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मजदूर व किसान की अनदेखी कर सपा ने बदली समाजवाद की परिभाषा : मोदी

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कन्नौज 15 फरवरी, समाजवादी पार्टी (सपा) को उसके गढ में ललकारते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि गरीब,मजदूर और किसान की अनदेखी कर उत्तर प्रदेश सरकार ने समाजवाद की परिभाषा ही बदल दी है। इत्रनगरी कन्नौज के गुरसहायगंज में स्थित सेना ग्राउंड में परिवर्तन संकल्प महारैली को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि समाजवाद की पैरवी और गरीबी हटाओ का नारा देने वालों की बातें खोखली साबित हुयी है। सूबे की अखिलेश सरकार गरीब विरोधी है। यह सरकार गांव,गरीब,किसान,युवा,दलित और शाेषित वर्ग के लिये कभी समर्पित नही रही। गरीबों का पेट भरने के लिये केन्द्र सरकार खाद्यान्न सुरक्षा योजना के तहत धन आवंटित करती है। केन्द्र ने अखिलेश सरकार को गरीबों की सूची भेजने को कहा था मगर उसकी सूची अब तक नही बन सकी। इस कारण 50 हजार गरीबों के लिये आवंटित 750 करोड रूपये अभी भी केन्द्र के पास रखे हैं। यहां तक कि अनाथाश्रम जैसी सामाजिक संस्थाओं के लिये केन्द्र द्वारा भेजे गयी धनराशि का भी उपयोग नही हो सका। इसका एकमात्र कारण यही रहा होगा कि सूबे में गरीबों के धन का उपयोग करने के लिये बिचौलिये नही मिले। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद उनके पास अपनी निजी कार नही है जबकि समाजवाद का ढोल पीटने वाले कई नेताओं के पास मंहगी कारों का काफिला है। यह कौन सा समाजवाद है।


राहुल गांधी ने कहा, सरकार बनी तो किसानों का रखेंगे खास ख्याल

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बाराबंकी 15 फरवरी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों की आलोचना करते हुए आज वायदा किया कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी(सपा) गठबंधन की सरकार बनी तो उत्तर प्रदेश को दुनिया का फ्रूट फैक्ट्री हब बना दिया जायेगा। केले, पिपरमिंट और टमाटर के उत्पादन में विशेष स्थान रखने वाले बाराबंकी में श्री गांधी ने जैदपुर कस्बे में आयोजित एक चुनावी जनसभा में कहा कि फलों की प्रोसेसिंग कर उन्हें निर्यात किया जायेगा जिससे यहां के किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिल सके। कांग्रेस नेता ने कहा कि ढाई साल पहले लोकसभा चुनाव से पूर्व नरेन्द्र मोदी ने देश के दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात कही थी, लेकिन पूरे देश में एक लाख युवाओं को भी रोजगार नही मिला, बल्कि युवकों और देश की भोलीभाली जनता को बैंको के आगे लाइन में लगवा दिया। नोटबंदी पर तंज कसते हुये श्री गांधी ने मोदी की नकल करते हुये कहा कि आठ नवम्बर को आठ बजे प्रधानमंत्री टीवी पर आते हैं और जनता से कहते हैं कि पांच सौ रूपये व हजार रूपये का नोट आज से कागज हो गये। किसानों, मजदूरों और युवाओं सहित समूचे हिन्दुस्तान को लाइनों में खड़ा कर दिया, लेकिन उन लाइनों में एक भी सूटबूट वाला व्यक्ति नहीं दिखा।

शशिकला ने विशेष अदालत के समक्ष किया आत्मसमर्पण

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बेंगलुरु 15 फरवरी, ज्ञात स्त्रोंतो से अधिक की संपत्ति अर्जित करने के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी करार दी गयी अन्नाद्रमुक महासचिव वी के शशिकला ने आज यहां विशेष अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, विशेष अदालत के न्यायाधीश अश्वत नारायणा के समक्ष सुश्री शशिकला के साथ ही मामले में अन्य दोषी सुधाकरण और इलावरस ने भी आत्मसमर्पण किया है। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने स्वास्थगत आधार पर चार सप्ताह का समय मांगे जाने संबंधी सुश्री शशिकला की याचिका आज खारिज कर दी और उन्हें कल के फैसले के अनुरूप पहले आत्मसमर्पण करने के निर्देश दिये।

अब ब्रह्मोस की मारक क्षमता के घेरे में आयेंगे पाकिस्तान के कई इलाके

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बेंगलुरु, 15 फरवरी, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का नया संस्करण पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्सों के साथ चीन के खास इलाकों तक लक्ष्य भेद पायेगा, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख एस क्रिस्टोफर ने आज बताया कि 450 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली ब्रह्मोस मिसाइल के नए संस्करण का पहला परीक्षण 10 मार्च को किया जाएगा। बेंगलुरु में आयोजित एयरो इंडिया शो में पत्रकारों को संबोधित करते हुए डॉ क्रिस्टोफर ने कहा कि आगामी दो से ढाई वर्षों के दौरान ब्रह्मोस की मारक क्षमता को 800 से 850 किलोमीटर तक किया जाएगा। मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण इकाई (एमटीसीआर) के प्रभाव के विषय में बात करते हुए डीआरडीओ प्रमुख ने कहा कि इसका लाभ यह हुआ है अब भारत ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता बढा सकता है जो पहले 290 किलोमीटर पर सीमित की हुई थी।

प्रधानमंत्री ने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी, कहा. उनकी बहादुरी हमेशा याद रहेगी

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नयी दिल्ली, 15 फरवरी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर में कल दो अलग अलग मुठभेड़ों के दौरान शहीद हुए सेना के एक मेजर समेत चार सैन्यकर्मियों को आज श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि देश इनकी बहादुरी और बलिदान को हमेशा याद रखेगा । प्रधानमंत्री ने पालम हवाई अड्डे पर इन सैनिकों के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। इन सैनिकों का पार्थिव शरीर आज यहां लाया गया । इस अवसर पर सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने प्रधानमंत्री को उन घटनाओं की जानकारी दी जिनमें ये सैनिक शहीद हुए । मोदी ने बाद में ट्वीट किया, ‘‘जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए सर्वस्व न्योछावर करने वाले बहादुर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की । भारत उनकी बहादुरी और बलिदान को हमेशा याद रखेगा।’’ प्रधानमंत्री ने उत्तरप्रदेश के कन्नौज में एक चुनावी रैली को संबोधित करके लौटने के बाद वीर जवानों को श्रद्धांजलि दी । कश्मीर में कल दो अलग अलग घटनाओं में मेजर एस दहिया समेत तीन सैनिक शहीद हो गए । दहिया उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के क्रालगुंड क्षेत्र में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए । इस मुठभेड़ में सैनिकों ने तीन आतंकवादियों को मार गिराया । सेना के तीन जवान बांदीपुरा जिले के हाजिन क्षेत्र में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए ।

मोमेंटम झारखंड की तैयारी पूरी, जेटली करेंगे उद्घाटन

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रांची 15 फरवरी, वैश्विक निवेशक सम्मेलन (मोमेंटम झारखंड) में शामिल होने को लेकर अतिथियों के रांची आने का सिलसिला आज शुरु हो गया है। चार सहभागी देश चेक गणराज्य , जापान, मंगोलिया एवं ट्यूनिशिया समेत 26 देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में गुरुवार से शुरु होने वाले दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली करेंगे। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता मुख्यमंत्री रघुवर दास करेंगे जबकि विशिष्ट अतिथि के रुप में केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ,केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ,केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय ऊर्जा एवं कोयला राज्यमंत्री पीयूष गोयल , केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री सुदर्शन भगत और केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा उपस्थित रहेंगे। समारोह में टाटा समूह के रतन टाटा , आदित्य बिड़ला समूह के कुमार मंगलम बिड़ला, अडानी समूह के गौतम अडानी, फोर्ब्स मार्शल के नौशाद फोर्ब्स, वेदांता समूह के अनिल अग्रवाल, हीरोमोटो कॉर्प के पवन मुंजाल, एस्सार समूह के शशि रुईया , हिन्डाल्को इंडस्ट्रीज के सतीश पाइ, जिन्दल स्टील एवं पॉवर लिमिटेड के नवीन जिंदल समेत देश-विदेश के कई औद्योगिक घरानों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस सम्मेलन में देश-दुनिया के करीब 9525 प्रतिनिधियों ने शामिल होने की स्वीकृति प्रदान की है। इधर मोमेंटम झारखंड में शामिल होने के लिए देश-विदेश से अतिथियों के आने का सिलसिला शुरु हो गया है। वैश्विक निवेशक सम्मेलन को लेकर सबसे पहले पहुंचने वाले प्रतिनिधियों में जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी के टेकमा सकामोटो शामिल है। हवाई अड्डे पर परंपरागत तरीके से अतिथियों का स्वागत किया जा रहा है। 

नीतीश रघुवर दास ने इसरो के 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर दी बधाई

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पटना 15 फरवरी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक साथ 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर दुनिया में कीर्तिमान स्थापित करने पर आज वैज्ञानिकों को बधाई दी। श्री कुमार ने कहा कि ध्रुवीय प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी)सी37 द्वारा 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर इसरो ने इतिहास रचा है। देश के लिए यह गर्व की बात है। इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है, जिसके लिये वे बधाई के पात्र हैं।  उल्लेखनीय है कि इसरो ने आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन केन्द्र से एक साथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में न केवल एक नया इतिहास रचा है बल्कि पूरे विश्व में एक नया कीर्तिमान भी स्थापित किया है। पीएसएलवी सी37 के जरिये प्रक्षेपित किये गये उपग्रहों में दो कार्टोसैट-2 सीरीज के स्वदेशी उपग्रह तथा 101 विदेशी नैनो उपग्रह हैं, जिनमें 96 उपग्रह केवल अमेरिका के हैं। 


उधर झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पीएसएलवीसी 37 के माध्यम से 104 सैटेलाइट के सफल प्रक्षेपण पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों को बधाई दी है। मुख्यमंत्री ने यहां कहा कि भारत ने एक साथ 104 सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण कर अंतिम विज्ञान में लंबी छलांग लगायी है। उल्लेखनीय है कि इसरो ने आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन केन्द्र से एक साथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में न केवल एक नया इतिहास रचा है बल्कि पूरे विश्व में एक नया कीर्तिमान भी स्थापित किया है। पीएसएलवी सी37 के जरिये प्रक्षेपित किये गये उपग्रहों में दो कार्टोसैट-2 सीरीज के स्वदेशी उपग्रह तथा 101 विदेशी नैनो उपग्रह हैं, जिनमें 96 उपग्रह केवल अमेरिका के हैं। 

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से नीतीश के कानून राज की पोल खुली : सुशील कुमार मोदी

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पटना 15 फरवरी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन और कानून के राज के दावों को विफल बताते हुये आज कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को सीवान से तिहाड़ जेल स्थानांतरित करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से साबित हो गया है कि राज्य की कानून व्यवस्था ऐसी नहीं है जिसमें मामले की निष्पक्ष सुनवाई कराई जा सकती है। भाजपा विधानमंडल दल के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यहां कहा कि राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और महागठबंधन के नेता कुख्यात शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल भेजने का फैसले से साबित हो गया है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की ऐसी स्थिति नहीं है कि शहाबुद्दीन जैसे सत्ता संरक्षित अपराधी को वहां रख कर उसके मामले की निष्पक्ष सुनवाई कराई जा सके। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से मुख्यमंत्री के कथित सुशासन और कानून के राज की एक बार फिर हवा निकल गई है। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की पीठ ने आशा रंजन और चंदा बाबू की याचिका पर सुनवाई के बाद शहाबुद्दीन को एक सप्ताह के भीतर तिहाड़ भेजने का आदेश दिया। आशा रंजन एक हिन्दी दैनिक के सीवान ब्यूरो प्रमुख राजदेव रंजन की पत्नी हैं, जिनकी दिनदहाड़े हत्या कर दी गयी थी, जबकि चंदा बाबू के दो बेटों की हत्या करके तेजाब में डाल दिया गया था। घटना के चश्मदीद गवाह तीसरे बेटे को गवाही देते जाते वक्त गोलियों से भून डाला गया था। 


श्री मोदी ने कहा कि सीवान जेल में रहते चंदा बाबू के तीसरे बेटे की हत्या कराने, गवाहों को धमकाने, आतंक कायम रखने और जेल में दरबार लागने जैसे संगीन आरोपों के बावजूद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के दबाव में नीतीश सरकार नहीं चाहती थी कि शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल भेजा जाए। इसलिए इससे संबंधित याचिका पर सरकार ने अपना कोई स्पष्ट मंतव्य नहीं दिया और चुप्पी साधे रही। पूर्व उप मुख्यमंत्री ने नीतीश सरकार पर शहाबुद्दीन को मदद करने का आरोप लगाते हुये कहा कि इसके पहले उच्च न्यायालय में जहां राज्य सरकार ने शहाबुद्दीन को जमानत दिलाने में मदद की वहीं उच्चतम न्यायालय में उसकी जमानत को निरस्त कराने के लिए प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण की पहल का इंतजार करती रही। भाजपा नेता ने मुख्यमंत्री को चुनौती देते हुये कहा कि उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के बाद यदि श्री कुमार में साहस है तो राजद अध्यक्ष पर दबाव बना कर कई संगीन मामलों में सजायफ्ता शहाबुद्दीन को राजद से निष्कासित करायें और जेल में शहाबुद्दीन से मिलने एवं दरबार लगाने वाले मंत्री अब्दुल गफूर के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही शहाबुद्दीन से जुड़े तीन साल से बंद पड़े सभी मामले की ट्रायल शुरू करायें। 

रेलयात्री ने शिशुओं के लिये मिल्क डिलीवरी सेवा शुरू की

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  • ट्रेन यात्रियों को अत्याधुनिक पैकेजिंग में हाइजीनिक बेबी मिल्क उपलब्ध कराया जायेगा 


