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विशेष : रिलायंस देश में मीडिया भी रिलायंस हवाले

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अब पत्रकारिता तेल,गैस,संचार,निर्माण विनिर्माण कारोबार की तर्ज पर! सत्ता संरक्षित कारपोरेट वर्चस्व के मुकाबले देशी स्थापित औद्योगिक घरानों के लिए मौत की घंटी! 





ऐम्बेसैडर ब्रांड के अस्सी हजार में बिक जाने पर लिखते हुए हमने डिजिटल कैशलैस इंडिया में  कारपोरेट एकाधिकार की वजह से देशी कंपनियों के खत्म होने का अंदेशा जताया था।सत्ता संरक्षण और कारपोरेट लाबिइंग से छोटी बड़ी कंपनियों का क्या होना है,बिड़ला समूह के हालात उसका किस्सा बयान कर रहे हैं।टाटा समूह दुनिया पर राज करने चला था और साइरस मिस्त्री के फसाने से साफ हो गया कि उसके वहां भी सबकुछ ठीकठाक नहीं है।नैनो का अंजाम पहले ही देख लिया है।यह बहुत बड़े संकट के गगनघटा गहरानी परिदृश्य है।फासिज्म के राजकाज में आम जनता ,खेती बाड़ी, काम धंधे और खुदरा कारोबार में जो दस दिगंत सर्वनाश है,जो भुखमरी,मंदी और बेरोजगारी की कयामतें मुंह बाएं खड़ी है,इनकी तबाही से देशी पूंजी के लिए भी भारी खतरा पैदा हो गया है।बिड़ला और टाटा समूह का भारतीय उद्योग कारोबार में बहुत खास भूमिका रही है।बिड़ला समूह से किन्हीं मोहनदास कर्मचंद गांधी का भी घना रिश्ता रहा है। इस हकीकत का सामना करें तो हालात देशी तमाम औद्योगिर घरानों और दूसरी छोटी बड़ी कंपनियों के लिए बहुत खराब है।

निजी तौर पर हम जैसे पत्रकारों के लिए हिंदुस्तान का रिलायंस में विलय भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता का अवसान है।वैसे भी मीडिया पर रिलायंस का वर्चस्व स्थापित है।यह वर्चस्व तेल,गैस,संचार,पेट्रोलियम,ऊर्जा से लेकर मीडिया तक अंक गणित के नियमों से विस्तृत हुआ है तो इसमें सत्ता समीकरण का हाथ भी बहुत बड़ा है।आजाद मीडिया अब भारत में नहीं है,यह अहसास हम जैसे सत्तर के दशक से पत्रकारिता में जुड़े लोगों के लिए सीधे तौर मौत की घंटी है। खबर है कि बिड़ला घराने की ऐम्बसैडर कार के बाद उसका अखबार हिंदुस्तान टाइम्स भी बिक गया है।खबरों के मुताबिक शोभना भरतिया के स्वामित्व वाले हिंदुस्तान टाइम्स के बारे में चर्चा है कि हिंदुस्तान टाइम्स की मालकिन शोभना भरतिया ने इस अखबार को पांच हजार करोड़ रुपये में देश के सबसे बड़े उद्योगपति रिलायंस के मुकेश अंबानी को बेच दिया है।यही नहीं चर्चा तो यहाँ तक  है कि प्रिंट मीडिया के इस सबसे बड़े डील के बाद शोभना भरतिया 31 मार्च को अपना मालिकाना हक रिलायंस को सौंप देंगी और एक अप्रैल 2017 से हिंदुस्तान टाइम्स रिलायंस का अखबार हो जाएगा।

गौरतलब है कि 2014 में फासिज्म के राजकाज के बिजनेस फ्रेंडली माहोल में रिलायंस ने नेटवर्क 18 खरीदकर मीडिया में अपना दखल बढ़ाया है।नेटवर्क.18 कई प्रमुख डिजिटल इंटरनेट संपत्तियों की मालिक हैं, जिसमें इन डॉट कॉम, आईबीएनलाइव डॉट कॉम, मनीकंट्रोल डॉट कॉम, फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम, क्रिकेटनेक्स्ट डॉट इन, होमशाप18 डाट काम, बुकमाईशो डॉट कॉम,बुकमाईशो डॉट कॉम, शामिल हैं। इनके अलावा यह कलर्स, सीएनएनआईबीएन, सीएनबीसी टीवी18, आईबीएन7, सीएनबीसी आवाज चैनल चलाती है। जाहिर है कि हिंदुस्तान समूह के सौदे से एकाधिकार  कारपोरेट वरचस्व का यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्क्ति की आजादी का क्या होना है,इसकी कोई दिशा हमें नहीं दीख रही है।खबर तो यह भी है कि रिलायंस डीफेंस अब अमेरिका नौसेना के सतवें बेड़े की भी देखरेख करेगा।वहीं सातवा नौसैनिक बेड़ा जो हिंद महासागर में भारत पर हमले के लिए 1971 की बांग्लादेश लड़ाी के दौरान घुसा था।अब यह भी खबर है कि मुप्त में इंचरनेट की तर्ज पर मुफ्त में अखबार भी बांटेगा रिलायंस।जाहिर है कि भारतीय जनता को भी मुफ्तखोरी का चस्का लग चुका है। इसी बीच रिलायंस जियो की वीडियो ऑन डिमांड सेवा जियोसिनेमा, जिसे पहले जियोऑन डिमांड के नाम से जाना जाता था, में देखने लायक कई सिनेमा उपलब्ध हैं। अब इस ऐप में नया फ़ीचर जोड़ा गया है। 

इस भयावह जीजीजीजीजी संचार क्रांति से भारतीय मीडिया अब समाज के दर्पण, जनमत, जनसुनवाई, मिशन वगैरह से हटकर विशुध कारोबार है सत्ता और फासिज्म के राजकाज के पक्ष में,जिसे देश के रहे सहे ससंधन भी तेल और गैस की तरह रिलायंस के हो जायें।यह जहरीला रसायन आम जनता के हित में कितना है,पत्रकारिया के संकट के मुकबाले हमारे लिए फिक्र का मुद्दा यही है।

भारत सरकार के बाद रिलायंस समूद देश में सबसे ताकतवर संस्था है।विकिपीडिया के मुताबिकः
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड {अंग्रेज़ी: Reliance Industries Limited) एक भारतीय संगुटिकानियंत्रक कंपनी है, जिसका मुख्यालय मुंबई, महाराष्ट्र में स्थित है। यह कंपनी पांच प्रमुख क्षेत्रों में कार्यरत है: पेट्रोलियम अन्वेषण और उत्पादन, पेट्रोलियम शोधन और विपणन, पेट्रोकेमिकल्स, खुदरा तथा दूरसंचार।[2][3]

आरआईएल बाजार पूंजीकरण के आधार पर भारत की दूसरी सबसे बड़ी सार्वजनिक रूप कारोबार करने वाली कंपनी है एवं राजस्व के मामले में यह इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है।[4] 2013 के रूप में, यह कंपनी फॉर्च्यून ग्लोबल 500 सूची के अनुसार दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में 99वें स्थान पर है।[5] आरआईएल भारत के कुल निर्यात में लगभग 14% का योगदान देती है।[6]

हमने पत्रकारिता नौकरी के लिए नहीं की है।जीआईसी नैनीताल में जब हम ग्यारहवीं बारहवीं के छात्र थे,तभी हमारे तमाम सहपाठी आईएएस पीसीएस डाक्ट इंजीनियर वगैरह वगैरह होने की तैयारी कर रहे थे।बचपन से जीआईसी के दिनों तक हम साहित्य के अलावा जिंदगी में कुछ और की कल्पना नहीं करते थे।अब जनपक्षदर पत्रकारिता के लिए साहित्य और सृजनशील रचनाधर्मिता को भी तिलांजलि दिये दो दशक पूरे होने वाले हैं।पूरी जिंदगी पत्रकारिता में खपा देने वाले हम जैसे नाचीज लोगं के लिए यह बहुत बड़ा झटका है,काबिल कामयाब लोगों के लिए हो या न होजो नई विश्व व्यवस्था,फासिज्म के राजकाज की तरह रिलायंस समूह के साथ राजनैतिक रुप से सही कोई न कोईसमीकरण जरुर साध लेंगे।हम हमेशा इस समीकरणों के बाहर हैं। डीएसबी में तो कैरियरवादी तमाम छात्र कांवेंट स्कूलों से आकर हमारे साथ थे।जब हम युगमंच,पहाड़ और नैनीताल समाचार से जुड़े तब भी हमारे साथ बड़ी संख्या में कैरियर बनाने वाले लोग थे जिन्होंने अपना अपना कैरियर बना भी लिया। हममें फर्क यह पड़ा कि गिर्दा राजीव दाज्यू और शेखर पाठक जैसे लोगों की सोहबत में हम भी पत्रकार हो गये।तब भी हम यूनिवर्सिटी में साहित्य पढ़ाने के अलावा कोई और सपना भविष्य का देखते न थे।दुनियाभर का साहित्य पढ़ना हमारा रोजनामचा रहा है,लेकिन नवउदारवाद के दौर में हमने साहित्यपढ़ना भी छोड़ दिया है। लेकिन उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी और चिपको आंदोलन की वजह से पत्रकारिता हम पर हावी होती चली गयी।हम अखबारों में नियमित लिखने लगे थे।उन्ही दिनों से हिंदुतस्तान समूह से थोड़ा अपनापा होना शुरु हो गया।खास वजह  वहां मनोहर श्याम जोशी, हिमांशु जोशी और मृणाल पांडे की लगातार मौजूदगी रही है।
हमने टाइम्स समूह के धर्मयुग और दिनमान में लिखा लेकिन हिंदुस्तान के लिए कभी नहीं लिखा।हमने 1979 में जब एमए पास किया,उसके तत्काल बाद 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गयी और पिताजी के मित्र नारायण दत्त तिवारी देश के वित्त मंत्री बन गये।तिवारी के सरकारी बंगले में पिताजी के रहने का स्थाई इंतजाम था।वित्त मंत्री बनते ही तिवारी ने पिताजी से कहा कि मुझे वे दिल्ली भेज दें।उन्होंने कहा था कि यूनिवर्सिटी में नौकरी लग जायेगी और मैं बदले में उनके लिखने पढ़ने के काम में मदद कर दूं।

