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झारखंड के लातेहार में पुलिस के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली मारे गये

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लातेहार 23 नवम्बर, झारखंड में उग्रवाद प्रभावित लातेहार जिले के छिपादोहर थाना क्षेत्र में आज सुबह पुलिस और नक्सलियों के बीच हुयी मुठभेड़ में प्रतिबंधित भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के छह उग्रवादी मारे गये तथा कई अन्य के घायल होने की सूचना है । लातेहार के पुलिस अधीक्षक अनुप बिरथरे ने यहां बताया कि माओवादियों के खिलाफ चलाये जा रहे सर्च अभियान के दौरान करमडीह गांव के जंगल में कोयल नदी के किनारे उग्रवादियों ने पुलिस दल पर गोलियां चलायी । उन्होंने बताया कि पुलिस की जवाबी कार्रवाई में छह नक्सली मौके पर ही मारे गये । श्री बिरथरे ने बताया कि मुठभेड़ में कई नक्सलियों के घायल होने की संभावना है जिन्हे उनके साथ जंगल में लेकर फरार हो गये हैं । उन्होंने बताया कि मुठभेड़ के बाद घटनास्थल से एक इंसास रायफल, एक कार्रवाइन , पुलिस से लुटी गयी एक एस.एल.आर और तीन रायफल के अलावा करीब 400 कारतूस बरामद किया गया है । पुलिस अधीक्षक ने बताया कि इस अभियान में स्थानीय पुलिस के अलावा केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और कोबरा बटालियन के जवान शामिल थे । उन्होंने बताया कि नक्सलियों के खिलाफ सर्च अभियान अभी भी जारी है । मुठभेड़ में मारे गये उग्रवादियों की तत्काल पहचान नहीं हो सकी है ।

मधुबनी में तीन किसानों के घर से डकैतों ने लाखों की संपत्ति लूट ली

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मधुबनी 23 नवम्बर, बिहार में मधुबनी जिले के राजनगर थाना क्षेत्र में डकैतों ने तीन घरों से लाखों रुपये मूल्य की संपत्ति लूट ली है और विरोध करने पर वृद्ध महिला को मारपीट कर घायल कर दिया ।  पुलिस सूत्रों ने आज बताया कि कल देर रात कुछ डकैत बड़हरा गांव निवासी अवकाश प्राप्त शिक्षक स्वर्गीय प्रबोध मिश्र, लाल कुमार झा और कमलेश मिश्र के घर में बारी-बारी से प्रवेश कर लूट पाट शुरु कर दी। डकैतों ने इन घरों से नगद, जेवरात समेत कीमती सामानों को लूट लिया। सूत्रों ने बताया कि विरोध करने पर डकैतों ने स्व. मिश्र की पत्नी 70 वर्षीय यमुना देवी की पिटायी कर दी । घायल महिला का इलाज स्थानीय सरकारी अस्पताल में कराया गया है । इस सिलसिले में संबंधित थाना में अज्ञात डकैतों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है । पुलिस डकैतों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही है । 

पूर्णियां में पुत्र ने माता-पिता को जिंदा जलाया

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पूर्णियां 23 नवम्बर, बिहार में पूर्णियां जिले के बनमंखी थाना क्षेत्र में संपत्ति विवाद में एक कलयुगी पुत्र ने अपनी माता और पिता को जिंदा जला दिया जिसमें पिता की मौत हो गयी तथा मां गंभीर रुप से झुलस गयी । पुलिस सूत्रों ने आज यहां बताया कि महादेवपुर गांव निवासी सौरभ कुमार और उसकी पत्नी ने संपत्ति को लेकर हुए विवाद के बाद कल रात पिता सरांत सिंह (52) और माता कमला देवी (48) को कमरे में बंद कर दिया। इसके बाद दोनों ने उसके उपर किरासन तेल डालकर आग लगा दी। सूत्रों ने बताया कि इस घटना में पिता की मौके पर ही जलकर मौत हो गयी जबकि माता गंभीर रूप से झुलस गयी । घायल महिला को स्थानीय अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद बेहतर इलाज के लिए पूर्णियां सदर अस्पताल भेजा गया है । पुलिस ने आज आरोपी पुत्र और पुत्रवधु को गिरफ्तार कर लिया है । 

सीएनटी एसपीटी संशोधन मुद्दे पर झारखंड विधानसभा बना अखाड़ा

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रांची 23 नवंबर, झारखंड में छोटा नागुपर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) एवं संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन के मुद्दे पर विपक्ष का विरोध इतना अधिक बढ़ा कि देखते ही देखते विधानसभा अखाड़े में तब्दील हो गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों ने एक दूसरे पर कुर्सियां फेंकी, विधेयक की प्रति जलाई गई और अंत में मार्शल की जमकर पिटाई हुई। विधानसभा के जारी सत्र के दौरान आज सदन में सीएनटी और एसपीटी संशोधन विधेयक को पेश किया गया। इस पर विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया और इसके विरोध में नारे लगाने लगे। इस बीच विधायकाें ने एक दूसरे पर कुर्सियां फेकनी शुरू कर दी। इस बीच एक कुर्सी विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव पर भी फेकी गई। हालांकि उन्होंने किसी तरह खुद को बचाया। ताेरपा से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक पोलुस सुरीन ने विधानसभा के मार्शल की जमकर पिटाई कर दी जबकि विधायक शशिभूषण समद, अमित महतो और कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी सदन में तोड़फोड़ और हंगामा करने वालों में प्रमुख रहे। विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही को दोपहर 12:45 बजे तक के लिए स्थगति कर दी। हालांकि इस बीच अध्यक्ष ने सर्वदलीय बैठक बुलाई लेकिन सीएनटी और एसपीटी संशोधन मुद्दे पर जारी गतिरोध को समाप्त करने में वह विफल रहे। उन्होंने सदन की कार्यवाही को पुन: 2.00 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया। इस बीच विधायक टेबल पर खड़े होने के अलावा सदन में स्प्रे छिड़कना शुरू कर दिया। हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास और ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा इस हंगामे से अलग रहे। इसके बाद जब सदन की कार्यवाही पुन: शुरू हुई तो खेल एवं पर्यटन मंत्री अमर बाउरी ने एक बार फिर विधेयक पेश किया, जिसे सदन ने हंगामे के बीच पारित कर दिया। 

सदन में सीएनटी और एसपीटी संशोधन विधेयक के पारित होने की खबर आग की लपट की तरह फैल गई। भारी संख्या में विपक्ष के विधायकों ने राजधानी रांची के सैटेलाइट चौक पर जमा होकर विधेयक के विरोध में नारे लगाते हुये हंगामा करना शुरू कर दिया। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य सरकार पर आदिवासियों के हितों की अनदेखी करते हुये कॉर्पोरेट से हाथ मिलाने का आरोप लगाया और कहा कि पूरा विपक्ष यहां तक कि सरकार में शामिल विधायकों ने भी इस विधेयक का विरोध किया। इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार ने इसे पारित कर दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय ने कहा कि इस विधेयक में किसी भी तरह के बदलाव को मंजूर नहीं किया जाएगा। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता गौतम सागर राणा ने भी इस संशोधन विधेयक का विरोध किया। 
विपक्ष के हंगामे को देखते हुये सैटेलाइट चौक के पास भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया । पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले भी छोड़े। पुलिस अधिकारी ने कहा कि प्रदर्शनकारियों की ओर से पथराव शुरू करने के बाद उनके खिलाफ बल प्रयोग करना पड़ा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कल धनबाद में कहा था कि सरकार सीएनटी और एसपीटी अधिनियम में संशोधन करने की पूरी तैयारी कर चुकी है। लेकिन, इस मुद्दे पर विपक्ष लोगों को गुमराह कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम में संशोधन के जरिये किसी भी शर्त पर औद्योगिक एवं कॉर्पोरेट घरानों को फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 

