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सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की सूची में मोदी नौवें स्थान पर

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नयी दिल्ली ,04 नवंबर , मशहूर अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फोर्ब्स के ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व के दस सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों की कतार में शामिल हो गये हैं। सर्वेक्षण में श्री मोदी को नौवें पायदान पर रखा गया है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन इस सूची में शीर्ष पर हैं। फोर्ब्स ने 73 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की आज एक सूची जारी की जिसमें रिलायंस उद्योग के अध्यक्ष मुकेश अंबानी 36 वें ,आरसिलो मित्तल के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी लक्ष्मी मित्तल 55वें पर और माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सत्य नडेला 61वें स्थान पर हैं। फोर्ब्स ने कहा कि भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के कार्यकाल के पहले वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में 7.4 प्रतिशत की वृृद्धि हुई। इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्राओं के वक्त उनकी छवि एक वैश्विक नैता के रूप में उभर कर सामने आई। उनके सिलिकॉन वैली के दौरे ने भारत में आधुनिक तकनीक को व्यापक महत्व दिये जाने को रेखांकित किया। 

फोर्ब्स ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा के साथ ही उन्हें आगाह भी किया है। फोर्ब्स ने कहा,“ सवा सौ करोड की आबादी का नेतृत्व करना आसान काम नहीं हैं। अब श्री मोदी काे अपने पार्टी के सुधार के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए आैर विपक्ष को काबू में करना चाहिए। ” प्रभावशाली लोगों की सूची में श्री मोदी के बाद जगह बनाने वाले अगले भारतीय है मुकेश अंबानी। फोर्ब्स ने कहा कि मुकेश अंबानी ने भारत के सर्वाधिक धनाड्य व्यक्ति की पोजीशन को बरकरार रखा है। वह करीब एक दशक से इस स्थान पर बने हुए हैं। श्री पुतिन लगातार तीसरे वर्ष इस सूची में पहले पायदान में बने हुए हैं। पत्रिका ने कहा कि रूस के राष्ट्रपति ने यह सिद्ध किया है कि वह विश्व के उन चंद प्रभावशाली लोगों में से हैं जो अपने मन की करते हैं। क्रीमिया पर रूस के कब्जे और यूक्रेन में उसके दखल के बाद चौतरफा आलोचना तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध ने रूस को गहरे संकट में डाल दिया था लेकिन इससे बावजूद श्री पुतिन को कोई फर्क नहीं पड़ा ।

समान्य चेहरे वाले कलाकारों की धूम

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anil kapoor nana patekar
बालीवुड ने कलाकारों का हमेशा ही सम्मान किया है,लेकिन कुछ लोगों की सोच रही है,कि यहां पर सिर्फ खुबसूरत चेहरे लोगों की ही डिमांड रही है,लेकिन इस अपवाद को ओमपुरी,नाना पाटेकर,मनोज बाजपेयी,आशुतोष राणा, इरफान खान, राधिका आप्टे, रिचा चड्ढा, सुशांत सिंह जैसे कलाकरों ने झुठला कर एक नई पहचान दी है।

जब नाना पाटेकर ने फिल्म अकंुश से फिल्मों में कदम रखा तो असाधारण से चेहरो दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गया उनके दमदार संवाद स्व.राजकुमार जी की यादोें को ताजा कर देते थे।   कुछ साल पहले मनोज बाजपेयी ने जब फिल्म ‘सत्या’ में काम किया तो रातों रात एक समान्य सा चेहरा दर्शकों के सर पर चढकर बोलने लगा और इसके बाद में उनके पास ढेरांे फिल्मों प्रस्ताव आने लगे और आशुतोष राणा ने जो संसार बुना था, या उनसे भी पहले ओमपुरी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल और नसीरुद्दीन शाह ने जिस तरह से हमारे सिनेमा को नया चेहरा देने में सफलता अर्जित की थी, ये नए चेहरे भी उसी राह पर चल रहे हैं।

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दरअसल, ओमपुरी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल और नसीरुद्दीन शाह का सामान्य चेहरा, उनकी सहज स्वाभाविक अभिनय कला और सरलता से सब कुछ जी जाने का सादगी भरा स्वभाव ही उन्हें सफल अभिनेताओं की श्रेणी में खड़ा करने में सफल साबित हुआ है। ओमपुरी की फिल्में ‘अर्थ सत्या,आस्था,घायल,कृष्णा,बिल्लू,जाने भी दो यारों’......आज भी उनके अभिनय के कारण याद की जाती है।जबकि स्मिता पाटिल और ओमपुरी अभिनीत मिर्च मसाला व अक्रोश बेहतरीन फिल्मों में से है।

फूली हुई आंखों और खुरदुरे चेहरे वाले इरफान खान की अब तक की फिल्मों को देखकर को कोई भी उनके चेहरे और अभिनय तो नहीं भुला सकता। जयपुर से निकलकर मुंबई की फिल्मों में काम करके सिनेमा के जरिए देश भर के दिलों में जगह बनाने वाले बेहद सामान्य चेहरे मोहरेवाले इरफान को हमारा सिनेमा जिस तरह से सिर आंखों पर बिठाकर सम्मान दे रहा है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि सरल सामान्य और सजह चेहरे मोहरे वाले इन कलाकारों को हमारा सिनेमा लंबी रेस के खिलाड़ी के रूप में ले रहा है। क्योंकि इन्हें लेकर बहुत कम खर्च में भी फिल्म बनाना बहुत आसान है और उससे कमाई निकालना उससे भी ज्यादा आसान। वर्तमान में हमारी नई पीढ़ी के कलाकार अपनी शक्ल सूरत के दम पर नहीं बल्कि अभिनय कला के बूते पर सिनेमा के आकाश पर छाने की कोशिश में है। 

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‘‘गैंग्स ऑफ वासेपुर‘‘, ‘‘तलाश‘‘, ‘‘किक‘‘ और ‘‘बजरंगी भाईजान‘‘ जैसी हिट फिल्मों का हिस्सा रहे नवाजुद्दीन के मजबूत कंधे हाल ही में आई अपनी फिल्म ‘‘मांझी द माउंटेन मैन’ को भी सफलता के सिरहाने पर ले जाने में कामयाब रहे हैं। चरम स्तर के परम आनंद और घनघोर व घटाटोप निराशा, हताशा किस्म के पागलपन और उत्कृष्ट किस्म की ईमानदारी के साथ किए गए दृढ़ संकल्प के सामने सदियों से खड़े पहाड़ को भी नवाज ने अपने सामान्य से चेहरे तोड़ डाला।

  नवाजुद्दीन सिद्दीकी की शक्ल सूरत कोई खास नहीं हैं। लेकिन पूरी की पूरी फिल्म को अपने कंधों पर खड़ा करके सफलता के ठिकाने लगा देने का माद्दा सिर्फ शक्ल से नहीं आता। वह तो अक्ल से आता है और अभिनय से पैदा होता है। नवाजुद्दीन अगर चॉकलेटी चेहरे वाले कोई ग्लैमरस हीरो होते, तो क्या यह मुश्किल काम कर पाते? दरअसल, सामान्य शक्लों की बिना पर सफलता की इस नई राह बनाने वाले कलाकारों की लंबी लिस्ट है। 
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फिल्म ‘‘मसान‘‘ में  स्वेता त्रिपाठी और रिचा चड्ढा ने बहुत सादगी भरे अभिनय के बावजूद अपनी जो दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है, वह कई जमी-जमाई अभिनेत्रियों को भी आश्र्चयचकित कर रही है।तो स्वेता ने ‘‘मसान‘‘ में अपनी अलग तरह की जो एक्टिंग की, उसके लिए तारीफें बटोरी  हैं।  नया चेहरे वाले अभिनव कुमार ने अनिल शर्मा की एक फिल्म में काम करने के बाद फिल्म ‘जी लेने दो एक पल’में मैंन लीड किरदार में है। पति ,पत्नी के संबधों पर आधारित यह फिल्म इन दिनों खासी चर्चा में है । अभिनव  कहते है कि ‘हमारे सिनेमा में भी दुनिया के हर फील्ड की तरह बहुत कॉम्पीटिशन है। नए आर्टिस्ट अगर नए तरीके से कुछ नया नहीं करेंगे, तो नए लोग तो इस भीड़ में जल्दी ही खो जाएंगे। वह कहते है कि जब आप नए हैं, फिर भी पुराने ढर्रे पर ही काम करेंगे, तो जल्दी आउट हो जाएंगे। नए लोगों के सामने सबसे बड़ा चैलेंज नए तरीके ईजाद करने का है।       ‘मसान’ फिल्म से सुर्खियों में आई और फिल्मों के बारे में गंभीरता से सोचने वाली रिचा चड्ढा का भी चेहरा बहुत सामान्य ही है। वह पहली नजर में हमें आपके - हमारे जैसी ही लगती है। लेकिन अपने अभिनय के बूते पर रिचा ने यह साबित कर दिया कि वह जमी जमाई अभिनेत्रियों से बहुत अलग है। रिचा कहती हैं कि ‘जब आप दुनिया की निगाहों में हैं, तो आपके लिए जरूरी हो जाता है कि आप दुनिया के सामने कुछ ऐसा करें, जो उसे प्रेरित करे।’

