पर आगे वाली सीट पर जाकर नहीं बैठेंगे। किसी पुरूष को बुलाकर आगे वाली सीट पर बैठा लें।

इस पर टेम्पू चालक भड़क गया। बदतमीजी पर उतारू हो गया। वह धमकी देने लगा कि किसी भी कीमत पर गाड़ी आगे नहीं बढ़ाएंगे। जिसने विरोध किया था। उसे हर्गिज नहीं ले जाना चाह रहा था। कोई कुछ नहीं कर सकता। खार्की वर्दीधारी को भी गाली देने लगा कि वह ....................क्या कर सकता हैं। इस तरह के टेम्पू चालके के हरकत करने पर बैठे तीन-चार सवारी उतर गये। उतर कर खार्की वर्दीधारी को वस्तुस्थिति के बाद में बताया गया तो तो वह कहने लगे कि कड़रूवापन व्यवहार करने से टेम्पू चालक शरीर उलझ जाएगा। शरीर में बंदूक है। कुछ करने से हंगामा हो जाएगा। 

सवाल उठता है कि केवल खाकी वर्दी देखकर ही लोग सहम जाते हैं। अगर आप पाकसाफ रहेंगे तो देखते ही टेम्पू आगे बढ़ा देंगे। आप तो भीतरघात किए हुए हैं। मिलीभगत के कारण ही टेम्पू चालक वर्दी को कार्रवाई न करने पर मजबूर कर देते हैं। आखिर कबतक मामूली रकम के आगे खाकी वर्दी मजबूर होती रहेगी?



आलोक कुमार
बिहार 

चुनाव विशेष : स्वार्थ की नींव पर थर्ड फ्रंट..

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पिछले कुछ दिनों से भारतीय राजनीति में  थर्ड फ्रंट यानि तीसरे मोर्चे की हनक खूब सूनाई दे रही है। एक बात तो साफ है कि राजनीति में रूचि रखने वाले लोग थर्ड फ्रंट के बारे में बखूबी जानेते होंगे और अगर जो राजनीति के इतिहास में रूचि रखते होंगे वह यह भी  जानते होंगे कि थर्ड फ्रंट यानि ​तीसरे मोर्चे की नींव धोखे और स्वार्थ पर टिकी है। हालांकि वर्तमान दौर में इसके गठन को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के रथ को रोकने से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि इस मोर्चे की सार्थकता और वास्तविकता क्या है? क्या अब फिर तीसरे मोर्चे के उभरने की गुंजाइश पैदा हो गई है?

क्योंकि यह सच है कि तीसरे मोर्चे को भारत पर शासन करने का मौका मिला था, उस घटना को 2 दशक से भी अधिक समय बीत भी चुका है। फिर भी अगर 2014 के चुनाव के परिणामस्वरूप यदि त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आती है तो तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। एक बात यह भी है कि हाल के विधानसभा चुनावों में दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) ने सरकार बना कर जहां प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को एक तरफ धकेला है, वहीं तीसरे मोर्चे के लिए स्थान भी सृजित कर दिया है। ऐसे में तीसरे मोर्चे यानि थर्ड फ्रंट को नई जोश और नई उम्मीद भी मिली है। इसलिए इस मोर्चे को लेकर चहलकदमी बढ़ गई है। बहरहाल वर्तमान स्थिति यह है कि थर्ड फ्रंट में 11 दल साथ आए। इनमें चारों वाम दल, सपा, जदयू, अन्नाद्रमुक, बीजद, अगप, झारखंड विकास मोर्चा, जनता दल (एस) शामिल हैं। मौजूदा लोकसभा में इनकी कुल ताकत 92 सीटों की है। 
    
लेकिन यह भी सच है कि  केंद्र में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बगैर स्थिर सरकार बनाने की क्षेत्रीय दलों की तमाम प्रयासों के बावजूद भी महत्वकांक्षा अब तक पूरी नहीं हो पाई है ऐसे में वह समय—समय पर हुंकार भरते भी हैं। यहां यह समझना होगा कि जब—जब तीसरे मोर्चे ने हुंकार भरी है उसके पीछे कांग्रेस की मंशा या समर्थन रहा है। अगर अतीत को टटोलें तो यह मालूम होता है कि इनकी हुंकार में कांग्रेस की आवाज साफ दिखाई देती है। तीसरे मोर्चे की क्षेत्रीय पार्टियों की ये कोशिशें 1977, 1989 और 1996 में छोटी अवधि के लिए सफल रही थीं,  लेकिन इसमें भी सत्ता के शीर्ष पर उस दौर के पूर्व कांग्रेसी नेता ही रहे थे। मोरारजी देसाई 1977 में जनता पार्टी सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे, इसके बाद चरण सिंह प्रधानमंत्री बने और दोनों ही पूर्व कांग्रेसी नेता थे। 1989 में वीपी सिंह जनता दल के पहले और चंद्रशेखर दूसरे प्रधानमंत्री बने और दोनों ही पूर्व कांग्रेसी नेता थे। सही मायने में एच.डी.देवेगौड़ा पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, लेकिन एक बात यह भी है कि  जब 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी थी, उस वक्त भाजपा (161+26) 13 दिन की ही सरकार बना सकी और कांग्रेस (140) ने कोई कोशिश ही नहीं की। ऐसे में जनता दल, सपा, टीडीपी के नेशनल फ्रंट (79) और लेफ्ट फ्रंट (52) ने अन्य दलों के साथ मिलकर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। लेकिन उनके बाद जल्द ही पूर्व कांग्रेसी आई.के.गुजराल ने एक बार फिर पद संभाल लिया। मतलब साफ है कि अब तक थर्ड फ्रंट अगर सत्ता तक पहुंची है तो अधिकांश बार कांग्रेसी चेहरे ने ही देश के प्रधान बनने का सुख पाया है।
   
अगर अतीत की बात को छोड़कर वर्तमान के आईने में देखें तो यह समझना होगा कि मौजूदा क्षेत्रीय दलों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के अलावा कोई भी ऐसा दल नहीं है, जिसके प्रमुख पूर्व कांग्रेसी हैं। लेकिन इन दलों की भूमिका तीसरे मोर्चे की सरकार में कम ही लगती है। क्योंकि  सभी गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा पार्टियां तीसरे मोर्चे में  शामिल नहीं होंगी, कुछ पाटियां एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहातीं। उदाहरण के तौर पर तृणमूल कांग्रेस किसी भी स्थिति में वामपंथियों के साथ चलने को तैयार नहीं जबकि द्रमुक और अन्नाद्रमुक हमसफर नहीं हो सकतीं। इसी तरह सपा और बसपा एक दूसरे को राजनीतिक दुश्मन मानते हैं। यानि की जहां एक रहेगा वहां दूसरा नहीं। यहां एक मुहावरा सटीक बैठ सकता है — 'एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकते हैं।'ऐसे में तीसरा मोर्चा कमजोर ही होगा। लेकिन यह भी है कि राजनीति में सब कुछ संभव है।
   
एक स्याहा सच यह भी है कि  एआईएडीएमके की जयललिता और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह जैसे क्षेत्रीय नेताओं का स्वभाव अस्थिर है जो कि प्रस्तावित मोर्चे को साथ लाने में मुश्किलें पैदा करेगा। तीसरे मोर्चे पर फैसला होने से पहले ही एआईएडीएमके के लोग जयललिता का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए लेने लगे थे, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खुद को पेश करते आए हैं। उनका यह तर्क है कि जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वह क्यों नहीं। अगर मुलायम सिंह के उस बयान पर गौर किया जाए जिसमें उन्होंने  चुनाव बाद तीसरे मोर्चे के गठन का जिक्र किया है, तो उसमें से एक बात निकल कर सामने आती है- जिसमें मुलायम सिंह यह सोचते हैं कि अगर कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तो वह फिर से अपने पुराने साथी यानि कांग्रेस के साथ चले जाएंगे और अगर नहीं आई तो तीसरे मोर्चे का विकल्प खुला है। यानि वो दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं। 

इन क्षेत्रीय दलों के नेताओं की सबसे बड़ी समस्या है कि सभी के अपने अहंकार और स्वार्थ हैं और ये इन दोनों चीजों से कोई समझौता नहीं करना चाहेंगे। जब प्रधानमंत्री के चुनावों का मौका आएगा तो यह समस्या विकराल रूप से उनके सामने खड़ी होगी। ऐसे में उन्हें अपने अहम को काबू में रखना होगा। अगर उनकी सरकार बन भी जाती है तो इसको चलाना भी समस्या बन जाएगा क्योंकि सभी क्षेत्रीय दिग्गज पहले की भांति अलग-अलग दिशाओं में इसे खींचेंगे और अपने-अपने समर्थन का भारी मोल मांगेंगे। अगर चुनाव बाद तीसरे मोर्च का स्वरूप बढ़ता भी है तो उसमें एनसीपी, नेशनल कांन्फ्रेंस जैसी पार्टियों का विलय हो सकता हैं, जिसके प्रमुख पहले से ही प्रधामनंत्री बनने का सपना संजोए बैठे हैं। यानि इस मोर्चे में आने वाले नए चेहरे भी प्रधानमंत्री बनने के सपने लेकर ही आएंगे। ऐसे में इस मोर्चे में इस पद के लिए नुरा—कुश्ती होनी तय है। अतीत का अनुभव बताता है कि कोई भी मोर्चा कांग्रेस या भाजपा के बाहरी समर्थन के बिना सरकार नहीं बना पाया। 

