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पुलवामा मुठभेड़ में लश्कर के दो आतंकवादी मारे गए

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श्रीनगर, 9 मार्च, दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले के अवंतीपोरा इलाके में सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के साथ आज नौ घंटे चली मुठभेड़ में लश्कर.ए.तैयबा के दो आतंकवादी मारे गए। इस घटना में एक नागरिक की भी मौत हो गयी। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना पर सुरक्षाबलों ने तड़के करीब ढाई बजे पडगामपोरा इलाके में घेराबंदी कर तलाशी अभियान शुरू किया। इसके बाद मुठभेड़ शुरू हो गयी। आतंकवादियों ने सुबह करीब चार बजकर 40 मिनट पर सुरक्षाबलों पर गोलीबारी शुरू कर दी। सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई की और दोनों पक्षों के बीच भीषण मुठभेड़ हुयी जो नौ घंटों तक चली। आतंकवादी आसपास के दो घरों में छिपे थे। उन्होंने बताया कि सुरक्षा अधिकारियों ने घर में छिपे आतंकवादियों में से एक की मां को भी मौके पर बुलाया ताकि उसे आत्मसमर्पण के लिए मनाया जा सके लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। अधिकारी के अनुसार मारे गए आतंकवादियों की पहचान जहांगीर गनई और मोहम्मद शफी शेरगुजरी के रूप में हुयी है। दोनों आतंकवादी संगठन लश्कर के सदस्य थे। उन्होंने बताया कि दोनों ओर से चली गोलियों की चपेट में आने से 15 साल के किशोर आमिर नजीर वानी की भी मौत हो गयी। उसके गले में एक गोली लग गयी थी। स्थानीय नागरिकों ने दावा किया कि सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ स्थल के पास प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलायी जिससे वानी की मौत हुयी। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने कहा कि किशोर की मौत मुठभेड़ की चपेट में आने से हुयी। एक अन्य युवक सजद अहमद भट्ट भी गोली लगने से घायल हो गया। उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
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लखनउ मुठभेड़ से जुड़े मामले की जांच एनआईए करेगी : राजनाथ सिंह

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नयी दिल्ली, 9  मार्च, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा कि मध्यप्रदेश में ट्रेन में बम विस्फोट मामले के सिलसिले में लखनउ मुठभेड़ में एक संदिग्ध आतंकी के मारे जाने की घटना की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी :एनआईए: करेगी। लोकसभा में इस विषय पर अपने वक्तव्य में राजनाथ सिंह ने मृत आतंकी सैफुल्ला के पिता मोहम्मद सरताज द्वारा उसका शव लेने से इंकार करते हुए उस कथन प्रशंसा की जिसमें उन्होंने कहा था कि जो अपने देश का नहीं हुआ, वह हमारा कैसे होगा। गृह मंत्री ने कहा, ‘‘ मोहम्मद सरताज पर सरकार और पूरे सदन को नाज है। ’’ सदस्यांे ने मेज थपथपा का इसका स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि सैफुल्ला मंगलवार को मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में भोपाल.उज्जैन ट्रेन में हुए विस्फोट मामले में संदिग्ध था। गृह मंत्री ने कहा कि यह घटनाक्रम राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय का उत्तम उदाहरण है। दोनों राज्यों की पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई करते हुए देश की सुरक्षा पर उत्पन्न संभावित खतरे को टालने में सफलता प्राप्त की गई। उन्होंने कहा, ‘‘ इस पूरे प्रकरण की जांच एनआईए से करायी जायेगी। ’’ राजनाथ सिंह ने इस मामले में मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में दोनों राज्यों में दर्ज मामलों का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि भोपाल.उज्जैन ट्रेन में हुए विस्फोट में 10 रेलयात्रियों को चोटें आई और रेलवे सम्पत्ति को भी नुकसान पहुंचा। घायलों को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया। वर्तमान में सभी घायलों की स्थिति खतरे से बाहर है। 
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प्रधानमंत्री ने संसद में सार्थक चर्चा, जीएसटी पर समाधान निकलने की उम्मीद जतायी

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नयी दिल्ली, 9 मार्च, संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में सार्थक चर्चा की उम्मीद व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार पहल ‘जीएसटी’ को इस सत्र में पूर्ण करने में सभी दलों का सहयोग मांगा। प्रधानमंत्री ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘ हमारी आशा है कि जीएसटी में भी एक ब्रेकथ्रू :सफलता: हो.. :इसके: होने की संभावना का कारण यह भी है कि सभी राज्यों का बहुत ही सकारात्मक सहयोग रहा है। सभी राजनीतिक दलों का भी बहुत सकारात्मक सहयोग रहा है। ’’ उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से बहुत व्यापक चर्चाएं करते.करते कुछ नतीजों पर सहमति से हम लोग आगे बढ़े। इसके कारण जीएसटी इस सत्र में पूर्ण हो जाए, उस दिशा में भी प्रयास है और इसमें सबका सहयोग रहेगा। ’’ उल्लेखनीय है कि जीएसटी को देश में अब तक के सबसे बड़े कर सुधार के रूप में पेश किया गया है। ऐसी उम्मीद है कि इससे देश के सकल घरेलू उत्पाद में कम से कम एक प्रतिशत की वृद्धि होगी। संसद में सार्थक चर्चा की उम्मीद व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद सत्र में बीच के एक बार के विराम के बाद फिर से सब लोग एक साथ बैठे हैं। प्रमुखता से बजट की बारीकी पर चर्चा होगी। संवाद का स्तर और चर्चा का स्तर बहुत उपर जायेगा। देश के गरीबों के लिए काम आने वाली बातों पर ध्यान केंद्रित करने वाला संवाद होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एक बार फिर सभी को धन्यवाद देते हैं।

केंद्रीय और राज्य स्तरीय अधिकारी जल्द ही यह तय करना शुरू करेंगे कि कौन सी वस्तुएं और सेवाएं किस कर श्रेणी में आएंगी। जल्द ही इसे परिषद में मंजूरी के लिए ले जाया जाएगा। इसके साथ वे उन वस्तुओं और सेवाओं के बारे में भी निर्णय करेंगे जिन पर कर के अलावा उपकर भी लगाया जाएगा ताकि जीएसटी के क्रियान्वयन से शुरू के पांच साल में राज्यों को राजस्व में होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान की भरपाई के लिये कोष सृजित किया जा सके। सरकार एक जुलाई से जीएसटी लागू करना चाहती है। जीएसटी को अमलीजामा पहनाने का मार्ग प्रशस्त करने वाले संवैधानिक संशोधन की अवधि इस साल सितंबर के मध्य में पूरी होने वाली है।
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संजय द्विवेदी द्वारा संपादित पुस्तक : 'मीडिया की ओर देखती स्त्री'का लोकार्पण

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भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी द्वारा संपादित किताब 'मीडिया की ओर देखती स्त्री'का लोकार्पण 'मीडिया विमर्श'पत्रिका की ओर से गांधी भवन, भोपाल में आयोजित पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में निशा राय (भास्कर डाटकाम),आर जे अनादि( बिग एफ.एम),कौशल  र्मा(कोएनजिसिस,दिल्ली),अनुराधा आर्य(महिला बाल विकास अधिकारी बिलासपुर), शिखा शर्मा( इन्सार्ट्स),अन्नी अंकिता (दिल्ली प्रेस, दिल्ली),ऋचा चांदी( मीडिया प्राध्यापक),शीबा परवेज (फारच्यूना पीआर, मुंबई), श्रीमती भूमिका द्विवेदी (प्रकाशकः मीडिया विमर्श) ने किया। 


पुस्तक में कमल कुमार, विजय बहादुर सिंह, जया जादवानी,अष्टभुजा शुक्ल,उर्मिला शिरीष,मंगला अनुजा, अल्पना मिश्र, सच्चिदानंद जोशी,इरा झा,वर्तिका नंदा,रूपचंद गौतम, गोपा बागची, सुभद्रा राठौर,संजय कुमार, हिमांशु शेखर,जाहिद खान,रूमी नारायण, अमित त्यागी, स्मृति आदित्य, कीर्ति सिंह, मधु चौरसिया, लीना, संदीप भट्ट, सोमप्रभ सिंह, निशांत कौशिक, पंकज झा, सुशांत झा,माधवीश्री,अनिका अरोड़ा, फरीन इरशाद हसन, मधुमिता पाल, उमाशंकर मिश्र, महावीर सिंह, विनीत उत्पल, यशस्विनी पाण्डेय, आदित्य कुमार मिश्र के लेख शामिल हैं। इस पुस्तक में देश के जाने-माने साहित्यकारों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के 39 लेख समाहित हैं जिनसे आज के मीडिया में स्त्री की बहुआयामी छवि का मूल्यांकन किया गया है। 


किताबः मीडिया की ओर देखती स्त्री
संपादकः संजय द्विवेदी
प्रकाशकः यश पब्लिकेशंस,1/10753, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
मूल्यः495 रूपए मात्र, पृष्ठः 184 
पुस्तक अमेजान और फ्लिपकार्ड पर भी उपलब्ध है।

विशेष : इसलिए ट्रंप के नस्ली उन्मादी जिहाद के हक में हैं राजनीति,राजनय और मीडिया।

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  • क्योंकि भारत में भारतीयों का सफाया फासिज्म का नस्ली राजकाज है
  • असम में बंगाली शरणार्थियों की रैली उल्फा के खिलाफ,अब जेलभरो का ऐलान।
  • आखिरी चरण के मतदान से पहले अमेरिका ने कहा,पाकिस्तान और बांग्लादेश खतरनाक और भारत में भी आतंकवादी सक्रिय,मध्य प्रदेश और यूपी में मुठभेड़ शुरु।



The US on Tuesday issued a travel warning for its citizens visiting Pakistan, Afghanistan and Bangladesh, and said extremist elements are also ‘active’ in India.


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आखिरी चरण के मतदान से पहले अमेरिका ने कहा,पाकिस्तान और बांग्लादेश खतरनाक और भारत में भी आतंकवादी सक्रिय,मध्य प्रदेश और यूपी में मुठभेड़ शुरु। कानपुर के रेल दुर्घटना में पाकिस्तानी हाथ होने के दावे के बीच मध्य प्रदेश में ट्रेन के डिब्बे में धमाका और उसके साथ साथ अमेरिकी चेतावनी और फतवे के बीच जगह जगह आतंकवादियों से मुठभेड़ का सिलसिला बेहद खतरनाक घटनाक्रम है। फिलहाल टीवी पर आंखों देखा एनकाउंटर जारी है।जाहिर है कि भारत में भी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध तेज होना है तो ऐसे में ट्रंप के राजकाज के खिलाफ हमारी जुबां खामोश है। 

अजब गजब मीडिया इस विचित्र भारतवर्ष का है।
अमेरिका में एक के बाद एक भारतीय मूल के मनुष्यों पर हमले जारी हैं।लेकिन बनारस के अलावा भारतीय मीडिया का कहीं फोकस है तो वह पाकिस्तान है या फिर चीन है।अमेरिका के सात खून माफ हैं। मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुस्लिम देशों के साथ भारत के प्रतिबंधित न होने के बावजूद मुसलमानों और अश्वेतों के खिलाफ अमेरिका के श्वेत आतंकवादी धर्मयुद्ध में गैर मुसलमान भारतीय नागरिकों पर एक के बाद एक हमले क्यों हो रहे हैं। यही मीडिया साठ के दशक से संघ परिवार के तत्वावधान में असम और समूचे पूर्वोत्तर में विदेशी हटाओ नारे के साथ भारत के दूसरे हिस्सों से वहां गये लोगों और पूर्वी बंगाल से आकर बसे विभाजन पीड़ितों के खिलाफ उग्रवादी नस्ली हमलों का समर्थन करता रहा है। कल असम में निखिल भारत बंगाली उद्वास्तु समन्वय समिति की ओर से असम में अल्फाई राजकाज के प्रतिरोध में अभूतपूर्व रैली की है।जिसके बारे में समन्वय समिति के महासचिव अंबिका राय ने लिखा हैः

This is Nikhil bharat Bengali udbastu samanway samiti convention cum Rally at Dhamaji district , Assam on 6.3.2017. More than One lakh people assembled at the rally n convention. This program was only attended by two district only. AASU (All Assam Student Association) is spreading venom against Nikhil bharat with the false allegation to stop the movement as they never assessed the popularity of Nikhil bharat. They want Nikhil bharat central leadership should get arrested by Sarbanonda Sonwal 's administration. Tomorrow or day after we shall proceed from all states to Assam to get arrested voluntarily in protest against any sort of false allegation.

