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भारत में पाकिस्तानी कलाकारों पर कोई प्रतिबंध नहीं

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नयी दिल्ली 20 अक्टूबर. उरी आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने को लेकर उठे विवाद के बीच सरकार ने आज स्पष्ट किया कि इन कलाकारों पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया गया है । विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने आज यहां नियमित ब्रीफिंग में इस बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में कहा कि पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर सरकार की ओर से किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। 

उन्होंने कहा कि भारत में पाकिस्तान के चैनल अभी भी देखे जा सकते हैं । उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा भारत के टेलीविजन चैनलों पर प्रतिबंध लगाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में आत्मविश्वास की कमी है । एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने पुष्टि की कि पाकिस्तान में भारत के उप उच्चायुक्त जे पी सिंह को वहां के विदेश मंत्रालय ने बुलाया था । पाकिस्तान ने कथित संघर्ष विराम उल्लंघन पर अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आेर से घुसपैठ की कोशिश विफल करने के लिए भारतीय सेना ने फायरिंग की थी जिसका दूसरी ओर से भी जवाब दिया गया था । उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान ने कहा है कि इस फायरिंग में उसका एक असैनिक मारा गया है और भारत को इसकी जांच कर इसका परिणाम पाकिस्तान के साथ साझा करना चाहिए ।

बारामुला से जैश ए मोहम्मद के दो आतंकवादी गिरफ्तार

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श्रीनगर, 22 अक्टूबर जम्मू-कश्मीर के बारामूला से पुलिस ने आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के दो आतंकवादियों सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया है। 

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सेना,अर्ध सैनिक बल और पुलिसकर्मियों ने शहर के पुराने इलाके में कल घर-घर जा कर तलाशी अभियान शुरू किया और इस दौरान देश विरोधी गितिविधियों के आरोप में आठ लोगों को पकड़ा। पूछताछ के दौरान दो लोगों ने स्वीकार किया कि वे जैश ए मोहम्मद से ताल्लुक रखते हैं। इन लोगों ने ही 17 अगस्त को सेना के काफिले पर हमला करने में आतंकवादियों की मदद की थी, इस हमले में एक सैनिक और एक पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। पुलिस ने इनके पास से एक एके रायफल, एक पिस्तौल, कुछ हथियार और गोलाबारूद बरामद किया है। 

इससे पहले भी पुराने बारामूला शहर में एक तलाशी अभियान चलाया गया था जिसमें सुरक्षा बलों ने 44 देश विरोधी तत्वों को गिरफ्तार करके चीन और पाकिस्तान के झंडे बरामद किए थे। 

फौलादी व्यक्तित्व वाली इंदिरा गांधी को शत शत नमन !!

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देश की तृतीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की आज पुण्य तिथि है. इंदिरा का जन्म 19 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद के एक राजनितिक परिवार में हुआ। इंदिरा गाँधी देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री हैं। इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी वे सियासी उतार-चढ़ाव को बखूबी समझती थीं। 

पिता जवाहरलाल नेहरु के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। शास्त्री जी के निधन के बाद 1966 में वह देश की प्रधानमंत्री बनीं। इंदिरा गांधी 1966 से 1977 तक लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनीं परन्तु राजनीतिक छवि को आपातकाल की वजह से गहरा धक्का लगा। 1977 में देश की जनता ने उन्हें नकार दिया,  पर 1980  में फिर से  सत्ता में उनकी वापसी हुई। 1980 खालिस्तानी आतंकवाद के रूप में बड़ी चुनौती लेकर आया। ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर उन्हें कई तरह की राजनीतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। 31 अक्तूबर, 1984 को उनकी सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षाकर्मियों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उन्हें गोली मार दी। दिल्ली के एम्स ले जाते समय उनका निधन हो गया।

 अपने फौलादी व्यक्तित्व और सकारात्मक दृष्टिकोण की वजह से इंदिरा गाँधी की गिनती विश्व की सबसे ताकतवर महिलाओं में की जाती है। भारतीय राजनीति में उनके निर्णयों को मिसाल के तौर पर देखा जाता है। फौलादी व्यक्तित्व वाली इंदिरा गांधी को शत शत नमन।

रेलवे एसोसिएशन में समान भागीदारी नहीं दे सकने वाले नेतृत्व द्वारा बुलाई राष्ट्रीय दलित पंचायत की हकीकत??

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>>>>> भारत के #मूलवासी_आदिवासी और अनुसूचित जाति (की कुछ प्रभावशाली जातियों को छोड़कर) तथा ओबीसी के वर्तमान वंशजों के पूर्वज यूरेशियन मूल के सूर्यवंशी क्षत्रिय #आर्य_शूद्रों के वंशज नहीं थे। इसी प्रकार/कारण वर्तमान अजा, अजजा, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्गों के लोग न शूद्र हैं और न हीं दलित हैं, भारत के मूलवासी होने का तो सवाल ही नहीं उठता।

>>>>> इसके उपरान्त भी यूरेशियन मूल के सूर्यवंशी क्षत्रिय आर्य-शूद्रों के वर्तमान वंशज देश की 85 फीसदी आबादी को #शूद्र, #दलित और #मूलनिवासी शब्द थोपकर सत्ता की सीढी चढने का खेल खेलते रहते हैं। जिसमें मायावती, उदितराज, पासवान, अठावले पहले से जगजाहिर हैं, अब कुछ नये चेहरे सामने आने को छटपटा रहे हैं। जिन्हें अजा एवं अजजा के लोगों की समस्याएं नहीं बल्कि, केवल सांसद/विधायक की कुर्सी दिख रही है।

>>>>> आगे बढने से पहले यह जान लेना उपयुक्त होगा कि केन्द्र सरकार के अधीन #भारतीय_रेलवे में बहुत बड़ी संख्या में लोक सेवक कार्यरत हैं। जिनमें स्वाभाविक रूप से अजा एवं अजजा के लोगों की भी पर्याप्त संख्या है। अजा एवं अजजा के रेलवे कर्मचारियों के हितों के संरक्षण के नाम पर केवल अजा के कुछ कर्मचारियों द्वारा 'आॅल इण्डिया एससी एण्ड एसटी रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन'का गठन किया गया था।

>>>>> रेलवे में 15 फीसदी अजा एवं 7.5 फीसदी अजजा वर्गों के रेलकर्मी हैं। इनके अलावा प्रारम्भ से ही सफाईवाला रेलकर्मियों में केवल अजा के ही रेलकर्मी भर्ती होते रहे थे। इस कारण प्रारम्भ में अजा और अजजा के रेल​कर्मियों की संख्या का अनुपात 3:1 का होता था।

>>>>> इस कारण अजा एवं अजजा की इस क​थित ऐसोसिएशन के चुनावों में पहले दिन से ही अजा बनाम अजजा के दो धड़े कायम होते रहे हैं। जिसके चलते एसोसिएशन की स्थापना से लेकर आज तक इसके नीति—नियन्ता पदों अर्थात् राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव के पद पर किसी अजजा/आदिवासी रेलकर्मी को अवसर नहीं मिलने दिया गया है।

>>>>> इस अन्यायपूर्ण स्थिति के होते हुए #सामाजिक_न्याय और बराबरी की बात करने वाले 'आॅल इण्डिया एससी एण्ड एसटी रेलवे एम्पलाईज एसोसिएशन'के #संविधान मेंं इस बात का कहीं कोई प्रावधान नहीं किया गया कि इसमें अजजा के रेलकर्मियों को पर्याप्त #प्रतिनिधित्व कैसे प्रदान किया जायेगा? जिसके चलते अजजा के रेलकर्मी इस एसोसिएशन में #दोयम_दर्जे के पायदान पर रहे हैं।

>>>>> केवल इतना ही नहीं, बल्कि ​एसोसिएशन के शिखर पर अजा की एक जाति विशेष का प्रारम्भ से कब्जा रहने के कारण संख्याबल की दृष्टि से अजा वर्ग की छोटी जातियों के रेलकर्मियों के संरक्षण और उत्थान के लिये भी कभी कुछ नहीं किया जाता है। इसी का दुष्परिणाम है कि रेलवे से सफाईवाला पद पर काम करने वाले #मेहतर जाति के लाखों रेलकर्मियों के पदों की समाप्ति के वक्त एसोसिएशन #नेतृत्व_मौन रहा और रेलवे में सफाई का कार्य ठेके पर चला गया। #ठेकेप्रथा में मलाई तो पूंजीपति खा रहे हैं और #न्यूनतम_मजदूरी की दर से भी कम पर मेहतर जाति के लोग सफाई करने को विवश हैं।

>>>>> वर्तमान में भी इस एसोसिएशन पर एक #जाति_विशेष के ऐसे दो लोगों का दशकों से कब्जा है, जिनको अजा की शेष जातियों की तथा अजजा के रेलकर्मियों की समस्याओं के प्रति कोई सारोकार/संवेदनशीलता नहीं है। हां अजजा वर्ग के कुछ #विभीषण इन्होंने अवश्य पाल रखे हैं। जो इनकी हां में हां मिलाते रहते हैं। इसी का यह दुष्परिणाम है कि भारतीय रेलवे के तकरीबन सभी जोंस में अजा एवं अजजा के रेलकर्मी हर दिन #शोषण, #अत्याचार, #भेदभाव और #अन्याय के शिकार हो रहे हैं।

>>>>> सबसे महत्वूपर्ण बात इस एसोसिएशन के वर्तमान शिखर/राष्ट्रीय नेतृत्व ने एसोसिएशन के संविधान में संशोधन के जरिये प्रत्यक्ष चुनावी लोकतंत्र को खतम करके परोक्ष चुनावों के जरिये कुछ गिनेचुने और हां में हां मिलाने वाले अजजा के कुछ स्वार्थी और पदलोलुप रेलकर्मी प्रतिनिधियों के जरिये हमेशा के लिये अजा की एक जाति विशेष के लोगों ने कभी न खतम होने वाला कब्जा जमा लिया है।

>>>>> विचारणीय और चिन्ता का विषय है कि जो नेतृत्व सभी जातियों/वर्गों को एसोसिएशन मेंं समान/अनुपातिक या न्यायसंगत #भागीदारी नहीं दे सकता, उसे रेलवे में सरकारी पदों पर संवैधानिक #समानता, #पदोन्नति में #आरक्षण जैसे मुद्दों पर केन्द्र सरकार से वार्ता करने का कोई नैतिक हक होना चाहिये? यही नहीं एसोसिएशन का नेतृत्व आदिवासी अस्तित्व को समाप्त करने के #आर्य_सवर्णों और #संघ_मिशन (आदिवासी मिटाओ) के लिये भी औपचारिक तौर पर काम कर रहा है।

>>>>> इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है—21 नवम्बर, 2016 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर होने जा रही कथित महारैली का शिखर नेतृत्व केवल अजा के लोग कर रहे हैं, परिणामत:—
1. महारैली को अजजा एवं अजजा की महारैली नाम नहीं दिया गया है।
2. महारैली को दलित-आदिवासी की महारैली नाम भी नहीं दिया गया है।

3. इसके ठीक विपरीत आदिवासी अस्तित्व को नेस्तनाबूद करने और बाबा साहब के विचारों के विपरीत महारैली को #राष्ट्रीय_दलित_पंचायत नाम देकर राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर से आदिवासी के मौलिक अस्तित्व को नकारने का #षड़यंत्र किया जा रहा है।

4. 'राष्ट्रीय दलित पंचायत'नामकरण के विरुद्ध ऐसोसिएशन के पदों पर पदस्थ अजजा के कथित रेलकर्मी प्रतिनिधियों की चुप्पी या सहमति एसोसिएशन के उच्च नेतृत्व के प्रति उनके स्वामिभक्त/दब्बू/लुंजपुंज/पदलोलुप/पोरुषहीन होने का प्रमाण है, तो भारत के आदिवासी के लिये शर्मनाक है!

>>>>>>>>>'राष्ट्रीय दलित पंचायत'का असल मकसद क्या??????
>>>>> राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाकर रेलवे से ​सेवानिवृति के बाद या आने वाले चुनावों में उदितराज की तरह दलित-आदिवासी मतों के सौदागर बनकर संघ की कृपा से सांसदी/विधायकी हासिल करना। इसके बाद भी इस कथित 'राष्ट्रीय दलित पंचायत'को धन और समर्थन देने में जुटे लोगों की आंखें नहीं खुलती हैं तो 2018 और 2019 का इन्तजार किया जा सकता है!