एक बात यह भी है कि  तीसरे मोर्चे में जाने की सबकी अपनी मजबूरी है। मसलन, जहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं लेकिन राजग से अलग होने के फलस्वरूप उनकी पार्टी काफी कमजोर हो गई है। बिहार में स्थिति यह है कि वहां की जनता अब नीतिश को लालू यादव के नक्शेकदम पर चलते हुए देख रही है। उच्च जाति के लोग नीतिश सरकार से  निराश हैं। नीतिश कुमार के आशा के विपरीत उच्च जातियां अभी भी भाजपा के साथ डटी हुई हैं। कांग्रेस-राजद-लोजपा का गठबंधन भी उनके लिए कड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है। ऐसे में खुद को कोने में धकेल दिया गया महसूस करते हुए नीतिश  ने फिर से तीसरे मोर्चे में जाना जरूरी हो गया था। वहीं मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उत्तर प्रदेश में खुद को फिसलन भरी स्थिति में पा रहे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के लिए भी इस नाव पर बैठना जरूरी था। क्योंकि यह सच है कि यूपी में जनता अखिलेश सरकार की बेवकूफियों से परेशान है। वहीं बंगाल सहित पूरे देश में वामपंथ सुसुप्त अवस्था में है। उसकी हर चाल उसी पर भारी पड़ रही है। अब वामपंथ को अपने अस्तित्व को बचाने का खतरा है। ऐसे में उनके लिए भी एक ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत थी जिसपर खड़ा होकर वह एक बार फिर अपनी राजनीति को संवार सकें। जिन स्थानीय क्षत्रपों की लोकसभा चुनाव में बेहतर संभावनाएं बताई जा रही हैं, उनमें सिर्फ जयललिता ही इस प्रस्तावित तीसरे मोर्चे में हैं। लेकिन चुनाव के बाद भाजपा के नेतृत्व वाला राजग अगर केंद्र में सरकार बनाने की स्थिति में होता है, तो अम्मा उसके साथ नहीं होंगी, इसकी भी गारंटी नहीं है?

यह ठीक है कि इस मोर्चे में शामिल होने वाले दलों के बीच कोई बड़ी प्रतिस्पर्धा नहीं है। इसके बावजूद इस जमावड़े के प्रति निश्चय के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता! अभी न तो इसका स्वरूप तय है और न ही इन दलों की प्रतिबद्धता के बारे में ठोक-बजाकर कुछ कहा जा सकता है। मसलन, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह केंद्र में सरकार बनाने का संकेत तो देते रहे हैं, लेकिन अगले चुनाव के बाद वह कांग्रेस को समर्थन नहीं करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसी तरह नीतीश कुमार कांग्रेस से धोखा खाने के बाद मजबूरी में ही इस मोर्चे में आए हैं और भाजपा से अलग होने के बाद लोकसभा चुनाव में उनके लिए भी कठिन चुनौती होगी। बीजद, रालोद और जनता दल जैसी पार्टियों से बड़ी भूमिका निभाने की बहुत उम्मीद नहीं है। हां यह जरूर है कि वाम दल के प्रतिबद्धता के बारे में निश्चय के साथ कहा जा सकता है। लेकिन हाशिये पर रह गए कम्युनिस्ट लोकसभा चुनाव में ऐसा क्या कर लेंगे, जिससे वे दूसरे समानधर्मा दलों को अपने साथ जोड़ सकें? 
बहरहाल जो भी हो, फिर भी हमारी शुभकामनाएं इस नए 'तीसरे मोर्चे'के साथ जरूर रहेगी।



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---दीपक कुमार---
संपर्क : 09555403291
ईमेल- deepak841226@gmail.com
लेखक हिन्दुस्थान समाचार से जुड़े हैं।






चीन की तरफ से कोई घुसपैठ नहीं : एंटनी

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a k antony
रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने बुधवार को कहा कि भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कोई घुसपैठ नहीं हुई है और सीमा को लेकर दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलील है। एंटनी ने राज्यसभा को बताया, "भारत-चीन के बीच सीमा/एलएसी पर कोई घुसपैठ नहीं हुई है। दोनों पक्षों के बीच एलएसी को लेकर अपनी-अपनी मान्यताओं के कारण दोनों ही पक्ष अपनी मान्यता के भूविस्तार तक गश्ती करते हैं।"

उन्होंने कहा, "एलएसी पर चीन की तरफ से अतिक्रमण की खास घटनाओं को सीमा सुरक्षाकर्मियों की बैठकों, फ्लैग मीटिंग, संपर्क पर कार्यशील प्रणाली, और भारत-चीन सीमा मामला पर समन्वय व कूटनीतिक चैनलों जैसे उपायों के जरिए उठाया जाता है।"भारत और चीन के बीच एलएसी ही प्रभावी सीमा है। देश से लगी 4,056 किलोमीटर लंबी सीमा पर पांच राज्य स्थित हैं। ये राज्य हैं जम्मू एवं कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम।