वीडियो भी देखेंः
https://www.facebook.com/ambika.ray.16

जाहिर है कि सोनोवाल को हिंदू शरणार्थियों के अटूट समर्थन के बावजूद असम में आसू और अल्फा के निशाने पर बंगाली हिंदू शरणार्थी हैं। शरणार्थी रैली के बाद जेल भरो आंदोलन के बाद क्या हालात होंगे और उल्फा की पृष्ठभूमि के सोनोवाल पर शरणार्थियों का भरोसा कितना खरा रहेगा, इससे बड़ा सवाल यह है कि उल्फाई राजकाज में यातना शिविर में तब्दील असम में गैर असमिया समुदायों की जान माल कितनी सुरक्षित है और संघ परिवार के भरोसे अमन चैन का क्या होना है।फिरभी असम की जमीन पर उल्फा के खिलाफ यह प्रतिरोध आंदोलन अभूतपूर्व है लेकिन आगे क्या होगा,उसपर नियंत्रण किसका होगा,फिक्र इसकी है। अमेरिका ही नहीं,हमले अन्यत्र भी शुरु होने का अंदेशा है कि अमेरिका के बाद न्यूजीलैंड में भी अपने देश वापस जाओ,की चेतावनी के साथ बिना मोहलत दिये भारतीय मूल के नागरिक पर हमला हो गया। यह बेहद जल्द संक्रामक महामारी में तब्दील होने जा रहा है और बजरंगी वाहिनी और उनके सिपाहसालारों से निवेदन हैं कि भारतीय होने का मतलब सिर्फ मुसलमान नहीं है। फिरभी क्या मजाल की महामहिम ट्रंप की नस्ली भारतविरोधी मुहिम के खिलाफ भारत सरकार चचूं भी करें क्योंकि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करवाने की राजनय राजनीति दोनों ट्रंप समर्थक है।मीडिया भी ट्रंप के हक में है।

वैसे भारत वापस जाओ,के नारे सिर्फ विदेश में लग रहे हैं ,ऐसा नहीं है।
असम और पूर्वोत्तर में भारत के बाकी हिस्सों के नागरिकों के खिलाफ नारा यही है और असम में भाजपा सरकार का राजकाज उल्फाई है तो गोरखालैंड से लेकर बाकी पूर्वोत्तर के केसरियाकरण के लिए संघ परिवार का क्षेत्रीय उग्रवाद के साथ चोली दामन का रिश्ता  है।  भारतीय मुसलमानों को कश्मीर और पूर्वोत्तर और काफी हद तक उत्तराखंड और हिमाचल के भारतीय गैर नस्ली नागरिकों के साथ, आदिवासियों के साथ और यूं कहें तो समूचे बहुजन समाज के साथ संघ परिवार न हिंदू मानता है और न भारतीय।  देश में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ लोकतांत्रिक आलोचना या सिर्फ आदिवासियों और बहुजनों के हक में मनुस्मृति के खिलाफ आवाज उठाने के लिए या दमन उत्पीड़न नरसंहार का विरोध करने के लिए या निरामिष ढंग से  सिर्फ धर्म निरपेक्षता, विविधता ,बहुलता, नागरिक मानवाधिकारों , विविधता, रोजगार, आजीविका की बात कहने पर तत्काल पाकिस्तान चले जाने का फतवा जारी हो जाता है। मसलन ताजा जानकारी यह है कि माओवादियों से संबंध रखने के कारण डीयू के रामलाल आनंद कॉलेज से निलंबित चल रहे अंग्रेजी के प्राध्यापक जीएन साईबाबा को अब दोषी पाया गया है और ऐसी संभावना है कि अब उनको नौकरी से निष्काषित किया जा सकता है। हालांकि, इस बाबत अंतिम फैसला कॉलेज की गवर्निग बॉडी लेगी। डीयू के कई शिक्षकों का साईबाबा से संबंध था और कुछ शिक्षक तो गढ़चिरौली जेल में उनसे मिलने भी गए थे। प्राप्त सूचना के अनुसार, ये शिक्षक भी पुलिस के रडार पर हैं।  ऐसे में अमेरिका ने बाकी चुनिंदा मुस्लिम देशों को अमेरिका में प्रतिबंधित कर देने के बाद अफगानिस्तान,पाकिस्तान और बांग्लादेश को डेंजरस बता देने के बाद भारत में भी आतंकवादियों के सक्रिय रहने के आरोप के साथ भारत यात्रा के खिलाप फतवे देने से मनुस्मृति के राजधर्म को कोई फर्क पड़ता नहीं है। 

बल्कि संघी नजरिये से भारत में गैरहिंदुओं के सफाये के एजंडा के तहत आतंकवादियों से निबटने के लिए अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप का न्यौता दिये जाने की राजनय का ही आफ हिंदू होने के नाते इंतजार करें तो आप वास्तव में हिंदू और भारतीय नागरिक दोनों हैं,वरना नहीं। ताजा घटनाक्रम इसीका संकेत है। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सोमवार को संशोधित ट्रैवल बैन ऑर्डर पर दस्तखत कर दिए। खास बात यह है कि व्हाइट हाउस ने संशोधित ट्रैवल बैन ऑर्डर में इराक का नाम लिस्ट से हटा दिया है। 27 जनवरी के पहले ट्रैवल बैन लिस्ट में 7 देशों के नाम थे। ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभालने के साथ ही इराक समेत सात मुस्लिम बहुल देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगाते हुए शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अदालतों ने उसे रोक दिया। इसे लेकर दुनिया भर के लोगों में काफी गुस्सा भी था। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता सीन स्पाइसर ने बताया कि ट्रंप ने बंद कमरे में इस नये आदेश पर हस्ताक्षर किए। नए शासकीय आदेश में सूडान, सीरिया, ईरान, लीबिया, सोमालिया और यमन के लोगों पर 90 दिनों का प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि यह पहले से वैध वीजा प्राप्त लोगों पर लागू नहीं होगा। बनारस का राजकाज निबट गया है और राजधानी फिर नई दिल्ली में है।बाकी मंत्रिमंडल शायद दिल्ली में लौट आया है लेकिन प्रधानमंत्री बनारस से सीधे गुजरात लैंड कर रहे हैं क्योंकि  पीएम नरेंद्र मोदी आज से दो दिनों के गुजरात दौरे पर जा रहे हैं। इस दौरान पीएम कई कार्यक्रमों और बैठकों में हिस्सा लेंगे। पीएम सबसे पहले ओएनजीसी पेट्रो एडिशन्स लिमिटेड पेट्रोकैमिकल कॉमप्लेक्स में आयोजित एक समारोह में उद्योग जगत को संबोधित करेंगे। बाद में पीएम भरूच में आयोजित एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे। पीएम भरूच जिले में नर्मदा नदी पर चार लेन के एक पुल का उद्घाटन करेंगे। इस पुल का निर्माण अहमदाबाद-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात को सुगम बनाने के लिए किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- यह देश का सबसे लंबा एक्स्ट्रा डाज्ड केबल ब्रिज है।.  इस बीच अमेरिका के बाद न्यूजीलैंड में भी भारतीय मूल के एक नागरिक पर हमला हुआ है तो डान डोनल्ड ट्रंप  ने नया फतवा अमेरिकी नागरिकों के लिए भारत की यात्रा के खिलाफ जारी कर दिया है,बलि भारत में भी आतंकवादी सक्रिय हैं।

बनारस से चंचलजी ने फेसबुक पर लिखा हैः
कम्बख्त ये बनारस का जिलाधिकारी कौन है ? जिसे रोड शो क्या होता है , पता ही नही ? कहां से पढा है भाई और किस गधे ने डी यम बना दिया ? खुलीजीप मे खड़े होकर लाव लस्कर के साथ प्रदर्शन करना ही तो रोड शो कहलाता है या कुछ और ?  जा बच्चू स्साला जमाना निकल गया , वरना बताते डी यम किसे कहते हैं । भूरेलाल से बड़े अधिकारी नही हो , बड़ी दुर्गति हुई थी , विष्वविद्यालय मे । 

एक सवाल है डी यम साहेब 
रोड शो कैसे होता है , उसका मानक क्या है ?
शर्म नही आती लिखित दे रहे हो की मोदी का रोड शो नही था ।

बहरहाल ताजा जानकारी के मुताबिक लखनऊ के जिस इलाके में एनकाउंटर चल रहा है वो रिहायशी कॉलोनी है। कॉलोनी नई है। इसलिए लोग एक-दूसरे के बारे में ज्यादा वाकिफ नहीं हैं। घर भी दूर-दूर बने हैं। लखनऊ.यहां के ठाकुरगंज इलाके में पुलिस का एक संदिग्ध आतंकी के साथ एनकाउंटर जारी है। आतंकी एक घर में छिपा है। दोनों तरफ से पहले रुक-रुक कर फायरिंग हुई। बाद में फायरिंग थम गई। एटीएस ने संदिग्ध से बात करने की कोशिश की। लेकिन उसने कहा कि वह जान दे देगा, लेकिन सरेंडर नहीं करेगा। इसके बाद फायरिंग दोबारा तेज हो गई। 20 राउंड फायरिंग के बाद एटीएस ने मौके पर एंबुलेंस बुला ली। फायरिंग में संदिग्ध घायल हो गया है।

इस मुठभेड़ से पहले भोपाल से 70 किमी दूर कालापीपल में जबड़ी स्टेशन के पास मंगलवार सुबह भोपाल-उज्जैन पैसेंजर (59320) ट्रेन में ब्लास्ट हो गया। इसमें 9 लोग जख्मी हो गए। ब्लास्ट से जनरल कोच में छेद हो गया। एमपी के आईजी लॉ एंड ऑर्डर मकरंद देवस्कर ने पुष्टि की कि भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में हुआ ब्लास्ट आतंकी हमला ही था। यह आईईडी ब्लास्ट था। इस बीच, हमले के कुछ ही घंटों बाद पिपरिया पुलिस ने एक बस को टोल नाके पर रोककर तीन संदिग्धों को अरेस्ट कर लिया। सूटकेस में एक्सप्लोसिव होने का शक... - जीआरपी एसपी कृष्णा वेणी ने शुरुआती जांच में शॉर्ट सर्किट की वजह से ब्लास्ट होने की बात कही।




(पलाश विश्वास)

विशेष आलेख : अनचाही बेटियाँ

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हम एक लिंगभेदी मानसिकता वाले समाज हैं जहाँ लड़कों और लड़कियों में फर्क किया जाता है. यहाँ लड़की होकर पैदा होना आसान नहीं है और पैदा होने के बाद एक औरत के रूप में जिंदा रखन भी उतना हीचुनौतीपूर्ण है. यहाँ बेटी पैदा होने पर अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों की ख़ुशी काफूर हो जाती है. नयी तकनीक ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है अब गर्भ में बेटी हैया बेटा यह पता करने के लिए कि किसी ज्योतिष या बाबा के पास नहीं जाना पड़ता है इसके लिए अस्पताल और डाक्टर हैं जिनके पास आधुनिक मशीनें है जिनसे भ्रूण का लिंग बताने में कभी चूक नहीं होती है. आज तकनीक ने अजन्मे बच्चे की लिंग जांच करवा कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने को बहुत आसान बना दिया है.


भारतीय समाज इस आसानी का भरपूर फायदा उठा रहा है, समाज में लिंग अनुपात संतुलन लगातार बिगड़ रहा है. वर्ष 1961 से लेकर 2011 तक की जनगणना पर नजर डालें तो यह बात साफ तौर पर उभर कर सामने आती है कि 0-6 वर्ष आयु समूह के बाल लिंगानुपात में 1961 से लगातार गिरावट हुई है पिछले 50 सालों में बाल लिंगानुपात में 63 पाइन्ट की गिरावट दर्ज की गयी है. लेकिन पिछले दशक के दौरान इसमें सांसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गयी है  वर्ष 2001 की जनगणना में जहाँ छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों में प्रति एक हजार बालक पर बालिकाओं की संख्या 927 थी लेकिन  2011 की जनगणना में यह घटकर कर 914 (पिछले दशक से -1.40 प्रतिशत कम) हो गया है. ध्यान देने वाली बात यह है कि अब तक की हुई सभी जनगणनाओं में यह अनुपात न्यून्तम है.

भारत में हर राज्य की अपनी सामाजिक,सांस्कृतिक, आर्थिक पहचान है जो कि अन्य राज्य से अलग है  इसी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक विभिन्नता के कारण हम देखते हैं कि एक ही देश में बाल लिगानुपात की स्थिति अलग अलग हैं. राज्यों की बात करें तो देश के सबसे निम्नत्म बाल लिंगानुपात वाले तीन राज्य हरियाणा (830), पंजाब (846), जम्मू कष्मीर (859) हैं जबकि सबसे ज्यादा बाल लिंगानुपात वाले तीन राज्य मिजोरम (971),मेधालय (970), अंड़मान निकोबार (966) हैं.  देश में सबसे कम बाल लिगानुपात हरियाणा के झझर में 774 है जम्मू कष्मीर में 2001की तुलना में 2011 में सबसे ज्यादा गिरावट -8.71 प्रतिशत देखी गई है. वही दादर नागर हवेली तथा लक्ष्यद्वीप में 2001 की तुलना में 2011 में यह गिरावट क्रमषः -5.62 तथा -5.32 है जो कि एक दशक में बाल लिगानुपात में गंभीर गिरावट के मामले में देश में दूसरे तथा तीसरे स्थान पर हैं.

भारत में लगातार घटते जा रहे इस बाल लिंगानुपात के कारण को गंभीरता देखने और समझने की जरुरत है. जाहिर है लिंगानुपात कम होने का कारण प्राकृतिक नही है और ना ही इसका सम्बन्ध संबंध अमीरी या गरीबी से है. यह एक मानव निर्मत समस्या है जो  कमोबेश देश के सभी हिस्सों,जातियों,वर्गो और समुदायों में व्याप्त है. भारतीय समाज में गहरायी तक व्याप्त लड़कियों के प्रति नजरिया, पितृसत्तात्मक सोच, सांस्कृतिक व्यवहार, पूर्वागृह, सामाजिक-आर्थिक दबाव, असुरक्षा, आधुनिक तकनीक का गलत इस्तेमाल इस समस्या के प्रमुख कारण हैं.

