महाराष्ट्र के शिंगणापुर में आजकल शनिदेव ने हलचल मचा रखी है। उनका प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर उस परंपरा के पहरे में है, जिसके मुताबिक वहां महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकतीं। दूसरी ओर महिलाओं को लगता है कि यह उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार और उनका अपमान है, क्योंकि शनिदेव या दूसरे भगवान भला स्त्री-पुरुष में भेदभाव क्यों करेंगे। उनके लिए तो सभी बराबर हैं, सभी उनकी संतान हैं। शनिदेव पर आजकल नारी दृष्टि लगी हुई है... सवाल उठता है कि जब पुरुष प्रतिमा के करीब जाकर शनि देव की पूजा कर सकता है फिर महिलाओं को ऐसा करने से क्यों रोका जाता है। आखिर वो कौन सी वजह है जिसके चलते यहां पुरुष और महिला के बीच भेदभाव किया जाता है? प्रस्तुत है सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी की जांच-पड़ताल एवं आंदोलनकारी महिलाओं को मंदिर जाने से रोकने के बाद समर्थक और विरोधियों के बीच छिड़ी जंग की एक विस्तृत रिपोर्ट-
जी हां, न्याय के देवता शनिदेव को अन्याय कत्तई बर्दाश्त नहीं है। इंसान ही नहीं देवलोक में भी शनिदेव न्याय देते हैं। तभी तो उनके प्रकोप से देवो के देव महादेव भी नहीं बच सके। अन्यायी रावण का हश्र सबकों मालूम है। ऐसे न्यायधीश शनिदेव दरबार में इनदिनों न्याय पाने के लिए महिलाओं का कोहराम मचा है। चाहे वह सिंगणापुर शनिदेव मंदिर हो या मुंबई का हाजी अली दरगाह या दिल्ली का निजामुद्दीन दरगाह महिलाओं के दर्शन-पूजन व इबादत करने पर लगी पाबंदी पर पूरे देश में बहस का मुद्दा छिड़ गया है। तर्क है कि शनिदेव बाल ब्रह्मचारी हैं, इसलिए महिलाएं दूर से ही उनके दर्शन कर सकती हैं। जो ब्रह्मचारी होते हैं वो महिलाओं से दूर रहते हैं। इसलिए महिलाओं से भी ब्रह्मचारी शनि की भावना का सम्मान करने की उम्मीद की जाती है। जबकि मंदिरों में महिलाओं के जाने को लेकर सनातन धर्म में कहीं कोई मनाही नहीं है। पुरुष की तरह महिलाएं भी मंदिर के भीतर पूजा पाठ कर सकती हैं। महिलाएं का कहना है कि एक तरफ देश में बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं की दुहाई दी जा रही है। महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलने की दुहाई जा रही है। आरक्षण व्यवस्था के तहत बराबरी के हक की बात कहीं जा रही है। महिलाएं सीमा पर दुश्मनों के न सिर्फ छक्के छुड़ा रही है बल्कि जेट विमान तक उड़ा रही है, लेकिन देश के कुछ धार्मिक स्थलों पर दर्शन-पूजन व इबादत पर पाबंदी लगाकर उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है, लेकिन वह चुप बैठने वाली नहीं, अधिकार लेकर ही रहेंगी।
अभी कुछ महीनों पहले श्रद्धालुओं की भीड़ से निकल कर एक महिला अचानक शनि चबूतरे पर चली गई और उसने शनिदेव पर तेल चढ़ाकर जब चार सौ सालों से चली आ रही उस परंपरा को तोड़ दिया, जिसके मुताबिक शनिदेव की स्त्री-पूजा की मनाही है तो इतनी हलचल मची कि पूछिए मत। इस कथित अनर्थ के निदान के लिए पुजारियों ने शनिदेव को पवित्र करने के लिए उनका दुग्धाभिषेक किया था। इसके बावजूद शिंगणापुर के शनिदेव पर नारी दृष्टि लगी हुई है। महिलाओं का आक्रोश उस दिन आग बबूला हो गया जब 26 जनवरी दिन मंगलवार को समूचा देश 67 वां गणतंत्र दिवस मना रहा था। देशवासी अपने उस पवित्र संविधान की वर्षगांठ मना रहे थे जो सभी भारतीयों को समानता का अधिकार देता है। स्त्री हो या पुरुष संविधान सभी को बराबरी का हक देता है। देश गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा था तो महाराष्ट्र के अहमदनगर में सैकड़ों महिलाएं संविधान में मिले अपने बराबरी के अधिकार की आवाज बुलंद कर रही थीं। सामाजिक संगठन रणरागिनी भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई की अगुवाई में इन महिलाओं ने फैसला कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए स्त्री-पुरुष में भेदभाव करने वाली परंपरा को वो आज तोड़ कर ही रहेंगी। इन आंदोलनकारी महिलाओं का एक ही लक्ष्य था शिंगणापुर शनि मंदिर के चबूतरे पर पहुंचकर उस रूढिवादी परंपरा को ध्वस्त कर देना जो इन्हें 400 साल से मंदिर के भीतर आने की इजाजत नहीं दे रहा है। सुबह का समय था। बड़ी संख्या में महिलाएं शिंगणापुर जाने के लिए इकट्ठा हुईं। इन महिलाओं ने शिंगणापुर की यात्रा अभी शुरू भी नहीं की थी कि उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया गया। महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद रणरागिनी भूमाता ब्रिगेड की सदस्यों ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात कर इस भेदभाव को खत्म करने में उनका समर्थन मांगा। मुख्यमंत्री से अपनी पत्नी के साथ शनिदेव के दर्शन करने को कहा जिससे महिलाओं की मांग को ताकत मिल सके। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने महिलाओं के मंदिर के भीतर जाने की मांग का खुलकर समर्थन किया है। जबकि दूसरी ओर मंदिर ट्रस्ट के सदस्य परंपरा की दुहाई दे रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि वे महिलाओं का सम्मान करते हैं, उस महिला की भावना का भी, जिसने वहां जाकर पूजा की। लेकिन चूंकि पुरानी परंपरा के अनुसार वहां जाकर महिलाएं पूजा नहीं कर सकतीं और हम चली आ रही परंपरा को बदल नहीं सकते। इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि जिला मजिस्ट्रेट और अहमदनगर जिले के एसपी को मंदिर ट्रस्ट और प्रदर्शन कर रही महिलाओं के बीच जल्दी से जल्दी सुलह कराने के निर्देश दिए गए हैं। फडणवीस का कहना है कि भगवान के पूजा-पाठ में भेदभाव करना हमारी संस्कृति नहीं है, इसलिए मामले को सुलझाने के लिए प्रशासन को उचित कदम उठाने चाहिए। इलाहाबाद के माघ मेले में कल्पवास कर रहे साधू-संतों ने भी महाराष्ट्र के शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को गलत बताया है। हालांकि इन साधू संतों का मानना है कि अगर महिलाएं पूरे नियम संयम के साथ शनि मंदिर में जाएं तो भी उन्हें सिर्फ दर्शन ही करना चाहिए। मूर्ति यापी विग्रह को कतई नहीं छूना चाहिए। कुरुक्षेत्र के नागेश्वर धाम के महंत स्वामी महेशाश्रम जी महाराज बताते हैं कि महिलाएं पीरियेड्स यानी मासिक धर्म खत्म होने पर किसी भी मंदिर में जाकर पूजा अर्चना कर सकती हैं लेकिन शनिदेव, पवन पुत्र हनुमान और कार्तिकेय की मूर्तियों को छूने की महिलाओं को मनाही है। अपवित्र होने की सूरत में ये देवगण नाराज होकर अहित कर सकते हैं। अखिल भारतीय दंडी स्वामी संत समिति के अध्यक्ष स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी का मानना है कि महिलाओं को खुद ही शनिदेव के मंदिर में जाने से बचना चाहिए। हालांकि वह पाबंदी लगाए जाने को गलत मानते हैं। उनका भी यही कहना है कि शनिदेव महिलाओं का अहित कर सकते हैं, इसलिए उन्हें पूरे नियम संयम के साथ ही मंदिरों में दाखिल होना चाहिए।
बहरहाल, मंदिर में सदियों से महिलाओं के पूजा करने पर रोक वाली परंपरा को तोड़ने जा रही महिलाओं को ही रोके जाने पर मुद्दा और गरमा गया है। यूपी की महिला साध्वियों ने पूजा न करने देने के फैसले पर कड़ा एतराज जताया है। फायरब्रांड हिंदू नेता साध्वी प्राची ने इसे सरासर गलत और दकियानूसी बताया। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक युग में महिलाओं को पूजा न करने देने का वे विरोध करेंगी। पूजा से रोकना महिलाओं का अपमान है। भगवान शिव भी अर्धनारीश्वर स्वरूप में दिखाए गए हैं। कुछ लोगों के हठ की वजह से शनि शिंगणापुर में महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है। इस तरह कैसे महिलाओं का सशक्तीकरण होगा। महिलाओं को पूजा से रोकना संविधान का भी अपमान है। वेद और पुराण में इस तरह की रोक के बारे में कहीं नहीं लिखा है। कुछ पुरुष पुजारियों ने खुद ऐसे नियम बनाए हैं। ऐसे गलत नियमों को तुरंत बदलने की मांग की गई है। जबकि किसी महिला को शनि के स्वरूप पर तेल चढ़ाने और पूजा का हक नहीं है और मंदिर ट्रस्ट के मुताबिक बॉम्बे हाईकोर्ट भी इस रोक को सही ठहरा चुका है। महिलाओं की इस मांग के समर्थन को उस समय बड़ी ताकत मिली जब हिंदुओं की प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने साफ-साफ कहा कि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को पूजा से रोकना गलत है। महंत नरेंद्र गिरी ने कहा कि सनातन हिन्दू धर्म में पुरुष और महिला दोनों को समान रूप से मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार है मिला हुआ है। जबकि हिन्दुओं के चार पीठों में से एक द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि शनि महाराज देवता नहीं एक क्रूर ग्रह हैं। शनि की पूजा उन्हें हटाने के लिए की जाती है न कि शनि को बुलाने के लिए। ऐसे में महिलाओं को सोचना है कि मंदिर में जाकर वो अपना कौन सा भला करना चाहती हैं।
गौरतलब है कि साल 2015, 29 नवंबर दिन शनिवार को मंदिर के कर्ताधर्ता उस वक्त सन्न रह गए जब सीसीटीवी कैमरे में कैद एक तस्वीर देखी कि दोपहर तीन बजे पुणे की एक महिला शनि मंदिर के चबूतरे पर पहुंचकर तेल चढ़ाकर दर्शन-पूजन की। कहते हैं तेल चढ़ाने से शनि ग्रह से मुक्ति मिलती है। हालांकि जब तक सुरक्षा में तैनात सेवादारों को मामला समझ में आता, वो महिला वहां से निकल चुकी थी जबकि उस वक्त मंदिर में कई श्रद्धालु मौजूद थे। तस्वीरें देखने के बाद व्यवस्थापकों में खलबली मच गयी। महिला द्वारा शनि महाराज को तेल चढ़ाने पर पुजारियों ने मूर्ति को अपवित्र घोषित कर दिया। मंदिर प्रशासन ने 6 सेवादारों को निलंबित कर दिया और उसके बाद मूर्ति का शुद्धिकरण किया गया। मूर्ति को अपवित्र मानते हुए मंदिर प्रशासन ने दूध से प्रतिमा का अभिषेक किया। यही नहीं, पवित्रता के लिए पूरे मंदिर को धोया गया। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी महिला ने शनि देव की प्रतिमा का स्पर्श किया हो। विवाद को बढ़ता देख पूजा करने वाली महिला ने प्रशासन से ये कहते हुए माफी मांग ली कि उसे परंपरा की जानकारी नहीं थी। विडंबना की बात ये है कि जिस दिन ये घटना घटी थी उस दिन महान समाज सुधारक और क्रांतिकारी महात्मा फुले की पुण्यतिथि थी। महात्मा फुले ने दलितों और स्त्रियों के लिए ताउम्र संघर्ष किया था। शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं से होने वाले भेदभाव के खिलाफ करीब 15 साल पहले भी आंदोलन हुआ था। मंदिर की परंपरा के खिलाफ जानेमाने विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर ने मशहूर कलाकार डॉ श्रीराम लागू, पुष्पा भावे, और किसान नेता एनडी पाटिल के साथ मिल कर यहां सत्याग्रह किया था, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए थे और उन्होंने गिरफ्तारियां दी थीं। सैकड़ों सत्याग्रहियों के जत्थे ने पंढरपुर से शनि शिंगनापुर पैदल मार्च किया था। उस समय इस मार्च का दक्षिणपंथी संगठनों ने जबर्दस्त विरोध किया था और इस परंपरा को चुनौती देने के लिए पहुंचे सत्याग्रहियों को मंदिर में घुसने नहीं दिया था।
