बालीवुड ने कलाकारों का हमेशा ही सम्मान किया है,लेकिन कुछ लोगों की सोच रही है,कि यहां पर सिर्फ खुबसूरत चेहरे लोगों की ही डिमांड रही है,लेकिन इस अपवाद को ओमपुरी,नाना पाटेकर,मनोज बाजपेयी,आशुतोष राणा, इरफान खान, राधिका आप्टे, रिचा चड्ढा, सुशांत सिंह जैसे कलाकरों ने झुठला कर एक नई पहचान दी है।
जब नाना पाटेकर ने फिल्म अकंुश से फिल्मों में कदम रखा तो असाधारण से चेहरो दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गया उनके दमदार संवाद स्व.राजकुमार जी की यादोें को ताजा कर देते थे। कुछ साल पहले मनोज बाजपेयी ने जब फिल्म ‘सत्या’ में काम किया तो रातों रात एक समान्य सा चेहरा दर्शकों के सर पर चढकर बोलने लगा और इसके बाद में उनके पास ढेरांे फिल्मों प्रस्ताव आने लगे और आशुतोष राणा ने जो संसार बुना था, या उनसे भी पहले ओमपुरी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल और नसीरुद्दीन शाह ने जिस तरह से हमारे सिनेमा को नया चेहरा देने में सफलता अर्जित की थी, ये नए चेहरे भी उसी राह पर चल रहे हैं।
दरअसल, ओमपुरी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल और नसीरुद्दीन शाह का सामान्य चेहरा, उनकी सहज स्वाभाविक अभिनय कला और सरलता से सब कुछ जी जाने का सादगी भरा स्वभाव ही उन्हें सफल अभिनेताओं की श्रेणी में खड़ा करने में सफल साबित हुआ है। ओमपुरी की फिल्में ‘अर्थ सत्या,आस्था,घायल,कृष्णा,बिल्लू,जाने भी दो यारों’......आज भी उनके अभिनय के कारण याद की जाती है।जबकि स्मिता पाटिल और ओमपुरी अभिनीत मिर्च मसाला व अक्रोश बेहतरीन फिल्मों में से है।
फूली हुई आंखों और खुरदुरे चेहरे वाले इरफान खान की अब तक की फिल्मों को देखकर को कोई भी उनके चेहरे और अभिनय तो नहीं भुला सकता। जयपुर से निकलकर मुंबई की फिल्मों में काम करके सिनेमा के जरिए देश भर के दिलों में जगह बनाने वाले बेहद सामान्य चेहरे मोहरेवाले इरफान को हमारा सिनेमा जिस तरह से सिर आंखों पर बिठाकर सम्मान दे रहा है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि सरल सामान्य और सजह चेहरे मोहरे वाले इन कलाकारों को हमारा सिनेमा लंबी रेस के खिलाड़ी के रूप में ले रहा है। क्योंकि इन्हें लेकर बहुत कम खर्च में भी फिल्म बनाना बहुत आसान है और उससे कमाई निकालना उससे भी ज्यादा आसान। वर्तमान में हमारी नई पीढ़ी के कलाकार अपनी शक्ल सूरत के दम पर नहीं बल्कि अभिनय कला के बूते पर सिनेमा के आकाश पर छाने की कोशिश में है।
‘‘गैंग्स ऑफ वासेपुर‘‘, ‘‘तलाश‘‘, ‘‘किक‘‘ और ‘‘बजरंगी भाईजान‘‘ जैसी हिट फिल्मों का हिस्सा रहे नवाजुद्दीन के मजबूत कंधे हाल ही में आई अपनी फिल्म ‘‘मांझी द माउंटेन मैन’ को भी सफलता के सिरहाने पर ले जाने में कामयाब रहे हैं। चरम स्तर के परम आनंद और घनघोर व घटाटोप निराशा, हताशा किस्म के पागलपन और उत्कृष्ट किस्म की ईमानदारी के साथ किए गए दृढ़ संकल्प के सामने सदियों से खड़े पहाड़ को भी नवाज ने अपने सामान्य से चेहरे तोड़ डाला।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी की शक्ल सूरत कोई खास नहीं हैं। लेकिन पूरी की पूरी फिल्म को अपने कंधों पर खड़ा करके सफलता के ठिकाने लगा देने का माद्दा सिर्फ शक्ल से नहीं आता। वह तो अक्ल से आता है और अभिनय से पैदा होता है। नवाजुद्दीन अगर चॉकलेटी चेहरे वाले कोई ग्लैमरस हीरो होते, तो क्या यह मुश्किल काम कर पाते? दरअसल, सामान्य शक्लों की बिना पर सफलता की इस नई राह बनाने वाले कलाकारों की लंबी लिस्ट है।
