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नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर ईस्‍ट से भरा पर्चा

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बीजेपी छोड़कर हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर ईस्‍ट से नामांकन दाखिल किया है। दूसरी तरफ, कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने भी लम्‍बी से अपना नामांकन पूरा किया। नामांकन के बाद मीडिया से बात करते हुए सिद्धू ने कहा कि वह पद नहीं चाहते। उन्‍होंने कहा, ‘अपने लिए इलेक्‍शन नहीं लड़ रहा हूं, पद नहीं चाहता। बस पंजाब बहाल होना चाहिए। यह निजी लड़ाई नहीं है, मैं पंजाब के युवाओं को सही रास्‍ते पर चाहता हूं। मेरे लिए जरूरी था कि सिस्‍टम में आकर लड़ाई लड़ूं। हर कांग्रेस वाले को, पंजाबी को यही कहूंगा कि इस बार वोट पंजाब को डालना, धर्म की स्‍थापना के लिए डालना। इस बार जीतना है पंजाब को, पंजाबियत को, हर पंजाबी को, जोड़ने वाले को मान मिलता है, तोड़ने वाले को अपमान।” उधर, कैप्‍टन ने नामांकन दाखिल करने के बाद कहा कि वह प्रकाश बादल को हराने के लिए आए हैं। उन्‍होंने कहा, ”मैं बादल (प्रकाश) को जरूर हटा दूंगा, मैं उन्‍हें हराने ही यहां आया हूं।”

सलमान खान को जोधपुर कोर्ट ने बरी किया, संदेह का लाभ

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जोधपुर की एक अदालत ने 18 साल पुराने आर्म्स एक्ट के मामले में सलमान खान को बड़ी राहत देते हुए बरी कर दिया. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (जोधपुर जिला) दलपत सिंह राजपुरोहित ने सलमान को शस्‍त्र अधिनियम उल्‍लंघन मामले में संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के आदेश दिए. अदालत के फैसले के वक्त अभिनेता सलमान खान, उनकी बहन अलविरा और उनके वकील मौजूद थे. सलमान खान के वकील हस्‍तीमल सारास्‍वत ने मीडिया को अदातल के आदेश से अवगत कराते हुए बताया कि इस मामले में अभियोजन पक्ष सलमान के विरुद्ध आरोपों को साबित नहीं कर सका. लिहाज़ा, कोर्ट ने उन्‍हें बरी करने के आदेश दिए. उनके वकील ने इस केस को 'झूठा'करार दिया. इस मामले में 20 लोगों की गवाही हुई थी. अदालत के फैसले के बाद सलमान के पिता सलीम खान ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'आज का दिन हमारे लिए बहुत बड़ा है. ये परिवार के लिए बड़ी राहत की बात है. हमें अदालतों में पूरा विश्‍वास है'. उन्‍होंने कहा कि 'हमें अदालत द्वारा सलमान को क्लीन चिट दिए जाने का पूरा यकीन था'.

सलमान मामले की सुनवाई के लिए सुबह 11.40 बजे अदालत पहुंच गए थे. मामले की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्‍हें आधे घंटे में कोर्ट में हाजिर होने के निर्देश दिए थे. यह सलमान के खिलाफ दर्ज चार मामलों से एक है. सलमान खान और उनकी बहन अलवीरा मंगलवार शाम ही जोधपुर पहुंच गए थे. इस मामले से जुड़े दोनों पक्ष की जिरह नौ जनवरी को पूरी हो गई थी, जिसके बाद सीजेएम दलपत सिंह राजपुरोहित ने अभिनेता को अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश देते हुए अपने फैसले को 18 जनवरी तक के लिए सुरक्षित रख लिया था. सलमान खान पर आरोप था कि फिल्म 'हम साथ-साथ हैं'की शूटिंग के दौरान 1998 में उन्होंने चिंकारा और काले हिरण का शिकार किया था. साथ ही सलमान पर ये भी आरोप लगा कि उन्होंने ऐसे हथियार रखे, जिनके लाइसेंस की मियाद निकल चुकी थी.

बुधवार को सलमान खान पर आर्म्स एक्ट के मामले में फैसले के सात दिन बाद ही 25 जनवरी को सलमान खान को काले हिरणों के शिकार के मामले में जोधपुर सीजेएम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हाजिर होकर बतौर मुलजिम अपना बयान दर्ज कराना होगा. सलमान के साथ काले हिरणों के शिकार के आरोपी सैफ अली खान, नीलम, तब्बू और सोनाली बेंद्रे को भी अदालत में हाजिर होकर बयान दर्ज कराना होगा. 1998 में सलमान पर हिरण शिकार के तीन मामलों समेत कुल चार मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से हिरण शिकार के दो मामलों में सलमान को निचली अदालतों से सजा सुनाई गई थी. उस समय सलमान को जेल यात्रा करनी पड़ी थी. बाद में हाईकोर्ट ने सलमान को दोनों मामलों में बरी कर दिया था.

संसदीय समिति ने नोटबंदी पर उर्जित पटेल से किए तीखे सवाल

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नई दिल्ली। नोटबंदी के मसले पर रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को वित्तीय मामलों संबंधी संबंधी संसदीय समिति की बैठक में सदस्यों के सवाल झेलने पड़े। हालांकि ऐसे वक्त में खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनका बचाव किया, जब बेहद तीखे सवाल पूछे जा रहे थे। दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी सांसद नकदी निकासी की सीमा हटाने के संबंध में पटेल से स्पष्ट जवाब चाहते थे। वे लगातार कड़े प्रश्न पूछ रहे थे, तभी मनमोहन ने उन्हें रोका। सूत्रों के मुताबिक मनमोहन ने सांसदों को समझाया कि संस्था के तौर पर रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का सम्मान किया जाना चाहिए। यही नहीं, उन्होंने उर्जित को ऐसे सवाल का जवाब देने से रोका, जिससे केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर आंच आए। आरबीआइ गवर्नर रह चुके मनमोहन भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली वित्त मामलों संबंधी समिति के सदस्य हैं। समिति ने नोटबंदी के मसले पर गवर्नर और वित्त मंत्रालय के अफसरों को तलब किया था। संसदीय समिति के सदस्यों ने जब पटेल से पूछा कि नोटबंदी के फैसले के बाद हालात कब तक सामान्य हो जाएंगे, तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। गवर्नर यह भी नहीं बता पाए कि हालात सामान्य होने में अभी कितना वक्त लगेगा। हालांकि उन्होंने इतना जरूर बताया कि पांच सौ और हजार रुपये के पुराने नोट बंद होने के बाद अब तक 9.2 लाख करोड़ रुपये की करेंसी सिस्टम में डाल दी गई है।

ये नए नोट बंद कर दी गई करेंसी का लगभग 60 फीसद हैं। बुधवार को समिति की बैठक में पटेल के साथ-साथ आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर आर गांधी और एसएस मूंदड़ा भी पहुंचे। वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे। इसके अलावा आइसीआइसीआइ बैंक की चंदा कोचर और पंजाब नेशनल बैंक की ऊषा अनंतसुब्रह्माण्यम भी समिति के समक्ष उपस्थित हुईं। आरबीआइ गवर्नर 20 जनवरी को संसद की लोक लेखा समिति ने भी तलब किया है। आरबीआइ गवर्नर से पूछा गया कि बंद किए गए पुराने नोट में से कितने वापस आ चुके हैं, तो इसकी भी निश्चित संख्या वह नहीं दे पाए। उन्होंने अपने जवाब में बस इतना कहा कि आरबीआइ अब भी इसकी गणना कर रहा है। हालांकि उन्होंने बताया कि 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने के संबंध में आरबीआइ और सरकार 2016 के शुरू से ही विचार-विमर्श कर रहे थे। केंद्रीय बैंक पुराने नोट बंद करने संबंधी सरकार के फैसले के लक्ष्य को लेकर सहमत था। सूत्रों ने कहा कि नोटबंदी के मुद्दे पर समिति के सभी सदस्य अपने सवाल पूरे नहीं कर सके। इसलिए आम बजट के बाद एक बार फिर आरबीआइ गवर्नर और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को बुलाने का फैसला किया गया है। बैठक के बाद एक सदस्य ने कहा कि आरबीआइ अधिकारी नोटबंदी पर बचाव की मुद्रा में दिखे।

खुद गवर्नर मुख्य सवालों के जवाब नहीं दे सके। कुछ सदस्यों ने इस तरह के सवाल भी किए कि नोटबंदी का फैसला सरकार ने किया या आरबीआइ ने। इसके अलावा केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के बारे में भी प्रश्न पूछे गए। यह भी पूछा गया कि नोटबंदी के बाद पहले कालेधन की चर्चा की गई, उसके बाद आतंकी फंडिंग, फिर जाली मुद्रा और बाद में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने की बात कही गई, ऐसा क्यों हुआ। वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग के सचिव शक्तिकांत दास ने समिति के समक्ष एक प्रजेंटेशन दिया। कुछ सदस्यों ने दास के साथ-साथ राजस्व सचिव हसमुख अढिया और बैंकिंग सचिव अंजुली चिब दुग्गल से भी सवाल पूछे।

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई ने जांच शुरू की

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दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार और केंद्र के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ सकता है। सीबीआई ने बुधवार को अरविंद केजरीवाल के दो करीबियों के खिलाफ जांच शुरू की। सीबीआई ने 'टॉक टू एके'नाम से चलाए गये सोशल मीडिया कैंपेन में अनियमितता के आरोप में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ प्राथमिक जांच शुरू की है। सीबीआई के अनुसार दिल्ली सरकार की निगरानी विभाग की शिकायत मिली थी। सीबीआई के मुताबिक दिल्ली की एक बड़ी पब्लिक रिलेशन कंपनी को कॉन्ट्रैंक्ट दिया गया ताकि वो मुख्यमंत्री के प्रोग्राम 'टॉक टू एके'को हिट बना सके। शिकायत में लिखा गया है कि इस प्रोग्राम में डेढ़ करोड़ रुपये का खर्चा हुआ। सीबीआई के अनुसार दिल्ली सरकार ने अपने प्रधान सचिव की भी नहीं सुनी और इतने पैसे खर्च कर दिए। सीबीआई ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की बेटी सौम्या जैन के खिलाफ भी जांच शुरू की है। सौम्या जैन को दिल्ली सरकार की महात्वाकांक्षी योजना मोहल्ला क्लिनिक में बतौर सलाहकार नियुक्त किया गया था। सीबीआई को नियुक्ति में अनियमितता की शिकायत मिली है। आपको बता दें की पिछले दिनों सत्येंद्र जैने के ओएसडी के घर पर सीबीआई ने छापेमारी की थी। 

सीबीआई जांच शुरू होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर करारा हमला किया। उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है मोदी जी बिलकुल पगला गए हैं। देश के PM को बस एक यही काम रह गया है। हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं।'केजरीवाल ने एक अन्य ट्वीट में कहा, 'मोदी जी, इसीलिए मैं आपको कायर बोलता हूँ। गोवा और पंजाब में हार रहे हो तो CBI का गेम शुरू कर दिया?'वहीं मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लिया, उन्होंने कहा, 'स्वागत है मोदी जी! आइए मैदान में। कल सुबह आपकी सीबीआई का अपने घर और दफ्तर में इंतज़ार करूँगा। देखते हैं कितना ज़ोर है आपके बाजुए कातिल में।'आप सरकार के कई विधायकों और मंत्रियों पर डीटीसी, महिला आयोग, वक्फ बोर्ड में अनियमितता का आरोप है। 

उत्‍तर प्रदेश : अखिलेश यादव के लिए प्रचार करेंगे लालू

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राष्‍ट्रीय जनता दल के अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी उत्‍तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी। लालू ने बताया कि वे चुनावों में ‘समाजवादी ताकतों की जीत’ सुनिश्चित करने के लिए मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के लिए प्रचार करेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुनाभ झा के आरजेडी में शामिल होने के बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए लालू ने भाजपा पर निशाना साधा। उन्‍होंने कहा कि वह यूपी चुनावों में पूरा प्रयास करेंगे कि भगवा ताकतों की हार हो। लालू ने कहा, ”यूपी चुनाव सिर्फ एक राज्‍य का चुनाव नहीं, पूरे देश का चुनाव है। यूपी में बीजेपी की हार तय करने के बाद हम 2019 मं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भगवा पार्टी को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे। मैं समाजवादी ताकतों की जीत पक्‍की करने के लिए मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के लिए प्रचार करूंगा।” लालू ने कहा कि वह सबसे अधिक जनसंख्‍या वाले राज्‍य में समाजवादी ताकतों की जीत के लिए बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर काम करने के लिए बात करेंगे।

लालू ने कहा कि नोटबंदी के खिलाफ पटना में जल्‍द होने वाली रैली के लिए वह मुलायम सिंह यादव, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी और सीपीआई तथा सीपीआई-एम के बड़े नेताओं को आमंत्रित करेंगे। नोटबंदी के खिलाफ लालू खासे मुखर रहे हैं। उन्‍होंने बुधवार को कहा कि नोटबंदी के फैसले के बाद से असंगठित क्षेत्र के 40,000 से ज्‍यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं। लालू द्वारा अखिलेश का चुनाव प्रचार करने पर स्थिति अभी पूरी तरह स्‍पष्‍ट नहीं है। मुलायम सिंह यादव ने अभी तक रुख साफ नहीं किया है, पार्टी किन संयोजनों के साथ चुनाव में जाएगी, इस पर फैसला नहीं हुआ है। अगर मुलायम अलग चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो लालू किसके लिए प्रचार करेंगे, ये भविष्‍य के गर्भ में है। सोमवार को जब चुनाव आयोग ने समाजवादी पार्टी और ‘साइकिल’ चुनाव चिन्‍ह अखिलेश यादव को सौंपा था तो लालू ने उनकी सरकार बननी तय बताई थी। उन्‍होंने ट्वीट किया था, ”ये यूपी नहीं देश का चुनाव है। अब यूपी में फासीवादी व फ़िरकापरस्त ताकतों की हार पूर्णतः निश्चित। बधाई। समाजवादी पार्टी एकजुट, सब पहले जैसा। अखिलेश के नेतृत्व में विकासशील, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष एवं न्यायप्रिय सरकार बननी तय।सब एकजुट है। हमसब मिलकर साम्प्रदायिक ताकतों को हरायेंगे। नेताजी की बनाई हुई पार्टी है। नेताजी अपना आशीर्वाद अखिलेश को देंगे। भाजपाई हाथ मलते रह गए।”

जल्लीकट्टू के लिए समूचे तमिलनाडु में प्रदर्शन

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सांड़ों की लड़ाई के खेल जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध हटाने की मांग समूचे तमिलनाडु में फैल गई है. सड़कों पर रोष बढ़ने के मद्देनजर मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने फौरन एक अध्यादेश लाने की मांग करते हुए गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का फैसला किया है, जबकि अन्नाद्रमुक महासचिव वीके शशिकला ने आंदोलन को अपना समर्थन देते हुए कहा कि इस पर प्रतिबंध हटाने के लिये विधानसभा के अगले सत्र में एक प्रस्ताव पारित किया जाएगा. मुख्यमंत्री के साथ अन्नाद्रमुक के 49 सांसद भी होंगे. प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी मिलेगा. मुख्यमंत्री ने सभी प्रदर्शनकारियों से अपना आंदोलन रोकने की भी अपील की है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर लोगों के साथ है. जल्लीकट्टू के लिए इजाजत मांगने वालों में आईटी क्षेत्र के कर्मचारी तथा कई और फिल्मी कलाकार भी शामिल हो गए हैं. इस बीच, नयी दिल्ली में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि केंद्र की जनवरी 2016 की अधिसूचना ने जंतु देखभाल की चिंताओं से सामंजस्य बिठाते हुए इस पारंपरिक खेल की इजाजत दी थी. यह फिलहाल कानूनी पड़ताल के दायरे में है और अनुकूल फैसला आएगा.

पर्यावरण राज्य मंत्री अनिल माधव दवे ने इस बीच कहा है कि हमें जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए. संसद सर्वोच्च है और जो कुछ भी आवश्यक निर्णय लेने हैं, वो लिए जाएंगे. यह एक भावुक मुद्दा है और मैं लोगों की भावनाओं को समझता हूं. जल्लीकट्टू को अपना समर्थन देते हुए पुडुचेरी के व्यावसायिक कॉलेजों सहित विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के छात्र इस खेल पर प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कक्षाओं से अनुपस्थित रहें. जल्लीकट्टू के समर्थन में तख्तियां और बैनर लिए हुए छात्रों ने एक मानव श्रृंखला बनाई और प्रतिबंध की निंदा करते हुए नारेबाजी की. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि बगैर किसी देर के प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए. छात्रों ने कहा, जल्लीकट्टू तमिलों की एक प्राचीन और सम्मानित परंपरा है तथा इस पर कभी प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए.

स्मृति ईरानी ने कहा था मेरी डिग्री सार्वजनिक न करने को

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कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से कहा था कि उनकी डिग्री के बारे में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी याचिकाकर्ता को न दी जाये. ये बात केंद्रीय सूचना आयोग में मामले की सुनवाई में सामने आई है. ये बात दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लर्निंग यानी एसओएल ने केंद्रीय सूचना आयोग के आगे एक सुनवाई के दौरान कही. याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा था कि स्मृति ईरानी ने 2004 और 2014 के लोकसभा चुनाव और 2011 के राज्यसभा चुनावों में अपनी शैक्षिक योग्यता के बारे में अलग अलग जानकारी दी. याचिका अदालत में इस तर्क के आधार पर खारिज हुई कि ये शिकायत करने में काफी देर हो चुकी है. लेकिन ये मामला अभी केंद्रीय सूचना आयोग में चल रहा है. याचिकाकर्ता ने कहा कि स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग ने ईरानी की शैक्षिक योग्यता के बारे में नहीं बताया.

केंद्रीय सूचना आयोग के सामने स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने कहा कि नियमों के तहत सूचना देने से पहले उन्होंने पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी से पूछा था. पता चला है कि स्मृति ईरानी ने जानकारी देने पर आपत्ति जताई और शैक्षिक योग्यता के बारे में न बताने को कहा. अब केंद्रीय सूचना आयोग ने जन सूचना अधिकारी से कहा है कि इस बारे में सारे रिकॉर्ड आयोग के आगे पेश किये जाएं. इससे पहले ईरानी के 10वीं और 12वीं के रिकॉर्ड को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग ने सीबीएसई से कहा है कि जानकारी व्यक्तिगत नहीं है और आरटीआई के तहत दी जानी चाहिये. इस बारे में आयोग ने कपड़ा मंत्रालय और उस स्कूल को भी आदेश दिया है कि ईरानी का रोल नंबर और संबंधित जानकारी सीबीएसई को दें ताकि उनके स्कूल रिकॉर्ड के बारे में पता चल सके.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद बढ़ सकती हैं बसपा की मुश्किलें

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लखनऊ। पीएम मोदी द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद दिल्ली के करोल बाग स्थित एक बैंक में बसपा द्वारा 104 करोड़ रुपये खाते में जमा करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बुधवार को निर्वाचन आयोग को तीन महीने में निर्णय लिए जाने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता प्रताप चन्द्र की अधिवक्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने बुधवार को बताया कि न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की बेंच ने निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता मनीष माथुर को सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि निर्वाचन आयोग को तीन माह में इस मामले में निर्णय ले। नूतन ने हाईकोर्ट में कहा कि निर्वाचन आयोग ने 29 अगस्त 2014 द्वारा वित्तीय पारदर्शिता सम्बन्धी कई निर्देश पारित किए हैं, जिन्हें आयोग ने अपने आदेश 19 नवम्बर 2014 के आदेश में और अधिक स्पष्ट किया है। इन आदेशों में कहा गया है कि कोई भी राजनैतिक दल उन्हें चंदे में प्राप्त नकद धनराशि को प्राप्ति के 10 कार्यकारी दिवस के अन्दर पार्टी के बैंक अकाउंट में अवश्य ही जमा करा दे।

यदि किसी पार्टी ने इन निर्देशों का उल्लंघन किया है तो उसके खिलाफ निर्वाचन चिन्ह (आरक्षण एवं बटाई) आर्डर 1968 के प्रस्तर 16-ए में पार्टी की मान्यता रद्द करने सहित तमाम कार्यवाही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का आदेश आठ नवम्बर को आया था। इसलिए इन निर्देशों के अनुसार अधिकतम 20 नवम्बर तक नकद धनराशि बैंक खाते में जमा कर देना चाहिए था, पर बसपा ने दो दिसम्बर के बाद 104 करोड़ रुपए जमा कराए, जो सीधे-सीधे इन निर्देशों का उल्लंघन है। निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता मनीष माथुर ने कहा कि आयोग को प्रताप चंद्रा की शिकायत मिल गई है पर वर्तमान में विधानसभा चुनाव कराने की व्यवस्तता के कारण उस पर निर्णय हेतु कुछ समय की आवश्यकता है। इस पर अदालत ने निर्वाचन आयोग को तीन महीने में इस मामले पर निर्णय लेने के लिए कहा है।

ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे हजारों लोग

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वाशिंगटन: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रेट एगेन थीम पर आधारित शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए कई भारतीयों-अमेरिकियों समेत हजारों लोग यहां पहुंच रहे हैं। ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। वह शपथ ग्रहण समारोह में दो बाइबिल का इस्तेमाल करेंगे जिसमें से एक बाइबिल वही है जो पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने शपथ लेते हुये इस्तेमाल की थी जबकि दूसरी बाइबिल ट्रंप के बचपन के समय की है। यह बाइबिल 12 जून 1955 को उनकी मां ने उन्हें भेंट की थी। कल से शुरू होने वाले ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह की थीम मेक अमेरिका ग्रेट एगेन पर आधारित है। इस थीम ने चुनाव प्रचार के दौरान न केवल अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित किया बल्कि ट्रंप को जीत भी दिलायी। किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं। निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कल तैयारियों का जायजा लिया था। व्हाइट हाउस के अगले प्रेस सचिव सीन स्पाइसर ने कल संवाददाताओं से कहा था, हम उनके लिए अविश्वसनीय जोरदार समर्थन देखने जा रहे हैं। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लोगों के समर्थन और इस ऐतिहासिक समारोह में भारी संख्या में लोगों के पहुंचने से बहुत खुश हैं। वाशिंगटन डीसी में ट्रंप के समर्थकों ने पहले ही कार्यक्रम आयोजित करने शुरू कर दिये हैं जबकि आधिकारिक कार्यक्रम कल से शुरू होंगे। ट्रंप और नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति माइक पेंस आर्लिंगटन नेशनल सेमेटरी में पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम की शुरआत करेंगे।

योग गुरु रामदेव ने ओलिंपिक मेडलिस्ट पहलवान को दी पटखनी

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पहले योग फिर आयुर्वेद में  हाथ आजमाने वाले योग गुरु बाबा रामदेव अब पहलवान भी बन गए हैं. उन्होंने ओलिंपिक पदक विजेता यूक्रेन के पहलवान आंद्रे स्टेडनिक को एक मुकाबले में 12-0 के अंतर से हरा दिया. यह मुकाबला प्रो-रेसलिंग लीग में मुंबई महारथी और पंजाब रॉयल्स के बीच हुए दूसरे सेमीफाइनल के दौरान आयोजित किया गया. मुकाबला शुरू होने से पहले बाबा रामदेव ने कुछ योग के आसन करके दिखाए. उसके बाद शुरू हुए मुकाबले में बाबा ने प्रारंभ से ही आंद्रे पर पकड़ मजबूत बनाकर रखी. मुकाबले के बाद रामदेव ने कहा कि आंद्रे वाकई एक अच्छे पहलवान हैं और उन्होंने उनके साथ कुश्ती के मुकाबले का आनंद लिया. उधर, आंद्रे भी इस उम्र में बाबा की फुर्ती और ताकत को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. उन्होंने कहा कि योग की ताकत को उन्होंने आज खुद महसूस किया है. दिल्ली के केडी जाधव इंडोर स्टेडियम में हुए मुकाबले की प्रायोजक बाबा की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद है. यह पहला मौका नहीं है जब बाबा ने किसी पहलवान के साथ दो-दो हाथ किए हों. बीते साल भी हरिद्वार में अपने आश्रम की 20वीं वर्षगांठ के मौके पर बाबा ने ओलिंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार को कुश्ती के लिए ललकारा था.

आतंकवाद के खिलाफ कड़े वैश्विक कदम की जरूरत : एस.जयशंकर

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नई दिल्ली, 18 जनवरी, विदेश सचिव एस.जयशंकर ने आज आतंकवाद को वैश्विक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए इसके खिलाफ पूरी दुनिया से कड़े कदम उठाने की मांग की।  भू-राजनैतिक सम्मेलन 'रायसीना डायलॉग'के द्वितीय संस्करण को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा, आतंकवाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए सबसे व्यापक व गंभीर चुनौती है। आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अभी भी बहुत कुछ नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, "डब्ल्यूएमडी (वेपंस ऑफ मास डिस्ट्रक्शन) सुरक्षा चिंता का विषय बने हुए हैं। विदेश सचिव ने कहा, आतंकवाद जैसी चुनौतियों से निपटने में वैश्विक तौर पर संकल्प की कमी है। लेकिन, इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण अपवाद भी हैं जिन्हें मान्यता दी जानी चाहिए। जयशंकर ने अमेरिका के साथ भारत के संबंधों पर कहा, "अमेरिका के साथ हमारे संबंधों का तेजी से विकास हो रहा है और आज की तारीख में यह सहयोग के कई क्षेत्रों को कवर करता है। हमने ट्रंप की ट्रांजिशन टीम के साथ जल्द से जल्द संबंध बनाया और हम हितों व चिंताओं को लेकर साथ मिलकर काम करेंगे। रूस के साथ संबंधों पर जयशंकर ने कहा,"हमारे नेताओं के बीच के संबंधों की ही तरह बीते दो वर्षो में रूस के साथ भारत के संबंध बेहद विकसित हुए हैं। अमेरिका-रूस के संबंधों में गरमाहट का असर भारत के हितों पर नहीं पड़ेगा।"जयशंकर ने कहा कि भारत-चीन के संबंधों में भी विस्तार हुआ है, लेकिन इस पर राजनीतिक मुद्दों पर मतभेदों की छाया पड़ी है। उन्होंने कहा, "दोनों देशों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने संबंधों के रणनीतिक महत्व की अनदेखी न करें। इस संबंध में हम साल 2017 में अधिक से अधिक जोर लगाना जारी रखेंगे।"विदेश सचिव ने कहा, जापान के साथ हमारे संबंधों में बदलाव आना जारी है, जो भारत के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) और पूर्वी क्षेत्र की स्थिरता में इसकी भूमिका पर उन्होंने कहा, "इसकी केंद्रीयता तथा एकता पूरे महाद्वीप के लिए एक परिसंपत्ति है।"अमेरिका की विदेश नीति के बदलाव के संदर्भ में उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि अमेरिका दुनिया के साथ अपने संबंधों की शर्तो को बदलने के लिए तैयार है। अमेरिका तथा रूस के बीच संबंधों में ऐसा बदलाव आ सकता है, जैसा हमने 1945 से नहीं देखा है। इसके स्वरूप के बारे में अभी भविष्यवाणी करना कठिन है। एशिया में चीन तथा जापान की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा, चीन का मजबूत होना और विदेशों में इसका प्रभाव एशिया में एक सक्रिय कारक है। जापान भी बदलाव का एक कारक बनने की दिशा में अग्रसर है, क्योंकि ऐसा लगता है कि वह अधिक जिम्मेदारी लेने की तैयारी कर रहा है।

मधुबनी : घुस लेते इंजिनियर रंगे हाथ गिरफ्तर

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पंडौल (मधुबनी) : निगरानी टीम ने बिजली विभाग के जेइ विकास कुमार गुप्ता को 15 हजार रिश्वत लेते गिरफ्तार िकया है. बुधवार शाम करीब पांच बजे डीएसपी महाराज कनिष्क कुमार के साथ आयी छह सदस्यीय टीम ने किराये के आवास से पकड़ा. जेई को गिरफ्तार कर टीम अपने साथ पटना ले गयी. जेइ विकास कुमार गुप्ता  पंडौल में पदस्थापित हैं, जो कनेक्शन लगाने की एवज में घूस ले रहे थे.  जानकारी के अनुसार, सकरी थाना क्षेत्र के विक्रमपुर बलिया निवासी विनोद पासवान के पुत्र राजेश पासवान की शिकायत पर निगरानी की टीम मधुबनी हनुमाननगर कॉलोनी पहुंची. टीम ने रमेश पासवान को 15  हजार रुपये देकर जेइ के पास भेजा. बताया जाता है कि जेइ उस समय अपने आवास में बैठ कर चाय पी रहे थे. इसी दौरान राजेश पासवान ने उन्हें घूस के 15 हजार रुपये दिये. जैसे ही विकास कुमार ने रुपये लिये, निगरानी की टीम ने उन्हें दबोच लिया.  

