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इस्लामिक स्टेट ने पेरिस हमले की जिम्मेदारी ली

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काहिरा, 14 नवम्बर, इस्लामिक स्टेट ने पेरिस हमले की जिम्मेदारी ली है और कहा है कि उसके लड़ाके आत्मघाती हमले के लिये बम और मशीनगन लिये हुये थे। उन्होंने राजधानी के कई स्थानों पर हमला किया जिसमें 127 लोग मारे गये। इस्लामिक स्टेट ने बिना तरीख वाला वीडियो भी जारी किया जिसमें फ्रांस पर और हमलों की चेतावनी दी गयी है। इस्लामिक स्टेट के विदेशी मीडिया संगठन “अल हयात मीडिया सेन्टर” ने बताया है कि फ्रांस के मुसलमानों से और हमला करने के लिये कहा गया है।

विडियो में कहा गया है कि जब तक फ्रांस बमबारी करता रहेगा उसके ऊपर और हमले जारी रहेंगे। यह वीडियो किस स्थान से जारी कया गया यह नहीं बताया गया। विडियो में जिन आतंकवादियों को दिखाया गया है वह फ्रांसीसी नागरिक प्रतीत हो रहे हैं। उन्हें पासपोर्ट जलाते दिखाया गया है। वीडियो जारी करने के स्थान का तो पता नहीं चल सका किन्तु उसमें दिया गया संदेश साफ है। एक आतंकवादी को यह कहते दिखाया गया है कि जहर उपलब्ध है जिसे पानी और खाने में मिलाया जा सकता है।

असहिष्णुता पर संसद में चुप रहते हैं मोदी: राहुल गांधी

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नयी दिल्ली, 14 नवम्बर, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश में असहिष्णुता के माहौल को लेकर हमला करते हुए आज कहा कि असहिष्णुता के संबंध में वह ब्रिटेन में तो बात कर लेते हैं लेकिन देश की संसद में चुप्पी साधे रहते हैं। श्री गांधी ने आज यहां देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की 125वीं जयंती वर्ष पर कांग्रेस द्वारा आयोजित ‘नेहरू स्मरणोत्सव’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि श्री मोदी ने लंदन में कल अपने भाषण में कहा कि भारत में असहिष्णुता का माहौल नहीं है। भारत एक सहिष्णु राष्ट्र है लेकिन यह अजीब बात है कि इस तरह की बात वह देश की संसद में नहीं करते हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि आज देश में असहिष्णुता का माहौल है। हरियाणा में दो मासूमों को जिंदा जलाने की घटना होती है और दादरी में एक समुदाय विशेष के व्यक्ति की पीट पीटकर हत्या की जाती है। यह हिंदुस्तान का कायदा नहीं है। भाईचारे के साथ ही विकास किया जा सकता है और यह काम सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। भाईचारे का माहौल बिगाडने से फायदा नहीं होने वाला है। उन्होंने कहा कि देश को मिलकर ही आगे बढ़ाया जा सकता है और पंडित नेहरू इस बात को समझते थे और वह विपक्षी दल के नेताओं का आदर करते थे। उनका मानना था कि विपक्ष को साथ लिए बिना आगे नहीं बढा जा सकता है। यही कारण है कि नेहरू जी के जमाने में जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी संसद में खड़े होकर अपनी बात करते थे तो पंडित नेहरू उनकी बात को ध्यान से सुना करते थे। 

श्री गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की संसद में रुचि नहीं है और वह विपक्ष के सवालों पर ध्यान नहीं देते हैं। श्री मोदी के अच्छे दिन के वादे पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री के पास सभी सवालों के जवाब होते तो अच्छे दिन भी आ गये होते। ब्रिटेन की यात्रा पर गये श्री मोदी ने कल वेम्बले स्टेडियम में भारतवंशियों को संबोधित करते हुए कहा था कि विविधता में एकता भारत की ताकत है और इसी ताकत के बल पर देश विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। उन्होंने कहा था कि यह विविधता हमारी विशेषता है, हमारी आन, बान, शान है और हमारी शक्ति भी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर देश में अपनी विचारधारा थोपने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि वह पूरे देश को एक ही रंग में रंगना चाहता है जबकि कांग्रेस पार्टी वास्तव में विविधता में एकता में विश्वास रखती है। कांग्रेस सबको साथ लेकर चलना चाहती है जबकि संघ चाहता है कि सब उसकी विचारधारा का ही अनुसरण करें।  कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस में सबके लिए जगह है और यहां सबकी बात सुनी जाती है लेकिन उनकी यानी संघ और भाजपा की विचारधारा के लोग चाहते हैं कि सिर्फ उनकी ही बात सुनी जाए। उन्हें यह नहीं समझाया जा सकता है कि सिर्फ एक ही रंग से चित्र तैयार नहीं किया जा सकता है।

नीतीश को सरकार बनाने का न्यौता, 20 नवम्बर को पांचवीं बार लेंगे शपथ

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पटना 14 नवम्बर, बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने आज राष्ट्रीय जनता दल (राजद) , जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और कांग्रेस महागठबंधन विधानमंडल दल के नवनिर्वाचित नेता श्री नीतीश कुमार को सरकार बनाने का न्यौता दिया । राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का दावा पेश कर लौटने के बाद श्री कुमार ने राजभवन के बाहर इंतजार कर रहे संवाददाताओं को बताया कि राज्यपाल श्री कोविंद ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है । वह 20 नवम्बर को गांधी मैदान में अपराह्न दो बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे । श्री कुमार ने बताया कि उनके मंत्रिमंडल में तीनों दल के लोग शामिल होंगे और उन्हें भी उसी दिन शपथ दिलायी जायेगी । उन्होंने मंत्रिमंडल के आकार के संबंध में पूछे जाने पर कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या निर्धारित है । मंत्रिमंडल का आकार तय सीमा तक होगा या उससे छोटा होगा इस बारे में जानकारी शपथ ग्रहण के दिन ही मिल सकेगी ।

महागठबंधन विधानमंडल दल के नेता ने कहा कि जिस एकजुटता के साथ तीनों दलों ने चुनाव लड़ा उसी एकजुटता, परस्पर विश्वास और सहयोग के साथ वे आगे सरकार भी चलायेंगे । उन्होंने कहा कि हर हाल में कानून का राज कायम रहेगा और न्याय के साथ विकास के उनके पूर्व के एजेंडे में महागठबंधन के साझा कार्यक्रमों तथा उनके सात निश्चयों को शामिल कर जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश की जायेगी । श्री कुमार ने कहा कि चुनाव में महागठबंधन के विकास के नजरिये पर जनता ने सहमति जताते हुए लगभग तीन चौथाई सीटों पर जीत दिलायी है । महागठबंधन को निर्णायक और ठोस बहुमत मिला है । उन्होंने विश्वास दिलाया है कि उनकी सरकार विकास के रास्ते पर चलते हुए समाज में सद्भाव को कायम रखेगी और हर तबके के लिए बिना किसी भेदभाव के काम करेगी । महागठबंधन के नेता ने कहा कि चुनाव के समय कही गयी बातों के कारण वह विपक्ष का मजाक नहीं उड़ायेंगे और इसमें उनकी कभी दिलचस्पी भी नहीं रही है । उन्होंने कहा कि राज्य की ज्वलंत समस्याओं पर विपक्ष की राय और सहमति के आधार पर काम करेंगे ।

अकादमियों को बचाने की जरूरत : सोनिया गांधी

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नयी दिल्ली, 14 नवंबर, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज कहा कि असहिष्णुता के माहौल के कारण समाज के प्रतिष्ठित लोग सम्मान और पुरस्कार लौटा रहे हैं और ऐसे में अकादमियों, कला तथा विज्ञान संस्थाओं को बचाने की जरूरत है।  श्रीमती गांधी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की 125वीं जयंती के समापन समारोह पर पार्टी द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि नेहरू जी ने मानवीय मूल्यों और वैज्ञानिक सोच को बढ़ाने तथा परंपराओं को बरकरार रखने के लिए कला संस्थाएं, अकादमियां, इतिहास तथा विज्ञान परिषदों का गठन किया था। 

उन्होंने कहा कि नेहरू जी इन संस्थाओं का राजनीतिकरण नहीं होने देना चाहते थे। उन्होंने कहा कि शायद बहुत लोगों को पता नहीं है कि साहित्य अकादमी के पहले अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और तब उन्होंने अपने पहले भाषण में कहा था कि साहित्य अकादमी का अध्यक्ष होने के नाते उनका पहला काम अकादमी को प्रधानमंत्री से बचाना होगा। 

उन्होंने कहा कि आज इन संस्थाओं के साथ बड़ा मज़ाक हो रहा है। कई प्रतिष्ठित लोग जिन्हें सरकार ने सम्मानित किया था, अपने पुरस्कार वापस कर रहे हैं। अकादमियों, कला और विज्ञान संस्थाओं को बचाने की आज जरूरत है। उन्होंने कहा कि जो सरकार आम नागरिक को हिंसा और मंहगाई से सुरक्षा नहीं दे सकती, वह इन महत्वपूर्ण संस्थाओं की सुरक्षा के बारे में क्या सोचेगी।

राष्ट्र निर्माण को लेकर नेहरू पर नहीं उठाये जा सकते सवाल : राजनाथ

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नयी दिल्ली 14 नवम्बर, केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ भले ही हमारे वैचारिक मतभेद रहे हाें लेकिन जन कल्याण और राष्ट्र निर्माण के बारे में उनकी प्रतिबद्धता पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता। श्री सिंह ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की 126 वीं जयंती पर यहां आयोजित कार्यक्रम में कहा ,“ कई मुद्दों पर पंडित नेहरू के साथ हमारे मतभेद रहे । उनकी नीतियों को लेकर भी मतभेद हैं लेकिन हम जन कल्याण और राष्ट्र निर्माण के लिए काम करने की उनकी मंशा पर संदेह नहीं कर सकते। ’’

उन्होंने कहा कि वह पंडित नेहरू को ‘राजनीति के चश्मे’ से नहीं देखते क्योंकि उन्हें हमेशा ‘राष्ट्रीय चश्मे ’ से देखा जाना चाहिए। उन्होंने गुलामी से आजाद हुए देश को आगे बढ़ाने का भारी बीड़ा उठाया । नेहरू जी ऐसे दूरद्रष्टा थे जिन्हें पता था कि लोकातांत्रिक सिद्धांतों पर चलने वाली सरकार समय की मांग है। उन्होंने कहा कि नेहरू जी जैसे नेताओं के योगदान से ही भारत में सभी को मताधिकार हासिल है, देश में संप्रभु संसद , स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस है। 

