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केजरीवाल ने लालू से अपशब्द बोलने का लिया गुरूमंत्र : सुशील मोदी

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पटना 17 दिसम्बर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यालय पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कथित छापेमारी के बाद उनके द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपशब्द कहे जाने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ट्विटर के जरिए करारा हमला बोला और कहा कि लालू प्रसाद यादव के साथ मंच साझा करने के दौरान उन्होंने अपशब्द बोलने का गुरूमंत्र लिया है। श्री मोदी ने माइक्रो ब्लाॅगिंग साइट ट्विटर पर लिखा, “ दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के 13 साल पुराने मामले में आरोपी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को प्रधान सचिव बनाया। 20 नवंबर को पटना आकर उन्होंने नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रीय जनता दल :राजद: सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से गले मिलकर ईमानदारी का तार-तार हुआ चोला भी उतार फेका और प्रधानमंत्री के प्रति अपशब्द बोलने का गुरुमंत्र ले लिया।” पूर्व उप मुख्यमंत्री ने अपने एक अन्य ट्वीट में लिखा , “तीन हजार फोन काॅल रिकार्डिंग और 50 अफसरों से मिले सबूत के बावजूद किसी भ्रष्ट अफसर के खिलाफ केवल इसलिए छापे नहीं मारे जाने चाहिए कि उसे एक मुख्यमंत्री ने अपना प्रधान सचिव बना लिया है। इस मामले में कानून को अपना काम करने देना चाहिए लेकिन दुर्भाग्यवश, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सीबीआई की तारीफ करने के बजाय आरोपी को राजनीतिक संरक्षण दे रहे हैं। 

श्री मोदी ने एक अन्य ट्वीट में लिखा, “ शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल की सजा काट रहे ओम प्रकाश चौटाला, चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद और शारदा चिट फंट घोटाले के आरोपियों से घिरीं ममता बनर्जी से दोस्ती निभाने वाले नीतीश कुमार अब अरविंद केजरीवाल का साथ दे रहे हैं। बताएं कि क्या सरकार या किसी आयोग ने केंद्र-राज्य संबंध को बेहतर बनाने के लिए किसी मुख्यमंत्री के दागी अफसर को कानून से ऊपर रखने की सिफारिश की है? भाजपा नेता ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के मंच का इस्तेमाल कर ईमानदारी का चोला पहना। बच्चों की कसम खाकर उस चोले का रंग गाढ़ा किया। जब झांसे में आकर दिल्ली की जनता ने उन्हें अपार बहुमत दे दिया, तब उन्होंने चोला फाड़ना-उतारना शुरू कर दिया है। पहले उनके मंत्री आरोपों में फंसे, फिर अफसर। उन्होंने दंतहीन और विवादास्पद लोकपाल बिल को पास कराया। उल्लेखनीय है कि मंगलवार की सुबह दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय में सीबीआई की छापेमारी के बाद से आम आदमी पार्टी (आप) और भाजपा के बीच आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में आप के नेताओं ने आज दिल्ली में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेठली पर दिल्ली डिस्ट्रिक क्रिकेट एसोशियेशन (डीडीसीए) में वित्तीय अनियमितता के कई गंभीर आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री से उन्हें तत्काल पद से हटाने की मांग की है। 

सुखदेव भगत की जीत में दिखा भाजपा के प्रति आक्रोश : अशोक चौधरी

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पटना, 17 दिसम्बर, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष एवं राज्य के शिक्षा मंत्री डा.अशोक चौधरी ने झारखण्ड के लोहरदगा विधान सभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत की भारी जीत पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इस जीत ने साबित कर दिया है कि सारे देश की जनता केन्द्र की भाजपा सरकार की नीतियों से नाराज है। डा.चौधरी ने यहां कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबन्धन की भारी जीत, मध्य प्रदेश के रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट, गुजरात राज्य के पंचायत चुनाव में काग्रेस के जीत के बाद अब लोहरदग्गा विधान सभा उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत ने साबित कर दिया है कि सारे देश की जनता केन्द्र की भाजपा सरकार की नीतियों से नाराज है। 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि मार्च-अप्रैल 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सारे देश का दौरा कर जनता से वायदा किया था कि केन्द्र में सत्ता आने पर मँहगाई पर नियंत्रण लगाने, भ्रष्टाचार खत्म करने, कालाधन 100 दिनों के भीतर वापस लाने, देश के युवाओं के लिये प्रत्येक वर्ष दो करोड़ रोजगार के सृजन करने एवं सबका-साथ, सबका विकास की नीति पर चलेंगे। उन्होंने कहा कि 19 महीने से केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक भी वायदे पर खरे नहीं उतरे हैं और देश की जनता उनके झूठे वायदों से तंग आकर उन्हें सबक सिखाने का निर्णय कर लिया है। 

बिहार में खुलेंगे पांच नये मेडिकल कॉलेज

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पटना 17 दिसम्बर, बिहार में पांच और नये सरकारी मेडिकल कॉलेज खुलेगें। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज यहां मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित संवाद कक्ष में स्वास्थ्य विभाग की उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में इस आशय की घोषणा करते कहा कि राज्य में पहले से स्वीकृत एवं कार्यरत मेडिकल काॅलेजों के अलावे मेडिकल कॉउसिल ऑफ इंडिया (एम0सी0आ) के मानक के अनुरूप पांच नये मेडिकल काॅलेज खुलेंगे। इसके अलावा सभी मेडिकल काॅलेजों में नर्सिंग काॅलेज भी खोले जायेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य के सभी अनुमण्डलों में ए0एन0एम0 स्कूल की स्थापना होगी। राज्य के सभी जिलों में जी0एन0एम0 स्कूल एवं पारा मेडिकल इन्स्टीच्यूट की स्थापना होगी। बैठक के बाद स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आर0के0 महाजन ने बताया कि बैठक में मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पी0एम0सी0एच), नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एन0एम0सी0एच) एवं इंदिरा गांधी हृदय संस्थान (आई0जी0आई0सी) को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का अस्पताल बनाया जायेगा। सभी अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित होगे। राजधानी स्थित पीएमसीएच को ऐसा बनाया जायेगा कि असाध्य रोगों से ग्रसित मरीजों का इलाज अगर किसी भी अस्पताल में नहीं हो पाया हो तो उसका समुचित इलाज यहां हो सके। 


श्री महाजन ने बताया कि बैठक में मुख्यमंत्री ने सभी अस्पतालों में निःशुल्क दवा का निर्बाध वितरण करने के साथ ही वितरण में हो रही बाधाओं को शीघ्र दूर करने का निर्देश दिया है। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि मरीजों के आधार कार्ड को संजीवनी साॅफ्टवेयर से लिंक किया जाये ताकि आंकड़ों की बेहतर समीक्षा हो सके। प्रधान सचिव ने बताया कि बैठक में मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिया कि सभी जिला अस्पतालों में चार शय्या वाले गहन चिकित्सा यूनिट को दस शय्या में परिवर्तित किया जाये। उन्होंने राज्य के प्रत्येक जिले के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में रेडियोलाॅजी एवं पैथोलाॅजी जांच की सुविधा मरीजों को प्रदान करने का निर्देश दिया। इस दौरान यह भी निर्देश दिया गया कि राज्य स्तर पर एक विशेष टीम का गठन किया जाये, जो डाॅक्टरों एवं पारा मेडिकल स्टाफों की उपस्थिति का औचक निरीक्षण करें और अनुपस्थित पाये जाने वाले डाॅक्टरों एवं पारा मेडिकल स्टाफों पर आवश्यक कार्रवाई हो। श्री महाजन ने बताया कि बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिया कि जिन व्यक्तियों को शराब की लत लग चुकी है, उस लत को छुड़ाने के लिये हर जिला में एक-एक डी एडिक्शन सेन्टर की स्थापना होगी। एम्बुलेंस के परिचालन में आॅटो माॅनिटरिंग सिस्टम लगाने के साथ ही ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जी0पी0एस) सिस्टम के माध्यम से मोबाइल परिचालन का माॅनिटरिंग करने का निर्णय लिया गया। 

बैठक में मुख्यमंत्री ने प्रधान सचिव को कहा कि यदि दूरदराज एवं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की पोस्टिंग होती है, अगर उन्हें विशेष इंटेंसिव देने का कोई प्रस्ताव है तो सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाये। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि शीघ्र हेल्थ इन्वेस्ट पाॅलिसी लागू की जाये, इस पाॅलिसी के लागू हो जाने से प्राइवेट सेक्टर भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश कर सकेंगे। इस दौरान मुख्यमंत्री ने राज्य स्तर पर निरीक्षण दल का गठन करने का निर्देश दिया जो डाॅक्टरों की उपस्थिति, मरीजों का भोजन एवं अस्पताल के सफाई का औचक निरीक्षण करेंगे और दोषी चिकित्सकों एवं चिकित्सा कर्मियों के विरूद्ध आवश्यक कार्रवाई करेंगे। बैठक में मुख्यमंत्री अलावा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव, मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह, विकास आयुक्त शिशिर सिन्हा, वित्त विभाग के प्रधान सचिव रवि मितल, मुख्यमंत्री के सचिव चंचल कुमार समेत सभी संबंधित पदाधिकारी उपस्थित थे। 

बिहार : किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरेगी "हम"

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पटना 17 दिसम्बर, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने किसानों को धान की बकाया राशि के भुगतान में हो रही देरी को लेकर राज्य की नीतीश सरकार को चेतावनी देते आज कहा कि यदि जनवरी के दूसरे सप्ताह तक किसानों को बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो उनकी पार्टी आंदोलन करेगी। 