रेल टैरिफ प्राधिकरण की होगी स्थापना

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mallikarjun kharge
सरकार को किराया और मालभाड़ा निर्धारित करने के संबंध में सलाह देने के लिए एक स्वतंत्र रेल टैरिफ प्राधिकरण की स्थापना की जा रही है। अब दरों का निर्धारण करना पर्दे के पीछे का कार्य नहीं होगा जहां उपयोगकर्ता गुप्त रूप से ही पता लगा सकते थे कि दूसरी ओर क्या हो रहा है। रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को पेश अंतरिम रेल बजट में यह बात कही है। रेल टैरिफ प्राधिकरण रेलवे की आवश्यकताओं पर ही विचार नहीं करेगा, बल्कि एक पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से सभी हितधारकों को भी शामिल करके एक नई कीमत निर्धारण व्यवस्था आरंभ करेगा। 

इससे किराया और मालभाड़ा अनुपात को बेहतर बनाने के लिए किराए और माल संरचनाओं को युक्तिसंगत बनाने का दौर आरंभ होगा और धीरे-धीरे विभिन्न क्षेत्रों के बीच क्रॉस सब्सिडाइजेशन को कम किया जा सकेगा। उम्मीद है कि इससे रेलवे की वित्तीय स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी और राजस्व प्रवाह की अस्थिरता कम करके स्थिरता लाई जा सकेगी।

सांसद ने लोकसभा में निकाला चाकू, कालीमिर्च का स्प्रे छिड़का

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आज लोकसभा में जो हुआ उसने पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया है। तेलंगाना बिल के विरोध में कांग्रेस और टीडीपी के दो सांसदों की करतूत ने लोकतंत्र का सिर शर्म से झुका दिया है। तेलंगाना विरोध के चलते कांग्रेस से निकाले जा चुके सांसद एल राजगोपाल ने बिल पेश होते ही आसपास खड़े सांसदों पर कालीमिर्च का स्प्रे छिड़क दिया। एल राजगोपाल विजयवाड़ा से सांसद हैं। स्प्रे की चपेट में आने से कई सांसदों की तबीयत बिगड़ गई, जिन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

लोकतंत्र का काला दिन यहीं नहीं खत्म हुआ, टीडीपी के सांसद वेणुगोपाल रेड्डी पर एक सांसद ने चाकू निकाने के भी आरोप लगाया है। लोकसभा में आज तेलंगाना बिल के विरोध के नाम पर लोकसभा में जमकर बवाल हुआ। सांसदों ने बिल की कॉपियां फाड़ दी। स्पीकर का माइक तोड़ने की कोशिश की गई इतना ही नहीं सांसदों ने लोकसभा की कई मेजें और शीशे भी तोड़ दिए। संसद के इतिहास में ऐसी शर्मनाक घटना पहले कभी नहीं हुई थी। तमाम दलों को नेता एक सुर में आज घटने वाली घटना का विरोध कर रहे हैं।

तेलंगाना बिल को लेकर ऐसा बवाल मचा है कि सांसद सभी मर्यादाओं को भूल गए हैं। संसद के बाहर भी तेलंगाना समर्थक और विरोधी सांसदों के बीच झड़प हो गई। इस बीच सरकार ने तेलंगाना बिल को लोकसभा में पेश कर दिया है। गृह मंत्री शिंदे ने ये बिल पेश किया। इस दौरान लोकसभा में धक्का मुक्की और हाथापाई भी हुई जिसमें स्पीकर का माईक भी टूट गया। आज लोकसभा में जो आज हुआ वो पहले कभी नहीं हुआ था लोकसभा में अफरातफरी मच गई।

तेलंगाना का मामला केंद्र सरकार के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। सदन के अंदर और बाहर दोनों की जगह यूपीए सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार किसी भी हाल में इस बिल को पास कराना चाहती है।

गंगा की निर्मलता के मुद्दे पर पदयात्रा करेंगी उमा

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता उमा भारती ने आम चुनाव से पहले गंगा की अविरलता और निर्मलता के मुददे को और धार देने का फैसला कर लिया है। गंगा में डाली जा रही गंदगी के मुद्दे को लेकर एक वर्ष पूर्व राज्य सरकार को चेतावनी देने वाली उमा अब इस लड़ाई में सीधे तौर पर उतरने का मन बना चुकी हैं। अपनी इसी रणनीति के तहत उमा शुक्रवार से कानपुर में दो दिनों तक डेरा डालेंगी। इस दौरान वह गंगा प्रदूषण को लेकर पदयात्रा पर निकलेंगी और लोगों से मुलाकात कर गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने का अनुरोध करेंगी।