पहाड़ और तराई में हमने तिवारी का हमेशा विरोध किया है तो यह प्रस्ताव हमें बेहद आपत्तिजनक लगा और हमने इसे ठुकरा दिया और फिर उर्मिलेश के कहने पर मदन कश्यप के भरोसे धनबाद में कोयलाखान और भारत में औद्योगीकरण,राष्ट्रीयता की समस्या के अध्ययन के लिए पत्रकारिता के बहाने धनबाद जाकर दैनिक आवाज में उपसंपादक बन गये।फिर हम पत्रकारिता से निकल ही नहीं सके। उन दिनों हिंदुस्तान समूह में केसी पंत की चलती थी और केसी पंत भी चाहते थे कि मैं हिंदुस्तान में नौकरी ले लूं और दिल्ली में पत्रकारिता करुं।हमने वह भी नहीं किया। हालांकि झारखंड से निकलकर मेऱठ में दैनिक जागरण की नौकरी के दिनों दिल्ली आना जाना लगा रहता था।दिनमान में रघुवीर सहाय के जमाने से छात्र जीवन से आना जाना था और वहां बलराम और रमेश बतरा जैसे लोग हमारे मित्र थे।बाद में अरुण वर्द्धने भी वहां पहुंच गये।देहरादून से भी लोग दिनमान में थे।लेकिन मेरठ में पत्ररकारिता करने से पहले रघुवीर सहाय दिनमान से निकल चुके थे और दिनमान से तमाम लोग जनसत्ता में आ गये थे।जिनमें लखनऊ से अमृतप्रभात होकर मंगलेश डबराल भी शामिल थे।नभाटा में बलराम थे और बाद में राजकिशोर जी आ गये।  नभाटा,जनसत्ता, कुछ दिनों के लिए रमेश बतरा ,उदय प्रकाश,पंकज प्रसून की वजह से संडे मेल और शुरुआत से आखिर तक पटियाला हाउस में आजकल और हिंदुस्तान के दफ्तर में मेरा आना जाना रहा है।आजकल में पंकजदा थे।हिंदुस्तान में जाने की एक और खास वजह वहां संपादक मनोहर श्याम जोशी को देखना भी था।  हम मेरठ जागरण में ही थे कि कानपुर जागरण से निकलकर हरिनारायण निगम दैनिक हिंदुस्तान के संपादक बने।दिल्ली पहुंचते ही उनने हमें मेरठ में संदेश भिजवाया कि हम उनसे जाकर दिल्ली में मिले। हम जागरण छोड़ने के बाद 1990 में ही उनसे जाकर मिल सके।

यह सारा किस्सा इसलिए कि यह समझ लिया जाये कि निजी तौर पर हिंदुस्तान समूह में मेरी कोई दिलचस्पी कभी नहीं रही है। 1973 से हम नियमित अखबारों में लिखते रहे हैं।वैसे हमने 1970 में आठवीं कक्षा में ही तराई टाइम्स में छप चुके थे,जहां संपादकीय में तराई में पहले पत्रकार शहीद जगन्नाथ मिश्र और संघी सुभाष चतुर्वेदी के बाद पत्रकारिता शुरु करने वाले हमारे पारिवारिक मित्र दिनेशपुर के गोपाल विश्वास भी थे,जो बरेली से अमरउजाला छपने के शुरु आती दौर में उदित साहू जी के साथ भी थे।1970 से जोड़ें तो 47 साल और 1973 से जोड़ें तो 44 साल हम अखबारों से जुड़े रहे हैं। नई आर्थिक नीतियों के नवउदारवादी मुक्तबाजार अर्थव्यवस्था के दिनों में पूरे पच्चीस साल हमने इंडियन एक्सप्रेस समूह जैसे कारपोरेट संस्थान में बिता दिये लेकिन इस पच्चीस साल में एक दिन भी शायद ऐसा बीता हो जब हमने अमेरिकी साम्राज्यवाद,मुक्त बाजार और कारपोरेट अर्थव्यवस्था के खिलाफ न लिखा हो या न बोला हो।हमें नियुक्ति देने वाले प्रभाष जोशी के अलावा हमारा एक्सप्रेस समूह के किसी संपादक प्रबंधक से कोई संवाद नहीं रहा है। यहां तक कि ओम थानवी को बेहतर संपादक मानने के बावजूद उनकी सीमाएं जानते हुए संपादकीय बैठकों में भी लगातार अनुपस्थित रहा हूं। कारपोरेट तंत्र का हिस्सा बने बिना पत्रकारिता में कोई तरक्की संभव नहीं है।लेकिन अपनी तरक्की मेरा मकसद कभी नहीं रहा है।

हमने छात्र जीवन में टाइम्स समूह में लिखकर नैनीताल में पढ़ाई का खर्च जरुर निकाला लेकिन पेशेवर पत्रकारिता में लिखकर कभी नहीं कमाया है।रिटायर होने के बावजूद मेरा लेकन कामर्शियल नहीं है।आजीविका के लिए हम नियमित अनुवाद की मजदूरी कर रहे हैं ताकि हमारी जनपक्षधरता और राशन पानी दोनों चलता रहे। पहले पहल मैं जब मुख्य उपसंपादक होकर नये पत्रकारों की भर्ती कर रहा था तब जरुर भविष्य में संपादक बनने की महात्वाकांक्षा रही होगी।लेकिन नब्वे के दशक में हम अच्छी तरह समझ गये कि जनपक्षधरता और कारपोरेट पत्रकारिता परस्परविरोधी हैं।दोनों नावों पर लवारी नामुमकिन है।जनपक्षधरता के रास्ते में तरक्की नहीं है।हमने जनपक्षधरता का रास्ता अख्तियार किया।हम अपनी नाकामियों के खुद जिम्मेदार हैं।अपने फैसलों के लिए मुझे कोई अफसोस नहीं है। हिंदुस्तान समूह से कुछ भी लेना देना नहीं होने या टाटा बिड़ला से खास प्रेम मुहब्बत न होने की बावजूद देश के रिलायंस समूह में समाहित होने की यह प्रक्रिया हमें बेहद खतरनाक लग रही है।तेल गैस और पेट्रोलियम की तरह मीडिया का कारोबार होगा,एक्सप्रेस समूह में पच्चीस साल तक आजाद पत्रकारिता करने के बाद यह भयंकर सच हम हजम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि हम पत्रकारिता के सिपाहसालार, मसीहा, संपादक ,आइकन, साहिबे किताब,प्रोपेसर वगैरह कभी नहीं रहे हैं और न होंगे। छात्र जीवन में हमने जैसे समय को जनता के हक में संबोधित कर रहे थे और पेशेवर पत्रकारिता में आम लोगों की तकलीफों और पीड़ितों वंचितों की आवाज की गूंज बने रहने की कोशिश की है,उसके मद्देनजर प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कारपोरेट एकाधिकार के जरिये सत्ता के रंगभेदी फासिज्म के कारोबार में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या होगा,उसकी हमें बहुत फिक्र हो रही है। काबिल और कुशल लोग इस तंत्र में भी पत्रकारिता कर लेेंगे,लेकिन जो पैदल सेना है,उनकी पत्रकारिता और उनकी नौकरी दोनों शायद दांव पर है।

बहरहाल खबरों के मुताबिक एक अप्रैल 2017 से रिलायंस प्रिंट मीडिया पर अपना कब्जा जमाने के लिए मुफ्त में ग्राहकों को हिंदुस्तान टाइम्स बांटेगा। ये मुफ्त की स्कीम कहा कहाँ चलेगी इस बात की पुष्टि तो नहीं हो पाई है और इस पांच हजार करोड़ की डील में कौन कौन से हिंदुस्तान टाइम्स के एडिशन है और क्या उसमे हिंदुस्तान भी शामिल है इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है लेकिन ये हिंदुस्तान टाइम्स में चर्चा तेजी से उभरी है कि हिंदुस्तान टाइम्स को रिलायंस ने पांच हजार करोड़ रुपये में ख़रीदा है और हिंदुस्तान टाइम्स ने ये समझौता रिलायंस से कर्मचारियों के साथ किया है। अगर यह खबर सच होती है तो हिंदुस्तान टाइम्स के कर्मचारी 1 अप्रैल से रिलायंस के कर्मचारी हो जाएंगे। फिलहाल रिलायंस द्वारा प्रिंट मीडिया में उतरने और हिंदुस्तान टाइम्स को खरीदने तथा मुफ्त में अखबार बांटने की खबर से देश भर के अखबार मालिकों में हड़कंप का माहौल है।सबसे ज्यादा टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रबंधन में हड़कंप का माहौल है। खबर है कि शोभना भरतिया और रिलायंस के बीच यह डील कोलकाता में कुछ बैकरों और अधिकारियों की मौजूदगी में हुई है।इसका आशय भी बेहद खतरनाक है।



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(पलाश विश्वास)

आलेख : डिवाईड एण्ड रूल के सिद्धांत पर नेताओं के वक्तव्य

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भारत के पांच राज्यों मे चुनाव के समय और खासकर उत्तर-प्रदेश मे नेताओं के जुवानी जंग के चलते हमे कुछ प्रसंगो पर ध्यान देना होगा। भारत को खतरा राजनीतिक धरातल पर उन राजनेताओं से भी है जिन्होंने येन केन प्रकारेन सत्ता हंासिल करने की योजनायें बना रखी हैं और इनके वक्तव्य कभी-कभी राजद्रोह का रुप ले लेते हैं। इन्होंने वोट की राजनीति के कारण भारत की सुरक्षा, देशभक्ति और राष्ट्रवाद का भी राजनीतिकरण कर दिया है। दिग्विजय सिंह अपने यदा-कदा वक्तव्यों के कारण राजनीति व देश की समरसता में जहर घोलने का काम करते रहते हैं। दिग्विजय सिंह ने उन इस्लामिक कट्टरपन्थियों का कभी बिरोध नही किया जो मज़हबी साम्प्रदायिकता के आधार पर चुनावी प्रचार करते हैं, लेकिन उन्हे कहना जरूर याद रहा कि मध्य-प्रदेश की ए.टी.एस. टीम ने जिन आई.एस.आई. जासूसों को पकड़ा, उनमे से एक भी मुसलमान नही है। इन जैसे नेताओं ने ही आतंकवाद व देश-द्रोह को मज़हब से जोड़ने का प्रयास किया है। दिनांक 1 जुलाई 2013 को बौद्ध-गया मे हुये बम-ब्लास्ट पर दिग्विजय सिंह ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी के इशारे पर यह ब्लास्ट हुआ है, क्यों कि उसके एक दिन पहले मोदी ने बी.जे.पी. कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया था। दिग्विजय सिंह ने मृतक आतंकवादी को ’ओसामा जी’ सम्बोधित किया था और कभी भी वह सेना के शहीदों के घर श्रद्धांजलि देने नही गये। कश्मीर, जो कि भारत का अभिन्न अंग है, उसके लिये  दिग्विजय सिंह कहते हैं ’इण्डिया आॅक्यूपाईड कश्मीर,’ जब कि कश्मीर के दूसरे भाग पर पाकिस्तान जबरदस्ती से कब्जा किये हुये है और उसी को पी.ओ.के. (पाकिस्तान आॅक्यूपाईड कश्मीर) कहा जाता है। 


कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने 6 नवम्बर 2015 को पाकिस्तानी चैनल पर कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी को हटाये बगैर दोनो देशो के बीच बातचीत नही हो सकती है, आगे जब इंटरव्यू लेने वाले ने उनसे पंूछा कि क्या आप मोदी को हटा सकते हैं तो इस पर अय्यर ने जबाव दिया था कि कांग्रेस को हटाने मे देर होगी, आप लोग हटा दीजिये। गजब है, मंणिशंकर अय्यर दुश्मन देश उकसा रहै हैं कि वह भारत के प्रधानमन्त्री को हटा दे। क्या ऐसा वक्तव्य देशद्रोह की सीमा मे नही आता है ? उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था, ’इस देश मे रहने वाला मुसलमान देशभक्त है ......... अपने को हिन्दू कहने वाले सब दगावाज हैं (देखिये जनसŸाा दि. 11 अक्तूबर 1990) गत अक्टूबर 2016 का यह समाचार, कि पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आई.एस.आई. के लिये जासूसी करने वाला समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सासंद मुनब्बर सलीम का निजी सचिव फरहत खांन को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था, वह ससंद भवन से गोपनीय दस्तावेज की फोटो स्टेट कराता था तथा उन्हें पाकिस्तानी आई.एस.आई. एजेंटों को सौंप देता था। चिन्तनीय तो यह है कि जब सांसद के निजी-सचिव की यह हरकत है, तब वह स्वयं भी शंका के घेरे मे होंगे। भारत की ससंद भवन पर दिनांक 13 दिसम्बर 2001 को हमला हुआ था और उसका मास्टर माईन्ड अफजल गुरु भारत का ही था। हिज़बुल मुजाहिदीन का कमांडर और 10 लाख का इनामी आतंकवादी बुरहान वानी भी भारत का ही था, जिसे सैना ने मार गिराया। इस्लाम के नाम पर भड़काऊ भाषण देने वाला जाकिर नाईक कहता है कि प्रत्येक मुस्लमान को आतंकवादी होना चाहिये। गत अक्तूबर 2016 मे क्राईम ब्रांच ने खुलासा किया के दिल्ली में रह रहा पाकिस्तानी उच्चायुक्त का अधिकारी महमूद अख्तर पाकिस्तान के लिये भारत में जासूसी करने का अपराध रहा था, वह सेना और रक्षा विभाग की खुफिया जानकारी पाकिस्तान की एजेन्सी आई.एस.आई. को देता था और उसके बदले में रुपये लेता था। इसी कड़ी में दिल्ली की क्राइम ब्रांच ने मौलाना रमजान व सुभाष जांगीर से गुजरात और राजस्थान में भारत सीमा पर बी.एस.एफ. की तैनाती से जुड़े संवेदनशील दस्तावेज और नक्शे बरामद किये थे व उन्हें तथा उसके साथ महबूब राजपूत को भी गिरफ्तार किया था। दिनांक 17 सितम्बर 2008 को दक्षिण दिल्ली के जामियां इलाके में पुलिस ने हूजी के दो आतंकवादियों को मार डाला था और एक को गिरफ्तार किया था, इनका सम्बन्ध हरकत उल जेहादी इस्लामिया से होते हुये दिल्ली व अहमदाबाद में सिलसिलेवार हुये बम धमाकों से होना बताया गया था, इस मुठभेड़ में पुलिस सब-इंस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की मृत्यु हो गई थी। इस मुठभेड़ के समय जब पुलिस घनी आबादी वाले क्षेत्र की तलाशी ले रही थी तो वहां के स्थानीय एक विशेष-वर्ग के निवासियों ने तलाशी का बिरोध किया था और नारे भी लगाये थे। शहीद चन्द्रमोहन शर्मा की शहादत पर सुर्खियों की चाह के अतुर तत्समय के समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह ने दिनांक 5 अक्टूबर 2008 को एक टी.वी. चैनल पर वक्तव्य दे डाला था कि शहीद चन्द्रमोहन शर्मा को आतंकवादियों ने नहीं मारा, बल्कि पुलिस ने ही मार डाला है। 

जामियां मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली के दो छात्र आतंकवादी हमलों के संदर्भ में जब पकड़े गये थे तो इसके कुलपति मुशीर-उल-हसन ने इन्हें विश्व़िवद्यालय की ओर से कानूनी मदद देने की बात कही थी। जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी दिल्ली की स्टूडेन्ट यूनियन का पूर्व अध्यक्ष एवं सी.पी.आई. की विंग, आॅल इंण्डिया स्टूडेन्ट फेडरेशन का सदस्य कन्हैया कुमार के नेतृत्व में दिनांक 09.09.2016 को यूनिवर्सिटी के अन्दर नारे लगाये गये थे- ’अफजल गुरु हम शर्मिन्दा हैं, तेरे कातिल जिन्दा हैं, भारत तेरे टुकड़े होंगे, इन्शा अल्ला इन्शा अल्ला। चिंताजनक यह है कि राजनीतिक क्षेत्र के लोग देशद्रोहियों की ऐसी हरकतों को समर्थन भी देने लगे थे। दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, मुलायम सिंह यादव, राहुल गान्धी, अखिलेश यादव ऐसी खबरों पर कभी कोई टिप्पणीं नही करते देखे गये हैं। राजनीति मे ये कैसा केरेक्टर है ?   फर्ज करें, हम स्वतन्त्र सोच के व्यक्ति हैं, हम किसी राजनीतिक-दल से सम्बन्धित नही हैं, हम राष्ट्रवादी हैं और अपने भारत को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं, हम भारत मे सुख-शान्ति, समृद्धि का साम्राज्य चाहते हैं। परन्तु हम क्या करैं ? हमारा भी तो कुछ दायित्व है। भारत मे अधिकांश मुसलमान सुकून के साथ मिल-जुल कर रहना चाहते हैं। भारत के अनेकों क्षेत्रों में हिन्दू और मुसलमान बड़े ही भाई-चारे के साथ रहते हैं। हिन्दू बेटी हो या मुस्लिम बेटी, दोनों के विवाह कार्यों में हिन्दू-मुसलमान एक दूसरे का हाथ बंटाते हुए देखे जा सकते हैं। मैंने अनेकों मजारों पर हिन्दुओं को माथा टेकते, मोहर्रम के समय श्रद्धापूर्वक ताजियों के नीचे से निकलते, मजार पर चादर चढ़ाते और मुस्लिम ओरतों को देवी माता के सामने हाथ जोड़ते देखा है। लेकिन भारत में राजनीति के सौदागर मुसलमानों के हितेशी होने का दिखावा करते हुये भेद-भाव की खाई बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं।
 

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लेखक- राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
मेल : rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के समालोचक हैं। 

सन्दर्भ : कुरुक्षेत्रे धर्मक्षेत्रे गांधारी विलाप!

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ये माताएं शहीदों की माताएं नहीं है और मुक्त बाजार के तिलिस्म में संतान शोक की उनकी कोई कैफियत या सांत्वना नहीं है। स्त्री सशक्तीकरण के जमाने में भी ये माताएं गांधारी की तरह असहाय हैं।



धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥
अबाध पूंजी प्रवाह।बेलगाम मुक्तबाजार।अंतहीन महाभारत।
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गांधारी विलाप अनंत।एक अंतहीन शोकगाथा बनने लगी है मुक्तबाजार के आखेट में मारे जा रहे बच्चों के मां बाप की रोजमर्रे की जिंदगी।शोक की अगली बारी किसकी है,दहशतजदा जिंदगी है।इस दुश्चक्र से बचकर जीने वाले बच्चे जख्मी अश्वत्थामा है,जिसके हिस्से में न कोई भविष्य है,न प्रेम है और न सहानुभूति।ऐसे खलनायक बने बच्चों की माताओं की मनोदशा मुक्तबाजार का भीषण सच है। एक थी मदर, अपढ़ रूसी मेहनतकश औरत, मदर टेरेसा नहीं, जिन्हें तमाम चमत्कारों की वजह से नोबेल पाने के बाद संत की उपाधि भी रोम के सर्वोच्च धर्मस्थल से मिली। क्रांतिकारी कारखाने के कर्मचारियों के बारे में 1906 में लिखे मैक्सिम गोर्की के कालजयी उपन्यास मदर की इस मदर का बेटा क्रांतिकारी था और मजदूर जन विद्रोह का सक्रिय कार्यकर्ता था।बेटे के कैद हो जाने के बाद उसका काम जारी रखने के लिए वह कामरेड बन गयीं।माँ एक आदर्श है रूसी नारी चरित्र का, जिसके द्वारा इस बात का संदेश दिया गया है कि नारी क्रांति की जनक बन सकती है। उसकी भूमिका समाज में सर्वप्रमुख होती है। एक बूढ़ी स्त्री "माँ"क्रांति का बिगुल फूँकती है, किस-किस तरह पुलिस और जासूसों को धोखा देती हुई क्रांतिकारियों तक, एक स्थान से दूसरे स्थान तक, संदेशवाहक का काम करती है। यही इस उपन्यास का मूल विषय है। रूस में भारत से पहले क्रांति आई, भारत में अंग्रेजों की दासता से छुटकारा बाद में मिला। रूस में औद्योगिक क्रांति आने से सामंती किसानों और सूदखोरों से लोगों को छुटकारा मिला। लोग कल-करखानों में मजदूरी करने के लिए भागे और एक समय पर काम पर जाने, एक सा वेतन और सुविधा पाने के कारण उन्हें संगठित होने में आसानी हुई। जारशाही और सामंती व्यवस्था को उखाड़ फेंका गया। दूसरी हैं हजार चौरासवीं की मां।नक्सलवाद की पृष्ठभूमि पर लिखित प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी के बंगाली उपन्यास पर आधारित निर्देशक गोविन्द निहलानी की फिल्म ” हज़ार चौरासी की मां ”।उच्च मध्यवर्गीय परिवार का बेटा व्रती नक्सली आंदोलन में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद सबने उसे आसानी से पारिवारिक सामाजिक शर्म मानकर भुला दिया।लेकिन मां सुजाता अपने बेटे को भूल नहीं पायी।व्रती की समृतियों में वे सत्तर के दशक की युवापीढ़ी के ख्वाबों और उनके बलिदान को जीती रहीं। महाश्वेता देवी के मशहूर उपन्यास में सत्तर के दशक में नक्सली आंदोलन में शरीक युवाजनों की मां सुजाता।सत्तर के दशक की समूची युवापीढ़ी की मां सुजाता।

माताएं और भी हैं।जैसे शहीदे आजम भगत सिंह की मां,जैसे खुदीराम बोस की मां, जैसे राजगुरु, बिस्मिल की मां, अशफाकुल्ला की मां। शोकमग्न इन माताओं की सबसे बड़ा गर्व उनकी संतानों की शहादतें हैं। इसके उलट आज मुक्तबाजारी नई पीढ़ी, टीन एजरों की माताएं शोकमग्न तो हैं लेकिन उनकी संतानों ने क्रांति का कोई सपना नहीं देखा है और न बदलाव के किसी जन विद्रोह में उनकी जानें जा रही हैं।उन्होंने कोई शहादतें नहीं दी हैं। वे किसी युद्ध या गृहयुद्ध या विश्वयुदध या प्राकृतिक आपदा में भी मारे नहीं जा रहे हैं।दुर्घटनाओं में मौत है,तो ये दुर्घटनाएं भी उनकी रची हुई हैं। अस्सी के दशक में पंजाब,असम और त्रिपुरा में उग्रवाद की फसल बनकर जो युवाजन मारे गये,आज की नई पीढ़ी उनमें भी शामिल नहीं है।स्कूलों तक में दलबद्ध राजनीति में सक्रिय इन बच्चो को गैर राजनीतिक भी नहीं कह सकते।फिरभी वे होक कलरव या जयभीम कामरेड वाले विश्वविद्यालयों की जमात में शामिल नहीं है। साठ के दशक में एक अदद नौकरी पाने के संघर्ष में गर्म हवा से बचने की जद्दोजहद थी।मोहभंग के उस दौर के बाद सत्तर के दशक में नौकरी युवाजनों की प्राथमिकता नहीं रही।चाहे नक्सल बाड़ी हो या फिर जेपी का छात्र आंदोलन युवापीढ़ी की प्राथमिकता तब एक अदद नौकरी की खुशहाल जिंदगी नहीं थी। वे सिरे से व्यवस्था बदलने का ख्वाब जीते हुए थोक भाव से राष्ट्र की सैन्यशक्ति या सत्तावर्ग के राजनीतिक गिरोह के मुठभेड़ में मारे जा रहे थे। शहीद माताओं की तरह सत्तर के दशक की माताएं भी शोक मग्न थीं।तब इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व के बावजूद ज्यादातर माताएं अपढ़ या अधपढ़ थीं। आज की नई पीढ़ी की माताएं सशक्त महिलाएं हैं।उच्च शिक्षित हैं। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करते हुए घर और बाहर दोनों मोर्चे पर बहादुरी के साथ लड़ रही हैं,पितृसत्ता के मुकाबले वे हजार चौरसवीं की मां या पावेल की मां की तरह निःशस्त्र नहीं हैं।वे तकनीक जानती हैं।सोशल मीडिया में उनकी मौजूदगी आम है। इसके बावजूद उनके बच्चे आत्मध्वंस के राजमार्ग पर अंधी दौड़ में भागे जा रहे हैं।जिन्हें रोकने का कोई उपाय उच्च शिक्षित या जनपदों की पढ़ी लिखी या अब भी अपढ़ अधपढ़ माताओं के बस में नहीं है। ये माताएं शहीदों की माताएं नहीं है और मुक्तबाजार के तिलिस्म में संतानशोक की उनकी कोई कैफियत या सांत्वना नहीं है।

आजादी की लड़ाई में पंजाब और बंगाल ने कितनी शहादतें दी,उसकी कोई गिनती नहीं हो सकती।सत्तर के दशक में भी पंजाब और बंगाल की नई पीढ़ी ने शहादतें दी हैं। अस्सी के दशक में आपरेशन ब्लू स्टार और सिख नरसंहार में पंजाब की माताओं के शोक की तुलना महाभारत के स्त्री विलाप से भी भीषण और भयंकर हैं। क्रांति के रोमांस और बदलाव के ख्वाब के भातर माता के जिगर के दोनों टुकड़े अब नशे की गिरफ्त में हैं।पंजाब इसतरह नशाग्रस्त है कि वहां की नई पीढ़ी की उनके नशे के अलावा कोई पहचान बन नहीं पा रही है।नशा माफिया वहां सत्ता पर काबिज है। बंगाल में बेरोजगारी का संकट साठ के दशक से एक अनंत सिलसिला है। इस अंतहीन बेरोजगारी के आलम में तस्करी,अपराध,आत्मध्वंस,उपभोक्तावाद और नशा के शिकार बच्चों के अपराध और आत्मध्वंस की वारदातें रोज रोज टीवी की सनसनीखेज सुर्खियां हैं और परदे पर रोज रोज गांधारी विलाप है। अभी कृष्णनगर में नौवीं में पढ़ने वाले एक छात्र की उसके नौवीं और दसवीं में पढञने वाले दो बच्चों ने नशे के बाबत कर्ज में जिये डेढ़ सो रुपये मांगने के जुर्म में निर्ममता से हत्या कर दी। उन्होंने बेहद शातिराना अंदाज में हत्या की वारदात को अंजाम दिया और फिर सबूत मिटाने के लिए शव को जमीन में दफना दिया। पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया है। वारदात से स्तब्ध स्थानीय लोगों ने हत्यारों को कड़ी सजा देने की माग पर रविवार सुबह कृष्णानगर-नवद्वीप रोड पर छह घंटे तक चक्का जाम किया। पुलिस के हस्तक्षेप से स्थिति सामान्य हुई। यही इन दिनों रोज रोज का जिंदगीनामा है।नाबालिग मासूम बच्चे नशे के शिकंजे में हैं और आपराधिक वारदात में पेशेवर अपराधी की तरह वे बड़े पैमाने पर शामिल हो रहे हैं।इस अराजकता से तो बेहतर सत्तर दशक की राजनीतिक चेतना थी। बंगाल के जनपदों में और सीमावर्ती इलाकों में गांवों और शहरों से बड़े पैमाने पर बच्चे रोजगार की तलाश में रोज सियालदह,कोलकाता और हावड़ा से ट्रेनों में भर भर कर दूसरे राज्यों को निकल रहे हैं।

जो बाकी बचे हुए हैं,उनके लिए रोजगार नशा है।अपराध,तस्करी है।
वे तेजी से गिरोहबंद हो रहे हैं।
माफिया में शामिल हो रहे हैं।
ऐसे तमाम गिरोहों और माफिया दुश्चक्र को राजनीतिक संरक्षण है।
राजनीति और माफिया के शिकंजे में हैं परिवार,समाज।
अब गावों तक में बार रेस्तरां खुल गये हैं।शहरों के हर मोहल्ले में कई कई शराब की दुकानों के अलावा बार रेस्तरां हैं।ऩशे का इंतजाम इफरात है।सिगरेट,बीड़ी,खैनी पर पाबंदी है,लेकिन शराब पर पाबंदी नहीं है।

सिगरेट,बीड़ी,तंबाकू,खैनी से कैंसर का डर है।
शराबखोरी पर कोई रोक नहीं है।
खस्ताहाल राजकोष के लिए शराब राजस्व का खजाना है।
बिहार में शराबबंदी हो जाने से झारखंड और बंगाल में शराबी पर्यटन बढ़ा है।बिहार और झारखंड से लगे इलाकों में शराब फायदे का कारोबार है।
इसमें हर्ज भी शायद कोई नहीं है।
मुक्त बाजार में उपभोक्तावाद संस्कृति है उपभोक्ता को भोग की आजादी है।
जाहिर है कि शराब भी उपभोक्ता वस्तु है।
शिक्षा भी उपभोक्ता वस्तु है।
शिक्षा क्रयशक्ति पर निर्भर है।
शिक्षा में अब शिक्षकों की कोई भूमिका नहीं है।हर गली मोहल्ले में कोचिंग सेंटर मशरूम की तरह उग आये हैं और तकनीकी ज्ञान की तमाम दुकाने हैं,जिनका कोई रेगुलेशन नहीं है।न शिक्षकों और ट्रेनरों के नियंत्रण में बच्चे हैं। अव्वल तो स्कूल कालेज विश्वविद्यालय परिसर भी शिंकजे में है।इसपर तुर्रा यह कि कोचिंग सेंटरों और प्रशिक्षण केंद्रों में बच्चे अब संस्थागत शैक्षणिक प्रतिष्ठानों की निगरानी या नियंत्रण में नहीं है। मोबाइल और सोशल मीडिया के जरिये उनकी दोस्ती किससे कहां और कैसी हो रही हैं,माताओं के लिए जान पाना बेहद मुश्किल है।जब जान लेती है तब तक बच्चे समाजविरोधी आराधिक मानसकिता के शिकार होकर आत्मध्वंस के राजपथ पर निकल चुके होते हैं। स्त्री सशक्तीकरण के जमाने में भी ये माताएं गांधारी की तरह असहाय हैं।




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(सबिता बिश्वास)

राजनीति : जयललिता की विरासत और राजनीतिक लड़ाई

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भारत में राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के लिए सत्ता की लड़ाई होना कोई नई बात नहीं है। फिर चाहे वह क्षेत्रीय राजनीतिक दल हों, या फिर राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक पहचान स्थापित कर चुके राजनीतिक दल हों। हर राजनीतिक दल अपने अपने हिसाब से राजनीति करने की कवायद करता हुआ दिखाई दे रहा है। इस सबमें खास बात यह है कि जनता की भावनाओं को किनारे रखकर यह राजनीतिक दल केवल और केवल सत्ता केन्द्रित राजनीति का ही संचालन करते हुए दिखाई देते हैं। तमिलनाडु में एक जादुई व्यक्तित्व की तरह राजनीति में चमकने वाली जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक में जिस प्रकार की राजनीतिक लड़ाई लड़ी जा रही है। वह दो धड़ों में विभाजित अन्नाद्रमुक के किसी एक धड़ को ही सफलता दिला पाएगी, लेकिन सत्ता प्राप्ति के लिए चल रही यह लड़ाई कहीं न कहीं राजनीतिक दलों के स्वार्थी रवैये को प्रमाणित करने के लिए काफी है। इस प्रकार की राजनीतिक कभी देश और प्रदेश की जनता का भला नहीं सोच सकती। हम जानते हैं कि जयललिता के पास समर्पित जनता की बहुत बड़ी फौज थी, लेकिन उनके जाने के बाद जिस प्रकार से पार्टी पर एकाधिकार स्थापित करने की लड़ाई लड़ी जा रही है, वह कहीं न कहीं खुद का अस्तित्व मिटाने की ओर कदम बढ़ाने की कवायद मानी जा सकती है। इन लोगों को यह भी पता होना चाहिए कि जयललिता ने जिस मेहनत से पार्टी को संभालकर रखा, उनके अनुयायी कहे जाने वाले नेता उस पर पानी फेरते हुए दिखाई दे रहे हैं।


