हरीश रावत ने अपने मन की बात बताने के बजाय लोगों के मन की बात सुनी
- 65 से ज्यादा लोगों का फोन घुमाकर लिया फीडबैक
देहरादून, 28 जून। उधर दिल्ली में प्रधानमंत्री जब मन की बात कर रहे थे तो इधर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत राज्य के दूर-दराज के लोगों को फोन घुमाकर उनकी समस्याओं से रूबरू हो रहे थे। बीते दिन ही मुख्यमंत्री हरीश रावत ने घोषणा की थी कि वे अब राज्यवासियों से खुद व सीधे उनकी मन की बात सुनेंगे। जिसमें में सफल भी हुए हैं। रविवार को उन्होने राज्य के लगभग सभी जनपदों के 65 से ज्यादा लोगों से बात की। मुख्यमंत्री हरीश रावत प्रदेश के प्रत्येक जनपद के 5-5 लोगों को रेंडम आधार पर फोन किया। बहुत से लोगों ने अपनी व्यक्तिगत तो बहुत से लोगों ने अपने क्षेत्र की समस्याओं के बारे में जानकारी दी। अनेक लोग राज्य सरकार की कार्यप्रणाली से संतुष्ट थे तो कई लोगों ने राज्य सरकार से अपनी अपेक्षाएं भी बताईं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने अपने मन की बात लोगों को बताने की बजाय प्रदेश के लोगों के मन की बात जानने को प्राथमिकता दी है। वर्ष 2013 की आपदा से प्रभावित लोगों के ऋणों पर ब्याज की माफी के लिए केंद्रीय विŸा मंत्री को लिखे पत्र के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि आपद प्रभावितों की राज्य सरकार अपने संसाधनों से जितनी सहायता कर सकती थी, की गई है। अब केन्दीय वित्त मंत्री से अनुरोध किया है कि भारत सरकार उत्तराखण्ड के आपदाग्रस्त जिलों (जनपद रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर एवं पिथारौगढ़) के लोगों के पर्यटन व्यवसाय, भवन, होटल भवन, दुकान, कृषि भूमि व फसलों की व्यापक हानि से प्रभावित व्यक्तियों को इनके बैंक ऋण पर लग रहे ब्याज की अगले 3 वित्तीय वर्षों क्रमशः 2013-14, 2014-15 एवं 2015-16 हेतु माफी दिए जाने की स्वीकृति प्रदान करने का कष्ट करंे, ताकि आपदा प्रभावित लोग अपने कार्यो व व्यवसाय की पुनःस्थापना कर मूल ऋण को लौटाने में सक्षम हो सके। स्मार्ट सिटी व अमृत शहर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि स्मार्ट सिटी के तौर पर देहरादून का चयन होना है। हमने अमृत शहर के तहत पर्वतीय क्षेत्रों के लिए मानकों में शिथिलीकरण का केंद्र सरकार से अनुरोध किया था, परंतु केंद्र ने सभी राज्यों लिए समान मानक रखे हैं। इससे उŸाराखण्ड जैसे राज्यों को अधिक लाभ नहीं होगा। चारधाम यात्रा पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने यात्रा को नियमित किया है। कहीं भी यात्री फंसे नहीं हैं और न ही चारधाम यात्रा रूकी है। राज्य सरकार ने यात्रियों की सुविधाओं के लिए सारी पुख्ता व्यवस्थाएं कर रखी हैं। भारी बरसात के कारण सभी यात्रियों को आवश्यकतानुसार सुरक्षित स्थानों पर ठहराया गया। ऐसा कोई यात्री नहीं था जिससे प्रशासन के लोग सम्पर्क में नहीं थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि सोनप्रयाग से आगे केदारनाथ की पैदल यात्रा को सावधानी के तौर पर 30 जून तक रोका गया है। परंतु केदारनाथ यात्रा के लिए आए बहुत से यात्रियों ने सोनप्रयाग से आगे बढ़ने की अनुमति न दिए जाने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। इससे जाहिर होता है कि चारधाम यात्रा पर आ रहे लोगों में सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओं के प्रति किसी प्रकार की आशंका नहीं है। लोग अभी भी चारधाम यात्रा पर आ रहे हैं।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या घटाने से पहले सहमति लेंः सीएम
रविवार को बीजापुर में मीडिया से अनौपचारिक बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि दिल्ली में नीति आयोग के तहत मुख्यमंत्रियों के उपसमूह की बैठक में केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या को घटाने का निर्णय लेने से पहले सभी राज्यों की सहमति ली जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि संघीय ढांचे में इतने वर्षों में देश के समावेशी विकास के लिए जो योजनाएं केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के तौर पर प्रारम्भ की गईं उन्हें समाप्त किया जाना आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों के लिए सही नहीं है। विकास की धारा में सभी राज्यों को साथ लेकर चलना होगा। केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सहायता को बंद करने से उŸाराखण्ड जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
सीएम ने कर्मियों को दी चेतावनी, बीमारी का बहाना बना पहाड़ में नौकरी करने से किया मना तो होगी जांचः हरीश रावत
प्रदेश में कार्यरत कतिपय सरकारी कार्मिकों द्वारा पहाड़ पर अपनी सेवा देने में की जा रही आनाकानी पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गम्भीर नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ऐसी शिकायत आती रहती है कि प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती से बचने के लिए कतिपय कार्मिकों द्वारा अपनी अथवा अपने परिजनों की बीमारी का बहाना बनाकर चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जो उचित नहीं है। मुख्यमंत्री ने सुगम क्षेत्रों में तैनाती के लिए प्रस्तुत किये जाने वाले चिकित्सा प्रमाण पत्रों की सक्षम स्तर से जांच कराने के निर्देश मुख्य सचिव एन. रविशंकर को दिये हैं। उन्होंने कहा कि यदि जांच में चिकित्सा प्रमाण पत्र गलत पाए जाते हैं, तो गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने वाले कार्मिकों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही अमल में लायी जाय।
1984 बैच के यूटी कैडर के आईएएस अफसर नेगी हो सकते हैं नए मुख्य सचिव !