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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

उतर प्रदेश : शक्ति तो दिखा, कलह थमा नहीं

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सीएम अखिलेश यादव जो चाहते थे, उन्होंने रथ यात्रा के जरिए साबित कर दिखाया। जुटी भीड़ के जरिए पिता मुलायम सिंह यादव एवं चाचा शिवपाल को बता दिया कि वह बच्चे नहीं है। जमीनी नेता बन चुके है। वह सपा के चेहरा है और बहुमत उन्हीं के बूते मिला था यानी पिता की ‘कृपा’ पर सीएम नहीं बन थे। रहा सवाल कुनबे की एकजुटता का तो मंच पर चाचा-भतीजे की तल्खी साफ-साफ दिखी। युवाओं के बीच से लग रहे नारों, हाथापाई और शहर में लगी होर्डिंग्स से चाचा का नदारद होना संकेत दे रहा था कि दिलों की दूरी कम नहीं हुई है। इसका असर नीचे कार्यकर्ताओं तक पहुंच गया है और उनके पाले बंट चुके हैं 




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फिरहाल, अखिलेश ने मुलायम व शिवपाल को रथयात्रा के जरिए बता दिया है कि यूपी में उनकी हैसियत क्या है। जो भीड़ जुटी वह अखिलेश के नाम और चेहरे पर जुटी है। भीड़ उन्हीं लोगों ने जुटाई है जिन्हें चाचा ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है। भीड़ में उमड़ी दो तिहाई युवाओं की मौजूदगी यह तस्दीक कर रही थी कि वह युवाओं के निर्विवादित नेता हैं। वह युवाओं के हीरों हैं। यह अलग बात है कि रह-रह कर अखिलेश के नारों से झल्लाएं मुलायम सिंह ने मंच पर भी अखिलेश व उनकी टीम को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘केवल नारा लगाने से काम नहीं चलेगा, जब जनेश्वर मिश्रा पर लाठीचार्ज हुआ, उनका सिर फूटा तो नौजवान गायब थे। जवानी कुरबान के नारे लगाने से काम नहीं चलेगा। बावजूद इसके अखिलेश ने पिता की बयानों के उलट अपनी युवा ब्रिगेड की जमकर पीठ थपथपाई। पूर्ववर्ती बीएसपी सरकार में पार्टी के लिए युवाओं के संघर्ष को याद किया। 

रहा सवाल चाचा व पिता का तो अखिलेश चाहते थे कि मुलायम व शिवपाल यादव उनके साथ मंच साझा न करें। लेकिन राजनीति में मजे खिलाड़ी मुलायम को पता था कि अगर मौका हाथ से निकला तो न शिवपाल बल्कि खुद भी अलग-थलग पड़ सकते है। इसीलिए उन्होंने मुलायम अपने साथ शिवपाल मंच पर लग गए। देखा जाय तो मुलायम ने शिवपाल को जबरदस्ती लेकर गए। क्योंकि पूरे कार्यक्रम से शिवपाल का नाम नदारद था। मुलायम को यह मालूम था कि अगर आज शिवपाल इस मौके से गायब रहे तो साफ संदेश जाएगा कि यह पार्टी का आयोजन नहीं था और पार्टी के दो धड़ों में विभाजन की जो लकीरें पड़ चुकी हैं, वह गहरी होंगी। शिवपाल ने मंच तो साझा किया लेकिन उनके दिलों की दूरी बरकरार रही। भाषण में एकबार भी शिवपाल को चाचा कहना तो दूर नाम तक नहीं ली। यह अलग बात है पीछे से मुलायम द्वारा आखें तरेरे जाने पर अखिलेश ने अध्यक्ष पद से उन्हें जरुर संबोधित किया। 

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बता दे, इसके पहले सुलह-समझौते के दौरान मुलायम ने अखिलेश पर जमकर भड़के थे। कहा था पार्टी पर असली पकड़ तो शिवपाल यादव की है। सार्वजनिक मंच से मुलायम ने यह सवाल उठा दिया था, अखिलेश तुम्हारी हैसियत क्या है। इसके बाद भाषण के दौरान माइक छिनने से लेकर बाहर जिस तरह सिर फटौवल हुआ और पार्टी से बाहर अखिलेश समर्थक निकाले गए, वह हर किसी से छिपी नहीं है। लेकिन वही निष्कासित पवन पांडेय, उदयवीर सिंह आदि ने भीड़ जुटाकर सासबित किया कि अखिलेश ही पार्टी के असल नेता है। यह अलग बात है कि पांच करोड़ खर्च करके बना समाजवादी विकास रथ दो घंटे भी नहीं चल पाया। कुछ दूर चलकर यह रथ भ्रष्टाचार के बोझ के तले दबा गया। रथ शायद कमिशनखोरी के चलते ही टूट गया। यह सपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। मुलायम व शिवपाल के मंच पर आने से अखिलेश के प्रति जो भी थोड़ी बहुत सहानुभूति हुई थी वह भी नौटंकी उजागर होने से अब समाप्त हो गयी, इसने संदेह नहीं है। हर नागरिक का यह जानने का हक है कि जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट में कितना सरकारी धन लगा है और कितना चंदा इक्स्प्रेस्वे की ठेकेदार कम्पनियों ने चंदे के रूप में दिया है। इस रथ का निर्माण कहां कराया गया तथा पेमेंट किसने किया और धन का श्रोत क्या है, इसकी जांच होनी ही चाहिए। क्योंकि यह जगजाहिर हो गया है कि यह रथ लखनऊ-आगरा इक्स्प्रेस्वे के कमिशन के पैसे से बना है। 

खास यह है कि इस यात्रा शक्ति प्रदर्शन में मुस्लिम वर्ग की संख्या नाममात्र की ही रही। सपा के पास विकास के नाम पर सैफई को जोड़ने वाला भ्रष्टाचार का प्रतीक इक्स्प्रेस्वे व लखनऊ मेट्रो, आधा-अधूरा लैप्टॉप वितरण, लोहिया आवास व पेंशन, कन्यादान की बात होती है। बावजूद इसके शिक्षा व चिकित्सा की हालत खस्ता है। यूपी में डेंगू से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। सड़के बनने के तीन माह बाद ही उखड़ जा रहे है। बेरोजगारों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। गन्ना किसानो का भुगतान अधर में लटका है। धान खरीद अब तक शुरु नहीं हो सकी है। बलदेलखंड व पूर्वांचल की बदहाली किसी से छिपी नहीं हैं। बिजली की दशा बताने की जरुरत नहीं। सूखा व ओलाबृष्टि के दौरान मुआवजा वितरण में किस तरह धांधली हुई, यह किसान से अधिक दुसरा कोई बता नहीं सकता। मुसलमानो को वायदे के अनुरूप 18.50 प्रतिशत आरक्षण का नारा सिर्फ हवा में ही हैं। प्रदेश में औद्योगिक निवेश हाल यह है कि व्यापारी सपाई गुंडो के आतंक से सूबा ही छोड़ कर जा रहे है। कैराना इसका जीता जागता उदाहरण है। किसान-मजदूरों की दुर्दशा से हर कोई वाकिफ है। बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा, यादव सिंह, भ्रष्ट आइएएस अमृत त्रिपाठी, आइपीएस अशोक शुक्ला व कोतवाल संजयनाथ तिवारी, रतन सिंह यादव जैसे पुलिसकर्मी किस तरह यूपी की जनता को लूट रहे है? निदोर्षो पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर घर-गृहस्थी लूटवा रहे है। 

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खनन से लेकर हर अनैतिक काम धड़ल्ले से चल रहा है, इसे बताने की जरुरत नहीं। बुंदेलखंड व पूर्वांचल में सिंचाई के साधनों का अभाव अभी तक जस का तस है। सभी जिलों को फोरलेन रोड से जोड़ने के वायदे सिर्फ सिर्फ वायदे ही साबित हुए। लैप्टॉप केवल एक साल ही बट पाया वह भी एक खास लोगों को ही। खाद्य सुरक्षा अधिनियम अर्थात गरीबों को भुखमरी से बचाने के लिए खाद्यान्न वितरण में धांधली इस कदर हुई कि मंत्री मालामाल हो गए और गरीब और गरीब हो गया। प्रतिदिन 12 बलात्कार व 15 हत्या प्रतिदिन, 100 से अधिक लूटपाट, एक हजार से अधिक फर्जी मुकदमें दर्ज कर उत्पीड़न की कार्रवाई इस बात की गवाही दे रहा है लोग अपने बेड रुम में भी सुरक्षित नहीं हैं। भ्रष्ट खनन मंत्री गायत्री प्रसाद समेत कई नौकरशाह किस लूट मचाएं है और उनके निलंबन और बहाली में कमीशनखोरी फला-फूला वह लोगों की जुबान पर है। क्या अखिलेश जी क्या बतायेंगे कि भ्रष्ट इंजीनियर यादव सिंह को क्यों बचाया जा रहा है। लोक सेवा आयोग के पूर्व भ्रष्ट अध्यक्ष अनिल यादव को क्यों बचाया गया। मतलब साफ है यह करप्सन किसके राज में और किसके निदेर्शन में फलफूला इसका जवाब जनता चुनाव में तो पूछेगी ही। कहा जा सकता है इन हरकतों के होते अखिलेश की साफ सुथरी स्वच्छ व विकास सिर्फ ढ़िढोरा से अधिक कुछ भी नहीं हैं। आपकी ढोंग का जवाब जनता देने के लिए तैयार बैठी है, इंतजार है तो सिर्फ चुनाव का। सच तो यह है कि 2012 में मायावती के खिलाफ हुई वोटिंग की वजह से अखिलेश की रथ यात्रा को विजय मिली, परंतु इस बार अखिलेश व सैफई परिवार के भ्रष्टाचार व कदाचार के कारण नहीं मिल पायेगा। 

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चाचा-भतीजे की तल्खी बरकरार 
खासकर वे, जो रथयात्रा में शामिल होने के बाद भी शिवपाल यादव का साथ नहीं छोड़ना चाहते थे। यानी लड़ाई अब आर या पार की स्थिति में गई है। पार्टी के दोनों गुटों ने संकेत दे दिया है कि कार्यकर्ताओं को अपना पक्ष चुनना होगा। दिलचस्प तो यह है कि अखिलेश के रथ में शिवपाल का चेहरा नहीं है, जबकि पार्टी के रजत जयंती समारोह के पैंफलेट से अखिलेश नदारद हैं। बीच में चर्चा चली कि क्यों न बिहार की तरह गैर बीजेपी दलों से महागठबंधन कर लिया जाए, जिससे पार्टी की लड़ाई कुछ समय के लिए नेपथ्य में चली जाए। कांग्रेस ने एसपी के साथ गठबंधन का अपना अलग प्रस्ताव रखा है, पर उसके साथ अखिलेश को गठबंधन का चेहरा बनाने की शर्त भी जोड़ दी है। उधर अन्य पार्टियों ने भी कुछ संकेत दिए हैं। जैसे नीतीश ने समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में आने से मना कर दिया है, पर लालू यादव शामिल हो रहे हैं। गठबंधन के संभावित सहयोगियों को लग रहा है कि मुलायम-शिवपाल और अमर की तिकड़ी अप्रासंगिक हो चुकी है। लेकिन गठबंधन की योजना तभी कारगर हो सकती है, जब सपा अखिलेश को आगे करके चुनाव लड़े, या फिर अखिलेश पार्टी तोड़कर बाहर आ जाएं। यूपी में वही सब घटता दिख रहा है, जो बिहार में पहले ही घट चुका है। लालू प्रसाद ने समाजवादी राजनीति को आगे जरूर बढ़ाया, पर समाजवादी लक्ष्यों को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के जरिए एक जनाधार तैयार किया, जो आज भी बना हुआ है। लेकिन नीतीश इससे एक कदम आगे निकल गए। उन्होंने समाजवादी लक्ष्यों और विकास के अजेंडे की बात की, जिससे उन्हें समाज के हर वर्ग का समर्थन मिला। इसके बूते वे न सिर्फ सत्ता में आए, बल्कि एक बड़े फलक वाली राजनीति की अवधारणा भी पेश की। अखिलेश इसी मॉडल पर चलना चाहते हैं, पर इसके लिए साहस और दूरदृष्टि की जरूरत है। उनके लिए पीछे लौटने का विकल्प लगभग समाप्त हो गया है। अगर वे प्रमुख गैर बीजेपी दलों के गठबंधन की धुरी बनने की हिम्मत जुटा पाते हैं तो यूपी में नई शुरुआत हो सकती है। 

