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बैतूल में कोलकर्मी के खाते में अचानक पहुंचे एक अरब

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बैतूल, 09 जनवरी, मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के पाथाखेड़ा कोल नगरी का एक कर्मचारी अचानक अरबपति बन गया। कर्मचारी अपने एटीएम कार्ड के ब्लॉक होने पर बैंक पहुंचा, जहां जाकर उसे पता चला कि उसके खाते में 99 करोड़ 99 लाख 99 हजार 999 रुपए चढे हुए हैं। एटीम स्टेटमेंट की पर्ची व्हाट्सऐप पर वायरल होने के बाद पूरे मामले का खुलासा हुअा। मिली जानकारी के मुताबिक पाथाखेड़ा की तवा-टू खदान में कार्यरत निजामुद्दीन मंसूरी पिछले दिनों एटीएम से रुपए निकलने पहुंचा था। एटीएम काम नहीं किया तो वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की पाथाखेड़ा ब्रांच पहुचा। यहां उसे पता चला कि उसके खाते में गलती से 99 करोड़ 99 लाख 99 हजार 999 रुपए चढ़ गए हैं, इसलिए एटीएम कार्ड ब्लॉक किया गया है। 2 जनवरी को जब उसने अपना बैंक अकाउंट चेक किया तो उसके खाते में 99, 99, 99, 999 रुपए थे। घटनाक्रम के बारे में निजामुद्दीन ने बताया कि फिलहाल यह राशि उसके खाते में नहीं है, लेकिन 2 जनवरी को एटीएम से निकले स्टेटमेंट में ये राशि थी। 

बच्चों को इंसानियत और राष्ट्रीयता के बाद दें धर्म की सीख : सत्यार्थी

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सागर, 09 जनवरी, नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने आज कहा कि आजकल बच्चों को जो पहचान दी जाती है वह तोडने वाली है। जबकि बच्चे की पहचान इंसानियत और राष्ट्रीयता के साथ होनी चाहिए, उसके बाद परंपरा के हिसाब से अपने धार्मिक रीति रिवाजों की सीख देनी चाहिए। मध्यप्रदेश के मूल निवासी श्री सत्यार्थी आज सागर प्रवास के दौरान डॉ हरीसिंह गौर विवि के वाडिया हाल में नगर के गणमान्य नागरिकों के बीच अपने विचार साझा कर रहे थे। उन्होंने शुद्ध बुंदेली बोली में अपनी बात रखते हुए कहा कि हजारों वर्षो से अभिभावकों ने बच्चों को सिर्फ और सिर्फ मजबह का पाठ पढाया है। उन्होंने कहा कि मानवीय मूल्य अपने व्यवहार में पैदा होते हैं किताबों में लिखे और पढे नहीं जा सकते। बचपन बचाओ आंदोलन शुरू करने वाले श्री सत्यार्थी ने कहा कि हमें अपने बाहर और भीतर के बचपन को बचाना होगा। बाहर का बचपन हिंसा, जुल्म, अशिक्षा सहित अन्य सामाजिक बुराइयों का शिकार है। वहीं भीतर का बचपन सादगी, सरलता सीखने की प्रवृति, क्षमा, ताकत, शांति और संतोष पर आधारित है। 

किशोर अवस्था में बढती आत्महत्याओं पर उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में दोष जरूर हो सकता है, मगर समाज अर्थात अभिभावक अपने बच्चे से अपेक्षाएं बहुत ज्यादा करने लगे हैं। मां बाप का अपने बच्चों से रिश्ता सिर्फ अपने मन की भूख तक मिटाने तक सीमित है। नोबल पुरस्कार विजेता ने कहा कि सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में बस्ते के बोझ का कम होना स्वभाविक है। मनोरंजन एवं संचार तथा प्रौद्योगिकी के युग में कंप्यूटर और लैपटॉप पर केंद्रित शिक्षा से अपने आप तक सीमित समाज का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि समाज में पढने से करुणा और संवेदना के भाव आते हैं, जबकि हाईटेक युग में एकांगी समाज की संरचना तैयार होगी। डिजीटल इंडिया जरूर बनाएं लेकिन इंसान का डिजीटिलाइजशन न होने दीजिए। श्री सत्यार्थी ने कहा कि लडकियों की ताकत लडकों से एक लाख गुना ज्यादा है। ताकत को दिखाना होगा जिससे आए दिन होने वाली घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है। कैलाश सत्यार्थी ने आज अपने पारिवारिक सदस्यों की चर्चा करते हुए कहा कि आज से कई वर्ष पूर्व वे दिल्ली की सुमेघा के साथ जात पात के बंधनों को तोडते हुए दांपत्य सूत्र में बंधे थे। स्वयं भी जाति के स्थान पर सत्यार्थी लिखा करते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ समय पूर्व जब पोता हुआ तो उन्होंने उसका नाम इंकलाब रखा। उन्होंने कहा कि जाति का उल्लेख न होने से समस्याएं तो आती हैं, मगर उनका निराकरण भी सामने आ जाता है। इस अवसर पर विवि के कुलपति प्रो आरपी तिवारी, श्री सत्यार्थी की धर्मपत्नी सुमेघा सत्यार्थी, कुलसचिव डॉ निवेदिता मैत्रा विशेष रूप से उपस्थित थी। 

तीन तलाक शरियत के खिलाफ: सलमा आगा

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लखनउु 09 जनवरी(वार्ता) फिल्म ‘निकाह’ में अपने यादगार अभिनय के जरिये दर्शकों के दिलों पर छा जाने वाली मशहूर अदाकारा सलमा आगा ने तीन तलाक को शरियत के खिलाफ बताया है। सुश्री आगा ने कहा “ कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं है। यह इस्लाम के खिलाफ है। इससे महिलाओं का उत्पीडन हो रहा है। उन्होंने तीन तलाक का समर्थन करने वाले पुरुषों को भी आडे हाथों लिया।” उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन तलाक के रुख का समर्थन करने पर बधाई दी और दावा किया कि इससे उत्पीडित महिलाओं का पक्ष रखने की वजह से श्री मोदी मुस्लिम महिलाओं में भी लोकप्रिय हो रहे हैं। प्रधानमंत्री के नोटबन्दी के फैसले को काफी बडा बताते हुए फिल्म अभिनेत्री ने कहा कि इससे देश की अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया (अठावले ग्रुप) के अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले के साथ यहां आई सुश्री सलमा आगा ने कहा कि चुनाव में आरपीआई के प्रचार के लिए अभिनेत्री राखी सांवंत,अलीखां और हेमन्त बिर्जे जैसे कलाकार उत्तर प्रदेश आयेंगे।

उत्तर प्रदेश : वामपंथी 200 सीटों पर लडेंगे चुनाव

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एटा,09जनवरी, उत्तर प्रदेश विधानसभा के कम से कम दो सौ सीटों पर वामपंथी अपने प्रत्याशी उतारेंगे। वामदल राज्य सचिव मंडल के सदस्य बृजलाल भारती ने आज यहां पत्रकारों से कहा कि राज्य विभानसभा की कुल 403सीटों में से कम से कम दो सौ सीटों पर वामपंथी दल उम्मीदवार खडा करेंगे । इसके लिए वामदलों की एकराय बन गयी है। उन्होंने कहा कि वामदल मुख्यतः मजदूरों और किसानों की समस्या को लेकर चुनाव में जायेगे। वामदलों ने चुनाव में उतरने का एलान कर कुछ सियासी दलों के सामने मुश्किलें खड़े कर दी हैं। एटा सदर सीट से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी)ने कामरेड राजाराम यादव और कासगंज जिले की अमापुर विधान सभा क्षेत्र से कामरेड सालिकराम को प्रत्याशी घोषित किया है। इस अवसर एटा में कार्यकर्ता सम्मलेन का भी आयोजन किया गया। सम्मेलन में ब्रजलाल भारती ने बताया कि वामदल मजदूरों और किसानों के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक सार्वजानिक क्षेत्र मजबूत नहीं होगा तब तक रोजगार नहीं उपलब्ध होंगे। इस अवसर पर एटा विधान सभा से घोषित उम्मीदवार राजाराम यादव ने कहा कि उनका चुनावी मुद्दा मजदूर और किसान के साथ ही बढती गुंडागर्दी , भ्रष्टाचार , टूटी सड़के, चिकित्सा की कोई व्यवस्था न होना और पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई होगी। 

जदयू कोर कमिटी की बैठक में 23 जनवरी को नोटबंदी के समर्थन पर होगा पुनर्विचार : नीतीश

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पटना 09 जनवरी, बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने आज घोषणा की कि 23 जनवरी को जदयू कोर कमिटी की बैठक में नोटबंदी के समर्थन के फैसले पर पुनर्विचार होगा । श्री कुमार ने यहां ..लोक संवाद.. कार्यक्रम के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नोटबंदी के पक्ष में यह दलील दी गयी थी कि इससे कालाधन और जाली नोट अर्थव्यवस्था से बाहर हो जायेंगे इसलिये उन्होंने केन्द्र सरकार के इस फैसले का समर्थन किया था । उन्होंने कहा कि 23 जनवरी महीने का चौथा सोमवार है और उस दिन उनका पूरा मंत्रिमंडल नोटबंदी पर महागठबंधन के तीनों घटक दल जदयू , राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की राय सुनेगा । इसके बाद उसी दिन जदयू कोर कमिटी की भी बैठक होगी जिसमें नोटबंदी के समर्थन के फैसले की समीक्षा की जायेगी । मुख्यमंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था से कालेधन को बाहर करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उन्होंने बेनामी सम्पत्ति पर भी प्रहार करने की मांग की थी । उन्होंने कहा कि सिर्फ नोटबंदी से ही कालाधन को समाप्त नहीं किया जा सकता है।

श्री कुमार से जब नोटबंदी के खिलाफ बिहार के किशनगंज में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धरना कार्यक्रम के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी राजनीतिक दलों को अपने एजेंडे के अनुसार कार्यक्रम चलाने का अधिकार है । मुख्यमंत्री ने कहा कि 21 जनवरी को बिहार में शराब सेवन के खिलाफ लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिये अब तक सबसे बड़ी मानव श्रृंखला बनायी जायेगी जिसमें करीब दो करोड़ लोग हिस्सा लेंगे । यह एक एेतिहासिक घटना होगी और इसके जरिये सह संदेश जायेगा कि राज्य के लोग शराबबंदी के पक्ष में मजबूती से खड़े है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चम्पारण सत्याग्रह यात्रा के शताब्दी वर्ष और सिखों के दसवें गुरू गुरू गोविंद सिंह के 350 वें प्रकाशोत्सव वर्ष में हो रहा है । श्री कुमार ने कहा कि महात्मा गांधी के मद्य निषेध के संदेश को उनकी सरकार राज्य के हर घर-घर तक पहुंचायेगी । उन्होंने कहा कि राज्य में नशा मुक्ति का यह अभियान 22 मार्च बिहार दिवस तक जारी रहेगा । 

बिहार सरकार वेतन समिति के गठन की अधिसूचना शीघ्र जारी करे : भाजपा

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पटना 09 जनवरी, बिहार भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने आज कहा कि राज्य सरकार तीन सदस्यीय वेतन समिति के गठन की अधिसूचना शीघ्र जारी करे और बहानेबाजी को छोड़ कर नियोजित शिक्षकों ,संविदा कर्मियों, विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों एवं नगर निकाय के कर्मियों को भी सातवें वेतनमान का लाभ देने का निर्णय लें। भाजपा विधान मंडल दल के नेता एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने राज्य के तीन लाख से अधिक नियोजित शिक्षकों,संविदा कर्मियों एवं पुस्तकालयाध्यक्षों को सातवें वेतनमान का लाभ नहीं देने के निर्णय का विरोध करते हुए कहा है कि सरकार का यह बयान निन्दनीय है कि वे उसके कर्मी नहीं है। जब सरकार ने वर्ष 2015 में ही उनके नियत वेतन को वेतनमान में परिवर्तित कर दिया तथा राज्य सरकार के कर्मियों के अनुरूप घोषित महंगाई, चिकित्सा, मकान किराया भत्ता आदि के साथ ही वार्षिक वेतन वृद्धि भी उन्हें देय है, तब फिर सातवें वेतनमान का लाभ नहीं देने का क्या औचित्य है। श्री मोदी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सातवें वेतनमान का लाभ देने के डर से सरकार इन लाखों नियोजित शिक्षकों एवं संविदाकर्मियों को इनकी अलग-अलग नियोजन इकाइयां होने का बहाना बना कर अपना कर्मचारी मानने से इनकार कर रही है । उन्होंने कहा कि पिछले विधान सभा चुनाव के पूर्व चुनावी लाभ लेने के लिए इन्हें वेतनमान देने की जोर शोर से घोषणा की गई थी। पूर्व उप मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि ये सरकार के कर्मी नहीं है तो फिर इन्हें राज्यकर्मियों की भांति वेतनमान, अनेक तरह के भत्तों की सुविधा और वार्षिक वेतनवृद्धि कैसे देय है। उन्होंने कहा कि वेतन समिति राज्यकर्मियों के समान ही नियोजित शिक्षकों, संविदा कर्मियों , विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों के हजारों कर्मचारियों के साथ ही नगर निकायों के कर्मियों को भी सातवें वेतनमान का लाभ देने पर विचार करें। श्री मोदी ने कहा कि अभी तक सरकार की ओर से वेतन समिति गठित करने की अधिसूचना भी जारी नहीं की गयी है। तीन सदस्यीय वेतन समिति के गठन की अधिसूचना सरकार शीघ्र जारी करे और बहानेबाजी को छोड़ कर नियोजित शिक्षकों , संविदा कर्मियों, विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों तथा नगर निकाय के कर्मियों को भी सातवें वेतनमान का लाभ देने का निर्णय लें। 

नीतीश ने मोदी से निकटता की खबर को मीडिया की अटकलबाजी बताया

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पटना 09 जनवरी, बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बढ़ती अपनी निकटता की खबर को महज मीडिया की अटकलबाजी बताया है । श्री कुमार ने यहां लोक संवाद कार्यक्रम के बाद संवाददाता सम्मेलन के दौरान श्री मोदी के साथ बढ़ती निकटता के संबंध में पूछे गये सवाल के जवाब में कहा कि शराबबंदी पूरी तरह से सामाजिक मुद्दा है और इसलिए उन्होंने गांधी मैदान में आयोजित प्रकाश पर्व जो एक सामाजिक कार्यक्रम था उसमें उसकी चर्चा की थी । प्रधानमंत्री ने भी शराबबंदी के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की । मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कार्यक्रम में कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं उठाया गया था । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की सराहना के बाद निकटता बढ़ने की खबर मीडिया की सिर्फ अटकलबाजी है । गौरतलब है कि नोटबंदी के केन्द्र सरकार के फैसले का मुख्यमंत्री श्री कुमार के समर्थन के बाद पांच जनवरी को गांधी मैदान में आयोजित प्रकाश पर्व कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा मुख्यमंत्री की सराहना को दोनों के बीच बढ़ रही निकटता के रूप में देखा जा रहा है । राजनीतिक गलियारे विशेषकर मीडिया में अटकलें लगायी जा रही है कि श्री कुमार उपयुक्त समय में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से गठजोड़ तोड़कर फिर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हो सकते हैं ।