तमिलनाडु में राजनीतिक गतिरोध के बीच शशिकला और वर्तमान मुख्यमंत्री पनीरसेल्लम के बीच राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए जंग जारी है। हालांकि अन्नाद्रमुक की ओर से शशिकला को विधायक दल का नेता चुन लिया है, लेकिन यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि पनीरसेल्लम भी पार्टी में वजूद वाले नेता माने जाते हैं। वह पार्टी में जयललिता की प्रमुख पसंद माने जाते थे। जयललिता की अनुपस्थिति में पनीरसेल्लम मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालते रहे। शशिकला और पनीरसेल्लम दोनों ही अन्नाद्रमुक पर अपना दावा जता रहे हैं। दोनों समूहों ने एक दूसरे को पार्टी से निकालने का आदेश दे दिया है। यहां पर एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अन्नाद्रमुक के एक और प्रभावशाली नेता ई मधुसूदन भी पाला बदलकर पनीरसेल्लम के पक्ष में आ गए हैं। ऐसे में तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक राजनीतिक विघटन की ओर कदम बढ़ाती हुई दिखाई देती है।

तमिलनाडु की राजनीति में एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद जयललिता धूमकेतु की तरह चमकीं। हालांकि एमजी रामचंद्रन की पत्नी जानकी रामचंद्रन भी राजनीति में प्रभाव दिखाने के लिए आईं, लेकिन तमिलनाडु की जनता ने जयललिता को ही राजनीतिक ताकत प्रदान की। जयललिता ने तमिलनाडु में एक मुख्यमंत्री के रुप में बेहतर शासन दिया। उनके बीमार होने के बाद शशिकला अन्नाद्रमुक का सारा कामकाज देखने लगीं, और सारे कार्यकर्ताओं के बीच शशिकला ही ऐसे नेता के रुप में सामने आती जा रही थी, जो जयललिता को विरासत को संभाल रही थी। पिछले विधानसभा चुनाव के समय टिकट वितरण करने में भी शशिकला की प्रमुख भूमिका रही। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अन्नाद्रमुक पार्टी में आज भी शशिकला ही पनीरसेल्लम से ज्यादा प्रभावी नेता के रुप में स्थापित हैं। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि शशिकला बहुत पहले से ही जयललिता की राजनीतिक विरासत को संभालने की तैयारियां कर रही थीं। अन्नाद्रमुक के विधायकों पर भी शशिकला की अच्छी पकड़ थी। इसके बाबजूद भी जयललिता ने कभी भी शशिकला पर विश्वास नहीं किया, उन्हें राजनीतिक रुप से कोई भी जिम्मेदारी भी नहीं दी गई। इससे यह भी साबित होता है कि कहीं न कहीं शशिकला अविश्वास की श्रेणी में ही आती थीं। वर्तमान में यही बात शशिकला की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर सामने आ रही है। पनीरसेल्लम के पक्ष में यही बात सबसे प्रभावकारी सिद्ध हो रही है। इसे दूसरे अर्थों में कहा जाए तो एक पक्ष जयललिता के समर्थकों का है, तो दूसरा पक्ष विरोधी यानी शशिकला के समर्थकों का। इन दोनों में से कौन कितना भारी साबित होगा, यह आने वाला समय बता पाने में समर्थ होगा।

हालांकि जयललिता ने कई अवसरों पर शशिकला के बारे में कहा है कि शशिकला को उनके राजनीतिक जीवन से कोई मतलब नहीं है, वह केवल घरेलू संबंधों तक ही सीमित है। इसके अलावा शशिकला को राजनीतिक क्रियाकलापों की कोई जानकारी भी नहीं है। जबकि पनीरसेल्लम राजनीति के माहिर खिलाड़ी भी हैं और उनके पास राजनीतिक अनुभव भी है। इसी कारण ही वे जयललिता के सबसे विश्वास पात्र व्यक्तियों में शामिल रहा करते थे। इसे तर्कसंगत भाषा में कहा जाए तो यही कहना ठीक होगा कि शशिकला केवल घरेलू या पारिवारिक विरासत की उत्तराधिकारी मानी जा सकती हैं, जबकि पनीरसेल्लम, जयललिता के राजनीतिक उत्तराधिकार के रुप में सबसे उपयुक्त राजनेता हैं। लेकिन यहां लड़ाई केवल सत्ता प्राप्त करने की है। ऐसी लड़ाईयां न तो अपने दल का भला कर सकती हैं, और न ही जनता का भला कर पाने में समर्थ हो सकती हैं।

तमिलनाडु में सत्ता प्राप्त करने का खेल भले ही शशिकला की तरफ से खेला गया हो, लेकिन पनीरसेल्लम की रणनीति भी कमजोर दिखाई नहीं दे रही। वह भी अपनी सरकार को बचाने के लिए दूसरे दलों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए दिखाई देने लगे हैं। शशिकला की ओर से दावा किया जा रहा है कि उनके पक्ष में पार्टी के अधिकतम विधायक हैं, जबकि पनीरसेल्लम की ओर से कहा जा रहा है कि वह बहुमत सिद्ध करेंगे। ऐसे में अब पूरा खेल राज्यपाल के पाले में हैं। लेकिन इसमें सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि जब अधिकांश विधायक शशिकला को अपना समर्थन कर रहे हैं, तब उन्हें घेरकर एक जबह क्यों रखा गया है? क्या विधायकों की निष्ठा पर शशिकला को संदेह है। अगर ऐसा है तो विधायक भी पाला बदलकर खड़े हो सकते हैं। विधायकों को कैद करके रखना और अपना समर्थन करने के दावे करना बिलकुल ऐसा ही है, जैसे एक पालतू जानवर को अपने अनुसार काम करवाना। वास्तव में विधायकों को अपने स्वयं के विवेक के आधार पर फैसला लेने के लिए खुला छोडऩा होगा। तभी यह सिद्ध होगा कि वास्तव में विधायक चाहते क्या हैं। नहीं तो यह लोकतंत्र पर करारा आघात भी हो सकता है।



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सुरेश हिन्दुस्थानी
झांसी (उत्तरप्रदेश)
मोबाइल 09455099388

प्रेम : प्यार की एक ही शर्त है “कोई शर्त नहीं”

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कंचना माला और मोइदीन का प्यार हमारे दौर का एक ऐसा मिसाल है जिसका जिक्र फसानों में भी नहीं मिलता है. यह मोहब्बत का ऐसा जादू है जिसपर  यकीन करना मुश्किल हो जाए कि किया कोई किसी से इस कदर टूट कर भी प्यार कर सकता है?यह अपने प्यार के लिए इस खुद को फ़ना कर देने की कहानी है. इस जोड़ी में एक हिन्दू थी और दूसरा मुसलमान उनके इस प्यार को समाज की मंजूरी नहीं मिली लेकिन केरल के जमीन पर परवान चढ़ा इन दोनों का प्यार आज उसी समाज के लिए एक मिसाल बन चुका है.  कंचना माला आज 77 साल की हो चुकी है जिसमें से करीब 60 साल उनके प्यार बी.पी. मोइदीन के नाम रहा है, मोइदीन का साथ पाने के लिए उन्होंने तीस साल तक इन्तेजार किया था साथ तो नहीं मिला उलटे नदी में नावं  पलटने से मोइदीन की मौत हो जाती है.परन्तु मौत भी उनके प्यार को छीन नहीं सकी, 1982 से आगे का समय उन्होंने उस आदमी के नाम पर ना केवल अपना पूरा जीवन बिता दिया जिससे उनकी कभी शादी भी नहीं हुई थी बल्कि उसी के नाम से समाज सेवा भी कर रही हैं. यह एक महिला द्वारा अपने प्यार के लिए चरम कष्ट उठाने और खुद को फ़ना कर देने की अदभुत मिसाल है. यह प्यार के लिए कुर्बानी और सेवा का रियर संगम भी है. वे बी.पी.मोइदीन सेना मंदिर नाम से एक सामाजिक संस्था चलती है. 


धर्म की दीवारों ने उन्हें मिलने नहीं दिया था लेकिन 2015 में इनकी प्रेम को लेकर बनायीं गयी मलयाली फिल्म “एन्नु निंते मोइदीन” पर वही  समाज फ़िदा हो गया और उनकी प्रेम कहानी व कंचना माला के त्याग और समर्पण के कसीदे पढ़े गये. हमारे समाज में सामान्य मोहबत्तों को भी त्याग करना पड़ता है, ज्यादातर  मां-बाप अपने बच्चों को खुद के जीवन साथी चुनने का विकल्प नहीं देना चाहते वे उनकी की शादी अपनी मर्जी से खुद के जाति,धर्म, गौत्र में ही करना चाहते हैं. अगर मामला धर्म और जाति से बाहर का हो तो स्थिति बहुत गंभीर बन जाती है ऐसे मोहबतों को बगावत ही नहीं गुनाह की श्रेणी में रखा जाता है इसमें में अंतर्धार्मिक मामलों में तो और मुश्किल होती है इनको लेकर  पूरा समाज ही खाप पंचायत बन जाता है, ऐसे प्रेमी जोड़ियों की जान पर बन आती है. समाज हाथ धोकर पीछे पड़ जाता है और राज्य उनका बंधक बनके रह जाता है. आकड़ों की नजर से देखें तो स्थिति यह है कि अभी भी  केवल 5 प्रतिशत भारतीय ही अपनी जाति के बाहर शादी करते हैं जबकि अंतर्धार्मिक शादियों का दर केवल 2.1 प्रतिशत है. जाहिर है जकड़न की गांठ बहुत मजबूत हैं और विद्रोही प्रेमियों के लिए इसे तोड़ना बहुत मुश्किल है.  

पिछले दिनों यूपीएससी के दो शीर्ष टॉपरों ने जब इस बात की घोषणा कि वे एकदूसरे के प्रेम में हैं और शादी करना चाहते हैं तो यथास्थित्वादियों के खेमे में खलबली मच गयी. टीना डाबी दलित हिन्दू है और अतहर आमिर कश्मीरी मुसलमान. टीना ने यूपीएससी टॉप किया है और अतहर दुसरे नंबर पर रहे हैं . लेकिन जैसे इन दोनों को  मिसाल बन्ने के लिए यह काफी ना रहा हो, इन दोनों ने वर्जनाओं को तोड़ते हुए ना केवल अपने रिश्ते को  सोशल मीडिया पर खुला  ऐलान किया बल्कि सवाल उठाने वालों को करारा जवाब भी दिया. जैसा की उम्मीद थी इस जोड़ी इस इस ऐलान से सामाजिक ठेकादारों और संगठनों को समस्या हुई और उन्होंने इसका विरोध किया. हिंदू महासभा ने तो इसे ‘लव जिहाद’ का मामला ब‍ताते हुए टीना डाबी के पिता को पत्र लिखा डाला  जिसमें उनसे इस शादी में दखल देने को कहा गया. हमारा  समाज एक विविधताओं का समाज है जो उतनी ही जकड़नों से भरा हुआ है. यहाँ सीमायें तय कर दी गयी हैं जिससे बहार जाना विचलन माना जाता है, सबसे बड़ी लकीर प्यार और शादी के मामले में है आप जिस जाति या  धर्म में पैदा हुए हैं सिर्फ उसी में ही प्यार या शादी की इजाजत है, इस व्यवस्था के केंद्र में स्त्री है और यह नियम सबसे ज्यादा उसी पर ही लागू होता है.

लेकिन प्रेम तो हर सीमा से परे है यह अनहद है जिसे कोई भी लकीर रोक नहीं सकती. तमाम पाबंदियों,सजाओं त्रासद भरे अंत और खूनी अंजामों के बावजूद प्यार रुका नहीं है ,यह इंसानियत का सबसे खूबसूरत एहसास बना हुआ है. टीना डाबी ने अपने प्यार  पर सवाल उठाने वालों को जवाब देते हुए कहा था कि  ”खुले विचारों वाली किसी भी स्‍वतंत्र महिला की तरह मुझे भी कुछ चुनने का हक है मैं अपनी च्‍वॉइस से बेहद खुश हूं और आमिर भी,हमारे माता-पिता भी खुश हैं.  विरोध करने वाले लोग संख्या में कम होते हैं”. 2014-15 में जबलव जिहाद को एक राजनीतिक मसले के तौर पर पेश किया जा रहा था तो करीना कपूर को भी निशाना बनाया गया था संघ परिवार से जुड़े संगठन दुर्गा वाहिनी ने अपने पत्रिका  के कवर पर करीना कपूर की एक तस्वीर  छापी थी  जिसमें  करीना के आधे चेहरे को  बुर्के से ढका आधे को हिन्दू चेहरे  के तौर पर दर्शाया गया था इसके साथ शीर्षक दिया गया था “धर्मांतरण से राष्‍ट्रांतरण”. इसके बाद अभिनेता सैफ अली खान ने अपने बहुचर्चित लेख “हिन्दू-मुस्लिम विवाह जेहाद नहीं, असली भारत है” में लिखा था कि मैं नहीं जानता कि लव जिहाद क्या है, यह एक जटिलता है, जो भारत में पैदा की गयी है, मैं अंतर्सामुदायिक विवाहों के बारे में भली भांति जानता हूँ, क्योंकि मैं ऐसे ही विवाह से पैदा हुआ हूँ और मेरे बच्चे भी ऐसे ही विवाह से पैदा हुए है, अंतर्जातीय विवाह (हिन्दू और मुसलमान के बीच) जिहाद नहीं है,बल्कि यही असली भारत है, मैं खुद अंतर्जातीय विवाह से पैदा हुआ हूँ और मेरी जिंदगी ईद, होली और दिवाली की खुशियों से भरपूर है. हमें समान अदब के साथ आदाब और नमस्ते कहना सिखाया गया है.

हर किसी के लिए कंचना माला बन जाना मुमकिन नहीं है ऐसी मोहब्बतें  दुर्लभ होती हैं. लेकिन टीना दाबी जैसे लोग नये भारत के लिए मिसाल हैं. अगर आप सच्चा प्यार  करते है तो शादी करने के लिए अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं है हमारे देश में विशेष विवाह अधिनियम जैसा कानून है अंतर्गत किसी भी धर्म कोमानने वाले  लड़का और लड़की  विधिवत विवाह कर सकते हैं यह सही मायने में धर्मनिरपेक्ष भारत का कानून है जिसे और आसान और सुलभ बनाने की जरूरत है. 



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जावेद अनीस 
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महिला सशक्तिकरण पर जनजातीय हिजला मेला में परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन

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  • बेटी बचाओ के संदर्भ में महिला सशक्तीकरण पर परिचर्चा 

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अमरेन्द्र सुमन (दुमका),  बेटी बचाओं के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण विषय पर हिजला मेला भीतरी कला मंच पर दिन सोमवार को एक परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नगर पर्षद अध्यक्षा अमिता रक्षित ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि भारतीय समाज में महिलाओं को शक्ति, धन व विद्या की देवी माना जाता है, बावजूद महिलाओं की स्थिति दयनीय है। उन्होनें कहा महिलाओं व पूरे समाज को इस विषय पर जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। महिलाओं की संस्था वी की सचिव सिंहासन कुमारी ने कहा कि स्वस्थ बेटी ही आगे चलकर स्वस्थ मां बनती है जो स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है। स्वस्थ बच्चा ही आगे जाकर देष का सबल मानव संसाधन बनता है। अपने संबोधन में अषोक सिंह ने कहा कि आदिवासी समाज से तथाकथित सभ्य समाज को बहुत कुछ सीखने की आवष्यकता है। कारण आदिवासी समाज में दहेज प्रथा, कन्या भू्रण हत्या आदि जैसी कुरीतियां नहीं हैं। मेरिनिला मरांडी ने समाज द्वारा महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु समझे जाने पर क्षोभ व्यक्त किया उन्होंने महिला और पुरूषांे के साथ समान वर्ताव किये जाने पर बल दिया। सुषांति हांसदा ने कहा कि पति का विष्वास किसी महिला को एक मुकाम दे सकता है। परन्तु एक पिता द्वारा अपने बेटी पर किया गया विष्वास उसे जीवन मंे आत्मनिर्भर बनायेगा। पीटर हेम्ब्रम ने इस बात पर क्षोभ प्रकट किया कि एक तरफ हम मां की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं दूसरी ओर महिषासुर बनकर स्वयं उसकी हत्या करते हैं। विद्यापति झा ने कहा कि महिलाओं की समाज में दयनीय स्थिति सिर्फ भारत ही नही पूरे विष्व की समस्या है। उन्होने महिला सषक्तिकरण हेतु संवैधानिक एवं कानुनी पहलुओं की चर्चा की। धनमुनी किस्कु ने परिवार हेतु महिला की आवष्यकता को रेखांकित किया। अंजनी शरण ने कहा कि बेटा या बेटी होना ईष्वरीय वरदान है। बेटी के प्रति भेदभाव होना एक मनोदषा है जिससे निकलना जरूरी है। नीतु भारती ने बेटियों के प्रति समाज में व्यापक नकारात्मक भाव को खत्म करने की आवष्यकता जतलाई। प्रियंका चक्रवर्ती ने अपने संबोधन में कहा कि बेटी के बिना संसार में कुछ भी संभव नहीं है। आज अगर हम बेटी को न बचाये ंतो एक समय ऐसा आयेगा जब सम्पूर्ण मानव का अस्तित्व संकट में पड़ जायेगा। परिचर्चा का संचालन षिक्षक मदन कुमार ने किया। इस अवसर पर झारखण्ड कलाकेन्द्र के प्राचार्य गौर कान्त झा, मनोज कुमार घोष, जिवानन्द यादव, कुणाल झा, अंकित कुमार पाण्डेय तथा सौरभ सिन्हा के अलावा बड़ी संख्या में महिलायें एवं अन्य मेला घुमने वाले दर्षक मौजूद थे।  

हिजला मेला : 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों के लिए हुए लम्बी कूद प्रतियोगिता का आयोजन

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उप राजधानी दुमका के मयूराक्षी नदी तट पर अवस्थित हिजला ग्राम में जनजातीय हिजला मेला में दिन सोमवार को 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों के लिए हुए लम्बी कूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। रामजीत बास्की, राजकुमार मंडल व शैलेश किस्कू क्रमशः पहले दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे। इसी वर्ग मंे तीरंदाजी प्रतियोगिता में प्रदीप हांसदा, राजकिशोर हांसदा व शैलेन्द्र हांसदा क्रमशः पहले दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे। पुरूषों के लिए हुई लम्बी कूद प्रतियोगिता में हिरो सोरेन, नरेश मुर्मू व विनोद हेम्ब्रम ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया। पुरूषांे के लिए ही आयोजित 100 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में मो0 आशिक अंसारी नरेश मुर्मू व राजकुमार हेम्ब्रम क्रमशः पहले दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे। इसी वर्ग में 400 मीटर की दौड़ में दानियल किस्कू हीरो सोरेन तथा मो0 आषिक अंसारी क्रमषः पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर रहे। इसी वर्ग के मटका फोड़ प्रतियोगिता में सुरज सोरेन निर्मल टुडू तथा बर्नार्ड सोरेन क्रमषः पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर रहे। पुरूषों के लिए ही आयोजित गोला फेंक प्रतियोगिता में राजबीर सिंह, मार्क डेनिस तथा पुतिकत तिर्की क्रमषः पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर रहे। इसी वर्ग के तीरंदाजी प्रतियोगिता में गोविन्द हांसदा, वीरेन्द्र बेसरा तथा राजेष टुडू क्रमषः पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर रहे। पुरूषों के लिए हुए भारोत्तोलन प्रतियोगिता में 90 किलोग्राम भार उठाकर प्रकाष कुमार चालक ने नया रिकाॅर्ड कायम करते हुए पहला स्थान प्राप्त किया, जबकि अषोक टुडू तथा प्रषांत कुमार क्रमषः दूसरे तथा तीसरे स्थान पर रहे। महिलाओं के घड़ा दौड़ प्रतियोगिता में सुनिता हांसदा, बहामुनी हास्दा तथा मकु सोरेन क्रमषः पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर रही। बालकों के लिए हुई खोखो प्रतियोगिता में डंगाल पाड़ा ने कुसुमडीह को तथा बालिका वर्ग में कोरैया ए ने कोरैया बी को परास्त कर अगले चक्र में प्रवेष कर लिया। कबड्डी के लिए हुए प्रतियोगिता में पुलिस लाईन में गांधी मैदान टीम को परास्त किया।  हिजला मेला के सचिव अनुमंडल पदाधिकारी संजीव दुबे तथा सांसद प्रतिनिधि विजय कुमार सिंह ने विजेता खिलाड़ियों को नकद एवं प्रषस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। जिला खेलकूद कार्यक्रम को सफल करने में हिजला मेला खेलकूद समिति के उमाषंकर चैबे, बी0वी गुहा, के एन सिंह, राहुल दास, गोविन्द प्रसाद, मो0 हैदर हुसैन, वैधनाथ टुडू, शैलेन्द्र कुमार सिन्हा, मदन कुमार, वरुण कुमार, षिषिर कुमार घोष, वंदना श्रीवास्तव, विद्यापति झा, दीपक कुमार झा, जय प्रकाष झा जयन्त, रंजन कुमार पाण्डेय, जयराम शर्मा, निमाय कान्त झा, अरविन्द कुमार साह स्मिता आनन्द, सरूवा पंचायत की मुखिया मंजुलता सोरेन, रमेष मुर्मू, ज्ञान प्रकाष, निर्मल हाँसदा, विनय कुमार सिंह, वंषीधर पंडित, अरविन्द राय, छोटन प्रसाद, प्रषांत कुमार, मो0 हाकिम, कन्हैया लाल दुबे, कलदीप सिंह, विकास कुमार सिंह, सुश्री कविता कुमारी, सुषील हेम्ब्रम, राजेष हेम्ब्रम, राजेन्द्र सिंह, मसीचरण सोरेन, मो0 मोईम अंसारी, सीताराम पुजहर, मो0 मोकिम अंसारी, दुलड़ हांस्दा, आषीष रंजन भारती, सुवेन्दु सरकार, एन0के0मरांडी, मुकेष कुमार, अमित कुमार पाठक, मो0 फरीद खान, संजीव कुमार, नीलमुनी मुर्मू, दिनेष प्रसाद वर्मा आदि की भूमिका सराहणीय रही।

