अगले साल सितंबर 2016 में पहले चमत्कार के मुताबिक, मदर ने मोनिका बेसरा नाम की बंगाली ट्राइबल महिला को पेट के ट्यूमर से मुक्ति दिलाई थी। दूसरा चमत्कार ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त ब्राजील के एक व्यक्ति के इलाज से जुड़ा हुआ है।

ताउम्र सेवा का संकल्प
१९८१ ई में अग्नेसे ने अपना नाम बदलकर टेरेसा रख लिया और उन्होंने आजीवन सेवा का संकल्प अपना लिया। उन्हांेने स्वयं लिखा है - वह १० सितम्बर १९४० का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थीं। उसी समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी थी कि ष्मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर एवं दरिद्र नारायण की सेवा कर के कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।ष्
सद्भावना से पीडि़तों की सेवा
मदर टेरेसा दलितों एवं पीडि़तों की सेवा में किसी प्रकार की पक्षपाती नहीं है। उन्होंने सद्भाव बढ़ाने के लिए संसार का दौरा किया। उनकी मान्यता है कि श्प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है।श् उनके मिशन से प्रेरणा लेकर संसार के विभिन्न भागों से स्वयं-सेवक भारत आये तन, मन, धन से गरीबों की सेवा में लग गये। मदर टेरेसा का कहना है कि सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है और इसके लिए पूर्ण समर्थन की आवश्यकता है। वही लोग इस कार्य को संपन्न कर सकते हैं जो प्यार एवं सांत्वना की वर्षा करें - भूखों को खिलायें, बेघर वालों को शरण दें, दम तोड़ने वाले बेबसों को प्यार से सहलायें, अपाहिजों को हर समय ह्रदय से लगाने के लिए तैयार रहें।
कई तरह के पुरस्कारों से सम्मानित
मदर टेरेसा को उनकी सेवाओं के लिये विविध तरह के पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित किया गया। १९३१ में उन्हें पोप जान तेइसवें का शांति पुरस्कार और धर्म की प्रगति के टेम्पेलटन फाउण्डेशन पुरस्कार प्रदान किया गया। विश्व भारती विघालय ने उन्हें देशिकोत्तम पद्वी की जो कि उसकी ओर से दी जाने वाली सर्वाेच्च पद्वी है। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविध्यलय ने उन्हंे डोक्टोरेट की उपाधि से विभूषित किया। भारत सरकार द्वारा १९६२ में उन्हें श्पद्मश्रीश् की उपाधि मिली। १९८८ में ब्रिटेन द्वारा श्आईर ओफ द ब्रिटिश इम्पायरश् की उपाधि प्रदान की गयी। बनारस हिंदू विश्वविध्यलय ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया। १९ दिसम्बर १९७९ को मदर टेरेसा को मानव-कल्याण कार्यों के हेतु नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। वह तीसरी भारतीय नागरिक है जो स्ंासार में इस सबसे बड़ी पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं।
मदर टेरेसा के हेतु नोबल पुरस्कार की घोषणा ने जहां विश्व की पीडित जनता में प्रसन्नता का संचार हुआ है, वही प्रत्येक भारतीय नागरिकों ने अपने को गौरवान्वित अनुभव किया। स्थान पर उनका भव्य स्वागत किया गया। नार्वेनियन नोबल पुरस्कार के अध्यक्ष प्रोफेसर जान सेनेस ने कलकत्ता में मदर टेरेसा को सम्मानित करते हुए सेवा के क्षेत्र में मदर टेरेसा से प्रेरणा लेने का आग्रह सभी नागरिकों से किया। देश की प्रधानमंत्री तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने मदर टेरेसा का भव्य स्वागत किया। अपने स्वागत में दिये भाषणों में मदर टेरेसा ने स्पष्ट कहा है कि ष्शब्दों से मानव-जाति की सेवा नहीं होती, उसके लिए पूरी लगन से कार्य में जुट जाने की आवश्यकता है।ष् उन्होंने यह भी घोषणा की है कि भविष्य में किसी प्रकार के स्वागत समारोह में सम्मिलित नहीं होंगी और निरंतर सेवा कार्य में लगी रहेंगी। निश्चित रूप से मदर टेरेसा निःस्वार्थ कार्य में विश्वास करने वाली हैं। कर्मयोग का जो दर्शन गीता में परिलक्षित होता है वह मदर टेरेसा के जीवन में चरितार्थ हुआ है।