श्री सिंह ने देश में ढांचागत संरचना, उद्योग और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पंडित नेहरू की सराहना करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में ही देश में भिलाई, राउरकेला और बोकारो इस्पात संयंत्र स्थापित किये गये । भारतीय विज्ञान संस्थान , प्रौद्योगिकी संस्थान और प्रबंधन संस्थान तथा कई परमाणु संयंत्र भी उनके नेतृत्व में ही बने। उन्होंने उद्योग के साथ ही कृषि को भी देश के विकास में उतना ही महत्व दिया। 

श्री सिंह ने कहा कि पंडित नेहरू अपने समय के बड़े नेता थे और उनके साहसिक नेतृत्व में ही गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी गयी । अर्थव्यवस्था , विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बारे में उनकी नीतियां सराहनीय थी। पंडित नेहरू ने ही निजी - सरकारी भागीदारी परियोजनाओं की शुरूआत की, जो अभी ज्यादा प्रासंगिक है। उन्होंने बच्चों के लिए शिक्षा को बढ़ावा दिया क्योंकि उन्हें आभास था कि शिक्षा के बिना भारत विकास नहीं कर सकता। 

नीतीश ने सरकार बनाने का दावा पेश किया

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पटना 14 नवम्बर, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और कांग्रेस महागठबंधन का नेता चुने जाने के बाद श्री नीतीश कुमार ने आज राज्यपाल के समक्ष राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया । श्री कुमार ने राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार मामलों के प्रभारी सी पी जोशी तथा तीनों पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों के साथ राज्यपाल रामनाथ कोविंद से मुलाकात की । उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश करते हुए कहा कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में महागठबंधन के 178 विधायक है । महागठबंधन की आज हुई बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से विधानमंडल दल का नेता चुना गया है ।

महागठबंधन की बैठक समाप्त होने के बाद श्री कुमार और राजद अध्यक्ष श्री यादव एक ही गाड़ी पर सवार होकर राजभवन गये । काफी अर्से के बाद श्री यादव और श्री कुमार एक ही गाड़ी पर नजर आये हैं । इससे पहले महागठबंधन के विधानमंडल दल की बैठक में श्री कुमार को सर्वसम्मति से नेता चुनाव गया । महागठबंधन के नेता के रूप में श्री कुमार के नाम का प्रस्ताव पूर्व मुख्यंमत्री राबड़ी देवी ने रखा और इसका अनुमोदन कांग्रेस के बिहार मामलों के प्रभारी सी.पी.जोशी ने किया । बैठक में श्री कुमार ने कहा कि जिस एकजुटता के साथ महागठबंधन ने चुनाव लड़ा उसी एकजुटता, परस्पर विश्वास और सहयोग के साथ सरकार चलायेंगे । उन्होंने कहा कि हर हाल में कानून का राज कायम रहेगा और न्याय के साथ विकास में महागठबंधन के साझा कार्यक्रमों तथा उनके सात निश्चयों को लागू कर जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश की जायेगी ।

ब्रिटिश राज के प्रशंसक इतिहास बदलने की कर रहे हैं कोशिश : सोनिया गांधी

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नयी दिल्ली 14 नवंबर, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तीखा हमला करते हुए आज कहा कि जिन लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की बजाय ब्रिटिश हुकूमत का गुणगान किया था, अाज सत्ता की कमान उन्हीं हाथों में है और वे देश का इतिहास बदलने की कोशिश कर रहे हैं। श्रीमती गांधी ने यहां देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के 125वीं जयंती वर्ष के पार्टी द्वारा आयोजित समापन समारोह ‘नेहरू स्मरोणत्सव’ को संबोधित करते हुए भाजपा और संघ का नाम लिए बिना कहा कि जिस विचारधारा के मानने वाले आज दूसरों को देशप्रेमी या देशद्रोही होने का प्रमाण पत्र बांटने के ठेकेदार बने हैं, वे आजादी के आंदोलन के दौरान न सिर्फ़ अपने घरों में छुपे थे, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत के गुणगान कर रहे थे। उन्होंने कहा, “गांधी जी ने 1942 में जब भारत-छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो हिंदुस्तान में दो संगठन थे जिन्होंने खुल्लम-खुल्ला इस आंदोलन का विरोध किया। इनमें से एक ने पाकिस्तान बनाया और दूसरे के हाथ में आज सत्ता पक्ष का असली रिमोट कंट्रोलर है। उन दोनों संगठनों ने अपने सदस्यों को आदेश दिया- कि वह इस आंदोलन का बहिष्कार करें। यह इतिहास है, आज की सरकार कितना भी इतिहास बदलना चाहे, मगर वह इस इतिहास को नहीं बदल सकती।” श्रीमती गांधी ने कहा कि ये उस विचारधारा के लोग हैं जो देश की आजादी के आंदोलन के दौरान हुकूमत के खि़लाफ़ चुप रहे, एक प्रस्ताव पारित नहीं किया, एक जुलूस नहीं निकाला और एक नारा नहीं लगाया। 

श्रीमती गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर परोक्षरूप से हमला करते हुए कहा कि कुछ लोग, अपनी सांप्रदायिक योजनाओं पर दुनिया के सामने पर्दा डालने के लिए विकास की डफली बजाते रहते हैं और विकास का नाम मंत्र की तरह दोहराते हैं। उन्होंने विकास के अर्थ बदल दिए हैं। उनके लिए विकास का मतलब है किसानों की ज़मीन छीनना, मज़दूरों का हक़ मारना। उनके सबका साथ, सबका विकास का मतलब है कि सिर्फ़ दो-चार पूंजी-पतियों का विकास हो। उन्होंने इसे दुर्दशा करार दिया और कहा कि सच्चा विकास नेहरू जी ने किया था उनके लिए विकास शब्द का सही मायने था कि सबका विकास । उन्होंने कहा कि देश के विकास की बात आती है तो यह संभव ही नहीं है कि इस संदर्भ में नेहरू जी का नाम नहीं आए। आजाद भारत में सबसे पहले विकास की नींव नेहरू जी ने रखी। उन्होंने बांध बनाए, नहरें बनायी, मज़दूरों के लिए रोजी रोटी के अवसर पैदा करने के लिए कारखाने और मिलें खुलवायी और वैज्ञानिकों के काम करने के लिए शोध संस्थान स्थापित किए। नेहरू जी के दौर का यह विकास आम हिंदुस्तानी का विकास था और उनके विकास का मतलब भी आम भारतीय का विकास था। पंडित नेहरू को सूरज का प्रतीक मानते हुए उन्होंने कहा कि प्रथम प्रधानमंत्री ने देश के विकास की गहरी नींव रखी थी और असहिष्णुता का माहौल पैदा करके उनके योगदान को भुलाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन 27 मई 1964 भले ही यह सूरज डूब गया, मगर उसका उजाला हमारे दिलों, हमारी यादों, हमारी आंखों में आज भी जगमगा रहा है और जो लोग देश और समाज में अन्याय, कट्टरता, असहनशीलता, सांप्रदायिकता और अंध-विश्वास फैलाने का षड्यंत्र कर रहे हैं देश को वही उजाला सही रास्ता दिखाएगा।

कांग्रेस अध्यक्ष ने संविधान निर्माण में नेहरू के योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपने व्यवहार और कर्म से प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बढ़ाया था। उन्होंने लोकतंत्र को गहरायी से इस धरती में बोया और इस तरह सींचा कि वह आज एक घना पेड़ बन चुका है और उसकी जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि तानाशाही की कोई भी आंधी इस पेड़ को उखाड़ नहीं सकती। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का मतलब है, जनता की राय की इज्ज़त। नेहरू जी ने इन्हीं लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाते हुए अपने विरोधियों और अपनी विपरीत विचारधारा के लोगों का सम्मान करते हुए उनके साथ विचारों का आदान-प्रदान किया था। उनका कहना था कि जहां संवाद है और विरोधियों के साथ वाद विवाद है, वहीं लोकतंत्र है जहां इसका अभाव है, वह लोकतंत्र की सोच नहीं है। यह जनतंत्र का ढंग नहीं है और यह तानाशाही का तरीका है। श्रीमती गांधी ने कहा कि आज का माहौल घुटन का है। घुटन के इस माहौल को देखकर स्वाभाविक रूप से हमें वह अच्छे दिन याद आते हैं। वे अच्छे दिन जब इस देश के प्रधानमंत्री नेहरू जी थे। उन दिनों हर नागरिक अपने मन की बात कह सकता था। उस समय मन की बात किसी रेडियो प्रोग्राम का नाम नहीं था। 

श्रीमती गांधी ने कहा कि नेहरू जी ने लोकतंत्र की जो नींव रखी थी, उसको कोई ताकत हिला नहीं सकती। देश को समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का जो सिद्धांत उन्होंने दिया, उसमें ही देश की खुशहाली निहित थी । आज जो भी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का विरोध करते हैं, वे सिर्फ नेहरू जी का नहीं बल्कि महात्मा गांधी , उनके तमाम साथियों और हमारे महान नेताओं का भी विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नेहरू जी में देशप्रेम कूट कूटकर भरा हुआ था। वह चाहते तो ऐशो आराम की जिंदगी जीते लेकिन उन्होंने आजादी के संघर्ष का रास्ता चुना जहां अंग्रेज हुकूमत की गोलियां और लाठियां चलती थीं। इस रास्ते में हर मोड़ पर जेल और और काल कोठरियां थीं। उनके जीवन के कई वर्ष जेलों में ही बीते। श्रीमती गांधी ने कहा कि गांधी जी से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने एक ऐसे भारत के लिए जीवन समर्पित किया, जहां खुशहाली, एकता, शांति, विद्या और विज्ञान का उजाला हो तथा जहां अंध-विश्वास का अंधेरा नहीं हो लेकिन आज कुछ शक्तियां इस नज़रिए को तोड़ने में लगी हैं। उन्होंने कहा कि नेहरू जयंती पर हमें संकल्प लेना है कि उनकी विरासत को न बिखरने देंगे और न बर्बाद होने देंगे।

संगीतकार विवेक कर की फिल्म केयर ऑफ़ फूटपाथ २ ऑस्कर में जा रही है।

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विवेक कर की आनेवाली केयर ऑफ़ फूटपाथ २ इस साल ऑस्कर में जाएगी। विवेक ने कहा की ये मेरे और मेरे परिवार लिए बहुत गर्व की बात है मेरा संगीत और मेरी फिल्म ऑस्कर में जा रही है। मुझे पता नहीं फिल्म जीतेगी या नहीं पर मैं खुश हूँ। मैं भगवान का शुक्रियादा करता हूँ और मेरे दोस्तों का जिन्होंने मेरा साथ दिया हर सुख में और दुःख में। 

साथ ही अपने मेंटर और बॉलीवुड के जानेमाने गीतकार कुमार का और संगीतकार प्रीतम का भी धन्यवाद करता हूँ। फिल्म का प्रीमियर लॉस एंजेलेस में होगा अन्य हॉलीवुड फिल्मों के साथ। मैं अपने आपको बहुत खुशकिस्मत मानता हूँ क्यूंकि फिल्म का निर्देशक एस  किशन ने किया है जो एक कमाल का निर्देशक है और यंगेस्ट डायरेक्टर है जिनका नाम गिनेस वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी है। 

आलेख : कीर्तिमान गढने में उम्र बाधक नहीं !!

