देश का सबसे बड़ा सूबा यूपी में इन दिनों माफिया जनप्रतिनिधियों समेत पुलिसिया गुंडागर्दी चरम पर है। कुछ पुलिसकर्मी व बाहुबलि जनप्रतिनिधि तो पूरी तरह माफिया हो चुके है। सच्ची घटनाओं, शासन-प्रशासन के काले कारनामों व बाहुबलि जनप्रतिनिधियों का काला चिठ्ठा कुरेदने पर माफिया हो चुके ये पुलिसकर्मियों का न सिर्फ फर्जी मुकदमें दर्ज कर उनका उत्पीड़न कर रहे है बल्कि जमीन विवाद हो या फिर पड़ोसी से झगड़ा, या फिर मारपीट, या फिर महिला से छेड़छाड़ और दुष्कर्म बगैर पेसे लिए रपट ही नहीं लिखते। बावजूद इसके भदोही में बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा, जिस पर बालू खनन से लेकर लूट, हत्या, डकैती तक के मुकदमें दर्ज है, की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उसकी महिमा में जमकर कसींदे पढ़े
पुरानी गलतियों को दरकिनार अपराध व भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का भदोही में अपराध, माफिया व बाहुबलि प्रेम उस वक्त जगजाहिर हो गया जब वह विधायक विजय मिश्रा की कसीदें पढ़ते हुए मायावती सरकार की जमकर खिचाई की। कहा, विजय मिश्रा पर जो जुर्म हुए वह ब्रतानिया हुकूमत को भी मात देने वाले है। जबकि सच तो यह है बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा के उपर 65 से अधिक संगीन मामले न सिर्फ भदोही में दर्ज है बल्कि इससे अधिक अन्य पड़ोसी जनपदों की पुलिस फाइलों में वांछित भी है। चाहे वह इलाहाबाद के विधायक रहे राजू पाल की हत्या का मसला रहा हो या भदोही सांसद रहे गोरखनाथ पांडेय के भाई रामेश्वर पांडेय की हत्या या अन्य लूट, डकैती, चोरी की वारदातों के आरोप में ही मायावती सरकार में जेल में रहा। यह अलग बात है कि इन मुकदमों में विजय मिश्रा सत्ता के धौंस व माफियागिरी के बूते सभी मुकदमों में अपने को निर्दोष बताने में सफल रहा, लेकिन जनता उसके काले कारनामों से लेकर अवैध बालू खनन व सरकारी योजनाओं में बंदरबांट कर कमाई गयी करोड़ों-अरबों की काली कमाई से रग-रग वाकिफ है। इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि भदोही में लोकसभा चुनाव के दौरान उसकी बेटी सीमा मिश्रा को न सिर्फ जनता ने हरा दिया, बल्कि हाल के ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत व एमएलसी चुनावी में जो धांधली की है उसका भी हिसाब चुकता करने के लिए 2017 का बेसब्री से जनता इंतजार कर रही है।
देखा जाय तो सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव या यूं कहें अखिलेश यादव समेत पूरे कुनबे की बुनियाद ही गुंडों, माफियाओं, डकैतो, चोरों, जेबकतरों से लेकर रेत खनन, पत्थर खनन, जमीन माफियाओं सहित भ्रष्ट अधिकारियों की काली कमाई पर टिकी है। खास बात यह है कि अपराध जगत के इन आकाओं के लिए ये माफिया न सिर्फ इनके लिए धन कुबेर है बल्कि येनकेन प्रकारेण वोट बैंक जुगाड़ने का काम भी करते है। इसके लिए इन माफियाओं व बाहुबलियों को अपने-अपने इलाके में चाहे दंगा कराना हो या सच्चाई बया करने वाले पत्रकार हो या समाजसेवी हो या आम आदमी ही क्यों न हो, पर फर्जी मुकदमा कराना, उनकी घर-गृहस्थी लूटवाना या हत्या कराना या जिंदा जलाकर मार डालना, जिंदा जलने के लिए प्रेरित करना से लेकर हर तरह के प्रताड़ना आईएएस अमृत त्रिपाठी, आईपीएस अशोक शुक्ला व कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे भ्रष्ट पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से कराने का काम करते है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि एक-दो नहीं 567 से भी अधिक ऐसे मामले है, जिसमें सरकार के मंत्री, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने अपने-अपने इलाके में जमकर तांडव किया है। इसमें दंगा कराने से लेकर लूट, हत्या, चोरी-डकैती जैसे संगीन मामले तो है ही बलातकार की भी दर्जनों वारदाते है। मतलब साफ है इस सरकार में न तो आदमी सुरक्षित है ना ही किसी की जान।
हाल में भदोही में हुए दंगे में एकतरफा कार्रवाई, निर्दोष युवकों का उत्पीड़न, हजारों निर्दोषों पर दर्ज फर्जी मुकदमें, जबरन जमीन कब्जा आदि ऐसी घटनाएं है जो अखिलेश सरकार र सवालिया निशान लगाने के लिए काफी है। ताजा मामला बुधवार का है जब भदोही की सभा में एक तरफ मुख्यमंत्री विजय मिश्रा की कसीदें पढ़ रहे थे, तो उन्हीं के सामने भदोही के मसहूर कालीन निर्यातक एवं मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे गुलाम सर्फुद्दीन अंसारी उर्फ गुलामन को देख लेने की धमकी दे डाली। जहां तक भदोही में विकास का सवाल है तो वह सिर्फ हवा-हवाई से ज्यादा कुछ नहीं है और जो ओवरब्रिज, मार्ट, सड़के सहित जो विकास हो भी रहे है उसकी गुणवत्ता यह है कि बनने के पहले ही टूटने लगे है। करोड़ों रुपये की लगात से बन रहा कालीन मार्ट में बंदरबांट कितना हुआ है इसकी जानकारी भदोही के बच्चे-बच्चे तक को है लेकिन अखिलेश को नहीं। जबकि सच यह है कि बाहुबलि विजय मिश्रा के दौलत के आगे अखिलेश ही नहीं बल्कि उनका पूरा कुनबा नतमस्तक है। उसके द्वारा की गयी सौ खून कुनबे के लिए माफ है, क्योंकि वह सोने की मुर्गी जो है।
भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, में पूरी-पूरी रात रेत खनन हो रहा है। गंगा किनारे रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि यह अवैध बालू खनन तीन साल से चल रहा है। पोकलैंड मशीनें खुदाई में लगी है। रात को यह खनन होता है, जबकि सुबह होते ही बंद हो जाता है। इसकी शिकायत कई बार हो चुकी है, लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं होती है। आरोप है कि यूपी में चचा, बाप, भतीज की सरपरस्ती में माफिया व बाहुबलि विधायकों का अवैध खनन का ये धंधा तेजी फल फूल रहा है। लिहाजा खनन माफियाओं को स्थानीय प्रशसान का कोई खौफ नहीं है। ये लोग अवैध खनन का विरोध करने वालों को जान से मारने तक की धमकी देने से बाज नहीं आते। कहने को इलाके में सरकार ने बालू खनन का ठेका दिया है। लेकिन यह ठेका भी एक ही कंपनी या व्यक्ति को लगातार मिल रहा है। भदोही सहित अन्य जिलों में सैकड़ों स्थल ऐसे हैं जहां से बड़े पैमाने पर अवैध रूप से बालू खनन किया जाता है। कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार हद से ज्यादा अवैध खनन किया गया है। उदाहरण के लिए मिर्जापुर में 6,000 मीट्रिक टन खनन करने की इजाजत थी जबकि खनन करने वाले लीज होल्डर ने 3,10,500 मीट्रिक टन खनन कर डाला। खनन में लगे माफियाओं ने भदोही, बनारस, बाराबंकी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र और मथुरा में वर्ष 2007 के बाद से लाइसेंस को दोबारा रिन्यूवल तक नहीं कराया था। इसके अलावा राज्य स्तर से अवैध खनन करने वाले लोगों की जांच को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कई इलाकों में बिना वन विभाग की एनओसी के ही खनन के लिए लाइसेंस दे दिया गया।
