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दरभंगा संस्कृत विवि के कुलपति को त्यागपत्र देने का राज्यपाल का निर्देश

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पटना 10 अगस्त, बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति रामनाथ कोविंद ने आज कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति को त्यागपत्र देने का निर्देश दिया है। राजभवन के आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि कुलपति डा.देवनारायण झा को उनकी नियुक्ति के समय दस वर्षो का अपेक्षित अनुभव नहीं होने को देखते हुए बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 (अद्यतन संशोधित ) की धारा 11 (1) के तहत यह आदेश दिया गया है । इसके तहत आदेश के साथ ही डा.झा को अपने पद से त्यागपत्र देना होगा । 


सूत्रों के अनुसार आदेश में यह कहा गया है कि कुलपति डा.झा के त्यागपत्र नहीं दिये जाने की स्थिति में बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 की धारा 11 (3) के तहत यह मान लिया जायेगा कि उन्होंने त्यागपत्र दे दिया है । इस आदेश के बाद से दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति का पद नियमित तौर पर रिक्त हो गया है ।


नक्सली हमले में शहीद जवान के आश्रितो को 30 लाख मुआवजा

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मुंगेर 10 अगस्त, बिहार में लखीसराय जिले के कजरा थाना क्षेत्र में नक्सलियों के हमले में शहीद जवान के आश्रितों को 30 लाख रुपया मुआजवा दिया जायेगा । भागलपुर प्रक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुशील खोपड़े ने आज यहां पुलिस लाइन में शहीद जवान को गार्ड ऑफ आनर दिये जाने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि नक्सलियों से बहादुरी के साथ लड़ते हुए स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएफ) के जवान अजय कुमार मंडल शहीद हुये है। उन्होंने कहा कि शहीद जवान के आश्रितों को 30 लाख रुपया मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जायेगी । शहीद के परिजनों को तत्काल 20 हजार रुपया सहायता राशि दी गयी है। 


इस मौके पर पुलिस उप महानिरीक्षक वरुण कुमार सिन्हा, एसटीएफ के पुलिस अधीक्षक शिवदीप लांडे , मुंगेर के पुलिस अधीक्षक आशीष भारती , लखीसराय के पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार सिन्हा समेत बड़ी संख्या में जवान मौजूद थें । शहीद के शव का पोस्टमार्टम मुंगेर सदर अस्पताल में किया गया है ।

लश्कर ने घाटी मे प्रदर्शनों के दौरान हमला करने के लिए भेजा था बहादुर अली को : एनआईए

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नई दिल्ली 10 अगस्त, जम्मू कश्मीर में पिछले महीने पकडा गया पाकिस्तानी आतंकवादी बहादुर अली उर्फ सैफुल्ला लश्कर ए तैयबा का प्रशिक्षित सदस्य है और उसे घाटी में विरोध प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों पर ग्रिनेड से हमला करने के लिए भेजा गया था। राष्ट्रीय जाचं एजेन्सी (एनआईए) के प्रवक्ता ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी । उन्होंने बताया कि बहादुर अली पाकिस्तान के लाहौर का रहने वाला है और उसे 26 जुलाई को कश्मीर के हंदवाड़ा जिले से स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के आधार पर पकडा गया था। उससे पूछताछ के आधार पर सुरक्षा बलों ने अगले दिन क्षेत्र में उसके साथियों को पकडने का अभियान चलाया जिसके दौरान उसके चार साथी मारे गये थे। उन्होंने कहा कि बहादुर अली से पूछताछ में यह साबित हुआ है कि लश्कर के कैडर की घाटी में विरोध प्रदर्शनों में भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि बहादुर अली और मारे गये उसके चार साथियों के पास से चार ए के -47 रायफलें , रबर के नक्शे , कूट भाषा में लिखे संदेश , जापान में बने अत्याधुनिक आईकॉम वायरलैस सेट, हथगोले और कई अन्य उपकरण बरामद किये गये । उन्होंने कहा कि इस आतंकवादी से पूछताछ , बरामद किये गये दस्तावेजों और इलैक्ट्रानिक उपकरणों के आधार पर यह पता चला है कि उसे वहां की सेना के अधिकारियों द्वारा उच्च स्तर पर गहन प्रशिक्षण दिया गया था। उन्होंने बताया कि बहादुर अली ने 11 या 12 जून को घुसपैठ की थी और इस दौरान वह हंडवाडा के आस पास के गांवों में रहा। उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित लश्कर ए तैयबा के एक उच्च क्षमता वाले कंट्रोल रूम एल्फा -3 से लगातार निर्देश दिये जाते थे । कंट्रोल रूम में बैठे उसके आकाओं ने उससे कहा था कि लश्कर के कैडर को घाटी में बुरहान वानी की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों को भडकाने में सफलता मिली है और वह भी यही काम करें तथा सुरक्षा बलों पर हमलों को अंजाम दे।

महिलाओं को मिलेगा साढ़े छह माह का मातृत्व अवकाश

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नयी दिल्ली,10 अगस्त, केंद्र सरकार ने मातृत्व लाभ अधिनियम में संशोधन को आज मंजूरी प्रदान कर दी जिससे कामकाजी महिलाओं को 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का लाभ मिल सकेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यहां हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। अभी कामकाजी महिलाओं को 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की सुविधा हासिल है। कोई भी कामकाजी महिला इस सुविधा का लाभ केवल दो बच्चों के जन्म पर ही ले सकती है। तीसरी संतान की स्थिति में यह लाभ 12 सप्ताह से अधिक नहीं होगा। ये लाभ सिर्फ उन्हीं संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं को मिलेंगे जिनमें कर्मचारियों की संख्या दस से ज्यादा है। बच्चे को गोद लेने वाली महिलाअों को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाएगा। सरकार के इस फैसले से संगठित क्षेत्र में काम करने वाली देश की लगभग 18 लाख महिलाओं को फायदा होगा।

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजा जाये कश्मीर : विपक्ष

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नयी दिल्ली, 10 अगस्त, कश्मीर में हाल की हिंसा की घटनाओं से उत्पन्न स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए राज्यसभा में आज विपक्षी सदस्यों ने सरकार से वहां के लोगों के साथ बातचीत के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने तथा पाकिस्तान पर दबाव बनाने का अनुरोध किया। सदन में कश्मीर घाटी की वर्तमान स्थिति पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर के हालात पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने तथा वहां सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को भेजने की मांग की । उन्होंने कहा कि कश्मीर देश का अभिन्न हिस्सा है तो वहां के लोगों के साथ भी अभिन्न अंग की तरह व्यवहार करना होगा। समस्या का समाधान प्यार-मोहब्बत से किया जाना चाहिए। समाजवादी पार्टी(सपा) के रामगोपाल यादव ने कहा कि कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए उसके मूल स्रोत पाकिस्तान पर दबाव बनाना होगा । उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कई बार युद्ध हुए और उस दौरान उस पर आसानी से नियंत्रण बनाया जा सकता था, जिसके बाद वह कश्मीर में कोई समस्या खड़ी नहीं कर सकता था। हालांकि नेताओं ने इस अवसर को गंवा दिया । उन्होंने कहा कि 1965 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान की जो जमीन को जीती थी उसे नहीं लौटाना चाहिए था। इसके बाद 1971 में भी पाकिस्तान के 93 हजार फौज ने आत्मसर्पण किया था लेकिन इसके बावजूद उस पर कोई दबाव नहीं बनाया गया । श्री यादव ने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवादियों को पैसा उपलब्ध कराता है। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन युवकों को प्रशिक्षण देते हैं और उन्हें गुमराह करते है तथा उनसे अपने लोगों पर ही हमला कराते है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की जनता हिन्दुस्तान से अच्छा रिश्ता चाहती है लेकिन पाकिस्तान की सीमा प्रशासन पर नियंत्रण के लिए दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्ते कायम नहीं होने देते । उन्होंने कहा “ पाकिस्तान को जब तक दुरूस्त नहीं किया जायेगा तब तक कश्मीर समस्या का समाधान नहीं होगा।” सपा नेता ने कहा कि भारत सरकार को मुजफराबाद और मीरपुर पर अपना दाबा करना चाहिये।

कुडनकुलम परियोजना भारत-रूस संबंध के लिए ऐतिहासिक : मोदी

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नयी दिल्ली/कुडनकुलम 10 अगस्त, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए रूस के सहयोग से शुरू की गई कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना (केकेएनपीपी) की 1000 मेगावाट की पहली इकाई काे राष्ट्र को समर्पित करते हुये आज कहा कि यह भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों की दिशा में उठाया गया ऐतिहासिक कदम है। नयी दिल्ली से श्री मोदी ने मॉस्को से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और चेन्नई से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये कुडनकुलम परियोजना की पहली इकाई को राष्ट्र को समर्पित की। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कहा, “इस इकाई के कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया जाना भारत और रूस की रणनीतिक साझेदारी का उदाहरण ही नहीं है बल्कि यह हमारी पुरानी मित्रता का उत्सव भी है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के आपसी सहयोग की बदौलत यह परियोजना शुरू हो पाई है। आमतौर पर लोगों को नहीं पता होगा कि कुडनकुलम-1 देश की सबसे बड़ी विद्युत इकाई है। इस परियोजना के तहत अभी एक-एक हजार मेगावाट की पाँच से अधिक इकाइयाँ बनाने की योजना है।” श्री मोदी ने ऐसी परियोनाओं के बीच पर्यावरण संरक्षण के महत्व का उल्लेख करते हुये कहा कि मानव विकास की कहानी प्रौद्योगिकी के फायदे और इसके बल पर बढ़ी आर्थिक समृद्धि का तानाबाना है और यह पर्यावरण को बिना क्षति पहुँचाये पूर्ण होती है। हमारे पास देश के लिए एक दृष्टिकोण है जिसमें अपनी मातृभूमि का सम्मान करते हुये आर्थिक विकास के लक्ष्यों को हासिल करना और स्वच्छ ऊर्जा के जरिये आैद्योगिक विकास को गति देना शामिल है।

बिहार सरकार आखिर मानी, राज्य में लागू होगी फसल बीमा योजना

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पटना 10 अगस्त, बिहार सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर एक बार फिर ..यू टर्न.. लेते हुए इसे राज्य में छह महीने के लिए प्रयोग के तौर पर खरीफ मौसम में लागू करने का फैसला लिया है। राज्य के सहकारिता मंत्री आलोक मेहता ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करते हुए बताया कि सरकार ने प्रयोग के तौर पर छह महीने के लिए खरीफ मौसम में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को राज्य में लागू करने का निर्णय लिया है । उन्होंने कहा कि इस प्रयोग के नतीजे को देखने के बाद इसे आगे लागू किये जाने के संबंध में फैसला लिया जायेगा । गौरतलब है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच पिछले कई दिनों से मतभेद चल रहा था । बिहार में इस योजना को लागू करने में आ रही परेशानी को दूर करने के लिए दिल्ली में केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह और राज्य के सहकारिता मंत्री आलोक मेहता के साथ दोनों सरकारों के अधिकारियों की बैठक बेनतीजा समाप्त होने के बाद कल ही केन्द्रीय मंत्री श्री सिंह ने श्री मेहता को पत्र लिख कर कहा था कि वे ही तय करें कि किसकी नीयत कैसी है । यह तो तय है कि राज्य में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू नहीं होने से किसानों को नुकसान होगा । इस योजना में किसानों को क्षतिपूर्ति राशि जल्द और अधिक दिलाने की व्यवस्था है । 


श्री मेहता ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों का हित कम और बैंक एवं बीमा कंपनी का हित ज्यादा सधता दिख रहा है । इसके विरूद्ध राज्य सरकार ने हर स्तर पर आवाज बुलंद की लेकिन केन्द्र सरकार ने अपनी नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया । इसलिए राज्य सरकार ने प्रदेश के किसानों के हित में तत्काल खरीफ फसल के लिए प्रयोग के तौर पर इस योजना को लागू करने का निर्णय लिया है । सहकारिता मंत्री ने कहा कि पूर्व में लागू राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में किसानों के लिए प्रीमियम दर निर्धारित था । धान के लिए 2.5 प्रतिशत और गेहूं के लिए 1.5 प्रतिशत था ,जो काफी कम था । वहीं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में एक ही बीमा कंपनी का अलग-अलग जिले में प्रीमियम दर भिन्न है । बिहार के बक्सर में जहां प्रीमियम दर 16 प्रतिशत है वहीं पड़ोस के उत्तर प्रदेश के बलिया में मात्र चार प्रतिशत है । श्री मेहता ने कहा कि बिहार में जहां लगभग 15 प्रतिशत प्रीमियम देना होगा वहीं पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश को चार प्रतिशत ही देना पड़ेगा, जबकि बिहार में फसलों की क्षति की आशंका अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है. क्योंकि यहां किसानों को फसल बचाने के लिए डीजल सब्सिडी दी जाती है. यह सुविधा अन्य राज्यों में किसानों को नहीं मिलती है । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में प्रीमियम दर भारत सरकार द्वारा प्राधिकृत निजी एवं सरकारी क्षेत्र की 16 बीमा कंपनियों के बीच निविदा के आधार पर निर्धारित होना है । बीमा कंपनियों को प्रीमियम का दर निविदा में देने के लिए कोई अधिकतम सीमा नहीं निर्धारित की गयी है । 


सहकारिता मंत्री ने कहा कि अब तक का अनुभव रहा है कि बिहार में फसलों की अधिकतम क्षति 685 करोड़ रुपये की हुई है । अब बीमा कंपनियों को बिहार से 1500 करोड़ रुपये देना होगा, इसका साफ अर्थ है कि क्षति से अधिक बीमा कंपनियों को प्रीमियम में देना होगा । उन्होंने कहा कि इस फसल बीमा योजना में किसानों को कम और बीमा कंपनियों को अधिक लाभ मिलने वाला है । श्री मेहता ने कहा कि बिहार सरकार अपने पूर्व की बातों पर अभी भी कायम है । बीमा योजना के तरीके पर बिहार का विरोध जारी रहेगा । उनकी सरकार ने सिर्फ सहकारी संघवाद के कारण इस योजना को बिहार में लागू करने का निर्णय लिया है । उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की पैनी नजरों में यह योजना लागू होगी । राज्य सरकार देखेगी कि इस बीमा योजना से कितने किसानों को लाभ मिलता है और इसके लिए कितना प्रीमियम देना पड़ा है । सहकारिता मंत्री ने केन्द्र सरकार से इस योजना में केन्द्रांश बढ़ाने और गैर ऋणी किसानों को बीमा कराने के लिए समय बढ़ाने की मांग करते हुए कहा कि बिहार में प्रधानमंत्री फसल बीमा के लिए केंद्र सरकार ने अंतिम तिथि 15 अगस्त तय की है । उन्होंने कहा कि राज्य में कुल 1.62 करोड़ किसान हैं । इसमें से मात्र किसान क्रडिट कार्ड :केसीसी: वाले 16 लाख ऋणी किसानों को ही बीमा का लाभ मिलेगा । पिछले साल मात्र 65 हजार गैर ऋणी किसानों ने ही फसल बीमा कराया था । 

नीतीश का आलोचकों को जवाब , शराब पीने पर भुगतने होंगे परिणाम

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पटना 10 अगस्त, बिहार में कड़े शराबबंदी कानून को लेकर विपक्ष समेत समाज के कुछ वर्ग विशेष की लगातार आलोचना झेल रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘शराबबंदी’ के मुद्दे पर अपनी प्रतिबद्धता एक बार फिर से जाहिर करते हुए अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया है। श्री कुमार ने आज सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर ब्लॉग लिखकर आलोचकों को स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी परिस्थिति में शराबबंदी से पीछे नहीं हटने वाले हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि जो भी बिहार में शराब पीएगा उसे परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) का नाम लिये बगैर कहा कि आज शराबबंदी के सख्त प्रावधानों पर उंगली उठाने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने इसे विधानसभा से पास कराया, लेकिन आज सिर्फ राजनीति के चलते इसमें खामियां गिनाने में लगे हैं। 