श्री मांझी की अध्यक्षता में यहां उनके सरकारी आवास पर पार्टी के वरीय पदाधिकारियों की बैठक आयोजित की गयी। इस बैठक में विशेष रूप से प्रदेश के किसानों की समस्याओं पर चर्चा की गयी। इस दौरान श्री मांझी ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों को अभी तक धान के बकाये राशि का भुगतान नहीं किया गया है, और न ही अबतक धान क्रय के बोनस की घोषणा की गयी है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यदि जनवरी के दूसरे सप्ताह तक किसानों के बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो उनकी पार्टी सड़क पर आंदोलन करेगी। 
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संदर्भ में आगामी 23 दिसंबर को पटना में सभी प्रदेश और जिला पदाधिकारियों की बैठक बुलायी गयी है। आगामी बैठक में पार्टी के विस्तार और भावी रणनीति पर भी चर्चा की जायेगी। 

बैठक में हम के प्रदेश अध्यक्ष वृषण पटेल, पूर्व मंत्री अजीत कुमार, अनिल कुमार, शारिम अली, राजेश्वर मांझी, राष्ट्रीय प्रवक्ता ब्रह्मदेव आनंद पासवान, प्रदेश उपाध्यक्ष भागवत लाल वैश्यंत्री, महासचिव उपेन्द्र सिंह एवं प्रकाश मालाकार सहित कई पदाधिकारी शामिल थे। 

प्रणव को मिला गारवुड पुरस्कार

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नयी दिल्ली, 17 दिसम्बर, राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी को ‘सार्वलौकिक नवाचार में उत्‍कृष्‍ट वैश्‍विक मागदर्शन’ के लिए आज गारवुड पुरस्‍कार प्रदान किया गया। राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में श्री मुखर्जी ने यूसी बर्कले-हास स्‍कूल ऑफ बिजनेस की ओर से गारवुड पुरस्‍कार प्राप्‍त किया। गारवुड सेंटर फॉर कॉरपोरेट इनोवेशन के कार्यकारी निदेशक प्रो. सोलोमन डारविन ने राष्‍ट्रपति को यह पुरस्‍कार प्रदान किया। 

विश्‍व के सर्वाधिक प्रतिष्‍ठित शिक्षण संस्‍थानों में से एक कैलिफोर्निया विश्‍वविद्यालय, बर्कले ने एक महत्‍वपूर्ण और प्रभावशाली तरीके से सार्वलौकिक नवाचार को प्रोत्‍साहन और सहायता देने वाले व्‍यक्‍ति के उत्‍कृष्‍ट कार्यो के लिए गारवुड पुरस्‍कार की स्‍थापना की है। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि सार्वलौकिक नवाचार उन सरकारी संस्‍थाओं के लिए सबसे आवश्‍यक है जो नागरिकों की सेवा के कार्य में संलग्‍न हैं। उन्‍होंने कहा कि गोपनीयता से समझौता किए बिना सार्वजनिक क्षेत्र के आंकड़े रखना पारदर्शिता और नवाचार को बढ़ावा देता है तथा नागरिकों की समस्‍याओं का समाधान कुशलतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से करने के लिए नए मार्ग प्रशस्‍त करता है।

मामले में चुप रहने को कहा गया, पर कीर्ति आजाद अड़े

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नयी दिल्ली, 17 दिसंबर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले कई वर्षों से दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) में वित्तीय अनियमितताओं का मामला उठा रहे अपने सांसद कीर्ति आजाद की आज जमकर क्लास ली। सूत्रों के मुताबिक भाजपा के संगठन मंत्री रामलाल ने आज सुबह पूर्व क्रिकेटर और दरभंगा से सांसद श्री आजाद को पार्टी मुख्यालय बुलाकर लगभग एक घंटे तक बातचीत की। आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई ब्योरा नहीं मिल पाया है लेकिन समझा जाता है कि श्री आजाद से डीडीसीए और इसके अध्यक्ष रह चुके वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ उनके बयानों से पार्टी के लिये पैदा हो रही मुश्किलों के बारे में बताया गया। उनसे इस मामले में चुप रहने को कहा गया है। इस बीच श्री आजाद ने एक ट्वीट में इस बात से इन्कार किया कि पार्टी ने उनसे चुप रहने को कहा है। उन्होंने कहा, “मेरी लड़ाई खेलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ है और यह जारी रहेगी।” श्री आजाद पिछले करीब आठ वर्षों से डीडीसीए में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते रहे हैं। 

इस दौरान श्री जेटली डीडीसीए के अध्यक्ष थे। कल ही उन्होंने एक अंग्रेजी दैनिक को दिये साक्षात्कार में डीडीसीए को भ्रष्टाचार का वैधानिक संस्थान करार दिया। श्री आजाद ने कहा कि उन्होंने तथा कुछ पूर्व क्रिकेटरों ने कई बार श्री जेटली को डीडीसीए में फैले भारी भ्रष्टाचार की जानकारी दी और उन्हें पत्र भी लिखा लेकिन कुछ नहीं हुआ। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव के कार्यालय पर सीबीआई ने हाल में छापा मारा था। दिल्ली सरकार का दावा है कि सीबीआई ने डीडीसीए की श्री जेटली से संबंधित फाइलें को हासिल करने में लिये यह कार्रवाई की थी जिसमें वह फंस रहे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) तथा कांग्रेस ने श्री जेटली के इस्तीफे की मांग की है। आप ने आज फिर कहा कि डीडीसीए में वित्तीय अनियमितताओं की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच के लिये उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिये। उधर श्री जेटली ने इस आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनके खिलाफ आरोप निराधार हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल झूठ और दूसरों को बदनाम करने में विश्वास करते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत : वित्त मंत्रालय

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नयी दिल्ली 17 दिसंबर, वित्त मंत्रालय ने अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरो में एक चौथाई फीसदी की बढ़ोतरी को सतर्कता भरा कदम बताते हुये आज कहा कि पिछले डेढ वर्षाें में अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए किये गये उपायों से वृहद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ने के मार्ग पर अग्रसर है। मंत्रालय ने कहा कि फेड रिजर्व की ब्याज दरों में बढ़ोतरी का भारतीय शेयर बाजार और रुपये ने मजबूती से मुकाबला किया है और दोनों में तेजी दर्ज की गयी है। रुपया 66-67 रुपये प्रति डाॅलर के दायरे में रहा है। 

उसने भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत बुनियाद का हवाला देते हुये कहा कि पिछले डेढ़ वर्षाें में किये गये उपायों से स्थिरता आयी है। उसने कहा कि अभी भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ने के मार्ग पर अग्रसर हुयी है क्याेंकि महंगाई निचले स्तर पर और चालू खाता घाटा भी लक्ष्य के दायरे में है। इसके साथ ही वित्तीय सुदृढीकरण अभी भी जारी है। उसने कहा कि फेड रिजर्व से 0.25 फीसदी से लेकर 0.50 फीसदी के दायरे में ब्याज दरों में बढोतरी की उम्मीद की जा रही थी।

डीडीसीए ने जेटली को दी क्लीन चिट

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नयी दिल्ली] 17 दिसंबर, दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ(डीडीसीए) ने अपने पूर्व अध्यक्ष अरूण जेटली को क्लीन चिट देते हुये उनके खिलाफ लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों काे बकवास करार दिया है। जेटली वर्ष 1999 से 2013 तक डीडीसीए के अध्यक्ष रहे थे। डीडीसीए ने बुधवार शाम यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जेटली के खिलाफ लगाए जा रहे सभी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप बकवास हैं। डीडीसीए के पूर्व अध्यक्ष जेटली के खिलाफ दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने राज्य क्रिकेट संघ में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। हालांकि दिल्ली और केंद्र के बीच चल रही इस राजनीतिक जंंग में दिल्ली क्रिकेट संघ ने पूर्व अध्यक्ष जेटली को क्लीन चिट देते हुये कहा है कि ये सभी आरोप निराधार हैं। 

डीडीसीए के मौजूदा अध्यक्ष चेतन चौहान ने कहा“ डीडीसीए के खिलाफ कई आरोप लगाए गये हैं और इसके लिये सफाई देने की जरूरत है।” उन्होंने कहा“ पहली बात तो यह है कि स्टेडियम के निर्माण में कुल 141 करोड़ रूपये का खर्च आया है। इस कीमत के बढ़ने की वजह यह है कि फिरोजशाह कोटला मैदान की क्षमता पहले 26000 थी लेकिन हमने इसे तोड़कर दोबारा बनाया। यह रजिस्ट्रार आफ कंपनी(आरओसी) में दर्ज है और इसके लिये ईपीआईएल दिया गया था। इसलिये सभी आरोप निराधार हैं।”

विशेष आलेख : प्रगति का सूचक है बुद्धिवाद

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मजहब और धर्म भिन्न-भिन्न हैं । धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति के आचरण से होता है और मजहब कुछ रहन-सहन के विधि-विधानों और कुछ श्रद्धा से स्वीकार की गई मान्यताओं का नाम है ।आचरण में भी जब बुद्धि का बहिष्कार कर केवल श्रद्धा के अधीन स्वीकार किया जाता है तो यह मजहब ही कहाता है । मजहब कभी भी  व्यक्ति की मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नत का सूचक नहीं होता, वह सदा पतन का ही सूचक होता है । कभी संगठन के लिए मजहबी मान्यताएं सहायक हो जाती हैं, परन्तु वह सहायता सदा अस्थायी होती है और जो मानसिक दुर्बलताएँ तथा मूढता उत्पन्न होती है, वह घोर पतन का कारण बनती हैं ।

