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विशेष आलेख : स्मार्ट सिटी और बच्चे

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पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा शहरी विकास के लिए 3 नये मिशन "अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत)”, “सभी के लिए आवास मिशन” और बहुचर्चित “स्मार्ट सिटी मिशन” की शुरुआत करते हुए इन्हें शहरी भारत का कायाकल्प करने वाली परियोजनाओं तौर पर पेश किया गया था. इनके तहत 500 नए शहर विकसित करने, 100 स्मार्ट शहर और 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. इन परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ‘शहरीकरण को एक अवसर और शहरी केंद्रों को विकास के इंजन के तौर पर देखना चाहिए’. बहुचर्चित स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए एक लाख करोड़ रूपए के बजट का आवंटन और एफडीआई की शर्तों में ढील दी जा चुकी है. लेकिन इनको लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिरकार ‘स्मार्ट सिटी’ किसके लिए हैं, यहाँ कौन रहेगा और इससे सबसे ज्यादा किसे फायदा होने जा रहा है? हमारे शहर में अव्यवस्था और अभावों के शिकार एक बड़ी आबादी झुग्गी बस्तियों में बहुत ही अमानवीय स्थिति रहती है ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन बुनियादी समस्याओं को दूर किये बिना शहरों को स्मार्ट कैसे बनाया जा सकता है? इसको लेकर विरोध भी देखने को मिल रहे हैं मध्यप्रदेश की राजधानी  भोपाल में तो नागरिक संगठनों, आम जनता, विपक्षी पार्टियों के साथ खुद भाजपा के कई नेता इसके विरोध में सामने खड़े दिखाई दिए. दरअसल भोपाल शहर के तुलसी नगर और शिवाजी नगर क्षेत्र को स्मार्ट सिटी के चुना गया था ये इलाके पॉश और हरे-भरे हैं. परियोजना की वजह से करीब चालीस हजार पेड़ों के काटे जाने का खतरा मंडरा रहा था. इसलिए तुलसी नगर और शिवाजी नगर क्षेत्र में स्मार्ट सिटी बनाये जाने को लेकर भोपाल के जागरूक नागरिकों द्वारा जोरदार विरोध किया जा रहा था उनकी मांग थी कि स्मार्ट सिटी का स्थान बदला जाए. जनदबाव के चलते कांग्रेस और भाजपा के कई स्थानीय नेता भी इस विरोध में शामिल हो गये अंत में मध्य प्रदेश सरकार को  मजबूर होकर इस  परियोजना को शिवाजी नगर और तुलसी नगर से स्थानांतरित करके नॉर्थ तात्या टोपे नगर ले जाने का फैसला लेने को मजबूर होना पड़ा.

भारत में झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की आबादी लगातार बढ़ रही है. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साढ़े छह करोड़ से ज्यादा लोग स्लम शहरी झुग्गी बस्तियों में रहते हैं.  जिसमें से 32 प्रतिशत आबादी 18 साल से कम है. करीब 36.5 मिलियन बच्चे 6 साल से कम उम्र के है जिसमें से लगभग 8 मिलियन बच्चे स्लम में रहते हैं. हाल ही में जारी यू.एन. हैबिटैट की  रिपोर्ट ‘वर्ल्ड सिटीज रिपोर्ट-2016 के अनुसार 2050 तक भारत के शहरों में और 30 करोड़ तक की आबादी का अनुमान लगाया गया है.वर्तमान में भी बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.भारत सरकार इसका कारण शहरीकरण के प्रति बढ़ता आकर्षण को मानती है जबकि यह सर्वादित है कि गांवों से शहर की तरफ पलायन का प्रमुख कारण ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसरों में कमी का होना है. इधर शहरों में लगातार बढ़ रही आबादी के अनुपात में तैयारी देखने को नहीं मिल रही है. हमारे शहर बिना किसी नियोजन के तेजी से फैलते जा रहा हैं क्योंकि उन्हें बिल्डरों के हवाले कर दिया गया है. आज शहरों में जगह की कमी एक बड़ी समस्या है. यहाँ ऐसी बस्तियां बड़ी संख्या में हैं जहाँ जीने के लिए बुनियादी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.तमाम चमक-दमक के बावजूद अभी भी शहरी में करीब 12.6 फीसदी लोग खुले में शौच जाते हैं,झुग्गी बस्तियों में तो यह दर 18.9 फीसदी है.इसी तरह से केवल 71.2 प्रतिशत परिवारों को अपने घर के परिसर में पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध है.शहरी भारत में अभी भी सीवेज के गंदे पानी का केवल 30 प्रतिशत हिस्सा ही परिशोधित किया जाता है बाकी का 70 फीसदी गंदा पानी नदियों, समुद्र,झीलों आदि में बहा दिया जाता है. 

शहरी बस्तियों में रहने वाले बच्चों के सन्दर्भ में बात करें तो पीडब्ल्यूसी इंडिया और सेव दि चिल्ड्रन द्वारा 2015 में जारी रिर्पोट ‘‘फॉरगॉटेन वॉयसेसः दि वर्ल्ड ऑफ अर्बन चिल्ड्रन इंडिया’’ के अनुसार शहरी बस्तियों में रहने वाले बच्चे देश के सबसे वंचित लोगों में शामिल हैं. कई मामलों में तो शहरी बस्तियों में रह रहे बच्चों की स्थिति ग्रामीण इलाकों के बच्चों से भी अधिक खराब है.रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्रों में जिन स्कूलों में ज्यादातर गरीब एंव निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे शिक्षा के लिए जाते हैं उन स्कूलों की संख्या बच्चों के अनुपात में कम है, इस कारण 11.05 प्रतिशत स्कूल डबल शिफ्ट में लगते हैं, जहाँ शहरी क्षेत्रों में एक स्कूल में बच्चों की औसत संख्या 229 है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 118 है. शहरी क्षेत्रों के इन स्कूलों में बच्चों के ड्रॉप आउट दर भी अधिक हैं. इसी तरह से 5 साल से कम उम्र के 32.7 प्रतिशत शहरी बच्चें कम वजन के हैं. बढ़ते शहर बाल सुरक्षा के बढ़ते मुद्दों को भी सामने ला रहे हैं, वर्ष 2010-11 के बीच बच्चों के प्रति अपराध की दर में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी जबकि 2012-13 में 52.5 प्रतिशत तक बढ़ी है.चाइल्ड राइटस एंड यू (क्राई) के अनुसार 2001 से 2011 के बीच देश के शहरी इलाकों में बाल श्रम में 53 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.उपरोक्त सन्दर्भों में बात करें तो शहरी भारत में बड़ी संख्या में बच्चे बदहाल वातारण में रहने को मजबूर हैं और उनके लिए जीवन संघर्षपूर्ण एवं चुनौती भरा है सरकारों द्वारा शहरों के नियोजन के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में प्रावधान किये जाते रहे हैं. केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा समय समय पर आवास नीतियाँ भी बनायी गई हैं. पिछले दशकों में “जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनिकरण मिशन” और “राजीव गांधी आवास योजना” में शहरी नियोजन,विकास से लेकर शहरी गरीबों की स्थिति सुधारने, मूलभूत सुविधाएं देने के लम्बे चौड़े दावे किये गये थे लेकिन इन सब के बावजूद आज भी ना तो शहरों का व्यवस्थित नियोजन हो सका है और ना ही झुग्गी बस्तियों में जीवन जीने के लायक न्यूनतम नागरिक सुविधाएं उपलब्ध हो सकी हैं, आवास का मसला अभी भी बना हुआ है.जेएनयूआरएम के तहत शहरी गरीबों को जो मकान बना कर दिये गये थे वे टूटने-चटकने लगे हैं. 

इन सब नीतियों और योजनाओं में बच्चों की भागीदारी और सुरक्षा के सवाल नदारद रहे हैं. वर्ष 2012 में एक सामाजिक संगठन द्वारा भोपाल में किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत बनाये गये मकान बच्चों के सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है. इन आवासीय इकाईयों में छत पर आने जाने के लिए सीढ़ी नही बनायी गई है साथ ही साथ इन छतों पर बाउंड्रीवाल भी नही बनाया गया है जिसके कारण कई बच्चे दुर्घटना के शिकार हो चुके थे. स्मार्ट सिटी परियोजना में  भी बच्चों से संबंधित मुद्दों एवं उनके हितों को लेकर बातें सिरे से गायब हैं. स्मार्ट सिटी बनाने की प्रक्रिया में बच्चों की भागीदारी के नाम पर क्विज, सद्भावना मैराथन दौड़ और निबंध व पेंटिंग कॉम्पिटिशन जैसे कार्यक्रम का आयोजन करके खानापूर्ति भी की गयी है लेकिन इसमें भी झुग्गियों में रहने वाले बच्चों की भागीदारी नही के बराबर है. कोई भी शहर तब तक स्मार्ट सिटी नहीं बन सकता, जब तक वहां बच्चे सुरक्षित न हो, उनके लिए खेलने की जगह एवं जीवन जीने के लिए बुनियादी नागरिक सुविधाओं का अभाव हो. हमें स्मार्ट शहर के साथ साथ चाइल्ड फ्रेंडली और बच्चे के प्रति संवेदनशील शहर बनाने की जरुरत है. शहर के प्लानिंग करते समय बच्चों की समस्याओं को दूर करने के उपाय किये जाने चाहिए और उनसे राय भी लेना चाहिए और यह सिर्फ कहने के लिए ना हो बल्कि एक ऐसी औपचारिक  व्यवस्था बनायी जाये जिसमें बच्चे शामिल हो सकें. ऐसा प्रयोग केरल और कर्नाटक में किया जा चुका है. 

