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आम लोगों के लिए तोहफों की बौछार, विपक्षी दलों को किया अागाह

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नयी दिल्ली 31 दिसंबर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी ने नोटबंदी के तहत बैंकों में जमा हुयी भारी धनराशि के लाभ आम लोगोें विशेषकर गरीबों, किसानों, छोटे व्यापारियों, महिलाआें, वरिष्ठ नागरिकों और मध्य वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से आज कई योजनाओं की घोषणा की और नोटबंदी के खिलाफ लामबंद विपक्षी राजनीतिक दलों को अागाह किया कि वे कालेधन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता के आक्रोश को समझें। श्री मोदी ने नोटबंदी के बाद पहली बार राष्ट्र के नाम करीब 45 मिनट के अपने संबोधन में 500 और एक हजार रुपये के पुराने नोटों को बैंकों में जमा कराये जाने और उन्हें बदले जाने के दौरान कुछ बैंककर्मियों तथा सरकारी अधिकारियों के गंभीर अपराध में शामिल होने का उल्लेख किया और कहा कि उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जायेगी। उन्होंने नोटबंदी के कारण कष्ट झेलने के लिए देशवासियों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुये कहा कि उन्होंने ‘ऐतिहासिक शुद्धि यज्ञ’ में धैर्य और संकल्प शक्ति से देश की उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला रखी है। एक हजार और 500 रुपये के नोटों को प्रचलन से हटाने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि पिछले 10-12 वर्षों से सामान्य प्रचलन में कम और समानांतर अर्थव्यवस्था में ज्यादा चल रहे थे। अर्थव्यवस्था में बेतहाशा बढ़े हुये ये नोट महँगाई तथा कालाबाजारी बढ़ा रहे थे और गरीबों से उनका अधिकार छीन रहे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घरों के निर्माण तथा खरीफ और रबी की बुवाई के लिए किसानों को कर्ज पर ब्याज में छूट, छोटे कारोबारियों एवं उद्यमियों के लिए क्रेडिट गारंटी बढ़ाने तथा गर्भवती महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष योजनाएँ शामिल हैं। उन्होंने कहा कि बैंकों में इतनी मात्रा में पैसा आ चुका है जितना अब तक कभी नहीं आया था। उन्होंने बैंकों से इसका इस्तेमाल गरीबों, निम्न मध्यम तथा मध्यम वर्ग के लोगों को केंद्र में रखकर योजनाएँ बनाने में करने की अपील की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नये साल में शहरों में घरों के निर्माण के लिए नौ लाख रुपये तक के कर्ज पर ब्याज में चार प्रतिशत तथा 12 लाख रुपये तक के कर्ज पर तीन प्रतिशत की छूट दी जायेगी। ग्रामीण इलाकों में इस योजना के तहत घरों के निर्माण का लक्ष्य 33 प्रतिशत बढ़ाने के साथ नये साल में नये घर के निर्माण या पुराने घरों के विस्तार के लिए दो लाख रुपये तक के ऋण पर सरकार ब्याज में तीन प्रतिशत की छूट देगी।

संबोधन के नाम पर मोदी पूरा कर हैं निजी एजेंडा : ममता

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कोलकाता,31 दिसम्बर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर एक बार फिर हमला करते हुए आज कहा कि राष्ट्र के नाम संबोधन की आड़ में वह अपना ‘स्वार्थी निजी एजेंडा’ पूरा कर रहे हैं ।  सुश्री बनर्जी ने ट्वीट में कहा,“ हृदयहीन, आधारहीन भाषण। एक सौ बारह से अधिक लोगों की कतारों में मृत्यु हुई, लेकिन वह उन्हें श्रद्धांजलि देना भूल गये । राष्ट्र के नाम संबोधन की आड़ में वह ले रहे हैं राजनीतिक बदला । ” उन्होंने कहा,“ मोदी बाबू कुछ कर दिखाने के लिए 50 दिन चाहते थे लेकिन वह असफल रहे । वह बुरी तरह नाकाम रहे । प्रधानमंत्री शुद्धीकरण के नाम पर देश को चला रहे हैं लेकिन उनका बुद्धिहरण हो गया है । राष्ट्र के नाम संबोधन बजट भाषण हो गया । उन्होंने कहा,“ काला धन समाप्त करने के नाम पर वित्तीय आपातकाल चल रहा है । बैंकों में धन उपलब्ध नहीं हो रहा है। समस्याओं के समाधान के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किये गये हैं। वादे टूट गये हैं, वादे धराशायी हो गये हैं । लोग भिखारी नहीं हैं । आम आदमी के वित्तीय अधिकार छीन लिये गये हैं । डिमोनीटाइजेशन समापत हुई है, डिमोदीटाइजेशन शुरू हुई है । वर्ष 2017 डिमोनीटाइजेशन के रूप में याद किया जायेगा ।” 

सुश्री बनर्जी ने कहा कि नोटबंदी से संबंधित आंकड़ें कहा हैं ? कितना काला धन बरामद किया गया? 50 दिनों की अत्यंत कष्टदायी पीड़ा के बाद राष्ट्र को क्या हासिल हुआ? उन्होंने श्री मोदी के आज रात राष्ट्र के नाम संबोधन का जिक्र करते हुए कहा,“ प्रधानमंत्री कालेधन और नोटबंदी के वास्तविक एजेंडे से हट गये हैं और उन्होंने वित्त मंत्री का पद संभाल लिया और बजट पूर्व भाषण दे डाला।” तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने कहा,“ तो वित्त मंत्री अग्रिम बजट भाषण से चूक गये ,इसे मोदी ने पूरा कर दिया । मोदी बाबू खाली खोखे ज्यादा आवाज करते हैं ।” गौरतलब है कि श्री मोदी ने नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने के बाद आज रात राष्ट्र के नाम संबोधन में महिलाओं,बुजुर्गों, किसानों ,व्यापारियों आदि के लिए कई योजनाओं की घोषणा की है । 

मोदी का भाषण प्रभावहीन , दिशाहीन और उत्साहहीन : लालू

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पटना 31 दिसम्बर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आज शाम राष्ट्र के नाम दिये संदेश को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भावहीन एवं प्रभावहीन बताया और कहा कि प्रधानमंत्री के भाषण से साफ हो गया है कि उन्होंने भी नोटबंदी को असफल मान लिया है। श्री यादव ने प्रधानमंत्री के संबोधन पर प्रतिक्रिया देते हुए एक के एक कई ट्वीट कर उनपर जमकर निशाना साधते हुए लिखा ,“ देश सोमवार से फिर लाइन में लगेगा। नववर्ष की संध्या पर इतना भाव-हीन , प्रभाव-हीन और उत्साह-हीन ,घुटनों के बल रेंगता हुआ प्री बजट भाषण। सैंकड़ों लोगों की जान एवं 25 करोड़ लोगों की नौकरी खाने के बाद भी संवेदनहीन एवं हृदयहीन ‘ट्विटर राजा’ ने एक शब्द अफ़सोस का भी नहीं कहा।” राजद सुप्रीमों ने प्रधानमंत्री को चुनौती देते हुए पूछा कि इस शुद्धि यज्ञ में गरीबों की बलि चढ़ाने का अधिकार आपको किसने दिया है। बलिदान, त्याग इत्यादि कथा और परमार्थ की बातें अपने अमीर मित्रों को सुनाकर देखों। उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री का आज का उबाऊ भाषण सबूत है कि उन्होंने भी नोटबन्दी को असफल मान लिया है इसलिए उसका कहीं कोई जिक्र नहीं किया। यदि नोटबंदी से एक भी उपलब्धि होती तो पीट-पीट कर ढोल फाड़ देते। प्रधानमंत्री का देश को सरेआम गुमराह करना शुभ संकेत नही है, ऐसे में प्रधानमंत्री पदपर कोई भरोसा नहीं करेगा 

मोदी ने काले धन के खुलासे का नहीं किया जिक्र : विपक्ष

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नयी दिल्ली, 31 दिसम्बर, विपक्षी दलों ने नोटबंदी के बाद काले धन के खुलासे की राशि का राष्ट्र के नाम संबोधन में कोई उल्लेख न करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आज कड़ी आलोचना की । नववर्ष की पूर्व संध्या पर श्री मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पिछले 50 दिनों में काले धन की कितती राशि का खुलासा हुआ, इसका कोई जिक्र नहीं किया है । श्री सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा, “लोग जानना चाहते हैं कि पिछले 50 दिनों में कितने लाख करोड़ रुपये के काले धन का खुलासा हुआ । आपने(श्री मोदी ने) इस बारे में कुछ क्यों नहीं कहा?” कांग्रेस नेता ने कहा कि नोटबंदी के 50 दिन बीत जाने के बावजूद सरकार बैंकों और एटीएम से धन निकासी की सीमा हटा पाने में नाकाम रही है । उन्होंने कहा, “मैं सरकार से धन निकासी की सीमा हटा लेने का फिर आग्रह करता हूं ।”

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी श्री मोदी के संबोधन की आलाेचना की है। उन्होंने ट्वीट किया, “ डिमोनीटाइजेशन(विमुद्रीकरण) का अंत हुआ और डिमोदीटाइजेशन की शुरुआत हुई।” एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा,“ नोटबंदी के बारे में आंकड़े कहां हैं ? काले धन की कितनी राशि बरामद की गयी? पचास दिनों की अत्यंत कष्टदायी पीड़ा के बाद राष्ट्र ने क्या हासिल किया ?” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के संबोधन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, “ मोदी ने देश के लोगों को धोखा दिया है। काले धन का एक भी पैसा नहीं पकड़ा गया। लोगों का उन पर विश्वास नहीं रहा ।” उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा कि जनता अब श्री मोदी की बातों पर भरोसा नहीं करती । श्री मोदी की अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मजाक उड़ायी जाने लगी है । गौरतलब है कि श्री मोदी ने नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने के बाद आज रात राष्ट्र के नाम संबोधन में महिलाओं, बुजुर्गों,किसानों,व्यापारियों आदि के लिए कई योजनाओं की घोषणा की । 

सामयिकी : क्या नोटबंदी के बाद अब ससुरा बजट ही लीक हो गया है?

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  • सोना उछला,शेयर बाजार चढ़ गया है।क्या फिर कुछ लीक हुआ है?
  • कुछ और सनसनीखेज हंगामा की तैयारी है?क्या मुनाफावसूली का पुरजोर भरोसा है?
  • टैक्स सुधार?कारपोरेट कंपनियों को 46 लाख करोड़ का टैक्स माफ,टैक्स का सारा बोझ आम जनता पर
  • कालाधन सारा निकल गया,बेनामी भी हुआ हलाल और अब पूंजी बाजार का अबाध विस्तार।


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सोना उछला,शेयर बाजार भी चढ़ गया है।नोटबंदी के पचास दिन पूरे होने में अब सिर्फ तीन दिन बाकी है।आम जनता को कोई राहत अभी मिली नहीं है।कैशलैस डिजिटल  इंडिया में राजकाज के राजधर्म के मुताबिक कैश गायब है।छापे में सौ करोड़ मिलने के दावे के बावजूद मायावती गुर्रा रही हैं।गुजरात में पांच सौ करोड़ के केसरिया घोटाला भी उजागर है।इस पर तुर्रा यह कि छापे से बिना डरे ममता बनर्जी और राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगा है।आगे 30 दिसंबर से बेनामी संपत्ति के खिलाफ गाना बजाना है।फिर भी पूंजी बाजार बम बम है।पूंजी बाजार के विस्तार और कारपोरेट टैक्स में कमी के साथ सबके लिए समान लेनदेन टैक्स की तैयारी है।सीधे तौर पर कारपोरेट पूंजी के लिए टैक्स होलीडे हैं।

 क्या कुछ लीक हुआ है?
क्या ससुरा बजट ही लीक हो गया है?

गौर करें कि सोने में  जारी गिरावट थम गई है। राष्ट्रीय राजधानी सर्राफा बाजार में आज सोना 11 माह के निम्न स्तर से उबरता हुआ 475 रुपये की तेजी के साथ 28,025 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। औद्योगिक इकाइयों की उठान बढ़ने के कारण चांदी भी 550 रुपये की तेजी के साथ 39,150 रुपये प्रति किलो पर बंद हुई। विदेशी पूंजी के निकल जाना भारत के शेयर बाजार के टूटने एवं रुपए के नरम पड़ने का यह प्रमुख कारण है।रुपया गिरता जा रहा है। नोटबंदी परिदृश्य में दो अरब डालर विदेशी पूंजी बाजार से निकल गयी है।फिर भी शेयर बाजार बगुला भगतों की ऐने पहले अचानक बम बम है।
माजरा क्या है? 

2006 से लेकर 2014 तक 36.5 लाख करोड़ रुपये बजट के जरिये टैक्स माफी कारपोरेट कंपनियों को दी जा चुकी है,जो अब करीब 46 लाख करोड़ की टैक्स माफी कुल होने को है।
मशहूर पत्रकार पी साईनाथ ने इसका पूरा लेखा जोखा पेश किया हुआ हैः

It was business as usual in 2013-14. Business with a capital B. This year’s budget document says we gave away another Rs. 5.32 lakh crores to the corporate needy and the under-nourished rich in that year.  Well, it says Rs. 5.72 lakh crores  but I’m  leaving out the Rs. 40 K crore foregone on personal income tax since that write-off benefits a wider group of people. The rest is mostly about a feeding frenzy at the corporate trough. And, of course, that of other well-off people. The major write-offs come in direct corporate income tax, customs and excise duties. If you think sparing the super-rich  taxes and duties worth Rs. 5.32 lakh crores  is  a trifle excessive, think again.  The amount we’ve written off for them since 2005-06 under the very same heads is well over Rs. 36.5  lakh crore.  (A sixth of that in just corporate income tax). That’s  Rs. 36500000000000 wiped  off for the big boys in nine years.  .


बैंकों को लगा चूना अलग किस्सा है।गौरतलब है कि भारतीय कॉरपोरेट ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से 11 लाख करोड से भी अधिक कर्ज लिए, जिनका उन्होंने भुगतान नहीं किया। उनसे वसूली के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया। बल्कि सरकार ने गत दो वर्षों में 1.12 लाख करोड की रकम माफ कर दी। गौरतलब है कि राज्यसभा में जनता दल युनाइटेड के एक सदस्य ने देश में कार्पोरेट घरानों पर सरकारी के बैंकों का 5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज होने का दावा किया और खास तौर पर अदाणी समूह का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि कंपनी पर ‘‘अकल्पनीय कृपा’’ की गई तथा उसका कर्ज 72,000 करोड़ रूपये है। वर्मा ने चिंता जताते हुए कहा ‘‘मैं सरकार से जवाब चाहता हूं कि क्या उसे इसकी जानकारी है या नहीं. अगर उसे इसकी जानकारी है तो वह क्या कर रही है। एक कंपनी पर इतना कर्ज बकाया है जितना देश में कुल किसानों पर बकाया है। हम किसी राजनीतिक दल के पक्ष में नहीं हैं। न हम कोई राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। हम बुनियादी तौर पर जनता के हक में हैं। कालाधन चाहे किसी का हो ,हर हाल में निकलना चाहिए।बेनामी संपत्ति भी सीधे जब्त हो जानी चाहिए। क्या नोटबंदी के बाद ऐसा कुछ भी हुआ है? 

मायावती,ममता बनर्जी,सोनिया गांधी किसी के खिलाफ भी पीएमओ को खुफिया जानकारी हो तो उनके ठिकानों पर तुरंत छापेमारी कर दी जाये।जाहिर है कि यह राष्ट्रहित में भी है।सेना आधा सेना कुछ भी लगा लें,लेकिन बिना भेदभाव तमिलनाडु और दिल्ली में जैसे छापे पड़े,वैसे छापे देश भर में हर राजनेता के यहां पड़े तो आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता।लेकिन संघ परिवार और भाजपा के कालेधन का क्या होगा? यूपी चुनाव के लिए जो केसरिया आसमान से नोटों की वर्षा हुई है,जो पार्टी फंड में जमा है और धर्मस्थलों में भी जमा जखीरा  है,जो सत्ता संप्रदाय की अचल सचल संपत्तियां हैं,उनका क्या होगा?