श्रद्धा पर आधारित समाज निरन्तर पतन की ओर ही जाता दिखाई देता है । जब श्रद्धा बुद्धि के अधीन की जाती है अर्थात श्रद्धा की बातों को समय-समय पर बुद्धि की कसौटी पर कस के उसमें संशोधन किया जाता रहता है, वह बुद्धिवाद कहाता है । वह प्रगत्ति का सूचक है । इस्लाम में ईश्वरीय कार्यों में अक्ल को दखल देना कुफ्र माना जाता है । इस कारण इस्लाम निरन्तर पतन की ओर जा रहा है । इसमें विशेषता है कि बुद्धि हीनता के साथ बनी श्रद्धा के साथ प्रत्येक प्रकार का बल सहायक होता है और इस बल का संचय करने के लिए प्रत्येक प्रकार के इन्द्रिय सुखों का प्रलोभन दिया जाता है । इस प्रकार इस्लाम की गाड़ी दो चक्कों पर चल रही हैl एक ओर सब प्रकार के इन्द्रिय सुखों का प्रलोभन है और दूसरी ओर इस्लाम के नाम पर किये गये सब प्रकार के अत्याचारों का पुरस्कार खुदा की ओर से बहिश्त दिया जाना बहुत बड़ी आशा हैl यह गाड़ी कब तक चलेगी, यह बता पाना कठिन है? परन्तु वर्तमान बुद्धिशीलों के लिए यह एक भयंकर भय व चिंता का कारण बना हुआ हैl भय यह है कि श्रद्धा में बंधे हुए और अज्ञानता में किये प्रत्येक प्रकार के पाप–कर्म का बहिश्त में मिलने वाले ऐश और आराम का प्रलोभन भले लोगों की चीख–पुकार को कुंठित कर रहा हैl

हिन्दू समाज ने इस श्रद्धावाद का विरोध श्रद्धा से ही करने का यत्न किया है । वह  प्रयास  आज भी उसी रूप में जारी है, किन्तु अभी तक यह प्रयास सफल नहीं हो पाया है । इस श्रद्धा का श्रद्धा से विरोध केवल एक बात में सफल हो पाया है । वह यह कि इस्लाम की श्रद्धा भारत में उस गति से और उस सीमा तक सफल नहीं हुई जिस सीमा तक यह अन्य देशों में हुई है । परन्तु शनैः–शनैः श्रद्धा की  यह भित्ति गिरती जा रही है और जनसंख्या में हिन्दू– मुसलमान का अनुपात हिंदुओं के विरुद्ध जा रहा है । अंग्रेजी काल में इस्लाम के मानने वालों अनुपात तो मुग़ल और पठानों के काल से भी अधिक तीव्र गति से बढ़ता चला जा रहा था । इसका कारण है यूरोपियन रेंश्नेलिज्म । इसे यूरोपियन बुद्धिवाद भी कहा जा सकता है,परन्तु वास्तव में यह बुद्धिवाद नहीं है । यह तो एक प्रकार की मूढता को छोड़कर दूसरी प्रकार की मूढता को ग्रहण करना है । एक उदाहरण से इसे अच्छी प्रकार समझा जा सकता है । हिन्दुओं में किसी युग में सत्ती प्रथा प्रचलित थी । जिन लोगों को उस काल का कुछ भी ज्ञान है वे यह बता सकते हैं कि सत्ती प्रथा की व्यापकता तो बात थी, वह केवल नाम मात्र की प्रथा थीl जो महिलायें बिधवा हो जाती थी उनमे सत्ती होने वाली कदाचित एक प्रतिशत भी नहीं होती थी। कोई बिरला ही महिला होती थी जो सत्ती हो जाया करती थी ।  इन सत्ती होने वाली में हम उन महिलाओं की गणना नहीं करते जो किसी विधर्मी की विजय के समय उनके द्वारा किये जाने वाले बलात्कार के भय से सत्ती हो गई थीं । वह तो एक सीमा तक देश विभाजन के समय पंजाब में भी हुआ था । यह किसी रीति –रिवाज के कारण नहीं किया गया था । उन्होंने इसकी आवश्यकता को अनुभव किया और सत्ती हो गईं । इसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि सत्ती की प्रथा तो विद्यमान थी, किन्तु यह अनिवार्य नहीं थी । ऐसा तो कभी–कभी व्यापार में अत्यधिक हानि होने पर पुरूष भी निराश होकर आत्महत्या कर लिया करते हैं । स्वेच्छा से की जाने वाली आत्महत्या में कभी–कभी सार्वजनिक प्रशंसा अथवा दबाव भी होता देखा गया था, परन्तु यह बात विरली ही होती थी । ईसाई पादरियों ने इसे प्रचार का माध्यम बनाकर हिन्दू समाज की निन्दा करनी आरम्भ की और उसके आश्रय पर ईसाईयत का प्रचार करना आरम्भ किया, परन्तु अंग्रेजी पढ़े–लिखे लोग आज भी इसको समाज का एक महान दुर्गुण बता रहे हैं । इस प्रकार अनजाने में ही हिन्दू समाज की अन्य अनेका अच्छी बातों को छिपाए रखने में साधन बन रहे हैं । इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हम सत्ती प्रथा को मान्यता देना चाहते हैं अथवा उसका पुनर्प्रचलन करना चाहते हैं । हमारी दृष्टि में तो यह हिन्दू समाज का ऐसा व्यवहार है जो कि अन्धश्रद्धा पर आधारित था । सत्ती प्रथा जिसे जौहर कहा जाना चाहिए उसके सम्मुख हम नतमस्तक हैं । जौहर बुद्धि गम्य है जबकि मात्र सत्ती हो जाना कोरी श्रद्धा है ।

इसी प्रकार मूर्ति पूजा का प्रश्न है । मूर्ति पूजा पर श्रद्धा करना एक प्रकार से हीन प्रथा है, परन्तु मूर्ति पूजा का बौद्धिक रूप भी है, जिसे हम स्वीकार करते हैं । जब कभी भी हम नरसिंह अवतार को हिरण्यकशिपु का पेट फाड़ते हुए का चित्र देखते हैं तो हमको मेजिनी और गैरीबाल्डी का शौर्यपूर्ण कृत्य स्मरण होने लगता है । इन दोनों ने जनता के बल के आधार पर इटली सर ऑस्ट्रिया वालों को खदेडकर बाहर कर दिया था । इसके स्मरण आते ही नरसिंह को इसी रूप में स्मरण कर उसके सम्मुख हाथ जोड़ कर प्रणाम करने को मन करता है । यह है मूर्ति पूजा का बौद्धिक रूपl जब मर्यादा पुरुशोत्तम श्रीराम और लक्ष्मण को धनुष-वाण कन्धे पर लिए सीता के साथ वन में विचरण करते हुए का चित्र देखते हैं तो रावण तथा उसके जैसे अन्य राक्षसों के अत्याचार से पीड़ित वनवासियों को स्मरण कर श्रीराम और लक्ष्मण के सम्मुख नतमस्तक हो जाते हैं । यह है मूर्ति पूजा का बौद्धिक रूप । ईसाईयों ने हिंदुओं के इन रिवाजों को निन्दनीय कहना आरम्भ किया । अङ्ग्रेजी शिक्षा ने इसको मिथ्या श्रद्धा कह कर हिन्दू युवकों को इनके विपरीत करने का यत्न किया, क्योंकि हिन्दू समाज इसका बौद्धिक रूप न समझ सका और न समझा ही सका । सरकारी शिक्षा प्राप्त करने वाले हिन्दू युवक हिन्दुओं की इन प्रथाओं को मूर्खता कहने लगे तो हिन्दू समाज अपने ही घटकों को इनकी बौद्धिकता का बखान नहीं कर सका । उसका परिणाम यह हुआ कि अङ्ग्रेजी शिक्षा ग्रहण किया भारतीय युवक हिन्दू रीति–रिवाजों को मूर्खता मानने लगा और इस प्रकार हिन्दुओं की जनसँख्या का अनुपात कम होने लगा । अंग्रेजीकाल में मुसलमानों की संख्या बढ़ने का यही मुख्य कारण रहा है । इसका अभिप्राय यह है कि अङ्ग्रेजी राज्य काल में हिन्दुओं का अनुपात में से मुसलामानों की संख्या में वृद्धि का मुख्य कारण तत्कालीन शिक्षा थी । उस शिक्षा के साथ हिन्दू समाज अपने रीति-रिवाज में बौद्धिक आचार का विश्लेषण करने में असमर्थ था । वह श्रद्धा का राग ही अलापता रहा। एक उदाहरण से इसे अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है ।  इस्कोन और अन्यान्य कई कृष्ण मंदिरों तथा गोरखपुर में गीता भवन की दीवार के साथ भगवान श्री कृष्ण की जन्म–लीला के बहुत ही सुन्दर चित्र सजाये गए हैं । भवन के एक छोर से दूसरे छोर तक सारे के सारे चित्र कृष्ण के जन्म से आरम्भ कर कंस की ह्त्या तक के ही वे सारे चित्र हैं । उन सब चित्रों को देखने से विस्मय होता है कि आज पाँच सहस्त्र वर्ष तक भी श्रीकृष्ण क्या इस बाल –लीला के आधार पर ही स्मरण किये जाते हैं? ये लीलाएं सत्य हो सकती हैं, परन्तु कृष्ण की विश्व की ख्याति की वे मुख्य कारण नहीं हो सकतीं । श्रीकृष्णका वास्तविक सक्रिय जीवन तो उस समय से आरम्भ हुआ मानना चाहिए जब उन्होंने युद्धिष्ठिर को राजसूय यज्ञ के लिए प्रेरित किया था । श्रीकृष्ण के जीवन का सुकीर्तिकर कर्म तो वह था जब उसने वचन भंग करने वाले परिवार के सभी सदस्यों को सुदर्शन चक्र से मृत्यु के घाट उतार दिया था । श्रीकृष्ण ने तब यह सिद्ध कर दिया था कि वह जो कहता है उस पर आचरण भी करता है । श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवद गीता  अध्याय 2-120 में कहा था-
न जायते भ्रियते भ्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
– श्रीमदभगवद गीता अध्याय 2-120 