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भारत,16 फरवरी 2017: रेलयात्री एक ट्रेन ट्रैवेल मार्केटप्लेस, ने ट्रेन यात्रियों के लिये हाल ही में मिल्क डिलीवरी सेवा शुरू की है। भारत में पहली बार गर्म दूध को विशेष रूप से डिजाइन स्पिल-प्रूफ थर्मो पैकेजेज में डिलीवर किया जायेगा। शिशुओं के लिये यह दूध रेलयात्री ऐप्प के जरिये आसानी से आॅर्डर किया जा सकता है और इसे निर्धारित स्टेशनों पर डिलीवर किया जायेगा।  रेलयात्री विश्लेषण से पता चला है कि 80 प्रतिशत से अधिक घटनाओं में ट्रेन यात्रियों को बेबी फूड या दूध उपलब्ध कराने के लिये तैयार नहीं होते हैं। हाइजीनिक नजरिये से भी यह बेहद परेशानी भरा सबब होता है। ट्रेनों में देरी और अनिश्चिततायें एक रेल सफर से संबंधित सामान्य समस्या है और इससे यात्रियों को बड़ी मुश्किल हो सकती है। मनीष राठी, सीईओ और सह-संस्थापक,  रेलयात्री ने कहा, ‘‘किसी छोटे बच्चे के साथ सफर करने के दौरान रेलयात्रा कुछ परेशानी भरी हो सकती है। हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी मां को अपने शिशु को भूख से बिलखते हुये न देखना पड़े। इस तरह की आपात स्थितियों को ध्यान में रखते हुये हम अब शिशुओं के लिये गर्म दूध की डिलीवरी शुरू करने जा रहे हैं। यह दूध हाइजीनिक, स्पिल-प्रूफ पैकेजिंग में डिलीवर किया जायेगा। हम पहले से ही पूरे परिवार के लिये भोजन परोस रहे हैं, ऐसे में हमें छोटे शिशुओं पर भी ध्यान देना चाहिये।‘‘ श्री राठी ने आगे कहा, ‘‘माता-पिता आमतौर पर अपने बच्चों के लिये बेबी फूड और दूध साथ में लेकर चलते हैं। लेकिन ट्रेन में देरी या किसी अन्य आपातकालीन हालातों अथवा बेबी फूड साथ में रखना भूल जाने की स्थिति में अब आपको अपने बच्चे के लिये दूध की चिंता करने की जरूरत नहीं है। हमने सर्वश्रेष्ठ स्थिति में दूध डिलीवर करने पर खास तौर से ध्यान दिया है और इसके हाइजीन एवं क्वालिटी पैकेजिंग पर विशेष रूप से जोर दे रहे हैं।‘‘

श्रीमती गायत्री चैधरी, अवध एक्सप्रेस से पुरानी दिल्ली से गोरखपुर की यात्रा करने वाली एक यात्री ने एक परेशानी भरा अनुभव साझा करते हुये बताया, ‘‘मैंने सफर शुरू करने से पहले अपने बच्चे के लिये पर्याप्त मात्रा में पैक्ड बेबी मिल्क और फूड साथ में रखा था। ट्रेन के हरदोई पहुंचने से पहले तक सबकुछ ठीक चल रहा था। लेकिन तभी ट्रेन बीच रास्ते में कहीं पर रूक गई और हमें पता चला कि आगे सिंगल की कोई बड़ी समस्या हो गई है। हम 9 घंटे तक वहीं पर खड़े रहे। मेरे पति ने ट्रेन की पैंट्री से मदद लेने की कोशिश की, लेकिन उनके पास भी दूध खत्म हो चुका था। वह हर स्टेशन पर ट्रेन रूकने के बाद बेबी फूड के लिये भटक रहे थे। कई असफल प्रयासों के बाद उन्हें स्टेशन पर एक चाय की दुकान पर थोड़ा दूध मिला। इस दौरान मैं पूरे समय भूख से छटपटा रही अपनी 10 माह की बेटी को चुप कराने का प्रयास कर रही थी। मैं उस समय खुद को बेहद असहाय महसूस कर रही थी और यह बुरा अनुभव मैं कभी नहीं भूल सकती हूं।‘‘ दूध आॅर्डर करना अब सिर्फ कुछ टैप्स की दूरी पर है। आप रेलयात्री के एप्प के जरिये किसी भी समय और कहीं से भी आॅर्डर कर सकते है। दूध के लिये आॅर्डर किये जाने के बाद इस दूध को ट्रेन में आपकी सीट तक पहुंचाया जाता है। यह दूध लेने के लिये आपको स्टेशन पर उतरने की जरूरत नहीं है। 

विभिन्न भुगतान विकल्पों के साथ आप अपने चहेतों और करीबियों के लिये दूध आॅर्डर कर सकते हैं, जो आपके बिना यात्रा कर रहे हैं। ट्रेन में सफर के दौरान अपने बच्चे के लिये गरमागरम दूध पाना अब आसान हो गया है। इससे यात्रा कर रहे लोगों का रेल का सफर और आसान हो जायेगा और यही रेलयात्री का निरंतर प्रयास रहा है। 

सन्दर्भ : तमिलनाडु में सेंधमारी और बंगाल में राम की सौगंध,

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 गायपट्टी में मुंह की खाने की हालत में ग्लोबल हिंदुत्व का पलटवार! पंजाब,कश्मीर और असम के बाद बंगाली और तमिल राष्ट्रीयताओं के साथ बेहद खतरनाक खेल हिंदुत्व के नाम! ध्रूवीकरण समीकरणःसंघियों ने अमर्त्य सेन समेत बंगाल के बुद्धिजीवियों पर निशाना साधा तो ममता दीदी ने पचानब्वे फीसद मुसलमानों को दे दिया आरक्षण। नोटबंदी के बावजूद यूपी हारने के बाद उत्तराखंड भी संघ परिवार के सरदर्द का सबब! हरिद्वार में बाबा रामदेव ने पलटी मारी और कहा,पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा और भारी उथल-पुथल मचेगी!





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आज यूपी में दूसरे चरण का मतदान है।उत्तराखंड में भी आज जनादेश की कवायद है।इससे एक दिन पहले तमिलनाडु में दिवंगत जयललिता को चार साल की कैद के अलावा सौ करोड़ के जुर्माने की सजा सुप्रीम कोर्ट ने सुना दी है तो बंगाल में कल ही लव जिहाद के खिलाफ हिंदुत्व का घनघोर अभियान गायपट्टी की तर्ज पर चला है।इसके अलावा दक्षिण 24 परगना के मुस्लिम बहुल इलाकों से होकर मध्य कोलकाता के धर्मतल्ला के रानी रासमणि रोड तक संघ परिवार के हिंदू संहति मंच का विशाल जुलूस जय श्रीराम के जयघोष के साथ निकला है।
बजरंगियों के मत्थे पर भगवा पट्टी थी तो नेताओं के सुर में  मुसलमानों के खिलाफ खुला जिहाद।डोनाल्ड ट्रंप का दुनियाभर में पहला खुल्ला समर्थन। उधर आय से अधिक संपत्ति मामले में 4 साल की सजा सुनाए जाने के बाद सरेंडर के लिए कुछ मोहलत मांगने सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं शशिकला को करारा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने एआईएडीएमके की नेता को बेंगलुरु स्थित ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने के लिए और वक्त दिए जाने से इनकार कर दिया है।  खबरों के मुताबिक वह सरेंडर करने के लिए जल्दी ही बेंगलुरु ट्रायल कोर्ट के लिए रवाना होंगी। वह बुधवार शाम तक बेंगलुरु ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर कर सकती हैं। इससे पहले शशिकला ने मरीना बीच जाकर पूर्व सीएम जयललिता को श्रद्धांजलि अर्पित की। मुसलमान बहुल इलाकों में इस जुलूस पर छिटपुट पथराव और जबाव में जुलूस में शामिल बजरंगियों के तांडव की भी खबर है। सबसे खास बात है कि कभी आमार नाम वियतनाम,तोमार नाम वियतनाम के नारे के साथ अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ सबसे मुखर रहे कोलकाता में संघियों ने व्यापक पैमाने पर मुसलमानों के खिलाफ जिहाद का ऐलान करने वाले डान डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीरों के साथ उनके इस्लामविरोधी जिहाद के समर्थन में दक्षिण 24 परगना और कोलकाता में व्यापक पोस्टरबाजी की है,प्रगतिशील,धर्मनिरपेक्ष और उदारता के झंडेवरदार बंगाल के लिए यह बेहद शर्मनाक हादसा है।

वामपक्ष के सफाये पर उतारु दीदी ने मुसलमान वोट बैंक अटूट रखकर फासिज्म के राजकाज के साथ जो जहरीला रसायन तैयार किया है,उसके नतीजे बंगाल में सीमाओं के आर पार भयंकर तो होंगे ही,बाकी देश भी अछूता नहीं रहेगा। गौरतलब है कि वामशासन काल में 1980 के सिख संहार,असम और पूर्वोत्तर में खूनखराबे और बाबरी विध्वंस के वक्त भी कोई धार्मिक ध्रूवीकरण नहीं हुआ था। अब 2011 के परिवर्तन के बाद यह ध्रूवीकरण आहिस्ते आहिस्ते सुनामी में तब्दील है।धूलागढ़ को लेकर दंगा व्यापक बनाने की हिंदुत्व मुहिम जारी है तो जिलों में लगातार सांप्रदायिक संघर्ष उत्तर बंगाल,मध्य बंगाल और दक्षिण बंगाल का रोजनामचा बन गया है। दुर्गा पूजा,सरस्वती पूजा और मुहर्रम के मौके पर भी अब तनातनी आम है। 2014 से बंगाल में हिंदुओं के ध्रूवीकरण में बांग्लादेश में बचे खुचे दो करोड़ हिंदुओं और गैर मुसलमानों पर लगातार तेज होते हमलों के साथ साथ असम में उल्फाई राजकाज के साथ जमीनी स्तर पर संघी कैडरों की ममता राज में बेलगाम सक्रियता बहुत तेजी आयी है।बंगाल जीतने के लिए शरणार्थी समस्या नागरिकता कानून बनाकर गहराने के बाद संघियों ने शरणार्थियों को भी अपनी गिरफ्त में दबोच लिया है,जिनका बाकी कोई तरनहार नहीं है। शारदा फर्जीवाड़ा के तुरुप का पत्ता खींसे में रखकर दो सांसदों को गिरफ्तार करते ही दीदी हिंदुत्व की पटरी पर फिर वापस हो गयी हैं।हालांकि चुनावी समीकरण के मुताबिक उन्होंने मुसलमान वोट बैक को अटूट रखने के लिए ओबीसी आरक्षण के तहत बंगाल के पचानब्वे फीसद मुसलमानों को दे दिया है।पश्चिम बंगाल के कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज ने सोमवार को यह तय किया कि मुस्लिम समुदाय की 'खास'जाति को भी ओबीसी कैटिगरी के अंतर्गत लाया जाना चाहिए। अब तक मुस्लिम समाज के करीब 113 समुदायों को ओबीसी कैटिगरी में शामिल कर लिया गया है। इसके विपरीत ओबीसी हिंदुओं को आरक्षण के बारे में उन्हें कोई सरदर्द नहीं है।बंगाल में ओबीसी जनसंख्या पचास फीसद से ज्यादा है।दलितों और मतुआ और शरणार्थियों के साथ उनके केसरियाकरण से बंगाल में अब हिंदुत्व की सुनामी है।

इस खतरे का अंदेशा भी दीदी को खूब है।लेकिन वे अपने ही बिछाये जाल में उलझ गयी है। बहरहाल केसरिया सुनामी पर  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया है  कि किसी भी समुदाय द्वारा की जाने वाली हिंसा से उनकी सरकार सख्ती से निपटेगी। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में दंगा भड़काने की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दीदी ने कहा, 'हम उन्हें नहीं बख्शेंगे जो दंगे की आग भड़काते हैं और दूसरों को उकसाते हैं। हम किसी भी समुदाय, चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो या फिर ईसाई, किसी की भी हिंसक गतिविधियों से सख्ती से निपटेंगे।'दूसरी तरफ,शशिकला की जेलयात्रा के साथ साथ तमिलनाडु और तमिल राजनीति पूरी तरह संघ परिवार के शिकंजे में है।अन्नाद्रमुक द्रमुक आंदोलन की तरह दो फाड़ है और द्रमुक भी इस जुगत में है कि या तो सत्ता उसे किसी समीकरण के साथ मिल जाये या फिर मध्यावधि चुनाव हो जाये। जाहिर है कि जो भी सरकार बनेगी ,वह केंद्र सरकार के रहमोकरम पर होगी।तमिल राष्ट्रीयता तीन धड़ों में बंट गयी है और सत्ता समीकरण जो भी हो, तमिलनाडु में संघ परिवार की सेंधमारी चाकचौबंद है। जो भी नई सरकार बनेगी,वह जाहिर है कि केंद्र सरकार से नत्थी हो जायेगी और उस धड़े के सांसद केसरिया अवतार में होंगे।जो भूमिका बंगाल के तृणमूल की संसद में रही है। भारत संविधान के मुताबिक लोक गणतंत्र है। संविधान के मुताबिक संसदीय लोकतंत्र है। विविधता और बहुलता में एकता के मकसद से राष्ट्र का ढांचा संसदीय है और भाषावार राज्यों का भूगोल बना है। अमेरिका में पचास राज्य है।वहां संघीय ढांचे में राज्यों को ज्यादा स्वतंत्रता और स्वायत्ता है।हर राज्य का अपना कानून है।संघीय कानून सर्वत्र लागू होता नहीं है।वहां भी राष्ट्रीयताओं को स्वयात्तता है।इसी तरह सोवियत संघ में स्टालिन ने सभी राष्ट्रीयताओं को को समाहित करने के बवाजूद उनकी स्वायत्ता को खत्म नहीं किया था।इसके विपरीत बारत में केंद्रीयकृत सत्ता है। तमाम राष्ट्रीयताएं और राज्य केंद्र की सत्ता के आधीन बंधुआ हैं,जिनकी अपनी कोई स्वायत्तता या स्वतंत्रता नहीं है।

