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फिल्म समीक्षा : ओके जानू

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महानगरों में बढते लिव-इन रिलेशनशिप पर अनेक फिल्में बन चुकी है,हांलाकि भारत में इस रिश्तें को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता है। निर्देशक मणिरत्नम के शिष्य, शाद अली ने एक बार फिर से इसी विषय को ‘ओके जानू’ के रूप में किया है। ‘ओके जानू’ मणिरत्नम की सफल फिल्म ‘ओके कनमनी’ का हिंदी रीमेक है। यह ठीक वैसा ही है जैसा आम तौर पर दक्षिण की किसी फिल्म का हिंदी रीमेक हुआ करता है। मणिरत्नम के नाम के साथ में निर्देशक शाद अली का नाम जुड़ते ही ‘साथिया’ की याद भी गुदगुदा जाती है। ओके जानू फिल्मकार और दर्शक के बीच इस रोमांस के पनपने से पहले ही सांस छोड़ देती है। फिल्म की कहानी वही है जो सैकड़ों बार दोहराई जा चुकी है ,लेकिन फिर भी कोई इससे थकता नजर नहीं आता। एक बार फिर एक लड़की और एक लड़का किसी नए शहर में मिलते हैं। दोनों में प्यार होता है। करियर की जद्दोजहद चलती है। यहां पर एक पराए देश जाने का सपना भी साथ-साथ चलता है। सारे आधुनिक जोड़ों की तरह शादी न करने की कसमें खाई जाती हैं जो हमारी ज्यादातर फिल्मों की तरह मंडप में ही टूटती है. इस फिल्म में अलग इतना है कि प्यार अलग-अलग मोड़ों से गुजरने की बजाय अपने-आप से ही जूझता नजर आता है।.

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ओके जानू’ में लेखक मणिरत्नम ने दर्शाने की कोशिश की है कि कोई भी रिश्ता हो उसमें प्यार जरूरी है। शारीरिक आकर्षण भी ज्यादा देर तक बांध कर नहीं रख सकता। फिल्म में दो जोड़ियां हैं। आदि (आदित्य रॉय कपूर) और तारा (श्रद्धा कपूर) युवा हैं, शादी को मूर्खता समझते हैं। दूसरी जोड़ी गोपी (नसीरुद्दीन शाह) और उनकी पत्नी चारू (लीला सैमसन) की है। दोनों वृद्ध हैं। शादी को लगभग पचास बरस होने आए। शादी के इतने वर्ष बाद भी दोनों का निरूस्वार्थ प्रेम देखते ही बनता है। गोपी के यहां आदि और तारा पेइंग गेस्ट के रूप में रहते हैं। इन दोनों जोड़ियों के जरिये तुलना की गई है। एक तरफ गोपी और उनकी पत्नी हैं जिनमें प्यार की लौ वैसी ही टिमटिमा रही है जैसी वर्षों पूर्व थी। दूसरी ओर आदि और तारा हैं, जो प्यार और शादी को आउट ऑफ फैशन मानते हैं और करियर से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं है। फिल्म के आखिर में दर्शाया गया है कि प्यार कभी आउट ऑफ फैशन नहीं हो सकता है। फिल्म की कहानी में ज्यादा उतार-चढ़ाव या घुमाव-फिराव नहीं है। बहुत छोटी कहानी है। कहानी में आगे क्या होने वाला है यह भी अंदाजा लगना मुश्किल नहीं है। इसके बावजूद फिल्म बांध कर रखती है इसके प्रस्तुति के कारण। निर्देशक शाद अली ने आदि और तारा के रोमांस को ताजगी के साथ प्रस्तुत किया है। इस रोमांस के बूते पर ही वे फिल्म को शानदार तरीके से इंटरवल तक खींच लाए। आदि और तारा के रोमांस के लिए उन्होंने बेहतरीन सीन रचे हैं।

इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी लड़खड़ाती है। दोहराव का शिकार हो जाती है। कुछ अनावश्यक दृश्य नजर आते हैं, लेकिन बोर नहीं करती। कुछ ऐसे दृश्य आते हैं जो फिल्म को संभाल लेते हैं। फिल्म के संवाद, एआर रहमान-गुलजार के गीत-संगीत की जुगलबंदी, मुंबई के खूबसूरत लोकेशन्स, आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर की केमिस्ट्री मनोरंजन के ग्राफ को लगातार ऊंचा रखने में मदद। जबकि इससे पहले दोनों ‘आशिकी 2’ में साथ काम किया था

नुनबिलः यहां देवी को लगता है नमक और बताशे का भोग

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दुमका (मनोज केशरी) दुमका जिले के मसलिया प्रखंड के नुनबिल नदी के तट पर मकर संक्रांति के बाद लगता है अनोखा मेला, जहाँ इस मेला में आने बाले श्रद्धालु नमक से माता नुनबिल की पूजा करते है। पहाड़िया जनजाति के द्वारा शुरु किया गया यह मेला लोगों के आकर्षण का केंद्र रहता है। नुनबिल मेला का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। 8 दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर दराज से लोग यहाँ पहुचते है, जहाँ मेले में मनोरंजन और खाने का खास इन्तजाम किया जाता है। नुनबिल नदी के तट पर लगने बाले इस मेले के इतिहास के संबंध में पुरानी मान्यता यह है कि नमक के कुछ व्यापारी नमक से भरे बैलगाड़ी ले कर नुनबिल नदी से गुजर रहे थे। अँधेरा घिर जाने के कारण इसी जगह  पर व्यापारियों ने पड़ाव डाला। देर रात एक बूढी जिसका शरीर घावों से भरा था ने व्यापारियों से खाना माँगा, लेकिन व्यापारियों से उसे दुत्कार ही मिली।  उसी में से एक दयालु व्यापारी ने उसे थोड़ा नमक और बतासा खाने को दिया। उस बूढी ने उस दयालु व्यापारी को अबिलंब वहां से चले जाने को कहा। उसके जाते ही वहां भीषण तूफान आ गया। अचानक भीषण तूफान से सारे व्यापारी घिर गये। देखते ही देखते व्यापारियों के विश्राम का स्थल दल दल में परिणत हो गया। उसी रात धोबना गाँव के फुकाई पुजहर को एक सपना आया की मकर संक्रांति के दिन उक्त स्थान पर बेदी की स्थापना कर नमक और बताशा से पूजा करो तभी से फुकाई पहाड़ियां के बंशज यहाँ  पूजा कराते आ रहे है। प्रतिवर्ष इसी उपलक्ष्य में नुनबिल नदी में पूजा-अर्चना की जाती है और नमक व बतासे की अत्यधिक बिक्री होती है। लोग नमक व बतासे चढ़ाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। यह मेला आज भी पूर्ववत जारी है। 

दुमका : सड़क दुर्घटना में जीवन के अमूल्य मोती न खोयें-डा0 लुईस मराण्डी

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दुमका (अमरेन्द्र सुमन) / यातायात नियमों का पालन कर न सिर्फ हम स्वयं को बल्कि अपने परिवार को भी सुरक्षित रख सकते हैं। यातायात संबंधी छोटी-छोटी बातों को ध्यान में न रखने से ही प्रत्येक वर्ष हजारों कीमती मानव संसाधन समय से पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। यातायात संबंधी सुरक्षा मानकों का पालन कर इन्हें बचाया जा सकता है। मंत्री समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास मंत्री व दुमका की विधायक डा लोईस मरांडी ने 28 वां सड़क सुरक्षा सप्ताह के तहत दिन शुक्रवार (13 जनवरी 2017) को आयोजित एक रैली में उपरोक्त बातें कही। अभिभावकों से अपील करते हुए श्रीमती मराण्डी ने कहा कि अभिभावक किसी भी कीमत पर 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वाहन चलाने की अनुमति न दें। वाहन चालक वाहन पार्किंग के लिए निर्धारित स्थान पर ही वाहनों की पार्किंग करें ताकि आम सड़क पर आम राहगिरों को कोई परेशानी न हो। वाहनों की निर्धारित स्थानों पर पार्किंग न रहने से शहर की सुन्दरता प्रभावित होती है। डा मरांडी ने जिला प्रशासन व सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग को अभियान की सफलतापूर्वक आयोजन के लिये बधाई दी। उन्होंने कहा 28 वें सड़क सुरक्षा सप्ताह के तहत रैली में सभी क्षेत्रों के नागरिकों का प्रतिनिधित्व यह दर्षाता है कि इस उद्देश्य की सफलता के प्रति सभी समर्पित हैं। रैली को सम्बोधित करते हुए डीसी दुमका राहुल कुमार सिन्हा ने पिछले एक सप्ताह से चलाये जा रहे अभियान को पूरी तरह सफल बताया। उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह में हेलमेट की बिक्री में हुई आशातीत वृद्धि सड़क सुरक्षा सप्ताह का गवाह है। उन्होंने कहा आने वाले दिनों में यातायात नियमों का पूरी तरह से पालन होगा। डीसी ने यह भी कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य जगे हुए को फिर से जगाना है। एसपी प्रभात कुमार ने कहा कानून के डर से नही, अपने जीवन के महत्व को महसूस करते हुए लोग जिम्मेदार नागरिक बनंे। एसपी ने कहा कि जिम्मेदार नागरिक ही देशभक्त नागरिक होते हैं। नगर पर्षद अध्यक्षा अमिता रक्षित व जिला परिषद अध्यक्षा जाॅयस बेसरा ने कहा कि वाहन चालन के लिए प्रशिक्षण जरूरी है। 

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ट्क, हाइवा इत्यादि के परिचालन में सुरक्षा नियमों को ध्यान में रखा जाय। इससे पूर्व अम्बेदकर चैक से $2 जिला स्कूल, $2 नेशनल हाई स्कूल $2 राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, रामकृष्ण आश्रम उच्च विद्यालय, होली चाईल्ड स्कूल, संत जोसेफ स्कूल, उच्च विद्यालय कड़हरबील के छात्र छात्राओं के साथ साथ विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं यथा चैम्बर आॅफ काॅमर्स, लायन्स क्लब दुमका, बस एवं ट्रक ऐसासियेषन के सदस्यों ने अपने अपने हाथ में नषा सेवन कर वाहन न चलायें, सीट बेल्ट अवष्य लगायें, 18 वर्ष से कम उम्र वाले वाहन ना चलायें, सावधानी हटी दुर्घटना घटी, यातायात नियमों का पालन करें, दो पहिया वाहन पर पीछे बैठने वाले भी हेलमेट अवष्य लगायें आदि बैनर एवं तक्थियों के अम्बेदकर चैक से आरम्भ होकर बस स्टैण्ड, टीन बाजार होते हुए वीर कुंवर सिंह चैक पर समाप्त हुए रैली में उद्घोष कर रहे थे। रैली के समापन बाद हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। जिसपर नगर के अधिकांश गणमान्यांे ने अपने-अपने हस्ताक्षर किये। रैली में उप निदेशक जनसम्पर्क अजय नाथ झा, डीईओ धर्मदेव राय, डीएसपी-1 अशोक सिंह, ऐई रमेश श्रीवास्तव, चतुर्भुज नारायण मिश्र, प्राचार्य $2 जिला स्कूल अजय कुमार गुप्ता, प्राचार्य $2 नेशनल हाई स्कूल अनंत लाल खिरहर, प्राचार्य रामकृष्ण आश्राम उच्च विद्यालय अशोक कुमार साह, प्राचार्य संत जोसेफ उच्च विद्यालय फादर पीयूस, प्राचार्य होली चाईल्ड स्कूल सिस्टर पुष्पिता, सुमन सिंह, षिक्षक कैप्टन दिलीप कुमार झा, राजकुमार उपाध्याय, विजय कुमार दुबे, रघुनंदन मंडल, मदन कुमार, स्मिता आनन्द, राजीव लोचन सिंह, नवल किषोर झा, प्रियंका कुमारी, पूनम कुमारी, बिनोद कुमार, सरोज कुमार, संजय कुमार झा, मनोज कुमार घोष, मो0 शरीफ, उमा शंकर चैबे, विद्यापति झा, दीपक झा, महेन्द्र प्रसाद साह, कजरूल हुसैन, संजय कुमार, अरविन्द कुमार, विजय कुमार साह, ओंकार कुमार, कन्हैयालाल दुबे, अनुज दुबे, राजीव झा आदि के साथ साथ बड़ी संख्या में विभिन्न विद्यालयों के प्राचार्य, शिक्षक-शिक्षिकाएँ, हजारों की संख्या में छात्र-छात्राएँ, स्वयंसेवी संस्थाओं के सदस्यगण व इलेक्ट्रोनिक तथा पिं्रट मीडिया के प्रतिनिधिगण उपस्थित थे।