यह भी साफ कर दिया जाये कि हम राहुल गांधी या ममता बनर्जी की तरह नोटबंदी में फेल प्रधानमंत्री से इस्तीफा नहीं मांगने जा रहे हैं।चेहरा बदलने से व्यवस्था नहीं बदलती।फिर अराजकता से नई व्यवस्था भी नहीं बनती है। हम अगर संघ परिवार की राजनीति का समर्थन नहीं कर रहे हैं,तो उसी राजनीति के दूसरे रंगबिरंगे झंडेवरदारों का भी हम हर्गिज समर्थन नहीं कर रहे हैं। कालाधन सारा निकल गया, बेनामी भी हुआ हलाल और  अब पूंजी बाजार का अबाध विस्तार।दरअसल पूंजी बाजार के विस्तार लिए ही  नोटबंदी  का कैशलैश डिजिटल इंडिया एजंडा है।उसीके लिए हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का यह फंडा है।यानी पूंजी बाजार में दांव लगाने के लिए हर नागरिक को मजबूर कर देने की यह आधार योजना है।यानी एक झटके से सारी जनता को शेयर बाजार में झोंक देने का करतब है यह। जाहिर है कि इस कारपोरेट मुक्तबाजार के खिलाफ कारपोरेट चंदे से चलने वाली राजनीति सर के बल खड़ी नहीं हो सकती। इसलिए किसी भी राजनीतिक खेमे यूं कहिये राजनीतिक वर्ग के हम समर्थक नहीं क्योंकि उनकी राजनीतिक लामबंदी आम जनता के खिलाफ है।  नोटबंदी का मकसद नस्ली कारपोरेट वर्चस्व है,यह हम सिरे से लिख रहे हैं। पूंजी बाजार के विस्तार की योजना से साफ जाहिर है कि आर्थिक तौर पर असंभव कालाधन के खिलाफ नोटबंदी अभियान कैशलैस सोसाइटी के जरिए इसी योजना को अंजाम पहुंचाने की कवायद है,जिसका हम पुरजोर विरोध करते हैं।

पेटीएमप्रधानमंत्री के मुंबई के शनिवार के भाषण के बाद पूंजी बाजार की बेचैनी को शांत करने के लिए वित्त मंत्री ने रविवार को स्पष्ट किया कि शेयरों की खरीद-फरोख्त में दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ पर कर लगाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। गौरतलब है कि निवेशकों के लिए पूंजीगत लाभ का मुद्दा बहुत ही संवेदनशील है। प्रधानमंत्री शनिवार के उस भाषण के आधार पर यह अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि उन्होंने पूंजी बाजार पर कर बढ़ाने का संकेत दिया है।जिसका जेटली ने सिरे से खंडन कर दिया है। नोटबंदी के लिए राष्ट्र के नाम संबोधन लीक हो जाने से सारा कालाधन सफेद हो गया और पचास दिन पूरे होने को तीन ही दिन बचे हैं,फिर भी काला धन के नाम चूंंचूं का मुरब्बा कैशलैस डिजिटल इंडिया हासिल हुआ है। सुनहले दिनों के नाम पर पेटीएम तबाह हो रहे कारोबारियों में से पूरे पांच करोड़ को कैशलैस लेनदेन के गुर सिखायेगा तो खबर है कि मारे जाते किसानों में जान फूंकने के लिए उन्हें तोहफे बतौर स्मार्टफोन भारी पैमाने पर दिये जायेंगे। पच्चास दिन यानी सिल्वर जुबिली कह सकते हैं नोटबंदी कि और जाहिर है कि जब्बर जश्न की तैयारी है और अब बेनामी बेनामी वृंदगान के साथ मस्त मेंहदी संगीत कार्यक्रम है।नये साल का समां हैं और सारे सितारे फिलवक्त स्वयंसेवक हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वर्ष के आखिरी दौर में भारतीय पूंजी बाजारों से करीब दो अरब डालर की पूंजी निकाल ली जिसका डॉलर-रुपए की विनिमय दर पर काफी असर पड़ा। फिरभी शेयर बाजार बम बम है।

क्या फिर कुछ लीक हुआ है?
कुछ और सनसनीखेज हंगामा की तैयारी है?
क्या मुनाफा वसूली का पुरजोर भरोसा है?
क्या कारपोरेट टैक्स में कटौती का फैसला हो चुका है?
कालाधन सारा निकार दियो,बैनामी पर चढ़ाई की तैयारी है और शेयर बाजार बांसों उछल रिया हौ।माजरा अतिशय गंभीर है?
क्या नोटबंदी के बाद अब ससुरा बजट ही लीक हो गया है?

मसलन सरकारी बैंकों के लिए अच्छी खबर है। सरकार इन बैंकों को ज्यादा पूंजी दे सकती है। नोटबंदी के बाद सरकार बैंकों को ज्यादा पूंजी देने पर विचार कर रही है। चालू साल में अब तक सरकारी बैंकों को 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी मिल चुकी है।यह सारा धन विदेशी सरकारी उपक्रमों के विनिवेश  या फिर कारपोरेट कंपनियों को कर्ज माफी बतौर खप सकता है। बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स 406 अंक यानि 1.5 फीसदी से ज्यादा की मजबूती के साथ 26,213 के स्तर पर बंद हुआ है। वहीं एनएसई का 50 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स निफ्टी 125 अंक यानि 1.5 फीसदी से ज्यादा की तेजी के साथ 8,033 के स्तर पर बंद हुआ है।आज के कारोबार में दिग्गज शेयरों में आईटीसी, बॉश, टाटा स्टील, अरविंदो फार्मा, टाटा मोटर्स डीवीआर, अदानी पोर्ट्स, आईसीआईसीआई बैंक और ल्यूपिन 4-2.1 फीसदी तक उछलकर बंद हुए हैं। हालांकि दिग्गज शेयरों में गेल 1 फीसदी और ग्रासिम 0.4 फीसदी तक गिरकर बंद हुए हैं। पेटीएमपीएम ने लाटरी आयोग के झोले छाप बगुलाभगतों के साथ मिलकर नोटबंदी को अंजाम दिया है और उन्हीं बगुला भगतों की बैठक से पहले शेयर बाजार पूरे चारसौ अंक पार कर गया। शेयर बाजार चढ़ गया है।क्या फिर कुछ लीक हुआ है?कुछ और सनसनीखेज हंगामा की तैयारी है?क्या मुनाफावसूली का पुरजोर भरोसा है? 

गौरतलब है कि  बैठक में 15 आमंत्रित सदस्य हैं जो प्रधानमंत्री के समक्ष अपनी बात रखेंगे।’ रिजर्व बैंक और विभिन्न बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा चालू वित्त वर्ष के लिये वृद्धि के अनुमान को कम किये जाने के लिहाज से यह बैठक महत्वपूर्ण है।  रिजर्व बैंक ने इस महीने की शुरुआत में मौद्रिक नीति समीक्षा में आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 7.6% से घटाकर 7.1% कर दिया है।वहीं बहुपक्षीय एजेंसी एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने भी नोटबंदी की आर्थिक गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए वृद्धि के अनुमान को कम कर 7.0% कर दिया जबकि पहले उसने 7.4% वृद्धि का अनुमान लगाया था। वित्त वर्ष 2016-17 की पहली और दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर क्रमश: 7.1% तथा 7.3% रही।  प्रधानमंत्री डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये नीति आयोग की लकी ग्राहक योजना तथा डिजिधन व्यापार योजना जैसी पहल का भी जायजा लेंगे। इन योजनाओं पर व्यय (14 अप्रैल 2017) 340 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। खबरों के मुताबिक कंपनियों ने मौजूदा वर्ष में अपने कारोबार के लिए पूंजी जरूरत के लिए बाजार सै पैसा जुटाने को तरजीह दी और लगभग 6.3 लाख करोड़ रुपए जुटाए। शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति के बीच पूंजी जुटाने के लिहाज से बॉन्ड उनके लिए पसंदीदा माध्यम रहा। यह भी पढ़ें: सेंसेक्स की टॉप 10 में से सात कंपनियों का मार्केट कैप 44,928 करोड़ रुपए घटा, एसबीआई को हुआ सबसे अधिक नुकसान

विशेषज्ञों का मानना है कि ब्याज दर में कमी, बैंकों में अधिशेष नकदी और बॉन्ड जारी करने के लिए आसान नियामकीय माहौल के मद्देनजर कंपनियां नये साल में भी बाजार से पैसा जुटाने के लिए शेयर बाजारों के बजाए बांड मार्ग को तरजीह देंगी।

नोटबंदी के कारण शेयर बाजारों में धारणा कमजोर हुई है और विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रवृत्ति कम-से-कम 2017 के शुरूआत में तो बनी रहेगी। कंपनियों ने वर्ष 2015 में भी इतनी ही राशि जुटाई और ज्यादातर राशि बॉन्ड बाजार से ही जुटाई गई थी। शेयर बाजार से नई पूंजी का संग्रह 2016 में करीब 80,000 करोड़ रुपए रहा। इसमें से अधिकतर राशि प्रवर्तकों को तरजीही शेयर आबंटन और आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के जरिए जुटाई गई। ये कोष मुख्य रूप से व्यापार योजनाओं के विस्तार, ऋण के भुगतान और कार्यशील पूंजी जरूरतों के लिए जुटाए गए।

बजाज कैपिटल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा निवेश विश्लेषण प्रमुख आलोक अग्रवाल ने कहा, बॉन्ड जारी करने के लिए ब्याज दर में कमी, बैंकों में अधिशेष पूंजी और पहले से आसान नियामकीय व्यवस्था को देखते हुए कंपनियां 2017 में पूंजी जुटाने के लिए बॉन्ड को तरजीह दे सकती हैं।



पलाश विश्वास

आलेख : ‘डिजिटल इंडिया‘ के उम्मींदों को पंख लगायेंगा ‘2017‘

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वर्ष 2016 को अलविदा कह अब हम नए वर्ष 2017 में प्रवेश कर रहे हैं। आने वाले वर्ष में देश के आगे कई सपने हैं, जिन्हें पूरा करना है। लाखों आशाओं और उम्मीदों पर खड़ा उतरना है। देशवासी एक बेहतरीन वर्ष की कामना कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि नोटबंदी के बाद क्या देश से कालाधन खत्म होगा? क्या भ्रष्टाचार पर नकेल कसा जा सकेगी? क्या 2017 में कैशलेस के बीच डिजिटल हो जायेंगी इंडिया? हो जो भी, लेकिन जिस तरह तरह तमाम खामियों के बीच कुछ भ्रष्टाचारी बैंकिंग सिस्टम को ही खरीदकर अपने कालाधन को सफेद करने में सफल हुए है, वह अब मोदी के शिकंजे में फंसते नजर आ रहे है। तो इससे आमजनमानस में उम्मींद जगी है कि नया साल जरुर बेहतर होगा। डिजिटल इंडिया के उम्मींदों को पंख लगायेगा ‘2017‘ और नए साल का बजट गरीबों के लिए कल्याणकारी होगा 




2017-digital-india
बेशक, नई उम्मीदों व जज्बातों को साथ लिए एक नया साल सामने है। यह वक्त है आगे बढ़ने के लिए कुछ नया सोचने का। बढ़ना और बढ़ते जाना ब्रह्मांड का मूल स्वभाव है। लोगों की कामनाएं जितनी बढ़ती है संसार भी उतना ही बढ़ता है। इसीलिए तो भारतीय परंपरा में कल्पवृक्ष की कल्पना है! एक ऐसा वृक्ष, जिससे जो मांगों मिलेगा! लोग जब नएं साल का जश्न मनाते है, उम्मीदों की कल्पना करते है, एक सुनहरे का भविष्य का सपना सजोते है, तो अपने लिए वो एक कल्पवृक्ष तो खड़ा करते है। मतलब साफ है नएं संकल्पों के साथ तरक्की का बीज बोते हुए यह कल्पना होनी चाहिए कि पुरानी गलतियों को भूल-भालकर नयी सोच के बीच हम समाज में शांति व सौहार्द का ताना-बाना बनाएं रखेंगे बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता में एकता को बढ़ाने की कारगर भूमिका भी अदा करेंगे। कुछ इन्हीं भावनाओं व विचारों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए नोटबंदी का फैसला लिया गया है। इस फैसले से जिस तरह तमाम खामियों के बाद कुछ भ्रष्टाचारी बैंकिंग सिस्टम को ही खरीदकर अपने कालाधन को सफेद करने में सफल हुए है, वह अब मोदी के शिकंजे में फंसते नजर आ रहे है। इससे आमजनमानस में उम्मींद जगी है कि नया साल जरुर बेहतर होगा। यानी भ्रष्टाचार की काली रात के बाद नए साल की उजली सुबह कुछ इस तरह हो कि हर कोई ईमानदारी की हवा में सांस ले सकें। अर्थात् वर्ष 2017 में भारत भ्रष्टाचारमुक्त हो। खाद्य पदार्थ, ईंधन के दाम नियंत्रण में हों, ताकि सभी एक बेहतर जीवन जी सकें। सभी को रोजगार मिले और किसानों को बेहतर सुविधाएं दी जाएं। नए साल का बजट गरीबों के लिए कल्याणकारी हो। बजट में ऐसे प्राविधान हो जिसमें हर गरीब का सपना पूरा हो सके। हर सख्श के जीवन में नई उमंग और नई खुशियां लेकर आएं। हर परिवार के घर में सुख और समृद्धि का वास हो। नकारात्मक ऊर्जा को घर से दूर हो। नोटबंदी से जूझ रहे देश को कैश की किल्लत से निजात मिलें। अर्थव्यवस्था, रोजगार आदि में नयी संभावनाओं के साथ महिलाओं, किसानों, युवाओं समेत विभिन्न वर्गों की विशेष आशाएं भी हैं। 

नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक के घटनाक्रम के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का नया सेहत कार्ड भी सामने आएगा। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ के साथ दुनिया के तमाम देशों के बीच आपसी रिश्तों की नई परिभाषा लिखी जा सकती है। खासकर, नए साल में ‘लोकपाल‘ का आना तय है। माना जा रहा है कि बजट सत्र के दौरान लोकपाल कानून में जरूरी संशोधन कराकर मार्च या अप्रैल में केंद्र में लोकपाल का गठन कर लिया जाएंगा। इससे वरिष्ठ अधिकारियों और बड़े मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत सीधे लोकपाल तक पहुंचेगी और इसकी जांच में सरकार की कोई दखलअंदाजी नहीं होगी। जाहिर है 2017 में बेनामी संपत्ति कानून और लोकपाल भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई को नई धार देगा। इसके अलावा भ्रष्टाचारियों की चालाकी भांप चुकी मोदी सरकार ने उनके खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए 28 वर्षो से ठंडे बस्ते में पड़े बेनामी संपत्ति कानून को बाहर निकाल लिया है। मोदी ने खुद कहा कि इस कानून को अधिक धारदार बनाया गया है, जो काले धन वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करेगा। कहा जा सकता है साल 2016 को भ्रष्टाचार के खिलाफ अब तक के सबसे बड़े जंग के आगाज के लिए याद किया जाएगा। लेकिन इस जंग की असली दशा और दिशा 2017 में ही तय होगी। बता दें, नोटबंदी योजना अपनी तय रूपरेखा के अनुसार सफल रही तो इसके परिणाम लंबी अवधि में भारत के हित में देखने को मिलेंगे। बहरहाल इसका एक अच्छा प्रभाव कैशलेस लेन-देन के रूप में अभी से देखा जाने लगा है। लोग जरूरी वस्तुओं की खरीदारी और अन्य लेन-देन के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम को अपना रहे हैं। बहुत संभव है कि नकदी की यह अस्थायी किल्लत आगे भी बनी रहेगी। ऐसे में आने वाले दिनों में और लोग भी सुरक्षित, सुगम और दक्ष इलेक्ट्रानिक लेन-देन को तवज्जो दे सकते हैं। ऐसा हुआ तो यह देश के विकास और भ्रष्टाचार पर अंकुश की दिशा में एक बड़ा क्रांतिकरी कदम होगा। 