आलाकमान कहे तो महागठबंधन से अलग हो सकती है कांग्रेस : अशोक चौधरी

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पटना 23 नवम्बर, नोटबंदी पर बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के घटक दलों में मतभिन्नता के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ.अशोक चौधरी ने आज दो टूक शब्दों में कह दिया कि नोटबंदी पर उनकी पार्टी आमलोगों के साथ खड़ी है और पार्टी आलाकमान आज कहे तो कांग्रेस बिहार में गठबंधन से अलग हो जायेगी । नोटबंदी के मुद्दे पर यहां करगिल चौक से जेपी गोलंबर गांधी मैदान तक आयोजित कांग्रेस के विरोध मार्च के दौरान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. चौधरी से जब पत्रकारों ने सवाल किया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी इसका विरोध कर रही है, इसपर उन्होंने कहा कि नोटबंदी को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों की अलग-अलग प्रतिक्रिया और सोच है। बिहार कांग्रेस भले ही महागठबंधन में है, लेकिन वह अखिल भारतीय कांग्रेस के प्रति उत्तरदायी है। महागठबंधन के प्रति नहीं। डॉ.चौधरी ने कहा कि श्री नीतीश कुमार नोटबंदी के पक्ष में हैं, यह उनके राजनीतिक दल का विचार है, जबकि कांग्रेस नोटबंदी का विरोध कर रही है। हर पार्टी अपने सिद्धांत पर अमल करके आगे बढ़ती है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने आलाकमान के निर्देश पर बिहार में नोटबंदी की वजह से होने वाली परेशानी को देखते हुए विरोध मार्च का आयोजन किया था। नोटबंदी पर कांग्रेस आमलोगों के साथ खड़ी है। 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि आलाकमान के निर्देश पर ही बिहार कांग्रेस ने महागठबंधन का साथ दिया था। यदि आलाकमान का निर्देश हो तो आज ही बिहार में गठबंधन टूट सकता है और उनकी पार्टी सरकार से अलग हो सकती है । डा.चौधरी ने कहा कि भाजपा की नीति अडानी और अंबानी के हित में है न कि जनता के हित में। किसान परेशान हैं। देश आर्थिक मंदी के दौर में है। अब प्रधानमंत्री नोटबंदी पर जनता से 10 सवाल पूछ रहे हैं । उन्होंने कहा कि इस सर्वे में फर्जीवाड़ा होगा और सरकार बता देगी कि 80 प्रतिशत जनता नोटबंदी के पक्ष में है, जबकि अधिकांश जनता नोटबंदी के खिलाफ है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उनकी पार्टी को किसी पहचान की जरूरत नहीं है। वह जनता की मुसीबत के वक्त साथ थी और रहेगी । उन्होंने कहा कि कालेधन के मुद्दे पर सबको बोलने की पूरी छूट है। एक मुद्दे पर एक पार्टी का रुख दूसरे से अलग हो सकता है, इससे महागठबंधन की एकता पर असर नहीं पड़ने वाला है। 

झारखंड में उच्च शिक्षा के लिए आदिवासी छात्रों को भी मिलेगा ऋण

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रांची 23 नवंबर, झारखंड सरकार ने उच्च शिक्षा तक आदिवासी समुदाय के छात्रों की पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ऋण उपलब्ध कराने के लिए अलग कोष का गठन करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में आज यहां हुई बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई और कहा गया कि सरकार की इस पहल के तहत उच्च शिक्षा के लिए आदिवासी छात्रों को आसानी से ऋण मिल सकेगा। इसके अंतर्गत ऋण चुकाने की जमानत राज्य सरकार देगी। छात्रों के ऋण अदायगी से चूकने की स्थिति में सरकार द्वारा गठित कोष से बैंकों को ऋण का भुगतान किया जाएगा। झारखंड की मौजूदा शिक्षा नीति के तहत बैंक 7.50 लाख रुपये तक के शिक्षा ऋण पर गारंटी नहीं मांगती लेकिन इससे अधिक के ऋण के लिए छात्रों को गारंटी देनी होती है। बैठक में उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत आदिवासी छात्रों को राज्य सरकार की गारंटी पर ऋण उपलब्ध कराने की स्कीम शुरू करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए गठित कोष में 50 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को भी शामिल किया जाएगा। गौरतलब है कि छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) के कारण बैंक आदिवासी छात्रों को जमीन की गारंटी पर ऋण देने से परहेज करते रहे हैं। इसके मद्देनजर आदिवासी सलाहकार परिषद् की बैठक में उच्च शिक्षा के लिए आदिवासी छात्रों को आसानी से ऋण उपलब्ध कराने के मुद्दे पर सलाह देने के लिए राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। 

बैठक के दाैरान बैंकों को शिक्षा ऋण मंजूर करने और ऋण उपलब्ध कराने में हो रहे विलंब का कारण बताने के लिए एक अलग वेब पोर्टल बनाने का निर्देश दिया गया। वहीं, गुमला जिले के खूंटी में एक आदिवासी विश्वविद्यालय स्थापित करने और प्रत्येक विश्वविद्यालय में स्टार्टअप केंद्र बनाने का भी फैसला किया गया। श्री दास ने कहा कि अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों को कारोबार करने के उद्देश्य से ऋण उपलब्ध कराने के मुद्दे पर सलाह देने के लिए एक समिति गठित करने का भी निर्देश दिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा, “बदलते परिदृश्य में प्रत्येक व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता है। सरकार राज्य के टैलेंट को आगे बढ़ने में धन के अभाव को कभी भी आड़े नहीं आने देने के लिए प्रतिबद्ध है। आदिवासी समुदाय के बच्चे काफी तेजी और बुद्धिमान होते हैं लेकिन धनाभाव के कारण उन्हें अच्छे शिक्षण संस्थानों में प्रवेश नहीं मिल पाता। आदिवासी हमेशा एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल होते रहे हैं। किसी ने आज तक उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए कुछ भी नहीं किया। लेकिन झारखंड की वर्तमान सरकार आदिवासी समुदाय के लोगों और उनके बच्चों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध है। 

निर्माणाधीन आरा-छपरा पुल को मार्च 2017 तक हर हाल में पूरा किया जाये : तेजस्वी

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पटना 23 नवम्बर, बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने आज गंगा नदी पर निर्माणाधीन आरा-छपरा पुल को हर हाल में मार्च 2017 तक पूरा कराने का निर्देश दिया । श्री यादव ने आरा में निर्माणाधीन पुल का निरीक्षण करने के बाद अधिकारियों के साथ बैठक कर निर्माण कार्य में उत्पन्न कठिनाइयों और बाधाओं की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया की पुल निर्माण कार्य को मार्च 2017 तक निश्चित रूप से पूरा कराया जाए । उन्होंने भोजपुर के जिला पदाधिकारी को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करा कर ज़मीन सुलभ कराने का भी निर्देश दिया। इसपर जिला पदाधिकारी ने आश्वासन दिया कि भूमि अधिग्रहण के कार्य को तेजी से पूरा कर लिया जाएगा । उपमुख्यमंत्री ने कहा कि बिना पहुंच पथ के पुल की कोई उपयोगिता नहीं होती है इसलिए पहुंच पथ का भी निर्माण साथ ही पूरा कराया जाये । उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि निर्माण कार्यों में गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाए । यदि इसमें कोई कोताही बरती गयी तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा । बैठक में विधायक सरोज यादव और अरुण यादव, पथ निर्माण विभाग के परामर्शी सुधीर कुमार ,सचिव पंकज कुमार ,प्रबंध निदेशक पुल निर्माण विपिन कुमार , भोजपुर के जिलाधिकारी वीरेन्द्र कुमार यादव के अलावा पुल निर्माण निगम के अन्य वरीय अधिकारी उपस्थित थे । 

बाद में उप मुख्यमंत्री श्री यादव ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि यह निर्माणाधीन पुल 14 किलोमीटर लंबा होगा तथा आरा की ओर से इसकी पहुंचपथ 16 किलोमीटर और छपरा की ओर से 1 किलोमीटर लंबी होगी । यह मार्च 2017 तक पूरा हो जाएगा। इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 625 करोड़ रुपये है। श्री यादव ने कहा कि उन्होंने बैठक कर सभी समस्याओं की जानकारी ली है और उनका निराकरण करते हुए इसके निर्माण कार्य को मार्च 2017 तक पूरा कर लेने को कहा है । उन्होंने कहा कि पहुंच पथ के लिए भूमि अधिग्रहण किया जाना है । कृषि भूमि का मुआवज़ा भी लोग व्यवसायिक भूमि की दर से मांग रहे हैं जिसके कारण निर्माण कार्य में विलंब हुआ है । उप मुख्यमंत्री ने कहा कि गांधी सेतु के सामानांतर दो पीपा पुल बनाये जा रहे हैं जिससे गांधी सेतु का भार कम होगा। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि राज्य में सड़क ,पुल ,पुलिया की बेहतर से बेहतर व्यवस्था हो और लोगों को यातायात में कोई कठिनाई ना हो । 

नोटबंदी के बाद 13 दिनों में जनधन खातों में जमा हुए 21 हजार करोड़ रुपये

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नई दिल्‍ली: सरकार के नोटबंदी के कदम के बाद जनधन खातों में भारी उछाल देखने को मिला है. इन खातों में 21,000 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि जमा कराई गई है. सूत्रों ने बताया कि बीते 13 दिन में बैंकों में जनधन खातों में भारी राशि जमा कराई जा रही है. इन खातों की जमाओं में 21,000 करोड़ रुपये की बढोतरी दर्ज की गई है. उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की जिसके तहत 500 व 1000 रुपये के मौजूदा नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया. इसके बाद जिन राज्यों में सर्वाधिक जमाएं देखने को मिली हैं, उनमें ममता बनर्जी के शासन वाला पश्चिम बंगाल अव्वल है. इसके बाद कर्नाटक का नंबर आता है. निकासी के बाद इन खातों में कुल जमा या बकाया 66,636 करोड़ रुपये है. वहीं, नौ नवंबर को इस तरह के लगभग 25.5 करोड़ बैंक खातों में जमाएं 45,636.61 करोड़ रुपये थीं. उल्लेखनीय है कि देश में बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए 28 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री जन धन योजना की शुरुआत की गई थी. इस तरह के खातों में अधिकतम 50,000 रुपये जमा करवाए जा सकते हैं. 