विशेष : राजनीतिक का ‘शुद्धिकरण’ जरूरी

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आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी हम अपने आचरण, चरित्र, नैतिकता और काबिलीयत को एक स्तर तक भी नहीं उठा सके। हमारी आबादी सत्तर वर्षों मंे करीब चार गुना हो गई पर हम देश में 500 सुयोग्य और साफ छवि के राजनेता आगे नहीं ला सके, यह देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ-साथ विडम्बनापूर्ण भी है। आज भी हमारे अनुभव बचकाने हैं। जमीन आजाद हुई है, जमीर तो आज भी कहीं, किसी के पास गिरवी रखा हुआ है। लोकतंत्र की कुर्सी  का सम्मान करना हर नागरिक का आत्मधर्म और राष्ट्रधर्म है। क्योंकि इस कुर्सी पर व्यक्ति नहीं, चरित्र बैठता है। लेकिन हमारे लोकतंत्र की त्रासदी ही कही जायेगी कि इस पर स्वार्थता, महत्वाकांक्षा, बेईमानी, भ्रष्टाचारिता आकर बैठती रही है। लोकतंत्र की टूटती संासों को जीत की उम्मीदें देना जरूरी है और इसके लिये साफ-सुथरी छवि के राजनेताओं को आगे लाना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। यह सत्य है कि नेता और नायक किसी कारखाने में पैदा करने की चीज नहीं हैं, इन्हें समाज में ही खोजना होता है। काबिलीयत और चरित्र वाले लोग बहुत हैं पर परिवारवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार व कालाधन उन्हें आगे नहीं आने देता।

सात दशकों में राजनीति के शुद्धिकरण को लेकर देश के भीतर बहस हो रही है परन्तु कभी भी राजनीतिक दलों ने इस दिशा में गंभीर पहल नहीं की। पहल की होती तो संसद और विभिन्न विधानसभाओं में दागी, अपराधी सांसदों और विधायकों की तादाद बढ़ती नहीं। यह अच्छी बात है कि देश में चुनाव सुधार की दिशा में सोचने का रुझान बढ़ रहा है। चुनाव एवं राजनीतिक शुद्धिकरण की यह स्वागतयोग्य पहल उस समय हो रही है जब चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा का चुनावी कार्यक्रम घोषित हो गया है। यही नहीं, देश की दो अहम संवैधानिक संस्थाओं ने एक ही दिन दो अलग-अलग सार्थक पहल कीं, जो स्वागत-योग्य हैं। गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव सुधार के एक बहुत अहम मसले पर विचार करने के लिए अपनी सहमति दे दी। गंभीर आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए या नहीं, और चुने गए प्रतिनिधि को कब यानी किस सूरत में अयोग्य घोषित किया जा सकता है, आदि सवालों पर विचार करने के लिए न्यायालय पांच जजों के संविधान पीठ का गठन करेगा। दूसरी ओर, निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च अदालत से कहा है कि प्रत्याशियों के लिए अपने आय के स्रोत का खुलासा करना भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। यह पहल भी काफी महत्त्वपूर्ण है।

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 लोकतंत्र की मजबूती एवं राजनीतिक शुद्धिकरण की दिशा में जब-जब प्रयास हुआ है, जनता ने अपना पूरा समर्थन दिया, सहयोग किया है। पूरा देश इसका गवाह है कि दो-ढाई साल पहले इस देश में प्रभावी लोकपाल बिल की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन चला, जिसमें अण्णा हजारे, स्वामी रामदेव, संतोष हेगड़े, अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण से लेकर किरण बेदी जैसे चेहरे शामिल हुए। इस कानून की मांग ने इसलिए जोर पकड़ा ताकि जनसेवकों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। देश विदेश की अनेक संस्थाएं यह कह चुकी हैं कि भारत दुनिया के ऐसे देशों में शुमार है, जहां बिना लिए-दिए कुछ नहीं होता। जनप्रतिनिधियों की संपत्ति कई सौ गुणा बढ़ रही है। भले ही एक सार्थक शुरुआत का परिणाम सिफर रहा है, वातावरण में भ्रष्टाचार, कालेधन एवं राजनीतिक अपराधीकरण के विरूद्ध नारे उछालने वाले ही धीरे-धीरे उनमें लिप्त पाये गये हो। 

समय की दीर्घा जुल्मों को नये पंख देती है। यही कारण है कि राजनीति का अपराधीकरण और इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार लोकतंत्र को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। एक आम आदमी यदि चाहे कि वह चुनाव लड़कर संसद अथवा विधानसभा में पहुंचकर देश की ईमानदारी से सेवा करे तो यह आज की तारीख में संभव ही नहीं है। सम्पूर्ण तालाब में जहर घुला है, यही कारण है कि कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है, जिसके टिकट पर कोई दागी चुनाव नहीं लड़ रहा हो। यह अपने आप में आश्चर्य का विषय है कि किसी भी राजनीतिक दल का कोई नेता अपने भाषणों में इस पर विचार तक जाहिर करना मुनासिब नहीं समझता। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पांच सौ और एक हजार रुपए के बड़े नोट बन्द करने का ऐलान किया था जिसका सम्बन्ध देश में फैले भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक अपराधीकरण से है। यह फैसला इसी वजह से साहसिक और ऐतिहासिक था क्योंकि इसके माध्यम से श्री मोदी ने सीधे राजनीति के क्षेत्र में व्याप्त आर्थिक अनियमितताओं पर प्रहार किया और यही प्रभावी कदम राजनीति के पवित्र एवं पारदर्शी बनाने की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगा।

प्रधानमन्त्री ने अपनी पार्टी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में साफ कह दिया है कि राजनीतिक दलों को अपने चन्दे का पूरा हिसाब-किताब आम जनता को देना ही होगा। विपक्षी दलों में काफी सयाने लोग हैं। उन्हें नोटबन्दी के फैसले से खुद के ‘झुलसने’ की आशंका पैदा हो गई थी। इसीलिए तो बार-बार कभी चिदम्बरम से लेकर केजरीवाल और राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक शोर मचा रहे थे कि क्यों अचानक नोटबन्दी कर दी गई? बताओ कालाधन कहां है और कितना है? जरा कोई जवाब तो दे कि चुनावों में जो बेहिसाब धन बहाया जाता है उसमें कितना सफेद होता है? जब कालेधन के बूते पर जीतकर लोग संसद और विधानसभा में पहुंचेंगे तो क्या वे इसे रोकने के लिए कारगर कदम उठायेंगे? जाहिर है कि श्री मोदी का लक्ष्य राजनीतिक दलों के ‘शुद्धिकरण’ का भी है और इसमें उनकी अपनी पार्टी भी शामिल है। ऐसा फैसला तो कोई निस्वार्थी और साहसी राजनीतिज्ञ ही कर सकता है। चुनाव आयोग ने आय के स्रोत को जानना जरूरी माना है और इसे कानूनी बनाने का सुझाव दिया है। अगर आय का स्रोत पता न हो, तो जुटाई गई संपत्ति की पारदर्शिता के बारे में अनुमान लगाना कठिन होता है। फिर कई राजनीतिक अपने कारोबार परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से चलाते हैं। इसलिए आयोग ने अगर यह सुझाव मान लिया जाए तो पार्टियों पर उम्मीदवार चुनते समय ईमानदारी को प्रमुखता देने का दबाव बढ़ेगा। ऐसा नियम बने और लागू हो तो वह भी आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को चुनावी मैदान से बाहर करने में मददगार होगा। 

सर्वोच्च अदालत ने दागियों को विधायिका से बाहर रखने के तकाजे से जो पहल की है उसका लाभ पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तो नहीं मिल पाएगा, पर उम्मीद की जा सकती है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले जरूर कुछ ऐसी वैधानिक व्यवस्था बन पाएगी जिससे आपराधिक तत्त्व उम्मीदवार न हो सकें। एक समय था जब ऐसे किसी नियम-कानून की जरूरत महसूस नहीं की जाती थी, क्योंकि तब देश-सेवा और समाज-सेवा की भावना वाले लोग ही राजनीति में आते थे। पर अब हालत यह है कि हर चुनाव के साथ विधायिका में ऐसे लोगों की तादाद और बढ़ी हुई दिखती है जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हों। हमारे लोकतंत्र के लिए इससे अधिक शोचनीय बात और क्या हो सकती है! हर बार सभी राजनीति दल अपराधी तत्वों को टिकट न देने पर सैद्धान्तिक रूप में सहमति जताते है, पर टिकट देने के समय उनकी सारी दलीलें एवं आदर्श की बातें काफूर हो जाती है। एक-दूसरे के पैरों के नीचे से फट्टा खींचने का अभिनय तो सब करते हैं पर खींचता कोई भी नहीं। कोई भी जन-अदालत में जाने एवं जीत को सुनिश्चित करने के लिये जायज-नाजायज सभी तरीकें प्रयोग में लेने से नहीं हिचकता। रणनीति में सभी अपने को चाणक्य बताने का प्रयास करते हैं पर चन्द्रगुप्त किसी के पास नहीं है, आस-पास दिखाई नहीं देता। घोटालों और भ्रष्टाचार के लिए हल्ला उनके लिए राजनैतिक मुद्दा होता है, कोई नैतिक आग्रह नहीं। कारण अपने गिरेबार मंे तो सभी झांकते हैं।

गांधीजी ने एक मुट्टी नमक उठाया था, तब उसका वजन कुछ तोले ही नहीं था। उसने राष्ट्र के नमक को जगा दिया था। सुभाष ने जब दिल्ली चलो का घोष किया तो लाखों-करोड़ों पांवों में शक्ति का संचालन हो गया। नेहरू ने जब सतलज के किनारे सम्पूर्ण आजादी की मांग की तो सारी नदियों के किनारों पर इस घोष की प्रतिध्वनि सुनाई दी थी। पटेल ने जब रियासतों के एकीकरण के दृढ़ संकल्प की हुंकार भरी तो राजाओं के वे हाथ जो तलवार पकड़े रहते थे, हस्ताक्षरों के लिए कलम पर आ गये। आज वह तेज व आचरण नेतृत्व में लुप्त हो गया। आचरणहीनता कांच की तरह टूटती नहीं, उसे लोहे की तरह गलाना पड़ता है। विकास की उपलब्धियों से हम ताकतवर बन सकते हैं, महान् नहीं। महान् उस दिन बनेंगे जिस दिन हमारी नैतिकता एवं चरित्र की शिलाएं गलना बन्द हो जायेगी और उसी दिन लोकतंत्र को शुद्ध सांसें मिलेंगी। 


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(ललित गर्ग)
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गंगा नदी नाव हादसे में मारे गए के मृतकों को ए॰आई॰एस॰एफ॰ ने कैंडल मार्च निकाल दिया श्रद्धांजलि।

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पटना. 15 जनवरी 2017। गंगा नदी नाव हादसे में मारे गऐ लोगों को ए॰आई॰एस॰एफ॰ ने दी श्रद्धांजलि। मृतक के परिजनों को 10 लाख मुआवजा देने की सरकार से की माँग इस पूरे मामले पर उच्च स्तरीय जाँच कर दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की। ए॰आई॰एस॰एफ॰ से जुड़े छात्रों ने एन॰आई॰टी॰ मोड़ से जुलूस की शक्ल में कैंडल लेकर मार्च करते हुए भगत सिंह चैक गांधी मैदान पहुँचे। वहीं श्रद्धांजलि सभा आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता पटना जिला अध्यक्ष पुष्पेन्द्र परिणय ने किया। सभा को संबोधित करते हुए जिला सचिव सुशील उमाराज ने कहा कि लगातार इस तरह की घटनाएँ घट रही हैं इसकी पुनरावृति पुनः नहीं हो। प्रशासन की लापरवाही, पर्यटन विभाग, राज्य सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए। मार्च में महेश कुमार, राजकपूर, विर्जुन भारती, तौसीक आलम, शाकिब अंसारी, अनंत कुमार, नवीन कुमार, साजिद हुसैन, आशुतोष कुमार, विकास कुमार, रवि कुमार, अफरोज आलम, मुकेश कुमार यादव, बिट्टू, विद्यानंद, दिनेश, अखिलेश, आनंद सहित दर्जनों छात्र शामिल थे।

त्रिप्रदेशीय टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन मैच आज, पूरी तैयारी मुकम्मल कर ली गई है