श्री कुमार ने प्रकाश पर्व समारोह में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के जमीन पर बैठने को मुद्दा बनाने वालों को बिहार की छवि खराब करने वाला शख्स बताया और कहा कि ऐसे लोगों को बिहार की छवि बिगाड़ने में आनंद आता है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को यह खटकता है कि बिहार में प्रकाश पर्व जैसा कार्यक्रम इतनी सफलता के साथ कैसे संपन्न हो गया । मुख्यमंत्री ने कहा कि राजद अध्यक्ष को जमीन पर बैठाने को लेकर जो लोग बेसिर-पैर का बयान दे रहे हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि गांधी मैदान में जो कार्यक्रम आयोजित था वह बिहार सरकार का कार्यक्रम नहीं था । इसका आयोजन गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने किया था। उन्होंने कहा कि वैसे भी गुरु के दरबार में सबलोग जमीन पर ही बैठते हैं। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मंच पर कौन बैठेगा, यह वहां से ही तय होता है। इसमें राज्य सरकार की भूमिका नहीं होती है। श्री कुमार ने कहा कि कुछ लोग ऐसे ही होते है, चाहे लाख अच्छा हो, वे मीन-मेख तो निकालेंगे ही । ऐसे लोगों को अपने भीतर कुछ तो बदलाव लाना ही होगा। अगर बदलाव नहीं ला सकते हैं तो इतना समझ लें कि बिहार अब दूसरी दिशा में जा रहा है । उन्होंने कहा कि प्रकाश पर्व पर जितने लोग पटना आए सबने आयोजन की तारीफ की। पंजाब के तीन प्रमुख प्रतिद्वंदी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने एक सुर में कहा कि उन्होंने ऐसा आयोजन पहले कभी नहीं देखा । उनकी (नीतीश) समझ है कि अच्छे नीयत से काम करने पर अच्छा परिणाम आता ही है। 

भाजपा ने कहा, ख्याली पुलाव हैं कांग्रेस का घोषणापत्र

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नयी दिल्ली 09 जनवरी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पंजाब विधानसभा चुनाव के लिये कांग्रेस की घोषणा पत्र को दिखावा करार देते हुये आज कहा कि पार्टी अभी भी ख्याली पुलाव पका रही है। केंद्रीय राज्य मंत्री एवं पंजाब चुनाव के भाजपा के प्रभारी विजय सांपला ने कहा कि पंजाब विधानसभा चुनाव के लिये जारी हुये कांग्रेस का घोषणा पत्र महज दिखावा है। भारत की सबसे पुरानी पार्टी अब भी ख्यालों में खाेई हुई है । उन्होंने कहा कि पार्टी ने पंजाब में वर्ष 1992 में किसानों के कर्ज माफ करने का वादा किया था जिसे कभी पूरा नहीं किया गया। श्री सांपला ने कहा “ ऐसा लग रहा है कि उस समय से कांग्रेस में काेई बदलाव नहीं आया है और वह सिर्फ ख्यालों में पंजाब चुनावों में जीतना चाहती है। उन्होंने कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की आलोचना करते हुये कहा कि वह ‘पदलोलुप’ है और पंजाब के लोगों का भला नहीं कर सकते। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के विजयी होने का काई सवाल ही नहीं है। इस बार भी पंजाब की जनता हमारे गठबंधन में विश्वास व्यक्त करेगी। इससे पहले आज कांग्रेस ने पंजाब को नशामुक्त बनाने, बिजली दरों में कमी करने, किसानों को ऋण में राहत देने तथा ‘हर घर में नौकरी’ जैसे वादे के साथ आज विधानसभा चुनाव के लिए घोषणापत्र जारी किया। घोषणापत्र में चार माह में पंजाब को मादक पदार्थों से मुक्ति दिलाने के साथ ही पानी के बंटवारे, बेरोजगारी और महिलाओं को आरक्षण जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया है और औद्योगिक, सेवा क्षेत्र, बुनियादी संरचना और कृषि विकास को विशेष तरजीह देने का वादा किया गया है। पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आरोप लगाया है कि शिरोमणि अकाली दल तथा भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने राज्य को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनेगी तो पंजाब को हुए नुकसान की शिद्दत के साथ भरपायी की जाएगी।

नोटबंदी के खिलाफ महिला कांग्रेस का थाली बजाकर प्रदर्शन

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नयी दिल्ली 09 जनवरी, नोटबंदी के 60 दिन बीत जाने के बाद भी लोगाें को हो रही परेशानियों के लेकर कांग्रेस की महिला शाखा ने आज देशभर में थाली बजाकर विरोध प्रर्दशन किया। राजधानी दिल्ली में कांग्रेेस की महिला कार्यकर्ताओं ने नोटबंदी के खिलाफ चम्मच से थाली को पीटकर विरोध रैली निकाली और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। कार्यकर्ताओं ने ‘खत्म रोजगार बंद कारोबार’, ‘फेल है मोदी सरकार’ जैसे नारे लगाए। इस प्रदर्शन में कांग्रेस की महिला नेता भी शामिल हुईं जिनमें महिला कांग्रेस अध्यक्ष शोभा ओझा, दिल्ली कांग्रेस की प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी, दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष बरखा सिंह शुक्ला प्रमुख हैं। प्रर्दशनकारियों ने आरोप लगाया कि 60 दिन गुजर जाने के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हो पायी है जबकि श्री मोदी ने कहा था कि 50 दिन में हालात सामान्य हो जायेंगे। मध्य प्रदेश में भी नोटबंदी के खिलाफ महिला कांग्रेस ने जगह -जगह विरोध प्रर्दशन किया।

महिला कांग्रेस की मध्यप्रदेश इकाई ने थाली बजाते हुए राज्य में जगह-जगह जन आक्रोश रैली निकाली। भोपाल में यह रैली रोशनपुरा चौराहे से प्रारंभ होकर न्यू मार्केट, टीटी नगर थाना, रंगमहल होकर पुनः रोशनपुरा चौराहे पहुंचकर पूर्व स्व जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा के समक्ष समाप्त हुई। मध्यप्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष माण्डवी चैहान के नेतृत्व में आयेाजित इस रैली में सभी महिलाएं अपने-अपने हाथों में थालियां लेकर चम्मच से बजा रही थीं। श्रीमती चौहान ने इस अवसर पर कहा कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी को कालेधन के खिलाफ बताते हुए लोगों से 50 दिन का समय मांगा था। नोटबंदी के 60 दिन बीत जाने के बाद भी लोगों की परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं। महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कहना था कि वे थाली पीटकर सरकार को जगा रही हैं। रैली के बाद महिला कांग्रेस ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन कलेक्टर को सौंपा। इस आंदोलन में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव और मध्यप्रदेश के प्रभारी राकेश कालिया विशेष रूप से मौजूद थे। महिला कांग्रेस जिला अध्यक्ष संतोष कसाना, जयश्री हरिकरण, भोपाल जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पी सी शर्मा, अवनीष भार्गव, पूर्व नगर निगम अध्यक्ष कैलाश मिश्रा सहित सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने इस आन्दोलन में भाग लिया। राज्य के अन्य जिलों में भी महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने नोटबंदी के खिलाफ रैली निकाली। 

राजस्थान के अजमेर महिला कांग्रेस ने नोटबंदी के खिलाफ जिलाधीश कार्यालय पर थाली बजाकर प्रदर्शन किया। महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ‘गरीब की जेब खाली, बजाओं थाली’ के स्वर बुलंद किए। प्रदर्शन के बाद कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा गया। महिला कांग्रेस समिति की अध्यक्ष सबा खान ने कहा कि नोटबंदी के कारण महिलाएं ज्यादा परेशान हुई हैं। देश में आर्थिक अराजकता का माहौल है। केंद्र सरकार का नोटबंदी का फैसला गरीब, मजदूर और महिला विरोधी है। कांग्रेस शहर अध्यक्ष विजय जैन ने कहा कि आज बड़ी संख्या में महिलाओं का थाली बजाकर प्रदर्शन करना इस बात का प्रमाण है कि देश में नोटबंदी का शिकार आमजनों के अलावा महिलाएं भी है। उत्तराखंड में प्रदेश महिला कांग्रेस, जिला कांग्रेस एवं महानगर कांग्रेस कमेटी देहरादून के कार्यकर्ताओं ने नोटबंदी के विरोध में देहरादून के गांधी पार्क से जिलाधिकारी कार्यालय तक थाली-चम्मच बजाते हुए प्रदर्शन के साथ मार्च निकाला और जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के नाम ज्ञापन सौपा। बड़ी संख्या में महानगर कांग्रेस कार्यकर्ता, महिला कांग्रेस, जिला कांग्रेस कमेटी पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता शामिल थे। अखिल महिला कांग्रेस कमेटी की ओर से महिला सचिव सुनीता सहरावत एवं चेतन चैहान पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार द्वारा बड़े पूंजीपतियों से भारी धन लेकर उनके कालेधन को सफेद किया गया। कांग्रेस ने कहा कि आयकर अधिकारियों ने 15 अक्टूबर, 2013 को दिल्ली में आदित्य बिरला ग्रुप पर छापा मारा जिसमें 25 करोड़ रुपये नकदी बरामद की गयी। ग्रुप के उपाध्यक्ष से जब्त लैपटाॅप मेें कई आपत्तिजनक प्रमाण मिले हैं। उन्होंने ज्ञापन में भ्रष्टाचार के अनेक सबूत प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रपति से उनकी जांच कराने की मांग की। कर्नाटक के मैसुरू में 200 से अधिक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने नोटबंदी के खिलाफ रैली निकाली अौर केन्द्र में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने जिला उपायुक्त के कार्यालय के सामने धरना दिया। पूर्व लोक सभा सांसद ए एच विश्वनाथ ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करके गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। 
यह कदम बिना सोचे समझे और बगैर किसी तैयारी के उठाया गया है। देश के अन्य हिस्सों से भी कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन की खबरें हैं। 

पाकिस्तान ने किया बाबर-3 का सफल परीक्षण

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इस्लामाबाद 09 जनवरी, पाकिस्‍तान ने पहली बार परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम पनडुब्‍बी से क्रूज मिसाइल बाबर-3 का सफल परीक्षण करने का दावा किया है। पाकिस्तान की सेना की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि बाबर-3 मिसाइल परमाणु क्षमता से लैस है और इसकी मारक क्षमता 450 किलोमीटर है । इसका परीक्षण हिंद महासागर में एक गुप्त स्थान से किया गया। बाबर-3, बाबर-2 मिसाइल का समुद्री संस्करण है जिसका पिछले साल दिसंबर में सफल परीक्षण किया गया था। बाबर-3 परमाणु मिसाइल समेत कई तरह उपकरण ले जाने में सक्षम है। नेविगेशन और एडवांस गाइडेंस सिस्टम से लैस इस मिसाइल को पानी के अंदर से ही नियंत्रित किया जा सकता है। 

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर 09 जनवरी)

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विश्व का सबसे बडा धर्म हे हिन्दु धर्म-- महामण्डलेश्वर स्वामी प्रणवानंद जी

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पारा---धर्म रक्षक सेवा समिति के तत्वादान मे चलाई जा रही मां माही से अनास तक की जन जागरण पद यात्रा के नोवे दिन आज सोमवार को प्रातः पद यात्रा रामा ब्लाक के ग्राम रोटला से आरम्भ हुई। गोमला होते हुए ग्राम झिरावदिया पहुची। जहा तडवी फलिए मे पद यात्रा व महामण्डलेश्वर  108 स्वामी प्रणवानंद जी तीर्थ का स्वागत ग्राम वासीयो ने पुष्प माला पहना कर किया। पद यात्रा के पहुचते ही ग्राम का माहोल धर्म मय होगया चहुओर धर्म की जय जय कार के नारे लगने लगे। तडवी फलिए मे पहुचते ही जन जागरण पद यात्रा धर्म सभा मे परिर्वतित होगई। धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा की विश्व मे सबसे बडा धर्म ही हिन्दु धर्म हे। जिसमे अनेक जाति समप्रदाय धर्म मत मतांतर के लोग रहते हे। जो कि हिन्दु धर्म का पालन करते हे। व धर्म के अनुसार बताए मार्ग पर चल कर उसका अनुसरण करते हे। इसलिए हम सबको अपने धर्म का पालन करना चाहिए व प्रलोभन मे आकर दुसरे धर्म के चक्कर मे नही पढना चाहीए। प्रति दिन सभी आदिवासी भाईयो व माताओ व बहनो को अपने अपने इष्ट देव भगवान राम हनुमान शंकर भगवान आदी का पुजन करना चाहीए। इससे पुर्व पद यात्रा नो दिनो से साथ मे चल रहे अमेरीका से आए गुरु भक्त व योग गुरु विनायक जी ने भी उपस्थित धर्मालुओ को योग से संबधित जानकारी दी। साथ ही धर्म रक्षक के प्रमुख वालसिह मसानिया ने भी धर्म सभा को संबोधित किया। सभा मे आदिवासी भाईयो ने --- जाग से म्हारा हिन्दु भाई किन निन्द्रा मे हुता रे -- जेसे पारंपारिक भजनो को गाया। पश्चात दोपहर विश्राम के बाद धर्म यात्रा अपने अगले पडाव पारा की ओर प्रस्थान कर गई। इस अवसर झाबुआ राज परिवार के कमलेन्द्र सिह सहीत कई संत महंत व धर्मालु पद यात्री उपस्थित थे।