दरअसल, इस कारोबार को रोकने का जिम्मा खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति के पास है। और इन पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की पूरी कृपा है। लिहाजा कोई कार्रवाई नहीं होती। जब बसपा सरकार में मायावती की पुलिस ने मुख्यमंत्री के चाचा शिवपाल सहित कई कार्यकर्ताओं को पीटा था तब अखिलेश यादव ने कहा था आन्दोलनों को पुलिस द्वारा कुचलना अलोकतांत्रिक है। तो सवाल यह है कि आज जब उनकी पुलिस फर्जी रपट लिखकर घर-गृहस्थी लूट या लूटवा रही है, पैसे लेकर हत्या करवा रही है, बलातकारियों व माफियाओं को संरक्षण दे रही है तो क्या यह लोकतांत्रिक है। कत्तई नहीं आप तो सीधे-सीधे आईएएस अमृत त्रिपाठी, आईपीएस अशोक शुक्ला, कोतवाल संजयनाथ, अनिल यादव से लेकर करोड़ी यादव सिंह सहित हर भ्रष्टाचारी के साथ खड़े होकर उसकी बचत करने की जिम्मेदारी ले रखी है। इंसाफ मांगते पीड़ितों व नौकरी मांगते युवाओं पर सरकारी गुंडो लाठिया बरसवा रहे है। चिंता की कोई बात नहीं जिस तरह युवाओं ने लोकसभा चुनाव में ठेंगा दिखाया ठीक उसी तरह 2017 में भी तैयारी है। ये आक्रोशित युवा धृतराष्ट मुलायम के बेटे को बता देंगे कि पुलिसिया गुंडागर्दी क्या होती है।
हाल के दिनों में जिस तरह एक के बाद एक जघन्य अपराध हो रहे है। महिलाओं को थाने में कानून के रक्षकों द्वारा जलाया जा रहा है। अलीगढ़, लखनऊ, बनारस, जौनपुर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, रामपुर, आजमगढ़ आदि इलाकों में पुलिसवालों की दरिंदगी को लेकर जोरदार बवाल मचा हुआ है। अपराधी बेलगाम हो गए हैं। हत्या, लूट, बलात्कार एवं अपहरण उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि मुख्यमंत्री का अब पुलिस प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रहा। नतीजा यूपी की जनता को जंगलराज का सामना करना पड़ रहा है। इसकी बड़ी वजह है लूट, हत्या, डकैती सहित दर्जनों मामलों का आरोपी इंस्पेक्टर संजयनाथ तिवारी जैसे पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को खुलेआम थानों की बोली लगाकर तैनाती की जा रही हैं। ये लूटेरा इंस्पेक्टर अपराध नियंत्रण कम संपत्ति बटोरने में ज्यादा लगे है। इनका अपराध व अपराधियों से कोई लेना देना नहीं है। थाना प्रभारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग में पैसे का लेन देन चल रहा है। अगर अखिलेश के पिछले दस महीनों के शासन पर नजर डालें तो राज्य में इस बीच कई सांप्रदायिक दंगे देख चुका है, डकैतों के पुराने गिरोह फिर से अपना सर उठा रहे हैं, लगातार हो रहे बलात्कार या शारीरिक उत्पीड़न की खबरों से भी सरकार की खासी किरकिरी हुई है। राज्य में हो रही लगातार ऐसी घटनाएं यह बताती हैं कि सूबे का नेतृत्व प्रभावशाली व्यक्ति के हाथ में नहीं है। बिगड़ती कानून-व्यवस्था अखिलेश यादव की अयोग्यता दर्शाती है। कहा जा सकता है तमाम प्रयासो के बावजूद अगर यूपी का विकास नहीं हो पा रहा है तो उसके लिए भ्रष्ट नौकरशाह ही है, जो चंद टुकड़ों की खातिर अपनी जमीर ताख पर रखकर सत्ताधारी नेताओं की कठपुतली बनकर न सिर्फ उनकी आड़ में लाखों-करोड़ो डकार रहे है बल्कि माफिया व बाहुबलि जनप्रतिनिधियों से मिलकर जुझारु लोगों फर्जी मुकदमें थोपकर निरीह जनता के साथ-साथ बर्बाद किसानों व कल्याणकारी योजनाओं को खूलेआम लूट रहे है। मतलब साफ है पुलिस, थाना, सत्ताधारी और पार्टी कार्यकर्ता मिलकर यूपी को लूट रहे है। कानून-व्यवस्था लगातार पटरी से उतरती जा रही है।