फिल्म ‘डियर जिंदगी’ जीवन जीने की कलाओं पर आधारित है : शाहरूख

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फिल्म ‘डियर जिंदगी’ के प्रमोशन के लिए आएं अभिनेता शाहरूख खान ने बताया कि ‘फिल्म इस फिल्म में मैं जीवन कोच की भूमिका निभा रहा हॅू फिल्म इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है जो जीवन जीने की कलाओं पर आधारित है। गौरी शिंदे इस फिल्म के निर्देशक हैं।’ इसके बाद उनकी अगली फिल्म ‘रईस’ होगी जिसमें वे शराब तस्कर की भूमिका में दिखेंगे और आने वाले दिनों में वे इम्तियाज अली और आनंद एल. राय की फिल्मों में दिखेंगे। इंडस्ट्री में अपने 25 साल के शानदार सफर के बीच शाहरूख खान के लिए अपनी फिल्मों के चयन की प्रक्रिया काफी जटिल रही है लेकिन इस सुपरस्टार का कहना है कि उन्होंने फिल्म बनाने के लिए हमेशा फिल्म निर्माता-निर्देशकों से संपर्क साधा है। शाहरूख ने कहा, ‘कभी-कभी तो यह अच्छा होता है और कभी-कभी उम्मीदें बिल्कुल अलग हो जाती है। मैं तो वास्तव में मानता हूं कि फिल्म पर फिल्म निर्माताओं का विशेषाधिकार होता है और अभिनेता को इसके बीच में नहीं पड़ना चाहिए।

शाहरूख का कहना है, ‘मैं कहानियों को सुनने के बजाए सीधा लोगों से मिलता हूं। आशुतोष गोवारिकर मेरे दोस्त हैं, उन्होंने ‘लगान’ फिल्म बनायी, मैं चाहता तो उनके साथ काम कर सकता था लेकिन मैंने ‘स्वदेश’ को चुना। मैंने फिल्म को नहीं चुना, बल्कि मैंने गोवारिकर को चुना क्योंकि उनकी इच्छा थी कि हम साथ में ‘स्वदेश’ को बनाए।’  शाहरूख ने बताया, ‘लोग सोचते हैं, ‘अगर मैं उनके साथ एक फिल्म बना लूंगा तो वे फिल्म को सुपरहिट बना देंगे। लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने कभी भी फिल्म की कहानियों को नहीं सुना और जब मैं ऐसा बोलता हूं तो लोग सोचते हैं कि मैं झूठ बोल रहा हूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं हूं।’ 

एफईएचआई में आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट से पीड़ित रोगी को स्कारलेस सर्जरी के जरिए किया इलाज।

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नई दिल्ली। फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट ने स्कारलेस (बिना किसी निशान के) के द्वारा उज्बेकिस्तान से आए एक युवा, जो जन्म के समय से ही आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (एएसडी) से पीड़ित था, का सफलतापूर्वक इलाज किया। इस सर्जरी टीम का नेतृत्व फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर, कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी डाॅ. युगल मिश्रा कर रहे थे। पिछले दो साल से छाती में बाईं ओर दर्द से पीडित 18 वर्षीय तोशिकिनोव डोनियोर  को स्थानीय डाॅक्टरों से परामर्श के बाद पता चला कि वह आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (एएसडी) जन्म जात विकार से पीडित है, डाॅ. मिश्रा संपर्क के बाद उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और इलाज हेतु चुनौतीपूर्ण गैर-पारंपरिक सर्जरी करने के लिए बेहद इनोवेटिव तरीका अपनाया। 

फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी डाॅ. युगल मिश्रा कहते हैं, ’’इस सर्जरी में कई चुनौतियां थीं जैसे हार्ट पोर्ट डालने के लिए मिनिमल इन्वेसिव उपकरणों का इस्तेमाल; इलाज की जगह में दृश्यता और सर्जरी करने के लिए पेरिफेरल बाइपास करना। इस तरीके की सफलता से हम ऐसी समस्या से जूझ रहे अन्य रोगियों का भी स्कारलेस तरीके से इलाज कर सकेंगे।’’रोगी की छाती पर जो चीरा लगाया गया वह लगभग नहीं के बराबर था क्योंकि यह एरोल के फोल्ड में था, जो निपल के बिलकुल नीचे होता है। 4 से 5 सेंटीमीटर लंबा यह चीरा जन्म के समय के किसी निशान जैसा लगता था। एब्सोर्बेबल और मेल्टिंग टांकों की मदद से समय के साथ यह चीरा भी भर जाएगा। 

फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट के जोनल डायरेक्टर डाॅ. सोमेश मित्तल ने कहा, ’’यह हमारी एक और उपलब्धि है। फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट ने हमेशा ही कार्डिएक इलाज में नए इनोवेटिव तरीकों का इस्तेमाल किया है। देश में पहली बार ऐसी सर्जरी किए जाने से हमने एक बार फिर साबित कर दिया कि हमारे डाॅक्टरों के पास बेजोड़ कौशल और प्रतिभा है, जिसका इस्तेमाल वे अपने रोगियों को बेहतर बनाने के लिए करते हैं।’’

विशेष आलेख : मुंशिया के पापा

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old-man-storyदो औरतें आपस में अपने घर के सामने खड़ी होकर बतिया रही थीं। शाम को धुंधलका था- शक्ल तो नहीं देख सका अलबत्ता उनके मुख उच्चारण उपरान्त निकले शब्दों का श्रवण स्वान सदृश तीव्र कर्णों से किया था। बड़ा आनन्द आया। मुझे लगा कि इनसे बड़ा कोई आलोचक नहीं हो सकता। वह क्या कह रही थी जब आप पढ़ेंगे तो आप को भी आनन्द की अनुभूति होगी। वह जो आदमी जा रहा है, उसे मैं अपने मोहल्ले में पिछले 40 सालों से देख रही हूँ। इस मोहल्ले में यह ऐसा आदमी है जिसने हमारी बहू-बेटियों की तरफ मुँह करके नहीं देखा है। आजकल अपने घर में कैद होकर रह गया है। इसका घर भी जैसा पहले था- उसी तरह अब भी है, रंग-रोगन कभी हुआ हो यह हमने तो नहीं देखा। नाम तो नहीं मालूम लेकिन इसके घर के अन्य लोगों से यह जाना जाता है। वह बुरा है या भला यह भी नहीं मालूम परन्तु हमारे घरों में इसके बारे में जब भी चर्चा होती है तो इसे अच्छे लोगों में कहा जाता है। 

आजकल इसके घर में काफी हलचल और जोर-जोर की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। ताज्जुब होता है कि इस अनबोलता के यहाँ ऐसा माहौल क्यो.....? तभी तीसरी महिला आ जाती है वह बोल उठती है- दीदी अब इस व्यक्ति के घर में परिवार बढ़ गया है बच्चे भी हो गए हैं, जाहिर सी बात है कि ऐसे में घर में होने वाली आवाजें जरूर ‘शोर’ वाली होंगी। एक बात है यह पहले बड़ा हैण्डसम सा दिखता था, इस समय तो इसे देखकर प्रतीत होता है कि यह खाने बगैर टूट गया है। हाँ बहन हमनेे सुना है कि घर की औरतें इसे समय पर नाश्ता, चाय, भोजन तक नहीं देती हैं और बच्चे हैं कि लाख बुलाया जाए वह लोग इसके आवाज की अनसुनी करते हैं। समय-समय की बात है- बुढ़ापा भी गजब की अवस्था होती है ऊपर से हद से ज्यादा सीधा होना तो काफी नुकसानदायक साबित होता है। ठीक यह सब परिस्थितियाँ इस व्यक्ति पर अपना असर दिखा रही हैं। बीते कई दिनों मैंने सुना कि यह व्यक्ति समय से चाय-नाश्ता नहीं पा रहा है। इस आदमी के बारे में ज्यादा क्या कहा जाए। बस इतना समझ लो कि भरा-पूरा परिवार का मुखिया होते हुए भी ए अदना सी जिन्दगी जी रहा है। इसकी औरत तो है लेकिन वह कहीं नौकरी करती है। लड़का-बहू भी अपना व्यवसाय करते हैं। किसी के पास इतना वक्त नहीं कि वह इसके प्रति चिन्तित हो। इसी बीच एक और का पदार्पण होता है वह उनकी परिचर्चा में शामिल होकर कहती है कि क्यों आज किसके बारे में बातें हो रही हैं। सभी के मुँह बन्द हो गए थे- तभी एक अन्य महिला नमूदार होती है- वह कहती हे कि कुछ नहीं ये सब मुंशिया के पापा की बातें कर रही हैं। वोह तो यह बात है-----।

मुंशिया इकलौता है- स्वच्छन्द और स्वतंत्र हैं। पैसे कमाता है उसकी लुगाई भी उसके कार्यों में मदद करती है उसके पापा की चिन्ता तुम लोगों को क्यों सता रही है? अरे नहीं अलगू की मम्मी ऐसी कोई बात नहीं बस इतना कि मुंशिया के पापा इसी उम्र में बुड्ढे और कुरूप क्यों दिखने लगे हैं- इसी बात को लेकर हम सब बतिया रहे थे। मुंशिया के पापा वाकई में मोहताज होकर से रह गए हैं। औरत और उसके लड़के-बहू सब बाहर रहकर कमा रहे हैं। घर पर बूढ़े कुत्ते की तरह रहकर मुंशिया के पापा बच्चों को पुकारते और बदमाशी करने से मना करने की ड्यूटी करते हैं। इसकी एवज में इनके हिस्से में आती है एकाध कप चाय और सूखी बचे-खुचे बिस्कुट के टुकड़े। सुना है कि एक समय भोजन करने वाले इस व्यक्ति को घर वाले पुरूष-स्त्री सदस्य मात्र प्रतीक के रूप में ही मानते हैं। काफी सोशल बनने के चक्कर में सभी लोग मनमाना करते हैं। कोई अनुशासन नहीं- नियम नियमावली नहीं अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलापने वालों के क्रिया-कलापों से क्षुब्ध इस व्यक्ति ने अब विरोध या आपत्ति करना भी त्याग दिया है। मुंशिया और उसकी मम्मी की चलती है। दोनों मिलकर योजनाएँ बनाते हैं- कब क्या करना है, इसकी भनक तक इस व्यक्ति को नहीं लगने देते हैं। वह लोग भूल गए हैं कि यदि यह न होता तो आज ये लोग भी वैसा न होते जैसा कि हैं। यही नहीं मुंशिया के पापा की बूढ़ी माँ गाँव रहती हैं और अपने नाती और कमाऊ बड़ी बहू के आदेशों को बजाती हैं। गाँव में कौव्वा हकनी बनी रहती हैं, फिर भी जीने की लालसा ने उन्हें यह सब सहने की क्षमता दे रखा है। 

इस व्यक्ति के घर में इसको लेकर कुल तीन परिवार रहते हैं, जिसमें मुंशिया उसकी पत्नी और बच्चे। मुंशिया के चाचा-चाची और उनके बच्चे। एक ही छत के नीचे शहर में रहने वाला यह पहला परिवार है जिसमें अभी तक दिखावे के तौर पर अलगाव नहीं हुआ है। मुंशिया उसकी पत्नी  अपने चाचा-चाची को प्रायः चिढ़ाते रहते हैं। क्यों न चिढ़ावें- मुंशिया के चाचा भी अर्धशतकीय पारी के करीब उम्र वाले हो गए हैं- बुद्धिमान बनने की गलती पाले बैठे किसी स्थाई कारोबार का चयन तक नहीं किया अब ई बेगिंग/हैट्स का विजिनेस करते हैं। अपने होनहार बच्चों के भविष्य के प्रति न सोचकर दोनों पति-पत्नी अपने वर्तमान को जी रहे हैं। झूठ-फरेब और फर्जी काम करने वाले मुंशिया के चाचा अपने शयनकक्ष में पत्नी-बच्चों के साथ ऐश की जिन्दगी जी रहे हैं। इस वार्तालाप में एक महिला ने पूँछ लिया कि बहन जी आप को इतने अन्दर की बात कैसे मालूम-? छोड़ो भी अब यह सब जानकर क्या करोगी-? छोड़ो भी अब यह सब जानकर क्या करोगी। मुंशिया और उसके चाचा में प्रायः नोक-झोंक होती है। कहते हैं कि दीवारों के कान होते हैं, मैं तो पड़ोसन हूँ वह भी जीती जागती- तब भला क्यों न जानूँ कि अगल-बगल के घरों के अन्दर क्या हो रहा है। जाने दो आज की परिचर्चा समाप्त भी करो, अब ज्यादा रात होने को है ठण्डक बढ़ गई है। शेष बातें कल या फिर किसी और दिन- ठीक है सभी ने समवेत् स्वर में कहा। अब उपसंहार किया जाए उसके पहले जान लो कि मुंशिया चालीस पार उसकी मम्मी 60 पार उसकी दादी 80 पार, चाचा 50 के करीब, चाची को चालीसा लगा है। मुंशिया की घर वाली भी 30 प्लस है। बच्चे भी सयाने होने लगे हैं। टेन प्लस और मंुशिया के पापा 60 प्लस हैं। कुल मिलाकर मुंशिया के पापा की तरह जितने भी परिवार होंगे सब के यहाँ का सीनेरियो एक सा ही होगा। चलो अब चला जाए अब अपने-अपने घरों की चिन्ता की जाए। वह सभी औरतें चुप्पी मारे अपने-अपने घरों की तरफ चल देती है- मैं अपनी मंथरगति वाली चाल से चलता हुआ नित्य की तरह आवाज देकर पोती को बुलाता हूँ कि दरवाजा खोले। 




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-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
मो.नं. 9454908400
E-mail- rainbow.news@rediffmail.com

मधुबनी : जिला युवा उत्सव को सफल बनाने के लिए जिलाधिकारी ने ली बैठक

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मधुबनी, 24 नवम्बर 2016; दिनांक-29 नवंबर, 16 को वाट्सन उच्च विघालय परिसर में अवस्थित  आॅडिटोरियम  में जिला युवा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिले के 15 से 35 आयु वर्ग के युवा इसमें भाग ले सकते है। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए जिला पदाधिकारी, मधुबनी श्री गिरिवर दयाल सिंह की अध्यक्षता में उनके कार्यालय कक्ष में बैठक का आयोजन किया गया। जिला युवा उत्सव में समूह गायन, समूह लोक नृत्य, एंकाकी नाटक, शास्त्रीय नृत्य (कथक, ओडिसी, भरत नाट्यम, मणिपुरी, कुचीपुडी) शास्त्रीय गायन (एकल प्रस्तुति), शास्त्रीय वादन (सितार, गिटार, तबला, बाँसुरी, वीणा, मृदंगम) हारमोनियम वादन (सुगम), वक्तृता, चाक्षुष कला (चित्रकला, हस्तशिल्प, मूर्तिकला, फोटोग्राफी) विधा में प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त लोक गाथा, लोकगीत, सुगम संगीत, वायलिन वादन, सारंगी वादन, सरोद, शहनाई, पखावज, ध्रुपद-धमाल आदि की भी प्रतियोगिता होगी। एकांकी नाटक, शास्त्रीय नृत्य, शास्त्रीय गायन, शास्त्रीय वादन, हारमोनियम वादन, समूह गायन, समूह लोक नृत्य विधा में प्रथम स्थान प्राप्त  प्रतिभागियों को राज्य स्तर पर एवं राज्य स्तर पर प्रथम स्थान पर चयनित प्रतिभागियों को राष्ट्रीय युवा उत्सव में भाग लेने का अवसर मिलेगा।

इस प्रतियोगिता में भाग लेने के इच्छुक युवा कलाकार 27 नवंम्बर 16 के पूर्व अपना आवेदन विहित प्रपत्र में डी.आर.डी.ए. स्थित विकास शाखा में जमा कर सकते है। प्रपत्र मधुबनी जिला के वेबसाइट पर उपलब्ध है। अन्य जानकारी विकास शाखा से प्राप्त की जा सकती है। जिला पदाधिकारी ने प्रतिभागियों के निष्पक्ष चयन के लिए योग्य एवं निष्पक्ष निर्णायक मंडल गठित करने का निदेश दिया। बैठक में अपर समाहत्र्ता श्री दुर्गानन्द झा, श्री नरेश झा, श्री सत्यप्रकाश, श्री उपेन्द्र पंडित, (सभी वरिय उपसमाहत्र्ता), जिला आपूर्ति पदाधिकारी, श्रम अधीक्षक, उपाधीक्षक (शारीरिक शिक्षा), कार्यपालक पदाधिकारी, नगर परिषद, डी.आई.ओ.एन.आई.सी. आदि उपस्थित थे।

नोट पर रोक: जानिए, आखिर जनता की खुशी का क्या है राज..

