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मानव श्रृंखला से नशामुक्ति के पक्ष में पूरी दुनिया में जायेगा संदेश : नीतीश

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बांका 19 जनवरी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज कहा कि शराबबंदी और नशामुक्ति के लिये लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य 21 जनवरी को प्रस्तावित मानव श्रृंखला से नशामुक्ति के पक्ष में पूरी दुनिया में संदेश जायेगा। श्री कुमार ने यहां आर0एम0के0 स्कूल मैदान में चेतना सभा को संबोधित करते हुये कहा, “ शराबबंदी और नशामुक्ति के लिये 21 जनवरी को बिहार में बनने वाली मानव श्रृंखला में लगभग दो करोड़ लोग 12.15 बजे अपराह्न से 01.00 बजे अपराह्न तक एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खड़े होंगे जिससे शराबबंदी एवं नशामुक्ति के पक्ष में पूरी दुनिया में बड़ा संदेश जायेगा। मानव श्रृंखला की तस्वीर प्लेन, हेलीकॉप्टर एवं ड्रोन के साथ ही उपग्रह से भी ली जायेगी, इससे बिहार की छवि में निखार आयेगा।” मुख्यमंत्री ने कहा कि मानव श्रृंखला से शराबबंदी एवं नशामुक्ति के लिये बिहार की एकजुटता प्रदर्शित होगी और जो बड़ी ताकत बनेगी। उन्होंने कहा कि समाज में सद्भाव, भाईचारा एवं मुहब्बत रहेगा तो समाज आगे बढ़ेगा। समाज आगे बढ़ेगा तो कोई ताकत बिहार को आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती ।बिहार अपने पुराने गौरवशाली अतीत को प्राप्त करने में सफल होगा। 

श्री कुमार ने कहा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि शराबबंदी से सरकार का पांच हजार करोड़ रूपये का राजस्व का नुकसान हुआ है लेकिन सरकार इसे नुकसान नहीं मानती है। इससे बिहारवासियों का दस हजार करोड़ रूपये बच रहा है। उन्होंने कहा कि शराबबंदी के बाद दूध की बिक्री, मिठाई की बिक्री और सिले-सिलाये कपड़ों की बिक्री बढ़ी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि शराबबंदी से अब लोग परिवार का भरण पोषण अच्छे ढ़ंग से कर रहे हैं और अपने घर की आवश्यताओं को बेहतर ढ़ंग से पूरा कर रहे हैं। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि शराबबंदी के बाद राज्य में अपराध में कमी आयी है। अप्रैल 2015 से दिसम्बर 2015 और अप्रैल 2016 से दिसम्बर 2016 तक के आंकड़ों को देखें तो हत्या एवं डकैती में 23 प्रतिशत, लूट में 19 प्रतिशत, फिरौती के लिए अपहरण में 42 प्रतिशत, भीषण दंगा में 33 प्रतिशत और सड़क दुर्घटना में 19 प्रतिशत की कमी आयी है। श्री कुमार ने सरकार के सात निश्चय की चर्चा करते हुए कहा कि राज्य में महागठबंधन सरकार बनने के बाद के साझा कार्यक्रम में इसे शामिल किया गया था। सरकार बनने के बाद सात निश्चय के कार्यक्रमों को लागू करने के लिये योजनायें बनायी गयी। सात निश्चय को सरकारी कार्यक्रम के रूप में स्वीकार किया गया। सात निश्चय योजना को किस प्रकार लागू करना है, इस संदर्भ में विभिन्न पहलुओं पर गहन चिंतन कर योजनाओं का सूत्रण किया गया है। 

श्री कुमार ने कहा कि सात निश्चय में से एक निश्चय को पूरे तौर पर लागू भी कर दिया गया है। यह निश्चय महिलाओं को सभी सरकारी सेवाओं में 35 प्रतिशत आरक्षण देने का था जिसे सरकार बनने के दो महीने के अंदर पूरी तरह लागू कर दिया गया। उन्होंने कहा कि बिहार ऐसा पहला राज्य है, जहां पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण दिया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन तीन निश्चयों के अलावा चार अन्य निश्चय सभी के लिये है। राज्य के गांव हो या शहर, हर वर्ग के लोगों को इसका लाभ मिलना है। इसके तहत हर घर नल का जल, हर घर शौचालय, हर घर बिजली, हर गांव में पक्की गली-नाली का निर्माण होना है। उन्होंने कहा कि सरकार का निश्चय है कि चार साल के अंदर हर घर नल का जल, हर गांव में पक्की गली-नाली का निर्माण करा देंगे। सभा को जल संसाधन तथा योजना एवं विकास मंत्री सह भागलपुर एवं बांका जिले के प्रभारी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, विकास आयुक्त शिशिर सिन्हा, अपर पुलिस महानिदेशक सुनील कुमार ने भी संबोधित किया। 

विशेष : दुनिया बदल रही है और वतन ट्रंप के हवाले। बेहद खुश हैं वतन के रखवाले।

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कल दुनिया डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में होगी।कल्कि अवतार कम थे।अब सोने पर सुहागा।20 जनवरी को बराक ओबामा की जगह राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही मैडम तुसाद म्यूजियम में डॉनल्ड ट्रंप ने ओबामा की जगह ले ली है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मोम की प्रतिमा का लंदन के मैडम तुसाद म्यूजियम में अनावरण किया गया। इस प्रतिमा में धूप में टैन हुई उनकी त्वचा और खास तरह से संवारे गए उनके बालों का दिखाया गया है। म्यूजियम के ट्विटर पर साझा की गई जानकारी के मुताबिक इस प्रतिमा को 20 आर्टिस्ट्स ने छह महीने में बनाया है। लगभग सवा करोड़ की लागत से बनी ट्रंप की प्रतिमा ने गहरे नीले रंग का सूट, सफेद शर्ट और लाल टाई पहनी है। बहरहाल एजंडे के मुताबिक दस लाख टके के सूट से बहुत मैचिंग है यह मोम की प्रतिमा।ढर यही है कि अमेरिका में गृहयुद्ध और बाकी दुनिया में जो युद्ध घनघोर है और जिसमें फिर अमेरिका और इजराइल के साथ भारत पार्टनर है,दिशा दिशा में सुलगते ज्वालामुखियों की आग में दुनिया अगर बदल रही है तो दुनिया किसहद तक कितनी बदलेगी,क्या भगवा झंडा व्हाइट हाउस पर भी लहरायेगा और सर्वव्यापी इस भीषण आग में मोम की यह प्रतिमा कितनी सही सलामत रहेगी। सूट भी मैचिंग और मंकी बातों का अंदाज भी वही।अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी सनसनीखेज घोषणाओं और आलोचना को लेकर टि्वटर पर छाए रहते हैं, हालांकि उनका यह कहना है कि उन्हें ट्वीट करना बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन बेईमान मीडिया के खिलाफ अपने बचाव में यह करना पड़ता है। ट्रंप ने समाचार चैनल फॉक्स न्यूज से कहा कि देखिए, मुझे ट्वीट करना पसंद नहीं। मेरा पास दूसरी चीजें हैं जो मैं कर सकता हूं। परंतु मैं देखता हूं कि बहुत ही बेईमान मीडिया है, बहुत बेईमान प्रेस है। ऐसे में यही मेरे पास यही एक रास्ता है जिससे मैं जवाब दे सकता हूं। जब लोग मेरे बारे में गलत बयानी करते हैं तो मैं इस जवाब दे पाता हूं। 

खेती और किसान मजदूर कर्मचारी तबाह हैं।रोजगार आजीविका खत्म हैं।कारोबार,उद्योग धंधे भी मेकिंग इन इंडिया से लेकर नोटबंदी और डिजिटल कैशलैस इंडिया हवा हवाई है।तबाही के दिन शुरु हो गये और न जाने सुनहले दिन कब आयेंगे।अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप 20 जनवरी को शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह का थीम "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन"है।इतिहास का यह पुनरूत्थान नस्ली सत्ता की चाबी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी निवेशकों को रिझाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं लेकिन कारोबार में जोखिम पर रिपोर्ट तैयार करने वाली एक एंजेंसी क्रॉल का मानना है कि भारत में अभी भी बिजनेस में फर्जीवाड़ा काफी ज्यादा है। हालांकि इस साल हालात पहले से बेहतर हुए हैं। एक सर्वे के मुताबिक करीब 100 में 68 फीसदी निवेशकों ने माना है कि उनके साथ फर्जीवाड़ा हुआ है जबकि 73 फीसदी लोगों के साथ साइबर हैकिंग हुई है। हालात हमारे नियंत्रण से बाहर है।भारतीय रिजर्व बैंक के साथ भारतीय बैंकिंग का जो दिवालिया हाल है,बजट में भी कालाधन का राजकाज मजबूत होना है और नस्ली नरसंहार का सिलसिला थमने वाला नहीं है।बीमा का विनिवेश तय है।रेलवे का निजीकरण तेज है और रक्षा आंतरिक सुरक्षा विदेशी कंपनियों और विदेशी हितों के हवाले है।यही संघ परिवार का रामराज्य है औऱ उनका राम अब डोनाल्ड ट्रंप हैं।कल जिनके हवाले दुनिया है। रोहित वेमुला की बरसी पर उसकी मां की गिरफ्तारी भीम ऐप और नोट पर गांधी के बदले बाबासाहेब का सच है।संविधान के बदले मनुस्मृतिविधान है। संघ एजंडा में बाबासाहेब का वही स्थान है जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप के कुक्लाक्सक्लान का नया अश्वेत सौंदर्यबोध का सत्ता रसायन  है।पहले ही वे जूनियर मार्टिन लूथर किंग से मुलाकात करके भारत में अंबेडकर मिशन की तर्ज पर मार्टिन लूथर किंग के सपने को जिंदा ऱकने का वादा किया है और नस्ली नरसंहार के खिलाफ निर्मायक जीत हासिल करने वाले अब्राहम लिंकन की विरासत पर दावा ठोंक दिया है जो काम हमारे कल्कि अवतार का भीम ऐप है और जयभीम का विष्णुपद अवतार है और तथागत का तिरोधान परानिर्वाण है। गौर करें, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप शुक्रवार (20 जनवरी) को 2 बाइबल का इस्तेमाल करते हुए शपथ ग्रहण करेंगे, जिनमें एक बाइबल वह होगी, जिसका इस्तेमाल अब्राहम लिंकन ने अपने पहले शपथ ग्रहण में किया था, जबकि दूसरी बाइबिल ट्रंप के बचपन के समय की है। यह बाइबिल 12 जून 1955 को उनकी मां ने उन्हें भेंट की थी। अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ट्रंप को शपथ दिलाएंगे। 'प्रेसिडेंसियल इनैग्रेशन कमेटी (पीआईसी) ने शपथ ग्रहण कार्यक्रम के ब्यौरे का एलान किया। पीआईसी प्रमुख टॉम बराक ने कहा, 'अपने शपथग्रहण संबोधन में राष्ट्रपति लिंकन ने कुदरत के खास फरिश्तों से अपील की थी।

उत्तराखंड में एनडी तिवारी और यशपाल आर्य की संघ से नत्थी हो जाने पर पहाड़ों का क्या होना है,यह सोचकर दहल गया हूं तो यूपी में भी नोटबंदी के करिश्मे के बीच मूसलपर्व के अवसान बाद आखिरकार चुनाव नतीजे में जनादेश का ऊंट करवट बदलने के लिए कितना स्वतंत्र है,यह फिलहाल अबूझ पहेली है।पंजाब में भी संघी अकाली सत्यानाश का सिलसिला खत्म होते नजर नहीं आ रहा है। ग्लोबल हालात के साथ साथ भारत में भी नस्ली कुक्लाक्स क्लान केसरिया है।ओबामा केयर (स्वास्थ्य सेवा से संबंधित कार्यक्रम) को रद्द करने की ट्रंप की धमकी से वैसे दो करोड़ अमेरिकियों को सदमा लगा है, जो उससे लाभान्वित हो रहे हैं। उनका मंत्रिमंडल सफल अरबपति व्यावसायियों और वाल स्ट्रीट अधिकारियों के एक क्लब की तरह लगता है, जिनकी संयुक्त संपत्ति 12 अरब अमेरिकी डॉलर है! भारत में मीडिया एक दामाद के कथित कारनामों का राग अलापता रहता है, लेकिन अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति को इस संदर्भ में किसी तरह की नैतिक दुविधा का कष्ट नहीं भुगतना पड़ रहा । उन्होंने अपने दामाद जारेड कशनर को अपना वरिष्ठ सलाहकार नामित किया है.हालात का मिलान करके आजमा लीजिये कि युगलबंदी का नजारा जलवा क्या है।हमारे यहं नोटबंदी है तो वहां ओबामा केयर बंद है। आज सुबह नींद खुलते ही टीवी स्क्रीन पर लावारिश किताबों और स्कूल बैग के बीच बच्चों की लाशों के सच का सामना करना पड़ा है।एटा की दुर्घटना में स्कूली बच्चों की लाशों की गिनती से कलेजा कांप गया है और रोज तड़के बच्चों को नींद से जगाकर स्कूल भेजने वाले तमाम मां बाप देश भर में इस दृश्य की भयावहता से जल्द उबर नहीं सकेंगे।उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी है और कुहासा घनघोर है।ऐसे में कुहासा के मध्य स्कूलों को जारी रखने का औचित्य समझ से परे हैं,जिस वजह से यह दुर्घटना हो गयी। सोदपुर में सुबह सुबह रेलवे स्टेशन पर अफरा तफरी,तोड़ फोड़ और रेल अवरोद का सिलसिला देर तक जारी रहा और सियालदह से रेलयातायात बाधित हो गयी।थ्रू ट्रेन की सूचना न मिलने की वजह से सरपट  दौड़ती ट्रेन की चपेट में एक वृद्ध की यहां सुबह ही मौत हो गयी है और यह रोज रोज का रोजनामचा कहीं न कहीं दोहराया जाता है।