- मुख्यमंत्री हरीश से हो चुकी पहले दौर की बातचीत, केजरीवाल भी बनाना चाहते थे दिल्ली का सीएस
- मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के निवासी हैं रमेश, इस समय अरुणाचल प्रदेश के हैं मुख्य सचिव
देहरादून, 28 जून। अरूणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव रमेश नेगी जहां पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली के मुख्य सचिव के रूप में पहली पसंद थे लेकिन केन्द्र सरकार से तनातनी के चलते वे उन्हे अपने राज्य का मुख्य सचिव नहीं बना सके लेकिन अब वही नेगी उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की पहली पसंद बन चुके हैं और हरीश रावत व नेगी की इस बारे में एक दौर की बातचीत भी हो चुकी है ऐसा विश्वस्त सूत्रों का कहना भी है। हालांकि सूबे के नए मुख्य सचिव की तस्वीर पर छाया कुंहासा अभी पूरी तरह से छंटता नहीं दिख रहा है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सरकार किसी दूसरे प्रदेश के अफसर को भी यहां का मुख्य सचिव बना सकती है। इस रेस में अरुणचाल प्रदेश के मुख्य सचिव रमेश नेगी का नाम तेजी से उभर रहा है। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत से उनकी पहले चरण की बातचीत हो भी चुकी है। सूबे के मौजूदा मुख्य सचिव एन.रविशंकर अगले माह जुलाई में सेवा निवृत्त हो रहे हैं। पहले यह कहा जा रहा था कि सरकार उन्हें तीन माह का सेवा विस्तार देने की तैयारी में है। लेकिन इस बारे में तैयार बताया जा रहा प्रस्ताव अब तक केंद्र सरकार के पास भेजने की सूचना नहीं है। जाहिर है कि सरकार अन्य पहलुओं पर भी विचार कर रही है। सरकार के पास अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा और एस. राजू का भी विकल्प है। लेकिन इनके मामले में भी कोई सुगबुगाहट नहीं है। वैसे भी शर्मा इसी साल अक्टूबर में रिटायर होने वाले हैं। बताया जा रहा है कि सरकार शर्मा के बारे में फैसला लेने में हिचकिचा रही है। केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर तैनात उत्तराखंड कैडर के आईएएस अमरेंद्र सिन्हा और शत्रुघन सिंह यहां आने को तैयार नहीं है। ऐसे में सरकार बाहर के मुख्य सचिव लाने पर भी विचार कर रही है। बताया जा रहा है कि सरकार की निगाहें यूटी कैडर के रमेश नेगी पर भी हैं। पर्यावरण व ऊर्जा में विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के निवासी रमेश नेगी 1984 बैच के एजीएमयू (केंद्र शासित प्रदेश) कैडर के अफसर हैं और इस समय अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव पद पर काम कर रहे हैं। 2008 से 2012 तक वे दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य अधिशाषी अधिकारी के पद पर भी काम कर चुके हैं। उनकी गिनती ईमानदार और तेजतर्रार अफसरों में की जाती है। दिल्ली में तैनाती के दौरान ही उनकी मुलाकात वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से हुई थी। केजरीवाल जब दुबारा से दिल्ली के सीएम बने तो उन्होंने रमेश नेगी को वहां का मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश की। लेकिन मोदी सरकार ने उनकी मंशा पर पानी फेर दिया। बताया जा रहा है कि केंद्र में जल संसाधन मंत्री रहते हरदा की मुलाकात भी रमेश नेगी से हुई थी। हरदा अब नेगी तो उत्तराखंड लाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि दोनों के बीच पहले चरण की बातचीत हो भी चुकी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार किस अधिकारी को एन. रविशंकर उत्तराधिकारी बनाने का फैसला करती है।
ईडी की नजरों में चढ़े अचानक करोड़पति बन हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाने वाले मंत्री
- दून की जमीनों में लगाया गया बेतहाशा पैसा, चर्चित बिल्डर से ताल्लुकातों की भी होगी जांच
- एक पूर्व मंत्री भी सत्ता के वक्त बने करोड़पति
देहरादून, 28 जून। कांग्रेस सरकार में साझीदार दो मंत्री अचानक मंत्री बनते ही करोड़पति बन गए हैं। बताया जा रहा है कि मंत्री पद हासिल होने के बाद से इन राजनेताओं की कमाई कई गुना बढ़ गई है। जमीनों और हाउसिंग प्रोजेक्ट में इन मंत्रियों ने करोड़ों रुपये का इंवेस्ट किया है तो स्टोन क्रशरों में भी इनकी हिस्सेदारी बताई जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय ने इनकी गोपनीय ढंग से जांच शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि जांच के दायरे में एक पूर्व मंत्री का भी नाम है। कांग्रेस सरकार के मंत्रियों के किस्से यूं तो कई बार सामने आते रहे हैं। किसी मंत्री के अवैध खनन कारोबारी से रिश्तों को उजागर करने वाली तस्वीरें मीडिया में छाई रहती है तो किसी पर ऐसे कारोबारियों को संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है। किसी नेता की शराब कारोबारी से नजदीकी है तो कोई अपने चहेतों को रेवडियां बांटता दिख रहा है। नया मामला मंत्रियों के अचानक ही करोड़पति बनने और उनकी संपत्ति की पड़ताल प्रवर्तन निदेशालय से होने की सुगबुगाहट तेज हो रही है। बताया जा रहा है कि एक मंत्री जी 2012 में विधायक बन गए थे। पहली बार विधायक बनने वाले इन मंत्री महोदय के नसीब में काबीना मंत्री बनना लिखा था। लिहाजा सूबे के सियासी हालात कुछ ऐसे बने कि मंत्री का पद मिल भी गया। दूसरे वाले भी पहली बार विधायक बने। यह अलग बात है कि उन्हें मंत्री पद हासिल करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। एक मंत्री जी चुपचाप अंदाज में काम करने के आदी हैं तो दूसरे को सुर्खियों में रहने की आदत है। बताया जा रहा है कि इन मंत्रियों की संपत्ति में अनायास ही खासा इजापा हुआ है। एक मंत्री जी को स्टोन क्रशरों में साझीदार बताया जा रहा है तो जमीनों में भी जमकर इंवेस्ट करने की खबर है। दूसरे मंत्री जी के बिल्डरों से गहरी नजदीकियां बताई जा रही है। इन्होंने बेनामी जमीनें तो खरीदी ही है, हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में भी घुमा फिर कर पैसा लगाया है। बताया जा रहा है कि सूत्रों ने इसकी खबर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) को भी दी। अब ईडी इनका इतिहास और भूगोल खंगालने में जुटा है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि ईडी ने कुछ सरकारी महकमों से भी जानकारी मांगी है। ये महकमे सीधे तौर पर मंत्री जी के अधीन हैं। ऐसे में अफसरों को जानकारी देने में पसीने छूट रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि एक पूर्व मंत्री भी ईडी की जांच के दायरे में हैं। भाजपा सरकार के समय में अहम महकमे संभालने वाले इन नेताजी की हरिद्वार में बेइंतहा संपत्ति बताई जा रही है। ये मंत्री जी सदन में प्रश्नकाल के दौरान अचानक ही बीमार पड़ने के लेकर उस समय भी चर्चा में रहते रहे हैं। मंत्री बनने से पहले इतना इतिहास कुछ और था और पांच साल मंत्री रहने के बाद संपत्ति की भूगोल ही बदल गया है। बताया जा रहा है कि ईडी इनकी भी तहकीकात में जुटा है। बहरहाल, सियासी गलियारों में चल रही इस सुगबुगाहट की सच्चाई क्या है, यह तो आने वाले समय में ही साफ होगा। लेकिन इतना तय है कि ईडी को अगर सबूत मिल गए तो सरकार की फजीहत निश्चित है।
अब कांग्रेस विधायक सुबोध ने की मंत्रियों के नाम सार्वजनिक करने की मांग
प्रवर्तन निदेशालय के पास सूबे के दो मंत्रियों के नाम आने के मामले में कांग्रेस विधायक सुबोध उनियाल ने अपनी ही सरकार से मामले की जांच कर नाम सार्वजनिक करने की मांग की। शनिवार को ढालवाला में आयोजित प्रेस वार्ता में विधायक सुबोध उनियाल ने कहा की प्रदेश में मात्र 11 मंत्री हैं। नाम सार्वजानिक न होने तक सभी मंत्री सवाल के घेरे में रहेंगे। उन्होंने मांग कि मुख्यमंत्री जांच कर स्थिति स्पष्ट करें।
एक डाक्टर भी दायरे में !
