अरे नहीं भई। हमारा इशारा सल्लू मियां की ओर बिलकुल भी नहीं। दरअसल हम बात कर रहे हैं राजनीति के उन चेहरों की जिन्हें जनता दबंग नेता के तौर पर जानती, पहचानती है। घर में घड़ियाल पाले हुए उन फलां फलां को जानते हो, या फिर उनको जिन्होंने विधायक को मरवा दिया था, दरअसल आज हम जिन दबंगों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं उनके जिक्र के साथ ही ये किस्से भी काफी मशहूर हैं। बहरहाल कई बार इनकी एंट्री होते ही, इनका लाव-लश्कर देखकर लोगों के जहन में खुद ब खुद गाने की लिरिक्स आने लगती हैं कि....हुड़...हुड़ दबंग, दबंग, दबंग। ये दबंग असल में खौफ का दूसरा नाम हैं। पर राजनीति ने सब पवित्तर कर देंगे टाइप के डायलॉग से इनके तमाम कारनामों को दबा, छिपा रखा है। आईये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर कौन हैं वो ''दबंग''
बृजेश सिंह
होनहार लड़के के तौर पर अपना सफर शुरू करने वाले बृजेश सिंह अपने पिता के कत्ल का बदला लेने के इरादे से जरायम की दुनिया में दाखिल हो गए। अपने पिता के कत्ल में शामिल सभी लोगों को मौत के घाट उतार कर गिरफ्तार हो गए। माना जाता है कि बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच भी काफी तगड़ी अदावत चलती है। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की शरण में बृजेश सिंह के जाने के पीछे वजह भी कहीं न कहीं मुख्तार अंसारी ही थे। बाद में कृष्णानंद राय की हत्या करा दी गई। जिसका आरोप मुख्तार पर लगा। बृजेश सिंह ने राजनीति को अपने आगे के रास्ते के तौर पर चुन लिया। फिलवक्त वे एमएलसी हैं।
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया
उत्तर प्रदेश में पुलिस उपाधीक्षक ज़िया उल-हक़ की हत्या के बाद राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया को अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा। हालांकि राजा भैया सभी आरोपों से इंकार करते हैं। राजा भैया को अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। पुलिस रिकॉर्ड पर यदि गौर किया जाए तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में कुंडा क़स्बे के निवासी राजा भैया का अपराध की दुनिया से पुराना संबंध है। भारतीय जनता पार्टी के एक असंतुष्ट विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उनके ख़िलाफ़ अपहरण के साथ यातनाएं देने की शिकायत दर्ज की। तब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं। सरकार के आदेश पर पुलिस अधिकारी आर एस पांडेय के नेतृत्व में राजा भैया को तड़के गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर आतंकवाद विरोधी क़ानून (पोटा) लगाया गया। लेकिन 2003 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने राज्य विधानसभा चुनाव जीत लिया और सरकार में आते ही राजा भैया के ख़िलाफ़ पोटा के तहत लगाए गए आरोप वापिस ले लिए। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी राजा भैया को रिहा करने से इंकार कर दिया। लेकिन राजा भैया को गिरफ़्तार करने वाले पुलिस अधिकारी आरएस पांडेय ने शिकायत दर्ज करवाई कि राजा भैया उन्हें परेशान कर रहे हैं। कुछ समय बाद आर एस पांडेय एक सड़क दुर्घटना में मारे गए।
मोहम्मद शहाबुद्दीन
बिहार के सिवान ज़िले में मोहम्मद शहाबुद्दीन ने अपना दबदबा बना रखा सिवान लोकसभा क्षेत्र से चार बार राष्ट्रीय जनता दल के सांसद रह चुके शहाबुद्दीन को भाकपा-माले कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता की हत्या के इरादे से अपहरण करने के एक मामले में सज़ा हुई। शहाबुद्दीन के खिलाफ पहली बार 1986 में हुसैनगंज थाने में आपराधिक केस दायर हुआ, जिसके बाद उनके खिलाफ लगातार मामले दर्ज होते चले गए। इस वजह से वे देश की क्रिमिनल हिस्ट्रीशीटर की लिस्ट में शामिल हो गए। 