नगर उदय अभियान बना वसूली अभियान: कांग्रेस

झाबुआ। नगर पालिका परिषद झाबुआ द्वारा नगर उदय अभियान एवं स्वच्छता अभियान को मजाक बनाया जा रहा है। वही फुटकर गरीब व्यापारियों को स्वच्छता के बहाने न्यूसेंसकर्म का आरोप मढकर 250 से 500 तक की रसीदे जबरन थमाकर राशि वसूली जा रही है, जो न्यायोचित नही है। उक्त आरोप जिला कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल मेहता, कार्यवाहक अध्यक्ष कलावती भूरिया, युवा नेता डा विक्रांत भूरिया, वरिष्ठ कांगे्रस नेता रमेश डोशी, प्रवक्ता साबिर फिटवेल ने लगाते हुए कहा कि आम जनता अपने कार्यो के लिए नगर पालिका कार्यालय के चक्कर लगा रही है जहां चपरासियों के अलावा कोई कर्मचारी नही मिलता है। शासन के निर्देशानुसार प्रत्येक वार्डो में घर-घर जाकर शासन की योजनाओं की जानकारी 15 जनवरी तक प्रदान कर लाभांवित करना है। वही एक और नगर पालिका परिषद द्वारा अभियान के नाम पर महज औपचारिकता पूर्ण कर खानापूर्ति की जा रही है व शासन की नगर उदय व स्वच्छता अभियान के नाम पर नौटंकी कर अभियान का पलिता लगाया जा रहा है। जिसका कांग्रेस पूर्वजोर विरोध करती है। कांगे्रस नेता अलीमुददीन सैयद, आचार्य नामदेव, हर्ष भटट, राजेश भटट, ब्लाक अध्यक्ष हेमचंद डामोर, शहर कार्यवाहक अध्यक्ष गौरव सक्सेना, बंटू अग्निहोत्री, पार्षद रसीद कुरेशी, अविनाश डोडियार, धुमा डामोर, वसीम सैयद, गोपाल शर्मा, विजय भाबोर, प्रशांत बामनिया आदि कांगे्रस नेताओं ने भी नगर पालिका के इन क्रिया कलापों की भ्रतसना करते हुए अन्य नगरीय समस्यों को लेकर आंदोलन की रूप रेखा तय की है। उक्त जानकारी जिला कांगे्रस प्रवक्ता साबिर फिटवेल ने दी।

तीन मरीजों को विधायक ने 1 लाख 75 हजार की आर्थिक सहायता प्रदान की
  • मानवसेवा के काम में अनुकरणीय कार्य की की गई प्रसंशा

झाबुआ । विधायक शांतिलाल बिलवाल के मानवसेवा के कार्यो के तहत नगर तथा गा्रमीण अंचल के तीन बीमार व्यक्तियों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान योजना के तहत 1 लाख 75 हजार की आर्थिक सहायता राशि की स्वरकृति दी जाकर इन लोगों को उपचार प्रयोजना के लिये राशि का भुगतान किया गया है । विधायक प्रतिनिधि राजेन्द्रकुमार सोनी ने जानकारी देते हुए बताया कि माधोपुरा झाबुआ निवासी कालूखान को हृदयरोग होकर उनका उपचार इन्दौर के बाॅम्बे हास्पीटल में चल रहा  होकर बाय पास सर्जरी के विधायक श्री बिलवाल द्वारा मुख्यमंत्री को प्रस्ताव प्रेषित किया होकर इन्हे उपचार के लिये  1 लाख की  आर्थिक सहायता, गा्रम नवीन नवापाडा भगोर विकासखंड झाबुआ के राजेश गुण्डिया के 6 माह के पुत्र रितेश जो गुर्दारोग से  पीडित होकर जिनका आपरेशन बाॅंम्बे हास्पीटल इन्दौर में होना है  के उपचार के लिये 50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता, तथा  सुरेश पिता गणपत निमानी टीचर्स कालोनी झाबुआ की कीडनी खराब होने तथा कीडनी प्रत्यारोपण के लिये बीमारी सहायता निधि के अलावा 25 हजार रूपये की राशि मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से स्वीकृत की गई है तथा तीनों रोगियो का समुचित उपचार किया जाना प्रारंभ हो चुका है । विधायक शांतिलाल बिलवाल को जैसे ही इन लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने तथा आर्थिक समस्या के चलते गंभीर रोगों का इलाज नही करवा पाने के बारे में जानकारी मिली तो उन्होने त्वरित कदम उठाते हुए 1 लाख 75 हजार की मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान की राशि की स्वीकृति प्रदान कर भुगतान करने सें  इन लोगों में व्यापक प्रसन्नता व्याप्त होकर विधायक श्री बिलवाल का आत्मीय आभार व्यक्त किया है ।

खाद्य अपमिश्रण के प्रकरण में आरोपी दोषमुक्त

झाबुआ । जे0एम0एफ0सी0 कोर्ट झाबुआ श्री संजय कुमार भलावी, द्वारा अपने न्यायालय के प्रकरण क्रमांक 1122/11 के आरोपी कमलेश पिता जंयतीलाल पाटिदार को पारित निर्णय अनुसार खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के अपराध दोषमुक्त किया गया है। आरोपी कमलेश के विरुद्ध खाद्य विभाग झाबुआ के खाद्य निरिक्षक श्री संजीव कुमार मिश्रा द्वारा आपराधिक परिवाद कोर्ट में पेश किया गया था कि कमलेश के द्वारा अपनी दुकान पर दिनांक 22.03.2010 को आईसक्रीम का निर्माण किया जा रहा था जिसका नमुना संग्रहित कर जाॅंच हेतु राज्य प्रयोगशाला भेजे जाने पर नमुना अपमिश्रीत पाया गया था। आरोपी कमलेश की ओर से उसके अधिवक्ता द्वारा पैरवी किये जाने के दौरान न्यायालय के समक्ष तर्क प्रस्तुत किये गये कि खाद्य निरिक्षक द्वारा कानून के प्रावधानों के विपरित आरोपी के विरुद्ध कार्यवाही कर प्रकरण बनाया गया है। न्यायालय द्वारा आरोपी की ओर से उसके अधिवक्ता द्वारा प्रकरण के विचारण के दौरान प्रस्तुत तर्को से सहमत होते हुए आरोपी को दोषमुक्त किये जाने का आदेश पारित किया गया है। आरोपी की ओर से उसके अधिवक्ता योगेश जोशी द्वारा पैरवी की गई।

ट्राले मे घुसा पुलिस वाहन दो कर्मचारी गंभीर

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पिटोल । गुजरात की ओर से प्रदेश में पिटोल के रास्ते आ रहेे किन्ही वीआईपी को फाॅलो कर रही पिटोल पुलिस की बोलेरो जीप टायर फटने से असंतुलित होकर एकीकृत जांच चैकी पिटोल पर खडे एक ट्राले में जा घुसी जिससे पिटोल चैकी पर पदस्थ दो पुलिस कर्मि गंभीर रुप से घायल हो गऐ। दोनो को सिर में आई चोंटों की वजह से अत्यधिक रक्त सा्रव हुआ एवं दोनों को सिर में एक दर्जन से अधिक टांके लेना पडे। डाॅ. बडौले के अनुसार चोंट अधिक है किन्तु गम्भीर प्रकृति की नही है। सोमवार सुबह 11 बजे सुचना के बाद पिटोल पुलिस चैकी से प्र.आ. शिवकुमार शर्मा व आरक्षक अशरफ अली चैकी से गुजरात म.प्र. सीमा पर पहुंचे थे। वीआईपी के प्रदेश सीमा में पहुंचते ही वाहन को लेकर यह बोलेरो कुछ दुरी पर पहुंची ही थी कि अचानक टायर फटने से उक्त दुर्घना हुई। घायलों प्राथमिक उपचार प्रा.स्वा.केन्द्र पिटोल में किया गया बाद में उन्हें झाबुआ ले जाया गया। घटना के बाद थाना प्रभारी आरसी भास्करे व चैकी प्रभारी आशुतोष मिठास ने घायल पुलिस कर्मियों का उपचार करवाया । बोलेरो जीप क्र. एमपी 03 ए 1997 जो कि वहां खडे ट्राले क्र.जीजे 12 बीटी 6658 से टकराई जिससे बोलेरो का अगला हिस्सा भी क्षतिग्रस्त हुआ। मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारीयों को यह पुख्ता जानकारी नहीं थी कि वीआईपी कौन थे जिसे ये पुलिस कर्मि फाॅलो करने पहुंचे थे। चैकी प्रभारी मिठास के अनुसार संभवतः राज्यपाल जी के सचिव महोदय थे। कौन से राज्य के थे यह भी खुलासा नहीं हो पाया था। बताया जा रहा है कि यह र्दुघटना उन वीआईपी के सामने ही हुई है जिनके सम्मान ओर सुरक्षा में ये पुलिस कर्मि पहुंचे थे किन्तु बावजुद इसके वे अपनी मानवीय संवेदनाओ को बलाऐताख रख अपने गन्तव्य की ओर निकल गऐ। वीआईपी कौन थे यह बात पहेली बनी रही। 

युवा दिवस‘‘ के उपलक्ष्य मे 12 जनवरी को सामूहिक सूर्य नमस्कार होगा

झाबुआ । राज्य षासन के निर्देषानुसार स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस 12 जनवरी युवा दिवस के उपलक्ष्य में जिले की सभी षैक्षणिक संस्थाओं महाविद्यालयों, पंचायतों तथा आश्रम शालाओं आदि में 12 जनवरी को प्रातः 9 बजे से 10.30 बजे तक सामूहिक सूर्य नमस्कार कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

रेडियो पर होगा प्रसारण
सामुहिक सूर्य नमस्कार कार्यक्रम के सीधे प्रसारण की व्यवस्था रेडियों के सभी प्राईमरी चेनल एवं विविध भारती से होगी।  मुख्यमंत्री जी का प्री-रिकार्डेड संदेश कार्यक्रम प्रसारित किया जायेगा। सामूहिक सूर्य नमस्कार के पूरे समय तक जिले के सभी आयोजन स्थलों पर रेडियों चलाये जाने की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु संबंधित संस्था प्रमुखों को निर्देशित किया गया।

ये रहेगा कार्यक्रम
सामूहिक सूर्य नमस्कार कार्यक्रम के लिए 12 जनवरी को प्रातः 9 बजे से एकत्रीकरण तथा उद्घोषक द्वारा संपूर्ण कार्यक्रम की भूमिका का प्रस्तुतीकरण किया जाएगा। प्रातः 9.20 बजे राष्ट्रीयगीत -वन्देमात्रम का सामूहिक गायन होगा। मुख्यमंत्रीजी का संदेश प्रातः 9.30 बजे, प्रसारित होगा। सूर्य नमस्कार एवं प्राणायाम प्रातः 9.45 बजे से प्रांरभ होगा एवं 10.30 बजे तक चलेगा।

स्कूल एवं महाविद्यालय के छात्र होगे शामिल
इस आयोजन में स्कूली तथा महाविद्यालयीन विद्यार्थी शामिल होगे। इसमें किसी भी संस्था अथवा छात्र/छात्रा का भाग लेना पूर्णतः स्वैच्छिक होगा और इस हेतु किसी प्रकार की बाध्यता नही है। किन्तु स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार बहुत लाभदायक है। अतः विद्यार्थी सहित आमजन भी इस कार्यक्रम में भाग लेकर स्वास्थ्य लाभ ले।

क्या है सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार भारतीय योग परंपरा का अभिन्न अंग हैं यह विभिन्न आसन मुद्रा और प्राणायाम का वह समन्वय है जिससे षरीर के सभी अंगों उपांगो का पूर्ण व्यायाम होता है। सूर्य नमस्कार बारह स्थितियों से मिलकर बना है। सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में 12 स्थितियों को क्रम से दोहराया जाता है। सूर्य नमस्कार नामक यह आयाम 7 आसनों का समुच्चय है। 
पहला आसनः-प्रार्थना की मुद्रा, प्रार्थना मुद्रा एकाग्र एवं षांत अवस्था लाता है तथा रक्त संचार को सामान्य करता है।
दूसरा आसनः- हस्त उत्तानासन यह आसन उदर की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है और पाचन को सुधारता है। इससे फेफडे पुश्ट होते है, भुजाओं और कंधो की मांसपेषियों का व्यायाम होता है।
तीसरा आसनः-पदहस्तासन,यह आसन पेट व आमाषय के दोशों को दूर करता है। कब्ज को हटाने में सहायक है। रीढ को लचीला बनाता है एवं रक्त संचार में तेजी लाता है। रीढ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है।
चैथा आसनः-अष्व संचालनालय उदर के अंगों की मालिष कर कार्य प्रणाली को सुधारता है। इससे पेैरो की मांसपेषियों को षक्ति मिलती है।
पांचवा आसनः-पर्वतासन भुजाओं एवं पैरो के स्नायुयों एवं मांसपेषियों को षक्ति प्रदान करता है। मस्तिश्क को क्रियाषील बनाता है।
छठवा आसनः-अश्टांग नमस्कार यह आसन पेैरो और भुजाओं की मांसपेषियों को षक्ति प्रदान करने के साथ ही सीने को विकसित करता है।
सातवां आसनः-भुजंगासन यह आसन पेट संबंधी रोगो को ठीक करने में उपयोगी है साथ ही रीढ के प्रमुख स्नायुओं को नयी षक्ति मिलती है। दमा, ब्रोन्काइटिस इत्यादि रोगो को दूर करने में भी उपयोगी होता है।
सूर्य नमस्कार में बारह स्थितियाॅ होती है। षेश पांच स्थितियां क्रमषः पर्वतासन,अष्व संचालनासन, पाद हस्तासन, हस्त उत्तानासन एवं प्रार्थना की मुद्रा आसन का दोहराव है। सूर्य नमस्कार के साथ ही प्रणायम भी करवाया जाएगा।  जिला स्तर पर मण्डी प्रांगण झाबुआ में  सामूहिक सूर्य नमस्कार कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम में अधिकारी एवं विद्यार्थियों द्वारा सूर्य नमस्कार एवं प्रणायाम किया जाएगा। कलेक्टर श्री आशीष सक्सेना ने सभी शासकीय सेवकों एवं आमजनों को अपने निकट की शैक्षणिक संस्था में कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आहवान किया है।

कलेक्टर ने गाॅव मे आनंद उत्सव मनाने के लिए सरपंचो से की बात, कलेक्टर ने सरपंचो से किया सीधा संवाद

