- संघ गिरोह के उन्माद व उत्पात की राजनीति और फर्जी राष्ट्रवाद के खिलाफ न्याय, धर्मनिपरेक्षता व सामाजिक बराबरी की लड़ाई की अगली कतार में रहा है वामपंथ
- जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार को अविलंब रिहा करो, पूर्व महासचिव चिंटू कुमारी को फंसाने की साजिश बंद करो
- तमाम छात्र नेताओं पर से देशद्रोह का फर्जी मुकदमा व निलंबन वापस लो
- राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद के तहत 23 फरवरी को बेगूसराय बंद, पटना में राजभवन मार्च और सिवान में विशाल प्रदर्शन
- बिहार विधानसभा से जेएनयू प्रकरण पर भाजपा द्वारा फैलाये जा रहे उन्माद के खिलाफ प्रस्ताव लेने का होगा प्रयास
पटना 22 फरवरी 2016, संघ परिवार और मोदी सरकार द्वारा कैंपसों की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की आजादी पर लगातार किया जा रहा हमला बेहद चिंताजनक है. जेएनयू प्रकरण में जिस तरह से वामपंथी छात्र नेताओं को निशाना बनाया गया और उसकी आड़ में पूरे देश में अंधराष्ट्रवाद पैदा करने की कोशिशें की गयीं, उसने देश के लोकतंात्रिक जनमत को गहरी चिंता में डाल दिया है. वाम दल संघ परिवार , केंद्र की मोदी सरकार और मीडिया के एक हिस्से द्वारा उन्माद फैलाने और जेएनयू व वामपंथियों को बदनाम करने की कोशिशों की तीव्र भत्र्सना करती है. देश की अमन व लोकतंत्र पसंद जनता को भाजपा व मोदी सरकार की हकीकत पता है.
जेएनयू पर संघी गिरोह का खास निशाना रहा है क्योंकि वह लंबे अर्से से वामपंथी विचारधारा का अभेद्य दुर्ग बना रहा है. लेकिन इसके पहले शैक्षणिक संस्थानों को बर्बाद करने और उसके सांप्रदायिककरण के कई उदाहरण हैं. देश में जब से भाजपा की सरकार आई है, विश्वविद्यालयों के लोकतांत्रिक-वैचारिक माहौल पर हमला किया जा रहा है. न केवल कैंपसों पर हमले किये जा रहे बल्कि प्रतिरोध की हर आवाजा को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं और प्रतिरोधी स्वर को देशद्रोही बताया जा रहा है. नरेन्द्र दाभोलकर, गोविंद पांसरे, एमएम कलबुर्गी आदि वैज्ञानिक-सामाजिक कार्यकत्र्ताओं की तो हत्या तक हो चुकी है. समाज का हर वर्ग भय के माहौल में जी रहा है.
एफटीआईआई में संघ समर्थक गजेन्द्र चैहान की नियुक्ति के खिलाफ चले छात्र आंदोलन का सवाल हो या फिर चेन्नई में अंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल को राष्ट्रद्रोही घोषित करके भंग करने का, मोदी सरकार हर कदम पर अपना सांप्रदायिक-फासीवादी चऱित्र दिखलाती रही है. हैदराबाद विश्वविद्यालय में ‘मुजफ्फरनगर बाकी है’ जैसी फिल्मों का प्रदर्शन व याकूब मेमन की फांसी का विरोध करने वाले दलित छात्रों को उत्पीडि़त किया गया, उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया गया. भाजपा के दो मंत्रियों के दबाव में यह सारी कार्रवाईयां की गयी थीं. नतीजतन रोहित वेमुला आत्महत्या को मजबूर हुआ.
इस बार संघी गिरोह ने उस जेएनयू को अपने हमले का निशाना बनाया है, जो हालिया हैदराबाद विश्वविद्यालय में भाजपा की साजिश के शिकार दलित शोध छात्र रोहित वेमुला के न्याय आंदोलन से लेकर अन्य छात्र आंदोलनों का केंद्र रहा है. केंद्र की भाजपा सरकार, आरएसएस, एबीवीपी और दिल्ली पुलिस जिस तरह से 9 फरवरी की घटना को लेकर जेएनयू को ‘देशद्रोहियों’ का अड्डा बताने पर तुल गयी, वह बेहद खतरनाक इरादों को जाहिर करता है. देशद्रोह के आरोप में आनन-फानन में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी, कोर्ट में पेशी के दौरान उनसे लगातार मारपीट और आइसा समेत अन्य वामपंथी छात्र संगठनों के कई नेताओं पर देशद्रोह के मुकदमे व कैंपस से निलंबन ने संघियों की असली मंशा जाहिर कर दी है. देशप्रेम के नाम पर चालू उपद्रव के खिलाफ देश का छात्र समुदाय, बुद्धिजीवी वर्ग, सांस्कृतिक संगठन लोकतान्त्रिक प्रक्रिया और अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थन में खुलकर लोग सामने आ रहे हैं. यहां तक कि एबीवीपी में भी विद्रोह शुरू हो चुका है.