मुख्यमंत्री ने कहा कि शराब को लेकर जिन राज्यों में पाबंदी भी है वहां सिर्फ प्रतीकात्मक है, लेकिन बिहार में ऐसा नहीं है और न ऐसा होने दिया जायेगा। उन्होंने उत्तर प्रदेश और झारखंड में शराबबंदी की अपनी मुहिम की चर्चा करते हुए कहा कि मैंने उत्तर प्रदेश और झारखंड की सरकारों से शराबबंदी लागू करने की अपील की, लेकिन वो लोग साहस नहीं जुटा सके। उन्होंने कहा कि उनका सार्वजनिक रिकार्ड पारदर्शी रहा हैं और जब मैंने लोगों से वादा किया है तो मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देने को भी तत्पर हॅूं। श्री कुमार ने कहा कि विधानसभा चुनाव से पूर्व एक सरकारी कार्यक्रम में वादा किया था कि यदि वे दुबारा सत्ता में आते हैं तो राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू करेंगे। यह काफी कठिन कार्य था लेकिन शासन में कोई भी चीज आसान नहीं होती । शराबबंदी को लेकर इससे भी मुश्किल यह था कि इससे पहले कभी भी सफलतापूर्वक लागू नहीं किया जा सका था। यह एक तथ्य किसी और से अधिक शराब लॉबी के लिए चीयर्स करने वाला था लेकिन मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। 


मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार ने शराबबंदी लागू करने के लिए ठोस पहल की गयी है। इस दिशा में नया आबकारी विधेयक, 2016 एक निर्णायक कदम है। सरल शब्दों में कहें तो यह शराबबंदी का उल्लंघन करने वालों को सीधे उनके कार्यों के लिए जवाबदेह बनाता है। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि शराबबंदी के मुद्दे पर प्रदेश की जनता उनके साथ है। 

छात्र आंदोलन और दलित आंदोलन की एकता ने शुरू कर दी है मोदी सरकार की उलटी गिनती : दीपंकर

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  • आइसा के 12 वें राज्य सम्मेलन के अवसर पर ‘शिक्षा बचाओ-बिहार बचाओ’ कन्वेंशन का आयोजन.
  • माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा प्रो. भारती एस कुमार, प्रो. विनय कंठ, प्रो. डेजी नारायण, प्रो. शरदेन्दु कुमार ने किया कन्वेंशन को संबोधित.

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पटना 11 अगस्त 2016, आइसा के 12 वें राज्य सम्मेलन के अवसर पर आज अंजुमन इस्लामिया हाॅल में आयोजित ‘शिक्षा बचाओ-बिहार बचाओ’ कन्वेंशन को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि देशव्यापी छात्र आंदोलन और दलित आंदोलन की आज अभूतपूर्व एकता दिख रही है, यह एकता स्वागतयोग्य है. इस एकता ने मोदी सरकार की उलटी गिनती शुरू कर दी हैै और देश के हर कोने से आवाज उठ रही है. छात्र आंदोलनों के दबाव में यदि मोदी सरकार को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से स्मृति ईरानी को हटाना पड़ा तो दलित आंदेालन के दबाव में आनंदी पटेल को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाया गया. कन्वेंशन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा जिस गुजरात माॅडल की दुहाइयां दिया करती थी, उसका सच पूरी दुनिया के सामने आ गया है. आबादी के लिहाज से गुजरात में दलितों की आबादी कम है और वह संधियों का सबसे मजबूत किला माना जाता रहा है. आज दलितों के जबरदस्त उभार ने उस गुजरात माॅडल की हवा निकाल दी है.


उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र हो या फिर बिहार की सरकार, उनकी नीतियांे में कोई फर्क नहीं है. केंद्र सरकार जो नई शिक्षा नीति ला रही है, वह पूरी तरह संविधान विरोधी है और इसका पूरा विरोध किया जाना चाहिए. बिहार में टाॅपर घोटाले ने बिहार में शिक्षा व्यवस्था की सड़ांध को सामने ला दिया है. घोटाले के न्यायिक जांच की मांग की गई, बिहार बंद तक किया गया लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. बिहार सरकार के पास शिक्षा सुधार के लिए कोई इच्छाशक्ति नहीं है. नए आयोग की जरूरत भी नहीं, सरकार के पास पहले से एक आयोग की रिपोर्ट है, लेकिन उसे लागू करने की बजाए मुचकुंद दूबे आयोग की रिपोर्ट आज रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया है. टाॅपर घोटाला के संबंध में नीतीश कुमार कहते हैं कि भगवान ने शिक्षा सुधार का मौका दिया है. लेकिन आज से 11 वर्ष पहले बिहार की जनता ने बिहार में विकास-सुशासन, भूमि सुधार व शिक्षा सुधार के लिए मौका दिया था, लेकिन क्या हुआ? भूमि सुधार और शिक्षा सुधार के बिना बिहार में बदलाव संभव नहीं है.

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार दलित छात्रों पर हमला कर रही है, उनके अधिकारों पर हमला कर रही है. यह सामाजिक न्याय से विश्वासघात है. लोग समझते हैं कि डाॅ. अंबेडकर महज आरक्षण के लिए लड़ने वाले योद्धा थे, जबकि ऐसा नहीं था. डाॅ. अंबेडकर का मतलब है जाति व्यवस्था को खत्म करना. तो आज छात्र-युवाओं को भगत सिंह-अंबेडकर के रास्ते आगे बढ़ना होगा. संघ परिवार इस देश को पीछे ले जाना चाहती है, इसके खिलाफ चैतरफा लड़ाई की जरूरत है. कन्वेंशन को संबोधित करते हुए प्रो. भारती एस कुमार ने कहा कि शिक्षा-व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता है. आज प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों की हालत बेहद खराब है. जेएनयू जैसे कुछेक संस्थान बचे हुए थे, तो उस पर भी हमला किया जा रहा है. मोदी सरकार ने देश के युवाओं से वादा किया था, उससे सरकार पूरी तरह विश्वासघात कर रही है. बिहार में भी शिक्षा की लगातार दुर्गति हो रही है.

प्रो. विनय कंठ ने कहा कि आज आजादी के इतने सालों बाद भी शिक्षा की हालत दयनीय है, परीक्षाफल में गड़बड़ियां हो रही हैं, दलितों-शिक्षकों पर लाठीचार्ज हो रहा है, तो यह बहुत बड़ी विडंबना है. शिक्षा पर कारपोरेट सेक्टर का कब्जा हो गया है, लेकिन यह एक आशा का स्रोत है कि बिहार में इन कारपोरेट सेक्टर का कब्जा अभी उस स्तर का नहीं है और यह आंदोलन व संघर्ष की भी धरती रही है. इसलिए बिहार से ही कारपोरेटपरस्त शिक्षा नीति के खिलाफ जनपक्षीय शिक्षा नीति की लड़ाई की आवाज बुलंद करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि शिक्षा पर हमले पहले भी हो रहे थे, लेकिन भाजपा शासन में जो नई बात हो रही है, वह यह है कि लोकतंत्र और संविधान पर हमला किया जा रहा है. प्रो. डेजी नारायण ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था को नौकरशाही से पूरी तरह मुक्त किये जाने की लड़ाई शुरू करनी होगी. आज जो केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति का प्रस्ताव कर रही है, वह पूरी तरह खतरनाक है. इसका जोरदार विरोध करना चाहिए. उनके अलावा कन्वेंशन को प्रो. शरदेन्दु कुमार, आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप सौरभ और इस्वा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमर आजाद ने संबोधित किया. जबकि कार्यक्रम का संचालन आइसा के राज्य सचिव अजीत कुशवाहा ने किया.


11 बजे भगत सिंह चैक से निकला मार्च 
इसके पूर्व 12 वें राज्य सम्मेलन के अवसर पर आए प्रतिनिधियों ने भगत सिंह चैक से जुलूस निकाला. सबसे पहले भगत सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया. मार्च अंजुमन इस्लामिया हाॅल में पहुंचा और वहां पर शहीदों केा श्रद्धांजलि दी गयी. शाम 5 बजे से प्रतिनिधि सत्र की शुरूआत हुई. माले के पोलित ब्यूरो सदस्य काॅ. धीरेन्द्र झा, एआइएसफ, एसएफआई, एआइडीएसओ के प्रतिनधियों ने भी संबोधित किया.