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.500-1000 के नोट पर रोक के आदेश से जहां 16 दिन बाद भी पूरे देश में सड़क से लेकर संसद तक संग्राम छिड़ा है तो बैंक एवं एटीएम जनता की कसौटी पर खरे साबित नहीं हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्णय से एक-दो दिन तो गरीबों एवं आम जनता में हर्ष की लहर नजर आ रही थी और वह मोदी की वाह-वाह करते नजर आ रहे थे। जब इसकी तहकीकात की तो उनका कहना था कि अब बनियों का कालाधन निकलकर आयेगा और उसका लाभ गरीबों को मिलेगा। जिधर भी मैं निकला और जिस गरीब एवं आम जनता से जहां भी मिला वह इसलिये खुश नजर आ रहा था कि चलो हमें तो परेशानी हो रही है लेकिन अब बनियों की शामत आ जायेगी क्योंकि सबसे ज्यादा धन तो बनियों के ही पास है। डाकघर में कार्यरत एक बाबू जो मुझे बनिया के रूप में जानता भी है यह कहते हुए बड़ी जोर से हंसते हुए कह रहा था कि जिन बनियों ने भाजपा को वोट दिया उन्हीं बनियों की... में मोदी ने डंडा कर दिया है। और सबसे ज्यादा परेशान बनिया ही है। बनिया का अब सब कालाधन रद्दी हो गया है। उस बाबू ने बताया कि उसके पास रोज बनियों के फोन नोट बदलने के लिये आते हैं। जब उसे मैंने बताया कि बनिया समाज का धन तो रीयल स्टेट, सोना, व्यापार, शेयर बाजार आदि में लगा हुआ है उसके पास नगदी नाम मात्र में होती है तो वह मानने के लिये तैयार नहीं हुआ और हंसते-हंसते चलते हुऐ कहा कि सेठजी तुम मत मानो लेकिन सबसे ज्यादा इस समय बनिया ही परेशान है।

इस तरह के नजारे चाय, सब्जी, पान वाले आदि गरीब वर्ग के लोग में सुनने को हर जगह मिले, जैसे कि उनकी बनिया समाज से कोई दुश्मनी हो। मैंने कहा कि सबसे ज्यादा कालाधन नेता, अफसर, साधू-संत, क्रिकेटर, फिल्मी कलाकार, उद्योगपतियों पर है लेकिन वह इसे मानने को तैयार नहीं हुए। कहते कि जो भी हो अब बनियों की मोदी के राज में शामत आ गई है। आप कहीं भी मोदी के नोटबंदी की चर्चा गरीब एवं आम जनता के बीच में करके देखिये वह केवल इसलिये खुश नजर आ रहे हैं कि चलो बनियों के खिलाफ पहली बार किसी ने शिकंजा तो कसा। लेकिन उन्हें ये जानकारी नहीं है कि करीब 4 लाख करोड़ की राशि देश के मात्र 2071 उद्योगपतियों पर एनपीए के रूप में बैंकों की डूबी हुई है। जिसमें उद्योगपतियों द्वारा 50 करोड़ से ज्यादा का कर्जा ले रखा था। जबकि मात्र 5 लाख करोड़ की राशि देश की करोड़ों जनता द्वारा बैंकों में जमा कराई गई है। जिसमें उन्हें लम्बी लाइनों में लगने पर मजबूर होना पड़ा।

नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के आदेश से सामान्य व्यापारी हो या बनिया या आम जनता सब खुश नजर आ रहे हैं। लेकिन सरकारी मशीनरी एवं राजनेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सख्त कदन न उठाने से आहत दिखाई देती है। नोटबंदी के चलते खुश नजर आ रहा किसान, मजूदर वर्ग जो अब तक बनियों (व्यापारियों) को कोस-कोस कर खुश नजर आ रहा था अब उसके ऊपर तथा मोदी के अंधभक्तों पर इसकी गाज गिरना शुरू हुई तो वह अब व्यवस्था को लेकर बैंक अफसरों को कोसने लगा कि वह बनियों (व्यापारियों) से सांठ-गांठ कर नोट बदल रहे हैं। अब धंधे ठप होने से व्यापारी मजदूर की छुट्टी कर रहा है, दुकानदार ने उधार देना बंद कर दिया है, जेब में रखी पूंजी समाप्ति की ओर है और बाजार में मंहगाई ने जोर पकड़ लिया है। बड़ा व्यापारी जो पहले भी मस्त था और आज भी है को देखकर अब गरीब, आम जनता को लगने लगा है कि हमने तो 15 दिन की मुसीबतें झेल ली हैं लेकिन अभी तक बनियों पर तो कोई मुसीबत आयी नहीं है उल्टे उनके ही बुरे दिन आने शुरू हो गये हैं। जिसमें कहीं अब रोजगार की तलाश में कहीं आटा-दाल, इलाज के लिये दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। मुझे बचपन में सुनी एक कहानी याद आ रही है एक चालाक आदमी ने भगवान शिव की तपस्या की जिससे खुश होकर शिव ने उसे इस शर्त के साथ वरदान मांगने को कहा कि जो भी तू मांगेगा उससे दोगुना तेरे पड़ोसी को मिलेगा। इस पर मजदूर ने शिव से अपनी एक भैंस मारने का वरदान मांगा तो पड़ोसी की दो भैंस मर गईं, उसने अपनी एक आंख का फूटने का वरदान मांगा तो पड़ोसी की दोनों आंखें फूट गई इस तरह पड़ोसी के सर्वनाश की चाहत में उसने अंत में अपना सब कुछ गंवा दिया।

यही स्थिति नोटबंदी के मामले पर सटीक साबित हो रही है जहां कालाधन के नाम पर बनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की उम्मीद से खुश नजर आ रहे गरीब, मजदूर, मोदी के अंधभक्त तथा आम जनता 16 दिन बाद भी त्राहि-त्राहि करते नजर आ रहे हैं।

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मफतलाल अग्रवाल
(लेखक वरिष्ट पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

विशेष आलेख : आई.ए.एस. व आई.पी.एस. अधिकारी अपनी सोच बदलें

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देश की प्रशासनिक आधार-शिला के स्तम्भ आई.ए.एस. और आई.पी.एस. अधिकारियों की कार्यशैली पर उन्हें स्वयं, राज्यों की सरकारों को और आम जनता को गम्भीरता पूर्वक बिचार करने का समय अब आ चुका है। गत माह सितम्बर 2016 मे भारतीय जनता पार्टी की भोपाल मे सम्पन्न हुई समन्वय बैठक मे राष्ट्रीय महासचिव एवं म.प्र. शासन के पूर्व केबिनेट मन्त्री कैलाश विजयवर्गीय ने यह आरोप लगाया था कि मध्य-प्रदेश मे राजतन्त्र पर ब्यूरोक्रेसी भारी है और सत्ताधारी पार्टी भाजपा के कार्य-कर्ता अपने आप को निरीह स्थिति मे अनुभव कर रहै हैं। दबी-कुची जुवान से अनेकों जन-नेता भी यह मानने लगे हैं कि नोकरशाही द्वारा कार्यकताओं की अवहेलना की जा रही है और प्रदेश मे बाबू-राज्य (आई.ए.एस. आॅफीसर्स को बाबू कहा जाता है) का वर्चस्व है। इसी कारण मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चैहान को लगा कि गुड गवर्नेन्स के नाम पर भोपाल मे कलेक्टर व कमिश्नरों की कान्फ्रेन्स मे यह मुद्दा रखा जाना चाहिये ? 