इसी तरह से शहर के प्रतिष्ठित लोगों में शुमार एक डाक्टर महोदय भी जांच के दायरे में बताए जा रहे हैं। सरकार किसी भी दल की रहे, इन डाक्टर महोदय की सत्ता तक पकड़ बनी रहती है। सरकार के विवेकाधीन कोष से खास लोगों के उपचार के मामले में भी इनका अस्पताल सबसे आगे रहता है।
कैलास मानसरोवर महिला यात्री की मौत
देहरादून, 28 जून (निस)। रविवार को भारत-तिब्बत सीमा से डेढ़ किमी दूर चीन में भारत लौट रहा कैलास मानसरोवर के पहले दल में शामिल महिला की मौत हो गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार, रविवार को कैलास मानसरोवर यात्रा का पहल दल भारत लौट रहा था। इस दौरान भारत-तिब्बत सीमा से करीब डेढ़ किमी दूर चीन सीमा में दल में शामिल महिला बीना गुप्ता (56 वर्ष) निवासी कश्मीरी गेट, नार्थ दिल्ली की मौत हो गई। शव चीन अधिकारियों के पास है। शव को भारत लाने के लिए विदेश मंत्रालय से बात चल रही है। अभी मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया है। वहीं, दल भारत लौट आया है।
कैसे आबाद हो ख्ेात व कैसे रुके पलायन व चकबन्दी पर गोष्ठी आयोजित
पौड़ी, 28 जून (निस)। गरीब क्रान्ति अभियान के बैनर के तले विकास खण्ड स्तर पर ‘‘कैसे आबाद हो ख्ेात व कैसे रुके पलायन व चकबन्दी’’ की भूमिका को लेकर आयोजित जनजागरूकता गोष्ठी में आज प्रतिभागियों एवं वक्ताओं ने कई बहूमूल्य सुझाव दिये। मुख्य अतिथि गणेश गरीब जी उत्तराखण्ड में पलायन की त्रासदी पर बोलते हुए उन्होनें कहा कि समय रहते हुऐ यदि चकबन्दी नहीं की गयी तो उत्तराखण्ड में बाकी बचे हुऐ लोग भी पलायन करने में मजबूर हो जोयेगें उन्होने विकासखण्ड बीरोंखाल के विभिन्न ग्रामों से आये प्रधानों, क्षेत्र एंव जिला पचायत सदस्यों व समाजिक कार्यकर्ताओं का आवाहन किया कि वे जनता को चकबन्दी का सन्देष गांव गांव पहंुचाने का प्रयास करें क्योकि अन्ततः चकबन्दी क्षेत्रों में ही लागू होना है जिसके लिये जन सहभागिता अपरिहार्य है। उन्होने चकबन्दी के लाभ के बारे में सीधी और सामान्य जानकारी जनसमुदाय के बीच में रखी और कहा कि उत्तराखण्ड में अपार सम्भावनाएं हैं। लेकिन इसके लिये भूमि का एकत्रीकरण करना होगा। आजादी के बाद देश कई प्रान्तों में चकबन्दी करने से वहां कृषि उत्पादकता कई गुनी बढी और वहां सम्पन्नता आई। लोग अपनी जमीन योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने को तैयार हैं बसरते उनकी जमीन एक जगह पर हो। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ब्लाक प्रमुख बीरोंखाल ने आश्वासन दिया कि विकासखण्ड की ओर से प्रस्ताव सरकार को भेजेंगे साथ ही चकबन्दी के विचार को आगे बढाने के लिये आगे भी पूर्ण सहयोग देने को कहा। 75 वर्षीय पूर्व ब्लाक प्रमुख दयाल सिंह बिष्ट ने कहा कि एक समय ऐसा था जब लोग गरीब जी के इस अभियान का विरोध किया करते थे लेकिन आज के सन्दर्भ में उनकी बात अक्षरस उचित सिद्ध होने लगी है। उत्तराखण्ड बनने के बाद पर्वतीय क्षेत्र में सिर्फ पलायन ही हुया है खेत बन्जर व गांव खंडर हुये हैं उन्होने कहा कि बन्दरों व अन्य जंगली जानवरो के आतंक से निपटने के लिये सरकार की और से कोई पहल नहीं की जा रही है। जिससे पलायन बढ रहा है उन्हाने इस बात पर चिन्ता व्यक्त की कि इसी तरह अगर पलायन होता रहा तो जनप्रतिनिधियों की संख्या अगले परिसीमन में और घट जायेगी। उद्यान विषय के जानकार हल़्द्धानी से आये केवलानन्द तिवारी ने बागबानी पर जोर देकर कहा कि उत्तराखण्ड में बागवानी के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जा सकता है बषर्ते उनको गंभीरता से चलाया जाय आज हम हिमाचल का सेब, असम का केला व नागपुर का सन्तरा खाने को मजबूर हैं यदि हमने उद्यान के क्षेत्र में सही नीति बनाकर कार्य किया होता तो उत्तराखण्ड भारत के अनेक राज्यों में विभिन्न किस्मों के फलों की आपूर्ति करता। पूर्व प्रधानाचार्य वाचस्पति बहुखण्डी ने कहा कि स्वैछिक चकबन्दी नहीं राज्य में अनिवार्य चकबन्दी लागू होनी चहिये। सुन्द्रियाल प्रोडक्शन के मनीष सुन्दरीयाल ने कहा कि यदि हम हिमाचल की बात करते है तो हमें हिमाचल की तर्ज विकास नीतियां बनानी पडेगी। उन्होने कहा सरकार टैक्टर को तो सब्सीडी दे रही है मगर हल लगाने के लिये बैल के लिये उनके पास कोई सब्सीडी नहीं है। पर्यावरण विद् डा जे0पी0 सेमवाल ने कहा कि गांव में समृद्धि लानी है तो चकबन्दी करनी होगी। इस चर्चा जनार्दन बडाकोटी, तनु पंत, कुलबीर रावत छिलबट, एल मोहन कोठियाल रविन्द्र रावत बीरोंखाल जिला सघर्ष समिति के अध्यक्ष चित्र सिंह कण्डारी आदि वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे। चर्चा में ग्रामीण अंचल से आये लोगों ने कई सवाल उठायें चकबन्दी विशेषज्ञों द्धारा उनका उत्तर दिया गया। इस कार्यक्रम में चीड़ हटाओ, बांज लगाओ आन्दोलनकारी रमेश बौडाई, क्षेत्र पंचायत सदस्य मुकेश पोखरियाल, कई गा्रम सभाओं के प्रधान के साथ-साथ ध्यान पाल सिंह गुसाईं, राजेश बहुखण्डी मोहन सिंह, देवेन्द्र नेगी, भागेश्वरी देवी, शाकम्बरी देवी, अरविन्द सिंह, विनोद रावत बिनू भाई, विष्णु रावत, अनूप पटवाल आदि लोग शामिल थे कार्यक्र्रम का संचालन हेमन्त नेगी एंव बलबन्त गुसाई द्धारा सयुंक्त रूप से किया गया।
21 माह बाद भी बलुवाकोट में खतरा बरकरार, 20 परिवारों के घरों की सुरक्षा का सवाल
धारचूला,28 जून (निस)। वर्ष 2013 की आपदा की विनाशकारी तस्वीर अभी भी नहीं बदली है। 21 माह बाद भी बलुवाकोट के 20 परिवारों के घरों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं हो पायी है। बाजार के मध्य से बहने वाले नाले से हो रहे कटाव को रोकने के लिए अभी तक कोई इन्तजाम नहीं किया गया। इस नाले से बाढ़ सुरक्षा कार्य को भी खतरा होने की सम्भावना है। भाजपा ने राज्यपाल को ज्ञापन भेजकर इन परिवारों की सुध लेने की मांग की। 16-17 जून 2013 की भयानक आपदा ने नदी किनारें स्थित बलुवाकोट की तस्वीर बदल दी थी। 21 माह बाद भी सरकार इस कस्बे को सुरक्षित रखने का इन्तजाम नहीं कर पायी है। बलुवाकोट बाजार के मध्य में बहने वाले नाले के पानी से लगातार भूकटाव हो रहा है। इससे जमीन भी धस गयी है। इसके आस-पास के 20 परिवार भी आवासीय घरों को खतरा पैदा हो गया है। इन परिवारों द्वारा लगातार प्रशासन और सरकार को पत्र व्यवहार किया जा रहा है। अभी तक सरकार ने इन आपदा प्रभावितों की सुध नहीं ली है। इस नाले को पक्का बनाये जाने और भूकटाव और धसाव को रोके जाने के लिए सुरक्षा दीवार बनाये जाने की मांग की जा रही है। अभी तक सरकार ने आपदा प्रभावितों की इस मांग को अनुसुनी कर दी है। मुख्यमन्त्री विधान सभा में बलुवाकोट की तरह कई गांवों के सैकड़ो परिवार आज भी खतरे में जी रहे है। लाखों रूपये की लागत से बने इनके आवासीय भवन खतरे में आ जाने के कारण इन परिवारों की रात की नींद उड चुकी है। भाजपा ब्लाक प्रभारी जगत मर्तोलिया ने आज प्रदेश के राज्यपाल को पत्र भेजकर इन परिवारों की दास्ता भेजी है। उन्होंने कहा कि मुख्यमन्त्री की विधान सभा में आपदा प्रभावितों के घरों को बचाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं हो रहे है। देहरादून में बैठकर मुख्यमन्त्री सफेद झूठ बोल रहे है। विधान सभा की वास्तविक तस्वीर के सामने आ जाने से मुख्यमन्त्री की पुर्ननिर्माण के दावे की पोल खुल गयी है।