सीहोर (मध्यप्रदेश) की खबर 11 अगस्त)

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15 अगस्त को जिले में शुष्क दिवस

शासन द्वारा 15 अगस्त,16 स्वतंत्रता दिवस पर एक दिन का शुष्क दिवस घोषित किया गया है। जिला आबकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार लोक शांति कानून व्यवस्था बनाये रखने के      दृष्टिगत शुष्क दिवस पर सीहोर जिले की सभी देशी विदेशी मदिरा दुकानें, सभी मद्य भण्डारगार पूर्णतः बंद रहेंगे एवं मदिरा की बिक्री प्रतिबंधित रहेगी । 

रोशनी के निर्देश

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त के अवसर पर सभी सार्वजनिक भवनों एवं राष्ट्रीय महत्व की इमारतों पर प्रकाश की व्यवस्था करने के निर्देश सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी किए गए है। राज्य शासन द्वारा समस्त विभागों के जिलाधिकारियों, निकायों, जनपदों के अधिकारियों को आवश्यक 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में प्रीमियम जमा करने की अंतिम तिथि 16 अगस्त

जिले के समस्त अऋणी किसान भाईयांे से अपील की गई है कि वह अपनी फसल का प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अंतर्गत फसल बीमा करायें। सोयाबीन फसल के लिये ऋणमान 40000 रूपये है। जिसमें प्रीमियम राशि सोयाबीन फसल के ऋणमान का 2 प्रतिशत या प्रति हेक्टेयर 800 रूपये प्रति एकड 320 रूपये एवं प्रति आधा एकड 160 रूपये की राशि निर्धारित की गई है। फसल बीमा कराने की अंतिम तिथि 16 अगस्त है, तथा फसल बीमा कराने के लिये अधिकतम जानकारी अपने निकटतम कृषि विभाग के अधिकारी, राजस्व विभाग के अधिकारी और साथ ही सहकारी समितियो में सम्पर्क कर बीमा की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते है।

बिहार : महिलाओं द्वारा पाग पहनना महिला सशक्तिकरण का संकेत

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मान सम्मान किसको अच्छा नही लगता ? लेकिन क्या इसकी भी कोई बिरादरी है? पाग सम्मान का मिथिला मेंविशेष महत्व है , खासकर किसी विशेष पारंपरिक ,सामाजिक , धार्मिक एवं राजनितिक कार्यक्रम व अनुष्ठानों पर।आजकल पाग सम्मान काफी लोकप्रिय हो रहा है।  यूँ तो पारंपरिक रुप से पुरुष ही इस पाग को अपने सिर पर धारणकरते आ रहे है , लेकिन मिथिलालोक फाउंडेशन ने एक नारा दिया है "पाग फॉर ऑल "

इस "पाग फॉर ऑल "नारे का आधार जाति , धर्म  व लिंगभेद से अलग पूर्णतः सांस्कृतिक है। मिथिला की सुप्रसिद्ध मधुश्रावणी पर्व के अवसर पर कई महिलाओं ने पाग सम्मान स्वीकार किया।कई नव विवाहिताओं  ने सहर्षपाग पहना और कहा की हम अपने इस सांस्कृतिक सिरमौर्य का सम्मान करते है, और इसकी प्रतिष्ठा एवं गरिमा कोअक्षुण्ण बनाये रखने का संकल्प भी लेते है।  महिलाओं द्वारा पाग पहनना इस सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनकीआंतरिक लगाव को दर्शाता तो  है ही , साथ ही यह कहीं न कहीं मिथिला में हो रहे महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) की ओर एक संकेत भी। 


मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ  बीरबल झा ने कहा कि  हम पाग सम्मान कार्यक्रम के द्वारा लोगो को अपनेसंस्कृति की  रक्षा एवम उन्हें उनकी जिम्मवारी का भी बोध करवाना चाहते है। ध्यातव्य है कि मिथिलालोकफाउंडेशन "पाग बचाउ अभियान "चला रहा है ताकि देश और समाज की समाजिक ,आर्थिक एवम  सांस्कृतिकव्यवस्था को मजबूती मिले।  यह एक अनोखा कार्यक्रम है , जिसमे समाज के सभी वर्ग बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे है ,जिससे सामाजिक भेदभाव को दूर करने की दिशा में एक अच्छी पहल हो रही है।

हाल  ही में बिहार विधान परिषद के माननीय सदस्य एवं दलित नेता व पूर्व कला संस्कृति एवं शिक्षा मंत्री श्री रामलखन राम रमण पाग पहनकर  सदन पहुंचे इनके  साथ कई अन्य सम्माननिय  नेता व बिहार विधान परिषद सदस्यजिसमे डॉ मदन मोहन झा , श्री विनोद नारायण झा , श्री दिलीप चौधरी एवम नीरज कुमार का नाम उल्लेखनीय है

विशेष : नौजवान देखें नये समाज निर्माण का स्वप्न?

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सारी दुनिया प्रतिवर्ष 12 अगस्त को अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाती है। सन् 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरम्भ किया गया था। यह दिवस मनाने का मतलब है कि पूरी दुनिया की सरकारें युवा के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। न केवल सरकारें बल्कि आम-जनजीवन में भी युवकोें की स्थिति, उनके सपने, उनका जीवन लक्ष्य आदि पर चर्चाएं हो। युवाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इन्हीं मूलभूत बातों को लेकर यह दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का विधिवत प्रारंभ होने से पहले संयुक्त राष्ट्र ने इसकी पृष्ठभूमि पर 1977 में काम करना प्रारम्भ किया था। चार चरणों की महत्त्वपूर्ण बैठक के बाद 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने पहले ‘अंतर्राष्ट्रीय युवा पर्व’ की घोषणा की। दस वर्ष पूरे होने पर संयुक्त राष्ट्र ने युवाओं की स्थिति सुधारने के लिए वैश्विक कार्यक्रम की संकल्पना की। जिसमें शिक्षा, रोजगार, भूख, गरीबी, स्वास्थ्य, पर्यावरण, नशा मुक्ति, बाल अपराध, अवकाश के दौरान की गई गतिविधियाँ, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, एड्स, युवा से जुड़े विवाद और पीढ़ीगत सम्बन्ध आदि पंद्रह सूत्रीय समस्याओं को केंद्र में रखा गया। इसके बाद सन् 2000 में ‘अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस’ पहली बार मनाया गया, जिसकी तिथि 12 अगस्त घोषित की गई। तब से लेकर हर वर्ष इसका आयोजन बहुत ही नियोजित ढंग से उत्साहपूर्ण परिवेश में होता है। इसका उद्देश्य युवाओं में गुणवत्तापूर्ण विकास करना और उन्हें सामाजिक एवं राष्ट्रीय सहभागिता के लिए तैयार करना है। हालांकि यह एक कैथोलिक मान्यता के अंतर्गत शुरू किया गया था, लेकिन वर्तमान परिदृश्य और वैश्विक रूप में युवाओं की बढ़ती भागीदारी से यह सभी सीमाओं को लाँघकर विश्वभर में मनाया जाने लगा।


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युवा किसी भी देश का वर्तमान और भविष्य हैं। वो देश की नींव हैं, जिस पर देश की प्रगति और विकास निर्भर करता है। लेकिन आज भी बहुत से ऐसे विकसित और विकासशील राष्ट्र हैं, जहाँ नौजवान ऊर्जा व्यर्थ हो रही है। कई देशों में शिक्षा के लिए जरूरी आधारभूत संरचना की कमी है तो कहीं प्रछन्न बेरोजगारी जैसे हालात हैं। इन स्थितियों के बावजूद युवाओें को एक उन्नत एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर करना वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है। युवा सपनों को आकार देने का अर्थ है सम्पूर्ण मानव जाति के उन्नत भविष्य का निर्माण। यह सच है कि हर दिन के साथ जीवन का एक नया लिफाफा खुलता है, नए अस्तित्व के साथ, नए अर्थ की शुरूआत के साथ, नयी जीवन दिशाओं के साथ। हर नई आंख देखती है इस संसार को अपनी ताजगी भरी नजरों से। इनमें जो सपने उगते हैं इन्हीं में नये समाज की, नयी आदमी की नींव रखी जाती है। विचारों के नभ पर कल्पना के इन्द्रधनुष टांगने मात्र से कुछ होने वाला नहीं है, बेहतर जिंदगी जीने के लिए मनुष्य को संघर्ष आमंत्रित करना होगा। वह संघर्ष होगा विश्व के सार्वभौम मूल्यों और मानदंडों को बदलने के लिए। सत्ता, संपदा, धर्म और जाति के आधार पर मनुष्य का जो मूल्यांकन हो रहा है मानव जाति के हित में नहीं है। दूसरा भी तो कोई पैमाना होगा, मनुष्य के अंकन का, पर उसे काम में नहीं लिया जा रहा है। क्योंकि उसमें अहं को पोषण देने की सुविधा नहीं है। क्योंकि वह रास्ता जोखिम भरा है। क्योंकि उस रास्तें में व्यक्तिगत स्वार्थ और व्यामोह की सुरक्षा नहीं है। युवापीढ़ी पर यह दायित्व है कि संघर्ष को आमंत्रित करे, मूल्यांकन का पैमाना बदले, अहं को तोड़े, जोखिम का स्वागत करे, स्वार्थ और व्यामोह से ऊपर उठे। युवा दिवस मनाने का मतलब है-एक दिन युवकों के नाम। इस दिन पूरे विश्व में युवापीढ़ी के संदर्भ में चर्चा होगी, उसके हृास और विकास पर चिंतन होगा, उसकी समस्याओं पर विचार होगा और ऐसे रास्ते खोजे जायेंगे, जो इस पीढ़ी को एक सुंदर भविष्य दे सकें। इसका सबसे पहला लाभ तो यही है कि संसार भर में एक वातावरण बन रहा है युवापीढ़ी को अधिक सक्षम और तेजस्वी बनाने के लिए। युवकों से संबंधित संस्थाओं को सचेत और सावधान करना होगा और कोई ऐसा सकारात्मक कार्यक्रम हाथ में लेना होगा, जिसमें निर्माण की प्रक्रिया अपनी गति से चलती रहे। विशेषतः राजनीति में युवकों की सकारात्मक एवं सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा।