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झाबुआ । कलेक्टर श्री आशीष सक्सेना ने ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, आंगनवाडी केन्द्र एवं ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के क्रियान्वयन में सरपंचो को आ रही समस्याओं को जानने के लिए सरपंचों से दूरभाष पर चर्चा की एवं समस्याएं जानी। कलेक्टर श्री आशीष सक्सेना ने सरपंचों को गाॅव से कुरीतियों जैसे दहेज दापा बाल विवाह डाकन इत्यादि कुरीतियों को दूर करने के लिए सलाह दी, गाॅव मे आनंद उत्सव मनाने के लिए सरपंचो से बात की एवं गाॅव के हर घर में शौचालय बनवाने के लिए समझाईश दी।  कलेक्टर श्री आशीष सक्सेना ने कलेक्टर कार्यालय से फोन लगाकर सरपंचों से पूछा ग्राम पंचायत में कोई समस्या हो, तो बताये। कलेक्टर श्री आशीष सक्सेना ने आज झाबुआ ब्लाक की ग्राम पंचायत मानपुर मेघनगर ब्लाक की माण्डली, रामा ब्लाक की रोटला, राणापुर की वागलावाट थांदला ब्लाॅक की खवासा एवं पेटलावद की बेडदा पंचायत के सरपंचों से चर्चा कर उनसे समस्याएं जानी।सरपंच ग्राम पंचायत रोटला, ब्लाक रामा द्वारा चर्चा के दौरान कन्या शिक्षा परिसार का कार्य शीघ््रा प्रारंभ किये जाने की मांग की गई । सरपंच ग्राम पंचायत खवासा  ब्लाक  थांदला द्वारा तीन -चार माह तक लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के माध्यम से गांव में पेयजल वितरण करवाने एवं जल देयक की वसूली करवाने हेतु निवेदन किया गया। सरपंच ग्राम पंचायत  बेडदा,  ब्लाक पेटलावद द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजनान्तर्गत सर्वे सूची वर्ष 2011 में ग्राम पंचायत में कोई भी आवास स्वीकृत नही होने पर छूटे हुए परिवारों के नाम पुनःजोडने हेतु जनसुनवाई में दिये गये आवेदन पर कार्यवाही करने हेतु मांग की गई। हर सोमवार को कलेक्टर श्री आशीष सक्सेना ब्लाक की 6 ग्राम पंचायतो के सरपंचों से 10.30 से 11 बजे के मध्य सरपंच से सीधे बात कार्यक्रम के तहत चर्चा करते है किसी सरपंच की यदि कोई समस्या हो, तो वे भी कलेक्टर महोदय को उनके मोबाईल नं. 722291555 पर समस्या वाटसाप पर मैसेज कर बता सकते है। 

मिशन इन्द्रधनुष 14 जनवरी तक चलेगा, राष्ट्रीय पल्स पोलियों अभियान का प्रथम चरण 29 जनवरी 2017 को

झाबुआ । स्वास्थ्य विभाग द्वारा आज 7 जनवरी  से मिशन इन्द्रधनुष का शुभारंभ किया गया। मिशन इन्द्रधनुष अंतर्गत जिले के टीकाकरण से छूटे लक्षित बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया जाएगा। राष्ट्रीय पल्स पोलियों अभियान का प्रथम चरण 29 जनवरी 2017 को व राज्य स्तरीय मिशन इन्द्रधनुष अभियान का तृतीय चरण 14 जनवरी 2017 तक क्रियान्वित किया जाना है, अभियान के सफल आयोजन के लिए आज जिला कार्यबल की बैठक का आयोजन कलेक्टर कार्यालय के सभाकक्ष में किया गया। बैठक मे संयुक्त कलेक्टर श्री वर्मा ने निर्माण साइटो, झुग्गी बस्तियों एवं माता-पिता के साथ पलायन पर रहने वाले बच्चों पर विशेष फोकस करते हुए टीकाकरण का लक्ष्य शत-प्रतिशत पूर्ण करने के लिए जिला टीकाकरण अधिकारी एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को बैठक में निर्देशित किया। बैठक मे मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ अरूण कुमार शर्मा ,जिला टीकाकरण अधिकारी डाॅ राहुल गणवा, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास श्री जमरा सहित संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।

कंडे बिनने गई नाबलीग के साथ किया बलात्कार 
        
झाबुआ । फरियादिया भुरी पति प्रकाश वसुनिया, निवासी दात्याघाटी ने बताया कि छोटी बहन उम्र 12 वर्ष कण्डे बिनने घर के पास जंगल में अकेली गई थी। आरोपी जन्तु पिता बेहरा भाबोर, निवासी दात्याघाटी का पिछे से आया व पिडीता का मुंह दबाकर जबरन पहाडी के बीच गडडे में ले जाकर खोटा(बलात्कार) किया। प्रकरण में थाना कोतवाली झाबुआ में अपराध क्रं. 21/17 धारा 376(2)आई भादवि 5(एन)(यू) 6 पास्को एक्ट का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

करंट लगने से भेस की मोत
       
झाबुआ । फरियादी पारसिंह पिता दिता खडिया, निवासी खालखण्डवी ने बताया कि आरोपी थावरिया पिता सिंगा खराडी निवासी खालखण्डवी ने नाले में पानी की मोटर लगा रखी थी। जिसका करंट लगने से फरि0 की भैस मर गई। प्रकरण में थाना थांदला में अपराध क्रं. 11/17 धारा 429 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।
      
68 हजार की अवैध शराब जब्त आरोपी गीरफतार

झाबुआ । आरोपी सोमला पिता गवजी पारगी, निवासी पिपलोदा बडा के कब्जे से 68,100/-रू. की, अवैध शराब जप्त कर गिर. किया गया। प्रकरण में थाना मेघनगर में अपराध क्रं. 09/17 धारा 34(2),36 आबकारी एक्ट का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

मर्ग का दो अपराध पंजीबद्ध

झाबुआ । मृतिका तोलाबाई पति रामंचद्र डामोर, निवासी रूपारेल एवं मृतक रमेश पिता भुवानसिंह भयडिया, निवासी लखपुरा की मृत्यु जहरीली दवाई पीने से मृत्यु हो गयी। प्रकरण में थाना थांदला एवं थाना कोतवाली झाबुआ में अपराध क्रं. 04,01/17 धारा174 जा.फौ. का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

फैशन शो में नजर आएं शाहरुख खान और आलिया भट्ट

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बच्चों की सर्जरी के लिए एक चैरिटी शो को आयोजन मुमंई में हुआ। कार्यक्रम में शाहरुख खान और आलिया भट्ट ने अपनी प्रस्तुति देकर लोगों का मनोरंजन किया। वैसे तो शाहरूख खान और पाकिस्तानी एक्ट्रेस माहिरा खान पहली फिल्म ‘रईस’ फिल्म के रिलीज के लिए तैयार है। उन्होंने फिल्म के बारे मे बताया और बच्चों की मदद के लिए किये गये परोपकार कार्य की सराहना भी की। इस अवसर पर डी .जी, गोपाल मंधानिया, बंसलमोहन रसिवासिया (जिला सचिव) सुमन गुप्ता (अध्यक्ष. रोटरी क्लब कामुम्बई दिवस), फिल्म निर्माता व व्यवसायी डॉ.अनील मुरारका और सेलिब्रिटी वास्तु विशेषज्ञता बसंन्त आर रसिवासिया भी मौजूद थे। समारोह में 100 बाल चिकित्सा सर्जरी की मदद के लिए फैशन शो चैरिटी शो का आयोजन किया गया था। फैशन शो में फैशन डिजाइनर अर्चना कोचर ने अपने नए डिजाइनर कलेक्शन को अनेक नामचीन माॅडलों पे पहनकर रेंप पर प्रस्तुति दी। फैशन शो के मौके पर प्रशांत वीरेंदर शर्मा,श्वेता खंडूरी,ज्योति सक्सेना,गरिमा पांडेय,डीजे शेजवुड, मनप्रीत आर्या देप्यूटी कमीशनर कस्टम एंड सर्विस टैक्स वीरेंदर चैधरी भी मौजूद थे।

आलेख : सपा के असमंजस में विकल्प की तलाश

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एक कहावत है कि दुश्मन से तो बचा जा सकता है, लेकिन जब अपने ही दुश्मन हो जाएं तो बचने की उम्मीद किसी भी तरीके से संभव नहीं होती। वर्तमान में समाजवादी पार्टी में कुछ इसी प्रकार के हालात दिखाई दे रहे हैं। जहां अपने ही दुश्मन बनकर आमने सामने आ चुके हैं। इससे पूरी समाजवादी पार्टी के सामने असमंजस का वातावरण दिखाई दे रहा है। समाजवादी पार्टी के राजनीतिक आसमान पर छाए काले बादलों से अभी तक चुनावी तैयारियों पर भी ग्रहण सा लगा हुआ है। हालांकि इससे एक बात तो साफ हो चुकी है कि मुलायम सिंह कभी कठोर तो कभी नरम दिखाई देते हैं। ऐसे में यह कहना भी तर्कसंगत माना जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव समय के अनुसार ही अपनी बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि अखिलेश यादव मेरा बेटा है, इस कारण उसे मारा तो नहीं जा सकता। मुलायम सिंह के इस शब्द से कहीं न कहीं यह भी परिलक्षित हो रहा है कि वे अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव का अंदरुनी तौर पर बचाव करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि उनके साथ केवल गिनती के विधायक हैं, इससे यह भी संदेश वातावरण में तैरने लगा है कि समाजवादी पार्टी के भविष्य के वारिश अब अखिलेश यादव ही हैं। इस लड़ाई में सबसे खास बात यह भी देखने को मिलती है कि अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह के विरोध में कभी कोई बयान नहीं दिया। इसका सीधा तात्पर्य यह भी है कि समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी बन जाए मुखिया मुलायम सिंह यादव ही रहेंगे। वर्तमान में उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की स्थिति का अध्ययन किया जाए तो यही कहा जाएगा कि आज सपा जो कुछ भी है, वह केवल और केवल मुलायम सिंह की ही देन है। वर्तमान में प्रदेश की जनता इस बात को भलीभांति समझ चुकी थी कि जातिवाद को चरम पर पुहंचाने वाली समाजवादी पार्टी पर केवल एक ही परिवार का कब्जा होने के कारण ही रसातल की ओर कदम बढ़ा चुकी है। इसकी भरपाई कैसे की जाए और जनता का यादवी कुनबे के मुद्दे से कैसे ध्यान हटाया जाए, इस सबके परिणाम स्वरुप ही यह सब किया हुआ लगता है। उत्तरप्रदेश के बारे में सभी आकलनों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि आगामी विधानसभा के चुनावों में सपा की हालत पतली होने वाली है। इसके बारे में कई मुद्दे भी प्रदेश की जनता के सामने थे। सपा की लड़ाई के चलते जनता इन मुद्दों को विस्मृत कर देगी, ऐसा कहना तर्कसंगत नहीं होगा। क्योंकि देश और प्रदेश का युवा वर्ग आंकड़ों के आधार पर ही बात करता है, आज अंतरताने के युग में युवा हर पल अद्यतन रहता है, वह हर पल का परीक्षण भी करता है। 

प्रदेश में कहा जा रहा है कि सपा का यह नाटक मुलायम सिंह की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। क्योंकि मुलायम सिंह भविष्य में सपा की बागडोर अखिलेश के हाथ में सौंपना चाहते थे। वे सीधे तरीके से देते तो पार्टी में विघटन की स्थिति बन जाती। इसी प्रकार सामाजिक प्रचार तंत्र पर भी सपा के विवाद को खूब उछाला जा रहा है, जिसमें कोई अखिलेश यादव के साथ है तो कोई मुलायम सिंह यादव के साथ। इतना ही नहीं कई लोग तो यह भी लिख रहे हैं कि जो पुत्र अपने पिता का नहीं हो सकता वह प्रदेश की जनता का क्या होगा। प्रदेश की जनता के समक्ष समाजवादी पार्टी के बारे जिस प्रकार की बातें सामने आ रहीं हैं, उससे सपा का कार्यकर्ता तो भ्रमित है ही, साथ ही प्रदेश की जनता के सामने भी विभ्रम का वातावरण बना हुआ है। सपा की लड़ाई के कारण यह भी तय है कि भविष्य में जनता का विश्वास जीतने के लिए सपा को कड़ी मेहनत करनी होगी, जो समयाभाव के कारण हो सकने की स्थिति में नहीं है। कहा जा सकता है कि सपा की यह लड़ाई एकदम गलत समय पर हो रही है, जिसका खामियाजा सपा को भुगतना ही पड़ेगा।

उत्तरप्रदेश की वर्तमान स्थिति का अध्ययन किया जाए तो कहीं न कहीं यह भी दिखाई देने लगा है कि प्रदेश का मतदाता बेहतर विकल्प की तलाश करता हुआ दिखाई दे रहा है। यही बात प्रदेश में किए गए राजनीतिक सर्वे भी कह रहे हैं कि सत्ताधारी समाजवादी पार्टी इस बार तीसरे स्थान पर रहेगी। इसलिए लगता है कि अखिलेश यादव के प्रति सहानुभूति पैदा करके पार्टी के प्रदर्शन में सुधार की कवायद की जाए। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी सत्ता प्राप्त करने के लिए जोर आजमाइश कर रही है, लेकिन जिस प्रकार से बसपा प्रमुख मायावती पर आरोप लगते हैं, उससे कहीं न कहीं बसपा का विरोध होने का संकेत मिलता है। जो भी राजनेता बसपा छोड़कर जा रहे हैं, वे सभी मायावती को दौलत की बेटी कहते हुए दिखाई देते हैं। वर्तमान विधानसभा चुनाव में बसपा के सामने गजब चुनौती है, लोकसभा में उसका प्रतिनिधित्व शून्य होने के कारण वह पशोपेश की स्थिति में है। संभावना इस बात की है कि प्रदेश में बसपा का प्रदर्शन खराब रहता है तो उसकी राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता को खतरा पैदा हो सकता है। वर्तमान में बसपा सरकार बनाने की कम अपनी मान्यता बचाने के लिए ही संघर्ष करती दिखाई दे रही है। अब प्रदेश में कांग्रेस के बारे में तो यह पहले से ही तय है कि वह अकेले विकल्प बनने की हालत में नहीं है। इस कारण कहा जाने लगा है कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एक सार्थक विकल्प बनकर सामने आ सकती है। उसके लिए सकारात्मक बात यह है कि उसकी केन्द्र में सरकार है और उसके सबसे ज्यादा सांसद भी उत्तरप्रदेश से हैं। इतना ही नहीं केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रदेश के ही वाराणसी से सांसद हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि प्रदेश में भाजपा का प्रभाव दिखाई देगा। इसके अलावा वर्तमान में प्रदेश में भाजपा का प्रचार करने के लिए हर बार से ज्यादा सांसद हैं। यह सांसद भी जनता की पसंद के आधार पर ही चुने गए हैं। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि भाजपा के पास एक जनाधार है। पिछले लोकसभा चुनाव का अध्ययन किया जाए तो सबसे ज्यादा मत भाजपा को मिले।



सुरेश हिन्दुस्थानी
झांसी, उत्तरप्रदेश पिन- 284001
मोबाइल-09455099388
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं

​व्यंग्य : समाजवादी नेताओं को मिले बेस्ट एंटरटेनर एवार्ड ...!!​

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बचपन  में स्कूल की किताबों में स्वतंत्रता सेनानी लाल - बाल - पाल के बारे में खूब पढ़ा था। जिज्ञासा हो ने पर  पता चला कि तीनों महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिनका आजादी के आंदोलन में बड़ा योगदान था। कॉलेज तक पहुंचने पर देश के सबसे बड़े सूबे के उस राजनैतिक परिवार के बारे में जानकारी हुई जिनके कुनबे में अनेक पाल नाम धारी थे। एक बार फिर जिज्ञासा जागने पर पता चला कि वे सभी तत्कालीन मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्य   और राजनीति में सेटेलड माननीय थे। उस दौर में सोशलिस्ट और समाजवादी नाम की अनेक पा र्टियां थी।  तब समाजवाद के बारे में मेरी समझ महज इतनी थी कि समाजवाद यानी सब कुछ समाज का, अपना कुछ भी नहीं। लेकिन समय के साथ मेरा आश्चर्य और कौतूहल बढ़ता गया। जिसकी कुछ ठोस वजहें भी थी।  मेरे गृहप्रदेश पश्चिम बंगाल में पाल एक उपनाम हैं। लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे में एक ही कुनबे में इतने लोगों के नाम के साथ पाल जुड़ा होना मेरे कौतूहल का कारण बन गया। खैर समय के साथ पाल ब्रदर्स का सत्ता में प्रताप बढ़ता गया। क्या संयोग रहा कि जिस दिन टेलीविजन पर मेरे प्रदेश के एक पाल नामधारी माननीय की चिटफंड घोटाले में गिरफ्तारी हुई उसी दौरान सुर्खिय़ों में फिर उन्हीं पाल ब्रदर्स की धमा - चौड़की शुरू हो गई। रोमांच और रहस्य इस कदर कि छात्र जीवन में देखा गया रामायण और महाभारत सीरियल भी इसके सामने कुछ नहीं। मनोरंजन की लगातार और इतनी बड़ी खुराक तो क्रिकेट और बालीवुड के लिए भी देना संभव नहीं है। ब्रेकिंग न्यूज - ब्रेकिंग न्यूज की झिलमिलाहट के बीच इन पाल बंधुओं की खबरें लगातार मिलती रही। कभी बताया जाता कि अमुक पाल को पा र्टी से निकाल दिया गया है। 

एक दूसरे पाल पा र्टी के शिखर पुरुष के साथ बैठक कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद बताया जाता कि शिखर पुरुष उन बर्खास्त पाल को फिर से पा र्टी में लेने को राजी हो गए हैं। चैनलों पर महंगी विदेशी कारों का काफिला दौड़ता नजर आता। रफ्तार कम होने पर कुनबे के एक पाल की झलक दिखला दी जाती। जो हाथ हिला कर लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए नजर आते। टेलीविजन के प र्दे पर नजर आता कि कैमरा लेकर दौड़ रहे  मीडियाकर्मी भागते - हांफते  उनसे कुछ पूछने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भीतर बैठा माननीय बेरुखी से बगैर कुछ कहे आगे निकल जाता।  नजर आता कि जिस वाहन में जनाब बैठे हैं, उसकी रफ्तार अचानक तेज हो गई है। कुछ घंटों में पाल ब्रदर्स के पा र्टी से निकाले जाने और फिर से वापस लौट आने की इतनी खबरें आती रही कि मैं सचमुच कंफ्यूज्ड हो गया कि जिनके बारे में बताया जा रहा है कि वे पा र्टी में है या नहीं। इस बीच चैनलों के प र्दे पर सारी खबरें  मानो रुक गई या रोक दी गई। सुर्खियां बस उस पा र्टी या परिवार की । इस बीच टेलीविजन के पर्दे पर बिल्कुल दक्षिण भारतीय शैली में घटनाक्रम से विचलित कार्यकर्ताओं की भाव - भंगिमाएं दिखाई जाती रही। कोई रो रहा है तो कोई खुशियां मना रहा है। एक महिला बिलखते हुई कहती है ... हमे नेताजी भी चाहिए और भैया भी... जो हुआ बहुत गलत हुआ। अचानक फिर ब्रेकिंग न्यूज की झिलमिलाहट हुई। बताया गया कि उस पा र्टी के और  बड़े नेता जिनके नाम के साथ पाल तो नहीं जुड़ा है लेकिन वे भी मुख्यमंत्री के चाचा मंडली के सदस्य हैं ने विदेश से कुछ बयान दिया है। वह समाजवाद के नाम पर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हो गए है। पल में तोला तो पल में माशा की तर्ज पर समाजवादी महारथियों के पा र्टी से निकाले जाने और फिर वापस लिए जाने की खबरें लगातार टेलीविजन के पर्दे पर दौड़ती रही। इन घटनाक्रमों से देश या प्रदेश का कुछ भला होगा या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन इतना कह सकता हूं कि समाजवादी सेना के चलते पुराने साल की विदाई और नए साल के स्वागत भरे कुछ दिन आश्चर्य , कौतूहल  , रहस्य और रोमांच से भरपूर रहे। मेरी मांग है कि समाजवादी सेना को वर्ष 2016 -17 का बेस्ट एंटरटेनर एवार्ड जल्द से जल्द दिया जाए।






तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, 
खड़गपुर (पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

विशेष : स्टार नहीं बड़े अभिनेता थे ओमपुरी

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मशहूर अभिनेता ओम पुरी के निधन से बालीवुड में शोक की लहर दौड़ गई। साधारण शक्ल सूरत होते हुए भी अपने दमदार एक्टिंग की बदौलत ओम पुरी ने अभिनय जगत में अपनी खास पहचान बनाई थी।  वर्ष 1980 में रिलीज फिल्म ‘आक्रोश’ ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। ओम पुरी के हिस्से में कामयाब फिल्मों की लंबी श्रृंखला है। उन्होंने नायक, खलनायक , चरित्र अभिनेता और कॉमेडियन से लेकर सभी पात्रों को यादगार तरीके से निभाया।उन्हें उनकी एक्टिंग की बदौलत राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड और पद्मश्री जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई राजनेताओं और अभिनेताओं ने ओम पुरी के निधन पर शोक जताया है। ‘आक्रोश’ ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। जब उनको एक लाइन के डॉयलॉग के लिए ओमपुरी को करनी पड़ी थी।साधारण से दिखने वाले वाले ओमपुरी ने अपने अभिनय के बल पर बॉलीवुड में जगह बनाई।  उन्होंने ब्रिटिश और अमेरिकी सिनेमा में योगदान दिया था। 

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ओम पुरी हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। इनका जन्म 18 अक्टूबर 1950 में अम्बाला नगर में हुआ। ओमपुरी पूरा नाम ओम राजेश पुरी है। वह पद्मश्री पुरस्कार विजेता भी हैं। शुरुआती शिक्षा उन्होंने पंजाब के पटियाला से ली थी। उन्होंने कॉलेज में एक कार्यक्रम के दौरान नाटक में हिस्सा लेने के चलते उनकी मुलाकात पंजाबी थियेटर से जुड़े हरपाल तिवाना से हुई और इसके बाद तो जैसे उन्हें उनकी मंजिल ही मिल गई। ओम पुरी ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत मराठी नाटक पर आधारित फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी। ओमपुरी पूरा नाम ओम राजेश पुरी है। वह पद्मश्री पुरस्कार विजेता भी हैं। शुरुआती शिक्षा उन्होंने पंजाब के पटियाला से ली थी। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और 1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में अभिनय की शिक्षा दी। इसके बाद उन्होंने निजी थिएटर ग्रुप माजमा की स्थापना की थी। फिल्म ‘आक्रोश’ उनके लिए मील का पत्थर साबित हुई। कहा जाता है कि फिल्म की जब एक लाइन के डॉयलॉग के लिए ओमपुरी को करनी पड़ी थी कड़ी मेहनत ।

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ओमपुरी चेहरे से बड़े रुखे लगते थे, लेकिन हंसोड़ किस्म के इंसान थे। फिल्म ‘मिस तनकपुर हाजिर हो’ की बुलंदशहर शुटिंग के दौरान सेट पर मिले थे। उन्हें देरी हो रही थी। उन्होंने फिल्म डायरेक्टर से कहा कि मैं तुम्हें डांटना चाहता हूं या जल्दी से मेरा शूट ले लो। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्हें कॉमेडी करने के लिए जोकर बनने की जरूरत नहीं पड़ी जैसा कि अन्य अभिनेताओं को पड़ती है। वे अपनी भाव-भंगिमाओं से, अपनी आवाज से ही कॉमेडी कर लेते थे। जाने भी दो यारों,चुपके-चुपके, मालामाल विकली,चाची 420, आवारा पागल दीवाना, सिंग इज किंग,दुल्हन हम ले जाएंगे,बिल्लू चोर मचाए शोर और हेरा-फेरी, सरीखी में साफ देखा जा सकता है। ओमपुरी जल्द ही सलमान खान स्टारर ‘ट्यूबलाइट’ में भी नजर आने वाले थे।

ओमपुरी अपने आप में एक एक्टिग स्कूल थे,उन्होंने कई पीढ़ियों को सिखाया अभिनय,वहीं आक्रोश, माचिस, अर्धसत्य, आरोहण, मंडी, मिर्च-मसाला, और गांधी सरीखी फिल्मों ने उन्हें गंभीर अभिनेता के तौर पर पहचान दिलाई। कहना गलत न होगा कि वह एक स्टार नहीं, एक बड़े अभिनेता थे, जिन्होंने बॉलीवुड में कई पीढ़ियों को अभिनय  करना सिखाया था।

ओमपुरी की चर्चित फिल्मों पर एक नजर
ओम पुरी ने अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यूं आता है (1980), आक्रोश (1980), गांधी (1982), विजेता (1982), आरोहण (1982), अर्धसत्य (1983), नासूर (1985), घायल (1990), नरसिम्हा (1991), सिटी ऑफ जॉय (1992), द घोस्ट एंड द डार्कनेस (1996), माचिस (1996), चाची 420 (1997), गुप्तरू द हिडन ट्रुथ (1997), मृत्युदंड (1997), प्यार तो होना ही था (1998), विनाशक दृ डिस्ट्रॉयर (1998), हे राम (2000), कुंवारा (2000), हेरा फेरी (2000), दुल्हन हम ले जाएंगे (2000), फर्ज (2001), गदररू एक प्रेम कथा (2001), आवारा पागल दीवाना (2002), चोर मचाये शोर (2002), मकबूल (2003), आनरू मेन एट वर्क (2004), लक्ष्य (2004), युवा (2004), देव (2004), दीवाने हुए पागल (2005), रंग दे बसंती (2006), मालामाल वीकली (2006), चुप चुप के (2006), डॉनरू द चेस बैगिन्स अगेन (2006), फूल एंड फाइनल (2007), मेरे बाप पहले आप (2008), किस्मत कनेक्शन (2008), सिंग इज किंग (2008), बिल्लू (2009), लंदन ड्रीम्स (2009), कुर्बान (2009), दिल्ली-6 (2009), दबंग (2010), डॉन 2रू द किंग इज बैक (2011), अग्निपथ (2012), ओएमजीरू ओह माय गॉड! (2012), कमाल धमाल मालामाल (2012), बजरंगी भाईजान (2015), मिस तनकपुर हाजिर हो (2015), घायल वन्स अगेन (2016), द जंगल बुक (2016) और एक्टर इन लॉ (2016)।

राजनीति में शासक नहीं, सेवक आगे आए : मनोज तिवारी

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दिल्ली भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी ने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली को विकास और समृद्धि की ओर अग्रसर करने में सक्रिय, साफ-सुथरी एवं मूल्यों पर आधारित राजनीति की सर्वाधिक आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है राजनीति में शासक नहीं, सेवक आगे आए। मैं शासक नहीं, सेवक हूं। श्री तिवारी दिल्ली भाजपा के कार्यालय में प्रख्यात जैन संत गणि राजेन्द्र विजयजी से आशीर्वाद ग्रहण करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सुखी परिवार फाउंडेशन के राष्ट्रीय संयोजक श्री ललित गर्ग ने गुलदस्ता भेंट कर श्री तिवारी का स्वागत किया। किसान यात्रा संदेश के संपादक पं. नरेन्द्र शर्मा ने पत्रिका का नवीन अंक भेंट किया। श्री मनोज तिवारी ने कहा कि दिल्ली का विकास सत्ता और स्वार्थ की राजनीति के कारण अवरुद्ध है। जो केवल अपना हित सोचते हैं वे राजनीति के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं। श्री तिवारी ने गणि राजेन्द्र विजयजी के द्वारा आदिवासी उत्थान के लिए किये जा रहे शिक्षा, सेवा एवं जनकल्याण के कार्यक्रमों की सराहना की। 

गणि राजेन्द्र विजयजी ने इस अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि आज राजनीति का अर्थ देश में सुव्यवस्था बनाये रखना नहीं बल्कि अपनी सत्ता और कुर्सी को बनाये रखना है। संतुलित एवं समतामूलक समाज की स्थापना के लिए आर्थिक विसंगतियों के साथ-साथ राजनीतिक विषमताओं को भी दूर करना जरूरी है। उन्होंने आदिवासी उत्थान की अपेक्षा महसूस करते हुए कहा कि देखा गया है कि एक ओर लोगों के पास चढ़ने को साईकिल भी नहीं है दूसरी ओर नेता लोग लाखों रुपयों की कीमती कारों में घूमते हैं। पिता मिठाई खाये और बच्चे भूखे मरे- क्या यह भी कोई सुखी परिवार और सुखी राष्ट्र की तस्वीर है? सुखी परिवार फाउंडेशन के संयोजक श्री ललित गर्ग ने गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में गतिमान आदिवासी अहिंसक ग्राम योजना की जानकारी देते हुए बताया कि सुखी परिवार फाउंडेशन की यह एक अभिनव आदिवासी उत्थान की योजना है जिसके अंतर्गत आदिवासी लोगों को निःशुल्क आवास उपलब्ध कराया जाएगा और इसके साथ-साथ आदिवासी लोगांे के लिए शिक्षा, सेवा, संस्कार-निर्माण, नशामुक्ति एवं महिला उत्थान के उपक्रम किये जायेंगे। 

विशेष आलेख : नालन्दा राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय मुद्दा है