एटर्नी जनरल ने तमिलनाडु विस में शक्तिपरीक्षण की दी सलाह

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नयी दिल्ली 14 फरवरी, तमिलनाडु में उत्पन्न राजनीतिक संकट के बीच एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कल राज्यपाल चौधरी विद्यासागर राव को विधान सभा में शक्ति परीक्षण कराने के आदेश देने की राय दी। श्री रोहतगी ने आज यहां यूनीवार्ता को बताया कि उन्होंने राज्यपाल को शक्तिपरीक्षण कराने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि राज्यपाल ने पिछले एक सप्ताह से राज्य में जारी राजनीतिक संकट के मद्देनजर उनसे कानूनी राय मांगी थी। एटर्नी जनरल की राय उच्चतम न्यायालय के 1998 के उस आदेश के अनुरूप है, जिसके तहत उत्तर प्रदेश विधान सभा में भारतीय जनता पार्टी नेता कल्याण सिंह और लोकतांत्रिक कांग्रेस जगदम्बिका पाल के बीच उत्पन्न ‘नंबर गेम’ का निपटारा शक्ति परीक्षण के जरिये कराया गया था। इस बीच संविधान विशेषज्ञों एवं जाने-माने वकीलों ने भी राज्य विधान सभा में शक्ति परीक्षण कराने की वकालत की है। इन सभी ने राज्यपाल के संयम एवं सावधान रुख की भी सराहना की है। संविधान विशेषज्ञ एवं लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा, “राज्यपाल सावधानीपूर्वक सही रास्ते पर चल रहे हैं। एटर्नी जनरल द्वारा शक्तिपरीक्षण कराने की राय दिये जाने की खबरें हैं और यह सही सलाह है।”


अमेरिका, जापान, द.कोरिया ने की उ.कोरिया के मिसाइल परीक्षण की निंदा

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वाशिंगटन, 14 फरवरी, अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के सैन्य अधिकारियों ने उत्तर कोरिया द्वारा रविवार को किये गये मिसाइल प्रक्षेपण के संबंध में बातचीत की तथा इसके लिए उसकी कड़ी निंदा की है। पेंटागन ने एक बयान में यह जानकारी दी। बयान के मुताबिक कल इन अधिकारियों ने टेलीकांफ्रेंस के जरिये बातचीत में उत्तर कोरिया के इस कदम को “संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न प्रस्तावों का स्पष्ट उल्लंघन” बताया। पेंटागन के मुताबिक अमेरिका ने दक्षिण कोरिया और जापान के प्रति अपनी कड़ी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को भी दोहराया है।

तहमीमा पाकिस्तान की पहली महिला विदेश सचिव बनीं

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इस्लामाबाद,14 फरवरीम, संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि सुश्री तहमीना जंजुआ पाकिस्तान की पहली महिला विदेश सचिव बन गई हैं। उन्होंने भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित तथा चीन में पाकिस्तानी राजदूत मसूद खालिद को पछाड़ते हुये यह पद हासिल किया। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कल सुश्री तहमीना को विदेश सचिव बनाने की घोषणा की। वह अगले महीने मार्च के पहले सप्ताह में अपना कार्यभार संभालेंगी। वह एजाज अहमद चौधरी की जगह लेंगी। विदेश मंत्रालय के अनुसार श्री चौधरी को नयी जिम्मेदारी के तहत अमेरिका में पाकिस्तान का राजदूत बनाया गया है। सुश्री तहमीना एक अनुभवी राजनयिक हैं और उन्हें 32 साल का लंबा अनुभव है। उन्होंने इससे पहले इटली स्थित पाकिस्तान दूतावास में बतौर प्रवक्ता भी अपनी सेवाएं दी हैं। इस्लामाबाद स्थित कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी और न्यू यॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री हासिल करने वाली सुश्री तहमीना ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में कश्मीर का मुद्दा उठाया था।

पीएसएलवी-सी37 की उलटी गिनती शुरू

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श्रीहरिकोटा, आँध्र प्रदेश 14 फरवरी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले पीएसएलवी-सी37 मिशन की उल्टी गिनती मंगलवार सुबह 5.28 बजे शुरू हो गयी। मिशन रिडिनेस रिव्यू कमेटी तथा लांच ऑथराइजेशन बोर्ड ने कल रात ही 28 घंटे की उल्टी गिनती की मंजूरी दे दी थी जो मंगलवार, 14 फरवरी सुबह 5.28 बजे शुरू हो गयी। पीएसएलवी-सी37 का प्रक्षेपण यहाँ स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले प्रक्षेपण पटल से सुबह 9.28 बजे होना तय है। मिशन में मुख्य उपग्रह 714 किलोग्राम वजन वाला कार्टोसैट-2 सीरीज उपग्रह है जो इसी सीरीज के पहले प्रक्षेपित अन्य उपग्रहों के समान है। इसके अलावा इसरो के दो तथा 101 विदेशी अति सूक्ष्म (नैनो) उपग्रहों का भी प्रक्षेपण किया जाना है जिनका कुल वजन 664 किलोग्राम है। विदेशी उपग्रहों में 96 अमेरिका के तथा इजरायल, कजाखस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक उपग्रह शामिल हैं।

अमेरिका उत्तर कोरिया से सख्ती से पेश आयेगा: ट्रंप

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वाशिंगटन,14 फरवरी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया के हाल ही में किये गये मिसाइल परीक्षण की कड़ी निंदा करते हुये कल कहा कि अमेरिका उत्तर कोरिया से सख्ती से पेश आयेगा। उत्तर कोरिया ने दावा किया था कि उसने रविवार को एक नये तरह के मध्यम से लंबी रेंज के बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया है। इस पर श्री ट्रंप ने कड़े लहजे में कहा,“ निश्चित रूप से उत्तर कोरिया की महत्वाकांक्षा लगातार ऊंची होती जा रही है और यह एक बड़ी परेशानी बनता जा रहा है लेकिन हम इससे शख्ती से निपटेंगे।” श्री ट्रंप यहां ह्वाइट हाउस में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडेऊ के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। श्री ट्रंप ने हालांकि यह साफ नहीं किया कि वह उत्तर कोरिया के खिलाफ क्या कार्रवाई करेंगे। उल्लेखनीय है कि इससे पहले अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने भी उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण की कड़ी निंदा करते हुये कहा था कि अमेरिका अपने पूरे क्षेत्र और अपने सहयोगियों जापान तथा दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिये पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

कश्मीर में मुठभेड़, लश्कर का शीर्ष आतंकवादी ढेर, तीन जवान शहीद

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श्रीनगर, 14 फरवरी, जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में आज सुबह सुरक्षा बलों के साथ भीषण मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा (एलइटी) का एक शीर्ष आतंकवादी मारा गया और सुरक्षा बल के तीन जवान शहीद हो गये जबकि सुरक्षा बल के छह जवान तथा एक नागरिक घायल हो गया। आधिकारिक सूत्रों ने यहां यह जानकारी दी। हालांकि रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस खबर की पुष्टि नहीं की है। घायल जवानों को विमान से ले जाकर सेना के शिविर अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। सूत्रों ने बताया कि आतंकवादियों के छिपे होने की खुफिया सूचना के आधार पर सेना और राज्य पुलिस के विशेष अभियान दल के जवानों ने बांदीपोरा के पर्राय मोहल्ला हाजन में तड़के तलाशी अभियान चलाया। सुरक्षा बल के जवान जब आतंकवादियों के छिपे होने के इलाके की ओर बढ़ रहे थे, आतंकवादियों ने स्वचालित हथियारों से गोलीबारी शुरू कर दी और हथगोले फेंकने शुरू कर दिए। सुरक्षा बलों ने भी माकूल जवाब दिया। आतंकवादियों की शुरूआती गोलाबारी में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक वरिष्ठ अधिकारी चेतन थापा समेत नौ जवान घायल हो गये जिनमें से तीन ने बाद में दम तोड़ दिया। शहीद हुए जवान की पहचान रवि कुमार के रूप में की गई है।

आय से अधिक संपत्ति : शशिकला दोषी करार

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नयी दिल्ली, 14 फरवरी, उच्चतम न्यायालय ने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने (डीए) के मामले में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जे जयललिता की सह-आरोपी वी के शशिकला एवं दो अन्य आरोपियों को आज दोषी करार दिया और बाकी की सजा पूरी करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति अमिताभ राय की पीठ ने इस मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए राज्य सरकार की अपील स्वीकार कर ली तथा शशिकला, इलावारसी एवं सुधाकरन को दोषी ठहराया। न्यायालय ने अन्नाद्रमुक की महासचिव शशिकला को तत्काल आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। पीठ ने कहा कि तीनों दोषियों को जेल की सजा की अवधि पूरी करनी होगी। कर्नाटक की विशेष अदालत ने जयललिता, शशिकला एवं दो अन्य आरोपियों को दोषी ठहराते हुए चार-चार साल कैद की सजा सुनायी थी, जिसे कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ कर्नाटक सरकार एवं अन्य याचियों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटाखटाया था। शशिकला छह माह जेल काट चुकी हैं और उन्हें अब साढ़े तीन साल और कैद में बिताना होगा। शीर्ष न्यायालय के इस फैसले के साथ ही सुश्री शशिकला करीब दस साल तक सक्रिय राजनीति से अलग रहेंगी, क्योंकि लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार, सजा पूरी करने के छह साल बाद तक वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगी। सन 1991-1996 के बीच सुश्री जयललिता के मुख्यमंत्री रहते समय आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति (66 करोड़ रुपये) अर्जित करने के मामले में सितंबर 2014 में बेंगलुरु की विशेष अदालत ने शशिकला और उनके दो रिश्तेदारों को चार-चार साल की सजा और 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। इस मामले में शशिकला को उकसाने और साजिश रचने का दोषी करार दिया गया था, लेकिन मई 2015 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सभी को बरी कर दिया था। इसके बाद कर्नाटक सरकार, द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता के. अनबझगन और भारतीय जनता पार्टी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। इनकी दलील थी कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में अंकगणीतिय भूल की थी। शीर्ष अदालत ने चार महीने की सुनवाई के बाद पिछले साल जून में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उल्लेखनीय है कि डीए मामले की निष्पक्ष सुनवाई के लिए इसे कर्नाटक स्थानांतरित किया गया था।