इन तमाम हादसों में सबसे भयानक हादसा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का उत्थान है जो फिर हिरोशिमा और नागासाकी का अनंत सिलसिला है और नस्ली नरसंहार का यह ग्लोबल हिंदुत्व पूरीतरह जायनी विपर्यय है ,जिसके खिलाफ अमेरिकी जनता प्रतिरोध के मिजाज में ओबामा की विदाई के साथ साथ सड़कों पर लामबंद है और इसके विपरीत भारत में और अमेरिका में भी बजरंगियों में जश्न का माहौल है।जश्न में नाचने गाने वाले भी खूब हिंदुस्तानी हैं,स्टार सुपरस्टार,ब्रांड एबेसैडर है। कल अपनी विदाई प्रेस कांफ्रेस में बाराक ओबामा ने अबतक का उनका सर्वश्रेष्ठ भाषण दिया है  और अमेरिकियों को उम्मीद भी है कि उनका सपना मरा नहीं है।बाराक और मिसेल ने बहुलता और विविधता का लोकतंत्र बचाने के लिए जाते जाते अमेरिका में सुनामी रच दिया है,ऐसा राजनीतिक प्रतिरोध हमारे देश में फिलहाल अनुपस्थित है। प्रेजीडेंट चुने जाने के बाद से शून्य से पांच सात डिग्री सेल्सियस के नीचे तापमान से बेपरवाह ट्रंप महल के सामन खुले आसमान के नीचे बर्फवारी के बीच जनता का हुजूम अब भी चीख रही हैःनाट आवर प्रेजीडेंट।कल उनके शपथ ग्हणके बाद महिलाएं उनके खिलाफ मार्च करेंगी।अमेरिकी इतिहास में वे सबसे अलोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति हैं और जिनका चेहरा फासिस्ट और नात्सी दोनों है।फिरभी भारत में उनके पदचाप का उत्सव है। बहरहाल,अमेरिकी प्रेस एसोसिएशन ने कल शपथ ले रहे अमेरिकी हिटलर के नस्ली राजकाज के खिलाफ कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि आप हद से हद आठ साल तक व्हाइट हाउस में होंगे लेकिन प्रेस अमेरिकी लोकतंत्र का हिस्सा है ,जो रहा है और रहेगा।हम क्या छापेंगे,क्या नहीं छापेंगे ,यह हमारे विवेक पर निर्भर है और आप क्या बतायेंगे या नहीं बतायेंगे,यह आपकी मर्जी होगी लेकिन सच कहने से आप हमें रोक नहीं सकते और न आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह का अंकुश सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप के हवाले दुनिया है तो उस दुनिया में निरंकुश सत्ता के नस्ली नरसंहार के खिलाफ इंसानियत का प्रतिरोध भी तेज होने वाला है।हम अपने यहां ऐसा नहीं देख रहे हैं।न आगे देखने के कोई आसार हैं। इस बुरे वक्त के लिए यह सबसे अच्छी खबर है।अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुक्रवार को पद की शपथ लेंगे। उनके शपथ ग्रहण करने से पहले अमेरिकी प्रेस कोर ने साफ तौर पर कह दिया है कि ट्रंप उन पर फरमान जारी नहीं कर सकते बल्कि पत्रकार अपने एजेंडा खुद सेट करेंगे। 

काश! भारतीय मीडिया निरंकुश सत्ता को इसतरह की कोई चुनौती दे पाता।
समझा जाता है कि नये अमेरिकी राष्ट्रपति प्रेस को व्हाइट हाउस से बाहर रखने की तैयारी कर रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप आगामी शुक्रवार को शपथ ग्रहण करने के बाद 40 फीसदी लोगों के समर्थन के साथ हाल के समय के सबसे कम लोकप्रियता वाले राष्ट्रपति होंगे। मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुकाबले ट्रंप की लोकप्रियता का आंकड़ा 44 अंक कम है। सीएनएन-ओरआरसी के नए सर्वेक्षण के अनुसार हाल के तीन राष्ट्रपतियों से तुलना करें तो ट्रंप की लोकप्रियता उनके मुकाबले 20 अंक कम हैं। ओबामा ने 2009 में जब दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी तो उनकी लोकप्रियता का ग्राफ 84 फीसदी तक था। गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आपको हिंदुत्व का बड़ा प्रशंसक बताते हुए कहा कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो हिंदू समुदाय व्हाइट हाउस के सच्चे मित्र होंगे। ट्रंप ने पीएम मोदी को महान शख्सियत करार देते हुए कहा कि वह भारतीय प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। ट्रंप ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वह अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी है। ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ भारत द्वारा चलाए जा रहे मुहिम को बेहतरीन बताते हुए कहा कि इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका भारत के साथ है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत के साथ दोस्ती को और मजबूत करेंगे। इस बीच प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकी विद्वान एश्ले टेलिस ने चेतावनी दी है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति भारत और अमेरिका के संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि ट्रंप को चीन से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की जरूरत है। 

एक शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक के सीनियर फेलो टेलिस ने कहा कि ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की रणनीति अमेरिका-भारत के रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकती है। ट्रंप को चीन से मिलने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के साथ संबंध मजबूत करने चाहिए। मुम्बई में जन्मे 55 वर्षीय टेलिस ने एशिया पॉलिसी में प्रकाशित एक लेख में कहा कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के समय में अमेरिका की भारत से घनिष्ठता इस आधार पर थी कि दोनों देश चीन के बढ़ने और उससे अमेरिका की प्रधानता और भारत की सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरे का सामना कर रहे थे। टेलिस का कहना है कि बुश प्रशासन के दौरान भारत के उभरती शक्ति की तरफ अमेरिका की प्रतिबद्धता संतुलित थी लेकिन ओबामा प्रशासन के समय कुछ अच्छे कारणों से यह आगे जारी रही। अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार आगामी ट्रंप प्रशासन टेलिस को भारत में अमेरिका का अगला दूत बनाने पर विचार कर रहा है। अभी टेलिस और ट्रंप की टीम ने इन खबरों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। दो साल पहले मोदी से आसमानी उम्मीदें थीं। अब दो साल हो गए हैं। तो कितनी उम्मीदें पूरी हुईं। मेक इन इंडिया का क्या हुआ? कितना डिजिटल हुआ इंडिया? कितना स्वच्छ हुआ भारत? अर्थव्यवस्था में कितना सुधार हुआ? अच्छे दिन कोई हकीकत है या अब भी ख्वाब है? मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर देखिए सीएनबीसी-आवाज़ पर महाकवरेज.... लगातार और शुरुआत मेक इन इंडिया पर रियलिटी चेक से। मेक इन इंडिया का बड़ा पहलू ये है कि इसके लिए कितना विदेशी निवेश हो रहा है। यानी यहां कितनी कंपनियां आकर काम कर रही हैं या करने को तैयार हैं। मोदी सरकार अपने दो साल पूरे करने जा रही है। इस मौके पर हम सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक मेक इन इंडिया की जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं। अपनी स्पेशल सीरीज की शुरुआत हम कर रहे हैं एफडीआई यानी विदेशी निवेश की स्टेटस रिपोर्ट के साथ। आज से करीब दो दशक पहले अलीशा चिनॉय के इस गाने ने मेड इन इंडिया को घर घर तक पहुंचा दिया। ये अलग बात है कि ये सिर्फ गाने तक ही सीमित रहा। जबकि पूरी दुनिया में मेड इन चाइना ने तहलका मचाया। करीब दो साल पहले इसे घर-घर तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, लेकिन एक नए अंदाज के साथ।

मेक इन इंडिया योजना के प्रतीक बब्बर शेर ने दहाड़ तो खूब लगाई, लेकिन इसकी रफ्तार कैसी है, आइए जानते हैं। साल 2015 में विदेशी निवेश के मामले में भारत ने सभी एशियाई देशों को काफी पीछे छोड़ दिया, फिर चाहे वो सबसे बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्था चीन हो या फिर जापान। एफडीआई इंटेलिजेंस के मुताबिक साल 2015 में भारत में 63 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, जबकि चीन में ये आंकड़ा 56.5 अरब डॉलर के करीब रहा। बात यहीं खत्म नहीं होती। मेक इन इंडिया योजना के तहत अब तक डिफेंस सेक्टर में 56 विदेशी कंपनियां निवेश के लिए तैयार हैं, जिनमें फ्रांस की एयरबस, इजरायल की राफेल और अमेरिका की बोइंग जैसे नाम शामिल हैं। पावर और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भी दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में पैसा लगा रही हैं। इनमें पहला नाम है ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन का, जो अगले पांच सालों मे 5 अरब डॉलर का निवेश करेगी। फॉक्सकॉन के अलावा चाइनीज कंपनी श्याओमी और कोरियाई कंपनी एलजी ने भी भारत में स्मार्टफोन्स का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है। ली ईको जैसे विदेशी स्टार्टअप भी निवेश के लिए भारत को फर्स्ट च्वाइस मानते हैं।
रेलवे को भी बिहार में दो इंजन कारखाने लगाने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का विदेशी निवेश जुटाने में कामयाबी मिली है, जो अब तक का रेलवे में सबसे बड़ा विदेशी निवेश है। वहीं मिसौरी की पावर कंपनी सन एडिसन ने देश में 4 अरब डॉलर की लागत से एक सोलर पैनल फैक्ट्री लगाने का एलान किया है। साफ तौर पर सरकार के पास खुश होने के लिए वजहें तो मौजूद हैं। मेक इन इंडिया मुहिम के तहत आ रहे भारी विदेशी निवेश के मोर्चे पर मिल रही सफलता को लेकर मोदी सरकार उत्साहित है लेकिन जानकारों के मुताबिक ये भारी निवेश फिलहाल कागजों में ही और हकीकत में बदलने में 4-5 साल का वक्त और लगेगा।

विदेशी निवेशकों के सेंटिमेंट भले ही सुधरने का दावा किया जा रहा हो लेकिन निवेश अभी उस रफ्तार से नहीं आ रहा है जिसकी दरकार है। वैसे देश में कारोबार की राह आसान किए बिना मेक इन इंडिया मुहिम को सफल बनाना मुश्किल है। बीते दो सालों में सरकार ने कारोबार को आसान करने के लिए कई कदम तो उठाए हैं, लेकिन इसका कितना फायदा कारोबारी उठा पा रहे हैं, आइए जानते हैं। मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गर्वनेंस - ये है मोदी सरकार का नारा और इसे ध्यान में रखते हुए हर वर्ग के लोगों के लिए सरकारी कामकाज आसान बनाने की कोशिश की जा रही है। इसी का हिस्सा है कारोबार के लिए सरकारी मंजूरी मिलने में आसानी यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस। इसके लिए पिछले दो सालों में सरकार ने इंडस्ट्री लाइसेंस की प्रकिया को आसान बनाने से लेकर सभी तरह के रिटर्न्स ऑनलाइन जमा करने की सुविधा जैसे कई कदम उठाए हैं। दुनिया भर में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में भारत ने सुधार तो दिखाया है, लेकिन अभी भी हम दुनिया के 129 देशों से पीछे हैं। साल 2015 में हमारी रैंकिंग 142 थी जो इस साल 130वें नंबर पर पहुंच गई है। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ये रैंकिंग एक आईना है कि यहां बिजनेस करना कितना मुश्किल है। हालांकि सरकार को भरोसा है कि अगले तीन साल में वो देश को दुनिया के 50 टॉप देशों की लिस्ट में पहुंचा देगी। सरकार अपनी पीठ जरूर ठोक रही है, लेकिन दो सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां सरकार के दावों पर सवाल खड़े हुए हैं। चाहे वो वोडाफोन के साथ चल रहा टैक्स मामला हो या नेस्ले का मैगी विवाद, या फिर उबर जैसी कंपनियों के बिजनेस मॉडल को कठघरे में लाने की कई राज्य सरकारों की कोशिश। इन मामलों में केंद्र सरकार का रुख भी विदेशी निवेशकों के लिए असमंजस बढ़ाने वाला ही रहा। कंपनियां भी दबी जुबान में ही सही, सरकार की नीतियों पर नाखुशी जताती रही हैं। लेकिन सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट उसके इस दावे पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं कि देश में बिजनेस करना पहले से आसान हुआ है।