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आज दिन रविवार (15 जनवरी) से 23 जनवरी तक झारखण्ड की उप राजधानी दुमका का गाँधी मैदान तीन प्रदेशों की टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट का ऐतिहासिक गवाह बनेगा। इस मैदान पर झारखण्ड, बिहार व बंगाल की टीमें होगी आमने-सामने। इसके लिये पूरी तैयारी कर ली गई है। मैदान को चारों ओर से समतल बना दिया गया है। उच्चस्तरीय पिच का निर्माण किया गया है। दीवारों की घेराबंदी के लिये कई अलग-अलग स्तरों पर प्रयास जारी हैं। बहुतायत में क्रिकेट प्रेमियों की उपस्थिति बनी रह सके इसके लिये प्रचार-प्रसार अभियान अंतिम चरण में है। दुमका के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब निजी तौर पर तीन प्रदेशों के क्रिकेट टीमों को आमने-सामने संघर्ष का मौका प्रदान किया जाऐगा। इसके लिये दुमका की आम जनता का भरपूर सहयोग भी आयोजकों को प्राप्त हो रहा है। स्व0 प्रमोद कुमार लाल टी-20 क्रिकेट टूर्नामंेट के आयोजक व नगर परिषद् उपाध्यक्ष विनोद कु0 लाल ने कहा स्व0 प्रमोद कु0 लाल एक खिलाड़ी के साथ-साथ खेलों के प्रति अगाध रुचि रखने वाले व्यक्ति थे। पिछले वर्ष स्व0 लाल की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। सावधानी के अभाव में किसी अन्य निर्दोष वाहन चालक की मौत न हो, इस खेल का यह भी एक उद्देश्य है। उप निदेशक जनसम्पर्क अजय नाथ झा ने गांधी मैदान में एक प्रेसवार्ता के माध्यम से कहा कि कई मायनों में यह टूर्नामेंट ऐतिहासिक व अविस्मरणीय होगा। टूर्नामेंट के विजेता व उप विजेता टीम को क्रमशः एक लाख व इक्यावन हजार रुपये का नकद पुरस्कार दिया जायेगा। टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाडी, सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज व सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज को 10-10 हजार रू0 का नकद पुरस्कार दिया जाऐगा। टूर्नामेंट के उद्घाटन के दिन सिर्फ एक ही मैच खेला जाऐगा। शेष दिनों में प्रत्येक दिन 2-2 मैच आयोजित होंगे। टूर्नामेंट में कुल 16 टीमें भाग ले रही हैं, जिन्हें दो पूलों में बांटा गया है। सारे मैच नाॅक आउट आधार पर खेले जाऐगें। टूर्नामेंट का उद्घाटन मैच दुमका वन व बोकारो टीम के बीच होगा। टूर्नामेंट के बेहतरीन संचालन हेतु गठित आयोजन समिति के सदस्यों के साथ आयोजन की तैयारियों को लेकर उप निदेशक जनसंपर्क ने एक समीक्षात्मक बैठक की। इस अवसर पर टूर्नामेंट के प्रायोजक सह नगर परिषद् उपाध्यक्ष विनोद कु0 लाल, आयोजन समिति के अध्यक्ष उमाशंकर चैबे, गोविन्द प्रसाद, बरूण कुमार, ललित पाठक, मदन कुमार विद्यापति झा, विपिन जायसवाल, निमाय कांत झा, दीपक कुमार झा, बंषीधर पंडित, विभिषण राउत, मो0 मुकिम अंसारी, मो0 शहनवाज, उज्जवल कुमार, महेशराम चंद्रवंशी, राजकिशोर गुप्ता बादल चटर्जी, हैदर हुसैन, अरविन्द कुमार, महेन्द्र प्रसाद साह, रंजन कुमार पाण्डेय, मो0 कजरूल हुसैन संजय कुमार, जितेन्द्र शर्मा, अमित रंगराजन, घनश्याम आदि उपस्थित थे।

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की खबर 15 जनवरी)

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उम्मीद संस्था ने आयोजित किया पतंगोत्सव, युवाओं एवं बच्चों ने बढ चढ कर लिया भाग

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झाबुआ । आनन्द की अनुभूति हमें त्यौहारों पर प्राप्त होती है, मकर संक्राति के पावन अवसर पर सुखद संयोग है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा आव्हानपर पूरे प्रदेश में आनन्दम उत्सव मनाया जारहा है और हम सभी बाडकुआ हाथीपावा की पहाडियों पर दूसरी बार आनंद की अनुभूति प्राप्त करने के लिये उम्मीद संस्था के बैनर तले पतंगोत्सव मना रहे है । उक्त उदबोधन पंतगोंत्सव के द्वितीय आयोजन का शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि जिला चिकित्सालय के स्वीपर सुनील नैयर ने व्यक्त किये । उम्मीद संस्था द्वारा द्वितीय पतंगोत्सव के भव्य आयोजन के अवसर पर प्रदेश भाजपा अजजा मोर्चे के महामंत्री कल्याणसिंह डामोर, उम्मीद संस्था के अध्यक्ष अजय पोरवाल, सचिव अंकित छाजेड, कोषाध्यक्ष हैप्पी पडियार, संजय सिकरवाल, योगेश कहार, जयेश राठौर, राजा पडियार, जितेन्द्र पडियार, मुकेश कोठारी, गोविन्द कालानी  सहित बडी संख्या में नगरवासी, महिलायें एवं बच्चें उपस्थित थे । इस  अवसर पर कल्याणसिंह डामोर ने आयोजन पर उम्मीद संस्था को साधुवाद दिया । अजय पोरवाल नेउम्मीद संस्था के इस सार्थक प्रयास का जिक्र करते हुए बताया कि आज हमारे मुख्य अतिथि ऐसे व्यक्तित्व है जिन्हो ने पिछले 30 सालों से जिला चिकित्सालय में स्वच्छता अभियान मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । एक सफाईकर्मी के दायित्व को बखुबी निर्वाह करते हुए अभी तक 1000 से अधिक पोस्ट मार्टम जैसे काम में अपनी भूमिका निभाई है ।  अंकित छाजेड ने उम्मीद संस्था के उद्देश्यो का जिक्र किया वही आभार प्रदर्शन हैप्पी पडियार ने व्यक्त किया । प्रातः 10 बजे से सायंकाल 5 बजे तक चले पतंगोत्सव में सैकडो की संख्या में बच्चों एवं युवाओं ने हाथीपावा की पहाडियों पर पतंग उडाकर आनन्दोत्सव में भाग लिया । उम्मीद संस्था द्वारा पेय जल एवं निशुल्क पतंग की व्यवस्था के साथ ही दिन भर सभी के लिये नाश्ते की व्यवस्था की गई थी । पूरी पहाडी  पर पंतगों को उडने का मनोरम दृश्य सभी को आनंदित कर रहा था । इस आयोजन की नगरवासियों द्वारा प्रसंशा की गई है ।

सैयदना साहब की सालगिरह के उपलक्ष्य में जुलुस आज

झाबुआ । दाउदी बोहरा समाज के 53 वें धर्मगुरू सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन साहब (तउस) की सालगिरह  के उपलक्ष्य में बोहरा समाज का चल समारोह आज सोमवार को दोपहर 3 बजे नगर में दिलीप क्लब से शुरू होकर ,थांदला गेट चन्द्रशेखर आजाद मार्ग, बाबेल चोराहा, लक्ष्मीबाई मार्ग, राजवाडा चैक, सरदार भगतसिंह मार्ग होते हुए स्थानीय बोहरा मस्जिद पर पहूंचेगा जहां पर घार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा । उक्त जानकारी नुरूद्दीनभाई पिटोलवाला ने दी ।

अवैध शराब का 01 अपराध पंजीबद्धः-

झाबुआ । आरोपी ज्ञानसिंह के कब्जे से 600/-रू. की अवैध शराब जप्त कर गिर. किया गया। प्रकरण में थाना रानापुर में अपराध क्रं. 19/17 धारा 34-ए आबकारी एक्ट का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

चोरी का 01 अपराध पंजीबद्धः-

झाबुआ । आरोपी दीपा पिता रमेश मचार व अन्य 2 नि.गण बेडावली, नवीन बालिका आर.एम.एस.ए. छात्रावास के सामने गेट के बाहर से तीनो एक-एक सीमेंट की बोरी उठाकर ले गये। प्रकरण में थाना मेघनगर में अपराध क्रं. 17/17, धारा 379 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

मारपीट का 01 अपराध पंजीबद्धः-
   
झाबुआ । आरोपी साहील व अन्य 01, राहुल पिता मुन्ना प्रजापत के साथ मारपीट कर रहे थे फरि. शिवा के बिच बचाव करने पर, अश्लील गालिया देकर लकडी से मारपीट कर चोंट पहुंचाई व जान से मारने की धमकी दी। प्रकरण में थाना थांदला में अपराध क्र0 15/17 धारा 294,323,506,34 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

दुर्घटना के 02 अपराध पंजीबद्धः-

झाबुआ । आरोपी स्कुटी क्रं. एमपी-45 बीए-0225 के चालक ने भुरीबाई की लडकी सविता को, आरोपी बिना नंबर की मो.सा. सीटी-100बी के चालक ने फरि. के पति जाकीर खान को, तेज गति व लापरवाही पूर्वक चलाकर लाया व टक्कर मारकर चोंट पहुंचाई। प्रकरण में थाना कोतवाली में अपराध क्रं. 32,33/17 धारा 279,337 भादवि का पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

अहिंसा और शांति पर अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन

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  • अगर अहिंसा हमारे अस्तित्व का कानून है, तो भविष्य महिलाओं के साथ है...महिलाओं से ज्यादा दिल की बात कौन ज्यादा बेहतर छू/समझ सकता है?’’ (गांधी इन यंग इंडिया, 10-4-1930, पे. 121) 


peace-and-non-violeance
गांधीवादी अहिंसा लगातार नए-नए रूप लेती जा रही है और हिंसा की राजनीति के लिए नए-नए वैकल्पिक तरीके सुझाती रहती है। भारत और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर  अहिंसा में महारत रखने वालों को एकजुट होना चाहिए- दुनिया के मौजूदा हालातों पर विरोध जाहिर करने और एकजुट होने तथा हर स्तर पर शांति स्थापना के लिए। संघर्ष सीधे तौर पर होने वाली हिंसा जैसे गृह युद्ध और ऊपरी-स्तर पर होने वाली प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जा सकता है अथवा इसे दमन और गरीबी से जन्म लेने वाले अप्रत्यक्ष हिंसा रूपों में भी देखा जा सकता है, जैसे स्थानीय तौर पर पहले से ही कमजोर स्थिति में जी रहे लोगों को और ज्यादा हाशियाबद्ध किया जाना। गांधी अपने एक कथन में बताते हैं कि हिंसा को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है-‘‘अहिंसा जनता के निःस्वार्थ सेवा कार्र्याें के माध्यम से प्रकट होनी ही चाहिए।’’(गांधी, अंक 8, पे. 81) यही सोच सामान्य तौर पर हमारी मानवता को लगातार दिशा प्रदान करती है। 

महिलाएं, समाज के विभिन्न वर्गों में से एक ऐसा वर्ग हैं जो इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन जो बड़े पैमाने पर अदृश्य रहा है। हालांकि उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ-साथ कई संघर्षों में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया है, लेकिन उनके महत्व को पहचाना नहीं गया और वे अदृश्य बनी रही हैं। हिंसा का सामना करने वाली कई महिलाएं अच्छी तरह जानती है कि कैसे ‘‘संघर्ष को रोका जा सकता है’’ और उन्होंने हिंसा से निपटने की ऐसी रणनीतियां और जानकारियां विकसित किया है, जिनके बिना यह अनियंत्रित हो सकती है। कुछ महिलाओं ने संघर्ष को विनाशकारी ताकतों में बदलने से रोकने वाले नेतृत्व के उदाहरण पेश किए हैं। असंख्य महिलाओं के आंदोलनों ने ऐसे रास्ते खोज निकाले हैं जो हिंसा को एक रचनात्मक उद्देश्य और सकारात्मक राजनैतिक बदलाव की दिशा देते हैं। चुनौती यह है कि महिलाओं ने अपनी ज़िंदगी में रोजाना पेश आने वाली बेतहाशा समस्याओं को सामने लाने के लिए के लिए ये जो प्रयास/काम किए हैं, उन्हें लिखित रूप में दर्ज करना हम भूल गए। यही बात है, जिसे सामने लाने और सराहे जाने की ज़रूरत है।  संयुक्त राष्ट्र के 16वें सतत् विकास लक्ष्यों (2015 में निर्मित एस.डी.जीएस) में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि ‘‘सतत् विकास के लिए शांतिपूर्ण और समेकित समाज, सभी की न्याय तक पहुंच कायम करें और हर स्तर पर प्रभावशाली, उत्तरदायी तथा समेकित संस्थानों का निर्माण करें।’’ यू.एन. विमेन, जो महिलाओं के मुद्दांे पर काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक शाखा है, अद्भुत शांति दूतों के रूप में महिलाओं को एकजुट होने का आह्वान करती है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, संयुक्त राष्ट्र ने शांति स्थापना में महिलाओं के योगदान के महत्व को मान्यता दी है। इसलिए, इसे राष्ट्रीय विकास की प्रक्रियाओं में एक मूल बिंदु के रूप में स्पष्ट रूप से अंकित किया जाना चाहिए। 
अहिंसा और शांति प्रयास एक ऐतिहासिक ज़रूरत की तरह दिखाई देते हैं। आज हम एक ऐसे दौर में हैं, जब दुनिया में भारी तादाद में राजनैतिक और सामाजिक हिंसा तथा नागरिक अस्थिरता ने कब्जा कर लिया है। आज एक ओर कॉन्गो और सुडान जैसे मुल्कों में संघर्ष और युद्ध के हालात हैं और दूसरी ओर सीरिया, लीबिया व चेचेन्या जैसे मुल्क युद्ध के मारे हुए हैं। दक्षिण एशिया के देश धार्मिक और जातीय दंगों व कई इलाकों में खूनखराबे के कारण अनेक संघर्षों का सामना कर रहे हैं। पूरा मध्य पूर्व हिंसा का केंद्र बना हुआ है; ऐसा लगता है कि आतंक के खिलाफ़ पिछले दस सालों से चल रहा युद्ध और अगले दशक तक ऐसे ही चलता रहेगा। हमने पिछले कई सालों में इतनी भारी तादाद में शरणार्थियों की कतारों को अनिश्चित भविष्य की ओर कदम बढ़ाते नहीं देखा था। बहुतों को यह हिंसा की राजनति लगती है जो अब काबू से बाहर होती जा रही है, जिससे बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं है; एक ऐसा युग को कायम किया जा रहा है जहां सिर्फ़ एक ही सच नज़र आता है कि दुनिया के हर कोने में तीव्र संघर्ष से नागरिक प्रभावित हैं। 