बाराबंकी में जिस तरह पत्रकार की मां के साथ रेप में नाकाम पुलिस वालों ने जिंदा जलाकर मार डाला, वह बेहद शर्मनाक है। राजधानी में हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बदमाशों के सामने लखनऊ पुलिस नतमस्तक हो चुकी है। आशियाना थानाक्षेत्र का है। यहां के सेक्टर-एल में बदमाशों ने मां-बेटे की धारदार हथियार से गला रेतकर हत्या कर दी। इसके बाद वे फरार हो गए। इससे पहले हजरतगंज में बुजुर्ग महिला की लूटपाट के दौरान हत्या कर दी गई थी। इस घटना के साथ ही लखनऊ में हत्या की 10 घटनाएं हो चुकी हैं। कानपुर में सपा नेता के घर सेक्स रैकेट का पकड़ा जाना भी शर्मनाक है। कहा जा सकता है बेशक, उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार चीर्वाक के सिद्धांतों पर चल रही है। ‘यावत जीवेत, सुखम जीवेत। ऋणम कृत्वा, घृतम पीवेत’ का चार्वाक का सिद्धांत प्रदेश की सपा सरकार ने अपना लिया है। जब तक जिएंगे सुख से जिएंगे, कर्ज लेंगे और घी पिएंगे के चार्वाक के इस सिद्धांत को अमल में लाते हुए चार साल में उत्तर प्रदेश 2.66 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूब चुका है। दुखद यह है कि इस कर्ज पर यह बीमारु राज्य 18 हजार 636 करोड़ 80 लाख रुपए का ब्याज भी भर रहा है। बावजूद इसके सरकार प्रदेश में विकास का दावा करते नहीं अघा रही हैं। प्रदेश के 42 फीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, बेमौसम बारिश के तबाही से परेशान किसानों को दी जाने वाली राहत चेक में बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायतें सामने आई है, सड़कों के निर्माण का हाल यह है कि बनने के 3 माह में ही उखड़ जा रहे है। कल्याणकारी योजनाओं की माफिया जनप्रतिनिधि व अधिकारी खूलेआम बंदरबांट कर रहे है। फर्जी मुकदमों की बाढ़ आ गयी है, लेकिन सरकारी दावे विकास की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश में हैं।
सपा के शासन के दौरान 180 से ज्यादा दंगे हुएं। देखा जाय तो उच्चतम न्यायालय ने मुजफ्फरनगर और इसके आसपास के इलाकों में सांप्रदायिक दंगे रोकने में उत्तरप्रदेश की अखिलेश यादव सरकार की नाकामी को जिम्मेदार ठहराया है। यदि राज्य सरकार की इन एजेंसियों को जमीनी हकीकत की जानकारी होती तो इन दंगों को रोका जा सकता था। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने लोगों के जीने के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने में गंभीर चूक की है। राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह लोगों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करे। न्यायालय के फैसले के बाद उन्हें सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया है। महिला आयोग के आंकड़े बताते हैं कि मायावती के अंतिम ढाई वर्ष के कार्यकाल (15 सितंबर 2009 से 14 मार्च 2012) में महिला आयोग के पास महिला उत्पीड़न के 55301 मामले पंहुचे जो अखिलेश के आरंभिक ढाई वर्ष के कार्यकाल (15 मार्च 2012 से 14 सितंबर 2014) में बढ़कर 78483 