उमा की पदयात्रा 14 और 15 फरवरी को होगी जबकि वह 16 फरवरी को उन्नाव के शुक्लागंज में आयोजित एक जनसभा में शामिल होंगी। इस जनसभा को लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी संबोधित करेंगी। इससे पूर्व उमा ने वर्ष 2013 में गंगा किनारे धरना देकर प्रदेश सरकार को गंगा में गिर रही गंदगी को लेकर चेतावनी भी दी थी। तब उन्होंने कहा था कि कानपुर में गंगा प्रदूषण की पैकेजिंग होती है। अगर यहां से गंगा नदी में गिर रही गंदगी का इलाज नहीं किया गया तो वह कानपुर की गलियों में पदयात्रा पर निकलेंगी। इसी रणनीति के तहत अब वह गंगा के मुद्दे को धार देने में जुटेंगी।

जानकारी के मुताबिक उमा गुरुवार रात को ही कानपुर पहुंच जाएंगी और अगले दिन वह गंगा किनारे बनी बस्तियों में लोगों से मुलाकात करेंगी। 15 फरवरी को वह बिरहाना रोड, नयांगज और घंटाघर में पदयात्रा पर निकलेंगी और अंत में वह घंटाघर में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करेंगी। कानपुर भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र मैथानी के मुताबिक उमा गंगा का फायदा उठाने वालों और टेनरियों में काम करने वालों कामगारों से मिलंेगी, इसके पश्चात वह शहर के बड़े-बड़े कारोबारियों से मिलकर गंगा को प्रदूषण से मुक्त रखने के संदर्भ में बातचीत करेंगी।

अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल ने की मोदी से मुलाकात

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powell meet modi
अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल ने गुरुवार को गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से गांधीनगर में मुलाकात की। अमेरिकी राजदूत और मोदी की बैठक ने अमेरिका के रवैये में बदलाव के संकेत दिए हैं। गौरतलब है कि अमेरिका ने 2002 के गुजरात दंगा को देखते हुए 2005 में मोदी को वीजा देने से इंकार कर दिया था। पॉवेल और उनके सहयोगी ने मोदी से मुलाकात की। मोदी ने पॉवेल को गुलाब का गुलदस्ता भेंट किया।

इस बैठक का आयोजन विदेश मंत्रालय ने किया था, जिससे कुछ दिनों पहले इस बैठक के प्रबंध के संबंध में निवेदन किया गया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि अमेरिकी दूतावास ने कुछ समय पहले मोदी से मुलाकात आयोजित करने का निवेदन कुछ समय पहले किया था और मंत्रालय ने इसकी व्यवस्था की। 

अमेरिका ने मोदी का वीजा 2005 में उस कानून के अंतर्गत रद्द कर दिया था, जिसमें धार्मिक आजादी के गंभीर उल्लंघन के लिए जिम्मेदार विदेशी राजनेताओं को अमेरिका में प्रवेश की इजाजत नहीं देने की बात है। मोदी के राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरने के बाद से अमेरिका के व्यवसायियों की लॉबी उनके संपर्क में आई है। तीन रिपब्लिकन सांसद और अमेरिका के व्यवसायियों के प्रतिनिधि मंडल ने पिछले साल अहमदाबाद में उनसे मुलाकात की थी। इस बैठक में अमेरिका के वरिष्ठ राजनयिक ने भी हिस्सा लिया था। 

मोदी को वीजा देने के मामले में अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि भाजपा नेता वीजा के लिए आवेदन दे सकते हैं और उन्हें अन्य आवेदकों की तरह इंतजार करना होगा।  अमेरिका और भारत के व्यापारिक संबंध 100 अरब डॉलर तक पहुंच गए हैं। अमेरिका ने भी संकेत दिए हैं कि वह भारत में आगामी चुनाव के बाद बने किसी भी सरकार के साथ काम करने के लिए तैयार है। 

जल्द ही इस्तीफा देंगे केजरीवाल : शकील अहमद

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shakil ahmad
कांग्रेस के महासचिव शकील अहमद ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जल्द ही इस्तीफा देंगे। शकील ने माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखा, "लोगों का कहना है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन के बावजूद भी आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार जल्द ही अल्पमत में आ जाएगी, क्योंकि आप के कुछ विधायक विद्रोह कर रहे हैं और इस बात को छुपाने के लिए केजरीवाल जल्द ही इस्तीफा दे देंगे।"


लक्ष्मी नगर से आप के विधायक विनोद कुमार बिन्नी को पहले ही पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। बिन्नी ने अपनी ही पार्टी की सरकार पर चुनावी वादे पूरे नहीं करने का आरोप लगाया था। 

दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को पेश नहीं होगा जन लोकपाल विधेयक

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CM Kejriwal
आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने गुरुवार को जन लोकपाल विधेयक विधानसभा में पेश नहीं करने का फैसला किया है। एक सूत्र ने यह जानकारी दी। आप के एक सूत्र ने बताया, "विधेयक आज (गुरुवार) सदन में पेश नहीं किया जाएगा। विधेयक सभी विधायकों को बांटा जा चुका है, ताकि वे व्यक्तिगत रूप से इस पर गौर कर सकें।" आप की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने विधेयक का विरोध किया है, क्योंकि आप सरकार ने विधेयक को सदन में पेश करने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी नहीं ली है। 

केजरीवाल ने सरकार द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक को पारित न करा पाने की स्थिति में इस्तीफे की धमकी दी है। केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा बुधवार रात जारी इस बयान के बावजूद कि "जन लोकपाल विधेयक को सदन में पेश करने से पहले केंद्र सरकार की सहमति अनिवार्य है"आप सरकार विधेयक को सदन में पेश करने के फैसले पर अडिग है।

भारी उत्पात और अफरातफरी के बीच पेश हुआ तेलंगाना विधेयक

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कुछ सदस्यों द्वारा सदन में स्प्रे छिड़के जाने और माइक आदि तोड़े जाने की अभूतपूर्व अफरातफरी की घटनाओं और हंगामे के बीच लोकसभा में गुरुवार को विवादास्पद आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2014 पेश कर दिया गया।

एक बार के स्थगन के बाद 12 बजे सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही तेलंगाना विरोधी सांसदों ने लोकसभा में भारी उत्पात मचाना शुरू कर दिया। अध्यक्ष मीरा कुमार अभी आसन पर बैठ भी नहीं पायी थीं कि तेदेपा के वेणुगोपाल रेड्डी ने लोकसभा महासचिव की कुर्सी पर चढ़कर अध्यक्ष की मेज पर रखे तेलंगाना विधेयक और अन्य कागजात को छीनना शुरू कर दिया और महासचिव के माइक को खींचकर तोड़ डाला। कुछ सदस्य उन्हें ऐसा करने से रोक ही रहे थे कि कांग्रेस के एल राजगोपाल ने पेपरवेट उठाकर रिपोर्टर की मेज पर रखे एक बक्से को तोड़ डाला जिससे जोर का धमाका हुआ और उसके बाद में अपनी जेब से कोई स्प्रे निकालकर चारों ओर छिड़कने लगे।

स्प्रे छिड़कने से सदन में और दर्शक एवं पत्रकार दीर्घाओं में बैठे सभी लोगों की आंखों में जलन होने लगी और खांसी आने लगी। इससे कुछ सदस्य काफी असहज महसूस करने लगे जिसके बाद सदन में संसद के डॉक्टर को बुलाना पड़ा। कुछ सदस्यों को उपचार के लिए एम्बुलेंस से राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया।
भारी उत्पात और अफरातफरी में तेलंगाना विधेयक कब पेश हुआ, इसका पता ही नहीं चला और बाद में कानून मंत्री कपिल सिब्बल और संसदीय कार्य मंत्री कमनाथ ने बताया कि विधेयक पेश कर दिया गया है।

कांग्रेस 2009 में चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं देगी

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जिन कांग्रेसियों ने 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था, उनके लिए बुरी खबर. पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के टिकटों की चाहत रखने वालों के लिए नए नियम बनाए हैं. सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने निर्देश दिया है कि 2009 में जो लोग पार्टी टिकट पर एक लाख वोटों के अंतर से हारे थे, उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा. इतना ही नहीं वे नेता जो दो बार लगातार चुनाव हार चुके हैं, कांग्रेस के उम्मीदवार नहीं बनाए जाएंगे.

राहुल गांधी चाहते हैं कि इस महीने के मध्य तक कम से कम 200 उम्मीदवारों की घोषणा हो. लेकिन इसकी प्रक्रिया में काफी देरी हो रही है जिससे वे नाराज हैं. उन्होंने कहा है कि इस काम को जल्दी किया जाए. विभिन्न राज्यों की स्क्रीनिंग कमिटियों ने पिछले दो हफ्तों में कई बैठकें की हैं. लेकिन सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली सेंट्रल इलेक्शन कमिटी (सीईसी) ने कोई बैठक नहीं की है. उसकी बैठक गुरुवार को होने की संभावना है. बताया जाता है कि पार्टी के सांसदों की व्यस्तता तथा तेलांगना मुद्दे के कारण बैठक एक फरवरी से नहीं हो पा रही है.