आठ माह से बिजली के पोल सड़क में वोट के लिए उपचुनाव में डाले गये थे पोल, जाराजिबली की जनता के साथ मजाक
धारचूला,28 जून (निस)। आठ माह पूर्व हुए उपचुनाव में वोट लेने के लिए कांग्रेसियों ने जाराजिबली ग्राम वासियों को ठगने के लिए बिजली के पोल बांसबगड़ के निकट सड़क में डाल दिया। मुख्यमन्त्री ने वोट लेने के बाद ग्रामवासियों से किये गये वायदे को नहीं निभाया। बिजली के पोल आज भी सड़क किनारें पडे़ हुए है। इस वादा खिलाफी से जाराजिबली के ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है। राज्यपाल को पत्र लिखकर इसकी षिकायत करते हुए जाराजिबली को तत्काल विद्युतीकृत करने की मांग की । उपचुनाव में मुख्यमन्त्री को जिताने के लिए कांग्रेसियों ने धारचूला विधान सभा की जनता से कई वायदें किये। आठ माह बीत जाने के बाद मुख्यमन्त्री के चुनाव में किये गये वायदों की पोल खुलने लगी है। इन वायदों में से एक जाराजिबली में बिजली पहुचाने का मामला भी है। आजादी के 68 वर्षो के बाद भी जाराजिबली गांव में बिजली नहीं पहुंच पायी है। इसको देखते हुए कांग्रेसियों ने उपचुनाव से पूर्व जौलजीवी-मदकोट मोटर मार्ग में बांसबगड के निकट बिजली के पोल लाकर सड़क के किनारें रख दिये। जाराजिबली तक यह संदेष पहंुचा दिया कि बिजली के पोल सड़क किनारें पहुंच गये है। उपचुनाव के बाद जाराजिबली गांव बिजली से जगमगा जायेगा। कांग्रेसियों के इस झूठ में आकर जाराजिबली वासियों ने उपचुनाव में मुख्यमन्त्री हरीश रावत का साथ दिया। उसके बाद भी अभी तक इन बिजली के पोलों का ढुलान कार्य तक शुरू नहीं हो पाया है। उत्तराखण्ड विद्युत कारपोरेशन के प्रस्तावित गांवों में भी जाराजिबली का नाम नहीं है। बिजली विभाग द्वारा अभी तक जाराजिबली के विद्युतीकरण की कोई स्वीकृति नहीं ली गयी है। मुख्यमन्त्री को उपचुनाव में जितवाने के लिऐ कांग्रेसियों ने जाराजिबली वासियों के साथ इस प्रकार का भद्दा मजाक किया। जगत मर्तोलिया ने प्रदेश के राज्यपाल को पत्र लिखकर जाराजिबली को विद्युतीकरण किये जाने की मांग की। मर्तोलिया ने कहा कि मुख्यमन्त्री ने उपचुनाव में जो वायदे किये थे एक भी पूरे नहीं हुए। वादाखिलाफी से जनता यह समझ चुकी है कि मुख्यमन्त्री के विधायक होने से न क्षेत्र का विकास होता है और न ही बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलता है। मुख्यमन्त्री से सीमान्त की जनता का मोह भंग हो चुका है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय जनता की समस्याओं और सरकार द्वारा की गयी घोशणाओं को पूर्ण करवाने के लिए भाजपा जनता को साथ में लेकर आन्दोलन कर सरकार पर दबाव बनायेगी।
मल्ला जोहार में गरारी का पट्टा टूटा, ग्रामीण फंसे
- गोरी नदी पर रिलकोट-खिलांच के मध्य पुल नहीं होने से बढ़ी दुशवारिया
धारचूला,28 जून (निस)। मुनस्यारी तहसील के मल्ला जोहार में गोरी नदी पर रिलकोट-खिलांच के मध्य बनी गरारी का पट्टा टूट गया। इस कारण नदी आर-पार जाने की आवाजाही बन्द हो गयी है। इस स्थान पर लगातार पुल निर्माण की मांग की जा रही है। आपदा के बाद पुल बह जाने के दो वर्ष बाद भी उत्तराखण्ड की सरकार इस जगह पर पुल नहीं बना पायी। जिलाधिकारी के सम्मुख इस मामले को उठाया। उन्होंने कहा कि हैली-काप्टर मे करोड़ो रूपये खर्च करने वाले मुख्यमन्त्री को इसका जबाब देना होगा। मल्ला जोहार के गोरी नदी पर रिलकोट-खिलांच के बीच बनी पुलिया वर्ष 2013 की भीषण आपदा में बह गयी थी। इस स्थान पर 10 लाख रूपये की लागत से गरारी जबरन बना दिया गया। जबकि खिलांच के ग्रामीण इस स्थान पर पुलिया निर्माण की मांग कर रहे थे। वर्ष 2014 तथा इस बार भी इस स्थान पर पुलिया का निर्माण नहीं हो पाया। गरारी के निर्माण में की गई मनमानी और मानक विरूद्ध कार्य के कारण गरारी का पट्टा एक वर्ष में ही टूट गया है। जबकि इस गरारी का उपयोग बस वर्ष में केवल छः माह ही ग्रीष्म काल के दौरान होता है। उसके बावजूद गरारी का पट्टा टूट गया और टूटी हुई गरारी से ही ग्रामीण जान हथेली में रखकर आर-पार जा रहे है। मवेशियों और बकरियों को गोरी नदी पार कराकर ले जाने में ग्रामीण असफल हो चुके है। खिलांच के ग्रामीणों के सामने यह मुसीबत खड़ी हो गयी है कि वे अपने पालतू जानवरों को छोड़कर कहां जाये। मुख्यमन्त्री की विधान सभा का यह नजारा सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। आपदा के बाद मुनस्यारी तहसील में दस करोड़ से अधिक की राशि पुर्ननिर्माण के नाम पर खर्च की जा चुकी है। इस राशि के उपयोग पर गम्भीर आरोप लगते रहे है। रिलकोट-खिलांच के मध्य गोरी नदी पर पुल बनाने के लिए क्यों आपदा की राशि नहीं दी गयी। यह सवाल आम लोगों के गले नहीं उतर रहा है। भाजपा नेता जगत मर्तोलिया ने आज जिलाधिकारी से इस मामले की शिकायत की। उन्होंने कहा कि मुख्यमन्त्री की विधान सभा में आपदा के बाद दो वर्ष बीत जाने के बाद भी यह स्थिति है। आम जनता आपदा के बाद से परेशान है और आपदा के बजट पर लूट मची हुई है। उन्होंने कहा कि मुख्यमन्त्री अगर पुल नहीं बना सकते है तो उन्हें विधान सभा के पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए। 15 दिन के भीतर प्रशासन और क्षेत्रीय विधायक ने कोई कार्यवाही नहीं की तो मुनस्यारी में लोक निर्माण विभाग के कार्यालय में तालाबन्दी की जायेगी।
फड़-फेरी व अस्थाई बाजार वालों को हटाना अब प्रशासन के बस में नहीं
