भारत के सबसे लोकप्रिय और यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 27 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग को वैश्विक स्वीकृति दिलाने हेतू किये गए सद्प्रयासों और पहल के नतीजे में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दे दी |संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्यों में से तकरीबन 177 सदस्यों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता देने के प्रस्ताव पर अपनी सम्मति दी |सबसे बड़ी बात है कि 46 मुस्लिम देशों ने भी इस प्रस्ताव पर मुहर लगाई जिसमें ईरान, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी शामिल हैं |पाकिस्तान, अरब और मलेशिया जैसे जिन चंद देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया उसकी वजह या तो भारत के प्रति उनकी नफरत थी या कुछ कट्टरपंथियों का डर जिन्होंने योग को हिन्दू-विधि बता कर उसके खिलाफ फतवा दे रखा था |योग के गौरव पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लगाये गए मुहर के बाद सर्वत्र योग को लेकर चर्चाएं आरम्भ है, ऐसे में कुछ मुस्लिम बंधुओं के मन में यह प्रश्न भी उठ रहें हैं कि क्या हम भी योग कर सकतें हैं और हमारा योग करना कहीं शिर्क की श्रेणी में तो नहीं आ जाएगा? इस्लाम की तालीमात और इस आशय पर दुनिया के अलग-अलग मुल्कों से आये मौलानाओं के फतवे यह स्पष्ट कर देतें हैं कि योग सारी मानव जाति के लिए है और इसका किसी एक एक मजहब या किसी पूजा-पद्धति से तआल्लुक नहीं है |
योग गैर-इस्लामिक नहीं है
योग को लेकर फैलाए जाने वालों भ्रमों में सबसे बड़ा भ्रम ये है कि यह हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ है और इसे करना एक तरह का शिर्क है | 2008 में मलेशिया की ‘नेशनल फतवा काउंसिल’द्वारा योग के खिलाफ दिये गए फतवे का आधार इसी बात को बनाया गया था जबकि हकीकत में ऐसा बिलकुल भी नहीं है, महर्षि पतंजलि ने कहीं भी योग को धर्म अथवा उपासना पद्धति से नहीं जोड़ा है, तमाम योगाचार्य भी योग को हिन्दू धर्म की बजाय मानव मात्र से जोड़ कर देखते आये हैं |प्राणायाम के समय ॐ का जो परम्पराबद्ध उच्चारण किया जाता है वह इसे हिन्दू धर्म से इसे जोड़ता है, ऐसी आपत्ति की जाती है परन्तु योग गुरु स्वामी रामदेव जी तथा अन्य योगाचार्यों ने इस मसले पर ये तक कहा है कि प्राणायाम किसी भी मजहब के लोग कर सकतें है, अगर उन्हें ॐ से आपत्ति है तो ॐ के स्थान पर व्यक्ति अपनी मजहबी आस्था के अनुरूप कोई भी अन्य ईश्वरीय ध्वनि का भी उपयोग कर सकता है। मसलन मुसलमान ॐ के स्थान पर अल्लाह शब्द का प्रयोग कर सकतें हैं | (हालांकि ॐ किसी न किसी रूप में हर मजहब में है, जिसकी विस्तृत चर्चा इसी आलेख में है)
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने के प्रस्ताव का समर्थन 46 से अधिक मुस्लिम देशों द्वारा किया जाना इस तथ्य की पुष्टि करता है कि योग का विरोध मजहब से जोड़ कर करने वाले कम ही हैं, ज्यादातर इस्लामिक विद्वानों ने और मुस्लिम मुल्कों ने योग के पक्ष में ही बातें कहीं हैं |उन्होंने कहा है कि योग के गैर-इस्लामिक होने जैसी कोई बात नहीं है, मजहब से परे यह सेहतमंद रहने का मूलमंत्र है |यहाँ तक कि जब मलेशिया के कुछ कट्टरपंथी मौलवियों ने योग को गैर इस्लामिक बताया तब वहां के सुल्तान शरफुद्दीन इदरीस शाह नाराज़ हो गए |उन्होंने कहा कि इस्लामी काउंसिल को योगासन पर प्रतिबन्ध लगाने से पहले सुल्तान से मशवरा करना चाहिए था |एक तरह से यह सुल्तान द्वारा कट्टरपंथियों को लगाई गई फटकार थी |सुल्तान योग पर लगाये फतवे से सिर्फ आहत ही नहीं थे उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में सामान्य जनता पर असर डालने वाला कोई भी फतवा जारी करने से पहले उसे मंजूरी के लिए सुल्तान संघ (मलेशिया में सुल्तान शराफुद्दीन सहित नौ राज्यों के आठ अन्य सुलतान “शासक संघ” का हिस्सा हैं और बारी–बारी से इस देश का राजा बनते हैं। यद्यपि सुल्तान का पद मुख्यत: औपचारिक ही है लेकिन मलेशियाई मुस्लिमों में उनका बहुत मान हैं और इस समय सुल्तान शराफुद्दीन वहां के राजा हैं। सुल्तानों को वहां की मलय परंपरा का रखवाला और प्रतीकात्मक इस्लामी प्रमुख माना जाता है। यही दर्जा अन्य सुल्तानों को अपने-अपने राज्यों में हासिल होता है)के पास भेजा जाए |मलेशिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी धर्मगुरु के फतवे की सुल्तान ने सार्वजानिक रूप से आलोचना की, इतना ही नहीं मलेशिया की कुल आबादी के तकरीबन 60 फीसदी लोग योग के ऊपर लगाये गए इस फतवे के खिलाफ थे |इस फतवे पर बोलते हुए मलेशिया प्रधानमंत्री अब्दुल्लाह बदावी ने कहा था कि ‘अगर मुसलमान योग को केवल शारीरिक रूप से सेहतमंद रहने के लिए करते हैं तो इसमें कोई बुरी बात नहीं और न ही इस्लाम इसमें आड़े आता है।‘इंडोनेशिया के आलिम मौलवी मसऊदी ने भी बयान दिया था कि ‘इंडोनेशिया की उलेमा परिषद को इस मुद्दे पर फतवेबाजी नहीं करनी चाहिए थी ।‘उन्होंने ये भी कहा था कि ‘योग एक बहुत बढ़िया वर्जिश है और यदि किसी मुस्लिम आलिम ने इसके विरुद्ध फतवा दिया तो उससे पहले ही दुविधाओं से जूझ रहे इस्लाम और मुसलमानों पर कट्टपंथ का एक और ठप्पा लग जाएगा।‘उन्होंने फिर कहा कि ‘इसी प्रकार के ऊलजलूल फतवों के कारण पश्चिमी मीडिया मुसलमानों का मजाक उड़ाता है।’