पर्रिकर ने की रक्षा क्षेत्र के लिए आविष्कार कोष की घोषणा

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येलहंका, बेंगलुरू 14 फरवरी, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’को बढ़ावा देने तथा युवा प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए एक आविष्कार कोष की स्थापना की घोषणा की है। श्री पर्रिकर ने आज यहां नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू की मौजूदगी में 11 वीं एरो इंडिया प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए कहा कि मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को बढावा देने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए एक आविष्कार कोष का गठन कर रही है और इसके लिए राशि जुटाने की जिम्मेदारी रक्षा क्षेत्र के प्रमुख उपक्रमोंं हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड एचएएल और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड को सौंपी गयी है। उन्होंने कहा कि यह कोष विशेष रूप से स्टार्ट अप परियोजनाओं के लिए गठित किया जा रहा है। हालाकि उन्होंने अभी इस कोष के लिए निर्धारित राशि का उल्लेख नहीं किया। उन्होंने कहा कि सरकारी कंपनियों को निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी के तहत परियोजनाओंं पर काम करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जायेगा। रक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार ने रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में बदलाव के साथ-साथ कई अन्य पहल की हैं। इसके अलावा कई और कदम भी उठाये जा रहे हैं जिससे कि रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को अधिक से अधिक से बढ़ावा दिया जा सके।


फैसला आने के मद्देनजर तमिलनाडु में सुरक्षा पुख्ता

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चेन्नई, 14 फरवरी, उच्चतम न्यायालय द्वारा आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम् (अन्ना द्रमुक) महासचिव वी के शशिकला को दाेषी करार दिये जाने के मद्देनजर तमिलनाडु में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए सुश्री शशिकला एवं अन्य को दोषी ठहराया। न्यायालय ने अन्ना द्रमुक की महासचिव शशिकला काे तत्काल आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। पुलिस सूत्रों ने बताया कि चेन्नई में 10 हजार से अधिक पुलिसकर्मी तैनात हैं। ईस्ट कोस्ट रोड स्थित कूवाथुर रिजॉर्ट के आसपास भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है जहां सुश्री शशिकला उन्हें समर्थन दे रहे 119 विधायकों के साथ रह रही थीं। कूवाथुर में 2500 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। रिजॉर्ट के पास बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी भी उपस्थित हैं। सुश्री शशिकला के पोज गार्डेन और कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम के ग्रीनवेज रोड स्थित निवास पर भी सुरक्षा कड़ी कर दी गयी है। राज्य के अन्य महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील स्थानों पर भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी गयी है। पुलिस ने किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए एहतियातन कल 500 अपराधियाें को गिरफ्तार किया।

थोक महँगाई ढाई साल के उच्चतम स्तर 5.25 प्रतिशत पर

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नयी दिल्ली 14 फरवरी, पेट्राेल-डीजल के साथ चीनी तथा गेहूँ की कीमतों में तेज बढ़ोतरी के कारण इस साल जनवरी में थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति की दर बढ़कर ढाई साल के उच्चतम स्तर 5.25 प्रतिशत पर पहुँच गयी। इससे पहले गत साल दिसंबर में थोक महँगाई दर 3.39 प्रतिशत तथा एक साल पहले जनवरी 2016 में 1.07 प्रतिशत ऋणात्मक रही थी। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी तक थोक महँगाई दर 5.31 प्रतिशत रही है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 0.04 प्रतिशत ऋणात्मक रही थी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आज यहाँ जारी आँकड़ों के अनुसार, गत साल जनवरी की तुलना में इस साल जनवरी में पेट्रोल के दाम 15.66 प्रतिशत तथा डीजल के 31.10 प्रतिशत बढ़े हैं। इनके अलावा चीनी 22.83 फीसदी, गेहूँ 9.49 फीसदी तथा दालें 6.21 फीसदी महँगी हुई हैं।

ग्रैमी में भारत का प्रतिनिधित्व करके गर्व महसूस हो रहा है : संदीप दास

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नयी दिल्ली, 13 फरवरी, विश्व संगीत श्रेणी में ग्रैमी पुरस्कार जीतने वाले भारतीय तबला वादक संदीप दास का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करना गौरव का क्षण था। विश्व संगीत श्रेणी में भारतीय तबलावादक संदीप दास और यो यो मा के एलबम ‘सिंग मी होम’ ने सर्वश्रेष्ठ एलबम का पुरस्कार जीता है । संदीप इस बात से दुखी हैं कि शास्त्रीय संगीत को देश में वह सम्मान नहीं मिलता जो उसे मिलना चाहिए, जबकि पश्चिम में उसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। पुरस्कार पाने के बाद लॉस एंजिलिस से संदीप ने बताया, ‘‘यह तीसरी बार मेरे लिए सौभाग्यपूर्ण रहा। मैं जो हूं और जहां से आता हूं, उस पर गर्व है, फिर चाहे सांस्कृतिक रूप से हो या संगीत के क्षेत्र में। मुझे लगता है काश हमारे देश में भी संगीत की इतनी पहचान होती, जिसकी जड़ें इतनी गहरी हैं और जो हमारे खून में बसा हुआ है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह कोई शिकायत नहीं है, बस एक इच्छा है। काश पारंपरिक संगीत के संबंध में लोगों के बीच और जागरूकता होती। मुझे हार्वड विश्वविद्यालय से बुलावा आया, लेकिन मेरे अपने शिक्षण संस्थान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने अब तक मुझमें कुछ खास नहीं देखा।’’

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार के नर्सरी में प्रवेश संबंधी नए नियमों पर रोक लगाई

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नयी दिल्ली, 14 फरवरी, दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप सरकार के स्कूल से नजदीकी के आधार पर बनाए गए नर्सरी में प्रवेश के नए नियमों पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि ये नियम ‘‘मनमाने और भेदभावपूर्ण’’ हैं। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि नए नियमों पर सात जनवरी को लगाई गई अंतरिम रोक तब तक जारी रहेगी जब तक कि गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों से संबंधित दिल्ली सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं का पूरी तरह निस्तारण नहीं हो जाता। दिल्ली सरकार ने गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को आदेश दिया था कि वह नर्सरी प्रवेश से संबंधित आवेदन स्कूल से घर की दूरी के मापदंड के आधार पर ही स्वीकार करें। दिल्ली सरकार ने 19 दिसंबर, 2016 और सात जनवरी को अधिसूचना जारी कर दिल्ली विकास प्राधिकरण :डीडीए: की भूमि पर बने 298 निजी स्कूलों को नर्सरी प्रवेश से संबंधित फॉर्म केवल नजदीकी मापदंड के आधार पर ही स्वीकार करने का निर्देश दिया था। इसे अभिभावकों और दो स्कूल समूहों ने याचिका दायर कर चुनौती दी थी। सात जनवरी की अधिसूचना पर रोक लगाते हुए अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार का शिक्षा निदेशालय :डीओई: जो काम सीधे तौर पर नहीं कर सकता, वही काम वह अप्रत्यक्ष तौर पर भी नहीं कर सकता है।

ट्रम्प के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद से फ्लिन का इस्तीफा

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वाशिंगटन, 14 फरवरी, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन ने रूस के साथ संबंधों के आरोपों के मद्देनजर आज अपने पद से इस्तीफा दे दिया। आरोप है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण से पहले फ्लिन ने रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों पर रूसी राजदूत के साथ चर्चा की थी। फ्लिन ने अमेरिकी न्याय विभाग की एक रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में इस्तीफा दिया है। न्याय विभाग ने पिछले महीने ट्रम्प प्रशासन को यह चेतावनी दी थी कि फ्लिन ने अमेरिका में रूसी राजदूत के साथ अपनी बातचीत पर प्रशासन अधिकारियों को भ्रमित किया है और रूसी उन्हें ब्लैकमेल कर सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान ट्रम्प के शुरआती समर्थकों में शामिल फ्लिन महज तीन सप्ताह तक ही शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद पर रहे। व्हाइट हाउस ने घोषणा की कि फ्लिन की जगह लेफ्टिनेंट जनरल :सेवानिवृत्त: जोसेफ कीथ केलॉग को कार्यवाहक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है। अमेरिकी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल :सेवानिवृत्त: फ्लिन ने अपने इस्तीफे में राष्ट्रपति ट्रम्प और उपराष्ट्रपति माइक पेंस से उनके शपथ ग्रहण से पहले रूसी राजदूत के साथ हुई अपनी बातचीत की आधी अधूरी जानकारी देने के मामले में माफी मांगी। यह पत्र व्हाइट हाउस ने मीडिया में जारी की है।


फ्लिन ने अपने इस्तीफा में लिखा, ‘‘बतौर भावी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अपनी सेवा के दौरान मैंने विदेशी समकक्षों, मंत्रियों और राजदूतों के साथ कई बार फोन पर बातचीत की। ये फोन कॉल सहज सत्ता हस्तांतरण तथा राष्ट्रपति और उनके सलाहकारों तथा विदेशी नेताओं के बीच आवश्यक संबंध निर्माण शुरू करने के लिये किये गये थे। इस तरह के फोन कॉल किसी भी सत्ता हस्तांतरण के दौरान मानक परिपाटी रहे हैं।’’ फ्लिन ने कहा, ‘‘तेजी से बदलते घटनाक्रमों के चलते दुर्भाग्य से अनजाने में मैंने निर्वाचित उपराष्ट्रपति एवं अन्य को रूसी राजदूत के साथ फोन पर हुई अपनी बातचीत के बारे में आधी अधूरी जानकारी दी। इसके लिये मैं राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति से दिल से माफी मांगता हूं और उन्होंने मेरी माफी स्वीकार भी की है।’’ उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एवं उपराष्ट्रपति पेंस के मजबूत नेतृत्व और उनकी शानदार टीम से वाकिफ हैं। यह टीम अमेरिकी इतिहास में सबसे महान राष्ट्रपतित्व काल के लिये जानी जायेगी। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि अमेरिकी लोगों को बेहतर सुविधाएं दी जाएंगी क्योंकि वे सभी अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने के लिये मिलकर काम कर रहे हैं।’’ ‘वॉल स्ट्रीट’ पत्रिका के अनुसार अमेरिकी न्याय विभाग ने ट्रम्प प्रशासन को पिछले महीने चेतावनी दी थी कि रूसी राजदूत के साथ प्रतिबंधों पर चर्चा से फ्लिन का इनकार विरोधाभासी है। इस चेतावनी से जुड़ी खबर सबसे पहले ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने प्रकाशित की थी।
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