मौजूदा समय में लिंगानुपात के घटने के प्रमुख कारणों में से एक कारण चयनात्‍मक गर्भपात के आसान विकल्प के रूप में उपलब्धता भी है . वैसे तो अल्ट्रासाउंड,एम्नियोसिंटेसिस इत्यादि तकनीकों की खोज गर्भ में भ्रुण की विकृतियों की जांच के लिए की गयी थी लेकिन समाज के पितृसत्तात्मक सोच के चलते धीरे धीरे इसका इस्तेमाल भ्र्रूण का लिंग पता करने तथा अगर लड़की हो तो उसका गर्भपात करने में किया जाने लगा. इस आधुनिक तकनीक से पहले भी बालिकाओं को अन्य पारम्परिक तरीकों जैसे जहर देना,गला घोटना, जमीन में गाड़ देना, नमक-अफीम-पुराना गुड़ या पपीते के बीज देकर इत्यादि का उपयोग कर मार दिया जाता था.

साल 2003 में  समाज में घटती महिलाओं की  घटती संख्या पर संख्या पर मातृभूमि: ए नेशन विदाउट वूमेन नाम से एक फिम आई थी इसमें एक ऐसे भविष्य के गाँव को दर्शाया गया था जहाँ सालों  से चली महिला शिशु हत्या के चलते अब यहाँ एक भी लड़की या महिला ज़िंदा नहीं है. दरअस्ल यह भविष्य की चेतावनी देने वाली फिल्म  थी जिसमें बताया गया था कि बेटियों के प्रति अनचाहे रुख से स्थिति कितनी भयावह हो सकती है. आज इस फिल्म की कई चेतावनियाँ हकीकत बन कर हमारे सामने हैं. हमारे देश के कई हिस्सों में  लड़कियों की लगातार गिरती संख्य के कारण दुल्हनों का खरीद-फरोख्त हो रहा है, बड़ी संख्या में लड़कों को कुंवारा रहना पड़ रहा है और दुसरे राज्यों से बहुयें लानी पड़ रही है. 

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिंगानुपात को बढ़ाने के लिए अनेको प्रयास किये गये है लेकिन स्थिति सुधरने बिगड़ती ही गयी है. सुप्रीमकोर्ट द्वारा  भी इस दिशा में लगातार चिंता जतायी जाती रही है पिछले दिनों सुप्रीमकोर्ट ने  भ्रूणलिंग जांच से जुड़े विज्ञापन और कंटेंट दिखाने पर सुप्रीम कोर्ट ने गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसी सर्च इंजन कंपनियों को यह कहते हुए फटकार लगाई "गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां मुनाफा कमाना तो जानती हैं, लेकिन भारतीय कानून की कद्र नहीं करतीं.'कोर्ट ने तीनों सर्च इंजन को अपने यहां आंतरिक विशेषज्ञ समिति बनाने के निर्देश दिए हैं जो समिति भ्रूण लिंग जांच से जुड़े आपत्तिजनक शब्द पहचानकर उससे जुड़े कंटेंट ब्लॉक करेगी.  

लेकिन अनुभव बताते है कि कानून,योजना और सुप्रीमकोर्ट के प्रयास जरूरी तो हैं लेकिन सिर्फ यहीं काफी नहीं हैं  इस समस्या के कारण सामाजिक स्तर के हैं जैसे समाज का पितृसत्तात्मक मानसिकता, लड़के की चाह, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लिंग आधारित गर्भपात, कन्या शिशु की देखभाल ना करना,दहेज इत्यादी. यह जटिल और चुनौतीपूर्ण समस्यायें है. लेकिन समाज और सरकार को इन समस्याओं पर प्राथमिकता के साथ चोट करने की जरुरत है.


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जावेद अनीस 
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रसोई गैस कीमत वृद्धि पर विपक्षी दलों का लोकसभा से बहिगर्मन

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नयी दिल्ली 10 मार्च, कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के कई सदस्यों ने रसाई गैस कीमतों में हाल में की गयी वृद्धि का मामला आज लोकसभा में उठाया और बढी दर वापस लेने की मांग की लेकिन इस पर सरकार के जवाब से असंतुष्ठ होकर उन्होंने सदन से बहिर्गमन कर दिया। सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने शून्य काल में यह मामला उठाया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटने के बावजूद सरकार ने पिछले दिनों रसोई गैस की दर में 86 रुपए की बढोतरी की है। उन्होंने इस बढोतरी को सरकार का जनविरोधी कदम बताया और कहां कि इस बारे में सरकार सदन में वक्तव्य दे और बढी हुई कीमत वापस ले। इस पर तृणमूल कांग्रेस, वाम दलों तथा अन्य कई दलों के सदस्यों ने कांग्रेस के सदस्यों के साथ खडे होकर सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया और उससे कई सवाल किए। 



संसदयी कार्यमंत्री अनंत कुमार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि शून्यकाल में लम्बी चर्चा के मामले नही उठाए जाने चाहिए। इस पर विपक्षी सदस्यों ने हंगामा किया तो उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में बढोतरी हुई है इसी के कारण सरकार को रसोई गैस की कीमतें बढानी पडी है। उन्होंने कहा कि रसोई गैस की कीमतों में दो रुपए हर माह बढाने का फैसला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने लिया था और उसी के अनुसार इसकी कीमत बढाई गयी है। इस पर कांग्रेस सहित विपक्ष के सदस्य हंगामा करने लगे। उन्होंने सरकार पर लोगों को धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि गैर सब्सिडी वाले सिलेंडर की बढी हुई कीमतों को वापस लिया जाना चाहिए। श्री कुमार ने गैस में बढोतरी को मामूली बताया तो विपक्षी सदस्य इससे उत्तेजित हो गए और हंगामा करते हुए सदन से बाहर चले गए।

‘देश में एक दिन को स्पोर्टस डे के रूप में मनाया जाये : विजय गोयल

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नई दिल्ली, मार्च। ‘देश में एक दिन को स्पोर्टस डे के रूप में मनाया जाये और इसके लिए मैंने प्रधानमंत्री  मोदी जी से अनुरोध भी किया है। जिसका नारा फिट रहों इंडिया के रूप में दिया। यह बात केन्द्रिय खेल मंत्री विजय गोयल ने एमपीएल. 2017 के लोगॉ का अनावरण के मौके पर कहा। प्रैस क्लब आफ इंडिया में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान इंडियन मीडिया वेल्फेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव निशाना, जानेमाने भजन गायक कुमार विशु और लीग में भाग लेने वाली टीमों के कप्तान भी उपस्थित थे। विजय गोयल ने कहा कि ‘खेलमंत्री प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है, खेल। भविष्य में खेल मंत्रालय भी ऐसी ही योजनाओं को आगे ला रहा है। 


एमपीएल. 2017 के संयोजक श्री राजीव निशाना ने केंद्रीय खेलमंत्री श्री विजय गोयल को बताया कि मीडियाकर्मी हमेशा ही व्यस्त रहते है। ऐसे में उनको अपने जीवन के पल में कुछ समय खेल के लिए निकालने का समय मिल सके, इसी को ध्यान में रखते हुए एमपीएल 2017 का आयोजन 25 मार्च से किया जा रहा है। इस लीग में 16 टीमों को शामिल किया गया है। जिसमें इलैक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया की टीमें शामिल है। टूर्नामेंट के सभी मुकाबले शनिवार और रविवार को यमुना स्पोर्टस काम्पलैक्स पर किया जाएगा। जिसका फाइनल मुकाबला 16 अप्रैल को खेला जाएगा।  इनके अलावा मीडिया से जुडे पत्रकारों सहित संस्था के उपाध्यक्ष मिताली चंदोला, महासचिव सुनील बाल्यान,  सचिव अमित गांधी, अमित शर्मा, विजय शर्मा , महेश ढोंढ़ीयाल, के अलावा रविंदर कुमार आदि मौजूद थे।

कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ जमानती वारंट जारी

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नयी दिल्ली 10 मार्च, उच्चतम न्यायालय ने अदालत की अवमानना के मामले में कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सीएस कर्णन के खिलाफ आज जमानती वारंट जारी किया। 

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता में सात न्यायाधीशों वाली पीठ ने न्यायमूर्ति कर्णन के मामले की सुनावाई करते हुए उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है। पीठ ने न्यायमूर्ति कर्णन को दस हजार रुपए का पर्सनल बेल बॉन्ड भी भरने का आदेश दिया है।

भारत-चीन युद्ध की हैण्डरसन ब्रुक्स रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग

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नयी दिल्ली 10 मार्च, लोकसभा में आज मांग की गयी कि 1962 के भारत चीन युद्ध के कारणों की तहकीकात के लिये ब्रिटिश सैन्य अधिकारी हैण्डरसन ब्रुक्स की चर्चित रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाये ताकि 55 साल पहले एक “अहंकारी मंत्री” की गलतियों से सबक हासिल किया जा सके। बीजू जनता दल (बीजद) के नेता भर्तृहरि मेहताब ने यहां शून्यकाल में यह मांग उठायी। श्री मेहताब ने कहा कि हाल ही में एक उच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह नाथूराम गोडसे के उस बयान को गोपनीयता की श्रेणी से बाहर करके सार्वजनिक करे ताकि लोगों को उसके विचारों के बारे में पता चल सके। 



उन्होंने कहा कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है। ऐसा ही एक दस्तावेज 1962 के युद्ध के कारणों की पड़ताल करने वाली हैण्डरसन ब्रुक्स की रिपोर्ट भी है। जिसे 1963 में अध्ययन के बाद तैयार किया गया था। इसमें भारत-चीन युद्ध के कारणों की समीक्षा की गयी है। इस “हिमालयन ब्लन्डर” नामक रिपोर्ट में तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के कृष्णमेनन की गलतियों को इंगित किया गया है। उन्होंने कहा कि इतिहास हमें पिछली गलतियों की जानकारी देकर एक सबक सिखाता है और देश को ऐसे सबक की जरूरत है। इससे हम जान सकेंगे कि एक “अहंकारी मंत्री” ने क्या गलतियां कीं।

विशेष : मोदी को सरनानंद का ‘विश्वगुरु‘ बनने का आर्शीवाद

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समग्र भारत में 21वीं सदी के प्रारम्भ से ही आध्यात्मिक अनुष्ठान की चेतना का विशिष्ट वातावरण खड़ा हुआ है। हमारी संत परम्परा और संप्रदायों की आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा इस सामूहिक आध्यात्म ऊर्जा की शक्ति से भारत विश्वगुरु बनेगा। स्वतंत्रता आंदोलन में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 तक के 90 वर्षों के दौरान संत शक्ति ने समाज में भक्ति आंदोलन और आध्यात्मिक अधिष्ठानों से भारत माता की मुक्ति के लिए मंच उपलब्ध करवाकर समाज की चेतना को जागृत किया था। अब भारत विश्व गुरु बने, इसके लिए संत और मनीषी देश में विभिन्न प्रकार के आध्यात्मिक अनुष्ठानों से सामूहिक समाज ऊर्जा को प्रेरित कर रहे हैं, जो भारत की आध्यात्मिक सर्वोपरिता को विश्व में स्थापित करने का आधार है 





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तीनों लोकों में न्यारी एवं भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी काशी में भी संत परम्परा का विशेष महत्व है। वि तीनों लोकों में न्यारी एवं भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी काशी में संत परम्परा की भी विशेषता रही है। विश्व कल्याण एवं भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे, इसके लिए संतों की तरफ से धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं। इसी कड़ी में बनारस आएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी चुनावी संग्राम से कुछ समय निकालकर सुप्रसिद्ध गढ़वाघाट आश्रम पहुंचे, जहां संत श्री स्वामी सरनानंद जी महराज से मुलाकत कर उनसे गुप्तगू कर दीक्षा ली। इस दौरान स्वामी शरणानंद ने मोदी को आर्शीवाद देते हुए कहा, मैं चाहता हूं कि मोदी के नेतृत्व में भारत विश्वगुरु बने। क्योंकि मोदी इसके लिए लगातार प्रयासरत हैं। शरणानंद ने मोदी को प्रतीक चिह्न भी भेंट की। बता दें गढ़वाघाट आश्रम के स्वामी सरनानंद का संत परम्परा में सेवाभावी ही मुख्य रहा है, और इसी से समाज को सेवा के संस्कार प्राप्त होते रहे हैं। उन्होंने सेवा से आध्यात्मिक शक्ति को दिव्यता प्रदान की है और प्रेरणादायी संतों का नेतृत्व भी करते रहते हैं। गढ़वाघाट आश्रम की ओर से बनारस समते मुंबई, कोलकाता, हरिद्वार, मिर्जापुर, भदोही समेत यूपी और भारत के कई जिलों की धरती पर सद्शक्ति का विशिष्ट प्रभाव जिसने आध्यात्म की ऊर्जा को निरन्तर जीवंत बनाया है। स्वामी सरनानंद चाहते है भारत विश्वगुरु बनें। इस ओर मोदी के प्रयासों से वह प्रभावित भी हैं। जब मोदी के आश्रम पहुंचनें के कार्यक्रम की जानकारी हुई, तो समझ गए एक न एक दिन मोदी के नेतृत्व में भारत विश्वगुरु बनकर रहेगा। 