अर्थात्- यह आत्मा न तो कभी उत्पन्न होता है और न मरता है । ऐसा भी नहीं कि जब एक बार अस्तित्व में आ गया तो दोबारा फिर आएगा ही नहींl यह अजन्मा है , नित्य है , शाश्वत्त है , पुरातन हैl शरीर का वध हो जाने पर भी यह मारता नहीं है । जब बन्धु – बान्धवों ने भी वही किया जो दुर्योधनादि ने किया था तो उसने जो अपने बन्धु – बान्धवों के साथ करने को अर्जुन को कहा था वही स्वयं भी किया । वह था कृष्ण का बौद्धिक व्यवहार । देश की वर्तमान  राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में से उपजी आज की कठिनाई में भी जाति को इसी प्रकार की बौद्धिक व्यवहार की प्रेरणा दी जानी चाहिए ।  इस व्यवहार से इस्लाम जैसी निकृष्ट जीवन-मीमांसा से सुगमता से पार पाया जा सकता है । हमें अपनी उन सब मान्यताओं को, जिनका आधार बुद्धि वाद है , लेकर हिन्दू जाति के द्वार को खोल देना चाहिए और सबको अपने समाज में समा जाने के लिए आमंत्रित करना चाहिएl इस प्रकार सहज ही समाज की सुरक्षा का प्रबंध हो सकता हैl हमे किसी को अपनी मान्यता छोड़ने कि बात नहीं कहनीl उनके पीर–पैगम्बरों की यदि कोई बात बुद्धि गम्य हो तो उसको भी छोड़ने के लिए हम नहीं कहते, परन्तु मूढ़ श्रद्धा के सम्मुख हम बुद्धिवाद का बलिदान नहीं कर सकते l बुद्धि की दृढ चट्टान पर स्थित होकर हम अपने मार्ग पर चलने लगे तो सुख – शान्ति और समृद्धता निश्चित है, इसमें कोई संशय नहीं .




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-अशोक “प्रवृद्ध”-
गुमला
झारखण्ड

बिहार : सिने कलाकार सलमान खान से स्नेह है जुसी कुमारी को

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  • तन में दुख झेलने वाली जुसी को टी0वी0सीरियल का सहारा

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पटना। और जिदंगी लघु रूम तक ही सिमटकर रह गयी हैं। और बहुत हुआ तो वह लघु रूम से निकलकर बाहर आकर चबूतरा पर बैठ जाती हैं। वह 5 साल से बेहाल है। चलना-फिरना दुस्वार हो गया है। आदमी काम का था सो बेकार हो गया है। मामूली पूंजी वाले परिवार ने 8 लाख रू0तक खर्च कर दिए। परन्तु जीवन गतिमान न हो सका। अब परिवार वाले कोई मसीहा की तलाश में हैं जो अपाहिज जुसी कुमारी को पैर चलने लायक बनाने में योगदान करें। 

नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहानाबाद जिले में वाहन चालक दिनेश कुमार सिंह रहते थे। अब पटना जिले के पटना सदर प्रखंड के पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत अन्तर्गत मखदुमपुर में रहते हैं। यहाँ पर 20 से रहते हैं। फिलवक्त किसी के पास वाहन चलाते हैं। तनख्वाह में 8 हजार रूपए मिलते हैं। लघु रूम का किराया 12 सौ रू0 है। अलग से 3 सौ रूपए बिजली खपत करने के लिए देनी पड़ती है। अल्प राशि से ही 6 सदस्यीय परिवार का लालन-पालन करना पड़ता है। बी0पी0एल0कार्ड से अनाज उठाकर खाते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से स्मार्ट कार्ड बना है। वर्ष 2011,2012 और 2013 में स्मार्ट कार्ड बना। 2014 और 2015 में स्मार्ट कार्ड नहीं बना है।

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 िदनेश कुमार सिंह की पत्नी लीला देवी हैं। जो घरेलू महिला हैं। सबसे बड़ी बेटी जुसी कुमारी हैं। वह मैट्रिक उत्र्तीण हैं। जूली कुमारी भी मैट्रिक हैं। अभिषेक कुमार बीएससी पार्ट-2 में हैं। खुशी कुमारी दशम वर्ग की छात्रा हैं। इन्द्र प्रसाद गंग स्थली उच्च विघालय में खुशी कुमारी पढ़ती हैं। ट्यूशन करने भी जाती हैं। दिनेश कुमार सिंह की पत्नी लीला देवी कहती हैं कि बड़ी बेटी जुसी कुमारी बीमार है। अभी 24 साल की हैं। जुसी का जन्म दशहरा त्योहार के समय 1991 में हुआ था। बोरिंग रोड स्थित चिल्ड्रेन पार्क के बगल में सी0एन0एस0 हाॅस्पिटल है। वहीं पर नर्सिग करती थीं। अभी 6 माह ही नर्सिग की थीं। वह 18 वर्ष की अवस्था में 2009 में बीमार पड़ी। जब 19 साल की थीं। तब 2010 में पैर में दर्द हुआ। इससे बढ़कर कमर,रीढ़,बांह और अंगुली तक पहुँच गया। दुर्भाग्य से 2010 से ही जुसी कुमारी खड़ी नहीं हो सकीं। लोहानीपुर स्थित आयुर्वेदिक अस्पताल में 6 माह भर्ती होकर चिकित्सा करायी। यहाँ पर ठीक नहीं होने पर पी0एम0सी0एच0 में 5 माह भर्ती करके चिकित्सा करायी। चिकित्सक कहते कि जुसी को गठिया हो गया है। इस बीच ठेंहुना जकड़ गया। पैर पसार नहीं सकती हैं। चलना-फिरना दुस्वाह हो गया है। पश्चिमी दीघा ग्राम पंचायत की मुखिया ने जुसी कुमारी को विकलांगता प्रमाण-पत्र और सामाजिक सुरक्षा पेंशन दिलवाने की व्यवस्था कर दी है। 

लगभग अपाहिज बन गयीं जुसी कुमारी का कहना है कि बचपन से ही अपने पैर पर खड़ी होकर नौकरी करना चाहती थीं। जब ऐसी अवस्था में आ गयी हूँ। तब भी हिम्मत नहीं हारी हूँ। कोई व्हीलचेयर दिलवा दें। व्हीलचेयर चलाकर नौकरी की अभिलाषा को पूर्ण कर लूंगी। कोई मुझको चलने लायक बना दें। वह किसी मसीहा की तलाश कर रही हैं जो 10 लाख रू0व्यय करके गतिमान कर दें। उसकी माँ लीला देवी कहती हैं कि कुर्जी होली फैमिली हाॅस्पिटल द्वारा 3 लाख रू0 की माँग की जा रही थी। प्रत्येक दिन 5 हजार रू0 खर्च करने के बाद चलने लायक बना देते। हड्डी प्रतिस्थापन कर देते। अर्थाभाव के कारण नहीं हो सका। 

बिहार : ठंडक समय में 100 साल की सकली देवी

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पटना। बिन्द टोली में रहने वाले स्व0 जगदयाल महतो की विधवा सकली देवी है। 100 साल की  सकली देवी ने डीएम संजय कुमार अग्रवाल से कहा है कि इस ठंडक समय में झोपड़ी से बेझोपड़ी करना वाजिब नहीं है। ऐसा करने से हमलोग बेहाल हो जाएंगे। हम विस्थापितों को पुनर्वासित करने को लेकर चिन्हित भूमि पर आवश्यक सुविधा नहीं है। जिस भूमि को चिन्हित किया गया है। उस पर बरसात के समय गंगा जी का पानी हेल जाता है। एक तरफ गंगा नदी और दूसरी तरफ सड़क निर्माणाधीन है। बीच में बिन्द टोली के लोगों को बसाया जा रहा है। आगे कहती हैं कि एक बेटा अर्जुन महतो हैं। उनको 10 संतान है। 6 लड़के और 4 लड़किया हैं। अर्जुन महतो के पुत्र मेघनाथ महतो आई0ए0 और संजय महतो मैट्रिक उत्र्तीण हैं। इनको नौकरी नहीं है। 

विस्थापित किशोरी महतो ने डीएम संजय कुमार अग्रवाल से आग्रह किए हैं कि अव्वल चिन्हित भूमि को मिट्टी से 10 फीट भरवाया जाए। करीब 205 परिवारों को घर बनाकर उपलब्ध कराए। सभी घरों में बिजली सुविधा उपलब्ध कराया जाए।  शौचालय और पेयजल की व्यवस्था हो। सुगम आवाजाही को लेकर पुल निर्माण करवाया जाए। फिलवक्त बिन्द टोली में उपलब्ध सरकारी स्कूल, आंगनबाड़ी और  उप स्वास्थ्य केन्द्र की व्यवस्था हो। 
इस बीच भूमि का प्रस्ताव राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को भेजा गया है। स्वीकृति के बाद लोगों को बसाने की कार्रवाई की जायेगी। भूमि की माफी कर सीमांकन के साथ-साथ समतलीकरण का कार्य चल रहा है। बिजली आपूर्ति को लेकर कैम्प लगाकर उपभोक्ताओं को फाॅर्म भरने के लिए व्यवस्था करने डीएम ने अधिकारियों को निर्देश दिया। 