1990 में शहाबुद्दीन लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल के युवा मोर्चा में शामिल हो गए। इसके बाद वे लालू के करीब आते गए। मुसलमान वोटरों पर प्रभाव की वजह से राजद में उनकी तूती बोलती थी। सीवान विधानसभा सीट से 1990 और 1995 में जीत हासिल कर वे विधायक बने।16 मार्च 2001 की तारीख टर्निंग प्वाइंट रहा जब शहाबुद्दीन ने राजद नेता मनोज कुमार की गिरफ्तारी के दौरान गई पुलिस अफसर को थप्पड़ मारा था। इस घटना से बिहार पुलिस आक्रोशित हो उठी, पुलिस ने तुरंत राज्य टास्क फोर्स और यूपी पुलिस के साथ मिलकर शहाबुद्दीन के गांव और घर को घेर लिया। जमकर झड़प हुई। गोलियां चलीं, जिसमें पुलिस वाले सहित कई लोग मारे गए। बाद में आपराधिक मामले बढ़ते देख लालू प्रसाद यादव ने उनसे किनारा कर लिया।
मुख़्तार अंसारी
उत्तर प्रदेश के माफ़िया राजनेताओं में मुख़्तार अंसारी सिरमौर माने जाते हैं। माफिया बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की अदावत बेहद मशहूर है। अंसारी के खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती सहित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। भारतीय जनता पार्टी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के सिलसिले में उन्हें दिसंबर 2005 में उन्हें जेल में डाला गया था, तब से वो बाहर नहीं आए हैं। जेल में रहते हुए ही उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। मुख़्तार अंसारी पर आरोप है कि वो ग़ाज़ीपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में सैकड़ों करोड़ रुपए के सरकारी ठेके नियंत्रित करते हैं। एक दौर में वो बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के बहुत क़रीब रहे और बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव भी जीते पर 2010 में मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद मुख्तार ने कौमी एकता पार्टी बनाई और 2012 का चुनाव जेल में रहते हुए जीत लिया।
अतीक़ अहमद
समाजवादी पार्टी से जुड़े अतीक अहमद 2004 से 2009 तक फूलपुर (इलाहाबाद) से लोकसभा सदस्य रहे। उन पर हत्या से लेकर फिरौती और मारपीट के लगभग 35 मुक़दमें चल रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने उन्हें 2008 में निकाल दिया थी, जिसके बाद उन्होंने 2009 का चुनाव ‘अपना दल’ के टिकट से लड़ा पर हार गए। इलाहाबाद में उन्हें माफ़िया सरगना के तौर पर जाना जाता है। बीते कुछ दिनों पहले अतीक अहमद समेत 14 लोगों पर धूमनगंज इलाके में मां-बेटे पर गोलाबारी करने के संदर्भ में शिकायत दर्ज कराई गई। जानकारी की मानें तो यह विवाद काफी लंबे वक्त से चल रहा है।
डीपी यादव
दो बार उत्तर प्रदेश विधानसभा और एक बार सांसद रह चुके डीपी यादव को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के डॉन के नाम से जाना जाता है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक़ डीपी यादव ने शराब बेचने के धंधे से अपराध की दुनिया में क़दम रखा। उन्होंने समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव के साथ नज़दीकियाँ बढ़ाईं और 1989 में विधानसभा के लिए चुन लिए गए। सन 2004 में वो पाला बदल कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। अटल बिहारी वाजपेयी उस दौर में प्रधानमंत्री थे और उन्होंने डीपी यादव को राज्यसभा में मनोनीत कर लिया, पर विवाद पैदा हो जाने के बाद पार्टी ने उन्हें निकाल बाहर किया। डीपी यादव ने 2007 में राष्ट्रीय परिवर्तन पार्टी बनाई, जिसकी ओर से वो और उनकी पत्नी विधायक चुन ली गईं। बाद में वो बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए परंतु विधानसभा चुनाव हार गए। उत्तर प्रदेश में 2012 के चुनाव से पहले डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी से संबंध तोड़ लिए और उनकी अपनी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया।