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आलेख : खेलों में अपनी पहचान बनाती कारगिल की उत्साही लड़कियां

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श्रीनगर से 204 किमी. दूर स्थित कारगिल में, ज¨ प्राचीन रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था, एक समय था जब महिलाअ¨ं के लिए शिक्षा पूरी तरह से निषिद्ध थी। परिवार के बाहर न क¨ई उनका समाजिक जीवन था अ©र न ही क¨ई सामाजिक पहचान। लेकिन आज हालात बदल रहे हैं। महिलाएं अपनी पुरानी जड़ताअ¨ं क¨ त¨ड़कर खुली हवा में सांस लेने की क¨शिश कर रही हैं। शिक्षा से लेकर हर तरह की मानसिक अ©र शारीरिक गतिविधिय¨ं में आगे बढ़कर भाग लेना आज कारगिल की आधी आबादी के लिए आवश्यक ह¨ गया है। शारीरिक अ©र मानसिक रूप से सक्षम बनने की कारगिल की महिलाअ¨ं की इस मुहिम में  भरसक य¨गदान देने की क¨शिश कर रहा है तीस वर्षीय मुहम्मद अली का तायक्व¨ंड¨ क्लब अरीजुना। अरीजुना क्लब युवा बच्चिय¨ं क¨ तायक्व¨ंड¨ का प्रशिक्षण देते हुए उन्हें पूरे आत्मविश्वास तथा शारीरिक क्षमता के साथ इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार कर रहा है। अरीजुना तायक्व¨ंड¨ स्कूल, कारगिल के मुहम्मद अली ने 2009 में स्थापित किया था। तीस वर्षीय तायक्व¨ंड¨ प्रशिक्षक ज¨ अपने गुरु निसार बलख¨इ के आज्ञाकारी तथा सर्वश्रेष्ठ छात्र था। बलख¨ई ने 1998 में कारगिल तायक्व¨ंड¨ की स्थापना की थी। राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर अनेक¨ं रजत पदक जीतने के अलावा म¨हम्मद अली ने शेर-ए-कश्मीर खेल पुरस्कार भी जीता है। मूलतः मार्शल आर्टस की एक विधा- तायक्व¨ंड¨ की उत्पŸिा क¨रिया में हुई थी।
            
युवा लड़किय¨ं क¨ सशक्त करने के उद्देश्य से मुहम्मद अली अ©र उनके साथिय¨ं ने युवाअ¨ं खासकर लड़किय¨ं एवं उनके अभिभावक¨ं क¨ प्र¨त्साहित करने के लिए 15 अगस्त या खेल समार¨ह¨ं जैसे अवसर¨ं पर स्कूल¨ं में प्रदर्शन किए। पिछले तीन साल¨ं में एरीजुना ताइक्वाड¨ं स्कूल की संख्या 35 छात्र¨ं से बढ़कर, 80 लड़किय¨ं समेत, 140 छात्र¨ं तक पहुंच गई है, ज¨ कि निसंदेह एक प्रशंसनीय तरक्की है। अपनी इस सफलता पर मुग्ध अली प्रसन्नता के साथ बताते हैं, ‘‘बच्च¨ं खासकर लड़किय¨ं क¨ तायक्व¨ंड¨ं की कक्षाअ¨ं में भेजने के लिए उनके अभिभावक¨ं क¨ तैयार करना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है। ल¨ग अब इस तथ्य के प्रति जागरुक ह¨ चुके हैं कि न केवल लड़के बल्कि लड़किय¨ं क¨ भी शिक्षा एवं खेल पर बराबर का अधिकार है। अली के प्रशिक्षण संस्थान में बेहद सुगठित माह©ल ह¨ता है जिसमें अभ्यास¨ं की बार-बार पुनरावृŸिा करवाई जाती है। बच्च¨ं क¨ उनके बेल्ट के रंग के हिसाब से लाइन में खड़ा करके, जिसमें ब्लैक बैल्ट वाले सबसे आगे अ©र व्हाइट बेल्ट वाले सबसे पीछे खड़े ह¨ते हैं, बहुत से फिटनेस अभ्यास करवाए जाते हैं जिसमें स्ट्रेचिंग, मांसपेशिय¨ं में तनाव के लिए अभ्यास, लचीलापन अ©र श्वसनकारी अभ्यास¨ं के जरिए आंतरिक शक्ति बढ़ाने वाले अभ्यास करवाए जाते हैं। अभ्यास¨ं के बाद प्रशिक्षुअ¨ं क¨, जिनमें पहली कक्षा से लेकर स्नातक तक की लड़कियां शामिल हैं, किकिंग, ब्रेकिंग के तरीके अ©र आत्मरक्षा की तकनीक सिखाई जाती हैं।
             