देहरादून,28 जून (निस)। भारत सरकार द्वारा नगरीय फेरी व्यवसायी (आजीविका सुरक्षा तथा व्यवसाय विनियम) अधिनियम 2014 लागू होने के बाद फड़-फेरी वालों तथा अस्थाई बाजारों के व्यापारियों को उनके स्थान से हटाना अब पुलिस, प्रशासन, नगर निगम तथा नगर निकायों के अधिकारियों के बस में नहीं रह गया है। इस अधिनियम के अनुसार वेडिंग जोन निर्धारित करने या पथ विक्रेताओं को स्थानांतरित करने पर निर्णय लेने व कार्यवाही करने का अधिकार अब केवल धारा 22 के अन्तर्गत गठित 40 प्रतिशत फेरी व्यवसासियोें के प्रतिनिधित्व वाली ”नगर फेरी समिति” को है। राष्ट्रीय स्तरीय सूचना अधिकार कार्यकर्ता तथा कानून विशेषज्ञ नदीम उद्दीन एडवोकेट को सूचना अधिकार के अन्तर्गत नगरीय फेरी व्यसायी (अजीविका सुरक्षा तथा फेरी व्यवसाय विनियम) अधिनियम 2014 के अन्तर्गत उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाई गयी नियमावली की प्रति शहरी विकास निदेशालय के लोेक सूचना अधिकारी ने उपलब्ध करायी है। उसके नियम 6(2) के अनुसार भी नगर फेरी समिति द्वारा वर्तमान फेरी वालों तथा अस्थाई व्यापरियों का सर्वेक्षण तथा नगर फेरी समिति द्वारा उन्हें लाइसंेस जारी होने तक न तो हटाया जायेगा और न ही विस्थापित किया जायेगा। नदीम को शहरी विकास निदेशालय द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार उत्तराखंड नगरीय फेरी व्यवसायी (अजीविका सुरक्षा तथा फेरी व्यवसाय विनियम) नियमावली 2015 के नियम 12 तथा अधिनियम की धारा 22 के अनुसार नगरीय फेरी समिति में न्यूनतम 40 प्रतिशत सदस्य फेरी संगठनों से हांेगे जो उनके द्वारा स्वयं चयनित किये जायेंगेे जिसमें न्यूनतम एक तिहाई महिला प्रतिनिधि होनी अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त न्यूनतम 10 प्रतिशत सदस्य स्वयं सेवी संस्था तथा समुदाय आधारित संगठनों से हांेगे। इसके अतिरिक्त इस समिति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा अपंग व्यक्तियों को नगर फेरी समिति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जायेगा। नदीम को उपलब्ध करायी गयी नियमावली के नियम 16 तथा फेरी अधिनियम की धारा 27 के अन्तर्गत फेरी वालों तथा अस्थाई व्यापारियों के पुलिस तथा अन्य अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न किये जाने पर भी रोक लगायी गयी है। नदीम ने बताया कि अगर किसी अधिकारी द्वारा भारत सरकार द्वारा 01 मई 2014 से लागू फेरी व्यवसायी अधिनियम के उल्लंघन में किसी अस्थाई व्यापारी, फेरी, फड़ वाले या अस्थाई बाजार को स्थानांरित करने तथा हटाने की कार्यवाही की जाती है तो वह गैर कानूनी है तथा संबंधित अधिकारियों के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 166, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारास 13(1) (डी) तथा 13(1) (सी) तथा एस.सी.एस.टी. एक्ट के अपराधों के मुकदमें दर्ज कराये जा सकते है। इसके अतिरिक्त लोकायुक्त, पिछड़ा, अल्पसंख्यक, अ.जाति, अ.ज.जा. महिला, मानवाधिकार तथा बाल अधिकार आयोग की शरण लेने के साथ सम्बन्धित सेवा नियमों के अन्तर्गत भी ऐसे अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही करायी जा सकती है तथा नुकसान का मुआवजा न्यायालयों के माध्यम से वसूला जा सकता है।
नदी किनारे बसे गांव की सुरक्षा ठण्डे बस्ते में सीएम की विधान सभा का हाल
पिथौरागढ़, 28 जून (निस)। वर्ष 2013 की आपदा के बाद पौने दो वर्ष का समय बीत गया। गोरी, काली और धौली गंगा के किनारे बसे गांवों की सुरक्षा का कोई इन्तजाम नहीं हो पाया। विधायक के साथ ही सीमान्त को मुख्यमंत्री भी मिला। उसके बाद भी आपदाग्रस्त इन गांवों की सुरक्षा के लिये बाढ़ सुरक्षा का कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया।स्थानीय लोगों ने जिलाधिकारी के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन भेजकर बाढ़ सुरक्षा कार्य के लिये राज्य सरकार पर दबाव बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि अगर सरकार नहीं जागी तो सड़क में उतरक सीएम के खिलाफ आन्दोलन होगा। वर्ष 2013 की आपदा को लम्बा समय बीत चुका है। आपदा से खतरे में आ चुके गोरी नदी के किनारे बसे खिनवा गांव, सेराघाट, सेरा, भदेली, उमडगाड़ा, छोरीबगड़, बांसबगड, मौरी, लुम्ती, चामी, घट्टा बगड़ तथा काली नदी के किनारें बसे गो-घाटीबगड़, छारछुम, नया बस्ती, कालिका, निगांलपानी, ऐलागाड, तवाघाट और धौली गंगा के किनारे बसे सोबला, दर, तीजम, सुमदुम, वतन, उमचिया सहित दर्जनों गांवो को बचाने के लिये आज भी सुरक्षा के इन्जाम तक शुरू नहीं हो पाये है। नदी किनारे इन गांवों में रहने वाले लोगों पर आज भी खतरा मडरा रहा है। कई घर नदी के ओर लटके हुये है। नदी किनारे खतरे में आ चुके आवासीय भवनों को सरकार ने खतरे में नहीं माना है। जिस कारण इन परिवारों को अभी तक न मुआवजा मिला है और नहीं इनके सुरक्षित आवास के लिये सरकार ने कुछ किया है। उत्तराखण्ड की सरकार आपदा के पौने दो वर्ष बाद भी नदी किनारें बसे इन गांवों को बचाने के लिये कोई पुख्ता व्यवस्था तक नहीं कर पायी। आलम यह है कि नदी की आवाज से ही इन परिवारों की रात की नीद उड़ जाती है। वर्षात आने और नदी का जल स्तर बढ़ने में अब मात्र तीन माह का समय शेष बचा है। सीमान्त क्षेत्र को विधायक ही नहीं मुख्यमन्त्री मिल गया। उसके बाद भी इस क्षेत्र की आपदाग्रस्त तकदीर अभी तक नहीं बदली है। भाजपा के जिला प्रवक्ता जगत मर्तोलिया ने डीएम के माध्यम से राज्यपाल को पत्र भेजकर यह मांग उठाई है कि राजभवन की ओर से राज्य सरकार को इन गांवों को बचाने के लिये बाढ़ सुरक्षा का कार्य शुरू करने के लिये आदेशित किया जाये। उन्होंने कहा कि मुख्यमन्त्री ने चुनाव जीतने के बाद वायदा किया था कि वह इन गांवों को बचाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ेगे। आज मुख्यमन्त्री इन गांवों की ओर देखने तक की आवश्यकता नहीं समझ रहे है। गोरी,काली और धौली गंगा के किनारे बसे गांवों को बचाने के लियेसीएम के खिलाफ आपदा प्रभावितों को साथ में लेकर आन्दोलन करेगी।
धारचूला में गो-सेवा की प्रतीक बनी लीला कुंवर, घायल गो की सेवा करना बनाया अपना धर्म