स्वामी सरनानंद का कहना है कि एक समय था जब भारत को विश्वगुरु कहा व माना जाता था। धीरे धीरे समय बदलता गया या फिर हम यूं कहें की भारत माता की वीर संताने अपनी मातृभूमि के प्रति उदासीन होती चली गयी और परिणामस्वरूप भारत पर पहले मुगलों ने और फिर बाद में अंग्रेजों ने जी भरकर जुल्म ढहाया और खूब लूटा और यंहा तक लूटा की भारत का पीतल निकाल दिया। मतलब भारत की समृधि समाप्त होने के कगार पर है। मैंने बचपन से एक कहावत सुनी है कि जिसका भी दिवाला निकला हो उसके लिए “पीतल निकल गया” जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है। लेकिन हिन्‍दुस्‍तान सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से विश्व का सबसे समृद्ध देश है। देर भले ही हो जाए, लेकिन एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब भारत फिर विश्व गुरु बनेगा। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सार्थक प्रयास जरुर एक दिन कामयाब होंगे। वह कहते है कि हम महाबलि नहीं बनना चाहते। विश्व गुरु बनना चाहते हैं, जैसे कि पहले थे। उन्होंने तर्क दिया कि महाबलि के पास खड़े होने में भी दूसरा डरेगा, किंतु गुरु सान्निध्य पाकर उनसे प्रेरित होगा, आनंदित होगा इसलिए भारत एक बार फिर विश्व गुरु बनेगा। आर्थिक शक्ति बनेगा। वैसे भी भारतीय संस्कृति बहुत समृद्ध है। यह एक बार फिर भारत को विश्व गुरु की पदवी तक ले जाएगी। यह भारत के ही ऋषि-मुनि थे जिन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’का संदेश दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक केंद्र है और अध्यात्म आम इबादत से कहीं ऊपर की सोच का विषय है। 

अफसोस है कि देश को आजाद हुए 70 साल हो गए लेकिन आज भी भारत में बहुत से ऐसे गांव हैं जंहा पर बिजली और पीने के पानी के भी समस्या है। कुछ आदिवासी क्षेत्रों में तो आज भी लोगों को केवल एक समय का ही भोजन मिल पाता है। अभी भी भूखे सोते हैं, पीने के लिए स्वच्छ पानी को तरसते हैं। आज भी सरकारी स्कूलों में शौचालय नहीं हैं। बालिकाओं को इधर उधर छिपकर लघुशंका आदि के लिए जाना पड़ता है। सरकारी स्कूलों में पीने का पानी नहीं है। सार्वजनिक स्थानों पर मूत्रालय नहीं है। लेकिन मोदी जी जब से प्रधानमंत्री बने हैं तो सरकारी अधिकारी समय पर कार्यालय आने लगे हैं। श्रीमद भगवत गीता में आया है “स्वः धर्मः निधनं श्रेयः पर धर्मः भयावहः” यानि अपने धर्मं में मरना श्रेष्ठ है और दुसरे का धर्म भय देने वाला है। सभी का धर्म है  अपने-अपने दायित्वों का निवर्हन ईमानदारी से करें। अफसोस है कि वन्देमातरम एवं तिरंगे का अपमान करने वालों को दण्ड देने की बजाय लोग उनकी पैरोकारी में जुट जाते हैं। लाखों के घपले-घोटाले, रिश्वतखोरी थम नहीं पा रहा है। उग्रवाद व आतंकवाद का खात्मा नहीं हो पा रहा है। लेकिन इसके सफाएं के लिए मोदी प्रयासरत है, जो अच्छे संकेत हैं। 

ऐसा इसलिए, क्योंकि जिस वक्त यूरोप में घुमक्कड़ जातियां बस्तियां बनाना सीख रही थी, उस समय भारत में कृषि, भवन निर्माण, धातु विज्ञान, वस्त्र निर्माण, परिवहन व्यवस्था आदि क्षेत्र उन्नति दशा में विकसित हो चुके थे। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि स्थानों के पुरातात्विक उत्खनन इस बात के गवाह है कि ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से सिंधु घाटी की सभ्यता अत्यंत विकसित थी। लोग सुनियोजित भवनों में रहते थे इनमे भवन, सड़कें, नालियां, स्नानागार, कोठार (अन्न रखने की जगह) पक्की ईंटों से बने मकान, जहाजों द्वारा यात्रा, माप तौल का ज्ञान, उन्नति कृषि, खनन विद्या, रत्नों का ज्ञान और काटने और संवारने की समझ, सोने चांदी के आभूषण, कांसे के हथियार, सूती ऊनी वस्त्र निर्माण की कला में निपुण थे। ईशा से 200 वर्ष पूर्व से लेकर ईशा के 11वी सदी तक सनातनी वैज्ञारनिकों ने उन्नत शोध व अविष्कार कर कई कीर्तिमान बनाये। इसमें आर्यभट्ट, वराहमिहिर, बोधायन, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन, कणाद जैसे सनातनी वैज्ञानिकों प्रमुख हैं। खगोल विज्ञान का ज्ञान केवल हमारे पास था जिससे 27 नक्षत्रों के साथ वर्ष, महीने, दिन ‘काल’ की गणना सटीक आज भी विद्वमान है। वैदिक ऋषियों का चिकित्सा विज्ञान का दृष्टिकोण पूर्णतयः वैज्ञानिक था। आज के दृष्टिकोण में देखा जाये तो उन्नति और काम मूल्य पर चिकित्सा भारत में ही उपलब्ध है। जब यूरोपियन चड्डी पहनना सीख रहे थे तब हमारे देश में स्नायुतंत्र और सुषुम्ना (रीढ़ की हड्डी) में सिद्धहस्त थे। उस समय शव विच्छेदन की प्रक्रिया भी जानते थे। प्रमाण मिलते है कि मिश्र, रोम, अरब देशों में भारतीय जड़ी बूटी का प्रयोग बहुतायत से होता था। यूनानी चिकित्सा 11वी सदी से शुरू हुआ था जब भारतीय चिकित्सा पूर्णतयः विकसित हो चुकी थी। नागार्जुन के साथ रसायन शास्त्री वृंद ने औषधि रसायन की खोज कर ली थी। 

ईसा पूर्व चैथी शताब्दी से छटवीं शताब्दी वैज्ञानिक प्रगति का स्वर्णकाल था जिसमे धातुकर्म, भौतिकी, रसायन शास्त्र पूर्ण विकास हुआ। विशालकाय प्रस्तर स्तम्भो का जैसे महरौली का दिल्ली के पास 1700 वर्षो से जंकविहीन शान से खड़ा है। कणाद ऋषि केे छटवीं ईशा पूर्व ही परमाणुओं की रचना, प्रवत्ति, प्रकारों के 44 से अधिक ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है। खगोल विज्ञान के अधुनिक काल के वैज्ञानिक कॉपरनिकस से एक हजार साल पूर्व भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने पृथ्वी गोल है और एक धुरी पर घूमती है पुष्टि कर चुके थे और सूर्य चंद्र ग्रहण का सही सिद्धान्त का प्रतिपालन किया था। ईशा से पूर्व ही ‘वेदांग ज्योतिषी’ के अनुसार यज्ञ ही नही ग्रहों की स्तिथि से कृषि की आने वाली स्तिथि का अंदाजा लगा लेते थे। महाभारत में भी तो चंद्र ग्रहण औ सूर्य ग्रहण की चर्चा है। खगोल विज्ञानी श्री वराहमिहिर ने गृत्वकर्षण के सिद्धांत की खोज कर ली थी। सूर्य और चंद्र से पृथ्वी की दुरी तो हमारे वेदों में भी मिल जाती है। शतरंज के खेल की खोज भारत मे हुई थी। भारत ने अपने इतिहास में किसी भी देश पर कब्जा नहीं किया। अमेरिका के जेमोलोजिकल संस्थान के अनुसार 1896 तक भारत ही केवल हीरो का स्रोत था। भारत 17वीं सदी तक धरती पर सबसे अमीर देश था इसलिए यह सोने की चीड़िया कहलाता था। भारत में हीं संख्या पद्धति का आविष्कार हुआ और आर्यभट्ट ने शून्य की कल्पना की। नाविक विद्दा की खोज 6000 पूर्व भारत में सिन्ध नदी में हुई थी। विश्व का पहला विश्वविद्दालय तक्षशिला 700 बीसी में भारत में स्थापित किया गया था। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है, यह भारत ने ही सिद्ध किया है। विश्व का सबसे पुराना पुस्तक “वेद” भारत में है। मानव जाती, सभ्यता संस्कृति, विज्ञान, वायुयान का आविष्कार, पायथागोरस परिमेय का सूत्र, बैटरी निर्माण, व्याकरण की रचना, लोकतंत्र का जन्म भारत में ही हुआ है। लेकिन कुछ कारणों एवं इच्छाशक्ति के अभाव में भारत अन्य देशों के मुकाबले लगातार पिछड़ता जा रहा हैं। अब एक बार फिर भारत को विकसित कर आगे बढ़ाना हैं। 





(सुरेश गांधी)

बिहार : सरकारी कारनामों से परेशान हैं निषाद विकास संघ

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  • राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश साहनी हैं 4 दिनों से आमरण अनशन पर, 4 अनशनकारियों की हालत खराब

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पटना। आजकल आंदोलन स्थल है गर्दनीबाग। आंदोलन आते हैं  और आंदोलन करके चल जाते हैं। आंदोलनकारी मांग करते हैं। मांग नहीं पूर्ण होने पर डटे रहते हैं। गांधी, विनोबा, जयप्रकाश और पी0व्ही0राजगोपाल के बताये मार्ग पर अंहिसक आंदोलन करते हैं। निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश साहनी हैं। अभी 5 मार्च से ‘सन आॅफ मल्लाह’ मुकेश साहनी आमरण अनशन पर हैं। निषाद विकास संघ के बैनर तले जारी आमरण अनशन करने वालों की 9 सूत्री मांग है। 4 दिनों से जारी 4 अनशनकारियों की हालत खराब। आंदोलनकारियों ने सीएम नीतीश कुमार को मांग सूत्री पेश किये हैं। विषय है निषाद समाज की समस्याओं और मांगों पर अविलम्ब ध्यान देकर निदान किया जाये। बताया गया कि 4 सितम्बर,2015 को निषाद विकास संघ द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण प्रदान करने के हेतु राजभवन मार्च के दौरान बिहार सरकार द्वारा बर्बरता से निषादों पर लाठीचार्ज किया गया। तदुपरांत राजनीतिक लाभ लेने के लिए 24 घंटों के अंदर ही बिहार सरकार ने राज्य में निषादों को आरक्षण देने की अनुशंसा केंद्र सरकार से की गयी। अनुशंसा किए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार से इथनोग्राफी रिपोर्ट ( नृवंशविज्ञान रिपोर्ट )की मांग की गई। परन्तु डेढ़ साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा अबतक केंद्र सरकार को इथनोग्राफी रिपोर्ट नहीं भेजी गई है।


निषादों पर हुए लाठीचार्ज की जांच के लिए बनाई गई कमिटी के रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए निषाद समाज की मांगों को पूरा करने का आग्रह किया गया है।1. राज्य सरकार केंद्र को निषाद समाज के अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण के लिए मांगी गई इथनोग्राफी रिपोर्ट जल्द से जल्द भेजे। साथ ही रिपोर्ट भेजने से पहले निषाद विकास संघ के पदाधिकारी शिववचन प्रसाद ( वंश विज्ञानी) से परामर्श लिया जाए। 2. राज्य सरकार पत्रांक 67 (11) दिनांक 05.09.2015 द्वारा अनुसूचित जनजाति घोषित करने हेतु केंद्र सरकार को भेजी गई निषाद समाज के सभी उपजातियों को विलोपित कर इन्हें बिहार हेतु अधिसूचित अत्यंत पिछड़ा वर्गों की सूची अनुसूची (1) ( मल्लाह /निषाद (क्रमांक 07, 21,28,36,52,64,67,73)एवं क्रमांक 42 को विलोपित कर क्रमांक ( मल्लाह/निषाद( केवट, गोड़ी,चांय,तीयर,बेलदार,बिंद,मोरियारी,वनपर) एवं नोनिया जाति को भी समावेशित किया जाय। 3. मत्स्य निदेशक निशात अहमद को निदेशक पद से हटाकर आईएएस निदेशक नियुक्त किया जाय। 4. मत्स्यजीवि सहकारी समिति में लागू आरक्षण नीति को वापस लिया जाय एवं गैर मछुआरों को समिति से बाहर निकालते हुए परंपरागत मछुआरों को सूची जारी की जाए। 5. मत्स्यजीवि सरकारी समिति चुनाव 2017 में ली जा रही निर्वाचन व्यय को निर्वाचन से मुक्त किया जाए। 6.मछुआरों के साथ जलकरों की बंदोबस्ती 7 सालों के लिए है इसलिए मत्स्यजीवि सहकारी समिति का निर्वाचन हर 7 सालों पर कराई जाए। 7. पंचायत स्तर पर मत्स्य/मीन मित्र की बहाली की जाए। 8. उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज पर बिहार सरकार भी निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करने हेतु केंद्र सरकार को पुनः अनुशंसा भेजे, चूंकि बिहार सरकार भी यह मानती है कि निषाद समाज को एससी या एसटी आरक्षण मिलनी चाहिए। अतः राज्य सरकार भी अपने स्तर पर मजबूती से निषादों को आरक्षण दिलाने का प्रयास करें। 9. जलकरों का सीमांकन,अतिक्रमण मुक्त एवं जीर्णोद्धार कर जलक्षेत्र के अनुपात में मछुआरों को ऋण उपलब्ध कराया जाए। 