हम कल्पना कर सकते हैं कि आई.ए.एस. या आई.पी.एस. की परीक्षा में उत्तीर्ण हुये युवक के हृदय में देश के प्रति यह भावना निर्मित होती होगी कि उसने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर भारत की सर्वोच्च प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा उत्तीर्ण की है और उसके मजबूत कंधों पर भारत की भावी योजनायें व जनहित के कार्यों की जिम्मेदारी है, अतः इस देश की सेवा करना है और निष्पक्षता के साथ विवेकपूर्ण निर्णय लेते हुये जन-हित मे प्रशासनिक कार्य करना है। हम यह धारणा तो नहीं बना सकते कि इनके मन में तत्समय ऐसा भी बिचार आता होगा कि ‘अपने पद के माध्यम से हम व्यापार करने आये हैं, हमें कोई नेता या राजनीतिक दल अपना बना ले तो हम उसके ही बने रहने को तैयार हैं।’ इन अधिकारियों की कार्य-शैली और स्वभाव को देखते हुए इन्हें दो भागों में विभक्त कर सकते हैंः- एक वे अधिकारी हैं जो अपना ज़मीर एक निश्चित दायरे तक सुरक्षित रखना चाहते हैं, उनके खानदानी पारिवारिक संस्कार उन्हें किसी हद् तक निष्पक्ष कार्य करने की और गलत कार्य नहीं करने की प्रेरणा देते हैं। इन्हें एक सीमा तक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व राष्ट्रवादी-सोच के अधिकारी कहा जा सकता है और इनमें जनता व देश की सेवा करने की भावना के बीज अंकुरित होकर जीवित बना रहता है। कम से कम प्रधानमन्त्री मोदी को ऐसे ही प्रशासनिक अधिकारियों की आवश्यकता है और हम-जनता की भी यह जिम्मेदारी है कि ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों के नाम मोदी जी तक भेजें। परन्तु इन अधिकारियों भी यह भय रहता है कि महात्वपूर्ण पद या जिला के कलैक्टर, पुलिस आधीक्षक के पद से कहीं हटा न दिया जाये ? यहां मेरा कहना यह है कि यदि आप निष्पक्ष, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ हैं तो हटाये जाने का यह डर क्यों ? कार्य के प्रति संवेदनशीलता, ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता यदि आपका गुंण है और आप युवा भी हैं, आपमें यदि अपनी प्रतिभा और योग्यता के बल पर समय के जीवित हस्ताक्षर बने रहने की चाह है, तो आपके अन्दर असुरक्षा की भावना क्यों पनपती है ? जहां जिस पद पर पदस्थ हैं, वही पद महात्वपूर्ण है। देश के एक प्रतिष्ठित नागरिक के रूप में अपने सिद्धान्तों के साथ समझौता नहीं करने का सोच बनाना चाहिये। जरूरत तो इस स्वभाव के अधिकारियों को संगठित होने की है। यद्यपि देश की नौकरशाही का इतना अधिक राजनीतिकरण हो चुका है कि राष्ट्रवादी-सोच के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी अब अत्यन्त अल्पसंख्यक हैं।

दूसरे प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी ऐसे होते हैं जो उक्त से भिन्न सोच के होते हैं, इनका देश मे बाहुल्य है। ये अपनी पदस्थापना के माध्यम से धनार्जन का ध्येय मान बैठे हंै। इनका उद्देश्य प्राथमिकता के आधार पर नेताओं को खुश करना होता है, जिससे कि इनके कार्यकाल में बिघ्न-वाधा-कारक तत्व विकसित न हो पायें और ऐसे अधिकारी अपनी पदोन्नति की तरफ दूर-दृष्टि रखते हुए अपने पद को विलासिता व ‘एन्जाॅयमेन्ट’ का साधन भी मानते हैं, इस स्वभाव के अधिकारी अपने बंगले से आॅफिस और आॅफिस से बंगला तक की कार्य सीमा में अपनी नौकरी की पूर्णता मान लेते हैं, इनमे प्रशासनिक संवेदनशीलता का अभाव रहता है। किसी मंत्री के आगमन पर उसकी अगवानी में अपनी पूर्ण प्रशासनिक ताकत झोंक कर ये प्रशासनिक सफलता का प्रमाण-पत्र लेने की परम्परा बनाये हुये हैं। इसके अलावा विभिन्न समारोहों के उद्घाटन, स्वागत भाषण, अध्यक्ष, मुख्य अतिथि जैसे पदो को शोभायमान करते हुए वे स्वमेव गद्-गद् एवं पुलकित बने रहते हैं और आत्म-प्रशंसा के शौकीन होते हैं। ऐसे प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा सिर्फ अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से ही सूचनायें और कागजी जानकारियां हांसिल की जाती हैं और वे कागजी घोड़ों के सहारे ही अपने शासकीय कर्तव्य-पालन की दौड़ पूर्ण कर लेते हैं। ऐसे अधिकारी समस्याओं को अक्सर टालते रहने में विश्वास करते हैं, इनमे रिश्वतखोरी के बिरूद्ध कार्यवाही करने की इच्छा-शक्ति का अभाव रहता है, किसी उलझे विषय पर निर्णय लेने मे ये अक्षम होते हैं और अधीनस्थ अधिकारियों को जनता से सामना करने का दिशा-निर्देश देकर अपने कार्य की इतिश्री मान लेते हैं। ऐसे अधिकारियों को निजी स्वार्थ-वादी सोच के कह सकते हैं। 

समय के बदलते क्रम मे आम जनता और राजनेताओं की नज़र में नौकरशाही की छबि अब धूमिल होती जा रही है। इनका साहबीपन, अंग्रेजियत-शैली, अपने को सर्वोच्च समझने का अहम्, जनता से सीधे रूबरू नहीं होने का दोष और अपने पद का व्यवसायीकरण करने की मानसिकता शनैः शनैः इनमे पनप रही है। इस सन्दर्भ मे चर्चा करेंगे तो ऐसे लोगों की एक लम्बी फेहरिश्त बन जायेगी। देश के बिभिन्न राज्यों मे यह अनुभव किया जाने लगा है कि प्रशानिक एवं पुलिस अधिकारी राजनेताओं की इच्छा-पूर्ति के टूल्स बनते जा रहै हैं और इसीलिये सिफारिश की बैसाखी के सहारे तन्त्र के दरवाजे पर पीड़ित अपनी राहत के लिये पहुंचता है। हम राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर यह अनुभव कर सकते हैं कि प्रशासकीय कार्यों एवं अपराधों के अनुसंधान में अवांछित राजनीतिक हस्तक्षेप एक आम बात हो गई है। परिणामतः वास्तविक अपराधी बच निकलते हैं। हम यह भूल गये हैं कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था के मूल स्वरूप में यदि शासकीय स्तर पर कोई अधिकारी गलत कार्य कर रहा हो, तो उसे जननेता उजागर करे, उस पर अंकुश लगावे। लेकिन तंत्र का चक्र उल्टा ही घूमने लगा है। लाभ लेने और देने का क्रम बनने लगा है। प्रश्न तो यह है कि प्रशासन की इस विकृत हो रही तस्वीर के लिये देश का सर्वाधिक बुद्धिमत्तायुक्त विवेकपूर्ण कहा जाने वाला आई.ए.एस./आई.पी.एस. वर्ग पर क्या कोई उत्तरदायित्व नहीं है ? प्रश्न यह भी है कि इस देश के एक कर्तव्यनिष्ठ नागरिक के रूप में ये स्वयं अपने उत्तरदायित्व का कितना निर्वाहन कर रहे हैं। समस्त जिम्मेदारी राजनेताओं और राजनीति पर थोपकर अपना पल्लू नहीं झाड़ा जा सकता।

चूंकि सकारात्मक सोच ही हमारी योजनाओं को फलीभूत करता है, इसी आशा के साथ अब समय आ चुका है कि ऐसे प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी, जिनमें एक राष्ट्रभक्त, ईमानदार नागरिक होने और अपने पद के प्रति निष्ठा, देश के प्रति कर्तव्यपरायंणता, जन-सेवा की भावना, दुखी और पीड़ित की समस्या को शासकीय-तन्त्र के प्रथम दरवाजा पर ही निदान करने की प्रतिबद्धता के बीज यदि हृदय में जीवित बचे हैं, तो मेरा आव्हान है कि आप एक श्रंखला बनाकर संगठित हो जाईये। हिम्मत जुटाइये कि गलत कार्य को गलत ही कहेंगे और गलत नहीं करेंगे, चाहे सर्वोच्च शिखर पर बैठा राजनीति से प्रेरित अधिकारी ही क्यों न कहे। अपने ही जैसों से आपस में सम्पर्क बनाये रखिये, अपना एक पृथक सुनुयोजित संगठन बनाइये जिसका सदस्य सिर्फ उक्त गुणों, स्वभाव व आचरण का अधिकारी ही बन सकै। बर्तमान मे जो भी आई.ए.एस. आॅफीसर्स एसोसियेशन अस्तित्व मे हैं, वे अपने निजी-हित के सन्दर्भ में ही केन्द्रित हैं। संभवतः इनकी एसोसियेशन मे राष्ट्रभक्ति, जनसेवा, आॅनेस्टी व इन्टीग्रिटी जैसे विषयों पर कोई चर्चा व संवाद नही होते हैं और इसी कारण इनकी कार्य-शैली मे बिगाड़ आ रहा है। वस्तुतः संगठन का उद्देश्य सार्वभौमिक एवं स्वस्थ व्यवस्था हेतु होना चाहिये। देश-हित में समर्पित एक ऐसा संगठन का निर्माण होना चाहिये, जिसका सदस्य मात्र बनने पर आई.ए.एस./आई.पी.एस. अधिकारी स्वयं को गौरान्वित समझे, प्रारम्भ मे भले ही इनकी संख्या अत्यन्त अल्प होगी लेकिन बिचारों का प्रचार-प्रसार होने पर नव-चयनित युवा अधिकारियों को प्रोत्साहन तो मिलेगा, उन्हें एक प्लेटफाॅर्म तो मिलेगा, उनका नैतिक बल तो बड़ेगा। आम जनता का भी यह कर्तव्य है कि निष्ठावान और सक्रिय प्रशासनिक अधिकारियों को समाज का एक महात्वपूर्ण अंग समझते हुए उन्हें समय-समय पर उनके मनोबल को ऊंचा उठाने मे सहयोग करें, क्योंकि ऐसे अधिकारियों को आम जनता द्वारा ही जो इनाम दिया जाता है वह उनके जीवन की धरोहर होती है। 