क्या अमर के टोने से बिगड़ा रथ 
कैबिनेट मंत्री आजम खां की गैर-मौजूदगी कार्यक्रम में चर्चा का विषय बनी रही। इसके अलावा अमर सिंह और पार्टी से हाल ही में निष्कासित रामगोपाल यादव भी नहीं आए। हालांकि उनके बेटे अक्षय अखिलेश के साथ मौजूद रहे। फिरहाल, पांच करोड़ की लगात वाली लग्जरी बस के खराब होते ही सोशल मीडिया पर कमेंटस, ट्वीट्स और पोस्ट की बाढ़ आ गई। किसी ने इसे अपशकुन बताया तो किसी ने टोना टोटका कहा, किसी ने साजिश तो किसी ने चाचा की बद्दुआ कह डाला। एक महिला ने ट्वीट किया कि नजर लागी राजा तोहरे रथवा मा। एक ने सीएम के खिलाफ अमर सिंह द्वारा कराए गए तंत्रमंत्र और टोने-टोटके को रथ खराब होने की वजह बता डाला। वैसे भी रथयात्रा रवाना करने से पहले आयोजित कार्यक्रम में सीएम अखिलेश यादव ने पार्टी और सरकार के खिलाफ साजिश करने वालों पर हमला बोला। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि कुछ लोगों ने हमारे खिलाफ साजिश की। जिसकी वजह से हम थोड़ा डगमगाए। मगर विकास कार्यों के आधार पर जनता हमें दोबारा मौका देगी। रथयात्रा की शुरुआत से पहले अखिलेश और शिवपाल एक मंच पर दिखे मगर दोनों के बीच तल्खी बरकरार रही। मंच पर मुलायम के दायीं ओर शिवपाल और बायीं ओर सीएम अखिलेश बैठे थे। अखिलेश जब मुलायम से बात कर रहे थे, तो शिवपाल दूसरी ओर देख रहे थे। जब शिवपाल बात कर रहे थे तो अखिलेश दूसरी तरफ। मंच पर शिवपाल बोलने लगे तो समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी। भाषण के अंत में युवाओं को यह नसीहत भी दी कि जोश में होश नहीं खोना चाहिए। पोस्टर और बैनरों से भी शिवपाल नदारद दिखे। कार्यक्रम के दौरान सीएम ने शिवपाल का नाम तक नहीं लिया। हालांकि उन्होंने कई मंत्रियों का नाम लेने के बाद प्रदेश अध्यक्ष शब्द से उनका संबोधन किया। 

सर्वे में अखिलेश आगे 
यूपी में सपा के राजनीतिक घमासान में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जनता और सपा वोटर्स के बीच मजबूत होकर निकले हैं। 24 अक्टूबर को विवाद के बाद सी वोटर ने दो सर्वे कराए। सर्वे प्रदेश की 403 सीटों पर 12,221 लोगों के बीच किया गया। सर्वे के अनुसार शिवपाल सिंह यादव की लोकप्रियता लोगों के बीच काफी कम है। सर्वे से यह बात भी पता चली है कि सपा के कोर वोटर्स मुस्लिम व यादवों में भी अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के मुकाबले बड़ी लीड बना रखी है। अखिलेश युवाओं में भी लोकप्रिय हैं और अपर कास्ट और मिडिल क्लास में भी अखिलेश की लोकप्रियता बढ़ी है। तमाम जातियों में भी अखिलेश का जनाधार मुलायम के मुकाबले बढ़ा है। सर्वे से साफ संकेत जा रहा है कि सपा में अखिलेश निर्विवाद रूप से सबसे बड़े और क्लीन इमेज वाले नेता के रूप में सामने आए हैं। हालांकि इसके बाद मुलायम ने हालात को संभालने की कोशिश करते हुए अखिलेश के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने के संकेत दिए। प्रदेश में महागठबंधन बनाने की मुहिम भी तेज हुई जो अखिलेश का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ा जा सकता है।  

साढ़े चार मुख्यमंत्री वाला जुमले में अखिलेश की छबि बेहतर  
समाजवादी पार्टी में साढ़े चार सीएम हैं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लाचार, बेबस और बेचारे हैं। सीएम करप्शन के आरोपित किसी मंत्री को हटाते हैं तो ऊपर से उसे दोबारा कैबिनेट में रखने का फरमान आ जाता है। सारी लड़ाई सत्ता के दुरुपयोग से कमाई गई रकम की बंदरबांट की है। यह जुमला विपक्षियों की जुबान पर है। फिरहाल कुनबे में झगड़े की वजह मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता कहीं जा रही है। उनके पुत्र प्रतीक यादव और पुत्रवधू अपर्णा खास तौर पर उल्लेखनीय हैं। बुजुर्ग मुलायम पर सबके अपने-अपने दबाव हैं। परिवार में कइयों की शिकायत है कि अखिलेश सबको ‘मिलाकर’ नहीं चलते। यानी सत्ता की ‘मलाई’ में सबको वाजिब हिस्सा नहीं मिल रहा है! दोनों खेमों की तरफ से आरोप-प्रत्यारोप लगे कि ‘कुछ लोग’ धन-वसूली से पार्टी और सरकार की छवि खराब करते रहे हैं। लखनऊ में सबको मालूम है कि जिन गायत्री प्रजापति को अभी दोबारा मंत्रिमंडल से बाहर किया गया, वह सैफई घराने में किसके प्रियपात्र हैं! यह भी सुझाव आया कि पार्टी और परिवार के हक में होगा कि स्वयं ‘नेताजी’ मुख्यमंत्री पद संभालें। शिवपाल ने यह बात पुरजोर ढंग से उठाई। शायद, अमर के ‘ट्वीट’ का इशारा भी इसी तरफ था। इन दो के अलावा एसपी के गृहयुद्ध का कोई तीसरा कारण नहीं है। हालांकि एसपी के खेवनहार सिर्फ अखिलेश हैं। उनकी विश्वसनीयता ‘मुलायम-शिवपाल-अमर’ खेमे के मुकाबले ज्यादा है। पहला खेमा अनैतिक होने की हद तक दुस्साहसी है तो अखिलेश खेमे के पास साहस और समझ की कमी है। राजनीतिक साहस संघर्ष और संगठन से पैदा होता है। समझ परस्पर विमर्श और संवाद से पैदा होती है। अखिलेश इन दोनों प्रक्रियाओं से नहीं गुजरे हैं। सत्ता उन्हें पिता से उपहार में मिली। अब अपने पिता की तरह वह भी संगठन और सरकार में एकाधिकार चाहते हैं। उनकी कार्यशैली में बहुत लोकतांत्रिकता नहीं है। उनके पास सक्षम-समर्थ टीम भी नहीं है। उत्तर-उदारीकरण दौर के किसी अन्य नेता की तरह उनका जोर ‘विकास’ पर है। ऐसा विकास जो मध्यवर्ग को लुभाए और कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाए! पर उनका आम मतदाता से ‘कनेक्ट’ नहीं है। एसपी-शैली से अलग, वह काफी हद तक कांग्रेसी अंदाज में सभी समाजों-समुदायों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। पिता और चाचा से अलग वह आधुनिक शहरी मिजाज के हैं। शायद, इसीलिए युवाओं के एक हिस्से को पसंद भी आ रहे हैं। पर उनके पास वक्त और विकल्प बेहद सीमित हैं।

क्या पारिवारिक झगड़े में यूपी बना ‘निजी संपत्ति‘  
देश का सबसे बड़ा सूबा यूपी की सत्ता में बैठी अखिलेश सरकार इन दिनों पारिवारिक झगड़े में निजी संपत्ति होकर रह गयी है। जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, सरकार मस्त है। डेंगू, चिकुनगुनिया से लोग मर रहे है। अब तक केवल डेंगू से 180 लोगों की जाने जा चुकी है। जबकि इस गंभीर बीमारी से निपटने के लिए केन्द्र सरकार ने 2014-15 में 24098 करोड़ से भी अधिक राशि आवंटित की है। लेकिन इस पारिवारिक लोकतंत्र के झगड़े में लापरवाह अफसर खर्च तक नहीं कर सके और तुर्रा विकास का है। हालात को देखते हुए हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए कहा है, जब यूपी में संवैधानिक विफलता की स्थिति है तो क्यूं न राष्ट्रपति शासन न लगा दिया जाय। सवाल यह है कि जब इस पारिवारिक लोकतंत्र में सबकुछ सलट गया है तो अखिलेश सरकार जनता के प्रति इतनी लापरवाह क्यों बनी है? कुल मिलाकर हालात यह है कि सियासी कुश्ती में मगन समाजवादी परिवार हर रोज दांवपेंच खोज रही है, बदल रही है और राज्य की जनता जान गवा रही है। बेशक, जब यूपी में स्वास्थ्य विभाग बेपरवाह है। नागरिकों को स्वास्थ्य विभाग सुविधाएं मुहैया नहीं करा पा रहा है। आफिसर गलत हलफनामे दे रहे है। डेंगू की रोकथाम के लिए किसी भी विभाग ने प्रभावी कदम नहीं उठाएं है। आफिसर कहते है हर रोज कार्रवाई कर रहे है, योजनाएं बना रहे है, लेकिन हकीकत यह है कि हर रोज लोग डेंगू से मर रहे है। जबकि सरकार का दावा है कि पार्टी में सबकुछ आल इज वेल है। विफलताओं के एवज में हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की बात कह रही है। फिरहाल, यह जगजाहिर है कि सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह के कुनबे में अगर कोई मालामाल है तो वह शिवपाल यादव व रामगोपाल यादव ही है। वजह शिवपाल मुख्यमंत्री भले ही नहीं थे, लेकिन सत्ता में हैसियत मुख्यमंत्री की ही थी। अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर जमीन कब्जे कराना, घर-गृहस्थी लूटवाना, फर्जी मुकदमें दर्ज करवाना, अपराधियों को संरक्षण समेत हर कुकर्म शिवपाल के ही चेला-चापड़ करते रहे। अगर इन चेलों पर कभी अखिलेश का डंडा चला भी तो शिवपाल ने तीन-तिकड़म से बचा लिया। परिणाम यह हुआ कि खनन मंत्री गायत्री प्रजापति से लेकर खनन माफिया विधायक विजय मिश्रा, आइएएस अमृत त्रिपाठी, आइपीएस अशोक शुक्ला? यादव सिंह व लूटेरा कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे भ्रष्ट अफसरों से वसूली का बड़ा हिस्सा शिवपाल के पास ही पहुंचता रहा। यह काली कमाई हजार-दो हजार करोड़ नहीं बल्कि अरबों करोड़ की है और इसी काली कमाई को लेकर रुतबे व आहदें की शान में चली-चला की बेला में कुनबे में गृहयुद्ध छिड़ा है। 

क्या संपत्ति बंटवारा है झगड़े की वजह 
दरअसल मुलायम परिवार में पिछले साढ़े चार साल की कार्यकाल में बेइंतहा कमाई गयी काली कमाई, वर्चस्व व राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं अखिलेश पर भारी पड़ने लगी हैं। बहू-बेटे, दामाद, चाचा-भतीजा समेत हर वह सख्श जो मुलायम के करीबियों में है, मालामाल हो गया है। यह अलग-अलग बात है इस धमाचैकड़ी व बंदरबांट में किसी को कम तो किसी को ज्यादा हाथ लगा है। यही कम-ज्यादा व ओहदा-रुतबा की तनातनी पार्टी में दरार डालने की महती भूमिका निभाई है। यही समाजवादी गृहयुद्ध न सिर्फ यूपी की राजनीतिक साख पर बट्टा लगा रहा है, बल्कि बिजली, पानी, सड़क व स्वास्थ्य सेवाओं लचर हो गयी है। जानलेवा बीमारी डेंगू समेत अन्य रोगों की चपेट में आएं मरीज असमय ही मौत के गाल में समा रहे है। जनहित की कल्याणकारी योजनाओं पर ग्रहण कर लग चुका है और आम-जनमानस में त्राहि-त्राहि मची है। यानी सपा का पारिवारिक विवाद अब प्रदेश के लोगों के लिए सिरदर्द हो गया है। लूट के धन का बंटवारा करने को लेकर यह सब नौटंकी है। इसका जबाव अब विधानसभा चुनाव में जनता देगी 

महाठबंधन बनने के तिकड़म 
क्या यूपी में यादव परिवार में जारी संकट नए राजनीतिक समीकरण को जन्म दे सकता है। संकेत अभी से मिलने लगे हैं। मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति और बीजेपी के बढ़ते वजूद के बीच प्रदेश में एक बार फिर बिहार की तर्ज पर महाठबंधन बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है। माना जा रहा है कि यूपी में महागठबंधन साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा। इस महाठबंधन का हिस्सा कौन बनेगा, इस बारे में अगले कुछ दिनों में हालात स्पष्ट हो जाएंगे। हालांकि कांग्रेस और नीतीश कुमार की पहली पसंद अखिलेश यादव हैं। महागठबंधन बनाने में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और बिहार के सीएम नीतीश कुमार अहम भूमिका निभा रहे हैं। महाठबंधन की पहल से पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी को समझाया गया कि अकेले लड़ने से उनकी ताकत कमजोर रहेगी और इससे वह न खुद बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे और न बीजेपी को रोकने में सफल हो पाएंगे। इसके बाद सोनिया ने खुद भी पार्टी के अंदर और बाहर नेताओं से इस मसले पर बात की। सूत्रों के अनुसार इसके बाद कांग्रेस अब प्रदेश में बिहार की तर्ज पर किसी महागठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हो गई है। उधर नीतीश कुमार की जेडीयू और अजित सिंह की आरएलडी पहले ही प्रदेश में साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। इनकी ओर से कांग्रेस को एसपी या बीएसपी में से किसी एक के साथ महागठबंधन बनाने की सलाह दी गई थी। लेकिन एसपी में पारिवारिक विवाद सामने आने से पहले न बीएसपी और न एसपी गठबंधन के मुद्दे पर बहुत उत्साहित दिखे। इससे महाठबंधन की कवायद ठंडी रही। लेकिन यादव परिवार के विवाद के बाद अचानक विकल्प खुलने लगे।