योग के समर्थन में उठने वाली यह आवाज़ सिर्फ मलेशिया और इंडोनेशिया से ही नहीं उठी बल्कि दुनिया के सबसे बड़े मदरसों में एक दारुल उलूम देवबंद, भारत ने भी योग को इस्लामी पद्धति के आधार पर यह कहते हुए मान्य घोषित किया है कि इसमें ॐ के स्थान पर अल्लाह कह देना चाहिए या खामोश रहना चाहिए । दारुल उलूम देवबंद के मीडिया प्रवक्ता आदिल सिद्दीकी ने इस मुद्दे पर कहा कि ‘नमाज और योग में बस नाम का ही अंतर है और जब हम ‘कयाम’ में बैठकर नमाज पढ़ते हैं तो योग में उसे वज्रासन कहा जाता है और इससे हाजमा ठीक रहता है।’
योग का उद्देश्य हिन्दू धर्म प्रचार नहीं
यह यथार्थ है कि योग प्रचार का उदेश्य कभी भी ये नहीं होता कि इसके माध्यम से हिन्दू धर्म का प्रचार किया जाए या इसकी श्रेष्ठता साबित की जाए |योग गुरु बाबा रामदेव समेत जितने भी योग गुरु हैं उन्होंने योग का आधार लेकर हिन्दू-धर्म के प्रचार की कोशिश की हो इसका कोई उदहारण नही मिलता |योग-विद्या के प्रचार का एकमात्र उदेश्य केवल और केवल स्वस्थ और प्रसन्न कहने की एक बढ़िया विधि को फैलाना है | अशरफ एफ0 निजामी ने अपनी किताब “नमाज़ : द योग ऑफ़ इस्लाम”में स्पष्ट लिखा है, योग एक धर्म नहीं है अपितु विधियों और कौशलों का एक समुच्चय है जो किसी भी धर्म के व्यवहार को ऊँचाई पर ले जा सकता है |निजामी साहब ही की तरह के विचार ईसाई विद्वान फादर एम0 डी0 शैनल का भी है जिन्होंने अपनी लिखी पुस्तक में ये कहा कि योग ईसाई शिक्षाओं की और ले जाने वाला मार्ग है |महर्षि पतंजलि का योग शास्त्र का स्वरुप तो ऐसा है कि कोई नास्तिक भी इसे सहजता से कर सकता है |
नमाज़ भी एक तरह का योगासन है
योग शब्द की उत्पत्ति ‘यूज’धातु से हुई है, जिसका अर्थ है जोड़ना |जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला योग है |इस्लाम के पांच बुनियादी अर्कानों में एक नमाज़ भी है, जो एक ऐसी ध्यान विधि है जिसके द्वारा एक मुसलमान खुद को अपने माबूद के करीब करने की कोशिश करता है |योग के करने की क्रियाओं व आसनों को योगासन कहते है इसी आधार पर मिश्र के कई धर्मगुरुओं ने योग को इस्लामी व्यायाम करार दिया था। उन्होंने नमाज को योग और योग को नमाज बताया था। नमाज़ फ़ारसी भाषा का शब्द है, इस शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के शब्द नम (अर्थात झुकना) और यूज (अर्थात जोड़ना) से हुई है यानि इसका अर्थ योग शब्द के अर्थ के लगभग समानार्थी है |नमाज़ के लिए पवित्र कुरान और हदीसों में प्रयुक्त अरबी शब्द है, ‘सलात’जिसका शाब्दिक अर्थ है, निचली पीठ को झुकाना |इन सबका अर्थ ये है कि सलात, नमाज़ और योग ये अलग-अलग भाषाओँ में प्रयुक्त एकार्थी शब्द और एक ऐसा माध्यम है जो हमें हमारे रब के करीब पहुँचने में हमारी मदद करता है |योग और इस्लाम के बीच की कई साम्यतों में सबसे स्पष्ट समानता नमाज़ के आसनों और यौगिक क्रियाओं में प्रयुक्त शारीरिक व्यायामों में है |योग से पूर्व संकल्प किया जाता है तो एक नमाजी नमाज़ पढ़ने से उसकी नीयत करता है, नीयत का अर्थ है इरादा यानि नमाज़ आरंभ करते समय दिल में यह इरादा होना चाहिए कि मैं अब अपना सारा ध्यान अल्लाह की और करता हूँ |रसूल (सल्ल0) ने नमाज़ की नीयत करने की जो दुआ हमें सिखाई उसमें आता है, ‘इन्नी वज्ज्हतो वज्जिया’यानि ‘मैं अपना सारा ध्यान अल्लाह की और करता हूँ |’
योग हमारे मन, बुद्धि और शरीर को काबू में रखता है और नमाज़ से भी हम यही सब हासिल करतें हैं |अशरफ एफ0 निजामी नाम के मुस्लिम विद्वान् ने योग पर लिखी अपने एक पुस्तक ‘नमाज़: द योग ऑफ़ इस्लाम’में लिखा है कि जिस प्रकार नमाज़ से पूर्व वुजू किया जाता है, उसी प्रकार से योग का एक अंग शौच है जो शरीर की सफाई से जुड़ा है| निजामी साहब ने नमाज़ की अवस्थाओं और विभिन्न योगासनों को भी संबद्ध करते हुए अपनी किताब में लिखा है कि सजदा वस्तुतः शशंक आसन है जिससे दिल की बीमारियाँ और रक्तचाप ठीक रहतें हैं, इसी प्रकार नमाज़ का रुकू और योग का पश्चिमोत्तासन एक समान हैं को हमारे घुटनों के दर्द और पीठ की मांसपेशियों को ठीक रखतें हैं | योग और इस्लाम दोनों की तालीमों से अवगत कई मुसलमान है जो नमाज़ आदि इस्लाम के बुनियादी अर्कानों का पालन तो करते ही हैं साथ-साथ योग भी करतें हैं और इससे उनके इस्लाम पर खतरा भी नहीं आता |
मुसलमाओं के लिए योग पराया नहीं है