पार्टी सूत्रों ने बताया कि जहां-जहां पार्टी कमज़ोर रही है और उनके उम्मीदवार नहीं जीते हैं, उन्हें वरीयता दी जाएगी. वहां के उम्मीदवारों के नाम सबसे पहले घोषित किए जाएंगे ताकि उम्मीदवार को काफी वक्त मिल जाए. इसके बाद ही अन्य सीटों का फैसला हो. पार्टी चाहती है कि चुनाव आयोग की चुनावी घोषणा के पहले अधिक से अधिक उम्मीदवारों के नाम घोषित हो जाएं. लोकसभा चुनाव अप्रैल या मई में होंगे. राहुल गांधी यह भी चाहते हैं कि लोकसभा सीटों पर खड़े किए जाने वाले उम्मीदवारों के बारे में निष्पक्ष राय उन्हें मिले.

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी करेंगे विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन

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बाइसवां विश्व पुस्तक मेला 15 फरवरी से राजधानी में शुरू हो रहा है और इसका उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी करेंगे। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा हर साल आयोजित पुस्तक मेले में इस बार पौलैंड को अतिथि देश बनाया गया है।

मेले के मुख्य अतिथि अंग्रेजी के मशहूर लेखक रस्किन बांड होंगे। इसके अलावा मशहूर फिल्म अभिनेत्री करिश्मा कपूर, दीप्ति नवल और टिस्का चोपड़ा जैसे कलाकार भी मेले में आयेंगे। नौ दिन तक चलने वाले मेले में दिवंगत फिल्म अभिनेता फरुख शेख को विशेष श्रद्धांजलि भी दी जाएगी तथा उनकी स्मृति में एक कार्यक्रम भी होगा। करिश्मा कपूर 22 फरवरी को मेले में आयेंगी।
  
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष ए. सेतुमाधवन और निदेशक डा.एम ए सिंकदर ने संयुक्‍त संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मेले में पौलैंड का 25 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी भाग लेगा। इनमें पोलैंड के दो मंत्री भी होंगे। उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति और मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री जितिन प्रसाद के अलावा टस्किन बांड और पोलैंड के दोनों मंत्री भी उपस्थित रहेंगे। उन्होंने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्री 17 फरवरी को ऑनलाइन कापीराइट की सुविधा तथा कापीराइट का नया प्रतीक चिन्ह, लोगो एवं एवं बेवसाइट भी लांच करेंगे। इसके अलावा स्वर्गीय विवेकानंद पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित पुस्तक का भी वह लोकार्पण करेंगे।

संसद में सुरक्षा के कड़े इंतजाम

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लोकसभा में तेलंगाना विधेयक मंगलवार को फिर पेश किये जाने की सरकार की तैयारी के मद्देनजर संसद भवन परिसर एवं उसके आसपास अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किये गये। संसद भवन की ओर जाने वाली सड़कों पर जगह-जगह बैरीकेड लगाये गये और बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। जंतर-मंतर पर तेलंगाना के खिलाफ वाईएसआर कांग्रेस का धरना चल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग आए हैं।

संसद भवन परिसर के अंदर मुख्य द्वार के आस-पास संसद सुरक्षादल के सैकड़ों जवान तैनात किये गये हैं। संसद में किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए कई एम्बुलैंस तैनात की गई हैं। सुरक्षाकर्मी पत्रकारों पर भी नजर रखे हुए हैं। कुछ जगहों पर पत्रकार टोकाटाकी से परेशान होकर सुरक्षाकर्मियों से उलझते भी देखे गये। प्रेस दीर्घा में जाने से पहले तलाशी लेने की नई परंपरा से भी पत्रकार परेशान दिखे। उन्होंने संसद के अधिकारियों से इसके प्रति विरोध भी जताया।

कांग्रेस पहले धूल झोंकती थी, अब मिर्च झोंक रही है : नरेंद्र मोदी

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बीजेपी पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कर्नाटक के दावणगेरे में आयोजित बीजेपी की रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर सीधा हमला बोला। ​जिन बीएस येदियुरप्पा की सरकार करप्शन के आरोपों की वजह से गिरी थी, उन्हीं को बगल में बिठाकर नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के करप्शन पर जमकर हमला बोला।

मोदी अपने भाषण के शुरुआत से लेकर आखिर तक सोनिया और राहुल को निशाने पर लिए रहे। उन्होंने पिछले दिनों संसद में कांग्रेस सांसद के पेपर स्प्रे की घटना का जिक्र करते हुए तंज कसा कि कांग्रेस पहले आंखों में धूल झोंकती थी, अब मिर्च झोंक रही है। मोदी ने तेलंगाना को लेकर भी कांग्रेस पर वार किया और कहा कि उसे सीमांध्र के लोगों के दुख-दर्द की कोई परवाह नहीं है। मोदी के साथ मंच पर येदयुरप्पा भी मौजूद थे।