सबसे बड़ी चुनौती बिना झुग्गी बस्तियों में रहने वाले शहरी गरीबों और बच्चों की है. बिना उनके समस्याओं  को दूर किये स्मार्ट सिटी नही बन सकती है. लेकिन फिलहाल सारा जोर तो बढ़ते मध्यवर्ग, इन्वेस्टरस् के अभिलाषाओं की पूर्ति पर ही लगा है. जरुरत इस बात की है कि सरकार, कारर्पोरेट, और खाये अघाये मध्य वर्ग को मिल कर शहरी गरीबों और बच्चों की समस्याओं,उनके मुद्दों को दूर करने के लिए आगे आना चाहिए तभी वास्तविक रुप से ऐसा शहर बन सकेगा जो स्मार्ट भी हो और जहाँ बच्चों के हित भी सुरक्षित रह सकें.





liveaaryaavart dot com

जावेद अनीस 
Contact-9424401459
javed4media@gmail.com

सिनेमा : फिल्म से लुप्त हो गांव

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tisri-kasam
गांवों में दिल बसता है,किसान स्वंय भूखा रहकर अन्न देते है,यही कारण है कि फिल्मों से गांव का अहम् रिश्ता रहा है। हिंदुस्तान गांवों का देश है। यह भी कहा जाता है शहरों के मुकाबले गांवों की जिंदगी ज्यादा अच्छी हुआ करती है और वहां के लोगों में अपनापन हैं। भारत की 80 फीसदी आबादी गांवों में ही बसती है। और यही सबसे बड़ी आबादी हमारे सिनेमा के सबसे बड़े दर्शक को रूप में भी मानी जाती है। पचास से अस्सी के दशक तक सिनेमा के परदे पर मेरा गांव मेरा देश,रामपुर का लक्ष्मण,मदर इंडिया,गंगा यमुना,राम और श्याम,एक गांव की कहानी,छोरी गांव की,ंिपंजर,पोकटमार,पतिता,हीर रांझा....जैसी फिल्मों गांवों का महत्व रहा है,लेकिन वर्तमान के सिनेमा से गांव लुप्त हो रहे हैं। हमारा दर्शक तो बरसों बरसों से इन गांवों को देखता रहा है। गांव की गोरी और गांव की छटा को सिनेमा में देख देख हमारा दर्शक कभी रत्ती भर तक नहीं उकताया।  सपनों जैसी सतरंगी सजावट से लबरेज दुनिया के दर्शन कराने वाला सिनेमा का परदा अब भी आबाद है। उस पर नित नई जगहें, हर रोज नए शहर और नए-नए किस्से कहानियां दिखते हैं। लेकिन गांवों के दर्शकों के बीच पहले से भी ज्यादा मजबूत मुकाम बना चुके सिनेमा से अब गांव गायब हैं।

mother india
किसी फिल्म में कभी कभार कोई गांव आता भी है, तो वह सरसों से लहलहाता हुआ सरसब्ज समृद्ध पंजाब का कोई गांव होता है। या फुर्र से सीधे स्विट्जरलैंड का गांव। जहां की झलक रही समृद्धि हमारे गांव के अलसी स्वरूप को ही चिढ़ाती सी दिखती है। जिस तरह की तस्वीर हमारे सामने है, उसे देखकर माना जा सकता है कि हमारे सिनेमा से गांव, खेत खलिहान और ग्रामीण परिवेश से जुड़े कथानक दूर होते जा रहे हैं। फणीश्वरनाथ रेणु की बहुचर्चित कहानी ‘‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ‘‘तीसरी कसम’ में राजकपूर ने कितना बढ़िया गांव दिखाया था। लोग उसे आज भी याद करते हैं। राजश्री की फिल्म ‘‘नदिया के पार’ का गांव भी अब तक लोगों को लुभा रहा है। कुछ साल पहले आई विजय दानदेथा की कहानी पर आधारित फिल्म ‘‘पहेली’, श्याम बेनेगल की ‘‘वेलकम टू सज्जनपुर’ और ‘‘वेल्डन अब्बा’, आमिर खान की ‘‘लगान’, आशुतोष गोवारीकर की ‘‘स्वदेश’, विशाल भारद्वाज की ‘‘इश्किया’ और दशरथ मांझी की जीवनी पर बनी फिल्म ‘‘मांझी द माउंटेनमैन’ जैसी कुछ ही फिल्में हैं, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। पर, अब ज्यादातर फिल्मों में गांव बिल्कुल नहीं दिखता। दरअसल, गांव दिखते थे, तो गरीब भी परदे पर दिखते थे। लेकिन जब गांव ही गायब हो गए, तो गरीब को तो गायब होना ही था। पिछले पांच साल में कुल मिलाकर पांच फिल्में भी नहीं आईं, जिनकी पृष्ठभूमि में गांव और कथानक में गांव का जीवन हो। जब भारत का 80 फीसदी दर्शक गांवों में रहता है, फिर भी गांव हमारी फिल्मों से गायब क्यों हैं? इसके जवाब में फिल्म निर्माता महेश भट्ट कहते हैं ‘‘हमारी फिल्म इंडस्ट्री की ज्यादातर कमाई मेट्रो सिटी और विदेशों से होती है। इसी कारण फिल्मों के विषय तय करते वक्त इन्हीं इलाकों और यहीं के दर्शक को केंद्र में रखकर फिल्म बनाने के बारे में सोचा जाता है।’ महेश भट्ट की ज्यादातर फिल्में शहरी दर्शक को केंद्र में रखकर बनी है। मगर ऐसा नहीं है कि महेश भट्ट गांवों के बारे में नहीं जानते। भट्ट कहते हैं - ‘‘भले ही देश का ज्यादातर दर्शक गांवों में रहता हो, लेकिन वह भी शहर और शहरी जिंदगी को बारे में ही जानना चाहता है।’ फिल्मकार मधुर भंडारकर कहते हैं ‘‘सिनेमा कुल मिलाकर व्यापार है। दर्शक जिस दौर में जो देखना चाहता है, फिल्मकार वही दिखाता है। यही कारण है कि हमारे सिनेमा में गांव की बजाय शहर और शहरी जीवन की झलक ज्यादा दिखती है।’ भंडारकर जोर देकर कहते हैं, ‘‘गांव जब खुद भी शहर की ओर देखने लगे हैं। गांव जब खुद शहर बनने की फिराक में हैं। और गांव जब खुद भी गांव बने रहना नहीं चाहते, तो उन पर फिल्म बनाकर हमारा निर्माता दर्शक को कहां ढूंढने जाएगा।’

ganga jamuna
आज का सिनेमा कुल मिलाकर नफा नुकसान का बाजार है। सिनेमा कोई फोकट में नहीं बनता। बहुत बड़ा पैसा लगता है इसे बनाने में। लेकिन एक वह भी दौर था, जब गांव हमारे सिनेमा के केंद्र में था और ग्रामीण परिदृश्य सिनेमा की आधारशिला। आखिर, निर्माता निर्देशक त्रिलोक जेटली ने बिना किसी नफा - नुकसान का ख्याल किये, ‘‘गोदान’ बनाकर प्रेमचंद की आत्मा को पूरी दुनिया के सामने पेश किया ही था। यही नहीं, सच कहा जाए तो, ‘‘गोदान’ के बाद ही साहित्यिक कथानक पर फिल्में बनने का रास्ता साफ हुआ। बाद में तो, खैर राजकपूर ने फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर आधारित ‘‘तीसरी कसम’ बनाई। इसी तरह ‘‘रजनीगंधा’, ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’, ‘‘आशा का एक दिन’, ‘‘एक था चंदर.एक थी सुधा’, ‘‘बदनाम बस्ती’, ‘‘सत्ताईस डाउन’, ‘‘सारा आकाश’ आदि फिल्में हमारे सिनेमा के इतिहास में एक खास अध्याय लिख गईं। गांव तो ‘‘शोले’ में भी दिखा था। गुरुदत्त की ‘‘प्यासा, ‘‘कागज के फूल’ तथा ‘‘साहब, बीबी और गुलाम’ जिन लोगों ने देखी है, वे इतने सालों बाद भी आज तक उन्हें नहीं भुला सकते। ‘‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में भी गांव ही थे और जीनत अमान उस गांव में रहने वाली एक तरफ से कुरूप चेहरे वाली युवती जिसे एक इंजीनियर से प्यार हो जाता है,उसके मिलन की व्यथा और ग्रामीण परिवेश देखते ही बनता था,फिल्म हिट हुई थी, इससे भी पहले की बात करें, तो ‘‘धरती के लाल’ और ‘‘नीचा नगर’ के माध्यम से दर्शकों को नयापन देखने को मिला और माटी की सोंधी महक से दर्शकों का परिचय हुआ। ‘‘दो बीघा जमीन’, ‘‘देवदास’, ‘‘बन्दिनी’, ‘‘सुजाता’ और ‘‘परख’ भले ही कोई बहुत कमाऊ फिल्में नहीं रहीं, लेकिन हमारे सिनेमा के लिए आज भी मील का पत्थर मानी जाती हैं। गांव, दरअसल जिंदगी की हकीकत हैं। वे शहरों की तरह नकली नहीं हुआ करते। यही वजह है कि गांव जब भी दिखते हैं, भले ही सिनेमा के परदे पर या साक्षात में, तो दिल में उतर जाते हैं।