मानव के मन, बुद्धि और शरीर को ठीक रखने के लिए जो भी चीजें आवश्यक हैं, उन सबके इस्तेमाल की ताकीद नबी (सल्ल0) ने अपने उम्मतियों से की है और ऐसे निर्देश देते समय आप (सल्ल0) ने इस बात की कभी परवाह नहीं कि ये चीज़ अरब की नहीं है | इसकी पुष्टि के लिए कई उदाहरण दिए जा सकतें हैं, यथा आप (सल्ल0) ने अरब वालों को किस्तुलबहरी, जंजबील, मुश्क तथा सफ़रज़ल के इस्तेमाल की ताकीद की |चिकित्सीय गुणों से भरपूर किस्तुलबहरी का पौधा खुसूसन हिंदुस्तान में ही पाया जाता है |व्यापारियों के माध्यम से यह पौधा अरब पहुंचा था | रसूल (सल्ल0) ने अपनी कई हदीसों में पछने लगाने के साथ इसका जिक्र किया है | बुखारी शरीफ की एक हदीस (जो हजरत अनस से रिवायत है) में आता है, नबी(सल्ल0) ने फरमाया, पछने लगवाना इलाज है और हिंदीककड़ी बेहतरीन दवा है | जंजबील (अदरक) हिंदुस्तान से निकल कर पूरी दुनिया में मशहूर हुआ था |रसूल (सल्ल0) ने कई दफा इसके इस्तेमाल की ताकीद की थी | कन्नौज के राजा पातक के बारे में आता है कि आपकी मुलाकात नबी (सल्ल0) के कई बड़े-बड़े सहाबा से हुई थी और आपने नबी (सल्ल0) के पास बतौर तोहफा अदरक (जंजबील) का अचार भेजा था जिसे आपने बड़े प्रेम से खाया था और अपने सहाबियों को भी खिलाया था | मुश्क एक बेहतरीन खुशबू है जो हिमालय के वनों में विचरण करने वाले कस्तूरी मृगों के नाभि में पाया जाता है, आप (सल्ल0) ने कई दफा अपनी उम्मतियों को खुशबू के रूप में मुश्क के इस्तेमाल की सलाह दी |सफरजल यानि बेल एक ऐसी नेअमत है जिसकी मूल पैदावार हिंदुस्तान में है | नबी (सल्ल0) ने अपनी हदीस में फरमाया था, सफ़रज़ल खाओ क्यूंकि वह सीने से बोझ उतार देता है | जाहिर है जब रसूल (सल्ल0) ने कभी भी अपनी उम्मतियों को सिर्फ इस वजह से किसी नेअमत से इस्तेमाल से मना नहीं फरमाया कि वो उनके मुल्क का नहीं तो फिर हम कौन होते हैं जो मानव मन, बुद्धि और शरीर के लिए फायदेमंद योग जैसी नेअमत से खुद को महरूम रखें?
महान योगी भी थे मुहम्मद (सल्ल0)
ओशो रजनीश ने एक जगह कहा है, योग का संबंध इस्लाम, सिख, जैन, हिन्दू आदि से नहीं है |जीसस, मुहम्मद, बुद्ध, महावीर जिसने भी सत्य का साक्षात्कार किया, बिना योग के नहीं किया क्योंकि सत्य का साक्षात्कार योग के बिना नहीं हो सकता |मुहम्मद (सल्ल0) अल्लाह के तरफ से भेजे गए एक बरगुजीदा पैगम्बर तो थे ही साथ ही आपके किरदारों से ये भी जाहिर होता था कि आप (सल्ल0) एक बेहद उच्च कोटि के योगी भी थे|
आष्टांग योग और मुहम्मद (सल्ल0)- महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित योग को ही ‘आष्टांग’योग कहा जाता है,योग के आठ अंग होने के कारण ही इसे आष्टांग कहा जाता है |योग के ये आठ अंग हैं- (1)यम (2)नियम (3)आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7) ध्यान (8)समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप-अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान। योग की परिभाषा देते हुए पतंजलि कहते हैं- 'योगाश्चित्त वृत्तिनिरोधः'अर्थात योग चित्त की वृत्तियों का संयमन है।चित्त वृत्तियों के निरोध के लिए महर्षि पतंजलि ने जिस अष्टांग योग साधना के बारे में बताया है,रसूल (सल्ल0) की मुक़द्दस जिन्दगी में वो सब परिलक्षित होता है|
1).यम:- यह सामाजिक नैतिकता से जुड़ा है, कायिक, वाचिक तथा मानसिक संयम इसका आधार है |इसके तहत अहिंसा (अर्थात अपने शब्द, विचार या कर्म से किसी की भी हानि नहीं करना), सत्य (अर्थात हर हालत में सत्य पर अडिग रहना), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (चेतना को ब्रह्मज्ञान में अवस्थित करना)तथा अपरिग्रह (आवयकता से अधिक संचित नहीं करना तथा दूसरे की वस्तुओं की कामना नहीं करना) ये पाँच आचार विहित हैं। इनका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन और समाज दोनों ही दुष्प्रभावित होते हैं।
नबी करीम (सल्ल0) के महान व्यक्तित्व में ये सारे ही गुण थे |
अहिंसा - आप (सल्ल0) ने अपनी जिन्दगी में कभी भी अपने शब्द अथवा व्यवहार से किसी को हानि नहीं पहुंचाई |आप अहिंसा प्रिय थे और खुदा की बनाई हर रचना से प्रेम करते थे |आपकी रहमत सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं थी वरन् आपके रहमत के समंदर में बेजुबान जानवर और परिंदें भी बसते थे। ये दया इतनी ज्यादा थी कि एक बिल्ली को तकलीफ देने वाली एक महिला के बारे में आपने फरमाया था कि यह औरत इस बिल्ली के कारण नरक में दाखिल होगी, जिसने इसे बांध दिया और न ही उसे छोड़ा ताकि वह जमीन के कीड़े-मकोड़े खा सके |अबू दाऊद शरीफ में ही एक हदीस आई है जो हजरत अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्ला से रिवायत है, वो फरमातें हैं कि हम लोग एक बार नबी (सल्ल0) के साथ सफर में थे। इस बीच नबी (सल्ल0) हाजत के लिये गये तब तक हम एक चिड़ियाँ देखी जो अपने दो बच्चों के साथ थी। हमने उसके चूजों को पकड़ लिया तो उसकी मां जमीन पर आकर तड़पने लगी, इसी बीच रसूल (सल्ल0) आ गये और फरमाया, किसने इस चिड़ियाँ के बच्चों को तकलीफ दी है? इसके बच्चे को अभी वापस लौटाओ। जिस अरब में लोग इंसान के जिंदा रहने के हक को गवारा नहीं करते थे , उस अरब में रसूल (सल्ल0) ने जानवरों और पशु-पक्षियों के जिंदगी का हक निर्धारित किया आपने फरमाया, जो कोई व्यक्ति बगैर किसी अपराध के किसी गौरैया या उससे बड़े जानवर को मारता है, तो अल्लाह तआला उससे कियामत के दिन इस बारे में उससे सवाल करेगा। (नसाई शरीफ)