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सफलता का कोई शाॅर्टकट नहीं होता। अपने कार्य के प्रति समर्पण और उसके प्रति प्यार-ये दो ऐसे प्रमुख कारण हंै जो किसी भी व्यक्ति को सफल बना सकते हैं। सफलता और पुरस्कार ही जीवन की सार्थकता नहीं हो सकती। हां, इनका महत्व इतना जरूर है कि ये दोनों चीजें जीवन में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती हंै।  प्रायः सभी के मन में विकास करने की तमन्ना रहती है। हरेक व्यक्ति के मन में वार्तमानिक स्थिति से ऊपर उठकर कुछ नया सृजन और नया निर्माण करने की ललक रहती है। इस हेतु वह प्रयास भी करता है और कुछ अंशों में सफल भी होता है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी देखे जाते हैं, जो प्रयास तो करते हैं किंतु सफल नहीं हो पाते। इसका मूल कारण संकल्प का अभाव, पुरुषार्थ की तीव्रता में कमी, समर्पण एवं लक्ष्य के प्रति एकाग्रता और तन्मयता की अल्पता को माना गया है। इसी संदर्भ में भगवान महावीर ने सफल जीवन का निचोड. रखते हुए कहा कि जो भी व्यक्ति अपना वर्तमान और भविष्य उज्ज्वल, श्रेष्ठ देखना-पाना चाहे वह जीए जाने वाले प्रत्येक क्षण के प्रति सावधान रहे। इसीलिये ‘समयं गोयम! मा पमायए’ का बोधि स्वर गूंजा। बस, यही क्षण जीवन का सार्थक है, जिसे उम्र की परवाह किए बिना हमें पूरी जागरूकता से जीना चाहिए और यही जागती आंखों का सच है जिसे पाना हमारा मकसद होना चाहिए।

यदि हममें दृढ़ विश्वास है, कुछ कर गुजरने की ललक है, कुछ पाने की तमन्ना है, सकारात्मक सोच है और ‘ना’ या ‘असंभव’ शब्द का जीवन में स्थान नहीं है तो ही हम अपने जीवन को सफल एवं सार्थक बना सकते हैं। हमारी सोच इस प्रकार हो कि हम हारते हैं जो जीतते भी हम ही हैं। असफल होते हैं तो सफल भी होते हैं, मृत्यु है तो जीवन भी है, निराशा है तो आशा भी है। अनूठे और विलक्षण कहलाने वाले लोगों की सोच सामान्य व्यक्तियों से बिल्कुल हटकर होती है। उन्हें निराशा की राह नहीं आशा की किरणें दिखायी देती हैं, उनके मन में दृढ़ इच्छाशक्ति होती है लक्ष्य प्राप्ति की, सफलता की और उन्नत जीवन की। वे विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों को समझने की पर्याप्त क्षमता रखते हैं और विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ लेने की उनमें क्षमता होती है। यदि मंजिल प्राप्त किये बिना ही यह सोचकर दबे पांव आगे बढ़ रहे हैं कि शिखर पर पहुंच पाऊंगा या नहीं तो मन में डर, निराशा, घबराहट, आदि जैसे द्वंद्व संभव होने वाले कार्य को भी असंभव बना देते हैं। ऐसे द्वंद्वों को त्याग कर हिम्मत से काम लेना चाहिए। साथ ही उदासी त्यागकर मन को प्रफुल्लित बनाना चाहिए। उम्र एक छोटा-सा भाव है जो अनेक गलतियों के रास्ते खोल देता है। भीतर-ही-भीतर शंका, ईष्र्या,उत्तेजना, विद्रोह की भीड़ उमड़ पड़ती है। एक क्षण भी यह सोचने का अवकाश नहीं होता कि ‘मैं भी कुछ हूं।’ इसके वितरीत कुछ लोग है जिनमें कुछ होने अहसास होता है और जो दृढ़ संकल्प और कर्म में सातत्य बनाकर चलते हैं।

संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान दामोदर सातवेलकर साठ वर्ष की उम्र तक एक पाठशाला में ड्राइंग पढ़ाते रहे। रिटायर होने के बाद उन्होंने संस्कृत सीखी और संस्कृत भाषा के क्षेत्रा में इतना काम किया कि देखने वाले दंग रह गए। वेदों का शुद्ध पाठ तैयार करने से लेकर भारतीय संस्कृति का प्रगतिशील स्वरूप प्रतिपादित करने तक के क्षेत्र में उन्होंने इतनी सफलता अर्जित की कि आज भी जहां संस्कृत के संबंध में कहीं कोई मतभेद उठता है तो उसके समाधान एवं निराकरण के लिए सातवेलकर के ग्रंथों को ही आधार माना जाता है। महात्मा गांधी 45 वर्ष की उम्र के बाद ही एक क्रांतिकारी संत के रूप में उभरकर सामने आए थे।

दादा भाई नौरोजी साठ वर्ष की उम्र में पहली बार बम्बई काॅन्शिल के सदस्य चुने गए और इकसठ वर्ष की उम्र में कांग्रेस के सभापति बने। राजनीति के क्षेत्रा को छोड़कर अन्य क्षेत्रों का अवलोकन करने पर यह तथ्य स्पष्ट हो रहा है कि विकास उम्र से प्रतिबद्ध नहीं है। यूनानी नाटककार साफाप्लाज ने 90 वर्ष की उम्र में अपना प्रसिद्ध नाटक ‘आडीपस’ लिखा था। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि मिल्टन 44 वर्ष की उम्र में अंधे हो गये थे। अंधा होने के बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान साहित्य रचना पर केन्द्रित किया और पचास वर्ष की उम्र में अपनी प्रसिद्ध कृति ‘पैराडाइज लास्ट’ लिखी। 62 वर्ष की उम्र में इनकी एक और प्रसिद्ध कृति ‘पैराडाइज रीजेण्ड’ प्रकाशित हुई। जर्मन कवि गेटे ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘फास्ट’ 80 वर्ष की उम्र में लिखी थी। 92 वर्षीय अमेरिकी दार्शनिक जानडेवी अपने क्षेत्र में अन्य सभी विद्वानों से अग्रणी थे। उन्होंने 60 वर्ष की उम्र में दर्शन के क्षेत्र में प्रवेश किया
कई बार व्यक्ति थोड़ा पुरुषार्थ करके ही निराश हो जाता है और वह सोचने लगता है कि जवानी गई अब बुढ़ापे में क्या किया जा सकता है? यह सोचकर वह थककर बैठ जाता है लेकिन वृद्धावस्था किसी भी स्थिति में प्रगति में बाधक नहीं है। सफलता और प्रगति का उम्र से कोई अनुबंध नहीं है, किसी भी उम्र में आदमी प्रगति कर सकता है। भगवान महावीर ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा समान है। न कोई बड़ा है और न कोई छोटा। सबकी आत्मा ज्ञान, श्रद्धा, चरित्र और शक्ति-सम्पन्न है। इसलिये विकास करने के लिये उम्र कोई बाधा नहीं है। इस दुनिया में बहुत ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं, जिन्होंने अपनी यौवन अवस्था को अत्यंत सामान्य सी स्थिति में बिताया और उसके बाद में उनके मन में उन्नति करने की उदग्र आकांक्षा ने जन्म लिया और अपने प्रखर प्रयत्नों से विकास के अंतिम बिन्दु तक पहुंच गए। इन्फोसिस के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति का उदाहरण हमारे सामने है, एक ऐसा कर्मयोगी जो केवल सोचता और बात ही नहीं करता बल्कि हमेशा अपने विचारों को कार्यरूप में परिणित करता हुआ दिखाई देता है। उम्रदराज होकर उन्होंने जो सफलता के मानक गढ़े वे सचमुच उनके उत्साह एवं जीवन के प्रति लगाव का परिचायक हंै। 

जाॅर्ज बर्नाड-शा 93 वर्ष की अवस्था में इतना लिखते थे कि 40 वर्ष की उम्र में भी इतना नहीं लिखा। दार्शनिक वैनदित्तो क्रोचे 80 वर्ष की अवस्था में भी नियमित रूप से दस घंटे लगातार काम करते थे। 85 वर्ष की उम्र में उन्होंने दो महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जिनकी चर्चा विश्व साहित्य में होती है। माटिस मैटर लिंक का देहांत 88 वर्ष की उम्र में हुआ, अपनी मृत्यु के कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने अपनी अंतिम पुस्तक पूरी की थी। उस पुस्तक का नाम था ‘द एवार्ट आॅफ सेतु आल’-यह पुस्तक उनकी सर्वोत्कृष्ट रचना समझी जाती है। दार्शनिक कांट को 74 वर्ष की अवस्था में उनकी एक रचना के आधार पर दर्शन के क्षेत्र में प्रतिष्ठा मिली। 

ये आंकड़े इस तथ्य को पुष्ट कर रहे हैं कि उत्साह, लगन, संकल्प और पुरुषार्थ बना रहे तो किसी भी उम्र या स्थिति में युवा रहा जा सकता है। यौवन अथवा सक्रियता का आयु विशेष से संबंध नहीं, वह वृद्धावस्था में भी अक्षुण्ण रह सकती है। कई बार यह क्षमता और सक्रियता बचपन में ही आश्चर्यजनक रूप से विकसित होती देखी गई है। आचार्य तुलसी ने सही कहा है कि जहां उल्लास और पुरूषार्थ अठखेलियां करे, वहां बुढापा कैसे आए? वह युवा भी बूढा होता है, जिसमें उल्लास और पौरुष नहीं होता। यही कारण है कई ऐसी विभूतियां भी हुई हैं, जिन्होंने खेलने व खाने की उम्र में ही अद्वितीय उपलब्धियां अर्जित कर लीं। मुगल सम्राट अकबर 14 वर्ष की उम्र में ही गद्दी पर बैठे और 18 वर्ष की उम्र में बैरम-खां को हटाकर स्वतंत्र रूप से कार्यभार संभाल लिया। सम्राट अशोक जब सिंहासन पर आसीन हुआ तब मात्र 20 वर्ष की उम्र थी। छत्रपति शिवाजी ने 19 वर्ष की उम्र में तोरण का किला जीता था। महाराजा रणजीतसिंह जी ने 19 वर्ष की उम्र में लाहौर पर विजय प्राप्त की थी। आचार्य तुलसी 22 वर्ष की उम्र में विशाल धर्मसंघ के आचार्य बने। विश्व-विजय के अभियान पर निकलते समय सिकंदर की उम्र मात्र 20 वर्ष की थी। जूलियस सीजर ने 24 वर्ष की उम्र में एक भयंकर डाकू गिरोह को गिरफ्तार किया था।