बिहार : गंगा सेतु से फायदा उठाने लगे हैं मजदूर

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  • एक घंटा में पांव-पांव चलकर दीघा से सोनपुर पहुँच जाते

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पटना। पूर्व मध्य रेलवे परियोजना के तहत रेल-सह-सड़क गंगा सेतु निर्माण किया जा रहा है। फिलवक्त दीघा से सोनपुर तक रेल खंड तैयार है। अगले 2 साल में सड़क निर्माण भी हो जाएगा। निर्माण कार्य को गति देने का काम जारी है। दीघा से सोनपुर तक ढलाई कार्य समाप्त हो गया है। इसी पर चढ़कर मजदूर पांव-पांव सोनपुर से दीघा कार्य करने आते हैं। करीब 1 घंटा आने में और उतने ही जाने में लगता है। 

रेलवे परियोजना के जद में आने वाले लघु किसानों से जमीन ली गयी है। उनलोगों को मुआवजा और एक व्यक्ति को रेलवे में नौकरी दी गयी है। परिवार के बाकी सदस्य मजदूर बन गए हैं। इसमें सिपाही राय भी शामिल है। सिपाही राय भरपुरा मौजा में रहते हैं। लघु किसान से मजदूर बन गए सिपाही राय ने कहा कि परियोजना के तहत 5 कट्टा जमीन अधिग्रहण की गयी। मुआवजा मिला। एक भाई प्रभु राय को रेलवे में नौकरी मिली। अभी गेटमैन के पोस्ट पर कार्यरत हैं। केन्द्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु के अधीन प्रभु कार्यरत हैं। 

बिहार : जिला प्रतिरक्षण कार्यालय,पटना द्वारा मेरीकुट्टी जौर्ज को प्रशस्ति-पत्र

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  • नियमित टीकाकरण में उत्कृष्ट कार्य में अव्वल स्थान प्राप्त ए0एन0एम0निर्मला कुमारी भी सम्मानित

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पटना। पटना जिले में है धनरूआ प्रखंड। प्रखंड में है प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र।इस प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के उप स्वास्थ्य केन्द्र पंचायतों में है। जहाँ पर नियमित टीकाकरण किया जाता है। बेहतर कार्य अंजाम देने वाली ए0एन0एम0 और आशा कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया है। दो ए0एन0एम0 और तीन आशा कार्यकर्ताओं को प्रशस्ति-पत्र और एक पेन दिया गया। ए0एन0एम0 मेरीकुट्टी जौर्ज और निर्मला कुमारी हैं। मौके पर डीआईओ,एसीएमओ और प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी उपस्थित थे। 

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम बेहतर कार्य करने वालों को सम्मानित करेंगे। वहीं घटिया कार्य करने वालों को अपमानित करेंगे। इस केन्द्र के एक दर्जन से अधिक घटिया कार्य करने वालों की सूची डीएम संजय कुमार अग्रवाल के पास प्रेषित किया जाएगा। जो आवश्यक कदम लेंगे। इसी तरह अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी किया जाएगा। 

बिहार : सीमित दायरे में सिमटकर जुसी की जिदंगी

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पटना।‘पिजड़े की पक्षी रे तेरा दर्द न जाने कोय’। लगभग ऐसी ही स्थिति जुसी कुमारी की है। सीमित दायरे में जुसी की जिदंगी सिमटकर रह गयी है। 5 साल से धरती पकड़ हो गयी है। धरती पर ही उठ ही नहीं सकती हैं। गरीबी का दंश झेलने वाले परिवार जुसी पर से नजर हटा लिए हैं। अब नजर जुसी की छोटी बहन जूली कुमारी पर फेर लिए हैं। अब जुसी की चिन्ता छोड़ जूली पर चिन्ता करने लगे हैं। जूली की शादी को लेकर परिवार के लोग परेशान होने लगे हैं। 

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इस बाबत जुसी कुमारी को शिकायत नहीं है। शिकायत तो यह है कि कब कोई इंसान आकर सहायता देकर पैर से चलने लायक बना दें। 5 साल से पैर नहीं पसारने से घाव भी होने लगा है। वह कपड़ा हटाकर घाव को दिखाती है। कुर्सी पर बैठने का असफल प्रयास करती हैं। परन्तु कुर्सी पर बैठ नहीं पातती है। उसकी माँ लीला देवी कहती हैं कि जब जुसी को पेंशन मिलता है तो 2 सौ रू0 दे देते हैं। इससे पानी पुरी और चाट खरीदकर खाती है। जब पैसा खत्म हो जाता है। तो मचलने लगती हैं। परन्तु माँ-बाप पर प्रकट नहीं करती हैं। जुसी कहती है कि सादा भोजन और उच्च विचार रखती हैं। वह चाहती हैं कि किसी जगह नौकरी करके पैर पर खड़े हो जाए। इसके पहले इलाज करवाना है। हां, पैसा तो नहीं है। कोई न कोई दाता सामने आ ही जाएगा। 

बगल में खड़ी खुशी कुमारी कहती है कि टी0वी0शो में खेलने के बदले राशि मिलती तो अपनी दीदी जुसी कुमारी के पैर ठीक करवा पाती। अभी कलर टी0वी0 पर गेम शो चल रहा था। वह किसी फिल्मी तारिकाओं से निवेदन करती है कि गेम शो खेलकर मेरी दीदी को ठीक करवाने में सहयोग करें। 

पूर्व पुलिस कर्मियों ने फोर्थ फोर्स के गठन के लिए मिलाए हाथ

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नई दिल्ली,: विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अनुभवी सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा स्थापित कार्य बल फोर्थ फोर्स ऐसी एजेंसी है जो विभिन्न व्यवसायों और उद्योगों में तैनाती से पहले कर्मियों की पूरी जांच और उनकी पृष्ठभूमि की छानबीन करती है ताकि किसी भी तरह की धोखाधड़ी और आपराधिक इरादे के शक से पहले से ही खत्म किया जा सके। कानून प्रवर्तन एजेंसियों के वरिष्ठ पूर्व अधिकारियों का यह देशव्यापी संगठन अपने साथ लंबे अनुभव और फील्ड में काम करने की दक्षता लेकर आया है। देशभर में विभिन्न सगठनों जैसे सीबीआई, राॅ, आरपीएफ, राज्य पुलिस आदि में काम कर चुके फोर्थ फोर्स के ये अधिकारी एक ऐसे सुरक्षा बल को जन्म दे चुके हैं जो व्यक्तियों के पिछले रिकार्डों की जांच और उनके दस्तावेजों का सत्यापन करने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि उनके द्वारा उपलब्ध करायी जा रही सूचना सही है या नहीं।

इस पूरे बल का कुल अनुभव 500 साल लंबा है जो कर्मचारियों के सत्यापन में सहायक होता है। लोगों की पृष्ठभूमि की जांच संबंधी पूरी प्रक्रिया के लिए एक मजबूत, आधुनिक वेब आधारित एप्लीकेशन का इस्तेमाल किया गया है और एक देशव्यापी हैल्पलाइन भी शुरू की गई है जिससे यह संगठन अपने क्षेत्र में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। फोर्थ फोर्स के लाॅन्च पर सुश्री विमला मेहरा, विशेष पुलिस आयुक्त, नई दिल्ली पुलिस ने कहा, ’’फोर्थ फोर्स जैसी एजेंसियों द्वारा लोगों की पृष्ठभूमि की भरपूर जांच की सुविधा होने से अपराधों और धोखाधड़ी की संभावना काफी कम हो गई है। इस प्रकार के ऊंचे मानकों वाली प्रमाणन सुविधा सभी उद्योगों के लिए पारदर्शी प्रक्रिया सुनिष्चित करती है। नव नियुक्तों की पृष्ठभूमि की पूरी जांच उद्योगों तथा ग्राहकों दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगी।‘‘

इस पहल के बारे में डाॅ सलीम अली, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, फोर्थ फोर्स ने कहा, ’’फोर्थ फोर्स की स्थापना के पीछे प्रमुख सोच यही है कि बीएफएसआई, टेलीकाॅम, आईटीईएस, रिटेल, कमर्शियल और डाॅमेस्टिक उद्योगों में नौकरी पर रखे जाने वाले हर व्यक्ति की पृष्ठभूमि की पूरी जांच सुनिश्चित हो। 35 से 40 वर्श का लंबा अनुभव रखने वाले पूर्व पुलिस अधिकारियों की दक्ष टास्क फोर्स ने फोर्थ फोर्स को पृष्ठभूमि की तहकीकात के काम में काफी कारगर बनाया है।‘‘ कंपनी का मकसद मानव संसाधन संबंधी आपराधिक मामलों को कम करने के लिए सभी पहलुओं की भरपूर समझदारी से जांच-पड़ताल करना है। फोर्थ फोर्स ने देश में बैकग्राउंड वेरिफिकेशन में निपुण एक अनुभवी ब्रांड के तौर पर बाजार में कदम रखा है।