आलोचना
कई व्यक्तियों, सरकारों और संस्थाओं के द्वारा उनकी प्रशंसा की जाती रही है, यद्यपि उन्होंने आलोचना का भी सामना किया है। इसमें कई व्यक्तियों, जैसे क्रिस्टोफ़र हिचेन्स, माइकल परेंटी, अरूप चटर्जी (विश्व हिन्दू परिषद) द्वारा की गई आलोचना शामिल हैं, जो उनके काम (धर्मान्तरण) के विशेष तरीके के विरुद्ध थे। इसके अलावा कई चिकित्सा पत्रिकाओं में भी उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई और अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए गए, जिसमें दान का धन खर्च किया जाता था। नवीनतम खबर है कि गरीबों की सेवा में अपनी जिंदगी गुजारने वाली मदर टेरेसा को संत का दर्जा दिया जाएगा। पोप फ्रांसिस से उनके दूसरे चमत्कार को मिली मान्यता के बाद उनके संत बनने का रास्ता साफ हो गया है। उन्हें सितंबर 2016 में रोमन कैथेलिक चर्च का संत घोषित किया जाएगा। इटालियन कैथोलिक न्यूजपेपर ने यह जानकारी दी है। हालांकि, वेटिकन के स्पोक्सपर्सन ने इस रिपोर्ट के बारे में कोई भी जानकारी होने से इनकार किया है। बता दें कि संत की उपाधि पाने के लिए तय प्रक्रिया के तहत दो चमत्कारों की जरूरत होती है। इटालियन कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस के ऑफिशियल न्यूजपेपर एवेनर की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, पोप फ्रांसिस ने गुरुवार को उनके दूसरे मेडिकल मिरेकल (चमत्कार) को मान्यता दे दी। दूसरा चमत्कार ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त ब्राजील के एक व्यक्ति के इलाज से जुड़ा हुआ है।
क्या है पहला चमत्कार?
पहले चमत्कार के मुताबिक, मदर ने मोनिका बेसरा नाम की बंगाली ट्राइबल महिला को पेट के ट्यूमर से मुक्ति दिलाई थी। 2003 में एक सेरेमनी के दौरान पोप जॉन पॉल द्वितीय ने मदर के पहले चमत्कार को मान्यता देते हुए उन्हें धन्य (ठमंजपपिबंजपवद) घोषित किया था, जो संत बनाए जाने की प्रक्रिया का पहला चरण है।
कौन हैं मदर टेरेसा?
अल्बानियाई पेरेंट्स की संतान मदर टेरेसा को दुनियाभर में उनके चैरिटी वर्क के लिए जाना जाता है। 87 साल की उम्र में 1997 में उनकी मौत हो गई। मदर ने अपनी पूरी जिंदगी गरीबों की मदद में गुजारी। कोलकाता में मिशन ऑफ चैरिटी की नींव रखने वाली टेरेसा ने यहां के स्लम्स में गरीबों की सेवा में जीवन बिताया। 1979 में मदर को उनके काम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया। उनका हार्ट अटैक के कारण 5 सितंबर 1997 को 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था।
2016 में भारतीय मदर टेरेसा को संत घोषित किया जएगा। ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने भारतीय मदर टेरेसा के दूसरे चमत्कार को भी मान्यता दे दी है। इस मान्यता के बाद अगले वर्ष उन्हें संत बनाए जाने का रास्ता साफ हो गया है। इसको लेकर मिली एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी जा सकती है। इतालवी कैथोलिक कॉन्फ्रेंस के अखबार एवेनर के अनुसार यह चमत्कार कई ब्रेन ट्यूमर्स से पीडि़त एक ब्राजीली शख्स के उपचार से जुड़ा है। 2003 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया था। जो की संत बनाए जाने की प्रक्रिया का पहला चरण है। मदर टेरेसा को कोलकाता की झुग्गियों में उनके काम के लिए शांति के नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। मदर टेरेसा को दुनिया भर में उनकी चैरिटी के लिए जाना जाता है।