विक्रमपुर बलिया निवासी राजेश पासवान गांव में ही एक आटा चक्की की दुकान में तीन फेज का कनेक्शन (एलटीई) के लिए कार्यालय का चक्कर लगा रहे थे.  इसी दौरान उनसे जेइ विकास कुमार गुप्ता ने 30 हजार  रुपये की मांग की. रकम देने की बात होने के बाद राजेश पासवान ने इसकी जानकारी निगरानी टीम को दी. शिकायत की पुष्टि होने के बाद निगरानी ने उन्हें पकड़ने की रणनीति बनायी. बुधवार को पहली किस्त 15 हजार रुपये रमेश पासवान के हाथों जेइ को दिया गया. जब जेइ ने रिश्वत के पैसे लेकर अपने जेब में रखा, तो टीम ने उन्हें दबोच लिया. इस बाबत कार्यपालक अभिंयता संतोष कुमार ने बताया कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है. बताया जाता है कि दो सफेद रंग की गाड़ी से निगरानी की टीम डीएसपी महाराज कनिष्क कुमार के नेतृत्व में सुबह ही पंडौल पहुंच चुकी थी. दिन भर टीम जेइ की टोह में लगी थी. शाम करीब पांच बजे जेइ ने राजेश पासवान को अपने आवास पर बुलाया.  राजेश 15  हजार रुपये लेकर टीम के साथ हनुमान नगर कॉलोनी पहुंचे.  इस दौरान टीम ने राजेश पासवान को रकम देकर जेइ के पास भेजा. जैसे ही रकम लेकर जेई ने जेब में रखा. पीछे से निगरानी की टीम ने उन्हें दबोच लिया. 

मधुबनी आकाशवाणी : 12 साल पहले हुए शिलान्यास अब तक शुरू नही हुआ निर्माण कार्य

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madhubani-akashwani-waiting-to-start12 साल पहले केंद्र में भाजपा की सरकार थी और रविशंकर प्रसाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री थेजब 2004 में मधुबनी मुख्यालय से सटे रांटी में एफएम आकाशवाणी स्टेशन का शिलान्यास मंत्री रविशंकर प्रसार द्वारा किया गया था जिस जगह पर आकाशवाणी केंद्र खोले जाने का शिलालेख लगाया गया था. उस शिलालेख पर लिखा हर शब्द मिट चुका है. जमीन परती पड़ी है.  फिर से इस का निर्माण किये जाने को लेकर आवाजें उठने लगी है.  आवाज उठाने वाले ऐसे लोगों में यह उम्मीद है कि केंद्र में फिर से भाजपा की सरकार है.  तो इस केंद्र की ओर सरकार की नजरें उठे और यहां केंद्र का निर्माण कार्य हो जाये.  रांटी स्थित आकाशवाणी केंद्र के निर्माण की मांग को लेकर जिला, प्रमंडल  से लेकर केंद्र तक मांग व आंदोलन करने की रूप रेखा तैयार की जा रही है.  इस केंद्र के निर्माण की बातें भी विगत दिनों साहित्यकारों की एक गोष्ठी में ही उठी थी.  इसके बाद विभिन्न अवसरों पर इसको लेकर आवाजें उठने लगी. साहित्यकार अजीत आजाद बताते हैं कि इस केंद्र के निर्माण से यहां की समस्या, यहां की सभ्यता, संस्कृति, धरोहर को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का अवसर  मिलता. पर इसके निर्माण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हमें सिर्फ आधारशिला नहीं आकाशवाणी चाहिये. उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा है कि यह केंद्र मिथिला मैथिली को बढ़ावा देने का बहुत सशक्त माध्यम व धरोहर होगा. ऐसे में इसके निर्माण के लिये हर किसी को आगे आना चाहिये. 

रांटी आकाशवाणी के निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत आगामी 23 जनवरी को होगी. इस दिन एक दिवसीय धरना प्रदर्शन दरभंगा आकाशवाणी के सामने किया जायेगा. इसके बाद एक शिष्टमंडल वर्तमान में सूचना एवं प्रसारण मंत्री व मंत्री रविशंकर प्रसाद से भी मिलेंगे. यदि इससे भी बात नहीं बनी तो जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश स्तर तक सड़क जाम व आंदोलन किया जायेगा. इस मामले को लेकर विभिन्न छात्र संगठन भी सामने आने लगा है.  संभावना जतायी जा रही है कि दरभंगा में प्रदर्शन के बाद एक शिष्टमंडल को दिल्ली भेजा जायेगा.

मधुबनी के समाजवादी उत्तर प्रदेश जायेंगे.

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मधुबनी। समाजवादी पार्टी जिला इकाई की बैठक पार्टी कार्यालय में जिलाध्यक्ष सुरेशचंद्र चौधरी की अध्यक्षता में हुई। बैठक को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जिले से 200 कार्यकर्ता भाग लेंगे। इसके लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। चुनाव चिन्ह को लेकर चुनाव आयोग के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीति की दशा व दिशा तय करेगा। समाजसेवी विचारधारा ही गरीबों, पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं उदारवादी स्वर्ण की आवाज बनी रही है। 24 जनवरी को पार्टी जिले के विभिन्न प्रखंडों में जननायक कर्पूरी जयंती नशामुक्ति दिवस के रूप में मनाएगी। बैठक को पूर्व विधायक रामकुमार यादव, हाजी मोहम्मद इदरीश, रामसुदिष्ट यादव, राजेश कुमार, मो. औसाफ लड्डन, जिला पार्षद संजय यादव, सुनील कुमार मंडल, सुधीर कुमार चौधरी, प्रमोद यादव, आजाद गुप्ता, जयचन्द्र कुमार झा, राजेन्द्र यादव, श्याम यादव, सरोज कुमार यादव ने भी संबोधित किया।

विशेष : देह से रीढ़ गायब है?हमारे स्टार सुपरस्टार असल में क्या हैं?

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  • झूठ का पर्दाफाश रोज रोज,पढ़े लिखे लोग सच के हक में क्यों नहीं है?
  • अब समझ लीजिये कि हिंदुत्व का एजंडा कितना हिदुत्व का है और कितना कारपोरेट का।जाहिर है कि कारपोरेट कारिंदों की बोलती बंद है।

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खेती खत्म हुई और ढोर डंगर शहरों में बस गये हैं।गोबर ही गोबर चारों तरफ और सारे बैल बधिया हैं।सारे सींग गायब हैं।बाकी सबकुछ पूंछ है।मूंछ भी इन दिनों पूंछ है।अब बारी पिछवाड़े झाड़ू की है।गले में मटका हो नहो,गोमाता की तर्ज पर कानों में आधार नंबर टैग है।कैशलैस डिजिटल इंडिया की यह तस्वीर विचित्र किंतु सत्य है। शुतुरमुर्ग रेत की तूफां गुजर जाने के बाद फिरभी सर खड़ा कर लें भले,इस कयामती फिजां में देह से रीढ़ गायब है। आसमान जल रहा है।न आग है,न धुआं है। रिजर्व बैंक ने साफ कर दिया कि नोटबंदी की सिफारिश प्रधानमंत्री के आदेश से की गयी थी।इससे पहले आरटीआई सवाल से साफ हो चुका है कि राष्ट्र के नाम संबोधन से ऐन पहले यह सिफारिश की गयी। यह भी साफ हो चुका है कि राष्ट्र के नाम यह संबोधन रिकार्डेड था।
सरकारी दावा भी बजरिये मीडिया यही था कि प्रधानमंत्री ने अकेले दम अपनी खास टीम को लेकर नोटबंदी को अंजाम दिया। उस टीम में वित्तमंत्री या रिजर्व बैंक के गवर्नर के नाम कहीं नजर नहीं आये। महीनों पहले से अखबारों में नोट रद्द करने की खबर थी और नोटबंदी से पहले संघियों के हाथों में बगवे ध्वज की तरह नये नोट लहरा रहे थे। जाहिर है कि वित्तमंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर को अंधेरे में रखकर नोटबंदी का फैसला हुआ और नोटबंदी के लिए आरबीआई कानून के तहत रिजर्वबैंक की अनिवार्य सिफारिश भी रिजर्व बैंक की सिफारिश नहीं थी,यह प्रधानमंत्री के फरमान पर खानापूरी करके कायदे कानून को ताक पर रखने का बेनजीर कारनामा है। रिजर्व बैंक जाहिर है कि यह बताने की हालत में नहीं है कि नोटबंदी की सिफारिश आखिरकार किन महान अर्थशास्त्रियों या विशेषज्ञों ने की है। 

हम शुरु से लिख रहे हैं।हस्तक्षेप पर के पुराने तमाम आलेख 8 नवंबर से पढ़ लीजियेः
नोटबंदी का फैसला बगुलाछाप संघी विशेषज्ञों ने किया है। राष्ट्र के नाम संबोधन रिकार्डेड था। रिजर्व बैंक के गवर्नर,मुख्य आर्थिक सलाहकार और वित्तमंत्री को भी कोई जानकारी नहीं थी और न जनता की दिक्कतों को सुलझाने के लिए किसी किस्म की कोई तैयारी थी। कालाधन निकालने के लिए नहीं,हिंदुत्व के कारपोरेट एजंडे के तहत डिजिटल कैशलैस इंडिया बनाकर कारपोरेट कंपनी माफिया राज कायम करने के लिए नस्ली नरसंहार का यह कार्यक्रम है। कतारों में कुछ ही लोग मरे हैं लेकिन कतारों से बाहर करोड़ों लोगों को बेमौत मार दिया है फासिज्म के राजकाज ने। राजनीतिक मकसद यूपी दखल है।यह आम जनता के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है।कार्पेट बमबारी है।रामंदिर आंदोलन रिलांच है।आरक्षण विरोधी आंदोलन भी रिलांच है।यूपी जीतकर संविधान के बदले मनुस्मृति लागू करने के लिए यह नोटबंदी बहुजनों का सफाया है। इससे उत्पादन प्रणाली तहस नहस होनी है। अर्थव्यवस्था का बाजा बजना है और विकास गति गिरनी है।कारोबार से करोड़ों लोग बेदखल होंगे।हाट बाजार के बदले शापिंग माल मालामाल होंगे। नोटबंदी पहले से लीक कर दिये जाने से सारा कालधन सफेद हो गया है और देश गोरों के कब्जे में डिजिटल सकैशलैस है। करोडो़ं लोग बेरोजगार होंगे और अनाज की पैदावार कम होने से भुखमरी के हालात होगें।देश में कारोबार उद्योग तहस नहस होने,हाट बाजार खत्म होने से आगे भारी मंदी है। हम लगातार आपको रियल टाइम में हर उपलब्ध जानकारी और उनका विश्लेषण पेश कर रहे हैं।
सरकार ने नोटबंदी लागू करने के लिए रिजर्व बैंक से सिफारिश वसूली है। अब रिजर्व बैंक ने माना है कि नोटबंदी के ठीक एक दिन पहले सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोट की कानूनी वैधता खत्म करने के बारे में उसे विचार करने को कहा था। केंद्रीय बैंक के इस रुख का जिक्र संसद की लोक लेखा समिति यानी पीएसी के सामने पेश किए दस्तावेज में किया गया है। हालांकि सरकार अभी तक कहती रही है कि रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की संस्तुति के आधार पर ही कैबिनेट ने नोटबंदी के प्रस्ताव पर मुहर लगायी। नोटबंदी को लेकर रोज नए तथ्य सामने आ रहे हैं। ताजा मामला रिजर्व बैंक की ओर से संसद की लोक लेखा समिति के सामने पेश किए गए बैंकग्राउंड नोट्स से जुड़ा है।

नोटबंदी पर रिजर्व बैंक द्वारा संसद की एक समिति को भेजे पत्र में कहा गया है कि यह सरकार थी जिसने उसे 7 नवंबर को 500 और 1000 का नोट बंद करने की सलाह दी थी। केंद्रीय बैंक के बोर्ड ने इसके अगले दिन ही नोटबंदी की सिफारिश की। रिजर्व बैंक ने संसद की विभाग संबंधी वित्त समिति को भेजे सात पृष्ठ के नोट में कहा है कि सरकार ने रिजर्व बैंक को 7 नवंबर, 2016 को सलाह दी थी कि जाली नोट, आतंकवाद के वित्तपोषण तथा कालेधन, इन तीन समस्याओं से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल को 500 और 1000 के ऊंचे मूल्य वाले नोटों को बंद करने पर विचार करना चाहिए।हुक्म उदूली की हिम्मत किसे थी? हर झूठ का पर्दाफाश हो रहा है।फिरभी देश के सबसे पढ़े लिखे लोग,स्टार सुपरस्टार खामोश हैं और सत्ता हित में बजरंगी बनकर जनता के खिलाफ मोर्चाबंद हैं।  नोटबंदी सिरे से फ्लाप है और बेशर्म फरेबी  छत्तीस इंच के सीने का अब भी दावा है कि भारत दुनिया का ग्रोथ इंजन है और जल्द ही ये दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल इकॉनोमी बनकर उभरेगा।  कालाधन कितना निकला है,नोटबंदी की तैयारियां क्यों नहीं थी और आम जनता को इतनी दिक्कतें क्यों दो महीने पूरे होने के बावजूद जारी हैं,इन सारे सवालों का जवाब डिजिटल कैशलैस इंडिया है। सपनों के सौदागर की बाजीगरी की बलिहारी,आम जनता अर्थव्यवस्था और संविधान नहीं समझती,कानूनी बारीकियों से भी वे अनजान हैं,वोट डालते हैं लेकिन राजनीति भी नहीं समझती है आम जनता।