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नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में प्राचीन भारत के सबसे बड़े ज्ञान केंद्र के लुप्त हो चुके इतिहास को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 को लोकसभा में पारित किया गया और एक सपने को आकार देने की दिशा में सार्थक प्रयत्न शुरु हुआ, लेकिन चांसलर जॉर्ज यो ने विश्वविद्यालय की स्वायत्तता का मुद्दा उठाते हुए अपने पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रीयता एवं शिक्षा-संस्कृृति से जुड़ी बड़ी परियोजना को धुंधलाया है। 13वीं शताब्दी में ध्वस्त कर दिये गये शिक्षा के इस सबसे बड़े केन्द्र को  पुनर्जीवित  करने के सपने को इससे गहरा आघात लगा है। यह आघात दूसरी बार लगा है, इससे पहले नोबल विजेता अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन भी कमोबेश इन्हीं वजहों से इस प्रॉजेक्ट से हट चुके हैं। जॉर्ज यो के इस तरह इस्तीफा देने या अमत्र्य सेन के इस महत्वपूर्ण परियोजना से हट जाने की घटना से अनेक सवाल खड़े हुए हैं। एक बड़ा प्रश्न तो यह है कि भारत के एक बड़े संकल्प को इस तरह क्यों आहत होना पड़ रहा है। ऐसे भारत की अस्मिता एवं विरासत से जुड़ा उपक्रम राजनीति का शिकार होने को क्यों विवश हुआ? नालंदा विश्वविद्यालय के विचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करने का संकल्प कोई छोटा संकल्प नहीं है, इस तरह के कार्यों को राजनीति से दूर ही रखा जाना चाहिए। इस तरह की राष्ट्रीय मुख्यधारा से जुड़ी परियोजनाओं के लिये गैर-राजनीतिक व्यवस्थाएं अपेक्षित हंै। क्योंकि राष्ट्रीय मुख्यधारा को बनाने एवं सतत प्रवाहित करने में और करोड़ों लोगों को उसमें जोड़ने में अनेक महापुरुषों ने खून-पसीना बहाकर इतिहास लिखा है। राष्ट्रीय मुख्यधारा न तो आयात होती है, न निर्यात। और न ही इसकी परिभाषा किसी शास्त्र में लिखी हुई है। हम देश, काल, परिस्थिति एवं राष्ट्रहित को देखकर बनाते हंै, जिसमें हमारी संस्कृति, विरासत सांस ले सके। नालन्दा विश्वविद्यालय हमारे देश की संस्कृति है, गौरवमय विरासत है, राष्ट्रीयता का प्रतीक है। यह एक बहुआयामी एवं बहुउद््देशिय परियोजना है, यह राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय मुद््दा है।

चांसलर जॉर्ज यो नालन्दा विश्वविद्यालय की परियोजना के आधार स्तंभ थे। कैंब्रिज से ग्रेजुएशन और हार्वर्ड से एमबीए करने वाले जॉर्ज यो ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने सबसे पहले 2006 में भारत सरकार को नालंदा विश्वविद्यालय  के पुनरुद्धार का आधिकारिक प्रस्ताव दिया था। सिंगापुर के विदेश मंत्री रह चुके यो इस प्रॉजेक्ट के साथ शुरू से ही जुड़े थे। अमत्र्य सेन को इस परियोजना के साथ जोड़ना और उन्हें चांसलर बनाना अन्तर्राष्ट्रीय अपेक्षाओं को देखते हुए लिया गया निर्णय था। बतौर चांसलर एक टर्म पूरा करने के बाद 2015 में अमत्र्य सेन ने दूसरे टर्म के लिए अपनी दावेदारी यह कहते हुए वापस ले ली कि भारत सरकार उन्हें इस पद पर नहीं देखना चाहती। सरकार ने न केवल उनकी इस राय को बदलने की कोशिश नहीं की, चुपचाप उन्हें पद से हट जाने दिया, बल्कि इसके कुछ ही समय बाद उन्हें विश्वविद्यालय के गवर्निंग बोर्ड से भी हटा दिया। इन घटनाओं ने इस बड़े प्रॉजेक्ट के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिये हंै।

शिक्षा के मामले में भारतीय इतिहास प्रखर है। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना करीब 2500 साल पहले बौद्ध धर्मावलम्बियों ने की थी। यह विश्वविद्यालय न केवल कला, बल्कि शिक्षा के तमाम पहलुओं का अभिनव केन्द्र था। ‘वास्तविकता में यह वही ‘ज्ञान रूपी उपहार’ है, जिसका अभ्यास भारतीय विद्वान नालंदा में किया करते थे। जब नालंदा अपने शिखर पर था, तब विभिन्न देशों के लगभग 10 हजार से अधिक विद्यार्थी यहां रहकर अध्ययन किया करते थे। यही नहीं, यहां शिक्षकों की संख्या 1500 से अधिक थी। यहाँ अध्ययनरत छात्र न केवल बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करते थे, बल्कि उनकी शिक्षा में अन्य संस्कृतियों और धार्मिक मान्यताओं का समावेश था। नालंदा विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य ऐसी पीढ़ियों का निर्माण करना था, जो न केवल बौद्धिक बल्कि आध्यात्मिक हों और समाज के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें। करीब 833 वर्ष पूर्व आक्रमणकारियों के हाथों तबाह हुए इस विश्व विख्यात विश्वविद्यालय के नए स्वरूप-अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय को भारत के लिये गौरवपूर्ण घटना कहा जा सकता है।

कितने ही स्वप्न अतीत बने। कितने ही सूर्य अस्त हो गए। कितने ही नारे गूँजे- ”स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है“, ”वन्दे मातरम्“, ”भारत छोड़ो“, ”पूर्ण-स्वराज्य“ - भारत की अस्मिता एवं अस्तित्व को बचाने के लिये। आज जो हमारे सामने उजाला है वह करोड़ों-करोड़ों के संकल्पों, कुर्बानियों एवं त्याग से प्राप्त हुआ है। आजादी किसी एक ने नहीं दिलायी। एक व्यक्ति किसी देश को आजाद करवा भी नहीं सकता। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विशेषता तो यह रही कि उन्होंने आजादी को राष्ट्रीय संकल्प और तड़प बना दिया। आज भी इस उजाले को छीनने के कितने ही प्रयास हुए, हो रहे हैं और होते रहेंगे। उजाला भला किसे अच्छा नहीं लगता। आज हम बाहर से बड़े और भीतर से बौने बने हुए हैं। इस बौनेपन का ही असर है कि हम अपनी गौरवमयी विरासत को जीवंत करने के संकल्प में कहीं-ना-कहीं भटक रहे हैं। यह स्थिति बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और भयानक है।

एक अरब से अधिक के राष्ट्र को नालन्दा कह रहा है कि मुझे आकाश जितनी ऊंचाई दो, मेरे से जुड़े संकल्प को आकार दो। क्योंकि उसी से भारत एक बार पुनः विश्वगुरु बन सकेगा। नालन्दा, तक्षशिला एवं विक्रमशिला जैसे गुरुकुलों के कारण ही भारतीय संस्कृति विश्व में पूजनीय बनी। इन्हीं के कारण भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। माता-पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है, परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है। कच्चे घड़े की भांति स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जिस रूप में ढालों, वे ढल जाते हैं। वे स्कूल में जो सीखते हैं या जैसा उन्हें सिखाया जाता है, वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है, जैसा वह अपने आस-पास होता देखते हैं। सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है, जो गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। गुरु का संबंध केवल शिक्षा से ही नहीं होता, बल्कि वह तो हर मोड़ पर अपने छात्र का हाथ थामने के लिए तैयार रहता है। उसे सही सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

ये प्राचीन उच्च शैक्षणिक संस्थान उस माली के समान थे, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता थे। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करते थे। उन्हें जीने की वजह समझाते थे। इन शिक्षा के मन्दिरों के लिए सभी छात्र समान होते थे और वे सभी का कल्याण चाहते थे। यही वे शिक्षा के केन्द्र थे, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करते थे। वे प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करते थे तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करते थे। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से अच्छे चरित्र का निर्माण करते थे। इन अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये ही समूची दुनिया भारत की ओर टकटकी लगाए हैं और इसीलिये नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता महसूस हुई। 

नालंदा विश्वविद्यालय के विचार को पुनर्जीवित करने की कोशिश एक असाधारण उपक्रम था, एक बड़ी चुनौती थी और उसका मूर्तरूप प्रकट होना आश्चर्य से कम नहीं कहा जा सकता है। वह दिन बिहार और देश-दुनिया के इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए खास बना। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने मार्च 2006 में बिहार विधानमंडल के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की बड़ी शक्तियां भी यही चाहती है कि नालंदा विश्वविद्यालय पुनः आकार ले। भले ही वह भारत की एक ध्वस्त धरोहर हो, पर इसके पुनरुद्धार का प्रॉजेक्ट अकेले भारत सरकार का नहीं है। इसे 17 देशों का समर्थन हासिल है। उन सबके सहयोग से यह आगे बढ़ रहा है। विश्व स्तर का कोई ज्ञानकेंद्र स्थापित करना ऐसा काम होता भी नहीं, जिसे सीमित संसाधनों से पूरा कर लिया जाए। मगर, दुनिया के कोने-कोने से सभी संबद्ध व्यक्तियों का सहयोग और सदिच्छा हासिल करना कोई हंसी-खेल नहीं है। इसके लिए जिस तरह की जरूरतें होती है और उनके लिये सरकार से जो सहयोग अपेक्षित है, वैसा सहयोग देने की मानसिकता सरकारों में न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। विडम्बनापूर्ण तो यह भी है कि अमत्र्य सेन जैसे व्यक्ति से सरकार की आर्थिक नीतियों से असहमति के चलते उन्हें इस विश्वविद्यालय से विदा होना पड़ा। किन्हीं सरकारी नीतियों से सहमति या असहमति होना और एक खास विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में उसके कामकाज के मूल्यांकन से क्यो कोई लेना-देना होना चाहिए? सरकार जब इस तरह की संकीर्णता प्रदर्शित करती है तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित उच्च शैक्षणिक संस्थानों की संभावनाएं कैसे आकार ले सकेगी।





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 (ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

प्रधानमंत्री के नोट बंधी से खुश है,राखी अरोड़ा

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प्रधानमंत्री मोदी जी के पुराने नोटबंदी पर अभिनेत्री राखी अरोडा का कहना कि ‘यह एक अच्छा प्रयास है, इससे कालेधन के प्रयोग पर रोक लगेगा’ साथ ही उनको खुशी भी है,अब फिल्मों में भी व्हाइट मनी का प्रयोग होगा...यह एक सार्थक प्रयास हैं। अभिनेता शाहरूख के साथ अभिनय करने की काम चाह रखने वाली राखी अरोड़ा कहती है कि‘शाहरूख सदाबहार स्टार अभिनेता हैं और रहेगें,मेरी दिली इच्छा है उनके साथ काम करने की। राखी कहती  है कि बालीवुड में लंबे सघर्ष और अनेक चुनौतियों के बाद जैसे उनको पहचान मिली,आज भी मैं भी उसी दौर से गुजर रही हॅू। बतौर हीरोईन उनकी फिल्म ‘फीमेल एक्सप्रेस’ रीलिज  हो चुकीं है,फिल्म को मिले अच्छे रिस्पांस से राखी खुश है। फिल्म में राखी एक नये और अलग अवतार में नजर आई। राखी कहती है कि‘यह मल्टी स्टार फिल्म ना होकर नये कलाकारों की हास्य प्रधान फिल्म है,जिसके निर्देशक रामगोपाल विमल है। ‘फीमेल एक्सप्रेस’ फिल्म के अलावा राखी एक अन्य फिल्म-’लव लव प्यार’ भी कर रही हैं। इसकी शूंिटंग  जल्द ही में शुरू हाने वाली हैं। 

इस मुकाम तक पहंुचने के लिए राखी को लंबा सफर करना पडा। उन्होंने करियर की शुरूआत रंगमंच से की। कुछ विज्ञापनों में माॅडलिंग भी की। बालविवाह पर निर्मित एक  फिल्म मैं उनके काम की सराहना भी हुई,लेकिन एक अलग पहचान मिली वीनस म्युजिक के अलबम विडियों ‘जवानी मेरी बिजली’ और ‘लहरियां’ से । राखी कहती है कि‘ बालीवुड में कलाकारोें की दस्तक किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं हैं,खासतौर पर उन कलाकारों के लिए जिनका कोई ‘गाॅड फादर’ नहीं है। लेकिन किस्मत और परिस्थितियां सब कुछ आसान कर देती हैं।’ राखी ने यह भी कहा कि वह ‘ निर्देशक रामगोपाल विमल की एक अगामी महिला प्रधान फिल्म में भी लीड रोल करने जा रहीं हैं। फिल्म का कन्सेप्ट काफी अच्छा हैं।’

विशेष : समान नागरिक संहिता की फेर उलझता तीन तलाक का मुद्दा

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समान नागरिक संहिता (यूनिफार्म सिविल कोड) स्वतंत्र भारत के कुछ सबसे विवादित मुद्दों में से एक रहा है. वर्तमान में केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टी और उसके पितृ संगठन द्वारा इस मुद्दे को लम्बे समय से उठाया जाता रहा है .यूनिफार्म सिविल कोड को लागू कराना उनके हिन्दुतत्व के एजेंडे का एक प्रमुख हिस्सा है. इसीलिए वर्तमान सरकार जब समान नागरिक संहिता की बात कर रही है तो उसकी नियत पर सवाल उठाये जा रहे हैं. दूसरी तरफ मुस्लिम महिलाओं की तरफ से समान नागरिक संहिता नहीं बल्कि एकतरफा तीन तलाक़, हलाला व बहुविवाह के खिलाफ आवाज उठायी जा रही है उनकी मांग है कि इन प्रथाओं पर रोक लगाया जाए और उन्हें भी खुला का हक मिले. एक और पक्ष ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे मुस्लिम संगठनों का है  जो  किसी भी बदलाव को इस्लाम के खिलाफ बता रहे हैं.  

लेकिन मुस्लिम औरतों की सबसे बड़ी समस्या तीन तलाक है. मर्दों के लिए यह बहुत आसन है कि तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह दिया और सब-कुछ खत्म, इसके बाद मर्द तो दूसरी शादी कर लेते हैं लेकिन आत्मनिर्भर ना होने की वजह से महिलाओं का जीवन बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाता है. तलाक के बाद उन्हें भरण-पोषण के लिए गुजारा भत्ता नहीं मिलता और अनेकों  मामलों में तो उन्हें मेहर भी वापस नहीं दी जाती है. कई मामलों में तो ईमेल,वाट्सएप,फोन, एसएमएस के माध्यम से या रिश्तेदारों,काजी आदि से कहलवा कर तलाक दे दिया जाता है. इसी तरह से हलाला का चलन भी एक अमानवीय है. दुर्भाग्यपूर्ण कई मुस्लिम तंजीमों और मौलवीयों द्वारा तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह का समर्थन किया जाता है.

