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बेउर जेल में छापा , मोबाइल समेत कई आपत्तिजनक सामान मिले

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पटना 24 जनवरी, बिहार की राजधानी पटना के आदर्श केन्द्रीय कारा बेउर में आज तड़के वरीय पुलिस अधीक्षक मनु महाराज के नेतृत्व में की गयी छापेमारी में कुख्यात अपराधियों के वार्ड से गांजा , मोबाइल समेत अन्य आपत्तिजनक सामान मिलेे हैं। श्री महाराज ने यहां यूनीवार्ता को बताया कि उनके नेतृत्व में पटना के पंद्रह थानों की पुलिस ने तड़के करीब दो बजकर तीस मिनट पर बेउर कारा के विभिन्न वार्ड की तलाशी ली। इस दौरान लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) नेता ब्रजनाथी सिंह और संतोष सिंह की हत्या के आरोप में बंद दुर्दांत अपराधी मनोज कुमार के वार्ड समेत विभिन वार्ड से गांजा , सात मोबाइल फोन , चार्जर समेत अन्य आपत्तिजनक सामान बरामद किये गये हैं। वरीय पुलिस अधीक्षक ने बताया कि कुख्यात नक्सली अजय कानू के वार्ड से लाल रंग की एक डायरी मिली है जिसमें सांकेतिक भाषा में काफी कुछ लिखा है। करीब तीन घंटे तक चली इस छापेमारी में कैदियों के सभी वार्डों की गहन तलाशी ली गयी। इस बात की जांच की जा रही है कि राज्य के सबसे बड़े और सुरक्षित माने जाने वाले बेउर जेल में यह सामान कैसे पहुंचे। माना जा रहा है गणतंत्र दिवस को लेकर खुफिया विभाग की ओर से जारी अलर्ट के मद्देनजर पटना पुलिस ने यह छापेमारी की है। 

वंचितों के अधिकार के लिए संघर्ष करेगा राजद : लालू

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पटना 24 जनवरी (वार्ता) राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने आज कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने गुरू एम. एस. गोलवलकर के सिद्धांतों पर चलते हुए आरक्षण को समाप्त करना चाहती है लेकिन उनकी पार्टी वंचितों के अधिकार के लिये अंतिम समय तक संघर्ष करती रहेगी। श्री यादव ने यहां पार्टी के प्रदेश कार्यालय में जननायक कर्पूरी ठाकुर के 93वें जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि संघ और भाजपा जैसी साम्प्रदायिक शक्तियां अपने गुरू गोलवलकर का एजेंडा लागू करने के लिये हर तिकड़म अपनाने में लगी है। वंचित वर्गो के अधिकारों को छीनने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी साम्प्रदायिक शक्तियों के इरादे को कभी भी पूरा नहीं होने दिया जायेगा। राजद अध्यक्ष ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को समाप्त करने की बात कही थी। बिहार की जनता ने विधानसभा के चुनाव में इसका करारा जवाब दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि संघ और भाजपा को खाली हाथ लौटना पड़ा। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ऐसे लोगों को बेहतर ढंग से समझ रही है और किसी भी बहकावें में आने वाली नहीं है। श्री यादव ने कहा कि अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना है जिसे लोगों को भूलना नहीं चाहिए। बिहार की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश के इलाकों में पूरी एकजुटता के साथ अभी से ही कार्यकर्ताओं को लगने की जरूरत है ताकि साम्प्रदायिक शक्तियां अपने मंसूबे में कभी कामयाब न हो सके। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी के कार्यकर्ता पूरी सजगता के साथ रहेंगे और भाजपा एवं संघ को उखाड़ फेकेंगे। 

राजद अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव को देखते हुए संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने एक बार फिर से आरक्षण को समाप्त करने के साथ ही इसकी समीक्षा करने का मुद्दा उठाया है। संघ प्रवक्ता के इस संबंध में दिये गये बयान के तत्काल बाद ही उन्होंने (श्री यादव) जब पलटवार किया तब कहा गया कि यह उनकी ओर से दिया गया बयान नहीं है। उन्होंने कहा कि संघ के प्रवक्ता ने अपने स्पष्टीकरण में कहा था कि उन्होंने आध्यात्मिक आधार पर आरक्षण की बात कही थी । श्री यादव ने सवालिया लहजे में कहा कि आध्यात्मिक आधार पर आरक्षण दिये जाने का संविधान में जब किसी तरह का प्रावधान ही नहीं है तो फिर इसे उठाना ही नहीं चाहिए। संघ और भाजपा के लोग रात में कुछ बोलेंगे तो दिन में कुछ और। उन्होंने कहा कि पलटी मारने में उन्हें महारथ हासिल है। 

राजद अध्यक्ष ने कहा कि सच्चाई यह है कि देश के संविधान में संघ की आस्था ही नहीं है और वे अपने गुरू गोलवलकर की पुस्तक .. बंच ऑफ थॉट्स.. में विश्वास रखते हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए गोलवलकर की पुस्तक को हिन्दी में ..बोझ का संग्रह .. बताया । श्री यादव ने गुरू गोलवलकर की पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि इस पुस्तक की पृष्ठ संख्या 25, 168, 356 और 357 में स्पष्ट रूप से आरक्षण के संबंध में कहा गया है। गुरू गोलवलकर के सिद्धांतों को ही संघ और भाजपा अमली जामा पहनाने में लगी हुयी है । उन्होंने कहा कि नोटबंदी के खिलाफ उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद पटना में एक रैली करेगी । उन्होंने जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किये जाने का एक प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया । इस मौके पर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे, प्रधान महासचिव मुद्रिका सिंह यादव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह, रघुनाथ झा, श्रीमती कांति सिंह, सांसद जयप्रकाश नारायण यादव, पूर्व सांसद प्रभूनाथ सिंह, वित्त मंत्री अब्दुलबारी सिद्दीकी और सहकारिता मंत्री आलोक कुमार मेहता समेत कई अन्य नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। 

झामुमो सदस्यों के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही रही बाधित

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रांची 24 जनवरी, झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के सातवें दिन भी छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संतालपरगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन वापस लेने के मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही बाधित रही। विधानसभा की कार्यवाही आज पूर्वाह्न 11 बजे शुरू होने पर झामुमो के कई सदस्य सीएनटी-एसपीटी अधिनियम में संशोधन के मसले को लेकर नारेबाजी करते हुए आसन के निकट आ गये। वहीं, झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) विधायक दल के नेता प्रदीप यादव समेत अन्य सदस्यों ने सोमवार को राजधानी रांची में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं पर पुलिस लाठीचार्ज का मामला उठाया और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। झामुमो के स्टीफन मरांडी ने भी इस मामले को उठाते हुए छात्रों को न्याय देने की मांग की। कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम समेत अन्य ने पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता योगेंद्र साव के खिलाफ लगाये गये अपराध नियंत्रण अधिनियम (सीसीए) के मामले को लेकर कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया गया जिसे विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने लोक महत्व का नहीं मानते हुए अमान्य कर दिया। इस बीच झामुमो के कई विधायक सीएनटी-एसपीटी अधिनियम में संशोधन के खिलाफ आसन के निकट आकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते रहे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि यह मसला राज्य की एक बड़ी आबादी के अस्तित्व से जुड़ा है इसलिए सरकार को इस संशोधन विधेयक को वापस लेना चाहिए। श्री उरांव ने झामुमो सदस्यों को काफी समझाने का प्रयास किया लेकिन सदन को व्यवस्थित नहीं होता देखकर विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही भोजनावकाश दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी। इससे पहले विधानसभा के मुख्य द्वार पर भी झामुमो सदस्यों ने सीएनटी-एसपीटी अधिनियम में संशोधन को वापस लेने समेत अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। 

भाजपा शासित राज्यों में पूर्ण शराबबंदी लागू करायें प्रधानमंत्री : नीतीश

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पटना 24 जनवरी, बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड(जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आज भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) शासित प्रदेशों में पूर्ण शराबबंदी लागू किये जाने की मांग करते हुए कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने वहां शराबबंदी जारी रखी थी इसलिये उनसे उम्मीद है कि वह ऐसा कदम उठायेंगे । श्री कुमार ने यहां पार्टी की ओर से आयोजित जननायक कर्पूरी ठाकुर जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने हाल ही में गुरू गोविंद सिंह जी के 350 वें जन्म दिन के अवसर पर पटना में आयोजित प्रकाश पर्व में बिहार में लागू पूर्ण शराबबंदी की प्रशंसा की थी । उन्होंने कहा कि श्री मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने वहां पूर्व से लागू शराबबंदी को जारी रखा था । मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि श्री मोदी भी पूर्ण शराबबंदी के पक्ष में हैं इसिलये उन्हें कम से कम भाजपा शासित राज्यों में पूर्ण शराबबंदी को लागू कराने के लिये ठोस कदम उठाना चाहिए । उन्होंने कहा कि श्री मोदी ने भले ही बिहार में लागू किये गये शराबबंदी की प्रशंसा की हो लेकिन ऐसा लगता है कि बिहार में भाजपा के नेताओं पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और वह सिर्फ इसमें मीन मेख निकालने में लगे हैं ।

श्री कुमार ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि बिहार भाजपा के नेता 21 जनवरी को आयोजित मानव श्रृंखला में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों के शामिल होने पर आपत्ति जता रहे हैं । भाजपा नेता को यह मालूम होना चाहिए कि किसी भी संदेश को घर-घर में बच्चों के माध्यम से ही पहुंचाया जाता है । उन्होंने कहा कि भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदा की स्थिति में क्या करें और क्या न करें इससे संबंधित जानकारी देने के लिये आपदा प्रबंधन विभाग स्कूलों में कार्यशाला आयोजित करता है । मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चें जब इसकी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो वे घरों में भी लोगों को बताते है । इसी तरह शराबबंदी और पूर्ण नशाबंदी के संदेश को भी समाज में बच्चों के माध्यम से पूरी मजबूती से पहुंचाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि बच्चों में शराबबंदी और नशाबंदी की जागृति आने पर वे न केवल वयस्क होने पर इस बुराई से बचेंगे बल्कि अन्य लोगों को भी इसके लिये प्रेरित करेंगे । श्री कुमार ने चुटकी लेते हुए भाजपा नेता श्री सुशील कुमार मोदी की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह भी कम उम्र में ही राजनीति से प्रेरित हुए और इसी का परिणाम है कि आज उनके वक्तव्य अखबारों में छपते हैं । कोई यदि 60 वर्ष से अधिक उम्र में इस तरह का प्रयास करे तो वह जीवन में राजनीति के क्षेत्र में ऐसी सफलता प्राप्त नही कर सकता ।उन्होंने कहा कि वह स्वयं छात्र जीवन में ही डा0 राममनोहर लोहिया , लोकनायक जयप्रकाश नारायण और जननायक कर्पूरी ठाकुर जैसे समाजवादी नेताओं के विचारों से प्रभावित हुए थे और इसी का परिणाम है कि उन्हें आज समारोह को संबोधित करने का अवसर प्राप्त हुआ है । 

मुख्यमंत्री ने कहा कि 21 जनवरी को पूरे बिहार में मानव श्रृंखला आयोजित की गयी थी जिसमें शुरूआती आंकड़ों के अनुसार तीन करोड़ लोगों ने भाग लिया था । उन्होंने कहा कि बाद में जो आंकड़ें आये उससे यह पता चलता है कि चार करोड़ से भी अधिक लोगों ने मानव श्रृंखला में भाग लिया । श्री कुमार ने कहा कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की आबादी दस करोड़ 36 लाख थी और अब यह बढ़कर लगभग साढ़े ग्यारह से बारह करोड़ के बीच होगी । इतनी आबादी में से चार करोड़ लोगों का शराबबंदी और नशाबंदी के पक्ष में मानव श्रृंखला के लिये हाथ से हाथ मिलाकर खड़ा होना बड़ी बात है । उन्होंने कहा कि इससे दुनिया में संदेश गया है कि बिहार के लोग शराबबंदी और नशाबंदी के लिये पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है । मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर जब 1977 में जनता पार्टी के शासन काल में मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू किया था । उन्होंने कहा कि जनसंघ जो अब भारतीय जनता पार्टी है वह भी जनता पार्टी के गठन में शामिल हुयी थी और उसके नेताओं ने ही आरक्षण लागू होने से नाराज होकर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था । श्री कुमार ने कहा कि जननायक की प्रेरणा से ही उन्होंने बिहार में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किये जाने के साथ सरकारी नौकरियों में भी उनके लिये 35 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है । व्यवहार न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में भी अति पिछडों के लिये 21 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया है । उन्होंने कहा कि पिछड़ा , महिला , अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये भी व्यवहार न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में आरक्षण लागू की गयी है ।

भाजपा ने आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 60 प्रतिशत करने की मांग की

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पटना 24 जनवरी, बिहार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने केन्द्र सरकार से जननायक कर्पूरी ठाकुर को ..भारत रत्न.. की उपाधि दिये जाने की आज मांग करते हुए कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 60 प्रतिशत किये जाने के लिये देश में आम सहमति बननी चाहिए। भाजपा विधानमंडल दल के नेता एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यहां पार्टी के प्रदेश कार्यालय में जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह को संबोधित करते हुए केन्द्र सरकार से जननायक को भारत रत्न की उपाधि दिये जाने के साथ ही पिछड़ों एवं अति पिछड़ों की आरक्षण सूची को दो भागों में बांटने का भी आग्रह किया । बिहार में यदि भाजपा की सरकार बनती है तो पिछड़े एवं अति पिछड़ों को पंचायत चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया जायेगा। श्री मोदी ने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर 1952 से जीवन पर्यन्त तक विधायक रहे और कभी भी कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाया। कांग्रेस के खिलाफ सदैव लड़ते रहे । आरक्षण की अधिकतम सीमा 60 प्रतिशत किया जाये इसके लिये देश में आम सहमति बननी चाहिए । उन्होंने आरक्षण की सीमा 60 प्रतिशत किये जाने पर बल देते हुए कहा कि अब तक चली आ रही आरक्षण की जो व्यवस्था है उसमें भाजपा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । 

पूर्व उप मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में पिछड़े -अति पिछड़े वर्ग को कोई आरक्षण नहीं दिया था । उन्होंने कहा कि बिहार में भाजपा ने पिछड़े वर्ग के लोगों को सम्मान देने का काम किया है । सरकारी नौकरियों में पहली बार वर्ष 1977 में आरक्षण की व्यवस्था हुयी थी और वर्ष 2005 में पंचायत चुनाव में 20 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया । उन्होंने कहा कि बिहार में दोनों ही समय जनसंघ और भाजपा की अहम भूमिका रही है । विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर गांव , गरीब और किसानों के विकास के लिये सदैव प्रयत्नशील रहे जबकि उनके अनुयायी होने का दावा करने वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने इस वर्ग की घोर उपेक्षा की है । पन्द्रह वर्ष के लालू- राबड़ी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वर्ष 2005 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने अति पिछड़ा वर्ग को हक और सम्मान दिलाने का काम किया । उन्होंने कहा कि अति पिछड़ा वर्ग को सम्मान दिलाने में भाजपा के विधायकों एवं मंत्रियों की अहम भूमिका रही थी । भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद नित्यानंद राय ने कहा कि यह उनके लिये सौभाग्य की बात है कि बतौर संसद सदस्य लोकसभा में जननायक की भूमि की सेवा करने का उन्हें अवसर मिला है । जननायक बिहार ही नहीं बल्कि देश की विभूति थे ।उन्होंने कहा कि गरीबों को अधिकार और अगड़े की सेवा में जननायक ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी । उन्होंने कहा कि जननायक का बगैर अंग्रेजी विषय लिये ही मैट्रिक उर्तीण करने की अनुमति दिया जाना गरीबों की तकदीर को बदलने का एतिहासिक निर्णय था । 

श्री राय ने कहा कि भाजपा पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और इस वर्ग से आने वाले चाहे राजद अध्यक्ष श्री यादव हों या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या फिर उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती हों सभी भाजपा के सहयोग से ही मुख्यमंत्री बन सके । जननायक जब -जब मुख्यमंत्री बने उन्हें जनसंघ - भाजपा का पूरा समर्थन मिलता रहा । उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अति पिछड़े वर्ग से इस पद तक पहुंचे हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अति पिछड़े वर्ग से हैं । अति पिछड़ों को सम्मान और आरक्षण का अधिकार भाजपा ने ही दिया । भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं विधान परिषद के सदस्य मंगल पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जननायक को भारत रत्न की उपाधि दिये जाने का आग्रह किया । जननायक के सपनों को भाजपा ही साकार कर रही है । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने गरीबों , पिछड़ों और अति पिछड़ों के कल्याण के लिये 24 से अधिक योजनाएं शुरू की हैं । बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि आज महागठबंधन के बड़े घटक राजद और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता अपने को जननायक का उतराधिकारी मान रहे हैं । श्री पांडेय ने कहा कि कांग्रेस के साथ महागठबंधन को देखकर जननायक की आत्मा आज कराह रही होगी । उनकी पार्टी अति पिछड़ा समाज को राजनीतिक अधिकार दिलाने के प्रति पूरी तरह से वचनबद्ध है । उन्होंने कहा कि प्रदेश में पार्टी के दस जिलाध्यक्ष तथा ढाई सौ मंडल अध्यक्ष पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग से हैं । इस मौके पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रामकृपाल यादव , राज्यसभा सांसद डॉ. सी. पी. ठाकुर, सांसद विरेन्द्र चौधरी , सांसद अजय निषाद , पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती रेणु देवी और पूर्व मंत्री डा0 भीम सिंह समेत कई अन्य नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किये । 

कैप्टन कर रहे डूबते जहाज की कप्तानी : राजनाथ

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फाजिल्का. 24 जनवरी, केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पार्टी को डूबता जहाज बताते हुये कैप्टन अमरिंदर सिंह को डूबते जहाज की कप्तानी करने वाला बताया। श्री सिंह ने पंजाब मेेेें चुनाव प्रचार के दौरान आज फाजिल्का विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन मेेेें रैली को संबोेधित करते हुये कहा कि अब भारत कांग्रेस मुक्त होेेनेे जा रहा है तथा करीब पंद्रह राज्यों में भाजपा की सरकारेें हैं और शेष राज्योें मेें भी चुनाव के बाद कांग्रेस का सफाया हो जायेगा। उन्होंने कहा कि पंजाब में कांग्रेस पिछले दस सालोें मेें काफी पिछड़ गयी और अब उसका सत्ता मेें आना आसान नहीं। उन्होंने कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी को आड़े हाथोें लेते हुये कहा कि येे दोेनोें ही पार्टियां नशे के लिये पंजाब को बदनाम करने पर तुली हैंं। जबकि नशे के मामले अन्य राज्य काफी आगे हैं लेकिन कांग्रेस तथा आप पंजाब की ही दुश्मन बन गयी हैं। उन्होंने अाप पर हमला करते हुए कहा कि आप जब दिल्ली जैसे छोटे राज्य को नहीं संभाल सकी तो पंजाब मेें शासन कैसे कर सकेगी। कांग्रेस के समय में भी प्रदेश विकास की दौड़ में पिछड़ गया और आप का भी राज्य को पीछे ले जाने का इरादा लगता है । उन्होेंनेे बताया कि पंजाब गुरुआेें, संत, पीर और फकीरोें की धरती है। इसका विकास हुये बिना भारत विश्व गुरु नहीं बन सकता। अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने पिछले दस सालों मेें जमकर विकास कराया तथा एम्स से लेकर आईआर्ईटी और कर्ई विश्वस्तर के संस्थान खोले हैं। गृह मंत्री ने उड़़ी आतंकवादी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र करते हुये कहा कि आतंकवाद को कतर्ई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आतंकवाद सीमा पार का हो या इस पार का। सरकार उसके खात्मेे के लिये वचनबद्ध है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद का किसी जाति धर्म से कोर्ई ताल्लुक नहीं होता। 

मधुबनी : भाजपा कार्यसमिति की बैठक 28 को, आएंगे नित्यानंद

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भाजपा जिला कार्यालय में मंगलवार को जिलाध्यक्ष घनश्याम ठाकुर की अध्यक्षता में पार्टी के मंडल व मोर्चा अध्यक्षों की बैठक हुई। जिलाध्यक्ष ने कहा कि 28 जनवरी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय मधुबनी आ रहे हैं। वे नगर परिषद विवाह भवन में कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। वे 29 जनवरी को बेनीपट्टी के एकतारा मंडल में जिला कार्यसमिति की बैठक को संबोधित करेंगे। उन्होंने कार्यकर्ताओं से उनके भव्य स्वागत करने की अपील की। बैठक में भाजपा के प्रदेश मंत्री मृत्यंुजय झा, विधान पार्षद सुमन कुमार महासेठ, पूर्व विधायक रामदेव महतो, अमरेश झा, शम्भुनाथ ठाकुर, देवेन्द्र प्रसाद यादव, महेन्द्र पासवान, प्रमिला पूर्वे, मनोज कुमार मुन्ना, जन्मेजय सिंह, मंगलविहारी कामत, अजय भगत, बेबी झा, पवन झा, विष्णु राउत, अरविंद पूर्वे, श्रवण पूवेर्क सहित कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने विचार व्यक्त किया।

मिथिला स्टूडेंट यूनियन सात फरवरी को मधुबनी में आक्रोश मार्च निकालेगा

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मिथिला स्टूडेंट यूनियन सात फरवरी को शहर में आक्रोश मार्च निकालेगा। यूनियन मधुबनी में केन्द्रीय विद्यालय की स्थापना को लेकर आरके कॉलेज से समाहरणालय तक आक्रोश मार्च निकालेगा।इसमें लगभग दो सौ से अधिक छात्र भाग लेंगे। मार्च के बाद समाहरणालय पर धरना व प्रदर्शन भी किया जायेगा । जिला प्रभारी रंधीर झा, जिलाध्यक्ष राघवेन्द्र ठाकुर और उपसचिव शशि अजय झा ने बताया कि मिथिला क्षेत्र व छात्रों के विकास के लिये प्रतिबद्ध एक गैर राजनीतिक संगठन है। यूनियन लगातार मिथिलांचल की मूलभूत समस्याओं को लेकर आंदोलन करता आ रहा है। उप सचिव शशि अजय झा ने बताया कि आक्रोश मार्च को लेकर प्रशासनिक और पुलिस पदाधिकारियों को जानकारी दे दी गई है। बता दें कि मधुबनी में अबतक केन्द्रीय विद्यालय नहीं है, जिस वजह से छात्रों को पढ़ने के लिए बाहर पलायन करना पड़ता है।

विशेष : अब लड़ाई मैराथन है, यूपी के फर्राटे क आगे भी सोचें!

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  • जब तक आधी आबादी उठ खड़ी नहीं आजाद,तब तक लोकतंत्र की हर लड़ाई अधूरी है।


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति का जो वीभत्स चेहरा सामने है,नतीजा कुछ भी हो हालात बदलने के आसार नहीं हैं। इसबीच भक्तों के लिए खुशखबरी है कि नई विश्वव्यवस्था के ग्लोबल हिंदुत्व के ईश्वर आज रात ग्यारह बजे दुनिया के चार नेताओं से बात करने के बाद भारत के नेतृत्व से बतियायेंगे।ओबामा के लंगोटिया यार को डान डोनाल्ड ने भाव कुछ कम दिया है,ऐसा बी न सोचें।असल में हम तो उन्हीं के प्रजाजन हैं और वे स्वंय मनुमहाराज हैं।सबसे बड़े उपनिवेश को और चाहिए भी तो क्या,बताइये।लाइव देखिते रहिये चैनल वैनल। यह भी मत कहिये कि भाई,हद है कि बलि,जब ट्रम्प ने यूएस इलेक्शन जीता था, तब मोदी उन्हें सबसे पहले फोन करने वाले नेताओं में शामिल थे। अभी 2014 के बाद नरसंहारी अश्वमेध अभियान तेज जरुर हुआ है लेकिन हालात दरअसल 2014 से पहले कुछ बेहतर नहीं थे।नरसंहार के सिलसिले में यह फासिज्म का राजकाज कारपोरेट नरसंहार का हिंदुत्व एजंडा ग्लोबल है।प्रगति यही है।

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हजारों बार पिछले पच्चीस सालों से घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा हम देते रहे हैं।उन्हें दोहराये बिना सिर्फ इतना कहना है कि हम एक के बाद एक नरसंहार के घटनाक्रम से होकर पंजाब की पांचों नदियां खून से लबालब,सारा का सारा गंगा यमुना नर्मदा ब्रह्मपुत्र कृष्णा कावेरी गोदावरी के उपजाऊ मैदानों से लेकर हिमालय, समुदंर, अरण्य, विंध्य, अरावली, सतपूड़ा,रेगिस्तान रण के साथ साथ एक एक जनपद को मरघट में तब्दील होने के नजारे देखते हुए मौजूदा मुकाम पर निःशस्त्र मौनी बाबा जय श्री जयश्री बजंरगी केसरिया हो चुके हैं। पच्चीस साल के मुक्तबाजार के सफरनामे में फर्क सिर्फ यही है। सारी विचारधाराओं का आत्मसमर्पण उपलब्धि है। मौलिक अधिकारों का हनन उपलब्धि है। सारे माध्यमों का,विधाओं,विषयों का अवसान है। बहुलता विविधता सहिष्णुता अमन चैन का विसर्जन है। दसों दिशाओं में आगजनी,हिंसा की दंगाई राजनीति है।  इतिहास के अंधेरे ब्लैकहोल में गोताखोरी है और ज्ञान मिथकों में सीमाबद्ध है। नागरिक और मानवाधिकारों का हनन उपलब्धि है। संविधान और कायादे कानून का कत्लेआम का नवजागरण है। सारे राष्ट्रीय संसाधनों संपत्तियों का निजीकरण नीलामी विनिवेश उपलब्थि है। बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज उपलब्धि है। रोजगार संकट आजीविका संकट पर्यावरण जलवायु संकट उपलब्धि है। फिलवक्त कैशलैस डिजिटल इंडिया का फाइव जी स्टार पेटीएम जिओ बाजार बम बम है।हर बम परमाणु बम है।आगे भुखमरी मंदी और हिरोशिमा नागासाकी महोत्सव हैं। फर्क यही है कि मुक्तबाजार में सबसे बड़ा रुपइया है,न बाप बड़ा है न भइया और न मइया।नोटबंदी के पहले जो हाल रहा है,अबभी वहीं हाल है। नोटबंदी से पहले और बाद में भी डिजिटल कैशलैस इंडिया में नकदी की क्रयशक्ति हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है और हम परिवार से बेदखल हो गये हैं तो बच्चे लावारिश हो गये हैं और समाज संस्कृति सिरे से लापता हैं और हमारा सारा कामकाज और राजकाज मुक्तबाजार है।हम किसी देश के नहीं मुक्त बाजार के लावारिश गुलाम प्रजाजन हैं। पंजाब में अस्सी के दशक से भी भयानक संकट सर्वव्यापी नशा है तो बाकी देश में भी नशा के शिकंजे में नई पीढ़ी है। बांग्ला अखबारों में,चैनलों में  रोज रोज सिलिसलेवार ब्यौरा किसी न किसी टीनएजर या नवयुवा के नशे के शिकंजे में बाप,भाई,मां या दादी को मार देने या विवाहित युवक द्वारा पत्नी और बच्चों को निर्मम तरीके से मार देने का छप दीख रहा है।कलेजा चाक होने के बदले लोगों को इस खतरनाक केल से मजा आ रहे है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके बच्चे सही सलामत हैं और रेस में सबसे तेज दौड़ रहे हैं।हालात उलट हैं।