जो लोग समझते हैं,आखिर वे क्यों खामोश हैं?
जबाव कुछ इस प्रकार हैःरिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी अगुवाई में देश तेजी से बदल रहा है। रतन टाटा ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में देश तरक्की कर रहा है और वाइब्रेंट समिट से गुजरात देश को नई राह दिखा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने बताया कि गुजरात तेजी से डिजिटल होने की तरफ बढ़ रहा है।इधर अदानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदानी ने गुजरात में 49,000 करोड़ रुपये निवेश का एलान किया है। गौतम अदानी के मुताबिक अगले 5 साल में 49,000 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे और इससे 25,000 लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं, वाइब्रेंट समिट में शिरकत करने आए सुजुकी के सीईओ तोशीहीरो सुजुकी ने कहा है कि गुजरात उनके लिए काफी अहम है। कंपनी अपने गुजरात प्लांट की क्षमता भी बढ़ाएगी। अब समझ लीजिये कि हिंदुत्व का एजंडा कितना हिदुत्व का है और कितना कारपोरेट का।जाहिर है कि कारपोरेट कारिंदों की बोलती बंद है। आधार को अनिवार्य बनाने पर सुप्रीम कोर्ट का निषेध है।सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी,2017 के अपने आदेश में प्राइवेट और विदेशी एजंसियों के नागरिकों के बायोमैट्रीक डैटा बटोरने पर रोक लगा दी है।इससे पहले अनिवार्य सेवाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने पर भी सुप्रीम कोर्ट की निषेधाज्ञा जारी है।लेकिन नोटबंदी के बाद नागरिकों की बायोमेट्रीक आधार पहचान के जरिये लेनदेन का फतवा जारी हो गया है।यह सारा लेन देन इंटरनेट की विदेशी कतंपनियों के अलावा देशी कारपोरेट कंपनियों के प्लेटफार्म से होगा।जबकि डिजिटल लेनदेन पर गुगल अभी काम कर ही रहा है ,इसी बीच डिजिटल लेनदेन के लिए चालू एटीएम,डेबिट और क्रेडिट कार्ड को 2020 तक खत्म करने का ऐलान भी हो गया है। गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद जिस तरह से केंद्र सरकार डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा दे रही है। उसमें आधार का एक अहम रोल बनता नजर आ रहा है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गयी आधार आधारित भुगतान प्रणाली के तहत ‘आधार पे’ एप से भुगतान करते वक्त सिर्फ बैंक का नाम बताना होगा। इसके बाद अपना आधार नंबर बताकर आसानी से कैशलेस भुगतान कर सकेंगे। अंतिम चरण में आप थंब इंप्रेशन लगा कर भुगतान सुनिश्चित कर सकते हैं। अंगूठे के निशान का मिलान होते ही बताये गये बैंक के खाते से पैसा दुकानदार के अकाउंट में डेबिट हो जायेगा।

पता नहीं,इसके बाद क्या क्या हो जायेगा।
जान माल की कोई गारंटी नहीं है।
सुरक्षा इंतजाम ठीकठाक है और पूरी देश गैस चैंबर है।
कतार में मर रहे रहे हैं लोग।
खेतों और कारखानों में मर रहे हैं लोग।
चायबागानों में मर रहे हैं लोग।
समुंदर और हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर मर रहे हैं लोग।
अब मरने के सिवाय क्या करेंगे लोग?
मौतों का जिम्मेदार कौन है?
उत्तर में सारे देव देवी मौन हैं।

 सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का जलवा यह है कि मोबाइल नंबर के लिए आधार, पासपोर्ट के लिए आधार, पेमेंट के लिए आधार, सब्सिडी के लिए आधार और बैंक अकाउंट के लिए भी आधार....यहां तक कि एग्जाम में बैठने के लिए भी आधार जरूरी है। इसके अलावा अब तो  कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने अपने 50 लाख पेंशनभोगियों और करीब 4 करोड़ अंशधारकों के लिए इस महीने यानी जनवरी के आखिर तक आधार संख्या उपलब्ध कराना अनिवार्य कर दिया है। जिन अंशधारकों या पेंशनभोगियों के पास आधार नहीं है, उन्हें महीने के आखिर तक सबूत देना होगा कि उन्होंने इसके लिए आवेदन कर दिया है। कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस), 1995 के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए पेंशनरों और इसके मौजूदा सदस्यों के लिए आधार कार्ड प्रस्तुत करना अब अनिवार्य कर दिया गया है। यही नहीं,अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को मनरेगा में रोजगार पाने के लिए अपना आधार कार्ड दिखाना होगा। नई दिल्ली। अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को मनरेगा में रोजगार पाने के लिए अपना आधार कार्ड दिखाना होगा। 1 अप्रेल से महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में काम करने के लिए सभी को आधार नंबर दर्ज करवाना जरूरी होगा। 31 मार्च तक मनरेगा कर्मचारियों को देना होगा आधार कार्ड. जितने भी लोगों का नाम मनरेगा में दर्ज है उन सभी को 31 मार्च तक अपना आधार कार्ड नंबर बताना होगा। गौरतलब है कि 2020 तक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का संघ परिवार का एजंडा है।इसके मुताबिक डिजिटल कैशलैस इंडिया ही संघ परिवार का हिंदू राष्ट्र है,जिसमें आजीविका,रोजगार, संसाधनों उद्योग कारोबार, बिजनेस ,इंडस्ट्री,इकोनामी पर कारपोरेट नस्ली एकाधिकार और बहुसंख्य जनगण का नस्ली नरसंहार का कार्यक्रम है। राजनीति तो जनता के विरुद्ध हैं।राजनीतिक वर्ग करोड़पतियों,अरबपतियों और खरब पतियों का सत्ता वर्ग है। 

अराजनीतिक लोग क्या हैं?
 हमारे स्टार सुपरस्टार असल में क्या हैं?
लेखक कवि कलाकार वैज्ञानिक अर्थशास्त्री वकील डाक्टर प्रोफेसर नौकरीपेशा तमाम भद्रजन,रंगक्रमी वगैरह वगैरह क्यों खामोश हैं?
किताबों की तस्वीर,अलबम पोस्ट करने वाले लोग नोटबंदी पर खामोश क्यों हैं?
नमो बुद्धाय,जयभीम का जाप करने वाले खामोश क्यों हैं?
बाबासाहेब का अलाप खामोश क्यों है?
जब समांतर और कला फिल्मों,संगीत,चित्रकला,थिएटर के जनप्रतिबद्ध रचानकर्म और सामाजिक यथार्थ को गरीबी का कारोबार या सवर्ण कलाकर्म कहा जाता है,तो देशभक्त और बहुजन बिरादरी क्यों चुप हैं?

दिवंगत कलाकार ओमपुरी की सेना संबंधी टिप्पणी पर बवाल मचा था।जो लोग सेना को देशबक्ति और त्याग का पैमाना मानते हैं,सलवा जुड़ुम और आफ्सा से लेकर रक्षा सौदों में दलाली तक को राष्ट्रवाद की पवित्रता से जोड़ते हैं,वे लोग रक्षा आंतरिक सुरक्षा के निजीकरण और विनिवेश पर भी खामोश रहे हैंं।अब बीएसएफ के जवान तेजबहादुर ने खुला पत्र लिखकर,वीडियो जारी करके जवानों के साथ हो रहे बर्ताव का जो कच्चा चिट्ठा खोल दिया है,उसपर भी वे लोग खामोश क्यों हैं? वैसे तो जय जवान जय किसान का नारा हिंदुस्तान की सरजमीं पर बुलंद है।जवान की तस्वीर देख कर ही  हम में देशप्रेम जाग उठता है। लेकिन जब ऐसा ही एक जवान ने बेबस होकर अपनी आवाज उठाए तो उसके अफसरों को अचानक एक शराबी, अनुशासनहीन, दिमाग से हिला हुआ आदमी दिखने लगा । तेज बहादुर यादव ने बड़ा रिस्क लेकर देश को बताया कि सीमा पर पोस्टिंग के दौरान किस घटिया स्तर का खाना मिलता है। इस बहादुरी के बदले आज बीएसएफ हर तरह से तेज बहादुर की रेप्यूटेशन खराब करने में लगी है। किसानों और व्यापारियों का बेड़ गर्क हो गया है।अर्थव्यवस्था पटरी से बाहर है।विकास दर तेजी से घटने लगी है सिर्फ शेयर बाजार उछल रहा है।मेहनतखसों के हाथ पांव काट दिये गये हैं।बच्चों की नौकरियां खतरे में हैं।ऐसे में साफ जाहिर है कि फासिज्म की सरकार और उसके भक्त बजरंगी समुदाय और सत्ता से नत्थी भद्रलोक पेशेवर दुनिया को न किसानों से कुछ लेना देना है और न वीर जवानों से।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर खाने की क्वालिटी की नुक्ताचीनी करते बीएसएफ जवान के वायरल वीडियो ने हड़कंप मचा दिया है। गृह मंत्रालय तक हरकत में आ गया और आज आईजी ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस पर सफाई दी। बीएसएफ के आईजी, डी के उपाध्याय ने कहा कि प्राथमिक जांच में कोई सच्चाई नहीं मिली है। फिर भी जांच होगी और  कार्रवाई भी होगी। 31 जनवरी को वॉलेंटरी रिटायरमेंट पर जा रहे तेज बहादुर का अनुशासनहीनता के चलते 2010 में कोर्ट मार्शल हो चुका है। परिवार की स्थिति को देखते हुए उसके साथ नरमी बरती गई थी। बीएसएफ में शिकायत करने के अंदरुनी रास्ते भी हैं। उनका इस्तेमाल किए बगैर सीधा फेसबुक पर वीडियो पोस्ट करना जवान की नीयत पर सवाल खड़े करता है।

गौरतलब है कि तेज बहादुर यादव बीएसएफ के जवान वीडियो बनाते वक्त कश्मीर सीमा पर अपने देश की रक्षा कर रहे थे। अपार बहादुरी दिखा कर तेज बहादुर ने सोशल मीडिया के जरिए बीएसएफ की वो सच्चाई दिखा दी जो आज तक छुपी थी।तेज बहादुर यादव ने सरल सा सवाल पूछा कि क्या ऐसा खाना खाकर क्या कोई जवान 11 घंटों की ड्यूटी कर सकता है। लेकिन इनका असली आरोप तो और भी संगीन है। तेज बहादुर का कहना है कि सरकार से राशन तो आता है जवानों के लिए। लेकिन बीच में ही ये गायब हो जाता है। गौरतलब है कि  हालीवूड की अत्यंत लोकप्रिय अभिनेत्री मेरील स्ट्रीप ने ग्लोब पुरस्कार समारोह के मौके पर अमेरिका के प्रेसीडेंट इलेक्ट रंगभेदी फतवे का विरोध जिस तरह किया है,उसके मद्देनजर हमारे स्टार सुपरस्टार मुक्त बाजार या केंद्र सरकार या राज्य सरकार के दल्ले से बेहतर कोई हैसियत रखते हैं या नहीं,इस पर जरुर गौर करना चाहिए।मेरील स्ट्रीप ने  हॉलीवुड की समृद्ध विविधता को रेखांकित करने के लिए भारतीय मूल के अभिनेता देव पटेल जैसे कलाकारों का जिक्र किया। स्ट्रीप ने अपने इस भाषण में ट्रंप का नाम तो नहीं लिया लेकिन ताकतवर लोगों द्वारा दूसरों को प्रताड़ित करने के लिए पद का इस्तेमाल करने के खिलाफ चेतावनी दी।रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या से पहले इसी किस्म की असहिष्णुता के खिलाफ कलाकारों साहित्यकारों की बगावत को राष्ट्रद्रोह कहा गया था और राष्ट्रवाद की यह भगवा झंडा देश के तमाम विश्वविद्यालयों में लहराने के लिए छात्रों और युवाओं तक को मनुस्मृति शासन ने राष्ट्रद्रोही का तमगा बांटा था। ऐसे राष्ट्रवादियों की पितृभूमि अमेरिका में मेरील स्ट्रीप जैसी विश्वविख्यात अभिनेत्री के बयान पर अमेरिका में किसी ने उन्हें राष्ट्रद्रोही नहीं कहा है। कानून,संसद ,संविधान और सुप्रीम कोर्ट की खुली अवमानना करने वालों के खिलाफ राष्ट्रवादी देशभक्त क्यों चुप हैं?

देशभक्ति के मामले में सबसे मुखर हमारे स्टार सुपरस्टार ने जिस गति और वेग से नोटबंदी के समर्थन में बयान जारी किये,जिसतरह डिजिटल कैशलैस स्वच्छ भारत के विशुध आयुर्वेदिक एंबेैसैडर बन गये,उन्हें क्या कानून,संविधान,संसद और सुप्रीम कोर्ट की कोई परवाह नहीं है? असहिष्णुता के खिलाफ पुरस्कार लौटाने वाले अब क्यों खामोश हैं? मेरील स्ट्रीप भी पेशेवर कलाकार हैं। स्ट्रीप ने कहा कि हम सब कौन हैं और हॉलीवुड क्या है? स्ट्रीप ने कहा कि यह एक ऐसी जगह है, जहां अन्य जगहों से लोग आए हैं। हॉलीवुड की समृद्ध विविधता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि एमी एडम्स इटली में जन्मी, नताली पोर्टमैन का जन्म यरूशलम में हुआ। इनके जन्म प्रमाण पत्र कहां हैं? देव पटेल का जन्म केन्या में हुआ, पालन-पोषण लंदन में हुआ और यहां वह तसमानिया में पले-बढ़े भारतीय की भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि हॉलीवुड बाहरी और विदेशी लोगों से भरा पड़ा है और यदि आप हम सबको बाहर निकाल देते हैं तो आपके पास फुटबॉल और मिक्स्ड मार्शल आर्ट के अलावा कुछ भी देखने को नहीं मिलेगा और ये दोनों ही कला नहीं हैं। कई पुरस्कार जीत चुकी अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप हॉलीवुड में एक सम्मानित हस्ती हैं। उन्होंने कहा कि इस साल जो प्रस्तुति सबसे अलग रही, वह किसी अभिनेता की नहीं बल्कि ट्रंप की थी। यह प्रस्तुति उन्होंने एक विकलांग पत्रकार का सार्वजनिक तौर पर मजाक उड़ाते हुए दी थी। सारे नोट बैंकों में वापस आ गये हैं।15 लाख करोड़ से ज्यादा।अब बता रहे हैं कि नोटबंदी के बाद बैंकों में बड़ी मात्रा में कालाधन जमा हुआ है। सरकार को  पता चला है कि अलग-अलग बैंक खातों में 3 से 4 लाख करोड़ रुपये की अघोषित आय जमा हुई है। आईटी विभाग इन खातों की जांच करने के बाद खाताधारकों को नोटिस भेज रहा है और अगर खाताधारक इस रकम का स्त्रोत बताने में नाकाम रहते हैं तो उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। नोटबंदी से कालाधन बाहर आया है। नोटबंदी के दौरान लंबे समय से बंद पड़े खातों में 25000 करोड़ रुपये जमा हुए हैं।जांच से पता चला है कि पूर्वोत्तर राज्यों में 10700 करोड़ रुपये की अघोषित आय जमा हुई है जबकि सहकारी बैंकों में 16,000 करोड़ रुपये जमा हुए हैं। ये भी पता चला है कि नोटबंदी के बाद 80,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल लोन रीपेमेंट किया गया है। वहीं उत्तर भारत में अलग-अलग बैंकों में 10700 करोड़ रुपये जमा किए गए।