सुप्रीमकोर्ट पहले भी कह चूका है कि अगर सती प्रथा बंद हो सकती है तो बहुविवाह एवं तीन तलाक जैसी प्रथाओं को बंद क्यों नही किया जा सकता. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट तलाक या मुस्लिम बहुविवाह के मामलों में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के मुद्दे की समीक्षा कर रहा है. दरअसल उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो सहित कई महिलाओं ने ‘तीन बार तलाक’ को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट यह समीक्षा करने पर राजी हो गया है कि कहीं तीन तलाक, बहुविवाह, निकाह और हलाला जैसे प्रावधानों से कहीं मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि ‘वह तीन तलाक का विरोध करती है और इसे जारी रखने देने के पक्ष में नहीं है’. 

लेकिन इसके बाद विधि आयोग ने 16 सवालों की लिस्ट जारी कर ट्रिपल तलाक़ और कॉमन सिविल कोड पर जनता से राय मांगी थी जिसपर विवाद हो गया. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे समाज को बांटने वाला और मुसलमानों के संवैधानिक अधिकार पर हमला बताते हुए इसके बायकॉट करने का ऐलान कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाबी हलफनामा में बोर्ड ने कहा कि एक साथ तीन तलाक, बहुविवाह या ऐसे ही अन्य मुद्दों पर किसी तरह का विचार करना शरीयत के खिलाफ है. इनकी वजह से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के हनन की बात बेमानी है. इसके उलट, इन सबकी वजह से मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और इज्जत की हिफाजत हो रही है. अपने हलफनामे में बोर्ड ने तर्क दिया है कि “पति छुटकारा पाने के लिए पत्नी का कत्ल कर दे, इससे बेहतर है उसे तलाक बोलने का हक दिया जाए.” मर्दों को चार शादी की इजाज़त के बचाव पर बोर्ड का तर्क है कि, “पत्नी के बीमार होने पर या किसी और वजह से पति उसे तलाक दे सकता है. अगर मर्द को दूसरी शादी की इजाज़त हो तो पहली पत्नी तलाक से बच जाती है.” पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार से पर जनमत संग्रह करवाने की भी मांग की है. जाहिर है बोर्ड किसी भी बदलाव के खिलाफ है. 

इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज भी बंटता हुआ नजर आ रहा है. ज्यादातर मौलाना, उलेमा और धार्मिक संगठन तीन बार बोल कर तलाक देने की प्रथा को जारी रखने के पक्ष में हैं तो दूसरी तरफ महिलाएं और उनके हितों के लिए काम करने वाले संगठन इस प्रथा को पक्षपातपूर्ण करार देते हुए इसके खात्मे के पक्ष में हैं. उनका तर्क है कि इस्लाम में जायज़ कामों में तलाक को सबसे बुरा काम कहा गया है और हिदायत दी गयी है कि जहां तक मुमकिन हो तलाक से बचो और यदि तलाक करना ही हो तो हर सूरत में न्यायपूर्ण ढंग से हो और तलाक में पत्नी के हित और उसके जीवनयापन के इंतजाम को ध्यान में रखा जाए. 

दरअसल एक झटके में तीन बार 'तलाक, तलाक, तलाक'बोल कर बीवी से छुटकारा हासिल करने का चलन दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व एशिया में ही है और यहाँ भी ज्यादातर सुन्नी मुसलमानों के बीच ही इसकी वैधता है. मिस्र पहला देश था जिसने 1929 में तीन तलाक पर रोक लगा दिया था. आज ज्यादातर मुस्लिम देशों जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं ने अपने यहां सीधे-सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर दी है. जानकार श्रीलंका में तीन तलाक के मुद्दे पर बने कानून को आदर्श बताते हैं. तकरीबन 10 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले श्रीलंका में शौहर को तलाक देने के लिए काजी को इसकी सूचना देनी होती है. इसके बाद अगले 30 दिन के भीतर काजी मियां-बीवी के बीच सुलह करवाने की कोशिश करता है. इस समयावधि के बाद अगर सुलह नहीं हो सके तो काजी और दो चश्मदीदों के सामने तलाक हो सकता है. 

हमारे देश में तीन तलाक के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल सुविधा की राजनीति कर रहे हैं और  इस मामले में उनका रुख अपना सियासी नफा-नुकसान देखकर ही तय होता है. वर्तमान में केंद्र में दक्षिणपंथी सरकार है जिसको लेकर अल्पसंख्यकों में आशंका की भावना व्यापत है और इसके किसी भी कदम को लेकर उनमें भरोसा नहीं है. सवाल यह भी उठ रहा है कि जिस समय मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड और भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन जैसे संगठनों का तीन तलाक की रिवायत को खत्म करने का अभियान जोर पकड़ रहा था और इसका असर भी दिखाई पड़ने लगा था ऐसे में सरकार द्वारा विधि आयोग के माध्यम से समान नागरिक संहिता का शगूफा क्यों छोड़ा गया? इससे तो तीन तलाक का अभियान कमजोर हुआ है इससे समाज में धुर्वीकरण होगा मुस्लिम समाज के भीतर से उठी प्रगतिशीलता और बदलाव की आवाजें कमजोर पड़ जायेगीं.

सितम्बर माह में केरल के कोझिकोड में आयोजित बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में है जिसमें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को याद करते हुआ कहा था कि “दीनदयाल जी का कहना था कि मुसलमानों को न पुरस्कृत करो न ही तिरस्कृत करो बल्कि उनका परिष्कार किया जाए”. यहाँ  “परिष्कार” शब्द पर ध्यान देने की जरूरत है जिसका मतलब होता है “ प्यूरीफाई ” यानी शुद्ध करना. हिंदुत्ववादी खेमे में “परिष्कार” शब्द का विशेष अर्थ है जिसे समझना जरूरी है दरअसल हिंदुत्व के सिद्धांतकार विनायक दामोदर सावरकर  मानते थे कि ‘चूकिं इस्लाम और ईसाईयत का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ था इसलिए मुसलमान और ईसाइयों की भारत पितृभूमि नहीं हैं, उनके धर्म, संस्कृति और पुराणशास्त्र भी विदेशी हैं इसलिए इनका राष्ट्रीयकरण (शुद्धिकरण) करना जरुरी है.पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने “परिष्कार” शब्द का विचार सावरकर से लिया था जिसका नरेंद्र मोदी उल्लेख कर रहे थे. पिछले दिनों संघ परिवार द्वारा चलाया “घर वापसी अभियान” खासा चर्चित हुआ था. संघ परिवार और भाजपा का मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंता, समान नागरिक संहिता का राग इसी सन्दर्भ में समझा जाना चाहिए.

हर बार जब मुस्लिम समाज के अन्दर से सुधार की मांग उठती है तो शरिया का हवाला देकर इसे दबाने की कोशिश की जाती है. इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन किसी संवाद और बहस के लिए भी तैयार नहीं होते हैं. इसलिए सबसे पहले तो जरूरी है कि तीन तलाक और अन्य कुरीतियों को लेकर समाज में स्वस्थ्य और खुली बहस चले और अन्दर से उठाये गये सवालों को दबाया ना जाए . इसी तरह से अगर समाज की महिलायें पूछ रही हैं कि चार शादी  शादी के तरीकों, बेटियों को  जायदाद में उनका वाजिब हिस्सा देने जैसे मामलों में कुरआन और शरियत का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है, तो इन सवालों को सुना जाना चाहिए और अपने अंदर से ही इसका हल निकालने की कोशिश की जानी चाहिय.   

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगटनों को संघ परिवार की राजनीति भी समझनी चाहिए जो चाहते ही है कि आप इसी तरह प्रतिक्रिया दें ताकी माहौल बनाया जा सके .इसलिए बोर्ड को चाहिए की वे आक्रोश दिखाने के बजाये सुधारों के बारे में गंभीरता से सोचे और ऐसा कोई मौका ना दे जिससे संघ परिवार अपनी राजनीति में कामयाब हो सके. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को  दूसरे मुस्लिम देशों में हुए सुधारों का अध्ययन करने की भी जरूरत है .



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जावेद अनीस 
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ओमपुरी का अवसान सांस्कृतिक आंदोलन के कोरे कैनवास को बेपरदा कर गया।

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  • एकदम अकेली हो गयी शबाना।

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शबाना आजमी की तरह हमारा ओम पुरी के साथ लंबा कोई सफर नहीं है। ओमपुरी के निधन के बाद शबाना स्तब्ध सी हैं और मीडिया को कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है।तडके सुबह ये खबर आई कि बॉलीवुड अभिनेता ओमपुरी को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी है।   परिवार से जुड़े सूत्रों ने कहा, आज सुबह दिल का तेज दौरा पड़ने से उनका उपनगरीय अंधेरी स्थित अपने घर पर निधन हो गया। 66 साल के ओमपुरी के निधन की खबर से पूरा बॉलीवुड,रंगकर्मी दुनिया अब सन्न हैं। ओमपुरी का पूरा नाम ओम राजेश पुरी है। वह 66 वर्ष के थे। ओम पुरी का जन्म १८ अक्टूबर 1950 में हरियाणा के अम्बाला शहर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने ननिहाल पंजाब के पटियाला से पूरी की। 1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में अभिनय की शिक्षा दी। बाद में ओमपुरी ने अपने निजी थिएटर ग्रुप "मजमा"की स्थापना की। ओम पुरी ने नये सिनेमा के दौर में सुर्ख़ियों में आए थे। हाशिमपुरा मलियाना नरसंहार के बाद नई दिल्ली से पैदल चलकर आजमगढ़ की बेटी शबाना आजमी ने राजा बहुगुणा,शमशेर सिंह बिष्ट,शंकरगुहा नियोगी जैसे प्रिय जनों के साथ मेरठ पहुंचकर जनसभा को संबोधित किया था।

तब मंच पर शबाना आजमी से संक्षिप्त सी मुलाकात हुई थी।लेकिन ओम पुरी या नसीर,या गिरीश कर्नाड,श्याम बेनेगल,गोविंद निलहानी,स्मिता पाटिल,दीप्ति नवल,अमरीश पुरी,नाना पाटेकर जैसे समांतर फिल्मों के कलाकारों से हमारी कोई मुलाकात नहीं हुई। बाबा कारंथ ने युगमंच के साथ काम किया है।कोलकाता में गौतम घोष से भी मिले हैं।रुद्र प्रसाद सेनगुप्त से भी अंतरंगता रही है।संजना कपूर और नंदिता दास से भी संवाद की स्थिति बनी है। फिरभी बिना मुलाकात हम इन लोगों से किसी न किसी तरह जुड़े हैं।वे गिरदा की तरह किसी न किसी रुप में हमारे वजूद में शामिल हैं। मृणाल सेन और ऋत्विक घटक की फिल्मों के साथ सत्तर के दशक में लघु पत्रिका आंदोलन और समांतर सिनेमा के साथ रंगकर्म से हमारा गहरा ताल्लुकात ही हमारी दिशा तय करता रहा है। टैगोर, नजरुल, माणिक, शारत, भारतेंदु, प्रेमचंद, मुक्तिबोध के साथ साथ कालिदास, शूद्रक, सोफोक्लीज और शेक्सपीअर के नाटकों से हमारा सौंदर्यबोध बना है। नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में हमारे नैनीताल के रंगकर्मियों की मौजूदगी इतनी प्रबल रही है कि कभी उसे नैनीताल स्कूल आफ ड्रामा कहा जाता है।
हमारे पसंदीदा हालिया कलाकार इरफान खान,हमारे अजीज दोस्त इदरीस मलिक की तरह ओम पुरी भी एनएसडी से जुड़े हैं।एन एस डी के बृजमोहन शाह,आलोकनाथ और नीना गुप्ता युगमंच के साथ काम करते रहे हैं। अस्सी के दशक में जब समांतर सिनेमा की यादें एकदम ताजा थीं,शबाना और स्मिता परदे पर थीं,अचानक स्मिता पाटिल के निधन पर गहरा झटका लगा था।उसी के आसपास श्रीदेवी और कमल हसन की बेहतरीन फिल्म सदमा देखने को मिली थी।

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श्रीदेवी,माधुरी या तब्बू या प्रियंका या दीपिका के लिए शबाना और स्मिता की तरह श्याम बेनेगल जैसा निर्देशक नहीं था।कोई ऋशिकेश मुखर्जी,बासु भट्टाचार्यऔर गुलजार भी नहीं। फिरभी वह तमस का समय रहा है।जो रामायण महाभारत के साथ राममंदिर आंदोलन में समांतर सिनेमा के साथ साथ लघु पत्रिका आंदोलन और भारतीय कला साहित्य सांस्कृतिक परिदृश्य का भी अवक्षय है।केसरियाकरण है। बांग्ला फिल्मों की महानायिका सुचित्रा सेन हो या चाहे बालीवूड की बेहतरीन अभिनेत्रियां काजोल, कंगना,  तब्बू इनके लिए समांतर सिनेमा का कोई निर्देशक नहीं रहा है।फर्क क्या है,ऋत्विक घटक की फिल्मों मेघे ढाका तारा और कोमल गांधार की सुप्रिया चौधरी को देख लीजिये और बाकी उनकी सैकड़ों फिल्मों को देख लीजिये। सत्यजीत राय की माधवी मुखर्जी को देख लीजिये।सिर्फ शबाना अपवाद हैं,जो हर फिल्म में हर किरदार के रंग में रंग जाती हैं।अब भी मशाल उन्हीं हाथों में है। काजोल जैसी अभिनेत्री की एक भी क्लासिक फिल्म उस तरह नहीं है जैसे नर्गिस की मदर इंडिया।समांतर फिल्मों के अवसान का यह नतीजा है मुकतबाजारी वाणिज्य में हमारी बेहतरीन मेधा का क्षय है। अमरीश पुरी के निधन से झटका तो लगा लेकिन वे इस हद तक कामर्शियल फिल्मों के लिए टाइप्ड हो गये थे कि सदमा की हालत नहीं बनी।