स्वास्थ्य विभाग की ओर से नवनियुक्त ए.एन.एम.को वेतन नहीं

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पटना। जब डाक्टर साहब का मोबाइल से रिंग टॉन बजने लगा। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, धनरूआ में हड़कंप मच गया। आपलोग 2 ए.एन.एम.को 14 माह से वेतन नहीं दे रहे हैं। वेतन नहीं मिलने से परिवार का हाल क्या हो गया है। मालूम है? उसमें सुधार करके जल्द से जल्द वेतन भुगतान करें। कोई 17 नवनियुक्त ए.एन.एम. बहाल हुए है प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,धनरूआ में। मजे की बात है कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से नवनियुक्त ए.एन.एम.का वेतन आवंटित नहीं किया। इन ए.एन. एम. को प्रमाण-पत्रों की जांच के एवज में 3 हजार रू0 डकार लिया गया। सभी तरह की जांच करने के बाद वेतन देने का प्रयास किया गया। चूंकि बहाल 17 ए.एन.एम. को वेतन देने के लिए तरकीब निकाली गयी। ऑल्ड 19 ए.एन.एम.के नाम से आवंटित राशि से ही 17 ए.एन.एम. का वेतन देने का निश्चय किया गया। इनसे 5-5 हजार रू0 बटोरा गया। तब जाकर 7 माह का वेतन भुगतान किया गया। दुर्भाग्य से 2 ए.एन.एम.का भुगतान नहीं हो सका। कोषागार वालों ने गलती सामने ला दिए थे। 


पहले से ही 7 माह से कार्यरत 2 ए.एन.एम. का खामियों को दूर करने में 7 माह लग गया। इस तरह 2 ए.एन.एम. को 14 माह से वेतन भुगतान नहीं हो रहा है। 14 माह से वेतन भुगतान नहीं होने से परिजन परेशान हो गए। इन समस्याओं के आलोक में प्रभावित 2 ए.एन.एम. के परिजन आखिरकार गर्दनीबाग में स्थित असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी के कार्यालय आ धमके और आपबीती बयान कर दिए। बताते चले कि आजकल पटना जिले के असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी हैं डाक्टर गिरीन्द्र शेखर सिंह। 2 नवनियुक्त ए.एन.एम. के परिजनों ने शिकायत किये कि कार्यरत 2 ए.एन.एम. को 14 माह से वेतन नहीं मिल रहा है। इस बात की जानकारी लेने के बाद डाक्टर सिंह ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,धनरूआ में फोन किया। उनको बताया गया कि कुछ खामियां सामने आने से भुगतान नहीं हो पा रहा है। अब उक्त खामियों को दूर कर लिया गया है। कुरियर को कोषागार भेजा गया है। इस पर डाक्टर गिरीन्द्र शेखर सिंह ने कहा कि जो भी राशि हो उतने में ही वेतन भुगतान सुनिश्चित करें। जानकारी के अनुसार 2 सप्ताह के अंदर वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू है। फिलवक्त 19 ऑल्ड और 17 न्यू ए.एन.एम. का वेतन ऑन लाइन किया जा रहा है। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर महिला कार्यकर्ताओं को जानकारी दी गयी।

बिहार : पर दवा नहीं रहने की बात कहकर भगा दिया

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पटना। पटना नगर निगम के नूतन राजधानी अंचल अन्तर्गत वार्ड नम्बर-1 में है दीघा मुसहरी। यहां पर महादलित मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। यहां पर रमण मांझी रहते हैं। महादलित रमण मांझी के पुत्र को देखने से पता चलता है कि वह कुष्ठ बीमारी से पीड़ित है। कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केन्द्र में रोग दिखाने गया था। वहां पर दवा नहीं रहने की बात कहकर भगा दिया गया। इसके कारण रोग का निदान नहीं हो सका। दीघा मुसहरी में ही एक कुष्ठ रोगी रहता है। रोग के कारण बेहाल है। शरीर पर काफी असर पड़ने अंग खराब होने लगी है। उसे गहन इलाज की जरूरत है। फिजियोथेरापि की भी जरूरत है। अभी न दवा और न ही फिजियोथेरापि ही करवाता है। उसने संभावित रोगी को चमड़ा वार्ड में ले जाकर दिखला देने पर सहमति जाहिर किया है। 

बिहार : अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय में लालफीताशाही के शिकार फाइल

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  • 8 माह से बढ़ने का नाम नहीं

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पटना। अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय में लालफीताशाही के शिकार है फाइल। विधवा शनिचरी देवी द्वारा मुआवजा की मांग की गयी है। विभिन्न जगहों से सफर करने के बाद फाइल 7 जुलाई,2016 को अनुमंडल पदाधिकारी,सदर,पटना में आयी। कार्यालय में लिपिक पद पर कार्यशाील हैं कौशल्या देवी। काफी मुश्किल से लिपिक ने 7 माह के बाद फाइल की दर्शन कर सकीं। 22 फरवरी,2017 को लिपिक ने 1 सप्ताह के अंदर 1 मार्च को आकर कृत कार्य और प्रेषित कार्यालय का पत्रांक प्राप्त करने को कही। 7 मार्च को जाने पर बताया गया कि फाइल अनुमंडल पदाधिकारी के पास प्रेषित है। 1 सप्ताह के बाद 14 मार्च को आकर जानकारी प्राप्त कर लें। मजे की बात है कि फाइल को बीडीओ कार्यालय में प्रेषित की जाएगी। पटना सदर,बीडीओ,कार्यलय के अधिकारी मौके पर जांच पड़ताल करने जाएंगे। तब फाइल को पुनः अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय में प्रेषित करेंगे। इसके बाद हिट एंड रन मामले पर मुआवजा तय किया जाएग। खैर, अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय में फिलवक्त 8 माह से फाइल बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही है। 


इधर मुआवजा प्राप्त करने वाले विधवा और उसके बच्चे बेहाल हैं। अपने सुअर के बखौरनुमा घर के द्वार पर बैठी है शनिचरी देवी। सड़क दुर्घटना में शनिचरी देवी का पतिदेव सोहन मांझी मर गये। पाटलिपुत्र थाना कांड संख्या-384/15 है। विधवा शनिचरी देवी को मुआवजा दिलवाने वाला आवेदन 07.07.2016 को ज्ञापांक 568/या0 पुलिस उपाधीक्षक,यातायात,तृतीय,पटना का कार्यालय से अनुमंडल पदाधिकारी,सदर,पटना तक पहुंच पाया। आगे की कार्रवाई के लिए अनुमंडल पदाधिकारी के पास फाइल अग्रसारित है। 8 माह के बाद भी फाइल आगे नहीं बढ़ पा रही है। इस तरह 449 दिनों के बाद भी विधवा शनिचरी देवी को मुआवजा के लिए इंतजार कर रही हैं। आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। ऐसे पावन दिवस 8 मार्च, 2017 को भी विधवा को न्याय नहीं मिला।

विक्टिम कम्पनसेशन स्कीम के तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकार की ओर से कुल 8 महिलाओं के बीच वितरित किये गए चेक

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अमरेन्द्र सुमन (दुमका)प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश-सह-अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकार, दुमका के प्रकोष्ठ में (विक्टिम कम्पनसेशन स्कीम) पीड़िता प्रतिकर स्कीम 2016 के तहत कुल आठ पीड़िताओं को सहायता राशि चेक के माध्यम से प्रदान किया गया। यह चेक नालसा नई दिल्ली व झालसा, रांची के पत्र के आलोक में जिला विधिक सेवा प्राधिकार, दुमका के तत्वावधान में दिया गया। इस अवसर पर फुलन्ति देवी को 1 लाख 30 हजार रुपये, गफुलन बीबी को 20 हजार रुपये, सुसेना बेसरा को 1 लाख रुपये, बृष्टि मंडल को 50 हजार रुपये, प्रमिला हांसदा को 20 हजार रुपये, सत्य नारायण यादव को 70 हजार रुपये, दुखनी देवी को 80 हजार रुपये व फुलमुनी सोरेन को 1 लाख रुपये का चेक प्रदान किया गया। दो पीड़िताओं को 2 लाख 30 हजार रुपया का चेक झालसा रांची में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश-सह-अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकार दुमका के द्वारा प्रदान किया गया। इस अवसर पर उपायुक्त-सह-उपाध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकार, दुमका राहुल कुमार सिन्हा, बिरेन्द्र प्रताप, प्रधान न्यायाधीश, कुटुम्ब न्यायालय दुमका, सीजेएम अमरेश कुमार, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकार दुमका एवं अन्य न्यायिक पदाधिकारीगण उपस्थित थे।

विकास कार्यों मे अधिकारी पूरी तत्परता बरतें : उपायुक्त

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अमरेन्द्र सुमन (दुमका), दुमका के उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा ने जिले के विकास कार्यो की प्रगति की समीक्षा करते हुये कहा कि अधिकारी विकास कार्यो में पूरी तत्परता दिखायें। उपायुक्त ने कहा कि गर्मी के मौसम में प्यास की आवष्यकता को आज महसूस कीजिये। पूरी तत्परता से चापाकल मरम्मति के कार्य मार्च की समाप्ति तक पूर्ण करें। गर्मी की प्रतीक्षा ना करें। उपायुक्त ने कहा कि शौचालय निर्माण और ओडीएफ केवल संरचना निर्माण नहीं है इसके उपयोग पर भी ध्यान दें। महिलाओं को इसके उपयोग की आदत के लिये जागरुक करें। यह भी ध्यान रखें कि शौचालय के लिये जल की उपलब्धता भी सुनिष्चित हो। उपायुक्त ने कहा कि सभी विद्यालय जीरो ड्रापआउट हों। विषेषकर बालिका षिक्षा पर ध्यान दें। विद्यालयों में शौचालय, चापाकल की उपलब्धता भी रहे। उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा ने कहा कि चेकडैम सहित सिंचाई की सभी योजनाओं पर एक दिन भी काम बन्द ना हो। उपायुक्त ग्रामीण सड़कों के निर्माण और रखरखाव की भी चर्चा की। दुमका के गांधी मैदान में स्टेडियम निर्माण की संभावना पर अनुमानित लागत तैयार की शीघ्र प्रस्ताव तैयार करने का निदेष भवन निर्माण को दिया। उपायुक्त ने कृषि, सड़क, मनरेगा, बागवानी, स्वास्थ्य आदि मामलों की भी समीक्षा की। उपायुक्त ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिये चल रहे फोकस एरिया डेवलपमेन्ट के कार्यो की भी समीक्षा की। बैठक में उपायुक्त दुमका राहुल कुमार सिन्हा, उप विकास आयुक्त शषि रंजन कुमार, वन प्रमण्डल पदाधिकारी अभिषेक कुमार, जिला योजना पदाधिकारी अजय कुमार, सिविल सर्जन विनोद साहा, जिला पंचायती राज पदाधिकारी षिव नरायण यादव एवं विभिन्न विभाग के तकनीकी पदाधिकारी आदि उपस्थित थे।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस में 3D प्रदर्शन के द्वारा किया साउथ अमेरिका के कल्चर का प्रदर्शन

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मुंबई - आईएनआईएफडी बांद्रा (इंटर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिज़ाईनिंग) के श्री विवेक धवन और दिशा धवन त्रिपाठी द्वारा "मेलेन्ज" आईएनआईआईएफडी  बांद्रा वार्षिक कॉलेज उत्सव का नेतृत्व किया। इस स्थल पर मैदान भर में फैले हजारों छात्र कलाकारों की रंगीन रूप, रचनात्मकता और ऊर्जा देखने मिली। "मेलेन्ज"में आईएनआईआईएफडी बांद्रा के छात्रों द्वारा अपने सभी रूपों में रचनात्मक कला का एक प्रदर्शन किया गया । शब्द "मेलेन्ज"जिसे "विभिन्न मिश्रण"के रूप में परिभाषित किया जाता है,  वास्तव में छात्रों के टैलेंट को दुनिया के सामने पेश करने के उद्देश्य से है। प्रदर्शन पर काम की गुणवत्ता कड़ी मेहनत और समर्पण छात्रों के लिए श्रेय थी, जैसे- पांच महाद्वीपों, रचनात्मक मूर्तिकार आदि का निर्माण। ब्राजील के 35 तथ्य, ऊनी धागे के माध्यम से तैयार किए गए देश के झंडे, अखबारों के माध्यम से तैयार किए गए कपड़े, बोतलों को प्रकाश के माध्यम से सजाए गए, सेलिब्रिटी ने दक्षिण अमेरिका को लकड़ी के कार्डबोर्ड, पसंदीदा खेल फुटबॉल में 3D प्रभाव से चित्रित किया। छात्रों ने एक पोला बीयर 5'5 फीट, लकड़ी का कोयला आदि से चित्रकारी बनाकर शीतकालीन विश्व अंटार्कटिका प्रदर्शित किया था। यूरोप संस्कृति साइकिल, स्ट्रीट लाइट, ट्रैवल थैग, नृत्य फॉर्म, क्रॉस टांका आदि के माध्यम से प्रदर्शित की गई थी।