फिल्म ‘‘मसान‘‘ में स्वेता त्रिपाठी और रिचा चड्ढा ने बहुत सादगी भरे अभिनय के बावजूद अपनी जो दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है, वह कई जमी-जमाई अभिनेत्रियों को भी आश्र्चयचकित कर रही है।तो स्वेता ने ‘‘मसान‘‘ में अपनी अलग तरह की जो एक्टिंग की, उसके लिए तारीफें बटोरी हैं। नया चेहरे वाले अभिनव कुमार ने अनिल शर्मा की एक फिल्म में काम करने के बाद फिल्म ‘जी लेने दो एक पल’में मैंन लीड किरदार में है। पति ,पत्नी के संबधों पर आधारित यह फिल्म इन दिनों खासी चर्चा में है । अभिनव कहते है कि ‘हमारे सिनेमा में भी दुनिया के हर फील्ड की तरह बहुत कॉम्पीटिशन है। नए आर्टिस्ट अगर नए तरीके से कुछ नया नहीं करेंगे, तो नए लोग तो इस भीड़ में जल्दी ही खो जाएंगे। वह कहते है कि जब आप नए हैं, फिर भी पुराने ढर्रे पर ही काम करेंगे, तो जल्दी आउट हो जाएंगे। नए लोगों के सामने सबसे बड़ा चैलेंज नए तरीके ईजाद करने का है। ‘मसान’ फिल्म से सुर्खियों में आई और फिल्मों के बारे में गंभीरता से सोचने वाली रिचा चड्ढा का भी चेहरा बहुत सामान्य ही है। वह पहली नजर में हमें आपके - हमारे जैसी ही लगती है। लेकिन अपने अभिनय के बूते पर रिचा ने यह साबित कर दिया कि वह जमी जमाई अभिनेत्रियों से बहुत अलग है। रिचा कहती हैं कि ‘जब आप दुनिया की निगाहों में हैं, तो आपके लिए जरूरी हो जाता है कि आप दुनिया के सामने कुछ ऐसा करें, जो उसे प्रेरित करे।’
सामान्य सी लगने वाली स्वरा भास्कर भी है, जो कुल मिलाकर सिर्फ दो साल से हमारे सिनेमा की दुनिया में है, लेकिन लोगों के दिलों में जगह बनाने में सफल रही है। ‘‘मछली’ और ‘‘रांझणा’ के बाद ‘‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में फिर से नजर आई स्वरा भास्कर हैं तो हीरोइन, लेकिन वह न तो किसी हीरोइन जैसी दिखती हैं न ही उनकी तरह जीती हैं। बहुत साधारण चेहरे की हैं स्वरा भास्कर। लेकिन कमाल की कलाकार हैं। अभिनय के मामले में स्वरा किसी भी नामी हीरोइन से कम नहीं। फिल्मों से पहले टेलीविजन धारावाहिक ‘‘संविधान’ में काम कर चुकी स्वरा इप्टा से जुड़ी थीं और नुक्कड़ नाटकों में काफी सक्रिय रहीं। उन नाटकों में उनके अभिनय क्षमता को जबरदस्त मिली तारीफ ही उन्हें मुंबई खींच लाई। लुक में बेहद घरेलू दिखने वाली स्वरा का व्यवहार भी घरेलू लोगों जैसा ही है। वह हीरोइन में नहीं आना चाहती।