राष्ट्र की सैन्यशक्ति राष्ट्रीयताओं के दमन में लगी है। मध्यभारत का आदिवासी भूगोल हो या मणिपुर और समूचा पूर्वोत्तर या फिर कश्मीर सर्वत्र यही कहानी है। बाकी हिमालयी क्षेत्र में गोरखालैंड आंदोलन के जरिये गोरखा राष्ट्रीयता के उभार के अलावा बाकी जगह फिलहाल केंद्र सरकार और उनके सूबेदारों की तानाशाही के बावजूद,घनघोर अस्पृश्यता के बावजूद,पलायन और विस्थापन के बावजूद अमन चैन है।अमन चैन इसलिए है कि न हिमाचल और उत्तराखंड में कोई आंदोलन है।राष्ट्र के दमन के बीभत्स चेहरे से वे फिलहाल मुखातिब वैसे नहीं है,जैसे कश्मीर, मणिपुर, छत्तीसगढ़ ,झारखंड या पंजाब की राष्ट्रीयताओं की अभिज्ञता है। यह अमन चैन कैसा है,उदाहरण के लिए हिमाचल और उत्तराखंड हैं,जहां बारी बारी से कांग्रेस और भाजपा में सत्ता हस्तांतरण है और जन पक्षधर ताकतों का कोई प्रतिनिधित्व राजनीति और सत्ता में नहीं है।आम जनता के जनादेश से एक से बढ़कर एक भ्रष्ट  नेता केंद्र या राज्य में सत्ता के दम पर पूरा प्रदेश और उसके संसाधनों का खुल्ला दोहन कर रहे हैं।जनहित,जन सुनवाई हाशिये पर है। उत्तराखंड के साथ पहले झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य बनाकर इन राष्ट्रीयताओं के केसरियाकरण में संघ परिवारको नायाब कामयाबी मिल गयी है।बाद में तेलंगना अलग राज्य बनाकर तेलुगु राष्ट्रीयता दो फाड़ करके दोनों धड़ों का केसरियाकरण हुआ है। झारखंड और छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल हैं।गोंड भाषा का भूगोल किसी भी भाषा के मुकाबले कम नहीं है।ब्रिटिश हुकूमत के समय गोंडवाना नाम से परिचित आदिवासी भूगोल कई राज्यों में बांट दिया गया है।संथाल,हो,मुंडा,भील,गोंड,कुड़मी जैसे आदिवासी समुदायों का दमन का सिलसिला आबाध है। अब वहां अकूत खनिज संपदा,वन संपदा और जल संपदा के खुल्ला लूट का सलवा जुड़ुम है और सहहदों के बजायभारत के सैन्यबल और अर्द्ध सैन्यबल वहां केसिरया राजकाज के संरक्षण में निजी कारपोरेट पूंजी के हित में राष्ट्रीयताओं का दमन कर रहे हैं।आदिवासी भूगोल की रोजमर्रे की जिंदगी लहूलुहान है और बाकी देश की सेहत पर कोई असर नहीं है। इसके बावजूद अमेरिका या सोवियत संघ की तरह भारत में किसी नागरिक को राष्ट्रीयता पर बोलना निषेध है।संसदीय राजनीति में भी यह निषिद्ध विषय है। इसके विपरीत केंद्र सरकार,कारपोरेट कंपनियों और राजनीतिक दलों को इन राष्ट्रीयताओं के साथ खतरनाक खेल खेलने की खुली छूट है।

इस खतरनाक खेल के दो ज्वलंत उदाहरण पंजाब और असम हैं। कश्मीर तो बाकायदा निषिद्ध विषय है और वहां की जनता के नागरिक और मानवाधिकारों पर सबकी जुबान बंद है। बाकी देश से अलग थलग होने के साथ सात भारत पाक  युद्ध का रणक्षेत्र बने रहने की वजह से कश्मीर से बाकी देश के संवाद की कोई गुंजाइश नहीं है। कश्मीर और मणिपुर में दोनों जगह सशस्त्र सैन्यबल विशेषाधिकार कानून आफ्सा  लागू है।हम मणिपुर की जनता के हकहकूक को लेकर कमोबेश बोलते लिखते रहे हैं।कश्मीर के मामले में वह गुंजाइश भी नहीं है। नागरिकों का बोलना लिखना मना है,लेकिन वहां सत्ता की राजनीति चाहे तो कुछ भी कर सकती है।इसका कुल नतीजा इस महादेश में परमाणु हथियारों की दौड़ है।आजादी के बाद कश्मीर को लेकर युद्ध की आड़ में देशभक्ति और अंध राष्ट्रवाद के रक्षा कवच से लैस सत्तावर्ग ने रक्षा सौदों में अरबों अरबों कमाया है और विदेशों में जमा कालाधन का सबसे बड़ा हिस्सा कश्मीर संकट की वजह से हथियारों की होड़ में अंधाधुंध रक्षा व्यय है,जो वित्तीय घाटा और लगातार बढ़ते विदेशी कर्ज के सबसे बड़े कारण हैं,लेकिन वित्तीय प्रबंधकों और अर्थशास्त्रियों के लिए भी रक्षा व्यय शत प्रतिशत विनिवेश के बावजूद निषिद्ध विषय है। तमिल राष्ट्रीयता,सिख और पंजाबी राष्ट्रीयता,असमिया,मणिपुरी  और बंगाली राष्ट्रीयताएं आदिवासी भूगोल की राष्ट्रीयताओं और कश्मीरियत से कहीं कम संवेदनशील और विस्फोटक नहीं है,जहां भाषा,संस्कृति और मानसिकता केसरियाकरण और हिंदुत्वकरण की धूम के बावजूद वैदिकी संस्कृति से अलग है। तमिल शासकों ने दक्षिण पूर्व एशिया में फिलीपींस से लेकर कंबोडिया तक अपना साम्राज्य विस्तार किया है और तमिल इतिहास का आर्यवर्त के भूगोल और इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। हिंदुत्व के सबसे भव्य और धनी हिंदू धर्मस्थल होने के बावजूद तमिलनाडु में द्रविड़ संस्कृति है।तमिल संस्कृत से भी प्राचीन भाषा है और तमिलनाडु के लोग तमिल के अलावा अंग्रेजी से भी कोई प्रेम नहीं करते।उनका इतिहास सात हजार साल तक निरंतर धाराप्रवाह है जहां कोई अंधायुग नहीं है। अस्सी के दशक में तमिल ईलम विद्रोह को दबाने के लिए भारतीय शांति सेना पंजाब और असम में राष्ट्र के  लहूलुहान हो जाने के बाद,बावजूद भेजी गयी थी।उसका अंजाम आपरेशन ब्लू स्टार जैसा भयंकर हुआ। इसका अलग ब्यौरा दोहराने की जरुरत नहीं है। बहरहाल पंजाब,असम और त्रिपुरा में राष्ट्रीयता के सवाल पर जो खतरनाक खेल खेला गया है,उसीकी पुनरावृत्ति अब बंगाल और तमिलनाडु में फिर हो रही है। सरकारें आती जाती हैं लेकिन कश्मीर और असम की समस्याएं अभी अनसुलझी हैं,पंजाब के मसले सुलझे नहीं है।गोरखालैंड बारुद के ढेर पर है। 

ऐसे में समूचे असम और पूर्वोत्तर से लेकर बंगाल तमिलनाडु तक हिंदुत्व की प्रयोगशाला में तब्दील है,इससे हिंदुत्व का पुनरुत्थान हो या न हो,इन राष्ट्रीयताओं के उग्रवादी से लेकर आतंकवादी विकल्प देश के भविष्य और वर्तमान के लिए भयंकर संकट में तब्दील हो जाने का अंदेशा है। असम में साठ के दशक से संघ परिवार उल्फाई राजनीति के हिंदुत्व एजंडा को अंजाम दे रहा है तो अब असम में उल्फाई राजकाज संघ परिवार का है और अब संघ परिवार के कारपोरेट हिंदुत्व के निशाने पर न सिर्फ बंगाल,समूचा पूर्वोत्तर से लेकर तमिलनाडु तक हैं।ये बेहद खतरनाक हालात हैं। बांग्लादेश की सरहद भी पाकिस्तान की सरहद से कम संवेदनशील नहीं है। बांग्लादेश में भारतविरोधी गतिविधियां पाकिस्तान से कम नहीं है और फर्क इतना है कि फिलहाल बांग्लादेश में भारत की मित्र सरकार है और बांग्लादेश फिलहाल शरणार्थी संकट खड़ा करते रहने के बावजूद भारत के लिए कोई फौजी हुकूमत नहीं है। फिरभी बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण से राष्ट्रीयता का जो खतरनाक उग्रवादी तेवर है,उससे डरने की जरुरत है क्योंकि कश्मीर और पंजाब,तमिलनाडु की तरह यह उग्र राष्ट्रीयता सरहदों के आर पार है। बहरहाल,यूपी में जिन इलाकों में आज वोट गिरने हैं,वहां बाकी यूपी से मुसलमानों के वोट ज्यादा हैं।जो 26 फीसद के करीब बताया जाता है।  पश्चिम यूपी में मुसलमानों के हिचक तोड़कर फिर दलित मुसलिम एकता के तहत भाजपा खेमे में आ जाने से संघियों के मंसूबे पर पानी फिर गया है। मायावती ने सौ मुसलमान प्रत्याशियों को टिकट दिये हैं तो समरसता के संघ परिवार ने अमेरिकी राष्ट्रपति डान डोनोल्ड ट्रंप को यूपी जैसे राज्य में कोई टिकट नहीं दिया है,यह कल एच एल दुसाध ने डंके की चोट पर लिखा है। इसका असर हुआ तो दूसरे चरण में ही छप्पन इंच का सीना कितना चौड़ा और हो जाता है,यह नजारा देखना दिलचस्प होगा। जबकि हिंदू ह्रदय सम्राट और उनके गुजराती अश्वमेध विशेषज्ञ सिपाहसालार ने उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य को जीतने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा दिया है और वहां भी इस चुनाव में मणिपुर की महिलाओं की तरह केंद्र की फासिस्ट सत्ता के खिलाफ महिलाएं मजबूती से लामबंद हो गयी है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन की शहादतें मुखर होने लगी हैं और महिला आंदोलनकारियों के समर्थन से खड़े निर्दलीय उम्मीदवार कुमायूं और गढ़वाल में भाजपाइयों कांग्रेसियों के सत्ता समीकरण बिगड़ने में लगे हैं। अलग राज्य बनने के बाद पलायन और विस्थापन में तेजी के अलावा उत्तराखंड को कुछ हासिल नहीं हुआ है,यह शिकायत आम है।

बाबा रामदेव की कपालभाति भी अब संघ परिवार के लिए सरदर्द का सबब है क्योंकि उन्होंने अबकी दफा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का भी खुले तौर पर समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि वह इस चुनाव में 'निष्पक्ष'हैं। रामदेव ने आगे कहा कि इस बार के विधानसभा चुनाव से उत्तराखंड में भूचाल आ सकता है।  निष्पक्ष रहने की वजह पूछे जाने पर रामदेव ने कहा कि देश की जनता काफी विवेकशील है। मजे की बात है कि बाबा रामदेव ने कहा कि देश की जनता ही चायवाले को प्रधानमंत्री और पहलवान को मुख्यमंत्री बना देती है।  गौरतलब है कि बाबा रामदेव ने लोकसभा चुनाव के वक्त खुले तौर पर भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था। मौसमी बाबा राजनीति मौसम के विशेषज्ञ है और कारपोरेट मार्केटिंग और कारपोरेट लाबिइंग में वे कारपोरेट घरानों और कंपनियों के मुकाबले भारी हैं। ऐसे में बाबा का तेवर संघ परिवार के लिए खतरे की घंटी है। गौरतलब है कि दस साल तक वे मनमोहन के खास समर्थक थे।फिर हवा बदलते देखते ही संघ परिवार की शरण में चले गये। यूपी और उत्तराखंड में सबकुछ केसरिया होता तो बाबा का हिंदुत्व मिजाज ऐसे न बदला होता।यूपी उत्तराखंड में अगर भाजपा जीत रही होती तो धुरंधर कारोबारी बाबा रामदेव का कारपोरेट दिमाग कुछ अलग ही गुल खिलाये रहता। यही नहीं,बुधवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हुई वोटिंग के दौरान कई दिग्गजों ने वोट डाला तो हरिद्वार के पोलिंग बूथ पर वोट डालने पहुंचे बाबा रामदेव ने कहा कि इस बार की वोटिंग में देश का विकास सबसे बड़ा मुद्दा है। योग गुरु का साफ साफ कहना है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा और भारी उथल-पुथल मचेगी।  ईमानदार को डाले वोट हरिद्वार में वोट डालने आए बाबा रामदेव से पत्रकारों ने जब पूछा कि क्या उथल-पुथल होगी, तो उन्होंने इसका कोई सीधा सा जवाब देने की बजाए यही कहा कि इस बार के चुनाव खासे महत्व के हैं. बहरहल हलात जो है,जीत भी जाये उत्तराखंड तो पंजाब और यूपी का घाटा पाटकर राज्यसभा में बहुमत पाना बेहद मुश्किल है। अब तय है कि जो भी हो,यूपी में संघ परिवार का वनवास खत्म नहीं होने जा रहा है।पंजाब में भी खास उम्मीद नहीं है। गोवा में फिलहाल कांग्रेस बढ़त पर नजर आ रही है। असम के बाद समूचा पूरब और पूर्वोत्तर को केसरिया बनाने की मुहिम तेज होने के मध्य उत्तराखंड में जीत हासिल करके साख बचाने की बची खुची उम्मीद के सहारे रामराज्य के कारपोरेट हिंदुत्व के ग्लोबल एजंडा पर अमल करने में भारी रुकावटें पैदा हो रही है। दूसरी तरफ बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना नजारा है।मीडिया रिलायंस हवाले है तो देश रिलायंस है और इसलिए सुप्रीम कोर्ट की निषेधाज्ञा के बावजूद निजी चैनलों में केसरिया सुनामी है और अखबारी कागज भी अब सिरे से केसरिया है। मालिकान के सत्ता समीकरण के मुताबिक एक श्रमजीवी पत्रकार संपादक ने चुनाव आयोग की निषेधाज्ञा के बावजूद  एक्जिट पोल छाप दिया तो उसे गिरफ्तार कर लिया,उससे उस अखबार के या बाकी रिलायंस मीडिया के केसरिया एजंडा में फर्क नहीं पड़ा है।मसलन बंगाल में एक बड़े अंग्रेजी अखबार के बांग्ला संस्करण में दावा किया गया है कि नोटबंदी से यूपी और उत्तराखंड में संघ परिवार के वोट दो फीसद बढ़ गये हैं और भाजपा को बढ़त है। इसी तरह तमाम रेटिंग एजंसियों,अर्थशास्त्रियों की भारतीय अर्थव्यवस्था की डगमगाती नैय्या पर खुली राय के विपरीत सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान मीडिया केसरिया रंगभेदी फासिस्ट हिंदुत्व के राजकाज में भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।इन्हीं झूठे ख्वाबों में गरीबी दूर करने और सुनहले दिनों का सच है। 

बंगल में हिंदूकरण अभियान के तहत प्रदेश भाजपा के संघी  अध्यक्ष व विधायक दिलीप घोष एकदम प्रवीण तोगड़िया के अवतार में हैं और उनकी भाषा डान डोनाल्ड की है। इन्हीं डान घोष ने हिंदुत्व के एजंडे को जायज ठहराने के लिए बंगाल के उदार,धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील बुद्धिजीवियों पर निशाना साधा है। डान घोष  ने नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन पर खासतौर पर निशाना साधा है।घोष ने  एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘हमारे एक बंगाली साथी ने नोबल पुरस्कार जीता और हमें इस पर गर्व है लेकिन उन्होंने इस राज्य के लिए क्या किया? उन्होंने इस राष्ट्र को क्या दिया है?' उन्होंने कहा, 'नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर के पद से हटाए जाने से सेन अत्यधिक पीड़ित हैं। ऐसे लोग बिना रीढ़ के होते हैं और इन्हें खरीदा या बेचा जा सकता है और ये किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।' घोष के मुताबिक  बंगाल के बुद्धिजीवी मेरुदंडविहीन है। बंगाल की शिक्षा व शिक्षा व्यवस्था की हालत बदतर होते जा रहे हैं, लेकिन बंगाल के बुद्धिजीवी चुप हैं। कोई आवाज नहीं उठा रहा है। कोई कुछ भी नहीं कह रहे हैं।अपनी सुविधा के लिए पहले वामपंथियों के पक्ष में लाल चोला पहन लिये थे और अब तृणमूल की शिविर में शामिल हो गये हैं।   आगे सरस्वती वंदना का अलाप है।घोष ने कहा है कि बंगाल के शिक्षण संस्थानों में मारपीट हो रही है। विद्यार्थी सरस्वती पूजा नहीं कर पा रहे हैं। सरस्वती पूजा करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। दुर्गापूजा विसर्जन के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। बंगाल से अब आइएएस व आइपीएस ऑफिसर नहीं बन रहे हैं।