दूसरी तरफ सरकार की दलील है कि वोडाफोन और उबर जैसे इक्का-दुक्का मामलों के आधार पर राय नहीं बनानी चाहिए। सरकार के मुताबिक उसकी नीतियां किसी सेक्टर को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, किसी खास कंपनी को देखकर नहीं। हाल ही में संसद से पास हुए बैंकरप्सी बिल को भी कारोबार आसान करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। जानकारों के मुताबिक इससे भारत की दुनिया में रैंकिंग भी सुधरेगी। लेकिन साथ ही वो कह रहे हैं कि इतना ही काफी नहीं है, लेबर और टैक्सेशन के मोर्चे पर सरकार को काफी कुछ करने की जरूरत है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की दिशा में अभी सरकार ने शुरुआती कदम भर उठाए हैं, अभी तो मीलों का सफर बाकी है। प्रधानमंत्री मोदी का हर हाथ को काम देने का वादा था। उन्होंने कहा था कि देश के एक्सपोर्ट सेक्टर को वो चमका देंगे लेकिन मेक इन इंडिया मुहिम एक्सपोर्ट सेक्टर के अच्छे दिन लाने में अभी तक नाकाम रही है। बीते डेढ साल में एक्सपोर्ट में लगातार गिरावट आई है। हालत ये है कि मंदी की मार के चलते अब घरेलू एक्सपोर्टर्स अपना धंधा बंद करने को मजबूर हैं और लोगों की नौकरियां खतरे में है। करीब 2 साल पहले मोदी सरकार ने अच्छे दिन लाने का वादा किया था, उन्हीं वादों पर भरोसा करते हुए एक्सपोर्टर्स ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा निवेश भी किया लेकिन वैश्विक मंदी और कमजोर सरकारी नीतियों के चलते नौबत यहां तक आ गई है कि वही बढ़ा हुआ निवेश एक्सपोर्टर्स पर भारी पड़ रहा है। गुरुग्राम में पिछले 25 सालों से प्रीमियम फैशन गारमेंट्स का प्रोडक्शन कर रहे संजय चूड़ीवाला के ग्राहक यूरोप, स्पेन, फ्रांस और डेनमार्क जैसे देशों के बड़े ब्रांड्स हैं। लेकिन पिछले डेढ़ सालों से इनका कारोबार ठंडा पड़ा है। ग्लोबल मंदी की वजह से कम हुई मांग ने संजय को अपना प्रोडक्शन कम करने पर मजबूर कर दिया। नतीजतन, पहले जहां 250 से ज्यादा कारीगर संजय की एक्सपोर्ट यूनिट में काम करते थे, अब वो 15-20 तक सिमट गए हैं। 

एक्सपोर्ट में मंदी का दुष्प्रभाव तो बिमल मावंडिया पर भी पड़ा है। बिमल जारा और फोरएवर 21 जैसे ब्रांड्स को रेडीमेड गारमेंट्स एक्सपोर्ट करते हैं। वो पिछले 40 साल से इस बिजनेस से जुड़े हैं, लेकिन इतने बुरे दिन उन्होंने कभी नहीं देखे। 2 साल पहले बिमल की 3 फैक्ट्रीज थी, जिनमें से दो अब बंद हो चुकी हैं। बिमल के मुताबिक एक्सपोर्ट सेक्टर की हालत सुधारने के लिए पुराने और घिसे-पिटे उपाय करने से काम नहीं चलेगा। एक्सपोर्टर्स इस बात से भी नाखुश हैं कि मोदी सरकार ने प्रो-एक्सपोर्ट पॉलिसी लाने के बजाय उन्हें मिलने वाले इंसेंटिव्स पर ही कैंची चला दी है। एक्सपोर्टर्स की संस्था फियो यानी फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक साल 2014 में जहां एक्सपोर्ट 323.3 बिलियन डॉलर था वो साल 2015 में 21 फीसदी गिरकर 243.46 बिलियन डॉलर रह गया। लेकिन सरकार इस गिरावट का जिम्मा अंतर्राष्ट्रीय वजहों को बताकर पल्ला झाड़ने में लगी है। वजह चाहे जो हो, सच्चाई यही है कि तमाम प्रोडक्ट्स के एक्सपोर्ट में पिछले 8 महीनों से लगातार गिरावट आई है। और, सरकार के प्रयास इस सेक्टर में कोई सुधार लाने में नाकाम हैं। मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम की कामयाबी काफी हद तक एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने पर भी निर्भर करती है। और अगर एक्सपोर्ट सुधारने की गंभीर कोशिशें जल्द शुरू नहीं हुईं तो इस मुहिम को फ्लॉप होने से कोई नहीं रोक पाएगा।





(पलाश विश्वास)

आलेख : चुनाव आचार संहिता कोरा दिखावा न बने

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चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही आचार संहिता के उल्लंघन के मामले भी तेजी से सामने आने लगे हैं। यहां तक कि अनेक वरिष्ठ नेताओं और राज्यों के मंत्रियों तक पर इसके उल्लंघन के आरोप लगे हैं। जो पार्टी खुद इसका उल्लंघन कर रही है, वही दूसरों पर इसकी धज्जियां उड़ाने का आरोप लगा रही है। चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का हल्के में नहीं लेना चाहिए, इसके नीचे शून्यता की स्थिति विडम्बना ही कही जायेगी। ऐसी स्थिति में शून्य तो सदैव ही खतरनाक होता ही है पर यहां तो ऊपर-नीचे शून्य ही शून्य है, कोरा दिखावा है। आरोपियों पर सख्त कार्रवाई के लिये तेजस्वी और खरे प्रशासन का नितान्त अभाव है। 

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर कांग्रेस के चुनाव चिह्न के जरिये लोगों की धार्मिक भावना को भड़काने का आरोप लगा है। राहुल गांधी ने कहा था कि मुझे कांग्रेस का हाथ शिवजी, नानक, बुद्ध और महावीर के हाथों में नजर आता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी चुनाव आचार संहिता के उल्लघंन का मामला दर्ज करने का अनुरोध किया गया है। क्योंकि 12 जनवरी को प्रधानमंत्री ने रामायण दर्शन प्रदर्शनी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये संबोधित किया। इस संबोधन को चुनावी अभियान में बदल देने, उसे धार्मिक रूप प्रदान करने और लोगों को भड़काने के लिए भगवान श्रीराम, अयोध्या, रामराज्य, हनुमानजी और भरत का बार-बार जिक्र किया गया।

बीजेपी विधायक संगीत सोम के खिलाफ मेरठ में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन और नफरत फैलाने के इल्जाम में केस दर्ज हुआ है। सोम मेरठ की सरधना सीट से बीजेपी उम्मीदवार हैं। उनके ऊपर इल्जाम है कि वो चुनाव प्रचार के दौरान अपनी एक ऐसी वीडियो फिल्म दिखा रहे थे जिसमें मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उनकी गिरफ्तारी के शॉट्स, दंगों के इल्जाम में उन पर लगे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) हटाने के लिए हुई महापंचायत के शॉट्स और दादरी में अखलाक की हत्या के बाद दिया गया भाषण दिखाया जा रहा था। चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी आचार संहिता के उल्लंघन के लिए नोटिस जारी किया है। केजरीवाल ने लोगों से कहा था कि कांग्रेस और भाजपा पैसा बांटेगी। लोग नई नकदी स्वीकार कर लें और महंगाई को देखते हुए 5,000 की जगह 10,000 रुपये लें, लेकिन सब लोग वोट ‘आप’ को ही दें। चुनाव आयोग ने कहा कि ‘आप’ नेता का बयान रिश्वत के चुनावी अपराध को उकसाने और उसको बढ़ाने वाला है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होने पर गरीब तबके को नकदी बांटने की घोषणा से आचार संहिता का उल्लंघन किया है। समाजवादी पार्टी ने भी इसी तरह चुनाव आचार संहिता का धताई है। गौरतलब है कि जबसे आचार संहिता लागू हुई तबसे बरेली जिले में सबसे ज्यादा आचार संहिता के उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। सभी दलों की दौड़ येन-केन-प्रकारेन सत्ता प्राप्त करना या सत्ता में भागीदारी करना है और इसके लिये वे चुनाव आचार संहिता का बार-बार और कई बार खुली अवमानना कर रहे हैं। 

गौरतलब है कि सभी पार्टियों और उनके नेताओं पर चुनाव आचार संहिता के प्रतिकूल आचरण करने के आरोप लगे हैं, जिन्होंने भड़काऊ भाषण और प्रलोभन देकर अपनी पार्टी को भी धर्मसंकट में डाल दिया है। इन नेताओं के भाषण और चुनाव प्रचार में बरती जा रही धांधलियों को निर्वाचन आयोग ने काफी गंभीरता से लिया है और उन्हें नोटिस भेजा है। ऐसा लगता है कि हमारे नेताओं को आचार संहिता के पालन की बहुत चिंता नहीं है। वे मतदाताओं को लुभाने के लिए हर तरह के टोटके आजमाने को आतुर हैं। शायद इसीलिए संसद और सड़क की भाषा में फर्क नजर आता है। वही नेता जो सदन में संयत दिखते हैं, सड़क पर आते ही भाषा और तेवर बदल लेते हैं। जनता को भावनात्मक आधार पर गोलबंद करने के लिए आक्रमक रूख अपनाते हैं लेकिन उन्हें इस बात का ख्याल नहीं रहता कि वे जिस समाज से वोट मांग रहे हैं उसकी अपनी कुछ मर्यादाएं हैं, वे जिस पद के लिए चुने जाने की आकांक्षा रखते हंै, वह कुछ राष्ट्रीय और संवैधानिक मूल्यों से बंधा है। अब तक जिन नेताओं को निर्वाचन आयोग ने नोटिस भेजा है, उन्होंने गोलमोल जवाब देकर मामले को टालने की कोशिश की है। 

धर्म की दुहाई, झूठे आश्वासन, शराब की एक बोतल, कुछ रुपयों का लालच और लाठी का भय - लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव की मर्यादा को धुंधलाते रहे हैं। दरअसल, आचार संहिता लागू करने के मूल में उद्देश्य बड़ा ही सार्थक है- वह है चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दलों को निष्पक्ष और बराबरी का अवसर प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना कि सत्तारूढ़ पार्टी, न तो केंद्र में और न राज्यों में, चुनाव में अनुचित लाभ हासिल करने के लिए अपनी आधिकारिक स्थिति का दुरुपयोग करे। भारतीय चुनाव प्रणाली को सम्यक और सुचारु रूप से चलाने में इसका बड़ा योगदान है। लेकिन, कितनी प्रासंगिक और व्यावहारिक है यह आचार संहिता? क्योंकि नेताओं के भीतर कहीं न कहीं यह भावना रहती है कि निर्वाचन आयोग उनके खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा सकता। यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि माॅडल कोड आॅफ कनडक्ट सभी राजनीतिक दलों की सहमति से तैयार किया गया है और इसके पालन का उन्होंने वचन भी दिया है। परम्परा के मुताबिक यह चुनाव की तरीखों की घोषणा के साथ ही लागू मान लिया जाता है। सदाचार को कानून से लागू नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा किया भी जाता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। बेहतर यह है कि सारे दल दूसरों को नसीहत देने की बजाय खुद मिसाल पेश करें। सभी पार्टियों की यह जवाबदेही है कि वे अपने नेताओं कार्यकर्ताओं को आचार संहिता के प्रावधानों से अवगत कराएं और उनके पालन के लिए प्रेरित करें। इसके साथ ही निर्वाचन आयोग को भी चाहिए कि वह इसे लेकर राजनीतिक दलों और जनता में भी जागरूकता फैलाने का प्रयास करे।

सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि आचार संहिता लागू होते ही राजनीतिक अनाचार का दौर शुरू हो जाता है। दल-बदल, गाली-गलौज, कालेधन का चुनाव प्रचार में प्रयोग का प्रयास, यह सब धड़ल्ले से होने लगता है। आचार संहिता खर्चे और कानून व्यवस्था पर तो नियंत्रण कर लेती है, पर राजनीतिक और वैयक्तिक आदर्श पर इसका भी बस नहीं चलता। चुनावों की घोषणा के साथ ही जैसे इंसानी फितरत अपने रंग दिखाने लगती है।

सत्ता की भूख में कल के दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं और दोस्त दुश्मन। एक-दूसरे को गाली देनेवाले सत्ता की खातिर एक-दूसरे के गले लग जाते हैं। बेटा पिता को आंख दिखाता है, पिता बेटे को कोसता है। आपसी संबंध तार-तार होने लगते हैं। जिस पर कभी उसने ही भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के आरोप लगाये हों आज वह उसके लिये बेदाग हो जाता है, सब कुछ भुला दिया जाता है सभी पार्टियों के लिए सिद्धांत, निष्ठा, चरित्र, आदर्श सब ताक पर चले जाते हैं। 

चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का- हर चुनाव में आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के अनेक केस दर्ज होते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि चुनाव खत्म होते ही इस तरह के उल्लंघन के मुकदमे फाइलों में दफन होकर रह जाते हैं। न तो कभी इन मामलों में किसी आरोपी की गिरफ्तारी की बात सुनी गई और न कोई ठोस विवेचना। फिर क्यों चुनाव आचार संहिता का नाटक चलता है? आपने ‘साल’ का वृक्ष देखा होगा- काफी ऊंचा! ‘शील’ का वृक्ष भी देखें- जो जितना ऊंचा है उससे ज्यादा गहरा है। चुनाव आचार संहिता इसी गहराई का मापने का यंत्र बने।


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(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486 मोबाईल: 9811051133

समसामयिकी : नोक पर नौकरशाही

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भारत में पुलिस और प्रशासन के कामों में राजनेताओं उनसे जुड़े लोगों और संगठनों का दखल कोई नया चलन नहीं है. इसकी वजह से अफसर और नौकरशाह सियासी देवताओं के मोहरे बनने को मजबूर होते हैं ऐसा वे कभी लालच और कभी मजबूरियों की वजह से करते हैं. पुलिस और प्रशासनिक अधकारियों,अफसरों की नियुक्ति व तबादलों में होने वाली राजनीतिक दखलंदाजी पर सुप्रीम कोर्ट भी नाराजगी जता चुका है. कोर्ट द्वारा पुलिस अफसरों की व्यावसायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए पुलिस ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन करने के आदेश भी दिए जा चुके हैं  लेकिन हमेशा की तरह लेकिन घाघ सियासतदानों ने इसे अनसुना कर दिया. पिछले दिनों मध्यप्रदेश में कटनी जिले के एसपी गौरव तिवारी के साथ भी यही दोहराया गया है. गौरव तिवारी एक जनप्रिय पुलिस अधिकारी थे जिन्होंने बिना कोई समझौता किये और सारे और दबावों को झेलते हुए अपने फर्ज को अंजाम दिया जो कि दुर्लभ है, अपने इसी दुर्लभता की वजह से वे सीधे जनता के दिल में उतर गये जो बाद में उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी और शायद पूँजी भी. गौरव तिवारी ने पिछले दिनों 500 करोड़ रुपए के बहुचर्चित हवाला कारोबार का पर्दाफाश किया था जिसमें शिवराज सरकार के सबसे अमीर मंत्री मंत्री संजय पाठक और आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता की संलिप्तता सामने आ रही थी. इससे पहले कि गौरव तिवारी किसी निष्कर्ष पर पहुँचते उनके तबादले की खबर आती है. मध्यप्रदेश में संजय पाठक माइनिंग माफिया के रूप कुख्यात रहे हैं जो चंद साल पहले कांग्रेसी थे तब खुद भाजपा के नेता उन्हें माइनिंग माफिया का खिताब देते नहीं थकते थे. 

इस पूरे घटनाक्रम की सबसे खास बात यह रही है अपने चेहेते एसपी के तबादले के विरोध में बड़ी संख्या में कटनी की जनता का सड़कों पर उतर आना. मध्यप्रदेश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ जब किसी पुलिस अधिकारी के तबादले के विरोध में इतना बड़ा जनाक्रोश देखने को मिला हो. लेकिन इन सबके बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पूरी तरह से संजय पाठक के पक्ष में खड़े नजर आये उन्होंने एसपी गौरव तिवारी को कटनी वापस बुलाने की मांग को खारिज करते हुए कहा है कि महज आरोपों के आधार पर किसी के भी खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी. इस दौरान संजय पाठक के बेटे यश पाठक का अहंकार से भरा एक फेसबुक पोस्ट भी सामने आता  है जिसमें वे लिखते हैं “जब हाथी चलता है, तो कुत्ते भौंकते हैं”. मध्यप्रदेश में पिछले साल भी इसी तरह की कुछ और घटनायें सामने आ चुकी हैं जिसमें सबसे चर्चित बालाघाट की घटना है. बालाघाट जिले के बैहर में आरएसएस प्रचारक सुरेश यादव के साथ पुलिस की तथाकथित मारपीट के मामले में भी सरकार द्वारा की गयी कारवाही पर सवाल उठे थे कि राज्य सरकार ने संघ के दबाव में बिना जाँच किये ही पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ही मामला दर्ज करा दिया. भड़काऊ सन्देश फैलाने के आरोप में सुरेश यादव को गिरफ्तार करने के  लिए जब पुलिसकर्मी स्थानीय संघ कार्यालय गए तो उन्हें धमकी दी गयी थी कि “आप नहीं जानते कि आपने किसे छूने की हिम्मत की है, हम मुख्यमंत्री और यहाँ तक की प्रधानमंत्री को हटा सकते हैं, हम सरकारेंबना और गिरा सकते हैं, तुम्हारी कोई हैसीयत नहीं, थोड़ा इंतजार करो अगर हम तुम्हारी वर्दी नहीं उतरवा सके तो संघ छोड़ देंगे.” भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का भी एक धमकी भरा ट्वीट सामने आया था जिसमें उन्होंने इसे ‘अक्षम्य अपराध’ करार देते हुए सवाल पुछा था कि है क्या हमारी सरकार में नौकरशाही की इतनी हिम्मत भी हो सकती है ?

बाद में धमकियां सच भी साबित हुईं और शिवराज सरकार ने संघ प्रचारक को गिरफ्तार करने गये पुलिसकर्मीयों पर ही हत्या के प्रयास,लूटपाट जैसे गंभीर चार्ज लगा दिए थे जिसकी वजह से उन्हें खुद की गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार होना पड़ा. इस पूरे मामला में बताया जा रहा है कि संघ प्रचारक पर सोशल मीडिया में भड़काने वाले मेसेज पोस्ट करने का आरोप था जिसके बाद स्थानीय स्तर पर माहौल गर्माने लगा था और इसकी शिकायत थाने में की गयी. जिसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान संघ ने आरोप लगाया कि हिरासत के दौरान पुलिस ने संघ प्रचारक के साथ मारपीट की है जिसमें उसे गंभीर चोट आयीं हैं. संघ द्वारा इस पूरे  मामले को कुछ इस तरह पेश  किया गया कि मानो टीआई ने मुसलमान होने के कारण संघ कार्यालय पर हमला किया था. इस मामले को लेकर संघ ने पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन किया था जिसके बाद सरकार ने बिना किसी जांच के बालाघाट के एडिशनल एसपी, बैहर के थाना प्रभारी तथा 6 अन्य पुलिस कर्मियों के ऊपर धारा 307 सहित कई मामलों में केस दर्ज कर दिया गया और इन्हें सस्पेंड भी कर दिया गया. हालांकि बाद में इसको लेकर एक वीडियो भी सामने आया जिसमें में बहुत साफ़ दिखाई पड़ता है कि जैसा दावा किया जा रहा है उन्हें ऐसी घातक चोट नहीं लगी थीं. इस दौरान जिन पुलिसकर्मीयों पर कार्यवाही की गयी उनके  परिजनों का कहना था कि बालाघाट में पुलिस वालों को नक्सलियों से ज्यादा आरएसएस,बजरंग दल,गोरक्षा समिति और भाजपा कार्यकर्ताओं से डर लगता है अब ऐसी परिस्थिति में कानून व्यवस्था कैसे लागू की जाएगी. इस मामले को मध्यप्रदेश पुलिस के कई आला अफसर भी ये मान रहे थे कि इस मामले में सरकार के दबाव में पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की गयी है.

इसी तरह से पिछले साल ही झाबुआ जिले के पेटलाबाद में हुए दंगों में भी वहाँ के प्रसाशन पर भाजपा सांसदों औए संघ के नेताओं द्वारा दबाव डालने का मामला सामने आया था  जिसके बाद वहाँ के एसडीओपी  राकेश व्यास को हटा दिया गया था. राकेश व्यास ने भी दंगा और आगजनी करने के आरोप में संघ परिवार से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने की गुस्ताखी की थी. उपरोक्त घटनाओं को हलके में नहीं लिया जा सकता है. प्रशासन व कानून व्यवस्था चलाने वाली मशीनरी पर राजनीति का यह हस्तेक्षप घातक हो सकता है. नौकरशाही को अपने रुतबे से पीछे हटने और राजनीति को अपने हावी होने की आदत को बदलना होगा. लेकिन इतना ही काफी है इसके लिए सुधारों की भी जरूरत पड़ेगी. नौकरशाही के नियुक्तियों और तबादलों के लिए सवतंत्र मैकेनिज्म बनाना होगा. जिससे वे भारतीय न्यायपालिका के तरह काम कर सकें. अगर आज हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र तरीके से काम कर पा रही है तो इसकी  वजह उसका काफी हद तक स्वायत्त होना है, जजों को यह डर नहीं सताता है कि राजनीति के खुर्राट उनका तबदाला करा देंगें . हालाँकि न्यायपालिका पर भी लगाम कसने की कोशिश की जा रही हैं. भारत सरकार द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम व्यवस्था को बदलकर न्यायायिक आयोग की व्यवस्था लागू करने की जी तोड़ कोशिशें जारी हैं. यदि न्यायायिक आयोग की व्यवस्था लागू हो जाती  है तो यहाँ भी पदों के नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.





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जावेद अनीस 
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javed4media@gmail.com

शाहरूख खान के साथ धूम 4 नहीं कर रही हूं.. मुझे ऑफर ही नहीं आया.... वाणी कपूर

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वाणी कपूर ने शाहरूख खान के साथ फिल्म करने की अफवाह को झूठा बताया है उन्होंने कहा, काश ऐसा हो पाता। यह कहना है बेफिक्रे गर्ल वाणी कपूर का। वाणी ने सारी अफवाहों को सिरे से नकारते हुए कहा कि मुझे शाहरूख खान के अपोजिट कोई फिल्म ऑफर नहीं की गई है। यह एक ऐसी अफवाह है जो मैं चाहती हूं कि काश सच हो जाए.. लेकिन फिलहाल मैं ऐसी किसी फिल्म में नहीं हूं। सलमान खान से पहले मैं फिल्म की बात करूं.. यह सही नहीं है.. बता दें, काफी दिनों से अफवाह थी कि आदित्य चोपड़ा धूम 4 में शाहरूख खान के अपोजिट वाणी कपूर को कास्ट करने वाले हैं। हालांकि अभी तक फिल्म की कास्टिंग को लेकर कोई ऑफिशियल घोषणा नहीं की गई है। कभी इससे सलमान का नाम जोड़ा जाता है, तो कभी शाहरूख का फिलहाल यह फाइनल है कि धूम 4 का निर्देशन आदित्य  चोपड़ा करेंगे। जबकि कास्ट को लेकर अभी तक कंफ्यूजन बना हुआ है। यहां जानें किन किन एक्टर्स का नाम धूम 4 से जुड़ चुका है- 

सलमान खान
सलमान खान फिल्म में निगेटिव किरदार.. यानि की धूम 4 के चोर बनने वाले हैं।
रणवीर सिंह
फिल्म में ना अभिषेक बच्चन होंगे.. ना उदय चोपड़ा.. बल्कि इस बार आदित्य चोपड़ा ने एक यंग फेस को चुना है, जो हैं रणवीर सिंह।
ऋतिक रोशन
खबरों की मानें तो इस बार फिल्म में दो विलेन हैं सलमान खान और ऋतिक रोशन। हालांकि धूम सीरिज में शायद ही आदित्य चोपड़ा अपने विलेन को दोहराएं।
दीपिका पादुकोण
ऋतिक रोशन और दीपिका पादुकोण की जोड़ी को धूम 4 के लिए फाइनल ही मान लिया गया था। लेकिन फिर दीपिका इस प्रोजेक्ट से हट गईं।
वाणी कपूर
चर्चा की मानें तो फिल्म में सलमान का पेयर भी फाइनल हो चुका है। और इसकी सबसे मजबूत दावेदार हैं वाणी कपूर। वे फिलहाल आदित्य चोपड़ा की बेफिक्रे में काम कर रही हैं।