एक चमकता सच यह भी है कि महिलाओं ने संघर्ष के समय में, एक शांति स्थापकों और वार्ताकारों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है; वे विभिन्न स्तरों पर अपने विचार रखने के लिए अहिंसक प्रयास करती रही हैं इनमें म्यांमार की ऑन्ग सन सु, लाइबेरिया की एलेन जॉन्सन, ईरान से शिरिन इबादी, यमन से तवाकुल सलाम, नॉर्वे से ग्रो हरलेम ब्रंटलैंड ऐसी ही कुछ जानी-मानी महिला नेता हैं। लेकिन पूरी दुनिया में ऐसी ही और भी असंख्य व अदृश्य महिलाएं हैं जो रोजाना शांति प्रयासों में लगी हुई हैं। ‘‘मिलियन विमेन राइज़िंग’’ (एम.डब्ल्यु.आर.) नामक अन्तर्राष्ट्रीय शंाति अभियान इसी सच को सामने रखता है। यह अभियान महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा को कम करने के लिए ही शुरू किया गया है। दूसरी ओर, हम अमीरों व ताक़तवरों को लाभ पहुंचाने के लिए और वैश्विक बाज़ार खोलते जा रहे हैं, और इससे अमीर-गरीब के बीच की खाई और बढ़ती जा रही है। इस वजह से भी संघर्ष का जन्म होता है, जिसके परिणामस्वरूप ‘‘पिरामिड के सबसे निचले स्तर’’ पर और ज़्यादा गरीबी फैलती है, जो दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से से बना है, लेकिन इनमें भी सबसे गरीब महिलाएं हैं। बेहद आय-असमानता की स्थितियों का सबसे बुरा असर महिलाओं और बच्चों पर ही पड़ता है। खासतौर से  समुदायों और स्थानीय स्तरों पर यह देखा जाता है कि जहां महिलाओं को हर तरह के मानवाधिकार उल्लंघनों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे आसान शिकार होती हैं, और ताकतवर लोग यह रणनीति कमज़ोर व गरीब लोगों को दबाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। महिलाएं केवल शारीरिक उत्पीड़न और क्रूरता ही नहीं, बल्कि आर्थिक अभाव  का भी सामना करती हैं और इस तरह से महिलाओं में गरीबी लगातार बढ़ी है या कहें कि गरीबी के स्त्रीकरण में लगातार बढ़ोतरी हुई है।

सेल्फ़-इम्प्लॉयड विमेन्स असोसिएशन (सेवा) की संस्थापक व भारत में गांधीवादी परंपरा में काम करने वाली महान महिला नेताओं में से एक इला भट्ट ने गरीब भूमिहीन महिला मज़दूरों की मोलभाव की ताक़त के बारे में कहा है- ‘‘तब मैं सोच रही थी कि उनके पास मोलभाव करने की ताकत नहीं है। उनके पास अपनी मांगें रखने की भला क्या ताक़त? हिंसा का तो सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने तो इस बारे में सोचा भी नहीं होगा। तो ऐसे तो आप अपनी लड़ाई नहीं जीत सकते।’’ (साक्षात्कार, 31 मई, 2016) 

हमारी धरती के संसाधनों का विनाश एक और ऐसा क्षेत्र है जिसका बड़े पैमाने पर अहिंसा के साथ सामना किए जाने की ज़रूरत है। पर्यावरण में बदलाव पर नियंत्रण तब तक संभव नहीं है जब तक पृथ्वी के प्रति लोगों के अपने रवैये मंे बदलाव नहीं आता। गांधी का कथन याद आता है, ‘‘यह भूल जाने के लिए कि ज़मीन को कैसे खोदा जाता है और मिट्टी की देखभाल के लिए खुद को भूल जाना।’’ संसाधनों के बेलगाम खनन, असीमित उपभोग, धीमा आर्थिक विकास हमारे गृह के साथ हिंसा है। जानी-मानी पर्याविद और विचारक वंदना शिवा, (2015) अपने एक नवीन प्रकाशन   टेरा विवा (ज्मततं टपअं) में पाठकों को सही याद दिलाती हैं कि किस तरह से संसाधनों के खनन को लेकर होने वाले संघर्ष नस्लीय और धार्मिक संघर्षों तक सीमित हो गए हैं जो कि पर्यावरण के असली संकट से लोगों का ध्यान हटाने का एक तरीका मात्र है।  संसाधनों के असतत् और अन्यायपूर्ण उपयोग से उपजे संघर्षों को पर्यावरणीय संदर्भ में नहीं देखा गया है और उन्हें नस्लीय व धार्मिक संधर्षों तक सीमित कर दिया गया है। हर समस्या और उत्पन्न संकट के लिए, बड़े पैमाने पर खनन, शांतिवादी, और अंधे तर्क बर्दाश्त करने के लिए सामने रख दिए जाते हैं। 

सामाजिक उथल-पुथल, वैश्विक बाज़ार का खुलना और गृहीय संकट आपस में जुड़े हुए सत्य हैं जो हमें शासन, अर्थव्यवस्था, समाज, पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र मंे अहिंसा पर ध्यान देने के लिए विवश करते हैं। आज विश्व व्यवस्था की जटिलता लोगों को यह महसूस करने पर विवश कर देती है कि वे वास्तविक राजनीति के वैश्विक संरचनाओं, बाज़ार, जनसंचार माध्यमों और औपचारिक शिक्षा के सहकारीकरण द्वारा ‘‘अधोगामी’’ (टॉप-डाउन) गतिरोध में फंसे हुए हैं। यह हमें भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है, जब शासकों के काम का तरीका (उवकने वचमतंदकप) महिलाओं-पुरुषों के मन पर नियंत्रण पाना था। भारत की आज़ादी की लड़ाई में, गांधी ने इसके विरोध किया और भारतीय आबादी को ब्रिटिश नियंत्रण से विमुख करके अनयायपूर्ण शासकों के खिलाफ़ असहयोग के माध्यम से लोगों को अपनी स्वायत्तता का बोध कराया।  बेशक आज़ादी के बाद भारत सरकार ने गांधी के वचनों का पालन करते हुए नए उत्तर-औपनिवेशिक समाज का निर्माण नहीं किया; बल्कि उसने अहिंसा को एक राजनैतिक आज़ादी हासिल करने के एक तरीके की तरह इस्तेमाल किया। फिर भी एक अहिंसावादी समाज की गांधी की कल्पना का अंत नहीं हुआ। पिछले सात दशकों में, लाखों सर्वाेदय कार्यकर्ताओं, गैरसरकारी संगठनों और स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के कोने-कोने में हिंसा के संदेश को पहुंचाया है। उन्होंने हर स्तर पर हज़ारों प्रयोग किए हैं, और समुदायों में काम किया है जिसने महिलाओं और पुरुषों को अहिंसक कार्रवाईयों का उपयोग करते हुए संगठित होने और समाज को बदलने के लिए प्रेरित किया है। इन प्रयासों पर काम करते हुए, यह ज़रूरी है कि अहिंसक महिला कार्यकर्ताओं को व्यापक रूप से सामने लाया जाए, जो छूट गया है। गांधीवादी परंपरा से जन्म लेने वाले प्रयासों में से एक है एकता परिषद का आंदोलन जो भूमिहीनों के मुद्दों पर आवाज़ उठाता है। 

विभिन्न प्रकार की ज़मीनी स्तर पर प्रेरित अहिंसक कार्रवाईयांः एकता परिषद से एक मामला
भारत में समकालीन सामाजिक आंदोलनों मंे से एक, एकता परिषद 1990 से अहिंसा के माध्यम से गरीब भूमिहीन ग्रामीण समुदायों के लिए भूमि के पुनः वितरण और वन अधिकारों पर आवाज़ उठाने का काम कर रही है। इसके द्वारा समय-समय पर विभिन्न प्रकार के अहिंसक कार्रवाईयां की गई हैं। इन सभी का एक ही उद्देश्य है ‘‘नीचे से ऊपर तक’’ सभी का विकास। इन प्रयासों में शामिल हैंः 
अहिंसक संघर्ष का प्रणः संघर्षरत् समुदायों खासतौर से स्वदेशी और गैर स्वदेशी समुदायों तथा संसाधनों तक उनकी पहुंच व उपयोग से जुड़े मामलों में मतभेदों को सुलझाना।
महिलाओं की बदलावकारी अहिंसाः महिलाओं ने विभिन्न हस्तक्षेपों और ऐसे ही संगठनात्मक प्रयासों के माध्यम से समुदायों के जीवन को बदला है, यह सीखते हुए कि जेंडर हायरारकी और संपन्न समूहों द्वारा उत्पन्न संघर्षों (प्रतिरोध) से कैसे निपटा जा सकता है।
अहिंसा के रूप में महिलाओं का ग्रामीण-आर्थिक सशक्तिरणः यह महिलाओं (समुदाय) को और स्वायत्तता प्रदान करती है ताकि महिलाओं के पास निर्णय लेने की और ज़्यादा आज़ादी हो, जिससे उन्हें और ज़्यादा सम्मान और सुरक्षा मिल सके जिसके साथ स्थानीय संपत्तियांे के निर्माण हेतु आम संसाधनों पर उनका और ज़्यादा नियंत्रण हो और उन्हें बेहतर ढंग से ऋण प्राप्त हो सकें।
ज़मीनी सामाजिक आंदोलनों को गठनः सामाजिक और आर्थिक नीति अथवा कानूनी बदलावों के क्षेत्र में राज्य के साथ संवाद के लिए जन आंदोलनों को विकसित करना
युवा नेतृत्व विकास में अहिंसा एक घटक के रूप मेंः युवाओं को यह समझने में सहयोग करना कि आंतरिक और सामाजिक दोनों रूप में हिंसा और अहिंसा क्या है तथा यह सीखना कि खासतौर से भेदभाव और गरीबों को हाशियाबद्ध किए जाने जैसे जटिल संघर्षों से कैसे निपटा जा सकता है। 
भारत और बाहरी दुनिया में ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं जहां अहिंसक रणनीतियों और तरीकों का नियमित रूप से उपयोग किया गया है। इनमें से कुछ अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मिलन में लाए जाएंगे। 
शांति स्थापना और महिला समूहों की भागीदारी वाली अहिंसक कार्रवाइयांे के अन्य प्रकार कुछ अन्य प्रकार की उल्लेखनीय शांति स्थापना और अहिंसक कार्रवाईयों को हम इस प्रकार देख सकते हैंः
महिला शांति सेना (विमेन्स पीस फ़ोर्स) उड़ीसाः पीस ब्रिगेड इंटरनेशनल और एन.वी. पीस फ़ोर्स से प्रेरित, ये महिलाओं के प्रशिक्षित दल हैं जो संघर्ष के हालातों, खासतौर से जेंडर-आधारित संघर्षों में हस्तक्षेप करते हैं। 
श्रम लॉज (स्वेट लॉज)रू शुद्धिकरण व स्वास्थ्य लाभ कार्यक्रम/समारोहरू मुख्य रूप से अमरीकी स्वदेशी समुदायों में देखे जाते थे और परिवार व समुदाय के रिश्तों में बदलाव लाने के लिए इन्हें महिला नेताओं द्वारा पुनर्जीवित किया जा रहा है। 
बौद्धिक प्रशिक्षण और योगः शैक्षिक स्थलों में बौद्धिकता और मेडिटेशन को लाना।
अन्तः धार्मिक संवादः सामान्य समझदारी कायम करने के लिए विभिन्न धर्मों पर काम करना।
शांति क्षेत्र स्थापित करनाः संघर्ष क्षेत्रों में ऐसी जगह तैयार करना जहां लोग मिलजुल कर शांति से रह सकें। 
अहिंसक संवाद के माध्यम से राज्य को उत्तरदायी बनाना
अहिंसक नागरिक अवज्ञा आंदोलन 
सामाजिक/एकता/स्थानीय/अहिंसक आर्थिक कार्यरू विकासशील अर्थव्यवस्थाएं जो लोगों के नज़दीक होती हैं और इसीलिए न्यायसंगत होती हैं। 
अन्तः सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा मौखिक इतिहासः अलग-अलग संस्कृतियों के  बीच आपसी समझदारी को बढ़ाना, खासतौर उनमें जो लगातार संघर्षमय हालातों में बेजान हो चुकी हैं।
शांति शिक्षण/स्कूलों/कॉलेज में अध्ययनरू शोध, प्रशिक्षण और आजीवन शिक्षण में अहिंसा के नकारात्मक और सकारात्मक शांति को शामिल करना सीखना।
संप्रेषण के अहिंसक तरीकेरू इसका अर्थ है संवेदनशील तरीके से बात करना। 
जेल प्रणालियों में कैद साथियों तथा हिंसा करने वालों के साथ काम करना।
जेंडर समानता के बारे में पुरुषों को संवेदनशील बनाना।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि इन सभी अलग-अलग तरीकों से शांति स्थापना व अहिंसक कार्रवाईयों को ‘युवा नेतृत्व’ में एक साथ प्रोत्साहित करना एक महत्वपूर्ण अजेंडा है। यह सुनिश्चित करने के लिए चिंतनशील कार्रवाईयां की जानी चाहिए कि मौजूदा पीढ़ी द्वारा हासिल सफलताएं यों ही खो न जाएं, बल्कि वे अपनी थाती को अगली पीढ़ी तक ले जाई जाएं। आज पहले से कहीं ज़्यादा शांति की ज़रूरत है। इसी वजह से अहिंसा और शांति पर अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मिलन भारत में अक्तूबर 2016 में आयोजित होने जा रहा है। भारत में पहली बार शांति पर महिलाओं की पहल इतने बड़े पैमाने पर होने वाली है। इससे अहिंसक कार्रवाईयों में होने वाले विभिन्न प्रयोगों को अन्तर्राष्ट्रीय व भारतीय एक्टिविस्टों के साथ जानने-सीखने के रास्ते खुलेंगे। इस सम्मिलन में अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय, कार्यकर्ता/एक्टिविस्ट और अकादमिक, गांधीवादी और नारीवादी, और वे सभी लोग एक साथ इकट्ठा होंगे जो अहिंसा को उसके व्यापक अर्थ में अपने काम, समग्र सोच और वैचारिक संदर्भों में विशेष रूप से इस्तेमाल करते रहे हैं। हमारा सपना है सबके साथ शांतिपूर्वक मिलजुलकर रहना और इसीलिए न्याय, शांति और समानता के लिए समाज परिवर्तन की दिशा में अहिंसक कार्रवाइयों का इस्तेमाल करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा।  