धारचूला, 28 जून (निस)। धारचूला नगर और उसके आस-पास घायल गायों की सेवा करते-करते सामाजिक कार्यकर्ती लीला कुंवर गो-सेवा की प्रतीक बन चुकी है। प्रत्येक दिन गो-सेवा के लिये समय निकालना लीला का नित्य कर्म बन गया है। दूध दूधने के बाद गायों को लावारिस छोड़ने वाले लोगांे के मन में गो- माता के प्रति प्रेम जगाने के लिये लीला कुंवर जन जागरण अभियान चलाने वाली है। ताकि सभी गो-माता का महत्व समझे। धारचूला के आर्मी तिराहे के निकट पहाड़ी में घास चरते वक्त गिरकर घायल हो चुकी दो गायों की सेवा में इस बीच सुश्री कुंवर जुटी हुई है। धारचूला नगर में आज अगर कोई गाय घायल हो जाती है तो सभी की जुबा पर एक शब्द आता है कि जल्द लीला को फोन लगाओ वही इसकी सेवा करेगी। गो-माता की सेवा का कार्य लीला कुंवर लम्बे समय से कर रही हैं। इस बीच आर्मी तिराहे से दो गायें घास चुगती हुई चट्टान से नीचे गिर गयी। जैसे ही इसकी सूचना लीला कुंवर को मिली तो वह पहले गायों को देखने गयी। देखने से मालूम हुआ कि एक गाय का पैर फैक्चर हो चुका है और दूसरी गाय चोट लगने से जख्मी हो चुकी है। दोनों गाय घायल अवस्था में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की स्थिति में नहीं है। गोरखा रेजीमेन्ट के परिक्षेत्र में घायल गायें पड़ी हुई है। सुश्री कुंवर ने सबसे पहले गोरखा रेजीमेन्ट के जवानों से बातचीत की और जवानों ने गायों को सुरक्षित रखने के लिये अपनी तैयारियां शुरू कर दी। गायों की सुरक्षा की जिम्मा गोरखा रेजीमेन्ट उठा रही है। सुश्री कुंवर की सूचना पर पशु चिकित्सालय धारचूला के चिकित्सक डाॅ. केके जोशी, डाॅ. सर्वेश्वर, फार्मसिस्ट महेन्द्र सिंह हंयाकीं, कलम सिंह धामी, धन सिंह पालीवाल, बीर सिंह धामी, हरि दत्त भट्ट की टीम ने दोनों गायों को चिकित्सी सुविधा दी। डाॅ. सर्वेश्वर ने फैक्चर पैर पर बांस का सहारा बांधते हुये गाय के पैर पर प्लास्टर लगा दिया है ताकि गया जल्दी ठीक हो सके। धारचूला नगर में दूध दूहने के बाद गायों को आवारा छोड़ने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। बाजार में घूमते हुये इन गायों का चोटिल होना आम बात है। चोटिल गायों की एक मात्र सहारा लीला कुंवर है। लीला द्वारा पशुपालन विभाग की मदद से इन गायों का उपचार कराया जाता है। घायल गायों को उपचार के समय एक सुरक्षित स्थान पर रखना चुनौती पूर्ण कार्य है। हालांकि अभी जैसे-तैसे इन गायों का उपचार चल रहा है। घायल गायों को उपचार के समय चारा, घास आदि की व्यवस्था के लिये सुश्री कुंवर को नगर के समाज सेवी जसवन्त नबियाल, भीमराज नबियाल, रमेश वर्मा, राजेन्द्र लाल वर्मा, हीरा वर्मा, ओम प्रकाश वर्मा, प्रद्युमन गब्र्याल, कैलाश रावत, भूपेन्द्र थापा, लक्ष्मी परमार, डीसी रायपा, सागर शर्मा, जल संस्थान के अवर अभियन्ता कमल किशोर आदि लोग मद्द करते है। सुश्री कुंवर का कहना है कि वह आम लोगों में जन जागृति लाने के लिये घर-घर सम्पर्क कर रही है ताकि सभी लोग गो-माता को दूध पीने के बाद सड़क में न छोड़े। उन्होंने इसके लिये सरकारी प्रयास किये जाने की मांग भी की है।
एक की मौत के बाद भी नहीं जागी लोनिवि गोरी नदी में बना मवानी-दवानी झूलापुल जर्जर
देहरादून, 28 जून (निस)। धारचूला और मुनस्यारी के मध्य में बंगापानी-मवानी दवानी के बीच गोरी नदी में बना झूलापुल जानलेवा बन गया है। एक ग्रामीण की मौत के बाद भी झूलापुल की मरम्मत का कार्य आपदा के डेढ वर्ष बाद भी नहीं हो पाया। वर्श 2013 की आपदा में क्षतिग्रस्त हुये इस झूलापुल की मरम्मत की मांग लम्बे समय से उठायी जा रही है। झूलापुल में लगे लोहे की तीन चैनों में से एक चैन आपदा के समय टूट गया था जिस कारण झूलापुल एक ओर को झुक गया है। कभी भी इस पुल से एक बड़ा हादसा हो सकता है। गोरी नदी में बनी इस झूलापुलिया की दुर्दषा वर्श 2013 में 16-17 जून का आयी विनाशकारी आपदा से शुरू हुई। झूलापुल में लगे लोहे के एक चैन के टूट जाने से झूलापुल एक ओर का झुक गया है। झूलापुल के दोनों ओर सुरक्षा के लिये रैलिंग बनाये जाने की लम्बे समय से मांग की जा रही है। लोक निर्माण विभाग अस्कोट के अधिकारी इस मांग को हमेशा अनसुना करते रहे है। झूलापुल में बंगापानी की ओर से 19 सितम्बर, 2014 को मवानी-दवानी निवासी 35 वर्षीय नारायण सिंह नेगी पुत्र राम सिंह की पैर फिसलने से गोरी नदी में बह जाने के कारण मौत हो गयी। अगर इस स्थान पर रैलिंग बना होता तो इस व्यक्ति की मौत नहीं होती। 35 वर्षीय नारायण सिंह सीमा सड़क संगठन में मजदूरी का कार्य करता था। इस मजदूर की मौत के बाद उसके दो बच्चे और पत्नी बेसहारा हो गये है। इस दर्दनाक हादसे के बाद भी लोनिवि के कानों में जू तक नहीं रेंग रही है। झूलापुल से प्रतिदिन एक हजार से अधिक लोगांे की आवाजाही रहती है। इण्टर कालेज मवानी-दवानी, विद्यामन्दिर सहित अन्य विद्यालयों के 800 से अधिक बच्चे प्रतिदिन इस पुल से आर-पार जाते है। मवानी-दवानी में आर्युवैदिक अस्पताल है। इसी के साथ इस झूलापुल से ग्राम पंचायत मवानी-दवानी, आलम, दारमा, माणी धामी, दाखिम, धामीगांव, घरूड़ी के ग्रामीणों का प्रतिदिन आना-जाना रहता है। गोरी नदी पर बने इस पुल के प्रति लोनिवि का रवैया हमेशा ठीक नहीं रहा है। भाजपा जिला प्रवक्ता जगत मर्तोलिया ने रविवार को डीएम और लोनिवि के अधिशासी अभियन्ता को ज्ञापन देकर अस्कोट डिविजन द्वारा की जा रही लापरवाही पर सख्त कदम उठाने की मांग की। उन्होंने कहा कि आपदा के करोड़ो रूपये लोनिवि ने बिना निविदा आमन्त्रित किये फूंक दिये है। उन्होंने कहा कि आपदा से क्षतिग्रस्त इस झूलापुलिया के मम्मत के लिये क्यों धन स्वीकृत नहीं किया गया इसके लिये जिम्मेदार अधिकारी को तत्काल निलम्बित किया जाना चाहिए।
उत्तराखंड के महाविद्यालयों में 58 प्रतिशत प्रवक्ताओं के पद रिक्त
देहरादून, 28 जून (निस)। उत्तराखंड के 90 सरकारी महाविद्यालयों में शिक्षकों (प्रवक्ताओं) के 58 प्रतिशत पद रिक्त है। इसमें गढ़वाल मंडल के 48 महाविद्यालयों में 62 प्रतिशत पद तथा कुमाऊं मंडल के 42 महाविद्यालयों में 57 प्रतिशत प्रवक्ताओं के पद रिक्त है। उक्त खुलासा राष्ट्रीय स्तर के सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट को उच्च शिक्षा निदेशालय, उत्तराखंड के लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से हुआ है। उच्च शिक्षा निदेशालय उत्तराखंड के लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना अधिकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय स्तर के सूचना अधिकार कार्यकर्ता, काशीपुर निवासी नदीम उद्दीन एडवोकेट को उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार उत्तराखंड के 90 सरकारी महाविद्यालयों में प्रवक्ताओं के कुल स्वीकृत 1656 पदों में से 971 पद रिक्त है केवल 685 प्रवक्ता ही नियमित कार्यरत है। इन रिक्त पदों में से 408 पदों पर संविदा पर शिक्षक कार्यरत है। इसके बाद भी 563 पद रिक्त है जिन पर कोई प्रवक्ता व संविदा शिक्षक कार्यरत नहीं हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश भर में 20 ऐसे नियमित प्रवक्ता भी है जो महाविद्यालयों में शिक्षण कार्य नहीं कर रहे है जिसमें 2 प्रतिनियुक्ति के कारण महाविद्यालयों में कार्यरत नहीं है तथा 18 त्याग पत्र व अन्यत्र कार्यरत प्रस्तुत तथा दीर्घ अवधि से अनुपस्थित हैं। इनके पदों को जोड़ते हुये कुल 583 पदों पर कोई शिक्षक कार्यरत नहीं हैै। नदीम को उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार रिक्त 971 पदों में सर्वाधिक रिक्त पद 95 अंग्रेजी विषय के है जबकि शारीरिक विज्ञान, टूरिज्म, दर्शनशास्त्र तथा पत्रकारिता विषय का कोई पद रिक्त नहीं है। अन्य रिक्त पदों में हिन्दी के 85, संस्कृत के 44, भूगोल के 45, अर्थशास्त्र के 74, राजनीतिक शास्त्र के 81, समाजशास्त्र के 61, इतिहास के 52, शिक्षा शास्त्र के 18, मनोेविज्ञान के 7, शारीरिक शिक्षा के 6, गृह विज्ञान के 15, सैन्य विज्ञान के 9, बी0एड.