(पलाश विश्वास)

मधुबनी में जाम को लेकर जनजीवन अस्त-व्यस्त

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मधुबनी : मधुबनी में इंटरमीडियेट परीक्षा को लेकर भारी वाहनों का शहर में प्रवेश वर्जित होने के वाबजुद वाहनों के प्रवेश होने से थाना चौक से कोतवाली चौक, बाटा चौक से शंकर चौक, स्टेशन रोड, चभच्चा मोड़ से बाबूसाहब चौक, शंकर चौक से किशोरी लाल चौक तक सड़क जाम से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. जाम में आम आदमी से लेकर परिक्षार्थी व स्कूल बस मे छोटे-छोटे बच्चें घंटो फसे रहे, जाम हटाने में प्रशासन के पसीने छुट रहे है. वैसे भी मधुबनी में जाम एक स्थायी समस्या बन गयी है. भारी वाहनों के प्रवेश से स्थिति बद से बदतर बनती जा रही है. जलधारी चौक से रांटी चौक निकलनेवाली वाईपास सड़क जो जाम की समस्या को दूर करने के लिए बनाई गई थी. उसपर भारी वाहनों का परिचालन नही हो रही है. मधुबनी सहर में इस समय 30 हजार से अधिक बाहरी छात्र-छात्राए और उतने ही अभिभावक के आ जाने से स्थिति भयावह बन गयी है. परीक्षा शुरू होने से पहले और समाप्त होने के बाद जाम का नजारा मेंला सा दृश्य  दीखता है. पता नहीं परिवहन विभाग और जिला प्रशासन की नज़र है कि नही है.

आलेख : “अलिफ़” के अधूरे सबक

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मुस्लिम समाज में शिक्षा की चुनौती जैसे भारी-भरकम विषय को पेश करने का दावा, "लड़ना नहीं, पढ़ना जरूरी है” का नारा और जर्नलिस्ट से फिल्ममेकर बना एक युवा फिल्मकार, यह सब मिल कर किसी भी फिल्म के लिए एक जागरूक दर्शक की उत्सुकता जगाने के लिए काफी हैं. निर्देशक ज़ैगम इमाम के दूसरी फिल्म 'अलिफ' के साथ ना तो कोई बड़ा बैनर हैं और ना ही बड़ा स्टारकास्ट, इसलिए छोटे बजट से बनी इस फिल्म की विषयवस्तु ही इसकी खूबी हो सकती थी लेकिन दुर्भाग्य से फिल्म अपने विषयवस्तु के भार को झेल नहीं पाती है और एक अपरिपक्व सिनेमा बन कर रह जाती है.


कहानी का केंद्र बनारस है जहाँ दोषीपुरा के एक मुस्लिम बहुल बस्ती में हकीम रज़ा का परिवार रहता है. उनका बेटा अली अपने दोस्त शकील के साथ पास के एक मदरसे में हाफ़िज़ (पूरा कुरआन कठंस्थ कर लेना) की पढ़ाई करता है. सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहता है इस बीच हकीम रज़ा की बहन ज़हरा रज़ा जिन्हें दंगों के समय पाकिस्तान भेज दिया गया था वापस हिन्दुस्तान आती हैं. वे एक खुले दिमाग की महिला है और जोर दिलाकर अपने भतीजे अली का दाखिला “हिन्दुओं के बस्ती” में स्थित एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में करा देती हैं. इस स्कूल में अली को एक टीचर द्वारा खूब परेशान किया जाता है. इधर दिल्ली से दीनी तालीम हासिल करके लौटा शकील का बड़ा भाई जमाल मदरसे का नया संचालक बना दिया जाता है. जमाल और मदरसे के अन्य कर्ता-धर्ता अली के पिता रजा पर दबाव डालते हैं कि वह अली को स्कूल के निकाल कर वापस मदरसे में दाखिल करा दें. इस बीच जहरा के वीजा का समय भी खत्म होने लगता है, रजा किसी तरह से रिश्वत और तिकड़म के सहारे जहरा को यहीं रोकने की कोशिश करते हैं, इसकी भनक जमाल को भी लग जाती है और वह इसे एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हुए रजा को धमकी देता है कि अगर उन्होंने अली को फिर से मदरसा नहीं भेजा तो वह पुलिस को जहरा के बारे में सच्चाई बता देगा. आखिरकार इन सब दिक्कतों से पार पाते हुए अली डाक्टर बनने में कामयाब हो जाता है. फिल्म के बीच में जमाल का अली की बड़ी बहन और शायरी से इश्क भी दिखाया गया है लेकिन बाद में वह “अल्लाह से मुहब्बत” करने लगता है.
  
जाहिर है ‘अलिफ़’ फिल्म दीनी और दुनियावी तालीम के बीच के कशमकश से डील करती है, लेकिन यह सच्चाई के करीब नहीं लगती है.दरअसल मदरसे भारतीय मुसलामानों में तालीमी पिछड़ेपन के कारण नहीं है. जनगणना 2011 के आंकड़े  बताते हैं कि भारत में करीब 42.72 प्रतिशत मुसलमान अनपढ़ हैं, इसके पीछे का प्रमुख कारण गरीबी और आर्थिक पिछड़ापन है. इसलिए समुदाय के बच्चों को बचपन में ही काम या हुनर सीखने में लगा दिया जाता है और जो बच्चे स्कूल जाते भी हैं उनमें भी बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने की दर बहुत अधिक है. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार केवल चार प्रतिशत मुस्लिम बच्चे ही मदरसों में पढ़ते हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे इस समाज के सबसे गरीब तबकों और पसमांदा समाज (पिछड़े मुसलमान) से ही होते हैं. ऐसे में इस फिल्म में मदरसों को सबसे बड़े रूकावट के तौर पर पेश करना जमीनी हकीकत के करीब नहीं लगता है. भारत में मदरसों को लेकर एक और तथ्य है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा मदरसों में गुणवत्ता शिक्षा संवर्धन योजना (एसपीक्यूईएम) चलायी जा रही है, जिसका उद्देश्य मदरसों जैसी पारम्परिक संस्थाओं को वित्तीय मदद देकर उन्हें अपने पाठ्यक्रमों में विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन, हिंदी और अंग्रेजी की शिक्षा देने के लिए प्रोत्साहित करना है. इस योजना के साथ बड़ी संख्या में मदरसे जुड़े हैं. बेहतर होता अगर फिल्म बनाने से पहले इस मसले को लेकर थोड़ा रिसर्च कर लिया जाता.

फिल्म में जिस तरह से मदरसों और इसे चलने वालों के व्यवहार को पेश किया गया है उसको लेकर भी सवाल उठ सकते हैं. फिल्म में दिखाया गया है कि मदरसे के संचालक किसी भी कीमत पर अली को मदरसे में ही बनाये रखना चाहते हैं यह अति लगता है, हिन्दुस्तान में तो शायद ऐसा कोई कोना नहीं होगा जहाँ किसी परिवार पर अपने बच्चों को मदरसे में पढ़ाने के लिए इतना दबाव डाला जाता हो. भारत में बहुसंख्यक दक्षिणपंथियों द्वारा मदरसों को लेकर लगातार सवाल उठाये जाते  रहे हैं. उनका आरोप है कि मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है और यहाँ तिरंगा भी नहीं फहराया जाता है. फिल्म में भी एक ऐसा सीन है जब 26 जनवरी के मौके पर स्कूल में सभी बच्चे तिरंगा ले कर आते हैं और अकेला अली ही चांद-तारे वाला हरा झंडा (पाकिस्तानी झंडे का आभास देता हुआ) लेकर जाता है. भारत में शायद ही ऐसा कोई मदरसा हो जहाँ 26 जनवरी और 15 अगस्त ना मनाया जाता हो और वहां पढ़ने वाले बच्चों में चांद-तारे वाले हरे झंडे और तिरंगे के बीच फर्क का तमीज ना हो. फिल्म का यह सीन दुष्प्रचारों धारणाओं और गलतफहमियों को ही मजबूत करती है.

फिल्म का यह तर्क भी गले नहीं उतरता है कि अली के पिता खुद तो हकीम हैं और इसी के सहारे उनका परिवार चलता है लेकिन वे अपने बेटे को हाफिज बनाना चाहते हैं.  अपने विषयवस्तु से यह फिल्म ध्यान खींचती है लेकिन यह प्रभावी कहानी के रूप में तब्दील नहीं हो पाती है. अगर ऐसा हो पाता तो शायद इसके सिनेमाई खामियों को भी नजरअंदाज कर दिया जाता. फिल्म अपने उद्देश्यों को लेकर स्पष्ट नहीं है और कई विषयों को एक साथ उठाने की कोशिश की गयी है जिससे कोई भी बात स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाती है. फिल्म का विषय तो वास्तविक है लेकिन इसकी पटकथा और किरदार बनावटी लगते हैं. ऑफ़ बीट सिनेमा का मूल मकसद मनोरंजन नहीं होता है लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि ऑफ़ बीट सिनेमा के नाम पर कुछ भी परोस दिया जाए. वैसे भी आजकल ऑफ़ बीट और मुख्यधारा की सिनेमा के बीच फर्क कम होता जा रहा है और कई ऐसे प्रतिभाशाली फिल्ममेकर सामने आये है तो इस मुश्किल संतुलन को साधने में कामयाब रहे हैं. लेकिन अलिफ़ इस संतुलन को साधना तो दूर यह एक अच्छी ऑफ़ बीट फिल्म भी नहीं बन पाती है. कुल मिलाकर अलिफ़ वास्तविक विषय पर एक अवास्तविक फिल्म है जो दुखद रूप से आपको निराश करती है ना तो यह मनोरंजन देती है और ना ही कोई सन्देश देने में कामयाब हो पाती है उलटे ग़लतफ़हमी जरूर पैदा करती है. ज़ैग़म इमाम इससे पहले 'दोज़ख़ इन सर्च ऑफ़ हेवेन'नाम की फिल्म बना चुके है और यहाँ भी उन्होंने अपने विषयवस्तु के चुनाव से चौकाया था. बहुमुखी प्रतिभा से लैस इस फिल्मकार से उम्मीदें कायम हैं. उम्मीद है अगली बार वे और तैयारी के साथ वापसी करेंगें.




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जावेद अनीस 
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उत्तर प्रदेश : काम बोलता ही नहीं, दिखता भी है अखिलेश जी!

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यूपी में एक के बाद एक ताबड़तोड़ हो रही हत्याएं, लूटपाट, डकैती, बलातकार, योजनाओं में बंदरबाट, यादव सिंह जैसे भ्रष्ट अफसरों को बचाने, जवाहरबाग की तर्ज पर जगह-जगह जमीन हथियाने, सरकारी नौकरियों के भर्ती में धांधली एवं मानक में अनदेखी, न्याय के लिए सड़क पर उतरे लोगों को लाठियां, सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों की सपाई गुंडो द्वारा सरेराह कत्लेआम, पेड़ों पर फलों की जगह लटकती बहन-बेटियों की लाशे, हाईवे पर दरिंदगी का तांडव, करोड़ों-अरबों की लागत से बनी सड़कों का छह माह में ही उखड़ जाना, मुजफ्फरनगर समेत 200 से अधिक दंगों में कत्लेआम, आगजनी व खून-खराबा तथा आरोपियों को छोड़ निर्दोषों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर प्रताड़ना और कार्य पूरा हुए बगैर उद्घाटन की संस्कृति, दिन-रात बिजली की अघोषित कटौती, साफ पानी को तरसते शहर, ,अपनी किस्मत पर रोता बुंदेलखंड, बालीवुड के ठुमको पर झूमता सैफई, कश्मीर बनता कैराना ही अगर आपकी उपलब्धियों है तो कोई बात नहीं, लेकिन काम बोलता है, के नारे का जवाब देने के लिए जनता ब्रेशब्री से इंतजार कर रही है। मतलब साफ है आपकी नाकामियां ही आपको बेदखल करने के लिए काफी है 



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बेशक, अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे है कि अब 5 प्रमुख गुनाह में यूपी सबसे आगे है, तो गलत नहीं है। क्योंकि इसकी गवाही खुद पुलिस के रोजनामचे ही दे रहे है। हर दिन 24 बलातकार..., 21 अटेम्ट टू रेप..., 13 मर्डर.., 33 किडनैपिंग.., 19 दंगे.... और 136 चोरियां। यानी एक दिन में कुल 7650 क्राइम की घटनाएं हो रही है। अगर बात साल किया जाएं तो यह आंकड़ा 27 लाख 92 हजार 250 के आसपास है। ऐसा तब है जब यूपी पुलिस आए दिन कई अपराधों के मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती है। यही अपराध अखिलेश की उपलब्धियां हैं और सत्ता छिन जाने का भयही सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। लेकिन जनता को इंतजार है तो सिर्फ वोटिंग के जरिए फैसला सुनाने का। बाजी किसके हाथ लगेगी, यह 11 मार्च को तय हो जायेगा। लेकिन आपकी नाकामियां ही साल 2017 चुनाव का मुद्दा बन गया है। एक तरफ मायावती अपने शासनकाल के लाॅ एंड आर्डर की तुलना कर अखिलेश सरकार की गुंडागरदी व काले कारनामों को उजागर कर रही है तो दुसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर सपा-बसपा को कटघरे में खड़ा किया कि मायावती के समय में गुनाहों के मामले में यूपी देश में तीसरे नंबर था, तो अखिलेश सरकार पहले पायदान पर है। मतलब साफ है हर राजनीतिक दल विकास के साथ अपराध को ही टारगेट कर रहे है। यह अलग बात है सपा अपनी बचत माफियाओं के टिकट काटकर बेदाग छबि की दुहाई दे रही है तो मायावती ने मुख्तार अंसारी को क्लीन चिट दे दी है। फिरहाल, जहां तक गुंडागरदी का सवाल है तो यह सच है कि बीते पंचायत चुनावों से लेकर हर चुनावों में सपाई गुंडो व माफियाओं द्वारा जमकर जीताउं ग्राम प्रधानों, ब्लाक प्रमुखों व जिला पंचायत सदस्यों व अध्यक्षों को हरवाया गया। ऐसा नग्न तांडव और जिला प्रशासन की निगरानी में ब्लाक व जिला पंचायत चुनाव में खुल्लमखुल्ला गुंडई, असलहा प्रदर्शन करीब-करीब यूपी के हर जिले में दिखा, जहां लोकतंत्र का जमकर माखौल उड़ाया गया। इस लोकतंत्र में इस तरीके का हंगामा, इस तरीके की बेचैनी, इस तरीके की बदहवासी से लोग सड़क तो दूर बेडरुम में भी सुरक्षित नहीं रहे। जगह-जगह खुलेआम सपाई गुंडों द्वारा खून की होली खेली गयी। पूरे पांच साल ऐसा लगा जैसे यूपी में सिर्फ और सिर्फ गुंडो व माफियाओं का राज है, जहां जुबान की जगह बंदूके तड़तडा रही थी और सड़कों पर लाशे बिछ रही है। सूबे बिजली कटौती, जर्जर सड़कों से रोज हो रही दुर्घटनाओं, डग्गामार बसें, उटपटांग बयानबाजी, गुंडागर्दी, योजनाओं में बंदरबांट आदि से पता चलता है कि आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर सरकार का क्या रवैया है। 