वृद्धावस्था में युवकों जैसी सक्रियता और अल्पायु में प्रौढ़ों जैसी परिपक्वता का परिचय देने वाले इन उदाहरणों से यह सिद्ध हो रहा है कि विकास से आयु का कोई तालमेल नहीं है। आयु न तो कार्यक्षमता को मंद बनाती है और न ही उत्तेजित करती है। कार्यक्षमता व्यक्ति की सुव्यवस्थित योजना, दूरगामी सोच, सकारात्मक दृष्टिकोण और सघन प्रयास से निरंतर बढ़ती रहती है। अतः जीवन में सफलता के सुमन खिलाने की मानसिकता हो तो व्यक्ति को निष्ठापूर्वक क्रियाशील बने रहना चाहिए। 




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(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
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विशेष आलेख : एक अनशनकारी की मौत और राजस्थान सरकार की संवेदनहीनता

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  • गांधीवादी गुरुशरण की मौत

राजस्थान में सम्पूर्ण शराबबंदी तथा मजबूत लोकायुक्त की मांग को लेकर पिछले 31 दिन से अनशन कर रहे बुजुर्ग गांधीवादी नेता गुरुशरण छाबड़ा की मौत से राजस्थान सरकार पर संवेदनहीन होने के आरोप लगाये जा रहे है तथा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ती जा रही है .

2 अक्टूबर 2015 से अनशन कर रहे 72 वर्षीय  गुरुशरण छाबड़ा की कल हालत बेहद नाजुक हो गयी थी ,उन्हें गहन चिकित्सा ईकाई में वेंटिलेटर पर रखा गया ,उपचार के दौरान वे कोमा में चले गए  और अंततः आज सवेरे 4 बजे उनकी मौत हो गयी .प्रदेश में सम्पूर्ण शराबबंदी की मांग को लेकर पूर्व विधायक गुरुशरण छाबड़ा काफी लम्बे समय से आन्दोलनरत थे ,उन्होंने प्रसिद सर्वोदयी नेता गोकुलभाई भट्ट के साथ मिलकर  शराबबंदी के लिए चलाये गए अभियान में प्रमुख भूमिका निभाई.1977 में वे सूरतगढ़ से जनता पार्टी से वे विधायक चुने गए थे .प्रदेश के सर्वोदयी तथा गांधीवादी आन्दोलन से उनका नजदीकी रिश्ता था .

वर्ष 2014 के अप्रैल - मई में भी उन्होंने 45 दिन का अनशन किया था ,जिसके फलस्वरूप वसुंधराराजे सरकार ने उनके साथ एक लिखित समझौता किया था कि शीघ्र ही एक सशक्त लोकायुक्त कानून तथा शराबबंदी के लिए कमेटी गठित की जाएगी और उस कमेटी की सिफारिशों को माना जायेगा ,मगर लिखित वादे पर एक साल बाद भी क्रियान्वयन नहीं होने पर गुरुशरण छाबड़ा इस साल गांधी जयंती पर फिर से अनशन पर बैठ गए .इस बार प्रदेश के कई संगठनो तथा सक्रीय लोगों ने उनके आन्दोलन का समर्थन किया .अनशन के 17वे दिन पुलिस ने उन्हें अनशन स्थल से उठा लिया तथा जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में जबरन भर्ती करा दिया ,वहां पर भी छाबड़ा ने अपना अनशन जारी रखा तथा राज्य में सम्पूर्ण शराबबंदी और मज़बूत लोकायुक्त कानून बनाने की मांग को बलवती किया .

उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती सरकारों में भी गुरुशरण छाबड़ा गांधीवादी तरीकों से अपनी मांग के समर्थन में आन्दोलन करते रहे है .वर्ष 2003 में गहलोत के शासन में भी उन्होंने अनशन किया था ,तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी कईं मांगों को मानकर अपने हाथ से जूस पिला कर उनका अनशन तुड़वाया था .बाद में 2014 में तकरीबन डेढ माह तक उनका अनशन व मौनव्रत चला जो राज्य सरकार के साथ लिखित समझौते से समाप्त हुआ ,मगर इस बार राजस्थान सरकार ने छाबड़ा के आन्दोलन के प्रति उपेक्षा का रवैया अख्तियार कर लिया तथा उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया .एक माह से अनशन कर रहे बुजुर्ग गांधीवादी नेता गुरुशरण से संवाद तक करना भी सरकार ने उचित नहीं समझा ,अलबता उनके शांतिपूर्ण अनशन व आन्दोलन को कुचलने की कोशिशें जरुर की गयी .राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने एक बार भी इस बारें में आन्दोलनकारी गांधीवादी से मिलने  तथा बात करने की जरुरत नहीं समझी .कल 2 नवम्बर को जब अनशनकारी छाबड़ा की स्थिति बहुत ज्यादा बिगड गयी तब लोक दिखावे के लिए सुबह चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्रसिंह अस्पताल पंहुचे तथा डॉक्टर्स को दिशा निर्देश दे कर चले आये ,बाद में जब और भी हालात नाजुक हुए तो सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी एस एम एस पंहुचे,मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी .

राजस्थान सरकार गुरुशरण छाबड़ा की मांगो को लेकर कितनी गंभीर थी ,इसका अंदाज़ा मुख्यमंत्री के खासमखास माने जाने वाले चिकित्सा मंत्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ के बयान से लगता है ,मंत्रीजी का साफ कहना है कि प्रदेश में शराबबंदी संभव नहीं है  ,क्योंकि यह राजस्व से जुड़ा मामला है .मंत्री महोदय का यह भी मानना है कि जिन राज्यों ने शराबबंदी की है उनके अनुभव अच्छे नहीं रहे है .मजबूत लोकायुक्त की मांग पर उन्होंने कहा कि एडवोकेट जनरल की अध्यक्षतावाली कमेटी बनी है जो अन्य राज्यों के साथ अध्ययन कर रही है ,जल्दी ही निर्णय हो जायेगा .आशय यह है कि राज्य में मजबूत लोकायुक्त कानून के लिए अध्ययन जारी है और राजस्व को देखते हुए शराबबंदी की मांग को नहीं माना जा सकता है .

राज्य की सकल राजस्व आय के आंकड़ों पर नज़र डालें तो शराब से होने वाली आय इतनी ज्यादा भी नहीं है कि यह कहा जा सके कि राज्य का संचालन उसके बिना संभव नहीं है और उसका कोई विकल्प नहीं है .बजट अध्ययन केंद्र राजस्थान के साथ कार्यरत युवा अर्थशास्त्री भूपेन्द्र कौशिक के अनुसार राजस्थान सरकार को वित्तीय वर्ष 2011 -12 में आबकारी से 12.29 % ,वर्ष 2012-13 में 12 .11 % ,वर्ष 2013 -14 में 13 .21 % ,वर्ष 2014 -15 में 13 .08 % तथा वर्ष 2015 -16 में 13 .38 % की राजस्व आय शराब से हुयी है .इसका मतलब यह है कि व्यापक लोकहित में सरकार अन्य प्रकार के टेक्सों में मामूली बढ़ोतरी करके शराब से होने वाली आय की भरपाई कर सकती है ,मगर माना जाता है कि राज्य शासन में शराब लॉबी इतनी सशक्त है कि सरकार उन पर पाबन्दी लगाने की बात तो दूर उनको छेड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकती है ,ऐसे में शराबबंदी की मांग को अव्यवहारिक और राज्य के विकास के लिए हानिकारक बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिस की जाती रही है .

बात सिर्फ राजस्व घाटे की पूर्ति या कर उगाही की नहीं है और ना ही एक सशक्त कानून लाने भर की है ,बात यह है कि एक लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुयी कल्याणकारी सरकार अपने नागरिकों की कितनी सुनती है ? सुनती भी है या नहीं ? आखिर एक पूर्व विधायक और नामचीन गांधीवादी बुजुर्ग की ही परवाह नहीं की गयी , वह भूख हड़ताल करते हुए ही संसार को अलविदा कह गए ,तो आम इन्सान की क्या सुनी जाएगी .जनता के आंदोलनों का क्या मूल्य है इस सरकार के लिए ? गांधीवादी गुरुशरण छाबड़ा की मांग और तरीके को लेकर मतभेद हो सकता है ,उनकी मांग की व्यावहारिकता और प्रासंगिकता को लेकर बहस हो सकती है ,उसे मानना या नहीं मान पाने की राजनीतिक व आर्थिक मजबूरियां गिनाई जा सकती है ,मगर यह कैसे संभव है कि एक शांतिपूर्ण आन्दोलनकर्ता को यूँ ही मरने के लिए छोड़ दिया जाये ,उसकी सुनी ही नहीं जाये और अंततः वह मर ही जाये . तब भी सरकार अपने सामन्ती रौब और सत्ता के नशे में ही ऐठीं रहे .यह स्वस्थ प्रजातंत्र की निशानी नहीं है ,यह रुग्ण राजतन्त्र के लक्षण है .जिनकी चौतरफा भर्त्सना आवश्यक है .

अब तो राजस्थान के आमजन की भी यह धारणा बन गयी है कि वसुंधराराजे की यह सरकार संवादहीनता और संवेदनहीनता नामक दो प्रमुख दुर्गणों का जनविरोधी मेल होती जा रही है .रिसर्जेंट राजस्थान में शायद गुरुशरण छाबड़ा जैसे गांधीवादी बुजुर्गों की कोई जरुरत नहीं है .सोशल मीडिया पर राज्य सरकार की निष्ठुरता और मुख्यमंत्री की संवेदनहीनता की सर्वत्र आलोचना हो रही है और मुख्यमंत्री वसुंधराराजे से इस्तीफ़ा माँगा जा रहा है .दूसरी ओर एक निष्काम कर्मयोगी की भांति जीवन भर जनहित में लगे रहे गांधीवादी नेता गुरुशरण छाबड़ा को लोग अश्रुपूर्ण श्रधांजलि दे रहे है ,लोग नत मस्तक है कि वे जब तक जिए लोगों के लिए जिए और मरे तो अपनी देह को भी मेडिकल के विद्यार्थियों के लिए दान कर गए और अपनी अंतिम साँस भी अपने उस ध्येय के लिए समर्पित कर दी ,जिसके लिए जीवन भर साँस लेते रहे .