राँची : यह तो होली फैमिली अस्पताल,माण्डर है !!

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राँची। भई्! यह तो होली फैमिली अस्पताल,माण्डर है? सही पकड़़े हैं। मदर अन्ना डेंगल द्वारा 30 सितम्बर 1939 को ‘मेडिकल मिशन सिस्टर सोसायटी ’ स्थापित की थीं। इसके बाद मेडिकल मिशन सिस्टर सोसायटी की सिस्टरों ने माण्डर में होली फैमिली अस्पताल खोली थीं। तब से 7 नवम्बर 2015 तक होली फैमिली अस्पताल से जाना और पहचाना जाता था। यहाँ की सिस्टरों ने कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) को संचालित करने के लिए दिया है। सीबीसीआई ने होली फैमिली अस्पताल का नाम बदलकर कोंसटंट लीवंस अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर रख दिया है। 

आपातकालीन सेवाएं 24 घंटे उपलब्धः कोंसटंट लीवंस अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर में 24 घंटे आपातकालीन सेवाएं उलब्ध है। यहां पर सभी सामान्य बीमारी का इलाज।सभी सामान्य शल्य चिकिल्सा सेवा उपलब्ध है। प्रसव सुविधाएं, प्रसव पूर्व एवं प्रसूति जांच की जाती है। बाल चिकित्सा से इलाज संभव है। एक्स रे, अल्ट्रासाउण्ड, ई.सी.जी. की सुविधा उपलब्ध है। प्रयोगशाला में खून,पेशाब, पैखाना,खखार,एच.आई.वी. जांच की जाती है। एक्यूप्रेशर ,चुम्बकीय एवं मालिश की सुविधा है। वैकल्पिक दवाएं हौम्योपैथिक,जड़ी बुट्टी, उर्जा परागमन। सामुदायिक स्वास्थ्य सुविधा,टीकाकरण। नशा विमुक्ति और पुनर्वास। मरीजों के खाने की सुविधा उपलब्ध है। शुल्क देना होगा। सामान्य भर्त्ती कक्ष और निजी कक्ष की सुविधा उपलब्ध है।

डाक्टर सिस्टर आइलिन कुजूर मेडिकल डायरेक्टर हैंः मेडिकल डायरेक्टर सिस्टर आइलिन कुजूर के नेतृत्व में चिकित्सक कार्यरत हैं। सिस्टर आइलिन जेनरल सर्जन हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ डाक्टर गीता साईम्स और डाक्अर अभिलाषा हैं। मेडिकल ऑफिसर हैं डाक्टर पुष्पलता। डाक्टर एस प्रसाद,एम.बी.बी.एस. हैं। डाक्टर केनेथ मुर्मू, कन्सलटेन्ट जेनरल सर्जन हैं। डाक्टर आलोक प्रवीण, एम.डी. हैं। डाक्टर अजय बाखला,मानसिक रोग विशेषज्ञ है।( महीना का दूसरा रविवार 10 से 12 बजे तक डाक्टर बाखला परामर्श देते हैं। सिस्टर जुलियाना डिकून्हा, प्रशासिका हैं।

टेलीफिल्म ‘ क्षमादान’ का प्रीमियर शो प्रदर्शित की गयी

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वर्ष 1940 में ‘येसु समाज’ द्वारा स्थापित संत जेवियर हाई स्कूल के प्रेक्षागृह में टेलीफिल्म ‘ क्षमादान’ का प्रीमियर शो प्रदर्शित की गयी। रोम में रहने वाले पोप ने चालू साल को ‘दया का वर्ष’ घोषित किया है। इस टेलीफिल्म का केन्द्र बिन्दु प्यार, क्षमा, त्याग और पापस्वीकार है। जीजस प्रोडक्शन्स एवं अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म सिनेमा एवं टेलीफिल्म की संस्था सिगनीस इंडिया ने टेलीफिल्म ‘क्षमादान’ निर्माणकर रिकाॅड कायम कर दिया है। अभी तक किसी ने ‘ दया का वर्ष’ को आधार बनाकर टेलीफिल्म नहीं बनाये हैं। इसका श्रेय फिल्म के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस को जाता है। जो लोकल पेशेवर कलाकारों के सहयोग से जीजस प्रोडक्शन की यह 23 वीं प्रस्तुति है। जीजस प्रोडक्शन एवं अंतर्राष्ट्रीय फिल्म सिनेमा एवं टेलीफिल्म की संस्था सिगनीस इंडिया के संयुक्त बैनर तले निर्मित टेलीफिल्म ‘क्षमादान’ का प्रीमियर शो संपन्न। पटना के संत जेवियर हाई स्कूल के प्रेक्षागृृह में ‘क्षमादान’ का प्रीमियर शो का दर्शकों ने लुफ्त उठाया। वहीं इंफेंट जीजस स्कूल,पटना सिटी के निदेशक पास्कल पीटर ओस्ता, संत पोल्स हाई स्कूल,पटना की निदेशक ऐलिश रफायल साह, टेलीफिल्म ‘क्षमादान’ के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस और कुर्जी चर्च के पल्ली पुरोहित फादर जोनसन केतकर ने ‘क्षमादान’ टेलीफिल्म का वीडियों का लोकार्पण किया।

आगत अतिथियों का स्वागत युवा टेलीफिल्म ‘क्षमादान’ के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस ने किया। किलकारी,बाल भवन,पटना की छात्राओं ने प्रार्थना नृत्य प्रस्तुत किये। संत पोल्स हाई स्कूल,पटना की निदेशक ऐलिश रफायल साह,हार्टमन बालिका उच्च विद्यालय की प्रचार्य सिस्टर रेम्या और कुर्जी चर्च के पल्ली पुरोहित फादर जोनसन केतकर ने मिलकर दीप प्रज्जवलित किया। पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता स्व.0 अनिल कुमार साह की तस्वीर पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि अर्पित की गयी। पुष्पांजलि अर्पित करते समय स्व.0 अनिल कुमार साह की पत्नी भावुक हो गयीं। आँखों से आँसू झटक गयी। इस बीच संत पोल्स हाई स्कूल,पटना की निदेशक ऐलिश रफायल साह,हार्टमन बालिका उच्च विद्यालय की प्रचार्य सिस्टर रेम्या,  और कुर्जी चर्च के पल्ली पुरोहित फादर जोनसन केतकर ने मिलकर दीप प्रज्जवलित किया। कार्यक्रम का संचालन संध्या ओस्ता और विनिता विक्टर ने धमाकेदार ढंग से किया। मौके पर टेलीफिल्म ‘क्षमादान’ के निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस ने कहा कि मुझको युवाओं का अमूल्य सहयोग मिलता रहा है। इनमें पंकज मिश्रा, राकेश कपूर,रूपा सिंह,अजीत कुमार, डाक्टर आॅसवल्ड, दीपक तनेजा, अनुष्का, संध्या ओस्ता, सिस्टर शीतल,जीतन जोशी,बेला स्टेफन,सन्नी कुमार और रवि कुमार। इनके प्रभावशाली और प्रतिभा के बल पर जीजस प्रोडक्शन की टेलीफिल्म ‘क्षमादान’ 23 वीं प्रस्तुति है। इसमें हैप्पी क्रिसमस (टेलीफिल्म), हैप्पी क्रिसमस (वीडियो एलबम), सलीब और हम (टेलीफिल्म), देखों सांता क्लाॅज आया (टेलीफिल्म), परमेश्वर का प्रबंधन ( हिस्टोरिकल सिरियल), नदी मिले सागर से (टेलीफिल्म), फर्ज (टेलीफिल्म), शक (टेलीफिल्म), सलीब पर कुर्बान ( टेलीफिल्म), इन्द्रधनुष (वीडियो एलबम), काका कहिन (भोजपुरी सिरियल), कच्ची ना प्रीतियां हमार (टेलीफिल्म), बिशप की रोजरी( टेलीफिल्म), विकलांगता अभिशाप नहीं( टेलीफिल्म), फैंशन (टेलीफिल्म), डायरी के पन्नों से (टेलीफिल्म), श्रमादान (टेलीफिल्म), रिश्ते (टेलीफिल्म) आदि प्रमुख कृति है। 

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उन्होंने आगे कहा कि हमलोगों का दिल गदगद है। हमलोग बहुत आनंदित हैं क्योंकि आगामी 2 अक्टूबर 2016 से प्रत्येक रविवार को दोपहर 12 बजकर 30 मिनट से 1 बजे तक दूरदर्शन बिहार से प्रसारित होगा। टाटा/स्काई पर डीडी बिहार 1196 चैनल पर देख सकते हैं। जीजस प्रोडक्शन निर्मित सभी लद्यु फिल्मों एवं धारावाहिक को आर.के. फिल्मस के प्रोपाराईटर राकेश कपूर ने इन फिल्मों और धारावाहिक को नया शीर्षक दिया है ‘ ‘डायरी के पन्नों से़’। लगे हाथ विक्टर फ्रांसिस ने जीजस प्रोडक्शन एवं सिगनीस इंडिया की अगली प्रस्तुति टेलीफिल्म ‘कलियुग में जीजस’ की निर्माण करने की घोषणा कर दी। संत पिता फ्रांसिस ने इस साल को ‘दया का वर्ष़’ घोषित किया है। ‘क्षमादान’ टेलीफिल्म की कहानी भी इसी विषय पर क्रेन्द्रित है। प्यार, क्षमा, त्याग और पापस्वीकार। इस पर निर्माता-निर्देशक विक्टर फ्रांसिस ने कहा कि यह फिल्म हमारे युवक‘-युवतियों को गलत रास्तों को छोड़कर अपनी उर्जा को अच्छे कार्यों में लगाने और भटके हुए लोगों को सही राह दिखाने की प्रेरणा देती है। बच्चों और युवाओं को धार्मिकता से जोड़कर, एक सुन्दर, स्वस्थ एवं उदार समाज की संरचना के लिए प्रेरित करने की पहल सर्वोंपरि है। यह शुरूआत हमारे परिवार से होनी चाहिए और इसे कायम रखने के लिए हमारे शैक्षणिक संस्थाओं को पहल करनी चाहिए। आज के इंटरनेट के माध्यम से बच्चों और युवाओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़कर एक चुनौतीपूर्ण कदम है। इस ओर उचित वातारण तैयार कर इसे सरल एवं सुलभ बनाया जा सकता है। 