एक जन-सामान्य की मानसिकता यह होती है कि वह चुस्त-दुरूस्त प्रशासनिक व्यवस्थायें देखना पसन्द करता है, भले ही उसमें थोड़ी बहुत कठोरता ही क्यों न हो। व्यववहारिक रूप में प्रशासनिक कार्यशैली यदि व्यक्तिवादी नहीं हैं तथा प्रशासनिक व्यवस्था में भेद-भाव नहीं है और सबके साथ एक समान व्यवहार है तो ऐसी व्यवस्थायें प्रशंसनीय एवं सफल होती हैं जिन्हें जनता भी पसन्द करती है। प्रत्येक विभाग मे प्रत्येक स्तर पर प्रशासनिक व्यवस्थायें चुस्त-दुरूस्त एवं त्वरित कार्य करने की निर्मित होना चाहिये, भले ही उनमे कठोरता ध्वनित होती हो। समय के बदलते क्रम में आई.ए.एस. एवं आई.पी.एस. आॅफीसर्स की पदोन्नति, स्थानान्तरण, उनके कार्यों की गोपनीय रिपोर्ट, उनके आचरण, उनकी पदस्थापनायें हेतु न्यायपालिका अथवा चुनाव आयोग जैसा एक पृथक एवं स्वतंत्र सेल बनना चाहिये और इस सेल के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं साफ-सुथरी छबि के अनुभवी सेवा-निवृत आई.ए.एस./आई.पी.एस. अधिकारियों की होना चाहिये। इस सेल के कार्यक्षेत्र में अधिकारियों की गतिविधियां और शिकायतें व उनके आचरण वगैरह के सन्दर्भ में समय-समय पर टिप्पणियां दर्ज होती रहना चाहिये एवं गम्भीर शिकायतों की जांच व निलम्बन करने का अधिकार-क्षेत्र भी, इस सेल के अधिकार-क्षेत्र में होना चाहिये। सेल की सिफारिश पर राज्य सरकार इनका स्थानान्तरण करै। सेल की कार्यशैली में पारदर्शिता बनी रहै इस हेतु इसकी टिप्पणियां व आदेश सार्वजनिक जानकारी के लिए उपलब्ध होना चाहिये। सेल के किसी आदेश को सिर्फ उच्च न्यायालय में ही चुनौती दिये जाने का प्रावधान निहित होना चाहिये। इसकी व्यवस्था व प्रक्रिया के प्रारूप पर विस्तृत बिचार करके कानून का निर्माण होना चाहये । इससे अधिकारियों को यह  आभास रहेगा कि एक पृथक एवं न्याय-विभाग अथवा भारत के निर्वाचन-विभाग जैसा एक स्वतंत्र विभाग की गिद्ध-दृष्टि उनके आचरण व उनकी कार्यशैली पर निरन्तर बनी हुई है।

तहसील स्तर के रेवेन्यू विभाग से जुड़ी आम-जनता की परेशानियों पर यदि चर्चा नही की जाये तो बात अधूरी ही रहेगी। कृषि भूमि के नामांतरण, बटवारा एवं सीमांकन के प्रकरण लम्बित बने रहना, एक आम समस्या है। सामान्यतया कानूनी प्रक्रिया यह है कि जैसे ही तहसील न्यायालय मे कोई नामांतरण, बटवारा एवं सीमांकन का आवेदन प्रस्तुत होता है तो उस प्रकरण को दायरा रजिस्टर मे दर्ज होना चाहिये और उस पर प्रकरण का क्रमांक अंकित होना चाहिये। इस प्रक्रिया की सुसंगतता इस कारण से भी है कि लंबित प्रकरणों की संख्या की जानकारी तत्काल कभी-भी किसी भी समय मिलती रहे। परन्तु इस प्रक्रिया का पालन होता नहीं दिख रहा है। इसके बिपरीत म.प्र. के कम से कम दतिया जिला मे, संभवतः सभी जिलों मे भी यह हो रहा है कि जब प्रकरण का निराकरण अंतिम रूप से हो जाता है तब उसके बाद वह दर्ज होकर उस पर प्रकरण का क्रमांक अंकित होता है। ऐसा होना पूर्णतः विधि बिरूद्ध और नियमों के बिपरीत हैं। इस प्रकार की चल रही प्रक्रिया मे ’आॅन दि रिकाॅर्ड’ लम्बित प्रकरणों की संख्या का भी पता नही लग सकता हैं अथवा लम्बित प्रकरण की पत्रावली यदि खो भी जाये तो उस पर कोई शिकायत अथवा जांच नही हो सकती, क्यों कि वह दायरा रजिस्टर मे दर्ज ही नहीं है। राज्य-सरकार को मेरा सुझाव है कि रेवेन्यू न्यायालयों मे लंबित प्रकरणों की जानकारी इन्टरनेट पर आॅन-लाईन अपलोड होना चाहिये, जैसा कि हाई-कोर्ट एवं जिला स्तर पर जुडीसियल कोर्ट मे है। प्रकरण कब दायर हुआ, प्रकरण के पक्षकारों के नाम, प्रकरण क्रमांक, कौन से विषय/कानून पर प्रकरण है, प्रकरण की प्रत्येक तारीख पेशी व उसकी कार्यवाही की दिनांक भी इन्टरनेट पर अपलोड होना चाहिये। इससे घर बैठे कृषक जानकारी प्राप्त कर सकेगा। इसकी माॅनिटरिंग रेवेन्यू विभाग के कलेक्टर, कमिश्नर एवं राज्य स्तर पर सचिवालय के द्वारा होती रहना चाहिये और समय-सीमा मे निराकरण नहीं होने की दशा मे अथवा अनावश्यक रूप मे तारीख पेशी बढ़ने पर संबंधित अधिकारी के बिरूद्ध ‘‘कारण बताओ नोटिस’’ जारी होना चाहिये। इससे यह लाभ होगा कि संबंधित अधिकारी को निरंतर यह आभास होता रहेगा कि उसके कार्य पद्धति पर राज्य मुख्यालय की सीधी दृष्टि है एवं कार्य मे पारदर्शिता भी रहेगी। इसी सन्दर्भ मे मैने मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चैहान को एक पत्र भी भेजा था परन्तु लगता है कि ब्यूरोक्रेसी के स्पीड-ब्रेकर के चलते ऐसी सलाह कहीं अटकी पड़ी होगी।
    


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राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के समालोचक हैं। 

ट्रंप ने भारतीय मूल की हेली को बनाया संरा में अमेरिकी राजदूत

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वाशिंगटन, 24 नवंबर, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साउथ कैरोलिना प्रांत की गवर्नर भारतीय मूल की निक्की हेली को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत पद के लिए चुना है। श्री ट्रंप ने हेली को संरा में अमेरिकी राजदूत बनाए जाने की घोषणा करते हुए कहा “हेली एक कुशल और व्यावहारिक हैं। वह विश्व स्तर पर हमारा प्रतिनिधित्व करने वाली एक बेहतर राजनेता साबित होंगी।” सत्ता परिवर्तन के दौरान ट्रंप द्वारा शीर्ष स्तरीय प्रशासन के लिए चुनी गईं 44 वर्षीय हेली पहली महिला हैं। अमेरिकी प्रशासन में कैबिनेट स्तर के पद पर नियुक्त होने वाली वह पहली भारतीय अमेरिकी होंगी। दूसरा कार्यकाल संभाल रहीं हेली गवर्नर के तौर पर कारोबार और श्रम संबंधी मुद्दे पर काम कर चुकी हैं लेकिन उन्हें विदेश नीति का थोड़ा बहुत ही अनुभव है। विभिन्‍न अमेरिकी सैन्य और राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर उनका दृष्टिकोण रिपब्लिकन पार्टी की सोच के दायरे में रहा है। हेली ट्रंप प्रशासन में शामिल की जाने वाली पहली महिला और अल्पसंख्यक होंगी, जो संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की अगली राजदूत के तौर पर सामंता पावर का स्थान लेंगी। इसके अलावा वह किसी भी प्रशासन में कैबिनेट अधिकारी का दर्जा प्राप्त करने वाली पहली भारतीय अमेरिकी होंगी। कैबिनेट के पद के लिए सेनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी। हेली प्राथमिक चुनाव के दौरान ट्रंप को लेकर मुखर थीं और उन्होंने रिपब्लिकन प्राइमरी में सेनेटर मार्को रुबियो का समर्थन किया था। हालांकि, आम चुनावों के पहले उन्होंने अपना रुख बदलते हुए कहा था कि वह ट्रंप को वोट देंगी।