टुजी थ्रीजी फोर जी फाइव जी दरअसल जी नहीं,उपभोक्ता वाद के चरणबद्ध स्टार है।हमारे बच्चे हत्यारों में,अपराधियों में,बलात्कारियों में शामिल हो रहे हैं। यह संचार क्रांति भी नहीं है।विशुध उपभोक्ता क्रांति है।अपराध क्रांति भी है यह। सूचना,जानकारी ज्ञान सिरे से लापता हैं। तकनीक को छोड़ सारे विषय उपेक्षित हैं। उच्च शिक्षा शोध के बदले तकनीक और सिर्फ तकनीक है। ज्यादा से ज्यादा कमाने,ज्यादा से ज्यादा खर्च करने और ज्यादा से ज्यादा भोग की आपाधापी भगदड़ है।सुरसामुखी बेरोजगारी है।नशा है और बेलगाम अपराध बाहुबलि राज है।सारे बच्चे इस अपराध जगत के वाशिंदे बना दिये जा रहे हैं।हम बेपरवाह हैं। हम बेपरवाह है कि हमारे बच्चे लावारिश भटक रहे हैं। हर विधा माध्यम में मनोरंजन भोग कार्निवाल है। अर्थव्यवस्था या उत्पादन प्रणाली के प्रबंधन के बजाय सत्ता वर्ग के लिए रंगबिरंगी योजनाओं में खैरात बांटकर लोकलुभावन बजट या मौके बेमौके मुआवजा,लाटरी या पुरस्कार सम्मान भत्ता के जरिये या फिर खालिस घोषणाओं से,टैक्स राहत,कर्ज-पैकेज के ऐलान से  सरकारी खर्च से वोटबैंक मजबूत बनाकर नकदी बढ़ाकर बाजार में आम जनता कासारा पैसा बचत जाममाल झोंककर अनंतकाल तक इलेक्शन जीतने का मौका है। बजट इसीलिए वित्तीय प्रबंधन नहीं वोटबैंक प्रंबंधन है।नोटों की वर्षा है। सेवा जारी है।तकनीक ब्लिट्ज है और मनोरंजन भारी है। देश के संसाधनों का संसाधनों का क्या हो रहा है,मेहनतकशों और बहुजनों,बच्चों और औरतों के क्या हाल हैं,बुनियादी सेवाओं और जरुरतो का किस्सा क्या है,रोजगार और आजीविका का क्या बना,उत्पादन प्रणाली या अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में सोचने समझने की मोबाइल नागरिकों को कोई परवाह नहीं है। मसलन वित्तीय घाटे के सरकारी आंकड़ों पर सीएजी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। सीएजी का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2016 में वित्तीय घाटा सरकारी अनुमान से 50,000 करोड़ रुपये ज्यादा हो सकता है।सीएजी के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा बढ़ने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2016 में जीडीपी का 4.31 फीसदी वित्तीय घाटा होगा। वहीं सरकार का वित्तीय घाटा, जीडीपी का 3.9 फीसदी रहने का अनुमान है। इस तरह, सीएजी के मुताबिक सरकारी अनुमान से 50,407 करोड़ रुपये ज्यादा घाटा संभव है।

मसलन नोटबंदी के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए कैबिनेट ने आज कई बड़ी योजनाओं को मंजूरी दी है।चुनाव आयोग के निषेध के बाद यह सीधे पुल मारकर छक्का है।अलग पांच राज्यों की जनता को अलग से भरमाने के बजाय थोक भाव से आम जनता के बहुमत पर सीधा निवेश है। खेती ,कारोबार चौपट है,नकदी है नहीं लेकिन गांवों में घर बनाने या पुराने घर के विस्तार के लिए कर्ज पर ब्याज में सब्सिडी मिलेगी। इसके अलावा फसल कर्ज पर से ब्याज में राहत दी गई है। सरकारी दावा है कि गांवों में अब घर बनाना ज्यादा आसान होगा। कर्ज किसे मिलेगा और किसे नहीं.जाहिर है कि यह हैसियत पर निर्भर होगा।  कैबिनेट ने गांवों में घर बनाने के लिए एक नई स्कीम को मंजूरी दी है।  गांवों में नए घर बनाने या पुराने घर के विस्तार के लिए 2 लाख तक के लोन में ब्याज में सब्सिडी देने की योजना है। सरकारी खर्च बपौती धंधा है,अपनी अपनी राजनीति के लिए जितना चाहे खर्च करो क्या कर लेगा कोई आयोग या अदालत। वहीं नोटबंदी की मार के बाद अब किसानों को जख्म पर सरकार मरहम लगाने में जुटी है। आज कैबिनेट में किसानों को राहत देने के कुछ फैसले लिए गए हैं। किसानों को फसल पर लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए 2 महीने की मोहलत दी गई है। नोटबंदी की वजह से किसानों को 2 महीने और मोहलत दी गई है।  कैबिनेट ने वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना को भी मंजूरी दी है। इसके अलावा आईएम बिल को भी कैबिनेट मंजूरी दे दी है। अब आईआईएम से एमबीए करने वालों को डिप्लोमा की जगह डिग्री मिलेगी। और आम नागरिक बल्ले बल्ले हैं। छप्पर फाड़ सुनहले दिनों की उम्मीद में हम मजा लूटने के मकसद से रातोंरात केसरिया फौज में शामिल हो गये हैं। रथी महारथियों के चेहरे बदल भी जायें तो जल जंगल जमीन आजीविका रोजगार नागरिकता मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों से लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लेकर मेहनतकशों के हक हकूक और बुनियादी सेवाओं,जरुरतों और पहचान और वजूद से बेधखल बंचित बहुजनों की रोजमर्रे की जिंदगी में बदलाव के आसार कम ही हैं। आजादी के बाद,गणतंत्र लागू होने के बाद एक और गणतंत्र दिवस के उत्सव से पहले तक बुनियादी अंतर समानता,न्याय और स्वतंत्रता के लक्ष्यों के मद्देनजर कभी नहीं आया है।हालात आजादी से पहले थे,उससे कहीं बदतर हैं।पहले कमसकम ख्वाब थेषख्वाबों को अंजाम देने के विचार थे।जनांदोलन थे।अब सिर्फ मुक्तबाजार है।मौकापरस्ती है।

बहरहाल तमिलनाडु में आत्मसम्मान वाया सिनेमा अब जल्लीकट्टू है। जल्लीकट्टू पर आज भी तमिलनाडु जल रहा है। यह भी अलग तरह का राममंदिर निर्माण है। बुनियादी बदलाव की कोई सोच नहीं,कोई ख्वाब नहीं किसी भी भावनात्मक मुद्दे पर जब चाहो,तब पूरे देश को आग में झोंक दो। आंदोलन भी सेलिब्रेटी शो लाइव सिनेमा ब्लिट्ज है। जबकि जड़ों मे न खाद है और न पानी है।  न मिट्टी है कहीं किसी किस्म की। सबकुछ हवा हवाई है। बुनियादी मुद्दे और बुनियादी सवाल भी हवा हवाई है। आज भी हजारों की संख्या में लोगों ने मरीना बीच पर जमा होकर विरोध प्रदर्शन किया। जल्लीकट्टू को कल तमिलनाडु विधानसभा में मान्यता मिलने के बाद आज चेन्नई पुलिस ने इसके समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दिया है। पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ रहे हैं।  तमाशा अभी जारी है कि व जल्लीकट्टू बिल पास होने के बाद पड़ोसी राज्य कर्नाटक ने भी उनके कंबाला यानि भैंस दौड़ पर लगे प्रतिबंध को हटाने की केंद्र सरकार के सामने मांग रखी है।महाराष्ट्र में बैलगाड़ी आंदोलन जोर पकड़ रहा है। गोवंश पर गहराते संकट पर संघ परिवार मौन है।  वहीं अभिनेता कमल हासन ने ट्वीट करके कहा कि वो जल्लीकट्टू के समर्थन वाले बिल की मांग 20 सालों से कर रहे हैं। फिलवक्त पक्ष प्रतिपक्ष दोनों हिंदुत्व का मनुस्मृति पुनरूत्थान का मुक्तबाजार है।सूबे की सरकारें संघ परिवार की नहीं भी बनीं तो हालात में फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि सूबे का राजकाज सिरे से केंद्र की मेहरबानी है और सूबे में सरकार चाहे किसी की बने,केंद्र के साथ उसके नत्थी हो जाने और उसके जरिये केंद्र का केसरिया एजंडा पूरा होते रहने का सिलसिला जारी रहना नियति है। मसलन ममता बनर्जी हो या अखिलेश यादव या बीजू पटनायक हो या चंद्रबाबू नायडु या हरीश रावत,आम जनता के हकहकूक पर कुठाराघात और आम जनता के विरोध के अधिकार,मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात या जल जमीन जंगल आजीविका से  बेदखली और अंधाधुंध शहरीकरण और अंधाधुंध औद्योगीकरण के एजंडा जस का तस रहना है।बहुजनों का दमन सर्वत्र है।स्त्री के विरुद्ध अत्याचार सुनामी सर्वत्र है।सर्वत्र मेहनतकशो का एक समान सफाया है।युवा हाथ सर्वत्र बेरोजगार हैं। गौरतलब है कि बंगाल में 35 साल तक वाम शासन के दौरान भी सत्ता और राष्ट्र के चरित्र में बुनियादी परिवर्तन आया नहीं है या फिर बहन मायावती के चार चार बार यूपी के मुख्यमंत्री बन जाने से न अंबेडकर का मिशन तेज हुआ है और न मनुस्मृति राजकाज पर कोई अंकुश लगा है।

गौरतलब है कि 1914 से पहले 1991 के बाद बनी तमाम सरकारें अल्मत सरकारें रही हैं।संसद में हाल में हाशिये पर जाने वाला वाम भी लंबे समय तक कमसकम मनमोहन राजकाज के दस साल तक निर्णायक भी रहे हैं,लेकिन जनविरोधी नीतियों और कानून सर्वदलीय सहमति से बनते रहे हैं।संसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल तक को हाशिये पर रखकर राजकाज जारी है और हम इसे अभी भी लोकतंत्र कह रहे हैं। अब राजनीति न कोई विचारधारा है, न बदलाव के ख्वाब है राजनीति और न उसमें जनता की आशा आकांक्षाओं की कोई छाप है। धनबल बाहुबल की राजनीति विशुध जाति धर्म का समीकरण है जो साध लें ,वही सिकंदर है।यह बेहद खतरनाक स्थिति है कि आम जनता के पास कोई विकल्प नहीं है। लोकतंत्र में बहुमत अभिशाप बन गया है। जर्मनी ने इस बहुमत का मोल चुकाया है। अब अमेरिका की बारी है। हम आजादी के पहले दिन से किश्त दर किश्त मोल चुका रहे हैं। शासकों को बदल डालने की गरज से हम पुराने या फिर नये शासक पहले से भी खराब चुन रहे हैं।वाम अवसान के बाद का परिवर्तन वही साबित हुआ है। यूपी बिहार में सत्ता में बहुजनों की भागेदारी और बाकी देश में भी तमाम बहुजन सत्ता सिपाहसालार लेकिन न अस्पृश्यता खत्म हुई है और न जाति धर्म लिंग नस्ल के आधार पर भेदभाव खत्म हुआ है क्योंकि राजनीति में सिर्फ चेहरे बदल रहे हैं,सत्ता समीकरण बदल रहा है ,बाकी तंत्र मंत्र यंत्र और हिंदुत्व का एजंडा वही है,जिसके तहत भारत का विभाजन हो गया और बंटवारे का सिलसिला अबभी जारी है। अमेरिका के हर शहर में महिलाओं की अगुवाई में लाखों महिलाओं के सड़कों पर उतर आने पर सविता बाबू ने सवाल किया कि ये लोग मतदान के दौरान क्या कर रहे थे। संजोगवश खुद जिनके खिलाफ यह जनविद्रोह है,उन्हीं डोनाल्ड ट्रंप का सवाल भी यही है।मुद्दे की बात तो यह है कि वियतनाम युद्ध के बाद सत्ता के खिलाफ अमेरिकी नागरिकों के इतने बड़े विरोध प्रदर्शन का कोई इतिहास नहीं है। बहुमत जनादेश के बावजूद आधी आबादी और आधा से जियादा अमेरिका को नये राष्ट्रपति को अपना राष्ट्रपति मानने से इंकार किया है। वाशिंगटन मार्च का नारा है,यह मैराथन दौड़ है,फर्राटा कतई नहीं है। राजनीति भी दरअसल मैराथन दौड़ है,फर्राटा है नहीं। बहुमत और जनादेश के दम पर जनता के हकहकूक को कुचलने रौंदने का हक हुकूमत को नहीं है। यह कोई दासखत नहीं है कि एकदफा वोट दे दिया तो पांच साल तक चूं भी नहीं कर सकते। सबसे बड़ी बात जो हम शुरु से बार बार कह रहे हैं,वह यह है कि जब तक आधी आबादी उठ खड़ी नहीं आजाद,तब तक लोकतंत्र की हर लड़ाई अधूरी है। ऐसा भी कतई नहीं है कि अमेरिकी महिलाएं भारत की महिलाओं की तुलना में दम खम में कुछ ज्यादा मजबूत हैं या उनकी औसत शिक्षा भारत की महिलाओं से कुछ कम है। पितृसत्ता और मनुस्मृति के दोहरे बंधन में भारत की महिलाएं जो सबसे ज्यादा मेहनतकश हैं,सिरे से या दासी ,या शूद्र या अस्पृश्य या बंधुआ या देवदासी हैं या सिर्फ देवी हैं और उनका कोई वजूद नहीं है।