इस अवसर पर पास्कल पीटर ओस्ता को ‘शिक्षा सम्माऩ’, सदैव जीजस प्रोडक्शन को सहयोग देने के लिए कुर्जी चर्च के पल्ली पुरोहित फादर जोनसन केतकर को ‘सहयोग सम्मान’, ऐलिश रफायल साह को ‘शिक्षा सम्मान’, डाक्टर पी. के. सिन्हा को ‘चिकित्सा सम्मान’ और सिस्टर रेम्या को ‘शिक्षा सम्माऩ’ दिया गया। इनको ‘एवार्ड’-2016 के तहत सम्मानित किया गया। अन्य14 कलाकारों एवं तकनीशियनों को ‘बेस्ट एचिवमेंट एवार्ड’-2016 के तहत प्रतीक चिन्ह, प्रशंस्ति - पत्र एवं फिल्म की डीवीडी भेंट करके सम्मानित किया गया। पत्रकारिता एवं समाज सेवा क्षेत्र में जोरदार कार्य करने वाले स्वर्गीय अनिल कुमार साह को और अमियनाथ चटर्जी को लाइफ टाइम एचिवमेंट एवार्ड -2016 से सम्मानित किया गया। स्व.0 साह की पत्नी स्टेला साह ने एवार्ड ग्रहण किया। स्वर्गीय अनिल कुमार साहः कैथोलिक एसोसिएशन आॅफ इंडिया के उपाध्यक्ष रहे। ‘साऱ’ न्यूज के बिहार का प्रतिनिधित्व किया। स्थानीय जयप्रभा अस्पताल में प्रशासी पदाधिकारी के रूप में कार्य किया। इंडियन इंस्ट्ीच्यूट आॅफ हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च,बेऊर,पटना के प्रबंधन प्रभाग के अध्यक्ष पद पर 25 साल कार्य किये। 1992 से 2007 तक प्रभात प्रकाशन,पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘संदेश़’ के संपादक मंडली में रहें। कोलकोता अंग्रेजी समाचार पत्र हेराल्ड के रिर्पोटर रहें। वे अत्यंत ही मृदुभाषी तथा समाजिक व्यक्ति थे। जन साधारण से आत्मीय सरोकार रखने वाले और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के थे। हर मौसम में गंगा नदी में जाकर स्नान किया करते थे। इनका जन्म 2 फरवरी 1946 को हुआ। 23 दिसम्बर 2015 को भगवान के प्यारे हो गये। मरनोपरांत 25 सितम्बर 2016 को लाइफ टाइम एचिवमेंट एवार्ड -2016 से सम्मानित किये गये।
अमियनाथ चटर्जीः श्रेष्ठ रंगकर्मी हैं अमियनाथ चटर्ची। इनको अमिय दा के नाम से जाना और पहचाना जाता है। 60 के दशक से इनकी नाट्य कृति‘ प्रायचित’, ‘आग में पानी’, ‘ आखिर कब तक’,‘परिवर्तन’, ‘मुक्ति संग्राम ’, ‘गर्मकोट’, ‘ लहू का रंग’(सभी प्रकाशित एवं मंचित)। भोजपुरी रचनाएं ‘के कही सांच’ , ‘केकरा खातिर’ (दोनों कहानी संग्रह)। आकाशवाणी,पटना से प्रसारित ‘ आरती’ कार्यक्रम में इनकी भोजपुरी रचनाओं का समय-समय पर समावेश होता रहा है। जीजस प्रोडक्शन द्वारा हिन्दी धारावाहिक ‘येसु के चत्मकार’, ‘ परमेश्वर का प्रबंध’ एवं टेलीफिल्म ‘विकलांगता अभिशाप नहीं’ में सशक्त अभिनय कर अपनी पहचान बनायी है। नटराज कला मंदिर द्वारा ‘ नटराज-012’ से सम्मानित। भिखारी ठाकुर सम्मान 015,नाट्यचार्य भरतमुनि सम्मान 015, शिखर सम्मान 015 से सम्मानित। जीजस प्रोडक्शन एवं एन.डी.सी. द्वारा निर्मित धारावाहिक ‘अंजोरिया कहिया होई’ में स्मरणीय चरित्र अभिनय किया। यह धारावाहिक पटना दूरदर्शन से प्रसारित हो चुकी है। लाइफ टाइम एचिवमेंट एवार्ड -2016 से सम्मानित किये गये। इनके अलावे पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता स्व.0 अनिल कुमार साह की पत्नी स्टेला साह, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अल्पसंख्यक विभाग के उपाध्यक्ष सिसिल साह, मसीही सत्संग के ब्रदर सिल्वेस्टर, एस.0के.0लौरेंस, राजन साह आदि उपस्थित थे। काफी संख्या में युवा और बच्चे भी उपस्थित रहें।

प्रेरणादायक, उर्जादायक और शक्तिवर्धक मूल्य-चेतना का आनंद ‘मूल्य बाइबिल के’ में

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जाहिर तौर पर, बाइबिल के मूल्य ईसा मसीह की महान शख्सियत और तालीम से उभरे हुए मूल्य हैं। ईसा के मूल्य जीवन की एक समग्र अनुभूति पेश करते हैं और काव्य-शैली ‘दोहा’एक सशक्त अभिव्यक्ति भी। मूल्य -चेतना को अभिव्यक्त करने के लिये जहां एक ओर दोहा ही सबसे उपयुक्त काव्य-विधा है, वहां दूसरी ओर भाव-रस को जाहिर करने के लिए रागों से बढ़कर कोई जरिया भी नहीं है। मूल्य बाइबिल के बाइबिल के सार्वभौम मूल्यों का काव्य और संगीत रूप है। यह 1010 दोहों और 11 संगीत-रचनाओं की प्रस्तुतियों का एक अद्भुत समाहार है। दोहों की रचना रहस्य-साधक कबीर की शास्त्रीय,लोकप्रिय और विशिष्ट शैली से प्रेरित है और आधुनिक हिंदी काव्य के अंदाज में की गयी है तथा संगीत-रचनाएं हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विविध रागों की भाव-भंगिमा लिए बनी हुई हैं। जाहिर तौर पर, बाइबिल के मूल्य ईसा मसीह की महान शख्सियत और तालीम से उभरे हुए मूल्य हैं। ईसा के मूल्य जीवन की एक समग्र अनुभूति पेश करते हैं और काव्य-शैली ‘दोहा’एक सशक्त अभिव्यक्ति भी। मूल्य -चेतना को अभिव्यक्त करने के लिये जहां एक ओर दोहा ही सबसे उपयुक्त काव्य-विधा है, वहां दूसरी ओर भाव-रस को जाहिर करने के लिए रागों से बढ़कर कोई जरिया भी नहीं है।
मूल्य बाइबिल के ऐसे अंदाज में तैयार किया है कि इसे ‘ईसाई बाइबिल का एक नया संस्करण’ ही कहा जा सकता है। इसमें विविध समुदायों के लोगों को सामने रखकर मूल्यों का सार्वजनिक व्याख्या की गयी है और मूल्यों का प्रतिपादन विषय-बद्ध, व्यवस्थित और सिलसिलेवार ढंग से किया गया है। ऐसा लगता है कि हजारों भाषाओं में पाये जाने पर भी संभवतः दुनिया की किसी भी भाषा में अभी तक बाइबिल का ऐसा एक काव्य और संगीत रूप उपलब्ध नहीं है।

प्रस्तुत काव्य-ग्रंथ में ‘1010’की संख्या भारत के आम लोगों की धारणा पर आधारित हैं, जिसके अनुसार ‘धन एक’पूर्णता तथा निरंतरता के प्रतीक है और 101 के दस गुना 1010 बनते हैं। तात्पर्य यह है कि मूल्य मानव जीवन की निरंतरता के साथ-साथ पूर्णता भी प्रदान करता है। संगीत रचनाओं में प्रयुक्त ‘11’ की संख्या के पीछे बस यही तर्क है ।हां, जीवन के आखिरी लक्ष्य के रूप में निरंतरता और पूर्णता की दिशा तय करने में इस काव्य-ग्रंथ और संगीत-सीडी की सार्थकता है। बोलनेवाले और जाननेवाले लोगों की तादाद के मद्देनजर हिंदी को दुनिया की चैथी सबसे बड़ी भाषा होने की प्रतिष्ठा हासिल है। यह भारत की राष्ट्र-भाषा तो है ही। हिंदी को एक अंतरर्राष्ट्रीय मान्यता भी प्राप्त है। साथ ही, 10 से अधिक देशों में हिंदी एक महत्वपूर्ण भाषा है और ज्यादातर देशों में हिंदीभाषी लोग रहते हैं। सबसे खास बात यह है कि उर्दू के लफ्जों की बहुतायत से हिंदी एक बहुत ही काव्यात्मक और स्वरात्मक भाषा के रूप में उभरी हुई है तथा बोलनेवाले और सुननेवाले दोनों को भीतर से बांधने की क्षमता रखती है। बाइबिल के मूल्य,वह भी काव्य और संगीत के रूपों में, अपने विशाल,विविध और समृद्ध ग्रंथ-समाहार में सम्मिलित हुए हैं,यह हिंदी भाषा,साहित्य,काव्य,संगीत और संस्कृति के खजाने के लिये गौरव की बात है। यह बात इस तथ्य से मजबूत होती भी है कि बाइबिल को सबसे ज्यादा भाषाओं में , वह भी हजारों की संख्या में अनुवादित होने की खिताब प्राप्त है। साथ ही, वह नैतिक मूल्यों के विश्व-स्तर के मानवीय और ईश्वरीय दर्शन है। उसे अपने में समेटने की हिंदी की यह विशिष्ट उपलब्धि,वास्तव में, हिंदीभाषियों का तकाजा ही है।

मूल्य बाइबिल के की आधार-ग्रंथ वाल्द(पुराना विधान)-बुल्के(नया विधान) द्वारा अनुदित सत्प्रकाशन केंद्र,इंदौर, द्वारा 1990 में प्रकाशित‘पवित्र बाइबिल’ है। इसकी रचनात्मक ढांचा इस प्रकार है- हर दोहे के आधार को बाइबिल की पुस्तक,अध्याय,वाक्य और पृष्ठ संख्या इस क्रम से तद्संबंधी पृष्ठ पर दोहे के साथ-साथ अंकित किया गया है। इसमें ग्रंथ की प्रामाणिकता सिद्ध तो होती है,साथ ही, इससे शोधकर्ताओं को अपने शोध-कार्य में सुविधा प्राप्त होती है। इस ग्रंथ को बनाने की आधिकारिक क्षमता‘कबीर और ईसाई दर्शन में ईश्वर-परिकल्पना का सामाजिक आशय’ पर काशी हिंदु विश्व विघालय,वाराणसी,के हिंदी विभाग में डाॅक्टर आॅफ फिलाॅसफी के लिए एम0डी0 थोमस द्वारा किये गये तुलनात्मक शोध से उभरती है। वे ही इस ग्रंथ के शिल्पकार हैं। ‘कबीर और ईसाई चिंतन’ उपर्युक्त शोध-कार्य का संशोधित पुस्तक-रूप है,जिसके लिए हिंदी अकादमी,दिल्ली, ने उन्हें‘साहित्यिक कृति सम्मान-2003-2004’ से पुरस्कृत भी किया है। प्रस्तुत काव्य-ग्रंथ उपर्युक्त अध्ययन को आधार मानकर किया गया एक रचनात्मक,नया और विशिष्ट कार्य है। मूल्य बाइबिल के अनुवाद नहीं है, बल्कि बाइबिल के चयनित मूल्यों पर बने काव्य-प्रस्तुतियों का एक समाहार है। यह कार्य आम तौर पर पूरे बाइबिल को अपने में समेटता है,लेकिन खास तौर पर पहले पृष्ठ से आखिरी पृष्ठ तक नहीं, शब्द-शब्द का अनुवाद भी नहीं। चयन का मापदण्ड इस प्रकार है-‘सुसमाचार’ की 4 पुस्तकों से सिर्फ संबंधित अंश। अर्थात्,यह कहा जा सकता है कि बाइबिल का लगभग विशुद्ध ईसाई रूप, जो कि ईसा की जीवनी और तालीम पर आधारित है,प्रबल रूप से समाहित किया गया है। 