पेशवा बाजीराव- भारत के महान योद्धा की अनकही

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सोनी एटरटेनमेंट टेलीविजन भारत के एकमात्र अजेय योद्धा - पेशवा बाजीराव की सुनहरी जीवन गाथा को लेकर दर्शकों के बीच प्रस्तुत है। यह कहानी है उनके अपारंपरिक अंदाज की, उनके जीवन के सिद्धांतों की, उनके जुनून की और उनके आदर्शों की। शो का प्रसारण 23 जनवरी से प्रत्येक सोमवार-शुक्रवार, शाम 7ः30 बजे होगा। यह शो एक निडर मराठा योद्धा पेशवा बाजीराव पर आधारित है। इसमें दिग्गज पेशवा की उनके बचपन से लेकर एक महान व निडर योद्धा बनने तक की कहानी दिखाई गई है।   पेशवा बाजीराव अपने दौर के एक महान यौद्वा थे। उनकी मां राधाबाई ने उनकी परवरिश मूल्यों और सिद्धांतों के साथ की। उनके पिता बालाजी विश्वमनाथ ने उन्हें जीवन के प्रति निडर नजरिये के साथ युद्ध की रणनीतियां सिखाईं। उन्होंने महाराजा शाहू के दरबार में राजनीति और कूटनीति के गुर सीखे, जिसने उन्हें  भूमि और दिलों का विजेता बनाया। 
         
दानिश खान, ईवीपी एवं बिजनेस हेड, ने शो के बारे में बताया कि‘पेशवा बाजीराव की प्रेरणादायक और आकर्षक कहानी का हमारी जिंदगियों और हमारे समय में काफी महत्व रखती है। मातृभूमि के लिये उनका प्यार, चुनौतियों से निपटने का उनका पारंपरिक अंदाज और उनके पालन-पोषण का तरीका इसे टेलीविजन पर एक आनंददायक और प्रेरणादायक शो बनाता है। इस कहानी को छोटे पर्दे पर पेश करने के लिये हमें स्फेयरऑरिजिन्स -संजय वाधवा, निलांजना पुरकायस्थे और उनकी युवा क्रिएटिव टीम के साथ गठबंधन कर बेहद खुशी हो रही है।’  रूद्र सोनी, जो कि बाजीराव का किरदार निभा रहे उन्होंने अपने किरदार के बारे में बताया कि ‘महान योद्धा पेशवा बाजीराव का किरदार निभाना मेरे लिए एक चुनौती ही है,और इस शो के साथ जुड़कर काफी गर्व हो रहा है, क्योंकि मैंने जब बाजीराव मस्ता नी फिल्म  की थी, तभी से यह किरदार निभाना चाहता था। फिल्म् में मैने  नानासाहेब की भूमिका निभाई थी। 

राधाबाई के किरदार को जीवंत करने वाली अनुजा साठे, ने कहा, ‘बाजीराव की मां राधाबाई का किरदार निभाना एक बड़ी जिम्मेदारी है और मुझे पूरा भरोसा है कि दर्शक मेरे इस रूप को पंसद करेंगे। विश्वनाथ का किरदार निभाने वाले मनीष वाधवा, बताते है कि ‘पेशवा बाजीराव की महानता और विजयी गाथा को देखते हुये बाजी की परवरिश करने और उसे एक योद्धा बनाने की जिम्मेदारी एक चुनौती थी। मुझे उम्मीद है कि दर्शक इस शो के साथ जुड़ाव महसूस करेंगे, क्योंकि इस शो को बनाने के पीछे काफी लोगों की मेहनत और प्रयास है।

सन्दर्भ : पटना नाव हादसा: अफवाहों ने ली सुशासन कि जान

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पूरा शहर सर्द से कांप रहा था धूप अंधेरे कि आग़ोश में शमा जाने को बेताब थी जश्न का परवान धीरे लोगों पर नशे कि खुमारी कि तरह चढ़ रही थी ।सत्ता भोज़ के सफलता को लेकर बैचेन थी और विपक्ष अपनी विचारधारा को लेकर ।डीएम अपना प्रमोशन को लेकर चिंतित था ।तो पर्यटन सचिव अपनी सफ़लता पर दो चार हो रही थी ।आम इंसान कि कद्र किसी को नहीं था ।जर्जर हो चुके नाव पर 10 से ज्यादा सवारी नहीं बैठ सकती थी ।लेकिन प्रशासन कि लापरवाही का आलम था कि उस नाव पर 100 से ज्यादा लोग सवार थे ।100लोगों के सवार होने का कारण था एक बार फिर वही अफवाह ! किसी अफवाह फैला दी कि नाव इसके बाद फिर लौटकर नहीं आयेगी । और एक दूसरे से धक्का मुकी करते हुए सवार हो गये । लेकिन नाव ज्यों ही कुछ दूर चला दुर्घटना कि आहट आने लगी थी ।लोग चिल्लाने लगे थे प्रशासन कि कोई टीम वहां मौजूद नहीं था । और कुछ दूर बाद ही नाव धीरे धीरे अचानक से गंगा कि गोद में शमा गयी ।लोग चीखने लगे। जो नहीं चीख सके वो फिर कभी नहीं चीख पाये । जो चीखे वो भी नहीं दोबारा चीखने लायक बचे । देखादेखी  ही तकरीबन 100 से ज्यादा लोग नदी में डूब गये । लेकिन प्रशासन संवेदनहिनता का परिचय देखिये डीएम उस समय भी मीटिंग में व्यस्त थे और पर्यटन सचिव का कोई अता पता नहीं था । बिहार में अफवाहों का षड्यंत्र ने हर बार सुशासन कि जान ले ली है । इससे पहले छठ पूजा के समय भगदड़ होने के कारण लगभग 20 से अधिक जाने चली गयी थी । और उसके ठीक एक साल बाद गांधी मैदान में दशहरा के दिन अफवाह फैलने के कारण भगदड़ हो जाने से 35 से अधिक जाने चली गयी थी । लेकिन इसके बाद भी प्रशासन का अमला इससे तनिक भी सचेत नहीं था जिसके कारण एक बार फिर अफवाहों ने सुशासन की जान ले ली ।




(अविनीश मिश्रा)

समाज : अनकही कहानी... अनकहा दर्द ...!!​

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जीवन के शुरूआती कुछ  व र्षों में ही मैं नियति के आगे नतमस्तक हो चुका था। मेरी समझ में यह बात अच्छी तरह से  आ गई थी कि मेरी जिंदगी की राह बेहद उबड़ - खाबड़ और पथरीली है।  प्रतिकूल परिस्थितियों की जरा सी फिसलन मुझे इसे पर गिरा कर लहुलूहान कर सकती है। उम्र् बढ़ने के साथ विरोधाभासी चरित्र के लोगों से हुआ सामना  जीवन के प्रति मेरे विषाद को बढ़ाता चला गया। कल तक जो दानवीर कर्ण बने घूम रहे थे,  आज उन्हें आर्थिक परेशानियों का रोना रोते देखा।  दो दिन पहले जो पाइ - पाइ के मोहताज थे आज वे गाइड बुक लेकर बैठे दिखे कि इस बार त्योहार में सैर - सपाटे के लिए कहां जाना ठीक रहेगा। विरोधाभासी परिस्थितियां यही नहीं रुकी। बचपन से सुनता आ रहा हूं कि औरत की उम्र और मर्द की कमाई नहीं पूछी जानी चाहिए। मैने कभी पूछी भी नहीं। लेकिन पता नहीं कैसे अचानक अपनी या किसी की कमाई का ढिंढोरा  पीटने की नई - आधुनिक परंपरा चल निकली। खास तौर से समाचार चैनलों पर अक्सर इसकी चर्चा देख - सुन कर हैरत में पड़ जाता हूं।मुझे लगता है कि चर्चा करने वाले तो अच्छे - खासे सुटेड - बुटेड हैं। निश्चय ही वे पढ़े - लिखे भी होंगे। लेकिन अपनी या किसी की कमाई का ढिंढोरा आखिर  क्यों पीट रहे हैं। क्या उन्हें भारतीय संस्कृति की जरा भी परवाह नहीं। या फिर उन्हें इसकी शिक्षा ही नहीं मिली। बतकही से ऊब जाने पर मैं सोच में पड़ जाता हूं कि जो लोग चैनलों पर किसी फिल्म की कमाई की चर्चा कर रहे हैं वे जरूर महिलाओं से उनकी उम्र् भी पूछते होंगे। मैं दुनियावी चिंता में दुबला हुआ जा रहा हूं। जिंदगी की पिच पर मैं खुद को उस असहाय बल्लेबाज की तरह पा रहा हूं जिसके सामने एक के बाद आने वाले त्योहार खतरनाक बाउंसर फेंकने वाले तेज  गेंदबाज की तरह प्रतीत हो रहे हैं। लेकिन टेलीविजन पर  आज भी कई बार ब्रेकिंग न्यूज ... ब्रेकिंग न्यूज की चमकदार पट्टी के बाद   खबर चल रही थी फलां फिल्म ने पहले ही दिन 21 करोड़ रुपए कमाए। बार - बार करोड़ - करोड़ का शोर मुझ पर कोड़े की तरह गिर रहा था। फिर शुरू हो गया कमाई का विश्लेषण। विश्लेषक बता रहे थे कि इस नई फिल्म ने तो खानों को भी पछाड़ दिया। यदि पहले ही दिन 21 करोड़ का कलेक्शन है तो यह आंकड़ा तो इतने करोड़ में जाकर रुकेगा। कमाई रिकार्ड तोड़ होगी।

 इस लिहाज से देखें तो फलां बंदा खान तिकड़ी को पछाड़ चुका है। मैं बेचैन होकर चैनल बदलता जा रहां हूं। मेरी निगाहें अपने जैसे आम आदमी से जुड़ी खबरें तलाश रही है। लेकिन अमूमन हर जगह अनकही कहानी की ही चर्चा। क्या सड़क - क्या गली हर तरफ वहीं अनकही कहानी। सिर पर हेलमेट और कंधे पर भारी बल्ला। मैं सोच रहा हूं कि विशाल पूंजी वाला बाजार क्या यह सब इसलिए कर या करा  रहा है जिससे वह गरीब वर्ग भी जो क्रिकेट देखता जरूर है , लेकिन क्रिकेट खिलाड़ी बनने का सपना उसके लिए दिवास्वपन के समान है। वह भी खिलाड़ी बनने का सपना देखना शुरू कर दे। वह भी उसी कंपनी का जूता पहने जो उसका पसंदीदा खिलाड़ी पहनता है। उसी कंपनी का ठंडा पेय पीए जो उसका फेवरिट खिलाड़ी पीता है। शंकालु मन चुगली करता है कि कहीं करोड़ों का यह खेल इसी वजह से तो नहीं खेला जा रहा है। क्योंकि त्योहारी माहौल में  हर दूसरे चेहरे पर मुझे तो  अनकहा दर्द ही देखने - सुनने को मिलता है। जिनके लिए त्योहार खुशियां नहीं बल्कि चिंता और विषाद का संदेश लेकर आने लगा है। जो जिंदगी से हैरान - परेशान हैं। बेचैनी में  मैने टेलीविजन बंद कर दिया और अखबार के पन्ने पलटने लगा। लेकिन यहां भी किसी न किसी बहाने अनकही कहानी का बखान - चर्चा। हालांकि भीतर के पन्ने पर एक छोटी सी खबर पर निगाह रुक गई। खबर बिल्कुल सामान्य थी।एक बड़े शहर के व्यवसायी का शव कस्बे के लॉज में फंदे से लटकता पाया गया।  सुसाइट नोट से पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची कि बंदा आर्थिक समस्याओं से परेशान था। बच्चों के लिए निवाला न जुटा पाने की बात भी उसने सुसाइट नोट में लिखी थी। साथ ही सरकार से अपने बच्चों के लिए निवाले की व्यवस्था की  आखिरी मार्मिक अपील भी दुनिया छोड़ने वाले ने की थी। इस खबर ने मेरी बेचैनी और बढ़ा दी। क्योंकि त्योहारी माहौल में अखबारों में ऐसी खबरों की बाढ़ सी आ जाती है।मैं विचलित हो जाता हूं ऐसी खबरों से। क्या पता इस बार का त्योहार कैसे बीते। 






