ख़ुद बीमार है सदर अस्पताल बेगूसराय
अरुण कुमार,मटिहानी,बेगुसराय। चन्दन महतों,पिता-श्याम विलास महतों,घर-रसीदपुर,बछवाड़ा,बेगुसराय। पंजीयन संख्या-62316c17699, यह मरीज टी•बी•(यक्ष्मा) और एच आई वी से पीड़ित है।इनका यक्ष्मा का दवाई चल रहा था,जिसके वजह से एच आई वी ने कुछ ज्यादा ही असर दिखाना शुरू कर दिया।नतीजा मरीज ने धीरे धीरे खाना कम करते हुए एकदम ही खाना बन्द कर दिया तो घरवालों ने सादर अस्पताल बेगुसराय लाया,यहाँ इनका इलाज चल रहा है।मरीज दिनांक 01-07-2016 को एडमिट हुआ है परन्तु कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा है बस जिन्दा है,कारण अस्पताल में उपयुक्त दवाइयों का आभाव।मरीज के पिता का कहना है की हज़ूर हम गरीब आदमी बाहर से महंगी दवाई ला नहीं सकते और अस्पताल से सभी दवाई मिलता नहीं है।मांगने पर डॉक्टर साहब कहते हैं जो दवाई यहाँ उपलब्ध रहेगा वही मिलेगा बाकी की दवाई तो बाहर से ही लाना होगा।मरीज के पिता आगे बताये की,सर,किसी तरह से अभी तक में 4-5 सौ का दवाई बाहर से ला चुका हूँ वो भी ऋण लेकर अब और दवाई बाहर से लाने की क्षमता नहीं है हमारी हजुर किसी तरह मेरे बच्चे को बचा लीजिए सर।मैंने उनसे बोला की हम प्रयास करेंगे,डॉक्टर साहब से बताऊंगा आपके बारे में वैसे मैं डॉक्टर नहीं मैं पत्रकार हूँ।आगे बढ़ने पर बगल बाले बेड पर पड़े मरीज,संपन्न सिंह भी एच आई वी पेसेंट हैं और ये भी 12 दिन पूर्व एडमीड हुए हैं इनकी भी हालत ठीक नहीं है दवाई के आभाव के साथ साथ इनका तो ये भी कहना है की डॉक्टर हम जैसे मरीजों को छूने से भी कतराते हैं इलाज क्या करेंगे फिर भी हम यहाँ इसलिए पड़े हुए हैं कि हम गरीब आदमी बाहर इलाज करा तो सकते नहीं चलो जब तक जीना होगा किस्मत में यहीं जिएं या फिर यहीं मर जाएंगे।क्योंकि अस्पताल से दो सुई के अलावा और कुछ तो मिलता ही नहीं।आगे एक और एच आई वी पेसेंट-सीताराम महतों,पिता-यशो महतों,घर-खंझापुर,मंझौल,बेगुसरआय का भी वही हाल और वही बयान है।
उक्त मरीजों का इलाज डॉक्टर आनन्द कुमार शर्मा और डॉ• प्रमोद कुमार के रहमो करम पर हैं जो कि मरीजों को छूना तक नहीं चाहते।आगे ऊपर के वार्ड में एक ऐसा पेसेंट है जिसके पैर में इन्फेक्सन की वजह से नौबत पैर काटने तक की आ गई है परन्तु कोई विभागीय डॉ• पैर काटने के लिए तैयार नहीं बिचारा दर्द से कराह रहा है।डॉ• से पैर काटने के लिए बोला मरीज स्वयं तो डॉ• का कहना हुआ की पैर कटवाना है तो बाहर कहीं और जाकर दिखाओ और पैर कटवाओ।मरीज के पैर में एक छोटी सी फुंसी समान्य जख्म हुआ और वही जख्म बड़ा होकर उसके बीच के तीनों अंगुली कटवा दिया और अंगूठे एवं छोटी अँगुलियों की भी हालत दयनीय है।वैसे ज़हर धीरे धीरे पुरे पैर में फ़ैल रहा है,मरीज को यदि बचाना है तो उसके पैर काटने में ही भलाई है,शायद पैर काटने के बाद मरीज बच जाए यही बहुत है।यदि पैर नहीं काटा गया तो ज़हर धीरे धीरे पुरे शरीर में फ़ैल जाएगा और डॉ• गोपाल मिश्र का ही सलाह था की चले जाओ बाहर कहीं इलाज के लिए या फिर पटना चले जाओ।मरीज का कहना है कि पटना से तो यहाँ आए अब और कहाँ जाएँगे,यहीं जो होना होगा वो होगा।भला गरीबों को देखनेवाला कोई नहीं।दरअसल में डॉक्टरोँ को अपने निजी क्लीनिक से फुर्सत मिले तब तो नौकरी पर ध्यान दें,नौकरी के तनख्वाहों से कई गुणा अधिक,अधिक नहीं अत्यधिक कहा जाए तो को अतिश्योक्ति नहीं तो फिर क्यों माथा खपाने कहीं और जाया जाए,सरकार तनख्वाह तो दे ही देगी।बस हमारे सिविल सर्जन साहब खुश रहें।सिविल सर्जन साहब को तो अमूमन हर रोज मीटिंग कहीं न कहीं फिक्स ही रहता है कभी जिलाधिकारी महोदय के साथ,कभी आरक्षी अधीक्षक महोदय के साथ,कभी जिला जज साहब के साथ तो कभी कहीं कभी कहीं इनकी व्यस्तता तो लाजिमी है क्योंकि ये बेगुसराय सदर अस्पताल के सिविल सर्जन हैं तो व्यस्त तो रहेंगे ही।