स्वामी विवेकानन्द ने भारत के नवनिर्माण के लिये मात्र सौ युवकों की अपेक्षा की थी। क्योंकि वे जानते थे कि युवा ‘विजनरी’ होते हैं और उनका विजन दूरगामी एवं बुनियादी होता है। उनमें नव निर्माण करने की क्षमता होती है। अर्नाल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक ‘सरवाइविंग द फ्यूचर’ में नवजवानों को सलाह देते हुए लिखा है ‘मरते दम तक जवानी के जोश को कायम रखना।’ उनको यह इसलिये कहना पड़ा क्योंकि जो जोश उनमें भरा जाता है, यौवन के परिपक्व होते ही उन चीजों को भावुकता या जवानी का जोश कहकर भूलने लगते हैं। वे नीति विरोधी काम करने लगते है, गलत और विध्वंसकारी दिशाओं की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिये युवकों के लिये जरूरी है कि वे जोश के साथ होश कायम रखे। वे अगर ऐसा कर सके तो भविष्य उनके हाथों संवर सकता है। इसीलिये सुकरात को भी नवयुवकों पर पूरा भरोसा था। वे जानते थे कि नवयुवकों का दिमाग उपजाऊ जमीन की तरह होता है। उन्नत विचारों का जो बीज बो दें तो वही उग आता है। एथेंस के शासकों को सुकरात का इसलिए भय था कि वह नवयुवकों के दिमाग में अच्छे विचारों के बीज बोनेे की क्षमता रखता था। आज की युवापीढ़ी में उर्वर दिमागों की कमी नहीं है मगर उनके दिलो दिमाग में विचारों के बीज पल्लवित कराने वालेे स्वामी विवेकानन्द और सुकरात जैसे लोग दिनोंदिन घटते जा रहे हैं। कला, संगीत और साहित्य के क्षेत्र में भी ऐसे कितने लोग हैं, जो नई प्रतिभाओं को उभारने के लिए ईमानदारी से प्रयास करते हैं? हेनरी मिलर ने एक बार कहा था- ‘‘मैं जमीन से उगने वाले हर तिनके को नमन करता हूं। इसी प्रकार मुझे हर नवयुवक में वट वृक्ष बनने की क्षमता नजर आती है।’’ महादेवी वर्मा ने भी कहा है ‘‘बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरुणाई सबल होती है।’’ 


युवापीढ़ी के सामने दो रास्ते हैं- एक रास्ता है निर्माण का दूसरा रास्ता है ध्वंस का। जहां तक ध्वंस का प्रश्न है, उसे सिखाने की जरूरत नहीं है। अनपढ़, अशिक्षित और अक्षम युवा भी ध्वंस कर सकता है। वास्तव में देखा जाए तो ध्वंस क्रिया नहीं, प्रतिक्रिया है। उपेक्षित, आहत, प्रताड़ित और महत्वाकांक्षी व्यक्ति खुले रूप में ध्वंस के मैदान में उतर जाता है। उसके लिए न योजना बनाने की जरूरत है और न सामग्री जुटाने की। योजनाबद्ध रूप में भी ध्वंस किया जाता है, पर वह ध्वंस के लिए अपरिहार्यता नहीं है। निर्माण का सही लक्ष्य प्राप्त न होने का एक कारण है व्यक्ति की बहिर्मुखता। बहिर्मुख व्यक्ति ऊपर-ऊपर की बातों में उलझता रहता है, भीतर से नहीं पैठता। ऊपर-ऊपर रहने वाला समुद्र के तल में पड़े रत्नों को कैसे पा सकता है? ऊपर के रंग-रूप में उलझने वाला गुणात्मकता ही पहचान कर सकता है? युवापीढ़ी से समाज और देश को बहुत अपेक्षाएं हैं। शरीर पर जितने रोम होते हैं, उनसे भी अधिक उम्मीदें इस पीढ़ी से की जा सकती हैं। उन्हें पूरा करने के लिए युवकों की इच्छाशक्ति संकल्पशक्ति का जागरण करना होगा। घनीभूत इच्छाशक्ति एवं मजबूत संकल्पशक्ति से रास्ते के सारे अवरोध दूर हो जाते हैं और व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है।

मूल प्रश्न है कि क्या हमारे आज के नौजवान भारत को एक सक्षम देश बनाने का स्वप्न देखते हैं? या कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी केवल उपभोक्तावादी संस्कृति से जन्मी आत्मकेन्द्रित पीढ़ी है? दोनों में से सच क्या है? दरअसल हमारी युवा पीढ़ी महज स्वप्नजीवी पीढ़ी नहीं है, वह रोज यथार्थ से जूझती है, उसके सामने भ्रष्टाचार, आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप, महंगी होती जाती शिक्षा, कैरियर की चुनौती और उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को कुचलने की राजनीति विसंगतियां जैसी तमाम विषमताओं और अवरोधों की ढेरों समस्याएं भी हैं। उनके पास कोरे स्वप्न ही नहीं, बल्कि आंखों में किरकिराता सच भी है। इन जटिल स्थितियों से लौहा लेने की ताकत युवक में ही हैं। क्योंकि युवक शब्द क्रांति का प्रतीक है। इसीलिये युवापीढ़ी पर यह दायित्व है कि वह युवा दिवस पर कोई ऐसी क्रांति करे, जिससे युवकों को जीवनशैली में रचनात्मक परिवर्तन आ सके, हिंसा-आतंक की राह को छोड़कर वे निर्माण की नयी पगडंडियों पर अग्रसर हो सके।  




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(ललित गर्ग)
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फोनः 22727486, 9811051133

आलेख : मीडिया बदनाम हुई ‘दौलत तेरे लिये’

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देश के चैथे स्तम्भ के रूप में स्थापित मीडिया की स्वतन्त्रता पर लगातार हमले बढ़ने की घटनायें आये दिन सामने आ रही हैं। जिसमें कहीं पत्रकारों की हत्यायें की जा रही हैं तो कहीं उन्हें जेल भेजा जा रहा है। केन्द्र में भाजपा की सरकार हो या फिर दिल्ली में केजरीवाल अथवा यूपी में सपा की सरकार हो या फिर विपक्ष में बसपा सुप्रीमो मायावती, प्रशासनिक अफसर, पुलिस से लेकर माफिया तक हर कोई मीडिया पर हमला करने में जुटा हुआ है। हालत यह हो गयी है कि अब सोशल मीडिया पर जनता भी पत्रकारों को गाली देने में किसी से पीछे नजर नहीं आ रही है। इस हमले के लिये क्या एक तरफा वही लोग जिम्मेदार हैं जो मीडिया पर हमला बोल रहे हैं या फिर स्वंय मीडिया भी इसके लिये जिम्मेदार है? पुराने पत्रकार मानते हैं कि इसके लिये सर्वाधिक 60 प्रतिशत मीडिया के लोग ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने अधिक धन कमाने की चाहत में मीडिया की पूरी साख ही सट्टे की भांति दाव पर लगा दी है। जो धन के बदले (विज्ञापन, लिफाफे के नाम पर) मदारी के बंदर की तरह नाचने लगते हैं।