nadia ke paar
‘‘नदिया के पार’ जैसी ग्रामीण परिदृश्य वाली ग्राम्य संवेदनाओं को प्रकट करती फिल्में आज भी जब टीवी पर आती है, तो पूरा का पूरा परिवार टीवी की स्क्रीन से कोई यूं ही थोड़े ही चिपक जाता है! इस बहुत तेजी से बदले परिदृश्य पर जावेद अख्तर ने ठीक ही कहा कि जब वे सिनेमा में आए थे, तो उनके साथियों ने उन्हें सलाह दी थी कि वे ऐसी कहानियां लिखने की कोशिश करें, जो ग्रामीण दर्शक को बाकी देश से जोड़े। लेकिन जावेद कहते हैं- ‘‘अगर यही बात मैं अब किसी से कहूं, तो नए लेखक - निर्देशक मुझको ही पुरातनपंथी मान बैठेंगे।’ मगर किया क्या जाए। इसके जवाब में जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल के अध्यक्ष और रंग दे बसंती फिल्म के लेखक कमलेश पांडेय ने कहा ‘‘फिल्में अब शुद्ध रूप से व्यवसाय का रूप ले चुकी है और किसी को भी इस विषय को भी व्यापार के इसी नजरिये से देखना चाहिए। लेकिन नजरिया बदलेगा तो काम करने का तरीका भी बदलेगा। बस, गांव के विषय बहुत मजबूती से सामने आने चाहिए।’ पांडेय कहते हैं, ‘‘आखिर देश ने और शहरी समाज ने भी ठेट बिहार के ग्रामीण पृष्ठभूमि की फिल्म मांझी द माउंटेनमैन को सिर आंखों पर बिठाया ही है। उन्होंने कहा कि जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल अब से जयपुर के आसपास के गांवों में भी आयोजित किया जायेगा। ताकि परदे पर भले ही कुछ वक्त बाद फिर से लौटें, लेकिन सिनेमा बनाने वालों की सोच में फिल्मों से गायब होते गांव फिर से वापस लौट आएं।’ फिल्म निर्माता केसी बोकाड़िया कहते हैं, उनकी ज्यादातर फिल्मों गांवों में ही बनी हैं, उनमें गांवों की जिंदगी भी भरपूर दिखाई गई है, क्योंकि वे खुद गांव के व्यक्ति रहे हैं। लेकिन उनका कहना है- ‘‘हमारे निर्माता, निर्देशक, और लेखक अगर गांवों में जाएंगे, वहां घूमेंगे और गांवों को समझेंगे, तो ही हमारा सिनेमा फिर से पहले की तरह से गांवों को दिखाने लगेगा। वरना, तो जिस तरह से समाज में गरीब और अमीर की खाई बढ़ती जा रही है, उसी तरह से गांव और शहर के बीच फासला बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।’ लब्बोलुआब यही है कि हमारी फिल्मों पर शहरी जिंदगी का कब्जा मजबूत हो गया है और गांव, गरीब व उनसे संबंधित सबकुछ फिल्मों से बाहर हो चुका हैं। ग्लैमर हर किसी को लुभाता है। सो, गांव दिखाकर हर पल सुख की लालसा में भाग रहे दर्शक का स्वाद क्यों खराब किया जाए ।

विशेष आलेख : स्मार्ट सिटी और बच्चे

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पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा शहरी विकास के लिए 3 नये मिशन "अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत)”, “सभी के लिए आवास मिशन” और बहुचर्चित “स्मार्ट सिटी मिशन” की शुरुआत करते हुए इन्हें शहरी भारत का कायाकल्प करने वाली परियोजनाओं तौर पर पेश किया गया था. इनके तहत 500 नए शहर विकसित करने, 100 स्मार्ट शहर और 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. इन परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ‘शहरीकरण को एक अवसर और शहरी केंद्रों को विकास के इंजन के तौर पर देखना चाहिए’. बहुचर्चित स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए एक लाख करोड़ रूपए के बजट का आवंटन और एफडीआई की शर्तों में ढील दी जा चुकी है. लेकिन इनको लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिरकार ‘स्मार्ट सिटी’ किसके लिए हैं, यहाँ कौन रहेगा और इससे सबसे ज्यादा किसे फायदा होने जा रहा है? हमारे शहर में अव्यवस्था और अभावों के शिकार एक बड़ी आबादी झुग्गी बस्तियों में बहुत ही अमानवीय स्थिति रहती है ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन बुनियादी समस्याओं को दूर किये बिना शहरों को स्मार्ट कैसे बनाया जा सकता है? इसको लेकर विरोध भी देखने को मिल रहे हैं मध्यप्रदेश की राजधानी  भोपाल में तो नागरिक संगठनों, आम जनता, विपक्षी पार्टियों के साथ खुद भाजपा के कई नेता इसके विरोध में सामने खड़े दिखाई दिए. दरअसल भोपाल शहर के तुलसी नगर और शिवाजी नगर क्षेत्र को स्मार्ट सिटी के चुना गया था ये इलाके पॉश और हरे-भरे हैं. परियोजना की वजह से करीब चालीस हजार पेड़ों के काटे जाने का खतरा मंडरा रहा था. इसलिए तुलसी नगर और शिवाजी नगर क्षेत्र में स्मार्ट सिटी बनाये जाने को लेकर भोपाल के जागरूक नागरिकों द्वारा जोरदार विरोध किया जा रहा था उनकी मांग थी कि स्मार्ट सिटी का स्थान बदला जाए. जनदबाव के चलते कांग्रेस और भाजपा के कई स्थानीय नेता भी इस विरोध में शामिल हो गये अंत में मध्य प्रदेश सरकार को  मजबूर होकर इस  परियोजना को शिवाजी नगर और तुलसी नगर से स्थानांतरित करके नॉर्थ तात्या टोपे नगर ले जाने का फैसला लेने को मजबूर होना पड़ा.

भारत में झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की आबादी लगातार बढ़ रही है. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साढ़े छह करोड़ से ज्यादा लोग स्लम शहरी झुग्गी बस्तियों में रहते हैं.  जिसमें से 32 प्रतिशत आबादी 18 साल से कम है. करीब 36.5 मिलियन बच्चे 6 साल से कम उम्र के है जिसमें से लगभग 8 मिलियन बच्चे स्लम में रहते हैं. हाल ही में जारी यू.एन. हैबिटैट की  रिपोर्ट ‘वर्ल्ड सिटीज रिपोर्ट-2016 के अनुसार 2050 तक भारत के शहरों में और 30 करोड़ तक की आबादी का अनुमान लगाया गया है.वर्तमान में भी बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.भारत सरकार इसका कारण शहरीकरण के प्रति बढ़ता आकर्षण को मानती है जबकि यह सर्वादित है कि गांवों से शहर की तरफ पलायन का प्रमुख कारण ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसरों में कमी का होना है. इधर शहरों में लगातार बढ़ रही आबादी के अनुपात में तैयारी देखने को नहीं मिल रही है. हमारे शहर बिना किसी नियोजन के तेजी से फैलते जा रहा हैं क्योंकि उन्हें बिल्डरों के हवाले कर दिया गया है. आज शहरों में जगह की कमी एक बड़ी समस्या है. यहाँ ऐसी बस्तियां बड़ी संख्या में हैं जहाँ जीने के लिए बुनियादी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.तमाम चमक-दमक के बावजूद अभी भी शहरी में करीब 12.6 फीसदी लोग खुले में शौच जाते हैं,झुग्गी बस्तियों में तो यह दर 18.9 फीसदी है.इसी तरह से केवल 71.2 प्रतिशत परिवारों को अपने घर के परिसर में पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध है.शहरी भारत में अभी भी सीवेज के गंदे पानी का केवल 30 प्रतिशत हिस्सा ही परिशोधित किया जाता है बाकी का 70 फीसदी गंदा पानी नदियों, समुद्र,झीलों आदि में बहा दिया जाता है. 

शहरी बस्तियों में रहने वाले बच्चों के सन्दर्भ में बात करें तो पीडब्ल्यूसी इंडिया और सेव दि चिल्ड्रन द्वारा 2015 में जारी रिर्पोट ‘‘फॉरगॉटेन वॉयसेसः दि वर्ल्ड ऑफ अर्बन चिल्ड्रन इंडिया’’ के अनुसार शहरी बस्तियों में रहने वाले बच्चे देश के सबसे वंचित लोगों में शामिल हैं. कई मामलों में तो शहरी बस्तियों में रह रहे बच्चों की स्थिति ग्रामीण इलाकों के बच्चों से भी अधिक खराब है.रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्रों में जिन स्कूलों में ज्यादातर गरीब एंव निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे शिक्षा के लिए जाते हैं उन स्कूलों की संख्या बच्चों के अनुपात में कम है, इस कारण 11.05 प्रतिशत स्कूल डबल शिफ्ट में लगते हैं, जहाँ शहरी क्षेत्रों में एक स्कूल में बच्चों की औसत संख्या 229 है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 118 है. शहरी क्षेत्रों के इन स्कूलों में बच्चों के ड्रॉप आउट दर भी अधिक हैं. इसी तरह से 5 साल से कम उम्र के 32.7 प्रतिशत शहरी बच्चें कम वजन के हैं. बढ़ते शहर बाल सुरक्षा के बढ़ते मुद्दों को भी सामने ला रहे हैं, वर्ष 2010-11 के बीच बच्चों के प्रति अपराध की दर में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी जबकि 2012-13 में 52.5 प्रतिशत तक बढ़ी है.चाइल्ड राइटस एंड यू (क्राई) के अनुसार 2001 से 2011 के बीच देश के शहरी इलाकों में बाल श्रम में 53 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.उपरोक्त सन्दर्भों में बात करें तो शहरी भारत में बड़ी संख्या में बच्चे बदहाल वातारण में रहने को मजबूर हैं और उनके लिए जीवन संघर्षपूर्ण एवं चुनौती भरा है सरकारों द्वारा शहरों के नियोजन के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में प्रावधान किये जाते रहे हैं. केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा समय समय पर आवास नीतियाँ भी बनायी गई हैं. पिछले दशकों में “जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनिकरण मिशन” और “राजीव गांधी आवास योजना” में शहरी नियोजन,विकास से लेकर शहरी गरीबों की स्थिति सुधारने, मूलभूत सुविधाएं देने के लम्बे चौड़े दावे किये गये थे लेकिन इन सब के बावजूद आज भी ना तो शहरों का व्यवस्थित नियोजन हो सका है और ना ही झुग्गी बस्तियों में जीवन जीने के लायक न्यूनतम नागरिक सुविधाएं उपलब्ध हो सकी हैं, आवास का मसला अभी भी बना हुआ है.जेएनयूआरएम के तहत शहरी गरीबों को जो मकान बना कर दिये गये थे वे टूटने-चटकने लगे हैं. 

इन सब नीतियों और योजनाओं में बच्चों की भागीदारी और सुरक्षा के सवाल नदारद रहे हैं. वर्ष 2012 में एक सामाजिक संगठन द्वारा भोपाल में किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत बनाये गये मकान बच्चों के सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है. इन आवासीय इकाईयों में छत पर आने जाने के लिए सीढ़ी नही बनायी गई है साथ ही साथ इन छतों पर बाउंड्रीवाल भी नही बनाया गया है जिसके कारण कई बच्चे दुर्घटना के शिकार हो चुके थे. स्मार्ट सिटी परियोजना में  भी बच्चों से संबंधित मुद्दों एवं उनके हितों को लेकर बातें सिरे से गायब हैं. स्मार्ट सिटी बनाने की प्रक्रिया में बच्चों की भागीदारी के नाम पर क्विज, सद्भावना मैराथन दौड़ और निबंध व पेंटिंग कॉम्पिटिशन जैसे कार्यक्रम का आयोजन करके खानापूर्ति भी की गयी है लेकिन इसमें भी झुग्गियों में रहने वाले बच्चों की भागीदारी नही के बराबर है. कोई भी शहर तब तक स्मार्ट सिटी नहीं बन सकता, जब तक वहां बच्चे सुरक्षित न हो, उनके लिए खेलने की जगह एवं जीवन जीने के लिए बुनियादी नागरिक सुविधाओं का अभाव हो. हमें स्मार्ट शहर के साथ साथ चाइल्ड फ्रेंडली और बच्चे के प्रति संवेदनशील शहर बनाने की जरुरत है. शहर के प्लानिंग करते समय बच्चों की समस्याओं को दूर करने के उपाय किये जाने चाहिए और उनसे राय भी लेना चाहिए और यह सिर्फ कहने के लिए ना हो बल्कि एक ऐसी औपचारिक  व्यवस्था बनायी जाये जिसमें बच्चे शामिल हो सकें. ऐसा प्रयोग केरल और कर्नाटक में किया जा चुका है. 

सबसे बड़ी चुनौती बिना झुग्गी बस्तियों में रहने वाले शहरी गरीबों और बच्चों की है. बिना उनके समस्याओं  को दूर किये स्मार्ट सिटी नही बन सकती है. लेकिन फिलहाल सारा जोर तो बढ़ते मध्यवर्ग, इन्वेस्टरस् के अभिलाषाओं की पूर्ति पर ही लगा है. जरुरत इस बात की है कि सरकार, कारर्पोरेट, और खाये अघाये मध्य वर्ग को मिल कर शहरी गरीबों और बच्चों की समस्याओं,उनके मुद्दों को दूर करने के लिए आगे आना चाहिए तभी वास्तविक रुप से ऐसा शहर बन सकेगा जो स्मार्ट भी हो और जहाँ बच्चों के हित भी सुरक्षित रह सकें.






जावेद अनीस 
Contact-9424401459
javed4media@gmail.com

राजस्थान के प्रथम शहीद दानवीर सेठ अमरचन्द बांठिया

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बीकानेर निवासी दानवीर सेठ अमरचन्द बांठिया भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में राजस्थान के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तथा प्रथम शहीद थे। उनकी योग्यता, ईमानदारी, न्यायप्रियता और सुयष से प्रभावित होकर तत्कालीन ग्वालियर रियासत के राजा जयाजीराव सिंधिया ने उनको समृद्ध ‘गंगाजली’ कोष का खजांची नियुक्त कर दिया। इस कोष पर हमे सषस्त्र सिपाहियों का पहरा रहता था। उन्हीं दिनों भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का सूत्रपात हो गया था। गंगाजली के कोषाध्यक्ष होने के कारण राज्य और सेना के उच्च पदस्थ व्यक्तियों से उनका परिचय बढ़ने लगा था। अधिकारियों तथा अन्य लोगों से उन्हें अंग्रजों के द्वारा भारतवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों के समाचार मिलते रहते थे। भारतवासियों पर अत्याचार की खबरें सुनकर उनके मन में भारत को स्वतंत्र कराने की भावना प्रबल हो उठती थी। 

उस समय जहाँ कहीं युद्ध होता तो अंग्रेज भारतीय सैनिकों को युद्ध की आग में झोंक देते थे। भारतीय सैनिकों को जब गाय-बैल की चर्बी और पषु चर्बी लगे कारतूस मुँह से खोलने का आदेष दिया जाता तो वे मना कर देते। इसी प्रकार गौवंष के प्रति विषेष आदर के कारण एक बार बंगाली सैनिकों ने बैलों की पीठ पर बैठने के लिए मना कर दिया। कहते हैं, इस प्रकार की मनाही पर अंग्रेजों ने सात सौ बंगाली सैनिकों को गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया। यह सुनकर बांठियाजी की आत्मा मातृभूमि की रक्षार्थ तड़प उठी। उन्होंने ठान लिया कि भारतमाता के लिए सर्वस्व समर्पित करना है।    

इधर, रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक और क्रांतिकारी देष की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने लगे। लेकिन उन्हें भयावह आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा था। उन्हें कई महीनों से वेतन नहीं मिल रहा था। राषन-पानी के अभाव में उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो रही थी। ऐसे विकट समय में देषभक्त अमरचन्द बांठिया ने क्रांतिकारियों की आर्थिक मदद शुरू कर दी। देषभक्तों के लिए उन्होंने अपना निजी धन दिया और राजकोष भी खोल दिया। पुष्करवाणी ग्रुप ने जानकारी देते हुए बताया कि यह धनराशि उन्होंने 8 जून 1858 को उपलब्ध कराई। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे और क्रांतिकारियों को देष के लिए संघर्ष करने हेतु मुक्त आर्थिक सहयोग किया। नाना साहेब पेषवा के भाई रावसाहेब के जरिये वे आर्थिक सहयोग भिजवाते थे। वे हर प्रकार से देषभक्तों की मदद करते थे। उनके नियोजित और समयोचित सहयोग के फलस्वरूप वीरांगना लक्ष्मीबाई दुष्मनों के छक्के छुड़ाने में सफल रहीं। 

ब्रिटिष शासन ने देषभक्त अमरचन्द बांठिया के सहयोग को राजद्रोह माना। फिरंगियों (अंग्रेजों) ने बांठियाजी को तरह-तरह की बर्बर यातनाएँ दीं। क्रूर ब्रिटिष शासकों ने खौफ पैदा करने के लिए बांठियाजी के दस वर्षीय पुत्र को तोप से उड़ा दिया। सोलहवीं सदी में वीर माता श्राविका पन्नाधाय ने कर्Ÿाव्य की बलिवेदी पर अपने पुत्र का बलिदान अपने सामने देखा। उन्नीसवीं सदी में वीर पिता श्रावक अमरचन्द बांठिया ने भारतमाता की सेवार्थ अपने पुत्र का बलिदान अपने सामने देखा। अपने प्राणप्यारे मासूम पुत्र के बलिदान का दारूण कष्ट भी बांठियाजी को धर्म और राष्ट्रधर्म से नहीं डिगा पाया। परिणामस्वरूप फिरंगियों ने बांठियाजी को मौत की सजा सुनाई।  फिरंगियों ने बांठियाजी पर दोहरा देषद्रोह का आरोप लगाया। पहला यह कि उन्होंने गंगाजली कोष का बहुत सारा धन रानी लक्ष्मीबाई के सिपाहियों को बाँटा, जो कि ग्वालियर स्टेट के विरुद्ध अपराध है। दूसरा - ब्रिटिष शासन का विरोध करने वाले ‘देषद्रोहियों’ को धन दिया। बांठियाजी ने जवाब दिया कि जब कोष से धन दिया गया, तब कोष रानी के ही नियंत्रण में था। अतः उनका वैसा करना ग्वालियर स्टेट के विरुद्ध कदम नहीं था। दूसरे आरोप के जवाब में बांठियाजी ने कहा कि फिरंगी हमारे देष के दुष्मन हैं। देष और देष की आजादी के लिए मर मिटने वालों की मदद करना देषद्रोह नहीं है। क्रूर फिरंगियों ने बांठियाजी के न्यायोचित निर्भीक उŸार को सुनकर भी अनसुना कर दिया। 

फिरंगियों की क्रूरता तब भी कम नहीं हुई। उन्होंने लोगों में खौफ बनाये रखने के लिए ग्वालियर में सर्राफा बाजार स्थित उनके घर के सामने ही नीम के पेड़ की शाखा से लटकाकर खुले में बांठियाजी को फाँसी देने का फैसला किया। फाँसी से पहले भगवान महावीर के वीर उपासक बांठियाजी मन ही मन नवकार महामंत्र का स्मरण कर रहे थे। इस दौरान उनका फन्दा कई बार टूट गया। इससे हैरान होकर फाँसी देने वाले ब्रिगेडियर नैपियर ने अमरचन्दजी से उनकी अन्तिम इच्छा के लिए पूछा। धर्मनिष्ठ श्रावक बांठियाजी ने सामायिक करने की इच्छा जताई। देष के लिए समभावपूर्वक मृत्यु का वरण करने से पहले उन्होंने सामायिक की और 22 जून 1858 को वे फाँसी के फन्दे पर झूलकर देष के लिए मर मिट गये। उनकी इस शहादत के चार दिन पूर्व ही रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं। फिरंगियों की बर्बरता तब तक भी कम नहीं हुई थी। उन्होंने अमर शहीद बांठियाजी के शव को तीन दिन तक नीम के पेड़ पर ही लटकाये रखने का आदेष दिया। परिजनों ने अंत्येष्टी के लिए पार्थिव शरीर मांगा, लेकिन फिरंगियों ने उनकी मांग ठुकरा दी। फिरंगियों के सिपाही नीम के पेड़ पर लकटते उस पार्थिव शरीर पर पहरा लगा रहे थे। उन तीन दिनों तक, अंत्येष्टी होने तक, उस खौफनाक एवं दुःखद माहौल में बांठियाजी के परिजनों, रिष्तेदारों और देषभक्तों ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया। 