सामान्य सी लगने वाली स्वरा भास्कर भी है, जो कुल मिलाकर सिर्फ दो साल से हमारे सिनेमा की दुनिया में है, लेकिन लोगों के दिलों में जगह बनाने में सफल रही है। ‘‘मछली’ और ‘‘रांझणा’ के बाद ‘‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में फिर से नजर आई स्वरा भास्कर हैं तो हीरोइन, लेकिन वह न तो किसी हीरोइन जैसी दिखती हैं न ही उनकी तरह जीती हैं। बहुत साधारण चेहरे की हैं स्वरा भास्कर। लेकिन कमाल की कलाकार हैं। अभिनय के मामले में स्वरा किसी भी नामी हीरोइन से कम नहीं। फिल्मों से पहले टेलीविजन धारावाहिक ‘‘संविधान’ में काम कर चुकी स्वरा इप्टा से जुड़ी थीं और नुक्कड़ नाटकों में काफी सक्रिय रहीं। उन नाटकों में उनके अभिनय क्षमता को जबरदस्त मिली तारीफ ही उन्हें मुंबई खींच लाई। लुक में बेहद घरेलू दिखने वाली स्वरा का व्यवहार भी घरेलू लोगों जैसा ही है। वह हीरोइन में नहीं आना चाहती। 

 जब स्वरा मुंबई आई थीं, तो लोग उनके ड्रेसिंग सेंस और मेकअप तक के बारे में भी कई तरह के कमेंट करते थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने दो फिल्मों में अपने भीतर छिपे कलाकार की कला जा जलवा दिखाया, तो सारे शांत हो गए। दिल्ली की रहने वाली स्वरा के स्वरा बचपन से ही दूरदर्शन पर आने वाले ‘‘चित्रहार’ की दीवानी थी और सपने देखती थी कि एक दिन वह भी इसमें दिखेंगी। स्वरा कहती है कि उनका चित्रहार से उनका प्रेम ही उन्हें मुंबई ले आया। ‘‘शुद्ध देसी रोमांस‘‘ में सुशांत सिंह राजपूत और परिणीति चोपड़ा के साथ काम करके खुद के अभिनय का लोहा मनवा चुकी है। 

दिल्ली की रहने वाली वाणी मॉडलिंग से फिल्मों में आई हैं। वह कोई बहुत ग्लैमरस चेहरे वाली नहीं है, फिर भी उन्हें यशराज जैसे बड़े बैनर की मिल गई। फिल्मों के लिए वाणी को कोई संघर्ष करना नहीं पड़ा। वाणी कपूर को अभिनय आता है। सिनेमा की तरह न तो उनकी जिंदगी की कहानी में कोई ड्रामा है और ना ही सस्पेंस। ना कोई रोमांच। लेकिन वे अपने अभिनय के बूते पर पहली ही फिल्म से लगातार सफलता का आसमान बुनती गई।
   भूमि पेडणोकर ने ‘दम लगा के हइशा’ में जिस तरह से अपनी कला क्षमता की ताकत दिखाई वह अपने आप में बहुत अदभुत मानी जा रही है। यशराज फिल्म्स की फिल्म को सफलता के शिखर पर बिठाने वाली भूमि पेडणोकर अपने भारी भरकम शरीर और बड़े से चेहरे की वजह से कहीं से भी फिल्मों में काम करने लायक अभिनेत्री नहीं लगती। और पहली नजर में तो यह भी कतई नहीं लगता कि वह किसी फिल्म को सफलता के शिखर पर बिठा देंगी। लेकिन ‘‘दम लगा के हईसा’ में भूमि ने अपने सरल और सादगी भरे अभिनय का जो जलवा दिखाया, वह अपने आप में बहुत बड़ा उदाहरण है। 

   धमा चैकडी और अब ‘जी लेने दो एक पल’ में अपने अभिनय के रंग बिखरने वाली रोजलीन अपनी नयी फिल्म को लेकर सुखर््ीियों में है। उन्होंने बताया कि ‘आम कथानक से हटकर यह फिल्म वर्तमान की समस्यों पर आधारित है।’पिछलें दिनों रोजलीन खान चर्चाओं में रहीं मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटकांे में किये अभिनय को लेकर।  वह कहती है कि आज बालीवुड में असमान्य से चेहरे वाली नए जमाने की नई फिल्मों औसत चेहरे वाले नए कलाकारों को भी अच्छी खासी वाह वाही मिल रही है और उसका कारण सिर्फ और सिर्फ उनकी अभिनय प्रतिभा है।

  दो करोड़ में बनने वाली फिल्म बीए पास को पूरे अठारह करोड़ रुपये कमाई कराने वाली हीरोइन शिल्पा शुक्ला अगर आपके सामने आकर खड़ी हो जाए, तो आप कतई नहीं मानेंगे कि यह कोई हीरोइन है। लेकिन अपने बहुत सहज स्वाभाविक अभिनय के बूते पर   ‘‘बीए पास’ में शिल्पा ने अपनी कला का जो जलवा दिखाया, उसे देखकर बड़े-बड़ों को सोचने को मजबूर होना पड़ा। राधिका आप्टे भी कोई हीरोइनों वाले बहुत चमकदार चेहरे की मालकिन नहीं है। हां, इतना जरूर है कि उनका चेहरा पहली ही नजर में दिमाग में रजिस्टर हो जाता है। राधिका ने हाल ही में ‘‘मांझी द माउंटेन मैन’ में जो किरदार निभाया, वह उन्हीं के बस की बात थी। फिल्म जगत के जानकार बताते हैं कि अगर राधिका अपने अभिनय को और परिष्कृत करे और ग्लैमर को हावी न होने दे, तो उनमें स्मिता पाटिल जैसे चेहरे व गंभीरता की छाप साफ दिखती है। उन्होंने विद्या बालन और इमरान हाशमी के साथ ‘‘हमारी अधूरी कहानी’ में भी अपने अभिनय को दिखाया ।  राजकुमार राव के अभिनय में भी गजब का दम देखा जा रहा है। 

पाकिस्तानी फिल्म में करीना कपूर

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बॉलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर एक पाकिस्तानी फिल्म में नजर आ सकती हैं। पाकिस्तान के मशहूर फिल्म निर्देशक शोएब मंसूर ने कुछ दिनों पहले एक फिल्म का कंसेप्ट करीना कपूर को ईमेल के जरिये भेजा। करीना को आइडिया पसंद आया, लेकिन हां कहने के पहले वे पूरी स्क्रिप्ट सुनना चाहती हैं। 

सूत्रों के मुताबिक जल्दी ही दुबई में करीना और शोएब मिलेंगे। वहां करीना को शोएब पूरी स्क्रिप्ट सुनाएंगे। बताया जा रहा है कि करीना ने फिल्म करने का मन बना लिया है।  संभव है कि फिल्म की शूटिंग वे पाकिस्तान में भी करें।

इस स्टार को भी जोड़ा करण ने अपनी फिल्म से

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करण जौहर की फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल'में रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन और अनुष्का शर्मा लीड रोल में हैं, लेकिन कई कलाकारों को छोटी-छोटी भूमिकाओं के लिए भी वे राजी कर रहे हैं। लिसा हेडन और फवाद खान के बाद करण ने अपनी इस फिल्म के लिए सैफ अली खान को भी राजी कर लिया है। 


सैफ को लिए जाने की चर्चा कुछ दिनों पहले भी हुई थी, लेकिन सैफ ने तब इंकार कर दिया था। करण तो ठहरे जिद के पक्के। आखिर वे सैफ को राजी कर ही माने। सैफ का रोल छोटा लेकिन महत्वपूर्ण होगा। 

व्यंग : नेता जी कहिन, अबकी बार, गाय हमार,

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देश में एक मौसम सदाबहार रहता हैं. जाने का नाम ही नही लेता है. वो है चुनावी मौसम. कभी इस राज्य में तो कभी उस राज्य में. जहां भी ये मौसम शुरू होता है. वहां तो जैसे चार चांद लग जाते हैं.गली मोहल्लों में चहल-पहल बहुत बढ़ जाती है. 

चाय की दुकानों पर दो चुस्की चाय के साथ राजनीति की गरम पकौड़ी भी छलने लगती है. बस चाय पीते रहो, और राजनीति की पकौड़ी खाते रहो. गलियारों में  संगीत सुनाई देता है. देश भक्ति का संगीत. फिर थोड़े देर में वही संगीत दूसरी भाषा बोलने लगता है. 

आप के प्यारे चहेते नेता जी को, कांटे में फंसी मछली के निशान पर मोहर लगाकर भारी मतों से विजयी बनाए.  अरे भाई निशान काफी अच्छा मिला है. जैसे मछली कांटे में फंसी है उसी तरह इस मौसम में अपने लुभावने वादे में नेता जी जनता को फंसा रहे है. आज खटियापुर गांव में नेता जी की सभा है लोगों में भी जबरजस्त उत्साह है. 

आखिरकार पांच सालों के बाद अपने प्यारे नेता जी को देख रहे थे. गांव में घूमती हुई गाड़ी में टेप रिकॉर्ड से नेता जी के वादें बज रहे हैं. धीरे-धीरे भीड़ भी जमा हो रही थी. जब चुनावी आंधी चलती  है, तो राजनेता से ज्यादा जनता में इसका असर देखा जाता है. 