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---भंवर मेघवंशी---
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है ) 

विचार : देशभक्त कौन ?

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देश में चुनाव आते ही नेताओं में देश भक्ति जाग उठती है. चुनावी मौसम से सभी नेता देश भक्त हो जाते है. ये हर चीज को लेकर देश भक्ति की दुहाई देने लगते हैं. जैसे देश भक्ति के मानप का पैमाना यही तय करते है. बाकी देश के लोगों में देश भक्ति की भावना न हो जैसे.  बिहार चुनाव में लगातार राजनेताओं की एक दूसरे पर बयानबाजी जारी है.  बीफ के मुद्दे के बाद अब देश के माहौल को लेकर जमकर राजनीति हो रही है. सम्मान लौटाए जा रहे हैं. देश में असहिष्णुता का माहौल बताया जा रहा है. 

राजनेताओं के शब्दों के बाण एक दूसरे पर प्रतिघात कर रहे है. हाल में असहिष्णुता को लेकर फिल्म अभिनेता शाहरूख खान का बयान ने बीजेपी नेताओं में खलबली मचाकर रख दी. किसी ने शाहरूख को पाक का ऐजेंट बताया तो किसी ने कह दिया कि वह रहते यहां पर है और उनका मन पाकिस्तान में है. तो किसी ने उनकी तुलना हाफिज सईद से कर डाली. जब कहीं विरोध होगा तो बचाव में भी लोग जरूर आएगें. कांग्रेस के कुछ नेता शाहरूख के बचाव में आए तो लालू यादव भी पीछे कैसे रहते.
  
उन्होने बीजेपी और आरएसएस को देश विरोधी बताते हुए देशद्रोही कहा. ये नेता देशभक्ति की परिभाषा जनता को बतलाए. इनके हिसाब से देशद्रोही कौन है.  और देशभक्ति किसे कहते हैं. देशभक्ति के लेकर अभी मुम्बई में शिवसेना ने सुधीर कुलकर्णी के मुखपर कालिख इसलिए पोती थी कि पाक के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी के पुस्तक के विवेचन में जा रहे थे. साथ ही कहा कि पाक का कोई भी कार्यक्रम महाराष्ट्र में नही होने देगे. ये कहकर उन्होने अपनी देशभक्ति का परिचय दिया. ये खुद शिवसेना का कहना था.

ये नेता लोग देश को लूटने में कोई कसर नही छोड़ते है. और देशभक्ति की बात करते हैं. लालू यादव चारा घोटाले में जेल गए. और देश भक्ति और देश द्रोही की बात करते हैं. देश को लूट कर खा जाओ. और देशभक्त कहलाओ. कांग्रेंस की सरकार में घोटाले के ऊपर घोटाले किए गए. जिनके नाम लिखूं तो शायद ये लेख घोटालों से भर जाए. जिसने देश का कितना नुकसान किया और ये देश भक्त हो गए. देशभक्ति की परिभाषा देने लगे. 
देश के बहुत सारे नेताओं का काला धन विदेशों में जमा है. जो देश कि सम्पत्ति है, जिससे देश के विकास की गाड़ी धीमी हो गई है. वो कोई मायने नही रखता. बस देशभक्ति का राग गाने लगते हैं.  बीजेपी के नेताओं के खिलाफ भी बहुत सारे मामले हैं. वो भी देश भक्त है. भारत को अपनी मां कहते है. और उसी को लूटने में कोई कसर नही छोड़ते हैं. देश प्रेम इन नेताओं का सिर्फ चुनाव के समय जगता है. गाड़ियों में लाउडस्पीकर लगवाकर देशभक्ति के गाने बजाते रहते है. अगर देश का इतना ही ख्याल था तो लूटकर इतनी सम्पत्ति क्यों बना ली.

आजादी के 68 सालों के बावजूद आज भी हम विकासशील देशों में रेंग रहे हैं. विकसित होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.  जिसे जैसे मौका मिला देश को लूटता रहा. किसी के असहिष्णुता के बयान को लेकर उसे देशद्रोही बताना एक हंसी जैसा लगता है. अभिनेता शाहरूख के अलावा भी तो बहुत लोगों ने यही बयान दिया है. वो भी देश द्रोही है. मै कोई शाहरूख खान का प्रसंशक नही हूं. लेकिन इन नेताओं से देशप्रेम और देशभक्ति के बारे मे जरूर पूछना चाहूंगा.

जिन्होने सात चूहे खाकर, बिल्ली चली हज को करने वाला काम किया है. देश भक्ति को जानना है तो सीमा पर खड़े उन सेना के जवानों से पूछों. जिनके लिए दिन-रात, गर्मी-सर्दी, मे शरहद पर घर परिवार से दूर तैनात रहते है. अपनी जान की बाजी लगाकर. नेताओं की तरह नही सत्ता की गद्दी पर बैठकर लूटने का. इस तरह से एक दूसरे को देश द्रोही और अपने को देशभक्त बताना कहा तक उचित है.

क्या सिर्फ देश के खिलाफ बयान देना ही देशद्रोह है, क्या देश को लूटना देश द्रोह की संज्ञा में नही आना चाहिए. जिससे करोड़ों देशवासियों का कल्याण होता उसी को लूटकर अपना कल्याण किया. ऐसे लोग जो देशप्रेम की दुहाई देते है उनसे पूछंना चाहता हूं देशभक्त कौन? 



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रवि श्रीवास्तव
लेखक, कवि, व्यंगकार
ravi21dec1987@gmail.com

फिटनेस के प्रति सजग है नरगिस फाकरी

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किक,फटा पोस्टर निकला हीरो,राॅक स्टार,मद्रास कैफे, जैसी अनेको फिल्मों में अभिनय करने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री नरगिस फाकरी ने कहा कि वह सिर्फ दमदार कहानी वाली फिल्में ही करना पंसद करती है,फिल्म में उनके लिए निर्देशक भी महत्वपूर्ण होता है यह बात उन्होंने नई दिल्ली के जीके 1, एम ब्लाॅक स्थित नवीनतम ’फिट-हब’ काॅन्सेप्ट स्टोर का शुभारंभ पर कही। 

 रीबाॅक ने इस फिटनेस यात्रा में 3 साल पहले नरगिस के साथ हाथ मिलाया था और और इस नवीनतम फिटहब स्टोर को लाॅचकर उनके साथ एक और ऐतिहासिक सफलता हासिल करना हमारे लिए बड़े गर्व की बात है।’’

इस स्टोर का शुभारंभ रीबाॅक ब्रांड एंबेसडर नरगिस फाकरी और रीबाॅक व एडिडास इंडिया के प्रबंध निदेशक डेव थाॅमस ने किया।

नरगिस फाकरी ने रीबाॅक के प्रशिक्षकों को काॅम्बैट प्रशिक्षण रूटीन में जाॅइन किया। बेहद फैशनेबल और चिकरी बाॅक वियर पहने नरगिस ने अपने दमदार मुक्कों और किक का प्रदर्शन करते हुए रीबाॅक बैक ड्राॅप फाड़कर  उसके पीछे छिपे नए स्टोर को उत्साही प्रशंसकों और फैलोे फिटनेस जुनूनी लोगों के लिए पेश किया।

इस मौके पर रीबाॅक व एडिडास इंडिया के प्रबंध निदेशक डेवथाॅमस ने कहा, ’‘पिछले कुछ साल से हम लगातार कोशिश रीबाॅक इंडिया को देश में एक प्रीमियम फिटनेस ब्रांड बनाने की रही है।इसके अतिरिक्त हमारा ज्यादा ध्यान महिलाओं की फिटनेस जरूरतों को पूरा करने पर है और इस श्रेणी ने हमारे चुनिंदा स्टोरों के कुल कारोबार में 40 फीसदी से अधिक का योगदान किया है।  

टीवी कलाकारों की दीवाली

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रोजाना टीवी शो देखते हुए हम सोचते है कि टेलीविजन के कलाकारों की दीवाली कैसी हाती है,वह किर प्रकार से मनाते हैएजानते है उनकी ही जुबानी

भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप में महाराणा प्रताप ऊर्फ शरद मल्होत्रा- दीवाली हर साल बहुत धूम-धाम के साथ मनायी जाती है। यह मेरा एक पसंदीदा त्योहार है, जब मैं खुशी-खुशी हर रिवाज में शामिल हो सकता हूं, चाहे घर की साफ-सफाई करनी हो या भारतीय मिठाईयां और पकवान खाना हो, पटाखे जलाना (मुझे कम आवाज वाले पटाखे पसंद हैं) हो या फिर अपने पैड को रंगीन लाइट्स से सजाना, रंगोली बनाना, कार्ड खेल कर पार्टी मनाना, यह एक तरह से ब्लाॅकबस्टर नाइट है। इस साल मैं कोलकाता जाने और अपने परिवार के साथ त्योहार मनाने की सोच रहा था, लेकिन समय नहीं होने और काम के तनाव के कारण मैं शहर में ही अपने कुछ करीबी दोस्तों के साथ दीवाली मनाऊंगा।

‘संकट मोचन महाबली हनुमान‘ में बाल हनुमान ऊर्फ इशांत भानुशाली- दीवाली मेरा पसंदीदा त्योहार है, क्योंकि मुझे ढेर सारी मिठाईयां और मीठे पकवान खाने को मिलते हैं। मुझे मिठाईयां बहुत पसंद है और मेरी मां घर पर ही ऐसी स्वादिष्ट मिठाईयां बनाती हैं कि कोई भी खुद को उन्हें खाने से रोक नहीं सकता। मेरे सभी रिश्तेदार घर आते हैं और खुशियां मनाते हैं। इस साल भी मुझे दीवाली का बेसब्री से इंतजार है। इस साल मैं सेट पर संकट मोचन महाबली हनुमान के सभी कलाकारों व तकनीशियनों के साथ दीवाली का जश्न मनाऊंगा।