सिंगणापुर के लोग नहीं चाहते महिलाओं का प्रवेश
जिस शिंगनापुर गांव के शनि मंदिर में महिलाओं के जाने को लेकर हंगामा मचा है उस गांव के लोग सैकड़ों साल से चली आ रही परंपरा के साथ हैं। गांव के लोगों को लगता है कि शनि की वजह से इलाके में खुशहाली आई है और इसीलिए चोर यहां चोरी भी नहीं करते। ग्रामसभा ने बाकायता चबूतरे पर पूजा करने की कोशिश के लिए भूमाता ब्रिगेड और उसके कार्यकर्ताओं की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
ट्रस्ट अध्यक्ष हैं महिला
श्रीशनि मंदिर ट्रस्ट में पहली बार महिलाओं को जगह दी गई है। यही नहीं, अनिता शेटे ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं। मंदिर ट्रस्ट में बतौर सदस्य चुनी गई अनीता शेटे और शालिनी लांडे पर ऐतिहासिक जिम्मेदारी आ गई है। यह दोनों महिलाएं शिंगणापुर के प्रसिद्ध शनि मंदिर में ट्रस्टी चुनी गई हैं। 400 वर्ष पुराने मंदिर की ट्रस्टी बनने वाली ये पहली महिलाएं हैं। दो महिलाओं का चयन होने से शनि मंदिर में परंपरा और नियमों के बदले जाने की संभावना है। इन महिलाओं से उम्मीद और अपील की गई है कि वे पुरुषों के हाथों की गुडि़या न बनकर महिला श्रद्धालुओं को शनिपूजा का अधिकार दिलवाने का कार्य करें।
महिलाओं को वर्जित है तैलाभिषेक
शनि देव के इस मंदिर में स्त्रियों का प्रतिमा के पास जाना वर्जित है। महिलाएं दूर से ही शनिदेव के दर्शन करती हैं। सुबह हो या शाम, सर्दी हो या गर्मी, यहां स्थित शनि प्रतिमा के समीप जाने के लिए पुरुषों का स्नान कर पीतांबर धारण करना अत्यावश्क है। केवल बड़े-बुजुर्ग ही नहीं अपितु तीन-चार वर्ष के शिशु भी इस शीतल जल से स्नान कर शनिदेव के दर्शन के लिए अपने पिता के साथ चल पड़ते हैं।
चक-चैबंद है व्यवस्था
शनि मंदिर का एक विशाल प्रांगण है, जहां दर्शन के लिए भक्तों की कतारें लगती हैं। मंदिर प्रशासन द्वारा शनिदेव के दर्शन की बेहतर व्यवस्थाएं की गई हैं, जिससे भक्तों को यहां दर्शन के लिए धक्कामुक्की जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है। जब यहां स्थित विशाल शनि प्रतिमा के दर्शन होते हैं तो यात्री स्वयं सूर्य पुत्र शनिदेव की भक्ति में रम जाता है। यहां स्नान और वस्त्रादि की बेहतर व्यवस्थाएं हैं। खुले मैदान में एक टंकी में कई सारे नल लगे हुए हैं, जिनके जल से स्नान करके पुरुष शनिदेव के दर्शन का लाभ ले सकते हैं। पूजनादि की सामग्री के लिए भी यहां आसपास बहुत सारी दुकानें हैं, जहां से पूजन सामग्री लेकर शनिदेव को अर्पित कर सकते हैं। अब चर्चा करते हैं शनिदेव से जुड़ी पारंपरिक मान्यताओं की।
आस्थावानों का जमघट
शनिदेव को खुश करने के लिए यहां देश विदेश से हर रोज बड़ी तादाद में भक्त आते हैं और शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं। तिल का तेल चढ़ाकर भक्त पत्थर की प्रतिमा की पूजा करते हैं। दर्शन करने के बाद श्रद्धालु यहां की दुकानों से घोड़े की नाल और काले कपड़ों से बनी शनि भगवान की गुडि़या जरूर खरीदते हैं। लोक मान्यता है कि घोड़े की नाल घर के बाहर लगाने से बुरी नजर से बचाव होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
शनिदेव की महिमा
कहते हैं कि विषैले सांप का काटा और शनि का मारा पानी नहीं मांगता। चाहे वह देवता हो या असुर या मानव, सिद्ध, विद्याधर और नाग ही क्यों न हो, शनिदेव की कुदृष्टि पड़ते ही सर्वनाश हो जाता है। लेकिन महाराष्ट्र के शिंगणापुर में विराजमान शनिदेव सिर्फ वरदान देते हैं। उनके दरबार में मत्था टेकने वाले भक्तों पर कभी शनिदेव की कुदृष्टि नहीं पड़ती। कहते हैं कि अगर उनकी शुभ दृष्टि पड़ गई तो रंक से राजा बनते भी देर नहीं लगती। ये एक ऐसा तीर्थस्थल है जिसकी मिसाल भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलती है। माना जाता है इस गांव के राजा शनिदेव हैं, इसलिए यहां ताला-चाभी की तो बात ही दूर, किसी भी घर में न दरवाजे हैं और न किवाड़। लाखों-करोड़ों के जेवर सहित अन्य गृहस्थी के साथ लोग चैन की नींद सोते हैं। उनके घर से कभी एक कील भी चोरी नहीं हुई। शिंगणापुर के लोग मानते हैं कि शनि की इस नगरी की रक्षा खुद शनिदेव का पाश करता है। कोई भी चोर गांव की सीमारेखा को जीवित पार नहीं कर सकता। सालों पहले एक बार एक चोर यहां चोरी करने आया पर वो सामान चुरा कर गांव से बाहर निकल न सका क्योंकि उसके पांव अचानक खराब हो गए। आखिर शनिदेव के आगे चोर-उचक्कों की औकात ही क्या है?