  
दिशा धवन त्रिपाठी कहती  हैं, "यह उत्सव, मौलिक, तकनीकी और विकास कौशल को सिखाने का एक अवसर है, जबकि उनके और उनकी कला के बीच गहरा संबंध बनाते हैं। यह पेशेवर दुनिया में अपने कदम का हिस्सा है। यह एक प्रदर्शक, अभ्यास करने वाला कलाकार होने का अनुभव है वे अपने काम को स्थापित कर रहे हैं - यह उनके पेशेवर अनुभव का हिस्सा है जो उनके भविष्य में उनकी मदद करेगा  कला के प्रति प्यार छात्रों को शक्तिशाली और प्रतिभाशाली बनाती हैं| मै देश की हर महिला से कहना चाहूंगी कि मेहनत करें अपने काम को मन लगाकर करें, वेसे भी आज महिलाएं हर छेत्र में आगे बढ़ रही है। मेरे पिता ने मुझे हमेशा सपोर्ट किया है ।“

विवेक धवन कहते हैं, "हम रचनात्मक कला को काम करने के लिए तैयार करते हैं, जिससे युवा लोगों को अपने वायदा को बेहतर तरीके से बनाने के लिए व्यक्तिगत और व्यावसायिक कौशल विकसित करने में मदद करता है। रचनात्मकता उन्हें स्वयं को व्यक्त और भरोसा देती है। यह जांच और अन्वेषण की भावना बनाता है। कला के प्रति प्यार छात्रों को शक्तिशाली और प्रतिभाशाली बनाती  हैं| महिलाओं का सम्मान करता हूं वे आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है और बेटी दिशा धवन को हमेशा सपोर्ट करता रहूँगा ।“ 

विशेष आलेख : होली के रंगों का आध्यात्मिक महत्व

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होली भारत का एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक त्यौहार है। अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य का ईश्वर से संबंधित होना या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना है। इसलिए होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है। होली रंगों का त्यौहार है। रंग सिर्फ प्रकृति और चित्रों में ही नहीं हमारी आंतरिक ऊर्जा में भी छिपे होते हैं, जिसे हम आभामंडल कहते हंै। एक तरह से यही आभामंडल विभिन्न रंगों का समवाय है, संगठन है। हमारे जीवन पर रंगों का गहरा प्रभाव होता है, हमारा चिन्तन भी रंगों के सहयोग से ही होता है। हमारी गति भी रंगों के सहयोग से ही होती है। हमारा आभामंडल, जो सर्वाधिक शक्तिशाली होता है, वह भी रंगों की ही अनुकृति है। पहले आदमी की पचहान चमड़ी और रंग-रूप से होती थी। आज वैज्ञानिक दृष्टि इतनी विकसित हो गई कि अब पहचान त्वचा से नहीं, आभामंडल से होती है। होली का अवसर अध्यात्म के लोगों के लिये ज्यादा उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसलिये अध्यात्म एवं योग केे विशेषज्ञ विभिन्न रंगों के ध्यान एवं साधना के प्रयोगों से आभामंडल को सशक्त बनाते हैं। इस तरह होली कोरा आमोद-प्रमोद का ही नहीं, अध्यात्म का भी अनूठा पर्व है। 


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होली का त्यौहार एवं उससेे जुड़ी बसंत ऋतु दोनों ही पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। इस अवसर पर प्र्रकृति सारी खुशियां स्वयं में समेटकर दुलहन की तरह सजी-सवरी होती है। पुराने की विदाई होती है और नया आता है। पेड-पौधे भी इस ऋतु में नया परिधान धारण कर लेते हैं। बसंत का मतलब ही है नया। नया जोश, नई आशा, नया उल्लास और नयी प्रेरणा- यह बसंत का महत्वपूर्ण अवदान है और इसकी प्रस्तुति का बहाना है होली जैसा अनूठा एवं विलक्षण पर्व। मनुष्य भीतर से खुलता है वक्त का पारदर्शी टुकड़ा बनकर, सपने सजाता है और उनमें सचाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करता है। इसलिय होली को वास्तविक रूप में मनाने के लिये माहौल भी चाहिए और मन भी। तभी हम मन की गंदी परतों को उतार कर न केवल बाहरी बल्कि भीतर परिवेश को मजबूत बना सकते हैं।  होली पर रंगों की गहन साधना हमारी संवदेनाओं को भी उजली करती है। क्योंकि असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बाँटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है। लेकिन विडम्बना है कि आनंद, उल्लास और अध्यात्म के इस सबसे मुखर त्योहार को हमने कहाँ-से-कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है। कभी होली के चंग की हुंकार से जहाँ मन के रंजिश की गाँठें खुलती थीं, दूरियाँ सिमटती थीं वहाँ आज होली के हुड़दंग, अश्लील हरकतों और गंदे तथा हानिकारक पदार्थों के प्रयोग से भयाक्रांत डरे सहमे लोगों के मनों में होली का वास्तविक अर्थ गुम हो रहा है। होली के मोहक रंगों की फुहार से जहाँ प्यार, स्नेह और अपनत्व बिखरता था आज वहीं खतरनाक केमिकल, गुलाल और नकली रंगों से अनेक बीमारियाँ बढ़ रही हैं और मनों की दूरियाँ भी। हम होली कैसे खेलें? किसके साथ खेलें? और होली को कैसे अध्यात्म-संस्कृतिपरक बनाएँ? 

होली को आध्यात्मिक रंगों से खेलने की एक पूरी प्रक्रिया आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रणित प्रेक्षाध्यान पद्धति में उपलब्ध है। इसी प्रेक्षाध्यान के अंतर्गत लेश्या ध्यान कराया जाता है, जो रंगों का ध्यान है। होली पर प्रेक्षाध्यान के ऐसे विशेष ध्यान आयोजित होते हैं, जिनमें ध्यान के माध्यम से विभिन्न रंगों की होली खेली जाती है। बचपन में अपने पिताजी के साथ होली के अवसर पर मैंने ऐसे ही आध्यात्मिक रंगों से होली का अपूर्व एवं विलक्षण आनंद पाया जो आज तक मेरे स्मृति पटल पर तरोताजा है। यह तो स्पष्ट है कि रंगों से हमारे शरीर, मन, आवेगों, कषायों आदि का बहुत बड़ा संबंध है। शारीरिक स्वास्थ्य और बीमारी, मन का संतुलन और असंतुलन, आवेगों में कमी और वृद्धिµ ये सब इन प्रयत्नों पर निर्भर है कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं और किस प्रकार हम रंगों से अलगाव या संश्लेषण करते हैं। उदाहरणतः नीला रंग शरीर में कम होता है, तो क्रोध अधिक आता है, नीले रंग के ध्यान से इसकी पूर्ति हो जाने पर गुस्सा कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी होती है, तो अशांति बढ़ती है, लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञानतंतु निष्क्रिय बन जाते हैं। ज्योतिकेंद्र पर श्वेत रंग, दर्शन-केंद्र पर लाल रंग और ज्ञान-केंद्र पर पीले रंग का ध्यान करने से क्रमशः शांति, सक्रियता और ज्ञानतंतु की सक्रियता उपलब्ध होती है। होली के ध्यान में शरीर के विभिन्न अंगों पर विभिन्न रंगों का ध्यान कराया जाता है और इस तरह रंगों के ध्यान में गहराई से उतरकर हम विभिन्न रंगों से रंगे हुए लगने लगा।

लेश्या ध्यान रंगों का ध्यान है। इसमें हम निश्चित रंग को निश्चित चैतन्य-केंद्र पर देखने का प्रयत्न करते हैं। रंगों का साक्षात्कार करने के लिए विविध रंगों की जानकारी आवश्यक है। रंगों के हमें दो भेद करने होंगेµचमकते हुए (Bright)  यानी प्रकाश के रंग और अंधे (Dull)  यानी अंधकार के रंग। अंधकार का काला, नीला और कापोत रंग अप्रशस्त है। किंतु प्रकाश का काला, नीला और कापोत रंग अप्रशस्त नहीं है। इसी प्रकार अंधकार का लाल, पीला और श्वेत रंग प्रशस्त नहीं है और प्रकाश का लाल, पीला और श्वेत रंग प्रशस्त है। ध्यान में जिन रंगों को हमें देखना है, वे प्रकाश के यानी चमकते हुए होने चाहिए, अंधकार के यानी अंधे नहीं। आचार्य श्री महाप्रज्ञ इसे अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जब व्यक्ति का चरित्र शुद्ध होता है तब उसका संकल्प अपने आप फलित होता है। चरित्र की शुद्धि के आधार पर संकल्प की क्षमता जागती है। जिसका संकल्प-बल जाग जाता है उसकी कोई भी कामना अधूरी नहीं रहती। संकल्प लेश्याओं को प्रभावित करतेे हैं। लेश्या का बहुत बड़ा सूत्र हैµचरित्र। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या ओर शुक्ललेश्याµये तीन उज्ज्वल लेश्याएँ हैं। इनके रंग चमकीले होते हैं। कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्याµये तीन अशुद्ध लेश्याएँ हैं। इनके रंग अंधकार के रंग होते हैं। वे विकृत भाव पैदा करते हैं। वे रंग हमारे आभामंडल को धूमिल बनाते हैं। चमकते रंग आभामंडल में निर्मलता और उज्ज्वलता लाते हैं। वे आभामंडल की क्षमता बढ़ाते हैं। उनकी जो विद्युत-चुंबकीय रश्मियाँ हैं वे बहुत शक्तिशाली बन जाती हैं।

होली के लिए विशेष तौर से तैयार किए इस विशेष ध्यान उपक्रम में प्रत्येक रंग का ध्यान में साक्षात्कार करने के लिए संकल्प-शक्ति का प्रयोग करवाया जाता है। संकल्प-शक्ति का अर्थ हैµकल्पना करना अर्थात् मानसिक चक्षु से इसे स्पष्ट रूप से देखना। यह इस पद्धति का मूल आधार है। कल्पना जितनी अधिक देर टिकेगी और जितनी सघन होगी, उतनी ही सफलता मिलेगी। फिर उस कल्पना को भावना का रूप देना, दृढ़ निश्चय करना। जब हमारी कल्पना उठती है और वह दृढ़ निश्चय में बदल जाती है तो वह संकल्प-शक्ति बन जाती है। पहले पहले कल्पना में इतनी ताकत नहीं होती, किंतु कल्पना को जब संकल्प शक्ति की पुट लगती है, उसकी ताकत बढ़ जाती है। जब कल्पना सुदृढ़ बन जाती है, तब जो रंग हम देखना चाहते हैं, वह साक्षात् दिखाई देने लग जाता है। प्रेक्षा प्रशिक्षक मुनि किशनलालजी कहते हैंµ रंगों की कल्पना की सहायता के लिए ध्यान करने से पूर्व उस रंग को खुली आँखों से अनिमेष दृष्टि से उसी रंग के कागज या प्रकाश के द्वारा कुछ देर तक देख लेने से वह रंग आसानी से कल्पना में आ जाता है। इसके लिए व्यवहार में सेलीफीन पेपर (रंग वाले चिकने पारदर्शी कागज) का व्यवहार किया जाता है। जिसे रंग के कागज को प्रकाश को स्रोत के सामने रखा जाता है, उसी रंग का प्रकाश हमारी आँखों के सामने आता है। फिर वही रंग बंद आँखों से भी स्पष्ट दिखाई देने लग जाता है।

रंग का साक्षात्कार करने के लिए चित्त की स्थिरता या एकाग्रता अनिवार्य है। एकाग्रता का अर्थ हैµएक ही कल्पना पर स्थिर रहना, उसका ही चिंतन करते रहना। जब एकाग्रता सधती है, जब चित्त स्थिर बनता है, तब वह कल्पना के रंगों की तरंगों को अपने सूक्ष्म शरीर-तैजस शरीर की सहायता से उत्पन्न करता है। अब कल्पना समाप्त हो जाती है और वास्तविक रंगों की उत्पत्ति हो जाती है। असल में लेश्या ध्यान का प्रयोग चोटी पर चढ़ने जैसा है। किसी-किसी व्यक्ति को इसमें शीघ्र सफलता मिलती है, पर किसी-किसी को कुछ समय लगता है। वैसी स्थिति में व्यक्ति को न निराश होना चाहिए और न ही अपना धैर्य खोना चाहिए। दृढ़ संकल्प के साथ प्रयत्न को चालू रखना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में अनंत शक्ति निहित है। किंतु वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं है। अपेक्षा है, अपनी शक्ति को जानने की, उससे परिचित होने की और उसमें आस्था की। लेश्या ध्यान उसका अचूक उपाय है। कभी-कभी जिस रंग को देखना चाहते हैं, उसके स्थान पर कोई अन्य रंग का अनुभव होने लगता है पर इससे भी निराश होने की जरूरत नहीं है। प्रत्युत किसी भी रंग का दिखना इस बात का प्रमाण है कि ध्यान सध रहा है। दूसरे रंगों का दिखना भी संकल्प-शक्ति और वर्ण-शक्ति का परिणाम है। यद्यपि यह बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है, फिर भी इसका अपना महत्त्व है, क्योंकि इससे व्यक्ति की श्रद्धा और आस्था को बल मिलता है। जब तक कोई अनुभव नहीं होता, तो ऐसा लगता है कि साधना फलीभूत नहीं हो रही है। अनुभव छोटा हो या बड़ा, वह बहुत काम का होता है।

पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- ये पांच तत्व हैं। शरीर इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित है। इनके अलग-अलग स्थान निर्धारित हैं। माना गया है कि पैर के घुटने तक का स्थान पृथ्वी तत्व प्रधान है। घुटने से लेकर दृष्टि तक का स्थान जल तत्व प्रधान है। कटि से लेकर पेट तक का भाग अग्नि तत्व प्रधान है। वहां से हृदय तक का भाग आकाश तत्व प्रधान है। तत्वों के अपने रंग भी होते हैं। पृथ्वी तत्व का रंग पीला है। जल तत्व का रंग श्वेत है। अग्नितत्व का रंग लाल है। वायुतत्व का रंग हरा-नीला है। आकाशतत्व का रंग नीला है। ये रंग हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। पूरी रंग थेरेपी, क्रोमो थेरेपी रंगों के आधार पर ही काम करते हैं। होली पर इन पांच तत्व और उनसे जुड़े रंगों का ध्यान करने से हमारा न केवल शरीर बल्कि सम्पूर्ण वातावरण शुद्ध और सशक्त बन जाता है। रंगों से खेलने एवं रंगों के ध्यान के पीछे एक बड़ा दर्शन है, एक स्पष्ट कारण है। निराश, हताश और मुरझाएं जीवन में इससे एक नई ताजगी, एक नई रंगीनी एवं एक नई ऊर्जा आती है। रंग बाहर से ही नहीं, आदमी को भीतर से भी बहुत गहरे सराबोर कर देता है। होली के अवसर पर आध्यात्मिक रंगों से होली खेलने की प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया निश्चित ही सुखद एवं एक अलौकिक अनुभव है। रंगों का लोकजीवन में ही नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। आओ सब मिलकर होली के इस आध्यात्मिक स्वरूप को समझें और इस पर्व के साथ जुड़ रही विसंगतियों को उखाड़ फेकें।



live aaryaavart dot com

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486

विशेष आलेख : जीत का जश्न मना लें,आगे अनंत अमावस्या है!