हो गए। माफियाओं व भ्रष्ट अधिकारियों के बूते चल रही सपा सरकार में आम गरीब जनता को न्याय मिल पाना सीधी उंगली घी निकालने के बराबर हो गया है। खासकर उन मामलों में जिसमें कोतवाल संजयनाथ तिवारी, श्रीप्रकाश राय, आईएएस अमृत त्रिपाठी, आईपीएस अशोक शुक्ला जैसे लूटेरा व भ्रष्ट पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी आरोपित है। इन भ्रष्ट अधिकारियों के उत्पीड़न के शिकार लोगों से बातचीत में तो यही बात सामने आई है कि ये अपनी बचत के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते है। खासकर उस वक्त जब इन भ्रष्ट अधिकारियों व विधायकों की काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा सरकार के मुखिया तक पहुंच रहा हो। समझ सकते है जांच में इनका कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला। शायद यही वजह भी है कि तमाम आरोपों के बाद भी इनकी पोस्टिंग मलाईदार थानों व जिलों में होती हैं और आरोप लगने पर काईवाई तो दूर पूरी सरकार इनके बचाव में खड़ी नजर आती है।
इसके पहले भी एक-दो नहीं 567 से भी अधिक ऐसे मामले है, जिसमें सरकार के मंत्री, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने अपने-अपने इलाके में जमकर तांडव किया है। इसमें दंगा कराने से लेकर लूट, हत्या, चोरी-डकैती जैसे संगीन मामले तो है ही बलातकार की भी दर्जनों वारदाते है। कहा जा सकता है इस सरकार में न तो आदमी सुरक्षित है ना ही किसी की जान। कभी सच लिखने पर पत्रकार जला दिया जाता है तो कभी टूल टैक्स मांगने पर कर्मी को गोली मार दी जाती है तो कभी रंगदारी न देने पर व्यापारी की गोली मारकर हत्या व लूट कर ली जाती है। भ्रष्ट मंत्रियों के काले कारनामे बढ़ते जा रहे हैं और सरकार मौन है। रोजाना बलात्कार की 10, लूट 15, हत्या 16-20 घटनाएं सामने आ रही है। ताजुब्बत इस बात है कि कानून के रखवाले पुलिस वाले ही आम आदमियों के भक्षक बन गए है। कानून का स्थान सपा के माफिया जनप्रतिनिधियों के आगे पूरी तरह से दम तोड़ देती है। अपराधियों व अवांछनीय तत्वों का जैसे राज छा गया है। गोली चलाना मामूली बात हो गयी है। रंजिश में हत्या राजनीति के चलते हत्या हो रही है। ताबड़तोड़ छिनैती, हत्या व लूट की वारदाताओं से व्यापारी दहशत में है और शाम ढलते ही दुकान की शटर गिरा देते है। खासकर महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध। अवैध खनन, जमीनों पर अवैध कब्जे, फर्जी मुकदमों की तो मानों बाढ़ आ सी गयी है। हालात यहां तक बिगड़ चुके है कि लोग अब तो यूपी का नाम ही बदल डाले है कोई इसे दबंगों का प्रदेश बता रहा तो कोई गुंडाराज। यूपी के ये नाम अब हर सख्श की जुबा पर तो है ही पुलिस-अपराधी गठजोड़ का आरोप भी चर्चा-ए-खास है। प्रदेश में सारी व्यवस्थाएं चरमरा गई है। लाॅ एंड आर्डर नहीं रह गया है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013 में पहली जनवरी से 31 मार्च तक बलात्कार के 1199 मुकदमें दर्ज हुए, जबकि वर्ष 2014 में 2584 मुकदमें पंजीकृत हुए। वर्ष 2015 में अब तक 1267 मुकदमें दर्ज हो चुके है। वर्ष 2014 के शुरुवाती 5 महीनों में सूबे में हत्या के 1961 अभियोग दर्ज हुए जबकि इस साल 2057 मुकदमें दर्ज हुए।