यहां प्रकोप नहीं, वरदान देते है शनिदेव
वैसे तो सूर्यपुत्र शनिदेव हर जगह विराजमान हैं। लेकिन महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर की महिमा निराली है। जहां शनिदेव तो हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है, परंतु दरवाजा नहीं। वृक्ष है, लेकिन छाया नहीं। भय है, पर शत्रु नहीं। शनिदेव की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। जिसे शनि का विग्रह माना जाता है। 5 फुट 9 इंच ऊंची और डेढ़ फुट चैड़ी पाषाणकालीन मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर खुले आसमान में है। चाहे तमतमाती धूप हो, आंधी-तूफान या बारिश हो, या हाड़ कंपा देनेवाली ठंड, सभी ऋतुओं में बिना छत के ही शनिदेव विराजमान हैं। शनि के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए देश-विदेश से लोग लाखों की संख्या में यहां पहुंचते हैं और शनि विग्रह की पूजा करके शनि के कुप्रभाव से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि यहां पर शनि महाराज का तैलाभिषेक करने वाले को वे कभी कष्ट नहीं देते। राजनेता व प्रभावशाली वर्गों के लोग यहां नियमित रूप से व साधारण भक्त हजारों की संख्या में दर्शनार्थ प्रतिदिन पहुंचते हैं। यहां पर शनि अमावस और शनि जयंती पर लगने वाले मेले में करीब दस लाख लोग आते हैं। श्रद्धालु भगवान शनि की पूजा व तैलाभिषेक करते हैं। प्रतिदिन प्रातः चार बजे और सायंकाल पांच बजे आरती होती है, जिसमें बड़ी संख्या में आस्थावानों का जमावड़ा होता है। शनि जयंती पर विशेष मेले का आयोजन होता है जिसमें देशभर से पहुंचे प्रख्यात ब्राह्मणों द्वारा रुद्राभिषेक होता है। यह कार्यक्रम प्रातः सात से सायं छह बजे तक चलता है। कहते है पुरुष बिना किसी रोकटोक के इस चबूतरे तक आ सकते हैं जिस पर शनिदेव विराजमान हैं। लेकिन इस मूर्ति तक आने की महिलाओं को इजाजत नहीं है। इसीलिए महिलाओं के साथ भेदभाव वाली इस परंपरा के खिलाफ महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया है। इस मूर्ति की पूजा की करीब चार सौ साल से एक परंपरा चली आ रही है जिसे हक की लड़ाई लड़ने वाली महिलाओं ने चुनौती दी है।
चमत्कार की ढेरों कहानियां तकरीबन दस हजार की आबादी वाले शनि शिंगणापुर गांव में प्रचलित हैं। यों यहां किसी भी घर में दरवाजा नहीं है। कहीं भी कुंडी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग अलमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। ऐसा शनि भगवान की आज्ञा व कृपा है। लोग घर की मूल्यवान वस्तुएं, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली व डिब्बे या ताक का प्रयोग करते हैं। केवल पशुओं से रक्षा हो, इसलिए बांस का टट्टर दरवाजे पर लगाया जाता है। गांव छोटा जरूर है, लेकिन सबके सब समृद्ध हैं। लोगों के घर पक्के हैं। दूर-दराज से पहुंचने वाले भक्त भी अपने वाहनों में कभी लॉक नहीं लगाते, चाहे कितना भी बड़ा मेला ही क्यों न लगा हो। कभी किसी वाहन की चोरी नहीं हुई। कहते हैं कि मंदिर के नजदीक या गांव में कोई व्यक्ति चोरी करने की कोशिश करता है तो वह अंधा हो जाता है।
पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताएं नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह एक राशि पर सबसे ज्यादा समय तक विराजमान रहता है। कथानुसार सदियों पहले शिंगणापुर में खूब वर्षा हुई। वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति आ गई। लोगों को वर्षा प्रलय के समान लग रही थी। इसी बीच एक रात शनि महाराज एक गांववासी के सपने में आए। उन्होंने कहा कि मैं पानस नाले में विग्रह रूप में मौजूद हूं। मेरे विग्रह को उठाकर गांव में लाकर स्थापित करो। सुबह उस व्यक्ति ने गांव वालों को यह बात बताई। सभी लोग पानस नाले पर गए और वहां मौजूद शनि का विग्रह देखकर हैरान रह गए। गांव वाले मिलकर उस विग्रह को उठाने लगे, लेकिन विग्रह हिला तक नहीं। सभी हारकर वापस लौट आए। शनि महाराज फिर उस रात उसी व्यक्ति के सपने में आए और बताया कि कोई मामा-भांजा मिलकर मुझे उठाएं तो ही मैं उस स्थान से उठूंगा। मुझे उस बैलगाड़ी में बैठाकर लाना, जिसमें लगे बैल भी मामा-भांजा हों। अगले दिन उस व्यक्ति ने जब यह बात बताई, तब एक मामा-भांजे ने मिलकर विग्रह को उठाया। बैलगाड़ी पर बिठाकर शनि महाराज को गांव में लाया गया और उस स्थान पर स्थापित किया, जहां वर्तमान में शनि विग्रह मौजूद है। इस विग्रह की स्थापना के बाद गांव की समृद्धि और खुशहाली बढ़ने लगी। देखते ही देखते आस्थावानों की भीड़ बढ़ने लगी। जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन शनिदेव की प्रतिमा नील वर्ण दिखती है। पांच दिनों तक यज्ञ और सात दिनों तक भजन-प्रवचन-कीर्तन का सप्ताह कड़ी धूप में मनाया जाता है।