मतलब  यह है कि आजादी से पहले हो गये सती प्रथा उन्मूलन,विधवा विवाह,स्त्री शिक्षा जैसे क्रांतिकारी सुधारों के बावजूद भारत में स्त्री सशक्तीकरण की कोई जमीन नहीं है।कुछ महिलाओं के सितारे की भांति चमक दमक के बावजूद भारत में स्त्री अभी अपने पांवों पर खड़ी नहीं हो सकती।सबसे पहले हकीकत की यह जमीन बदलने की अनिवार्यता है,जिसके बिना लोकतंत्र की कोई खेती सिरे से अंसभव है। जब आधी आबादी पूरीतरह बंधुआ है और पंचानब्वे फीसद बहुजनों को जाति धर्म नस्ल भूगोल जीवन के हर क्षेत्र से हर हकहकूक से बेदखल कर दिया गया है,तब लोकतंत्र की खुशफहमी के सिवाय हमारी राजनीति क्या है,इस सबसे पहले समझ लें। इस अल्पमत वर्चस्व की रंगभेदी पितृसत्ता के खिलाफ हमारी मर्द राजनीति खामोश है,इसलिए प्रतिरोध की जमीन कहीं बन ही नहीं रही है और न बहुमत के सिवाय अल्पमत की कहीं कोई सुनवाई है और न बंधुआ बहुजनों या आधी आबादी स्त्रियों की किसी भी स्तर पर कोई सुनवाई या रिहाई है। हिंदुत्व की मुख्यधारा से एकदम अलहदा आदिवासी भूगोल और हिमालयी क्षेत्रों में प्रतिरोध की संस्कृति शुरु से है क्योंकि वहां पितृसत्ता हो न हो,स्त्री का नेतृत्व स्थापित है। उत्तराखंड,मणिपुर,झारखंड और छत्तीसगढ़ के अलावा  पूरे आदिवासी भूगोल में स्त्री की भूमिका नेतृत्वकारी है तो राष्ट्र और सत्ता के दमन के खिलाफ भी उनकी हकहकूक की आवाजें हमेशा बाबुलंद गूंजती रही हैं। देश के बाकी भूगोल में यह लोकतंत्र अनुपस्थित है। क्योंकि पितृसत्ता के भूगोल में कोई स्त्रीकाल नहीं है। भारत में हालात बदलने के लिए गांव गांव से,हर जनपद से राजधानी की ओर  स्त्री मार्च का मैराथन शुरु करना जरुरी है।




(पलाश विश्वास)

आलेख : सामाजिक भेदभाव बढ़ा रहे हैं पर्सनल कानून

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भारत में सम्प्रदाय के बने लिए निजी कानूनों को लेकर हमेशा बहस होती रही है। इस बहस में हमारे देश के राजनीतिक दल भी शामिल हो जाते हैं। प्राय: कहा जाता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन यह धर्मनिरपेक्षता कहीं भी दिखाई नहीं देती। सरकार ने कुछ किया तो दूसरा दल उसका विरोध करने लगता है। फिर चाहे वह उसकी नीतियों में शामिल हो या न हो। इसमें एक बात का अध्ययन करना जरुरी है कि धर्म निरपेक्षता कहीं न कहीं समाज में भेद को बढ़ाने का कार्य करती हुई दिखाई देती है। पहली बात तो राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि समान नागरिक संहिता न तो किसी के विरोध में है और न ही किसी एक समुदाय के लिए है। समान नागरिक संहिता देश के हर नागरिक नागरिक को समानता का अधिकार देता है, जबकि अभी जो दिखाई देता है, उसमें कहीं न कहीं असमानता का दर्शन परिलक्षित होता हुआ दिखाई देता है। वास्तव में देखा जाए तो हमारे देश में धर्म निरपेक्षता की परिभाषा को ही बदलकर देखा जाने लगा है। कोई हिन्दू अपने धर्म को लेकर काम करता है तो उसे सांप्रदायिक कहकर उलाहित किया जाता है, जबकि देश के अन्य संप्रदायों के नागरिक खुलकर अपने धर्म के सिद्धांतों के अनुसार आचरण करें, तो उसे धर्म निरपेक्षता का आवरण प्रचारित किया जाता है। 

भारत में लम्बे समय से समान नागरिक कानून को लेकर बहस चली आ रही है। यह मांग उन लोगों द्वारा उठाई जा रही है, जो किसी न किसी कारण सरकार की योजना से वंचित रह जाते हैं। वास्तव में देखा जाए तो अल्पसंख्यकों के नाम पर दी जाने वाली सरकारी सुविधाएं ही उनकी प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। परंतु देश में जिस प्रकार की राजनीति की जा रही है, उसके अंतर्गत यह संभव ही नहीं लगता कि देश में समान नागरिक संहिता लागू की जा सके। देश के राजनीतिक दलों को केवल अपनी सत्ता प्राप्त करने के लिए ही इस प्रकार की राजनीति की आवश्यकता होती है। उन्हें देश की किसी प्रकार की चिन्ता नहीं होती। हम जानते हैं कि जो संवैधानिक कानून भारत में अल्पसंख्यकों को दिए जा रहे हैं, आजादी के सत्तर सालों बाद भी उनकी आवश्यकता होना, वास्तव में सरकारों की कमी को ही उजागर करता है। सरकारों ने मुस्लिम समुदाय को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने की कई योजनाएं चलाईं हैं, लेकिन उन योजनाओं का प्रभाव सत्तर सालों में भी दिखाई नहीं दे रहा। इससे सवाल यह आता है कि जब किसी समाज को इतनी सुविधाएं देने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया, तब उन योजनाओं की समीक्षा किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

भारत में मुस्लिम पर्सनल क़ानून को लेकर जहां मुस्लिम समाज के पैरोकार समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर समाज को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने से वंचित कर रहे हैं, वहीं देश के कुछ राजनीतिक दल भी आग में घी डालने जैसा कृत्य करते हुए दिखाई देते हैं। वास्तव में यह कदम कहीं न कहीं देश में वैमनस्यता को बढ़ावा देने का ही कर रहे हैं। जहां तक साम्प्रदायिक सद्भाव की बात है तो सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोगों को एक दूसरे के रीति रिवाजों को समान भाव से सम्मान देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो सामाजिक समरसता के तमाम प्रयास महज खोखले ही साबित होंगे। जहां तक राजनीतिक दलों की बात है तो इस मामले में कांग्रेस से लेकर जनता दल (यू), सपा और दूसरे राजनीतिक दलों ने भी इस मसले पर लॉ कमीशन की पहल पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। यानी बाकी मुद्दों की तरह इस पर राजनीतिक रोटियां सेंकने का सिलसिला शुरू हो गया है। भाजपा दरअसल, शुरू से ही इस पक्ष में रही है कि एक देश में एक ही कानून लागू होना चाहिए। किसी को भी पर्सनल लॉ के तहत काम करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। यह मसला वास्तव में केंद्र की मौजूदा सरकार ने अपनी तरफ से शुरू नहीं किया है। यह मांग तो पिछली सरकारों के समय भी उठती रही है, इसलिए वर्तमान केंद्र सरकार को दोषी ठहराना किसी भी दृष्टी से ठीक नहीं है।

हम यह जानते हैं कि मुस्लिम समाज के लिए बनाए गए तमाम कानूनों को लेकर उनके समाज की तरफ से विरोध की आवाजें उठने लगी हैं, यहाँ तक कि मुस्लिम समाज की महिलाओं द्वारा इसके विरोध में प्रदर्शन भी हो चुके हैं, लेकिन मुस्लिम समाज के कुछ लोगों द्वारा उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है। वास्तव जो उनके हित की बात है, उसे सहज ही स्वीकार कर लेना चाहिए। हम यह भी जानते हैं कि देश के पांच अलग-अलग हिस्सों की पांच मुसलिम महिलाओं ने समानता के अवसर और हकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वैसे भी इस पर सवाल खड़े होते रहे हैं कि मुसलिम समुदाय महिलाओं को समानता से वंचित क्यों रखे हुए है। तीन तलाक ऐसा ही मुद्दा है। केवल पुरुष को ही महिला को तलाक देने का एकाधिकार है। शाह बानो केस से इस पर सवाल उठने शुरू हुए थे, जब शीर्ष अदालत ने उसके पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए थे। इसका भी मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड व बाकी संगठनों ने तीखा प्रतिवाद किया था। घबराकर तब की राजीव गांधी सरकार ने संसद से कानून पारित कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बेअसर कर दिया था। मौजूदा सरकार पूरे देश में हर नागरिक को समान अधिकार देने के पक्ष में है। वह पुरुष हो या महिला। हिंदू हो या मुसलमान या किसी दूसरे मजहब को मानने वाले नागरिक। समान अधिकारों की पैरवी करने और तीन तलाक जैसी प्रथाओं का विरोध करने वाले बहुत से कानूनविद और चिंतक मानते हैं कि मौजूदा दौर में शरीयत के हिसाब से जबरन फैसलों को महिलाओं पर नहीं थोपा जा सकता।

हमें इस बात की भी समीक्षा करनी होगी कि मुस्लिम समाज में चल रही तीन तलाक की प्रथा किस हद तक सही है। क्योंकि आज विश्व के लगभग 22 से ज्यादा मुस्लिम देश इस कानून को पूरी तरह से समाप्त कर चुके हैं। जिनमें पाकिस्तान और बंगलादेश भी शामिल हैं। ऐसे में लोकतंत्र और पंथनिरपेक्ष देश भारत में समान नागरिक कानून को लागू करने के प्रयासों पर आपत्ति का आखिर क्या औचित्य है ? जब मुस्लिम देश इस क़ानून को समाप्त कर सकते हैं, तब जो देश मुस्लिम देश नहीं है, उसमें इस क़ानून को समाप्त करने में सवाल नहीं उठना चाहिए, क्योंकि मुस्लिम देश में केवल मुस्लिम कानून ही चलते हैं, जबकि भारत में ऐसा नहीं है।

तीन तलाक के मामले को लेकर वर्त्तमान में चल रही राजनीति के बारे में अध्ययन किया जाए तो यही दिखाई देता है कि इस मामले में मुस्लिम समाज की महिलाओं ने जो याचिका दायर की थी, उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की राय माँगी थी। केंद्र सरकार ने इस मामले में केवल अपनी राय दी है। जिसकी आशंका थी, वही होता हुआ नजर आने लगा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केन्द्र सरकार ने तीन तलाक के विरोध में हलफनामा दाखिल किया और लॉ कमीशन को समान नागरिकता कानून पर अपनी राय देने को कहा तो इसका विरोध शुरू हो गया। कोई इसे राजनीति से प्रेरित कदम बता रहा है।

आज देश में जिस प्रकार का दृश्य दिखाई दे रहा है, कमोवेश वह देश विभाजन के पूर्व के हालातों को ही दिखा रहा है। विभाजन के समय जो मुस्लिम भारत में रुक गए, उन्होंने उस समय एक ही बात कही थी कि हमें हिन्दुस्तान से प्यार है, और हम हिंदुओं के साथ रहेंगे, लेकिन जैसे जैसे समय निकला वैसे ही हिंदुस्तान का मुस्लिम हिंदुओं से दूर होता गया, यहां तक भारत के मुख्य त्यौहारों से भी उनकी सहभागिता दूर होती चली गयी। आज के हालात तो ऐसे हैं कि देश का हिन्दू समाज मुस्लिम त्यौहारों में खुलकर शामिल होता है, लेकिन मुस्लिम समाज नहीं। होली की ख़ुशी में रंग की एक बूँद भी गिर जाए तो दंगा हो जाता है। इस सबको समाप्त करने के लिए हर व्यक्ति को खुले मन से प्रयास करना चाहिए। तभी देश में सामाजिक समरसता की स्थापना संभव हो सकेगी।




सुरेश हिन्दुस्थानी
झांसी, उत्तरप्रदेश पिन- 284001
मोबाइल-09455099388
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