बीस करोड़ आबादी 20 सदस्यीय कुनबे में सिमटा 
जबकि सरकार का दावा है कि पार्टी में सबकुछ ‘आल इज वेल‘ है। बावजूद इसके वन मंत्री पवन पांडेय को बर्खास्त करना पड़ा। सच तो यह है कि सपा में पांच-पांच सीएम हैं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लाचार, बेबस और बेचारे हैं। सीएम करप्शन के आरोपित किसी मंत्री को हटाते हैं तो ऊपर से उसे दोबारा कैबिनेट में रखने का फरमान आ जाता है। सारी लड़ाई सत्ता के दुरुपयोग से कमाई गई रकम की बंदरबांट की है। इसकी पुष्टि खुद मुलायम कर चुके है। इसमें मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता, उनके पुत्र प्रतीक यादव और पुत्रवधू अपर्णा खास तौर पर उल्लेखनीय हैं। बुजुर्ग मुलायम पर सबके अपने-अपने दबाव हैं। परिवार में कइयों की शिकायत है कि अखिलेश सबको ‘मिलाकर’ नहीं चलते। यानी सत्ता की ‘मलाई’ में सबको वाजिब हिस्सा नहीं मिल रहा है! मीटिंग में दोनों खेमों की तरफ से आरोप-प्रत्यारोप लगे कि ‘कुछ लोग’ धन-वसूली से पार्टी और सरकार की छवि खराब करते रहे हैं। गायत्री प्रजापति, यादव सिंह इसके जीता-जागता सबूत है। कहा जा सकता है सत्ता पर काबिज मुलायम कुनबे में जिस तरह से सरेआम नोकझोंक, सिर-फुटौवल हो रहा है, उसने ‘समाजवाद’ को नंगा कर दिया। अपने आप को समाजवादी कहने वालों ने जग-जाहिर कर दिया कि समाजवाद से उनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं है। सारा खेल परिवार और सत्ता के साथ अवैध कमाई की बंटवारे का है। 20 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश की समूची राजनीति मुलायम के 20-सदस्यीय राजनीतिक परिवार तक सिमट गयी है। गरीबी, बेरोजगारी व बढ़ते अपराध से कराहते प्रदेश की चिंता ‘समाजवादियों’ को नहीं हैं। जिस प्रदेश में किसान आत्महत्या कर रहे है। बेरोजगार अपराध को उन्मुख हो रहे है, वहां मुलायम कुनबा यूपी को अपनी जागिर समझ काली कमाई के बंटवारे में मस्त है। फिरहाल कुनबे में अगर कोई मालामाल है तो वह शिवपाल यादव व रामगोपाल यादव ही है। वजह शिवपाल मुख्यमंत्री भले ही नहीं थे, लेकिन सत्ता में हैसियत मुख्यमंत्री की ही थी। अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर जमीन कब्जे कराना, घर-गृहस्थी लूटवाना, फर्जी मुकदमें दर्ज करवाना, अपराधियों को संरक्षण समेत हर कुकर्म शिवपाल के ही चेला-चापड़ करते रहे। अगर इन चेलों पर कभी अखिलेश का डंडा चला भी तो शिवपाल ने तीन-तिकड़म से बचा लिया। परिणाम यह हुआ कि खनन मंत्री गायत्री प्रजापति से लेकर खनन माफिया विधायक विजय मिश्रा, आइएएस अमृत त्रिपाठी, आइपीएस अशोक शुक्ला? यादव सिंह व लूटेरा कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे भ्रष्ट अफसरों से वसूली का बड़ा हिस्सा शिवपाल के पास ही पहुंचता रहा। यह काली कमाई हजार-दो हजार करोड़ नहीं बल्कि अरबों करोड़ की है और इसी काली कमाई को लेकर रुतबे व आहदें की शान में चली-चला की बेला में कुनबे में गृहयुद्ध छिड़ा है। 

झगड़े में बसपा-भाजपा मजबूत 
हो जो भी इन दो राजनीतिक रणनीतियों के अलावा पारिवारिक टकरावों और कई मंचों पर देखी जा चुकी महाभारत के बाद अगर समाजवादी पार्टी टूटती है तो उसके मुस्लिम-यादव वोट बैंक का बिखरना तय है। ऐसा हुआ तो मुसलमान शायद पूरी तरह बीएसपी के साथ खड़े दिखाई दें, क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे कड़ी चुनौती वही दे पाएगी। यादव वोट समाजवादी पार्टी के दोनों धड़ों में तो बंटेंगे ही, लेकिन इनका एक हिस्सा बीजेपी के साथ भी जा सकता है। गैर यादव पिछड़े वोटों के पीछे तो बीजेपी अभी से लगी हुई है। अखिलेश यादव का धड़ा अगर चुनाव में एक अलग पार्टी के रूप में उतरने का फैसला करता है तो बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी ग्रैंड अलांयस की संभावना बन सकती है। इधर एक-दो महीने से अखिलेश इस तरह के कुछ संकेत दे भी रहे हैं कि वे कांग्रेस, अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी, और जेडीयू के साथ मिल कर एक बड़े बीजेपी विरोधी गठबंधन के रूप में चुनाव में उतरना चाहते हैं। राहुल गांधी के लिए प्रशांत किशोर के एडवाइजरी बोर्ड ने भी कुछ नया कारनामा नहीं किया। खाट सभा ने कइयों की खटिया जरूर खड़ी की। खाट ने लोगों के दरवाजों पर जैसे ही दस्तक दी, अगल-बगल के लोग मिली-जुली प्रतिक्रिया के साथ उस खाट पर बैठे और चर्चा की। इस चर्चा ने कांग्रेस को विमर्श में शामिल जरूर किया पर जनता होशियार बहुत है। कांग्रेस के तीर का असर हो पाता, इससे पहले ही भाजपा ने उसके किले में सेंध लगा दी। रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल होते ही नए राजनीतिक समीकरण सामने आने लगे हैं। यूपी में लूला हो चुका कांग्रेस का हाथ चाहकर भी किसी कीमती चीज को नहीं पकड़ सकता, उधर हाथी को जिस साफगोई और डीलडौल के लिए पसंद किया जा रहा था, उसने ‘अहं ब्रह्मास्मि‘ का एटीट्यूड अपनाने की कोशिश में अपना राजनीतिक कद छोटा कर लिया। यूपी की जनता हाथी को अपना पाती, इससे पहले ही उसके कई बड़े सहयोगी कमल के साथ हो लिए, क्योंकि राष्ट्रभक्ति की ठेकेदारी सिर्फ कमल के पास है। इस दौड़ में जिस तरह बड़े खिलाड़ी टीम भाजपा में शामिल हुए है, उसे देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि भाजपा को अन्य सभी पार्टियों ने थाली सजा कर दे दी है। भाजपा इसे भुना पाएगी या नहीं, यह 2017 का चुनाव साफ कर देगा। 

भाजपा को उम्मीद 
समाजवादी कुनबे की कलह पर विपक्ष की निगाह लगी है। खासकर भाजपा व बसपा इस उठापटक में लाभ की संभावना टटोल रहे हैं। वोटों के धुव्रीकरण की उम्मीद लगाए बसपाइयों को भरोसा है कि समाजवादी पार्टी की फजीहत से हताश हुए मुस्लिम, भाजपा को हराने के लिए साइकिल छोड़ कर हाथी पर सवार हो सकेंगे। इसी तरह भाजपा भी पिछड़े वर्ग का झुकाव बढ़ने की आस लगाए है। बसपा नेतृत्व को उम्मीद है कि सपा की अंतर्कलह से उसके मतदाताओं में ऊहापोह बढ़ी है। सपा में शीर्ष स्तर पर पालाबंदी से कार्यकर्ता बेहद हैरान है। गत लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले जबरदस्त बहुमत के बाद मुस्लिम इस बार सतर्क है। सर्जिकल स्ट्राइक और तीन तलाक जैसे मसले गर्माने से मुसलमानों में बेचैनी बढ़ी है। 

बड़ा उलटफेर संभव 
पिछले चुनावों के नतीजों पर नजर डाले तो मात्र तीन से पांच फीसद वोट पलटने से बड़े उलटफेर होते रहे है। खासकर सपा और बसपा के बीच मुकाबला कड़ा होता रहा है। 2012 में 29.12 फीसद वोट हासिल करके सपा ने 224 सीटों पर विजय हासिल की थी जबकि बसपा 25.91 प्रतिशत वोट लेने के बाद केवल 80 क्षेत्रों में सिमट गई थी। अंतर्कलह से सपा के वोटों में गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। 

काफी पुरानी है चाचा-भतीजे की जंग 
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच रिश्ते शुरू से अच्छे नहीं हैं। जहां शिवपाल को अखिलेश का मुख्यमंत्री बनाया जाना अखर गया वहीं अखिलेश को सरकार के मामलों में शिवपाल का दखल कभी रास नहीं आया। दोनों के बीच में पार्टी के लिए उम्मीदवारों के चयन से लेकर सरकार की कार्यशैली तक कई मुद्दों पर खींचतान होती रही है। जुलाई 2016 में शिवपाल ने पार्टी छोड़ने की धमकी दी। मुलायम सिंह ने शिवपाल को समझा-बुझा कर रोका। 1 अगस्त 2016 को कौमी एकता दल के साथ सपा के विलय के लिए शिवपाल अड़े रहे। इस बार मुलायम सिंह ने साथ दिया। अखिलेश विरोध में रहे। 15 अगस्त 2016 को मुलायम सिंह ने कहा कि अगर शिवपाल ने इस्तीफा दिया तो पार्टी के दो हिस्से हो जाएंगे। यह अखिलेश के लिए धमकी थी। 11 सितंबर 2016 को अखिलेश ने खनन मंत्री गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राज किशोर सिंह को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मंत्रीमंडल से हटाया। इसके बावजूद मुलायम से निकटता की वजह से दोनों मंत्रिमंडल में काम करते रहे। 11 सितंबर 2016 को अमर सिंह ने अपने घर दावत रखी जिसमें अखिलेश नहीं गए लेकिन राज्य के प्रमुख सचिव दीपक सिंघल इसमें शामिल हुए। 12 सितंबर 2016 को शिवपाल के करीबी दीपक सिंघल की अमर सिंह से नजदीकियों के चलते अखिलेश ने उन्हें हटाकर अपने विश्वासपात्र आइएएस राहुल भटनागर को प्रमुख सचिव का पद सौंपा। 13 सितंबर 2016 को मुलायम सिंह ने अखिलेश को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाकर अपने छोटे भाई शिवपाल को यह पद सौंप दिया। 13 सितंबर 2016 को अखिलेश ने शिवपाल को सभी प्रमुख मंत्रालयों में मंत्री पद देने से मना कर दिया। 15 सितंबर 2016 को शिवपाल ने मुलायम और अखिलेश के साथ कई बैठकें की। मनमुटाव के चलते अखिलेश के साथ बैठक सफल नहीं हुई। 15 सितंबर 2016 को रात दस बजे शिवपाल, उनके बेटे आदित्य यादव ने पार्टी व सरकार के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। 16 सितंबर 2016 को मुलायम सिंह ने राज्य के पार्टी अध्यक्ष के तौर पर शिवपाल का इस्तीफा नामंजूर कर दिया। 16 सितंबर 2016 को मुलायम सिंह ने सपाईयों को संबोधित किया। साथ ही गायत्री प्रजापति को सरकार में दोबारा शामिल करने की घोषणा की। 16 सितंबर 2016 को पार्टी व परिवार में हालात सुधरते दिखे। मुलायम ने अखिलेश और शिवपाल से मुलाकात की। शिवपाल को अध्यक्ष पद के साथ अपने सभी मंत्रालय दिए गए। अखिलेश को चुनावों में टिकट देने में राय देने का अधिकार मिला। 

युवा नेताओं की बर्खास्तगी से हुआ बवाल 
दिसंबर 2015 में शिवपाल के कहने पर पार्टी ने तीन युवा नेताओं को जिला पंचायत चुनाव के समय बर्खास्त किया। इनमें से सुनील सिंह यादव और आनंद भदौरिया अखिलेश के करीबी माने जाते थे। इससे नाराज अखिलेश सैफई में होने वाले सालाना आयोजन के उद्घाटन में नहीं गए। 11 जनवरी 2015 को अखिलेश यादव ने सैफई महोत्सव में भाग लिया। अगले दिन बर्खास्त किए गए उनके करीबी नेताओं को पार्टी में दोबारा शामिल किया गया। 1 मार्च 2016 को शिवपाल ने मुलायम की सबसे छोटी बहू अपर्णा को चुनाव लड़ाने की बात कही। अखिलेश और रामगोपाल ने इसका विरोध किया। इससे दोनों के बीच की तल्खी और बढ़ गई। 1 मई 2016 शिवपाल ने अमर सिंह को पार्टी में वापस लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया। जबकि अखिलेश और रामगोपाल यादव इसके विरोध में थे। आखिरकार अमर सिंह वापस आए और दोनों खेमों में दूरी और बढ़ गई। 1 जून 2016 को सपा और मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के गठबंधन के लिए शिवपाल ने कड़ा जोर लगया। अपनी बेदाग छवि बरकरार रखने के लिए अखिलेश ने इसका विरोध किया। अगस्त में होने वाला गठबंधन रोक दिया गया। 