क्या है साढ़ेसाती
शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार तीन राशि में शनि के कुल निवास साढ़ेसाती कहलाते हैं। किवदंती के अनुसार राजा विक्रमादित्य भी शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव में आए थे और तब उनका राजपाट सब छिन गया था। जिस राशि में साढ़ेसाती लगती है, उस राशि के जातक को शनि महामंत्र के जाप 23 दिनों के अंदर पूरा करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि जातक को शनि महामंत्र जाप एक ही बैठक में नित्य एक ही स्थान पर पूरा करना चाहिए। ज्योतिष के मुताबिक शनि जब किसी के लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। यह समय चक्र साढ़े सात वर्ष का होता है। ज्योतिषशास्त्र में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है। कहते हैं साढ़े साती का वक्त किसी भी इंसान को राजा से रंक बना देता है।
वृक्ष है, छाया नहीं
कहते हैं कि शिंगणापुर में शनिदेव के चबूतरे की उत्तर दिशा में नीम का पुराना पेड़ था। कई शनि भक्त तथा यहां के बुजुर्ग आखों देखा हाल कहते हैं कि जब नीम की डाली बढ़कर मूर्ति के ऊपर आ जाती तो सब संबद्ध डालियां या तो स्वतः जलकर खाक हो जाती थीं या फिर कभी-कभी जलने के बजाय टूटकर गिर जाती थीं। लेकिन डाली के जलने या टूटने से कभी कई हताहत नहीं हुआ और न ही किसी को कोई नुकसान हुआ। पेड़ की छाया कभी भी मूर्ति पर नहीं पड़ती थी। यह अजूबा ही है कि पेड़ हो, लेकिन उसकी छाया न हो। लगभग बीस-पच्चीस वर्ष पहले यहां एक चमत्कार हुआ। इसी नीम के पेड़ पर बिजली गिरी, बगल में शादी समारोह में आए लोग बैठे थे, लेकिन कोई घायल नहीं हुआ, न किसी को कोई पीड़ा हुई। जबकि वज्रपात से पेड़ में आग लग गई। वह वृक्ष करीब 12 घंटे तक जलता रहा। आग बुझाने के अनेक प्रयास के बाद आग बुझी। आश्चर्य की बात यह रही कि दूसरे दिन पेड़ फिर से हराभरा दिखाई देने लगा। इसीलिए यहां के लोग शनिदेव को एक जाग्रत देवता मानते हैं।
भय है पर शत्रु नहीं
लोगबाग अक्सर शनि को शत्रु समझते हैं। लेकिन यह गलत है। शनि एक सच्चे मित्र भी हैं। सामुद्रिक शास्त्र के मुताबिक क्लेश, दुख, पीड़ा व्यसन, धुत, पराभव आदि शनि की साढ़ेसाती के कारण होता है। लेकिन सच तो यह है कि जो जैसा करेगा, वैसा फल पाता है। यदि हमने स्वार्थवश कुछ गलत किया तो शनि उसका फल फौरन देता है। खामोशी, एकांतवास, उदास, निराशा से घिरे रहना, हरदम बुरे विचार आना, किसी से बात करने का जी न चाहना आदि हमारी मानसिकता की बातें है। आखिर इसमें शनिदेव का क्या दोष है। जन साधारण में ऐसा प्रचलित विश्वास है कि शनि एक दुष्ट ग्रह है, लेकिन सही मार्ग अपनाने पर संपत्ति, यश, कीर्ति, वैभव व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
दिल्ली में भी शनि मंदिर
देश की राजधानी दिल्ली में भी प्राचीन शनि धाम मंदिर है। यहां शनि देव की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा विराजमान है। हर रोज यहां बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। ग्रह गोचर से मुक्ति की कामना करते हैं। लेकिन महिलाओं को मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए कोई मनाही नहीं है।
एमपी के मुरैना भी है शनि मंदिर
मध्य प्रदेश के मुरैना के प्राचीन शनि मंदिर की गिनती सबसे पुराने मंदिर के रूप में होती है। ये मंदिर ग्वालियर से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर में लोग शनि की साढेसाती के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए दान और पूजा पाठ के लिए पहुंचते हैं। एमपी के ऐंती का ये शनिश्चरा मंदिर त्रेता युग के होने की वजह से पूरे भारत में प्रसिद्ध है। कहते हैं शनिदेव की ये असली प्रतिमा है। शनि से पीडित हजारों लोग समूचे भारत से ही नहीं विदेशों से शनि शान्ति और दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां भी महिलाओं के अंदर जाने पर रोक नहीं है। ये मंदिर शनि पर्वत पर बना हुआ है। यहां पर एक खास परंपरा के चलते शनि देव को तेल अर्पित करने के बाद उनसे गले मिलने की प्रथा है। यहां श्रद्धालु बड़े प्रेम और उत्साह से शनि देव से गले मिलते हैं। अपने सभी दुख-दर्द उनसे सांझा करते हैं। शनि देव के दर्शन के बाद भक्त अपने घर को जाने से पहले अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, और जूते को मंदिर में ही छोड़ कर जाते हैं। भक्तों का मानना है की उनके ऐसा करने से पाप और दरिद्रता से छुटकारा मिलता है।
रावण को भी नहीं बख्शे शनिदेव