कन्हैया कुमार, जेएनयूएसयू अध्यक्ष (एआइएसएफ) गिरफ्तार हैं. उनके अलावा रामा नागा, जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष (आइसा) आशुतोष, जेएनयूएसयू पूर्व अध्यक्ष (आइसा) अनंत प्रकाश, पूर्व उपाध्यक्ष, जेएनयूएसयू (आइसा) श्वेता राज, काउंसिलर, जेएनयूएसयू (आइसा) और उमर खालिद, अनिर्बाण भट्टाचार्य व ऐश्वर्या (छात्रा, जेएनयू) पर देशद्रोह का मुकदमा ठोक दिया गया और जेएनयू से निलंबित कर दिया गया है. वहीं, चिंटू कुमारी, पूर्व महासचिव, जेएनयूएसयू (आइसा) सहित अन्य छात्र नेताओं को फंसाने की साजिश कर रही है. इन छात्र नेताओं में अधिकांश दलित व पिछड़ी पृष्ठभूमि से आते हैं. इससे जाहिर होता है कि मोदी सरकार दलितों, समाज के शोषित तबके व वामपंथी कार्यकत्र्ताओं के खिलाफ उन्मादपूर्ण लोकतंत्रविरोधी कार्रवाइयों पर उतर गयी है. यह अघोषित आपातकाल के समान है.
आखिर वह कौन सी चीज है जिसने मोदी सरकार को विश्वविद्यालयों के खिलाफ एकतरफा युद्ध की स्थिति में उतार दिया है. लंबे समय से संघ गिरोह की आंख की किरकरी बने जेएनयू पर हो रहे हमले को हम अलग-थलग काट कर नहीं देख सकते. यह देश भर में अलग-अलग समुदायों पर बढ़ रहे हमले की निरंतरता ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि भाजपा द्वारा देश के दलितों, मजदूरों, किसानों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों पर जो हमले किये जा रहे थे, वे अब देश के सर्वाच्च शिक्षण संस्थानों तक पहुंच गये हैं. रोहित वेमुला परिघटना पर पूरी तरह बेनकाब संघ गिरोह ने बड़ी चालाकी से इस बार ‘देशभक्ति’ की आड़ में लोकतांत्रिक आवाज को कुचलने का प्रयास किया है और खासकर वामपंथ को निशाना बनाया है. संघियों के हिंदूवादी राष्ट्रवाद के खिलाफ देश में धर्मनिरपेक्षता, बराबरी और सामाजिक न्याय के संघर्ष की लड़ाई की अगली कतार में हमेशा वामपंथी रहे हैं.
इस उन्माद व उत्पात की राजनीति के खिलाफ पूरा देश लड़ रहा है. वाम दलों ने भी राष्ट्रीय स्तर पर तय किया है कि आगामी 23-25 फरवरी को पूरे देश में भाजपा सरकार द्वारा लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और संवैधानिक प्रक्रिया पर हमले के खिलाफ प्रतिरोध किया जाएगा. इसी के तहत 23 फरवरी को पूरे बिहार में कार्यक्रम होंगे. वाम दलों ने 23 फरवरी को बेगूसराय बंद का आह्वान किया है. पटना में राजभवन मार्च होगा और सिवान में विशाल प्रदर्शन होगा, जिसमें माले के महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य भाग लेंगे. जेएनयूएसयू अध्यक्ष की अविलंब रिहाई, सभी छात्र नेताओं पर से देशद्रोह के मुकदमे की वापसी, रोहित वेमुला की मौत के जिम्मेवार भाजपा के दोनों केंद्रीय मंत्रियों की बर्खास्ती तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी. बिहार विधानसभा के आगामी सत्र में जेएनयू प्रकरण पर भाजपा द्वारा फैलाये जा रहे उन्माद के खिलाफ प्रस्ताव लेने के भी प्रयास किया जाएगा.