(पलाश विश्वास)

विशेष : नीति और नियमों का सरलीकरण जरूरी

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कालेधन एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिये नीति एवं नियमों का सरलीकरण जरूरी है। नीति आयोग के अध्यक्ष अरविंद पानगड़िया ने इसी बात की आवश्यकता व्यक्त करते हुए कहा कि जटिल टैक्स नियमों को सरल बनाने और टैक्स दरों को कम करने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए, नोटबंदी का उद्देश्य तभी सफल होेगा। सत्ता के शीर्ष लोग भले ही अपने आपको चाणक्य और चन्द्रगुप्त समझते हैं जबकि चाणक्य जनता होती है। इसीलिये नये-नये एवं जटिल कानून बनाने से समस्याओं का समाधान नहीं होता, बल्कि वे और जटिल हो जाती है। जितने कड़े कानून बनते है, उतने ही उन कानूनों से बचने के रास्ते निकल जाते हैं। सक्षम एवं सफल शासन वहीं होता है जिसमेें कानून कम-से-कम होते हैं। शतरंज की चर्चा अक्सर होती रहती है। नोटबंदी में भी पूरा देश शतरंज की बिसात बना हुआ है और सब अपने-अपने मोहरे और अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं। शतरंज में घोड़ा टेढ़ा और हाथी सीढ़ा चलता है। हम मोहरों को दोष नहीं दें। मोहरे चलते नहीं चलाए जाते हैं। नोटबंदी में भी कालेधन को सफेद करने एवं कानूनों की धज्जियां उड़ाने की चाले चली जा रही है। आज विश्व की सर्वाेच्च लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत की सर्वोच्च संस्था संसद भी शतरंज बना हुआ है, जहां बड़ी राजनीतिक शक्तियां-दल अपने ‘वीटो’ अधिकार का उपयोग करते हुए नोटबंदी के नाम पर संसद को ठप्प करने  की अपनी चालें चल रही हैं। जो अपने घोड़े, ऊंट और हाथी बचाने के लिए प्यादे को आगे कर राजनीतिक मूल्यों को मर जाने दे रहे हैं।

सत्ता पक्ष की चालें तो इतनी ज़बरदस्त हैं कि वे अपने नुस्खांे और दाव से अपने राजनीतिक हितों को साधते हुए राष्ट्र की नीतियां ही बदल रहेे हैं। काले और सफेद मोहरे शतरंज की फर्श पर ही आमने-सामने नहीं होते, पूरे राष्ट्र में इस समय काले और सफेद धन में बंटी हुई है। कुछ लोग कालेधन का विरोध करते हुए नोटबंदी से खड़ी हुई समस्याओं से लड़ रहे हैं तो कुछ कालेधन को सफेद करने की जुगाड़ में सारे नीति और नियमों को ताक पर रख रहे है। शतरंज की एक विशेषता है कि राजा कभी अकेले से शिकस्त नहीं खाता और यही हम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं। सरकार का ध्यान कालेधन और कालाबाजारी पर है पर उसकी कुछ चालें उल्टी पड़ रही हैं। कोई दल कालेधन पर मन मौन रहकर भ्रष्टाचार विरोध के नारे जोर-जोर से लगा रहा है तो कोई सरकार की नोटबंदी की चाल पर ही शह देने की सोच रहा है। शतरंज में सफेद मोहरों की चाल पहले होती है और एक चाल की वरीयता मायने रखती है। ठीक इसी सोच पर सभी दल भ्रष्टाचार मुक्त शासन के मुद्दे में आगे रहना चाहते हैं। पर शुरूआत किस चाल से करें, जिसकी काट नहीं हो, यह बहुत कम लोग जानते हैं। सरकार, विरोधी दल, नेता, उद्योगपति, बहुराष्ट्रीय संस्थान नामुमकिन निशानों की तरफ देश की जनता को दौड़ा रहे हैं। यह जनता के साथ नाइन्साफी है। क्योंकि ऐसी दौड़ आखिर जहां पहुंचती है वहां कामयाबी की मंजिल नहीं, बल्कि मायूसी का गहरा गड्ढा है। नोटबंदी निराशाओं के गर्त में धकेलने का माध्यम न होकर आशाओं की भोर हो, यह जरूरी है। 

कितना अच्छा होता कि पानगड़िया नीति एवं नियमों के सरल होने की जरूरत का रेखांकन नीति आयोग की कमान संभालने के तत्काल बाद करते। टैक्स नियमों की जटिलता को दूर करने और उनकी दरों को कम करने की बात एक लंबे अर्से से की राजनीतिक मोर्चों पर एवं विशेषज्ञों के द्वारा की जा रही है, लेकिन किन्हीं कारणों से इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। हैरत की बात यह है कि यह जानते हुए भी टैक्स ढांचे को सरल बनाने का काम नहीं किया गया कि इन नियमों की जटिलता के कारण भी काला धन पैदा होता है और भ्रष्टाचार पनपता है। देखने में आता है कि कुछ मदों में आवश्यकता से अधिक टैक्स भी लोगों को उनसे बचने के तौर-तरीके अपनाने के लिए विवश करता है। जितने कड़े कानून बनाये जाते है, उतनी ही अफसरशाही भ्रष्ट हसेती चली जाती है। जहां नियमों की पालना व आम जनता को सुविधा देने में अफसरशाही ने लाल फीतों की बाधाएं बना रखी हैं। प्रशासकों की चादर इतनी मैली है कि लोगों ने उसका रंग ही काला मान लिया है। अगर कहीं कोई एक प्रतिशत ईमानदारी दिखती है तो आश्चर्य होता है कि यह कौन है? पर हल्दी की एक गांठ लेकर थोक व्यापार नहीं किया जा सकता है। नौकरशाह की सोच बन गई है कि सरकारी तनख्वाह तो केवल टेबल-कुर्सी पर बैठने के लिए मिलती है, काम के लिए तो और चाहिए।

नोटबंदी एक कठोर एवं ऐतिहासिक निर्णय था, लेकिन जिस उद्देश्य से इसे लागू किया गया, वह उद्देश्य अधूरा ही रहता हुआ दिख रहा है। सरकार और उसके नीति-नियंताओं को इसका भी आभास होना चाहिए था कि नोटबंदी के बाद बड़ी संख्या में लोग अपने काले धन को सफेद करने की कोशिश कर सकते हैं। अब स्थिति यह है कि इस कोशिश में आयकर विभाग के साथ-साथ बैंकों के भी कई अधिकारी-कर्मचारी लिप्त दिखाई दे रहे हैं। चूंकि इसकी भरी-पूरी आशंका है कि सभी जरूरी कदम नहीं उठाए गए इसलिये नए सिरे से काला धन पैदा होने की संभावनाएं व्यापक है इसलिए सरकार को सभी मोर्चो पर एक साथ सक्रिय होना पड़ेगा। इसमें जितनी देरी होगी उतना ही नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिस तरह सरकार ने आनन-फानन में आयकर कानून में संशोधन का फैसला किया उसी तरह उसे जटिल टैक्स नियमों को सरल बनाने का कदम उठाना होगा और साथ ही ऊंची टैक्स दरों को भी कम करना होगा। ऐसे ही उपायों से आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसका कोई औचित्य नहीं कि सवा अरब की आबादी वाले देश में मुश्किल से ही तीन-चार प्रतिशत लोग टैक्स देते हैं।
नीति आयोग के अध्यक्ष की सलाह पर कम से कम अब तो सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। और भी अच्छा होता कि यह काम नोटबंदी के पहले ही कर लिया जाता। यदि ऐसा कर लिया गया होता तो न तो किसी को भनक लगने वाली थी कि अगले कदम के रूप में सरकार नोटबंदी का फैसला ले सकती है और न ही उसे इस आशंका से दो चार होना पड़ता कि कर राजस्व के संग्रह में कमी आ सकती है। नीति आयोग के प्रमुख का यह कहना महत्वपूर्ण है कि टैक्स नियमों को इतना सरल एवं स्वचालित कर दिया कि टैक्स नियम कर-अधिकारियों के विवेक पर आश्रित न हों, बल्कि अपने आप में इतने स्पष्ट हों कि करदाता को किसी जटिलता का अहसास भी न हो। इसी तरह उनकी इस सलाह पर भी गौर किया जाना चाहिए कि स्टांप ड्यूटी पूरे देश में एक जैसी नहीं है और इसकी दर इतनी अधिक है कि लोग उससे बचने की कोशिश करते हैं। 

चूंकि नोटबंदी के चलते हर स्तर पर आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां ठहर-सी गई हैं इसलिए टैक्स संग्रह में कमी स्वाभाविक ही है। इसी तरह यदि सरकार ने नकदी रहित लेन-देन को भी पहले ही बढ़ावा दिया होता तो आज उसे लोगों को लेन-देन में नकदी के कम से कम इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने पर इतना अधिक जोर नहीं देना पड़ता। यह समझना कठिन है कि सरकार ने नोटबंदी सरीखा बड़ा और सारे देश को प्रभावित करने वाला फैसला लेने से पहले सभी जरूरी कदम उठाने पर ध्यान क्यों नहीं दिया?  सचमुच! यह समय उन लोगों के लिये चुनौती है जिन्होंने अब तक औरों की बैशाखियों पर लड़खड़ाते हुए चलने की आदत डाल रखी है। जिनकी अपनी कोई मौलिक सोच नहीं, कोई मौलिक दिशा नहीं, कोई मौलिक संकल्प नहीं, कोई मौलिक सपना नहीं, कोई सार्थक प्रयत्न नहीं। यही समय जागने का है। बहुत सो लिये। अब जागकर नहीं उठे तो जिन्दगी का स्वर्णिम अवसर दरवाजे पर दस्तक देकर भी लौट जाएगा। फिर शेष बचेगा समय पर न उठने का पश्चात्ताप।  जरूरत है देश को ऐसी नीति और नियमों की सौगात देने की जो सहज ही जीवन का हिस्सा बन जाये। उन भूलों को न दोहराये जिनसे हमारी ईमानदारी एवं नैतिकता जख्मी हुई। जो सबूत बनी हैं हमारे असफल प्रयत्नों की, अधकचरी योजनाओं की, जल्दबाजी में लियेे गयेे निर्णयों की, सही सोच एवं सही कर्म के अभाव में मिलने वाले अर्थहीन परिणामों की।   ईमानदारी और नैतिकता शतरंज की चालें नहीं, मानवीय मूल्य हैं। जिन्हें राजनीति से नहीं, नेक-नियति से ही लागू किया जाना चाहिए।             





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(ललित गर्ग)
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विशेष : लोकतांत्रिक मर्यादा का चीरहरण करता विपक्ष

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भारत देश में विपक्षी दलों द्वारा किया गया भारत बंद का प्रयास लोक ने पूरी तरह से नकार दिया। इससे कहा जाता है कि देश एक बार फिर लोक जीत गया और विपक्ष पूरी तरह से पराजित हो गया। इससे यह प्रमाणित हो गया है कि देश की जनता पूरी तरह से जाग्रत हो चुकी है, उसे किसी भी प्रकार से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। राजनीतिक दल खासकर विपक्षी राजनीतिक दलों को अब इस बात का चिन्तन करना चाहिए कि देश की जनता किस प्रकार की राजनीति चाहती है।

केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए बड़े नोट बंद करने के बाद देश के विपक्षी राजनीतिक दलों ने ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया कि जैसे पूरा देश ही परेशान हो गया हो। यह बात सही है कि बड़े नोटों को बंद करने से काले धन के रुप में पैसा एकत्रित करने वालों के लिए न तो उगलते बन रहा है और न ही निगलते। देश के राजनीतिक दलों को कम से कम राष्ट्रीय हितों के मामलों पर राजनीति करने से बाज आना चाहिए। वैसे कांगे्रस के बारे में एक बात शत प्रतिशत सही मानी जाती है कि उसने हमेशा अंगे्रजों कर फूट डालो और राज करो की नीति का ही अनुसरण किया है। कांगे्रस ने भारतीय समाज को हमेशा ही दिग्भ्रमित किया है। कौन नहीं जानता कि आज देश के कई राजनेताओं के पास काली कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा है। इतना ही नहीं कांगे्रस के शासनकाल में मंत्रियों के परिजन भी सरकार की सुविधाओं का भरपूर दुरुपयोग करते रहे। इसी दुरुपयोग के चलते कई लोग अवैध कमाई के फेर में मालामाल हो गए।