स्वतंत्रता सेनानी अमरचन्द बांठिया को इतिहासकारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान का प्रथम शहीद माना। उस ऐतिहासिक शहादत का साक्षी वह नीम का पेड़ कुछ समय पूर्व तक विद्यमान था। वर्तमान में वहाँ अमर शहीद अमरचन्द बांठिया की प्रतिमा लगी हुई है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जैन धर्मावलम्बियों का भी तन, मन, धन से सहयोग रहा। इतिहास की किताबों और पाठ्य पुस्तकों में उन्हें भी उचित सम्मान मिलना चाहिये। 




- डाॅ. दिलीप धींग, एडवोकेट 
(निदेशक: अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र)

इसरो बुधवार को रचेगा इतिहास

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श्रीहरिकोटा, आँध्र प्रदेश 21 जून (वार्ता) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) बुधवार को एक साथ रिकॉर्ड 20 उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़कर नया इतिहास बनायेगा। इसरो ने बताया कि इस महत्वाकांक्षी मिशन के तहत बुधवार सुबह 9.26 बजे ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी34 का प्रक्षेपण यहाँ स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड से किया जायेगा और 26 मिनट 30.36 सेकेंड में मिशन पूरा हो जायेगा। इसरो के एक प्रवक्ता ने यूनीवार्ता को बताया कि मिशन की उल्टी गिनती निर्बाध चल रही है। इससे पहले वर्ष 2008 में इसरो ने एक साथ 10 उपग्रह छोड़े थे। पीएसएलवी-सी34 अपने साथ तीन भारतीय और 17 विदेशी उपग्रह लेकर जा रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कार्टोसैट-2 है जिसका वजन 727.5 किलोग्राम है। इसे 505 किलोमीटर की ऊँचाई वाली सौर समचालित कक्षा में स्थापित किया जायेगा। इस उपग्रह का प्रयोग रिमोट सेंसिंग के लिए किया जायेगा। दो अन्य भारतीय उपग्रह सत्यभामासैट और स्वयम् हैं। डेढ़ किलोग्राम वजन वाला सत्यभामासैट चेन्नई के सत्यभामा विश्वविद्यालय का है जिसका इस्तेमाल ग्रीन हाउस गैसों के अध्ययन के लिए किया जायेगा। 

स्वयम् पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का उपग्रह है। एक किलोग्राम वजन वाले इस उपग्रह का इस्तेमाल प्वाइंट टू प्वाइंट मैसेजिंग के लिए किया जायेगा। शेष 17 विदेशी उपग्रह अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के हैं। इनमें इंडोनेशिया का मल्टी-स्पेक्टेरल रिमोट सेंसिंग उपग्रह ‘लापैन-ए3’ (120 किलोग्राम), जर्मनी के एयरोस्पेस सेंटर का वैज्ञानिक अनुसंधान उपग्रह ‘बिरोस’ (130 किलोग्राम), कनाडा के ‘एम3एमसैट’ और ‘जीएचजीसैट-डी’ तथा अमेरिका के ‘स्काईसैट जेन2-1’ और ‘डव सैटेलाइट’ प्रमुख हैं। वर्ष 1999 से अब तक इसरो 57 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर चुका है। पीएसएलवी-सी34 मिशन के बाद इनकी संख्या बढ़कर 74 हो जायेगी। पिछले साल तीन मिशनों के तहत इसरो ने 17 विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था। प्रक्षेपण के करीब ढाई मिनट बाद प्रक्षेपण यान धरती के वायुमंडल से बाहर निकल जायेगा। चौथे स्टेज का प्रज्वलन 16 मिनट 30.36 सेकेंड बाद बंद कर दिया जायेगा। कार्टोसैट-2 सत्रह मिनट 7.36 सेकेंड बाद अंतरिक्षयान से अलग हो जायेगा। सत्रह मिनट 42.36 सेकेंड पर सत्यभामासैट और 17 मिनट 42.80 सेकेंड पर स्वयम् अंतरिक्ष यान से अलग होगा। कुल 26 मिनट 30.36 सेकेंड में मिशन पूरा हो जायेगा।

जानबूूझकर कर नहीं चुकाने वाले की गिरफ्तारी पर स्पष्टकीरण

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नयी दिल्ली 21 जून, आयकर विभाग ने स्पष्ट किया कि आयकर के नियमों के तहत जानबूझकर कर नहीं चुकाने वालों को गिरफ्तार करने का प्रावधान है लेकिन इस संबंध में कोई नया बयान जारी नहीं किया गया है। मीडिया में आज खबरें आयी थी कि जानबूझकर आयकर नहीं चुकाने वालों की गिरफ्तारी हो सकती है या हिरासत में रखा जा सकता है और संपत्तियों की नीलामी की जा सकती है। इस संबंध में केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के एक रणनीति दस्तावेज का हवाला दिया गया था जो उसने अधिकारियों को जारी किये हैं। इस संबंध में आयकर विभाग ने स्पष्ट किया कि विभाग ने इस तरह का कोई नया बयान नहीं दिया है। हालाँकि कर रिकवरी अधिकारियों को आयकर कानून के तहत ऐसे कर बकायेदारों को गिरफ्तार करने या हिरासत में रखने का अधिकार है जो जानबूझकर कर नहीं देते हैं और यह कार्रवाई बहुत ही विषम परिस्थितियों में की जाती है। आयकर कानून की धारा 276 सी (2) के तहत जानबूझकर कर नहीं चुकाने पर तीन महीने से तीन वर्ष तक की सजा का प्रावधान है और इसके साथ जुर्माना भी हो सकता है तथा आयकर विभाग के कर रिकवरी अधिकारी ही सिर्फ इस नियम का उपयोग कर सकते हैं।

ब्रेग्जिट के जोखिम से निपटने के लिए तैयार रहे भारत : एसोचैम

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नयी दिल्ली 21 जून, उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम ने कहा कि गुरुवार को होने वाले जनमत संग्रह में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर निकलने के लिए मतदान करने की स्थिति में भारत सहित वैश्विक वित्तीय बाजार में मचने वाले कोहराम से निपटने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक दोनों को तैयार रहना चाहिए। एसोचैम ने आज जारी रिपोर्ट में कहा कि जनमत संग्रह के दिन ब्रिटेन के ईयू में शामिल रहने या नहीं रहने (ब्रेग्जिट) के लिए होने वाले मतदान में बहुत मामूली अंतर रहने की उम्मीद है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़े जोखिम के रूप में उभरेगा। लघु अवधि के लिए इससे वित्तीय बाजार में भारी उथल-पुथल होने की भी आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्रेग्जिट का जोखिम ऐसे समय में उभरा है जब फॉरेन करेंसी नॉन रेजिडेंट (एफसीएनआर) खातों की अवधि पूरी होने से देश से 20 अरब डॉलर निकाले जाने की आशंका है। हालाँकि पिछले 18 महीनों में कच्चे तेल के आयात पर हुये व्यय में कमी आने से चालू खाते की स्थिति बेहतर बनी हुई है। एसोचैम ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लिए लंदन मुख्य केंद्र रहा है। ब्रेग्जिट से उत्पन्न होने वाले जोखिम का असर वैश्विक वित्तीय बाजार पर अवश्य पड़ेगा। ऐसे में महत्वपूर्ण उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्था और वैश्विक फंड मैनेजर्स की प्राथमिकता वाले देश भारत में भी रुपये में अस्थिरता या डाॅलर की निकासी का जोखिम बना हुआ है।

राजनाथ के आग्रह पर गिरि ने अनशन तोड़ा

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नयी दिल्ली, 21 जून, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर धरने पर बैठे पूर्वी दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद महेश गिरि ने आज शाम अपना अनशन समाप्त कर दिया। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह धरनास्थल पर पहुंचे और श्री गिरि से अनशन समाप्त करने का आग्रह किया। इसके बाद श्री गिरि ने अपना अनशन समाप्त करने का एलान किया। भाजपा दिल्ली इकाई के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय की मौजूदगी में श्री सिंह ने जूस पिलाकर श्री गिरि का अनशन तोड़वाया। श्री गिरि रविवार शाम से मुख्यमंत्री आवास के बाहर अनशन पर बैठे थे। नयी दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) के लॉ अधिकारी एम.एम. खान की हत्या में शामिल होने का मुख्यमंत्री द्वारा आरोप लगाये जाने के बाद श्री गिरि ने श्री केजरीवाल को आरोप साबित करने के लिये खुली बहस की चुनौती दी थी। श्री केजरीवाल के खुली बहस की चुनौती में नहीं आने पर श्री गिरि रविवार की शाम को मुख्यमंत्री के आवास के बाहर धरने पर बैठ गये थे । पिछले तीन दिन के दौरान भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी और मनोज तिवारी समेत कई नेताओं ने धरनास्थल पर पहुंच कर श्री गिरि को समर्थन दिया था। श्री स्वामी ने मांग की थी कि श्री केजरीवाल यदि माफी नहीं मागते है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिये।