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आटोमेशन से नौकरियां, कंप्यूटर के बाद रोबोट के हमले में रोजगार,आजीविका खत्म, विदेशों में हमले रुकें या न रुकें,भारत में तकनीकी पीढ़ियों के लिए अभूतपूर्व रोजगार संकट, भारत में रोजगार का इकलौता विकल्प  IT सेक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य अंधकार!  मुक्त बाजार में नोटबंदी के बाद अब भुखमरी, बेरोजगारी, मंदी, असहिष्णुता, घृणा,हिंसा  और जुबांबंदी का सवा सत्यानाशी माहौल।



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अमेरिका और बाकी दुनिया में भारतीय मूल के लोगों पर हमले तेज हो रहे है तो स्वदेश में भी आजीविका और रोजगार पर कुठाराघात है। मुक्तबाजार में नोटबंदी के बाद अब भुखमरी, बेरोजगारी, मंदी, असहिष्णुता, घृणा, हिंसा और जुबांबंदी का माहौल है।भारत में IT सेक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य एक ट्रांजिशन फेज से गुजर रहा है। इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों की जॉब खतरे में है। विकास दर के झूठे दावे और झोलाछाप अर्थशास्त्रियों के करिश्मे से सुनहले दिनों के ख्बाब और रामजी की कृपा से धार्मिक ध्रूवीकरण और आखिरी वक्त आईसिस के हौआ से भले ही यूपी जीत लें संघ परिवार,अर्थ व्यवस्था की गाड़ी पटरी पर लौटनेवाली नहीं है।मसलन ग्लोबल मंदी और डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों से आईटी सेक्टर घबराया हुआ है। इंडस्ट्री में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। इसी को देखते हुए नैसकॉम ने भी वित्त वर्ष 2018 का ग्रोथ अनुमान तीन महीने के लिए टाल दिया है। ऐसा पहली बार है जब नैसकॉम ने वित्त वर्ष शुरू होने से पहले ग्रोथ अनुमान टाला हो। हालांकि आईटी सेक्टर को अब भी आने वाला समय बेहतर दिखाई दे रहा है। नैसकॉम चेयरमैन सी पी गुरनानी ने कहा है कि आईटी इंडस्ट्री तेजी से ऑटोमेशन की तरफ बढ़ रही है इसलिए नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।

For the sector as a whole – including large, medium and small IT firms but excluding MNC captive centres – the growth in 2017 is expected to be a mere 5.3 per cent. That's a steep drop from the 8-10 per cent that the industry is expected to do, as per IT industry body Nasscom. 

भारतीय आईटी सेक्टर में काम करने वाले मिड लेवल के कर्मचारियों के लिए चिंता करने वाली खबर है। इकॉनमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, ये कंपनियां खुद को ऑटोमेशन और नई टेक्नॉलजी के हिसाब से ढालने में लगी हुई हैं। मिड लेवल की कंपनियों में करीब 14 लाख कर्मचारी हैं। उनके पास 8 से 12 साल का अनुभव है और उनकी सेलरी 12 से 18 लाख रुपए सलाना है। बताया जा रहा है कि री-स्किलिंग और री-स्ट्रक्चरिंग का असर इन्हीं पर है। आमतौर पर इनकी उम्र 35 साल के आस-पास ही होती है। यूपी समेत पांच राज्यों में मीडिया सत्ता के साथ रहा है और पहले ही केसरिया सुनामी पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। नोटबंदी से लेकर राममंदिर और आखिरकार आतंकवाद जैसे पड़ाव पार करने के बाद मतदान पर्व समाप्त है और 11 मई तक भारतीय मीडिया में ज्योतिष शास्त्र वास्तुशास्त्र के तहत कुंडलीपर्व जारी रहना है।

बहरहाल कोई जीते या कोई हारे,यह हमारे सरदर्द का सबब नहीं है।
कामर्शियल, माफ करें चुनावी अंतराल के बाद संसद का बजट सत्र फिर चालू है और किसी ने सवाल दाग ही दिया कि अमेरिका में भारतीय मनुष्यों पर एक के बाद एक हमले पर प्रधान सेवक क्यों चुप हैं।सवाल कोई चाबी जाहिर है नहीं कि चुप्पी का सिंहद्वार खोल दें।बहरहाल गृहमंत्री ने कहा कि सरकार सीरियस है। हालात लतीफों से ज्यादा हास्यास्पद है मसलन खबर है कि कल तक एनआरआई दूल्हे के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठे परिवार अब शादी के ऐसे प्रस्तावों से कन्नी काटने लगे हैं।  मजे का किस्सा यह है कि शादी की जोड़ियां मिलाने वाली वेबसाइटों के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में हाल की घटनाओं से भारतीय परिवारों में एनआरआई दूल्हे का क्रेज काफी कम हुआ है। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक इनकी मांग में 25 फीसदी की कमी आई है। यह कमी ज्यादातर अमेरिका में बसे भारतीय दूल्हों के संदर्भ में बताई जा रही है। कहने को एनआरआई कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक तमाम देशों में फैले हुए हैं..  

अब तनिको इस सीरियस संवाद पर गौर फरमायेंः
In recent weeks, at least two Indians have been killed in incidents of hate crime in the US. “Why is the Modi government silent on the attacks against Indian in the US? The Prime Minister tweets on every other issue, why doesn’t he talk on this issue? Why is he silent? He should make a statement today,” Kharge said. 

In his reply, Union Home Minister Rajnath Singh said that the government has taken a serious note of the recent incidents against Indians in US. He added that the government will make a statement on the issue next week in the Parliament. “What is happening in the US is being viewed seriously by the government and a statement would be made in the Parliament next week,” he said during Question Hour. Parliamentary Affairs Minister Ananth Kumar also said the government was very much concerned about the incidents in the US.
साभार इंडियन एक्सप्रेस

कुछ पल्ले पड़ा? सरकार सीरियस है लेकिन इस नस्ली घृणा अभियान की निंदा या विरोध करने की स्थिति में नहीं है।जाहिर है कि  मामले को मटियाने के लिए संसद में  बयान जारी कर दिया जायेगा। जाहिर है कि मनुस्मृति शासन के सत्ता वर्गी की राजनीति और राजनय अमेरिकी हितों के खिलाफ चूं भी करने की हालत में नहीं है।जिस कारपोरेट फंडिंग के बिना संसदीय राजनीति नहीं चलती,उसके तार सीधे व्हाइट हाउस से जुड़े हुए हैं। सत्ता वर्ग नोटबंदी के मुक्तबादा र में किताना मालामाल है उसका एक उदाहरण पेश है।एक तरफ कहा जाता है कि नोटबंदी की वजह से व्यापार और कमाई में भारी गिरावट की आई है, वहीं आंध्र प्रदेश के अधकेसरिया मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेटे और युवा नेता नारा लोकेश की कमाई में इस दौरान 23 फीसद बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। चंद्रबाबू नायडू के बेटे और तेलगू देशम पार्टी के महासचिव नारा लोकेश जल्दी ही अपने पिता की कबिनेट में शामिल होने वाले हैं। नारा लोकेश ने सोमवार को चुनाव आयोग में जो हलफनामा दिया है उससे ही खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के दौरान उनकी संपत्ति में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। 

From Rs 14.50cr to Rs 330cr in 5 months, Nara Lokesh's net worth in affidavit raises eyebrows

सवाल यह है कि राष्ट्र को नागरिकों की जान माल की कितनी चिंता है और नागरिकों की देश विदेश में सुरक्षा की जिम्मेदार चुनी हुई सरकार है या नहीं। धर्म कर्म से लेकर आतंकवाद तक जो अंध राष्ट्रवादी की सुनामी है,वहां राष्ट्र जाहिर है कि सार्वभौम है, सर्वशक्तिमान है, लेकिन उस राष्ट्र के नागरिकों का वजूद सिर्फ आधार नंबर है।सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करते हुए हर जरुरी सेवा के लिए आधार अनिवार्य किया जा रहा है,जो सबसे बड़ा आईटी टमत्कार है तो नागरिकों की गतिविधियों,उनकी निजता,गोपनीयता से लेकर उनके सपनों और विचारों की लगातार निगरानी का चाकचौबंद इंतजाम है। अपरेने ही नागरिकों की कारपोरेट कंपनियों के हित में निगरानी करने वाले राष्ट्र के नागरिकों की देश विदेश में सुरक्षा करने की कितनी जिम्मदारी है और इस सिलसिले में सरकार और सत्ता तबक कितना सीरियस है जो पल पल नागरिकों की जिंदगी नर्क बनाने में सक्रिय हैं,समझ लें। मिड डे मिल पर दि वायर के वीडियो में मशहूर पत्रकार विनोद दुआ ने सही कहा है कि आधार है तो आपका वजूद एक नंबर है और आधार नहीं है तो आपका कोई वजूद नहीं है। राजकाज और राजधर्म से तो साबित है कि निराधार आधार का भी कोई वजूद नहीं है। नंबरदार गैरनंबरदार नागरिक कैसा भी हो,उसका कोई वजूद नहीं है। अमेरिका के किसी नागरिक का दुनियाभर में कहीं बाल भी टेढ़ा हो जाये तो अमेरिका अपनी पूरी सैन्य शक्ति अपने उस इकलौते नागरिक के हक में झोंक देता है। उसी अमेरिका में जब किसी उपनिवेश के नागरिक की ऐसी तैसी या हत्या तक हो जाये तो जाहिर है कि उपनिवेश की सरकार के लिए जुंबा पर तालाबंदी के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है।तकनीकी जनता की हालत भी अदक्ष श्रमजीवी आम जनता से बेहतर नहीं है तकनीकी गैरतकनीकी क्रयशक्ति विभाजन की नोटबंदी के बावजूद।इस तकनीक कार्निवाल के कबंध नागरिकों का भी बाकी जनता का हाल होने वाला है। मुश्किल यह है कि फ्रांस में भी लेडी ट्रंप की ताजपोशी तय है।भूमंडल में कहीं, शरणार्थी हो या आप्रवासी श्वेत आतंकवाद के निशाने से किसी का भी बच पाना मुश्किल है।यूरोप और अमेरिका के बाहर न्यूजीलैंट से लाइव स्ट्रीमिंग शुरु है।