चाय की दुकान पर कुछ लोग बैठें बातें कर रहे थे. एक ने कहा इस बार अपने यहां से तो इस बार दूसरी पार्टी का नेता जीत रहा है. तभी दूसरे ने कहा अरे नही, चुनावी हवा तो कांटे में फंसी मछली पर है. भाई दो बार से जीत रहे हैं. तभी पहले वाले ने कहा, भाई नेता जी कहिन रहय, गांव में पानी की व्यवस्था, सड़क, बिजली, जीतकर आएगें तो सुधार देंगे. 

लेकिन दो बार से जीतकर आते रहें हैं, कुछ नही किया. तभी नेता जी के समर्थन में उतरे दूसरे ने कहा, भाई नेता जी जो कहिन रहय वह पूरा करवावय के लिए पैसा भेजत ही, लेकिन बिचवैलिए खा जात थी. तभी साय साय चार-पांच गाडियां चाय की दुकान के पास से गुजरी. चाय वाले ने भी अपनी गुगली फेंकी. अरे भाई लगता है नेता जी आ गए हैं. चलो भाषण सुनते हैं. एक बार फिर खटियापुर गांव के लोग अपनी खटिया छोड़ नेता जी के भाषण सुनने के लिए खड़े हो गए.

 नेता जी भीड़ देखकर खुश थे. अब नेता जी का भाषण शुरू हुआ. नेता जी कहिन, मेरे भाइयों आप के बीच फिर मैं आया हूं. चुनाव होने वाला है. जैसे आप ने दो बार सेवा का अवसर दिया था. एक बार फिर मुझको सेवा का अवसर दे. इतना सुनते ही तालियों से पूरा गांव गूंज उठा. नेता जी ने कहा, नेता जी ने कहा मैने तो गांव का विकास करने की पूरी कोशिश की. 

पर क्या करे राज्य में हमारी सरकार नही है.  नेता जी को पता था कि सड़क, बिजली, पानी का वादा तो हर बार करता हूं. इस पर तो कुछ बोल नही सकता. तभी उनके ऊंचे मंच से एक गाय नजर आ गई. लो भैया अब क्या था. मुद्दा मिल गया था. नेता जी ने गाय पर बोलना शुरू कर दिया. देश में गाय पर राजनीति को देखते हुए, कहा हम जीते तो गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करवाएगें. 

बीफ को बैन करवा देगें. अब बेचारे न समझ गांव वालों को क्या पता बीफ तो पहले से बैन है. मंच से कुछ दूर बंधी हुई गाय ने अपनी आवाज निकाली. ऐसा लग रहा था वो नेता जी से कुछ कह रही थी. शायद वो कह रही थी, कि हम सबका भी पहचान पत्र बनवा दो, ताकि हम मतदान कर सके.

 आप ने हमारे बारे में इतना सोचा है तो हमारा भी कुछ फर्ज बनता है. भाषण समाप्त करते हुए नेता जी कहिन, गांव वालों अबकी बार, गाय हमार, लोगों ने ताली तो बजा दी. अब देश में लोकतंत्र है. जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है. जनता अपना नेता चुनकर ला रही है. अब पशुओं पर वादे करेगें तो नही पूरा होने पर कोई कह भी नही सकता. 

अब गाय आकर थोड़े पूछेंगी. आप ने जो वादा किया था उसका क्या ? इतना कहते हुए नेता जी गाड़ी में अपने लोगों को समझा रहे थे.



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रवि श्रीवास्तव
लेखक, कवि, कहानीकार, व्यंगकार
ravi21dec1987@gmail.com
9452500016

विशेष : इजरायल का इतिहास और भारत को सुरक्षा सीख

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इजरायल एक यहूदी देश है। इसके इतिहास पर लिखना काफी विवादास्पद मामला रहा है, परंतु मोटे तौर पर यहूदी, वर्तमान इजरायल की स्थापना से पहले तक अपने आपको अपने देश से निर्वासित प्रवासी समूह के रूप में परिभाषित करते रहे हैं। ये भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित फिलिस्तीन को अपना बुनियादी देश मानते हैं। प्रथम शताब्दी ईस्वी से पूर्व इस क्षेत्र में जूडिया और इजरायल राज्य थे, जिनकी राजधानी येरूशलम थी। ये मुख्यतया यहूदी राज्य थे। प्रथम शताब्दी में रोमन साम्राज्य ने इन्हें कब्जे में कर लिया। यहूदी यूरोप के देशों को भागने को मजबूर हो गए और सदियों तक धीरे-धीरे वहीं रच बस गए।12वीं शताब्दी के बाद यहूदियों को समेटिक धर्म विरोधी भावनाओं के फैलाने के कारण इंग्लैंड, फ्रांस और मध्य यूरोप के देशों से निकाला जाने लगा। बहुत से यहूदी रूस, पोलैंड आदि पूर्वी यूरोप के देशों में बस गए। उनमें से काफी अपने मूल देश फिलिस्तीन को लौट पड़े। 

1492 में राजा फर्डिनैंड और रानी ईसाबेला ने इटली से तमाम यहूदियों को निष्कासित कर दिया। उनमें से भी काफी फिलिस्तीन में बस गए। 1881 में रूस में पॉग्रोम्स मुहिम के अंतर्गत यहूदियों का सामूहिक नर संहार शुरू हुआ। यहां से भी भागकर बहुत से फिलिस्तीन में बसने आ गए। 1894 में एक फ्रांसीसी यहूदी अफसर को झूठे मामले में फंसा कर जेल भेज दिया गया। यह पता लग जाने पर भी कि उसे झूठा फंसाया गया है, उसे जेल से मुक्ति नहीं मिल सकी। यह मामला उस फौजी अफसर के नाम पर ड्रेफस प्रकरण के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इससे यह धारणा पक्की होती गई कि यहूदियों को धार्मिक दुर्भावना के चलते प्रताडि़त किया जा रहा है। इस परिस्थिति का सामना करने के लिए एक आस्ट्रियन यहूदी थियोडोर हर्जल ने यह अभियान चलाया कि यहूदियों का अपना देश होना चाहिए। उसने 1897 में पहली जियोनिस्ट कांग्रेस बुलाई और जियोनिज्म आंदोलन की शुरुआत की। इसका मानना है कि स्वतंत्र यहूदी देश ही यहूदियों को समेटिक धर्म विरोधी हमलों से और प्रताड़ना से बचा सकता है। 13वीं शताब्दी से फिलिस्तीन क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के अधीन चला गया। ऑटोमन साम्राज्य में मोटे तौर पर यहूदियों की बिखरी पड़ी छिटपुट आबादी की हालत अच्छी थी, परंतु यूरोप में यहूदी विरोध के बढ़ने से यूरोपीय व रूसी यहूदी समुदाय का ऑटोमन साम्राज्य की ओर पलायन बढ़ता गया। 

इटली से पलायन करके आए यहूदियों को ऑटोमन साम्राज्य  में खुलेमन से जगह दी गई। जब जियोनिज्म आंदोलन के तहत यहूदी अलग देश की योजना बनाने लगे और उसका संभावित क्षेत्र फिलिस्तीन दिखने लगा, क्योंकि पलायन करके आ रहे यहूदी फिलिस्तीन में बसने का आग्रह कर रहे थे। इससे ऑटोमन साम्राज्य को खतरा महसूस होने लगा। उन्होंने यहूदियों के फिलिस्तीन में आकर बसने पर प्रतिबंध लगाने का प्रयत्न किया, जिसमें सफलता नहीं मिली।ऑटोमन साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ऑटोमन साम्राज्य का अंत हो गया और फिलिस्तीन इंग्लैंड के अधीन हो गया। फिलिस्तीन की अधिकांश आबादी अरब थी, जो  मुस्लिम और ईसाई थे। अरब, जियोनिज्म का विरोध करते थे, वे नहीं चाहते थे कि बाहरी देशों से आकर यहूदी फिलिस्तीन में आकर बसें। इसमें उन्हें संसाधनों और संपत्ति छिनने के खतरे के अलावा अपनी ऑटोमन पहचान को भी खतरा महसूस होता था, परंतु अंग्रेजों ने जियोनिज्म आंदोलन को बढ़ावा दिया और यहूदियों को फिलिस्तीन में बसाने का समर्थन किया। 

द्वितीय विश्व युद्ध तक यूरोप में चल रहे यहूदी नर संहार से बच कर भागे यहूदी बड़ी संख्या में फिलिस्तीन में बस गए। सबसे भयंकर नरसंहार नाजी जर्मनी में हुआ। अकेले जर्मनी से ही एक लाख यहूदी भाग कर फिलिस्तीन पहुंचे। 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदी क्षेत्रों में बांट दिया। 14 मई, 1948 को इजरायल देश की स्थापना हो गई। अगले ही दिन से इजरायल की सीमा से लगते देशों ने इजरायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। 1956, 67, 87 और 2000 में इजरायल और फिलिस्तीन में युद्ध हो चुके हैं।इजरायल बाहर से आकर बसने वाले हर यहूदी को नागरिकता देने और अन्य धर्मावलंबियों को पूरे नागरिक अधिकार न देने की नीति पर चलता है। हालांकि जिस धार्मिक विद्वेष का यहूदी शिकार हुए, वही नीति उन्होंने खुद अपनाई।यह हैरान करने वाली बात तो है, परंतु शायद उनको खतरे का एहसास इतना अधिक है कि वे अपने अस्तित्व को बचाकर रखने के लिए भारी आशंकाओें से घिरे हैं और किसी भी गैर यहूदी पर विश्वास करने को तैयार नहीं। वे अपना देश खोने का खतरा किसी भी हालत में उठाना नहीं चाहते। 