अपनों से घिरे अखिलेश 
सपा में चल रहे सत्ता संग्राम में अखिलेश एक ऐसे योद्धा के रूप में उभरे हैं जो अपनों के ही तीर झेल रहा है। खास बात यह है कि ये तीर उन लोगों को बचाने के लिए चलाए जा रहे हैं जिनका दामन दागदार है। जैसे कि मुख्तार अंसारी और गायत्री प्रजापति। जैसे-जैसे सपा का संकट गहरा रहा है अखिलेश का कद बढ़ रहा है। यह एक अजीब विरोधाभास है। इसकी एक वजह अखिलेश का सख्त रुख है। आमतौर पर यह देखा जा रहा था कि अखिलेश यादव पूरे साढ़े चार साल तक मुलायम समेत सपा के बड़े नेताओं की छाया में काम कर रहे थे। ब्यूरोक्रेसी में भी कुछ अधिकारियों के खिलाफ वे चाहकर भी कार्रवाई नहीं कर पा रहे थे। इससे उनकी छवि एक ढुलमुल सीएम की बन रही थी। लेकिन इस बार उन्होंने यू टर्न लिया है। वे अपने पक्ष पर टिके हुए हैं।

छबि को लेकर अखिलेश संजीदा 
दरअसल, अखिलेश मुलायम की राह पर चलने की जगह खुद का रास्ता बनाने में लगे है, जिसे मुलायम ने खुली चुनौती माना है। लेकिन पहलवान रहे मुलायम सिंह यह जान समझ रहे हैं कि गलत समय पर धोबियापाट लगाना उल्टा उन्हें पड़ सकता है। मुलायम की लंबी राजनीतिक यात्रा में डीपी यादव, मुख्तार अंसारी, राजा भैया व किरनपाल जैसे लोगों का काफिला सपा के इर्दगिर्द ही चलता रहा। लेकिन अब नई पीढ़ी के समाजवादी नेता अखिलेश के लिए ऐसे दागी बर्दाश्त नहीं हैं। नेताजी से अमर सिंह जैसे सियासी लोगों की नजदीकी भी अखिलेश को कभी नहीं रास आई। वह अपने सियासी सफर में इस तरह के फौज-फाटे को लेकर चलना नहीं चाहते हैं। बदलते सामाजिक व राजनीतिक दौर में उनकी अपनी सोच है, जो नेताजी से अलग है। वह मुलायम के ‘राजनीतिक मजबूरी के बोझ’ को लेकर चलने को राजी नहीं है। अखिलेश का यह राजनीतिक नजरिया मुलायम और उनके ‘कुछ’ लोगों को भा नहीं रहा है। किन्हीं मजबूरियों के चलते मुलायम को भी उनका समर्थन करना पड़ रहा है। इसके लिए अखिलेश की घेरेबंदी की जा रही है, जिसे तोड़कर वह कब के बाहर हो चुके हैं। यही अखिलेश की गुस्ताखी है। लेकिन मुलायम को मालूम है कि पार्टी टूटी या अखिलेश को पार्टी से बेदखल किया तो सपा बेदम होकर बैठ सकती है। अखिलेश के सौम्य चेहरे, नई सोच और कम उम्र ने राज्य में पार्टी के परम्परागत वोट बैंक (यादव और मुसलमान) के इतर दूसरी जातियों में पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ाई। वो ताजा हवा की मानिंद थे। जो लोग अलग-अलग वजहों से सपा को पसंद नहीं करते थे उन्होंने भी अखिलेश के नाम पर साइकल को वोट कर दिया। कुछ लोगों ने ऐसा इस वजह से किया कि यह मुलायम वाली नहीं, अखिलेश यादव वाली सपा है। कुछ लोगों का यह कहना था कि उन्होंने सपा को नहीं, अखिलेश को वोट दिया है। शायद यही वजह थी कि मुलायम के राजनैतिक जीवन का यह पहला चुनाव था जब उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला। अगर अखिलेश उस वक्त मुख्यमंत्री नहीं बनते तो शायद वोटर्स के एक बड़े वर्ग को निराशा हाथ लगती। यहां भले ही मुलायम अखिलेश से अभी नाराज हों लेकिन ये भी सच है कि 2012 में वे अपना राजपाट अखिलेश को सौंप चुके हैं। अपनी जीवन भर से जुटाई ताकत अखिलेश को ट्रांसफर कर चुके हैं। यही वजह है कि सपा के कोर वोटर खासतौर से यादव अखिलेश में मुलायम की छवि देख रहे हैं। अखिलेश की ताकत ये एक बड़ी वजह है। अखिलेश को भी यह समझ में आ चुका है कि यदि वे अभी कड़ा स्टैंड नहीं लेंगे तो उनका वोटर उन्हें भी माफ नहीं करेगा। इस कलह के बाद भले ही 2017 में सपा का प्रदर्शन कुछ खराब हो जाए लेकिन बतौर नेता अखिलेश पूरी तरह तैयार हो चुके होंगे। इसके बाद 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा में वे पूरी तैयारी के साथ मैदान में होंगे।

मुलायमवादी समाजवाद के 25 साल
मुलायमवादी समाजवाद यानी सपा पांच नवम्बर को रजत जयंती समारोह का आयोजन करेगी। क्योंकि सपा की स्थापना दिवस के पच्चीस साल पूरे हो रहे है। उस वक्त चैधरी चरण सिंह की राजनैतिक विरासत संभालने का दावा करते हुए मुलायम सिंह यादव ने ही जनेश्वर मिश्र, कपिलदेव सिंह, बृज भूषण तिवारी, मोहन सिंह, भगवती सिंह, रेवती रमन सिंह, रामगोविंद चैधरी, अवधेश प्रसाद और राजेंद्र चैधरी जैसे लोगों से मिलकर सपा की स्थापना की थी। खास यह है कि पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव आज भी मंडल आंदोलन के दौर की सोशल इंजीनियरिंग को चुनावी रणनीति का आधार बनाए रखना चाहते हैं। दागी छवि या बाहुबलियों से उन्हें न पहले कोई परहेज था, न अब है। यही वजह है कि रजत जयंती समारोह का संयोजक मुलायम सिंह ने इस पार्टी के किसी संस्थापक नेता को बनाने की बजाय कई विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मंत्री गायत्री प्रजापति को बनाया है। ये वही हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री ने बर्खास्त किया लेकिन मुलायम सिंह के दबाव में दोबारा मंत्री बना दिया। शपथ ग्रहण समारोह में मुलायम सिंह के चरण स्पर्श करते हुए उनकी फोटो सोशल मीडिया में वायरल हो गई थी। इस घटना से मुलायम सिंह की राजनीति का चाल, चरित्र और चेहरा साफ हो जाता है। मतलब साफ है इस दौर में भी मुलायम की घिनौनी राजनीति कायम है। विवादास्पद मंत्री गायत्री प्रजापति रजत जयंती समारोह का चेहरा हैं। प्रजापति को फिर से लाना मुलायम सिंह के उन ऐतिहासिक फैसलों में से एक है, जिसके चलते रजत जयंती समारोह से करीब एक पखवाड़े पहले ही यह पार्टी दो-फाड़ होते-होते बची और पारिवारिक विवाद के चलते देश भर में चर्चा में आई। पार्टी अधिवेशन में जो संवाद और विवाद परिवार के बीच हुआ, वह रोचक था। देश के इतिहास में किसी राजनीतिक परिवार में बाप, बेटे और चाचा के बीच ऐसा संवाद पहले नहीं हुआ, जिसका सीधा प्रसारण देश ने देखा हो। यह मुलायम सिंह की राजनीति का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू था। जो विवाद वे परिवार में सुलझा सकते थे, उसे पार्टी के मंच पर ले आए। सपा की शुरुआत मुलायम ने बहुत मजबूत ढंग से की थी। उनके साथ समर्पित समाजवादियों की टीम भी थी। यही वजह है कि यह पार्टी पचीस साल में देश के सबसे बड़े सूबे में चार बार सत्ता में आई। इस पार्टी ने समूचे उत्तर भारत की राजनीति को भी लंबे समय तक प्रभावित किया। पर बीते करीब डेढ़ दशक से मुलायम सिंह की राजनीति में जो बदलाव आया, उसका नतीजा सबके सामने है। मुलायम आज भी लोहिया का नाम लेते हैं, पर बीते डेढ़ दशक में समाजवादी पार्टी का कोई वैचारिक प्रशिक्षण शिविर हुआ हो, किसी को याद नहीं आता। पार्टी पूरी तरह परिवार पर निर्भर होती गई और यह निर्भरता ही ताजा विवाद की मुख्य वजह बनी। समस्या यह है कि इस परिवार में अखिलेश यादव की जगह लगातार सिकुड़ती जा रही है। परिवार में उन्हें किनारे किया गया तो पार्टी का पद भी गया, जबकि वे विकास के अजेंडा पर काम करते रहे। इसके चलते परिवार में विरोध के बावजूद वह लगातार मजबूत होते जा रहे हैं और आम लोगों के बीच लोकप्रिय भी। लोगों में यह धारणा घर करती जा रही है कि मुलायम सिंह अपने इस बेटे का हक मार रहे हैं। देखना है, यह पार्टी टूटकर उत्तर प्रदेश की राजनीति को नया आयाम देती है, या किसी तरह बिखराव से बची रहकर हाशिए पर चली जाती है। मुलायम गरीबी, बेरोजगारी व बढ़ते अपराध से कराहते प्रदेश में ‘समाजवादी’ झुनझुना पकड़ा कर चुनाव-दर-चुनाव वे मतदाताओं को बहलाने में सफल रहे। पर, इटावा-मैनपुरी-कन्नौज के बरमूडा ट्राएंगल और उसके केंद्र सैफई में आचार्य नरेंद्र देव और डाॅ राम मनोहर लोहिया के समाजवादी आदर्श कब दफन हो गये, किसी को पता ही नहीं चला। जातिवाद, परिवारवाद व असमानता के धुर-विरोधी लोहिया के चेलों की पूरी राजनीति ही जातिवाद और परिवारवाद पर टिक गयी। सत्ता के लिए हर हद तक जाकर समझौते किये गये। गुंडे सफेद खादी पहन कर समाजवादी हो गये। कहना मुश्किल हो गया कि समाजवाद का लंपटीकरण हुआ या लंपटों का समाजीकरण। फक्कड़ लोहिया के जमीनी समाजवाद को इन छद्म समाजवादियों के राजसी ठाट-बाट ने शर्मसार कर दिया। जिस प्रदेश में किसान आत्महत्या कर रहे थे और बेरोजगार अपराध को उन्मुख हो रहे थे, वहां मुलायम के अपने गांव सैफई में रंगीनियां बरस रही थीं। अपने 75वें जन्मदिन पर विक्टोरियन बग्घी में बैठ कर रामपुर की सड़कों पर राजसी सवारी में निकलते मुलायम ने लोहिया की स्मृति को सिरे से मिटा दिया। 




(सुरेश गांधी)

स्तन कैंसर अवेयरनेस पर शार्ट फिल्म।

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महिलाओं में फैलते स्तन कैंसर जैसे रोग के प्रति जागरूक करने के मकसद से निर्माता अनिल मुरारका  ने एक शार्ट फिल्म का निर्माण किया है,जिसमें 4 से 5 विडियो है।ं फिल्म के माध्यम से उन्होंने महिलाओं से अपील किया है की भले हम आम जिन्दगी में कितने भी बिजी क्यों न हो पर अपने इस व्यस्त समय से केवल २ मिनट स्तन कैंसर की जांच के लिए दे।  इस शार्ट फिल्म में फिल्म जगत और टीवी जगत की अनेक हस्तियों में दिव्या कुमार खोसला, नीति मोहन, शक्ति मोहन, दिशा परमार, प्रिय बापट और भी बहुत सारे फिल्मी हस्तियां हैं। अनिल मुरारका इससे पूर्व में एंटी स्मोकिंग को लेकर एक 11 मिनट की शार्ट फिल्म बनायीं थी जिसमे े सनी लियॉन और दीपक डोबरियाल ने काम कर चुकी है, और कंगना राणावत के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री की स्वच्छ भारत योजना को सहयोग करते हुए स्वच्छ भारत अभियान के ऊपर एक शार्ट फिल्म बनायीं जिसमे कंगना राणावत , ईशा कोप्पिकर, ओमकार कपूर, ने अभिनय किया था और इसमें अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज दी थी।  इस बार फिर एक बहुत ही बड़े कॉज को लेकर इन्होंने विडियो बनाया है जो की सभी महिलाओ को ये दर्शाता हैं की किसी भी बीमारी को छुपाने की जरुरत नहीं और खुद को २ मिनट का टाइम दे और स्तन कैंसर का चेकअप कराये।  

उत्तर प्रदेश : कालिंदी में कूदे यशोदानंद, तोडा कालियानाग का दर्प...