कहते हैं शनि ने रावण को भी नहीं छोड़ा। शनि को बहुत धीरे चलने वाला ग्रह माना जाता है। इसीलिए शनि एक राशि में करीब ढाई साल रहता है। धीरे-धीरे यानी शनैः शनैः चलने की वजह से शनि को श्नैश्चर भी कहा जाता है। शनिदेव धीरे क्यों चलते हैं इसका राज रावण और शनिदेव से जुड़ी एक कहानी में छिपा है। कहा जाता है कि जब मेघनाद का जन्म होने वाला था तब रावण चाहता था कि उसका बेटा अजेय हो, जिसे कोई भी देवी-देवता हरा न सके। रावण प्रकाण्ड पंडित और ज्योतिष का जानकार भी था, इसी वजह से उसने मेघनाद के जन्म के समय सभी नौ ग्रहों और नक्षत्रों को ऐसी स्थिति में बने रहने का आदेश दिया, जिससे उसके पुत्र में वो सभी गुण आ जाए, जो वह चाहता था। उस समय पूरी सृष्टि में रावण का प्रभाव इतना ज्यादा था कि सभी ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता उससे डरते थे। इसी वजह से मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रह वैसी ही राशियों में स्थित हो गए, जैसा रावण चाहता था। रावण ये बात जानता था कि शनि देव न्यायाधीश हैं और आयु के देवता हैं। शनि इतनी आसानी से रावण की बात नहीं मानेंगे। इसीलिए शनि को भी जबरदस्ती रावण ने ऐसी स्थिति में रखा, जिससे मेघनाद की आयु बढ़ जाए। कहते हैं मेघनाद के जन्म के समय शनि ने नजरें तिरछी कर ली। तिरछी नजरों के कारण ही मेघनाद की उम्र घट गई। जब रावण को ये बात मालूम हुई तो वो शनि पर आग बबूला हो उठा। क्रोध में रावण ने शनिदेव के पैरों पर गदा से प्रहार कर दिया। इसी प्रहार की वजह से शनिदेव का पांव खराब हो गया जिसके चलते शनि धीरे-धीरे चलने को मजबूर हैं। शनि की तिरछी नजरों के कारण ही मेघनाद की मृत्यु लक्ष्मण के हाथों कम उम्र में हुई। यही वजह है कि लंबी उम्र के लिए न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाएं भी शनि की पूजा करती हैं।
सूर्य भी हुए शनिदेव के प्रकोप का शिकार
शनि देव को न्याय देवता कहा जाता है। कहते हैं वो जान बूझ कर किसी के साथ अन्याय नहीं करते हैं। शास्त्रों के मुताबिक भगवान शंकर शनि देव के गुरु हैं। शास्त्रों ने इन्हें क्रूर ग्रह की संज्ञा दी है। ऐसी मान्यता है कि शनि देव मनुष्य को उसके पाप और बुरे कर्मों का दण्ड प्रदान करते हैं। कहते हैं पिता सूर्य के कहने पर भगवान शंकर ने शनि की उदंडता दूर करने के लिए उन्हें समझाने की कोशिश की पर शनि नहीं माने। उनकी मनमानी पर भगवान शंकर ने शनि को दंडित किया।
यहां भी है महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी
इक्कीसवीं सदी में महिलाओं को मंदिर के गर्भगृह तक जाने से रोकने में शनि शिंगनापुर अकेला नहीं है। ऐसे कई मंदिर अकेले महाराष्ट्र में आज भी मौजूद हैं। वैसे धार्मिक मान्यताओं के नाम पर स्त्रियों को पवित्र स्थान से दूर रखने में सभी धर्म एक जैसे हैं। मुंबई की हाजी अली दरगाह की मजार में महिलाओं को आज प्रवेश नहीं मिलता है। देश धार्मिक नियमों से नहीं संविधान से चलता है। संविधान की धारा 25 हर भारतीय को अपनी आस्था के मुताबिक घूमने और उसका प्रचार करने का अधिकार देती है। सभी भारतीयों से संविधान के मुताबिक चलने की उम्मीद की जाती है।
पतबौसी सत्र मंदिर
असम के पतबौसी सत्र मंदिर में पिछले 500 वर्षों से स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है। हालांकि इस बात की लिखित सूचना या जानकारी मंदिर या आसपास कहीं भी नहीं है। लेकिन परंपरागत ढंग से इसका पालन किया जा रहा है।
हाजी अली दरगाह
मुंबई की प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह के न्यासियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि एक पुरुष संत की दरगाह के बहुत करीब महिलाओं का प्रवेश इस्लाम में गंभीर गुनाह है। यहां प्रवेश के लिए भारतीय मुस्लिम महिलाओं के एक संघ ने कानून की शरण ली थी। लेकिन इजाजत नहीं मिली।
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद में महिलाएं प्रवेश तो कर सकती हैं, लेकिन वो मीनार के अंदर अकेले नहीं जा सकती हैं। यदि वो किसी पुरुष के साथ आई हों, तब भी ऐसा किया जा सकता है। मगरिब की नमाज के बाद यहां महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है।
अय्यप्पा का मंदिर
केरल के शबरीमाला में बना हुआ है भगवान अय्यप्पा का मंदिर। इस मंदिर में 10 वर्ष से लेकर 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। इस पाबंदी की वजह है मासिक चक्र। एक बार एक 35 वर्षीय महिला ने मंदिर में प्रवेश पा लिया था तो वहां के पंडितों ने पूरे मंदिर का शुद्धीकरण करवाया था।
कार्तिकेय मंदिर