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भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए आज वैध डिजिटल मुद्रा की सख्त दरकार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत की अर्थव्यवस्था में डिजिटल मुद्रा को पेश करने से आर्थिक और सामाजिक स्तर पर कई तरह के लाभ होंगे। इसके अलावा वित्तीय समावेशन और पारदर्शिता भी आएगी। यदि भारत डिजिटल मुद्रा को अपनाता है तो उसे स्वयं को वैश्विक अगुआ के तौर पर स्थापित करने और वैश्विक मंच पर एक नए प्रतिमान गढ़ने में मदद मिलेगी। इसका अपना मूल्य और पहचान होगी तथा इसके इस्तेमाल के लिए बस एक मोबाइल फोन की आवश्यकता होगी। प्रत्येक आधिकारिक डिजिटल मुद्रा एक विशिष्ट संख्या के साथ आएगी, जिससे नकली मुद्रा की समस्या का भी समाधान हो जाएगा। भुगतान प्रणाली में इस तरह की पारदर्शिता आने से देश में बेहिसाब संपत्ति या काले धन की अर्थव्यवस्था पर भी सख्त नियंत्रण होगा। यह सीधे तौर पर कालाबाजारी और काले धन की निगरानी की व्यवस्था को पुख्ता बनाएगा, जो प्रधानमंत्री के विमुद्रीकरण के फैसले का एक मुख्य मकसद है। कैशलेस व्यवस्था आर्थिक विकास, पारदर्शिता और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के साथ-साथ काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म कर भारत को सशक्त राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा कर देगी। 

यहां जिक्र करना जरुरी है कि आम लोगों ने सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए जैसे धैर्य का परिचय दिया वह सराहनीय भी है और एक मिसाल भी। ऐसा बहुत कम होता है कि आम लोग कष्ट उठाने के बाद भी सरकार के किसी फैसले का समर्थन करें। इस समर्थन ने सरकार पर आम लोगों के भरोसे की पुष्टि ही की। सरकार के समक्ष इस भरोसे को बनाए रखने की चुनौती है। उसे इस चुनौती से पार पाना ही होगा। यह राहतकारी है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने नए नोटों की आपूर्ति बढ़ाने जाने का आश्वासन देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था और जीडीपी वृद्धि पर उतना प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता दिख रहा है जितना कि आलोचकों की ओर आंका जा रहा था। उनकी ओर से कर संग्रह और रबी की फसल में वृद्धि के जो आंकड़े पेश किए गए वे भी आम जनता को राहत प्रदान करने वाले हैं। उन्होंने यह तो माना कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां प्रतिकूल असर पड़ सकता है, लेकिन वह थोड़े समय के लिए ही होगा। यदि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले कुछ माह में अर्थव्यवस्था की बेहतर तस्वीर नजर आएगी तो इससे शुभ संकेत और कुछ नहीं हो सकता। सरकार को हर स्तर पर ऐसे कदम तत्परता से उठाने चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था न केवल पहले से मजबूत हो, बल्कि काले धन के असर से भी मुक्त हो। फिरहाल, काले धन के नए सिरे से पैदा होने की जो आशंका बार-बार जताई जा रही है उसे लेकर सरकार को खास तौर पर सतर्क रहना होगा। इस सबके साथ ही यह माना जा रहा है कि आगामी बजट में कई ऐसे उपाय किए जाएंगे जो आम जनता को राहत देने वाले होंगे। ऐसे कदम उठाए जाना समय की मांग है, लेकिन इस क्रम में जो भी कदम उठाए जाएं वे ऐसे हों जिनसे जनता को राहत मिलने के साथ ही महसूस भी हो। यही वह उपाय है जिसके जरिये जन समर्थन को बनाए रखा जा सकता है और साथ ही विपक्ष की चीख-पुकार को शांत किया जा सकता है।  

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डिजिटल पेमेंट की बल्ले-बल्ले 
नए साल में लोगों को कैश की किल्लत दूर होने की उम्मीद है। क्योंकि नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट की बल्ले-बल्ले है। सबसे ज्यादा डिजिटल लेनदेन सामान्य फोन के जरिए इस्तेमाल से हुआ है। नोटबंदी के बाद से सरकार लगातार डिजिटल यानी कैशलेस पेमेंट को बढ़ावा देने की बात कर रही है। डिजिटल लेन-देन पर इनाम और डिस्काउंट भी दिए जा रहे हैं। अब इनके नतीजे भी दिखने लगे हैं। सूचना और तकनीक मंत्रालय के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 8 नवम्बर से पहले क्रेडिट या डेबिट कार्ड के जरिए प्वाइंट ऑफ सेल्स मशीन यानी स्वाइप मशीन पर औसतन हर दिन 1221 करोड़ रुपये का लेन-देन होता था। बीते 26 दिसंबर को ये लेनदेन बढ़कर 1 हजार 751 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यानी इसमे 43 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसी तरह ई-वॉलेट पर औसत लेन-देन 88 करोड रुपये था जो अब 293 करोड़ रुपये पर आ गया। यानी इसमे 233 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं रुपे कार्ड पर औसत लेन-देन 621 फीसदी बढ़कर 39 करोड़ रुपये से 282 करोड़ रुपये पर पहुंचा। सबसे ज्यादा हैरान करने वाले आंकड़े मोबाइल तकनीक से लेन-देन का है, जो 1 लाख रुपये से 67 लाख रुपये पर पहुंच गया। यानी इसके इस्तेमाल में तो 5014 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ध्यान देने की बात ये है कि मोबाइल तकनीक का इस्तेमाल साधारण फोन पर होता है। सरकार ने डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा दुकानदारों तक पहुंचाने के लिए नई मुहिम भी शुरु की है। व्यापारी संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के साथ मिलकर 1 हजार छोटे-बड़े शहरों में 1 करोड़ से ज्यादा व्यापारियों को डिजिटल माध्यम में लेन-देन की ट्रेनिंग दी जाएगी। 

क्या होगा 2017 के बजट में मोदी सरकार का तोहफा 
नोटबंदी के 50 दिन बस पूरे हो चुके हैं। जाहिर है कि पीएम मोदी द्वारा देश की जनता से मांगी गई 50 दिनों की मोहलत भी खत्म हो गयी है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्र सरकार देश में कालाधन रोकने और देश की अर्थव्यवस्था को आगे की ओर बढ़ाने के लिए क्या-क्या प्रयास कर रहे हैं। यह फरवरी 2017 के तीसरे बजट में दिखने लगेगा। इस बार रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जाएगा बल्कि वह आम बजट का ही हिस्सा होगा। बजट में चुनावों की छाप भी नजर आने की उम्मीद है इसलिए केन्द्र सरकार बजट पर आम आदमी को कई सौगाते दे सकती है। इस बार के बजट में किसानों के साथ मध्यमवर्गीय लोगों को भी सौगात दे सकती है। 

इनकम टैक्स में छूट  
नोटबंदी से देश में कालेधन के खिलाफ बड़ा कदम उठाने के बाद अब लोगों को 2017-18 के इनकम टैक्स में रियायत दे सकती है। अगर सरकार आम बजट में ऐसा कोई फैसला लेती है तो इससे मध्यवर्ग को बहुत राहत मिलगी। हालांकि वित्तमंत्री अरुण जेटली पहले ही इस ओर इशारा कर चुके हैं। 

घट सकती है होम लोन की दरें 
आम बजट में होम लोन की दरों को घटा सकती है। होम लोन की ब्याज दर 5 से 6 फीसदी तक घटा सकती है। साल 2015 में मोदी सरकार ने जब पहला बजट पेश किया था तो उन्होंने सस्ते घरों के प्रावधान की घोषणा की थी। सरकार की घोषणा के बाद मंदी आई  जिसके बाद बिल्डरों ने इसमें कोई रूचि नहीं दिखाई। 

सस्ते हो सकती हैं टूव्हीलर और कार 
नोटबंदी के फैसले से बुरा प्रभाव ऑटो इंडस्ट्री पर पड़ा है। नवंबर महीने में नोटबंदी के फैसले के बाद से टूव्हीलर, छोटी कारों और कमर्शियल वाहनों की बिक्री में 10 फीसदी की गिरावट आई। आगामी बजट में ऑटो सेक्टर को अपनी बिक्री बढ़ाने का मौका देते हुए सरकार इन 2 पहिया वाहन और छोटी कार के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में दौड़ने वाले कॉमर्शियल वाहनों की कीमत में बड़ी कटौती का ऐलान हो सकता है। 

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मजबूत होगा मनरेगा 
नोटबंदी के फैसले के बाद गरीबी रेखा के  नीचे रहने वाले लोगों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उनके रोजगार के साधन कम हो गए। इतना ही नहीं काम न होने के वजह से वह शहर छोड़कर अपने गांव चले गए। आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि बेरोजगारी कुछ समय के लिए बड़ा संकट बन सकती है। लिहाजा, केन्द्र सरकार आगामी बजट में मनरेगा को मजबूत करने के लिए बड़ी रकम आवंटित कर सकती है। इस कार्यक्रम के तहत मजदूरों से काम कराकर उनके जनधन खातों में मेहनताना देकर निचले तबको को कैशलेस इकोनॉमी से जोड़ने की कोशिश की जा सकती है। 

बेनामी संपत्ति कानून
नोटबंदी के बाद अब बेनामी संपत्ति के खिलाफ कड़े कदम उठाएं जायेंगे। आगामी बजट में एग्रीकल्चरल लैंड को आधार कार्ड से जोड़ने की घोषणा की जा सकती है। इतना ही नहीं देश में अचल संपत्ति को पैन कार्ड से जोड़ने का प्रावधान भी बजट के जरिए घोषित किया जा सकता है। वहीं इन फैसलों से सरकार के रेवेन्यू में होने वाले इजाफों से नए लोकलुभावन कार्यक्रमों को चलाया जा सकता है।

2016 की उपलब्धियां 
2016 में भारत ने ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन किया, परमाणु उर्जा को लेकर आपत्ति जताने वाले जापान के साथ असैन्य परमाणु करार हुआ और परमाणु क्षति पूरक मुआवजा संधि को भी अनुमोदित कर दिया गया। विश्व में तीसरे सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक भारत ने इस साल दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की 147वीं जयंती के मौके पर ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन कर दिया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भारत के जलवायु नेतत्व की प्रशंसा करते हुए कहा, सभी भारतीयों को धन्यवाद। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच वार्ता के बाद 11 नवंबर को भारत और जापान ने असैन्य परमाणु उर्जा को लेकर एक ऐतिहासिक करार पर हस्ताक्षर किए। इस करार से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और सुरक्षा संबंधों में गति लाने और जापानी कंपनियों को भारत में परमाणु संयंत्र लगाने में सहायता मिलेगी। विवादित परमाणु दायित्व मुददे को समाप्त करने और आपूर्तिकताओं की चिंताएं शांत करने के उददेश्य से एक महत्वपूर्ण कदम में, भारत ने इस साल जनवरी में परमाणु क्षति पूरक मुआवजा संधि को अनुमोदित कर दिया जो असैन्य परमाणु दायित्व से संबंधित मामलों पर गौर करने के लिए असरदार कदम है। इस कदम से परमाणु क्षति के लिए बढ़े हुए मुआवजे का वैश्विक दायित्व शासन स्थापित करने में मदद मिलेगी। सफलता की एक नयी गाथा लिखते हुए भारत ने इस साल अपनी सबसे मारक और परमाणु क्षमता से युक्त अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफल परीक्षण किया जिसकी पहुंच पूरे चीन तक होगी। इस सफल परीक्षण से सबसे शक्तिशाली भारतीय मिसाइल के प्रायोगिक परीक्षण और अंतिम तौर पर इसे स्पेशल फोर्सेस कमांड (एसएफसी) में शामिल करने का रास्ता साफ हो गया।

कुछ प्रमुख सावधानियां  
नये साल का स्वागत इस रूप में होना चाहिए कि देश में भावनात्मक आधार वाले मुद्दों को हावी न होने दिया जाये और सामाजिक समरसता को बनाये रखने की हर संभव कोशिश की जाये, तभी हम विकास के उन्नत रास्तों पर चल सकेंगे। गरीबी, सामाजिक सरोकार, मानव गरिमा, रोजगार आदि से जुड़े मुद्दों को लेकर हमें आगे चलने की जरूरत है, ताकि हमारा लोकतंत्र मजबूत हो सके। इन सबके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है और खास तौर से सत्ता पक्ष की इच्छाशक्ति ज्यादा मायने रखती है। 

स्वयं को बदले बगैर बदलाव संभव नहीं 
इसे कोई उपलब्धि मत समझिएं कि मैं दो मंजिला भवन बनवाना चाहता था, नए माॅडल की कार खरीदना चाहता था, फ्रिज-कूलर-एसी खरीदना चाहता था और मैंने वह ले ली। दरअसल, यह तो होना ही था, क्योंकि बाजार आपको जीरों फीसदी ब्याज दर पर यह सब करने के लिए कर्ज जो दे रहा है और वह आप से आने वाले दस सालों में वापस वसूल लेगा। तो सोचे कि अब तो कोई भी यह सब खरीद सकता है। यानी यह सब खरीदना कोई बड़ी चींज नहीं है। सवाल यह है कि यह सब भोग-विलासता प्राप्त कर आप करेंगे क्या? हो सकता है आपका यह सब ठाठबांट देखकर कोई ईष्र्या करें, खासकर पड़ोसी, तब तो आपकों अच्छा लगेगा, लेकिन अगर उसके पास आप से भी अधिक भोग-विलासिता वाली चीजें हुई तो फिर आप बुरा महसूस करने लगेंगे। लेकिन एक इंसान के तौर पर एक जीवन के तौर पर आप खुद को बड़ा बनाते है तो आप चाहे किसी शहर में हो यरा किसी पहाड़ पर अकेले बैठे हो, आप सकून महसूस करेंगे। यानी नए साल में जीवन को आगे ले जाने के लिए आपका यही नजरिया होना चाहिए। कहा जा सकता है इस दुनिया में असली बदलाव तभी आयेगा जब आप खुद को बदलने को तैयार हो। ये आपके भीतरी गुण ही है, जिसे आप देश-दुनियां व समाज में बांटते है। आप इसे मानें या ना मानें पर सच तो यही है कि आप जो है वही सब जगह फैलायेंगे। अगर आप को देश-दुनिया, समाज की चिंता है तो सबसे पहले आपको खुद में बदलाव लाने को तैयार रहना चाहिए। खुद को बदले बिना यदि आप कहतें है कि मैं चाहता हूं कि दुसरे सभी लोग बदलें, तो इस हालत में सिवाय टकराव के कुछ भी नहीं होने वाला। 