बड़े नोटों को अमान्य करने के केन्द्र सरकार के निर्णय के विरोध में विरोधी राजनतिक दल संसद से लेकर सड़कों पर हंगामा और प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसकी वजह से संसद के दोनों सदनों में लगातार गतिरोध जारी है। यह बात सही है कि विपक्ष मन से नोट बंदी मामले में बहस नहीं चाहता, क्योंकि बहस करने से उन्हें ऐसी सब बातों का सामना करना होगा, जो उनके शासनकाल में हुईं। लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तो यहां तक कह दिया कि सबसे ज्यादा काला धन पिछली सरकार के समय में पैदा हुआ। इस बात को सुनते ही कांगे्रस के सदस्यों ने हंगामा याुरु कर दिया। जबकि यह बात सही थी कि पिछली सरकार के दौरान काला धन सबसे ज्यादा जमा हुआ। कांगे्रस सहित अन्य विपक्षी दलों में इस सत्य को स्वीकार करने का साहस नहीं है। इससे जाहिर होता है कि विपक्ष नोटबंदी के मामले में बहस को तैयार नहीं है और उसका उद्देश्य सिर्फ सरकार को घेरने का है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत विपक्ष का सरकार की बातों से सहमत या असहमत होना उचित है, लेकिन केवल हंगामा करने के लिए असहमत होना न्याय संगत नहीं माना जा सकता। इसके लिए प्रावधानिक नियमों का पूरी तरह से पालन करना भी विपक्ष की जिम्मेदारी है। उसे विरोध का भी अधिकार है, लेकिन संसद का सत्र जब चल रहा है तो विपक्ष को संसद में चर्चा करके सरकार से जवाब तलब करना चाहिए। नियमों की आड़ लेकर बहस से दूर भागना उचित कैसे ठहराया जा सकता है। अपनी जिद पकड़कर संसद में गतिरोध जारी रखना संसदीय लोकतंत्र के तहत ऐसा रवैया अमान्य है। संसद परस्पर विचार-विमर्श के लिए है। गंभीर मसलों पर बहस के लिए है और निर्णय करने के लिए है। इसके जरिए ही देश की नियति का निर्धारण होता है। जहां तक भारत की जनता की बात है तो उसे विपक्ष की अच्छी और बुरी बात का ज्ञान है। आज जनता को सरकार और विपक्ष की पल पल की जानकारी घर बैठे ही मिल रही है, इसलिए विपक्ष किसी भी प्रकार से जनता के ऊपर भ्रमित करने वाली बातों को नहीं थोप सकती।

यह मांग उचित हो सकती है लेकिन पूरी बहस के दौरान प्रधानमंत्री का उपस्थित रहना शायद संभव नहीं है और यह मांग अव्यावहारिक भी है। प्रधानमंत्री के अनेक कार्यक्रम पूर्व निर्धारित होते हैं। पूरी बहस के दौरान प्रधानमंत्री कैसे सदन में बैठा रह सकता है, यह हमारे विवेकशील विपक्ष को सोचना चाहिए। ऐसी मांग से भी जाहिर होता है कि विपक्ष केवल विरोध के लिए विरोध और हंगामा कर रहा है। उसे बहस में कोई रूचि नहीं है।

देश में नोट बंदी के निर्णय के बारे में समस्त देश की जनता यह भलीभांति समझ रही है कि केन्द्र सरकार का यह कदम कालेधन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने का साहसिक कदम है।

वर्तमान में देश में विरोधी दलों द्वारा जिस प्रकार की राजनीति की जा रही है, वह देश को पीछे ले जाने की कवायद मानी जा सकती है। इसे लोकतांत्रिक मर्यादा का चीरहरण भी कहा जा सकता है। विपक्ष द्वारा किए गए भारत बंद का आहवान देश की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया। यहां तक कि देश के व्यापारियों ने भी इससे किनारा करके विपक्ष को यह जता दिया कि वह भारत बंद के विरोध में है। वास्तव में देखा जाए तो विपक्ष यहां पर पूरी तरह से चूक गया। क्योंकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया यही कहती है कि जनता की भावनाओं को पूरी तरह से ध्यान रखा जाए। लोकतांत्रिक परिभाषा का अध्ययन करने से पता चलता है कि भारत की असली सरकार जनता ही है, लेकिन हमारे विपक्षी दल जनता की भावनाओं को कोई महत्व देते हुए दिखाई नहीं दे रहे। इसे लोकतांत्रिक मर्यादाओं का हनन ही कहा जाएगा। पूरी तरह से बेशर्म बनकर लोकतांत्रिक परंपराओं की बलि चढ़ाई जा रही है। हद तो यह है कि सेना को भी गंदी राजनीति के कीचड़ में घसीटा जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति इसका उदाहरण है। पिछले तीस दशक के दौरान देश में राजनीति का चरित्र बिल्कुल बदल गया है।

भारत देश लोकतांत्रिक है, इसका मतलब यही है कि इस देश में लोक की आवाज को प्रमुखता दी जानी चाहिए, लेकिन विपक्षी दलों ने लोक की आवाज को नकार कर जिस प्रकार से केन्द्र सरकार का विरोध किया है, उसे प्रथम दृष्टया अलोकतांत्रिक ही कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कही जा सकती। विपक्षी दलों ने बाजार बंद करके एक प्रकार से अलोकतांत्रिक कार्य किया है, क्योंकि जनता पूरी तरह से बाजार बंद के खिलाफ रही। भारत में ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है कि विपक्षी दलों की आवाज को अनसुना कर बाजार पूरी तरह से खुला दिखाई दिया। इससे विपक्षी दलों को सबक लेना चाहिए।





सुरेश हिन्दुस्थानी
झांसी, उत्तरप्रदेश पिन- 284001
मोबाइल-09455099388
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

मध्यप्रदेश – भगवा मंसूबों की छलांगें

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मध्यप्रदेश वह सूबा है जहाँ संघ परिवार अपने शुरुआती दौर में ही दबदबा बनाने में कामयाब रहा है, इस प्रयोगशाला में संघ ने सामाजिक स्तर पर अपनी गहरी पैठ बना चूका है और मौजूदा परिदृश्य में वे हर तरफ हावी है। पहले मालवा क्षेत्र उनका गढ़ माना जाता था अब इसका दायरा बढ़ चूका है और प्रदेश के दूसरे हिस्से भी उनका केंद्र बनकर उभर रहे हैं। इधर मध्यप्रदेश में भगवा खेमे के मंसूबे नए मुकाम तय कर रहें हैं, ताजा मामला आईएएस अधिकारी और बड़वानी के कलेक्टर अजय गंगवार का है जिन्हें फेसबुक पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तारीफ की वजह से शिवराज सरकार के कोप का सामना करना पड़ा और उनका ट्रांसफर  कर दिया गया. यही नहीं उन्हें 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फ़ेसबुक पोस्ट लाइक करने को सर्विस कोड कंडक्ट का उल्लंघन बताते हुए नोटिस भी जारी किया गया है. सिंहस्थ अभी खत्म हुआ है जोकि पूरी तरह से एक धार्मिक आयोजन था लेकिन जिस तरह से इसके आयोजन में पूरी मध्यप्रदेश सरकार शामिल रही है वे कई सवाल खड़े करते हैं, इस दौरान समरसता स्नान और वैचारिक महाकुंभ के सहारे संघ परिवार  के राजनीति को फायदा पहुचाने की कोशिश की गयी  और इसे पूरी तरह से एक सियासी अनुष्ठान बना दिया गया.

पिछले महीनों में प्रदेश के कई हिस्सों में सिलसिलेवार तरीके से साम्प्रदायिक तनाव के मामले सामने आये हैं और कुछ ऐसी परिघटनाये भी हुई है जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपना ध्यान खींचा है. फिर वह चाहे खिरकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में बीफ़ होने के शक में एक बुजर्ग मुस्लिम दंपत्ति की पिटाई का मामला हो या धार में भोजशाला विवाद का। भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने आप को नरमपंथी दिखाने का मौका ना चूकते हों लेकिन यह सब कुछ उनकी सरकार के संरक्षण में संघ परिवार के संगठनों द्वारा ही अंजाम दिया जा रहा है। इन सबके बीच एक और चौकाने वाली नई परिघटना भी सामने आई है, हिंदू महासभा के नेता द्वारा पैगम्बर के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में जिस तरह से भोपाल, इंदौर सहित जिले स्तर पर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन हुए हैं और इनमें बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं वह एक अलग और खास तरह के धुर्वीक्रण की तरफ इशारा कर रहे हैं । हालांकि अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका है कि एक साथ इतने बड़े स्तर पर हुए इन संगठित प्रदर्शनों की पीछे कोन सी ताकतें है, लेकिन इसको नजरअंदाज नहीं किया सकता है। हाल के दिनों में मध्यप्रदेश  में कुछ ऐसे कानून और पाबंदियां भी लायी गयी हैं जो नागरिकों के संवेधानिक अधिकारों का हनन करते हैं।

अल्पसंख्यकों पर हमले  
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान दावा करते हैं कि जबसे उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला है तब से मध्यप्रदेश की धरती पर एक भी दंगा भी नहीं हुआ। लेकिन गृह मंत्रालय के के हालिया आंकड़े बताते हैं कि  देश में हुई सांप्रदायिक घटनाओं में से 86 प्रतिशत घटनायें 8 राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार,उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटकऔर केरल-में हुईं हैं । 2012 और 2013 में दंगों के मामले में मप्र का तीसरा स्थान रहा है। जबकि 2014 में पांचवे स्थान पर था। पिछले चंद महीनों में घटित सबसे चर्चित मामला  मध्य प्रदेश के हरदा जिले हा है जहाँ खिरकिया रेलवे स्टेशन ट्रेन पर एक मुस्लिम दंपति के साथ इसलिएमारपीट की गयी क्‍योंकि उनके बैग में बीफ होने का शक था। मार-पीट करने वाले लोग गौरक्षा समिति के सदस्य थे जो एकतरह से दादरी दोहराने की कोशिश कर रहे थे। घटना 13 जनवरी 2016 की है,मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद किसी रिश्तेदार के के यहाँ से अपने घर हरदा लौट रहे थे इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी गयी। इस दौरान दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्‍टेशन पर आ गये और उन्हें बचाया। इस तरह से कुशीनगर एक्सप्रेस के जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते –होते रह गयी। खिरकिया में इससे पहले 19 सितम्बर 2013 को गौ हत्या के नाम पर दंगा हुआ हो चूका है जिसमें करीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और सम्पतियों को आग के हवाले कर दिया गया था , कईलोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे, बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थी। इस मामले में भी  मुख्य आरोपी गौ रक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत ही था। यह सब करने के बावजूद  सुरेन्द्र सिंह राजपूत कितना बैखौफ है इसका अंदाजा उस ऑडियो को सुन कर लगाया जा सकता है जिसमें वह हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कह रहा है कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा । इतना सब होने के बावजूद राजपूत अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है। 

दूसरी बड़ी घटना धार जिले में स्थित मनावर की  है जो अपने “बाग प्रिंट” के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है  इस साल  6 से 9 जनवरी के बीच धार में साम्प्रदायिक झडपें हुई थीं, उस दौरान बाग प्रिंट में माहिर और मशहूर 40 सदस्यों वाले खत्री परिवार पर भी हमले हुए और उनके कारखाने में  आग लगा दी गई थी। खत्री परिवार द्वारा इसकी शिकायत पुलिस में भी की गयी थी लेकिन इसपर  कोई कार्रवाई नहीं हुई, इन सब से तंग आकर यह परिवार जो बाग प्रिंट के लिए 8 नेशनल और 7 यूनेस्को अवॉर्ड जीत चुका है को यह कहना पड़ा कि उनको लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं, वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और डरे हुए हैं इसलिए अगर हालत नहीं सुधरे तो आने वाले कुछ महीनों वे देश छोड़कर अमेरिका में बसने को मजबूर हो जायेंगें । इस पूरे हंगामे को लेकर हाई कोर्ट में एक दायर जनहित याचिका भी दायर की गयी थी इस याचिका धार प्रशासन को अक्षम बताते हुए कहा गया था कि जिले में कानून व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है और प्रशासन अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासियों को सुरक्षा मुहैया कराने में असफल साबित हो रहा है, यहाँ तक कि बाग प्रिंट के जरिए विश्व में भारत को प्रसिद्धि दिलाने वाले मोहम्मद यूसुफ खत्री का परिवार भी असुरक्षित है। याचिका पर सुनवाई के बाद शासन से छह हफ्ते में जवाब देने को कहा था ।

धार में ही कमाल मौला मस्जिद-भोजशाला विवाद ने महीनों तक पूरे मालवा इलाके में सम्प्रदायिक माहौल को नाजुक बनाये ये रखा, इस साल बसंत पंचमी शुक्रवार (12 फरवरी) के दिन पड़ने का संयोग था जिसकी वजह से हिन्दुतत्ववादी संगठनों द्वारा वहां माहौल एक बार फिर गरमाने का मौका गया, पूरे मालवा क्षेत्र में उन्माद का माहौल बनाने की पूरी कोशिश की गयी , इस तनाव को बढ़ाने में संघ परिवार से जुड़े संगठनों सहित स्थानीय भाजपा नेताओं की बड़ी भूमिका देखने को मिली । दरअसल धार स्थित भोजशाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में एक ऐसा स्मारक है जिसपर हिन्दू और मुसलमान दोनों अपना दावा जताते रहे हैं, एक इसे प्राचीन स्थान वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर मानता है, तो दूसरा  इसे अपनी कमाल मौला मस्जिद बताता है। इसी वजह से एएसआई की ओर यह  व्यवस्था की गयी है कि वहां हर मंगलवार को हिन्दू समुदाय के लोग पूजा करेंगें जबकि  हर जुम्मे (शुक्रवार) को मुस्लिमों समुदाय के लोग नमाज अदा कर सकेंगें. अपनी इसी स्थिति की वजह से भोजशाला - कमाल मौला मस्जिद विवाद को अयोध्या की तरह बनाने की कोशिश की गयी हैं, इस काम में कांग्रेस और भाजपा दोनो ही पार्टियाँ शामिल रही हैं, यह काँग्रेस की दिग्विजयसिंह सरकार ही थी जिसने केंद्र में तत्कालीन अटलबिहारी सरकार से विवादित इमारत को हर मंगलवार हिन्दुओं के लिए खोलने के लिए सिफारिश की थी. इस फैसले ने एक तरह से धार को बारूद के ढेर पर बैठा दिया है ,2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद पूरे शहर में हिंसा फैली गयी थी और इस दंगे से काफी नुक्सान हुआ था इसी तरह से 2013 में भी बसंत पंचमी और शुक्रवार पड़ा था उस दौरान भी माहौल बिगड़ गया। इधर कुछ सालों से वहां बसंत पंचमी के आलावा दुसरे त्यौहारों में भी हिंदूवादी संगठनों की तरफ से उग्र प्रदर्शन किये जाते हैं जिससे वहां माहौल बिगड़ जाता है ।

