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पैक्स की असल पहचान देखने को मिली।

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मध्यप्रदेश। पैक्स की असल पहचान देखने को मिली।  पैक्स के द्वारा गैर सरकारी संस्थाओं को सहयोग दिया जाता है। इस सहयोग से धन्य होकर एनजीओ गांवघर में समुदाय आधारित संगठनों का निर्माण करते हैं। इन सीबीओ की शक्ति और उपलब्धि को जन उत्सव कार्यक्रम के दौरान देखा गया। 

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोई 17 जिलों से समुदाय आधारित संगठनों (सीबीओ) ने हिस्सा लिए। सीबीओ के लगभग 2000 लोग उपस्थित रहे। जन उत्सव पर एकत्रित हुए सीबीओ ने उपलब्धियों को प्रस्तुत किए। स्थानीय जन नेतृत्व करने वाले जश्न मनाए।जमीनी स्तर से सीख को साझा किए। स्थानीय लोक नृत्य और संगीत पेश किए। गर्भवती माताओं और बच्चों की देखभाल के लिए, किशोरों  की शादी को लेकर उत्पन्न समस्याए। स्थानीय समुदायों के हकों पर प्रकाश डालते है कि समारोह के लिए एक सांस्कृतिक संवाद की पेशकश की  गयी।

इसके पहले पैक्स के हेड अभिनव कुमार ने आगत अतिथियों और जमीन से जुड़े नेतृत्व करने वालों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पैक्स की शक्ति और ऊर्जा आज यहां मौजूद है। जन समुदाय के भीतर हमारे कार्यक्रम विकसित किया गया। नेतृत्वक्षमता को देखना और उन्हीं के नेतृत्व में उत्सव करना है। दो दिनों तकयह जश्न मनाया गया। हमारा अधिकार, हमारी आवाज को लेकर ग्रामीण मुद्दों को उछालते रहना है। 

जन उत्सव में प्रदेश के 17 जिलों से आए दो हजार से ज्यादा सामुदायिक नेताओं ने राजधानी में रैली निकाल कर एकजुटता प्रदर्शित की। जन उत्सव में उन्होंने स्वास्थ्य एवं भूमि अधिकार की मांग की और रोजगार गारंटी कानून एवं वन अधिकार कानून में व्यापक सुधार करने की मांग की है। ये 17 जिले देश के सबसे पिछड़े जिलों में चिह्नित हैं। पैक्स (पूअरेस्ट एरियाज सिविल सोसायटी) एवं 15 अन्य सहयोगी स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा निशात मंजिल में ‘जन उत्सव’ का आयोजन किया गया।

सामाजिक रूप से कमजोर तबके के ये सामुदायिक नेता आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक, महिला एवं विकलांग समुदाय से आते हैं एवं विकास की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए अपने समुदाय को प्रेरित एवं जागरूक कर रहे हैं। पैक्स के कार्यक्रम अधिकारी प्रशांत ने कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ बिना भेदभाव के सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय तक पहुंचना चाहिए। सरकारी योजनाओं के सही क्रियान्वयन के लिए ग्राम स्तरीय समितियों में इन समुदाय आधारित संगठनों की सक्रिय भागीदारी सुनिष्चित करने की जरूरत है।

जितेंद्र शर्मा ने कहा कि वन अधिकार कानून 2006 के तहत कानून के तहत किए गए सभी खारिज दावों को ग्राम स्तर पर तीन माह के भीतर समीक्षा की जाए एवं सामुदायिक दावे को भी सुनिश्चित किया जाए। रवींद्र सक्सेना ने कहा कि भूमिहीनों के लिए भूमि अधिकार सुनिश्चित किया जाए और इसमें महिलाओं के नाम से जमीन आबंटित किया जाए। प्रत्येक भूमिहीन परिवार को कम से कम 5 एकड़ कृषि भूमि सुनिश्चित करने का कानून बनाया जाए। 2003 में जमीन वितरण पर लगाई गई रोक को हटाया जाए। डॉ. एच.बी. सेन ने कहा कि स्वास्थ्य को अधिकार के रूप में मान्यता मिले। जिला एवं ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों एवं  पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को दूर किया जाए। डॉक्टर के लिए ग्रामीण एवं दुर्गम इलाकों में 5 साल सेवा देना अनिवार्य किया जाए। जीत परमार ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत बाजार मूल्य के अनुसार मजदूरी का प्रावधान किया जाए। सामाजिक अंकेक्षण बिना वीडियोग्राफी के मान्य नहीं किया जाए। सामाजिक अंकेक्षण में स्वैच्छिक संस्थाओं एवं जन संगठनों को भी शामिल करने का प्रावधान हो।




आलोक कुमार
बिहार 

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