विशेष : स्टारडम बहुत ही कम लोगों को मिल पाता है

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बॉलीवुड और स्टारडम दो ऐसी चीजें हैं जो साथ साथ चलती हैं। या फिर यूं कह लीजिए कि साथ साथ नहीं चलती हैं। दरअसल, बॉलीवुड में जगह तो सबको मिल जाती है लेकिन स्टारडम बहुत ही कम लोगों को मिल पाता है। जानते बॉलीवुड में स्टारडम का सफर - 
   
सुपरस्टार की हैसियत
वो स्टारडम जो आपको आपके फैन्स और साथी कलाकार देते हैं। वो स्टारडम जिसके बाद, आपको सब माफ हैं, क्योंकि लोग आपको कलाकार नहीं, सुपरस्टार की हैसियत से आंकते हैं। अक्सर लोग ये मानते हैं कि बॉलीवुड के तीनों खान स्टारडम के मामले में आखिरी सुपरस्टार्स हैं। अब कोई भी कभी भी वो स्टारडम नहीं पाएगा जैसी इन सुपरस्टार्स को मिली।

शो मैन
ये सब हुआ एक शो से सर्कस के एक शो। एक हंसता खिलखिलाता आदमी आया और सबको हंसाना सिखा दिया, रूला रूला कर। इसीलिए राज कपूर बॉलीवुड के शो मैन कहे जाते हैं।

भारत के चार्ली चैपलिन
जो राजकपूर ने बॉलीवुड को दिया वो शायद कोई कभी सोच भी नहीं सकता। जीना यहां मरना यहां से उन्होंने शायद हर किसी को वो खोई हुई उम्मीदें जगा दी। साधारण सी कद काठी और चार्ली चैपलीन सा अंदाज। कभी मेरा जूता है जापानी तो जिस देस में गंगा बहती है।
  
हिंदुस्तान की नब्ज पकड़ी
राजकपूर ने नब्ज पकड़ी, जनता की और बॉलीवुड एक जरिया बन गया लोगों को जोड़ने का। एक से एक बेहतरीन फिल्में, कुछ हिट और कुछ फ्लॉप लेकिन राजकपूर बन गए, बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार। या फिर उससे भी जरा सा ऊपर।
  
stardom
एक नया दौर
नया दौर एक लड़का लोगों पर राज करने लगा। नाम था दिलीप कुमार। दिलीप कुमार जी,अपने अलग प्रकार के किरदार के लिए जाने जाते थे। मुगलेआजम, देवदास, राम और श्याम, बंदिनी, मधुमति, कोहीनूर, यहूदी फिल्मों लोगों को दीवाना बना दिया था। आज भी उनको यादगार फिल्मों के लिए जाना जाता है। उन्हें भारतीय फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, इसके अलावा दिलीप कुमार को पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किया गया है। 
  
हर एक्टर है फैन
शाहरूख खान से लेकर अमिताभ बच्चन तक हर कोई आज भी दिलीप कुमार का फैन है। और हमेशा रहेगा। यही वजह है कि फिल्मफेयर ने जब ये शानदार फोटोशूट किया तो 100 साल के सिनेमा की ये शायद बेस्ट तस्वीर लगी थी।

 एक से एक फिल्में
फिर आया एक और नया चेहरा, इठलाता, झूमता और मस्ती में रहने वाला देव आनंद। सामान्य सी कद काठी पर अंदाज बिल्कुल जुदा। पेइंग गेस्ट,बाजी, ज्वैल थीफ, सीआईडी,जॉनी मेरा नाम, अमीर गरीब, वारंट, हरे राम हरे कृष्ण और देस परदेस जैसी कई हिट फिल्में दी।
  
सब उनके मुरीद
देव आनंद सही मायनों में भारत के पहले अंतराष्ट्रीय सितारे थे। भारत के बाहर जितनी प्रसिद्धि देव साब को मिली थी उतनी शायद ही किसी को मिली हो। चार्ली चैपलिन से लेकर फ्रैंक काप्रा और डी सिका तक सब उनके मुरीद थे।

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स्टारडम का असली मतलब
वो सितारा जिसने सही मायनों में स्टारडम का मतलब ही बदल दिया। राजेश खन्ना सही मायनों में स्टारडम को एक अलग ही स्तर पर लेकर चले गए। लड़कियां उनकी दीवानी थी। यहां तक कहा जाता है कि उनकी कार पर हमेशा लिप्सटिक के निशान रहते थे ...हमेशा!
  
ऊपर आका और नीचे काका
जिस तरह से आज टीवी के जरिये टैलेंट हंट किया जाता है, कुछ इसी तरह काम 1965 यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेअर ने किया था। वे नया हीरो खोज रहे थे। फाइनल में दस हजार में से आठ लड़के चुने गए थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। अंत में राजेश खन्ना विजेता घोषित किए गए। फिल्म इंडस्ट्री में राजेश को प्यार से काका कहा जाता था। एक कहावत बड़ी मशहूर थी- ऊपर आका और नीचे काका।
  
बाबू मोशाय....
राजेश खन्ना ने अपनी विरासत सौंप दी अपने बाबू मोशाय को और किसी को पता भी नहीं चला कि कब बॉलीवुड को उसका शहंशाह मिल गया। अमिताभ बच्चन की स्टारडम को आंकना बहुत ही मुश्किल है। उनके जैसी शख्सियत शायद कई सदियों में एक ही होती है।
  
द एडवेन्चर्स ऑफ अमिताभ बच्चन
बिग बी के स्टारडम का आलम ये था कि 80 के दशक में पूरी एक कॉमिक्स उनके नाम पर थी। सुप्रीमो नाम की ये कॉमिक्स खूब चलती थी। सीरीज को नाम दिया गया था श्द एडवेन्चर्स ऑफ अमिताभ बच्चनश् यानी की अमिताभ बच्चन के अद्भूत कारनामे। इस कॉमिक्स को काफी लोगों ने पसंद किया था लेकिन जब अमिताभ बच्चन राजनीति में उतरे तो यह सीरीज बंद कर दी गयी थी।
  
पहला चॉकलेटी बॉय
इसके बाद बॉलीवुड को मिला इसका पहला चॉकलेटी बॉय। उम्र ज्यादा नहीं थी इसलिए उसका सारी हरकतें माफ थीं। बात हो रही है ऋषि कपूर की। उनके स्टारडम का आलम ये था कि हिट हो या फ्लॉप वो धड़ाधड़ फिल्में करते जाते थे।

92 फिल्मों में रोमांटिक हीरो 
ऋषि कपूर ने अपने करियर में 1973-2000 तक 92 फिल्मों में रोमांटिक हीरो का किरदार निभाया है। उन्होंने बतौर अभिनेता कई सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया है। चॉकलेटी हीरो के रूप में उन्होंने अपनी खास पहचान बनाई और बॉलीवुड कई रोमांटिक हिट फिल्में दीं। चाकलेटी अभिनय के लिए जाने वाले अनिल कपूर ने वो सात दिन में अपने साधादगी के अभिनय के बाद  तेजाब मे जिस तरह की अदाकारी की उसके बाद तो राम लखन सहित दर्जनों फिल्मों से लोगों दीवाना बना दिया। माधुरी के साथ तो उनकी जोडी भी खासी लोकप्रिय हुई। चाकलेटी हीरो में एक नाम सैफ को भी आता है। उनकी बेवाक अदाकारी ने भी कही लोगों को दीवाना तो बना ही दिया है।
  
अब कोई नहीं!
फिर खत्म हुआ स्टारडम का अंत जब तीन खान ने एक साथ बॉलीवुड में दस्तक दी। 25 साल हो गए अभी तक हमें कोई अगला सुपरस्टार नहीं मिला। आलम ये है कि शाहरूख - सलमान और आमिर को साथ में लाने के लिए पूरी इंडस्ट्री सपने देखती है। शाहरूख - सलमान - आमिर तीनों बॉलीवुड में करीब 25 साल से राज कर रहे हैं और वाकई अगर किसी स्टार को आना होता तो अब तक दस्तक दे चुका होता। 

विशेष आलेख : पुरूषों को भी “स्त्री मुक्ति” का गीत गाना होगा

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तकनीकी रूप से बेंगलुरु को भारत सबसे आधुनिक शहर मना जाता है लेकिन बीते साल की आखिरी रात में भारत की “सिलिकॉन वैली” कहे जाने वाले इस शहर ने खुद को शर्मशार किया है. रोशनी से चमचमाते और नए साल के जश्न में डूबे इस शहर की गलियाँ उस रात लड़िकयों के लिए अंधेरी गुफा साबित हुई जब भीड़ द्वारा महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गयी. लेकिन जैसे कि यह नाकाफी रहा हो इसके बाद नेताओं की बारी थी जिन्होंने महिलाओं को लेकर हमारी सामूहिक चेतना का शर्मनाक प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ा. पहले कर्नाटक के गृहमंत्री जी.परमेश्वरा का बयान आया कि  "ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं."फिर समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी कहते हैं कि,"यह तो होना ही था महिलाएं नंगेपन को फैशन कहती हैं वे छोटे छोटे कपड़े पहने हुए थीं.” पुलिस भी पीछे नहीं रही और उनकी तरफ से इस तरह की घटनाओं के लिए स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों आदि की जिम्मेदार को ठहराया गया.
महान व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने कहीं लिखा है कि “भगवान पांच लड़कियों के बाद लड़का देकर अपने होने का सबूत देता रहता है”. यही हमारे समाज का साच है दरसल महिलायों को लेकर जीवन के लगभग हर क्षेत्र में हमारी यही सोच और व्यवहार हावी है जो “आधी आबादी” की सबसे बड़ी दुश्मन है. तकनीकी भाषा में इसे पितृसत्तात्मक सोच कहा जाता है, हम एक पुरानी सभ्यता है समय बदला, काल बदला लेकिन हमारी यह सोच नहीं बदल सकी उलटे इसमें नये आयाम जुड़ते गये , हम ऐसा परिवार समाज और स्कूल ही नहीं बना सके जो हममें पीढ़ियों से चले आ रहे इस सोच को बदलने में मदद कर सकें. वैसे तो शिक्षा शास्त्री  ने स्कूलों को बदलाव का कारखाना कहते हैं लेकिन देखिये हमारे स्कूल क्या कर रहे वे पुराने मूल्यों को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करने के माध्यम साबित हो रहे हैं.

अगर हम महिला-पुरुष समानता की अवधारणा को अभी तक स्वीकार नहीं कर सके हैं तो फिर तरक्की किस बात की हो रही है ? वर्ष 1961 से लेकर 2011 तक की जनगणना पर नजर डालें तो यह बात साफ तौर पर उभर कर सामने आती है कि देश में पुरूष-महिला लिंगानुपात के बीच की खाई लगातार बढ़ती गयी है, पिछले 50 सालों के दौरान  0-6 वर्ष आयु समूह के बाल लिंगानुपात में 63 पाइन्ट की गिरावट आयी है. वर्ष 2001 की जनगणना में जहाँ छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों में प्रति एक हजार बालक पर बालिकाओं की संख्या 927 थी तो वही 2011 की जनगणना में यह अनुपात कम हो कर 914 (पिछले दशक से -1.40 प्रतिषत कम) हो गया है,ध्यान देने वाली बात यह है कि अब तक की हुई सारी जनगणनाओं में यह अनुपात न्यून्तम है यानी गिरावट की दर कम होने के बजाये तेज हुई है. यदि देश के विभिन्न राज्यों में लिंगानुपात को देखें तो पाते हैं कि यह अनुपात संपन्न राज्यों में पिछड़े राज्यों की मुकाबले ज्यादा खराब है, इसी तरह से  गरीब गांवों की तुलना में अमीर (प्रति व्यक्ति आय के आधार पर) शहरों में लड़कियों की संख्या काफी कम है. कूड़े के ढेर से कन्या भ्रूण मिलने की ख़बरें अब भी आती रहती हैं लेकिन उन्नत तकनीक ने इस काम को और आसान बना दिया है.

उपरोक्त स्थिति बताती है कि आर्थिक रूप से हम ने भले ही तरक्की कर ली हो लेकिन सामाजिक रूप से हम बहुत पिछड़े हुए समाज है गैर-बराबरी के मूल्यों और यौन कुंठाओं से लबालब. नयी परिस्थतियों में यह स्थिति विकराल रूप लेता जा रहा है. वैसे तो शिक्षा तथा रोज़गार के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या और अवसर बढ़े हैं और आज कोई  ऐसा काम नही बचा है जिसे वो ना कर रही हों, जहाँ कहीं भी मौका मिला है महिलाओं ने अपने आपको साबित किया है. लेकिन इन सबके बावजूद  हमारे सामाजिक ढाँचे में लड़कियों और महिलाओं की हैसियत में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया है. असली चुनौती इसी ढांचे को बदलने की है जो की आसान नहीं है.
दरअसल लैंगिक समानता एक जटिल मुद्दा है, पितृसत्ता पुरषों को कुछ विशेषधिकार देती है अगर महिलाऐं इस व्यवस्था द्वारा बनाये गये भूमिका के अनुसार चलती हैं तो उन्हें अच्छा और संस्कारी कहा जाता हैं लेकिन जैसे ही वो इन नियमों और बंधनों को तोड़ने लगती है समस्याऐं सामने आने लगती हैं. हमारे समाज में शुरू से ही बच्चों को सिखाया जाता है कि महिलायें  पुरषों से कमतर होती हैं बाद में यही सोच पितृसत्ता और मर्दानगी की विचारधारा को मजबूती देती है. मर्दानगी वो विचार है जिसे हमारे समाज में हर बेटे के अन्दर बचपन से डाला जाता है, उन्हें सिखाया जाता है कि कौन सा काम लड़कों का है और कौन सा काम लड़कियों का है. बेटों में खुद को बेटियों से ज्यादा महत्वपूर्ण होने और इसके आधार पर विशेषाधिकार की भावना का विकास किया जाता है. हमारा समाज मर्दानगी के नाम पर लड़कों को मजबूत बनने, दर्द को सहने, गुस्सा करने, हिंसक होने,दुश्मन को सबक सिखाने और खुद को लड़कियों से बेहतर मानने का प्रशिक्षण देता है, इस तरह से समाज चुपचाप और कुशलता के साथ पितृसत्ता को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक हस्तांतरित करता रहता है.