भाजपा नेता दयाशंकर द्वारा बसपा सुप्रीमो मायावती की तुलना दौलत की खातिर ‘‘वैश्या’’ से किये जाने पर जेल जाना पड़ा तो वहीं पूर्व जनरल एवं केन्द्रीय मंत्री वी.के. सिंह द्वारा पत्रकारों की तुलना ‘‘वैश्याओं’’ से किये जाने पर उन्हें ना तो जेल जाना पड़ा और न ही अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा। हां उन्हें माफी मांगकर मीडिया से पीछा छुड़ाना पड़ा। लेकिन जिस मीडिया को ‘‘वैश्या’’ कहा गया वह मीडिया भाजपा नेता को जेल भिजवाने में जरूर सफल रहा जबकि दयाशंकर ने माया से अपने शब्दों के लिये माफी भी मांग ली थी। लेकिन ना तो माया ने और न ही मीडिया ने उन्हें माफ किया। बात महिला और दलित के सम्मान की हो सकती है तो मीडिया के सम्मान की क्यों नहीं। पत्रकारों के सम्मान की बात करने वाले पत्रकारों का ही सम्मान राजनेताओं के यहां गिरवी रखा हो तो फिर वह किस मुंह से किसके सम्मान और अपमान का मुद्दा क्यों उठायेंगें।


आज मीडिया के लोग ही पत्रकारों को दलाल, भाड़ मीडिया, चोर-उचक्के बता रहे हैं तो दूसरों से सम्मान की क्या उम्मीद की जा सकती है। लखनऊ के वरिष्ट पत्रकार एवं ‘दृष्टांत’ पत्रिका के संपादक अनूप गुप्ता ने एक चर्चा के दौरान कहा कि आज वरिष्ट पत्रकार दलाली की खातिर राजनेता, अफसरों, माफियाओं के तलबे चाट रहे हैं वहीं बड़े-बड़े मीडिया संस्थान भी सरकारों एवं उद्योगपतियों, माफियाओं से अनैतिक लाभ अर्जित कर रहे हैं। जिनके विरूद्ध वह लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। वह कहते हैं कि मीडिया के नकाब में छिपे कथित पत्रकारों ने करोड़ों-अरबों की अवैध सम्पत्ति अर्जित कर ली है। जिसके कारण आम पत्रकारों को गाली खाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। श्री गुप्ता के मुताबिक 15 प्रतिशत मात्र भ्रष्ट पत्रकारों ने पूरी मीडिया को बदनाम करके रख दिया है। और अच्छे पत्रकारों के लिये रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न कर दी है।

मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक मामला मथुरा में चर्चित हुआ जिसमें एक एमबी, की छात्रा ने उत्तरप्रदेश के चर्चित पत्रकार संगठन उपजा के प्रदेश उपाध्यक्ष कमलकांत उपमन्यु पर यौन उत्पीड़न की शिकायत एसएसपी मंजिल सैनी (वर्तमान लखनऊ में तैनात) से 3 दिसम्बर 2014 को की गई। जिसकी प्रति मीडिया को दी गई। लेकिन किसी भी पत्र एवं स्थानीय इलैक्ट्रोनिक मीडिया में पीड़िता की आवाज को जगह नहीं दी गई। बल्कि कई प्रमुख नेता, पत्रकार, वकील आरोपी के पक्ष में खड़े हो गये। लेकिन पीड़िता के साथ कुछ सामाजिक लोगों के खड़े होने से दोषी पत्रकार के खिलाफ 6 दिसम्बर को मामला दर्ज हो सका। लेकिन इसके बावजूद भी 7 दिसम्बर 2014 के किसी भी समाचार पत्र में घटना का उल्लेख नहीं किया गया। जब उक्त मामला सोशल मीडिया ने उछाला तब कुछ पत्रकारों ने खानापूरी की। लेकिन एक राष्ट्रीय चैनल ने घटना को प्रमुखता से दिखाया। उक्त घटना पर पर्दा डालने वाली मीडिया ने 7 फरवरी 2016 को छोटे-बड़े लगभग सभी समाचार पत्रों ने प्रमुखता से पीड़िता के करीब 15 माह पुराने शपथ पत्र को आधार बनाकर कमलकांत के आरोप मुक्त की खबर प्रकाशित कर दी। जबकि मथुरा न्यायालय द्वारा आरोपी पक्ष के विरूद्ध आदेश पारित किया गया था तथा मामला उच्च न्यायालय इलाहाबाद में भी लम्बित था। खबर के साथ बलात्कार करने के बदले पत्रकारों और सम्पादकों ने उसके बदले क्या कीमत वसूली ये तो वही जानें लेकिन इसकी शिकायत अदालत के आदेश के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा मीडिया संस्थानों के उच्च अधिकारियों से की गई। लेकिन इसके बावजूद भी आरोपी की पकड़ मीडिया ढ़ीली नहीं हो सकी। इस संबंध में कुछ पत्रकारों ने खुलासा किया कि आरोपी पत्रकार कुछ संस्थानों से विज्ञापन तो दिलाता ही है प्रत्येक वर्ष दीपावली पर आम पत्रकारों को चांदी का सिक्का और मिठाई का डिब्बा तथा वरिष्ट पत्रकारों-सम्पादकों को मंहगे उपहार, लिफाफा आदि भी दक्षिणा में भेंट देता है। इसके अलावा चुनाव के मौसम में भी प्रत्याशियों से दक्षिणा दिलाता है। हालांकि कई पत्रकार ऐसे भी हैं जो इस आरोपी पत्रकार दूरी बनाये हुए हैं।

उक्त मामले में हालांकि पिछले दिनों हाईकोर्ट द्वारा की गई सीबीआई जांच की टिप्पणी को प्रमुख समाचार पत्रों द्वारा प्रमुखता से छापा गया हो लेकिन इसके बावजूद अभी भी बड़ी संख्या में पत्रकार, सम्पादक, राजनेता, अधिकारी तथा-कथित सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो आज भी आरोपी का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। यह एकमात्र ऐसा मामला नहीं है बल्कि मीडिया में प्रतिदिन माफियाओं, राजनेताओं, प्रशासनिक अफसरों, बिल्डरों के हितों की खातिर समझौता कर मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लगया जाता है। यही कारण है अब पत्रकार भी कहने लगे हैं ‘‘मीडिया बदनाम हुई, दौलत तेरे लिये।’’    



       
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मफतलाल अग्रवाल
E-mail:- Mafatlalmathura@gmail.com
Mob: 8865808521
(लेखक ‘‘विषबाण’’ मीडिया  ग्रुप के सम्पादक एवं स्वतंत्रत्र पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता  हैं)

व्यंग : विवादों की बाढ़ में इंसान...!!

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मैं जिस शहर में रहता हूं वहां कोई नदी नहीं है इसलिए हम बाढ़ की विभीषिका को जानने - समझने से हमेशा बचे रहे। कहते हैं अंग्रेजों ने इस शहर में रेलवे का कारखाना बसाया ही इसलिए था कि यह हमेशा बाढ़ के खतरे से सुरक्षित रहेगा। हालांकि मेरे शहर से करीब दस किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय से कुछ पहले एक नदी बहती है। बचपन में एक बार  इस नदी में भयंकर बाढ़ आई थी। तब हमारे शहर के लोग  मदद और सहानुभूति जताने पीड़ितों के पास पहुंचे। लेकिन हमारी अपेक्षा के विपरीत कुछ बाढ़ पीड़ित आभार जताने के बजाय उलटे हम पर ही बरस पड़े कि हम यहां बाढ़ से तबाह हो रहे हैं औऱ आप लोग सैर - सपाटा करने आए हो। तब मैने बाढ़ की विभीषिका को नजदीक से जाना - समझा था। अपने देश में जब - तब कहीं न कहीं बाढ़ आती ही रहती है।खास तौर से बारिश के दिनों में। एक शहर या राज्य में आई बाढ़ की खबर से नजर हटती नहीं कि दूसरे प्रदेश में इसकी विभीषिका से जुड़ी खबरें चर्चा में आ जाती है। लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों खास कर असम की बाढ़ के अनेक किस्से सुने और अखबारों में पढ़े हैं। 