इस साल धार में शुक्रवार के दिन पड़ने वाली बसंत पंचमी बिना किसी बड़ी हिंसा के बीत गयी है , प्रशासन यह कह कर अपनी पीठ थपथपा रहा है कि उसने नीति का अनुसरण करते हुए भोजशाला नमाज और पूजा करवा दी है लेकिन इससे पहले स्थानिय भाजपा नेताओं और संघ से जुड़े संगठनों द्वारा माहौल में जहर खोलने की पूरी कोशिश की गयी जिसमें वे कामयाब भी रहे । यह लोग बहुत ही उग्र तरीके से वसंत पंचमी पर पूरे दिन अखण्ड सरस्वती पूजा करने की मांग कर रहे थे इसके लिए महाराजा भोज उत्सव समिति द्वारा भाजपा  सांसद सावित्री ठाकुर के नेतृत्व में एक वाहन रैली निकाली गई, इस रैली में धार शहर के आलावा पूरे जिले से आये लोगों ने हिस्सा लिया, बताया जाता है कि धार के इतिहास में यह सब से बड़ी रैली थी जिसमें करीब १५ से २० हज़ार शामिल हुए ।  सवाल यह है कि वे कोन लोग है जो अगर बसंत पंचमी शुक्रवार एक साथ पड़ता है तो  दोनों समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न कराने के लिए कमर कस लेते हैं ? इन सब से किसे फायदा हो रहा है और ऐसा कब तक चलता रहेगा ? दरअसल हर  कोई इस मसले को सुलगाये रखना चाहता है जिससे जरूरत पड़ने पर इसे हवा दी जा सके ।

ईसाई समुदाय की बात करें तो अभी 14 जनवरी की एक घटना है जिसमें धार जिले के देहर गांव में धर्मांतरण के आरोप में एक दर्जन ईसाई समुदाय के लोगों को गिरफ्तार किया गया है गिरफ्तार किये गये लोगों में नेत्रहीन दंपति भी शामिल हैं । इन आरोपियों का कहना है कि  उन्होंने किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया है औ रउनपर यह कार्रवाई हिन्दुतत्ववादी  संगठनों के इशारे की गयी है, उनका यह भी आरोप है कि पुलिस द्वारा उनके घर में घुसकर तोड़फोड़ और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गयी है। दरअसल मध्यप्रदेश में धर्मांतरण के नाम पर ईसाई समुदायभी लगातार  निशाने पर रहा है । वर्ष 2013 में राज्यसरकार द्वारा  धर्मांतरण के खिलाफ क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्‍यादा सख़्त बना दिया गया था जिसके बाद अगर कोई नागरिक अपना मजहब बदलना चाहे तो इसके लिए उसे सबसे पहले जिला मजिस्‍ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा । इसी तरह ने नए संसोधन के बाद “जबरन धर्म परिवर्तन” पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई हैंऔर कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है। हिन्दुतत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाई समुदाय पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर प्रताड़ित किया जाता रहा है ,अब कानून में परिवर्तन के बाद से उनके लिए यह और आसन हो गया है । इन सब के खिलाफ ईसाई समुदाय के तरफ से आवाज भी उठायी जाती रही है, पिछले दिनों ही आर्कबिशप लियो कॉरनेलियो ने कहा है कि मध्‍य प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून का गलत इस्‍तेमाल हो रहा है और ईसाईयों के खिलाफ जबरन धर्मांतरण के फर्जी केस थोपे जा रहे हैं ।

जाति उत्पीड़न की जड़ें
मध्यप्रदेश में सामंतवाद और जाति उत्पीड़न की जड़ें बहुत गहरी रही हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के हालिया आकड़ों पर नजर डालें तो 2013 और 2014 के दौरान मध्यप्रदेश दलित उत्पीड़न के दर्ज किये गए मामलों में चौथे स्थान पर था. लेकिन ये तो महज दर्ज मामले हैं. गैरसरकारी संगठन “सामाजिक न्याय एवं समानता केन्द्र” द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रदेश में दलित उत्पीड़न के कुल मामलों में से 65 प्रतिशत मामलों के एफ.आई.आर ही नहीं दर्ज हो पाते हैं. चाय की दुकानदार द्वारा चाय देने से पहले जाति पूछना और खुद को दलित बताने पर चाय देने से मना कर देना या अलग गिलास में चाय देना, नाई द्वारा बाल काटने से मना कर देना, अनुसूचित जाति , जनजाति से सम्बन्ध रखने वाले पंच/सरपंच को मारना पीटना,शादी में घोड़े पर बैठने पर रास्ता रोकना और मारपीट करना, मरे हुए मवेशियों को जबरदस्ती उठाने को मजबूर करना, मना करने पर सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देना, सावर्जनिक नल से पानी भरने पर रोक लगा देना और स्कूलों में बच्चों के साथ भेदभाव जैसी घटनाऐं अभी भी यहां के अनुसूचित जाति के लोगों के आम बनी हुई हैं।  साल 2014 में गैर-सरकारी संगठन “दलित अधिकार अभियान” द्वारा जारी रिपोर्ट “जीने के अधिकार पर काबिज छुआछूत” से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश में भेदभाव की जडें कितनी गहरी हैं. मध्यप्रदेश के 10 जिलों के 30 गांवों में किये गये सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि इन सभी गावों में लगभग सत्तर प्रकार के छुआछूत का प्रचलन है और भेदभाव के कारण लगभग 31 प्रतिशत दलित बच्चे स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं. इसी तरह से अध्यन किये गये स्कूलों में 92 फीसदी दलित बच्चे खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप ओर टंकी छूने की मनाही है जबकि 93 फीसदी अनुसूचित जाति के बच्चों को आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है,42 फीसदी बच्चों को  शिक्षक जातिसूचक नामों से पुकारते हैं,44 फीसदी बच्चों के साथ गैर दलित बच्चे भेदभाव करते हैं,82 फीसदी बच्चों को मध्यान्ह भोजन के दौरान अलग लाइन में बिठाया जाता है. हालिया चर्चित घटनाओं पर नजर डालें तो बीते 3 अप्रैल को मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित दुदलाई गांव में 13 साल के एक दलित बच्चे को इसलिए बुरी तरह से पीटा गया क्योंकि उसने तथाकथित ऊँची जाति के एक किसान के ट्यूबवेल से पानी पी लिया था, वहां फैक्ट फाइंडिंग के लिए गयी एक जांच दल के अनुसार बच्चे को इतना मारा गया कि उसके एक हाथ की हड्डी टूट गई.यही नहीं परिवार वाले जब इसकी रिपोर्ट लिखवाने गए तो थाने में उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी. कुछ दिनों बाद जब इस घटना की खबर अखबारों में छपी तब जाकर रिपोर्ट दर्ज हो हुई लेकिन इसके बाद दबंगों द्वारा गावं में रहने वाले अनुसूचित जाति के करीब 100 परिवारों  का बहिष्कार कर दिया गया. इस गावं के सरकारी स्कूल केवल अनुसूचित जाति के बच्चे ही पढ़ते हैं तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने सरकारी स्कूल का बहिष्कार कर अपने बच्चों के लिए प्रायवेट स्कूल खोल लिया है. इसी तरह से दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी, दरअसल जब बच्चे को  स्कूल के हैंडपंप से पानी लेने से रोका गया तो वह पास ही के एक कुएं पर पानी लेने चला गया जहां संतुलन बिगड़ने की वजह से कुएं में गिरकर उसकी मौत हो गई. पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में शिवपुरी जिले के कुंअरपुर गांव में एक दलित महिला अपने गांव की उप सरपंच चुनी गई थीं, जिन्हें गांव के सरपंच और कुछ दबंगों ने मिलकर उनके साथ मारपीट की और उनके मुंह में गोबर भर दिया. अनुसूचित जाति के लोग जब सदियों से चली आ रही अपमानजनक काम को जारी नहीं रखने का फैसला करते हैं तो उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाता है इसी तरह की एक घटना 2009 की है जब अहिरवार समुदाय के लोगों ने  सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया कि वे मरे हुए मवेशी नहीं उठायेंगें, क्योंकि इसकी वजह से उनके साथ छुआछूत व भेदभाव का बर्ताव किया जाता है. इसके जवाब में गाडरवारा तहसील के करीब आधा दर्जन गावों में दबंगों ने पूरे अहिरवार समुदाय पर सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया उनके साथ मार-पीट की गयी और उनके सार्वजनिक स्थलों के उपयोग जैसे सार्वजनिक नल, किराना की दुकान से सामान खरीदने, आटा चक्की से अनाज पिसाने, शौचालय जाने के रास्ते और अन्य दूसरी सुविधाओं के उपयोग पर जबर्दस्ती रोक लगा दी गई थी. उनके दहशत से कई परिवार गाँव छोड़ कर पलायन कर गये थे इसके बाद से उस क्षेत्र में लगातार इस तरह की घटनायें होती रही हैं. पिछले साल जून में भी इसी तरह की घटना हो चुकी है. तमाम प्रयासों के बावजूद इसे रोकने के लिये प्रसाशन की तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

उत्पीड़न और भेदभाव की उपरोक्त घटनायें बहुत आम हैं लेकिन अब समुदाय में  चेतना बढ़ रही है और उनकी तरफ से इसकी सावर्जनिक अभिव्यक्ति भी हो रही है. लेकिन इधर दलित,अम्बेडकरवादी संघटनों द्वारा आयोजित सावर्जनिक कार्यक्रमों पर भी हमले की घटनायें सामने आ रही हैं. इसी साल फरवरी में ग्वालियर की एक घटना है जहाँ अंबेडकर विचार मंच द्वारा 'बाबा साहेब के सपनों का भारत” विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें जेएनयू के प्रो.विवेक कुमार भाषण देने के लिए आमंत्रित किये गये थे. इस कार्यक्रम में भाजयुमो, बजरंग दल, विहिप व एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने अंदर घुस कर हंगामा किया. इस दौरान  दौरान पथराव हुए और गोली भी चलायी गयी, इन सब में कई लोग  चोटिल हुए. आयोजकों का कहना है कि यह संगठन पहले से ही तैयारी कर रहे थे और सुबह से ही वे कार्यक्रम स्थल के आसपास जुटना शुरू हो गये थे.  इसी तरह की एक और घटना झाँसी की है जहाँ 31 जनवरी 2016 को बहुजन संघर्ष दल द्वारा रोहित वेंगुला को लेकर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था. इस सभा में  बहुजन संघर्ष दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व विधायक फूल सिंह बरैया ने जब यह कहा कि 1857 के संघर्ष का पूरा श्रेय अकेले रानी लक्ष्मीबाई को देकर उन्हें ही महिमामंडित किया जाता है जबकि झलकारी बाई को भी इसका श्रेय मिलना चाहिए. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इसे रानी झांसी का अपमान बताते हुए सभा पर हमला बोल दिया और सभा स्थल पर तोड़फोड़, मारपीट  की गयी और जमकर उपद्रव मचाया गया. ज्ञात हो जिन झलकारी बाई का जिक्र फूल सिंह बरैया कर रहे थे वे एक गरीब  कोली परिवार से थीं जो बाद में रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना की महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति बनीं.बताया जाता है कि वे रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं और दुश्मनों  धोखा देने के लिए वे रानी के वेष में भी युद्ध पर जाती थीं.रानी के वेश में युद्ध करते हुए ही वे अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं थीं उनकी वजह से रानी को किले से भाग निकलने का मौका मिला था. झलकारी बाई के बहादुरी की कहानी  आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनाई पड़ते हैं. 

2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में 15.6 प्रतिशत दलित आबादी है  इसके बावजूद राजनीति में वे ताकत नहीं बन पाए हैं. उत्तर प्रदेश की तरह यहाँ बहुजन समाज पार्टी अपना प्रभाव नहीं जमा पायी. आज भी सूबे पूरी राजनीति कांग्रेस और भाजपा के बीच सिमटी है. इन दोनों पार्टियों ने प्रदेश के दलित और  आदिवासी समुदाय में कभी राजनीतिक नेतृत्व उभरने ही नहीं दिया और अगर कुछ उभरे भी तो उन्हें आत्मसात कर लिया. एक समय फूल सिंह बरैया जरूर अपनी पहचान बना रहे थे लेकिन उनका प्रभाव लगातार कम हुआ है. ओबीसी समुदायों की भी कमोबेश यही स्थिति है यहाँ से सुभाष यादव, शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती जैसे नेता निकले जरूर. चौहान व भारती जैसे नेता सूबे की राजनीति में शीर्ष पर भी पहुचे हैं लेकिन यूपी और बिहार की तरह उनके उभार से पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण है .इस तरह से प्रदेश में आदिवासी, दलित और ओबीसी की बड़ी आबादी होने के बावजूद यहां की  राजनीति पर पर इन समुदायों का कोई ख़ास प्रभाव देखने को नहीं मिलता है. यही वजह है कि जाति उत्पीड़न की तमाम घटनाओं के बावजूद ये राजनीति के लिए कोई मुद्दा नहीं बन पाती हैं. 

काला कानून और बंदिशें
मध्यप्रदेश  में कुछ ऐसे कानून और पाबंदियां लगायी गयी हैं जो नागरिकों के संवेधानिक अधिकारों का हनन करते हैं.पिछले साल जब व्यापम की वजह से मध्य प्रदेश की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही थी तो उस दौरान शिवराज सरकार द्वारा एक ऐसा विधेयक पास कराया गया जो  कोर्ट में याचिका लगाने पर बंदिशें लगाती है, इस विधयेक का नाम है “‘तंग करने वाला मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015”( Madhya Pradesh Vexatious Litigation (Prevention) Bill, 2015). मध्यप्रदेश सरकार ने इस विधेयक को विधानसभा में  बिना किसी बहस के ही पारित करवाया लिया था  और इसे कानून का रूप देने के लिए तुरत-फुरत अधिसूचना भी जारी की गई, अदालत का समय बचाने और फिजूल की याचिकाएं दायर होने के नाम पर लाया गया यह एक ऐसा कानून है जिसे विपक्षी दल और सामाजिक कार्यकर्ता संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ मानते हुए इसे  नागरिकों के जनहित याचिका लगाने के अधिकार को नियंत्रित करने वाला ऐसा कानून बताया  है जिसका मकसद सत्ताधारी नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार और गैरकानूनी कार्यों के खिलाफ नागरिको को कोर्ट जाने से रोकना है. उनका कहना है कि इस कानून के माध्यम से सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वह ऐसे लोगों को नियंत्रित करे जो जनहित में न्यायपालिका के सामने बार-बार याचिका लगाते हैं. प्रदेश के वकीलों  और संविधान  के जानकारों ने सरकार के इस कदम को तानाशाही करार दिया है. इस कानून के अनुसार अब न्यायपालिका राज्य सरकार के महाधिवक्ता के द्वारा दी गई राय के आधार पर तय करेगी कि किसी व्यक्ति को जनहित याचिका या अन्य मामले लगाने का अधिकार है या नहीं. यदि यह पाया जाता है कि कोई व्यक्ति बार-बार इस तरह की जनहित याचिका लगाता है तो उसकी इस प्रवृत्ति पर प्रतिबंध लगाया जा सकेगा। एक बार न्यायपालिका ने ऐसा प्रतिबंध लगा दिया तो उसे उस निर्णय के विरूद्ध अपील करने का अधिकार भी नहीं होगा. न्यायालय में मामला दायर करने के लिए पक्षकार को यह साबित करना अनिवार्य होगा कि उसने यह प्रकरण तंग या परेशान करने की भावना से नहीं लगाया है और उसके पास इस मामले से संबंधित पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं. 