तारकेश कुमार ओझा, 
(पशिचम बंगाल) 
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

विदिशा (मध्यप्रदेश) की खबर 20 जनवरी)

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जिला स्तरीय लोक कल्याण शिविर ग्राम वर्धा में आज

जिला स्तरीय लोक कल्याण शिविर 21 जनवरी को शमशाबाद तहसील के ग्राम वर्धा में आयोजित किया गया है। कलेक्टर श्री अनिल सुचारी ने समस्त विभागों के जिलाधिकारियों को समय पर शिविर में उपस्थित होने के निर्देश दिए है। उन्होंने संबंधित विभागों के अधिकारियों से कहा कि विभागीय योजनाओं की जानकारी ग्रामीणजनों को दे और योजनाओं के सुपात्र हितग्राहियों को लाभांवित कराने का प्रयास करें वही विभाग से संबंधित प्राप्त आवेदनों का निराकरण शिविर स्थल पर करना सुनिश्चित करें। जिला स्तरीय लोक कल्याण शिविर में पशु चिकित्सा विभाग और स्वास्थ्य विभाग द्वारा रोगोपचार केम्प का भी आयोजन किया जाएगा। वही विभिन्न विभागों के द्वारा विभागीय योजनाओं को रेखांकित करने वाली प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाएगा। वही शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार विभाग के द्वारा रोजगार मेला का भी आयोजन किया गया है। शिविर स्थल पर विभिन्न विभागों के द्वारा क्रियान्वित हितग्राहीमूलक योजनाओं का साहित्य का वितरण शिविर स्थल पर किया जाएगा। 

मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना तहत स्पेशल टेªन तिरूपति तीर्थ दर्शन,  के लिए आज रवाना होगी

मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के तहत जिले के तीर्थ यात्री आज 21 जनवरी 2017 को तिरूपति बालाजी के लिए रवाना होंगे। वही 18 फरवरी को द्वारिकापुरी, 15 मार्च रामेश्वरम् और 31 मार्च को जगन्नाथपुरी के लिए स्पेशल टेªन से रवाना होंगे। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के तिरूपति बालाजी तीर्थ दर्शन के लिए जिले से 230 तीर्थ यात्री रवाना होगे। मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के तहत द्वारिकापुरी, रामेश्वरम और जगन्नाथपुरी के लिए भी नियत तिथियों को तीर्थ यात्री रवाना होगे इसके लिए तीर्थ दर्शनवार आवेदन आमंत्रित किए गए है। द्वारिकापुरी तीर्थ दर्शन के लिए 212 तीर्थ यात्रियों का लक्ष्य प्राप्त हुआ हैै। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 24 जनवरी नियत की गई है। रामेश्वरम् तीर्थ दर्शन के लिए 242 तीर्थ यात्रियों का लक्ष्य प्राप्त हुआ हैै। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 24 फरवरी नियत की गई है। जगन्नाथपुरी तीर्थ दर्शन के लिए 228 तीर्थ यात्रियों का लक्ष्य प्राप्त हुआ हैै। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि छह मार्च नियत की गई है। संबंधित तीर्थ दर्शन के लिए लक्ष्य से अधिक आवेदन प्राप्त होते है तो तीर्थ यात्रियों का चयन कम्प्यूटर रेण्डमाइजेशन प्रणाली से किया जाएगा। तीर्थ यात्रियों के साथ अनुरक्षक भी जाएंगे। पूर्व में जिनके द्वारा उक्त योजना का लाभ लिया जा चुका है वे पुनः आवेदन ना करें। 65 वर्ष से अधिक आयु के पति-पत्नी साथ यात्रा कर रहे है तो उन्हें भी अनुरक्षक साथ ले जाने की पात्रता होंगी। इसी प्रकार दिव्यांग (60 प्रतिशत विकलांग) व्यक्ति भी इस यात्रा हेतु पात्र होंगे वशर्त उनके पास 60 प्रतिशत विकलांगता का प्रमाण पत्र सक्षम अधिकारी के द्वारा जारी किया हुआ होना चाहिए।

कम्पोजिट बिल्डिंग का जायजा

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कलेक्टर श्री अनिल सुचारी ने आज कलेक्टेªट कम्पोजिट बिल्डिंग में जारी निर्माण कार्यो का जायजा लिया। उन्होंने परिसर के चारो और पौधे लगाने और गार्डन बनाने के निर्देश दिए। लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री श्री जीपी वर्मा ने कलेक्टर को अवगत कराते हुए बताया कि कम्पोजिट बिल्डिंग मार्च तक हैण्डओवर हो जाएगी। कलेक्टर श्री सुचारी ने कम्पोजिट बिल्डिंग परिसर में पार्किंग, आने वाले नागरिकों के लिए बैठने की क्रियान्वित व्यवस्थाओं का भी जायजा लिया। वही किराए के भवनों में संचालित शासकीय कार्यालयों को कक्ष सबसे पहले आवंटित करने के निर्देश उनके द्वारा दिए गए वही कक्षो का जायजा भी लिया गया। इस दौरान जिला पंचायत सीईओ श्री दीपक आर्य, जिला आपूर्ति अधिकारी श्री मोहन मारू, तहसीलदार श्री संतोष बिटौलिया समेत लोक निर्माण विभाग के एसडीओ एवं सहायक यंत्री मौजूद थे। 

पटना उच्च न्यायालय ने मानव श्रृंखला को आयोजित करने की दी इजाजत

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पटना 20 अगस्त, पटना उच्च न्यायाालय ने आज बिहार सरकार की ओर से 21 जनवरी को शराबबंदी और नशामुक्ति के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रस्तावित मानव श्रृंखला में स्कूली बच्चों को जबर्दस्ती शामिल होने के लिए बाध्य नहीं करने और यातायात बाधित नहीं होने से संबंधित शपथ दिये जाने के बाद कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए इजाजत दे दी।

उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और सुधीर कुमार सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार को मानव श्रृंखला के दौरान बंद होने वाले मार्गो पर यातायात की वैकल्पिक व्यवस्था करने का आदेश सरकार को दिया है। खंडपीठ ने सरकार को कार्यक्रम के दौरान प्रभावित होने वाले मार्गो और वैकल्पिक मार्गो के संबंध में लोगों को जानकारी देने के लिए प्रचार-प्रसार करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने प्रस्तावित कार्यक्रम के दौरान किसी भी परिस्थिति में यातायात बाधित नहीं होने देने का निर्देश देते हुए कहा कि इससे आम लोगों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है । इससे पूर्व अदालत ने गुरूवार को राज्य के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह और पुलिस महानिदेशक पी. के. ठाकुर को व्यक्तिगत रूप से खंडपीठ के समक्ष उपस्थित होकर मानव श्रृंखला में स्कूल बच्चों को शामिल करने के सरकार के आदेश के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया था। साथ ही अदालत ने 21 जनवरी को बिहार में राष्ट्रीय राजमार्गों पर पांच घंटे तक यातायात ठप करने के प्रधान सचिव के आदेश पर भी कड़ी आपत्ति जताई और कहा था कि मानव श्रृंखला निर्माण के दौरान यातायात बाधित होने से आमलोगों खासकर बीमार लोगों को काफी दिक्क्तें होंगी।

प्रणव ने किया बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट का उद्घाटन

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कोलकाता 20 जनवरी, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट के तीसरे संस्करण का आज उद्घाटन किया। इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में जापान, जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, इटली, रूस, चीन और कई अन्य देशों के कारोबार प्रतिनिधिमंडल हिस्सा ले रहे हैं। 

सम्मेलन में मुख्य तौर पर बंदरगाह, खनन और मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म उद्योग क्षेत्र पर चर्चा होगी। राज्य में औद्योगिक पार्कों के लिए समुचित भूमि उपलब्ध है लिहाजा यहां हस्तकला, कपड़ा, जूट, रत्न और आभूषण उद्याेग के लिए काफी संभावनाएं हैं। स्टार्टअप इस सम्मेलन का महत्वपूर्ण मुद्दा होगा और हाल के समय के कई प्रमुख उद्यमी इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं।

दिल्ली में ठंड का सितम जारी

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नयी दिल्ली.20 जनवरी, राजधानी दिल्ली में आज सुबह शीत लहर का प्रकोप जारी रहा और न्यूनतम तापमान छह डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से एक डिग्री कम है। कोहरे के कारण दिल्ली में रेल और हवाई सेवा प्रभावित हुई। 23 ट्रेनें देरी से चल रही है,11 गाड़ियों का समय बदला गया है और चार ट्रेने रद्द कर दी गई है। खराब मौसम के कारण 14 घरेलू और आठ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में देरी हुई है। मौसम विभाग ने बताया कि अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस रहने का अनुमान है। कल अधिकतम और न्यूनतम तापमान क्रमश: 21.3 डिग्री सेल्सियस और 6.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

सभी रेलगाड़ियों में सेंटर बफर कपलर लगाये जायेंगे

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नयी दिल्ली 20 जनवरी, रेल मंत्रालय ने दुर्घटनाओं में होने वाले जानमाल के नुकसान को न्यूनतम करने के मकसद से पांच साल में सभी लगभग 53 हज़ार रेल डिब्बों में पांरपरिक स्क्रू कपलिंग को बदल करके आधुनिक एलएचबी कोचों में लगने वाली सेंटर बफर कपलिंग (सीबीसी) लगाने का फैसला किया है और चुनाव के बाद युद्धस्तर पर यह काम शुरू किया जायेगा। रेलवे बोर्ड के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने हाल ही में हुई रेल दुर्घटनाओं को अत्यंत गंभीरता से लिया है। विभिन्न स्तरों पर विचार विमर्श में पुन: यह तथ्य उभर कर आया है कि रेल दुर्घटनाओं में जानमाल की हानि का कारण डिब्बों का एक दूसरे पर चढ़ जाना है। 20 नवंबर को इंदौर राजेन्द्रनगर पटना एक्सप्रेस की दुर्घटना और दिसंबर प्रथम सप्ताह में हावड़ा-अजमेर एक्सप्रेस की दुर्घटनाओं की तुलना करने पर इसी तथ्य की पुष्टि हुई है। सूत्रों के अनुसार इसके कारणों पर विचार करने पर पता चला कि डिब्बों को आपस में जोड़ने वाले कपलर में समस्या है। पुराने स्क्रू वाले कपलर डिब्बों को एक दूसरे पर चढ़ने से नहीं रोकते हैं जबकि आधुनिक एलएचबी कोच सीबीसी कपलर के कारण एक दूसरे पर नहीं चढ़ते हैं। सूत्रों ने बताया कि रेल मंत्री ने इस बारे में उपलब्ध सभी विकल्पों की समीक्षा की है और पहला निर्णय यह लिया है कि अब पारंपरिक आईसीएफ कोचों का निर्माण अगले साल तक पूरी तरह से बंद करके सभी कोच विनिर्माण कारखानों में केवल एलएचबी कोचों का विनिर्माण किया जाये। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार रेलवे पहले ही वर्ष 2018-19 से आईसीएफ कोचों का विनिर्माण पूरी तरह से बंद कर देने तथा वर्ष 2016-17 में 1697 एलएचबी कोचों का विनिर्माण 2019-20 तक लगभग दोगुना करके 3349 बनाने का निर्णय ले चुकी है। इस दिशा में अब और तेज़ कदम उठाये जायेंगे।