राजस्थान के पुष्कर में बने कार्तिकेय मंदिर के बारे में प्रचलित है कि इसमें प्रवेश करने पर महिलाओं को आशीर्वाद के स्थान पर श्राप मिलता है। कहा जाता है कि जब कार्तिकेय इस स्थान पर तपस्या कर रहे थे, तब इंद्र उनसे भयभीत हो गए थे। उन्हें भय था कि कार्तिकेय के तप से खुश होकर भगवान ब्रह्मा उन्हें इंद्र से ज्यादा शक्तियां दे देंगे। इसलिए उन्होंने कार्तिकेय के तप को भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा। नाराज होकर कार्तिकेय ने अप्सराओं को पत्थर का बना दिया और श्राप दिया कि जो भी स्त्री इस स्थान पर आएगी, वह भी श्राप की भागी बन जाएगी। बस, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
रनकपुर जैन मंदिर
राजस्थान के पाली जिले के रनकपुर में बने जैन मंदिर में भी स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है। मासिक चक्र की वजह से उन्हें अशुद्ध माना जाता है और यही वजह है कि मंदिर में उनके जाने की मनाही है।
श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर
श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर में तो महिलाओं के प्रवेश को लेकर बड़ा अजीब कायदा बना हुआ है। यहां महिलाएं मंदिर परिसर में आकर पूजा कर सकती हैं, लेकिन गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। हालांकि ऐसा क्यों है, इसका जवाब मंदिर प्रबंधन के पास भी नहीं है।
महिलाओं को पूजा से रोकना संविधान का अपमान
इस वैज्ञानिक युग में महिलाओं को पूजा न करने देने का विरोध महिलाओं का अपमान नही ंतो और क्या कहेंगे। भगवान शिव भी अर्धनारीश्वर स्वरूप में दिखाए गए हैं। कुछ लोगों के हठ की वजह से शनि शिंगणापुर में महिलाओं के अधिकारों का हनन का मतलब महिलाओं के सशक्तीकरण पर पाबंदी लगाना जैसा है। महिलाओं को पूजा से रोकना संविधान का भी अपमान है। वेद और पुराण में इस तरह की रोक के बारे में कहीं नहीं लिखा है। कुछ पुरुष पुजारियों ने खुद ऐसे नियम बनाए हैं। ऐसे गलत नियमों को जिस तरह सती प्रथा को पांबद किया गया उसी तर्ज पर इसे भी तुरंत बदलने की जरुरत है। क्योंकि सनातन हिन्दू धर्म में पुरुष और महिला दोनों को समान रूप से मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार है मिला हुआ है। प्रस्तुत है सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी की पड़ताल
हो जो भी, चाहे वह केरल स्थित सबरीमाला के अयप्पा स्वामी मंदिर हो या फिर महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर, या फिर मुंबई का हाजी अली दरगाह महिलाओं के मंदिर या मजार में घुसने अथवा पूजा-प्रार्थना या जियारत पर रोक भारतीय संविधान के मुताबिक असंगत और गैरकानूनी है। माना कि एक पक्ष परंपरा की दुहाई देकर इसे यथावत बरकरार रखना चाहता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है जब देश में लगातार बढ़ती जागरुकता के चलते लोगबाग में बदलाव के मूड में है। पुरानी दकियानूसी व रुढीवादी मसलों व विचारों की आहुति देकर नए समाज का सृजन कर रहे है। महिलाएं घूंघट से निकलकर जेट विमान उड़ा रही है। सीमा पर अपने अदम्य साहस का परिचय दें दुश्मनों की छक्के छुड़ा रही है तो ऐसे में परंपरा के नाम पर कब तक उनकी उपेक्षा होती रहेगी। खासकर उस देश में जहां का गणतंत्र इस विचार पर टिका होता है कि शासन करने वाला तंत्र वर्ग, जाति, धर्म, लिंग से निरपेक्ष होकर सबकी समान भागीदारी हो, वहा महिलाओं को किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश करने से मनाही, दर्शाता है कि शासन तंत्र अभी भी लिंग निरपेक्ष व्यवहार नहीं कर पा रहा है। यहां शासन तंत्र से तात्पर्य उन सभी राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं से है जो न केवल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हम पर नियंत्रण स्थापित किए हुए हैं बल्कि भारतीय गणतंत्र के स्वस्थ संचालन के लिए भी उत्तरदायी हैं।
इस लिहाज से महिलाओं का मंदिर में प्रवेश हेतु जारी आंदोलन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह सीधे हमारी गणतंत्र की यात्रा से जुड़ा हुआ है। जहां तक परंपरा के नाम पर चीजों को सही ठहराने का अर्थ है तो वह सामाजिक विकास की स्वाभाविक गति को रोक देने के सिवाय कुछ भी नहीं हैं। हर उस परंपरा को त्याग देना उचित है जो आधुनिक कसौटी पर खरे न उतर रहे हों। ऐसा नहीं है कि ये कोई पहला अवसर होगा जब परंपरागत मान्यताओं से इतर परिवर्तन की बात हो रही है। इसके पहले भी सती प्रथा, बाल विवाह, देवदासी आदि सामाजिक बुराईयों व कुरीतियों के विरुद्ध न सिर्फ आवाज उठी है बल्कि कानून भी बने हैं और काफी लंबे समय से प्रचलित इन परंपराओं की तिलांजलि दी गयी तो फिर अब क्यों नहीं? यह अपने आप में बड़ा सवाल इसलिए भी है कि आज जब महिलाएं जीवन के विविध क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रही हैं तब यह खबर निराश करती है कि किसी मंदिर में प्रवेश के लिए महिलाओं को आंदोलन करने को विवश होना पड़ रहा है। जबकि हकीकत यह है कि शनि मंिदर हो या अन्य, मंदिरों में महिलाओं को पूजा का अधिकार है, ऐसा शास्त्रों में भी उल्लेखित है। जहां तक सफाई का मसला है तो मंदिरों के गर्भगृहों में महिलाओं तो क्या पुरुषों को भी मनाही है, इसीलिए प्रतिष्ठित मंदिरों में पूजा-आरती के लिए अलग से विद्वान पंडित रखे गए है, जो स्वच्छ होकर पूजन-अर्चन व मूर्ति का श्रृंगार आदि करते है।