विदेश में बारतीय नागरिकों पर हमले से बड़ी खबर यह है कि अब क्योंकि IT सेक्टर वक्त के साथ साथ नई टेक्नोलॉजी के हिसाब से बदल रहा है। यह दौर ऑटोमेशन का है।सत्ता तबके के मेधावी बच्चों पर शायद फिलहाल फर्क न पड़े। क्योकि ऑटोमेशन से अगर सबसे ज्यादा खतरा है तो वे हैं कंपनी के मिड लेवल कर्मचारी।जो आम जनता और बहुजन परिवारों के मध्य मेधा वाले बच्चे हैं और तकनीक के अलावा कुछ नहीं जानते और दलील यह है कि  इनकी जॉब खतरे में इसलिए है क्योंकि ये कर्मचारी खुद को बदलना नहीं चाहते हैं। कहा जा रहा है कि ये कर्मचारी एक अच्छे मैनेजर हैं जो मैनेज करना अच्छे से जानता है। बदलती टेक्नोलॉजी के साथ इन कर्मचारियों ने खुद को नहीं बदला। इस आटोमेशन का जीता जागता नजारा भारतीय मीडिया का नंगा सच है।अब किसी भी अखबार में मार्केटिंग से नीति निर्धारण होता है और संपादकीय विभाग का कोई वजूद नहीं है तो आटोमेशन का कुल रिजल्ट पेड न्यूज है,मीडिया भोंपू है। हर सेक्टर में मैनेजमेंट श्रम कानून और वेतनमान के झंझट से बचने के लिए आधुनिकीकरण  के नाम पर कंप्यूटर और रोबोट से काम चलाने के लिए आटोमेशन का विकल्प आजमाने लगा है और इसपर सरकारी या राजनीतिक कोई अंकुश नहीं है और न इसके खिलाफ कोई ट्रेड यूनियन आंदोलन है। जाहिर है कि सबसे मुश्किल यह है कि हमारी अब कोई उत्पादन प्रणाली नहीं है और न हमारी कोई अर्थव्यवस्था है। कहने को तो शेयरबाजारी एक बाटमलैस ट्रिलियन डालर अर्थव्यवस्था है,जो सीधे तौर पर अमेरिकी डालर से नत्थी है यानी खुल्लमखुल्ला अमेरिकी उपनिवेश है।
परंपरागत कृषि आधारित उत्पादन प्रणाली सिरे से खत्म है और ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान जो पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली बनी थी औद्योगीकरण की वजह से, उसे भी मुक्तबाजार ने खत्म कर दिया है। अब चुनावों में खैरात बांटकर नागरिकों को भिखारी मानकर नोटवर्षा करके जीत हासिल करने का लोकतंत्र है।विकास का मतलब है उपभोक्ता बाजार का विस्तार,सीधे तौर पर अंधाधुंध शहरीकरण और शहरीकरण के तहत उपभोग के चकाचौंध करने वाले बाजार के हित में सुपर एक्सप्रेस वे, हाईवे, मेट्रो, फ्लाईओवर, माल, मल्टीप्लेक्स, लक्जरी हाउसिंग,हेल्थ हब का विकास और यह सब कल कारखानों और देहात के श्मशानघाट या कब्रिस्तान पर गजब के शोर शराबे के साथ हो रहा है।जिसके तहत जल जंगल जमीन नागरिकता और मानवाधिकार, बहुलता, विविधता, लोकतंत्र विरोधी यह दस दिगंतव्यापी कयामती फिजां है और सारा देश गैस चैंबर में तब्दील है। आर्थिक सुधारों से पहले वामपंथी मशीनीकरण और कंप्यूटर का विरोध कर रहे थे।लेकिन बाद में वामपंथी भी चुप हो गये।वे भी पूंजीवादी विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गये और पिछले 26 साल से वे लगातार हाशिये पर जाते हुए भी खुश हैं और जनता के बीच खड़े होने से मुंह चुरा रहे हैं।

नतीजतन अब हालत यह है कि रोजगार का एकमात्र साधन कंप्यूटर है।
पिछले छब्बीस साल से कंप्यूटर यानी आईटी की आटोमेशन की कृत्तिम मेधा ही इस देश में रोजगार की धुरी है।मानवीय मेधा और मनुष्यता तेल लाने गयी हैं। हावर्ड बनाम हार्डवर्क पहेली का हल यही है कि उच्च शिक्षा,शोध और विश्वविद्यालय गैरजरुरी है क्योंकि तकनीक जानना ही आजीविका के लिए पर्याप्त है। पहले विदेशों में डाक्टर इंजीनियर जाते थे और अब दुनियाभर में आईटी सेक्टर से भारतीय मूल के लोग खा कमा रहे हैं।इसीलिए सत्ता वर्ग के निशाने पर हैं तमाम विश्वविद्यालय और उनके छात्र और शिक्षक।असहिष्णुता का यह रसायन है।जो मनुस्मृति का डीएनए भी है और संक्रामक महामारी भी है। मशीन और कंप्यूटर ने विकसित दुनिया के लिए भारत की श्रम मंडी से औपनिवेशिक भारत के कच्चा माल की तरह सस्ता दक्ष श्रमिकों का निर्यात उसीतरह शुरु किया जिस तरह उन्नीसवीं दी तक एशिया और अप्रीका से गुलामों का निर्यात होता था। फर्क यह है कि गुलामों के कोई हक हकूक नहीं थे और अब दुनियाभर में हमारे दक्ष श्रमिक बेहद सस्ते मूल्य पर श्रम के बदले यूरोप अमेरिका और आस्ट्रेलिया से लेकर लातिन अमेरिका और अफ्रीका में भी भारत की तुलना में बेहतर जीवनशैली में जीते हैं। हमारे यहां हुआ हो या न हुआ हो, उन बेहतर विकसित देशों में तेज एकाधिकारवादी पूंजी के विकास में आम जनता के लिए रोजगार के मौके खत्म हो गये। मसलन इंग्लैंड में जीवन के किसी भी क्षेत्र में सौ साल पहले भी पूरी दुनिया पर राज कर रहे अंग्रेजों का वर्चस्व नहीं है। इसीतरह अमेरिका में गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है क्योंकि एशियाई लोगों को नौकरी देकर कंपनियां इतना ज्यादा मुनाफा दुनियाभर में कमाने लगी है कि उन्हें अमेरिकी नागरिकों को रोजगार देना घाटे का सौदा है। इसी का नतीजा धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नस्ली डान डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी है और अश्वेतों केखिलाफ श्वेत जनता की घृणा है। अब फ्रांस में भी वही होने जा रहा है तो ब्रेकसिट से बाहर आने के लिए ब्रिटिश जनादेश का मतलब भी गैर अंग्रेज नस्लों के ब्रिटेन से सफाये का कार्यक्रम है। स्थानीय रोजगार अब दुनियाभर में कहीं नहीं है,मशीनीकरण के बाद कंप्यूटर और कंप्यूटर के बाद रोबोट आधारित मुक्तबाजार के अर्थव्यवस्था में। इसलिए भूमिपुत्रों के हकहकूक की मांगों, उनकी गरीबी और बेरोजगारी के बढ़ते संकट की वजह से देश के बाहर किसी भी देश में नौकरी और आजीविका के लिए गये भारतीय मूल के लोगों के लिए यह भयानक दुस्समय है। स्थानीय रोजगार के अलावा इस समस्या का समाधान नहीं है लेकिन बारत में सरकारे रोजगार सृजन के बदले रोजगार और आजीविका कारपोरेट एकाधिकार हित में अपनी जेबें गरम करने के लिए खत्म करने पर आमादा है।  

अमेरिकी ही नहीं,बाकी दुनिया में भी ये हमले बढ़ते जायेंगे क्योंकि उत्पादन संबंधों के अत्यंत शत्रुतापूर्ण हो जाने से दुनियाभर में अंध राष्ट्रवाद का तूफां चल रहा है जो हमारी अपनी केसरिया सुनामी से भी ज्यादा प्रलयंकर है। यह संकट गहराते जाना है।रोजगार सृजन के नये विकल्पों पर तेजी से काम करने के अलावा और कृषि संकट को सुलझाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है,सरकारे ऐसा चाहती नहीं हैं। इस विचित्र संकट का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि शिक्षा के बाजारीकरण हो जाने से स्नातक स्नातकोत्तर की पढ़ाई की जगह तकनीकी पढ़ाई सर्वोच्च प्राथमिकता हो गयी है क्योंकि उत्पादन के बजाय आईटी आधार निराधार सेवाओं में ही रोजगार और आजीविका हैं। अब इसमें सत्यानाश यह है कि यह सारी सेवा तकनीक आधारित रोजगार आउटसोर्सिंग पर निर्भर है।जो अमेरिका के नाभिनाल से जुडा़ है।

अमेरिका से हमलों के अलावा तीन बड़ी खतरनाक खबरें आ रही हैं।
पहली रोजगार के लिए वीजा में सख्ती,रोजगार के लिए अमेरिका गये व्यक्ति के पति या पत्नी या आश्रितों के वीजा खत्म और आउटसोर्सिंग सिरे से खत्म की तैयारी है। आउटसोर्सिंग खत्म करने के बाद सिर्फ तकनीक से लैस 1991 के बाद की पीढ़ियों के रोजगार और आजीविका का क्या होना है,संकट यह अमेरिका और बाकी दुनिया में भारतीय मूल के लोगों पर हमलों से भी बड़ा संकट है।  एच-1बी, एच-4 वीसा और आउटसोर्सिंग के साथ कंप्यूटर की जगह रोबोट के विकल्प अपनाने की तैयारी और दुनियाभर में ट्रंप सुनामी के मद्देनजर आईटी सेक्टर में रोजगार की एक तस्वीर इस प्रकार हैः 2015-16 में आईटी सेक्टर में 2.75 लाख कर्मचारी नियुक्त किये जाने थे,वास्तव में सिर्फ दो लाख नई नियुक्तियां हो सकीं।

2016-17 में नियुक्तियां और घटेंगी। 2021 तक 6.4 लाख नौकरियां खत्म होंगी। अगले चार सालों में आईटी सेक्टर में 69 प्रतिशत नौकरियां खत्म होगीं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी रोबोट ने पिछले साल इनफोसिस और विप्रो में सात हजार कर्मचारियों के बदले काम किया है। 2016 में टीसीएस,विप्रो,इनफोसिस और एचसीएल में 12 प्रतिशत नियुक्तियां कम हुई हैं। सौजन्य सूत्रःहर्सेज फार सोर्सेज और विश्व बैंक 

वीकिपीडिया के मुताबिकः
Artificial intelligence (AI) is intelligence exhibited by machines. In computer science, the field of AI research defines itself as the study of "intelligent agents": any device that perceives its environment and takes actions that maximize its chance of success at some goal.[1] Colloquially, the term "artificial intelligence" is applied when a machine mimics "cognitive" functions that humans associate with other human minds, such as "learning" and "problem solving" (known as Machine Learning).[2] As machines become increasingly capable, mental facilities once thought to require intelligence are removed from the definition. For example, optical character recognition is no longer perceived as an exemplar of "artificial intelligence", having become a routine technology.[3] Capabilities currently classified as AI include successfully understanding human speech,[4] competing at a high level in strategic game systems (such as Chess and Go[5]), self-driving cars, intelligent routing in content delivery networks, and interpreting complex data.

गौरतलब है कि इंफोसिस के CEO विशाल सिक्का ने एक इंटरव्यू में जिक्र किया है कि IT कंपनी हर साल कंसलटेंट्स के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करती है। और कंसलटेंट्स के निशाने पर मिड लेवल कर्मचारी ही होते हैं। हर कंसलटेंट्स को लगता है कि मिड लेवल ही कंपनी पर सबसे बड़ा बोझ है। क्योंकि इनकी तादाद सबसे ज्यादा होती है और इनमें इनोवेशन की कमी होती है। ये बदलने के बजाए ठहर जाते हैं। विशाल सिक्का ने भी इस बात को माना कि मिड लेवल का बाहरी दुनिया और क्लाइंट से संपर्क नहीं होता है। अपर लेवल के कर्मचारी बाहरी दुनिया में क्या कुछ हो रहा है उससे बेहतर वाकिफ होते हैं। साथ ही वे इस बात को भी बखूबी समझते हैं कि अगर मैनेजमेंट ने कोई फैसला लिया है तो इसका क्या मकसद है इसलिए अगर वे खुद में कोई कमी पाते हैं तो खुद को अपडेट करते हैं। लेकिन भारत में मिड लेवल के कर्मचारी बेहतर मैनेजर होते हैं। इंडस्ट्री भी उनसे उम्मीद करता है कि जो कुछ उन्हें मिल रहा है वे उसी से कंपनी के लिए बेहतर काम करें। या फिर यू कहें कि सबकुछ मैनेज कर के चलें।  यहां का मिड लेवल डिलीवरी पर ज्यादा फोकस्ड रहता है ना कि इनोवेशन पर।

मशहूर गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार जी ने आज फेसबुक पर लिखा हैः
तो देशवासियों खबर यह है कि आपको नौकरी देने वाली कंपनियों के लिये आदिवासी इलाकों में ज़मीनें छीनने के लिये हमारे सैनिक लगातार आदिवासियों की हत्या और औरतों से बलात्कार कर रहे हैं,
ग्रामीण रोज़गार योजना में मज़दूरों की मजदूरी 6 महीने में भी नहीं मिल रही है,
भाजपा सरकार नें नौजवानों को हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था,
लेकिन ढाई साल में सिर्फ पौने दो लाख लोगों को रोज़गार मिला,
राशन दुकान में मशीन पर उंगालियों के निशान लेकर गरीबों को अनाज दिये जाने का हुक्म दिया गया है,
लेकिन मज़दूरो की और बूढ़ों की उंगलियां घिस जाती हैं और लकीरें मिट जाती हैं,
लाखों गरीब बिना राशन भूखे सो रहे हैं,
लेकिन यह सब इस मुल्क के मुद्दे नहीं हैं,
आपको बताया जा रहा है कि आप लखनऊ में मार डाले गये एक मुसलमान नौजवान के खौफ में कुछ दिन भारतीय मुसल  मानों को गालियां देते हुए गुजारिये,
इस बीच अंबानी अडानी की ज़मीनें कुछ हज़ार एकड़ और बढ़ जायेगी,
कुछ लाख भारतीय किसानों को बेज़मीन बनाकर ज़्यादा गरीब बना दिया जायेगा,
उनकी ज़मीन मोदी के आकाओं को देकर उन्हें ज़्यादा अमीर बना दिया जायेगा,
इस बीच कुछ गरीब सिपाही मरेंगे कुछ गरीब आदिवासी मर जायेंगे,
आप आतंकवाद की फर्जी सनसनी में डूबे रहिये,
खेल एकदम सटीक चालू है,




(पलाश विश्वास)
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