जब स्वरा मुंबई आई थीं, तो लोग उनके ड्रेसिंग सेंस और मेकअप तक के बारे में भी कई तरह के कमेंट करते थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने दो फिल्मों में अपने भीतर छिपे कलाकार की कला जा जलवा दिखाया, तो सारे शांत हो गए। दिल्ली की रहने वाली स्वरा के स्वरा बचपन से ही दूरदर्शन पर आने वाले ‘‘चित्रहार’ की दीवानी थी और सपने देखती थी कि एक दिन वह भी इसमें दिखेंगी। स्वरा कहती है कि उनका चित्रहार से उनका प्रेम ही उन्हें मुंबई ले आया। ‘‘शुद्ध देसी रोमांस‘‘ में सुशांत सिंह राजपूत और परिणीति चोपड़ा के साथ काम करके खुद के अभिनय का लोहा मनवा चुकी है।
दिल्ली की रहने वाली वाणी मॉडलिंग से फिल्मों में आई हैं। वह कोई बहुत ग्लैमरस चेहरे वाली नहीं है, फिर भी उन्हें यशराज जैसे बड़े बैनर की मिल गई। फिल्मों के लिए वाणी को कोई संघर्ष करना नहीं पड़ा। वाणी कपूर को अभिनय आता है। सिनेमा की तरह न तो उनकी जिंदगी की कहानी में कोई ड्रामा है और ना ही सस्पेंस। ना कोई रोमांच। लेकिन वे अपने अभिनय के बूते पर पहली ही फिल्म से लगातार सफलता का आसमान बुनती गई।
भूमि पेडणोकर ने ‘दम लगा के हइशा’ में जिस तरह से अपनी कला क्षमता की ताकत दिखाई वह अपने आप में बहुत अदभुत मानी जा रही है। यशराज फिल्म्स की फिल्म को सफलता के शिखर पर बिठाने वाली भूमि पेडणोकर अपने भारी भरकम शरीर और बड़े से चेहरे की वजह से कहीं से भी फिल्मों में काम करने लायक अभिनेत्री नहीं लगती। और पहली नजर में तो यह भी कतई नहीं लगता कि वह किसी फिल्म को सफलता के शिखर पर बिठा देंगी। लेकिन ‘‘दम लगा के हईसा’ में भूमि ने अपने सरल और सादगी भरे अभिनय का जो जलवा दिखाया, वह अपने आप में बहुत बड़ा उदाहरण है।
धमा चैकडी और अब ‘जी लेने दो एक पल’ में अपने अभिनय के रंग बिखरने वाली रोजलीन अपनी नयी फिल्म को लेकर सुखर््ीियों में है। उन्होंने बताया कि ‘आम कथानक से हटकर यह फिल्म वर्तमान की समस्यों पर आधारित है।’पिछलें दिनों रोजलीन खान चर्चाओं में रहीं मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटकांे में किये अभिनय को लेकर। वह कहती है कि आज बालीवुड में असमान्य से चेहरे वाली नए जमाने की नई फिल्मों औसत चेहरे वाले नए कलाकारों को भी अच्छी खासी वाह वाही मिल रही है और उसका कारण सिर्फ और सिर्फ उनकी अभिनय प्रतिभा है।
दो करोड़ में बनने वाली फिल्म बीए पास को पूरे अठारह करोड़ रुपये कमाई कराने वाली हीरोइन शिल्पा शुक्ला अगर आपके सामने आकर खड़ी हो जाए, तो आप कतई नहीं मानेंगे कि यह कोई हीरोइन है। लेकिन अपने बहुत सहज स्वाभाविक अभिनय के बूते पर ‘‘बीए पास’ में शिल्पा ने अपनी कला का जो जलवा दिखाया, उसे देखकर बड़े-बड़ों को सोचने को मजबूर होना पड़ा। राधिका आप्टे भी कोई हीरोइनों वाले बहुत चमकदार चेहरे की मालकिन नहीं है। हां, इतना जरूर है कि उनका चेहरा पहली ही नजर में दिमाग में रजिस्टर हो जाता है। राधिका ने हाल ही में ‘‘मांझी द माउंटेन मैन’ में जो किरदार निभाया, वह उन्हीं के बस की बात थी। फिल्म जगत के जानकार बताते हैं कि अगर राधिका अपने अभिनय को और परिष्कृत करे और ग्लैमर को हावी न होने दे, तो उनमें स्मिता पाटिल जैसे चेहरे व गंभीरता की छाप साफ दिखती है। उन्होंने विद्या बालन और इमरान हाशमी के साथ ‘‘हमारी अधूरी कहानी’ में भी अपने अभिनय को दिखाया । राजकुमार राव के अभिनय में भी गजब का दम देखा जा रहा है।