अस्पताल में आँख के स्पेशलिस्ट,ई इन टी•एवं चाइल्ड स्पेशलिस्ट कोई भी डॉक्टर नहीं हैं इस तरह डॉक्टरों का भी अभाव अस्पताल में रहता ही है।इस बाबत बात करने के लिए सिविल सर्जन साहब से मिलने में दो दिन लग गए आखिर मव फोन पर समय लेकर मिलना पड़ा मुलाक़ात और बात भी हुई,श्रीमान के समक्ष जब इन सारी बातों को रखा तो जवाब में इन्होंने वाही मीटिंग वाली बात दुहराते हुए कहने लगे कि ये सब देखना हमारा काम नहीं इसके लिए डॉक्टर हैं और जब मेरे पास को कम्प्लेन,शिकायत आते हैं तो मैं उसे देखता हूँ।श्रीमान ने बताया की हमारे अस्पताल में 100 बेड्स हैं,कुछ प्रसुती वेटिंग विभाग,महिला वार्ड और पुरुष वार्ड आदि हैं।डॉ• के आभाव का जिक्र किया तो कहने लगे ये सब देखना सरकार का काम है ये सरकारी अस्पताल है तो सरकार ही देखेगी की कहाँ क्या कमी है अब हम तो डॉक्टरों को एपॉइंट तो कर नहीं सकते वो तो सरकार ही करेगी।आँख के डॉक्टर के बारे में बताते हु कहते हैं की डॉ• इमामूल होदा आए हैं ज्वाइन किए और पी जी करने गए हैं।मैंने पूछा की ज्वाइन करके पी जी करने गए हैं,तो क्या वो छुट्टी पर हैं ?तो श्रीमान कहने लगे की ये विभागीय मामला है उनके ज्वाइनिंग लेटर पर पी जी के लिए जाने के बारे में लिखा हुआ था तो वो गए पी जी करने इसमें मैं क्या कर सकता हूँ।बाकी वार्डों की साफ़ सफाई,मरीजों के खाना,चाय नास्ता आदि में कोई परेशानी नहीं।सबेरे में चाय,दो बिस्कीट,एक उबला हुआ अंडा दिया जाता है,दोपहर में चावल या 5 रोटी सब्जी और रात्रि भोजन में 5 रोटी सब्जी और 250 ग्राम दूध दिया जाता है।बेड सीट प्रतिदिन बदला जाता है ऐसा मरीजों का कहना है।श्रीमान सिविल सर्जन डॉ•हरी नारायण सिंह बताते हैं की कई मरीज तो खाने के लिए बेड पर पड़े रहते हैं।झूठे खुद को बीमार बताकर पड़े रहते हैं।अब कोई मरीज बिमारी का बहाना बनाकर अस्पताल में पड़ा रहता है इसे क्या समझा जाए,अस्पतालकर्मि से तो ज्यादा बुद्धिमान तो वो मरीज ही है न जो मुफ़्त की रोटी तोड़ रहा है और काबिल अस्पतालकर्मि उसे मुफ़्त की रोटी तोड़ने दे रहे हैं।मैं सिविल सर्जन साहब के समक्ष इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की हँसते हुए उनके चेंबर से निकल पड़ा।महिला डॉ• में श्रीमति शशि प्रभा और श्री माति कामिनी रॉय,वर्न विभाग में डॉ• अखिलेश एवं डॉ•राजू,हड्डी बिभाग को डॉ• गोपाल मिश्रा एवं डॉ• दिवाकर देखते हैं,डेंटिस्ट डॉ•राम प्रवेश प्रसाद,एक्स-रे में डॉ• अरुण कुमार हैं।अस्पताल का अपना तीन एम्बुलेंस है कॉल करने पर यह सेवा नि:शुल्क है हाँ बाहर रेफर करने पर जब कोई मरीज यहाँ का एम्बुलेंस इस्तेमाल करता है तो उससे 12 रूपये प्रति किलोमीटर शुल्क देय होता है।स्मार्ट कार्ड धारकों के लिए सभी सुबिधायें नि:शुल्क रहता है।ब्लड बैंक के सम्बन्ध में डॉ•उमा शंकर सिंह बताते हैं की यह ब्लड बैंक जो जीवन दायिनी संस्थान है वो 50 वर्ष पुराने मकान में पड़ा है यहां न कोई चपरासी ना ही कोई सहायक है,तनख्वाह भी बस जीने भर मिल जाता है।ब्लड पूरा है,ब्लड रखने के लिए 3 बड़ा जिसमे एक खराब पड़ा है,और दो छोटा उसमें भी एक खराब पड़ा है।ब्लड लेनेवालों से 500 रूपये लिये गए तो हमने पूछा की ये पैसे किस बात के लिए गए तो ब्लड बैंक के टेक्नोलॉजिस्ट महबूब आलम के अनुसार ब्लड जाँच एवं मेंटेनेंस फ़ीस लिया जाता है और इसका रसीद भी मरीज को दिया जाता है ऐसा ऊपर से ही आदेश है।ये है हमारे यहाँ का स्वास्थ्य विभाग जो खुद ही बीमार चल रहा है ऐसी व्यवस्था में आप सदर अस्पताल बेगूसराय में स्वस्थ होने की कैसे उम्मीद कर सकते हैं।ज़िला मुख्यालय की ही स्थिति इतनी नाज़ुक है तो ज़िला के अन्य स्वास्थ्य केंद्रों की क्या स्थिति होगी ये सहज ही सोचने का विषय है।