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  • लाखों आस्थावानों ने की विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला का साक्षात दर्शन 

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वाराणसी (सुरेश गांधी )। घाटों की नगरी काशी में गुरुवार को सुरसरि गंगा किनारे आस्था और विश्वास के अटूट संगम का नजारा देखने को मिला। तुलसीघाट पर गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गयी और गंगा तट वृन्दावन के घाट में बदल गए। 452 साल से लगातार हो रही इस अद्भुत ‘नाग नथैया लीला‘ में जब खेलते-खेलते भगवान श्री कृष्ण ने अचानक गंगा में छलांग लगाई घाट पर उमड़ें लाखों आस्थावानों की निगाहें तब तक एकटक निहारती रही जब तक कि कालिया नाग का मर्दन कर वो बाहर नहीं निकले। कालिय नाग के अहम् को दमन कर, फन पर वेणुवादन करते हुए जब कान्हा का अवतरण हुआ तो पूरा माहौल जय श्रीकृष्ण, बांके बिहारी लाल की जय, हर हर महादेव के जयघोष से वृंदावनमय हो गया। 

कृष्ण लीला का शुभारंभ गोधूली बेला से पूर्व शुरु हुआ। इसके पूर्व तक घाटों पर लाखों की भीड़ जमा हो गयी थी। लीला के आरंभ में मित्र सुदामा की गेंद खेलते-खलते अचानक गंगा में जा गिरी। सुदामा की गेंद लाने के बहाने नदी में जैसे ही श्रीकृष्ण कूदने की कोशिश करते है उन्हें यह कहकर रोकेने का प्रयास किया जाता है कि कालिया नाग के प्रयोग से यमुना का पानी जहरीला है। बावजूद इसके कालिय नाग पर काबू पाने के के लिए लीला को आगे बढ़ाते हुए श्रीकृष्ण कदंब की डाल पर चढ़ते हैं। भक्तों के हृदय की धड़कनें एकाएक थम गयी। पेड़ चढ़ कान्हा ने चहुंओर दर्शन देकर मुरली बजायी और नदी में छलांग लगा दी। कुछ देर बाद श्रीकृष्ण कालिय नागा के घमंड को नथ कर उसके फन पर सवार हो मुरली बजाते हुए बाहर आएं। इस अद्भूत क्षण को आंखों में सहेजने को आतुर दर्शनार्थी भाव विह्वल हो गए। एक तरफ गंगा में नाव, बजड़ों पर सवार श्रद्धालुओं समेत घाट पर बैठे लोग घंट-घड़ियाल, शंख ध्वनि के बीच प्रभु छवि की आरती उतारते रहे तो दुसरी तरफ भक्त जयकारे लगाते रहे। 

इस लीला को देखने के लिए देश कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी पहुंचे थे। इस पल को देख कुछ ऐसा लगता है कि मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। इस लीला की शोभा को शोभायमान करने के लिए परंपरागत रूप से चले आ रहे संस्कृति का निर्वहन करते हुए काशी नरेश के वंशज कुंवर अन्नत नारायण सिंह भी पहुंचे थे। इस दौरान होने वाले भारी जनसैलाब को नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से पुख्ता इंताजामात भी किए गए थे, जिसमें भारी संख्या में पुलिस बल व पीएससी की तैनाती की गई थी। गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा के अध्यक्ष और संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि दुनिया में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण की जल लीला देखने को नहीं मिलती है, लेकिन सिर्फ बनारस में इसका मंचन होता है। 

कितना हकीकत कितना अफसाना दीदी के शिकवें- शिकायत

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पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री ममता बनर्जी को हमेशा से ही शिकायत रही है कि वर्तमान मोदी सरकार भी उनके राज्य के साथ सौतेला रवैया अपना रही- है। राज्य की मुखिया होने के नाते ममता बनर्जी की अपने राज्य के विकास के प्रति उत्सुक और अधीर होना स्वाभाविक है। लेकिन अगर आकड़ों पर गौर करे तो उनका केन्द्रीय सरकार के खिलाफ शिकवा-शिकायत करना कुछ हजम नहीं होता है। वैसे अगर बात सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से लांछन लगा कर सियासत की बिसात पर मोहरे चलने की है तो इस तरह की राजनीति का असर उल्टा भी होता रहा है। कारण इंटरनेट के दौर में पर्दानशीं भी बेपर्दा हो सकते हैं। 

आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय सह कई श्रोतों से प्राप्त आंकड़ों की माने तो आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने पांच राज्‍यों जिसने बंगाल भी शामिल है को  प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत शहरी गरीबों के लिए 84,460 और मकानों के निर्माण को मंजूरी दी है। इनमें कुल मिलाकर 3,073 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। कुल योजना के लिए 1,256 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता को मंजूरी दी गई है। बता दें कि प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के ‘लाभार्थी की अगुवाई में निर्माण’ घटक के तहत इन मकानों का निर्माण किया जाना है। जिसके तहत पश्चिम बंगाल के लिए 1,918 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 47,379 मकानों के निर्माण को मंजूरी दी गई है। यानी बंगाल को  योजना के तहत 711 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता को स्‍वीकृति दी गई है।

 आइये जानते है कि देश के उक्त पांच राज्यो के तहत किसकों क्या मिलेगा।   पंजाब के लिए 424 करोड़ रुपये के निवेश एवं 217 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता के साथ 15,209 मकानों के निर्माण को स्‍वीकृति दी गई है। इसी तरह झारखंड के लिए 464 करोड़ रुपये की कुल लागत एवं 192 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता के साथ 12,814 मकानों के निर्माण को मंजूरी दी गई है। केरल के लिए 179 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 5968 मकानों के निर्माण को स्‍वीकृति दी गई है, जिनके लिए 89 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता को मंजूरी दी गई है। मणिपुर के लिए पहली बार 3,090 मकानों के निर्माण को स्‍वीकृति दी गई है, जिनमें कुल मिलाकर 88 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा और जिनके लिए 46 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता को मंजूरी दी गई है।

ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के ‘लाभार्थी की अगुवाई में निर्माण’ घटक के तहत आर्थिक दृष्टि से पिछड़े तबकों से वास्‍ता रखने वाले हर पात्र लाभार्थी को संबंधित दिशा-निर्देशों के अनुरूप मौजूदा मकानों के विस्‍तारीकरण,उन्‍नयन के लिए 1.50 लाख रुपये की केंद्रीय सहायता दी जाती है। साफ कर देंना होगा कि इन नवीनतम मंजूरियों के साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत पिछले एक वर्ष के दौरान 62,740 करोड़ रुपये के निवेश के साथ कुल मिलाकर 10,95,804 किफायती मकानों के निर्माण को मंजूरी दी गई है, जिनके लिए 16289 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता को स्‍वीकृति दी गई है।

अब एकबार फिर से बंगाल की बात करते हैं लेकिन तथ्यों और आकड़ों के साथ। बिते दिनों केंद्र द्वारा पश्चिम बंगाल में सागर बंदरगाह परियोजना विकास के लिए 515 करोड़ रुपये का अनुदान मंजूर किया गया है। केंद्र ने पश्चिम बंगाल में प्रस्‍तावित सागर बंदरगाह परियोजना के विकास के लिए सिद्धांत रूप से 515 करोड़ रुपये के अनुदान देने की मंजूरी दी है। यह शिपिंग मंत्रालय के पिछले दो वर्षों से जारी प्रयास के हिस्‍से के रूप में है। एक स्‍पेशल परपस व्‍हेकिल, भोर सागर पोर्ट लिमिटेड (बीएसपीएल) को परियोजना लागू करने की जिम्‍मेदारी दी गई है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्‍ट के पास 74 प्रतिशत शेयर हैं और पश्चिम बंगाल सरकार की हिस्‍सेदारी 26 प्रतिशत की है। तटीय सुरक्षा, जमीन का फिर से दावा करने तथा तलकर्षण सामग्री के उपयोग के लिए मॉ‍डलिंग को शामिल करते हुए विस्‍तृत योजना रिपोर्ट तैयार करने के काम में आईआईटी मद्रास को लगाया गया है। विस्‍तृत योजना रिपोर्ट तैयार करने का काम जारी है। बंदरगाह संपर्क को विकसित करने का भी काम हो रहा है। सागरद्वीप को मुख्‍य भूमि से जोड़ने के लिए मुड़ीगंगा नदी के ऊपर एक सड़क सह रेल पुल बनाने का प्रस्‍ताव है। इसके लिए राष्‍ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड(एनएचआईडीसीएल) ने विस्‍तृत योजना रिपोर्ट तैयार की है। पुल बनाने में 1822 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इस सड़क और रेल पुल के राष्‍ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क और रेलवे नेटवर्क से जोडने का कार्य भी किया जा रहा है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सिद्धांत रूप में एनएच-117 को काकद्वीप से जोका और सागरद्वीप के सड़क और रेल पुल से जोड़ने के लिए 4 लेन की सड़क बनाने पर सहमति दी है। रेल बोर्ड ने बंदरगाह को रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए सर्वेक्षण की मंजूरी दी है। 

बंगाल के लोगों को पता है कि 34 वर्ष के शासन व्यवस्था के दौरान वाममोर्चा की सरकार ने राज्य पर भारी भरकम कर्ज लाद दिया है। तमाम योजनाएं  वाममोर्चा की सरकार के समय दम तोड़ चुकी है। वाममोर्चा के नेता व मंत्रियों का भी यहीं आरोप जनता की अदालत में लगता रहा कि दिल्ली सरकार के रवैये से राज्य के विकास पर ब्रेक लगा है। कहीं ममता बनर्जी की सरकार भी आरोप जड़ने के मामले में वाममोर्चा के पथ की राही तो नहीं बन रही है। 




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जगदीश यादव
लेखक पत्रकार व भारतीय जनता ओबीस मोर्चा पं. बंगाल के मीडिया प्रभारी हैं।

श्रीमती रंजना देवी को सौतेली माॅ के कंलक मिटाने दिया राष्ट्रीय पर मिला सम्मान

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नई दिल्ली..- गंतब्य संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ0 अरविन्द्र त्यागी  ने एक प्रेस विप्ज्ञिति के माध्यम से जानकारी देते हुये बताया कि दिनांक 22 अक्टूवर 2016 को काॅन्स्टिटूष्यषन क्लब आफ रफी मार्ग नई दिल्ली के डिप्टी स्पीकर हामें दोपहर 3 बजे से ष्षाॅय 6 बजेे तक गंतब्य संस्थान व्दारा 26 वें बार्षिक उत्सव एवं 17 वें राष्ट्रीय स्त्री ष्षक्ति अवाईस समारोह का आयोजन किया गया है जिसमें मुख्य अतिथि एवं अध्यक्षता श्री सुनील ष्षास्त्री जी पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री उ0प्र0, बिषिष्ट अतिथि अमित कुमार जी एम, बिषिष्ट अतिथि संजय नागपाल अध्यक्ष ए आई आर ई, बिषिष्ट अतिथि सुश्री माया सिंह मेसर्स युनिवर्सल सीए,  बिषिष्ट अतिथि संत मुनि जयंत कुमार जैन श्रवेताम्बर तेरापंथ बिषिष्ट अतिथि पं0 श्री चन्द्रबल्लभ बुड़ा कोटो धर्मगुरू उपस्थित रहें ।  गंतब्य संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ0 अरविन्द्र त्यागी ने बताया कि  राष्ट्रीय स्तर पर स्त्रीषक्ति अवाईस के लिए मध्य प्रदेष के छतरपुर जिला के कस्बा नौगाॅव से श्रीमती रंजना देवी गंगेले पत्नि श्री संतोष कुमार गंगेले (राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार मध्य प्रदेष )को संस्था की ओर से सम्मानित करने का निर्णय लिया है । यह सम्मान 22 अक्टूवर 16 को दिल्ली रफी मार्ग  डिप्टी स्पीकार हाॅल में हजारों नागरिकों के बीच दिया गया हैै । 