फिल्म स्टारस और स्क्रीन टेस्ट का अनुभव

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amitabh bachchan
फिल्मों दस्तक देने के लिए हार कलाकार को स्क्रीन टेस्ट देना पडता है। यह कसौटी चुनौतीपूर्ण होती है,इस बात को सभी कलाकार मानते है। फिल्म पाने की लालसा और पहला स्क्रीन टेस्ट उसकी याद दिल में सदा के लिए ताजा रहती है। फिल्मी सितारों के लिए जितना महत्व पहली फिल्म का है, उससे भी ज्यादा रोमांचक उनके लिए पहला स्क्रीन टेस्ट होता है। भले ही वह थोड़े से वक्त के लिए ही होता है, लेकिन स्क्रीन टेस्ट की अहमियत हर फिल्मी सितारे के लिए कुछ खास हुआ करती है। यह, वो इम्तिहान होता है, जो सिनेमा के आकाश पर सितारों के चमकने के रास्ते बनाता है। भले ही वह आज के सबसे दिग्गज कलाकार अमिताभ बच्चन हो या स्मृति ईरानी, जितेंद्र हो या हेमामालिनी, या फिर हो माधुरी दीक्षित। 

कहा जाता है कि ये इतने मंजे हुए कलाकार हैं कि कैमरे और कैमरामैन उनको देखकर डरते हैं। लेकिन जब इन जैसे कई बड़े-बड़े सितारों ने पहली बार कैमरे का सामना किया, तो किसी के हाथ कांप रहे थे, तो किसी की सांसे फूल रही थीं। कोई किसी दोस्त का सहारा लेने को मजबूर था, तो किसी के मुंह से बोल ही नहीं फूट रहे थे। यह एक ऐसी कसक है, जो हर किसी के साथ जिंदगी भर का रिश्ता बनाए हुए हैं। 

सुनील दत्त और नर्गिस ने 1968 में जब उनको स्क्रीन टेस्ट के लिए मुंबई बुलाया तो उनकी सांसे फूल रही थी। वे कोई बहुत बेहतरीन मनोस्थिति में नहीं थे। भीतर ही भीतर डर सा था। उन्होंने स्क्रीन टेस्ट तो दिया। अमिताभ बच्चन आज भले ही दुनिया के बहुत बड़े कलाकार हैं। लेकिन मनमोहन देसाई की फिल्म के लिए यह स्क्रीन टेस्ट था, लेकिन अमिताभ रिजेक्ट हो गए। अमिताभ कहते हैं, वह बहुत बुरा स्क्रीन टेस्ट था। वे कहते हैं- इसे दुर्भाग्य ही समझिए या मेरा सौभाग्य कि किसी ने भी वो स्क्रीन टेस्ट नहीं देखा क्योंकि अगर देखा होता तो शायद मैं आज इस मुकाम पर नहीं होता।

jitendra
वी. शांताराम ने ‘‘गीत गाया पत्थरों ने’ फिल्म बनाने की तैयारी की, तो उन्होंने जितेंद्र को चुना, लेकिन इसके लिए स्क्रीन टेस्ट जरूरी था। जितेंद्र के लिए स्क्रीन टेस्ट बहुत बड़ी समस्या थी। स्क्रीन टेस्ट कैसे दिया जाता है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। तो, उन्हें अपने दोस्त राजेश खन्ना की याद आई। राजेश खन्ना भी तब राजेश खन्ना नहीं थे। वे तब जतिन खन्ना थे और उनका भी फिल्मी करियर शुरू नहीं हुआ था। उन्होंने जितेंद्र को कुछ डायल्ॉाग दिये और रटने के लिए कहा। इसके बाद एक्टिंग की रिहर्सल कराई और जितेंद्र स्क्रीन टेस्ट में पास हो गए।

हेमामालिनी जहां भी जाती हैं, कई कई कैमरे उनका पीछा करते नहीं थकते हैं। लेकिन हेमामालिनी का स्क्रीन टेस्ट राज कपूर ने लिया था। वे कहती हैं कि आज मैं जो भी हूं, राज साहब की बदौलत हूं। मेरे स्क्रीन टेस्ट के बाद राज कपूर ने कहा था कि इस लड़की में बहुत प्रतिभा है। यह बहुत आगे जाएगी। राजकपूर ने मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया और मुझे काफी उत्साहित किया। 

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ढेर सारी सुपर हिट फिल्म देनेवाली माधुरी दीक्षित को अपने पहले स्क्रीन टेस्ट का पल पल याद है। राजश्री प्रोडक्शंस ने 1984 में एक नई फिल्म ‘‘अबोध‘‘ शुरू करने की घोषणा की। माधुरी ने कहा, राजश्री ने एक नई फिल्म शुरू करने की घोषणा की और उन्होंने मेरा मासूम चेहरा देखा और मुझसे संपर्क किया। हालांकि माधुरी के परिजनों ने फिल्म के लिए मना किया था। क्योंकि वे उन्हें पढ़ाना चाहते थे। लेकिन राजश्री के कारण घर वाले तैयार हो गए तो स्क्रीन टेस्ट के लिए तैयारी हुई। माधुरी को अब भी याद है कि उन्हें हिंदी की किसी किताब की कुछ पंक्तियां पढ़ने के लिए कहा, तो वे डर रही थीं। कैमरे के सामने अकेले नाचने को कहा, तो वे एक पल को लिए थोड़ी और भी डर गई। लेकिन अगले ही पल सारी झिझक एक तरफ रखकर कैमरे से सामने उन्होंने जो नृत्य किया, उसकी बदौलत वह आज भी सिने जगत की धड़कन बनी हुई हैं।

शाहरुख खान 1991 में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आए और उनको पता चला कि बतौर निर्मा़त्री हेमा मालिनी को अपनी फिल्म ‘‘दिल आशना है‘‘ के लिए दिव्या भारती के अपोजिट एक नए चेहरे की तलाश थी। तो वह अपने दोस्तों की मदद से इस फिल्म के लिये स्क्रीन टेस्ट देने के लिए गए और चुन लिए गए। अजीज मिर्जा ने शाहरुख खान की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अपने धारावाहिक ‘‘सर्कस‘‘ में काम करने का मौका दे दिया।

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महिमा चैधरी बहुत बोल्ड किस्म की हीरोइन मानी जाती है। लेकिन ‘‘परदेस‘‘ फिल्म के लिए सुभाष घई से जब उनका पहले स्क्रीन टेस्ट पर सामना हुआ, तो वह कांप रही थी। महिमा बताती है कि कैसे, इससे भी पहले पेप्सी के एक विज्ञापन के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया था। लेकिन किसी फिल्म के लिए पहली बार कैमरे का सामने खड़े होते वक्त वे सहज नहीं थी। काफी लंबा स्क्रीन टेस्ट होने की वजह से मुझे लग रहा था कि मेरा पास होना मुश्किल है, लेकिन मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब मुझे बताया गया कि मैं उस स्क्रीन टेस्ट में पास हो गई हूं। 

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तुषार कपूर भले ही होंगे जितेंद्र के बेटे, पर अपने एक्टिंग स्कूल के दिनों में देवदास व अंधा कानून जैसी फिल्मों के दृश्यों को कैमरे के सामने करते हुए वे बहुत नाटकीय हो गए थे। जब अपने शूट को उन्होंने देखा, तो वे खुद पर खूब हंसे थे। तुषार बताते हैं कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि मैं बहुत कुछ सीख गया और इसी कारण जब मेरी पहली फिल्म की बारी आई, तो ‘‘मुझे कुछ कहना है‘‘ के लिए वासु भगनानी और सतीश कौशिक ने मुझे सिर्फ बातचीत करके ही सलेक्ट कर लिया। 

अभिषेक बच्चन का पहला स्क्रीन टेस्ट बिपाशा बसु के साथ हुआ था। जिस फिल्म के लिए यह टेस्ट हुआ था, वह फिल्म तो आज तक नहीं बनी, लेकिन बिपाशा उनकी अच्छी दोस्त जरूर बन गई। अभिषेक कहते हैं, कैमरा उनके लिए नई बात नहीं था, सो कोई ज्यादा झिझक तो नहीं हुई, लेकिन पहला पहला स्क्रीन टेस्ट था, सो नर्वसनेस बहुत ज्यादा थी। लेकिन बिपाशा के साथ ने संभाल लिया।

स्मृति ईरानी आज देश की मानव संसाधन मंत्री हैं। कैमरे फेस करना अब उनकी आदत का हिस्सा है। एक नहीं सौ - सौ कैमरे उनके सामने टिके रहते हैं, फिर भी चेहरे पर भरपूर आत्मविास। लेकिन अपने पहले स्क्रीन टेस्ट को याद करते हुए आज भी उनके चेहरे के भाव बदल जाते हैं। वे कहते हैं, ‘‘मुझे आज भी याद है, जब मैं अपने पहले स्क्रीन टेस्ट के लिए एकता कपूर के घर गई तो, उस आलीशान बंगले में वहां मेरी प्रिया तेंदुलकर से मुलाकात हुई। उस वक्त मैं वास्तव में कांप रही थी क्योंकि वो मेरा पहला सीरियल का ऑडिशन था।