सत्य - आपकी सीरत से यह बात भी साबित है आपने अपनी जिन्दगी में हमेशा हक़ (सत्य) पर डटे रहे और कोई भी प्रलोभन आपको सत्य-पथ से डिगा नहीं सका |
अस्तेय (चोरी न करना) - आप पहले इंसान थे जिन्होंने बर्बर अरबों को चोरी जैसी अपराध करने से रोका और उसके लिए कठोर सजा निर्धारित की |
ब्रह्मचर्य - ब्रह्मचर्य का एक अर्थ चेतना को ब्रह्म में अवस्थित करना भी है |रसूल (सल्ल0)का मन और चेतना हर वक़्त ईश्वर से जुड़ा रहता था |खुदा से आपकी ताअल्लुक का आलम ये था कि आप आधी रात या पहर रहते बिस्तर से उठ जाते, मिस्वाक फरमाते, वुजू करते और इबादत में जुट जाते |आप तमाम उम्र तहज्जुद के पाबन्द रहे और कई दफा तो आप सारी-सारी रात खुदा की इबादत में खड़े रहते थे |बुखारी शरीफ में बीबी आयशा (रजि0) से रिवायत एक हदीस है, वो कहतीं हैं मैंने रसूल (सल्ल0) से पूछा, ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल0)|क्या आप वित्र की नमाज़ से पूर्व सो जातें हैं? आपने कहा, ऐ आयशा |मेरी आँखें सोती है पर दिल नहीं सोता |अबू दाऊद शरीफ के किताबुल-तहारत में आता है, हजरते आयशा का बयान है कि रसूल (सल्ल0)हर वक़्त, हर घड़ी, हर लम्हा सिर्फ जिक्रे-इलाही में मसरूफ रहते थे |
अपरिग्रह (आवयकता से अधिक संचित नहीं करना तथा दूसरे के वस्तुओं की कामना नहीं करना) -खुदा ने आप (सल्ल0) को यह अख्तियात दे रखा था कि आप चाहे तो एक शाहाना जिन्दगी बसर करें अथवा किसी फ़कीर की जिन्दगी बसर करे, आपने फ़कीर की जिन्दगी गुजारनी पसंद की और इसी वजह से खुदा ने आपको तमाम नबियों से आला मर्तबा अता किया और क़यामत के दिन आपको सबसे पहला सिफारिश करने वाला होने का एजाज़ बख्शा |आपके फकीराना जिन्दगी का पता इससे भी चलता है कि फतह-मक्का के बाद जब अरब के लगभग तमाम कबीले इस्लाम की गोद में आ चुके थे तब भी आप एक फ़कीर की जिन्दगी जी रहे थे |जुर्कानी ने लिखा है कि उस रोज भी आपके बदन पर जो चादर थी उसकी कीमत 4 दिरहम से ज्यादा न थी |बीबी आयशा (रजि0) आपके अपरिग्रह के बारे में कहतीं हैं कि कई बार तो महीनों गुजर जाते थे और आप (सल्ल0) के घर में चूल्हा नहीं जलता था और आपके पास सिवाय खजूर और पानी के कुछ नहीं होता था पर आपके कभी भी खुदा से इसकी शिकायत नहीं की और हमेशा उनकी दी नेमतों पर सब्र किया |
(2).नियम : इसके तहतमनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने से लेकर उसकी व्यक्तिगत नैतिकता का विचार किया गया है। इनके अंतर्गत शौच (यानि शरीर और मन की शुद्धि यानि बाह्य तथा अंतर दोनों ही प्रकार की शुद्धि आती है) , संतोष (उपलब्ध साधनों में ही प्रसन्न रहना), तप (अनुशासित रहना), स्वाध्याय (आत्मचिंतन) तथा ईश्वर प्राणिधान (यानि ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण) का समावेश है।
शौच -नबी (सल्ल0) का मिजाज़ निहायत ही नफासत पसंद था, आपमें आंतरिक शुद्धता तो थी ही और बाह्य शुद्धता से भी आप पाबंद थे |खुद भी साफ़-सफाई से रहते थे और दूसरों से भी साफ़-सफाई से रहने की उम्मीद करते थे |एक आदमी को अपने मैला कपड़ा पहने देखा तो इरशाद फरमाया, इससे इतना भी नहीं होता कि यह अपने कपड़े को धो सके |इसी तरह आपने एक बार एक शख्स को देखा जिसके बाल उलझे हुए थे, आपने फरमाया, क्या उसको कोई ऐसी चीज़ (तेल, कंघी) नहीं मिलती जिससे यह अपने बालों को सँवारे | (अबू दाऊद)
जिस अरब समाज में नबी (सल्ल0) की विलादत हुई थी, उस समाज के लोग साफ़-सफाई और वातावरण का ध्यान रखते थे, वो इस बात को जानते थे कि इन्सान के शरीर, बुद्धि और मन को संतुलित रखने के लिए स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता होती है |इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि जब नबी (सल्ल0) अपने दूध पीने के जमाने में थे तब आपको बनू-साद कबीले की बीबी हलीमा के हवाले कर दिया गया ताकि आप अरब के देहात के स्वच्छ और खुशगवार वातावरण में पल-बढ़ सकें और आपकी सेहत अच्छी हो सके |
संतोष (उपलब्ध साधनों में ही प्रसन्न रहना)- आप (सल्ल0) को खुदा ने जितनी नेअमतें दी थी आप उसमें प्रसन्न रहते थे |एक बार अल्लाह ने आप (सल्ल0) से पूछा, ऐ हबीब |अगर आप चाहें तो मैं मक्का ही पहाड़ियों को सोना बना दूं मगर आपने इसको पसंद नहीं किया और फरमाया, ऐ मेरे रब |मुझे यही ज्यादा महबूब है कि मैं एक दिन भूखा रहूँ और एक दिन खाना खाऊं, ताकि भूख के दिन खूब तुझसे दुआ मांग सकूं और तेरी हम्दो-सना करने हुए शुक्र बजा लाऊं |आप ऐसे चारपाई पर लेटते थे जो खुरदरे रस्सी से बुनी हुई थी |जब आप बगैर बिछौने के उस चारपाई पर लेटते थे तो आपके नाजुक जिस्म पर रस्सियों के निशान पड़ जाया करते थे | (शिफा शरीफ)