‘प्यार को हो जाने दो‘ में प्रीत ऊर्फ मोना सिंह - मुझे रौशनी बहुत पसंद है और इसलिये मुझे दीवाली अच्छी लगती है। बचपन में मेरे लिये दीवाली की मतलब था ढेर सारे अच्छे-अच्छे पकवान खाना। मुझे तला-भुना खाना और मिठाईयां बहुत पसंद थीं। घर पर बनी मिठाईयां मुंझे अच्छी लगती थीं। आज भी मैं मिठाई खाने से खुद को नहीं रोक पाती हूं। यदि आपका ताल्लुक पंजाबी परिवार से हो, तो अच्छा-अच्छा खाने के बिना कोई जश्न पूरा नहीं हो सकता। इसलिये कुछ भी नहीं बदला है। इस साल भी मैं अपने घर पर पूजा करूंगी और अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित करूंगी।

सूर्यपुत्र कर्ण के कर्ण ऊर्फ गौतम रोडे- दीवाली मेरा सबसे पसंदीदा त्योहार है। यह एक ऐसा त्योहार है, जब सभी दोस्त और परिवार के लोग एकसाथ होते हैं। हर साल दीवाली पर मैं अपने करीबी लोगों के साथ समय बिताने का मौका ढूंढ लेता हूं और इस बार भी उनके साथ समय बिताऊंगा। मैं अपने सभी प्रशंसकों को दीवाली की शुभकामनायें देना चाहूंगा।

gautmi-kapoorपरवरिश सीजन 2 में सुरिंदर ऊर्फ संगीता घोष- दीवाली मेरा एक पसंदीदा त्योहार है और मैं हर साल बेसब्री से इसका इंतजार करती हूं,क्योंकि रौशनी के अलावा यह दोस्तों और परिवारों से भी मिलने का समय है। मुझे रंगोली बनाने की परंपरा पसंद है और अपने घर को लालटेन एवं दियों से सजाना अच्छा लगता है, मैं पटाखे जलाने का समर्थन नहीं करती हूं। मुझे सजना-संवरना पसंद है और इस साल मुझे राजस्थानी वेशभूषा में सजने का मौका मिल रहा है। मैं अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों के साथ दीवाली मनाऊंगी। हम सभी दीवाली की मिठाईयों और पकवानों का आनंद उठायेंगे। मैं अपने सभी प्रशंसकों को सुखद एवं सुरक्षित दीवाली की शुभकामनायें देती हूं।

परवरिश सीजन 2 में स्नेहा ऊर्फ गौतमी कपूर- दीवाली का जश्न हमारे पूरे परिवार, खासतौर से मेरे लिये बेहद खास है, क्योंकि मेरी मां और दादी मां इस अवसर पर मिठाईयां बनाती थीं। मैंने अपनी मां से बेसन के लड्डू बनाने सीखे। हमारे खाने का मेन्यू दीवाली से एक दिन पहले तय होता था और हर दिन एक नया पकवान बनता था। इस बार हम बिना प्याज के खाना बनायेंगे और अन्य व्यंजनों का भी आनंद उठायेंगे। हम पटाखे नहीं जलायेंगे, क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है।

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क्राइम पेट्रोल के होस्ट अनूप सोनी- दीवाली मेरा पसंदीदा उत्सव है। बचपन में मैं वाकई में मिठाईयों का दीवाना था और दीवाली का बेसब्री से इंतजार करता था, क्योंकि इस मौके पर मुझे ढेर सारी मिठाईयां खाने को मिलती थीं। रिवाज के तौर पर मेरी मां हर साल दीवाली पर बेसन के लड्डू बनाती थीं और वह आज भी लड्डू बनाती हंैं और ये बेहद स्वादिष्ट होते हैं। मैं पटाखे जलाने में विश्वास नहीं करता, क्योंकि इससे काफी प्रदूषण होता है। इस साल भी मैं पटाखे नहीं जलाऊंगा। हालांकि, मैं अपने 3 साल के बेटे के साथ 1 या 2 फुलझड़ी जलाऊंगा। मेरी ओर से सभी लोगों को सुखद एवं सुरक्षित दीवाली की शुभकामनायें।

सीआइडी में दया ऊर्फ दयानंद शेट्टी- दीवाली रौशनी का त्योहार है और हर साल की तरह इस साल भी खूब सारे जश्न लेकर आया है। मुझे यह त्योहार वाकई में बहुत पसंद है और मैं इसका बेसब्री से इंतजार करता हूं, क्योंकि मुझे इसके द्वारा अपने घरों एवं जिंदगी में आई रौशनी अच्छी लगती है। हर साल दीवाली मैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मनाता हूं। हम तरह-तरह के पकवान व मिठाईयां खाते हैं। सभी दर्शकों और प्रशंसकों को दीवाली की ढेरों शुभकामनायें।

व्यंग्य: बड़े उपयोगी हैं हमारे शहर के कुत्ते और उनके पिल्ले जो......

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आप के शहर में पर्यावरण संतुलन बनाने में सभी पशुओं/जानवरों का योगदान होगा, होना भी चाहिए। यदि पशु/जानवर, पेड़, पौधे, पक्षी आदि न रहें तो जीवन चक्र ही नहीं चल पाएगा। इस लिए मानव जीवन के लिए इन सभी का योगदान सराहनीय ही नहीं अपितु उपयोगी भी है। हमारे शहर में भी कुछ इसी तरह का ही है। हमारे यहाँ जानवर/पशु पक्षी निर्बाध रूप से स्वच्छन्द घूम टहल कर पर्यावरण संतुलन बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। आवारा पशु तो खुले रूप से घूमते ही हैं, बन्दरों ने भी उत्पात मचाना जारी रखा है। चूहे व छोटे बड़े जानवर भरपूर सहयोग दे रहे हैं। कभी-कभी दुःख होता है, जब इन जानवरों को मनुष्य अपना दुश्मन समझकर मार डालने की योजना बनाते हैं। 

हमारे शहर के लोग आवारा पशुओं से परेशान होते हैं। इनको चूहों से भी परेशानी होती है। कहते हैं कि ये पशु/जानवर छति पहुँचा रहे हैं। आवारा जानवरों को डण्डों से मारते हैं और चूहे मार दवा खिलाकर चूहों का सफाया कर रहे हैं। बहुत से भले लोग पर्यावरण संतुलन का महत्व समझ बैठे हैं इसलिए घरों में पेड़ पौधों और जानवर पाल रखे हैं। लोग इसे अपना बड़प्पन और शौक मानते हैं। हम तो बन्दर भी पाल रखे हैं। हमारे शहर के पाश इलाकों में (वी.आई.पी. क्षेत्रों में) स्वामीभक्त कुत्तों की भी कमी नहीं है। हालांकि कुत्ता ही फेथफुल होता है और आंग्लभाषा के इस शब्द का अर्थ ही स्वामीभक्त होता है, लेकिन- हमारे कहने का मतलब यह है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपने पेट्स (कुत्तों) के प्रति इतना लगाव रखते हैं कि उन्होंने स्वयं कुत्तों की जगह ले लिया है, और वे खुद कुत्तों के स्वामी भक्त बन गये हैं। 

ये लोग अपने-अपने पालतू कुत्तों को (स्वच्छन्द) छूट देकर दुखद स्थिति पैदा करते हैं। इनके पालतू कुत्ते भौंकते हैं, काटते नहीं। आप को देखकर दौड़ाएँेगे/भौंकेंगे लेकिन डरियेगा मत। आइए हमारे शहर में इन विशिष्ट इलाकों में पहुँचते ही ये कुत्ते भौंक-भौंक कर आपका खैरमखदम करेंगे। पहले आपको डरना पड़ेगा, लेकिन बाद में ये स्वामीभक्त कुत्ते आपको गन्तव्य का रास्ता भी दिखाएँगे। यहाँ बता दूँ कि ठीक इसी तरह इनके पिल्ले भी करते हैं। आप जरा भी मत डरें, हमारे शहर के इन कुत्तों और इनके पिल्लों से। हमारे शहर के सभी जानवर उपयोगी हैं। गाय, बैल, चूहा, बन्दर, भेंड़, बकरी। लेकिन सबसे उपयोगी कुत्ते हैं जो पर्यावरण संतुलन बनाने में घर की रखवाली करने व आपको गंतव्य तक पहुँचाने में मदद करते हैं। बड़े अच्छे हैं ये कुत्ते कृपया इन्हें मत मारिए और डरिए भी नहीं। 



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-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी-
संपर्क : 9454908400

विशेष आलेख : पेरिस में रिस रहे आंसू, भारत रहे सतर्क

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ख्वाबों में दरिंदगी की दस्तक है, आंखों में इंसानियत को खो देने के कारण जो लाशों की नुमाईश सजा दी गई है उसकी खातिर आंसुओं का सैलाब उतर आया है. पलकों में नमी आज उनकी यादों की गवाही दे रही है. मोमबत्तियां पिघलते हुए फ्रांस में मारे गए लोगों को अंतिम विदाई दे रही है. ख्वाब हों या फिर ख्वाहिशें, उम्मीदों के अलावा आशाएं भी कब्र में दफना दी गई हैं. जिसके लिए जिम्मेदार हैं वो नामुराद जो जुबानों से कट्टरपंथ का लबादा मानसिक तौर पर कमजोर लोगों के जहन में थोप देते हैं. जिहाद का एक अलग ही अर्थ तैयार करते हैं. भला मौत का नंगा नाच करके भी कोई आज तक सुखी रह पाया है. शायद क्या बिलकुल भी नहीं. 

फ्रांस में साल भर के अंदर चार बड़े आतंकी हमले गंभीर संकट की ओर इशारा कर रहे हैं. इसके इतर ये भी जता रहे हैं कि वहां की सरकार ने इन हमलों को कितनी गंभीरता से लिया है. हाल ही में हुए हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएसआईएस  ने ली है. जानकारी के मुताबिक इससे पहले हुए तीन हमलों में भी आईएस का ही हाथ था. दरअसल ये आतंकी संगठन अपने पैर पसारते हुए मौत के मतलब को बेहद हल्का करता जा रहा है. लेकिन इसके हमलों का माकूल जवाब रूस की ओर से ही बेहतर तरीके से दिया जा रहा है. पर सवाल उठता है कि जब ये संगठन पूरे विश्व के लिए खतरनाक है तो क्यों सारे देश मिलकर इसके खिलाफ कार्यवाही नहीं कर रहे. क्यों इसे जड़ से उखाड़ देने के लिए प्रयास नहीं कर रहे. करीबन 160 लोगों की कब्र तैयार करने के बाद फ्रांस ने अपने रूख को सख्त करने का निर्णय लिया है. फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोक का एलान करते हुए कहा कि अब हम भी इन हमलावरों से बेदर्दी से निपटेंगे, हमें पता है कि इसके पीछे कौन है और वे कहां से आए हैं.