आधुनिक समय में इस मानसिकता को बनाने में मीडि़या की भी हिस्सेदारी है. भूमंडलीकरण के बाद से तो मर्दानगी के पीछे आर्थिक पक्ष भी जुड़ गया और अब इसका सम्बन्ध बाजार से भी होने लगा है.अब महिलायें, बच्चे, प्यार, सेक्स, व्यवहार और रिश्ते एक तरह से कमोडिटी बन चुकी हैं. कमोडिटी यानी ऐसी वस्तु जिसे खरीदा, बेचा या अदला बदला जा सकता है. आज महिलाओं और पुरुषों दोनों को बाजार बता रहा है कि उन्हें कैसे दिखना है, कैसे व्यवहार करना है,क्या खाना है, किसके साथ कैसा संबंध बनाना है. यानी मानव जीवन के हर क्षेत्र को बाजार नियंत्रित करके अपने हिसाब से चला रहा है, यहाँ भी पुरुष ही स्तरीकरण में पहले स्थान पर है.

आजादी के बाद हमारे संविधान में सभी को समानता का हक दिया गया है और इन भेदभावों को दूर करने के लिए कई कदम भी उठाये गये हैं, नए कानून भी बनाये गए हैं जो की महत्वपूर्ण हैं परन्तु इन सब के बावजूद बदलाव की गति बहुत धीमी है. इसलिए जरुरी है कि इस स्थिति को बदलने का प्रयास केवल भुक्तभोगी लोग ना करें बल्कि इस प्रक्रिया में समाज विशेषकर पुरुष और लड़के भी शामिल हो. ये जरुरी हो जाता है कि जो भेदभाव से जुड़े सामाजिक मानदंडों को बनाये रखते हैं वे भी परिस्थियों को समझते हुए बदलाव की प्रक्रिया में शामिल हो. 

अब यह विचार स्वीकार किया जाने लगा है कि जेंडर समानता केवल महिलाओं का ही मुद्दा नही है. जेंडर आधारित गैरबराबरी और हिंसा को केवल महिलाऐं खत्म नही कर सकती हैं लैंगिक न्याय व समानता को स्थापित करने में महिलाओं के साथ पुरुषों और किशोरों की भी महत्वपूर्ण भूमिका बनती है.व्यापक बदलाव के लिए जरुरी है कि पुरुष अपने परिवार और आसपास की महिलाओं के प्रति अपनी अपेक्षाओं में बदलाव लायें. इससे ना केवल समाज में हिंसा और भेदभाव कम होगा बल्कि समता आधारित नए मानवीय संबंध भी बनेगें. जेंडर समानता की मुहिम में महिलाओं के साथ पुरुष को भी जोड़ना होगा और ऐसे तरीके खोजने होगें जिससे पुरुषों और लड़कों को खुद में बदलाव लाने में मदद मिल सके और वे मर्दानगी का बोझ उतार कर महिलाओं और लड़कियों के साथ समान रुप से चलने में सक्षम हो सकें. अगर हम इस सोच को आगे बढ़ा सके तो हर साल 24 जनवरी को मनाये जाने वाले  राष्ट्रीय बालिका दिवस की सार्थकता और बढ़ जायेगी.






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जावेद अनीस 
Contact-9424401459
javed4media@gmail.com

आलेख : गणतंत्र का नया सूरज उगाना होगा

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यही वही 26 जनवरी का गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत ने आजादी के लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद ने भारतीय संविधान को पास किया। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अड़सठ वर्षों के बावजूद आज भी हमारा गणतंत्र कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फँसा हुआ प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ‘क्या पाया, क्या खोया’ के लेखे-जोखे की तरफ खिंचने लगता है। इस ऐतिहासिक अवसर को हमने मात्र आयोजनात्मक स्वरूप दिया है, अब इसे प्रयोजनात्मक स्वरूप दिये जाने की जरूरत है। इस दिन हर भारतीय को अपने देश में शांति, सौहार्द और विकास के लिये संकल्पित होना चाहिए। कर्तव्य-पालन के प्रति सतत जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे। और तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा। क्योंकि गणतंत्र के सूरज को राजनीतिक अपराधों, घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेर रखा है। हमें किरण-किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा। हमने जिस संपूर्ण संविधान को स्वीकार किया है, उसमें कहा है कि हम एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह सही है और इसके लिए सर्वप्रथम जिस इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है, वह हमारी शासन-व्यवस्था में सर्वात्मना नजर आनी चाहिए और ऐसा नहीं हो पा रहा है, तो उसके कारणों की खोज और उन्हें दूर करने के प्रयत्न इस गणतंत्र दिवस पर चर्चा का मुख्य मुद्दा होना चाहिए।

एक राष्ट्र के रूप में आज से 68 साल पहले हमने कुछ संकल्प लिए थे जो हमारे संविधान और उसकी प्रस्तावना के रूप में आज भी हमारी अमूल्य धरोहर है। संकल्प था एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, समतामूलक और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का जिसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार होगा। नागरिक के इन ‘मूल अधिकारों’ में समता का अधिकार, संस्कृति का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा सांविधानिक उपचारों का अधिकार उल्लिखित हैं। अपने मूल अधिकारों की रक्षा और इनको नियंत्रित करने की विधियां भी संविधान में स्पष्ट हैं। इनके लिये हमारे संकल्प हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान हैं जिन्हें हम हर वर्ष 26 जनवरी को एक भव्य समारोह के रूप में दोहराते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन 68 सालों में जहां हमने बहुत कुछ हासिल किया, वहीं हमारे इन संकल्पों में बहुत कुछ आज भी आधे-अधूरे सपनों की तरह हैं। भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सांप्रदायिक वैमनस्य, कानून-व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तमाम क्षेत्र हैं जिनमे ंहम आज भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाए हैं। हालांकि इन्हें लेकर हमारे कदम लगातार सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि एक राष्ट्र के रूप में हम इन संकल्पों को लगातार याद रखें और दोहराएं।

समाजवादी मूल्यों से प्रभावित एक समतावादी समाज की कल्पना और उसे तैयार करने के हमारे संकल्प सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक तीनों स्तर पर अब तक पूर्णतः सफल नहीं रहे। उदाहरण के लिए, जब हमने समाज से जातिगत भेद-भाव को दूर करने का प्रयास किया तो उसे राजनैतिक पनाह मिल गई। नतीजन, दबे-कुचलों के बीच भी कई सामंत फलने-फूलने लगे। कुछ शोषित शक्तिसंपन्न तो जरूर हुए पर शोषित समाज वहीं-का-वहीं रहा। फर्क सिर्फ इतना हुआ कि कल तक जो समाज उपेक्षित था, आज तो ‘वोट-बैंक’ बन गया। यही कारण है कि हर बार की तरह इस बार के पांच राज्यों के चुनाव में जाति एवं धर्म के आधार वोट की राजनीति न करने का प्रस्ताव सामने आया है और यह चुनाव आयोग के लिये एक चुनौती के रूप में खड़ा है। अपने देश में हमने सामाजिक न्याय के लिए कदम तो उठाए पर सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की जरूरत को भूल कर। हमने सिर्फ और सिर्फ आरक्षण की राजनीति से सामाजिक न्याय को परिभाषित करना चाहा। नतीजन, समाज दो टुकड़े नहीं बल्कि टुकड़े-टुकड़े में विखण्डित हो गया। आज बार-बार होने वाला जाट, गुर्जर, मीणा और अन्य जातियों की आपसी कलह और आरक्षण के लिए आंदोलन देश की रफ्तार को रोक देते हैं और कोई सरकार कुछ करने में विफल दिखती है। निश्चय ही यह नीति नहीं राजनीति की विफलता है। अगड़े-पिछड़ों की लड़ाई अब पिछड़ों और अति पिछड़ों तथा दलित और महादलित की लड़ाई बन चुकी है।  सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर देश एक संक्रमण-काल से गुजर रहा है। सर्वव्यापी भ्रष्टाचार एक राष्ट्रव्यापी मुद्दा बन चुका है। अचानक घोटालों की संख्या और उनके वित्तीय आकार ने मानो इस राजनैतिक व्यवस्था में हमारे विश्वास की जड़े हिला दी हैं। हर घोटाले के साथ जुड़े चेहरे जब उजागर होते हैं। आम आदमी विश्वास करे तो किस पर? इस हमाम में तो सभी नंगे दिखते हैं अब चाहे वो राजनैतिक गुरु हों या आध्यात्मिक।

आज हमारी समस्या यह है कि हमारी ज्यादातर प्रतिबद्धताएं व्यापक न होकर संकीर्ण होती जा रही हैं जो कि राष्ट्रहित के खिलाफ हैं। राजनैतिक मतभेद भी नीतिगत न रह कर व्यक्तिगत होते जा रहे हैं। नतीजन, लोकतांत्रिक परम्पराओं की दुहाई देते हुए भ्रष्टाचार एवं कालेधन जैसे गंभीर मुद्दों पर नियंत्रण के लिये की गयी नोटबंदी भी सकारात्मक रूप नहीं ले पायी।  भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर विरोध करने वाले भी सिर्फ राजनैतिक गुटबंदी और गतिरोध का मुजाहिरा ही बन कर रह गये हैं। लोकतंत्र में जनता की आवाज की ठेकेदारी राजनैतिक दलों ने ले रखी है, पर ईमानदारी से यह दायित्व कोई भी दल सही रूप में नहीं निभा रहा है। ”सारे ही दल एक जैसे हैं“ यह सुगबुगाहट जनता के बीच बिना कान लगाए भी स्पष्ट सुनाई देती है। क्रांति तो उम्मीद की मौजूदगी में ही संभव होती है। हमारे संकल्प अभी अधूरे हैं पर उम्मीदें पुरजोश। हम एक असरदार सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्रांति की आस लगाए बैठे हैं। इसे शांतिपूर्ण तरीके से हो ही जाना चाहिए बिना किसी बाधा के। गणतंत्र दिवस का अवसर इस तरह की सार्थक शुरूआत के लिये शुभ और श्रेयस्कर है। गणतंत्र बनने से लेकर आज तक हमने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हंै। इन पर समूचे देशवासियों को गर्व है। लेकिन साक्षरता से लेकर महिला सुरक्षा जैसे कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर अभी भी बहुत काम करना बाकी है। आज देश में राष्ट्रीय एकता, सर्वधर्मसमभाव, संगठन और आपसी निष्पक्ष सहभागिता की जरूरत है। क्योंकि देश के करोड़ों गरीब उस आखिरी दिन की प्रतीक्षा में हैं जब सचमुच वे संविधान के अन्तर्गत समानता एवं सन्तुलन के अहसास को जी सकेंगे। उन्हें साधन उपलब्ध कराए जाएंगे, क्योंकि देश की गरीबी अभिशाप होती है। और सच भी यही है कि अमीरी और गरीबी के फासले ही नैतिक फैसले नहीं होने देते। गरीब अपना हक, न्याय पाने के लिए बैशाखियों को ढूंढता रह जाता है और अमीरों की विरासत रातों-रात अपना खेल कर जाती है। भ्रष्टाचार के काले कारनामों पर डाले गए ईमानदारी के मुखौटों को उतारने में सबूतों और गवाहों की खोज में इतना विलम्ब हो जाता है कि सच भी सवालों के घेरे में बंदी बनकर खड़ा रह जाता है। इन विसंगतियों एवं विषमताओं को दूर करने के साथ-साथ हमें शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करना होगा, सड़क हादसों एवं रेल दुर्घटना पर काबू पाना होगा, प्रदूषण के खतरनाक होते स्तर को रोकना होगा, संसद की निक्रियता एवं न्यायपालिका की सुस्ती भी अहम मुद्दे हैं। बेरोजगारी का बढ़ना एवं महिलाओं का शोषण भी हमारी प्रगति पर ग्रहण की तरह हैं।