समांतर फिल्मों के अवसान,श्याम बेनेगल के अवकाश और स्मिता के निधन के बाद भी शबाना आजमी,ओम पुरी,नंदिता दास के अभिनय और बीच बीच में बन रही नान कामर्सियल फिल्मों,गौतम घोष की फिल्मों के जरिये हम सत्तर के दशक को जी रहे थे।इधर बंगाल में  नवारुण भट्टाचार्य के कंगाल मालसाट और फैताड़ु का फिल्मांकन भी कामयाब रहा है। इसके अलावा हमारे मित्र जोशी जोसेफ और आनंद पटवर्धन ने वृत्त चित्रों को ही समांतर फिल्मों की तरह प्रासंगिक बनाया है। इस बीच प्रतिरोध का सिनेमा भी आंदोलन बतौर तेजी से फैल रहा है। ओम पुरी हमसे कोई बहुत बड़े नहीं थे उम्र में।सत्तर के दशक से कला फिल्मों से लेकर वाणिज्य फिल्मों,हालीबूड ब्रिटिश फिल्मों में लगातार हम उनके साथ जिंदगी गुजर बसर कर रहे थे और अचानक जिंदगी में उनकी मौत से सन्नाटा पसर गया है। शबाना आजमी या श्याम बेनेगल या गिरीश कर्नाड नाना पाटेकर को कैसा लग रहा होगा,हम समझ रहे हैं।गौतम घोष और रुद्र प्रसाद सेनगुप्त भी उनके मित्र थे। करीब तीन सौ फिल्मों में काम किया है ओमपुरी ने।इनमें बीस फिल्में हालीवूड की भी हैं।फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से सिनेमा का प्रशिक्षण लेने वाले ओमपुरी ने दर्जनों हिट फिल्मों में काम किया। अर्धसत्य (1982), मिर्च मसाला (1986) समेत कई फिल्मों में उनके अभिनय को बेहद सराहा गया।  हरियाणा के अंबाला में जन्मे ओमपुरी ने बॉलीवुड के साथ-साथ मराठी और पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया। वह पाकिस्तानी, ब्रिटिश और हॉलीवुड फिल्मों में भी पर्दे पर नजर आए। सिनेमा में उत्कृष्ठ योगदान के लिए उन्हें पदमश्री से भी सम्मानित किया गया।  फिल्म अर्धसत्य के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी नवाजा गया। इप्टा आंदोलन,सोमनाथ होड़,चित्तोप्रसाद के भुखमरी परिदृश्य से बारतीय रंगकर्म और भारतीय सिनेमा का घना संबंध रहा है।

इप्टा अब भी है।वह असर नहीं है। 
नोटबंदी के परिदृश्य में फिर बंगाल की भुखमरी की वह काली छाया गहराने लगी है।इप्टा की वह भूमिका दीख नहीं रही है।न मीडिया,न प्रिंट,न माध्यम,न विधा,न साहित्य और न संस्कृति में और न ही राजनीति में इस कयामती सच और यथार्थ का कोई दर्पण कही दीख रहा है।मनुष्यता के संकट में सभ्यता का अवसान है। दूसरे विश्वयुद्ध की वजह से भारी मंदी और कृषि संकट की वजह से बंगाल में भुखमरी हुई थी।आज भारत में कृषि और कृषि से जुड़े समुदायों के कालाप कारपोरेट हमला सबसे भयंकर है।नोटबंदी के बाद जनपद और देहात कब्रिस्तान हैं तो किसानों के साथ साथ व्यवसायी भी कंगाल हैं।नौकरीपेशा मर मरकर जी रहे हैं। हमारे पास अखबार नहीं हैं। हमारे पास पत्रिकाएं नहीं हैं। हमारे पास नाटक और रंगकर्म नहीं हैं। हमारे पास टीवी नहीं है। हमारे पास सिनेमा नहीं है। साहित्य नहीं है। राजनीति हमारी नहीं है और न हमारी राजनीति कोई है। निरंकुश सत्ता के हम प्रजाजन गायभैंसो से भी बदतर हैं। गायभैंसो की तरह हम सिर्फ आधार नंबर हैं। फर्क यही है कि ढोर डंगरों के वोट नहीं होते और हमारे सिंग नहीं होते। हमारी कोई संस्कृति नहीं है। हमारा कोई इतिहास नहीं है। हमारी विरासत से हम बेदखल हैं। हम कायनात से भी बेदखल हैं। कयामत के वारिशान हैं हम। मोहनजोदोड़ो और हड़पप्पा की तरह हमारा नाश है।सर्वनाश है। 

साम्राज्यवादी औपनिवेशिक शासन की वजह से देशज आजीविका,रोजगार और उत्पादन प्रणाली तहस नहस हो जाने की वजह से भारत और चीन की भुखमरी थी। विडंबना है कि इस महादेश के दोनों नोबेल विजयी अर्थशास्त्री डां.अमर्त्य सेन और मोहम्मद युनूस को मुक्त बाजार विश्व व्यवस्था की वकालत करते हुए साम्राज्यवादी हाथ नहीं दिखे। इप्टा ने भारतीय जनता का सभी माध्यमों में और विधाओं में जिस तरह प्रतिनिधित्व किया,उसी परंपरा में लघु पत्रिका आंदोलन,वैकल्पिक मीडिया और समांतर सिनेमा की विकास यात्रा है। हमने शरणार्थी कालोनी के अपने बचपन में भारत की आजादी के जश्न से ज्यादा भारत विभाजन का शोक अपने लोगों के लहूलुहान दिमाग में सिखों, पंजाबियों,वर्मा के शरणार्थियों और बंगाली शरणार्थियों के नैनीताल की तराई में एक बड़े कैनवास में देखा है,जिसे जीते हुए तमस का वह टीवी सीरियल है,जिसमें भारत विभाजन की पूरी साजिश ओम पुरी ने अपने किरदार में जिया है। मेरठ में मलियाना और हाशिमपुरा नरसंहार,सिखों के नरसंहार के परिदृश्य में श्वेत श्याम टीवी पर तमस की वह आग टीवी के परदे के अलावा हमने मेरठ की जमीन और आसमान में महीनों महीनों लगातार देखा है। धुंआ धुआं आसमान देखा है। इंसानी गोश्त की महक देखी है। अल्लाहो अकबर और हर हर महादेव जयश्रीराम का उन्माद देखा है। भोपाल त्रासदी के बाद बाबरी विध्वंस और गुजरात का नरसंहार देखा है। तमस का सिलसिला जारी है।फिरभी इप्टा और समांतर सिनेमा और लघुपत्रिका आंदोलन हमारे साथ हमारी दृष्टि और दिशा बनाने के लिए मौजूद नहीं थे। शेक्सपीअर, कालिदास,शूद्रक और सोफोक्लीज के नाटकों के पाठ के बाद सीधे रंगमंच की पृष्ठभूमि में समांतर सिनेमा हमारे लिए बदलाव का सबसे बड़ा ख्वाब रहा है,जबकि आजादी के बाद साठ के दशक में छात्रों युवाओं का मोहभंग हो चुका था।  

मृणाल सेन की कोलकाता 71 और इंटरव्यू के साथ सत्यजीत रे की फिल्म प्रतिद्वंद्वी,ऋत्विक की तमाम फिल्मों के बाद अंकुुर,निशांत,आक्रोश,अर्द्धसत्य और मंथन जैसी फिल्में हमें बदलाव का ख्वाब जीने को मजबूर कर रही थीं। इन सारी फिल्मों का देखना हमारे लिए साझा अनुभव रहा है,जिसमें गिरदा, कपिलेश भोज,हरुआ दाढ़ी,जहूर आलम,शेखर पाठक जैसे लोग साझेदार रहे हैं।  हिमपाती रातों में नैनीझील के साथ साथ मालरोड पर उन फिल्मों को हमने रात रातभर गर्मागर्म बहस में जिया है और उसकी ऊर्जा को हमने नैनीताल के रंगकर्म में स्थानांतरित करने की भरसक कोशिश की है।उन फिल्मों के सारे किरदार हमारे वजूद में शामिल होते चले गये और वे हमारे साथ ही रोज जी मर रहे हैं।ओम पुरी पहलीबार मरा नहीं है।स्मिता मरकर भी जिंदा हैं। ओम पुरी से बड़े थे गिरदा और वीरेनदा।ओमपुरी से बड़े हैं आनंदस्वरुप वर्मा और पंकज बिष्ट।अभी पहली जनवरी को हमारे सोदपुर डेरे में 78 साल के कर्नल भूपाल चंद्र लाहिड़ी आये थे।वे देश की सरहदों पर लड़ते रहे हैं और 83-84 में नैनीताल कैंट के केलाखान में उनका डेरा भी रहा है।वे रंगकर्मी हैं।कैमरे के पीछे भी वे हैं।लिखते अलग हैं।इसपर तुर्रा सुंदरवन के बच्चों के लिए उनकी जान कुर्बान है। अभी हमने उनके आदिवासी भूगोल पर लिखा बेहतरीन उपन्यास बक्सा दुआरेर बाघ का हिंदी में अनुवाद किया है।जो जल्दी ही आपके हातों में होगा,उम्मीद है।

कर्नल भूपाल चंद्र लाहिड़ी ने सैन्य जीवन पर उपन्यास अग्निपुरुष भी लिखा है।कहानियां और नाटक अलग से हैं।वे अकेले दम सुंदरवन के बच्चों तक पौष्टिक आहार पहुंचा रहे हैं। हफ्ते में चार दिन डायलिसिस कराने के बावजूद कोलकाता से सुंदरवन के गांवों का सफर उनका रोजनामचा है।पत्नी का निधन हो चुका है और बच्चे अमेरिका में हैं। उन्होंने घर में स्टुडियो बनाकर ओवी वैन के जरिये सुंदर वन के बच्चों को वैज्ञानिक तरीके से शिक्षित करने का काम कर रहे हैं।उन्हें विज्ञान पढ़ा रहे हैं।क्योंकि सुंदरवन के स्कूलों में विज्ञान जीव विज्ञान पढ़ा नहीं जाता। यह काम एक डाक्टर की मौत वाले टेस्ट ट्यूब बेबी वाले डां.सुभाष मुखर्जी को समर्पित है और सारा खर्च वे अपनी जमा पूंजी से उठा रहे हैं। हमने कर्नल लाहिड़ी से बांग्ला और हिंदी में लघु पत्रिका आंदोलन के अवसान पर चर्चा की तो समकालीन तीसरी दुनिया,समयांतर और हस्तक्षेप पर भी चर्चा हुई। इप्टा जमाने से त्रासदी यही है कि हम अपनी विरासत सहेजने में सिरे से नाकाम हैं।हम अगली पीढ़ी को बैटन थमाने में सिरे से नाकाम हैं।तमाम विधाओं और माध्यमों की बेदखली की असल वजह यही है कि समय रहते हुए हम अपने मिशन को जारी रखने का कोई स्थाई बंदोबस्त नहीं कर पाते। फिल्मों में एकमात्र नजीर ऋत्विक घटक का है,जिनके साथ तमाम कलाकारों, टेक्नीशियनों को स्वतंत्र तौर पर काम करने के लिए उन्होंने तैयार किया है। ऋत्विक की फिल्मों में अक्सर संगीत उन्होंने खुद तैयार किया है,लेकिन उन्होंने इसका श्रेय साथियों को दिया है।

समांतर सिनेमा की पृष्ठभूमि में इप्टी की गौरवशाली विरासत,भारतीय रंगकर्म की विभिन्न धाराएं,मृणाल सेन और ऋत्विक घटक की फिल्में रही हैं।सारा आकाश और भुवन सोम से यह सिलसिला शुरु हुआ था।भारतीय सिनेमा की यथार्थवादी धारा अछूत कन्या से लेकर दो बीघा जमीन,मदर इंडिया और सुजाता, दो आंखें बारह हाथ,जागते रहो,आवारा जैसी  की निरंतरता भी समांतर सिनेमा की निरंतरता है।त्रासदी यह है कि समांतर सिनेमा की निरंतरता अनुपस्थित है। समकालीन तीसरी दुनिया का आखिरी अंक लेकर हम बैठे थे और दिन भर यह सोच रहे थे कि सुंदरवन इलाके के बच्चों के लिए पौष्टिक आहार और शिक्षा का जो कार्यक्रम शुरु हुआ है,कर्नल लाहिड़ी के अवसान के बाद उसके जारी रहने की कोई सूरत नहीं है। हम चिंतित थे कि आगे चलकर हम कैसे समकालीन तीसरी दुनिया,समयांतर या हस्तक्षेप जारी रख पायेंगे।नैनीताल में अकेले जहूर आलम ने युगमंच को जिंदा रखा है।लेकिन सत्तर दशक की तरह डीएसबी कालेज के छात्र अब थोक भाव में रंगकर्म में शामिल नहीं हैं।नैनीताल समाचार भी संकट में है।पहाड़ फिर भी जारी है। शयाम बेनेगल के स्थगित होने के बाद न कोई भारत की खोज है और न समांतर सिनेमा का भोगा हुआ यथार्थ कहीं है।

शबाना के टक्कर की कोई दूसरी अभिनेत्री स्मिता के बाद पैदा नहीं हुई। इप्टा आंदोलन के तितर बितर हो जाने से तमाम कला माध्यमों और विधाओं में जनप्रतिबद्धता का मिशन सिरे से खत्म है। अमरीश पुरी और ओम पुरी के बाद अब शबाना एकदम अकेली रह गयी हैं। बंगाल में गौतम घोष के साथ जो नये फिल्मकार सामने आये थे,वे न जाने कहां हैं। ओमपुरी का अवसान सांस्कृतिक आंदोलन के कोरे कैनवास को बेपरदा कर गया।अपने एक इंटरव्‍यू में ओमपुरी खुद यह दुख जताया था। ओमपुरी ने बताया कि उन्‍हें किसी फिल्‍म के लिए एक करोड़ रुपए कभी नहीं मिले। बल्कि 40 से 50 लाख या 10 से 15 लाख रुपए तक ही मेहनताना मिलता है। वो स्‍टार हैं मैं नहीं. ओमपुरी ने कहा कि इस उम्र में अब हमारे जैसे उम्रदराज कलाकारों को ध्‍यान में रखकर रोल नहीं लिखता। ऐसे रोल लिखे भी जाते हैं, तो इसमें स्‍टार लिए जाते हैं। ओमपुरी ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1976 में रिलीज फिल्म "घासीराम कोतवाल"से की।विजय तेंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी इस फिल्म में ओमपुरी ने घासीराम का किरदार निभाया था। वर्ष 1980 में रिलीज फिल्म"आक्रोश"ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई।  गोविन्द निहलानी निर्देशित इस फिल्म में ओम पुरी ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया जिस पर पत्नी की हत्या का आरोप लगाया जाता है। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए ओमपुरी सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। फिल्म "अर्धसत्य"ओमपुरी के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में गिनी जाती है। उनकी जीवनी 'अनलाइकली हीरो:ओमपुरी'के अनुसार 1950 में पंजाब के अम्बाला में जन्मे इस महान कलाकार का शुरुआती जीवन अत्यंत गरीबी में बीता और उनके पिता को दो जून की रोटी कमाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। ओम पुरी के पूर्व पत्नी नंदिता सी पुरी द्वारा लिखी गई इस किताब में कहा गया है कि टेकचंद (ओमपुरी के पिता) बहुत ही तुनकमिजाज और गुस्सैल स्वभाव के थे और लगभग हर छह महीने में उनकी नौकरी चली जाती थी। उन्हें नई नौकरी ढूंढ़ने में दो महीने लगते थे और फिर छह महीने बाद वह नौकरी भी चली जाती। वे गरीबी के दिन थे जब परिवार को अस्तित्व बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती। आनंद पटवर्द्धन ने मैसेज किया था,फोन पर बात करेंगे,उनके फोन के इंतजार में हूं।
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