चिंता समस्या का हल नहीं 
जीएं तो ऐसे जैसे वह आखिरी पल हो और सीखें तो ऐसे जैसे बरसों जीना हो, राष्टपिता महात्मा गांधी के ये विचार सिखाते है कि हर एक पल को उसकी सार्थकता में जीना चाहिए, क्योंकि समय किसी का इंतजार नहीं करता। जो लोग इसकी कीमत पहचानते है समय उनकी कद्र करता है। जो नहीं पहचान पाते समय उनके हाथ से रेत की तरह फिसल जाता है और पीछे छोड़ जाता है पछतावा। ठीक उसी तरह जैसे नदी बहती है तो वह लौटकर नहीं आती, दिन-रात बीत जाते है, जुबान से निकली शब्द और कमान से निकले तीर वापस नहीं लौटते, उसी तरह गया वक्त भी कभी नहीं लौटता। अच्छा होता है तो यादों में बसा रहता है, बुरा हो तो दर्द बनकर सीने में सुलगता है। कहते है अतीत कभी लौटता नहीं और भविष्य को किसी ने देखा नहीं, मगर वर्तमान हमारे हाथ में है, जिसे हम जैसा चाहें बना सकते है। अक्सर लोग चिंता में डूबे रहते है कि कल क्या होगा? सच तो यह है कि चिंता से किसी समस्या का हल नहीं होता। वक्त का सही इस्तेमाल करने से ही कुछ हासिल होता है। कल क्या हुआ और कल क्या होगा इसके बजाए यह सोचे कि आज क्या कर रहे है। आत्ममुग्ध होना गलत है मगर खुद को दुसरों के पैमाने से नापना भी गलत है। इसलिए दुसरों की चिंता किए बगैर आप क्या सोचते है और आपकी धारणा क्या है इस पर विचार करें तो बेहतर होगा। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपने अंतर्मन की आवाज पर चलने का साहस दिखाएं। वहीं से सच्ची सलाह मिल सकती है बाकि तो बात की बाते हैं। इसके लिए प्रकृति सबसे सटीक उदाहरण है। हर दिन नीत समय पर सुबह होती है। दरवाजों-खिड़कियों से आती धूप की लकीर बताती है कि दिन का शुभारंभ हो चुका है। पंछी चहचहाते हुए घोसले से बाहर भोजना का प्रबंध करने निकल पड़ते है। पूरी कायनात अपने इशारों से इंसान को समय का मूल्य समझाती है। यदि समय का तालमेल थोड़ा भी गड़बड़ हो जाएं तो पृथ्वी पर हलचल मच जाती है और लोग अनहोनी की आशंका से डर जाते है। प्रकृति का यह अनुशासन इंसान सीख जाएं तो उसका जीवन सार्थक हो जाय। यानी वक्त का सम्मान तभी हो सकता है जब जीवन में अनुशासन हों। 

युवाओं के लिए बेहतर होगा नया साल 
युवाओं के लिए नया साल खास उम्मीद लेकर आने वाला है। यानी कैरियर बनाने का वक्त है। अगर छात्र है, युवा है तो आपके पास परीक्षाओं में बेहतर करने व अच्छी नौकरी पाने का साल है। पूर्व की असफलताओं पर गौर करने से बेहतर है नए साल में कड़ी मेहनत और ईमानदारी से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना। निराश होने से काम नहीं चलने वाला। इस डर से तो कत्तई नहीं कि सीटे कम होती है और नेताओं-अफसरों के बेटो-रिश्तेदारों को वह नौकरी मिलेंगी। अगर आप पारीक्षा में नहीं उतरेंगे तो नुकसान आपका ही होगा, इसलिए परिणाम की चिंता किए बगैर इस नए साल में युद्धस्तार की तैयारी में जुटने की जरुरत है। नए साल के स्वागत में सैकड़ों-हजारों पिकनिक के नाम पर फूंकने के बजाय क्यों न इस बार की पिकनिक ऐसी हो कि कम खर्चे में ही अपने साथ-साथ दुसरे जरुरतमंदों के लिए भी कुछ खुशियां समेट ली जाय? 

मानवता के प्रति सजग हो 
क्या वर्ष के एक दिन के कुछ घंटे भी हम मानवता की खातिर अपने समाज के वंचितों, उपेक्षितों व शोषितों के लिए समर्पित नहीं कर सकते? दुसरे के प्रति द्वेष की भावना का अंत कर शांति-सद्भाव और आगे बढ़ने का एक सकारात्मक माहौल का निर्माण करें। सबसे बड़ी और अच्छी बात यह सभी भारतीय पुरुषों की कोशिश महिलाओं को मानसिक एवं शारीरिक सुरक्षा देने की होनी चाहिए। बीतें कुछ सालों में हमारे समाज की मां-बहनें विभिन्न कारणों से खून के आंसू रोने को मजबूर है। कहीं न कहीं इसके कसूरवार हम भी है। आज आसपास घटित किसी दुर्घटना को देख आंखे बंद करने की हमारी घटिया प्रवृत्ति पर रोक लगाने की दरकार है। सामाजिक व्यवस्था में हाशिएं पर चले गए लोगों को जीवन जीने का उचित आधार मिलें, गरीबों, वंचितों एवं शोषितों की जीवन दशा में सुधार हो और उनकी संख्या घटे, कोई भूखा ना सोए, गरीबी मिटें, उग्रवाद-आतंकवाद का खात्मा हो, सुरक्षा व्यवस्था ऐसी कि युवतियां सड़कों पर विश्वास के साथ आ-जा सके, हम इसकी भी आशा रखते है। देश में ऐसी प्रतिभाएं निकलें, जो दुनिया में राज करें। ये सारे सपने पूरे हो सकते है अगर लोग अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझे और सार्थक भूमिका निभाएं।    

कैशलेस मिशन को जल्द मिलेगा ‘आधार’
क्या आधार को अमेरिका की तरह सोशल सिक्योरिटी नंबर की तरह माना जा सकता है जो फोटो, अड्रेस जैसी हर चीज के लिए वैलिड होता है। अमेरिका में सोशल सिक्योरिटी नंबर मात्र एक नंबर है। हमने तो इसमें बायोमैट्रिक सिस्टम को भी जोड़ा है। उस हिसाब से तो आधार ज्यादा अडवांस है। नोटबंदी के बाद कैशलेस मिशन में शामिल होने के लिए यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी कमर कस ली है और जल्दी ही आधार नंबर आधारित ऐप लोगों के बीच होगा। इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर लेवल पर केवल दुकानदारों को ही तैयारी करनी होगी। खरीदार सिर्फ आधार नंबर से अपने खाते को अटैच करवा कर बायोमैट्रिक डिवाइस पर अपना आधार नंबर और फिंगरप्रिंट या आइरिस स्कैन करवा कर पेमेंट कर सकता है। ये पेमेंट रीयल टाइम होंगे, मतलब जैसे ही कस्टमर पेमेंट करेगा, फौरन पैसा दुकानदार के अकाउंट में पहुंच जाएगा। फिलहाल इसमें खरीदार और दुकानदार से किसी तरह का चार्ज नहीं लिया जाएगा। फिलहाल इसे इस्तेमाल करने के लिए स्मार्टफोन की जरूरत होगी। आधार सिर्फ एंड्रॉयड के 4.0 या उससे ऊपर के वर्जन में ही चल सकता है। इसे आईओएस पर भी अगले साल तक लाने का प्लान है। बायोमैट्रिक डिवाइस अभी महंगा जरुर है लेकिन जब इस्तेमाल बढ़ जाएगा तो 1500-2000 रुपये की जगह 500 रुपये तक में मिलने लगेगी। 

क्या होगा मोदी का भविष्य 
नए साल की शुरुआत राजनीति के रोमांच के साथ होगी। शुरुआती महीनों में 5 राज्यों (यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर) के विधानसभा चुनाव होंगे। इनके नतीजों से देश के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय होगी। ये नतीजे ऐसे समय पर आएंगे, जब केंद्र में मोदी सरकार लगभग तीन साल पूरे कर रही होगी। चैथा साल शुरू होते ही नए इलेक्शन का ‘काउंट डाउन’ शुरू हो जाता है। ऐसे में इन राज्यों के नतीजे कुछ राजनीतिक दलों के लिए सबक और कुछ के लिए संजीवनी साबित होंगे। विधानसभा चुनाव ऐसे समय होने हैं, जब देश में मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला बड़ा मुद्दा बना हुआ है। बीजेपी का यह दावा स्वाभाविक सा है कि नोटबंदी के फैसले पर जनता उसके साथ है। वहीं विपक्ष इस फैसले से उपजी मुश्किलों को आधार बनाते हुए दावा कर रहा है कि इन चुनावों में जनता केंद्र सरकार को सबक सिखाएगी। राज्यों के नतीजों से पब्लिक की राय का पता चलेगा कि जनता नोटबंदी के पक्ष में है या नहीं। अगर जनता का फैसला बीजेपी की उम्मीदों के अनुरूप गया तो केंद्र सरकार को कई और बड़े कदम उठाने का हौसला मिलेगा। लेकिन अगर दांव उलटा पड़ा तो वह भविष्य में बड़े फैसले लेने से हिचकेगी क्योंकि साल के आखिर तक गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश सहित 7 राज्यों के चुनाव होने वाले होंगे। इसके साथ ही 2019 में लोकसभा का चुनाव प्रस्तावित है। 

2017 में सबकी नजर नए राष्ट्रपति पर होगी 
इस बार यह चुनाव तब हो रहा है जब पहली बार कांग्रेस के अलावा कोई ऐसी पार्टी केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ है, जिसका कई बड़े राज्यों में भी दबदबा है। ऐसे में पहली बार बीजेपी और संघ को अपने हिसाब से देश का पहला नागरिक चुनने का मौका मिल सकता है। लेकिन इसके लिए उन्हें कुछ दूसरे क्षेत्रीय दलों को साथ लेना होगा। इस बार का राष्ट्रपति चुनाव सिर्फ एक पद के लिए नहीं होगा। इसमें बीजेपी ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को साथ जोड़कर बड़ा राजनीतिक संदेश देना चाहेगी। वहीं कांग्रेस विपक्षी एकता की मुहिम में जुटेगी। इस जोड़-तोड़ का असर राष्ट्रपति चुनाव के बाद भी राजनीति में दिखेगा। अभी तक वोटों का जो समीकरण है उस हिसाब से एनडीए अपने दम पर राष्ट्रपति चुनने में सक्षम नहीं है। उसके पास वोटों की कमी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश का चुनाव बहुत हद तक इसे आखिरी शक्ल देगा। उधर एसपी या बीएसपी अगर उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन करती हैं तो फिर राष्ट्रपति चुनाव में गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी राजनीतिक दलों के लिए लाभ की स्थिति होगी। ज्यादा वोट वाले राज्यों में (बिहार, तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल) में गैर कांग्रेसी, गैर बीजेपी पार्टियों की सरकार है। ऐसे में बीजेपी को अपने मनमाफिक उम्मीदवार चुनने में दिक्कत हो सकती है। इस दौरान तीसरे मोर्चे के गठन को भी हवा मिल सकती है। वह अपने हिसाब से संयुक्त उम्मीदवार उतारने की कोशिश कर सकते हैं। वहीं कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ आम राय वाले उम्मीदवार को उतारने का प्रयास कर सकती है। कांग्रेस अगर ऐसा करने में सफल होती है तो आम चुनाव से पहले बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका होगा। इसके अलावा बात यह भी है कि कहीं विपक्ष एकजुट होकर कोई ऐसा नाम आगे न कर दे जिसे नकारना बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाए। 

नए साल में लें वक्त के साथ चलने का ‘संकल्प‘ 
हर बार हम नए साल के मौके पर नए संकल्प के साथ इसकी शुरुवात करते है। यह अलग बात है कि कोई इसकी दृढ़ता से पालन करता है तो कोई उसे टाल देता है। लेकिन इस उहापोह के बीच क्यों न इस नए साल पर एक ऐसी संकल्प ऐसा लें कि जो हम सोचते है उसे वास्तविकता में कैसे बदल सकता हूं। क्योंकि हर किसी की कोशिश होनी चाहिए कि वह अपने जीवन में रुपांतरण लाने और हर तरह के हालात में आगे बढ़ते रहने के लिए आंतरिक खुशहाल रहे। कोशिश होनी चाहिए कि वह तमाम विषम परिस्थितियों में भी कैसे अपने माता-पिता और शिक्षक से आगे बढ़े। कुछ ऐसा करना चाहिए कि समाज उन्हें सदैव याद रखें। इसके लिए अपने भीतर छिपी शख्यिसत को जगाना होगा। कहने का अभिप्राय यह है कि अगर आप बुद्धिमान है, पूरी तरह से जागरुक है तो बेशक आप अपनी शख्सियत व सोच को नया रुप दें सकते है। लेकिन इसके लिए पुरानी आडम्बर व दिखावा को त्यागना होगा। अनजाने में काम करने के बजाय चैकन्ना होकर काम करना होगा। जो आपके लिए सबसे बेहतर हो, जो आपके आसपास सबसे अधिक सामंजस्य और तालमेल पैदा करें, टकराव-ईष्या का दूर-दूर तक वास्ता ना हो और ऐसे काम को तवज्जों दें जो अपनी अंदरुनी सोच के सबसे करीब लगती हो। हमें यह भी देखना होगा कि जो हम सोच रहे है क्या वह हमारी मौजूद सोच से बेहतर है या नहीं। शांत, सरल, एकांत दिमाग से सोचे कि वह जो सोच रहे है या करने जा रहे है उसे दुसरे लोगों पर क्या असर पड़ेगा। कल्पना करें कि आपके सोच को दुसरे लोग कैसा अनुभव करेंगे। यानी अपने सोच में बिल्कुल एक नया इंसान गढ़े, उसे जितना संभव हो बारीकी से देखें कि क्या यह नयी सोच अधिक मानवीय, अधिक निपुण और अधिक प्रेममय है या नहीं। क्योंकि सिर्फ सोचनेभर से बइलाव नहीं होता। अच्छे कर्म कर अपने भविष्य को बदला जा सकता है। अपनी किस्मत लिखी जा सकती है। यह तभी संभव हो पायेगा जब आप अपनी लक्ष्य निर्धारित करें। क्योंकि धैर्य और आत्मविश्वास के साथ अपने को अनुकूल बना लेना ही वास्तविक चुनौती है। समय के साथ निरंतर चलना निरंतर गतिशील रहना और बदलावों के लिए खुद को तैयार रहना भी जरुरी है, क्योंकि परिवर्तन ही जिंदगी को आगे ले जाता है। बदलाव इंसान को परिपक्वता से सोचने, प्रतिक्रिया करने और अलग-अलग स्थितियों में संतुलित रहना सिखाते है। समय का सच यह है कि हर दिन बीत जाता है चाहे वह अच्छा हो या बुरा, सुख हो या दुख, सफलता हो या विफलता। सफलता में हम अहम्ग्रस्त हुए बिना और विफलता में निराश हुए बिना जो जीवन में आगे बढ़ता है, सही मायने में वहीं समय का महत्व समझता है। इसके पहले यह तय करें कि नए साल में आपकों करना क्या है? आपका लक्ष्य क्या है? फिर उस लक्ष्य पाने के लिए नए साल यानी एक साल की अपनी रणनीति तय करनी होगी कि किन रास्तों पर चलकर लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। अपनी अंर्तआत्मा से पूछे कि पिछले साल उनसे क्या गलतियां हुई, किसे पीड़ा पहुंचाई, असफलता के कारणों को टटोले और फिर उसे नए साल में दूर करने का प्रयास करें। इस नई सोच की कल्पना आप जितने प्रभावशाली तरीके से कर सकते है, करें। उसे अपने भीतर जीवंत बना दें। अगर आपके सोच खूब शक्तिशाली है, कल्पना प्रभावशाली है तो वह कर्म के बंधनों को भी तोड़ सकती है। आप जो बनना चाहते है, उसकी एक शक्तिशाली कल्पना करते हुए कर्म की सीमाओं को तोड़ा जा सकता है। यह नया साल विचार, भावना और कर्म की सभी सीमाओं से परे जाने का एक मौका है। यह सब तभी संभव हो पायेगा जब आप अपनी मोहमाया, हित त्यागकर अपनी मौजूदा क्षमताओं को आगे बढ़ाने पर ध्यान देंगे, बाकि सभी चीजें तो अपने ऐसे होने लगेंगे, जिसकी आप कल्पना भी नहीं किए होंगे। इन सबके बीच ध्यान देने योग्य बात यह है कि आप मनुष्य है तो गलतियां होंगी ही, लेकिन इन दुर्गुणों पर काबू पाना होगा। क्योंकि दुनिया उसी को याद रखती है, जिसने दुनिया को अच्छी चीजें दी है। जिनकी समाज औद देश के निर्माण व तरक्की में बड़ी भूमिका रही है। इसलिए आप सोंचे कि इस सूची में आप कहां खड़े है? आप इस दुनिया, अपने समाज और अपने देश को क्या दिया है? इस पर भी मनन करें। डर से मनुष्य जल्द पराजित होता है। ऐसे में अपने मन के डर को दूर करें। लक्ष्य पर फोकस करें। सफलता अवश्य मिलेंगी। इसलिए आप अपनी तुच्छ इच्छाओं को जीवन का लक्ष्य मत बनाइये। 




(सुरेश गांधी)

विशेष : इस लावारिश लाटरी अर्थव्यवस्था का माई बाप कौन है?

