भदोही के औराई स्थित द्वारिकापुर गांव में गंगा नदी के किनारे लगभग 1500 ईसा पूर्व के प्राचीन सभ्यता से संबंधित पुरातात्विक महत्व के अवशेष मिले हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पुरातत्व विभाग की टीम इसे ताम्रपाषण कालीन व हड़प्पा संस्कृति के करीब मान रही है। यहां विश्वविद्यालय के शोध छात्रों की ओर से खुदाई चल रही है। खुदाई में रिंग वेल, मनिया, मिट्टी के बर्तन, हाथी दांत से संबंधित कलाकृतियां व दूसरे पुरातात्विक महत्व के अवशेष मिले हैं।
बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास व पुरातत्व विभाग के प्रध्यापक अशोक कुमार सिंह ने बताया कि यहां मिले अवशेषों का संबंध हड़प्पा और ताम्रपाषण कालीन सभ्यता से हो सकता है। अशोक कुमार ने बताया, "चूंकि हड़प्पा संस्कृति का समापन लगभग 1500 ईसा पूर्व में हुआ और उसके बाद ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ था। दोनों की संस्कृतियों में कमोबेश साम्यता मिलती है।"
अशोक कुमार ने बताया "खुदाई स्थल गंगा नदी के किनारे भदोही और मिर्जापुर में फैले विशाल टीला क्षेत्र में है। इसका एक भाग द्वारिकापुर भदोही व दूसरा मिजार्पुर जिले मंे पड़ता है। यहां नेट सिंकर, मिट्टी के चूल्हे, रिंग वेल, मछली के कांटे, पशुओं की हड्डियां और काफी मात्रा में राख मिली है। हाथी दांत की कलात्मक कृतियां और मनके भी मिले हैं। यहां मिलीं पुरातात्विक वस्तुओं से यहां नगरीय सभ्यता होने का भान होता है, जो हड़प्पा संस्कृति से मेल खाती है। लेकिन इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। यह गहन शोध का विषय है।"
शोध से जुड़े आरएन सिंह ने बताया कि रिंग बेल यानी मृद वलय कूप नगरीय सभ्यता का परिचायक है। आरएन सिंह ने बताया कि हड़प्पा कालीन नगरों में अपशिष्ट जल निकासी के लिए नगरवासियों की ओर से रिंग वेल बनाए जाते थे, जिससे नगर को साफ सुथरा रखा जा सके। यह सभ्यता हड़प्पा संस्कृति से मेल खाती है।"
शोध से जुड़े प्राध्यापक ए. के. सिंह ने बताया, "यह कार्य भारत सरकार के दिशा निर्देशन में किया जा रहा है। अभी यहां लंबा खुदाई कार्य चलेगा। देश में नगरीय सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ है। यह स्थान बेहद प्राचीन है। गौतम बुद्ध से संबंधित ग्रंथ जातक कथा में काशी द्वार का उल्लेख मिलता है। इससे यह साबित होता है कि गंगा नदी के किनारे बसा द्वारकापुर काशी द्वार भी हो सकता है। वैसे यहां ग्रामीण सभ्यता के अंश मिले हैं।"
उन्होंने आगे बताया, "यहां गंगा नदी का मोड़ है और मिट्टी बेहद कठोर है, जिससे लगता है कि तकरीबन 1500 ईसा पूर्व यानी लगभग 3500 साल पहले यहां इस सभ्यता का विकास हुआ होगा। हमारी शोध टीम 2500 साल पूर्व के पुरातात्विक इतिहास को जानना चाहती है। यहां खुदाई चालू है। अभी यह सिलसिला चलता रहेगा। अच्छी उपलब्धि की उम्मीद यहां दिखती नजर आती है।"