कांग्रेस ने देश की आंखों में झोंकी मिर्चः मोदी ने पिछले दिनों लोकसभा में पेपर स्प्रे छिड़कने की घटना का जिक्र करते हुए कहा, 'देश की आंख में धूल झोंकने का काम तो पहले कांग्रेस करती ही थी, अब आंखों में 'मिर्ची'डालने का भी काम कर रही है। लोकतंत्र के मंदिर में इस तरह से जन-प्रतिनिधियों की आंखों में मिर्ची फेंकी जाए और कांग्रेस अपनी राजनीति चमकाती रहे, यह शर्मनाक है।'

 मोदी ने कहा कि कांग्रेस के अंदर इतना अहंकार है कि उसके पास सीमांध्र के लोगों की पीड़ा समझने का वक्त नहीं है। उन्होंने कहा, 'दो दिन पहले कांग्रेस के महानुभाव आपके कर्नाटक में आए थे, कांग्रेस अध्यक्ष भी दक्षिण में थीं। मैं हैरान हूं कि मैडम सोनिया और राहुल जी दक्षिण तो जा रहे हैं, लेकिन आंध्र प्रदेश जाने की फुर्सत नहीं हैं। आज सीमांध्र और तेलंगाना के भाइयों-बहनों को मरहम की जरूरत है। कांग्रेस ने इन्हें घाव लगाए हैं, लेकिन मरहम के दो शब्द कहने के लिए उसके पास वक्त नहीं है। सीमांध्र के लोगों की मांगों और चुनौतियों पर कुछ तो कहना चाहिए, लेकिन कांग्रेस को सत्ता का नशा इतना है कि उनको लोगों के दुख-दर्द की कोई परवाह नहीं है।'

 मोदी ने राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा, 'आप वंशवाद में पले हैं, हम राष्ट्रवाद में पले हैं। आप सोचते हैं कि सत्ता कैसे बचाएं और हम सोचते हैं कि देश कैसे बचाएं। अब देश आपकी बातों को समझ चुका है और आपसे मुक्ति चाहता है।'मोदी ने कहा कि अपनी कर्नाटक रैली में राहुल ने विपक्षी नेताओं पर झूठे आरोप लगाए। उन्होंने कहा, 'आप बस विपक्ष के नेताओं पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। कर्नाटक में आप भाषण करके गए हो, जनता को जवाब दीजिए कि अकेले राजस्थान में आपकी पार्टी के कितने नेता जेल में है? यह भी बताओ किस पाप के कारण वे जेल में हैं? हरियाणा में आपका मंत्री किस पाप के लिए जेल में बंद है? बातों का कारोबार बंद कीजिए। आप तो जवाब देने के लिए तैयार ही नहीं हैं।'

मोदी ने कांग्रेस पर करप्शन को लेकर भी वार किया। उन्होंने कांग्रेस और करप्शन को सगी बहनें बताते हुए कहा, 'जब महानुभाव के पिता जी देश के पीएम थे, उस वक्त पूरे देश में ऊपर से लेकर नीचे तक कांग्रेस का ही राज था। पंचायत, नगरपालिका, महानगर पालिका, राज्य और केंद्र तक में कांग्रेस थी। भारतीय जनता पार्टी का नामोनिशान तक नहीं था। हम तो किसी कोने में पड़े हुए थे। तब आपके पिता जी ने कहा था कि दिल्ली से एक रुपया निकलता है और गांव तक जाते-जाते 15 पैसे हो जाता है। देश जानना चाहता है कि वह कौन सा पंजा था जो रुपये को घिसकर 15 पैसे का बना देता था?'

 मोदी ने आगे कहा, 'कांग्रेस नेता कहते हैं कि गरीबी मानसिक अवस्था है, हमारी सोच अलग है। गरीब हमारे लिए दरिद्र नारायण हैं। इसकी सेवा ईश्वर के सेवा के बराबर है हमारे लिए। आपकी सोच और हमारी सोच में फर्क है। आप चाहते हैं कि समाज को तोड़ो और राज करो। हमारी सोच है अलग है। हम सोचते हैं कि समाज को जोड़ो और विकास करो।

नदियों को जोड़ने की वकालतः मोदी ने अपने भाषण में एक बार फिर नदियों को जोड़ने की योजना की वकालत की। उन्होंने कहा,'हम नदियों को जोड़ेगे। इससे बाढ़ भी नहीं आती और सूखा भी नहीं पड़ता। पानी का सही उपयोग पूरे देश को हरा-भरा बना सकता है। यह संभव है, हमने गुजरात में करके दिखाया है। आपने अहमदाबाद में देखा होगा कि साबरमती नदी पानी से भरी है। इस नदी में नर्मदा का पानी है। हमने दोनों को जोड़ा है और साबरमती को जिंदा किया है। यह काम पूरे भारत में हो सकता है'
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