उनके साथ हुए अत्याचारों  के इतिहास को देखते हुए उनका यह सोचना एक हद तक जायज लगता है, परंतु आखिरी समाधान तो शांति स्थापना और पड़ोसियों में सद्भाव से ही हो सकता है, क्योंकि इतिहास चक्र को कोई उल्टा नहीं घुमा सकता। यहूदियों ने सदियों के बाद अपना देश वापस पाया। चारों तरफ से खतरे में होने के कारण उसने उच्च तकनीक का सहारा लेकर सुदृढ़ सुरक्षा तंत्र खड़ा किया है। किसी देश का युद्ध न करने का संकल्प भी आज के विश्व में उसकी शक्तिशाली सेना के भरोसे ही सफल हो पाता है। कमजोर होने पर कोई भी उसे दबोच लेगा। यहूदियों ने सदियों तक अपना देश खोया, अपार कष्ट झेले और भारतीयों ने सदियों तक अपने ही देश में स्वतंत्रता खोई। विदेशी आक्रांताओं के हाथों अपार कष्ट झेले और अंत में अपने देश के विभाजन का दर्द झेला। आजादी के एक वर्ष के भीतर ही युद्ध का सामना करना पड़ा। एक बड़ा भू-भाग 1948 में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के रूप में खोया। 

1962 में चीन के हाथों उत्तरी भू-भाग खोया। अब पाकिस्तानी सरकार 100 घाव देने के सिद्धांत पर काम करते हुए आतंकी कट्टरपंथियों के माध्यम से अघोषित तालीबानी युद्ध छेड़े हुए है।एक हद तक हमारी स्थिति भी इजरायल से ज्यादा भिन्न नहीं। फर्क सिर्फ इतना है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और हमें इसी रूप में अपनी रक्षा करनी है, विकास करना है और दुनिया भर में धर्म निरपेक्ष सहिष्णुता की सोच को मजबूत करने को विश्व व्यापी जरूरत में अपना योगदान देना है। हम ऐसा तभी कर पाएंगे, जब हम एक स्वतंत्र शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में जिंदा रहेंगे। इसलिए हमें सुरक्षा क्षेत्र में इजरायल से सीखने और उच्च तकनीक प्राप्त करने में हिचकना नहीं चाहिए। लक्ष्य तो उच्च सुरक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर होना ही होगा, परंतु तब तक जहां भी हमारे काम की तकनीक उपलब्ध हो, हमें लेनी चाहिए। 

आतंकी घुसपैठ रोधी तंत्र खड़ा करने में खास तौर पर यह इजरायली सहयोग हमारे लिए उपयोगी है। दीवार के पीछे की गतिविधि को देखने की तकनीक छिपे आतंकियों को ढूंढने के लिए कारगर साबित हो सकती है। विशेष असाल्य रायफल, जिसे टेढ़ा करके दीवार के पीछे सटीक निशाना लगाया जा सकता है, तार-बाड़ अलार्म तकनीक में और ज्यादा सुधार, उच्च क्षमता के ड्रोन आदि उपकरणों की तकनीक लेने की जरूरत है। हमें 1200 वर्षों की गुलामी से सबक लेना चाहिए। गुलामी के तीन प्रमुख कारण थे। दूरदर्शी कूटनीति का अभाव, आपसी फूट और जातिवादी शोषण और विश्व से तकनीकी रूप से पिछड़ जाना। ये तीनों गलतियां हमें कतई न जारी रखनी हैं, न दोहरानी हैं, तभी देश सुरक्षित रह सकेगा।



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(कुलभूषण उपमन्यु)
अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

टीनू आनंद और जरीना वहाब के साथ अभिनव कुमार की हुनरदारी!

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tinu anand and jarina bahav
1अभिनेता निर्देशक टीनू आनंद और जरीना वहाब शरदचंद्रा प्रस्तुत और वेदर फिल्म्स की नई फिल्म ‘जी लेने दो एक पल की शूटिंग पर नए उभरते हुए कलाकार अभिनव कुमार के साथ काम करते हुए बहुत इमोशनल हो गए जबकि गाँव के सीधे सादे किसान के बेटे का किरदार कर रहे अभिनव कुमार रोजलीन खान और सुखबीर लाम्बा और अंजन श्रीवास्तव के साथ फिल्माए हुए सीन में यह एहसास कराते हैं कि एड्स से निजात पाने के लिए लोगों में चेतना जगाने की बहुत जरुरत है। 

कहानीकार और निर्देशक संजीव राय से जब इस फिल्म और संबद्ध सीन को लेकर चर्चा हुई, तो उन्होंने बताया दरअसल फिल्म के नायक शेखर बनाम अभिनव कुमार जब टीनू आनंद यानि मुखिया जी के भतीजे विरजेश हिरजी, जो कि मुम्बई में रहते हैं और फिल्मों में देश विदेश से आई फिल्मों में हीरोइन बनने का मंसूबा लेकर आने वाली लड़कियों को प्रमोट करते हैं के घर एक रात रुक जाते हैं, वहाँ आई अति उत्साही नवयौवना रोजलीन खान उसकी मर्दानगी को चैलेंज करती है और हमबिस्तर होने को प्रभोक करती है। 

इसी घटनाक्रम में पत्निव्रता अभिनव एड्स का शिकार हो जाता  है। गाँव मैं आकर वह जन सामान्य में  इस बात का एहसास कराता है कि एड्स के शिकार लोगों से नफरत नहीं प्यार से पेश आएं और लोगों में जागरूकता लाएं। अभिनव कुमार इससे पहले मशहूर निर्माता निर्देशक अनिल शर्मा कृत फिल्म ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों में  बॉबी देओल के फ्रेंड की भूमिका निभा चुके हैं।

तमाशा’ के गीतों में जादू: मोहित चैहान

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फिल्म ‘तमाशा’ के एक गीत को अपनी आवाज देने वाले गायक मोहित चैहान का कहना है कि दीपिका पादुकोण रणबीर कपूर और गौतम अरोडा अभिनीत फिल्म ‘तमाशा’ के लिए ऑस्कर विजेता ए.आर.रहमान ने शानदार संगीत तैयार किया है। 

चैहान ने पहली बार बैंड सिल्क रूट के एल्बम ‘बूंदे’ के ‘डूबा डूबा’ गीत से शोहरत पाई। इसके साथ वह फिल्म ‘वन्स अपॉन अ टाइम इन बिहार’ के लिए एक गीत की रिकॉर्डिंग कर चुके है। फिल्म राॅकस्टार में ‘रॉकस्टार’ रणवीर की आवाज भी बनें। रहमान ‘रॉकस्टार’ में भी एक आम कड़ी थे, लेकिन चैहान का कहना है कि ‘रॉकस्टार’ एक अलग कहानी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘यह एक गायक के जीवन की कहानी थी, इसलिए मैं एक आवाज बना। लेकिन ‘तमाशा’ में सिर्फ एक गायक हूं, मुझे उम्मीद है कि जब ‘तमाशा’ आएगी तो दर्शक इसे पसंद करेंगे।’’गौतम ने भी फिल्म मे एक किरदार निभायां है। उनका कहना है कि किरदार उनके लिए मिल का पत्थर साबित होगा। 

आखिर नियम 310 को हथियार के रूप में क्यों प्रयोग करना चाहती थी भाजपा!

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नियम 310 यानि काम रोको प्रस्ताव में आखिर भाजपा क्यों चाहती थी गैरसैण मुद्दे को उठाना ? इस बात पर अब जनता के बीच बहस शुरू हो गयी है. सामान्यतः विधानसभा कार्य संचालन नियमावली का यह नियम सरकार के खिलाफ विपक्ष हथियार के रूप में इस्तेमाल करता  रहा है यानि सरकार की विफलता या सरकार की आलोचना के हथियार के तौर पर इसका प्रयोग किया जाता है यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कोई भी सरकार अपनी ही फजीहत करवाने के लिए विपक्ष को इस नियम के तहत मामला उठाने की इजाज़त आखिर क्यों देती. सरकार नियम 56 अथवा नियम 58 के तहत भी तो कोई मामला सुन सकती है.   