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इस लावारिश लाटरी अर्थव्यवस्था का माई बाप कौन है? #PayTMPM या FMCorporate? रिजर्व बैंक तो खैर दिवालिया है और शेर बाजार सांढ़ों और भालुओं के कब्जे में हैं। काम धंधे,रोजगार,व्यवसाय वाणिज्य और उद्योग भी तबाह हैं। बाजार में नकदी न होने की वजह से मक्खियों तक के भूखों मरने की नौबत है। #PayTMPM कायदे कानून,संविधान और संसद से ऊपर है।#PayTMPMसंसद में मौन रहे और अब मीडिया पर एकाधिकार वर्चस्व के तहत मंकी बातें चौबीसों घंटे। #PayTMPM ने पचास दिनों की मोहलत मांगी थी कि पचास दिन बाद भारतवर्ष की सरजमीं पर सुनहले दिन लैंड करने वाले थे। राजधानी दिल्ली में कड़ाके की सर्दी है और तामपमान गिरता नजर आ रहा है और मंकी बातों की फुरसत में स्माग का अपडेट कहीं नजर नहीं आ रहा है ।शायद लैंडिग के कुहासा छंटने से पहले होने के आसार नहीं है। क्या पता कि लैंडिंग हो गयी हो,ट्रैफिकवा ससुर शायद जाम हो या घने कुहासा में दिख ना रहे हों सुनहले दिन।जिन्हें दिख रहें हों वो कृपया दूसरों को दिखला दे। 30 दिसंबर के बाद हालात बदल जाने वाले थे।आज 26 दिसंबर है।क्रिसमस की खूब धूम रही है।आगे नया साल है।बाजार का हाल शापिंग मल है और कैशलैस लेनदेन में #PayTMPM के मुताबिक सैकड़ों गुणा इजाफा हो गया है।फिरभी संघ परिवार के सबसे घने समर्थक मुंबई में रामंदिर निर्माण के बाद भी सर धुन रहे हैं।

इतिहास परिषद के मुताबिक मोहनजोदोड़ो की डांसिंग गर्ल पार्वती हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर हैः

Mohenjodaro ‘Dancing Girl’ is Parvati, claims ICHR journal
The author claims that the Dancing Girl is Parvati because “where there is Shiva, there should be Shakti”.

शिव के नटराज दर्शन के बारे में हम जानते हैं।उमा की तपस्या के बारे में हम बचपन से जान रहे थे।अब पार्वती मोहनजोदोड़ो और हड़प्पा में नाचती रही है,यह किस वेद पुराण में लिखा है ,हम नहीं जानते। जाहिर है जो इतिहास नया लिख सकत हैं,चाहे तो वे वेद पुराण सारा नयका रचि सके हैं जैसे उनने मुक्त बाजारी हिंदुत्व रच दिया है। जब मोहनजोदोड़ो में पार्वती जी नाच सकती हैं तो अयोध्या के बदले राममंदिर #PayTMPM के राजधर्म के मुताबिक मुंबई में बन गया तो रामभक्तों को तकलीफ क्यों है।घट घट में राम हैं।राम को अयोध्या में कैद करके रखना क्यों चाहते हैं।ऊपर से शिवाजी महाराज अरब सागर में भसान है। अब संघ परिवार का कलेजा देख लीजिये कि एकमुश्त यूपी ,उत्तराखंड, मणिपुर,पंजाब जीत लेने का प्लान है। बहुजनों को बल्कि #PayTMPM का आभार मानना चाहिए कि उनने साबित कर दिया है कि मूर्तिकला हमारी सांस्कृतिक विरासत है और मूर्ति निर्माण में हजारों करोड़ का जनधन खर्च करना कोई पाप नहीं है।मूर्ति निर्माण में बहन मायावती की उपलब्धियों पर लगा सारा कालिख धुल गया है।  इस बीच मनुस्मृति दहन भी खूब हो गया।सिर्फ कैश नहीं है। न 30 दिसंबर के बाद कहीं कैश होना है क्योंकि #PayTMPM के मुताबिक इंडिया कैशलैस डिजिटल है।जाहिर है कि कतार में खड़े होने के बदले आप भी #PayTM कर रहे होंगे।जब #PayTMPM का कहा पूरा सच मान रहे हैं तो फिर क्यों रोते हैं कि बैंकों में पैसा नहीं है या एटीएम पर फिर वही नोकैश का बोर्ड लगा है।
कैशलैस होना है तो काहे का कैश?

 #PayTMPM की मंकी बातें अब आबोहवा है।वही कायनात का ब्रह्मनाद है। गड़बड़ी यह है कि  #PayTMPM का सुरताल काटने पर आमादा हैं FMCorporate? FMCorporate का बार बार कहना कि कैशलैस संभव नहीं है और दरअसल लैस कैश टार्गेट है।इस उलटबांसी से  सारा कंफ्यूजन है।  #PayTMPM कहि रहे हैं कि बेनामी संपत्ति से भी कालधन वैसे ही निकालेंगे जैसा नकदी का सारा कालाधन वापस आया है।यह भी कहि रहे हैं कि फाइनेंसियल सेक्टर पर हाई टैक्स लगा देंगे। अब तक अरबपतियों को 46 लाख करोड़ का कर्ज माफी हो गया है तो क्या,आम जनता के हर खाते में लाखों करोड़ जमा करवा देंगे। नोटबंदी में फटेहाल लोगों के खाते में हजारों करोड़ की होने भी होने लगी है।बूंद बूंद से समुंदर बनता है।हर नागरिक इसीतरह अरबपति बनने वाला है।आयकर वाले न जाने क्यों ऐसे भाग्यशाली लोगों के खिलाफ नोटिस थमा रहे हैं।  #PayTMPM इस देश में इकलौते ईमानदार आदमी हैं।संसद संविधान लोकतंत्र की ऐसी की तैसी कर दी।रिजर्व बैंक को घास नहीं डाला।
 #PayTMPM ने  FMCorporate तक को नहीं पूछा। देशशक्त स्वदेशी संघ परिवार की परवाह नहीं की। अकेले दम सिर्फ छप्पन इंच की छाती के दम झोला छाप विशेषज्ञों को लेकर नोटबंदी कर दिखाई और सजा भी भुगतने को तैयार हैं अगर नोटबंदी फेल हो गयी। अब आम जनता की मर्जी है कि यूपी,पंजाब,उत्तराखंड और मणिपुर में नोटबंदी पर मुहर लगाये या  #PayTMPM को शूली पर टांग दें।

FMCorporate शुरु से बेताल राग साध रहे हैं।पहले ही कह दियो कि  #PayTMPM के मजबूत कंधे हालात का जुआ ढोने को काफी है।अपना पल्ला झाड़  लिया है। पालतू मीडिया को भी गोरखधंधा समझ में नहीं आ रहा है कि कौन सही कह रहा है। अर्थव्यवस्था कैशलैस है कि लैसकैश है।  #PayTMPM कहि रहे हैं कि कैशलैस है।छप्पर फाड़ पुरस्कार की लाटरी बाबासाहेब के नाम निकार दियो है। पण FMCorporate फिर वही राग तान रहे हैं कि कैशलैस असंभव है ।इकानामी दरअसल लैस कैश है।टैक्स रिफार्म के उलटबांसी रचि रहे हैं एकदम उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की तरह। बाबा रामदेव भी अब कहि रहे हैं कि नोटबंदी में भारी घोटाला भयो है। बाकी देश के बाकी नागरिक राष्ट्रद्रोही हैं। FMCorporate,बाबा रामदेव,शिवसेना वगैरह वगैरह जो राजधर्म के खिलाफ बोल रहे हैं,उनके राष्ट्रद्रोह का क्या होना है,समझ से परे है। बेहतर है कि ऐसे FMCorporate खारिज करके  #PayTMPM खुदै रेल और आम बजट का नीमकरैला पेश करके इंडिया कैशलैस डिजिटल हिंदू राष्ट्र का महान एजंडा पूरा करें। कल दिनभर नेट नहीं चला और आज भी दोपहर तक नेट गायब रहा।गांव  देहात में नेटबाबू की कृपा का रहि,हम न जाने हैं।देश भक्त जनता जरुर ढाई फीसद कमीशन की परवाह न करके,साइबर फ्राड से बेपरवाह #PayTM में बिजी है या फिर मंकी बातों में ध्यान रमा है। नेट न हुआ तो आंखों की पुतलियां हैं,उंगलियों की छाप हैं.काहे कैश का रोना है।सुंदर गोरे मुखड़ों का जुलूस चौबीसों घंटे कैशलैस अलाप रहे हैं।फिर रोवे काहे को.पहेली अबूझ है। हमने आपातकाल का मीडिया देखा है।संपादकीय की इजाजत नहीं मिली तो का,संपादकीय पेज सेंसर कर दिया।सेंसर की कालिख के साथ छाप दिया। भोपाल त्रासदी,आपरेशन ब्लू स्टार बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार में भी मीडिया का तेवर राष्ट्रद्रोही रहा है। अब मीडिया गणवेश में है।मंकी बातों के अलावा कुछो नाही छाप रहे हैं।न कहि कुछ रहे हैं और न दिखावै कुछो है।

यह नये सिरे से अनुशासनपर्व है। इस लावारिश लाटरी अर्थव्यवस्था का माई बाप कौन है?
#PayTMPM या FMCorporate?



(पलाश विश्वास)

विशेष : इससे लोकतंत्र का बागवां महकेगा

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देश  परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, देश की तरक्की उसके शासक की नीति एवं नियत पर आधारित होती है। कोई भी बड़ा बदलाव प्रारंभ में तकलीफ देता ही है, लेकिन उसके दूरगामी परिणाम सुखद एवं स्वस्थ समाज निर्माण के प्रेरक बनते है। विमुद्रीकरण के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब मोदी सरकार चुनाव सुधार की दिशा में भी बड़ा निर्णय लेने की तैयारी में है। संभव है सारे राष्ट्र में एक ही समय चुनाव हो- वे चाहे लोकसभा हो या विधानसभा। इन चुनाव सुधारों में दागदार नेताओं पर तो चुनाव लड़ने की पाबंदी लग ही सकती है, वहीं शायद एक व्यक्ति एक साथ दो सीटों पर भी चुनाव नहीं लड़ पाएगा? ऐसी व्यवस्था समेत कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव केंद्रीय चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार को भेजकर सिफारिश की है। चुनाव आयोग के प्रस्तावों और विधि आयोग की सिफारिशों पर देश में चुनाव सुधार के लिए यदि सरकार ने ऐसे सख्त निर्णय लिये, तो नोटबंदी के बाद मोदी सरकार का लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव सुधार की दिशा में यह भी एक नीतिगत ऐतिहासिक फैसला बनकर सामने आएगा।

एक महत्वपूर्ण बिन्दु प्रसिद्ध लोकोक्त्ति से मिलता है कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’। प्रजा राजा के आचरण को अपने में ढ़ालती है। आदर्श सदैव ऊपर से नीचे आते है। लोकतंत्र में जनमत ही सर्वोच्च है। मत का अधिकार गिना गया है, वह भी सबको बराबर। जब मत देने वाला एक बार ही अपने मताधिकार का उपयोग कर सकता है तो उम्मीदवार कैसे दो या दो से अधिक स्थानों पर चुनाव लड़ने की पात्रता पा सकता है?  यह हमारे चुनाव प्रक्रिया की एक बड़ी विसंगति चली आ रही है। चुनाव आयोग ने इस बड़ी खामी को दूर करने के लिये एक बार फिर सरकार से राजनेताओं को एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ने से रोकने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव की सिफारिश की है। लोकतंत्र की मजबूती एवं चुनाव प्रक्रिया की विसंगति को दूर करने के लिये इस सिफारिश को लागू करना जरूरी है।

चुनाव आयोग इससे पहले 2004 में भी इस तरह की सिफारिश कर चुका है। मगर उस पर कोई पहल नहीं हो पाई। न्यायमूर्ति ए. पी. शाह की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी एक उम्मीदवार के दो सीटों से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने संबंधी सिफारिश की थी। चुनाव आयोग ने 2004 में सुझाव दिया था कि अगर कोई उम्मीदवार विधानसभा के लिए दो सीटों से चुनाव लड़ता और जीतता है, तो खाली की गई सीट के लिए उससे पांच लाख रुपए वसूले जाएं। इसी तरह लोकसभा की खाली की जाने वाली सीट के लिए दस लाख रुपए जमा कराए जाएं। अब चुनाव आयोग ने कहा है कि 2004 में प्रस्तावित राशि में उचित बढ़ोतरी की जानी चाहिए। आयोग का मानना है कि इस कानून से लोगों के एक साथ दो सीटों से चुनाव लड़ने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। चुनाव आयोग ने जब एक उम्मीदवार के दो या उससे अधिक स्थान पर चुनाव लड़ने पर ही रोक का सुझाव दिया है तो खाली हुई सीट के लिये राशि वसूले जाने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिये दो या अधिक स्थानों पर चुनाव लड़ना- एक तरह की अनैतिकता ही है। अपने स्वार्थ की सोचना एवं येन-केन-प्रकारेण जीत को सुनिश्चित करने की यह तरकीब चुनाव प्रक्रिया की बड़ी खामी रही है, जिस पर रोक का सुझाव लोकतंत्र की मजबूती का सबब बनेगा और चुनाव सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। 

जन प्रतिनिधित्व कानून में यह अधिकार दिया गया है कि कोई व्यक्ति लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव या फिर उप चुनाव में एक साथ दो सीटों पर अपनी किस्मत आजमा सकता है। 1996 से पहले दो से अधिक स्थानों पर चुनाव उम्मीदवारी की छूट थी। कोई व्यक्ति कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था। मगर देखा गया कि कुछ लोग सिर्फ अपनी जीत कोे सुनिश्चित करने की मंशा से कई सीटों से चुनाव लड़ जाते थे। इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के मकसद से 1996 में जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके अधिकतम दो सीटों से चुनाव लड़ने का नियम बनाया गया। मगर इससे भी निर्वाचन आयोग को छोड़ी गई सीटों पर दुबारा चुनाव कराने के लिए बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे दुबारा वही प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है। उसी प्रकार फिर पैसे खर्च करने पड़ते हैं। प्रशासन को नाहक अपना तय कामकाज रोक कर चुनाव प्रक्रिया में भाग-दौड़ करनी पड़ती है। यह एक तरह की पैसों की बर्बादी तो है ही, साथ ही प्रशासन को भी भारी दुविधा झेलनी पड़ती है। आम जनता भी इससे परेशान होती ही है। इसलिए लंबे समय से मांग की जाती रही है कि लोगों के कर से जुटाए पैसे को दो बार चुनाव पर खर्च करने एव एक सीट के लिये दो बार चुनाव प्रचार पर उम्मीदवारों का भी दूबारा पैसें खर्च करने का कोई तुक नहीं, इस नियम में बदलाव होना चाहिए।

अब तक देखने में यही आता रहा है कि बड़े दल और बड़े राजनीतिक चेहरे ही एक साथ दो सीटों से चुनाव लड़ते रहे हैं। इसकी बड़ी वजह असुरक्षा की भावना होती है। वर्तमान लोकसभा के लिए हुए चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था। समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ा। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को भी दो सीटों से चुनाव लड़ाया जाता रहा है। विधानसभा चुनाव में भी पार्टियों के प्रमुख चेहरे अक्सर दो सीटों से चुनाव लड़ना सुरक्षित समझते हैं। राजनीतिक दल या उसके उम्मीदवार के लिये इस तरह दो जगह से चुनाव लड़ना जायज हो सकता है लेकिन नीति एवं नियमों की दृष्टि से इसे किसी भी सूरत में जायज नहीं माना जा सकता है। प्रश्न यह भी है कि अगर कोई उम्मीदवार दो में से किसी एक सीट पर चुनाव हार जाता है, तो उसे सरकार में किसी अहम पद की जिम्मेदारी सौंपना कहां तक उचित है? 