आतंकियों का निशाना क्यों बन रहा है फ्रांस
माना जाता है कि पूरे यूरोप में फ्रांस ही मुस्लिम बाहुल्य है. जिसके कारण आईएस अपना स्लीपर सेल यहां आसानी से एक्टिव कर पाने में सफल होता है. वहां रह रहे कुछ लोग ही कट्टरपंथ का मतलब बताने के लिए खूनी खेल की बिसात बिछा देते हैं. इन सबके इतर फ्रांस सीरिया और इराक में अमेरिकी फौज का सहयोगी रहा है, साथ ही राष्ट्रपति ओलांद ने हाल ही में एलान किया था कि वो आईएस के खिलाफ जंग की खातिर ईराक के गल्फ इलाकों में एयरक्राफ्ट कैरियर भेजेंगे जिसकी वजह से भी आईएस के निशाने पर फ्रांस है.

भारत भी बन सकता है निशाना
देश 2008 के मुंबई हमलों में मिले जख्मों को आज भी याद कर सिहर जाता है. छलक उठती हैं आंखें उस मंजर को याद करके. लेकिन कश्मीर में आईएस के झंडे इस डर को और बढ़ा देते हैं. सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से आतंकी हमले की बार-बार चेतावनी लोगों के दिलों में हलचल पैदा कर देती है. दरअसल सवाल ये उठता है कि जब देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में राज्य सरकारें विफल हो रही हैं तो आतंकी हमले को रोकने के लिए कितने पुख्ता इंतजाम किए गए होंगे. बहरहाल आतंकी नावेद की गिरफ्तारी इस बात की ओर इशारा कर रही है कि आतंकवादियों की नजरें भारत पर लगातार बनी हुई हैं. जिस लिहाज से सुरक्षा इंतजाम और कड़े करने होंगे. सांप्रदायिक माहौल के तैयार होने के सारे आसार को निश्त नाबूत करना होगा.

पेरिस हमले में लोगों की प्रतिक्रिया-

मानवता समर्थक शक्तियों का एकजुट होना जरूरी
पेरिस में हुए बर्बर आतंकवादी हमले को ‘मानवता पर हमला’ बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मांग की कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए संयुक्त राष्ट्र को आतंकवाद को परिभाषित करना चाहिए जिससे दुनिया यह जान सके कि कौन आतंक का समर्थन कर रहा है और कौन उसके खिलाफ है. पेरिस आतंकी हमले की निंदा करते हुए मोदी ने कहा, ‘पेरिस में शुक्रवार को जो हुआ, वह मानवता पर हमला है और दुनिया को यह स्वीकार करना चाहिए कि यह केवल पेरिस पर हमला नहीं है, केवल फ्रांस के नागरिकों पर हमला नहीं है और न ही केवल फ्रांस पर हमला है बल्कि मानवता पर हमला है’. 12वीं शताब्दी के भारत के महान दार्शनिक बसवेश्वर की प्रतिमा का अनावरण करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह मानवतावादी सिद्धांतों पर हमला है, इसलिए मानवता में जो भी ताकतें विश्वास रखती है, उन्हें एकसाथ आकर ऐसे हमलों की निंदा करनी चाहिए. मानवता विरोधी शक्तियों को शिकस्त देने के लिए सभी मानवता समर्थक शक्तियों को एकजुट हो जाना चाहिए.

पागलपन का आतंकवाद
वेटिकन सिटी के स्पोक्सपर्सन फॉदर फेडेरिको लोम्बार्डी ने एक स्टेटमेंट में कहा- यह पागलपन आतंकवाद है. हम इसकी निंदा करते हैं. नफरत में हिंसा करने वालों को जवाब दिया जाना चाहिए.

आतंकियों की ये करतूत है कायराना
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पेरिस हमले पर दुख जताते हुए आतंकियों की इस हरकत को कायराना बताया है. ओबामा ने कहा कि ये मानवता पर हमला है. अमरीका पूरी तरह से फ्रांस के साथ खड़ा है.

हर संभव मदद का दिया भरोसा
डेविड कैमरन ने ट्वीट किया कि पेरिस में हुई घटना से मैं स्तब्ध हूं. हम लोग पूरी तरह से फ्रांस के लोगों के साथ हैं. हमसे जो भी मदद हो सकेगी, हम करेंगे.

बहरहाल इन सारी प्रतिक्रियाओं के अलावा त्वरित और सख्त की कार्यवाही की जरूरत है. क्योंकि इन आतंकी हमलों के बाद लोगों की जुबानें सुरक्षा तलाश रही हैं सुरक्षित मुल्क की ओर पलायन की योजना बना रही हैं पर असल में जिहाद का पाखंड करने वालों की मंशाओं के सामने कहां और कौन सा कोना महफूज है. सवाल है जवाब की तलाश में. सुरक्षा का भरोसा हर उस हमले जिसमें तमाम यादें फंसकर दम तोड़ देती हैं उनके सामने बौना साबित हो जाता है.



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हिमांशु तिवारी ‘आत्मीय’
08858250015 

बिहार विशेष : 20 नवम्बर 2015 को पांचवी बार नीतीश कुमार की ताजपोशी

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  • भोला पासवान शास्त्री, जगन्नाथ मिश्रा और राबड़ी देवी तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने
  • महज 5 दिनों वाला मुख्यमंत्री हैं सतीश प्रसाद सिंह

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पटना। बिहार में 69 साल के दरम्यान (वर्ष 1946 से 2015 तक) 23 लोग मुख्यमंत्री बने। एक मात्रः महिला मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ही मुख्यमंत्री बन सकीं। किचन से निकलकर सीएम की कुर्सी पर जा बैठीं। शेष 22 पुरूष मुख्यमंत्री हुए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 22 वां और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी 23 वां मुख्यमंत्री हैं। 8 बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। भोला पासवान शास्त्री, जगन्नाथ मिश्रा और राबड़ी देवी तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं। 20 नवम्बर 2015 को पांचवी बार नीतीश कुमार की ताजपोशी होते ही रिकॉड स्थापित कर लेंगे। अपने ही 4 बार के रिकॉड को ध्वस्त करेंगे। 

(1)श्रीकृष्ण सिंह ( 2 अप्रैल 1946 से 31 जनवरी 1961),(2)दीप नारायण सिंह(1 फरवरी 1961 से 18 फरवरी 1961),(3) बिनोदानंद झा (18 फरवरी 1961 से 2 अक्टूबर 1963),(4)के.बी.सहाय(2 अक्टूबर 1963 से 5 मार्च 1967),(5)महामाया प्रसाद सिन्हा( 5 मार्च 1967 से 28 जनवरी 1968), (6)सतीश प्रसाद सिंह(28 जनवरी 1968 से 1 फरवरी 1968),(7) बी.पी.मंडल(1 फरवरी 1968 से 2 मार्च 1968), (8) भोला पासवान शास्त्री(22 मार्च 1968 से 29 जून 1968), राष्ट्रपति शासन( 29 जून 1968 से 26 फरवरी 1969),(9) हरिहर सिंह(26 फरवरी 1969 से 22 जून 1969),(8) भोला पासवान शास्त्री(22 जून 1969 से 4 जुलाई 1969 ), राष्ट्रपति शासन( 6 जुलाई 1969 से 16 फरवरी 1970)(10) दरोगा प्रसाद राय( 16 फरवरी 1970 से 22 दिसम्बर 1970), (11)कर्पूरी ठाकुर( 22 दिसम्बर1970 से 2 जून 1971),(8) भोला पासवान शास्त्री( 2 जून 1971 से 9 जनवरी 1972),राष्ट्रपति शासन (9 जनवरी 1972 से 19 मार्च 1972),(12) केदार पाण्डेय( 19 मार्च 1972 से 2 जुलाई 1973),(13) अब्दुल गफूर(2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975), (14)जगन्नाथ मिश्रा( 11 अप्रैल 1975 से 30 अप्रैल 1977), राष्ट्रपति शासन (30 अप्रैल 1977 से 24 जून 1977)ए (11)कर्पूरी ठाकुर (24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979), (15)राम सुन्दर दास( 21 अप्रैल 1979 से 17 फरवरी 1980), राष्ट्रपति शासन( 17 फरवरी 1980 से 8 जून 1980)ए (14)जगन्नाथ मिश्रा( 8 जून 1980 से 14 अगस्त 1983), (16)चन्द्रशेखर सिह( 14 अगस्त 1983 से 12 मार्च 1985), (17)बिन्देश्वरी दुबे( 12 मार्च 1985 से 13 फरवरी 1988), (18)भागवत झा आजाद( 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989), (19)सत्येन्द्र नारायण सिन्हा (11 मार्च 1989 से 6 दिसम्बर 1989), (14)जगन्नाथ मिश्रा,( 6 दिसम्बर 1989 से 10 मार्च 1990),  (20) लालू प्रसाद यादव(10 मार्च 1990 से 28 मार्च 1995), राष्ट्रपति शासन( 28 मार्च 1995 से 4 अप्रैल 1995)ए (20)  लालू प्रसाद यादव( 4 अप्रैल 1995 से 25 जुलाई 1997), (21) राबड़ी देवी (25 जुलाई 1997 से 11 फरवरी 1999), राष्ट्रपति शासन ( 11 फरवरी 1999 से 9 मार्च 1999)(21) राबड़ी देवी ( 9 मार्च 1999 से 2 मार्च 2000), (22)नीतीश कुमार ( 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000),(21) राबडी देवी (11 मार्च 2000 से 6 मार्च 2005 ), राष्ट्रपति शासन ( 7 मार्च 2005 से 24 नम्बर 2005),(22)नीतीश कुमार ( 24 नवम्बर 2005 से 20 मई 2010),(22) नीतीश कुमार 20 मई 2010 से 20 मई 2014 ), (23)जीतन राम मांझी( 20 मई 2014 से 22 फरवरी 2015, (22)नीतीश कुमार ( 22 फरवरी 2015 से 19 नवम्बर 2015)। एनडीए को पराजित करने के बाद 20 नवम्बर को 64 वर्षीय नीतीश कुमार को शपथ दिलायी जाएगी। 

राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने नीतीश कुमार को सरकार गठन करने का दिया न्योता

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  • 20 नवम्बर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे नीतीश, पटना के गांधी मैदान में शपथ ग्रहण समारोह

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पटना। आज का दिन ऐतिहासिक है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजभवन जाकर सरकार गठन करने का दावा पेश किया। राज्यपाल रामनाथ कोविंद के सामने दावा पत्र पेश करने वालों में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चैधरी , राजद नेता रामचन्द्र पूर्वे आदि गए थे।महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने नीतीश कुमार को सरकार गठन करने का न्योता दिया। तबतक नीतीश कुमार से कहा कि आप कार्यवाहक मुख्यमंत्री की तरह कार्य करते रहे।