चीनी सेना के घुसपैठ की कोई गंभीर घटना नहीं : राव इंद्रजीत

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शिमला, 21 जून, केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने सीमा पार से चीनी सैनिकों के घुसपैठ की किसी भी गंभीर घटना से इंकार करते हुए कहा कि स्पष्ट सीमा रेखा नहीं होने के कारण दोनों देशाें के सैनिक गलती से एक दूसरे की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। श्री सिंह ने कल यहां एक कार्यक्रम में उन्होंने भारत चीन सीमा का निर्धारण करने वाली मैकमाेहन रेखा को इतिहास की गलती करार देते हुए कहा “ एक छोटे से कागज पर कलम से दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा खींच दी गयी जिसके कारण सीमा के आसपास 20 से 30 किलोमीटर का क्षेत्र विवादित रहता है।” उन्होंने कहा “सीमा रेखा के उल्लंघन की घटना गलतफ़हमी के कारण होती है, कई बार उनकी सेना गलती से हमारी सीमा में आ जाती है और कई बार हम गलती से उनकी सीमा में प्रवेश कर जाते है। एक दूसरे के साथ मिलकर हम इन मुुद्दों को सुलझा लेते है... ऐसा तब तक चलता रहेगा जब तक दोनों देशों के बीच सीमा के मुद्दों को सुलझाया नहीं जाएगा। अब तक चीन की तरफ हमारी सीमा के अंदर घुसपैठ की कोई गंभीर घटना सामने नहीं आई है।” रक्षा राज्य मंत्री ने कहा “ मैं यहां बरसात के मौसम में सेना और सीमावर्ती सड़कों की तैयारियाें का जायजा लेने अाया हूं, सेना का काम देश की रक्षा करना है, नियमित तौर पर सेना को नागरिकों का काम नहीं सौपा जाता है लेेकिन अपदा के समय उन्हें नागरिकों की मदद करनी होती है।”

सिद्ध योगी की तरह मोदी ने किया योगासन

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चंढीगड, 21 जून, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आज चंढीगड़ में आयोजित मुख्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ी तन्मयता से लोगों के साथ मिल कर विभिन्न योगासन किये। सफेद रंग का कुर्ता पायजाम पहने और गले में सफेद मफलर लपेटे प्रधानमंत्री किसी योगी से कम नहीं दिख रहे थे। योगसत्र में हिस्सा लेने के पहले उन्होंने आयोजन स्थल पर माैजूद 150 दिव्यांगों से मुलाकात की और उनसे बाते की उसके बाद वह वहां योग करने आये लोगों की भीड़ के बीच में चले गये कुछ देर तक पूरे आयोजन स्थल में घूूम कर सारी व्यवस्था देखी और उसके बाद लोगों के बीच ही अपना आसन जमा लिया। यह सुरक्षाकर्मियों के लिए थाेडी परेशानी का सबब बन गया लेकिन प्रधानमंत्री इन सब से निश्चिंत होकर योगासन करते रहे। योग की प्रत्येक क्रिआअों को बड़े ही सधे तरीके से उन्होंने किया जिसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह योग के पुराने प्रशिक्षक हो। 

प्रधानमंत्री जनता के बीच में योग कर रहे थे तो उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी, पंजाब और हरियाणा के राज्यपाल और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक कप्तान सिंह सोलंकी, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और सरकारी अधिकारी अगली पंक्ति में योग कर रहे थे। इससे पहले प्रधानमंत्री के यहां पहुंचते ही उत्साहित जनसैलाब ने जोरदार तालियों ने उनका स्वागत किया जिसका अभिवादन प्रधानमंत्री ने हाथ हिलाकर किया। योग सत्र समाप्त होते ही लोगों ने प्रधानमंत्री को चारों ओर से घेर लिया और उनके साथ सेल्फी लेने की होड मच गई। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी मुश्किल से प्रधानमंत्री को भीड़ से बाहर निकाला। वापस जाते हुए प्रधानमंत्री ने योग दिवस को सफल बनाने के लिए प्रशासन, पुलिस और जनता को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले साल भी इसका सफल आयोजन होगा। योग दिवस से पहले बारिश होने के कारण आयोजन स्थत पर काफी कीचड हो गया था जिससे लोगों को थोडी परेशानी हुई लेेकिन इसके बावजूद उनके उत्साह और जोश में कोई भी कमी नहीं थी। योग करने के लिये यहां बच्चे जवान और बुजुर्ग लोग यहां मौजूद थे जिसके कारण कैपिटल कॉम्पलेक्स खचाखच भरा हुआ था। योग सत्र समाप्त होते ही तेज बारिश शुरु हो गयी जिससे परिसर जल्दी ही खाली हो गया।

योग के जरिये तन और मन को स्वस्थ बनाने का विश्व को भारत का संदेश

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नयी दिल्ली 21 जून, भारत ने दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर करोड़ों लोगों को तन और मन से स्वस्थ्य रहने के लिए जागरूकता का संदेश देकर आज एक बार फिर पूरे विश्व को योग के रंग में रंग दिया और उन्हें अपनी दिनचर्या और जीवनशैली को भी बदलने की सीख दी। संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में विश्व के 191 देशों में वहां के नागरिकों और भारतीय समुदायों के लोगों ने योग शिविरों में भाग लेकर योगाभ्यास किया। संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम से लेकर रूस, चीन, जापान और श्रीलंका तथा नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के अलावा कई मुस्लिम देशों में भी योग शिविर आयोजित किये जाने की खबरें मिली है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में करोड़ों देशवासियों ने आज सुबह करीब एक लाख स्थलों पर योग की मुद्राओं और आसनों के जरिये न केवल एक नया इतिहास रचा बल्कि विश्व में एक नया कीर्तिमान भी कायम किया। केंद्र सरकार के 57 मंत्रियों ने देश के विभिन्न इलाकों में जनता के बीच जाकर खुद योग किया और सबको इसके लिए प्रेरित भी किया।

वाडा प्रमुख रीडी के बयान पर भड़कीं शारापोवा

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न्यूयार्क, 21 जून, टेनिस स्टार मारिया शारापोवा ने विश्व डोपिंग निरोधक एजेंसी (वाडा) के प्रमुख क्रेग रीडी के आय संबंधी बयान पर आपत्ति जताते हुए माफी मांगने को कहा है। डोपिंग के आरोप में दाे वर्ष का प्रतिबंध झेल रहीं पांच बार की ग्रैंड स्लेम चैंपियन शारापोवा के वकील जॉन हैगर्टी ने टेनिस स्टार की तरफ से आपत्ति दर्ज कराते हुए रीडी से माफी की मांग की है। रीडी ने सोमवार को कहा था कि शारापोवा की कुल वार्षिक कमाई वाडा की कमाई से अधिक है। शारापोवा के वकील ने रीडी के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा “वाडा या अदालत की आंखों में न्याय अंधा होना चाहिए जिसमें खिलाड़ी की कमाई भी शामिल हैै। उन्हें इस बयान के लिए शारापोवा से माफी मांगनी चाहिए। ऐसे में प्रशंसक ये ना सोचें कि विभिन्न खिलाड़ियों की रैकिंग और कमाई के अनुसार प्रति वाडा के मानक अलग अलग हैं।” अंतर्राष्ट्रीय टेनिस महासंघ ने प्रतिबंधित पदार्थ मेलोडोनियम का सेवन करने के आरोप में मार्च में शारापोवा पर दो वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया था। शारापोवा पिछले 11 वर्ष से लगातार सर्वाधिक कमाई करने के मामले में नंबर एक स्थान पर काबिज शारापोवा से इस वर्ष यह ताज भी छिन गया। डोपिंग में नाम आने के बाद से कई बड़े ब्रांड ने भी रूसी खिलाड़ी से भी किनारा कर लिया है। 

कोच चुनते समय चैपल वाली गलती नहीं होगी : गांगुली

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कोलकाता, 21 जून, पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली ने कहा है कि भारतीय टीम का मुख्य कोच चुनना बहुत जिम्मेदारी वाला काम है और वह किसी भी हाल में इस बार वह गलती नहीं दोहराएंगे जैसी उन्होंने वर्ष 2005 में आस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल के नाम की सिफारिश करके की थी। पूर्व कप्तान गांगुली और पूर्व कोच चैपल के बीच विवाद क्रिकेट जगत के चर्चित विवादों में एक माना जाता है। उस दौरान गांगुली को कप्तानी से हटा दिया गया था। गांगुली ने अपनी किताब ‘ए सेंचुरी इज नॉट इनफ’ के विमोचन पर पत्रकारों से कहा“ मुझे एक बार पहले भी भारत का कोच चुनने का मौका मिला था। लेकिन मैंने उस बार गलती कर दी थी। मुझे एक बार फिर मौका दिया गया है। मैंने एक बार चैपल का साक्षात्कार किया था और वह काम मैंने ठीक तरह से नहीं किया था।” गांगुली ने कहा कि बीसीसीआई की क्रिकेट सलाहकार समिति इस बार अपने काम में गलती नहीं करेगी। उन्होंने कहा“ मुझे यकीन है कि इस बार हम सही काम करेंगे। चाहे वह जो भी हो। सौभाग्य से इस बार मुझे सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, बीसीसीआई के सचिव अजय शिर्के और अध्यक्ष अनुराग ठाकुर का भी साथ मिलेगा जो कोच चुनने में मेरी मदद करेंगे। हम मिलकर सही इंसान का ही इस पद पर चुनाव करेंगे।” 

पूर्व क्रिकेटर ने भी माना कि उनके दिमाग में भी भारतीय टीम का कोच बनने का विचार आया था। उन्होंने कहा“ करीब ढाई वर्ष पहले मेरे दिमाग में भी इस नयी भूमिका की बात आई थी। लेकिन अभी मैं खुद कोच चुनने का काम कर रहा हूं। यही जिंदगी है। मैंने साक्षात्कार नहीं दिया लेकिन संभवत: मैं किसी दिन साक्षात्कार दूं।” बंगाल क्रिकेट संघ(कैब) के अध्यक्ष ने कहा“ जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं है। कोई नहीं जानता कि अगले दो साल में क्या होगा। कोई नहीं जानता था कि मैं कैब का अध्यक्ष बनूंगा और विश्वकप ट्वंटी 20 के फाइनल की मेजबानी का जिम्मा संभालूंगा। यही जीवन है।” पूर्व कप्तान ने साथ ही माना कि भारतीय टीम के कोच का साक्षात्कार करने की पूर्व संध्या पर उन्हें काफी तनाव था और यह एहसास वर्ष 1996 में लार्ड्स में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने जैसा ही था। उन्होंने कहा“ कोच के साक्षात्कार के एक दिन पूर्व मुझे नींद नहीं आई। इसके बाद मैंने यूट्यूब पर लार्ड्स में अपनी शतकीय पारी देखी। उस 12 मिनट के वीडियो के बाद मुझे नींद आई।” 

