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बिहार : मुस्लिम समुदाय भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से उठाने लगे लाभ

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darbhanga news
दरभंगा। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को सन् 2008 में लागू किया गया। आज 6 साल के बाद भी योजना से मिले स्मार्ट कार्डधारियों को सेवा लेने में दो-दो हाथ करनी पड़ती है। परेशानी के बादल छट ही नहीं रहा है। दुर्भाग्य है कि चिकित्सक और रोगी के बीच में तीसरा व्यक्ति का प्रवेश होता है और उनके सहारा लेने से ही काम निकल पा रहा है।

टालू नीति अख्त्यिार कर लेतेः राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत चिन्हित अस्पतालों में कार्यरत कर्मचारी और बीमारी से बेहाल रोगी के बीच में मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं रहता है। जब रोगी और उनके परिजन आते हैं। तब स्मार्ट कार्ड के नम्बर के अनुसार ऑपरेटर ने कम्प्यूटर से डाटा डाटा खंगालने लगते हैं। फोटो, हस्ताक्षर, अंगूठा निशान मिलान आदि करने लगते हैं। अगर फोटो है तो अंगूठा मिलान न होने की शिकायत कर इलाज करने से इंकार करने लगते हैं। इस टालू नीति के शिकार अधिकांश स्मार्ट कार्डधारी होते हैं। उसी समय किसी व्यक्ति का पर्दापर्ण हो जाता है। अस्पताल और रोगी के बीच मध्यस्था करने लगते हैं। वह दलाल अथवा सामाजिक कार्यकर्ता हो सकते हैं।

तीन साल से मोतियाबिन्द से बेहाल थीं खुर्शीदा खातुनः दरभंगा जिले के हायाघाट प्रखंड में स्थित पंचायत ग्राम सिधौली में खुर्शीदा खातुन,(उम्र 60 वर्ष) रहती हैं।खुर्शीदा के पति और उसके पुत्र मोहम्मद नुरैन मिलकर गांव के नुक्कड़ पर जूता-चप्पल की छोटी- सी दुकान खोल रखी है। इसी से जीविकोर्पाजन होता है। जब पैक्स के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ता के बैठक लेने गांवघर में पहुंचे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के ऊपर चर्चा करने लगे तो धीरे-धीरे से पग बढ़ाकर खुर्शीदा भी बैठक में शामिल हो गयी। समुचित जानकारी हासिल करने के बाद खुर्शीदा ने कहा कि उसके पास स्मार्ट कार्ड है। लेकिन, उसका उपयोग करने की जानकारी नहीं है। इसके आलोक में मोतियाबिन्द से बेहाल हैं।

पहली बार स्मार्ट कार्ड और पहली बार में ही ऑपरेशन भी:जो स्मार्ट कार्ड खुर्शीदा खातुन का बना है। उसका यूआरएल नम्बर 101311075/3000024 है। प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ता के सहयोग से स्मार्ट कार्ड बना है। जब मोतियाबिन्द का ऑपरेशन कराने खुर्शीदा खातुन शेखर नेत्रालय पहुंची, तो उनके साथ समिति के कार्यकर्ता भी थे। ऑपरेटर ने कम्प्यूटर से डाटा खंगालने लगे। फोटो को मिलानकर सही पाया। परन्तु अंगूठा निशान मिलान पर सवाल खड़ा कर दिए। कहा गया कि आपका अंगूठे का निशान नहीं मिल रहा है। इलाज नहीं हो सकता। परन्तु मौके पर तैनात सामाजिक कार्यकर्ता कामोद पासवान के हस्तक्षेप करने पर जब इनका फोटो है तो इलाज तो होना ही चाहिए। काफी समझाने बुझाने के बाद नेत्रालय के लोग इलाज के लिए सहमत हो गये।

दरभंगा स्थित शेखर नेत्रालय में ऑपरेशनः खुर्शीदा खातुन ने कहा कि 3 मार्च को मोतियाबिन्द का ऑपरेशन किया गया। आंख का ऑपरेशन कर दिया गया। दूसरे दिन हमें नेत्रालय से छुट्टी दे दी गयी। छुट्टी के समय तीन तरह का पूर्जा (रजिस्ट्रेशन सिल्प,डिस्चार्ज सिल्प और ब्लॉकिंग सिल्प ) के साथ सौ रूपए दिए गए। नेत्रालय में रहने के दौरान खाने की कोई सुविधा नहीं दी गयी। यहां से जाने के समय तीन दिनों की दवा दी गयी। आज खुर्शीदा खातुन अपनी आंखों से स्पष्ट देख पाती है। प्रगति ग्रामीण विकास समति को धन्यवाद देती हैं। जो न केवल ऑपरेशन के दौरान नेत्रालय में बल्कि स्मार्ट कार्ड बनते समय भी अपना योगदान दिए।




आलोक कुमार
बिहार  

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