कहते हैं कि ब्रह्मपुत्र नदी अमूमन हर साल बाढ़ से इंसान नहीं नहीं पशु - पक्षियों को भी बेहाल कर देती है। इस साल भी पिछले कुछ दिनों से चैनलों पर ऐसा ही देख रहा हूं। हालांकि पुर्वोत्तर के राज्यों खासकर असम की बाढ़ की विभीषिका से जुड़ी खबरें हमारे राष्ट्रीय चैनलों पर एक नजर या झलकियां जैसे स्थायी स्तंभ में ही नजर आते हैं। इसके बावजूद देखा - सुना कि इस साल आई बाढ़ में असम में  20 गेंडे ही मारे गए। दूसरे पशु - पक्षियों का भी हाल बेहाल है। ऐसे में इंसान की स्थिति का अंदाजा तो सहज ही लगाया जा सकता है। फिर उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा और महाराष्ट्र के रायगढ़ में पुल के बह जाने की हृदयविदारक घटना और इससे जुड़ी खबरें मन - मस्तिष्क को झकझोरती रही। खैर यह तो बात हुई प्राकृतिक बाढ़ की जो एक खास मौसम या परिस्थितियों में ही आती है और कुछ दिनों तक पीड़ितों को गहरे जख्म देने के बाद गुम हो जाती है। लेकिन अपने देश व समाज में विवादों की बाढ़ किसी न किसी रूप में आती ही रहती है या यूं कहें कि कृत्रिम तरीके से लाई जाती है। यह विवाद किसी हस्ती के कुछ कहे पर भी हो सकता है तो किसी इच्छा- अनिच्छा पर भी। पता नहीं देश में विवादों की ऐसी अनचाही बाढ़ अनायास आती रहती है या किसी स्वार्थ की खातिर कृत्रिम तरीके से लाई जाती है। अब देखिए न जिस समय असम समेत देश के तकरीबन दस राज्यों  में बाढ़ से जिंदगी तबाह हो रही थी, तभी एक अभिनेता की घरवाली के उस डर पर फिर विवाद उठ खड़ा हुआ जिसके तहत उसकी घरवाली ने देश छोड़ कर चले जाने की इच्छा अपने एक्टर पति के सामने व्यक्त की थी। 


धन्य है यह देश कि वह अभिनेता बाल - बच्चों समेत अब तक यहीं है। उन्होंने देश नहीं छोड़ा। मैं तो पिछले साल जम कर हुए इस विवाद को भूल ही चुका था। लेकिन एक राजनेता के बयान पर यह प्रकरण गड़़े मुर्दे की तरह यह फिर उठ खड़ा हुआ। यह पुराना मुद्दा बाढ़ जैसी विभीषिका पर भारी ही नहीं बहुत भारी पड़ा । फिर बार - बार राजनेता की सफाई और उन अभिनेता के उस बयान का पुराना फुटेज जिसमें उन्होंने अपनी घरवाली की इच्छा का खुलासा किया था, टीवी स्क्रीन पर बार - बार दिखाया जाता रहा। इससे मैं सोच में पड़ गया कि किसी नामचीन के बाल - बच्चों को यदि इस देश में डर लगता  है और वे किसी दूसरे देश में बसने की सोचते भी हैं तो इससे किसी का क्या बनना या बिगड़ना है। यह उसकी मर्जी पर निर्भर है। लेकिन हमेशा की तरह यह मसला लगातार कई घंटों तक छाया रहा। पक्ष - विपक्ष के बयान आए। जम कर बहस हुई।   देश के कुछ राज्यों में आई विनाशकारी बाढ़ तो चंद दिनों बाद खत्म हो जाएगी। लेकिन लगता है अपने देश व समाज में विवादों की बाढ़ कभी खत्म न होगी। 




तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर (पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

बहुरंगीय किरदार पंसद हैः किश्वर मर्चेन्ट

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 हिप हिप हुर्रे,बाबुल की दुआएं लेती जा,
प्यार की ये एक कहानी,
होगें जुदा ना हम,हमने ली है शपथ,

kishwar-marchent
मधुबाला एक इश्क एक जुनून,अकबर बीरवल,कैसी ये यारिया,एक हसीना थी
इतना करो न मुझे प्यार, जैसे अनेकों टीवी पर फिक्शन और रियलिटी शोज बिग बाॅस में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के बाद अभिनेत्री किश्वर मर्चेन्ट अब ज़ी टीवी के वीकेंड स्पेशल फैंटसी थ्रिलर शो ‘ब्रह्मराक्षस‘ में एक नये अवतार में ननजर आएंगी।शो का निर्माण एकता कपूर के बालाजी टेलीफिल्म्स ने किया है। शो के बारे में किश्वर का क्या कहना है,जानते है उनकी ही जुबानी।

किस तरह किरदार है शो में ?
मैंने शो में अपराजिता नामक युवती का किरदार निभाया है,जो खूबसूरत होने के साथ-साथ बेहद चालाक भी हैं। उनके दूसरे पति आदित्य ने उन पर बहुत हुक्म चलाता है और वे उसी के इशारों पर चलती हैं। लेकिन वह अपना असली रंग कब तक छिपाकर रखती हैं,यह एक नकारत्मक किरदार हैं शो में यह देखना काफी दिलचस्प होगा।’ ब्रह्मराक्षस में ड्रामा, रहस्य और रोमांच के साथ-साथ अनेक प्रभावशाली कलाकार भी हैं। यह शो परिवार के हर सदस्य को आकर्षित करेगा। 

किश्वर शो को चुनने की कोई खास वजह?
शो की दिलचस्प कहानी और कई परतों वाले मेरे किरदार को देखते हुए मैंने यह रोल स्वीकार किया है। मैं कुछ अलग करना चाहती थी और ऐसे में अपराजिता का रहस्यमयी किरदार मेरे लिए एक अच्छा अवसर बनकर आया। यह विषय सास-बहू की घिसी पिटी कहानियों से बिल्कुल अलग है और वीकेंड पर पूरे परिवार को कुछ नया मनोरंजन देगा।


क्या खास है,शो में ?
रहस्य रोमांश से परिपूर्ण इस शो में राक्षसों के अस्तित्व को टटोला गया है, जिनका उल्लेख हमारे वेदों में किया गया है। यह पूरी तरह से काल्पनिक कथा है। लोगों को ब्रह्मराक्षस के बारे में कम ही पता है लेकिन इसके प्रति लोगों में काफी जिज्ञासा है।  इस शो से मुझे काफी आशाएं है। 

‘ब्रह्मराक्षस‘ की कहानी क्या है ?
शो मुंबई में रहने वाली रैना नाम की एक लड़की की कहानी है, जो अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी में शामिल होने कमालपुरा जाती है। वहां पहुंचकर रैना और रिषभ, ब्रह्मराक्षस के हाथों अपने खास दोस्त को खो देते हैं। इसके बाद रैना और रिषभ शादी का एक करार करते हैं ताकि वे ब्रह्मराक्षस को बाहर ला सकें जो सिंदूर, चूड़ा और पायल पहनने वाली औरतों की मौत के लिए जिम्मेदार है। यह एक तरह से तिलस्मी कहानी है।

आपने तो हर किरदार को जिया है,फिर कौन से रोल आपकी पंसद का है ?
मुझे बहुरंगीय किरदार पंसद है,हाॅ अकबर बीरवल में निभाया किरदार मेरे दिल के काफी करीब है।


रितिक रोशन की नई फिल्म : पुराने जमाने का रोमांस दिखेगा मोहनजोदाड़ो में

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सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे प्राचीन शहर ‘मोहनजोदाड़ो’ के बारे में लोगों के बीच अलग-अलग धारणाएं हैं। इस विश्व धरोहर की खुदाई में मिले पुराने अवशेषों से इस शहर के बारे में अलग-अलग चीजें पता चलती हैं, जिन्हें निर्माता आशुतोष गोवारीकर ने अपनी आनेवाली फिल्म मोहनजोदाड़ो का रूप दिया है। 12 अगस्त को रिलीज होने जा रही इस फिल्म में मुख्य भूमिका में रितिक रोशन हैं। रितिक रोशन ने खास बातचीत में फिल्म और इस प्राचीन शहर के बारे में अपनी बातें साझा की हैं। रितिक कहते हैं कि इस शहर के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। खुदाई में मिले पुरावशेषों से इस जगह के बारे में लोगों को पता चल पाया। खुदाई में अलग-अलग तरह की चीजें सामने आईं, जिनके आधार पर समाज में अलग-अलग धारणाएं बनीं।