यह तर्क तो कत्तई हजम करने योग्य नहीं है कि हनुमानजी की तरह शनिदेव भी रुद्र देवता है। इसलिए महिलाएं उनकी प्रतिमा को स्पर्श नहीं कर सकती हैं। अच्छा तो यह होता जिस तरह साई मंदिर, सिद्धिविनायक मंदिर, माता वैष्णव देवी, माता ज्वाला देवी सहित अन्य बड़े तीर्थस्थलों में मूर्ति छूने के बजाय दूर से ही श्रद्धाुल दर्शन-पूजन करते है उसी तरह शनि सिंगणापुर में भी व्यवस्था कर देनी चाहिए कि लोग अपने प्रसाद गर्भगृह में तैनात पुजारी को सौंप दें और वह उन्हें चढ़ाने या जलाभिषेक या तैलाभिषेक के बाद वापस कर दें। वैसे भी अब तो आमतौर पर किसी भी मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं ही नहीं, पुरुषों को भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता, तो फिर शनि शिंगणापुर में भी कुछ बदलाव होना ही चाहिए। इस तरह के बदलाव से महिला-पुरुष का भेद मिट जायेगा और लोग बिना विवाद या किसी पचड़े के आसानी से पूजन-अर्चन कर सकते है। या फिर अन्य शनि मंदिरों की तरह शनि शिंगणापुर मंिदर में भी शनिदेव के प्रतिरूप लौह प्रतिमा स्थापित कर दी जाय, जिसकी पूजा महिलाएं भी कर सके। ईश्वर के दर्शन में भेदभाव करना भारतीय संस्कृति नहीं है। महिलाओं को पूजा का हक मिलना ही चाहिए। वैसे भी न्याय के देवता शनिदेव को अन्याय कत्तई बर्दाश्त नहीं। इंसान ही नहीं देवलोक में भी शनिदेव न्याय देते हैं। तभी तो उनके प्रकोप से देवो के देव महादेव भी नहीं बच सके। अन्यायी रावण का हश्र सबकों मालूम है। मतलब साफ है ऐसी दकियानुसी मानसिकता व परंपरा के नाम पर महिलाओं के साथ भेदभाव किसी भी दशा में बर्दाश्त करने योग्य तो कत्तई नहीं है। दुख होता है कि ऐसे मसलों पर लोगों को एकमत हो जाना चाहिए लेकिन हम उसी दकियानूसी व रुढीवादी परंपरा की दुहाई दे रहे है जैसे सती प्रथा व बाल विवाह को खत्म कराने के लिए हुआ था। अब भी वक्त है तर्क-वितर्क करने के बजाय पूरा देश एकजुट होकर इस रोक के खिलाफ न सिर्फ आवाज बुलंद करें बल्कि यथाशीघ्र समाप्त हो तथा सबरीमाला मंदिर की तर्ज पर सभी धार्मिक स्थल समान रूप से सबके लिए पूजा-पाठ की इजाजत दी जाय।
साल 2015, 29 नवंबर दिन शनिवार को मंदिर के कर्ताधर्ता उस वक्त सन्न रह गए जब सीसीटीवी कैमरे में कैद एक तस्वीर देखी कि दोपहर तीन बजे पुणे की एक महिला शनि मंदिर के चबूतरे पर पहुंचकर तेल चढ़ाकर दर्शन-पूजन की। कहते हैं तेल चढ़ाने से शनि ग्रह से मुक्ति मिलती है। हालांकि जब तक सुरक्षा में तैनात सेवादारों को मामला समझ में आता, वो महिला वहां से निकल चुकी थी जबकि उस वक्त मंदिर में कई श्रद्धालु मौजूद थे। तस्वीरें देखने के बाद व्यवस्थापकों में खलबली मच गयी। महिला द्वारा शनि महाराज को तेल चढ़ाने पर पुजारियों ने मूर्ति को अपवित्र घोषित कर दिया। मंदिर प्रशासन ने 6 सेवादारों को निलंबित कर दिया और उसके बाद मूर्ति का शुद्धिकरण किया गया। मूर्ति को अपवित्र मानते हुए मंदिर प्रशासन ने दूध से प्रतिमा का अभिषेक किया। यही नहीं, पवित्रता के लिए पूरे मंदिर को धोया गया। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी महिला ने शनि देव की प्रतिमा का स्पर्श किया हो। विवाद को बढ़ता देख पूजा करने वाली महिला ने प्रशासन से ये कहते हुए माफी मांग ली कि उसे परंपरा की जानकारी नहीं थी। विडंबना की बात ये है कि जिस दिन ये घटना घटी थी उस दिन महान समाज सुधारक और क्रांतिकारी महात्मा फुले की पुण्यतिथि थी। महात्मा फुले ने दलितों और स्त्रियों के लिए ताउम्र संघर्ष किया था। शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं से होने वाले भेदभाव के खिलाफ करीब 15 साल पहले भी आंदोलन हुआ था। मंदिर की परंपरा के खिलाफ जानेमाने विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर ने मशहूर कलाकार डॉ श्रीराम लागू, पुष्पा भावे, और किसान नेता एनडी पाटिल के साथ मिल कर यहां सत्याग्रह किया था, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए थे और उन्होंने गिरफ्तारियां दी थीं। सैकड़ों सत्याग्रहियों के जत्थे ने पंढरपुर से शनि शिंगनापुर पैदल मार्च किया था। उस समय इस मार्च का दक्षिणपंथी संगठनों ने जबर्दस्त विरोध किया था और इस परंपरा को चुनौती देने के लिए पहुंचे सत्याग्रहियों को मंदिर में घुसने नहीं दिया था।