नोटबंदी और रुपये के दबाव में लुढ़का सेंसेक्स

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मुंबई 24 नवंबर, पूर्व प्रधानमंत्री तथा जानेमाने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के इस बयान से कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की विकास दर में दो प्रतिशत की गिरावट आयेगी तथा रुपये के ऐतिहासिक निचले स्तर तक टूट जाने से पैदा कमजोर निवेश धारणा के कारण दो दिन की तेजी खोता हुआ आज शेयर बाजार एक बार फिर गिरावट में चला गया। बीएसई का सेंसेक्स 0.74 प्रतिशत यानी 191.64 अंक फिसलकर 26 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे 25,860.17 अंक पर बंद हुआ। लगातार नौ कारोबारी दिवस में से सात में सेंसेक्स लाल निशान में बंद हुआ है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी भी 0.84 फीसदी यानी 67.80 अंक टूटकर 7,065.50 अंक पर बंद हुआ। डॉ. सिंह ने आज राज्य सभा में कहा कि एक हजार रुपये तथा 500 रुपये के पुराने नोटों को प्रतिबंधित किये जाने के बाद उत्पन्न तरलता तथा नकदी की कमी से देश की आर्थिक विकास दर दो प्रतिशत घट जायेगी। इसके अलावा नोटबंदी के बीच अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत से डॉलर के मुकाबले रुपया आज अब तक के रिकार्ड के निचले स्तर पर पहुँच गया। इससे भी शेयर बाजार पर दबाव पड़ा। बीएसई में आईटी और टेक सहित पाँच समूहों को छोड़कर शेष 15 में गिरावट रही। सबसे ज्यादा 1.45 प्रतिशत की गिरावट बैंकिंग में रही। सेंसेक्स के लुढ़कने में भी सर्वाधिक योगदान बैंकिंग कंपनियों का ही रहा। एक्सिस बैंक के शेयर ढाई फीसदी, आईसीआईसीआई बैंक के दो फीसदी तथा एचडीएफसी बैंक के डेढ़ फीसदी से ज्यादा टूटे। हालाँकि, सबसे ज्यादा 3.89 प्रतिशत की गिरावट टाटा मोटर्स में देखी गयी। मझौली तथा छोटी कंपनियों पर दिग्गज कंपनियों के मुकाबले कम दबाव रहा। बीएसई का मिडकैप 0.13 प्रतिशत तथा स्मॉलकैप 0.11 प्रतिशत फिसलकर क्रमश: 12,026.26 अंक तथा 11,792.28 अंक पर आ गया।

चीन में बिजली संयंत्र का प्लेटफार्म गिरने से 67 मरे

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बीजिंग 24 नवम्बर, चीन में आज एक निर्माणाधीन बिजली संयंत्र का प्लेटफार्म गिरने से 67 मजदूरों की मौत हो गयी, राहतकर्मी अभी भी मलबे के नीचे दबे एक मजदूर को निकालने का प्रयास कर रहे हैं। यह खबर सरकारी मीडिया ने दी है। पूर्वी प्रांत जियांगसी के फेंगचेंग विद्युत संयंत्र की दुर्घटना आज सबेरे हुई। घायल पांच मजदूरों को अस्पताल पहुंचा दिया गया है। चीन के प्रधानमंत्री ली केग्यांग ने दुर्घटना की जांच का आदेश दिया है और कहा है कि इस मामले में जवाबदेही तय की जानी चाहिए। ‘शिन्हुआ’ ने इस संंबंध में जारी समाचार में यह नहीं बताया है कि संयंत्र किस प्रकार का था। इससे पहले की रिपोर्ट में इसे कोयला आधारित संयंत्र बताया गया था।

कुंबले ने विराट पर लगे आरोपों को बताया ‘बकवास’

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मोहाली , 24 नवम्बर, भारतीय क्रिकेट टीम के कोच अनिल कुंबले ने ब्रिटिश मीडिया द्वारा टेस्ट कप्तान विराट कोहली पर गेंद के साथ छेड़छाड़ करने के लगाये गये आरोपों को गुरूवार को सिरे से बकवास करार दिया। कुंबले ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह नहीं मानते हैं कि विराट के ऊपर लग रहे गेंद के साथ छेड़छाड़ करने के आरोपों में कोई दम है। उन्होंने कहा, “सबसे पहले मैं मीडिया में प्रसारित इस तरह की खबरों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता हूं। जहां तक मेरा मानना है न ही अंपायर और न ही मैच रेफरी ने इस तरह के मामले को उठाया है। मैं इस तरह की कहानियों पर कोई राय देना पसंद नहीं करूंगा।” पूर्व लेग स्पिनर कुंबले ने कहा, “इसमें चिंता करने की काेई बात नहीं है। मीडिया जो चाहता है लोग वहीं आरोप लगा सकते हैं और लिख सकते हैं। जहां तक मुझे लगता है कि इस तरह की किसी गतिविधि में हमारा कोई खिलाड़ी शामिल है।” उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश मीडिया राजकोट में हुये पहले टेस्ट में विराट पर गेंद के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद(आईसीसी) भी इसे सिरे से खारिज कर चुकी है।

नोटबन्दी को भाजपा बना रही है चुनावी मुद्दा

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लखनऊ 24 नवम्बर, नोटबन्दी को लेकर पूरे देश में चल रहे विरोध और समर्थन के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाने जा रही है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबन्दी के फैसले के समर्थन में भाजपा ने जगह-जगह होर्डिंग्स, बैनर लगाने शुरु कर दिये हैं। नोटबन्दी के निर्णय के बाद देश के कई हिस्सों में हुए उपचुनाव से भी पार्टी उत्साहित है, इसलिए भाजपा इसे चुनावी मुद्दा बनाने की ओर तेजी से बढ रही है। भाजपा के प्रदेश कार्यालय और उसके आस पास लगाये गये होर्डिंग्स और बैनर में “काले धन पर किया प्रहार, बन्द किया नोट पांच सौ, एक हजार। संकल्प रोकने का भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचारियों को होगा बंटाधार।।” जैसे दोहे लिखे हैं। इन होर्डिंग्स और बैनरों पर प्रधानमंत्री श्री मोदी का चित्र और पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल बने हुए हैं। पार्टी के झंडे के रंग में लगे होर्डिंग्स और बैनरों में श्री मोदी को नायक के रुप में दर्शाया जा रहा है। उन्हीं बैनरों और होर्डिंग्स में नीचे “न गुण्डाराज न भ्रष्टाचार, इस बार होगी भाजपा सरकार” दोहा भी लिखा है। पार्टी उपाध्यक्ष और पार्टी मामलों के श्री मोदी के गृह प्रदेश गुजरात के प्रभारी डा़ दिनेश शर्मा का इस बाबत कहना है कि नोटबन्दी के फैसले को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है, इसलिए भी कई दलों में व्याकुलता बढी है।

कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर स्थिति तनावपूर्ण

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श्रीनगर, 24 नवंबर, जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर हालांकि पाकिस्तान की ओर से कल शाम से गोलीबारी की कोई घटना नहीं हुई है लेकिन नागरिकों में मन में खौफ है और सीमा पर तनाव बना हुया है। गुरेज के एक निवासी मोहम्मद युसुफ खान ने  बताया कि गोलीबारी के कारण लोग अभी भी काफी डरे हुए हैं और कुछ लोगों ने किशन गंगा जल विद्युत परियोजना(केजीएचपीपी) के टनल के अलावा कई सुरक्षित स्थानों में शरण ली हुई है। 22 तारीख को माचिल सेक्टर में पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी में तीन भारतीय जवान शहीद हो गए थे। पाकिस्तानी सेना ने एक जवान के शव को क्षत विक्षत कर दिया था। लगातार गोलीबारी से भयभीत सीमा के पास रिहायशी इलाकों में रहने वाले लोगों ने किसी अन्य स्थान पर अपने बेहतर पुनर्वास की मांग की है। इसी बीच, विपक्षी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस(एनसी) के कैसर जमशेद लोन ने प्रभावित ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किए जाने के अलावा उनके लिए छह महीने के मुफ्त राशन की मांग की है।
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