जल्लीकट्टू पर अध्यादेश लाये जाने के वादे के बावजूद प्रदर्शन जारी

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चेन्नई 20 जनवरी, पारंपरिक जल्लीकट्टू के मुद्दे पर अध्यादेश लाये जाने संबंधी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम के वादे के बावजूद यहां मरीना बीच पर छात्रों और युवकों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन आज चौथे दिन भी जारी है, श्री पनीरसेलवम ने प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त किया था कि राज्य सरकार ने संबंधित अध्यादेश मंजूरी के लिये गृह मंत्रालय के पास भेजा गया है तथा अगले एक-दो दिन में जल्लीकट्टू का आयोजन किया जायेगा। उन्होंने छात्रों और युवकों से अपना प्रदर्शन समाप्त करने की अपील की, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसे अनसुना कर दिया और प्रदर्शन पर अड़े रहे। इस बीच जल्लीकट्टू (सांड़ को वश में करने का खेल) पर प्रतिबंध हटाने और पेटा को प्रतिबंधित किये जाने की मांग को लेकर छात्रों और युवकों के प्रदर्शन को समर्थन देने के लिए विभिन्न ट्रेड यूनियनों एवं संगठनों के आह्वान पर आज बंद से जनजीवन पर व्यापक असर पड़ा। बंद को कुछ राजनीतिक दलों ने भी अपना समर्थन दिया है। महानगर चेन्नई में बंद का मिश्रित असर रहा ,जबकि राज्य के दक्षिणी जिलों में पूरी तरह से बंद रहा, जहां कुछ स्थानों पर लोगों ने काले झंडे भी लहराये। प्रसिद्ध मरीना बीच पर जल्लीकट्टू के मुद्दे को लेकर जारी आंदोलन के आज चौथे दिन यहां लाखों की भीड़ मौजूद है। व्यापारियों ने प्रदेशव्यापी बंद के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करते हुए दुकानें एवं व्यवसायिक संस्थान बंद रखे हैं। दुकानें और होटल तथा स्कूलों के बंद रहने के कारण सड़कें वीरान नजर आ रही है। कुछ जिलों में प्रशासन ने बंद के मद्देनजर नर्सरी और प्राइमरी सहित सभी स्कूलों को बंद रखे जाने के निर्देश जारी किये हैं। छात्रों के प्रदर्शन में हिस्सा लेने के कारण 30 से अधिक काॅलेजों में पहले ही अवकाश घोषित कर दिया गया है। दूसरी तरफ राज्य एवं केंद्र सरकार तथा सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों ने भी जल्लीकट्टू के समर्थन में रैली निकाली। कुछ बैंक संगठनों द्वारा बंद को अपना समर्थन दिये जाने के कारण बैंको में लेन-देन का कामकाज प्रभावित हुआ।

समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबन्धन पर संकट के बादल

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लखनऊ,20 जनवरी, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी(सपा) और कांग्रेस का बहुचर्चित गठबन्धन खटाई में पडता नजर आ रहा हैै । कम से कम सत्तारूढ सपा द्वारा आज जारी की गई अपने 191 उम्मीदवारों की सूची से तो यही लगता है ,जिसमें कांग्रेस के कब्जे वाली सीटों को भी नहीं छोडा गया है । राज्य विधानसभा के पहले,दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव के लिये घोषित सपा के उम्मीदवारों की इस सूची में कांग्रेस के कब्जे वाली मथुरा, किदवई नगर, बिलासपुर और शामली जैसी कई सीटों पर भी पार्टी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। मथुरा सीट से कांग्रेस विधानमण्डल दल के नेता प्रदीप माथुर विधायक हैं, जबकि बिलासपुर (रामपुर) से संजय कपूर और शामली से पंकज मलिक विधायक हैं। किदवई नगर सीट से कांग्रेस के अजय कपूर विधायक हैंं। उधर, सपा के वरिष्ठ नेता और सांसद किरणमय नंदा ने कहा कि कांग्रेस कोे गठबन्धन में 84-85 सीट मिलनी चाहिए। उन्होंने एक सवाल के जवाब में स्वीकार किया कि गठबन्धन को लेकर कोई पेंच है लेकिन अन्तिम रूप से अभी वह कुछ नहीं कह सकते। उन्होंने कहा कि लखनऊ कैेंट और अमेठी सीट सपा के पास ही रहेगी। लखनऊ कैंट से 2012 में कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी जीती थीं लेकिन अब वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में हैं। सपा में विवाद के दौरान मुलायम खेमे ने उनकी छोटी बहू अपर्णा यादव को लखनऊ कैंट से उम्मीदवार बनाया था।

गंगा सफाई के लिए सरकारी व निजी उद्योगों को जोड़ने की तैयारी

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नयी दिल्ली 20 जनवरी, कोल इंडिया, गेल, बीएचईल जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कई प्रमुख कंपनियों के साथ ही निजी क्षेत्र के कुछ बड़े औद्योगिक घरानों तथा कई बैंकों ने गंगा की सफाई के लिए नमामि गंगे अभियान में सहयोग देने की इच्छा जाहिर की है। जल संसाधन,नदी विकास और संरक्षण मंत्रालय में निर्मल गंगा अभियान को देख रहे नेशनल मिशन आॅन क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के महानिदेशक यू पी सिंह ने आज यहां जारी एक बयान में कहा कि गंगा की सफाई के अभियान में सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ निजी क्षेत्र की कंपनियों ने हिस्सेदार बनने में उत्सुकता दिखायी है और इसमें उनकी प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उनके साथ विस्तृत बातचीत की जाएगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए गुरुवार को राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, काॅरपोरेट घरानों, बैंकों और अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उनका कहना था कि निर्मल गंगा अभियान में जनभागीदारी के साथ ही सरकारी और निजी क्षेत्र के उद्योगों को आकर्षित करने के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया और इससे अच्छे संकेत मिले हैं। 


श्री सिंह ने बताया कि कार्यशाला में कोल इंडिया के एक प्रतिनिधि ने कहा कि कंपनी ने कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व वाली अपनी गतिविधि में पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले फूलों से खाद बनाने की प्रणाली विकसित की है और इस दिशा में वह इस कार्यक्रम में सहयोग दे सकते हैं। गेल और भेल भी इसी सामाजिक जिम्मेदारी वाली निधि के तहत नमामि गंगे कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में कोल इंडिया, भेल तथा गेल के अलावा ओएनजीसी, सेल, एनटीपीसी , ऑयल इंडिया लिमिटेड, पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड कई महारत्न तथा नवरत्न कंपनिों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसके साथ ही भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, येस बैंक, यूको बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स जैसे सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के 20 बैंकों के प्रतिनिधियों ने भी नमामि गंगे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में भागीदारी की। श्री सिंह ने कहा कि निजी क्षेत्र की भी कई प्रमुख कंपनियों ने इसमें हिस्सा लिया। निजी क्षेत्र की कंपनियों में आदित्य बिड़ला समूह की जेएसडब्ल्यू एवं टाटा संस जैसी कंपनियां शामिल हैं। एमएमसीजी के महानिदेशक ने कार्यशाला में आए प्रतिनिधियों से कहा कि गंगा निधि एक ट्रस्ट है और 2014 में इसकी स्थापना की गयी थी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसकी अध्यक्षता की थी। गंगा निधि ट्रस्ट का मकसद गंगा नदी के संरक्षण में योगदान देने के इच्छुक लोगों को प्रोत्साहित करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर अपना आदेश टाला

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नयी दिल्ली.20 जनवरी, उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार के अनुरोध पर जल्लीकट्टू (सांडों को वश में करने के खेल) पर अपना आदेश आज एक सप्ताह तक टाल दिया। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से आग्रह किया कि जल्लीकट्टू पर फैसला एक सप्ताह तक टाल दिया जाए क्योंकि केन्द्र और राज्य सरकार इस मुद्दे का समाधान करने का प्रयास कर रही है। गौरतलब है कि जल्लीकट्टू दक्षिण भारत में बहुत लोकप्रिय है और इसे मकर संक्रांति एवं पाेंगल के अवसर पर आयोजित किया जाता है जिसमें युवकों के जत्थे सांडों को पकड़कर अपने वश में करते हैं। कुछ पशु प्रेमी संस्थाओं ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि इस दौरान बेकसूर जानवरों के साथ अधिक हिंसा बरती जाती है और इस कारण कई बार इनकी मौत भी हो जाती है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2014 में इस खेल के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस बीच जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध हटाने और पेटा को प्रतिबंधित किये जाने की मांग को लेकर छात्रों और युवकों के प्रदर्शन को समर्थन देने के विभिन्न ट्रेड यूनियनों एवं संगठनों के आह्वान पर आज तमिलनाडु में बंद से जनजीवन पर व्यापक असर पड़ा। तमिलनाडु सरकार ने जल्लीकट्टू के आयोजन के लिये एक त्वरित अध्यादेश का मसाैदा तैयार किया और इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेज दिया। मुख्यमंत्री ओ पनीरसेलवम ने आज यहां संवाददाताओं को बताया कि जल्लीकट्टू के मुद्दे पर कानून के जानकारों के परामर्श के बाद अध्यादेश का मसौदा तैयार कर लिया गया है और इसे केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के पास भेजा गया है। इस मुद्दे पर श्री पनीरसेल्वम ने कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी और वर्षो पुराने जल्लीकट्टू से जुडी जनता की भावनाओं से अवगत कराया था।

जागरूकता : सशक्त हिन्दी, सशक्त राष्ट्र के लिये सक्रिय हों

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कृपया इस लिंक पर जाकर अपना मत, विरोध और विचार जरूर प्रकट करें। https://www.change.org
विश्वविद्यालय अनुदान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का भारतीय भाषाओं की शोध पत्रिकाओं के प्रति विद्वेषपूर्ण निर्णय के प्रति अपना मत प्रकट करें। राष्ट्र हिंदी के साथ. प्रधानमंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, गृहमंत्री, भारत सरकार और मध्यप्रदेश सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष याचिका ताकि भारतीय भाषाओं के प्रति द्वेष बन्द हो।

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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का भारतीय शोध पत्रिकाओं के साथ द्वेषपूर्ण बर्ताव
 उच्च शिक्षा में सुधार की तमाम बातें करने के साथ…., एपीआई जैसे कई तुगलगी फरमान पारित करने के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था और भारतीय जर्नल्स के साथ एक और मजाक किया है… वह है शोध पत्रिकाओं (रिसर्च जर्नल्स) की हालिया सूची को जारी करना। 10 जनवरी को जाहिर हुई इस सूची पर यदि आप नजर डालेंगे तो पायेंगे कि लगभग 38653 जर्नल्स (http://www.ugc.ac.in/ugc_notices.aspx?id=1604) में देश के तमाम प्रतिष्ठित जर्नल्स नदारद हैं… और इससे भी हास्यास्पद बात यह है कि जारी की गई पाँच सूचियों में हर सूची में केवल तीन इन्डेक्सिंग एजेन्सीज क्रमशः WOS (New Yark), SCOPUS (USA) और Index Copernicus International (ICI) (Poland)  द्वारा इन्डेक्स्ड जर्नल्स को छोड़कर चौथी  किसी एजेन्सी द्वारा सूचीबद्ध जर्नल्स या किसी भी स्वतंत्र जर्नल्स को स्थान ही नहीं दिया गया है। यहाँ यह भी बताना समीचीन होगा कि उपरोक्त तीनों एजेन्सीज में से SCOPUS (USA)  सूचीबद्धता के साथ ही साथ अपने स्वयं के प्रकाशन भी निकालती है। (Source : encyclopedia) यह बड़े दुःख का विषय है कि यूजीसी ने शोध पत्रिकाओं (जर्नल्स) की सूची शिक्षा की गुणवत्ता को कायम रखने के लिये जारी की है, परन्तु उसने यह काम उपरोक्त तीनों एजेन्सीज के सूचीबद्ध जर्नलों के बल पर किया है। यहां प्रश्न उठता है कि क्या यूजीसी के पास अपना कोई पैनल या विवेक अथवा भारतीय शोध पत्रिकाओं (जर्नल्स) की गुणवत्ता परखने का तरीका नहीं है।…. यदि नहीं तो निश्चित रूप से उपरोक्त एजेन्सियों को लाभ पहुँचना स्वाभाविक ही है।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत जैसे देश में जहाँ की मातृभाषा हिन्दी है… जहाँ सरकार और राज्य सरकारें हिन्दी संरक्षण की बात करके हिन्दी दिवस और पखवारें मनाती हैं…. जहाँ हिन्दी,  शिक्षा पद्धति का एक महत्वपूर्ण विषय और माध्यम हैं…. उस देश की उच्च शिक्षा की नियामक संस्था यूजीसी द्वारा हिन्दी की पत्रिकाओं को समुचित स्थान ही नहीं दिया जाना अत्यन्त शर्मनाक है। जबकि यह भी सत्य है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने जब कुछ माह पहले सभी विश्वविद्यालयों एवं सम्बद्ध महाविद्यालयों से जर्नल्स की सूची माॅगी थी तब लगभग सभी शिक्षाविदों ने उन्हीं जर्नल्स की सूची उपलब्ध कराई थी जो तत्कालीन दृष्टि से उच्चतम शिक्षा एवं शोध के लिये सर्वश्रेष्ठ थे,, अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर किस आधार पर इतने बड़े पैमाने पर संस्तुत शोध पत्रिकाओं को नजरंदाज किया गया या जर्नल्स की सूची माँगना महज एक खानापूर्ति ही था।