देश का प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व और कर्तव्य की सीमाएं समझें। विकास की ऊंचाइयों के साथ विवेक की गहराइयां भी सुरक्षित रहें। हमारा अतीत गौरवशाली था तो भविष्य भी रचनात्मक समृद्धि का सूचक बने। बस, वर्तमान को सही शैली में, सही सोच के साथ सब मिल जुलकर जी लें तो विभक्तियां विराम पा जाएंगी। सरकार संचालन में जो खुलापन व सहजता होनी चाहिए, वह गायब है। सहजता भी सहजता से नहीं आती। पारदर्शिता का दावा करने वाले सत्ता की कुर्सी पर बैठते ही चालबाजियों का पर्दा डाल लेते हैं। पर एक बात सदैव सत्य बनी हुई है कि कोई पाप, कोई जुर्म व कोई गलती छुपती नहीं। वह रूस जैसे लोहे के पर्दे को काटकर भी बाहर निकल आती है। वह चीन की दीवार को भी फाँद लेती है। हमारे साउथ ब्लाकों एवं नाॅर्थ ब्लाकों में तो बहुत दरवाजे और खिड़कियाँ हैं। कुछ चीजों का नष्ट होना जरूरी था, अनेक चीजों को नष्ट होने से बचाने के लिए। जो नष्ट हो चुका वह कुछ कम नहीं, मगर जो नष्ट होने से बच गया वह उस बहुत से बहुत है। आज उद्देश्यों की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए औरों की बैशाखियां नहीं चाहिए। हमें खुद सीढ़ियां चढ़कर मंजिल तक पहुंचना है। अपनी क्षमताओं पर अविश्वास पर ज्योतिषियों के दरवाजे नहीं खटखटाने हैं। हमें खुद ब्रह्मा बनकर अपना भाग्यलेख लिखना है। औरों के विचारों पर अपना घर नहीं बनाना है। उद्देश्यों को सुरक्षा देने वाली उन दीवारों से घर बनाने का प्रयत्न करना है जो हर मौसम में धूप-छांव दे सके। संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य होने के महत्व को सम्मान देने के लिये मनाया जाने वाला यह राष्ट्रीय पर्व मात्र औपचारिकता बन कर न रह जाये, इस हेतु चिन्तन अपेक्षित है। 



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(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486 मोबाईल: 9811051133

श्रीरामचरित मानस व श्रीमदभगवद् गीता पर आधारित अलबम का लोकार्पण

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नवरात्रों की पावन वेला के मौके पर श्रोताओं को सौगात के रूप में श्रीरामचरित मानस व श्रीमदभगवद गीता का भावार्थ व संगीत प्रस्तुति पहली बार मोबाइल मेमोरी कार्ड में सुनने को मिलेगा। जिसका लोकार्पण आईटीओं स्थित हिन्दी भवन में हुआ। इस धार्मिक अलबम को मिलकर निकाला है,कुछ सी.ए. व उनके सहयोगियांे ने। इस अवसर पर प्रमुख रूप से सीए रवि टंडन,सीए राजकुमार,सीए राकेश गुप्ता सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। इस मौके पर सी.ए. राजपाल चैहान ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि‘ यह अद्भूत धार्मिक अलबम है,जिसका निर्माण व लुभावना संगीत हर वर्ग के श्रोताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह कटु सत्य है, कि वर्तमान में हमारी युवा पीढी अग्रंेजी माध्यम से शिक्षाग्रहण करते हुए भारतीय कल्चर को भूला विदेशी का कल्चर का स्मरण करते नही थकते,साथ ही अपने कल्चर और धार्मिक ग्रंथों को भूलाते जा रहे है। साथ ही वर्तमान में समाज असंतोष,धैर्यहीन व दुखी है,क्योंकि उसके पास रामायण व गीता पढने या सुनने का पर्याप्त समय ही नही है। जिसके कारण उसकी दुर्दशा हो गई। इस ममोरी कार्ड द्वारा कोई भी कही भी अपने मोबाइल में रामायण व गीता सुनकर इसका पुण्य प्राप्त कर सकता है। मेमोरी कार्ड का लोकार्पण करते हुए जगदीश प्रसाद  धमेजा व राम कुमार अग्रवाल ने कहा कि ‘राजपाल चैहान के चार वर्षो की कठोर तपस्या है, उन्होंने उसके प्रयास के प्रतिफल के रूप में प्राप्त श्रीरामचरित मानस व श्रीमदभगवद गीता का भावार्थ व संगीत प्रस्तुति की जमकर प्रशंसा की। साथ ही आश्चर्य व्यक्त भी किया कि क्या कोई सीए भी अदभूत कार्य को कर सकता है ? जो आसान नही काम बल्कि एक चुनौती है, लेकिन उन्होंने यह काम सरलता से कर दिखाया। अलबम के श्लोक और गीतों को मधुर वाणी दी है,गायक कमल गिल,जिसे संगीतबद्व किया है प्रभात ने व इसके रिकार्डिस्ट है शेर सिंह राघव।

उत्तर प्रदेश : कारपेट इंडस्ट्री में नहीं चलेगा अमेरिकी ‘बालश्रम‘ का हंटर

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पिछले एक दशक से हस्तनिर्मित कालीन उद्योग पर मंडरा रहा ‘बाल श्रम‘ की काली साया से मुक्ति मिल जायेगी। इसके लिए अमेरिका अब भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों पर प्रतिबंध नहीं लगायेगा। ऐसा माना जा रहा है कि सालों से ‘कारपेट इंडस्ट्री‘ पर लटक रही बालश्रम की तलवार के हटने से कारोबार में इजाफा होगा 




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भला क्यों नहीं, जब पूरी दुनिया में निर्यात होने वाले भारतीय कालीनों की डिमांड में पचास फीसदी से भी अधिक केवल अमेरिका की हिस्सेदारी थी। लेकिन बीते पन्द्रह सालों में बालश्रम का ऐसा हुआ खड़ा हुआ कि अमेरिकी खरीदारों ने भारत की बनी हस्तनिर्मित कालीनों में रुचि सिर्फ इसलिए कम कर दी थी कि यहां की कालीनों बच्चों के खून से सनी है। यही वजह रहा कि इसका असर सिर्फ अमेरिका ही नहीं विश्व के अन्य देशों जापान, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, टर्की, स्वीट्जरलैंड आदि देशों में भी भारतीय कालीनों की मांग कम होने लगी थी। नाममात्र का ही विदेशों में भारतीय कालीनों का निर्यात किया जा रहा था। परिणाम यह हुआ कि अमरिकी सरकार ने भारतीय कालीनों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली थी। बचपन बचाओं आंदोलन के कर्ताधर्ता कैलाश सत्यार्थी ने एक-दो नहीं सैकड़ों वीडियों फिल्म अमरिकी सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर मांग की थी कि भारतीय कालीनों पर प्रतिबंध लगाया जाय, क्योंकि हाथ से बनने वाली कालीनों को नन्हें-मुन्ने बच्चों से बनवाया जाता है। इसके चलते बच्चे न सिर्फ काली खांसी, कैंसर, अस्थमा जैसे जानलेवा बीमारियों की चपेट में हो असमय ही काल कलवित हो रहे है बल्कि उनका बचपन भी छीना जा रहा है। लेकिन जब इस भ्रामक प्रचार की जानकारी कालीन उद्योग को विकसित करने में लगी ‘कालीन निर्यात संवर्धन परिषद‘ को लगी तो तो अमेरिकी सरकार के समक्ष अपना अपना पक्ष रखते हुए दलीलें दी कि ऐसा नहीं है, कुछेक क्षेत्रों की बातें छोड़ दे ंतो कहीं भी बच्चों से कालीनें नहीं बनवाई जाती। यह सिर्फ और सिर्फ एक भ्रामक प्रचार से अधिक कुछ भी नहीं है। सीइपीसी के तमाम दलिलों व अमरिकी सरकार द्वारा भारत में कालीन उद्योग में सघन जांच-पड़ताल कराने और सर्वे रिपोर्टो के बाद फैसला लिया है कि भारतीय कालीनों पर अब अमेरिकी सरकार प्रतिबंध नहीं लगायेगी। सीइपीसी के चेयरमैन कुलदीप राज वाटल का दावा है कि अमेरिकी सरकार के इस फैसले के बाद कालीन निर्यात में न सिर्फ बढ़ावा होगा, बल्कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से कालीन उद्योग से जुड़े तकरीबन बीस लाख से भी अधिक लोगों की रोजी-रोटी फिर से पटरी पर लौटेगी। 

बेशक, बालश्रम प्रतिबंध कानून प्रभावी होने के चलते पूरी तरह बालरम का खात्मा तो नहीं हो गया था, लेकिन इस एक्ट का कड़ाई से पालन होने से इसके प्रतिशत में 55 फीसदी की गिरावट जरुर आ गयी थी। जगह-जगह स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से प्रशासनिक अधिकारियों की छापामारी व उद्योग मालिकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने, गिरफतारी होने, जुर्माना लगाने का ही असर रहा कि कालीन निर्यात संवर्धन परिषद, केयर एंड फेयर इंडिया, रग मार्क जैसी दर्जनों एसोसिएसनों के बैनरतले जगह-जगह स्कूल खोले गए। गांव से लेकर शहर तक के गरीब परिवारों के बच्चों को न सिर्फ निशुल्क पढ़ाई, बल्कि कापी-किताब भी उन्हें मुफत में दिया जाने लगा। यहां तक कि बच्चों के परिवारों को 100-300 रुपये तक की आर्थिक मदद भी दिया जाने लगा। इसके अलावा इन संस्थाओं, एसोसिएसनों के जरिए गरीब परिवारों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए जगह-जगह बुनकर प्रशिक्षण केन्द्र, कला प्रशिक्षण केन्द्र खोले गए। इसमें बड़ी संख्या में गरीब परिवारों की महिलाओं को सिलाई-बुनाई आदि प्रशिक्षण दिया जाने लगा। ये महिलाएं व पुरुष प्रशिक्षित होकर न सिर्फ अपना व अपने परिवार के दो वक्त की रोटी का सहारा बन गए बल्कि बच्चों को स्कूल भी भेजने लग गए। परिणाम यह हुआ कि पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक कालीन उद्योग से बालश्रम का सफाया हो गया है। अमरिकी सरकार द्वारा भारतीय कालीनों के निर्यात पर प्रतिबंध न लगाकर सही फैसला लिया है। क्योंकि इस इंडस्ट्री से लाखों लोगों को दो जून की रोटी मुहैया होती है। 

हालांकि तमाम सरकारी-गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद भारत में बालश्रम चुनौती बनी हुई है। सावर्जनिक जीवन में होटलों, मैकेनिक की दुकानों एवं सार्वजनिक संस्थानों में बच्चों को काम करते हुए देखा जा सकता है। समाज में कानून का कोई डर भी नहीं है। कहीं न कहीं सरकारी मशीनरी भी इसे नजरअंदाज करती हुई नजर आती है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 5 से 14 साल के बच्चों की कुल आबादी 25.96 करोड़ है। इनमें से 1.01 करोड़ बच्चे मजदूरी करते हैं। इसमें 5 से 9 साल की उम्र के 25.33 लाख बच्चे और 10 से 14 वर्ष की उम्र के 75.95 लाख बच्चे शामिल हैं। राज्यों की बात करें तो सबसे ज्यादा बालश्रम यूपी में 21.76 लाख बच्चे हैं जबकि बिहार में 10.88 लाख बच्चे है। राजस्थान में 8.48 लाख, महाराष्ट्र में 7.28 लाख तथा मध्य प्रदेश में 7 लाख बाल मजदूर है। यह स्थिति तब है जब 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे बालश्रम जैसे कानून की श्रेणी में है और देशभर में कड़ाई से पालन होने का दावा किया जाता है। वैश्विक स्तर पर देखें तो सभी गरीब और विकासशील देशों में बाल मजदूरी की समस्या है। इसकी मुख्य वजह यही है कि कारपोरेट जगत सस्ता मजदूर चाहता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने पूरे विश्व के 130 ऐसे चीजों की सूची बनाई है जिनमें बच्चों से काम लिया जाता है। इस सूची में निर्मित होने वाले सबसे ज्यादा उत्पाद भारत में हैं। इसमें बीड़ी, पटाखे, माचिस, ईंटें, जूते, कांच की चूड़ियां, ताले, इत्र, कालीन कढ़ाई, रेशम के कपड़े और फुटबॉल आदि उद्योग शामिल हैं। भारत के बाद बांग्लादेश का नंबर आता है जहां बच्चों से काम करवाया जाता है।

यह विडम्बना ही है कि भारत से अभी बालश्रम का पूरी तरह सफाया नहीं हो सका है लेकिन बाल मजदूरी के खिलाफ उल्लेखनीय काम करने एवज में कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। माना कि तमाम जागरुकता व स्कूल समेत अन्य कल्याणकारी योजनाओं के संचालन के बाद कुछ हद तक कालीन उद्योग में बालश्रम कम हुआ है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में अभी भी बड़े पैमाने पर बालश्रम मौजूद है। ऐसे में बालश्रम निषेध और नियमन कानून में मोदी सरकार द्वारा लाया गया बाल श्रम संसोधन कानून यानी फेमिली बिजनेस विधेयक बालश्रम को बढ़ावा ही देगा। जबकि सच तो यह है कि बच्चे इस देश के तकदीर है। बच्चे इस देश के भविष्य है। इन्हीं में से कोई आइएएस, आइपीएस, डाक्टर, इंजिनियर बनेगा तो कोई एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान वैज्ञानिक बनकर देश का सिर उंचा करेगा तो प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री बनेगा। लेकिन पहले से ही खतरनाक उद्योगों में चंद टुकड़ों की खातिर अपना जिस्म गला रहे मासूम बच्चे अभी उबर भी नहीं पाएं कि फैमिली बिजनेस विधेयक लाकर मोदी सरकार ने उन पर और अधिक कुठाराघात किया है। इस संशोधन विधेयक से तो ऐसा लग रहा है जैसे बची-खुची आस भी इन मासूमों के सपनों पर अब पलीता लगाने वाला है। इस कानून से तो स्पष्ट हो चला है कि एक बार फिर मासूमों की नन्हीं अंगूलिया कलम पकड़ने के बजाय खतरनाक उद्योगों, ईट-भट्ठों-होटल-ढ़ाबों में अपना जिस्म गलाते नजर आयेंगे। जबकि सरकार को चाहिए था नए कानून के तहत आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन मासूम बच्चों के परिवारों की हालात में सुधार कर शिक्षा को बढ़ावा देती। मतलब साफ है सरकार बच्चों को उनकी मर्जी से पढ़ने की राह से भटकाकर, उन्हें उनके परिवार के काम-धंधों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रही है? 