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दर्जनभर पत्रकारों की हत्या 
बदायूं, मुरादाबाद, गोरखपुर, फैजाबाद, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, इलाहाबाद, जौनपुर, सहारनपुर, आगरा, फिरोजाबाद, मेरठ, कोशांबी, लखनउ, देवरियां, गोंडा आदि जिलों में किस कदर बंदूक संस्कृति और गुंडागर्दी हावी रही, इसका बखान करने के लिए कलम की स्याही खत्म हो जायेगी। भदोही से लेकर राजधानी समेत पूरे यूपी में सपाई गुंडों द्वारा एक-दो नहीं 200 से अधिक पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्जकर घर-गृहस्थी लूटा गया, दर्जनभर पत्रकारों की हत्या की गयी, जिंदा जलाया गया और किस तरह संविधान के चैथे स्तम्भ पर सुनियोजित तरीके से हमला अखबारों की सुर्खिया रही, यह हर किसी को मालूम है। 

पूरी नहीं हो सकी पुरानी घोषणाएं 
पांच साल के अपने कार्यकाल में अखिलेश सरकार 2012 के अपनी घोषणा पत्र पूरी करना तो दूर बिजली-पानी-सड़क जैसे जरुरी आवश्यकताओं की रोडमैप तक नहीं तैयार करा सकी। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना कन्या विद्याधन का हाल यह रहा कि लक्ष्य के सापेक्ष सिर्फ 42 फीसदी ही लाभार्थियों को धन बांटा जा सका है। 28 जिले ऐसे रहे, जहां एक भी बालिका को धन नसीब नहीं हो सका। लैपटाप योजना का सच किसी से छिपा नहीं, जबकि ये विभाग खुद सीएम के हाथों में रहा। पीड़ितों की जांच के नाम पर झूठी आश्वासन या आरोपित पुलिसकर्मियों से ही जांच कराकर झूठी रिपोर्ट देकर मामले को रफा-दफा करना, दूषित पेयजलापूर्ति, कल्याणकारी योजनाओं में बंदरबांट आदि से पता चलता है कि आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर सरकार का क्या रवैया रहा। कहा जा सकता है तमाम प्रयासो के बावजूद अगर यूपी का विकास नहीं हो पाया है तो उसके लिए भ्रष्ट नौकरशाह ही है, जो चंद टुकड़ों की खातिर अपनी जमीर ताख पर रखकर सत्ताधारी नेताओं की कठपुतली बनकर न सिर्फ उनकी आड़ में लाखों-करोड़ो डकार लिए है बल्कि माफिया व बाहुबलि जनप्रतिनिधियों से मिलकर जुझारु लोगों फर्जी मुकदमें थोपकर निरीह जनता के साथ-साथ बर्बाद किसानों व कल्याणकारी योजनाओं को खूलेआम लूटपाट की।  

दो सौ से अधिक साम्प्रदायिक दंगे 
अगर अखिलेश के शासन पर नजर डालें तो राज्य कई सांप्रदायिक दंगे देख चुका है। डकैतों के पुराने गिरोह फिर से अपना सर उठा चुके थे। लगातार हो रहे बलात्कार या शारीरिक उत्पीड़न की खबरों से भी सरकार की खासी किरकिरी हुई। राज्य में हो रही लगातार ऐसी घटनाएं यह बताती हैं रही कि सूबे का नेतृत्व प्रभावशाली व्यक्ति के हाथ में नहीं रहा। बिगड़ती कानून-व्यवस्था अखिलेश यादव की अयोग्यता दर्शाती है। पुलि‍स, थाना, सत्‍ताधारी और पार्टी कार्यकर्ता सबके सब मिलकर यूपी को लूटा। बाराबंकी में जिस तरह पत्रकार की मां के साथ रेप में नाकाम पुलिस वालों ने जिंदा जलाकर मार डाला, वह बेहद शर्मनाक रहा। कानपुर में सपा नेता के घर सेक्स रैकेट का पकड़ा जाना और भी शर्मनाक है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक सपा के शासन के दौरान 200 से ज्यादा दंगे हुएं। स्थिति यह रही कि उच्चतम न्यायालय ने भी मुजफ्फरनगर और इसके आसपास के इलाकों में सांप्रदायिक दंगे रोकने में अखिलेश यादव सरकार की नाकामी को जिम्मेदार ठहराया। कोर्ट ने माना कि यदि राज्य सरकार अपने ही एजेंसियों को जमीनी हकीकत की जानकारी रखती तो दंगों को रोका जा सकता था। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने लोगों के जीने के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने में गंभीर चूक की है। राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह लोगों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करे। 

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पूरे पांच साल तक रहा दहशत का माहौल 
ताबड़तोड़ छिनैती, हत्या व लूट की वारदाताओं से व्यापारी दहशत में है और शाम ढलते ही दुकान की शटर गिरा देते है। खासकर महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध। अवैध खनन, जमीनों पर अवैध कब्जे, फर्जी मुकदमों की तो मानों बाढ़ आ सी गयी है। हालात यहां तक बिगड़ चुके है कि लोग अब तो यूपी का नाम ही बदल डाले है। कोई इसे दबंगों का प्रदेश बता रहा तो कोई गुंडाराज। यूपी के ये नाम अब हर सख्श की जुबा पर तो है ही पुलिस-अपराधी गठजोड़ का आरोप भी चर्चा-ए-खास है। प्रदेश में सारी व्यवस्थाएं चरमरा गई है। लाॅ एंड आर्डर नहीं रह गया है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013 में पहली जनवरी से 31 मार्च तक बलात्कार के 1199 मुकदमें दर्ज हुए, जबकि वर्ष 2014 में 2584 मुकदमें पंजीकृत हुए। वर्ष 2015 में अब तक 1267 मुकदमें दर्ज हो चुके है। वर्ष 2014 के शुरुवाती 5 महीनों में सूबे में हत्या के 1961 अभियोग दर्ज हुए जबकि इस साल 2057 मुकदमें दर्ज हुए। 

कर्ज में डूबा यूपी 
कहा जा सकता है यूपी की सपा सरकार चीर्वाक के सिद्धांतों पर ही चली। ‘यावत जीवेत, सुखम जीवेत। ऋणम कृत्वा, घृतम पीवेत’ का चार्वाक का सिद्धांत प्रदेश की सपा सरकार ने अपनाएं रखा। जब तक जिएंगे सुख से जिएंगे, कर्ज लेंगे और घी पिएंगे के चार्वाक के इस सिद्धांत को अमल में लाते हुए पांच वर्ष में यूपी 3.66 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूब चुका है। दुखद यह है कि इस कर्ज पर यह बीमारु राज्य 28 हजार 636 करोड़ 80 लाख रुपए का ब्याज भी भर रहा है। बावजूद इसके सरकार प्रदेश में विकास का दावा करते नहीं अघा रही हैं। 

42 फीसदी बच्चे कुपोषित 
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प्रदेश के 42 फीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। बेमौसम बारिश के तबाही से परेशान किसानों को दी जाने वाली राहत चेक में बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायतें सामने आई है, सड़कों के निर्माण का हाल यह है कि बनने के 3 से 6 माह में ही उखड़ जा रहे है। कल्याणकारी योजनाओं की माफिया जनप्रतिनिधि व अधिकारी खूलेआम बंदरबांट कर रहे है। फर्जी मुकदमों की बाढ़ आ गयी है, लेकिन सरकारी दावे विकास की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश में हैं। 

बदले की मूड में है पीड़ित 
इन दिनों शहर से लेकर देहात तक के चट्टी-चैराहों से लेकर चाहखानों तक विधानसभा चुनाव की ही चर्चा है। एक चाय की दुकान पर बतिया रहे नईम अख्तर कहते है, मुझे क्षेत्र समिति के सदस्यों समर्थन प्राप्त था। मेरे समर्थकों को जबरन उठा लिया गया। विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी से ब्याज सहित इसका बदला लूंगा। बगल में खड़े बलदेव यादव कहते है जो चुनाव लड़ना चाह रहे थे, उन्हें रोकना नहीं चाहिए था, क्योंकि इस चुनाव से उनकी पार्टी सपा पर कोई फर्क न पड़ता, लेकिन चुनाव में खड़े लोगों को जिस तरह ताकत व पैसे के साथ सत्ता की धमकी व फर्जी मुकदमा का डर दिखाकर बाकी प्रत्याशियों को बैठा दिया गया उनका चुप बैठना नामुमकिन है। वह चुनाव हार जाते इसका उन्हें कोई मलाल नहीं होता, लेकिन जोर-जबरदस्ती उनके मन में जहर घोल दिया है। अब विधानसभा चुनाव मे इसका हिसाब बराबर किया जायेगा। 

पेडों पर फल की जगह लटकती रही लाशे 
पूरे पांच साल तक महिलाओं व युवतियों के साथ गैंगरेप कर हत्या के बाद शव को पेड़ से लटकाने सिलसिला जारी है। मउ, इटावा, गोरखपुर, बलिया, बरेली, महोबा, फर्रुखाबाद, इलाहाबाद, भदोही, बनारस, अलीगढ़ आदि जनपदों में किशोरियों संग हुई सामूहिक गैंगरेप की घटना ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दी। यह सब पुलिस की घोर संवेदनहीनता, लापरवाही व संलिप्तता के चलते हो रही है। बलातकार की बढ़ती घटनाएं राज्य की शासन व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी। 

जस की तस है अखिलेश की छबि 
बड़ा सवाल तो यही है क्या पूर्व में लगे गुंडागर्दी, लूटपाट व आतंक के दाग से मुक्ति सपा को मुक्ति मिलेगी। शुरू के डेढ़-दो साल तो पिता से विरासत में मिले मंत्रिमंडल और अधिकारियों को समझने में ही अखिलेश ने गवा दी। लेकिन जब तक समझे चाचा के आगे बौने ही नजर आएं। परिणाम यह हुआ कि यूपी में आपके नाक के नीचे समानांतर सरकार चलती रही। हकीकत जानकर भी चुप रहना मजबूरी बनी। खनन माफिया से लेकर सारे बाहुबलि जनप्रतिनिधि भ्रष्ट अधिकारियों से मिलकर लूटपाट व योजनाओं में बंदरबांट करते रहे। फिर प्रशासन पर धीरे-धीरे पकड़ बनी तो कुछ ठोस और सूझबूझ वाले निर्णय, मसलन बेरोजगारी भत्ता बंद करने या फिर लैपटॉप वितरण को रोका तो जरुर, लेकिन तब तक काफी घपले-घोटाले हो चुके थे। जिन 15 लाख इंटर पास बच्चों को मुफ्त लैपटॉप बांटा गया, उसमें करोड़ो-अरबों का घालमेल उजागर हो चुका है। मेधावी छात्रों के नाम पर भी मिनले वाले लैपटाॅप योजना में जमकर धांधली बरती गयी। 

नहीं बटी साड़ियां 
मुस्लिम बालिकाओं को 10 वीं पास होने के बाद 30 हजार रुपये का अनुदान दो साल तक बांटा मगर तीसरे साल में बंद कर दिया गया। अपने ड्रीम प्रोजेक्ट्स चाहे लखनऊ में मेट्रो चलाने का महत्वाकांक्षी फैसला हो या फिर सरकारी कोष से 15 हजार करोड़ की लागत से बनाया जाने वाला सिक्स- लेन लखनऊ-आगरा हाइवे सब में जमकर घालमेल हुआ है। उपलब्धि में जनेश्वर पार्क की दुहाई दी जा रही है। जबकि सच तो यह है कि आम जनता से उसका कोई लेना देना नहीं है। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस, मेट्रो परियोजना सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट थे। मगर अपने ड्रीम प्रॉजेक्ट को जमीन पर उतारने में सरकार को ढाई साल से ज्यादा का वक्त लग गया। ढाई साल तक ये परियोजना कागजों पर चलती रही। अब जब कमीशनबाजी तय हुआ तो काम की शुरुवात सिर्फ इसलिए की गयी कि चलीचला की बेला में जो ही हाथ लग जाय वहीं सही। बीपीएल की सभी महिलाओं को दो-दो साड़ी और बुजुर्गों को कंबल देने का वादा धरा ही रह गया। दुसरे राज्यों के सापेक्ष वैट का सरलीकरण करने का ऐलान तो किया गया, मगर वैट की दरें दूसरे राज्यों के बराबर करने की बात तो दूर सरकार ने कई वस्तुओं पर वैट और भी बढ़ा दिया। व्यापारियों को सुरक्षा देने के लिए व्यापारी सुरक्षा फोरम बनाने की घोषणा हवा-हवाई होकर रह गयी। 

नियुक्तियों में भारी धांधली 
जहां तक नियुक्तियों का सवाल है नोएडा के चीफ इंजीनियर यादव सिंह का मामला हो या लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव का, दोनों में दूसरे पावर सेंटर की वजह से सरकार की किरकिरी हुई। यादव सिंह और अनिल यादव दोनों के मामले में दिल्ली में रहने वाले सपा के एक बड़े नेता की ओर उंगली उठी, वहीं मुजफ्फरनगर दंगे में भी पार्टी के दूसरे नेताओं पर सवाल खड़े होते रहे। लोकायुक्त तैनाती मामले में भी सरकार की खूब फजीहत हुई। विवाद के चलते सुप्रीम कोर्ट को खुद ही लोकायुक्त तैनात करना पड़ा। शिक्षामित्रों को नियमित करने में भी सरकार के पसीने छूटे। सुप्रीम कोर्ट ने उनका समायोजन अवैधानिक करार दे दिया। रोक लगी। सरकार एसएलपी फाइल नहीं कर सकी। शिक्षामित्र खुद अपनी कोर्ट में लड़ रहे। मनोनीत एमएलसी के लिए सरकार ने जो नाम राज्यपाल के पास भेजे, उन पर भी आपत्ति लगी। गवर्नर ने मंजूरी नहीं दी तो सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। 