आज महागठबंधक विधायकों की बैठक की गयी। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की अध्यक्षता में बैठक की गयी। इस अवसर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने नवनिर्वाचित विधायकों के नेता के रूप में नीतीश कुमार का नाम का प्रस्ताव किया और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सी.पी.जोशी ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया। इस तरह बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का मार्ग साफ हो गया है। बैठक की समाप्ति के बाद महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविंद से नीतीश कुमार मुलाकात करके सरकार बनाने का दावा पेश किया। इस बाबत राज्यपाल ने औपचारिक कागज दिया है। 20 नवम्बर को मुख्यमंत्री के रूप में दोपहर 2 बजे नीतीश कुमार शपथ ग्रहण करेंगे। पटना के गांधी में शपथ ग्रहण समारोह में देश-प्रदेश के शीर्षक नेतागण भाग लेंगे।

मौके पर कार्यवाहक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जदयू,राजद और कांग्रेस के विधायक मंत्री मंडल में शामिल होंगे। पूर्व घोषित 7 सूत्री निश्चय को लेकर काम करेंगे। हर हालत में कानून का राज कायम है और कानून का राज कायम रहेगा। महागठबंधन एकजूट होकर शानदार ढंग से सरकार चलाएगा। चुनाव समय में दिए गए वक्तव्य पर व्यंग्य नहीं करेंगे। विपक्ष का सहयोग लेंगे। प्रदेश में शांति और सद्भावना कायम रहेगा। हरेक वर्गों का कल्याण और विकास होगा। किसी भी तबके के साथ भेदभाव नहीं होगा। लोगों ने अपार जनसमर्थन दिए हैं।इस लिए  उनके लिए काम करना है। 

बिहार : गंगा नदी में लक्ष्मी जी की प्रतिमा विसर्जन करने के दरम्यान नन्दू कुमार की मौत

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  • गाँवघर में मातम पसरा

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पटना। दीघा थानान्तर्गत जंगलीपुर में रहते हैं राजू चैधरी। वे प्राइवेट वाहन के चालक हैं। श्री चैधरी के 2 लड़के और 1 लड़की हैं। नन्दू कुमार आठवीं और सन्नी तीसरी कक्षा में पढ़ता है। गाँवघर के लोगों ने मिलकर लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित किए थे। इसके कारण जंगलीपुर में उत्साह का माहौल था। बच्चे और सयाने खुशी मना रहे थे। मगर खुशी गम में तब्दील हो गया। राजू चैधरी के पुत्र नन्दू कुमार की मौत गंगा नदी में डूबने से हो गयी। यह हादसा प्रतिमा विसर्जन के दरम्यान हुआ। 

बताया जाता है कि जंगलीपुर के नौजवान और बच्चों के साथ नन्दू कुमार और सन्नी कुमार भी गए थे। नाचते और गाते गंगा नदी के किनारे पहुँचे। दीघा रेलवे पुल के एक नम्बर पाया के पास विसर्जन करना किया गया। नौजवान और बच्चे लक्ष्मी जी की जय करके प्रतिमा को विसर्जन कर दिए। दुर्भाग्य से नन्दू कुमार गहराई की ओर बढ़ गया। गंगा नदी में उतरकर प्रतिमा विसर्जन करने गए उत्साहित लोग सुरक्षित बाहर निकल गए। मगर नन्दू कुमार बाहर नहीं आया। तो वहाँ पर मौजूद नन्दू कुमार के अनुज सन्नी कुमार नौजवानों से कहने लगा कि नन्दू गंगा नदी की गहराई में चले जाने से बाहर नहीं निकला है। किसी ने सन्नी की बातों पर ध्यान नहीं दिए। जब जोर जोर से चिल्लाकर रोने लगा तब सभी लोग सन्नी को छोड़कर गंगागा नदी की तट से नौ दो ग्यारह हो गए। गाँव घर में गंगा नदी में डूबने की हल्ला होने होने पर कोहराम मच गया। सभी ग्रामीण गंगा नदी की तट की ओर भागे। तबतक काफी देर हो गयी। नन्दू कुमार डूब चूका था। 

इस बाबत दीघा थाना में खबर दी गयी। वहाँ के बड़ा बाबू ने गोताखोरों को सूचना देकर बुलाया। चार बजे पहुँचे और दो घंटे बंसीबाजी करते रहे। बंसीबाजी करने से नन्दू कुमार का शव बरामद नहीं हुआ। गोताखोरों का कहना है कि बंसी में कीचड़ फंस रहा था। काफी कीचड़ और गड्ढा है। इस बीच बिहटा में रहने वाले एनडीआरएफ को खबर कर दी गयी। इस बीच नन्दू कुमार का शव बरामद हो गया। पोस्टमार्टम करने के बाद शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। अपने बीच से नन्दू कुमार के चले जाने से परिवार काफी विचलित है। परिवार के लोग रोते-रोते बुरा हाल कर लिए हैं। 

प्रशासन ने महाछठ के मद्देनजर बांस से प्रतीक चिन्ह बना रखा है। बांस गाड़ दिया गया है। इससे आगे बढ़कर पूजा करने पर पाबंदी है। इस बीच पुलिस बल तैनात है। किसी तरह की अप्रिय घटना न हो। इसको लेकर पुलिस बल सचेत हैं। माइक से लोगों को आवश्यक निर्देश जारी किया जाएगा। गंगा तट पर पटाखा छोड़ने पर पाबंदी लगा दिया गया है। 

बिहार : आम की लकड़ी तोड़ने के दरम्यान पेड़ से गिरने से मन्नु साव की मौत

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  • एक क्षण में विधवा हो गयीं, दो संगी बहने, मखदुमपुर में मातम

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पटना। पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत के मखदुमपुर मोहल्ला में रहते हैं मन्नु साव। प्रत्येक दिन की तरह सुबह में उठकर जानवरों की सेवा में मन्नु साव जुट गए। इसके बाद मन्नु साव मखदुमपुर बगीचा में चले गए। घर में मीना देवी छठ करने वाली थीं। आम के पेड़ पर चढ़कर लकड़ी तोड़ने लगे। लकड़ी तोड़ने के दरम्यान मन्नु गिर गए। मन्नु को सिर और छाती में चोट लगी। उसे उठाकर अस्पताल लाया गया। अस्पताल में आॅक्सीजन पर रहे। 30 मिनट के अंदर चिकित्सकों एवं परिचारिकाओं की सेवा व्यथ चली गयी। अस्पताल में ही दम तोड़ दिए। वे 55 साल के थे। अपने पीछे 2 बीबी, 3लड़की और 2 लड़के छोड़ गए। 105 साल की माँ बेदामों देवी को छोड़ गए। 

मजदूर मन्नु साव की प्रथम पत्नी मीना देवी हैं। प्रथम पत्नी से बाल-बच्चा नहीं होने पर मन्नु साव ने द्वितीय विवाह गीता देवी से कर लिया। मीना देवी और गीता देवी संगी बहने हैं। मन्नु साव और गीता देवी के सहयोग से 3 लड़की और 2 बच्चे हुए। संतान हैं प्रीति , पार्वती, सरस्वती, सन्नी और गन्नी। इसमें प्रीति की शादी सुधीर कुमार से हो गयी है। 

प्रीति देवी कहती हैं कि बाबू जी लकड़ी तोड़ने गए थे। बड़ी माँ मीना देवी छठ करने वाली थीं। लकड़ी तोड़ने के दरम्यान पेड़ पर से गिर गए। सिर और छाती में चोट लगी। उनको पाटलिपुत्र काॅलोनी में स्थित अस्पताल में भर्ती किया गया। कोई 30 मिनट के अंदर परलोक सिधार चुके। पार्वती ने कहा कि हमलोग छोटे-छोटे हैं। सरकार के द्वारा परिवार लाभ योजना से लाभ मिलना ही चाहिए। इसके अलावे लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन से लाभान्वित करवाना चाहिए। 

आम की लकड़ी बिक रहा है 80 रूपए में 5 किलो। इसे आसानी से बाजार से खरीदा जा सकता है। हां, सावधानी से कार्य निपटारा करने से हादसा से बचा जा सकता है। यह तो विधि के विधान ही है कि पेड़ से लकड़ी तोड़ने के दरम्यान मौत हो गयी। इस तरह एक ही क्षण में दो संगी बहने विधवा हो गयीं। 

बिहार : महापर्व छठ से दीघा घाट की हलचल और रौनक

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पटना। लोक आस्था का महापर्व है छठ। महापर्व चार दिनों तक चलता है। नहाए खाए के साथ शुरू होता है। उदयीमान भास्कर को अध्र्यदान करने के बाद समाप्त हो जाता है। महापर्व के अवसर पर उपयोग होने वाले समान दीघा हाट पर मिल जाता है। खरीददारों की काफी भीड़ रहती है। कुछ लोग भीड़भाड़ का फायदा उठाने को तैयार रहते हैं। क्षणभर के लिए समान पर नजर हटी कि चील झपट्टामार की तरह समान लेकर फरार हो जाते हैं। 

हुआ यह कि दीघा थानान्तर्गत बांसकोठी मोहल्ला में रहने वाली एक महिला समान खरीदने दीघा हाट गयी थीं। 5 हजार रू.का कपड़ा खरीदी। 3 हजार रू. बैंग में ही रखी थीं। दीघा हाट पर चाट बिक रहा था। चाट वाले से पानी पूरी देने को कहा। धनतेरस के अवसर पर समान बिक्री करने का स्टेज बनाया गया था। उसी स्टेज पर महिला बैंग को रखकर पानी पूरी को मुंह में डाली ही थीं। कि उसकी नजर बैंग पड़ी। बैंग को नहीं देखने से बेचैन हो उठी। जोरजोर से रोने लगी। आसपास के लोगों से पड़ताल की कि कोई बैंग उठाते देखे हैं? कोई भी व्यक्ति को जानकारी देने को तैयार नहीं हुए। 

इस बीच महिला के पतिदेव आ गए। लापरवाही को नजरांदाज करके घर लौटने को कहने लगे। कोई दीघा थाना में जाकर प्राथमिकी दर्ज करवाने की सलाह देने लगे। सलाह को नहीं मानकर रोते घर रवाना हो गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार दीघा हाट पर गिरोह सक्रिय है। जो पलक झपटते ही साइकिल और बैंग उड़ाने में कुख्यात हैं। यहां तक पाॅकेटमार भी सक्रिय है। इसमें नौजवान और बच्चे भी शामिल हैं। पुलिसकर्मियों की चैकसी जरूरत है। इससे अधिक जरूरी लोगों को है। जो अपने समान की सुरक्षा नहीं कर पाते हैं।
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