छतरपुर  जिला के लिए गौरवमयी  श्रीमती रंजना गंगेले ने भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों के साथ भारतीय महिलाओं की मान मर्यादाओं को ध्यान रखकर ऐसे कार्य किया है जो लाखों महिलाओं में कोई एक कर सकती है । मध्य प्रदेष के बरिष्ठ पत्रकार समासेवी श्री संतोष गंगेले की ब्याहता धर्मपत्नि श्रीमती प्रभादेवी ंगंगेले की चार संतानें छोटी छोटी थी इस दौरान मस्तिष्क ज्वर में उनका निधन हो गया, चार बच्चों के पालन पोषण का जुम्मेदारी का निवार्हन किसी पुरूष के लिए कठिन था, छतरपुर जिला के ग्रामीण क्षेत्र झीझन थाना नौगाॅव में आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में दूसरा विवाह  कु0 रंजना देवी से किया । ईष्वरी कृपा से श्रीमती रंजना देवी ने अपने विवाह के बाद से चारों बच्चों का पालन पोषण लगातार 6 बर्षेा तक किया प्रतिदिन स्कूल भेजना, उनकी अत्याधिक केयर कर उन्हे मृतक माॅ का प्यार दिया ।  7 वी साल उनके एक संतान होने पर उन्होने अपना आपरेषन कराकर पाॅचों का पालन पोषण किया । स्व्यं अषिक्षि होते हुए भी बच्चों को तालीम उत्तम षिक्षा उच्च स्कूलों में दिलाई ।   बड़ी बेटी की ष्षादी करने के बाद जो एक संतान आल्या नानित हुई उसका स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण बेटी के साथ झाॅसी व ग्वालियर उपचार कराया , बेटी के पेट में खराबी आ जाने के कारण बच्ची को दूध न मिलने पर नानी श्रीमती रंजना देवी ने उसे भी माॅ का प्यार दिया लगातार 7 सालो से नानित की सेवा षिक्षा दी जा रही है । बेटे का विवाह एक गरीब परिवार में बिना दहेज कर समाज में उदाहरण पैष किया । श्रीमती रंजना देवी गंगेले को छतरपुर जिला की अनेक समाजिक संस्थाओं ने समाज गौरव सम्मान से सम्मानित किया अब अवसर है कि    गंतब्य संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ0 अरविन्द्र त्यागी  ने राष्ट्रीय स्तर पर स्त्रीषक्ति अवाईस के लिए मध्य प्रदेष के छतरपुर जिला के कस्बा नौगाॅव से श्रीमती रंजना देवी गंगेले पत्नि श्री संतोष कुमार गंगेले को संस्था की ओर से सम्मानित करने का निर्णय लिया है । यह सम्मान 22 अक्टूवर 16 को दिल्ली में दिया जा रहा है ।   श्रीमती रंजना गंगेले छतरपुर जिला की ही नही मध्य प्रदेष की इकलौती महिला होगी जिन्होने सैातेली माॅ के कंलक को मिटाकर महिलाओं का सिर ऊॅचा किया है । यहीं भारतीय संस्कृति हे जहां ऐसे महिलाओं का मान सम्मान होता है वहां देवताओं का निवास होता है । भारतीय नारी का सम्मान करने पर टीकमगढ़ सांसद डा0 बीरेन्द खटीक, महाराजपुर विधायक कुॅवर मानवेन्द्र सिंह भंवरराजा, बिजावर विधायक श्री पुष्पेन्द्र नाथ पाठक, महिला मोर्चा बरिष्ठ नेता श्रीमती मयंका गोतम, बरिष्ठ नेता श्रीमती गीता पटैरिया,, नौगाॅव जनपद अध्यक्ष श्रीमती सुधा सिंह यादव, नौगाॅव  नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अभिलाषा/धीरेन्द्र षिवहरे, उपाध्यक्ष श्रीमती आषा तिवारी, बुन्देलखण्ड के समाजसेवी श्री डी डी तिवारी, सहित अनेक नेताओं, पत्रकारों एवं सामाजिक नागरिकों, महिला संगठनों ने श्रीमती रंजना देवी गंगेले को बधाई दी है । 

बच्चों का फ्री टू एयर चैनल ‘महाकार्टून’लाॅच

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बच्चों की कार्टुन शो में बढती लोकप्रियता को देखते हुए डी वी ग्रुप ऑफ कंपनीज ने फ्री टू एयर हिंदी महाकार्टून टीवी चैनल लाॅंच किया। जबकि कंपनी का एक अन्य हिंदी मूवी चैनल ”महा मूवी” दर्शकों के बीच है। चैनल से प्रसारित मुख्य शो है,मूषक गुनगुन यह भारतीय संयोजन के हिसाब से एक ऐसी प्रसिद्ध  बिल्ली और चूहे का पीछा करने वाला शो है। बाल चाणक्य एक भारतीय बच्चा जो तेज दिमाग और कुशलता के साथ धैर्य से बाधाओ को दूर करता है। पंचतंत्र की कहानियाँ इस श्रेणी में पंचतंत्र की छोटी छोटी कहानियो का संकलन है। जिसका मूल उदेश्य हमारी विशाल संस्कृति,परंपरा,हमारे वन्य जीवन और पारितंत्र को दर्शाना है। सीको  यह चरित्र और इसकी श्रेणी हमारी जिंदगी से जुड़े हुए विभिन पहलुओं के बारे में बताती है। जिसके बारें में हम अंजान है।देश विदेश में लोकप्रिय शो चार्ली चैपलिन भी हिंदी भाषा में डब किया गया है।  कंपनी के संस्थापक दर्शन सिंह ने बताया कि जब हम पहली बार महा मूवीज को मार्किट में लाए तो उसको संचालित करने के कुछ महीने बाद ही हमें बहुत सारी अच्छी प्रतिक्रियाए और ढेर सारे सवाल मिले। जिसमे हमें बच्चो के लिए कोई चैनल लाने के बारे में पूछा गया, जो कि “फ्री टू एयर” प्लेटफार्म पर काम करेगा और अब बच्चो के लिए “फ्री टू एयर” चैनल ला पाए है। जो की विभिन रचनात्मक और निर्धारित योजनाओ का फल है।  डी वी ग्रुप ऑफ कंपनीज के मैनेजिंग डायरेक्टर विश्वजीत शर्मा, ने कहा कि वर्तमान में बच्चों का 20 से अधिक चैनल है,लेकिन महाकार्टून पर उनमे से कोई भी “ फ्री टू एअर “ चैनल्स नहीं है।  65 प्रतिशत दर्शक जो की बच्चे है , वह भारत के ग्रामीण या छोटे शहरों में रहते हंै। बच्चांे के लिए प्रसारित होने वाले चैनल्स को वो नहीं देख पाते,क्योंकि 23 मिनट के एक एपिसोड को तैयार करने में लगने वाली सामग्री का अधिग्रहण खर्च और सामग्री को तैयार करने में लगने वाला समय दोनों ही बहुत अधिक होते हंै। कम्पनी के सी ई ओ संजय वर्मा ने बताया कि इस साल दीपावली जल्दी आ चुकी है और बच्चों के लिए “ फ्री टू एअर “ चैनल्स कंपनी कि तरफ से तोहफा है  जिसमें अद्वीतीय वर्णो वाले काल्पनिक कार्टून कैरेक्टर हमने इन हाउस प्रोडक्शन में बनाए है, जो की हिंदुस्तान के पहले ऐसे करैक्टर होंगे। जो भारतीय दर्शको को मनोरंजन के साथ-साथ  कई शिक्षाप्रद पहलुओ से भी रूबरू कराएगी। 

एंजेल्स एण्ड फेयरीज -किड्स फैशन शो आयोजित

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नई दिल्ली । सी बी ई ने मिस्टर एण्ड मिस दिल्ली के 5वें सीजन तथा एंजेल्स एण्ड फेयरीज -किड्स फैशन शो -2016 का आयोजन पश्चिम दिल्ली के वजीरपुर, दिल्ली हुआ।  संगीत और ग्लैमर से भरपूर इस रंगारंग शाम का हिस्सा बने देश के अनेक भागों से आये प्रतिभागी मॉडल्स। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि चै.प्रेम सिंह, के अतिरिक्त प्रसिद्ध शिक्षविद  दयानन्द वत्स, डायरेक्टर करन सिंह, एस के शर्मा, हरप्रीत कौर, संजत गुप्ता, ने समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में विजेताओं को सम्मानित किया।   विख्यात संगीतकार सुरेंद्र कांत शर्मा ,वरिष्ठ फैशन डिजायनर हेमन्त कौशिक ,इमेज स्टार पत्रिका के मुख्य सम्पादक एस पी चोपड़ा, लाल किताबवाणी के संस्थापक पंडित धर्मेंद्र और सुषमा गर्ग कार्यक्रम के निर्णायक मंडल के सदस्य थे । 

. शो में फरहान खान और निशा ने मिस्टर एण्ड मिस दिल्ली का खिताब जीता जबकि आयुष बहल और सायर बानो तथा रोहित पाराशर और परी अरोड़ा फर्स्ट एवं सेकिंड रनरअप के रूप में चुने गये । प्रतियोगिता के अन्य उपाधियों के लिये आयुष बहल - परी अरोड़ा ( मि.एवं मिस टेलेंटिड ), अभय जैन एवं आशी( बेस्ट वॉक ),रोहित कपूर अनूप एवं पूनम ( बेस्ट फोटोजेनिक ),फरहान एवं आरती (बेस्ट मॉडल) तथा हैप्पी एवं नीलाक्षी ( मि.एण्ड मिस कॉन्जिनिएलीटी )के रूप में चयनित हुए । उभरते हुए मॉडल्स की श्रेणी में मानसी खनेजा और सिमरन को उपाधित किया गया बच्चों की श्रेणी में तनिषा सेठी त्रिष्टा एवं चिराग वर्मा ने क्रमशः प्रथम,द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किये ।वन्या कंचन सिंह शो में शो स्टॉपर निर्धारित की गई । हिन्दी फिल्मी गीतों की धूम मचाने वाले प्रसिद्ध गायक अरुण धमीजा ने अपनी दिलकश आवाज से उपस्थित अतिथियों एवं श्रोताओं को झूमने और थिरकने पर मजबूर कर दिया और सभी का भरपूर मनोरंजन किया । सुमन अर्पण और हेमन्त कौशिक शो के ड्रेस डिजायनर रहे तथा सुश्री राधा और सोनम ने प्रतिभागी मॉडल्स की रूप सज्जा की वहीं श्री समिश शर्मा और सुनील ने शानदार कार्यक्रम की कोरियोग्राफी की ।सुश्री मीनू शर्मा ने इस रंगारंग शाम का संचालन किया। यह दिलकश शो सी बी ई के संस्थापक, फिल्म निर्देशक करण सिंह के निर्देशन में सम्पन्न हुआ ।

पापा को किडनी का रोग, बेटे को कैंसर, बिहार के इस आईएएस ने खुद बना डाली दवा

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बिहार कैडर के एक आईएएस अधिकारी एसएम राजू के पिता किडनी और पुत्र कैंसर रोग से ग्रस्त थे,उनकी असहाय पीडा के देखते हुए इलाज के लिए खुद ही आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण किया जो कि कारगर साबित हुई। आज उनकी बनाई 14 दवाओं में कैंसर, डायबिटिज, एंटी एंजिग, किडनी, लिवर की बीमारी की दवा कम कीमत में बाजार में उपलब्ध है। जिनको सरकारी लाइसेंस मिल चुका है। एसएम राजू की दवाओं का ही प्रभाव है कि कई बड़ी हस्तियां भी करके अपनी बीमारियों से मुक्ति पा चुके हैं। राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एसएन झा, अभिनेता आदित्य पंचोली से लेकर कई मंत्री और बड़े अधिकारी उनकी दवाओं के इस्तेमाल से ठीक हो चुके हैं। दरअसल राजू के पिता को किडनी की बीमारी थी और बाद में बेटे को कैंसर हो गया था। दोनों के इलाज में अंग्रेजी दवाइयां काम नहीं कर पा रही थीं और उनके साइड इफेक्ट्स अलग थे। 

इसके बाद एग्रीकल्चर ग्रैजुएट राजू ने ठान लिया कि वह खुद अपने पिता और बेटे की बीमारी के लिए आयुर्वेदिक दवा बनाकर उनका इलाज करेंगे। दृढ ़निश्चय और मेहनत से राजू ने ऐसी दवा बना डाली और देखते ही देखते उन दवाओं से उनके पिता ठीक हो गए और बेटे की हालत में सुधार दिखने लगा। बिहार सरकार के रेवेन्यू विभाग में अपर सचिव राजू शुरू से ही विज्ञान और आयुर्वेद में रुचि रखते थे। राजू अपने काम के बाद आयुर्वेदिक दवाओं पर रिसर्च करने लगे जिसका नतीजा यह हुआ कि भारत सरकार ने राजू की बनाई कुल 14 दवाओं को लाइसेंस दे दिया है. इनमें कैंसर, डायबिटिज, लिवर, एंटी एजिंग, बोन औंर किडनी की बीमारियों की दवाएं शामिल हैं। राजू का कहना है कि ‘आयुर्वेदिक दवाओं को बेंगलुरु की एक कंपनी बना रही है। दवा से होने वाली आय का 50 फीसदी हिस्सा गरीब बच्चों की शिक्षा पर खर्च होगा। ये दवाएं पूरी तरह से आयुर्वेदिक हैं जिनका कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है। ये दवाएं ‘मिरेकल ड्रिंक्स’ के नाम से उपलब्ध हैं।’ 