क्रिकेटरों के लिए शुरु होंगी योग की कक्षाएं : ठाकुर

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धर्मशाला, 21 जून, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के स्वास्थ्य के लिए योग की कक्षाएं शुरु करने का एेलान किया है। बीसीसीआई के पहले वार्षिक क्रिकेट सम्मेलन का उद्घाटन करने पहुंचे ठाकुर ने यहां मंगलवार को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर कहा “बीसीसीआई और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ (एचपीसीए) अपने क्रियाकलापों में योग को भी शुरु करेगा। एचपीसीए सभी जूनियर और सीनियर खिलाड़ियों के लिए योग की कक्षाएं शुरु करेंगी जिससे उन्हें फायदा मिले और स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहे। इसके लिए शिविर भी शुरु किए जाएंगे जिससे खिलाड़ियों को फायदा मिलता रहे।” ठाकुर ने कहा “बीसीसीआई भी राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों के अलावा उभरते खिलाड़ियों के लिए भी योग शिविर का आयोजन करेगा जिससे खिलाड़ियों के स्वास्थ्य के साथ ही उनकी क्षमता भी बेहतर बनी रहे।” इससे पहले ठाकुर और स्टार आफ स्पिनर हरभजन सिंह ने धर्मशाला स्थित हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के स्टेडियम में बड़ी संख्या में छात्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय योग कार्यक्रम में शिरकत की।

ठाकुर ने योग दिवस के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा “योग दिवस केवल भारत में ही नहीं मनाया जा रहा है। इसको लेकर युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक में उत्साह है। सभी लोग शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर स्वस्थ रहने के लिए योग को अपने जीवन में शामिल करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने योग का प्रसार एक जीवन पद्धति के तौर पर पूरी दुनिया में किया है।” उन्होंने कहा “योग केवल किसी एक धर्म विशेष के साथ ही नहीं जुड़ा हुआ है। आज पूरी दुनिया आतंकवाद की समस्या से जूझ रही है और युवा वर्ग तनाव में जी रहा है। ऐसे में योग ही हर स्तर पर सुकून प्रदान कर रहा है और यही इसकी विशेषता भी है। योग का ज्ञान रखने वाले सभी लोग इसका प्रसार करें।” ठाकुर ने एचपीसीए स्टेडियम में भारतीय बोर्ड के पहले वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन किया। बीसीसीआई की ओर से आयोजित यह सम्मेलन 21 से 24 जून तक चलेगा और भविष्य में भी इसके हाेने की उम्मीद है। सम्मेलन में घरेलू क्रिकेट को मजबूत करने पर भी ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने जिम्बाब्वे में सामने आई दुष्कर्म की घटना पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार करते हुए कहा “टीम इंडिया का कोई भी खिलाड़ी किसी घटना से नहीं जुड़ा है। पुलिस अभी मामले की जांच कर रही है और इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देना अभी उचित नहीं है।” 

योग समाज को जोड़ता है , तोड़ता नहीं : रविशंकर

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पटना 21 जून, केन्द्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज कहा कि योग पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और यह समाज को जोड़ता है , तोड़ता नहीं । श्री प्रसाद अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर यहां के एतिहासिक गांधी मैदान में पतंजलि योग पीठ द्वारा आयोजित योग शिविर में भाग लेने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल का नजीता है विश्व योग दिवस । उन्होंने कहा कि योग दिवस के मौके पर अमेरिका समेत यूरोप के कई देश तथा खाड़ी देशों के अलावा रुस और बेल्जियम में भी लोग योग करते है । केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि योग समाज , देश और दुनिया के लोगों को जोड़ता है इसलिए इस पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए । उन्होंने कहा कि योग के कारण ही आज विश्व में भारत की छवि मजबूत हुयी है । अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर राजधानी पटना में 22 स्थानों पर योग का आयोजन किया गया है।

पतंजलि योग पीठ द्वारा आयोजित इस समारोह में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के कई वरिष्ठ नेता समेत हजारो लोगों ने भाग लिया । सुबह छह से आठ बजे तक गांधी मैदान में योग का आयोजन किया गया था । केन्द्रीय सूक्ष्म , लघु एवं मध्यम उपक्रम राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने पटना के शिवाजी पार्क में आयोजित शिविर में योग किया । उन्होंने कहा कि योग का आयोजन पतंजलि योग पीठ द्वारा किया गया है और इसमें सभी को भाग लेना चाहिए । हाजीपुर से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार केन्द्रीय खाद्य , उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने यहां के राज नारायण कॉलेज परिसर में योग किया । उन्होंने कहा कि योग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सराहनीय कदम है । उन्होंने कहा कि योग करने से तन और मन दोनों स्वस्थ रहता है । इस मौके पर कॉलेज के प्राचार्य , शिक्षक और कर्मचारी समेत सैकड़ों लोगों ने योग किया । भागलपुर से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित योग कार्यक्रम में भाग लिया । उन्होंने कहा कि योग आम लोगों के फायदे के लिए है । इस पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान आना ठीक नहीं है। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोगों ने शिविर में योग किया । केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री राम कृपाल यादव ने मुजफ्फरपुर में आयोजित योग शिविर में योग किया । उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आज के दिन देश-विदेश में लोग योग कर रहे है। उन्होंने कहा कि योग से लोग स्वस्थ रहेंगे और इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और योग गुरु बाबा रामदेव का आभार मानना चाहिए । उन्होंने कहा कि इनके कारण ही योग देश- विदेश में लोकप्रिय हुआ है । 

टॉपर्स फर्जीवाड़ा के मास्टरमाइंड लालकेश्वर और उनकी पत्नी होगी निलंबित

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पटना 21 जून, बिहार इंटरमीडियेट की परीक्षा में टॉपर्स फर्जीवाड़ा मामले में गिरफ्तार विद्यालय परीक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष एवं पटना विश्वविद्यालय भूगोल संकाय के शिक्षक लालकेश्वर प्रसाद सिंह और उनकी पत्नी मगध विश्वविद्यालय के गंगा देवी महिला महाविद्यालय पटना की प्राचार्य उषा सिन्हा को निलंबित किये जाने की तैयारी की जा रही है । आधिकारिक सूत्रों ने आज यहां बताया कि प्रावधान के अनुसार 48 घंटे तक पुलिस हिरासत में रहने पर निलंबित करने का नियम है । टॉपर्स फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद श्री सिंह ने सात जून को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था । इसके बाद पटना विश्वविद्यालय के भूगोल संकाय में पदभार ग्रहण के लिये पत्र भेजा । सूत्रों ने बताया कि पत्र भेजने के बावजूद श्री सिंह ने पदभार ग्रहण नहीं किया । श्री सिंह ने इस दौरान पटना विश्वविद्यालय को किसी भी तरह की जानकारी नहीं दी । ऐसी स्थिति में पटना विश्वविद्यालय प्रशासन श्री सिंह के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करने की तैयारी में लग गयी है । सूत्रों ने बताया कि वहीं श्री सिंह की पत्नी और मगध विश्वविद्यालय के गंगा देवी महिला महाविद्यालय पटना की प्राचार्य उषा सिन्हा 16 जून तक ही मेडिकल अवकाश पर थी । अवकाश की अवधि समाप्त होने के बाद श्रीमती सिन्हा ने न तो कॉलेज आयी और न ही कोई सूचना दी थी । ऐसे में मगध विश्वविद्यालय प्रशासन श्रीमती सिन्हा के खिलाफ निलबंन की कार्रवाई की तैयारी में जुट गया है । 

नीतीश ने कभी नहीं कहा कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं : झा

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सहरसा 21 जून, बिहार में महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस कोटे से राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री मदन मोहन झा ने आज कहा कि मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड(जदयू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने स्वयं कभी नही कहा कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं । श्री झा ने यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री का चयन जनता करती है । मुख्यमंत्री श्री कुमार ने कभी भी यह नहीं कहा है कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार है । उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस बात को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे है । श्री कुमार महागठबंधन के सर्वमान्य नेता है और वह (श्री कुमार) चाह रहे है कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा के चुनाव में परिर्वतन हो तथा भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) फिर से सत्ता में नहीं आये । राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री ने कहा कि कांग्रेस के कार्यकर्ता भाजपा और उसके सहयोगी दलों को अगले लोकसभा के चुनाव में उखाड़ फेकने के इरादे से अभी से ही गांव-गांव का दौरा करने में लगे हैं। पार्टी के कार्यकर्ता अपने दौरे के क्रम में लोगों को केन्द्र सरकार की विफलताओं से अवगत करा रहे है । श्री झा ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री कुमार भी इसी इरादे से कई राज्यों का अब तक दौरा कर चुके हैं । श्री कुमार राज्यों में दौरा कर महागठबंधन और मजबूत बनाने की कोशिश में लगे है । उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी भी चाह रही है कि बिहार के तरह ही दिल्ली समेत अन्य राज्यों में पूर्ण शराबबंदी हो । 