तप (अनुशासित रहना)–अनुशासन ही मनुष्य को महान बनाती है, यह सनातन सत्य है |रसूल (सल्ल0) अपनी जिन्दगी में बेहद अनुशासनशील थे जो आपके व्यवहार से, उपदेशों से स्पष्ट परिलक्षित होता है |पवित्र कुरान ने सूरह आले-इमरान में आप (सल्ल0) के इसी स्वभाव के बारे में फरमाया है, ‘ऐ हबीब |खुदा की रहमत से आप लोगों के साथ नरमी से पेश आते हैं |अगर आप कहीं बदअख्लाक और सख्तदिल होते तो यह लोग आपके पास से हट जाते |’आप (सल्ल0) का अपने उपर पूरा नियंत्रण भी था इसका पता उनकी सीरत की इस घटना से चलता है जो हजरत अनस से रिवायत है, वो फरमाते हैं, मैं एक बार नबी (सल्ल0) के हमराह चल रहा था और आप एक नजरानी चादर ओढ़े हुए थे जिसके किनारे मोटे और खुरदरे थे तभी एक बदबी ने आपको पकड़ लिया और ऐसे जबर्दस्त झटके के साथ आपके चादर को खींचा कि आप (सल्ल0) की नर्म और नाज़ुक गर्दन पर चादर के किनारे से खराश आ गई |उस बदबी ने आपसे माल तलब की, आप उस बदबी की तरफ मुड़े और हंस पड़े फिर उसको कुछ माल अता करने का हुक्म दिया |आपके इस व्यक्तिगत अनुशासन के बारे में बीबी आयशा (रजि0) फरमाती हैं, ‘अपनी जात के लिए कभी भी रसूल (सल्ल0) ने किसी स इंतकाम नहीं लिया |’आपकी सीरत में एक नहीं बल्कि हजारों वाकियातें हैं जिससे पता चलता है कि आपने हर मौके पर खुद को अनुशासित रखा, सब्र किया, इंतकाम की कुव्वत रहते हुए भी इंतकाम नहीं लिया |
स्वाध्याय (आत्मचिंतन)- आपका रूहानी ताल्लुक हर वक़्त खुदा के साथ रहता था |नुबुब्बत मिलने से पहले भी जब आप अरब के लोगों को मार-धार, कत्लो-गारत के कामों में लगा देखते थे तो आप गहन चिंतन में डूब जाया करते थे और प्रायः कई-कई दिनों तक हीरा नाम पर पहाड़ी पर जाकर ध्यानस्थ हो जाया करते थे |मुस्लिम शरीफ में आपके बारे में आता है, आप प्रायः ईशा की नमाज़ के बाद बातचीत नापसंद फर्माते थे |हजरत हिन्द बिन अबू हाला का बयान है कि आप (सल्ल0) बिला जरूरत किसी से गुफ्तगू नही करते थे और अक्सर खामोश रहा करते थे | (शमाईले-तिरमिज़ी) हजरत जाबिर बिन समुरा ने भी आप (सल्ल0) के बारे में यही फ़रमाया कि आप अधिकतर खामोश रहा करते थे |
ईश्वर प्राणिधान (यानि ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण)-आप (सल्ल0) ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित थे |आम इंसान तो नींद में सबसे कटा सपनों के दुनिया में खोया रहता है और सबसे बेखबर रहता है पर आप (सल्ल0) की नींद का ताअल्लुक केवल आँखों से था और दिल ईश्वर से जुड़ा रहता था |हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह फरमाते हैं, कुछ फ़रिश्ते नबी (सल्ल0) के पास उस वक़्त आये जबकि आप सो रहे थे |फरिश्तों ने आपस में कहा, आप (सल्ल0) सोये हुए हैं |किसी फ़रिश्ते ने कहा, आँखें सो रही है मगर दिल तो जाग रहा है | (बुखारी)
(3)आसन: महर्षिपतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है। आसन का उद्देश्य आसनों के द्वारा शारीरिक नियंत्रण करना है |कुरान के सूरह-अनकबूत की एक आयत में आता है, इस्लामी नमाज़ बुराइयों, पापों, अश्लीलताओं आदि सभी निषिद्ध कर्मों से रोकती है |(नमाज़ भी एक तरह या योगासन है जिसकी चर्चा इस आलेख में विस्तार से हो चुकी है)आप (सल्ल0) को हजरत जिब्रील (अलैहे0) ने नमाज़ सिखाई और आपने यही नमाज़ अपने उम्मतियों को सिखाई और कहा नमाज़ मोमिनों का मेराज़ (उत्थान) है |नमाज़ अल्लाह और उसके बन्दों के बीच संबंध स्थापित करता है |आप (सल्ल0) ने अपने उम्मतियों को नमाज़ में दो सजदों के बीच जो दुआ सिखाई उसमें एक लब्ज आता है, ‘वरफाअनी’यानि मेरा रफा फरमा दे, मेरा आध्यात्मिक उत्थान कर |यानि नमाज़ न सिर्फ गुनाहों से पाक रखती है बल्कि हमें आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक ले जाती है और कुर्बे-इलाही नसीब करती है |आप (सल्ल0) अपनी जिन्दगी में नमाज़ के बेहद पाबंद थे और कभी भी अपनी नमाज़ तर्क नहीं करते थे |आप (सल्ल0) पंचगाना के अलावे नफ्ल नमाज़ें भी पढ़ते थे और रातों को उठ-उठ कर नमाज़े पढ़ा करते थे |
(4)प्राणायाम: - योग की यथेष्ट भूमिका के लिए नाड़ी साधन और उसके जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है। इस्लाम में कुरान शरीफ की सुंदर आवाज़ में तिलावत करने की बड़ी अहमियत है |हकीम जी0 एम0 चिश्ती ने अपनी पुस्तक ‘द बुक ऑफ़ सूफी हीलिंग’में लिखा है, ‘आरंभ से अंत तक हमारा जीवन सतत साँसों का समुच्चय है और सूफी परम्परा में सांस लेने का तरीका योग की तरह ही है |’कुरान की तिलावत करने वाले कई कारी सांसों के अभ्यास के जरिये ही कुरान की बेहतरीन तिलावत करते हैं |आप (सल्ल0) स्वयं भी बेहतरीन आवाज़ में सांसो के समन्वय के साथ तिलावत करते थे और ऐसा करने वालों को प्रोत्साहित भी करते थे|एक बार हजरत अबू मूसा अशअरी की कीरत से खुश होकर आपने फ़रमाया था, लगता है खुदा ने तेरे गले में हजरत दाऊद का साज़ रख दिया है|
(5)प्रत्याहार: इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियाँ मनुष्य को बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है। आप (सल्ल0) का अपनी इन्द्रियों पर पूरा नियंत्रण था और अपने उम्मतियों को भी आपने यही तालीम दी थी |
तिरमिज़ी शरीफ में हजरत फजाला बिन उबैद से रिवायत है, आप (सल्ल0) ने फरमाया, मुजाहिद वह है जो अपने नफ्स से जिहाद करे यानि नफ्स के खिलाफ चलने की कोशिश करे |