 मामला गैरसैण में आहूत विधान सभा सत्र को लेकर गर्म हुआ है जिसने गैरसैण की सर्द वादियों को राजनीति की गर्माहट से गर्म कर दिया है. भाजपा ने पहले दिन तो इसी नियम के तहत चर्चित उस सीडी के मामले को उठाने की कोशिश की जिसको बनाने से लेकर प्रदर्शित करने तक की वह स्वयं गुनागार है और अब प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ काम रोको प्रस्ताव के तहत मामले में सीबी आई जाँच की मांग कर रही है जबकि भाजपा अभी तक उस चर्चित सीडी की मूल प्रति सरकार को या जांच अधिकारियों को उपलब्ध नहीं करवा पायी है तो आखिर सरकार आ बैल मुझे मार वाली कहानी क्यों करती और क्यों बिना बात के अपनी ही सीबीआई जाँच करवाकर अपने अधिकारियों व खुद को परेशानी में डालती. वह भी तब जब केंद्र में विपक्षी दलों की सरकार है और केंद्र पर गाहे बगाहे सीबीआई जाँच के नाम पर अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के आरोप लगते रहे हैं.
 गैरसैण में दूसरे दिन चर्चित सीडी मामले पर सरकार को फंसते न देख भाजपा ने अचानक अपनी रणनीति में परिवर्तन करते हुए गैरसैण का मामला उठा दिया और वह सरकार से गैरसैण में राजधानी पर खुद ही समर्थन देने के बजाय जवाब चाहने लगी थी वह भी तब जब गैरसैण में राज्य सरकार द्वारा राजधानी निर्माण कार्य वे स्वयं अपनी आँखों से देख रहे थे. इसके बावजूद राज्य वासियों सहित राज्य आन्दोलन में शहीद आन्दोलनकारियों की भावना को दर किनार करते हुए भाजपा उसी सरकार को काम रोको प्रस्ताव यानि नियम 310 के तहत सदन में खड़ा करना चाहती थी.

 राजनीतिक जानकारों के अनुसार  नियम 310 के तहत विपक्ष को मामला उठाने की अनुमति नहीं मिलती है, क्योंकि इसे सरकार के खिलाफ माना जाता है। इसमें चर्चा के अंत में मत विभाजन का भी प्रावधान होता है। उत्तराखंड विधानसभा के इतिहास में केवल दो बार काम रोको प्रस्ताव के जरिये सदन में चर्चा हुयी। एक बार तो अध्यक्ष ने तब चर्चा का अवसर दिया जबकि तत्कालीन विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य पूरे दिन के लिये वाकआउट कर गये थे। और  दूसरी बार तब जब राज्य आपदा की चपेट में था और तत्कालीन समय में तो विधानसभा अध्यक्ष ने तो साफ़ कह दिया था इस मामले को नज़ीर ना समझा जाय. वहीँ अगर भाजपा को गैरसैण के बारे में सरकार की मंशा जाननी ही थी तो उसे नियम 56 के तहत चर्चा से मंशा जानने में क्या परेशानी थी। आखिर भाजपा यही तो जानना चाह रही थी कि गैरसैण के बारे में सरकार की मंशा क्या है। उसके लिये उत्पात मचाने की क्या जरूरत थी ? सच यह है कि अगर चर्चा होती तो कम से कम गैरसैण के बारे में दोनों ही दलों के असली चेहरे तो जनता के सामने नजर आ ही जाते।

विश्लेषकों के अनुसार भाजपा की नियत का पता इस बात से भी साफ़ हो जाता है गैरसैण में आहूत  विधानसभा सत्र के दूसरे दिन के भोजनावकाश की बाद जब नेता सदन यानि मुख्यमंत्री अपना उद्बोधन देना चाह रहे थे तो भाजपा ने उनकी बात को अनसुना कर सदन के भीतर उत्पात मचाना शुरू कर दिया. हो सकता था मुख्यमंत्री वही बात कहते जिस मुद्दे को भाजपा नियम-310 के तहत लाने का प्रयास कर रहे थे और यदि वे नेता सदन की बात शांत होकर सुनते तो शायद उनके मन की मुराद पूरी हो सकती थी लेकिन भाजपा के विरोध को देखते हुए यह साफ़ है कि वह सदन में हंगामा करने के मकसद से आयी थी न कि सदन में कोई बात सुनने .  

 भाजपा की नियम 310 की जिद का मकसद साफ़ था जबकि विधानसभा अद्यक्ष बार-बार इस मामले को नियम 56 के तहत उठाने की बात कहते रहे, लेकिन भाजपा का मकसद साफ़ था वह राजधानी मुद्दे पर राजनीति कर राजधानी का मसला कांग्रेस से छीन अपने पक्ष में करना चाहती थी.  जिसे कांग्रेस ने सफल नहीं होने दिया तो  भाजपा के विधायकों ने सदन की गरिमा को तार-तार करने से भी परहेज नहीं किया और जितनी हाथापाई या तोड़फोड़ वे कर सकते थे उन्होंने की इतना ही नही भाजपा ने तो स्थानीय लोगों को भी नहीं बख्शा उनके साथ भी भाजपा विधायक ने गाली –गलोज ही नहीं की बल्कि गैरसैण की महिलाओं तक से बदसलूकी की. जिसपर वहां की महिलाओं ने भाजपा विधायक के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है.    

विशेष आलेख : प्रगतिशील होने का पाखंड !

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  • राष्ट्रवादी ढोंगियों ने विकास का नारा लगा कर प्रगतिशीलता की खाल तले खुद का ढंक लिया है .

“ भाई मैं जंतर मंतर में भरोसा नहीं करता ,मैं लोकतंत्र पर भरोसा करता हूँ और यही मेरा जन्तर मंतर और ताबीज़ है “ यह शब्द भारत के चक्रवर्ती सम्राट नरेंद्र मोदी के है जो उन्होंने बिहार चुनाव प्रचार के दौरान मधुबनी में आयोजित एक रैली में लोगों से कहे .इससे पूर्व भी वे बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की इस बात के लिए आलोचना कर चुके है कि उन्होंने किसी तांत्रिक से मुलाकात की है .प्रधानमन्त्री मोदी ने लालू प्रसाद ,नितीश कुमार के महागठबंधन को महास्वार्थबंधन कहते हुए उसे भी जंगलराज व जन्तर मंतर राज से नवाजा .मोदी ने यह भी कहा कि लोग मुसीबत पड़ने पर बाबाओं के पास जाते है .उनका पूरा ईशारा नितीश कुमार व उनके सहयोगियों पर था कि वे कितने दकियानूसी विचार वाले है जो अब भी बाबा लोगों और तांत्रिकों के पास जाते है तथा यंत्र तंत्र में यकीन करते है जबकि दूसरी तरफ मोदी एक आधुनिक विकास पुरुष है जो इन अंधविश्वासों पर भरोसा नहीं रखते है ,वे वैज्ञानिक ,तार्किक और प्रगतिशीलता का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता है ,

सवाल यह है कि क्या वाकई मोदीजी इन सब बातों को नहीं मानते है , क्या उन्हें ज्योतिष ,तंत्र - मन्त्र और गंडे ताबीज़ एवं अंगूठियों से परहेज़ है ? क्या वे बाबा लोगों से दूर रहते है ? हालाँकि मोदीजी के भाषण के तुरंत बाद ही एक ज्योतिषी बेजान दारूवाला ने उनकी कलई यह दावा करके खोल दी कि मोदी ज्योतिष में यकीन करते है और उन्होंने मोदी की हस्तरेखा देख कर भविष्यवाणी भी की थी .बेजान दारूवाला ने अपने कथन के समर्थन में एक फोटो भी शेयर किया है जिसमे वे मोदी का हाथ पढ़ रहे है .हालाँकि यह बहस और विवाद का विषय हो सकता है कि बेजान की भविष्यवानियाँ कितनी सही साबित हुयी मगर इतना तो तय है कि मोदी ज्योतिष में यकीन भी करते है और हस्तरेखाविदों के समक्ष हाथ भी फैलाते रहते है .

ना केवल बेजान दारूवाला बल्कि देश भर के कई अन्य तांत्रिकों ,ज्योतिषियों और सामुद्रिक शास्त्र के आधार पर भविष्यवाणी करने वाले लोगों की मोदी जी निरंतर सेवा लेते रहे है .लोकसभा चुनाव के दौरान मुझे राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में रहने वाले तंत्र ज्योतिषी प्रह्लाद राय सोमाणी ने बताया था कि उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ज्योतिषीय विचार विमर्श एवं तंत्र विद्या के ज़रिये भविष्य जानने के लिए अहमदाबाद बुलाते रहते है तथा अपने राज काज के व्यस्ततम समय में से वक़्त निकाल कर दो दो घंटे तक चर्चा करते है .मैंने जिज्ञाषावश उन तंत्र ज्योतिषी सोमाणी से पूंछा कि आपकी जानकारी क्या कहती है मोदी के बारे में ? उनका कहना था कि यह आदमी एक बार पार्टी अध्यक्ष बनेगा और बाद में सर्वोच्च पद तक पंहुच जायेगा .हालाँकि ठीक वैसा तो बिलकुल भी नहीं हुआ क्योंकि बिना राष्ट्रीय अध्यक्ष बने ही मोदी प्रधानमंत्री बन गए ,मगर फिर भी तंत्र ज्योतिषी प्रह्लाद राय सोमाणी का मोदी बहुत एहतराम करते रहे है और उनकी सलाहियत पर चलते भी रहे है .आश्चर्य की बात है कि वही मोदी अचानक अब ज्योतिष और तंत्र विद्या के विरोधी हो गए है !