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के ताजा आंकड़ों मुताबिक साल 2014 में यूपी में रेप के 3467 केस दर्ज है। जबकि गैंगेरेप के मामले में देश में यूपी सबसे उपर है। यूपी में 2014 में गैंगरेप के 573 मामले सामने आएं है। एक साल में बलातकार कोशिश के 324 केस दर्ज कराएं गए। बच्चियों के साथ रेप के मामले में यह आंकड़ा 1538 तक पहुंच गया है। जबकि 2014 में देशभर में बलातकार के कुल 36735 केस दर्ज है। जिसमें मध्य प्रदेश टाॅप पर है तो यूपी चैथे नम्बर पर है। मध्य प्रदेश में 5076, राजस्थान में 3759, महाराष्ट में 3438, यूपी में 3467, दिल्ली में 2096 रेप की घटनाएं हो चुकी है। रेप जैसे मामले को लेकर मुलायम सिंह यादव का एक साथ चार लोग बलातकार कर ही नहीं सकते, का पहला बयान नहीं है। इसके पहले भी बलातकार के मामले में वह कह चुके है लड़के है गलतिया हो जाया करती है। 12 अगस्त 2014 को मुजफरनगर के घेरीरजपुताना गांव में शौच करने गयी युवती के संग गैंगरेप किया। इस वारदात में तीन युवकों पर गैंगरेप रपट दर्ज की गयी। 11 जुलाई 2015 को रामपुर के राजाकापुर में घर से अगवाकर एक युवती संग नौ लोगों ने गैंगरेप किया। 28 अप्रैल 2015 को मेरठ में 22 साल की महिला के साथ गैंगरेप। 28 अप्रैल 2015 को रोटहा गांव में महिला के घर में घुसकर तीन लोगों ने किया गैंगरेप। 8 अप्रैल 2015 को मुरादाबाद में महिला नर्स के साथ चार लोगों ने गैंगरेप किया। 19 अगस्त को कन्नौज में घर में घूसकर जहां सात बदमाशों ने नाबालिग को अपनी हवस का शिकार बनाया तो वहीं कानपुर में पड़ोसी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।
गौर करने वाली बात यह है कि मठाधीश थानेदारों से पुलिस अधिकारियों का वसूली प्रेम इतना गहरा है कि बड़े स्तार पर शिकायत करने के बावजूद कार्रवाई नहीं करते। हाल यह है कि यूपी पुलिस मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाने में भी पीछे नहीं है। आयाोग के गठन से लेकर अब तक पिछले 22 साल में यूपी पुलिस के खिलाफ साढ़े तीन लाख से ज्यादा शिकायतें आयोग पहुंची है। स्थिति यह है कि केवल अखिलेश यादव की साढ़े तीन साल के कार्यकाल में 85 हजार से अधिक शिकायतें आयोग में लंबित है। ये आंकड़ा पूरे देश की पुलिस की शिकायतों का दो तिाहाई है। पूरे देश की पुलिस की पिछले 22 साल में कुल 5,51,421 लाख शिकायतों के सापेक्ष 3,55,105 लाख शिकायतें केवल यूपी पुलिस के खिलाफ है। मतलब साफ है यूपी पुलिस सबसे ज्यादा जालिम और बर्बर है। महिला यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के मामले में भी यूपी अन्य राज्यों से काफी आगे है। आयोग के मुताबिक अब तक कुल 63,875 मामले सामने आएं है। इस साल अब तक का ये आंकड़ा 2395 के पार पहुंच चुका है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के ताजा आंकड़ों मुताबिक साल 2014 में यूपी में रेप के 3467 केस दर्ज है। जबकि गैंगेरेप के मामले में देश में यूपी सबसे उपर है। यूपी में 2014 में गैंगरेप के 573 मामले सामने आएं है। एक साल में बलातकार कोशिश के 324 केस दर्ज कराएं गए। बच्चियों के साथ रेप के मामले में यह आंकड़ा 1538 तक पहुंच गया है। जबकि 2014 में देशभर में बलातकार के कुल 36735 केस दर्ज है। जिसमें मध्य प्रदेश टाॅप पर है तो यूपी चैथे नम्बर पर है। मध्य प्रदेश में 5076, राजस्थान में 3759, महाराष्ट में 3438, यूपी में 3467, दिल्ली में 2096 रेप की घटनाएं हो चुकी है।
(सुरेश गांधी)