हजरत अबू हुरैरा फरमाते हैं, नबी (सल्ल0) ने इरशाद फर्माया, दुनिया मोमिन के लिए कैदखाना है तथा काफ़िर के लिए जन्नत है |
हजरत शद्दाद बिन औस से रिवायत है, रसूल (सल्ल0) ने इरशाद फ़रमाय, समझदार आदमी वह है जो अपने नफ्स का मुहासबा करता रहे और नासमझ आदमी वह है जो नफ्स की इच्छाओं पर चले | (तिरमिज़ी)
हजरत अब्दुलाह बिन अम्रू से रिवायत है, नबी (सल्ल0) ने इरशाद फ़रमाया, कोई शख्स उस वक्त तक कामिल ईमान वाला नहीं हो सकता जबतक कि उसकी नफ्सानी चाहतें इस दीन के तआबे न हो जाए जिसे मैं लेकर आया हूँ |
(6)धारणा एवम् (7).ध्यान - चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना अथवा एकाग्र होना ही धारणा है और जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती। ध्यान योग का एक महत्वपूर्ण तत्व की नहीं है अपितु योग की आत्मा भी है, जो शरीर, मन, बुद्धि तथा आत्मा के बीच लयात्मक संबंध बनाती है, हमारी उर्जा को केन्द्रित करती है |उर्जा के केन्द्रित होने से शरीर तथा मन में शक्ति का संचार होता है और हमारा आत्मिक बल बढ़ता है |प्राचीन काल से ही तमाम योगी और महान आत्माएं इसी ध्यान-धारणा क्रिया के द्वारा उर्जा को संचित कर न केवल आत्मिक एवम् परलौकिक ज्ञान और दृष्टि प्राप्त करते रहे हैं बल्कि दैवीय वाणियों का प्रकटन भी उन तक हुआ है |ध्यान और धारणा अनावश्यक और नकारात्मक विचारों को मन से निकालकर शुद्ध, सकारात्मक और आवश्यक विचारों को हमारे मस्तिष्क में जगह देता है | ध्यान और धारणा के लिए मन को एकाग्र करने के साथ-साथ शुद्ध, एकांत और पवित्र वातावरण भी चाहिए जहाँ शांति को और मन को विचलित करने वाले तत्व न हो | इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद (सल्ल0) साहब की मुक़द्दस जिन्दगी का जब 35वां वर्ष शुरू हुआ तब आप तन्हाई पसंद हो गए |आप (सल्ल0) आये दिन अरब के कबीलों के बीच होने वाले खून-खराबा, मार-धार, उनके रहन-सहन और उनकी वहशत से परेशान थे और इन्हीं हालातों के बीच जब आपकी उम्र 40 साल की हुई तो आप (सल्ल0) मक्का-मुकर्रमा से तकरीबन तीन मील दूर स्थित ‘जबले-हीरा’नामी पहाड़ी के ऊपर एक गार में चले जाया करते थे |यह पहाड़ी ध्यान-धारणा के लिए माकूल जगह थी क्योंकि यहाँ सुकून, अमन और मुक़द्दस वातावरण था |यहाँ आप (सल्ल0) कई-कई दिनों का खाना-पानी साथ ले जाते थे और वहां के पुरसुकून माहौल में इबादते-इलाही में ध्यानस्थ (मसरूफ) हो जाया करते थे |इसी गारे-हीरा में ध्यानस्थ रहने के क्रम में एक दिन आपको ईश्वरीय दूत जिब्रील (अलैहे0) का दीदार हुआ और उनके माध्यम से आप (सल्ल0) को पहली ईश्वरीय वाणी का संप्रेषण भी हुआ |
(8).समाधि :- योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है। आत्मा का परमात्मा से योग इसी अवस्था में होता है |हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की जिंदगी में शबे-मेराज की घटना काफी महत्व का है, कहा जाता है कि इस मेराज के सफ़र में आप (सल्ल0) को दीदारे-इलाही (खुदा का दर्शन) नसीब हुआ और उम्मत पर नमाज़ फ़र्ज़ की गई; इतना ही नहीं इस मेराज के दौरान आप (सल्ल0) को उम्मत पर पेश आने वाली प्रगतियों के दृश्य भी दिखाए गये | मुसलमानों के अंदर मेराज को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं |मुसलमानों का एक वर्ग है जिसकी मान्यता है कि रसूल (सल्ल0)का यह मेराज जिस्म और रूह के साथ हुआ था जबकि दूसरा वर्ग यह मानता है कि रसूल का मेराज उनके पार्थिव शरीर के साथ नहीं हुआ था बल्कि यह एक “सर्वोत्कृष्ट कशफ़” था जिसमें मनुष्य अपने बिस्तर पर लेते हुए भी दूरवर्ती देशों का सफ़र तय कर लेता है |एक तीसरा वर्ग भी है जो रसूल साहब के एक मेराज को योग से जोड़ता है |जावेद खान (जो ताईकोआन्डों के क्षेत्र में एक जाने-माने नाम हैं) ने माता निर्मला के सानिध्य में ‘सहज योग’ सीखा और अपने अनुभवों को उन्होंने ‘इस्लाम इनलाईटेंड’ यानि ‘इस्लाम ज्ञानालोक में’नाम से लिखी अपनी किताब में कलमबद्ध किया |इस किताब में उन्होंने रसूल (सल्ल0) के मेराज को उनकी आध्यात्मिक ऊँचाई से जोड़ा है और सात आसमानों के उनकी सैर की तुलना शरीर में मौजूद सात चक्रों से की है | इस मेराज की घटना और योग शास्त्र का अध्ययन स्पष्ट कर देता है कि जावेद साहब द्वारा की गई मेराज की यह व्याख्या ही वैज्ञानिकता के धरातल खड़ा है और अहले-इल्म के हर एतराज का माकूल जबाब भी है | महर्षि पतंजलि ने अपने ´योग दर्शन´ शास्त्र में शरीर में मौजूद 7 चक्रों का वर्णन किया है, योग में इन चक्रों को सूक्ष्म शरीर का सप्तचक्र कहते हैं। इन सातों चक्रों पर ध्यान करने अर्थात मन को लगाने से आध्यात्मिक व अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। सूक्ष्म शरीर के इन 7 चक्रों का नाम इस प्रकार है-
• मूलाधार चक्र- यह जननेन्द्रिय और गुदा के बीच स्थित है।
• स्वाधिष्ठान चक्र- यह उपस्थ में स्थित है।
• मणिपूर चक्र- यह नाभिमंडल में स्थित है।
• अनाहद चक्र- यह हृदय के पास स्थित है।
• विशुद्धि चक्र- यह चक्र कंठकूप में स्थित है।
• आज्ञा चक्र- यह भ्रमध्यम में स्थित है।
• सहस्त्रार चक्र- यह मस्तिष्क में स्थित है।
इन सारे चक्रों से हमारे कुछ न कुछ क्रियाकलाप जुड़े हुए हैं, जैसे मूलाधार चक्र की उर्जा अगर गड़बड़ हो जाए तो फिर ऐसे व्यक्तियों की प्रवृति काम और हिंसा की तरफ बढ़ती है, स्वाधिष्ठान चक्र की गड़बड़ी इन्सान को अकर्मण्य बना देती है वो मौज-मस्ती और विलासिता में ही जीवन गुजार देता है |इसलिए योगी योग साधना और उसके नियमों के जरिये इन चक्रों की उर्जा को समायोजित करता है. इस कार्य में सर्वोत्कृष्ट होना तब कहलाता है जब इंसान इन चक्रों की उर्जाओं को साध लेता है |कहा जाता है कि कुंडलिनी उर्ध्वगामी होकर "बढ़ती"है, विभिन्न केंद्रों को भेदती हुई सिर के शीर्षस्थान पर जा पहुंचती है, परिणामस्वरूप परमात्मा से मिलन होता है। रसूल साहब के मेराज को देखिये तो ठीक वहां भी ऐसा ही घटित हुआ था , पहले आसमान से लेकर हर आसमान पर जिब्रील की मार्फ़त खुदा ने आपको स्वास्थ्य, देह-शुद्धी, सदाचार, यम-नियम, आहार-विहार इन बातों को समझाया और जब आपने सातवें आसमान यानि सहस्त्रसार चक्र को साधित कर लिया तो वहां आपको कुर्बे-इलाही नसीब हुई. जावेद खान साहब ने तो अपनी किताब में ये तक लिखा है कि जिस बुर्राक से रसूल का 7वें आसमान पर जाना हुआ था वो बुर्राक दरअसल कुंडलिनी है |
नुबुब्बत मिलने से पहले रसूल (सल्ल0) का पाकीजा चरित्र
आप (सल्ल0) के सर से आपके वालिद का साया आपकी विलादत से पूर्व ही हट गया था और आपके सर पर माँ की छाया भी सिर्फ 6 साल ही रही |आमतौर पर देखा जाता है कि यतीम बच्चे सामाजिक परिवेश और अनाथ होने के तानों से खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं और माँ-बाप के परवरिश के अभाव के कारण उनका किरदार ठीक ढ़ंग से जाहिर नहीं हो पाता पर नबी (सल्ल0) के साथ ऐसा नहीं था |रसूल (सल्ल0) के ऊपर पहली वही तब नाजिल हुई जब आप (सल्ल0) अपनी उम्र के 40 वें साल में थे, परन्तु नबी (सल्ल0) के किरदार की ऊँचाई नुबुब्ब्त मिलने के बाद दिखनी शुरू हुई ऐसा नहीं है, नुबुब्बत मिलने से पहले की उनकी जिन्दगी भी उतनी की पाक और संयमित थी |पूरे मक्का में कोई भी नहीं था जिसके मन में आपके चरित्र और स्वभाव को लेकर कोई नकारात्मक धारणा हो |आप (सल्ल0) के दिल में सबके लिए रहमत और इन्साफ का भाव था |लोग अपनी अमानतें आपके पास रखते थे, आपने कभी झूठ नहीं बोला, न किसी मजलूम को सताया, किसी का हक नहीं मारा और न ही कभी किसी के खिलाफ झूठी गवाही दी |आपके इस गैर-मामूली किरदार की वजह संभवतः यही थी कि आप एक ऊँचे दर्जे के योगी भी थे और एक योगी के किरदार की पूर्णता आचार, विचार, व्यवहार सभी में झलकती है जो आपके व्यक्तित्व से भी परिलक्षित है |
ॐ को लेकर आपत्तियां
हर धर्म में है ॐ - हमारे महान ऋषियों ने हज़ारों साल पहले कहा था कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय जो ध्वनि उत्पन्न हुई थी वह ॐ की ध्वनि थी और समूचे ब्रह्मांड सर्वत्र ॐ की ध्वनि की गुंजित हो रही है |आधुनिक वैज्ञानिक लम्बे समय से इस कोशिश में थे कि सूर्य से निकलने वाली ध्वनि को रिकॉर्ड किया जाए पर उन्हें सफलता मिली जब नासा ने 11 फरवरी, 2011 को Solar Dynamics Observatory (SDO) के माध्यम से सूर्य से निकलने वाले चुम्बकीय तरंगो को ध्वनि में रूपांतरित किया तो वो स्तंभित रह गए क्योंकि सूर्य से लगातार निकलने वाली ध्वनि ॐ की थी और यह ध्वनि स्पष्ट सुनाई भी दे रही थी |माण्डुक्य उपनिषद के अनुसार यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ और म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है. “म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. तथा यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है | सामान्य शब्द में कहा जाए तो निराकार इश्वर को एक शब्द में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है | ॐ शब्द के उच्चारण से हमारे आसपास सकारात्मक उर्जा फैलने लगता है | ॐ केवल हिन्दुओं का नहीं है, ब्रहमांड के कल-कल में निनादित यह ध्वनि केवल हिन्दुओं की नहीं है, बल्कि सबकी है | हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि दुनिया के प्रायः हर धर्म में यह शब्द है ,
बौद्ध धर्म में ॐ - बौधों का मूल मन्त्र ॐ है, उनका प्रसिद्ध मन्त्र है, ॐ मणि पद्मे हुं
जैन धर्म में ॐ -
जैन ग्रंथों में ॐ की महिमा है, जैन ग्रंथों में आता है कि अर्हत, अशरीरी. आचार्य, उपाध्याय और मुनि इन पाँचों के प्रथम अक्षरों को मिलाकर ॐ बनता है, जो बीज मन्त्र है |
सिख धर्म में ओंकार - सिखों के पवित्र ग्रंथों में भी सर्वप्रथम ओंकार यानि ॐ ही लिखा गया हैं ओंकार सतनाम करता पुरख
यहूदी और ईसाई मजहब में ॐ- ईसाइयत की भी मान्यता है कि एक ध्वनि नाद सृष्टि उत्पत्ति का कारण है, युहन्ना की इंजील में आता है, आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। प्रभु ईसा ने कहा था कि मैं अल्फ़ा और ओमेगा हूँ (ओमेगा शब्द ॐ से ही निःश्रित है)
इस्लाम धर्म में ॐ - 1905 में स्वामी रामतीर्थ लखनऊ में कुछ मौलवियों के साथ शास्त्रार्थ करने आये थे, राम ने उन मौलवियों से ॐ का उच्चारण करने को कहा और इसके उच्चारण से मिलने वाली शांति और सकारात्मक उर्जा का एहसास करवाया |स्वामीजी ने उन मौलवियों से कहा कि ॐ का प्रणव नाद ब्रह्माण्ड के कण-कण में तो है ही साथ ही ॐ की विलक्षणता बताते हुए कहा, आंग्लभाषा में OMसे शुरू होने वाले शब्द भी ईश्वर के गुणों के द्योतक हैं जैसे,Omnicompetent अर्थात सर्वकार्यसक्षम, Omniscient अर्थात सर्वज्ञ, Omniscint अर्थात अंतर्यामी, Omnipotent अर्थात सर्वशक्तिमान, Omniscience अर्थात सर्वज्ञ, Omnipresent अर्थात सर्वव्यापी | इसके बाद स्वामी रामतीर्थ ने उन मौलवियों से कहा, आपके कुरान के सूरह बकरह की जो पहली आयत हैं अलिफ़, लाम, मीम उसका अर्थ क्या है? मौलवियों ने कहा, इसका अर्थ हमें नहीं पता क्योंकि खुदा ने इसे हमसे छुपा कर रखा है और क़यामत के दिन इसका अर्थ बताएगा; तब राम ने उन्हें अरबी व्याकरण के हवाले से समझाया कि कई दफा व्यंजन से पहले और स्वर के बाद अगर लाम आये तो उसका उच्चारण वाओ अर्थात अंग्रेजी अक्षर O की तरह होता है, (उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया, निजामुद्दीन को अरबी में निजमुलद्दीन लिखतें हैं पर पढ़ते हैं निजामुद्दीन) यानि अलिफ़, लाम मीम का अर्थ है ॐ | उपरोक्त तथ्यों से यह साबित है ॐ किसी एक मजहब का नहीं है, ॐ रुपी ब्रहमांड नाद के उच्चारण को योग में रखने का उद्देश्य यही था कि इसके उच्चारण के द्वारा हम सकारात्मक और तेजोमयी उर्जा से परिपूर्ण हो सकें | इसलिए योग के दौरान ॐ शब्द का जप या उच्चारण गैर-इस्लामिक नहीं है फिर भी अगर किसी को इसके उच्चारण से आपत्ति है तो वह ॐ की जगह अल्लाह का उच्चारण करके भी योग कर सकता है|
योग का संदेश : खुश रहना और खुशियाँ बांटना- योग का एक बड़ा मकसद खुद भी खुश रहना और अपने माध्यम से दूसरों को भी खुश रखना है |योग हमें हमारी क्रोध, इर्ष्या, जलन आदि की बुरी भावना से हमें मुक्त करता है तो जाहिर है योग के माध्यम से हमारा व्यवहार ऐसा हो जाता है कि दूसरे भी हमसे खुश रहतें हैं |इस्लाम में एक पूरा महीना ही इबादत, परहेज और रूहानी तरक्की के लिए रख दिया गया है |रमजान का महीना पूरे एक महीने तक के इम्तेहान का महीना है क्योंकि इसमें इन्सान एक महीने तक आहार-विहार का संयम रखता है, अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता है और रब की इबादत में मशगूल रहता है |फिर इस कड़े परीक्षा के महीने के बाद बतौर तोहफा आता है ईद का त्यौहार जो खुश रहने और खुशियाँ बांटने का त्यौहार है |खुशहाल लोग, अपनी अपनी हैसियत से कुछ पैसा या जरूरत का सामान गरीब लोगों को देते हैं। इस तरह उन लोगों को भी जिनकी माली हैसियत उतनी नहीं है, ईद की खुशी में शामिल किया जाता है। एक तरह से यह इस त्यौहार का बड़ा संदेश है कि दुनिया को बनाने वाले की नज़र में उसकी कोई भी रचना छोटी नहीं है |खुद भी खुश रहना और खुशियाँ बांटना जिन्दगी का मकसद है, यही योग और ईद दोनों का सन्देश है |
अंत में-
योग भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा विश्व को दी गई सबसे अमूल्य देन है, जो केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं अपितु सारे मानव जाति के लिए एक वरदान है |योग केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, महर्षि पतंजलि के अनुसार यह शरीर मन, बुद्धि और आत्मा को जोड़ने की समग्र जीवन पद्धति है। शास्त्रों में 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:', ‘मनः प्रशमनोपायः योगः’ तथा ‘समत्वं योग उच्यते’ आदि विविध प्रकार से योग की व्याख्या की गयी है, जिसे अपनाकर व्यक्ति शान्त व निरामय जीवन का अनुभव करता है। योग का अनुसरण कर संतुलित तथा प्रकृति से सुसंगत जीवन जीने का प्रयास करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसमें दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों और मतों के मानने वाले शामिल हैं | योग हम सबके लिए है इसलिए वो लोग जो योग और इस्लाम दोनों ही की तालीम से अवगत हैं, मानतें हैं कि योग जाहिर और बातिन दोनों को परिशुद्ध करने का रास्ता है |वो मानतें हैं कि अगर सही मनोभाव के साथ इस्लाम का अध्ययन किया जाए तो योग के गैर-इस्लामिक होने लायक कोई बात ही नहीं है क्योंकि इस्लाम की तो यह मान्यता है कि मानव-शरीर खुदा की नेअमत है जिसे ठीक रखना मानव की अपनी जिम्मेदारी है और इसलिए योग इसका एक बेहतर माध्यम हो सकता है |योग को किसी धर्म विशेष से जोड़कर उससे द्वेष करने के बजाय शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जोड़कर देखना उदार दृष्टि का परिचायक है। हर धर्म के कुछ सकारात्मक पहलू होते हैं इसलिए जो भी इन सकारात्मक बातों को अपने कट्टरपंथ में नकारता है तो ऐसा करके वह केवल अपना ही नहीं अपितु अपने धर्मभाइयों का भी नुकसान करता है। इसलिए आज ये आवश्यक है कि मानव-कल्याण की भावना रखने वाला हर व्यक्ति खुद भी योग रुपी खुदाई नेअमत से जुड़े और योग के सन्देश को दुनिया के कोने-कोने में प्रसारित करे।
(अभिजीत )