विश्व के सबसे बड़ा लोकतंत्र में इस तरह की कमजोरियों एवं विसंगतियों पर नियंत्रण करना जरूरी है। क्योंकि चुनाव लोकतंत्र का प्राण है। लोकतंत्र मंे सबसे बड़ा अधिकार है- मताधिकार। और यह अधिकार सबको बराबर है। पर अब तक देख रहे हैं कि अधिकार का झण्डा सब उठा लेते हैं, दायित्व का कोई नहीं। अधिकार का सदुपयोग ही दायित्व का निर्वाह है। इसलिये मतदाताओं को भी जागरूक होना होगा। लोकतंत्र में चुनाव संकल्प और विकल्प दोनों देता है। चुनाव में मुद्दे कुछ भी हों, आरोप-प्रत्यारोप कुछ भी हांे, पर किसी भी पक्ष या पार्टी को मतदाता को भ्रमित नहीं करना चाहिए। दो स्थानों पर चुनाव लड़ना मतदाता को भ्रमाने की ही कुचेष्टा है।”युद्ध और चुनाव में सब जायज़ है“। इस तर्क की ओट में चुनाव प्रक्रिया की खामियों पर लगातार पर्दा डालना हितकारी नहीं कहा जा सकता। अपने स्वार्थ हेतु, प्रतिष्ठा हेतु, राजनीति की ओट में नेतृत्व झूठा श्रेय लेता रहा और भीड़ आरती उतारती रही। लेकिन अब पवित्र मत का पवित्र उपयोग पवित्र उम्मीदवार के लिये हो। देश के भाल पर लोकतंत्र का तिलक शुद्ध कुंकुम और अक्षत का हो। सही एवं शुद्ध चुनाव ही चमन को सही बागवां देगा।




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(ललित गर्ग)
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आलेख : नीचे के भ्रष्टाचार पर भी कार्यवाही हो

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वर्तमान में भारतीय राजनीति का जो का स्वरुप दिखाई दे रहा है, उससे तो कदाचित यही प्रतीत होता है कि भारत में लोकतंत्र नहीं, बल्कि राजतंत्र ही काम कर रहा है। भारतीय संविधान के अनुसार हमारे देश की वास्तविक सरकार आम जनता है और सांसद व विधायक इस वास्तविक सरकार के प्रतिनिधि हैं। इसलिए ही उनको जनता के प्रतिनिधि यानी जन प्रतिनिधि कहा जाता है। परंतु वर्तमान में राजनीतिक दलों के चुने हुए नेताओं के जैसे हालात दिखाई दे रहे हैं। उससे यह बिलकुल भी नहीं लगता कि यह राजनीतिक नेता वास्तव में ही जनप्रतिनिधि हैं। आम जनता की भावनाओं को भूलकर यह राजनेता सरकार बनकर व्यवहार करने लगते हैं। राजनेताओं को यह बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिए कि इस देश की असली सरकार जनता ही है।

भारतीय संसद में विपक्षी राजनीतिक दलों का जिस प्रकार का रवैया दिखाई देता आया है और दिखाई दे रहा है। उससे जन भावनाएं आहत हो रहीं हैं। केन्द्र सरकार ने नोटबंदी की, आम जनता पूरी तरह से सरकार के साथ दिखाई दे रही है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो देश की वास्तविक सरकार यानी जनता केन्द्र सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी के कदम का स्वागत कर रही है, वहीं भारतीय राजनीति में केवल विरोध की राजनीति करने वाले राजनेता वास्तविक सरकार की भावनाओं को दरकिनार करते हुए अलोकतांत्रिक कदम उठा रही है। क्या यही लोकतंत्र है? वास्तव में देखा जाए तो जनता का हर व्यक्ति केन्द्र सरकार की थोड़ी सी बुराई करने के बाद अंत में यही कहता हुआ दिखाई देता कि काम अच्छा हुआ है। यह बात सही है कि नोटबंदी के चलते उन लोगों को ही सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, जिनके पास अवैध कमाई थी या जिन्होंने भ्रष्टाचार किया। आम जनता को इससे बिलकुल नुकसान नहीं हुआ। मेहनत मजदूरी करने वाले व्यक्ति को तो वैसे भी हजार पांच सौ के नोट से मतलब नहीं था। इसी प्रकार छोटा व्यापार करने वाले की दुकान पर भी इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह तो जैसा पहले था, वैसा ही आज भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचारियों के बारे में अभी एक और बात कही है कि दो चार महीने में सारे भ्रष्टाचारी जेल में होंगे। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद निश्चित ही उन लोगों में घबराहट पैदा हुई होगी, जिनकी नीयत खराब है। यह बात सौ प्रतिशत सही है कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार रुकेगा और काले धन का प्रवाह समाप्त हो जाएगा।

विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं, वह केवल खबरों में बने रहने का एक माध्यम दिखाई दे रहा है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने साफ़ शब्दों में कहा कि मेरे पास नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रमाण हैं, इसलिए मुझे सदन में बोलने से रोका जा रहा है। राहुल गांधी चाहते तो बाहर भी बता सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं बताया। इस बात पर कई प्रकार के संदेह पैदा हो रहे हैं। यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक कदम ही माना जाएगा।

हम जानते हैं कि देश में फैले भ्रष्टाचार के कारण आम जनता कराह रही थी। प्रधानमंत्री ने इसके विरुद्ध अभियान चलाया है। अगर देश के नागरिकों का इस अभियान को समर्थन मिलता है तो वह दिन दूर नहीं जब देश में भ्रष्टाचार नाम की चीज नहीं रहेगी। केन्द्र सरकार ने इसकी पहल कर दी है। जरुरत है देश वासियों के समर्थन की है। जहां तक नोट बंदी के बाद उत्पन्न हालातों के बारे में अध्ययन किया जाए तो यह बात सही है कि देश की जनता को जिन समस्याओं का सामना किया, वह केन्द्र सरकार की देन नहीं हैं। यह समस्या केवल उन लोंगों ने बिगाड़ी है, जिनकी नीयत खराब है। इस घोटाले में कई बैंक के कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं। वास्तव में सरकार ने जो राशि आम जनता के लिए प्रदान की थी, उसे इन बैंक कर्मचारियों ने अपना स्वार्थ देखते हुए ऐसे लोगों के हाथों में सौंप दी, जिनसे उनको लाभ होने वाला था। हालांकि केन्द्र सरकार ने कुछ बैंकों का स्टिंग कराया है। इस स्टिंग में सारा काला कारनामा समाया हुआ है। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि जब सरकार अ‘छा काम करना चाहती है तब हमारे देश के कर्मचारी भ्रष्टाचार की लीक पर चलना क्यों चाहते हैं? केन्द्र में कांगे्रस सरकारों के शासनकाल में प्राय: यही कहा जाता था कि जब ऊपर वाले भ्रष्ट हैं तो हम क्या कर सकते हैं? वर्तमान में केन्द्र सरकार ने यह साबित कर दिया है कि आज ऊपर वाले भ्रष्ट नहीं हैं। लेकिन नीचे वाले पुरानी सरकार के समय में चलने वाले खेल को दोहराना चाहते हैं। जिनकी नीयत में ही खोट है, ऐसे लोगों से सुधार की गुंजाइश करना पूरी तरह से बेमानी ही है।

भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक प्रकार से आयुर्वेद जैसी उपचार पद्धति अपनाई है। आयुर्वेद उपचार की विशेषता है कि धीरे धीरे ही सही समस्या जड़ से समाप्त हो जाएगी। किसी भी प्रकार की समस्या को इस पद्धति से समाप्त करने के लिए धीरज रखने की आवश्यकता है। देश की जनता जितना धीरज से काम लेगी, उतना ही अ‘छा होगा। इससे देश को तो बहुत बड़ा लाभ मिलने वाला ही है, लेकिन आम जनता भी आने वाले समय में प्रसन्नता का अनुभव करेगी। आज देश में जिस प्रकार का व्यभिचार दिखाई दे रहा है, उसमें सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार से कमाया हुआ धन है। क्योंकि अनीति से की गई कमाई कभी संस्कार नहीं दे सकती। इस प्रकार की कमाई परिवारों को तबाह कर देती हैं। अनीति की कमाई कुछ समय का सुख प्रदान कर सकती हैं, लेकिन जीवन का वास्तविक आनंद नहीं दे सकती। हमें इस बात का ध्यान रखना है कि अगर हम लालच दिखाएंगे तो हर कोई लालच दिखाएगा। लालच ही काले धन और भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा कारण है, सरकार ने अपना काम कर दिया है, अब जनता को अपना काम करना होगा।


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सुरेश हिन्दुस्तानी
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मोदी जी! नोटबंदी घोटाले के लिये जिम्मेदार कौन ?

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कालाधन पर अंकुश के लिये लागू की गई नोटबंदी योजना आम जनता, मजदूर, साधारण व्यापरी, किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रही है, वहीं भ्रष्ट व्यवस्था के चलते बैंक अफसरों, दलालों, माफियाओं के लिये यह योजना भी सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी साबित हुई है। जहां आम जनता को कई-कई दिनों तक लाइनों में लगने के बाद भी बैंक और एटीएम से हजार रूपये भी नसीब नहीं हो रहे हैं वहीं दलाल-माफियाओं तक करोड़ों की नई करेंसी भण्डार के रूप में जमा हो गई है जो छापेमारी के दौरान जगह-जगह से बरामद हो रही है। जिससे मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गया है।  करोड़ों की नई करेंसी के बरामद होने के बाद जहां बैंक अफसरों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वहीं मोदी सरकार का बचाव किया जा रहा है। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारी-भरकर रकम बैंको से बदली गई या फिर बैंक पहुंचने से पहले ही हेरा-फेरी का खेल-खेला गया। क्योंकि सैकड़ों-करोड़ की अदला-बदली के खेल में अकेले बैंक अधिकारी एवं कर्मचारियों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बल्कि केन्द्र सरकार की नीति और नीयत भी कम जिम्मेदार नहीं है जिसने विपक्षी नेताओं को पटखनी देने के नाम पर बगैर किसी पारदर्शिता, स्वच्छता-तैयारी के आनन-फानन में नोटबंदी की योजना को लागू कर पूरे देश की जनता को आर्थिक आपातकाल की आग में झोंक दिया। मोदी सरकार ने ना तो यह देखा कि देश में कितने एटीएम लगे हुए हैं और उनमें से कितने प्रतिशत एटीएम चालू हालत में है। आप को जानकार हैरानी होगी कि दो लाख से अधिक एटीएम में करीब 70 प्रतिशत एटीएम खराब/बंद पड़े हुए थे। जिसमें 95 प्रतिशत ग्रामीण अंचल के एटीएम मात्र शोपीस के रूप में लगे हुए हैं। रही-सही कसर दो हजार के नोट का पैनल एटीएम में न लगने से पूरी हो गई।

केन्द्र सरकार एवं आरबीआई की नीति एवं नीयत पर इसी से प्रश्न चिन्ह लगता है कि जब नये दो हजार के नोट छपने का कार्य तीन माह से चल रहा था तो उसी समय से एटीएम में पैनल क्यों नहीं लगवाये गये और खराब एटीएमों को क्यों नहीं सही कराया गया। एक ओर एटीएम बगैर राशि के सुनसान नजर आ रहे थे या फिर मामूली रकम डालकर संचालन दिखाया जा रहा था वहीं दूसरी तरफ बैंक अफसर-माफिया मिलकर सैकड़ों करोड़ की रकम (जो लाखों करोड़ भी हो सकती है) को पर्दे के पीछे से अदला-बदली करने में लगे हुए थे। जबकि केन्द्र सरकार एवं बैंक अफसर अव्यवस्था के लिये जनधन खातों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन पर नये-नये नियम-कानून बनाकर थोपे जा रहे हैं। जिसमें जनधन खातों में जमा की राशि में कोई निकासी न होने से हजारों करोड़ की नई करेंसी माफियाओं तक पहुंच गई। इसमें दो हजार के सभी नोट अलग-अलग लगातार सीरीज में बताये जा रहे हैं। नोटबंदी योजना में राहुल गांधी, केजरीवाल, मायावती, ममता बनर्जी आदि विपक्षी नेता मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ घोटाले के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन वह इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं दे पाये हैं। नोटबंदी योजना की अव्यवस्था के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वित्तमंत्री अरूण जेटली और आरबीआई अधिकारी बैंक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही उसी तरह कर रहे हैं जिस तरह यूपीए सरकार के दौरान 2जी स्पैक्ट्रम से लेकर अन्य घोटाले में शामिल मंत्रियों-अफसरों के खिलाफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सख्त कार्यवाही कर ईमानदार नेता होने का परिचय दिया था। इसी तरह उत्तरप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग (एन.आर.एच.एम.) में हुए हजारों करोड़ के घोटाले में मायावती ने भी दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर ईमानदार मुख्यमंत्री होने का परिचय दिया था। मध्य प्रदेश में हुऐ व्यापमं घोटाले के दोषियों को जेल भेजकर शिवराज सरकार ने भी ईमानदार होने का प्रमाणपत्र जनता को दिया था। इसी तरह के तमाम घोटाले हैं जहां बड़े नेताओं ने अपने छोटे नेताओं और अफसरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर ईमानदार होने का परिचय दिया है। जिस तरह तमाम घोटालों और हत्याओं के बावजूद भी मनमोहन, सोनिया, राहुल गांधी, माया-शिवराज बेदाग साबित हुए उसी तरह नोटबंदी में हुए घोटाले के बावजूद मोदी और जेटली की ईमानदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता है?