ब्रिटेन की यूरोपीय संघ से बाहर होने की फिलहाल संभावना नहीं

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लंदन, 15 नवम्बर, ब्रिटेन में प्रधानमंत्री थेरेसा मे के खेमे में सहमति नहीं होने के कारण ब्रिटेन के अगले छह महीने तक यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की संभावना नहीं है। ब्रिटिश सरकार का एक दस्तावेज लीक हुआ जो बीबीसी तथा द टाइम्स को मिला है। इस दस्तावेज से इस बात की पुष्टि होती है कि ब्रिटिश सरकार में आपसी सहमति नहीं बन पायी है इसलिए यूरोपीय संघ से बाहर होने की योजना को छह महीने के लिए टाल दिया गया है। इस दस्तावेज को एक सलाहकार की मदद से तैयार कराया गया था। इसमें कहा गया है कि सरकारी विभाग पांच सौ से अधिक ब्रेक्जिट से संबंधित योजनाओं पर काम कर रही है तथा इसके लिए 30 हजार अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारियों की जरूरत पड़ेगी। बीबीसी तथा द टाइम्स ने आज कहा कि ‘ब्रेक्जिट अपडेट’ के नाम से प्राप्त दस्तावेज में सुश्री थेरेसा के काम करने तरीके तथा निर्णय की आलोचना की गयी है। उन्होंने कहा कि यह कोई सरकारी रिपोर्ट नहीं इसलिए इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है।

पेट्रोल 1.46 रुपये तथा डीजल 1.53 रुपये प्रति लीटर सस्ता

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नयी दिल्ली, 15 नवंबर, पेट्रोल की कीमतें छह बार तथा डीजल की लगातार तीन बार बढ़ाये जाने के बाद आज आधाी रात से उनमें क्रमश: 1.46 रुपये तथा 1.53 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गयी है। इसमें राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले कर वैट में हुई कमी शामिल नहीं है। वैट समेत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 1.69 रुपये तथा डीजल 1.70 रुपये सस्ता हो गया है। इस प्रकार आज मध्यरात्रि से यहाँ पेट्रोल 67.62 रुपये की जगह 65.93 रुपये प्रति लीटर मिलेगा। डीजल के दाम 1.70 रुपये कम होकर 56.41 रुपये प्रति लीटर की जगह अब 54.71 रुपये हो गये हैं। देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने आज बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल तथा डीजल के दाम और डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के मद्देनजर दोनों ईंधनों की कीमतों में बदलाव किया गया है।

रुपये में भारी गिरावट

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मुंबई 15 नवंबर, पाँच सौ रुपये और एक हजार रुपये के पुराने नोटों पर प्रतिबंध के बाद आज रुपये में लगातार तीसरे कारोबारी दिवस गिरावट देखी गयी और यह 67.50 रुपये प्रति डॉलर से भी नीचे उतर गया। भारतीय मुद्रा का यह लगभग पाँच महीने का निचला स्तर है। गुरुवार को 19 पैसे तथा शुक्रवार को 63 पैसे लुढ़कने के बाद आज अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार खुलते ही रुपया 28 पैसे टूटकर 67.53 रुपये प्रति डॉलर पर खुला। डॉलर लिवाली के दबाव में एक समय यह 67.82 रुपये प्रति डॉलर तक उतर गया था और खबर लिखे जाने तक 67.76 रुपये प्रति डॉलर पर था। इस प्रकार आज यह 51 पैसे गिर चुका है। जून के बाद यह पहली बार है जब रुपया इतना कमजारे पड़ा है। कारोबारियों ने बताया कि नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था से तरलता गायब होने का असर शेयर बाजार और रुपया दोनों पर देखा जा रहा है। दोनों में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गयी है। सेंसेक्स जहाँ पिछले साल जून के बाद के निचले स्तर पर है वहीं रुपया इस साल जून के बाद के निचले स्तर तक उतर चुका है।

नोट पर शेयर बाजार धड़ाम, छह महीने के निचले स्तर पर

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मुंबई 15 नवंबर, पाँच सौ और एक हजार रुपये के नोटों पर प्रतिबंध से बीएसई के सेंसेक्स आज लगातार दूसरे दिन भारी गिरावट के साथ लगभग छह महीने के निचले स्तर 26,304.63 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया। पिछले कारोबारी दिवस पर 11 नवंबर को 698.86 अंक लुढ़कने के बाद मंगलवार को इसमें 1.92 प्रतिशत यानी 514.19 अंक की गिरावट देखी गयी। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 2.26 प्रतिशत यानी 187.85 अंक फिसलकर 8,108.45 अंक पर बंद हुआ। यह दोनों का मई 2016 के बाद का निचला स्तर है। बाजार पर आज शुरू से ही दबाव रहा। सरकार के पाँच सौ और एक हजार के पुराने नोटों को अचानक बंद करने के फैसले से अर्थव्यवस्था में तरलता की भारी कमी हो गयी है। इससे सेंसेक्स 9.21 अंक की गिरावट के साथ 26,809.61 अंक पर खुला और यही इसका दिवस का उच्चतम स्तर भी रहा। इसके बाद लगातार इसमें गिरावट देखी गयी। अमेरिका में बांडों पर ब्याज दर बढ़ने से भी घरेलू शेयर बाजार में बिकवाली का जाेर रहा। निफ्टी 11.45 अंक नीचे 8,284.85 अंक पर खुला। बीएसई में आईटी समूह को छोड़कर अन्य सभी 19 समूहों में गिरावट देखी गयी। बेसिक मैटिरियल्स (5.71 प्रतिशत), रियलिटी (5.13 प्रतिशत) तथा ऑटो (5.07 प्रतिशत) में सबसे ज्यादा गिरावट रही। धातु समूह भी 4.75 प्रतिशत तथा इंडस्ट्रियल्स 4.54 प्रतिशत टूट गया। सितंबर में समाप्त तिमाही में नुकसान बढ़ने से सेंसेक्स की कंपनियों में टाटा मोटर्स में सबसे ज्यादा 9.88 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी। इसके सोमवार को जारी परिणाम के अनुसार, एकल आधार पर कंपनी को 630.76 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में उसने 288.79 करोड़ का नुकसान उठाया था। छोटी तथा मझौली कंपनियों पर दबाव ज्यादा रहा। बीएसई का मिडकैप 3.91 प्रतिशत तथा स्मॉलकैप 4.67 प्रतिशत का गोता लगाकर क्रमश: 11,977.02 अंक पर तथा 11,902.02 अंक पर बंद हुआ।

पाकिस्तान के साथ सारे मुद्दे सुलझा लिये: बत्रा

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नयी दिल्ली, 15 नवंबर, अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ(एफआईएच) के नये अध्यक्ष बने भारत के डा. नरेंद्र ध्रुव बत्रा ने मंगलवार को यहां कहा कि उन्होंने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ हॉकी को लेकर सभी मुद्दे सुलझा लिये हैं और पाकिस्तान की टीम लखनऊ में होने वाले जूनियर विश्वकप में हिस्सा लेने भारत आ रही है। बत्रा ने एफआईएच का अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में कहा“ हॉकी इंडिया ने दुबई में एफआईएच की कांग्रेस से इतर पाकिस्तानी हॉकी महासंघ से सभी मुद्दों पर साहसिक बातचीत की और चैंपियंस ट्राफी सहित तमाम मुद्दों को सुलझा लिया।” उन्होंने बताया कि पाकिस्तान ने लखनऊ में होने वाले जूनियर विश्वकप हॉकी टूर्नामेंट में भाग लेने की पुष्टि कर दी है। पाकिस्तानी टीम की सुरक्षा के मुद्दे पर बत्रा ने कहा“ यह हॉकी इंडिया की जिम्मेदारी है कि वह पाकिस्तानी टीम को पूरी सुरक्षा प्रदान करे। यह एफआईएच टूर्नामेंट है और हॉकी इंडिया किसी टीम को किसी बात से इंकार नहीं कर सकती है।” एफआईएच अध्यक्ष ने कहा“जहां तक राजनीतिक हालात की बात है उसमें कोई भी फैसला या तो पाकिस्तानी सरकार को या फिर भारत सरकार को लेना है। सरकार कोई भी फैसला लेती है तो हम उसका हिस्सा रहेंगे। यदि पाकिस्तानी टीम टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से इंकार भी करती है तो भी हमारे पास विकल्प रहेंगे। लेकिन पाकिस्तान को समय रहते इसकी जानकारी देनी होगी।”

बार-बार नोट बदलने वालों पर सरकार का शिकंजा, नाखून पर लगेगी स्याही : दास

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नयी दिल्ली 15 नवम्ब, पांच सौ और एक हजार रुपये के बंद नोटों को बदलवाने के लिए बैंकों में लगी लंबी-लंबी कतारों से निपटने के लिए सरकार ने अब नोट बदलने के लिए आने वाले व्यक्ति के नाखून पर मतदान के समय स्याही लगाने की प्रक्रिया का इस्तेमाल करने की घोषणा की है। वित्त सचिव शक्तिकांत दास ने आज सरकार की तरफ से बैंकों पर भीड़भाड़ को कम करने के उद्देश्य से उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी देते हुए कहा कि अब बार-बार एक ही आदमी नोट नहीं जमा करा सकेगा। अब नोट बदलने के लिए आने वाले के व्यक्ति के नाखून पर जैसे मतदान के समय स्याही लगाई जाती है, उसी तरह स्याही लगाई जायेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ नवम्बर की रात्रि से 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा की थी और इन्हें बदलवाने के लिए 30 दिसंबर तक का समय दिया था। इसके बाद रिजर्व बैंक में पहचान दिखाकर नोट बदलने की सुविधा होगी। श्री दास ने कहा कि जनधन खातों में पैसा डालने वालों पर कड़ी नजर रखी जायेगी। जनधन खाते में 50 हजार रुपये से ज्यादा जमा नहीं किया जा सकेगा। पांच सौ और दो हजार रुपये के नये नाटों को लेकर सोशल मीडिया पर आ रही तरह-तरह की खबरों पर वित्त सचिव ने कहा कि इन नोटों का रंग मामूली रूप से जरूर उड़ेगा, अगर रंग नहीं उड़ा तो वह नकली नोट हो सकता है। पहली बार मामूली रंग उतरेगा , उसके बाद नहीं उतरेगा। यह खास रंग की कोटिंग की वजह से होगा। वित्त सचिव ने कहा कि लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया पर अफवाहों पर ध्यान न दें। बैंकों में माइक्रो एटीएम लगाए जा रहे हैं। धार्मिक स्थलों एवं न्यासों के प्रबंधकों से भी कहा गया है कि चढ़ावे में आने वाले खुले धन को तुरन्त बैंकों में जमा कराया जाये। उन्होंने कहा कि जरूरी चीजों की आपूर्ति पर सरकार नजर रखे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नमक के महंगा होने और कमी की अफवाह के कारण देश के कई राज्यों में लोगों ने हड़बडाहट में काफी ऊंचे दामों पर इसकी खरीद की थी।

नोटबंदी : केंद्र के फैसले पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार

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नयी दिल्ली, 15 नवम्बर, उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी मामले में केंद्र सरकार को बड़ी राहत देते हुए फैसले पर रोक लगाने से आज इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोटबंदी के फैसले के खिलाफ चार जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान केंद्र के फैसले पर यह कहते हुए रोक लगाने से इन्कार कर दिया कि वह आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी। हालांकि न्यायालय ने एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के माध्यम से केंद्र सरकार को सुनवाई की अगली तारीख 25 नवम्बर तक यह बताने का निर्देश दिया कि वह (सरकार) लोगों की असुविधाओं से निपटने के लिए क्या कर रही है?

नोटबंदी के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट, संसद में उठेगा सवाल

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नयी दिल्ली, 15 नवम्बर, देश में नोटबंदी के कारण आम जनता को हो रही भीषण परेशानी और आर्थिक गतिविधियों में कमी को देखते हुए सभी विपक्षी दल अब मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए हैं जिससे कल से शुरू हो रहे संसद के शीत कालीन सत्र के और हंगामेदार होने की संभावना है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों की इस मुहिम में अब समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और द्रमुक भी शामिल हो गयी लेकिन आज संसद भवन में विपक्षी दलों की बैठक में आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल और अन्नाद्रमुक जैसे दलों के प्रतिनिधि मौजूद नहीं थे। विपक्षी दल नोटबंदी के मुद्दे पर कल तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी के साथ राष्ट्रपति भवन मार्च नहीं करेंगे बल्कि वे इस सम्बन्ध में बाद में फैसला लेंगे। लेकिन सुश्री बनर्जी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ राष्ट्रपति से मिलेंगी। संसद भवन में करीब डेढ़ घंटे तक चली बैठक के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने पत्रकारों को बताया कि नोटबंदी के मुद्दे पर विपक्ष एक जुट है और हम कल संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे को जोर शोर से उठाएंगे। उन्होंने कहा “हम संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह यह मुद्दा उठायेंगे। जब हमारे सभी विकल्प समाप्त हो जायेंगे तब हम राष्ट्रपति के पास जायेंगे। अगर संसद का सत्र नहीं चल रहा होता तो हम राष्ट्रपति के पास जाते लेकिन संसद का सत्र चलने पर हम सबसे पहले इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे। इसलिए सत्र के पहले दिन हम राष्ट्रपति के पास नहीं जा रहे हैं, बाद में हम इस पर निर्णय करेंगे।”
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