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’शाहिद कपूर आज बहुत बड़े हीरो हैं। उनके पिता पंकज कपूर उनसे भी बड़े अदाकार और मां नीलिमा अजीम और भी बड़ी कलाकार। जन्म से ही माता पिता को कैमरे के सामने खड़ा देखा। लेकिन खुद के पहली बार कैमरा फेस करने की बारी आई, तो सांसे फूलने लगी थीं। शाहिद बताते हैं कि एक विज्ञापन के लिए अपने देस्त का स्क्रीन टेस्ट करवाने वे उसके साथ गए थे। ऐड एजेंसी के दफ्तर में वे दोस्त के बाहर आने इंतजार कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने उनके पास आकर कहा कि आप भी स्क्रीन टेस्ट दे दीजिए। पहला मौका था, जब स्क्रीन टेस्ट में पास हो गए तो, शाहिद हक्के बक्के रह गए। मगर, जब फिल्म की बारी आई, तो केन घोष ने इश्क-विश्क के लिए उनको स्क्रीन टेस्ट के बाद बच्चा बताकर रिजेक्ट कर दिया था। शाहिद को यह बात चोट कर गई। वे बताते हैं कि उसके बाद लगातार एक साल तक कड़ी मेहनत की और फिर से जब गया, तो वे मुझे ना नहीं कह सके। 

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लारा दत्ता पहले से ही थियेटर में काम करती थी, सो फिल्म के लिए स्क्रीन टेस्ट का बुलावा आया, तो वे काफी उत्साहित थीं। लारा बताती हैं कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म पाने के लिए पहले स्क्रीन टेस्ट के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित करके डांस, गीत, डायलग, भाव आदि पेश करने में खुद को डुबो दिया। स्क्रीन टेस्ट के बाद जब निर्देशक से पूछा कि कब संपर्क करूं, तो उन्होंने जवाब दिया कि आप संपर्क मत कीजिए, हम खुद आपसे संपर्क कर लेंगे। और उनका कोई फोन नहीं आया। वह बहुत निराश थी। लेकिन कुछ दिन बाद ही तमिल फिल्म ‘‘अरासाची‘‘ में काम मिल गया। 

रणदीप हुड्डा - काजल की फिल्म 'दो लफ्जो की कहानी'का ट्रेलर

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  • फिल्म बाजीराव  मस्तानी के साथ 

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शुक्रवार को रिलीज़ हो रही दो बड़ी फिल्म के साथ कई आगामी फिल्मों के अपने लुक और ट्रेलर जोड़े हैं. इसी कड़ी मैं अब रणदीप हुड्डा और काजल अग्रवाल की नै फिल्म भी जुड़ गयी हैं. इसका ट्रेलर संजय लीला भंसाली की पीरियड फिल्म के साथ जुड़ गयी हैं. फिल्म का नाम अमिताभ बच्चन की फिल्म के सुपरहिट गाने 'दो लफ्जो की कहानी'से प्रेरित हैं.

इसका बड़ा हिस्सा मलेशिया में शूट हुआ हैं. निर्देशक दीपक तिजोरी फ़िलहाल पोस्ट - प्रोडक्शन में व्यस्त हैं. लेकिन भंसाली की फिल्म बाजीराव  मस्तानी से जोड़ने क लिए प्रोमो तैयार कर लिया हैं. 'दो लफ्जो की कहानी'की रिलीज़ २०१६ में  रिलीज़ होगी  

व्यंग्य : ​गम खा - खूब गा...!!

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कड़की के दिनों में मिठाई खाने की तीव्र इच्छा होने पर मैं चाय की फीकी चुस्कियां लेते हुए मिठाई की ओर निहारता रहता हूं। इससे मुझे लगता है मानो मेरे गले के नीचे चाय के घुंट नहीं बल्कि तर मिठाई उतर रही है।धन्ना सेठों के भोज में जीमने से ज्यादा आनंद बतकही में व्यंजनों के विश्लेषण से प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि हमें पता होना चाहिए  कि खुश रहना या दुखी होना अपने हाथ में है। आदमी टूटी झोपड़ी में रहते हुए भी महलों का अहसास करता रह सकता है। लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि सब ऐसे नहीं होते। ज्यादातर किसी न किसी बात पर कुढ़ते रह कर अपना और दूसरों का भी ब्लड प्रेशर बढ़ाते रहते हैं। 

अब हाल के घटनाक्रम  को ही ले लीजिए। कालचक्र ने हाल के दिनों में देशवासियों को खुश होने के कई मौके दिए । एक पखवाड़े के भीतर अनेक राजनेताओं के बाल - बच्चों का घर बस गया। एक खबर के मुताबिक देश के एक नामी बुद्धिजीवी हर महीने आम - आदमी को मिलने वाली तनख्वाह के बराबर की कीमत की किताबें खरीद कर पढ़ जाते हैं और अपना बुद्धिबल बढ़ाते रहते हैं।  जेल में बंद एक नायक के बारे में खबर आई कि उनकी सजा की मियाद करीब छह महीने कम हो गई है और समय से काफी पहले ही वे जेल से रिहा हो सकते हैं।यानी उनके प्रशंसक जल्द ही उन्हें एक बार फिर से रुपहले पर्दे पर अन्याय - अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करते हुए देख सकेंगे।दाल व सब्जियों समेत दूसरी जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ने से परेशान आम आदमी के लिए ऐसी खबरें जरूर तपती दुपहरी में ठंडी हवा के झोंके समान है। 

लेकिन ठहरिए देशवासियों के लिए सुसंवाद का यह सिलसिला यही रुकने वाला नही्ं। समय के पिटारे में अभी बहुत कुछ शेष है। दूसरे नायक के बारे में पता लगा कि वे जेल जाते - जाते बाल - बाल बच गए। कहा जाता है कि जेल जाने से बचने का अहसास होते ही बेचारे की आंखों में आंसू आ गए। उन आंसुओं का विश्लेषण भी खूब हुआ। नायक के आंसू पूरे दिन सुर्खियां बनी रही। अदालती चक्कर के एक - एक दिन का हिसाब परोसा गया। ढोल - नगाड़े बजाते हुए नाचते - कुदते प्रशंसकों का ऐसा उत्साह बस क्रिकेट में मिली सफलता के बाद ही देखने को मिलता है। उस दिन मैं जब भी चैनल खोलता , बस एक ही खबर ...। देखिए फलां के आंसू ...। बेचारा कैसे रो रहा है। कोई कह रहा है फलां के बेकसूर साबित होने से सबसे ज्यादा खुश मैं हूं... किसी ने सलाह दी... । ... भले ही उनकी उ म्र 50 की हो गई है, लेकिन अब उसे शादी कर लेनी चाहिए। विश्लेषण शुरू हुआ तो पूर्वानुमान में अनेक अभिनेत्रियों की सूची तैयार हो गई, जिसे भविष्य में नायक की अर्द्दांगिनी बनने का सौभाग्य मिल सकता है। एक और सुसंवाद ...। गुजरे जमाने के क्रिकेटर ने ऐलान किया कि उनके सपूतों ने यदि बड़ा होकर उनकी तरह तिहरा शतक लगाया तो वे उन्हें विदेशी फेरारी कार गिफ्ट करेंगे। यह भी एक सुसंवाद ही तो रहा। एक और क्रिकेटर के बारे में मालूम हुआ कि उसकी मंगनी पर देश के एक नामी उद्योगपति ने विशाल और भव्य  भोज का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में  नामी - गिरामी क्रिकेटर अपनी - अपनी पत्नियों , मंगेतरों व गर्ल फ्रेंडों के साथ मौजूद रहे। इस बीच बुलेट ट्रेन का सपना एक बार फिर साकार होता नजर आया। इस परिस्थिति में हम जैसे आम - आदमी को कम - खाते हुए खूब गाते रहने का अभ्यास जारी रखना चाहिए। 






तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर (पशिचम बंगाल) 
पशिचम मेदिनीपुर 
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

विशेष आलेख : झाबुआ के झरोखे से

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मध्यप्रदेश के इतिहास में दिग्विजय सिंह के बाद शिवराज सिंह चौहान ऐसे दूसरे व्यक्ति बन गये हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री के एक दशक पूरा किया है, बीते 29 नवंबर को उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल का 10 साल पूरा कर लिया है। इस दौरान हुए ज्यादातर चुनावों और उपचुनावों में बीजेपी ने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी और उसका पलड़ा कांग्रेस के मुकाबले भारी ही रहा. लेकिन रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव की हार बीजेपी की सबसे बड़ी हार बन चुकी है. इसने दस साल के जश्न को फीका तो कर ही दिया साथ ही साथ यह सवाल भी छोड़ गयी कि आखिर इस हार का जिम्मेदार कौन हैं ? कोई इसे शिवराज की हार बता रहा है तो कोई इसे मोदी की चमक फीकी पड़ने व दिल्ली और बिहार के एक सिलसिले के कड़ी के रूप में देख रहा है. 

बिहार के तर्ज पर अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के नक्शेकदम पर चलते हुए शिवराजसिंह ने इस सीट को  अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में पार्टी की राज्य इकाई, उनका पूरा मंत्रिमंडल और प्रशासनिक अमला चुनाव में लगा था लेकिन इन सब से पार पाते हुए डी.एस.पी. की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आये आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया अपनी सीट एक बार फिर वापस पाने में कामयाब रहे और वह भी करीब 90 हज़ार वोटों के अंतर से. इस जीत ने पिछले बारह सालों में कांग्रेस को पहली बार यह एहसास कराया है कि वह प्रदेश के राजनीति में एकबार फिर मुकाबले में आ सकती है बशर्ते की वे ऐसा करना चाहें.

रतलाम–झाबुआ लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रहा है जिसे 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने जीता था, उनकी आकस्मिक निधन के बाद हुए उपचुनाव के बाद भाजपा ने इस सीट को बनाये रखने में अपनी पूरी ताकत झोक दी और कांग्रेस ने इसे अपनी वापसी का दरवाजा माना| ऐसा नहीं है कि इससे पहले कांग्रेस को वापसी का मौका नहीं मिला, डंपर कांड,विश्व प्रसिद्ध व्यापमं घोटाला जैसे कई मौके उसे मिले थे, लेकिन इस दौरान मध्यप्रदेश में कांग्रेसियों ने एक दूसरे से निपटने में ही सारा समय लगा दिया.