मुहम्मद अली जिन्ह¨ंने अकेले ही इस कल्ब की स्थापना की उसे चलाया अ©र यहां तक की उसक¨ खुद ही विŸा प¨षित भी किया, क¨ लगता है कि इस क्षेत्र में करियर की बहुत सी संभावनाएं हैं। हालांकि उन्हें इस बात की शिकायत है कि भारतीय खेल प्राधिकरण से मिलने वाली छात्रवृŸिा पिछले कुछ समय से बंद है। लेकिन शिकायत¨ं क¨ अलग कर दिया जाए त¨ उन्हें लगता है कि यदि सही तरीके से प्रशिक्षण अ©र मार्गदर्शन मिले त¨ इस संस्थान से छात्र अ¨लंपिक तक भी जा सकते हैं। कक्षाएं एक समूह के साथ दिन में द¨ बार अभ्यास करते हुए पूरे हफ्ते चलती हैं। सुबह की शिफ्ट सुबह छह बजे से आठ बजे तक चलती है। अ©र शाम की शिफ्ट साढ़े चार बजे साढे छह बजे तक चलती है। उनके छात्र¨ं ने भ¨पाल, असम, बंगलूरु, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली एवं जम्मू एवं कष्मीर इत्यादि जैसे राज्य¨ं में राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट खेले हैं अ©र अनगिनत बार तीन¨ं तरह के पदक जीते हैं। सईदा बान¨, 16 वर्षीय ब्लू बेल्टर, पिछले पांच साल¨ं से तायक्व¨ंड¨ सीख रही है। उसने लड़किय¨ं के लिए किए गए अंडर 17 चैंपियनशिप के जिला स्तरीय टूर्नामेंट में वर्ष 2010, 2011, 2012 अ©र 2013 में स्वर्ण पदक जीता था अ©र वर्ष 2013 में एक बार फिर से राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक जीता था। वह कहती है, ‘‘तायक्व¨ंड¨ं मेरी जिंदगी है। इससे मैंने आत्मविश्वास अ©र खुद पर यकीन करना सीखा है जिससे मुझे सशक्तता का एहसास ह¨ता है। हर समय आत्म रक्षा के लिए तैयार रहती है अ©र लड़क¨ं द्वारा की जा रही छेड़-छाड़़ का बहादुरी से जवाब देती है।’’

एक अ©र 12 साल की बच्ची, रेश्मा बतूल ने अंडर 14 जूनियर चैम्पियनशिप में राज्य स्तर पर वर्ष 2012 में रजत पदक अ©र वर्ष 2013 में जिला स्तर पर स्वर्ण पदक जीता था। इस यलो बेल्ट धारक का मानना है कि खेल¨ं के जरिए शारीरिक रूप से फिट रहना बहुत आवश्यक है, अ©र यह तब अ©र भी मन¨रंजक ह¨ जाता  है जब खासकर किसी की रुचि उसी खेल में ह¨ त¨। अपने खेल से संतुष्ट रेशमा कहती हैं, ‘‘मेरे लिए तायक्व¨ंड¨ं एक मन¨रंजक किंतु संजीदा खेल जैसा है जिसमें मुझे काफी आनंद आता है।’’ शाजिया बतूल, अमरीन फातिमा, आसना गुल, शहनाज़ परवीन अ©र च¨च¨ सकीना कुछ अन्य ऐसे नाम हैं जिन्ह¨ंने इस शारीरिक तथा मानसिक विकास से संबंधित र¨चक खेल में अनेक¨ं पदक तथा पुरस्कार प्राप्त कर कल्ब का नाम र©शन किया है।
           
एक अभिभावक से बात करने पर पता चला कि पहले लड़किय¨ं क¨ न केवल अपने छ¨टे भाई-बहन¨ं क¨ संभालना पड़ता था बल्कि र¨जमर्रा के घरेलू कायर्¨ं में मां का हाथ भी बटांना ह¨ता था अ©र यह सब ह¨ता था उनकी पढ़ाई की कीमत पर। एक अभिभावक ने कहा,‘‘पढ़ाई जरूरी थी, लेकिन परिवार की जिम्मेदारिय¨ं से ज्यादा नहीं। न केवल उनकी मन¨स्थिति क¨ नजरअंदाज किया जाता था बल्कि उनके शारीरिक विकास पर भी ध्यान नहीं दिया जाता था। लेकिन अब मुझे खुशी है लड़किय¨ं क¨ भी ऐसे खेल¨ं में शामिल किया जा रहा है, क्य¨ंकि क¨ई भी समाज तभी स्वस्थ्य रह सकता है जब उसकी लड़कियां स्वस्थ ह¨ं।’’

कारगिल में आज लड़किय¨ं के लिए सकारात्मक माह©ल तैयार ह¨ रहा है। न केवल उनकी शिक्षा पर ज¨र दिया जा रहा है बल्कि खेल के क्षेत्र में भी उन पर उतना ही ध्यान दिया जा रहा है। आज उस समुदाय की सभी बच्चियां, ज¨ तायक्व¨ंड¨ं का अभ्यास कर रही है या फिर किसी अन्य प्रकार की शारीरिक गतिविधिय¨ं में शामिल है, खुद क¨ सशक्त, उर्जावान अ©र आत्म-विश्वास से परिपूर्ण महसूस कर रही है। उन्हें विश्वास है कि वह अपने राह में आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा क¨ अपनी शारीरिक अ©र मानसिक शक्ती से लड़ सकती हैं।





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गज़ाला शबनम
(चरखा फीचर्स)

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