यह भी प्रश्न उठता है कि क्या देश के विभिन्न भागों से प्रकाशित जर्नल्स कोई महत्व नहीं रखते … और तो और …. बहुत सारे जर्नल्स तो स्वयं कई विश्वविद्यालय… महाविद्यालय और उनसे सम्बद्ध विभागों द्वारा प्रकाशित किये जा रहे हैं…. तब क्या सभी लोग शिक्षा और शोध के नियम-कायदे ताक पर रखकर केवल खानापूर्ति कर रहे थे… क्या एक भी ऐसा जर्नल नहीं है जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अपनी सूची में स्थान दे सकती। शायद ऐसा नहीं है …. परिस्थितियाँ एवं बहुत बड़ा शिक्षक वर्ग तो यही कह रहा है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने केवल कुछ लोगों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से यह सूची जारी की है ताकि एक विशेष वर्ग की तगड़ी कमाई हो सके, और शोधार्थी अधिक शोषित हो सकें।

अभी तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन के लिये 15 नम्बर और नान-रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन के लिये 10 नम्बर तय किये थे, परन्तु जुलाई, 2016 में भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसार अब रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन हेतु 25 नम्बर और नाॅन-रेफरीड जर्नल्स में प्रकाशन पर 10 नम्बर मिलेंगे। विद्यावारिधि अध्येताओं (पीएच. डी. स्काॅलरर्स) के लिये दो पेपर प्रकाशन अनिवार्य होंगे जिनमें एक  पेपर रेफरीड जर्नल्स में अवश्य प्रकाशित होना चाहिये।  यह भी ध्यान देने वाली बात है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी सूची के अधिकांश शोध पत्रिकाओं के शोध-पत्र (जर्नल्स के पेपर) आॅन लाइन पढ़ना भी फ्री नहीं है… पेपर डाउनलोड करने के लिये फीस देनी ही है तो सोचिए प्रकाशन की कीमत क्या होगी और भारतीय परिवेश में जहाँ पहले ही उच्च शिक्षा भ्रष्टाचार और निम्न-गुणवत्ता की शिकार है, वहाँ पर इस कदम की प्रासंगिकता क्या होगी।

 विचारणीय तथ्य यह है कि शोध को बढ़ावा देने के लिये प्रायः नियम सरल बनाये जाने चाहिये किन्तु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के इस कदम ने शिक्षा जगत में न केवल निराशा भर दी है, वरन् जर्नल्स के प्रकाशन से जुड़े तमाम ऐसे प्रकाशन संस्थानों और उनके कर्मचारियों का भविष्य भी अंधेरे में कर दिया है जो मेहनत करके अपना और परिवारीजनों का जीविकोपार्जन कर रहे थे.. तथा देश में गुणवत्तापरक शोध को बढ़ावा भी दे रहे थे। उन तमाम पीएचडी छात्रों के समक्ष समस्या खड़ी हो गयी है जो अभी तक अन्तर्राष्ट्रीय जर्नल्स में सुगमता से अपना पेपर प्रकाशित करवा कर अपनी पीएचडी जमा कर देते थे अब उन्हें रेफरीड जर्नल्स और ऐसे संस्थानों के चक्कर लगाने पड़ेंगे और आर्थिक स्तर पर शोषित भी होना पड़ेगा। अतः उपरोक्त तीनों विदेशी संस्थानों द्वारा सूचीबद्ध शोध पत्रिकाओं (जर्नल्स) को ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा संस्तुत करना कहाँ तक न्यायसंगत है? ऐसी स्थिति में भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी की शोध पत्रिकाओं का क्या होगा, भारतीय विषयों और मूल्यों का क्या होगा?

 अतः आप सभी प्रबुद्धजन से आग्रह है कि भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी को कमजोर करने, उसकी हत्या के प्रयासों के खिलाफ एकजुट, सजग और सक्रिय हों। इस सक्रियता का पहला कदम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के इस निर्णय के विरुद्ध अपना मत दें।




साभार : स्पन्दन फीचर्स 

दिल्ली में पहली बार मनेगा ‘ललित दिवस’

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नई दिल्ली. देश के पूर्व रेलमंत्री और मिथिलांचल के सबसे बड़े राजनेता रहे ललित नारायण मिश्र की जयंती राष्ट्रीय राजधानी में 2 फरवरी को ‘ललित दिवस’ के रूप में धूमधाम से मनाया जाएगा। इसकी तैयारी में जुटी संस्था मिथिलालोक फाउंडेशन ने यह जानकारी गुरुवार को दी। सीता की जन्मस्थली मिथिलांचल के सर्वागीण विकास का सपना लेकर ‘पाग बचाउ अभियान’ चलाने के लिए देश-विदेश में चर्चित मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. बीरबल झा ने कहा, “ललित बाबू का मिथिलांचल के विकास में जो योगदान रहा है, वह अविस्मरणीय है। मेरा समस्त मिथिलावासी से आग्रह है कि वे 2 फरवरी को ‘ललित दिवस’ मनाएं और मिथिला के आन-बान-शान के लिए काम करें।” 2 फरवरी, 1923 को जन्मे ललित नारायण मिश्र 2 जनवरी, 1975 को रेलमंत्री रहते बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर एक कार्यक्रम के दौरा बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और अगले दिन उनके निधन की खबर से समूची मिथिला शोकाकुल हो गई थी। कहा जाता है कि बम विस्फोट आनंदमार्गियों ने किया था। क्यों? इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है। लगभग चार दशक बाद आए अदालत के फैसले से ललित बाबू के पुत्र विजय कुमार मिश्र संतुष्ट नहीं हैं।

ललित बाबू के प्रयास का ही परिणाम है कि मिथिला पेंटिंग को विश्व स्तर पर पहचान मिली। उन्हें मिथिला का विकास महापुरुष बताते हुए डॉ. झा ने कहा, “बिहार में रेलवे के विकास के लिए कई योजनाएं लाकर उन्होंने मील का पत्थर स्थापित किया। ललित बाबू के योगदान को मिथिलांचल कभी भूल नहीं सकता।” उन्होंने कहा कि संदेहास्पद हत्या के समय भी मिश्र रेलवे की योजना का ही शिलान्यास कर रहे थे। वह दूरदर्शी राजनेता थे, उनके मन में मिथिलांचल के प्रति गहरा लगाव था। आज वह रहते सीता की मिथिला विकसित क्षेत्र होती, देश-विदेश के लोग इस पावन धरती को देखने आते, जहां की मिट्टी से सीता प्रकट हुई थीं। अफसोस कि आज 21वीं सदी में भी मिथिला उपेक्षित है और उनकी ससुराल अयोध्या दो धर्मो की रणभूमि बनी हुई है। मिथिला को देश के प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र के रूप में परिणत करने की महत्वाकांक्षा रखने वाले डॉ. झा सीता मंदिर बनवाना चाहते हैं। ब्रिटिश लिंग्वा के बैनर तले देश में ‘इंगलिश फॉर सोशल जस्टिस’ के लिए लगभग दो दशक से काम कर रहे डॉ. झा ने कहा, “ललित बाबू जैसे विराट व्यक्तित्व वाले राजनेता की कमी आज चार दशक बाद भी खल रही है। ललित दिवस पर होने वाले कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार सहित विभिन्न दलों के राजनेताओं एवं समाज के विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है।”

सामाजिक न्याय की जुमलेबाजी के बरक्स सच्चे सामाजिक न्याय के सवाल पर 19 फरवरी को अधिकार रैली: दीपंकर.

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  • नोटबंदी-शराबबंदी की जुगलबंदी के खिलाफ 26 जनवरी से अधिकार अभियान, 11-17 फरवरी तक अधिकार यात्रा.
  •  यूपी चुनाव में भाजपा को हराने का संदेश देगी अधिकार रैली.
  • अधिकार रैली को लेकर पटना में आयोजित कार्यकर्ता कन्वेंशन को माले नेताओं ने किया संबोधित.

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पटना 20 जनवरी 2016, पूरे देश और बिहार की गरीब जनता आज बेहद परेशान है. एक तरफ मोदी सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी ने उनके जीवन को गहरे संकट में डाल दिया है, तो शराबबंदी पर नीतीश सरकार के काले कानून ने भी आम जनता के लिए मुसीबत खड़ी कर रखी है. नोटबंदी-शराबबंदी की इस जुगलबंदी में आम जनता जबरदस्त परेशानी झेल रही है. दूसरी ओर, सामाजिक न्याय का दंभ भरने वाली ये सरकारें आज उसके तीन मौलिक आधारों -शिक्षा, रोजगार व भूमि सुधार पर पूरी तरह खामोश हैं. उलटे, इन सवालों को लेकर लड़ने वाली ताकतों पर आज हमले हो रहे हैं, हत्यायें हो रही हैं. बिहार में हाल के दिनों में दलित-गरीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों पर हमले की बाढ़ आ गयी है. अभी हाल में भूमि अधिकार की लड़ाई लड़ते हुए हमारे अररिया जिला सचिव काॅ. सत्यनारायण सिंह यादव व कमलेश्वरी ऋषिदेव की बर्बरता से हत्या कर दी गयी. इसके पहले भी कई कार्यकर्ताओं की बर्बरता से हत्या की गयी. स्कूल के कैंपस में दलित छात्रा के साथ बलात्कार व हत्या हो रही है. इन गंभीर सवालों पर नीतीश सरकार एक शब्द तक नहीं बोल रही. संवेदनहीन नीतीश सरकार ने प्रशासन को शराबबंदी के अपने एकसूत्री अभियान में लगा रखा है. आज जबरदस्ती मानवशृंखला बनायी जा रही है. जबकि हर कोई जानता है कि ये नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने बिहार के गांव-गांव में शराब की दुकानें खुलवाईं. आज भी बिहार में शराब का उत्पादन बखूबी जारी है, होम डिलीवरी तक हो रही है, इस पर कठोर कार्रवाई करने की बजाए बिहार सरकार शराबबंदी की जुमलेबाजी से जनता को भरमाना चाहती है.

इसी परिस्थ्ति में हम यह अधिकार रैली करने जा रहे हैं. उक्त बातें माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना के आइएमए हाॅल में आयोजित पटना जिला व पटना नगर के संयुक्त कार्यकर्ता कन्वेंशन में कही. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय की जुमलेबाजी के खिलाफ सच्चे सामाजिक न्याय के सवाल पर हम पूरे बिहार में अधिकार आंदोलन चलायेंगे. 26 जनवरी से इस अभियान की शुरूआत होगी. गणतंत्र दिवस के मौके पर झंडोत्तोलन के उपरांत प्रत्येक गांव-टोले में जनता के हक-अधिकार के संघर्ष में शहीद साथियों की याद में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाएगी. वैशाली की महादलित छात्रा डीका कुमारी से लेकर भूमि संघर्ष में शहीद सभी साथियों को श्रद्धांजलि देते हुए अधिकार अभियान की शुरूआत की जाएगी. 11 फरवरी से बेगूसराय जिले से अधिकार यात्रा की शुरूआत होगी, जो भागलपुर, सीमांचल आदि इलाके से गुजरते हुए 17 फरवरी को पटना पहुंचेगी. इस अधिकार यात्रा में खुद काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य शामिल रहेंगे. माले महासचिव ने यह भी कहा कि हम अपने इस अभियान और 19 फरवरी की रैली के जरिए यूपी की जनता से अपील करना चाहेंगे कि वे लोकतंत्र व जनविरोधी एजेंडे पर काम करने वाली भाजपा को गहरी शिकस्त दें, जैसा कि बिहार की जनता ने बिहार चुनाव में कर दिखलाया है.
  
कन्वेंशन को संबोधित करते हुए माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि 19 फरवरी की अधिकार रैली में समाज के विभिन्न वर्गों के अधिकार की आवाज गूंजेगी. शिक्षा, रोजगार, भूमि अधिकार और अन्य सवालों पर आंदोलनों का नेतृत्व करने वाली ताकतों की भागीदारी होगी. एक तरह से यह रैली अधिकार आंदोलनों का महासम्मेलन होगी. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि इस पूरे अभियान को व्यापक जनता के बीच मजबूती से ले जाएं. 19 फरवरी को गांधी मैदान में लाखों की तादाद में जुटकर मोदी-नीतीश को करारा जवाब दें और अपने अधिकार की आवाज बुलंद करें. कन्वेंशन को भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, केंद्रीय कमिटी सदस्य शशि यादव, इनौस के राज्य सचिव नवीन कुमार, राज्य अध्यक्ष मनोज मंजिल, आइसा के राज्य अध्यक्ष मोख्तार आदि ने भी संबोधित किया. जबकि संचालन पार्टी की बिहार राज्य कमिटी सदस्य व खेमस के राज्य सचिव गोपाल रविदास ने की. इस मौके पर पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य व पटना ग्रामीण के सचिव अमर, पटना नगर के सचिव अभ्युदय, रणविजय कुमार, अनिता सिन्हा, सत्यानारायण प्रसाद, सुधीर कुमार, संतोष झा, समता राय सहित सैकड़ो माले कार्यकर्ता कन्वेंशन में उपस्थित थे.
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