कालाधन अंकुश के नाम पर जिस तरह देश की सवा सौ करोड़ से अधिक की जनता को आर्थिक आपातकाल की आग में झौंका गया, क्या भ्रष्ट नेताओं, अफसरों, माफियाओं के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाये गये। मजदूरों के जनधन खातों में जमा रकम की निकासी पर रोक, लाइन में लगी जनता की अंगुलियों पर स्याही के इंतजाम तो किये गये लेकिन राजनैतिक पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता, उनके खातों को डिजिटलाइज करने, राजनैतिक पार्टियों को चन्दा चैक से लेने, पार्टियों को सूचना अधिकार (आरटीआई) के दायरे में लाने, राजनैतिक नेताओं, आयकार विभाग प्रशासनिक अफसरों द्वारा जुटाई गई अवैध सम्पत्ति की जांच कराने एवं चुनाव सुधार के लिये काई सख्त कदम नहीं उठाये गये। एक तरफ मोदी सरकार ई-पेमंेट (कैशलेस) योजना को लागू करने पर जोर दे रही है वहीं दूसरी तरफ आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश के लाखों गांव ऐसे हैं जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, विद्युत, सड़क, पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता भी पूरी नहीं हो पा रहीं हैं। वहां ई-पेमंेट योजना कैसे लागू होगी इसका सरकार को भी पता नही है। उ.प्र. के सरकारी स्कूल-थानों में सरकार द्वारा कम्प्यूटर उपलब्ध कराये गये। जिसमें ग्रामीण अंचल के कम्प्यूटर इसलिए शोपीस बन गये क्योंकि या तो वहां विद्युत पहुंची ही नही थी और जहां पहुंची भी तो पढ़ाई के समय विद्युत आती नही है। इसी तरह ग्रामीण अंचल की बैंकों में कहीं विद्युत-जनरेटर तो कभी इंटरनेट अव्यवस्था के चलते कई-कई दिन तक बैंकिंग सेवाऐं ठप रहती हैं। जिससे ग्रामीण जनता दैनिक लेन-देन के मामले में बैंक से दूरी बनाये रखती है।

ग्रामीण अंचल के विकास की हालत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि प्राइवेट मोबाइल कम्पनी से लेकर सरकारी टेलीकाॅम कम्पनियों के टावर कर्मचारी डीजल बचाने के लिये जनरेटरों को ही कई-कई घण्टे तक बंद कर देते हैं जिससे पूरे-पूरे दिन मोबाइल सेवा ही ठप हो जाती है। ग्रामीण अंचल में ई-पेमेंट की व्यवस्था लागू करना जनता को मुसीबतों के दल-दल में धकेलना जैसा है। प्रधानमंत्री के कालाधन पर अंकुश के कदम की हर जगह प्रशंसा हो रही है। जनता भी झेलने को तैयार है। लेकिन क्या ये मुसीबतें नेताओं, अफसरों, माफियाओं, उद्योगपतियों के हितों के लिये बनाई गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी अगर आपकी नीति और नीयत ईमानदार है तो सबसे पहले अपनी पार्टी के सबसे भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर उनकी सम्पत्ति जब्त करायें, आयकर विभाग के उन भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करें जो करोड़ों की रिश्वत देकर मनचाही तैनाती पाकर करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति के मालिक बन बैठे हैं। इसके अलावा राजनैतिक पार्टियों के चन्दों पर सख्त पहरा लगायें, उन्हें आरटीआई के दायरे में लायें, भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून पारित करें जिससे देश की त्रस्त जनता को वास्तविक रूप से राहत मिल सके। ना कि नोटबंदी के नाम पर उसका शोषण हो। अगर मोदी जी और उनके अंधभक्त शासन-प्रशासन में पूर्ण ईमानदारी के समर्थक हैं तो वह गाली देने के स्थान पर इस कहानी पर अवश्य विचार कर आत्म मंथन करें।

बहुत दिन पहले की बात है एक राजा था बहुत ही ईमानदार, किन्तु उसके राज्य में हर तरफ अशांति थी। राजा बहुत परेशान। उसने घोषणा करवाई कि जो मेरे राज्य को सही कर देगा उसे पांच लाख का इनाम दूंगा। सभी मंत्रियों ने कहा कि यह राशी बहुत कम है। राजा ने फिर घोषणा करवादी कि वह अपना आधा राज्य दे देगा। लेकिन कोई भी उसके राज्य को ठीक करने के लिए आगे नही आया। कुछ दिनों बाद एक सन्यासी आया और बोला- महाराज मै आपका राज्य ठीक कर दूंगा और मुझे पैसा भी नही चाहिए और आपका राज्य भी नही चाहिए। पर आपको मेरी एक शर्त माननी होगी कि किसी भी शिकायत पर मै जो फैसला करूंगा आपको वो मानना होगा। राजा ने शर्त मान ली। अब सन्यासी ने राजा से कहलवाकर राज्य भर से शिकायत मंगवाई। राजा के पास टोकरे के टोकरे भर भर कर शिकायत आने लगी। जब शिकायत आनी बंद हो गयी तो सन्यासी ने राजा को किसी एक पर्ची को उठाने को कहा। जब राजा ने एक पर्ची उठा कर उसकी शिकायत पढ़ी तो वह सन्न रह गया। उसमे लिखा था – मै एक गरीब किसान हूँ और राजा का लड़का मेरी लडकी को छेड़ता है, अब मै किसके पास शिकायत लेकर जाऊ। यह सुनकर उस सन्यासी ने कहा- राजा तू अपने लडके को कल जेल में डाल दो | राजा के यह सुनकर आशू आ गये क्योकि वह उसका इकलोता लड़का था और ऐसा करने से मना किया। सन्यासी ने राजा को कहा कि तुमने मुझे कहा था कि तुम मेरी शर्त मानोगे। फिर राजा ने वैसा ही किया और दूसरे दिन अपने बेटे को जेल में डाल दिया | इसके बाद राजा ने सन्यासी से कहा कि क्या दूसरी पर्ची उठाऊ? सन्यासी ने कहा- राजन अब किसी पर्ची को उठाने की जरूरत नही । इन सब में अब तुम आग लगा दो। जिस देश का राजा एक शिकायत मिलने पर अपने बेटे को जेल में डाल सकता है , उस देश में कोई भी अब अपराध करने का साहस नही कर सकता। और सच में उस राजा का राज्य बिलकुल सही हो गया। किसी ने सच ही कहा है जिस देश का राजा जैसा होता है, उस देश की प्रजा भी वैसी ही हो जाती है। 


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मफतलाल अग्रवाल
(लेखक वरिष्ट पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

व्यवस्था की मजबूरी बन गये हैं अन्य पिछड़ा वर्ग

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देश की बृहत्तम आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है और उक्त वर्ग को अभीतक इस देश में इनके अधिकारों से तमाम कारणों के तहत बंचित कर रखा गया है। देश में ज्यादत्तर समय तक सत्ता में रहीं कांग्रेस सरकार ने अबतक उक्त वर्ग को उपेक्षित ही कर रखा था। जबकि इस वर्ग के वोटों की बदौलत नेतागण सत्ता सुख भोगते रहें। सबसे दुखद बात तो यह है कि पिछड़ों को सिढ़ी बनाकर संसद में पहुंचने वाले तमाम राजनेता संसद जाने के बाद सत्ता सुख की आबोहवा में इस कदर मसगूल होंते रहें कि जैसे उन्हें उक्त वर्ग से कोई सरोकार ही नहीं था या फिर है। उक्त वर्ग ने समय-समय पर तमाम आन्दोंलनों के जरीये अपनी मांगों को तमाम सरकारों के समाने रखा और अब तो पिछड़ा वर्ग किसी भी सरकार के लिये उतना ही अहम है जितना जिन्दगी के लिये हवा या पानी।

कांग्रेस सरकार को छोड़ दें तो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को वर्तमान की मोदी सरकार से काफी उम्मीदें है। सरकार ने इस वर्ग के लिये किश्तों में ही सही सार्थक प्रयास कर रही है। ऐसे में  अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)  की केंद्रीय सूची में 15 नई जातियों को केंद्र की मोदी सरकार नेशामिल किया है। सरकार ने इस बारे में अधिसूचना जारी की है। बिहार और झारखंड की एक-एक जातियां शामिल की गई हैं। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने आठ राज्यों- असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, महराष्ट्र, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के संदर्भ में 28 बदलावों की सिफारिश की थी। इन 28 में से, बिहार में  गधेरीइताफरोश, झारखंड में झोरा और जम्मू-कश्मीर में लबाना समेत 15 जातियां नई प्रवष्टियां हैं, नौ कुछ जातियों की पर्याय या उपजातियां हैं जो पहले से सूची में हैं तथा चार में सुधार किया गया है। संयुक्त सचिव बी एल मीणा के हस्ताक्षर वाली अधिसूचना कहती है, केंद्र सरकार ने एनसीबीसी और जम्मू-कश्मीर सरकार की उपरोक्त सिफारिशों पर गौर किया और उन्हें मंजूर किया तथा उक्त राज्यों के अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में उन्हें शामिल करने-सुधार करने की अधिसूचना जारी करने का फैसला किया। जाहिर है कि पिछड़ों के आन्दोंलन और जागरुकता को देखते हुए कोई भी इस बात को समझ सकता है कि इस वर्ग को अगर अब और दरकिनार नहीं किया जा सकता है। जबकि अबतक उक्त वर्ग को दरकिनार ही किया जाता रहा है। जरा ध्यान दें तो पता चलेगा कि 1 

जनवरी 1978 को पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की गई। यह आयोग मंडल आयोग के तौर पर जाना गया। 1980 के  दिसंबर माह में मंडल आयोग ने देश के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी। उक्त रिपोर्ट में अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई थी। 1982 में रिपोर्ट संसद में पेश हआ और फिर 1989 के लोकसभा चुनाव में जनता दल ने आयोग की सिफारिशों को चुनाव घोषणापत्र में शामिल किया। 7 अगस्त 1990 विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की। आज पिछड़ों के आत्म बलिदान और आन्दोंलन रंग ला रहा है। यहीं कारण है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)  की केंद्रीय सूची में 15 नई जातियों को सरकार ने शामिल किया है। वैसे देखा जाये तो उक्त वर्ग को बंगाल में सबसे ज्यादा  उपेक्षित होना पड़ रहा है। कारण देश के तमाम राज्यों लगभग 27  प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है लेकिन यहां सबसे कम 7 प्रतिशत ही । देखा जाये तो बंगाल में भी अब उक्त वर्ग में व्यवस्था के खिलाफ आसंतोष फूटने लगा है। शायद यही कारण था कि राज्य के हुगली जिले व महानगर कोलकाता में भाजपा ओबीसी मोर्चा के कार्यक्रम में पिछड़ों रेला उमड़ा। 

आकड़ों और दस्तावेज की माने तो मंडल आयोग द्वारा  तमाम उपाय व बैज्ञानिक अधार के तहत 11 प्रकार की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक सह अन्य मामलों पर जातियों का अध्यन किया था। तब गहन शोध के बाद आयोग ने पाया था कि देश में इस समय कुल 3,743 पिछड़ी जातियां हैं। यह भारतीय आबादी का कुल जमा 52 प्रतिशत हिस्सा था। इसके लिए 1931 की जनगणना को आधार बनाया गया था। इससे पूर्व कालेलकर आयोग ने 2,399 जातियों को पिछड़ा और इनमें से 837 को अति पिछड़ा माना था। आज उक्त वर्ग किसी की भी सत्ता को हिलाने की औकात रखते हैं लेकिन बस जरुरत है इंन्हें एक ईमानदार आन्दोंलन व मुखिया की।


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जगदीश यादव
लेखक अभय़ बंग पत्रिका के सम्पादक व पं. बंगाल भाजपा ओबीसी मोर्चा के मीडिया प्रभारी हैं।

आदेश की अनदेखी करने के आरोप में आंदोलनरत

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मधेपुरा। वरीय अधिकारी के आदेश की अनदेखी करने के आरोप में बाल विकास परियोजना पदाधिकारी  ,मधेपुरा के विरूद्ध पूजा कुमारी आंदोलनरत हैं। दिनांक 3 दिसम्बर से 4 दिसम्बर तक धरना और 5 दिसम्बर से बेमियादी आमरण-अनशन पर है। आज तीसरे दिन भी आमरण-अनशन पर हैं। मधेपुरा प्रखंड के मदनपुर पंचायत के आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या 201 पर मैपिंग पंजी में नाम अंकित  नहीं होने के बावजदू सीडीपीओ मंजुला कुमारी व्यास द्वारा भारती कुमारी को सेविका पद पर चयन कर  जाॅब कोर्स में प्रशिक्षण में भेजे जाने के विरूद्ध पूजा कुमारी अनशन पर है।  कला भवन मधेपुरा के समक्ष धरना पर बैठने के बाद पांच दिसंबर को दिन के 11 बजे से अपने छोटे पुत्र हर्ष कुमार के साथ आमरण-अनशन पर बैठ गयी है। पूजा कुमारी ने बतायी कि आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या 201 पर बहाली हेतु वर्ष 2013 से संघर्ष करती आ रही हूं। संघर्ष के पद चलकर नौकरी प्राप्त करूंगी। इसके बाद सीडीपीओ ने मेरी मां को कस्तूरबा विघालय का वार्डेन का नौकरी में रहने का बहाना बनाकर छंटनी कर दिया परंतु मैंने निर्देशक आसीडीएस बिहार पटना से संघर्ष कर एक पत्र का हवाला देते हुए बतायी कि समाज कल्याण विभाग बिहार सरकार के सचिव कें संचिका संख्या आसीडीएस 300010/01/2011 3201 दिनांक 7 अगस्त 2013 के द्वारा राज्य के तमाम जिला पदाधिकारी को निर्देश दिये हैं कि पंद्रह हजार रू0 से कम मानदेय प्राप्त करने वाले के बेटी को सेविका के पद पर बहाल किया जा सकता है परंतु मेरी मां को मात्र सतरह सौ रू0 प्रतिमाह मानदेय प्राप्त होती है। सीडीपीओ ने इस पत्र को दरकिनार कर दी और भारती कुमारी को बहाली कर दी जो सरासर कानून का मजाक है। पूजा कुमारी के पति है मुकेश कुमार। दोनों के सहयोग से 2 बजे हैं। अभी पूजा कुमारी को आमरण-अनशन स्थल पर ग्लुकोस चढ़ाया जा रहा है। पूजा भी यादव है और भारती भी यादव है।

अवीवा ने लाँच किया ‘‘अवीवा हार्ट केयर‘‘

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  • 2 दिल, एक पाॅलिसी - कपल्स के लिए संयुक्त सुरक्षा, ”अच्छी सोच“ का प्रस्ताव

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नई दिल्ली: अवीवा लाइफ इंश्योरेंस ने भारत में कपल्स के लिए अवीवा हार्ट केयर के नाम से अभी तक का पहला हार्ट इंश्योरेंस लाँच किया है। इस प्रोडक्ट की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें एक ही पाॅलिसी में जीवन साथी और स्वयं के लिए मामूली अतिरिक्त प्रीमियम पर सुरक्षा मिलती है। अवीवा हार्ट केयर में बेसिक बीमा राशि समाप्त हो जाने पर गंभीर परिस्थितियों के लिए पाॅलिसी के लाभ को दोबारा इस्तेमाल करने का भी विकल्प है। इस पाॅलिसी के दायरे में हृदयधमनी संबंधी 19 हल्के, मध्यम और गंभीर समस्याओं तथा इलाज शामिल हैं। इलाज के खर्च का विचार किए बगैर एकमुस्त राशि का भुगतान किया जाता है। अवीवा हार्ट केयर एक समर्पित, व्यापक हार्ट केयर प्लान है जो इस संबंध में मौजूदा जरूरत को पूरा करता है।

अवीवा लाइफ इंश्योरंस के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ, श्री ट्रेवर बुल ने जानकारी देते हुए कहा कि, ‘‘अवीवा की टीम लोगों के स्वस्थ्य जीवन यापन के प्रति वचनबद्ध है। हमारी ”अच्छी सोच“ के सिद्धान्त के हिस्से के तौर पर हमने ”अवीवा हार्ट केयर“ पेश करने का विचार किया है। इस प्रोडक्ट का उद्देश्य हृदय को स्वस्थ्य रखने में लोगों की सहायता करना और उन्हें खुद एवं जीवन साथी के लिए स्वास्थ्य को प्राथमिकता बनाने के लिए उत्साहित करना है।“ कार्डिएक सर्जन डाॅ. नरेश त्रेहान ने कहा कि, ”भारत में 40 से कम उम्र वाले वर्ग में हृदयधमनी रोग की घटना 30 तक बढ़ गई है। आजकल भारत में यह सबसे तेजी से फैल रहे गंभीर बीमारियों में से एक है जिसमें हर साल 9.2 की दर से बढ़ोतरी हो रही है। हम अक्सर देखते हैं कि इलाज के लिए आने वाले लोगों के पास पर्याप्त आर्थिक सुरक्षा नहीं होती है।“

अवीवा के ब्रांड ऐम्बेसडर, सचिन तेन्दुलकर ने ऐसे उत्पाद की जरूरत बताते हुए कहा कि, ”एक खिलाड़ी के नाते मैं हमेशा से तंदुरुस्ती का ख्याल रखता हूँ। मेरा मानना है कि खुशहाल जीवन के लिए हृदय का स्वस्थ रहना जरूरी है। अवीवा हार्ट केयर जैसी बीमा पाॅलिसी से परिवारों को पारस्परिक स्वास्थ्य की देखभाल में आसानी होगी। मैं मानता हूँ कि परिवार को साथ रखने के लिए कपल्स में दोनों के हार्ट का बीमा सचमुच ”गुड थिंकिंग“ है।‘‘