इतना ही नहीं मोदी अपने सार्वजानिक जीवन में सदैव ही बाबाओं की कृपादृष्टि के भी मोहताज़ रहे है ,सारा देश जानता है कि वे आशाराम जैसे ढोंगी बाबा के बेहद नजदीकी रहे है ,योग व्यवसायी बाबा रामदेव से उनकी करीबियत किससे छुपी हुयी है ? हाल ही में उनके गुरु स्वामी दयानंद महाराज का निधन होने का समाचार देश के मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़ रही है .इसके अलावा भी बाबाओं की उर्वरक धरती गुजरात के मुख्यमंत्री रहते वे अक्सर भांति भांति के बाबाओं के चरणों में नत मस्तक नज़र आते रहे है .अब भी उनकी पार्टी और मंत्रिमंडल में बाबा ,स्वामी और साध्वियां भरे पड़े है .फिर भी वे पूरी ढिठाई से अपने विरोधियों पर निशाना साधते है उन्हीं कर्मो व कुकर्मों के लिए, जिनमें वे स्वयं आकंठ लीन है .

उनकी एक वरिष्ठ मंत्रिमंडलीय सहयोगी स्मृति जुबिन ईरानी अपने पति के साथ मंत्री बनाए जाने के बाद भीलवाड़ा के ही कारोई गाँव के भृगु संहिता के आधार पर भविष्य बांचने वाले बुजुर्ग पंडित नाथूराम के पास हाथ दिखाने और टोने टोटके करवाने आई थी ,जिस पर देश व्यापी हंगामा मच चुका है .मोदी जी की पार्टी की अधिकृत मान्यता रही  है कि ज्योतिष एक विज्ञान है ,जिसे विश्वविद्यालयों में पढाया जाना चाहिए .इस सबके बावजूद भी प्रधानमंत्री मोदी का प्रगतिशील होने का पाखंड समझ से परे है .पर अब यह स्थापित तथ्य है कि जो बातें उनके आचरण के ठीक विपरीत होती है ,उन झूठों को भी वे पूरी सह्ज़ता से बोल लेते है .इसी पाखंडी चरित्र के चलते देश में अविश्वास का मौहाल बनता जा रहा है .आज हर कोई जानता है कि जो मोदी कहते है ,करते उसके ठीक विपरीत है .वे जिन बातों और वादों के सहारे सत्तारूढ़ हुए है ,उन्हें विस्मृत किया जा चुका है .विकास का भुलावा दे कर सत्ता में आये मोदी व्यवहार में विनाश के रास्ते पर आगे बढ़ते दिखाई पड़ रहे है .विचार और व्यवहार (कथनी और करनी) का यही अंतर मोदी को देश में अब तक का सबसे बौना प्रधानमंत्री साबित करता है ,जो चुनाव जीत कर भी अब तक  देश का भरोसा नहीं जीत पाए है .




liveaaryaavart dot com

---भंवर मेघवंशी---
{ लेखक स्वतंत्र पत्रकार है }  

रघुराम राजन ने किया असहिष्णुता पर अपने भाषण का बचाव

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नयी दिल्ली 05 नवंबर, रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने असहिष्णुता पर दिये गये अपने भाषण का बचाव करते हुए आज कहा कि अनेक जातियों और विविध संस्कृतियों वाले इस देश में खुली बहस के लिए स्थान होना चाहिए। श्री राजन ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होने के साथ ही पक्ष अौर विपक्ष दोनों में एक दूसरे की बात सुनने का धैर्य भी होना चाहिए । 

श्री राजन ने कहा कि ऐसा माहौल बनाने की जरुरत है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो। लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी ताकत है लेकिन लाेगों को सार्थक बहस के लिए धैर्य से एक दूसरे की बात सुनने के लिए तैयार होना पड़ेगा। श्री राजन ने ब्लूमबर्ग चैनल से बातचीत में कहा कि उन्होंने 31 अक्टूबर को आईआईटी दिल्ली में अपने भाषण में असहिष्णुता के बारे में बात की थी लेकिन उसका मकसद नयी पीढ़ी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के माहौल को बनाए रखने की जरूरत के बारे में समझाना था।

बिहार चुनाव : कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पहले दो घंटे में 11.23 प्रतिशत मतदान

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पटना 05 नवम्बर,  बिहार विधानसभा की 243 में से 57 सीटों के लिए पांचवें और अंतिम चरण  में आज कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था के बीच कराये जा रहे मतदान के दौरान पहले दो घंटे में 11.23 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया । राज्य निर्वाचन कार्यालय सूत्रों ने यहां बताया कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच राज्य के नौ जिले के 57 विधानसभा क्षेत्र में सुबह सात बजे मतदान शुरू हुआ । पहले दो घंटे में मतदान की गति सबसे तेज सुपौल में है जहां 14.25 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया जबकि सहरसा में मतदान  की गति सबसे धीमी है । वहां अब तक 7.18 प्रतिशत ही मतदान हुआ है । 

मधुबनी में 10.08, अररिया 8.77, किशनगंज में 10.62 , पूणियां में 12.36 , कटिहार में 9.50, मधेपुरा में 13.48 और दरभंगा में 14 प्रतिशत मतदान हुआ है ।  चुनाव वाले क्षेत्रों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कुछ मतदान केंद्रों पर इवीएम में तकनीकी खराबी की सूचना मिली । जिसके तुरंत बाद वहां इवीएम बदल दिया गया है । इसके कारण वैसे मतदान केन्द्रों में मतदान देर से शुरू हो पाया । मतदान शांतिपूर्ण चल रहा है और कहीं से किसी अप्रिय वारदात की सूचना नहीं है । सुबह सुबह मतदान करने वाले प्रमुख लोगों में जनता दल यूनाइटेड :जदयू: के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद  यादव और भारतीय जनता पार्टी :भाजपा: के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन शामिल है । श्री यादव ने मधेपुरा विधानसभा क्षेत्र में जिला आदर्श मध्यविद्यालय भीरकी बाजार स्थित मतदान केन्द्र  संख्या 186 पर मतदान किया । वहीं श्री हुसैन ने सुपौल विधानसभा क्षेत्र के कोशी कॉलोनी स्थित मतदान  केन्द्र पर वोट किया ।

भाजपा गाय की पूंछ पकड़कर सत्ता में आना चाहती है : शरद

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सहरसा 05 नवम्बर, जनता दल यूनाइटेड(जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद शरद यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) गाय की पूंछ पकड़कर बिहार में सत्ता हासिल करना चाहती है । श्री यादव ने मधेपुरा विधानसभा क्षेत्र के आदर्श मध्य विद्यालय भीरकी बाजार के मतदान केन्द्र संख्या 186 पर मतदान करने के बाद पत्रकारों को बताया कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बननी तय है । महागठबंधन दो तिहायी मतों से सरकार बनायेगी । जदयू अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि बिहार में प्रधानमंत्री ने जितनी रैलियां की उसका लाभ महागठबंधन को मिला है । उन्होंने कहा कि भाजपा गाय की पूंछ पकड़कर बिहार की सत्ता पर कब्जा करना चाहती है । 

जदयू नेता ने कहा कि भाजपा ने प्रदेश वासियों को पाकिस्तानी कहकर अपमान किया है । जनता इस अपमान का बदला महागठबंधन के पक्ष में वोट देकर ले रही है । उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं को यह बयान काफी निदंनीय है । श्री यादव ने फिल्म अभिनेता शाहरूख खान पर भाजपा नेताओं द्वारा दिये गये बयानों की निंदा की । उन्होंने कहा कि श्री खान एक कलाकार है और उन्हें करोड़ों भारतीय का प्यार मिला हुआ है । जदयू नेता ने कहा कि समाज निर्माण में साहित्यकार , कलाकार , वैज्ञानिक एवं समाज सेवी समेत अन्य लोगों का अहम भूमिका रहती है । भाजपा ने अपने करतूतों से उक्त सभी लोगों को अपमानित किया है । यहीं कारण है कि साहित्यकार और वैज्ञानिक अपने सम्मान में दिये गये पुरूस्कारों को वापस कर रहे है । 

रोहिंग्या के मामले को बढ़ाचढाकर न पेश करे : सू की

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यांगून 05 नवंबर, म्यांमार में विपक्ष की नेता आंग सान सू की ने मीडिया से अपील की है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या को बढ़ाचढ़ाकर पेश न करे। सुश्री सू की से आज जब संवाददाता सम्मेलन में पश्चिमी राखिने प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा,“ आप देश की समस्याओं को बढ़ाचढ़ार पेश न करें। सिर्फ राखिने प्रांत ही नहीं पूरा म्यांमार नाटकीय परिस्थितियों से गुजर रहा है। 

उन्होंने साथ ही कहा कि कट्टर बौद्ध समूह मा बा था द्वारा प्रस्तावित विधेयक असंवैधानिक है। इस विधेयक को मुस्लिम विरोधी माना जा रहा है और मा बा था ने इसका समर्थन न करने के लिए सुश्री सू की पार्टी की कड़ी आलोचना की है।

मैगी नूडल्स सुरक्षित, इसी महीने फिर शुरू होगी बिक्री

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मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्‍ले इंडिया ने बुधवार को घोषणा की है कि एक महीने के अंदर मैगी नूडल्‍स फिर से बाजार में आ जाएगा. कंपनी का कहना है कि मैगी के नए स्टॉक के सौ फीसदी सैंपल जांच के बाद सेफ पाए गए हैं और इन्‍हें बाजार में उतारने के लिए हरी झंडी मिल गई है.