के 15, संगीत के 5, सांख्यिकी के 3, भूगर्भ विज्ञान के 8, विधि 5, चित्रकला के 3, बेसिक हयूमेनेटिज 1, मानव विज्ञान 2, बेसिक साइंस 1, भौतिक विज्ञान 53, रसायन विज्ञान 58, जन्तु विज्ञान 50, वनस्पति विज्ञान 51, गणित 44, वाणिज्य 62, बी0वी0ए0 3, बी0सी0ए0 6, एम0बी0ए0 5, बी0टी0एस0 1, कम्प्यूटर विज्ञान के 3 पद रिक्त है। नदीम को उपलब्ध करायी गयी सूचना के अनुसार कुमाऊं मंडल के कुल 42 सरकारी महाविद्यालयोें में कुल 821 पदों में से 354 पदों पर ही नियमित प्रवक्ता कार्यरत है। शेष 467 पद रिक्त है। इनमें से केवल 198 पदों पर संविदा शिक्षक कार्य कर रहे हैै। जबकि संविदा शिक्षकों के पदों को छोड़कर भी 269 पद रिक्त है जिस पर कोई शिक्षक कार्य नहीं कर रहा है। इसी प्रकार गढ़वाल मंडल के कुल 48 सरकारी महाविद्यालयों में कुल 835 स्वीकृत पदों मेें से 524 पद रिक्त हैं इनमें से 210 पदों पर संविदा शिक्षक कार्यरत हैं। जबकि संविदा शिक्षकों के पदों को छोड़कर भी 314 पदों पर कोई शिक्षक कार्यरत नहीं है। नदीम को उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से यह भी स्पष्ट है कि इन रिक्त पदों के जल्दी भरने की भी कोई उम्मीद भी नहीं है क्योंकि बिल्कुल रिक्त 563 पदों में से अधियाचन भी केवल 273 पदों का ही भेजा गया है। लोेक सेवा आयोग द्वारा अगर इन सबका चयन कर भी दिया जाता औैर सभी शिक्षक कार्य करते रहते हैं तो भी प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में 290 पदों पर कोई प्रवक्ता व शिक्षक कार्य नहीं करेगा।
सिल्ट ने थामी टरबाइन, विद्युत उत्पादन घटा
देहरादून, 28 जून (निस)। नदियों में सिल्ट आने से राज्य के जल विद्युत गृहों में विद्युत उत्पादन लगातार घट रहा है। गाद ने टरबाइनों की गति पर रोक लगा दी है। इससे प्रदेश में कई जगह बिजली कटौती होने लगी है।
उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) के जल विद्युत गृहों से एक करोड़ 61 लाख 90 हजार यूनिट बिजली मिली थी। शनिवार को यह ग्राफ महज 86 लाख 30 हजार यूनिट पर पहुंच गया। जबकि शनिवार को राज्य की विद्युत मांग तीन करोड़ 33 लाख 50 हजार यूनिट रही। बिजली की कुल उपलब्धता केंद्रीय पुल और अन्य स्रोतों को मिलाकर 3.11 करोड़ यूनिट रही। पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यधिक बरसात में सिल्ट आने से बंद हुए यूजेवीएनएल के मनेरी भाली-प्रथम (90 मेगावाट) और मनेरी भाली-द्वितीय 304 मेगावाट से शनिवार शाम चार बजे से विद्युत उत्पादन शुरू हो गया।चीला 144 मेगावाट जल विद्युत गृह में भारी मात्रा में सिल्ट आने से विद्युत उत्पादन नहीं हुआ। यूजेवीएनएल का कालागढ़ जल विद्युत गृह पहले से बंद चल रहा है।
हेमकुंड से रेस्क्यू अभियान शुरू, पांच हेलीकाॅप्टर लगाये
गोपेश्वर, 28 जून (निस)। बारिश और भूस्खलन के कारण हेमकुंड में फंसे 3500 यात्रियों को सुरक्षित निकालने के लिए प्रशासन ने रेस्क्यू अभियान शुरू कर दिया है। पांच हेलीकॉप्टरों के जरिए सिख यात्रियों को घांघरिया से गोविंदघाट लाया जा रहा है, जबकि बीमार यात्रियों को सीधे जोशीमठ पहुंचया जा रहा है। बीते दिनों बारिश के कारण बदरीनाथ हाईवे समेत हेमकुंड पैदल मार्ग भी भूस्खलन के कारण कई जगहों पर बाधित हो गया था। जिसके चलते कई यात्री विभिन्न पड़ावों पर फंस गए थे। एसडीआरएफ और पुलिस की मदद से कई यात्रियों को बाहर निकाला गया था, लेकिन कुछ यात्री घांघरिया आदि में ही फंसे रह गए। रविवार को इन यात्रियों को सुरक्षित निकालने के लिए रेस्क्यू अभियान शुरू हो गया है। अभियान मे पांच हेलीकॉप्टरों की मदद ली जा रही है।
लोनिवि की दादागिरी आरटीआई फोटो स्टेट 50 रुपये प्रति
गोपेश्वर, 28 जून (निस)। सूचना के अधिकार अधिनियम को लेकर विभागों ने अपने ही नियम बना रखे हैं। सूचना देने के नाम पर बकायदा रेट तय किए गए हैं। लोक निर्माण विभाग कर्णप्रयाग को ही ले लीजिए। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 में सूचना मांगने पर प्रति पृष्ठ दो रुपये के हिसाब से आरटीआइ कार्यकर्ता को सूचना देने का प्राविधान है। लेकिन कर्णप्रयाग के लोनिवि कार्यालय में तैनात लोक सूचना अधिकारी ने आरटीआइ कार्यकर्ता को जो पत्र लिखा है वह चैंकाने वाला है। असल में लोक सूचना अधिकारी ने आरटीई कार्यकर्ता से 72 पेज की सूचना देने एवज में 3600 रुपये शुल्क चुकाने की बात लिखी है। दरअसल, कर्णप्रयाग में पिंडर नदी पर पुल का निर्माण चल रहा है। आरटीआइ कार्यकर्ता व उमट्टा के पूर्व प्रधान अरविंद सिंह चैहान ने 18 मार्च को सूचना अधिकार के तहत इस पुल की मूल डीपीआर, ड्राइंग व रिवाइज्ड डीपीआर की सूचना मांगी थी। 30 मार्च को लोक सूचना अधिकारी ने आरटीआइ कार्यकर्ता को जवाब दिया कि पुल की मूल डीपीआर व रिवाइज्ड डीपीआर 216 पृष्ठों की है। लोक सूचना अधिकारी ने पत्र में शुल्क को लेकर स्थिति साफ नहीं की गई। आरटीआइ कार्यकर्ता ने 11 अप्रैल को अरविंद चैहान ने आरटीआइ की धाराओं का हवाला देते हुए सूचना सीडी में उपलब्ध कराने के लिए लोक सूचना अधिकारी को पत्र लिखा। एक मई को लोक सूचना अधिकारी ने फिर से कार्यालय में स्केनर न होने का हवाला देकर सीडी में सूचना देने से हाथ खड़े कर दिए। इस पत्र में भी लोक सूचना अधिकारी ने शुल्क का कोई जिक्र नहीं किया। 19 मई को आरटीआइ कार्यकर्ता ने फिर से पत्र लिखकर सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले दस्तावेजों के शुल्क की जानकारी मांगी। 18 जून को लोक सूचना अधिकारी को पत्र भेजकर बताया कि सूचना 72 पृष्ठों में हैं। इसके लिए उन्हें प्रति पृष्ठ 50 रुपये का शुल्क जमा करने को कहा है। इस मामले में आरटीई कार्यकर्ता ने सूचना आयोग में शिकायत की गई है। मामले में लोक सूचना अधिकारी व सहायक अभियंता लोनिवि कर्णप्रयाग रघुवीर सिंह का जवाब सुनिए। उनका कहना है कि डीपीआर व ड्राइंग की फोटो स्टेट देहरादून से कराई गई है। उसका जो भी बिल लगा है। उस हिसाब से आरटीई कार्यकर्ता से शुल्क मांगा गया है।