खूब फला-फूला खनन माफियाओं का साम्राज्य 
जिस तरह यूपी में धडल्ले से रेत खनन किया या कराया जा रहा है उससे नदियों के अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडराने लगा है। फिरहाल यूपी के भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, उन्नाव, कानपुर, मुरादाबाद, फिरोजाबाद, प्रतापगढ़, रायबरेली या जनपदों में पूरी-पूरी रात रेत या पत्थर खनन हो रहा है। गंगा में बालू खनन पर पूरी तरह रोक है, लेकिन गंगा रेती में बड़े पैमाने पर खनन किया जा रहा है। हाल यह है कि हौसले बुलंद ये खनन माफिया हाईकोर्ट की नाराजगी और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद भी बिना किसी खौफ के अवैध खनन का काम धडल्ले से चला रहे है। खासियत यह है कि इस काले कारोबार के खेल में इन खनन माफियाओं को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं खनन मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति के साथ-साथ सत्ता के शीर्ष नेतृत्व का बरदहस्त प्राप्त था। यही वजह है कि सत्ता के बाहुबलि विधायक व मंत्री खनन को धड़ल्ले से अंजाम देते रहे। अवैध खनन के विवाद में आएं दिन चलने वाली गोलियों के बीच लाशे बिछती रही। आंकड़ों पर गौर करें तो पांच साल में दर्जनों जाने जा चुकी है। आईपीएस अमिताभ ठाकुर प्रकरण में जिस तरह खनन मंत्री के बचाव में सपा सुप्रीमों ने पहले धमकी दी, फिर बलातकार की फर्जी रपट और निलंबन की कार्रवाई कराई। इतना ही नहीं इस काले कारनामें की परत खोलने पर कहीं पत्रकार को जिंदा जला दिया जाता है, तो कहीं फर्जी मुकदमा दर्ज कर घर-गृहस्थी लूटवा लिया जाता है। उससे पता चलता है कि यूपी सरकार और रेत माफियाओं के बीच कितनी गहरी साठगांठ है। 

मदद के नाम पर खूब हुए घपले-घोटाले  
अनवर रसीद उम्र 55 साल। एक व्यक्ति से 50 हजार सूद पर और 10 हजार रुपये का बैंक से केसीसी लोन लिया। फसल बर्बाद होने के बाद अब कर्ज चुकाने के साथ घर मरम्मत की मुसीबत सिर पर खड़ी है। पहले बारिश न होने से धान पर असर पड़ा। अब 15 एकड़ में लगी गेहूं पर ओलों की मार से उपज चैथाई से भी कम रह जाने का अनुमान है। कुछ इसी तरह के हालात सियाराम के भी है। कहते है दो दिन बाद गेहूं कटाई करने वाले थे, लेकिन आसमानी कहर ने कहीं का नहीं छोड़ा। बैंक का कर्जदार अलग से बन गए। बनवारीलाल मौसम की मार से बरबाद हो गए हैं। डेढ़ बीघा जमीन के साथ ही अधिया पर दूसरे से ली गयी चार बीघा जमीन में बोई गयी गेहूं तहस-नहस हो गयी है। कहते है जिंदगी कैसे चलेगी यह तो भगवान ही जाने! मुआवजे की भी ज्यादा आस नहीं है। एक अधिकारी आए थे, उसके बाद कुछ नहीं हुआ। कर्ज माफी को लेकर भी उनसे कोई बात नहीं हुई है। मेहनत, वक्त और पैसा सब कुछ बेकार हो चुका है। जगदीस इसी फसल को बेच कर आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। उन पर 30 हजार का कर्ज है। सिंचाई के लिए डीजल पर भी 40 हजार रुपये खर्च हो गए हैं। अब उनके पास पैसा नहीं है। मजबूरन बिछी फसल में आग लगा दी, ताकि खेत को दूसरी फसल के लिए तैयार किया जा सके। हो जो भी लेकिन यह सच है कि केन्द्र सरकार से मिली करोड़ों-करोड़ की जमकर घोटाला हुआ। ठीक उसी तरह जैसे स़ड़क से लेकर अन्य निर्माण इकाईयों माफिया ठेकेदारों के जरिए होता रहा। मदद राषि वितरण में घपले-घोटाले की आंच सीधे सरकार पर न आएं इसके लिए पहले से ही भ्रस्ट अधिकारियों को कमान सौंप दी गयी।  

कर्ज में डूबे सैकड़ों किसानों ने की आत्महत्या 
जी हां यह रामकहानी सिर्फ रसीद, सियाराम, बनवारीलाल व जगदीस की ही नहीं है, इनके जैसे हजारों-लाखों है जिनकी इस बेमौसम बारिश के चलते फसले तबाह हो गयी है। इनमें 100 से अधिक लोग ऐसे थे जो इस बर्बादी का मंजर सहन न कर सके और मौत को गले लगा लिया। जिन लोगों ने साहस का परिचय देकर फिर से दुनिया जहान आबाद करने की कसरत में जुटे है उनकी यूपी सरकार 65-100 रुपये की राहत चेक देकर खूब खिल्ली उड़ाई। खास यह है कि पिछले दिनों किसानों की आत्महत्या यूपी में आम हो गई। बता दें, यूपी कृषि आधारित राज्य है। यहां की 50 फीसदी आबादी इससे जुड़ी हुई है लेकिन राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान घट कर 18 फीसदी रह गया है, इसमें से 9 फीसदी डेयरी का अंश है। कृषि आधारित राज्य होने की वजह से यहां बड़े स्तर पर कृषि प्रसंस्करण इकाइयों के लगाये जाने की जरूरत है लेकिन कच्चे माल की कमी इसमें एक बाधा है। फसलों की सही उपज न होने की वजह से कर्ज में डूबे किसानों ने अपने जीवन को ही समाप्त करने का फैसला ले लिया। किसानों पर बैंकों और देनदारों के 79,809 करोड़ रुपये कर्ज हैं। कर्ज में डूबी राज्य सरकार उन्हें मुआवजा देने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि बाढ़, ओलावृष्टि, आंधी-तुफान में तबाह में बर्बाद किसानों को अखिलेश सरकार जब पांच सौ से बारह सौ के चेकर मुआवजा के रुप में दे रही थी तो उन्होंने लौटा दिया था। मतलब साफ है, खाली खजाने और किसानों की आत्महत्या इन चुनावों में सबसे बड़ा किरदार अदा करेंगे इसमें कोई शक नही। 

सुरक्षित ही नहीं तो फ्री का मोबाइल चलायेगा कौन? े 
अखिलेश यादव चुनाव पिच पर कहते फिर रहे ‘काम बोलता है...‘ और फ्री का लैपटाॅप, दूध व मोबाइल बांटने की बात कहकर दुबारा सत्ता में आने की दुहाई दे रहे है, लेकिन जनता उन्हें हर जिले में घेर रही है। जवाब मांग रही है कि जब हम सुरक्षित ही नहीं रहेंगे तो ये सब फ्री का इस्तेमाल कौन करेगा? बेशक, आंकड़े इस बात के गवाह है कि यूपी अपराध का गढ़ बन गया है। बता दें, पिछले पांच सालों अखिलेश सरकार में बलातकार, हत्या, दंगे, अपहरण, लूट, डकैती में यूपी भारत का पहला राज्य बन गया। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि पांच अलग-अलग क्राइम में यूपी इंडिया में टॉप पर रहा हो। इससे पहले सबसे ज्यादा मायावती सरकार में प्रदेश तीन मामलों में इंडिया में पहले पायदान पर था। देश में क्राइम का रिकॉर्ड रखने वाली सरकारी संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, पिछले चार साल में यूपी में 93 लाख से ज्यादा क्राइम की घटनाएं हुई हैं। इनमें से 71 प्रतिषत क्राइम सपा के विधायक, नेताओं या अखिलेश सरकार में अब तक बने मंत्रियों के जिलों में हुआ है। पिछले एक साल में सबसे ज्यादा 2.78 लाख अपराध की घटनाएं लखनऊ में हुई हैं। 

बेरोजगारों की संख्या बढ़ी 
2016 के आंकड़ों के मुताबिक यूपी के रोजगार कार्यालयों में बेरोजगारों के 4,51,297 आवेदन पेंडिंग थे। लेकिन ये आंकड़े सही स्थिति को नहीं दर्शाते क्योंकि कम शिक्षित अथवा अनपढ़ इंप्लायमेंट एक्सचेंज में रजिस्टर नहीं कराते। बेरोजगारों के सही आंकड़े नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 75 लाख है। इनमें से 71 फीसदी शिक्षित जबकि 38 फीसदी तकनीकी रूप से कुशल हैं। 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक यहां प्रति हजार 60 लोग बेरोजगार हैं जो बिहार की स्थिति के बराबर है। यह अलग बात है कि भाजपा व सपा ने युवा वोटरों को रिझाने के लिए यहां नौकरी और बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है। 



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(सुरेश गांधी)

दीपशिखा बनेंगी औरंगजेब की बेटी

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deepshikha-on-bajiraoदीपशिखा नागपाल ने अपने कई शानदार परफाॅर्मेंस से टेलीविजन इंडस्ट्री में अपना मजबूत कॅरियर बनाया है। वह अब सोनी एन्टरटेनमेंट टेलीविजन के नये ऐतिहासिक शो पेशवा बाजीराव में एक प्रमुख किरदार निभाती नजर आयेंगी। वह इस मेगा शो में औरंगजेब की बेटी ज़ीनत-उन-निसा का किरदार निभायेंगी। दीपशिखा ने इस शो के लिये शूटिंग शुरू कर दी है। अपने किरदार को पर्दे पर बखूबी उतारने के लिये उन्होंने गहन शोध किया है। वह पूरी टीम के साथ शूटिंग का आनंद उठा रही हैं। उन्हें अपने प्रशंसकों की प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार है।  दीपशिखा ने पेशवा बाजीराव का हिस्सा बनने की पुष्टि करते हुये कहा कि, ‘‘मैं पहली बार इस तरह का किरदार निभा रही हूं। शो और इस किरदार पर शोध करने के बाद मुझे यह भूमिका काफी आकर्षक लगी। हमारी इंडस्ट्री में हम एक ही तरह के किरदार में बंध जाते हैं और उसे तोड़ना मुश्किल होता है। औरंगजेब की बेटी ज़ीनत का किरदार निभाने को लेकर मैं बेहद उत्सुक हूं।‘‘

विशेष : शिक्षा से जुड़े सवालों के मायने

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नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तब से एक नये युग के आरंभ की बात कही जा रही है। न जाने कितनी आशाएं, उम्मीदें और विकास की कल्पनाएं संजोयी गयी हंै और उन पर न केवल देशवासियों की बल्कि समूचे विश्व की निगाहें टिकी हुई है। हाल ही में देश के विकास में तेजी की संभावनाओं वाले दावों के बीच संयुक्त राष्ट्र की शिक्षा की धीमी गति को उजागर करती एक रिपोर्ट ने वर्तमान सरकार को चेताया है। न केवल चेताया है बल्कि सरकार को शिक्षा के लक्ष्य को लेकर गंभीर होने को भी प्रेरित किया है। शिक्षा की उपेक्षा करके कहीं हम विकास का सही अर्थ ही न खो दे। ऐसा न हो जाये कि बस्तियां बसती रहे और आदमी उजड़ता चला जाये। संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट खास मायने रखती है कि भारत 2030 तक सबको शिक्षा देने के लक्ष्य से काफी पीछे रह जाने वाला है। हाल ही में जारी हुई यह रिपोर्ट बताती है कि इस दिशा में जारी प्रयास अगर पूर्ववत बने रहे तो हम इस टारगेट से 50 साल पीछे छूट जायेंगे। इसके हिसाब से देश सबको प्राथमिक शिक्षा 2050 तक ही दिला पाएगा। सबको सेकेंडरी स्तर तक की शिक्षा दिलाना 2060 तक संभव होगा और अपर सेकेंडरी स्तर तक की शिक्षा का लक्ष्य 2085 से पहले मुमकिन नहीं हो पाएगा। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा तब होता है जब हम याद करते हैं कि हमारी सरकार ने 2015 में बड़े आत्मविश्वास के साथ संयुक्त राष्ट्र के उस टिकाऊ विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डिवलपमेंट गोल्स) को 2030 तक हासिल करने के संकल्प पर हस्ताक्षर किए थे जिसका एक हिस्सा सबके लिए अच्छी शिक्षा का लक्ष्य सुनिश्चित करना भी था। कुल मिलाकर अभी तक शिक्षित और साक्षर भारत के स्वप्न को फलीभूत करने के लिए कोई भी ठोस कदम उठते हुए नहीं दिख रहा है।


आज भी देश में छह करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन्हें शिक्षा नाममात्र ही मिलती है। प्राथमिक स्तर पर स्कूल से वंचित बच्चों की संख्या यह 1 करोड 11 लाख है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। अपर सेकेंडरी स्तर पर शिक्षा संस्थानों से बाहर रहने वालों की संख्या तो साढ़े चार करोड़ से ज्यादा है। जब हमने टिकाऊ विकास लक्ष्य को स्वीकार किया था, उसी समय से यह स्पष्ट था कि हमें इस दिशा मंे विशेष प्रयास करने पड़ेंगे और इसके लिये सम्पूर्ण भारत को साक्षर बनाने के लक्ष्य को हासिल करना प्राथमिकता होनी चाहिए।  मगर सरकार की दिलचस्पी टिकाऊ विकास में शायद उतनी नहीं है, जितनी आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ाने में। यह सही है कि तेज आर्थिक विकास के बगैर हम गरीबी, बेरोजगारी, चिकित्सा, महंगाई जैसी मूलभूत समस्याओं से पीछा छुड़ाने की सोच भी नहीं रख पायेंगे। सरकार सालों से भारत में साक्षरता अभियान चला रही है और उस पर होने वाले खर्च की खूब चर्चा भी करती आई है। लेकिन इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा निरक्षर वयस्क भारत में हैं। 