गौरतलब है कि कुछ महीनों पहले भारत सरकार ने मैगी पर बैन लगा दिया था. ये बैन सीसा की मात्रा तय सीमा से अधिक पाए जाने के बाद लगाया गया था. जिसके बाद अगस्‍त में बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने इस बैन को गलत ठहराया था. कोर्ट ने अपने आदेश में नेस्‍ले को नए सिरे से सैंपल भेज कर तीन अलग-अलग लैब में जांच कराने के लिए कहा था.

कोर्ट के आदेश के बाद अक्टूबर में नेस्‍ले ने बताया था कि हाईकोर्ट के निर्देशों के मुताबिक करवाई गई जांच में सारे सैंपल सही पाए गए हैं. कंपनी का कहना था कि अब वह फिर से मैगी बनाएगी और नए स्टॉक की जांच भी उन्‍हीं लैब्स में कराएगी जहां हाईकोर्ट ने सैंपल भिजवाए थे. कंपनी के ताजा बयान के मुताबिक नया स्टॉक इन लैब्‍स में जांच के बाद सही पाया गया है और अब इस महीने के अंत तक मैगी वापस बाजार में पहुंच जाएगी. 

राष्ट्रपति ने की ‘ इंप्रिंट इंडिया” योजना लांच

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नयी दिल्ली 05 नवम्बर, देश के उच्च शिक्षण संस्थाओं में शोध एवं अनुसंधान कार्यों का रोड मैप तैयार करने एवं इसे समाज एवं जनता से जोड़ने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज ‘इंप्रिंट इंडिया योजना’ लांच की, जिससे आईआईटी एवं भारतीय विज्ञान संस्थान के मार्ग निर्देशन में स्वास्थ्य से लेकर रक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोगों तथा आविष्कारों में मदद मिलेगी। राष्ट्रपति भवन में कल से शुरू हुए तीन दिवसीय विजिटर कांफ्रेंस में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस महत्वाकांक्षी योजना को शुरू किया जिसकी बुनियाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुझाव पर रखी गयी है। प्रधानमंत्री ने आज सुबह ‘ इंप्रिंट योजना’ की पुस्तिका को विधिवत जारी कर उसकी पहली प्रति श्री मुखर्जी को भेंट की। इस मौके पर मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी भी मौजूद थीं। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों, एन आई टी ,आईआईटी, निफ्ट तथा भारतीय विज्ञान संस्थान से जुडे प्रसिद्ध शिक्षाविदों तथा विशेषज्ञों, शोधार्थियों, अनुसंधानकर्ताओं की उपस्थिति में शुरू हुई इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत आईआईटी खड्गपुर, कंम्प्यूटर साइंस तथा सूचना प्राेद्यौगिकी एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में आईआईटी कानपुर, विकसित सामग्री एवं श्रम संसाधन, आईआईटी रूडकी शहरी योजना ,आईआईटी मुंबई नैनो टेक्नालॉजी तथा ऊर्जा सुरक्षा ,आईआईटी मद्रास रक्षा के क्षेत्र में एवं भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलूर पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में संयोजक बन गये हैं जो विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के बीच शोधकार्य के लिए समन्वय एवं मार्गनिर्देशन का काम करेंगे।

कल विजिटर कांफ्रेंस में अकादमिक जगत तथा उद्योग जगत के बीच 44 करारों पर हस्ताक्षर हुए तथा नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, मशहूर वैज्ञानिक सीएनआर राव तथा मशहूर कृषि वैज्ञानिक एम एम स्वामीनाथन के व्याखान भी हुए। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा ,“ अगर हम विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की स्थापना नहीं कर सकते तो हम विश्व जीत नहीं सकते हैं। अगर देश में 10-15 शैक्षणिक संस्थानों को हम पर्याप्त फंड दें तो अगले 4-5 साल के भीतर दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में स्थान पा सकते हैं।” उन्होंने कहा कि फिलहाल पहली बार क्यूएस रैंकिंग में 200 विश्व स्तरीय संस्थानों में भारतीय विज्ञान संस्थान को 147वां तथा आईआईटी दिल्ली को 179वां स्थान मिला है जो गर्व की बात है। उनहोंने कहा कि अभी 60 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों ने इनोवेशन क्लब (..... क्लब) की स्थापना की है ताकि अकादमिक जगत एवं नए आविष्कारकों के बीच सम्वाद एवं समन्वय स्थापित हो।

बिहार चुनाव : शांतिपूर्ण माहौल में दोपहर तक करीब 32 प्रतिशत मतदान

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पटना 05 नवम्बर, बिहार विधानसभा की 243 में से 57 सीटों पर आज पांचवें और आखिरी चरण के लिये हो रहे मतदान के तहत दोपहर तक करीब 32 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया । राज्य निर्वाचन कार्यालय सूत्रों ने यहां बताया कि मतदान शांतिपूर्ण चल रहा है और कहीं से किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है । दोपहर 12 बजे तक सबसे तेज गति से मतदान मधेपुरा में चल रहा है जहां 36.73 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया जबकि मधुबनी में मतदान की गति सबसे धीमी है । वहां अब तक 27.49 प्रतिशत ही मतदान हुआ है । 

सुपौल में 35.74, अररिया 34.05, किशनगंज में 30.50 , पूणियां में 33.36 , कटिहार में 32.12, सहरसा में 31.83 और दरभंगा में 30 प्रतिशत मतदान हुआ है । सूत्रों ने बताया कि बिहार में दरभंगा जिले के बेनीपुर विधानसभा क्षेत्र में मतदान के दौरान एक मतदानकर्मी की हृदयगति रुक जाने से मौत हो गयी । बेनीपुर विधानसभा क्षेत्र के उत्क्रमित मध्य विद्यालय के बूथ संख्या 34 पर तैनात मतदानकर्मी बिन्देश्वर साह के सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हे इलाज के लिए बेनीपुर रेफरल अस्पताल ले जा रहा था तभी रास्ते में उनकी मौत हो गयी । श्री साह दरभंगा मेडिकल कालेज अस्पताल के कर्मचारी थे । इस घटना को छोड़कर कहीं से भी अप्रिय वारदात की सूचना नहीं है ।

अरुंधति रॉय, कुंदन शाह और सईद मिर्जा ने नैशनल अवॉर्ड लौटाया

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बुकर प्राइज विजेता  लेखिका अरुंधति रॉय ने गुरुवार को अपना नेशनल अवॉर्ड लौटाने का एलान किया। उन्हें 1989 में फिल्म In Which Annie Gives It Those Ones के लिए सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का नेशनल अवॉर्ड मिला था। अरुंधति ने कहा, ''पूरी जनता, लाखों दलित, आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई आतंक में जीने को मजबूर हैं। उन्हें हमेशा यह डर रहता है कि न जाने कब कहां से हमला हो जाए। अगर हमारे जैसे लोग अब एक साथ नहीं खड़े हुए तो हम अलग-थलग पड़ जाएंगे या हमें दफना दिया जाएगा।''वहीं, मशहूर कॉमेडी फिल्म 'जाने भी दो यारो'बनाने वाले कुंदन शाह ने भी गुरुवार को कहा कि वे इंदिरा गांधी अवॉर्ड लौटाएंगे।

1. अरुंधति रॉयः 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स'की लेखिका रॉय का कहना है कि कलाकारों और बुद्धिजीवियों का यह 'पॉलिटिकल मूवमेंट'एेतिहासिक है। उन्होंने कहा, "इससे पहले ऐसा नहीं हुआ। मैं इस बात को लेकर खुश हूं कि मेरे पास एक नेशनल अवॉर्ड है, जिसे मैं लौटा सकती हूं। इससे मुझे राइटर्स, फिल्ममेकर्स और एकेडेमिक्स के पॉलिटिकल मूवमेंट में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा।"
2. कुंदन शाहः कॉमेडी फिल्मों में क्लासिक का दर्जा रखने वाली 1983 की फिल्म 'जाने भी दो यारो'के डायरेक्टर कुंदन शाह ने कहा, ''मैं आज के माहौल में ऐसी फिल्म नहीं बना पाता, क्योंकि बीजेपी सरकार में है। मैं अपना इंदिरा गांधी अवॉर्ड लौटा दूंगा।''उन्हें 1983 में यह अवॉर्ड मिला था। सूचना प्रसारण मंत्रालय के तहत काम करने वाले डायरेक्टोरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल्स की तरफ से शाह को ‘इंदिरा गांधी अवॉर्ड फॉर बेस्ट फर्स्ट फिल्म ऑफ ए डायरेक्टर’ मिला था।
3. बिबेक देबरॉयः नीति आयोग के मेंबर ने कहा, ''देश में हमेशा से इन्टॉलरेंस रहा है। यहां तक कि देश की वे ऑफ लाइफ में भी इन्टॉलरेंस शामिल है।''
अरुंधति रॉय ने और क्या कहा?

इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में रॉय ने अवॉर्ड लौटाने का एलान किया। उन्होंने कहा, ''देश के लेखक, फिल्मकार और बाकी विद्वान एक तरह की विचारधारा के लोगों द्वारा खराब किए जा रहे माहौल से लड़ रहे हैं। ऐसे में, अगर हमारे जैसे लोग अब एक साथ नहीं खड़े हुए, तो हम अलग-थलग पड़ जाएंगे। यहां हमें दफना दिया जाएगा।''उन्होंने कहा, "इस राजनीति का उद्देश्य कुछ अलग है। मैं इसका हिस्सा बन कर बहुत खुश हूं और इस देश में आज जो चल रहा है, उसे लेकर शर्मिंदा हूं।"

 कांग्रेस के सत्ता में रहते 2005 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने की घटना का जिक्र करते हुए रॉय ने कहा, "ओल्ड कांग्रेस वर्सेस बीजेपी डिबेट से इसे अलग करना होगा। यह मामला इससे कहीं आगे बढ़ चुका है।"रॉय ने कहा, "आज जो कुछ हो रहा है, उसके लिए इन्टॉलरेंस जैसा शब्द सही नहीं है। दादरी में भीड़ का हमला, शूटिंग, बर्निंग और मास मर्डर के लिए इन्टॉलरेंस जैसे शब्द का इस्तेमाल सही नहीं है।'' रॉय ने कहा कि इस प्रकार की हत्याएं गहराती समस्या को दिखाती हैं। माहौल नर्क जैसा बन गया है।

कॉमेडी फिल्मों में क्लासिक का दर्जा रखने वाली 'जाने भी दो यारो'के डायरेक्टर कुंदन शाह ने कहा कि वे आज के माहौल में ऐसी फिल्म नहीं बना पाते, क्योंकि बीजेपी सरकार में है। शाह के मुताबिक, ''इसमें महाभारत के अलावा इंदिरा गांधी का रेफरेंस भी है, जिसकी वजह से उस वक्त भी फिल्म के सामने अड़चनें आई थीं। हालांकि, यह फिल्म बिना किसी कट के इसलिए रिलीज हो पाई, क्योंकि इसे सरकारी एजेंसी द नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने प्रोड्यूस किया था। आज इस तरह की फिल्म बनाने या दिखाने की मंजूरी ही नहीं मिलती।''हालांकि, शाह ने कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, ''यह बीजेपी या कांग्रेस का मामला नहीं है। दोनों एक जैसे हैं। मेरा सीरियल 'पुलिस स्टेशन'बैन कर दिया गया था, जब कांग्रेस सत्ता में थी।''

स्वर्ण योजनाओं से मिल सकती है ‘गरीब भारत’ के टैग से मुक्ति : मोदी

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नयी दिल्ली 05 नवंबर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सोने से जुड़ी तीन योजनाएँ लांच की और कहा कि इन योजनाओं से देश के साथ जुड़े ‘गरीब भारत’ के टैग से मुक्ति पायी जा सकती है। श्री मोदी ने प्रधानमंत्री निवास पर स्वर्ण मौद्रीकरण योजना, सोवरेन गोल्ड बांड तथा अशोक चक्र वाले भारतीय सोने के सिक्के लांच किये। लांचिंग के बाद उन्होंने कहा “ देश में 20 हजार टन सोना आम परिवारों तथा संस्थाओं के पास बेकार पड़ा है, फिर भी हम गरीब हैं। गरीबी का कारण भी यही है कि हमारा 20 हजार टन सोना बेकार पड़ा है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई कारण नहीं कि भारत गरीब रहे। उन्होंने कहा “यदि हम थोड़ी कोशिश करें तो इस टैग से मुक्ति पा सकते हैं।” उन्होंने इन योजनाओं से संबंधित वेबसाइट भी लांच की। श्री मोदी ने इस अवसर पर सोवरेन गोल्ड बांड में निवेश करने वाले पहले छह निवेशकों को प्रमाणपत्र भी जारी किया।

श्री मोदी ने कहा कि लोगों के दिमाग में मनोवैज्ञानिक रूप से यह बात बैठी हुई है कि घर में सोना है तो वह आधी रात में भी काम आ सकता है। इस मानसिकता से लोगों को बाहर लाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि इस स्थिति में कोई नयी व्यवस्था विकसित करनी होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वर्ण मौद्रीकरण योजना और सोवरेन गोल्ड बांड की सफलता में महिलाओं का योगदान अहम हो सकता है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर गहनों को छोड़कर महिलाओं के पास अपनी कोई संपत्ति नहीं होती। यह उनकी आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक है। उन्होंने कहा “योजनाओं को लागू करते समय उनके सुरक्षा के भाव को बरकरार भी रखना है। यदि यह विश्वास जगा दिया तो योजना की सफलता का कारण भी महिलाएँ ही होंगी।” उन्होंने कहा कि गाँवों के सुनारों को भी योजना से जोड़कर उन्हें इसका एजेंट बनाया जा सकता है। वे भी इसमें महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे क्योंकि लोगों का उनमें पीढ़ियों से विश्वास होता है। श्री मोदी ने कहा कि देश में हर साल एक हजार टन सोने का आयात किया जाता है। लेकिन, आयात के बाद यह निष्क्रिय पड़ा रहता है। हमें इस एक हजार टन सोने को राष्ट्रीय शक्ति और सामाजिक सुरक्षा में बदलना है। उन्होंने कहा कि आप आधी रात में सोना नहीं बेच सकते, लेकिन गोल्ड बांड देकर जरूर पैसे ले सकते हैं, अस्पताल में नकद की जगह यह बांड दे सकते हैं। अशोक चक्र वाले सोने के सिक्कों को लोकप्रिय बनाने के अपील करते हुये उन्होंने कहा कि इसे राष्ट्रीय स्वाभिमान से जोड़ना चाहिये। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे भारत में स्वर्णिम युग वापस लौटाने के लिए इन योजनाओं से जुड़ें।

स्वर्ण मौद्रीकरण योजना के तहत भारतीय निवासी, अविभाजित हिन्दू परिवार, न्यास, सेबी के नियमों के तहत पंजीकृत म्युचुअल फंड, गोल्ड ट्रेडेड फंड एक से तीन साल, पाँच से सात साल तथा 12 से 15 साल के लिए सोना जमा करा सकते हैं। न्यूनतम 30 ग्राम सोना जमा किया जा सकता है जबकि इसके लिए कोई अधिकतम सीमा नहीं है।  भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रमाणित और केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित केन्द्रों पर लोग सोना जमा करा सकते हैं। उसकी एवज में उन्हें बैंकों से प्रमाण पत्र मिलेगा। एक से तीन वर्ष की लघु सावधि बैंक जमा स्कीम में बैंक स्वयं जमा स्वीकार करेंगे जबकि अन्य अवधियों वाली दोनों योजनाओं के तहत भारत सरकार की ओर से बैंक जमा स्वीकार करेंगे। देश में पीली धातु के प्रति लोगों के आकर्षण को देखते हुये इसके विकल्प के तौर पर पेश किये गये स्वर्णिम बांड पर वार्षिक 2.75 प्रतिशत ब्याज मिलेगा जो आयकर के दायरे में होगा और इस पर हाजिर सोने की तरह पूँजीगत लाभ कर भी देना होगा। न्यूनतम दो ग्राम और अधिकतम 500 ग्राम सोने के मूल्य के बराबर निवेश किया जा सकता है। यह सिर्फ भारतीय निवेशकों के लिए है। इसके लिए 05 नवंबर से 20 नवंबर तक आवेदन किया जा सकता है और 26 नवंबर से यह जारी किया जायेगा। आगे भी समय समय पर यह सोवरेन गोल्ड बांड जारी किये जायेंगे। इसकी परिपक्वता अवधि आठ वर्ष है, लेकिन पाँच वर्ष के बाद इसकी बिक्री की जा सकती है। कार्यक्रम में वित्त मंत्री अरुण जेटली, वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री निर्मला सीतारमन तथा रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन भी मौजूद थे।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी चलता फिरता विश्वविद्यालय हैं : मोदी

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नयी दिल्ली 05 नवम्बर,  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को चलता फिरता विश्वविद्यालय की संज्ञा देते हुए देश के कुलपतियों, शिक्षाविदों तथा तकनीकीविदों से उनसे मार्गदर्शन लेकर सीखने की अपील की। श्री मोदी ने आज यहां राष्ट्रपति भवन में पहली बार आयोजित तीन दिवसीय विजिटर्स कांफ्रेंस में इम्प्रिंट इंडिया फ्लैगशिप योजना की पुस्तिका को जारी करने के बाद यह बात कही। उन्होंने इस पुस्तिका की पहली प्रति राष्ट्रपति को भेंट की और राष्ट्रपति ने इस महत्वाकांक्षी योजना को लांच किया तथा इसकी वेबसाइट का भी शुभारंभ किया। 

कान्फ्रेंस में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी तथा मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रमाशंकर केठरिया भी मौजूद थे। देश के सभी साेलह आईआईटी के निदेशकों तथा केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा एनआईटी एवं अन्य शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों की उपस्थिति में श्री मोदी ने कहा  राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी अपने आप में चलता फिरता विश्वविद्यालय हैं और मुझे प्रधानमंत्री बनने का सबसे बडा फायदा यह हुआ कि मैं उनके निकट आया तथा उनका मार्ग दर्शन प्राप्त किया। उन्होंने यह भी कहा, वह किसी बात को इतनी बारीकी से बताते हैं कि आप उनसे सीखते हें। उनसे राष्ट्र को काफी लाभ हुआ है और आप लोग भी उनके मार्गदर्शन में काफी कुछ सीख सकते हैं।
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