इस ग्रंथ की मौलिकता इस बात में निहित है कि इसमें बाइबिल के मूल्यों पर काव्य-पंक्तियां विषयवार क्रम में सजायी गयी है। और यह क्रम उसके गद्य-रूप से हटकर है, जो कि पुस्तक और अध्याय के क्रम से है। उन्हें दो भागों के भीतर उप-भाग,शीर्षक,उप शीर्षक और विचार -बिन्दु के क्रम में समायोजित किया गया है। अब तक हिंदी में ही नहीं किसी भी भाषा में बाइबिल के सिर्फ छिट-फुट काव्यानुवाद ही पाये जाते हैं। बाइबिल की उद्भावनापूर्ण और मूल्य-केंद्रित पुनर्रचना इस ग्रंथ की अहमियत है। मूल्य बाइबिल के  के दो भाग हैं- ईसा की शख्सियत से उभरे मूल्य और ईसा की तालीम मेेें मौजूद मूल्य। पहले भाग में ईसा की जीवनी,मसीही शक्ति,दृष्टांत और करामात से जुड़े मूल्य सम्मिलित किये गये हैं और दूसरे भाग में व्यवहार, नीति, ईश्वर, इंसान, अधर्म, धर्म, जिंदगी, समाज, सर्व जन, बदलाव और समन्वय पर आधारित ईसा के सार्वभौम मूल्य। शुरू में बाइबिल का परिचय और आखिरी में बाइबिल का सार भी विविध नजरियों से दिया गया है। दोनों भागों में मूल्य ही केंद्र-बिंदु है,पहले भाग में आम तौर पर और दूसरे भाग में खास तौर पर । इस काव्य -ग्रंथ की अवधारणा, शोध, व्याख्या, निर्देशन, संपादन और संगीत-रचना डाॅक्टर एम0 डी0 थोमस द्वारा किया गया है, जो कि साहित्य, दर्शन, काव्य, संगीत, कला आदि के समीक्षक ही नहीं, बाइबिल, अन्य धर्म-ग्रंथ और आध्यात्मिक विचारों के अनुभवी विद्वान भी हैं। इसकी काव्य-प्रस्तुतियां पंडित हरिराम द्विवेदी द्वारा तैयार की गयी हैं, जो कि हिंदी और भोजपुरी के गुणी और मशहूर कवि हैं। दोनों के संयुक्त और प्रतिबद्ध प्रयास से ही यह सपना साकार हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक के जरिये बाइबिल के मूल्यों को काव्य और संगीत रूप में हिंदी के विशाल जगत में प्रस्तुत करने से दो उद्देश्य चरितार्थ हुए है- एक हिंदीभाषी सर्वसाधारण तक पहुंचना, जो कविता और संगीत से बेहद लुफ्त उठाते हैं। दो, समाज के सभी विचारधाराओं , परम्पराओं और संस्कृतियों के लोगों तक पहुंचना, जो ‘ अच्छे विचार कहीं से भी आयें,स्वागत है’ (ऋग्वेद 1.89.1) ऐसे भाव के धनी है। 

मूल्य बाइबिल के की एक अव्वल खासियत यह है कि इसमें काव्य और संगीत का एक अनूठा समन्वय किया गया है और ग्रंथ के भीतर ओडियो-सीडी का संगीतिक एल्बम ने अपनी जगह पायी है। इस एल्बम में काव्य-प्रस्तुतियों के 11 खास अंशों पर विविध रागों में बनी 11 संगीत-रचानाएं सम्मिलित हैं,जो कि एम0 डी0 थोमस द्वारा की गयी हैं। इंदिरा कला संगीत विश्व विद्यालय, खैरागढ़, से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रथमा, मध्यमा और बी0 म्यूज का अध्ययन इनकी संगीत-रचनाओं की पृष्ठभूमि है। कविता और संगीत की यह जुगलबंदी किसी को भी गद्-गद् कर देगी वह निश्चित है, बशर्तें पाठक और श्रोता भीतर पेठने की क्षमता रखते हो। प्रस्तुत काव्य-ग्रंथ से बाइबिल के विचारों के सस्वर पाठ और गायन की एक नयी तहजीब उद्घाटित होती है, जो कि पाठक ,श्रोता या गायक को पंथ-निरपेक्ष तौर पर भीतरी एहसास से छूने,भरने और प्रेरित करने का दम रखती है। बाइबिल सांस्कृतिक संध्याएं (काव्य -संध्या और संगीत संध्या) विविध समुदायों के लोगों को एक दूजे के करीब लाने का सफल माध्यम हो सकती हैं। यदि इस ग्रंथ की चयनित पंक्तियां मूल्य-शिक्षा के तहत पाठ्यक्रमों में जगह पायें तो विद्यार्थियों में जीवन मूल्य-चेतना विकसित करने में बेहद मददगार भी साबित होंगी। सबसे अहम बात यह है कि प्रस्तुत काव्य-ग्रंथ ईसा और बाइबिल के सार्वभौम मूल्यों को खुली और सर्व-समावेशी व्याख्या के साथ व्यापक धरातल पर घटित करने का एक पहला प्रयास है। उम्मीद है, यह ग्रंथ इंसानी समाज की अंतरात्मा को प्रेरित कर उसे मूल्य-चेतना से मजबूत करने और इंसान को व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण की पटरी पर स्थापित करने में सक्षम होगा। इस ग्रंथ से जब हिंदीभाषी समाज के साथ-साथ अन्य भाषाएं बोलनेवाले समुदाय भी लाभान्वित होंगे, तो निश्चित है, परदे के पीछे संपन्न हुए विनम्र,कठिन,विस्तृत और बहु-आयामी परिश्रम सार्थक होगा। मूल्य बाइबिल के एक गहन और समग्र साधना का फल है और वह किसी भी पुस्तकालय, दफ्तर या घर में एक सम्माननीय अतिथि हो सकता है। पुस्तक-सीडी का यह द्वय अपने किसी भी खास व्यक्ति के लिए ही नहीं, अपने संबंध और संपर्क-मंडल के किसी को भी, एक कीमती उपहार हो सकता है। विशेष तौर पर ,एक निजी पूंजी के रूप में यह किसी के लिये भी एक अभिन्न मानवीय-आध्यात्मिक साथी भी साबित हो सकता है। इस रूप में खुद को और औरों को लाभान्वित कर इंसानियत का मूल्य बढ़ाने तथा इंसानी समाज के नैतिक गुण को मजबूत करने की दिशा में हार्दिक सहयोग हो,यही, मुझे जचता है, इस साधना का उचित जवाब है।

मूल्य बाइबिल के इंस्ट्ीच्यूट आॅफ हार्मनी एण्ड पीस स्ट्डीज, नयी दिल्ली , के तत्वावधान में प्रकाशित है, जो कि सर्व धर्म मैत्री, सर्व समुदाय सहयोग, सार्वभौम मूल्य, नैतिक जीवन, राष्ट्रीय समरसता और सामाजिक तालमेल के लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध है।‘खुली सोच और तालमेल से युक्त जीवन’ इसका लक्ष्य है। विविध परपंराओं और संस्कृतियों में निहित मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों को एक सार्वभौम और साझी विरासत के रूप में आम लोगों तक पहुंचना इस संस्था की अह्म कार्यों में शुमार है। यह काव्य-ग्रंथ पिल्ग्रिम्स पब्लिशिंग,वाराणसी/दिल्ली/काठमांडू द्वारा मुद्रित,प्रकाशित और वितरित किया जा रहा है। इंस्ट्ीच्यूट आॅफ हार्मनी एण्ड पीस स्ट्डीज, नयी दिल्ली,की तरफ से काव्य-ग्रंथ और संगीत सीडी को एक साथ कुछ 50 फीसदी विशेष छूट के साथ 300 रूपये में उपलब्ध किया जा रहा है। इसके अलावा, प्रकाशक की तरफ से 100 से अधिक और 500 से अधिक बल्क-खरीदी के लिए क्रमशः 25 और 40 फीसदी छूट दी जायेगी। आप मूल्य बाइबिल के (काव्य-ग्रंथ और संगीत सीडी) की प्रतियां आॅन लाइन मंगा सकते हैं- www.amazon.in or wwwf.lipkart.com 
इंस्ट्ीच्यूट आॅफ हार्मनी एण्ड पीस स्ट्डीज, नयी दिल्ली, ग्रंथ और सीडी से संबंधित हर प्रकार की सेवा में सदा तैयार रहेगा। आप लोग काव्य और संगीत के मधुर और मनमोहक माहौल में बाइबिल की प्रेरणादायक, उर्जादायक और शक्तिवर्धक मूल्य-चेतना का आनंद लेते रहें तथा अपने जीवन को सुखी पायें। इन हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ ‘ मूल्य बाइबिल के’ की आपके ‘मूल्य-वान्’ हाथों में अर्पित किया जा रहा है।

नोटबंदी पर मोदी सरकार और विपक्ष ताल ठोकेंगे

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नयी दिल्ली 15 जनवरी, मोदी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिये उत्तरप्रदेश सहित पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव तय करेंगे कि देश की राजनीति को झकझोर देनेवाले नोटबंदी के मुद्दे पर सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष में से किसका पलडा भारी है। बिहार में विपक्ष के हाथों करारी हार झेल चुकी भाजपा के लिये खासतौर उत्तरप्रदेश के नतीजे नया जनादेश साबित हो सकता है। भाजपा को यहां पर जीत के पूरे आसार नजर आ रहे हैं लेकिन राजनीति की पारखी उत्तर प्रदेश की जनता सपा सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बीच बढती नजदीकियों पर नजरें गडाये बैठी है। फिलहाल पारिवारिक अंतरकलह के कारण समाजवादी पार्टी (सपा) का चुनाव चिन्ह साइकिल को लेकर दोनों गुटों के दावे प्रतिदावे चुनाव आयोग की अदालत में विचाराधीन हैं। आयोग का इस मुद्दे पर फैसला चुनाव की तस्वीर पलट सकता है। पंजाब, उत्तराखंड, गाेवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों के लिये राजनीतिक बिसात पर खेल शुरू हो गया है लेकिन घूम फिर कर उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव को मोदी सरकार के कामकाज से जाेडकर देखा जा रहा है। भले ही उत्तर प्रदेश में पारिवारिक कलह का शिकार हो रही सपा की सरकार है लेकिन नोटबंदी के मुद्दे ने अखिलेश सरकार के कामकाज के प्रचार प्रसार पर ग्रहण लगा दिया है। बिहार के बाद उत्तरप्रदेश में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों का दामन पकड कर वैतरणी पार करने की तैयारी में है। बिहार में उसने जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल का दामन थामा और भाजपा को पराजित करनेवाली सेना का हिस्सा बनी। इसके फलस्वरूप आज कांग्रेस बरसों बाद बिहार सत्ता चलाने का सुख भोग रही है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस 1989 से सत्ता से बाहर है। उसके आखिरी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे। उनके बाद समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे। राजनीति में कभी एक दूसरे कट्टर विरोधी रही समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से नजदीकियां अब किसी से छिपी नहीं रह गयीं हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की पत्नी डिंपल यादव की इकट्ठा फोटो वाले पोस्टरों के सामने आने के बाद कांग्रेस और सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लडने के बारे में संदेह की ज्यादा गुंजाइश नहीं बची है। नाेटबंदी से पहले पाकिस्तान के खिलाफ सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को भाजपा ने मोदी सरकार की बडी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया। लगभग छह महीने पहले अखिलेश सरकार कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे पर घिर गई थी लेकिन फिलहाल यह मुद्दा नोटबंदी के सामने फीका पड गया है। पहले अखिलेश सरकार कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में थी लेकिन अब मोदी सरकार को नोटबंदी को सही ठहराने के लिये कवायद करनी पड रही है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) बडी राजनीतिक ताकत के रूप में उत्तरप्रदेश में स्थापित है। उसकी नेता मायावती पार्टी को फिर से सत्ता सुख दिलाने के लिये जुटी हैं। उनके निशाने पर अखिलेश सरकार और मोदी सरकार दोनो हैं। वह अखिलेश को असफल मुख्यमंत्री बताने के साथ जनता से अपील कर रही हैं कि सपा को वोट देकर अपना वोट खराब नही करें। वह जनता से भाजपा को खारिज करने के लिये नोटबंदी के कारण आम जनता की तकलीफों काे मुद्दा बना चुकी हैं। 