मौसम ने श्रद्धालुओं को मायूस किया
रुद्रप्रयाग, 28 जून (निस)। बाहरी प्रदेशों से भगवान केदारनाथ के दर्शनों को आए श्रद्धालुओं की उम्मीदों पर मौसम की बेरुखी ने पानी फेर दिया है। बारिश के चलते केदारनाथ यात्र मार्ग कई स्थानों पर अवरुद्ध चल रहा है। इस कारण जिला प्रशासन ने तीन दिनों तक सोनप्रयाग से आगे यात्रियों की रवानगी रोक दी है। अब भक्त बिना भगवान के दर्शन किए ही वापस लौट रहे है। ये सभी लोग हवाई सेवाओं से यात्र करने में अपनी असमर्थता जता रहे है। पूर्व दिनों की भांति इन दिनों भगवान केदारनाथ की यात्र करने के लिए बाहरी प्रदेशों से बड़ी भारी तादाद में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। भक्तों पर भगवान की भक्ति इस कदर चढ़ी हुई है कि वे इस मौसम में भी भगवान के दर्शनों को जाने के लिए तैयार बैठे है। बीते बुधवार रात्रि को हुई भारी बारिश के चलते सोनप्रयाग से मुनकटिया के बीच हाईवे व पैदल मार्ग कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त चल रहा है, जबकि सोनप्रयाग में गौरीकुंड हाईवे पर बनाया गया मोटरपुल मंदाकिनी व सोननदी के तेज प्रवाह में बह गया है। यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए आगामी तीन दिन तक प्रशासन ने सोनप्रयाग से आगे जाने पर रोक लगा दी है। ग्वालियर मध्य प्रदेश से आए महेश प्रसाद का कहना है कि वे भगवान केदारनाथ के दर्शनों के लिए यहां आए है। वे विगत दो दिनों से फाटा में रुके हुए है। मौसम खराब होने के चलते मार्ग बाधित चल रहा है। वे मार्ग खुलने का इंतजार कर रहे है। उन्होंने कहा कि यदि आगे जाने नहीं दिया जाता है तो वे यहीं से भगवान को हाथ जोड़कर वापस लौट जाएंगे। तमिलनाडु से आए सुरसनहरन ने बताया कि वे छह लोग केदारनाथ की यात्र पर आए थे। वे पैदल मार्ग से ही केदारनाथ जाना चाहते है, लेकिन मार्ग बंद होने के चलते उन्हें भारी दिक्कतें हो रही है। तीन दिन बाद पैदल मार्ग आवाजाही के लिए खुलने की संभावना है। दो जुलाई को उनके ट्रेन की रिजर्वेशन है। यदि इससे पहले कुछ नहीं होता है तो वे अपने घर की ओर निकल पड़ेंगे। क्योंकि हवाई सेवा से सफर करने में वे समर्थ नहीं है। फोटो मैटिक पंजीकरण के नोडल अधिकारी कुंदन सिंह ने बताया कि प्रशासन की ओर से निर्देशित किया गया है कि केवल हेली सेवाओं से जाने वाले यात्रियों का ही पंजीकरण किया जाए, लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा है कि कौन यात्री हेली से जाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने पुलिस मुख्यालय ने मांगा सेवायोजन के लिए प्रस्ताव, एसएसबी प्रशिक्षित गुरिल्लाओं के दिन बहुरने के आसार
- किशोर ने एसडीआरएफ में नियुक्ति देने का किया है आग्रह, आपदा प्रबंधन विभाग में तैनाती करने पर भी हो रहा मंथन
देहरादून,28 जूून(निस)। 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद एसएसबी की ओर गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित किए गए ग्रामीण सरकारी सेवाओं में नियुक्ति की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। गुरिल्लाओं का कहना है कि पूर्वोतर राज्य मणिपुर में सरकार ने गुरिल्लाओं को सरकारी सेवाओं में नियुक्तित दी हैं। ठीक उसी तरह राज्य या केंद्र सरकार उत्तराखंड में भी उन्हें सरकारी सेवाओं में नियुक्ति दें। अब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के आग्रह पर सरकार ने पुलिस मुख्यालय से इस बारे में प्रस्ताव मांग है। करीब एक दशक से आंदोलनरत गुरिल्लाओं की मांग है की जो प्रशिक्षित लोग सरकारी सेवाओं में नियुक्ति की आयु सीमा पार कर चुके हैं, उन्हे सरकार पेंशन दें। उत्तराखंड में करीब 8000 गुरिल्ला अपनी इन्हीं मांगों को लेकर समय-समय पर आंदोलन करते आए हैं। एक बार फिर गुरिल्ला आर पार की लड़ाई के मूड में है। गुरिल्लाओं की बैठक में राज्य सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए कड़ा आक्रोश जताया गया। तय किया गया की यदि सरकार अपने वायदे के अनरूप कोई निर्णय नही लेती है तो एक बार फिर सड़कों पर आंदोलन किया जाएगा। दरअसल, चीन से युद्ध के बाद गृह मंत्रालय अधीन करने वाली ने एसएसबी स्वयं सेवकों की भर्ती कर उन्हें बकायदा गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया था। बाद में उत्तर पूर्व क्षेत्र में राज्यों में स्वयंसेवकों को एसएसबी की नियमित सेवा में नियुक्ति दी गई और जो नियुक्ति के योग्य नहीं था उन्हें अन्य वित्तीय लाभ व सुविधायें यथा पेंशन, ग्रेच्यूटी, भत्ते आदि दिए गए। लेकिन उत्तराखंड में ऐसा कुछ नहीं किया गया। अब एक बार यह मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्य़क्ष किशोर उपाध्याय ने इस बारे में मुख्यमंत्री हरीश रावत से मुलाकात करके उन्हें एक पत्र दिया। इस पत्र में किशोर ने कहा कि राज्य सरकार इस समय राज्य आपदा राहत फोर्स (एसडीआरएफ) के गठन की दिशा में काम कर रही है। इस फोर्स का गठन किया भी जा चुका है। ऐसे में एसएसबी की ओर से गुरिल्ला युद्ध में पारंगत इन लोगों को इस फोर्स में समाहित किया जा सकता है। इससे जहां एक तरफ इन लोगों को रोजगार मिल सकेगा, वहीं एसडीआरएफ का कार्यक्षमता को और भी बढ़ाया जा सकेगा। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री को किशोर का यह सुक्षाव पसंद आया और उन्होंने पुलिस मुख्यालय को इस बारे में एक प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है। यह अलग बात है कि पुलिस मुख्यालय ने सात माह बाद भी इस प्रस्ताव को बनाने की दिशा में काम शुरू नहीं किया है। इधर, एक अन्य जनप्रतिनिधि बह्मानंद डालाकोटी के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने पुलिस मुख्यालय से कहा है कि इस बात का भी परीक्षण करा लिया जाए कि इन प्रशिक्षित गुरिल्लाओं का आपदा प्रबंधन में किस तरह से उपयोग किया जा सकता है। जाहिर है कि अगर पुलिस मुख्यालय ने इस मामले में उचित और सकारात्मक प्रस्ताव तैयार किया तो इस प्रशिक्षित गुरिल्लाओं की सालों पुरानी मुराद पूरी हो सकती है। बताया जा रहा है कि इस प्रस्ताव के अमलीजामा पहनने के बाद नौकरी की आयुसीमा पूरी कर चुके प्रशिक्षितों को सरकार मासिक पेंशन देने पर भी विचार कर सकती है।