 इन सभी धारणाओं में से सबसे सही और सटीक धारणा का चुनाव कैसे किया गया? 
इस पर रितिक रोशन कहते हैं- आशुतोष ने शोध और पुरातत्वविदों की मदद से इनमें से एक धारणा को चुनकर उसके आधार पर फिल्म बनाई है। कुछ ऐसा ही फिल्म जोधा अकबर में भी देखने को मिला था, जब आशुतोष गोवारीकर ने इस पर फिल्म बनाने का फैसला किया था और बाद में फिल्म को विरोध का सामना तक करना पड़ा।  हालांकि रितिक कहते हैं, अगर फिल्म देखने के बाद कोई यह बोले कि मोहनजोदाड़ो में तो यह सब नहीं था और जो दिखाया गया है, वह गलत है तो गलत सिद्ध करने के लिए भी तो आखिर कोई प्रमाण नहीं है। गौरतलब है कि रितिक ने फिल्म जोधा अकबर के बाद दूसरी बार आशुतोष गोवारीकर के साथ काम किया है। उनके साथ काम करने के अनुभव के बारे में वह कहते हैं- मैंने आशुतोष के साथ जोधा-अकबर में काम किया है। उस फिल्म के दौरान हम दोस्त बन रहे थे, लेकिन यह फिल्म शुरू करने से पहले ही हम दोस्त बन चुके हैं तो अब हम दोनों के बीच एक समझ बन गई है। यकीनन इस बार ज्यादा मजा आया।रितिक इस फिल्म के रोमांस को इसकी यूएसपी बताते हुए कहते हैं- आशुतोष के साथ मजेदार बात यह है कि वह रोमांस को परदे पर बड़ी खूबसूरती के साथ उतारते हैं। जो जादू एआर रहमान संगीत के साथ करते हैं, ठीक वैसा ही जादू आशुतोष रोमांस के साथ करते हैं। आशुतोष की फिल्मों में रोमांस की एक खास जगह होती है। इस फिल्म में पुराने जमाने के प्यार को दिखाया गया है। 


 रितिक कहते हैं- इस फिल्म की खास बात इसका पुराने जमाने वाला रोमांस है, जो आजकल की फिल्मों में देखने को नहीं मिलता। मोबाइल, स्नैपचैट और स्काइप से दूर उस जमाने में जिस धीमी गति से प्यार होता है, इसे एक बार फिर परदे पर देखना दिलचस्प होगा।  रितिक फिल्म में अपने किरदार के बारे में कहते हैं- मैं फिल्म में सरमन नाम के आदमी का किरदार निभा रहा हूं, जो नील की खेती करता है और बाजार में नील बेचता है। नीला मेरा पसंदीदा रंग भी है तो इस किरदार के साथ जुड़ना आसान रहा।रितिक के बारे में अक्सर यह सुनने में आता है कि वह किसी भी फिल्म के लिए आसानी से हां नहीं करते। यह बात छेड़ने पर रितिक ने बताया- मेरा मानना है कि फिल्म की स्क्रप्टि ऐसी होनी चाहिए, जिसे पढ़ने के बाद आपको सोचना न पड़े। मोहनजोदाड़ो की स्क्रप्टि इतनी बेहतरीन है कि मैंने इसे शुरुआत से अंत तक बिना रुके एक साथ पढ़ डाला था। फिल्म में एक्शन सीन की भरमार है। इसके लिए रितिक ने विशेष ट्रेनिंग भी ली है। वह कहते हैं, फिल्म में बहुत ही रॉ एक्शन रखा गया है। एक्शन का नाम सुनते ही मेरी बॉडी में कृष और धूम के एक्शन आने लगते हैं। इस फिल्म का एक्शन काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। इसकी एक वजह यह थी कि फिल्म की शूटिंग भुज में कड़क धूप में हुई है।  अपने पिता राकेश रोशन और दूसरे अभिनेताओं की तरह निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजमाने के बारे में रितिक कहते हैं, अभी मैं खुद नहीं जानता कि निर्देशन का हुनर मुझमें है या नहीं। अभी मुझे कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ है। अगर भविष्य में ऐसा कुछ होता है तो जरूर उसे शिद्दत के साथ करूंगा।

चीन के विद्युत संयंत्र में विस्फोट 21 मरे, 5 घायल

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बीजिंग 11 अगस्त, चीन के एक विद्युत संयंत्र में आज विस्फोट से 21 व्यक्तियों की मौत हो गयी और पाँच अन्य घायल हो गये। यह खबर सरकारी मीडिया ने दी। चीन के सरकारी टेलीविजन की खबर के अनुसार विस्फोट आज दोपहर बाद 3 बजकर 20 मिनट पर हुनेई प्रान्त के दांगयांग के एक विद्युत संयंत्र में हुआ। चीनी अधिकारियों ने बताया कि घायल व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। विस्फोट के कारण का तुरंत पता नहीं चल सका है। चीन के उद्याेगों से इस प्रकार की घटनायें पिछले तीन वर्षों से आम बात है और इनके लिए सुरक्षा मानकों की कमी बताया जाता है।

मोदी ने मांगे लोगों से सुझाव

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नयी दिल्ली 11 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त को दिये जाने वाले भाषण के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से सुझाव मांगे हैं। कार्मिक मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी संदेश में यह कहा गया है। श्री मोदी इस बार लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के तौर पर तीसरी बार देश को संबोधित करेंगे। संदेश में कहा गया है “पिछले साल की तरह प्रधानमंत्री ने इस बार भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिये जाने वाले भाषण में शामिल करने के लिये विचार आमंत्रित किये हैं।” लोग अपने सुझाव नरेन्द्र मोदी की साईट और मोबाइल एप्लिकेशन पर दे सकते है। इनमें से बेहतर सुझावों को प्रधानमंत्री 15 अगस्त को दिये जाने वाले भाषण में शामिल करेंगे। प्रधानमंत्री लोगों से जुड़ने के लिए हर महीने “मन की बात” और “टाउन हॉल” कार्यक्रम करते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रारूप पर सांसदों के लिए कार्यशाला

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नयी दिल्ली 11 अगस्त, राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रारूप पर सांसदों की राय जानने और उन्हें अपने सुझाव रखने के उद्देश्य से सरकार विशेष कार्यशाला का आयोजन करेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 के प्रारूप पर अल्पकालिक चर्चा के दौरान कांग्रेस के जयराम रमेश ने सुझाव दिया कि सदन में कई ऐसे प्रमुख सदस्य हैं जिनका बयान इस नीति को मूर्त रूप देने में सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। सांसदों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जा सकती है। इस पर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सहमति जताते हुये कहा कि इस तरह की कार्यशाला आयोजित करने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है और वह इसके लिए तैयार है। उप सभापति पी जे कुरियन ने कहा कि श्री रमेश का सुझाव अति महत्वपूर्ण और सकारात्मक भी है।

दीपिका और बोम्बायला का ओलंपिक सपना टूटा

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रियो डि जेनेरो, 11 अगस्त, भारतीय स्टार तीरंदाज दीपिका कुमारी और बोम्बायला लैशराम देवी के गुरुवार को व्यक्तिगत स्पर्धा के प्री-क्वार्टरफाइनल में निराशाजनक रूप से हारने के साथ ही रियो ओलंपिक की महिला तीरंदाजी प्रतियोगिता में भारतीय चुनौती समाप्त हो गयी। तीरंदाजी प्रतियोगिता में खेलों के छठे दिन भारत की शुरुआत बेहद खराब रही और स्टार तीरंदाज दीपिका को दिन के पहले ही मैच में हार का सामना करना पड़ा। दीपिका को प्री क्वार्टरफाइनल में ताइपे की या-तिंग तान ने 6-0 से पराजित किया। ताइपेे की तीरंदाज ने तीनों सेट 28-27, 29-26, 30-27 से जीते और अंतिम आठ में पहुंच गयीं। इसके कुछ देर बाद ही बोम्बायला देवी की चुनौती भी टूट गयी। बोम्बायला को मेक्सिको की एलेजांद्रा वैलेंशिया ने 6-2 से हराया। वैलेंशिया ने यह मुकाबला 28-26, 23-26, 28-27, 25-23 से जीता और क्वार्टरफाइनल में जगह बना ली।

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