मैं बज़र बजाने वाला खुशमिजाज इंसान हूं : शान

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एंड टीवी का नया शो ‘द वाॅयस इंडिया सीजन 2‘ 10 दिसंबर से दर्शको के बीच है। यह शो प्रत्येक शनिवार-रविवार रात 9 बजे प्रसारित होगा। शो के सभी कोच अपनी टीम के लिए प्रतिभागियों को चुनने और अपनी कुर्सी घुमाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। हमेशा मुस्कुराते रहने वाले कोच शान से हमने शो के साथ उनके जुड़ाव को लेकर बातचीत की। दो सीजन में युवा प्रतिभाओं को मेंटर करने के बाद आप खुद में क्या बदलाव पाते हैं। द वाॅयस में सीखने का अनुभव काफी अद्भुत रहा। जब आप देशभर से आई अलग-अलग आवाजों को सुनते हैं तो आपको महसूस होता है कि संगीत में हमारा देश कितना समृद्ध है। जिस तरह से सारे प्रतिभागी अपनी दृढ़ महत्वाकांक्षा और समर्पण दिखाते हैं, वह सचमुच प्रेरित करने वाला है। उनके सफर का हिस्सा बनना और उनके हुनर को निखारना मेरे लिए खुशी की बात है। 

आपके अनुसार प्रतिभागियों को अपने गायन में किन चीजों पर ध्यान देना चाहिए? चूंकि, द वाॅयस एकमात्र ऐसा सिंगिंग रिएलिटी शो है, जिसमें प्रतिभागियों का चयन केवल उनकी आवाज के दम पर होता है। इसलिए प्रतिभागियों को सिर्फ अपनी गायिकी पर ध्यान देना चाहिए, किसी और चीज पर नहीं। उन्हें किसी की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बस अपने अनोखे अंदाज में परफाॅर्म करना चाहिए। 

हमने देखा है कि शो में आप सबसे प्यारे कोच हैं। क्या आपको लगता है कि इससे प्रतिभागियों से जुड़ने में आपको मदद मिलती है?
मैं लोगों से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूं और मुझे लोगों के बारे में जानकर अच्छा लगता है। मैं यह जानने की कोशिश करता हूं कि उनको निखारने के लिए क्या चीज काम करेगी। साथ ही मैं काफी शांत रहता हूं। चूंकि, मैं सिंगिंग का बहुत बड़ा दीवाना हूं, इसलिए जब लोग इसी तरह की दीवानगी दिखाते हैं तो मैं उनसे आसानी से जुड़ जाता हूं। कोच के रूप में टीम के सारे लोगों से मेरा प्यारभरा और दोस्ताना रवैया रहता है। मैं चाहता हूं वे सभी अच्छा करें। मैं उन्हें अपनी क्षमताओं के अनुसार अपना बेस्ट गाने का भरोसा दिलाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि वे संगीत के अपने इस सफर के हर पल का आनंद उठायें। 

गायन में अपने शुरुआती सालों के बारे में कुछ बताएं-आपका सफर कैसा रहा? कितना आसान या मुश्किल था? वो क्या चीज थी, जो आपको आगे बढ़ाती रही?
अगर शुरुआती दिनों की बात की जाए तो, कोच या मेंटर के रूप में, सचमुच मुझे कोई मार्गदर्शन नहीं मिला। हालांकि, मैं हमेशा से ही सीखने को लेकर उत्सुक रहा हूं और जल्दी सीख भी जाता था। इसलिए, मैं जाने-माने गायकों को सुनता और उनसे सीखता था। चूंकि, मुझे कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं मिली, मैंने खुद गायन की बारीरिकयों को सीखा। साथ ही अपनी गायिकी की खामियों पर काम किया। गाने को लेकर मेरा प्यार और मेरी दीवानगी मुझे आगे तक ले गई। 

द वाॅयस (सीजन 2) के आने वाले सीजन में आपके साथ बेनी और सलीम जुड़ने वाले हैं, जिनके लिये यह काॅन्सेप्ट नया है। क्या आप और नीति शो में सीनियर होने के नाते मिलकर उन पर हल्ला बोलने वाले हैं? 
ऐसा करने के बारे में सोचना मजेदार लग रहा है, लेकिन हमलोग मिलकर उन पर हल्का नहीं बोलने वाले हैं। सलीम और बेनी दोनों ही बड़े कमाल के हैं और मुझे उम्मीद है कि शो पर उन्हें अच्छा लगेगा। मुझे उनके साथ शूटिंग करके काफी मजा आ रहा है। 

एक लाइन में बताएं, कि कोई प्रतिभा आपको कैसे प्रभावित कर सकती है, जिससे कि आप उनके लिए अपनी कुर्सी घुमाने को मजबूर हो जायें?
बज़र बजाने के लिए मुझ पर तीन चीजें काम करती हैं। सबसे पहले तो, मैं ऐसी आवाज सुनना चाहता हूं जिनमें थोड़ी ट्रेनिंग हो और सधी हुई हो। दूसरी चीज, मैं देखना चाहता हूं कि प्रतिभागी कितना सहज है और उसकी आवाज कितनी बेहतर है। तीसरी बात यह कि, मैं देखता हूं कि मेरी टीम में कौन-सी जगह बची है। क्या वह वेस्टर्न गायन है सूफी गायक है या फिर दूसरे तरह के गाने गाता है। मैं बज़र बजाने वाला एक खुशमिजाज इंसान हूं, इसलिए इस पल मुझे जो अच्छा लगता है मैं बज़र बजा देता हूं। 

सत्ता संरक्षित यादव जाति के दबंगों द्वारा अररिया में महादलितों पर हमला बेहद निंदनीय: माले

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माले कार्यकर्ता कमलेश्वरी रीषिदेव लापता, हत्या की आशंका, माले के अररिया जिला सचिव सत्यनारायण प्रसाद सहित आधा दर्जन महादलित बुरी तरह घायल. हमलावर मनीष यादव, रामा यादव, बउउा यादव, दयानंद यादव, मनोज राय आदि को अविलंब गिरफ्तार करे प्रशासन दलित-गरीबों के प्रति सरकार का रवैया बेहद संवेदनहीन. 4 जनवरी को होगा जिलास्तरीय प्रदर्शन.

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पटना 1 जनवरी 2017, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने अररिया जिले के भरगामा प्रखंड के रहरीया गांव में मुसहर जाति के गरीबों के ऊपर यादव जाति के सामंती-अपराधियों द्वारा किए गए जानलेवा हमले की कड़ी भत्र्सना की है. हमले में पार्टी के जिला सचिव सत्यनारायण प्रसाद सहित आधा दर्जन महादलित बुरी तरह घायल हो गये हैं. भाकपा-माले के स्थानीय कार्यकर्ता कमलेश्वरी रीषिदेव (उम्र-35 वर्ष) लापता हैं और उनकी हत्या की आशंका जाहिर की जा रही है. माले राज्य सचिव ने कहा कि ‘सामाजिक न्याय’ की दंभ भरने वाली लालू-नीतीश सरकार दलित-गरीबों के प्रति पूरी तरह संवेदनहीन बनी हुई है. सरकार का यह रवैया बेहद निंदनीय है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 का साल बिहार के दलित-गरीबों के लिए हत्या व प्रताड़ना का वर्ष था ही, नए साल की शुरूआत भी हमले से हुई है. यह बेहद चिंतनीय है. उन्होंने कहा कि हमलावर बगल के गांव बेलसारा के हैं और दबंग हैं. सभी हमलावरों मनीष यादव, रामा यादव, बउआ यादव, दयानंद यादव और मनोज राय को अविलंब गिरफ्तार किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि रहरीया गांव में पिछले 40 वर्षों से महादलित मुसहर समुदाय के लोगों का 35-40 घर आबाद है. सिलींग की इस जमीन पर उन्हें 1975 में ही पर्चा मिल गया था. तकरीबन 100 एकड़ जमीन में 3 एकड़ जमीन पर वे बसे हुए हैं, लगभग 7 एकड़ जमीन पर वे खेती करते हैं और बाकि जमीन परती है. बगल में 1000 एकड़ सिलींग की और जमीन है. जिस पर गरीबांे को पर्चा तो मिला है, लेकिन आज तक उनका कब्जा नहीं हो सका है. स्थानीय सामंती दबंगों ने जमींदारों से मिलीभगत करके उस जमीन का फर्जी केवाला करा लिया है और 7 एकड़ जोत की उनकी फसल काट ली. अब वे मुसहर लोगों को आवासीय जमीन से भी बेदखल करने की कोशिश कर रहे हैं. इसी सिलसिले में काॅ. सत्यनारायण प्रसाद गांव में बैठक करने गये हुए थे, जहां उनके उपर हमला कर दिया गया. उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार दलित-गरीबों को वास-चास की जमीन दिलाने की बात करती है, लेकिन उलटे आज दलित-गरीबों को अपनी बसी-बसायी जमीन से भी बेदखल करने का खेल पूरे राज्य में जारी है और सरकार चुप बैठी है.

घटना की जानकारी मिलते ही पार्टी की राज्य कमिटी सदस्य काॅ. नवल किशोर व पंकज सिंह घटनास्थल पर रवाना हो गये हैं. कल तक अन्य दूसरे प्रमुख नेता भी अररिया पहुंच जायेंगे. 4 जनवरी को दलित-गरीबों पर लगातार बढ़ते हमले और जमीन से बेदखली के खिलाफ जिलास्तरीय कार्यक्रम होगा, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय कमिटी सदस्य रामेश्वर प्रसाद शामिल होंगे.

तेज प्रताप कन्हैया बन गौशाला में मनाया न्यू ईयर

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पटना : राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे एवं स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने रविवार को अनोखे अंदाज में न्यू ईयर मनाया. साल के पहले दिन तेज प्रताप यादव भीड़ भाड़ से दूर अपने गायों के बीच नजर आए. तेज प्रताप सुबह स्नान और पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण का रुप धारण कर अपने गोशाला में पहुंचे. फिर उन्होंने यहां पर अपने गायों को अपनी बांसुरी बजाकर मनोरंजन किया. इस तरह न्यू ईयर मनाने के बारे में तेज प्रताप यादव ने कहा कि वृंदावन में एक पुजारी ने उन्हें ये सब गिफ्ट किया था और कहा था कि वो न्यू ईयर के दिन इसे पहनें. इसलिए उन्होंने इस तरह से न्यू ईयर मनाया. मालूम हो कि कुछ दिन पहले ही तेज प्रताप यादव मथुरा और वृंदावन से पटना लौटे हैं. वृंदावन में रहने के दौरान उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि नोटबंदी की तरह गौ हत्या पर भी प्रतिबंध लगे. 

मोदी का भाषण ऊँची दुकान, फीके पकवान : मायावती

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नयी दिल्ली 01 जनवरी, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सम्बोधन को देश के लिए अत्यंत मायूस और निराशजनक करार देते हुये आज कहा कि यह देश को हताश करने वाला तथा “ऊँची दुकान, फीके पकवान” जैसा था, जिससे 90 प्रतिशत आबादी को राहत नहीं मिलेगी। सुश्री मायावती ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री के भाषण से पिछले 50 दिन से नोटबन्दी की जबर्दस्त पीड़ा झेल रही 90 प्रतिशत आबादी कोई राहत नहीं मिली है। इससे अनिश्चितता का माहौल अभी काफी दिनों तक रहने वाला है, जो देशहित में सुखद स्थिति नहीं है। उन्होेंने कहा कि श्री मोदी का सम्बोधन हमेशा की तरह ’’उपदेशात्मक’’ ज़्यादा था और उस लम्बे भाषण में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे नये वर्ष में उम्मीद की नयी किरण जगे और देश अविश्वसनीयता एवं अनिश्चितता के माहौल से उबर सके।

इंडोनेशिया में नौका में लगी आग, 23 की मौत, कई घायल

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जकार्ता, 01 जनवरी, इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता के उत्तरी हिस्से में करीब ढाई सौ लोगों को लेकर जा रही एक नौका में आग लग जाने से 23 लोगों की मौत हो गयी जबकि कई लोग घायल हो गये। शहर की खोज एवं बचाव एजेंसी ने बताया कि जारो एक्सप्रेस नामक यह नौका लोगों को लेकर जकार्ता के उत्तर में स्थित द्वीपों पर ले जा रही थी। मौरा आंके तट से कुछ दूर जाते ही इसमें आग लग गयी। पुलिस का कहना है कि आग का कारण नाव के पावर जेनरेटर में शॉर्ट सर्किट माना जा रहा है। दुर्घटना में घायल यात्री आर्दी ने जकार्ता अस्पताल में बताया “अचानक केबिन में काला धुआं उठा और पूरी नौका में फैल गया। यात्रियों में खलबली मच गयी और वे पानी में फ्लोट फेंकने के लिए डेक की तरफ भागे। क्षण भर में ही आग की लपटें तेज हो गयीं। जहां ईंधन रखा जाता है वहीं से लपटें आ रही थीं।” नौका काे खींच कर तट पर लाया गया और जली हुई नौका से शवों को निकाला जा रहा था। जकार्ता की खोज एवं बचाव एजेंसी की प्रमुख हेंड्रा सुदिरमन ने बताया कि नाैका पर 248 लोग सवार थे जिनमें 200 से ज्यादा को बचा लिया गया है। 32 लोगों को जकार्ता अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

कांग्रेस ने सपा में जारी उठापटक को उसका अंदरूनी मामला बताया

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नयी दिल्ली 01 जनवरी, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ समाजवादी पार्टी (सपा) काे समान विचारधारा वाली पार्टी बताते हुये आज उम्मीद जतायी कि पार्टी में जारी उठापटक से उत्पन्न संकट का जल्द हल निकल जायेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने आज यहाँ प्रेस ब्रीफिंग में उत्तर प्रदेश में सपा में चल रही उठापटक के बाबत पूछे गये सवालों के जवाब में कहा कि सपा में जो कुछ भी हो रहा है, वह उसका अंदरूनी मामला है। इसलिए कांग्रेस इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती। हालाँकि, उन्होंने उम्मीद जतायी कि सपा में जारी संकट का जल्द समाधान हो जायेगा। सपा को समान विचारधारा वाली पार्टी बताते हुये कांग्रेस नेता ने कहा कि दोनों ही दल सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लडाई लड रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच उठापटक चल रही है। इस बीच, राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और सपा के गठबंधन के काेशिशों की चर्चा भी राजनीतिक गलियारों में चल रही है।

सोमदेव ने कहा प्रो टेनिस को अलविदा

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नयी दिल्ली ,01 जनवरी, एक चौंका देने वाले फैसले के तहत भारत के शीर्ष टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देववर्मन ने रविवार को अचानक ही प्रोफेशनल करियर को विराम देने की घोषणा कर दी। यह बेहद ही हतप्रभ कर देने वाला निर्णय है और इससे सोमदेव के प्रशंसकों को निराशा हुयी होगी। सोमदेव ने नये साल पहले ही दिन ट्विटर पर यह घोषणा की कि वह अपने प्रोफेशनल करियर से संन्यास ले रहे हैं। उन्होंने कहा,“ मैं साल की शुरुआत एक कड़े निर्णय के साथ कर रहा हूं और खेल से संन्यास ले रहा हूं। मैं अपने तमाम समर्थकों का तहे दिल से शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे अच्छे-बुरे दौर में हमेशा समर्थन दिया।” पिछले कुछ समय से प्रतिस्पर्धी टेनिस से दूर सोमदेव अंतिम बार दो वर्ष पहले यूएसए एफ 10 फ्यूचर्स टेनिस कप में सेबेस्टियन फैंसेलो के खिलाफ खेले थे। उन्होंने यह मुकाबला 3-6,2-6 से गंवाया था। प्रतिभा के धनी सोमदेव 2008 के बाद से लगातार डेविस कप में देश का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।
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