खास बात तो यह है कि सरकार इस पुराने मसले पर अपनी मुहर लगाकर उस कारपोरेट जगत को लाभ पहुंचाना चाहती है, जो सिर्फ इनका भयादोहन करती चली आ रही है। सरकार को इस एक्ट को लागू करने से पहले पड़ताल कर लेनी चाहिए कि गरीबी व मुफलिसी की जिदंगी जी रहा मजदूर तबका जिस कल-कारखाने या उद्योगों में काम कर रहे है वह अपने परिवार के साथ रहते है और इसी कानून का सहारा लेकर मालिकान उनके बच्चों से भी हूनर सिखाने के नाम पर काम लेंगे। वजह भी साफ है इन मासूम बच्चों को मालिकानों को पहले तो मजदूरी देनी नहीं पड़ेगी और अगर देनी भी पड़ी तो मामूली। इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि जब बच्चा कमाने-खाने की लत में पड़ जायेगा तो वह पढ़ाई-लिखाई के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता। खेलकर चार बार पसीना बहाना तो दूर मोदी रेडियों पर मन की बात में बच्चों के जिस सुनहरे भविष्य की बात कर रहे है, इस कानून से तो यही लगता है कि सरकार बच्चों को अब इस बात के लिए प्रेरित करना चाहती है कि खेलना छोड़, अपने परिवार के कारोबार में हाथ बंटाएं? पसीना न बहाएं, पैसे कमाएं? सबसे बड़ी चिंता है बच्चों को, 14 साल से कम उम्र के बच्चों को, किसी भी हाल में हम काम-व्यापार-उद्योग में लगाएंगे ही क्यों? देखा जाय तो फैमिली की आड़ में बहुत सी गड़बड़ियां पहले से ही होती चली आ रही हैं। 



(सुरेश गांधी)

लेखक निर्देशक अरशद सिद्दीकी अब निर्माता बने

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अरशद सिद्दीकी जिन्होंने लेखक के रूप में ‘मार्केट’ और ‘लाल सलाम’ जैसी फिल्में दी हैं, साथ ही अभिनेत्री युक्ता मुखी के साथ फिल्म ‘मेमसाहेब’ का निर्देशन भी किया है, अब स्वयं को निर्माता, निर्देशक  के रूप में फिल्म एक तेरा साथ के साथ आ रहे हैं, यह फिल्म उन्होंने अपने गुरु स्वर्गीय श्री के के सिंह के याद में बनायीं है।  इस फिल्म का निर्माण अरशद ने अपने बैनर ‘आईफा स्टूडियो’ के साथ ‘बाबा मोशन पिक्चर्स’ के संग निर्माण किया है। अपने अनुभव के आधार पर अरशद ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत सुरक्षित रूप से शुरू करने के लिए एक ऐसे विषय को चुना जो सुपर नेचुरल पर आधारित है, ऐसी फिल्मो को सिर्फ बेहतरीन पटकथा, दृश्यांकन एवं निर्देशन की जरूरत होती है, न की फिल्मी सितारों की, इसलिए उन्होंने इस फिल्म में टी वी के लोकप्रिय अदाकार शरद मल्होत्रा के साथ हृतु दुदानी एवं मेलानी नाजरेथ को कास्ट किया। फिल्म एक तेरा साथ“ की कहानी एक ऐसे पारलौकिक गतिविधियों पर आधारित है जो हमारे आसपास वातावरण में होती रहती है, पर जिसे हम कभी समझ पाते हैं, कभी नहीं, इसकी शूटिंग ओरिजिनल एवं रोमांचक लोकेशन पर की गयी है जैसे घाणेराव, जैसलमेर, जोधपुर, दिल्ली, चंडीगढ़, शिमला एवं मुम्बई में। लोकप्रिय गायक रहत फतेह अली खान इस फिल्म के दो गीतों को अपनी आवाज से सजाया है, यह फिल्म 21 अक्टुबर प्रदर्शित हो रही है, साथ ही एक हॉरर एवं रहस्यात्मक फिल्म होने के अलावा यह पारिवारिक फिल्म भी है। फिल्म में मुख्य कलाकारों में कलाकार शरद मल्होत्रा, हृतु दुदानी, मेलानी नाजरेथ, दीपराज राणा, विश्वजीत प्रधान, पंकज बैरी, गार्गी पटेल, पदम् सिंह, अनुभव धीर, अपराजिता महाजन एवं कृष्णा राज।  है। निर्माता आईफा स्टूडियो , प्रदीप के शर्मा एवं वी नाजरेथ, सह निर्माता अनुभव धीर एवं फरजाना सिद्दीकी, एसोसिएट निर्माता नितेश जांगिड़, लियाकत नासिर, लेखक निर्देशक अरशद सिद्दीकी, संगीत सुनील सिंह, लियाकत अजमेरी, अली ‘पीकू’ एवं नवाब खान, गीत ए एम तुराज, डा देवेंद्र काफिर, असलम सिद्दीकी और हुस्ना खान, गायक उस्ताद राहत फतेह अली खान, सोनू निगम, के के, शाहिद मालया, अमन त्रिखा, भूमि त्रिवेदी और स्वाति शर्मा हैं।

पंजाबी ग्लोबल फाउंडेशन अवार्ड से अभिनेता ‘बब्बू मान’ को सम्मानित किया गया।

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मुंबई में समाजिक संस्था पंजाबी ग्लोबल फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गुरप्रीत कौर चड्ढा अभिनेता ‘बब्बू मान’ को सम्मानित किया। गुरिंदर सीगल, काव्या राजपूत, वर्षा हरिनखेड़े,अनन्या चड्ढा,राज सूरी, बसंन्त रसिवासिया, गणान्य  चड्ढा जैसी अनेक हस्तियांे ने शो में भाग लिया। बब्बू मान का नाम और उनकी लोकप्रियता से सभी परिचित है,लोकगीत,भंगडा

जन जन के नायक जन नायक कर्पूरी : प्रो. जे. पी. सिंह

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मधुबनी, केन्द्रीय पुस्तकालय सभागार में 93 वीं कर्पूरी जयंती मनाई गई, समारोह का उदघाटन प्रो. जे. पी. सिंह, डॉ. जे. मंडल, उदय जायसवाल, ध्रुव कुमार साह ने दीप जला, तैल चित्र पर पुष्प माला अर्पित कर किया. उदघाटन के उपरांत समतामूलक समाज विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. जन नायक पर बोलते हुए प्रो. जे. पी. सिंह ने अतीत के वाकये को बता कर्पूरी ठाकुर के समता, समाजवाद और जातिगत अपभ्रंस पर रौशनी डाला. सेमिनार में पूर्व प्रमुख जटाधर पासवान, उदय जायसवाल, ध्रुव कुमार साह, डॉ. विजय शंकर पासवान ने भी अपने विचार रखे. सेमिनार में गणेश प्रसाद मंडल, दयानंद झा, मो. रिजवान, रातेलाल कामत, महेश्वर चौधरी, भूषण मंडल, चन्दन कुमार, विजय चौधरी, लाल बहादुर सिंह, उपेन्द्र मंडल, उमानाथ मंडल, शिव कुमार भारती सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे !

राजगीर में बनेगा अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम; छह अरब की मंजूरी

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पटना 25 जनवरी, बिहार सरकार ने राज्य में खेल को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता पर अमल करते हुये आज नालंदा जिले के राजगीर में खेल अकादमी और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम निर्माण के लिए छह अरब 33 करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी। 


मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग के प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में यहां हुई मंत्रिमंडल की बैठक में राजगीर में राज्य खेल अकादमी एवं अंतर्राष्ट्रीय मानक का अत्याधुनिक क्रिकेट स्टेडियम निर्माण के लिए छह अरब 33 करोड़ रुपये व्यय की मंजूरी प्रदान की गई। 

श्री मेहरोत्रा ने बताया कि खेल अकादमी और स्टेडियम बनाने के लिए 90 एकड़ जमीन को चिन्हित कर लिया गया है और विधिमान्य प्रक्रियाओं के तहत शीघ्र ही इनका अधिग्रहण शुरू किया जाएगा। अकादमी और स्टेडियम का मास्टर प्लान बनाने के लिए आरकॉप एसोसिएट्स प्राइवेट लिमिटेड का चयन किया गया है। इस परियोजना के वर्ष 2019-20 तक पूरा होने का अनुमान है। 

प्रधान सचिव ने बताया कि सरकार राज्य में खेल को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, जिसके तहत राजगीर में स्पोर्ट्स एकेडमी और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस परिसर में प्रशिक्षु खिलाड़ियों के रहने के लिए छात्रावास के साथ ही प्रशासनिक भवन भी बनाया जाएगा। 

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को यहां राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर खेल नीती बनाने की वकालत करते हुये कहा था कि उनकी सरकार राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है। इसी के तहत पिछले कुछ समय में राष्ट्रीय स्तर की कई बड़ी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा था कि सरकार राजगीर में राष्ट्रीय स्तर का अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप खेल अकादमी का निर्माण करने जा रही है।

गणतंत्र दिवस पर मिसाइलें और कमांडो दस्ते रखेंगे दिल्ली को महफूूज

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यी दिल्ली 25 जनवरी, गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में सुरक्षा की अहम जिम्मेदारी इस बार वायुसेना की विमानभेदी मिसाइलों और कंमाडो दस्तों समेत 40 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों पर रहेगी।

आतंकवादी हमले के खतरे के मद्देनजर सोमवार से ही राजधानी में हाई अलर्ट घोषित किया जा चुका है। संदिग्ध आतंकवादियों के फोटो रेलवे स्टेशनों,मेट्रो स्टेशनों और बस अड्डों पर लोगों को सतर्क रहने की सार्वजनिक सूचना के साथ लगा दिए गए हैं। दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा की आंतकवाद निरोधी इकाई संदिग्धाें के बारे में सुरक्षा एजेंसियों से मिल रही खुफिया जानकारियों पर लगातार नजर रखे हुए हैं। लोदी गार्डन इलाके से सेना का स्टीकर लगे हुए गायब हुई एक सैंट्रो कार की जोर शोर से तलाश की जा रही है। इस बीच खुफिया एजेंसियों ने दिल्ली तथा एनसीआर क्षेत्र में शॉपिंग माल और भीड-भाड़ वाले इलाकों में आतंकवादी हमले के खतरे के प्रति चेताया है। लिहाजा इन स्थानों पर खास पुलिस बंकर बनाए गए हैं। दिल्ली की सीमा में भारी वाहनों का प्रवेश रोक दिया गया है। राजधानी के सभी प्रमुख प्रवेश मार्गों पर कड़ी चौकसी बरती जा रही है। बाहर से अाने वाले वाहनों की गहन तलाशी ली जा रही है।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारतीय वायुसेना की मिसाइलें जहां आकाश की निगेबानी करती रहेंगी वहीं दूसरी ओर सेना के त्वरित कार्यबल के दस्ते जमीन पर किसी भी आपात स्थिति से निबटने के लिए तैनात रहेंगे। लुटियन दिल्ली के सभी अहम स्थानों पर ऊंची इमारतों पर शार्प शूटरर्स अभी से तैनात कर दिए गए हैं। 

एहतियात के तौर पर परेड के मार्ग पर 10 प्रमुख स्थानों पर हल्की मशीन गनें तैनात की जाएंगी। इसके साथ ही इन बंदूकों के साथ विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों को दिल्ली के 10 अहम ठिकानों पर भी तैनात किया जाएगा। तैनात गणतंत्र दिवस के चलते दिल्ली में चार लेयर की सुरक्षा व्यवस्था की गई है। गणतंत्र दिवस पर पहली बार राजपथ पर इस बार ब्लैक कैट कमांडो का दस्ता भी दिखेगा। 

मुख्य समारोह स्थल इंडिया गेट जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी मुख्य अतिथि आबू धाबी के शाहजादे शेख मोहम्मद बिन जायेद अल नहयान तथा कई अन्य अतिविशिष्ट लोगों के साथ मौजूद रहेंगे सुरक्षा की खास व्यवस्था की गई है। खोजी कुत्तों का दस्ता इसका अहम हिस्सा रहेगा। 

खुफिया एजेंसियों से यह जानकारी मिलने के बाद कि लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन परेड के अवसर पर हमला करने के लिए हेलीकॉप्टर चार्टर सेवाओं और चार्टर विमानों का इस्तेमाल कर सकते हैं दिल्ली पुलिस ड्रोन भेदी तकनीक के इस्तेमाल के अलावा ऊंची इमारतों पर विमान भेदी बंदूकों के साथ सुरक्षाकमिर्यों को तैनात करने की तैयारी कर चुकी है। चप्पे चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। 

सुरक्षा एजेंसियों को जारी परामर्श के अनुसार आतंकवादी फिदायीन हमले के लिए सुरक्षा बलों की वर्दी का इस्तेमाल कर सकते हैं इसलिए समारोह में तैनात बलों की पहचान करने और उनकी तलाशी के लिए उचित प्रबंध किए गए हैं।
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