एक अन्य रिपोर्ट ‘एजुकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग’ में बताया गया है कि 1991 से 2006 के बीच भारत में साक्षरता दर 48 फीसदी से बढ़ कर 63 हो गयी है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण यह बदलाव दिखाई ही नहीं दिया और कुल निरक्षर वयस्कों की संख्या में भी कोई बदलाव नहीं हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अमीर और गरीब में बहुत ज्यादा फासला है जिसका असर शिक्षा पर भी देखने को मिल रहा है। एक तरफ उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी महिलाएं हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई है तो दूसरी ओर ऐसे लाखों बच्चे हैं जिन्हें शिक्षा का मूल अधिकार भी नहीं मिल पा रहा है। इस रिपोर्ट के लिए भारत समेत कई देशों में स्कूलों का दौरा किया गया और यह जानने की कोशिश की गयी कि बच्चों का स्तर कैसा है। भारत में किए गए अध्ययनों में पाया गया कि शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाता। इस कारण चार में से एक बच्चा एक भी वाक्य पूरी तरह नहीं पढ़ सकता।

भारत में शिक्षा की स्थिति चिन्तनीय है। उत्तर प्रदेश में अमीर परिवारों के लगभग सभी बच्चे आराम से पांचवीं कक्षा तक स्कूल जाते हैं, जबकि गरीब परिवारों के 70 फीसदी बच्चे ही ऐसा कर पाते हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में अमीर परिवारों के तो 96 फीसदी बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लेते हैं लेकिन गरीब परिवारों के 85 फीसदी बच्चे ही पांचवीं तक पहुंचते हैं। हालांकि स्कूल में होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें ठीक से शिक्षा भी मिल रही है। जब इन बच्चों को गणित के सवाल दिए गए तो पाया गया कि पांच में से केवल एक ही छात्र सही जवाब देने की हालत में था। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं उनकी जल्द ही स्कूल छोड़ देने की भी अधिक संभावना होती है। साथ ही गरीब राज्यों में परिणाम ज्यादा बुरे पाए गए। न केवल प्राथमिक बल्कि सेकेण्डरी एवं उच्चस्तरीय कक्षाओं में भी शिक्षा का गुणवत्ता स्तर कमजोर है। यही कारण है कि देश में सात करोड़ से ज्यादा छात्र कोचिंग या निजी ट्यूशन का सहारा लेते हैं। यह कुल छात्रों की तादाद का लगभग 26 फीसदी है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट ने देश में शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किये हैं। इससे साफ है कि स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का स्तर ठीक नहीं है। इस रिपोर्ट ने कोचिंग के तौर पर देश में चल रही समानांतर शिक्षा व्यवस्था से भी पर्दा उठा दिया है। 

मौजूदा केंद्र सरकार ने सत्ता में आने से पहले शिक्षा जैसे जरूरी मुद्दे पर कई सारे वादे किए थे। सत्ता में आने के बाद ये सारे वादे उदासीनता के पिटारे में बंद रहे। सरकार पर शिक्षा बजट में कटौती, उच्च शिक्षा का बाजारीकरण, संस्थानों में दखलंदाजी, शोध छात्रों की स्कालरशिप और एक ही विचारधारा के लोगों के प्रभाव में काम करने और उनके अनुकूल फैसले लेने का आरोप लगते रहे। दरअसल मोदी सरकार के कार्यकाल में शिक्षा के अहम सवाल या तो गायब हो गए या तो उन पर ध्यान नहीं दिया गया। सत्र 2014-15 में शिक्षा का कुल बजट 82,771 करोड़ रूपए का था जिसे अगले सत्र 2015-16 में घटाकर 69,707 करोड़ कर दिया गया। यानी एक वित्तीय वर्ष में शिक्षा बजट में 13,064 करोड़ की कटौती कर दी गयी. यानी कुल बजट का करीब 16.5 प्रतिशत। करोड़ों छात्रों को देश की बुनियादी शिक्षा उपलब्ध कराने वाले सर्वशिक्षा अभियान में 2375 करोड़ की कटौती की गई. मिड डे मील योजना में भी करीब 4000 करोड़ की कटौती की गई। माध्यमिक शिक्षा में भी 85 करोड़ की कटौती की गई। देश की शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद इन्ही प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के कन्धों पर टिकी हुई है। शौचालय,पक्की छत, डेस्क बेंच, लैब और किताबों के बगैर हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उम्मीद नहीं कर सकते। शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 को लागू हुए 6 साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन अब भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सरकारी स्कूलों में करीब 6 लाख शिक्षकों के पद अब भी रिक्त हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की स्थिति और भी दयनीय है। भारत में जो शिक्षा पद्धति प्रचलित है, उसके कई पक्षों मेें सुधार की आवश्यकता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था पर एक वृहत् जनसमूह को शिक्षित करने का उत्तरदायित्व है। साधन और संसाधन बहुत सीमित हैं, परिस्थितियाँ भी अनुकूल नहीं, फिर भी हम लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर प्रयत्नशील होना ही होगा। हमें दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा तभी इस निराशाजनक स्थिति से उभर सकते हैं। ’सबके लिए शिक्षा’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकारी तंत्रों के साथ स्वयंसेवी और सामाजिक संगठनों को भी जोड़ना होगा। स्वतंत्रता के बाद हमने सबके लिए शिक्षा प्राप्ति पर तो ध्यान दिया, पर सबके लिए समान गुणवत्ता वाली शिक्षा का लक्ष्य अभी भी कोसों दूर है। निजी और सरकारी स्कूलों में उपलब्ध संसाधन और सुविधाओं एवं प्रदान की जा रही शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक अंतर मौजूद है। भारत देश में यह संभव तो नहीं कि सबको निजी स्कूलों जैसी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जा सकें, परन्तु इस दिशा में प्रयास तो अवश्य होना चाहिए कि सभी को समान शिक्षा के अन्तर्गत अच्छी शिक्षा को कम खर्चीला बनाकर उपलब्ध कराया जाये। अगर हम यह लक्ष्य लेकर चल रहे हैं कि सबके लिए शिक्षा हो तो यह लक्ष्य परम्परागत संस्थागत शिक्षा पद्धति के माध्यम से प्राप्त  नहीं हो सकता। इसके लिए शिक्षा के अन्य विकल्प जनसामान्य को उपलब्ध करवाना होंगे। हर व्यक्ति तक शिक्षा पहुंचाने का लक्ष्य चुनौतीभरा है, लेकिन असंभव नहीं है। बात तीन साल पहले की है। जापान में एक ट्रेन कंपनी को जब लगा कि उनकी एक ट्रेन दूर के एक स्टेशन तक जाती है लेकिन वहां के लिए सिर्फ एक ही सवारी जाती है, तो क्यों न इसे बंद कर दिया जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उस एक व्यक्ति के लिये पूरी ट्रेन उस स्टेशन तक जाती रही। शिक्षा की ट्रेन को हर व्यक्ति तक, अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचाना है। अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों समय के आलेख हैं। अतीत हमारे जीए गए अनुभवों का निचोड़ है। वर्तमान संकल्प है नया दायित्व ओढ़ लक्ष्य की चुनौतियों को झेलने की तैयारी का और भविष्य एक सफल प्रयत्न है नयी भोर की अगवानी में दरवाजा खोल संभावनाओं की पदचाप पहचानने का। यही वह क्षण जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और यही वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण शिक्षा के लक्ष्यों को हासिल करने का, क्योंकि हमारा भविष्य शिक्षा के हाथों में है। 




(ललित गर्ग) 
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट 
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, 
दिल्ली-92 फोनः 22727486, 9811051133

भारत में बच्चों की सुरक्षा एक बड़ी चिंता का विषयः ‘स्माल वायसेज, बिग ड्रीम्स’ का

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नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय विकास समूह, चाइल्डफंड ने ‘बाल हितैषी उत्तरदायित्व कार्यप्रणाली’ पर एक वैश्विक सर्वे - ‘‘स्माल वायसेज, बिग ड्रीम्स’ आयोजित में चाइल्डफंड द्वारा ‘‘चाइल्ड फ्रेंडली एकाऊंटिबिलिटी मैथेडोलाॅजी’’ (‘‘बाल हितैषी उत्तरदायित्व कार्यप्रणाली’’) की प्रस्तुति भी की गई। जिसमें बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा को खत्म करने के लिए निर्णय लेने वाले अंशधारकों को सशक्त बनाने के लिए दिशानिर्देश उपलब्ध कराता है।  इस आयोजन में सरकार, प्रदाता क्षेत्र, शिक्षाविदों और एनजीओ‘ज़ के साथ-साथ बच्चों और युवाओं ने मिल कर चर्चा और सहयोग करने के तरीकों के लिए प्रतिभागिता की। इस सर्वे में 41 देशों में 10-12 वर्ष के बीच के 6,000 से अधिक बच्चों की आवाज़ें शामिल की गई हैं। प्रतिभागी देशों में भारत, अफगानिस्तान, कम्बोडिया और ज़ाम्बिया शामिल हैं। इसके निष्कर्षों में, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के बच्चों के बीच समानताओं और असमानताओं को चिन्हित किया गया है।


एनी लिनम गोडार्ड, प्रेसिडेंट व सीईओ, चाइल्डफंड इंटरनेशनल ने कहा, ‘‘‘‘स्माल वायसेज, बिग ड्रीम्स’’ उन मुद्दों को समझने का प्रयास करने का एक हिस्सा है जो बच्चों के दिमाग पर प्रभाव डालता है और विभिन्न क्षेत्रों के सुधार का आंकलन करता है। सर्वे यह बताता है कि अनेक बच्चे स्कूल में अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के प्रति चिंतित रहते हैं जो उनके समग्र विकास और वृद्धि पर प्रभाव डालने के लिए महत्वपूर्ण  सुश्री नीलम मखीजानी, नेशनल डायरेक्टर, चाइलडफंड इंडिया ने कहा, ‘‘यह सर्वे बताता है कि भारत में बच्चे शिक्षा व विषयों को सीखने की अधिक संवादात्मक सोच लाने के प्रति अधिक उत्साहजनक हैं और प्रत्येक बच्चे के पास सुरक्षित माहौल में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है सामूहिक हस्तक्षेप करना हमारा नैतिक उत्तरदायित्व है। हम फैसले लेने में बच्चों की प्रतिभागिता को प्रोत्साहित करना चाहते हैं और हमारा चाइल्ड फ्रेंडली एकाऊंटिबिलिटी फ्रेमवर्क इस दिशा में एक कदम है।’

फेडरल बैंक की गुड़गांव शाखा का नए परिसर मंे उद्घाटन

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फेडरल बैंक की गुड़गांव शाखा ने अपना परिचालन अब काफी जगह वाले नए परिसर 483/16, चंदन पैलेस, पुरानी जेल रोड, सिविल लाइन्स, गुड़गांव में आरम्भ किया है। इस पूर्ण रूप से एयरकंडीशन शाखा लाॅकर्स, एटीएम सुविधा से युक्त है। शाखा के पुर्नलोकार्पण समारोह में शाखा का उद्घाटन श्री यशपाल (एचसीएच), प्रशासक, हुडा गुडग्राम ने किया। बैंक के श्री सम्पत डी, मुख्य महाप्रबन्धक एवं नेटवर्किंग हेड ने समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर बैंक के डीजीएम एवं जोनल हेड नई दिल्ली श्री बाबू के.ए., श्री गोविंदन्दन कुट्टी डीजीएम एवं रीजनल हेड फेडरल बैंक, श्री अजित देशपाण्डे, चीफ मैनेजर एवं ब्रांच हेड भी उपस्थित थे। समारोह में उपस्थित ग्राहक एवं अतिथियों को सम्बोधित करते हुए फेडरल बैंक के मुख्य महा प्रबन्धक ने कहा ‘‘रिलेशनशिप बैंकिंग‘‘ फेडरल बैंक की कसौटी है, और इस मौजूदा शाखा परिसर का जीर्णोद्धार इस प्राथमिकता के साथ किया गया कि ग्राहकों को विशेष तौर पर आम ग्राहकों को अधिक सुविधा, आराम और खुशी सुनिश्चित रूप से प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त इस शाखा को और प्रभावी बनाने के लिए ‘‘डिजीटल एट फोर, हुमन एट द कोर‘‘ मंत्रा को आगे रखा गया और इस शाखा को समर्थ बनाया गया। इस शाखा में विशेष एवं स्थाई डिजीटल डेस्क कायम की गई है जो कि बैंक में अपनी तरह की पहली है। ‘‘सबसे पसन्दीदा बैंक‘‘ बनाने के हमारे मिशन में एक और कदम है।‘‘ श्री बाबू के ए डीजीएम एण्ड जोनल हेड फेडरल बैंक नई दिल्ली ने इस अवसर पर कहा ‘‘ हम गुड़गांव बाजार का परिचालन विगत दो दशकों से निरंतर बढ़ते ग्राहक आधार के साथ कर रहे हैं वहीं मौजूदा ग्राहक व्यावहार काफी सम्पन्न है, बैंक अपनी भागीदारी बढ़ाने की प्रक्रिया में है तथा अपनी पहुंच एसएमई एवं आईटी सेगमेंट में और अधिक बढ़ाना चाहता है।‘‘

मदर टरेसाः शांति एवं सेवा का शंखनाद

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माँ दुनिया का सबसे अनमोल शब्द है। एक ऐसा शब्द जिसमें सिर्फ अपनापन, सेवा, समर्पण और प्यार झलकता है। माँ हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती है। माँ शब्द जुबान पर आते ही एक नाम सहज ही सामने आता है और वह हैं मदर टरेसा का। कलियुग में वे मां का एक  आदर्श प्रतीक थी जो आज भी प्रेम की भांति सभी के दिलों में जीवित हैं। वे मानव बनकर संसार में आई। उनके जीवन की कहानी आकाश की उड़ान नहीं है। उनके स्वर कल्पना की लहरियों से नहीं उठे थे, बल्कि अनुभूति की कसौटी पर खरे उतरकर हमारे सामने आए थे। उनकी सतत गतिशील मानवता ने उन्हें महामानव बना दिया। जिसकी पृष्ठभूमि में विजय का संदेश है। वह विजय थी-अंधकार पर प्रकाश की, असत् पर सत् की, मानव उत्थान की और पीडित मानव मन पर मरहम की। वे शांति एवं सेवा का शंखनाद थी। 


 मदर टरेसा का नाम जुबान पर आते ही मन श्रद्धा से भर जाता है। दिल की गहराइयों में प्यार का सागर उमड़ने लगता है। उनकी हर सीख हमें याद आती है, जो उन्होंने हमें सिखाई है। हर व्यक्ति को वे बहुत प्यारी लगती थी और अपने करीब लगती थी। सभी कहते हंै कि उनके जैसा कोई नहीं है, वे एक ही थी और एक ही रहेगी। क्योंकि उन्होंने असहायों और निराश्रितों की सेवा में अपना पूरा जीवन बिताया। उन्होंने अपनी आयु के हर लम्हें को पीड़ित, दुःखी और जरूरतमंदों की सहायता में न्यौछावर किया। उनकी निस्वार्थ सेवा, स्नेह और समर्पण इस धरती पर हमेशा याद रहेगा। वे सचमुच संसार की मां थी, उनकी स्मृति युग-युगों तक मानवता को रोशनी देती रहेगी।