नौका दुर्घटना के बाद नदी से 24 शव निकाले गये, तलाशी का काम अब हुआ बंद

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पटना 15 जनवरी, बिहार में राजधानी पटना के पीरबहोर थाना क्षेत्र के एनआइटी घाट के निकट कल हुयी नौका दुर्घटना में मारे गये 24 लोगों का शव निकाले जाने के बाद करीब 17 घंटे तक चला एनडीआरएफ और एसडीआरएफ का तलाशी अभियान अब बंद कर दिया गया है । वरीय पुलिस अधीक्षक मनु महाराज ने यहां बताया कि गंगा नदी से चार और शवों को निकाला गया है। इसके साथ ही नौका दुर्घटना में मरने वालों की संख्या बढ़कर 24 हो गयी है । उन्होंने बताया कि अब कोई परिवार अपने परिजन के लापता होने की शिकायत नहीं कर रहा है । साथ ही बचाव कार्य में लगे लोग भी आश्वस्त है कि अब कोई भी लापता नहीं है इसलिए तलाशी अभियान को रोक दिया गया है । हालांकि एनडीआरएफ और प्रशासन का दल घटनास्थल पर कैंप करेगा । राज्य सरकार की ओर से नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है जहां हादसे में किसी भी व्यक्ति के गुम होने की सूचना जिला नियंत्रण कक्ष (06122219810) अथवा 100 नंबर डायल कर दी जा सकती है। उधर नाव हादसे को लेकर सोनपुर के अंचलाधिकारी के बयान के आधार पर गंगा दियारा क्षेत्र में मेला लगाने वाले कॉन्ट्रक्टर राहुल वर्मा और नाव पर क्षमाता से अधिक लोगों को बिठाने वाले नाविक समेत कई अज्ञात पर मामला दर्ज किया गया है ।

जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में कबड्डी का महाखेल

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जयपुर 15 जनवरी, राजस्थान की जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र की पंचायत स्तर की टीमों का 29 जनवरी से 11 फरवरी तक कबड्डी का महाखेल 2017 का आयोजन किया जाएगा। केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने आज यहां पत्रकारो को बताया कि केन्द्र एवं राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार इस प्रकार के खेलों का आयोजन कर किया जाएगा तथा इससे युवा प्रतिभाओं को खेलों में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। उन्होंने बताया कि कबड्डी के बाद वॉलीवाल एवं खो-खो जैसे ग्रामीण खेलों की प्रतियोगिताएं भी कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि इन प्रतियोगतिओं में उभर के सामने आने वाली प्रतिभाओं को आगे आईपीएल कबड्डी में खेलने का अवसर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि हर पंचायत की टीम इस प्रतियोगिता में शामिल होगी तथा एक पंचायत से लड़का एवं लड़कियों की अगल अगल टीमें भी हो सकती हैं। इसके अलावा एक पंचायत से एक से अधिक टीम भी भाग ले सकेगी।

सरकार बनने पर लैपटाप की बजाय अार्थिक मदद को देंगे तवज्जो : मायावती

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लखनऊ, 15 जनवरी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने आज अपने 61वें जन्मदिन पर उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड और पंजाब के लोगों को उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील करते हुये कहा कि सरकार बनाने की दशा में बसपा लैपटाप और मोबाइल फोन के मुफ्त वितरण की बजाय गरीबों को आर्थिक मदद मुहैय्या कराने को अहमियत देगी। सुश्री मायावती ने आज यहां कार्यकर्ताओं से कहा कि उत्तर प्रदेश में सरकार का गठन और उत्तराखंड एवं पंजाब में बेहतर परिणाम ही उनके जन्मदिन का सबसे बडा तोहफा साबित होगा। कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार बनाये और इसके साथ उत्तराखण्ड एवं पंजाब मेें बेहतर परिणाम लाने में रात दिन एक कर दें। बसपा “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” के अपने सिद्धांत पर चलकर सभी वर्गों के हितों का काम करेगी। सपा की तरह बसपा लैपटॉप और टेबलेट नहीं बाटेंगी बल्कि गरीबों को नगद रुपया देगी। बसपा अध्यक्ष ने संवाददाता सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले को देश की 90 प्रतिशत जनता के लिए कष्टदायक बताते हुए कहा कि यह निर्णय राजनीति से प्रेरित और तानाशाही वाला जल्दबाजी में बगैर तैयारी के लिया गया था। उन्होंने कहा कि देश और प्रदेश की जनता भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) एवं अन्य विरोधी दलों के बहकावे में आने वाली नहीं है। उन्होंने कहा कि 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान श्री मोदी द्वारा किए गये लोकलुभावन वादों की असलियत जनता जान चुकी है और अब उनके बहकावे में आने वाले नहीं है। श्री मोदी ने अच्छे दिन का जो जनता से वादा किया था उसके उलट नोटबंदी के बाद जनता को अब बुरे दिन देखने पड रहे हैं। अच्छे दिन भाजपा और उनके नेताओं के अलावा बडे पूंजीपतियों के आ गये जिन्होंने नोटबंदी के पहले और बाद में अपना काला धन सफेद कर लिया। इतना ही नहीं केन्द्र सरकार ने बडे पूंजीपतियों का एक लाख 14 हजार करोड रुपये का कर्ज माफ कर दिया।

कोलकाता में सबसे ठंडा दिन,दिल्ली में कुछ राहत

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नयी दिल्ली/कोलकाता. 15 जनवरी, पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आज सीजन का सबसे ठंडा दिन दर्ज किया गया जबकि मध्य प्रदेश के दमोह में सबसे कम न्यूनतम तापमान रहा। हालांकि दिल्ली में अच्छी धूप खिलने से राजधानीवासियों को ठंड से कुछ राहत जरूर मिली। दिल्ली में आज ठंड से कुछ राहत रही और न्यूनतम तापमान बढ़कर 8.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। कल न्यूनतम तापमान 3.2 डिग्री दर्ज किया गया था। अधिकतम तापमान 24 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से चार डिग्री अधिक था। शहर में सुबह कोहरे के कारण ट्रेन सेवाओं पर असर पड़ा और 26 ट्रेने देरी से चल रही है और छह ट्रेनों का समय बदला गया है और एक ट्रेन को रद्द करना पड़ा। कोलकाता से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आज सीजन का सबसे ठंडा दिन दर्ज किया गया और पारा 11.2 डिग्री दर्ज किया गया जो सामान्य से तीन डिग्री कम था। शहर में सुबह काफी ठंड थी। सर्द हवाओं ने लोगों को घरों में रहने को मजबूर कर दिया। मौसम विभाग के अनुसार सर्दी का यह सितम मंगलवार तक रहने का अनुमान है। सर्दी और भी बढ़ सकती है और न्यूनतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री तक कम जा सकता है। क्षेत्रीय मौसम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यहां बताया कि अगले 48 घंटों में न्यूनतम तापमान लगभग 12 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहने का अनुमान है। न्यूनतम तापमान 11.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया और अधिकतम तापमान 22.1 डिग्री दर्ज किया गया जाे सामान्य से चार डिग्री कम था।

सोशल मीडिया पर शिकायत पर मिल सकती है सजा: जनरल रावत

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नयी दिल्ली 15 जनवरी, सेना और सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा सोशल मीडिया में अपनी शिकायतों के वीडियों डालने से उत्पन्न विवाद के बीच सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने आज जवानों काे आगाह किया कि सोशल मीडिया पर शिकायती वीडियो डालने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। जनरल रावत ने आज यहां सेना दिवस के मौके पर अपने संबोधन में कहा कि जवानों को अपनी शिकायत निर्धारित प्रकिया के तहत करनी चाहिए और इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा “ यदि उनकी सुनवाई नहीं होती है तो और वे संतुष्ट नहीं हैं तो सीधे मुझसे संपर्क कर सकते हैं।”उन्होंने जवानों को आगाह किया कि सोशल मीडिया पर इस तरह के वीडियो डालना अपराध की श्रेणी में आ सकता है और इसके लिए दंडित भी किया जा सकता है क्योंकि इस तरह के वीडियो से सीमा पर तैनात जवानों के मनोबल पर असर पड़ सकता है। जनरल रावत ने कहा ,“ कुछ साथी अपनी समस्याओं को रखने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं । इसका असर बहादुर जवानों पर पड़ता है जो सीमा पर तैनात हैं। ” सेना प्रमुख ने सोशल मीडिया पर शिकायती वीडियो डालने के बारे में कहा ,“आपने जो कार्रवाई की है आप उसके लिए अपराधजनक भी पाये जा सकते हैं और सजा के हकदार भी हो सकते हैं। ”

पूर्व क्रिकेटर नवजोतसिंह सिद्धू कांग्रेस में शामिल

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नयी दिल्ली, 15 जनवरी, क्रिकेट से राजनीति में आए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसद नवजाेत सिंह सिद्धू पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले आज कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने आवास पर उन्हें औपचारिकरूप से पार्टी में शामिल किया। कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पार्टी में शामिल होने पर उनका स्वागत किया और कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के साथ बैठक के बाद श्री सिद्धू औपचारिकरूप से पार्टी में शामिल हो गए हैं। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरेन्द्र ने श्री सिद्धू के पार्टी में होने पर खुशी जताते हुए उनका स्वागत किया और कहा कि यह अच्छी खबर है और इससे प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति और मजबूत होगी। श्री सिद्धू के लम्बे समय से पार्टी में शामिल होने की चर्चा थी। उनकी पत्नी डाॅ. नवजोत कौर सिद्धू गत 28 नवंबर को यहां कांग्रेस में शामिल हो गयी थीं और उन्होंने उसी दिन कहा था कि श्री सिद्धू भी जल्द ही पार्टी में शामिल हो जाएंगे। डॉ़ सिद्धू के साथ पूर्व औलम्पिक खिलाड़ी परगट सिंह भी उसी दिन कांग्रेस में शामिल हुए थे। इससे पहले श्री सिद्धू के आम आदमी पार्टी में भी जाने की अटकलें लगायी जा रही थीं।

नौका हादसे में मृतकों को दो लाख रुपये अनुग्रह राशि : प्रधानमंत्री

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नयी दिल्ली 15 जनवरी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में नौका हादसे में हुई जनहानि पर गहन शोक जताते हुये प्रभावितों को दो-दो लाख रुपये अनुग्रह राशि दिये जाने की आज घोषणा की। श्री मोदी ने मृतकों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है। उन्होंने हादसे में मारे गये लोगों के परिजनों को प्रधानमंत्री राहत कोष से दाे-दो लाख रुपये तथा गंभीर रुप से घायलों को 50-50 हजार रुपये अनुग्रह राशि दिये जाने की घोषणा की। उल्लेखनीय है कि बिहार की राजधानी पटना में गांधी घाट के सामने गंगा दियारा में कल मकर संक्रांति के अवसर पर राज्य सरकार की ओर से आयोजित पतंग महोत्सव में शामिल होने के बाद लौट रहे लोगों की नौका एनआईटी घाट के निकट डूब गयी। अब तक 24 लोगों के शव बरामद किये गये हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही घटना की जांच के आदेश दे चुके हैं

सहायक और खाने के मुद्दों का समाधान होगा : रक्षा मंत्रालय

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नयी दिल्ली 15 जनवरी, रक्षा मंत्रालय सेना में सहायक व्यवस्था और जवानों को दिये जाने वाले भोजन से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए एक समुचित प्रणाली पर काम कर रहा है। सेना में सहायक व्यवस्था और सुरक्षा बलों में जवानों के भोजन संबंधी वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मचे बवाल के बीच रक्षा मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने आज यहां कहा कि इस मामले का संज्ञान लिया गया है। उन्होंने कहा कि सेना बहुत बडी संस्था है और इसमें हजारों यूनिट हैं। इस तरह के संकेत मिले हैं कि खाने की गुणवत्ता को लेकर इतनी समस्या नहीं है बल्कि ज्यादा समस्या खाना पकाने से जुड़ी है। इन सब मामलों पर ध्यान देने के लिए एक व्यवस्था बनायी जा रही है। सेना में सहायक व्यवस्था के बारे में उन्होंने कहा कि जवानों की बहुत बड़ी संख्या है और यदि इस तरह की समस्याएं हैं तो उनके बारे में विचार किया जायेगा। सेना के लांस नायक यज्ञ प्रताप ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करके सेना में सहायक व्यवस्था से परेशानी की व्यथा सार्वजनिक की थी। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने जवानों से कहा है कि उनकी समस्याओं और शिकायतों के समाधान के लिए निर्धारित प्रक्रिया है और वे सोशल मीडिया के बजाय निर्धारित तरीके से अपनी शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों को बतायें और यदि इनका समाधान नहीं होता तो वे सीधे उनके पास अपनी शिकायत भेज सकते हैं। सोशल मीडिया पर वीडियो डालने के मामले को गंभीरता से लेते हुए उन्होंने कहा कि यह अपराध की श्रेणी में आ सकता है और ऐसा करने वाले के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है।
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