टॉपर्स घोटाले के मास्टरमाइंड लालकेश्वर और उषा समेत सात अभियुक्त जेल भेजे गये

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पटना 21 जून, बिहार के बहुचर्चित टॉपर्स घोटाले के मास्टरमाइंड और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद तथा उनकी पत्नी और जनता दल यूनाइटेड:जदयू: की पूर्व विधायक डा.उषा सिन्हा की आज पटना व्यवहार न्यायालय में पेशी हुई और उसके बाद उन्हें चार जुलाई तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया । उत्तर प्रदेश के वाराणसी में कल गिरफ्तार किये गये लालकेश्वर प्रसाद और उनकी पत्नी को घोटाले की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) की टीम ट्रांजिट रिमांड पर लेकर आज पटना आयी । उनके साथ उनके संबंधी प्रभात जायसवाल को भी पटना लाया गया जिन्होंने श्री प्रसाद और डा.सिन्हा को वाराणसी में छुपाने में मदद की थी । तीनों को सीधे निगरानी (सतर्कता) के विशेष न्यायाधीश राघवेन्द्र कुमार सिंह की अदालत में पेश किया गया लेकिन अदालत की कार्य अवधि समाप्त हो जाने के कारण उन्हें विशेष न्यायाधीश के आवास पर ले जाया गया और वहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में लेते हुए चार जुलाई तक के लिए केन्द्रीय आदर्श कारा बेउर भेज दिया गया । इससे पूर्व श्री प्रसाद और उनकी पत्नी की ओर से जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र कुमार की अदालत में अग्रिम जमानत के लिए दी गयी अर्जी को उनकी गिरफ्तारी हो जाने के कारण वापस ले लिया गया । अब दोनों नियमित जमानत के लिए अर्जी दायर करेंगे ।

अदालत में श्री प्रसाद और डा.सिन्हा की ओर से बताया गया कि दोनों की तबीयत खराब है । इसपर न्यायाधीश ने बेउर के जेल अधीक्षक को दोनों के स्वास्थ्य की जांच कराकर उसकी रिपोर्ट अदालत को सौंपने का निर्देश दिया।इसके साथ ही विशेष अदालत में दोनों अभियुक्तों को पुलिस रिमांड पर सौंपने के लिए भी एसआईटी की ओर से अर्जी दी गयी । इसपर श्री प्रसाद और डा. सिन्हा की ओर से भी एक याचिका दायर की गयी जिसमें कहा गया है कि पुलिस रिमांड में पूछताछ के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने जो मापदंड निर्धारित किया है उसका पालन किया जाये। दोनों अर्जियों पर कल सुनवाई होगी । इससे पूर्व कल मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ओमप्रकाश की अदालत में एसआईटी की ओर से श्री प्रसाद और उनकी पत्नी के खिलाफ कोतवाली थाना में छह जून को दर्ज करायी गयी प्राथमिकी में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 8, 9 और 13 को जोड़ने के लिए अर्जी दायर की गयी थी जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए इस मामले को निगरानी के विशेष न्यायाधीश राघवेन्द्र कुमार सिंह की अदालत में स्थानांतरित कर दिया था । टॉपर्स घोटाले के मामले में ही आज चार अन्य अभियुक्तों रीता कुमारी, डा.कुमारी शकुंतला, नंदकिशोर राय (सभी मुजफ्फरपुर) और निशु सिंह वैशाली को भी निगरानी की विशेष अदालत में पेश किया गया । निगरानी के विशेष न्यायाधीश श्री सिंह ने उन्हें भी चार जुलाई तक के लिए जेल भेज दिया । 

न मैं झुकने वाला, न टूटने वाला : केजरीवाल

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नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वाटर टैंकर घोटालेे में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को लेकर पीएम मोदी पर एक बार फिर सीधा निशाना साधा। उन्होंने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कहा, 'एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो (एसीबी) की पूरी एफआईआर फर्जी है और इसमें कुछ नहीं निकलेगा।'हमलावर तेवर अपनाते हुए दिल्‍ली के सीएम ने कहा, 'मोदी जी ने बाकी सबको रेड कराकर डरा दिया। वे कुछ भी कर लें, मैं पीछे हटने, डरने वाला और टूटने वाला  नहीं हूं।'केजरीवाल ने चुनौती भरे लहजे में कहा, मैं रोहित वेमुला और किसानों के हक में आवाज उठाता रहूंगा। उन्‍होंने कहा कि अगस्‍ता मामले में पीएम अगर कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को बचाएंगे तो मैं आवाज उठाऊंगा। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि रॉबर्ट वाड्रा, सोनिया गांधी के खिलाफ न तो छापे मारे गए और न एफआईआर की गई लेकिन मेरे खिलाफ मोदी जी रेड और एफआईआर कराते हैं। दिल्‍ली के सीएम में कहा, 'मोदीजी आप भी मानते हैं कि आपकी सीधी लड़ाई मेरे साथ है।'

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आश्चर्य जताया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है, जबकि बीजेपी ने चुनावों से पहले ऐसा करने का वादा किया था। उन्होंने अगस्तावेस्टलैंड घोटाले में सोनिया के खिलाफ केंद्र की तरफ से 'कार्रवाई नहीं करने'पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, 'सवाल यह है कि इस तरह की छापेमारी और प्राथमिकी मेरे खिलाफ क्यों हो रही है? क्योंकि इस तरह का हथकंडा अपनाकर वह दूसरों को डराने में कामयाब रहे हैं। केवल मैं ही ऐसा व्यक्ति हूं जो उनकी धमकी भरे हथकंडे के खिलाफ तनकर खड़ा हूं।'केजरीवाल ने कहा, 'अगर आप विजय माल्या को सात हजार करोड़ रुपये लेकर देश से भागने देंगे तो मैं आवाज उठाऊंगा। अगर आप रक्षा क्षेत्र को एफडीआई के लिए खोलकर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करेंगे तो मैं आवाज उठाऊंगा। बीजेपी के नेता अगर ईमानदार अधिकारी एमएम खान के हत्यारों का पक्ष लेंगे तो मैं आवाज उठाऊंगा।'

केजरीवाल ने कहा, 'मैं ही केवल ऐसा व्यक्ति हूं जो मोदी के गलत कामों के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ा हूं जिसे वह पचा नहीं पा रहे हैं... सोनिया या राहुल के खिलाफ सीबीआई की छापेमारी नहीं हो रही है। वाड्रा या सोनिया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं हो रही है, लेकिन वे मुझे निशाना बना रहे हैं और इसका मतलब है कि मोदी जी आप भी जानते हैं कि आपकी लड़ाई सीधे मुझसे है।'केजरीवाल ने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई।'बहरहाल प्राथमिकी में केजरीवाल या दीक्षित के नाम का जिक्र नहीं है।

फिटनेश के प्रति सजग है अभिनेता रीतेश देशमुख

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अनेकों फिल्मों में अपना रंग जमाने वाले अभिनेता रीतेश देशमुख का कहना है कि  अगर आपको स्वस्थ और बीमारियों से बचना है,तो उसके लिए फिट रहना जरूरी है,बालीवुड में आज सभी अभिनेता स्वस्थ को लेकर जागरूक है। यह बात उन्होंने ‘जिम चेन गोल्ड’ जिम की 104वीं शाखा का लोकार्पण  के मौके पर कहीं। इस मौके पर ‘जिम चेन गोल्ड’ के निदेशक डाॅ. करण वालेशाॅ भी मौजूदगी थी। आम तौर पर आज जिम जाने वाले लोगों का मुख्य मकसद होता है मोटापा घटाना और मसल्स बनाना, लेकिन अलग-अलग लोगों का शरीर उनकी आवश्यकता के अनुसार होती है और उसी के अनुरूप उस पर काम किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय सुविधाओं वाले इंटनेशनल ‘जिम चेन गोल्ड में उसी आवश्यकता के अनुसार उन्हें व्यायाम कराया जाता है और इसके लिए उन्हें खानपान के लिए भी दिशा निर्देश दिए जाते हैं। जिम में कई तरह के सप्लीमेंट भी दिए जाते हैं, जिससे शरीर को सही आहार मिल सके, क्योंकि कार्डिओ और वेट ट्रेनिंग के बाद ही मोटापा कम किया जा सकता है। इसीलिए इस आधुनिक जिम में स्टीम बाथ, एरोबिक्स के साथ-साथ वेट लूज, मसल्स बनाने तथा शरीर के अंग से चर्बी घटाने के लिए मोटापा घटाने के लिए साइकिलिंग, स्टेपर, क्रॉसओवर मशीन, एडप्टीव मोशन ट्रेनर जैसी कई तरह की मशीनें उपलब्ध हैं, जो वजन घटाने में काफी मददगार साबित होंगी।

इस अवसर पर गोल्ड जिम के निदेशक करण वालेशाॅ ने कहा कि हमारे व्यवसाय का मुख्य मकसद पैसा कमाना नहीं, बल्कि भारत के लोगों कसे फिट रखना है। इसे हमने ‘गोल्ड फिट इंडिया’ अभियान नाम दिया है। इस अभियान के तहत अब तक हम डेढ़ लाख भारतीयों को शारीरिक तौर पर फिट बना चुके हैं। फिटनेस के फील्ड में विश्व स्तर पर हमारा पचास साल का अनुभव है, जबकि भारत में हम केवल 13 साल पुराने हैं। गोल्ड जिम के सदस्यों में आमलोगों के साथ ही बाॅलीवुड स्टार्स, फैशन, खेल, उद्योग जगत आदि से जुड़े लोग भी हैं। हमारे जिम में महिलाओं एवं छात्रों के लिए अलग व्यवस्था है। जिम में हर वर्ग के लिए कुछ खास है। पूरी फैमिली के साथ जिम आने वालों को रजिस्ट्रेशन में अलग से बेनिफिट दिया जाएगा। कपल्स के लिए भी अलग से फैसिलिटीज हैं। कुल मिलाकर गोल्ड जिम लोगों को विश्वस्तरीय जिम की सुविधा दे रहा है।’
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