मध्यप्रदेश में लोकतान्त्रिक ढंग से होने वाले प्रदर्शनों पर भी रोक लगाने की कोशिशें हो रही हैं  राजधानी भोपाल में धरनास्थल की जगह निश्चित कर दी गयी है और अब धरना बंद पार्कों में ही किया जा सकता है, पूरे प्रदेश में जलूस निकालने, धरना देने, प्रदर्शन , आमसभाएं में भांति भांति की अड़चने पैदा करने को कोशिश की जा रही हैं,  इस तरह की एक घटना  सिंगरौली की है जहाँ बीते 18 जनवरी को माकपा के जिला सचिव द्वारा जब सूखा राहत में गड़बड़ी, बिजली बिलों की जबरिया वसूली, एक उद्योग के लिए जमीन अधिग्रहित करने के मामले में किये गए फर्जीवाड़े जैसे  विषयों को लेकर जिलाधीश कार्यालय पर प्रदर्शन करके ज्ञापन सौंपने की सूचना के साथ धीमी आवाज में लाउड स्पीकर के उपयोग की अनुमति माँगी गयी  तो इसके जवाब में कलेक्टर ने उन्हें सीआरपीसी की धारा 133 के अंतर्गत कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया । इसमें नोटिस में कलेक्टर द्वारा प्रदर्शन, से कार्यालयीन कार्यों तथा जनता के जीवन में “न्यूसेंस” उत्पन्न होने की आशंका जताकर माकपा नेता को  को 14 जनवरी के दिन अदालत में हाजिर को आदेश दे दिया और उपस्थित न होने की स्थिति में एकपक्षीय कार्यवाही की चेतावनी भी दी गयी . इसी तरह की एक और घटना ग्वालियर की है जहाँ माकपा जिलासचिव ने जब धरना  के लिए अनुमति माँगा तो कलेक्टर ने उनके सामने कुछ शर्तों की सूची पेश कर दी जिसमें   प्रदर्शन में  शामिल होने वालों की संख्या, उनमे हर 10 या 20 भागीदारों के ऊपर एक वालंटियर का नाम और मोबाइल नंबर, वे जिन जिन गाँवों से या बस्तियों से आएंगे उनके थानों में पूर्व सूचना, लगाए जाने वाले नारों की सूची पहले से दिए जाने जैसे प्रावधान तक शामिल हैं ।उपरोक्त दोनों घटनाओं में यह बर्ताब एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी के साथ हुआ है ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि प्रदेश में अन्य संगठनो, नागरिकों से कैसा बर्ताब किया जाता होगा.  मध्यप्रदेश में दलितों , आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर हमलों और उनकी आवाज दबाने का दायरा बढ़ा है ,विरोध एवं असहमति दर्ज कराने के रास्ते बंद किये जा रहे हैं और संविधान के बुनियादी अधिकारों को कानून व प्रशासनिक आदेशों के जरिये छीना जा रहा है ।यह सब कुछ बहुत व्यवस्थित और संस्थागत तरीके से हो रहा है.



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जावेद अनीस 
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अब्दुल कलाम जन्मदिन के मौके पर दिव्यांग समारोह का आयोजन

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भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम (भारत के पूर्व राष्ट्रपति) के सपने को साकार करते हुए रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के रोट्रक्टर्स ने विजन स्पेशल स्कूल विजन दिव्यांग फाउंडेशन के सहयोग से विजन दिव्यांग समारोह का तालकटोरा स्टेडियम में आयोजन हुआ। कार्यक्रम में सांसद मीनाक्षी लेखी,तरुण विजय,श्याम जाजू, अभिनेता बोमन ईरानी, वृन्दावन के पुण्डरीक गोस्वामी और विजन दिव्यांग फाउंडेशन के अध्यक्ष मुकेश गुप्ता उपस्थित थे। मुकेश गुप्ता ने कहा कि ‘मैं माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोढ़ी जी का हमेशा आभारी रहूँगा जो  अद्वितीय शक्ति भगवान ने इन अद्वितीय लोगों को दी हैं को समझा और इसे एक उच्चित दिवांग नाम  दिया।“उन्होंने और कहा कि,”कलाम जी हमेशा से बच्चों की प्रेरणा रहे हैं और हमने  इस कार्यक्रम का आयोजन कलाम जी के जन्म दिन के उपलक्ष्य मैं किया हैं वह हम सभी को हमेशा  प्रेरणा देते रहेंगे।“

श्री बोमन ईरानी ने भी सभी को संबोधित करते हुए कहा की,ष् मैं श्री मुकेश गुप्ता जी का बहुत आभारी रहूँगा जिन्होंने मुझे इस कार्यक्रम में आमांत्रित किया। मैं इस कार्यक्रम का भाग बनकर बहुत खुशी महसूस कर रहा हूँ ।बचपन में 6वी कक्षा तक मैं डिसलीक्सिया की वजह से किसी से बात नहीं कर पता था। “ उन्होंने कलाम जी की प्रशंसा करते हुए कही कि,”हमारे पूर्व राष्ट्रपति कलाम जी एक बहुत अच्छे मुनष्य थे ।हम सब मैं भी कही न कही कलाम जी मौजूद हैं बस हमे उन्हे पहचानने की जरूरत हैं। मैं यहाँ पर सभी उपस्थित लोगो को जादू की जहप्पी  देना चाहता हूँ। इस कार्यक्रम में दिव्यांग स्कूल के तकरीबिन 300  बच्चों ने भाग लिया इसमे बच्चों ने ष् विकलांगता गानष् गाया और उसके अलावा बच्चों द्वारा नाटक, संगीत, शार्ट स्क्रिप्ट को प्रस्तुत किया गया।इस कार्यक्रम के आयोजन का उदेश्य था विजन दिव्यांग फाउंडेशन के सहयोग द्वारा , राष्ट्रीय स्तर पर गैर सरकारी संगठनों ध् हितधारकों के एक नेटवर्क बनाना जिनका उदेश्य विकलांगता के क्षेत्र में एकजुट होकर काम करना और पता है कि कैसे, परामर्श आदि को दूसरों में बांटना। इस कार्यक्रम में  प्रख्यात हस्तियां, माननीय मंत्रीगन , संसद सदस्य, कई स्कूल , संस्थान,  कॉलेज, गैर सरकारी संगठन,  विकलांगता के क्षेत्र में सेवा धारक वहाँ पर उपस्थित थे और उन्होंने अपने  विचारों को लोगों, माता पिता और बच्चों के अन्य हितधारकों तक पहुंचाया । इस अवसर पर जाने माने व्यक्तियों के  संदेशों की एक  स्मारिका भी जारी की गयी। इस कार्यक्रम में कई हजार लोग उपस्थित हुए।

विजन स्पेशल स्कूल  दिल्ली ध् एनसीआर में अपने विशेष स्कूलों को चलाने के अतिरिक्त, यह विशेष बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए व्यक्तियों को प्रशिक्षण भी देता है। इसे डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा विशेष दौरे का गौरव युक्त सम्मान भी प्राप्त है।जिसमें महामहिम  ने विजन विशेष स्कूलों द्वारा श्विकलांगता गानश् की अवधारणा का विमोचन किया था। विजन दिव्यांग का उद्देश्य , विभिन्न विकलांगताओं के प्रति समुदाय को संवेदनशील करना, समावेशी सोसायटी को बढ़ावा देना, समुदाय द्वारा विकलांग व्यक्तियों के लिए बाधा मुक्त वातावरण बनाने के लिए प्रतिज्ञा करना और उनके बीच खेल को बढ़ावा देना हैं।

साक्षात्कार : अजय देवगन एक मंझे निर्देशक हैं: साएशा सहगल

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अभिनेता सुमित सहगल की बेटी साएशा सहगल अभिनीत फिल्म ‘शिवाय’ रीलिज की तैयारी में हैं। आएशा को इस फिल्म से काफी उम्मीदें है। इस फिल्म के अलावा भी,साएशा के पास कई फिल्मों के आफर हैं,लेकिन उनका टारगेट सिर्फ फिल्म ‘शिवाय’ही हैं। इस फिल्म के बारे में उनकी राय क्या है,और वह अभिनेता निर्देशक अजय देवगण को लेकर क्या सोचती है,जानते है,उनकी ही जुबानीं।

खबरें थी की सलमान खान आपको लांच करने वाले थे ?
नहीं, वो कभी मुझे लांच नहीं करने वाले थे। सलमान सर बेहतरीन इंसान हैं, मुझे कभी जरूरत पड़ती है तो मैं उनकी सलाह लेती हूँ. कभी मौका हुआ तो उनके साथ जरूर फिल्म करना चाहूंगी। 

अजय देवगन के साथ काम शुरू करना आसान था या मुश्किल ?
मुश्किल तो नहीं था क्योंकि मैंने इसके लिए ऑडिशन दिए थे। लेकिन अगर आप फिल्मी खानदान से होते हैं तो आपका फिल्ममेकर्स के साथ मीटिंग करना आसान हो जाता है। वैसे फिल्म तभी मिलती है जब आपका काम सही हो। 

फिल्म में अपने किरदार के बारे में बताये ?
यह एक वेस्टर्न और यंग टाइप का किरदार है। भारतीय का है,जो बुल्गारिया में काम करती है। यह किरदार अजय देवगन के साथ साथ चलता है।

बतौर डायरेक्टर अजय देवगण के साथ काम करने का अनुभव कैसा ?
अजय जी, के साथ काम करने का एक अलग और अच्छा ही अनुभव रहा हैं। उन्हें ये पता है की डायरेक्टर के रूप में उन्हें क्या चाहिए। टेक्निकल तरीके से भी वो बेहतरीन हैं। हम 6 कैमरा के साथ शूटिंग कर रहे थे और आपको पता है जब उनका शॉट नहीं होता था तो वो भी एक कैमरे को खुद भी ऑपरेट किया करते थे। वो एक एक्टर हैं तो उन्हें पता है की आखिरकार उन्हें एक शॉट में क्या चाहिए। यह बहुत बड़ी फिल्म थी। मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है.

क्या आपकी अजय देवगन के साथ तीन फिल्मों की डील है ?
नहीं, उन्होंने ऐसी कोई भी बंदिश नहीं रखी है, लेकिन अगर वो कहेंगे तो मैं उनके साथ दस फिल्मों में भी काम कर सकती हूँ. वो मेरे परिवार जैसे हैं।

क्या फिल्म में एक्शन भी करती हुई भी नजर आएँगी ?
नहीं, सबसे ज्यादा एक्शन तो अजय सर के हैं, फिर कहीं कहीं शायद मैं उस अवतार में दिखूंगी। फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ भी आपके सामने रिलीज होने वाली है।

आप एक्टर ही बनना चाहती थी ?
जी हाँ, बचपन से एक्टर बनने की चाह थी , उसी की तरफ फोकस था. जब मैं 9 साल की थी तभी मेरी डांस ट्रेनिंग शुरू हो गयी थी।

आपको अपनी माँ ‘शाहीन’ की कौन सी फिल्में पसंद हैं ?
हाँ, मुझे ‘आई मिलन की रात’ काफी पसंद है। फिल्म का गीत संगीत काफी लुभावना है। 

आपकी मम्मी ‘शाहीन’ काफी चुन चुन कर फिल्में किया करती थी ? 
हाँ? उनकी शादी काफी जल्दी हो गयी थी। लेकिन उन्हें इस बात का कभी भी दुःख नहीं हुआ।

तो आपका भी जल्दी शादी करने का विचार है ?
नहीं, बिल्कुल नहीं, मुझे करियर में बड़ा कुछ करना है , पूरा फोकस अभी वहीं हैं। फिर बाद में शादी का सोचेंगे।

आप किसी को डेट नहीं कर रही ?
नहीं, बिल्कुल नहीं, इतना समय किसके पास है ? मैं अभी काफी यंग हूँ.

अपने फादर सुमित सहगल की फिल्में आपने देखी हैं ?
हाँ, मुझे ‘न्याय अन्याय’ काफी पसंद है। इंसानियत के दुश्मन, सौदा जैसी फिल्में हैं। हम काफी क्लोज हैं। मेरे पेरेंट्स कहते हैं की हार्डवर्क करो बाकी किस्मत पर छोड़ दो।

 आपकी अन्य फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ भी आपके सामने रिलीज होने वाली हैं?
देखिये मुझे ज्यादा नहीं पता, दोनों फिल्में अलग हैं, दोनों को लोग देखने जाएंगे। मुझे उनका ट्रेलर अच्छा लगा। मैं बस चाहती हूँ की अगर लोग मेरी फिल्म देखें तो मुझे पसंद करें.

इन दिनों कौन सी फिल्म कर रही हैं ?
मैं साउथ की तमिल फिल्म कर रही हूँ।

आपने दिलीप कुमार और सायरा बानो से क्या सीख ?
मैं उन्हें फूंफोनाना कहती हूँ. मुझे दिलीप साब हमेशा कहते थे की जब भी वो सेट पर जाते थे , उसके पहले स्क्रिप्ट में हर एक बात को मार्क कर लेते थे। तभी सेट पर जाते थे। उनकी उर्दू काफी अच्छी है, उनसे मैंने कई सारे उर्दू के शब्द सीखे हैं।

आपके पसन्दीदा एक्टर्स कौन हैं ?
मेराल स्ट्रीम मुझे पसंद हैं, और बचपन से मुझे रित्विक रोशन पसंद हैं, सलमान सर भी मुझे पसंद हैं।
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