इस उपचुनाव को भाजपा ने अमित शाह स्टाइल में लड़ा, सबसे पहले तो चुनाव की बागडोर पूरी तरह से शिवराज सिंह ने अपने हाथों में केन्द्रित रखा, अकेले मुख्यमंत्री ने 16 दिन चुनाव प्रचार किया और 52 सभाएं की। इसके अलावा बड़ी संख्या में मंत्री, विधायक और सांसद वहां जमे रहे. करीब दो हजार करोड़ रुपए की घोषणाएं की गयी, इस दौरान संघ और पार्टी का कुनबा तो साथ था ही. इन सब के केंद्र में शिवराज ही नजर आ रहे थे। भाजपा प्रत्याशी निर्मला भूरिया तो नेपथ्य में थीं. वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रचार अभियान में उसके प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ही केंद्र में रहे और प्रदेश मुखिया अरुण यादव भी उनका सहयोग करते ही नज़र आये. 

इस चुनाव में कोई एक मुद्दा नहीं था, पेटलावद का हादसा,व्यापमं घोटाला, किसानों की आत्महत्या और महंगाई जैसे मुद्दे भाजपा के खिलाफ गये. पेटलावद का हादसा एक स्थानीय मुद्दा था जिसमें हुए विस्फोट में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। दोषियों पर कोई ठोस  कार्रवाई नहीं हुई और इसका लिंक भी भाजपा के नेताओं से जुड़ता हुआ दिखाई दिया, दोषियों को बचाने की कोशिशों का दंड बीजेपी को भुगतना पड़ा। प्रदेश के पंचायतीराज के जनप्रतिनिधि भी अधिकार दिए जाने की मांग को ना माने जाने और भोपाल में प्रदर्शन के दौरान हुए लाठी चार्ज को लेकर नाराज चल रहे थे. नतीजे के तौर पर झाबुआ उपचुनाव में त्रिस्तरीय पंचायतीराज संगठन द्वारा बीजेपी को हराने का बाकायदा निर्णय लिया गया. संगठन के अध्यक्ष अभय मिश्रा दावा कर रहे हैं उनके संगठन की वजह से ही रतलाम-झाबुआ में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. एक और प्रमुख मुद्दा बेरोजगारी है जिसकी वजह से झाबुआ से बड़ी मात्रा में रोजगार की तलाश में लोग गुजरात पलायन को मजबूर हैं। इधर मोदी सरकार आने के बाद से मनरेगा में रूकावट आयी है, जिसके नतीजे में बेरोजगारी और पलायन बढ़ा है. नेताओं के दंभ भरे बयानों ने भी अपना असर दिखाया है, चुनाव के दौरान कैलाश विजयवर्गीय ने मतदाताओं को खुली धमकी दी थी कि ‘भाजपा को छोड़कर अगर कोई अन्य यह चुनाव जीत गया तो झाबुआ का विकास रुक जाएगा और इसके बाद यदि कोई झाबुआ के विकास संबंधी काम लेकर मुख्यमंत्री के पास गया तो समस्याएं कचरे के डिब्बे में चली जाएंगी।“ जाहिर है जनता से इस धमकी को रास नहीं आया  होगा. 

मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने उपचुनाव में हार के लिए संगठन को जिम्मेदार बताते इसकी समीक्षा की की बात की है .उन्होंने शिवराज सिंह को क्लीन चिट देते हुए कहा है कि “मुख्यमंत्री की लोकप्रियता में कमी नहीं आई है,रतलाम-झाबुआ में बीजेपी को जो वोट मिले हैं वो सीएम शिवराज के विकास की बदौलत ही है”. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तो इसे कांतिलाल भूरिया की  निजी जीत बता रहे हैं. जबकी कांग्रेस इसे  मुख्यमंत्री की हार बताते हुए भाजपा के पतन की शुरुआत बता रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि “रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर  कांग्रेस की जीत किसानों की जीत लोगों ने केंद्र सरकार के खिलाफ वोट किया, यह प्रदेश ही नहीं देश के लिए भी शुभ संकेत है।“ 

कुछ भी हो इस हार ने मोदी के लहर और शिवराज सिंह के जादू पर सवाल तो खड़ा ही कर दिया है रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार शिवराज सरकार के लिए एक झटका है, लेकिन इससे निश्चित रूप से लगातार पिट रही कांग्रेस का हौसला बढ़ा है, वह इसे बिहार और गुजरात स्थानीय चुनावों के नतीजों की कड़ी से जोड़कर अपने पुनरुत्थान के रूप में देख रही है. लेकिन इस जीत से बम बम कांग्रेस यह भूल रही है कि रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट उसका पुराना गढ़ रहा है, 2014 लोकसभा चुनाव में जिन दिलीप सिंह भूरिया ने उससे यह सीट छीना था वो पहले  कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े थे। फिर  23 हजार वोट “नोटा” के रूप में पड़े हैं जो कांग्रेस के लिए जीत की ख़ुशी के साथ साथ एक सन्देश भी हैं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव बादल सरोज का कहना है कि “रतलाम-झाबुआ के उपचुनाव में जनता ने कांग्रेस को नहीं जिताया बल्कि भाजपा को हराया है, यह मोदी सरकार द्वारा वायदों की अनदेखी करने और जनता पर बोझ बढ़ाने वाली नीतियों के विरुद्ध डाला गया वोट और प्रदेश की सरकार के भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता, दमनकारी रुख के खिलाफ जनादेश है”. 

शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में भाजपा का पर्याय बन चुके हैं यही उनकी ताकत है और कमजोरी भी, ताकत इस तरह से की फिलहाल राज्य में उनका कोई विकल्प नहीं है और जो विकल्प बन सकते थे उन्हें प्रदेश के सरहदों से बाहर भेज दिया गया है, वहीँ कमजोर इस तरह से कि भाजपा का मौजूदा शीर्ष नेतृत्व अपने अलावा किसी और को मजबूत शक्ति केंद्र के रूप  में देखना पसंद नहीं करता है. राजनीतिक पंडित अनुमान लगा रहे थे कि अगर बिहार चुनाव में भाजपा जीतती है तो शिवराज सिंह की बिदाई हो सकती है शायद उन्हें केंद्र में मंत्री बना दिया जाता लेकिन बिहार में हार के बाद मोदी–शाह की जोड़ी खुद बैक फुट पर है. शिवराज सिंह चौहान का एक पसंदीदा कहावत है ‘पांव में चक्कर,मुंह में शक्कर, माथे पर बर्फ, और सीने में आग” इसे वे अक्सर दोहराते रहते है और यही उनकी सफलता का मन्त्र भी है, तभी तो हम देखते हैं कि हार के तुरंत बाद  झाबुआ का ही रुख करते हैं और फिर से जनता का नब्ज साधने और गलती सुधारने की कोशिश में अपने पूरे प्रशासनिक अमले को लगा देते हैं. 

भाजपा की यह हार कांग्रेस की जीत कितनी स्थायी इसकी असल परीक्षा सतना जिले के मैहर विधानसभा उपचुनाव में होने वाली है. फिलहाल तो भाजपा में अभी भी सब कुछ शिवराज सिंह के नियंत्रण में है, अब वे मुख्यमंत्री के पद पर  सबसे  लम्बे समय तक रहने के नए कीर्तमान की ओर बढ़ रहे हैं, उन्हें केंद्र में भेजे जाने की आशंकायें भी बंदहो चुकी है , कुख्यात व्यापम तो पहले शांत कर दिया गया है.  कांग्रेस को भी  एक बार फिर से यह सीख मिली है कि अगर उसके नेता एक दुसरे के खिलाफ गोल करने के बजाये भाजपा के खिलाफ लडें  तो मध्य प्रदेश में उसकी वापसी संभव है .देखना होना की कांग्रेस इस सबक को कब तक याद रख पाती है फिलहाल इस जीत ने उसे सूबेदार अरुण यादव की कुर्सी पर खतरे के अटकलों पर विराम लग चूका है. और उनके टीम के हौसले बुलंद हैं. 





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जावेद अनीस
Javed4media@gmail.com

मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या जारी, संख्या 1059 तक पहुंची

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औरंगाबाद ,17 दिसंबर, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है और पिछले एक सप्ताह के भीतर क्षेत्र के आठ जिलों में 35 और किसानों के आत्महत्या करने के बाद इस साल किसानों के आत्महत्या करने की संख्या 1059 तक पहुंच गयी है। संभागीय उपायुक्त कार्यालय के सूत्रों ने आज यह जानकारी दी कि किसानों के आत्महत्या करने का यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में कहीं अधिक है जो बेहद चिंताजनक है। 

रिपोर्टों के अनुसार सूखे से बुरी तरह प्रभावित बीड जिले में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है । यहां सबसे ज्यादा 295 किसानों ने आत्महत्या की है जबकि हिंगोली जिले में यह संख्या न्यूनतम 36 रही। इसके अलावा नांदेड़ जिले में 181 ,ओस्मानाबाद में 158,औरंगाबाद में 135,लातूर में 93 और जालना जिले में 72 किसानों ने आत्महत्या की। 
उल्लेखनीय है कि पिछले तीन वर्षों से सूखे से बुरी तरह प्रभावित जिलों में किसानों की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है और निराश किसानों की आत्महत्या का सिलसिला लगातार जारी है। 
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