 युगों से भारत इस बात के लिये धनी रहा है कि उसे लगातार महापुरुषों का साथ मिलता रहा है। इस देश ने अपनी माटी के सपूतों का तो आदर-सत्कार किया ही है लेकिन अन्य देशों के महापुरुषों को न केवल अपने देश में बल्कि अपने दिलों में भी सम्मानजनक स्थान दिया और उनके बताए मार्गों पर चलने की कोशिश की है। हमारे लिए मदर टेरेसा भी एक ईश्वरीय वरदान थीं। भारतीय जनमानस पर अपने जीवन से उदाहरण के तौर पर उन्होंने ऐसे पदचिन्ह छोड़े हंै, जो सदियों तक हमें प्रेरणा एवं पाथेय प्रदत्त करते रहेंगे। क्या जात-पांत, क्या ऊंच-नीच, क्या गरीब-अमीर, क्या शिक्षित-अनपढ़, इन सभी भेदभावों को ताक पर रख कर मदर ने हमें यह सिखाया है कि हम सभी इंसान हैं, ईश्वर की बनाई हुई सुंदर रचना हैं और उनमें कोई भेद नहीं हो सकता। उनका विश्वास था कि अगर हम किसी भी गरीब व्यक्ति को ऊपर उठाने का प्रयत्न करेंगे तो ईश्वर न केवल उस गरीब की बल्कि पूरे समाज की उन्नति के रास्ते खोल देगा। वे अपने सेवा कार्य को समुद्र में सिर्फ बूंद के समान मानती थीं। वह कहती थीं, ‘मगर यह बूंद भी अत्यंत आवश्यक है। अगर मैं यह न करूं तो यह एक बूंद समुद्र में कम पड़ जाएगी।’ सचमुच उनका काम रोशनी से रोशनी पैदा करना था।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 में सोप्जे मैसिडोनिया में हुआ था। 12 वर्ष की छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने ‘नन‘ बनने का निर्णय किया और 18 वर्ष की आयु में कलकत्ता में ‘आइरेश नौरेटो नन‘ मिशनरी में शामिल हो गयी। वे सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बनी और लगभग 20 वर्ष तक अध्यापन के द्वारा ज्ञान बांटा। लेकिन उनका मन कहीं और था। कलकत्ता के झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों की पीड़ा और दर्द ने उन्हें बैचेन-सा कर रहा था। देश में गरीबी और भुखमरी की स्थिति काफी गंभीर थी। बीमारी, अशिक्षा, छुआछूत, जातिवाद एवं महिला उत्पीड़न जैसी सामाजिक बुराइयां अपनी पराकाष्ठा पर थीं। इन स्थितियों ने उन्होंने आन्दोलित कर दिया। यही कारण था कि 36 वर्ष की आयु में उन्होंने अति निर्धन, असहाय, बीमार, लाचार एवं गरीब लोगों की जीवनपर्यंत सेवा एवं मदद करने का मन बना लिया। इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फॅमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह गरीब बुजुर्गों की देखभाल करने वाली संस्था के साथ जुड़ गयी। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहमपट्टी की और उनको दवाइयां दीं। धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। 

कोलकता में सन् 1950 में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ का आरम्भ मात्र 13 लोगों के साथ हुआ था पर मदर टेरेसा की मृत्यु के समय (1997) 4 हजार से भी ज्यादा ‘सिस्टर्स’ दुनियाभर में असहाय, बेसहारा, शरणार्थी, अंधे, बूढ़े, गरीब, बेघर, शराबी, एड्स के मरीज और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की सेवा कर रही हैं। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले । ‘निर्मल हृदय’ का ध्येय असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों का सेवा करना था जिन्हें समाज ने तिरस्कृत कर दिया हो। ‘निर्मला शिशु भवन’ की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए हुई। समाज के सबसे दलित और उपेक्षित लोगों के सिर पर अपना हाथ रख कर उन्होंने उन्हें मातृत्व का आभास कराया और न सिर्फ उनकी देखभाल की बल्कि उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए भी प्रयास शुरू किया। सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी असफल नहीं होता, यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई।

मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें पहले पद्मश्री (1962) और बाद में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (1980) से अलंकृत किया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें वर्ष 1985 में मेडल आफ फ्रीडम से नवाजा। मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों की वजह से उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार गरीबों और असहायों की सहायता करने के लिए दिया गया था। मदर ने नोबेल पुरस्कार की धन-राशि को भी गरीबों की सेवा के लिये समर्पित कर दिया।

मदर टेरेसा ने समय-समय पर भारत एवं दुनिया के ज्वंलत मुद्दों पर असरकारण दखल किया, भ्रूण हत्या के विरोध में भी सारे विश्व में अपना रोष दर्शाया एवं अनाथ-अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोते-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया। पीड़ित एवं दुखी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत था। दया की देवी, दीन हीनों की माँ तथा मानवता की मूर्ति मदर टेरेसा एक ऐसी सन्त महिला थीं जिनके माध्यम से हम ईश्वरीय प्रकाश को देख सकते थे। हम उन्हें ईश्वर के अवतार के रूप में एवं उनके प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं। 

मदर शांति की पैगम्बर एवं शांतिदूत महिला थीं, वे सभी के लिये मातृरूपा एवं मातृहृदया थी। परिवार, समाज, देश और दुनिया में वह सदैव शांति की बात किया करती थीं। विश्व शांति, अहिंसा एवं आपसी सौहार्द की स्थापना के लिए उन्होंने देश-विदेश के शीर्ष नेताओं से मुलाकातें की और आदर्श, शांतिपूर्ण एवं अहिंसक समाज के निर्माण के लिये वातावरण बनाया।  कहा जाता है कि जन्म देने वाले से बड़ा पालने वाला होता है। मदर टेरेसा ने भी पालने वाले की ही भूमिका निभाई। अनेक अनाथ बच्चों को पाल-पोसकर उन्होंने उन्हें देश के लिए उत्तम नागरिक बनाया। ऐसा नहीं है कि देश में अब अनाथ बच्चे नहीं हैं। लेकिन क्या मदर टेरेसा के बाद हम उनके आदर्शों को अपना लक्ष्य मानकर उन्हें आगे नहीं बढ़ा सकते?

मदर टरेसा ने कभी भी किसी का धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश नहीं की। प्रार्थना उनके जीवन में एक विशेष स्थान रखती थी जिससे उन्हें कार्य करने की आध्यात्मिक शक्ति मिलती थी। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। उन्होंने अपनी शिष्याओं एवं धर्म-बहनों को भी ऐसी ही शिक्षा दी कि प्रेम की खातिर ही सब कुछ किया जायें। उनकी नजर में सारी मानव जाति ईश्वर का ही प्रतिरूप है। उन्होंने कभी भी अपने सेवा कार्य में धर्म पर आधारित भेदभाव को आड़े नहीं आने दिया। जब कोई उनसे पूछता कि ‘क्या आपने कभी किसी का धर्मांतरण किया है?’ वे कहती कि ‘हां, मैंने धर्मांतरण करवाया है, लेकिन मेरा धर्मांतरण हिंदुओं को बेहतर हिंदू, मुसलमानों को बेहतर मुसलमान और ईसाइयों को बेहतर ईसाई बनाने का ही रहा है।’ असल में वे हमेशा इंसान को बेहतर इंसान बनाने के मिशन में ही लगी थी।

मदर टेरेसा त्याग, सादगी एवं सरलता की मूर्ति थी। वे एक छोटे से कमरे में रहती थीं और अतिथियों से प्रेमभाव के साथ मिलती थीं और उनकी बात को गहराई से सुनती थीं। उनके तौर तरीके बड़े ही विनम्र हुआ करते थे। उनकी आवाज में सहजता और विनम्रता झलकती थी और उनकी मुस्कुराहट हृदय की गहराइयों से निकला करती थी। सुबह से लेकर शाम तक वे अपनी मिशनरी बहनों के साथ व्यस्त रहा करती थीं। काम समाप्ति के बाद वे पत्र आदि पढ़ा करती थीं जो उनके पास आया करते थे। मदर टेरेसा वास्तव में प्रेम और शांति की दूत थीं। उनका विश्वास था कि दुनिया में सारी बुराइयाँ व्यक्ति से पैदा होती हैं। अगर व्यक्ति प्रेम से भरा होगा तो घर में प्रेम होगा, तभी समाज में प्रेम एवं शांति का वातावरण होगा और तभी विश्वशांति का सपना साकार होगा। उनका संदेश था हमें एक-दूसरे से इस तरह से प्रेम करना चाहिए जैसे ईश्वर हम सबसे करता है। तभी हम विश्व में, अपने देश में, अपने घर में तथा अपने हृदय में शान्ति ला सकते हैं। उनके जीवन और दर्शन के प्रकाश में हमें अपने आपको परखना है एवं अपने कर्तव्य को समझना है। तभी हम उस महामानव की जन्म जयन्ती मनाने की सच्ची पात्रता हासिल करेंगे एवं तभी उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित करने में सफल हो सकेंगे।



(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

मेनका गांधी का पेंथर को गोली नहीं मारने के निर्देश

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अलवर16 फरवरी, केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने वन विभाग के अधिकारियों को आदमखोर पैंथर को गोली मारने की बजाए उसकी पहचान करने के निर्देश है। सरिस्का के क्षेत्रीय निदेशक आरएस शेखावत ने बताया कि केन्द्रीय मंत्री मेनका गाँधी का फोन आया था। उन्होंने कहा कि फ़िलहाल आदमखोर पैंथर की पहचान के सबूत नहीं है और गोली मारने से किसी निर्दोष पेंथर की जान जा सकती है। इसलिए क्षेत्र में कुछ दिनों तक जितने भी पैंथरों का मूवमेंट होगा उन्हें ट्रेंकुलाइज करने और पिंजरे में पड़कने के प्रयास किये जायेगे। उन्होंने कहा कि पकडे गए पैंथरों का डीएनए टेस्ट कराकर उसका मिलान किया जाए और आदमखोर पेंथर को चिन्हित किया जायेगा। श्री शेखावत ने बताया कि इसके लिए फ़िलहाल सरिस्का के जैतपुर और सिलीबावड़ी क्षेत्र में पांच पिंजरे और 20 कैमरे ट्रेप और दो डाक्टरो की ट्रंकुलाइज टीम मौजूद है। इसके आलावा क्षेत्र में दिन रात पुलिस और फारेस्ट की 6 सर्च टीम भी मौके पर पेंथर को ढूंढने में लगी हुई है। उन्होंने कहा कि सरिस्का प्रसासन ने गाँवो के लोगो को शाम साढे चार बजे के बाद और सुबह सात बजे से पहले घरो से बहार खेतो और जंगल में नही जाने की अपील की है। जिससे आदमखोर पेंथर के हमले से बचा जा सके ।



अलवर जिले के सरिस्का बाघ अभ्यारण्य क्षेत्र में आदमखोर पेंथर को आज चौथे दिन भी सरिस्का प्रसासन और पुलिस की टीम नही ढूढ पाई है। दो दिन पूर्व वन विभाग के उच्च अधिकारियो द्वारा आदमखोर पेंथर को गोली मारने के आदेश पर अघोषित रोक लगा दी गई है और आदमखोर पेंथर को ट्रेंकुलाइज कर पिंजरे में कैद करने का प्रयास किया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को जब मिडिया के जरिये पता चला कि सरिस्का में आदमखोर पेंथर को गोली मारने के आदेश जारी किये गए है तो उन्होंने स्थिति के बारे में फारेस्ट और प्रसासन के अधिकारियो से बात की। उन्होंने कहा कि इस कार्यवाही में किसी निर्दोष पेंथर की जान जाती है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा। इसलिए पहले इस क्षेत्र में जितने भी पेंथर की टेरेटरी है उनको पिजरे में कैद किया जाये। 

उन्होंने कहा कि क्षेत्र में एक से लेकर पांच पेंथर का मूवमेंट हो सकता है जिन्हें पकड़ कर पहले उनका डीएनए टेस्ट लिया जाये और 12 फरवरी को मृतक महिला शांतिदेवी और रामकुवार मीणा के शिकार के बाद लिए डीएनए सैम्पल से मिलान किया जायेगा। इसके बाद उस पेंथर को हमेशा के लिए पिजरे में रखा जाए और शेष पकडे गए पेंथर को कुछ समय बाद वापिस छोड़ने का फैसला विशेषज्ञों की राय के अनुसार लिया जाएगा। सरिस्का क्षेत्र में आठ दिन में चार लोंगो की जान ले चुके बघेरे को पकड़ने के लिए केवलादेव पक्षी उद्यान की टीम भी सरिस्का पहुंच गई है। टीम में घना के निदेशक बीजू जॉय के अलावा गश्ती दल के रेंजर मनोज यादव एवं आठ कर्मचारी शामिल हैं। निदेशक बीजू जॉय को बघेरों के मामले में अच्छी जानकारी है। उन्हें ट्रंकुलाइज का भी एक्सपर्ट माना जाता है। वहीं रेंजर मनोज यादव काफी समय तक सरिस्का में रहे हैं। वे सरिस्का जंगल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। इसलिए वन विभाग ने इन्हें खासतौर से सरिस्का भेजा है। सिलीबावड़ी गांव में वन विभाग ने अस्थाई कंट्रोल रूम शुरू किया है। इसके लिए दो मोबाइल नंबर जारी किये हैं।

ई के पलानीस्वामी आज शाम चार बजे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे

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चेन्नई 16 फरवरी तमिलनाडु के राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्ना द्रमुक) के विधायक दल के नवनियुक्त नेता ई के पलानीस्वामी को आज मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया और उन्हें 15 दिन के भीतर बहुमत साबित करने को कहा। श्री पलानीस्वामी पूर्वाह्न 11:30 बजे राज्यपाल से मिले। 

इसी मुलाकात के दौरान श्री राव ने श्री पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री की नियुक्ति का पत्र सौंपा जिसमें उनसे अपने मंत्रिमंडल का गठन और 15 दिन के भीतर बहुमत साबित करने को कहा गया है। श्री पलानीस्वामी को अन्ना द्रमुक की महासचिव वी के शशिकला के बाद पार्टी के विधायक दल का नेता चुना गया था। श्रीमती शशिकला आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी करार दी गयी थीं और उन्हें चार वर्ष की कैद की सजा सुनायी गयी है। उन्होंने कल बेंगलुरु की एक अदालत में समर्पण कर दिया था जहां से उन्हें परप्पाना अग्रहारा केंद्रीय कारागार भेज दिया गया था। ई के पलानीस्वामी आज शाम चार बजे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे


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