सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर की रात चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई युवती द्वारा मृत्यु पूर्व दिए बयान पेश करने का निर्देश मंगलवार को दिल्ली पुलिस को दिया। न्यायालय ने मामले के दो दोषियों मुकेश और पवन गुप्ता के मृत्युदंड पर अंतरिम फैसले की तारीख को भी आगे बढ़ा दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.एस.चौहान और न्यायमूर्ति जे.चेलमेश्वर की पीठ ने मुकेश और पवन के वकील एम.एल.शर्मा द्वारा पीड़िता का बयान पेश करने में असमर्थता जाहिर करने पर अतिरिक्त महाधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पेश करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, "अगर मृत्युपूर्व बयान विश्वसनीय है तो हम नहीं मानते कि न्यायालय को मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।"मुकेश, पवन, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और राम सिंह और एक नाबालिग आरोपी ने दिल्ली में चलती बस में एक 23 वर्षीय युवती के साथ मिलकर दुष्कर्म किया था। पीड़िता और उसके मित्र को बाद में बस के बाहर फेंक दिया गया था। गंभीर रूप से घायल महिला का 29 दिसंबर को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में निधन हो गया था।
सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने 15 मार्च, 2014 को विशेष सुनवाई के दौरान मुकेश और पवन के मृत्युदंड पर 31 मार्च तक रोक लगा दी थी। इसके बाद न्यायमूर्ति बी.एस.चौहान और न्यायमूर्ति जे.चेलमेश्वर ने इस रोक को सात अप्रैल 2014 तक के लिए बढ़ा दी थी।
न्यायालय ने सात अप्रैल को इस पर फिर एक सप्ताह तक के लिए रोक लगा दी और दोनों दोषियों के वकील से सिंगापुर के अस्पताल के पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी पेश करने का निर्देश दिया। मुकेश और पवन की दलील है कि सिंगापुर के अस्पताल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अभियोजन पक्ष की तरफ से किए गए उस दावे की पुष्टि नहीं हुई है, जिसमें कहा गया था कि पीड़िता की मौत आंत में गंभीर चोट से हुए अतिरिक्त रक्तस्राव की वजह से हुई थी। उन दोनों का यह भी कहना है कि सुनवाई निष्पक्ष नहीं हुई है और जनता व राजनीति के दबाव में आकर मृत्युदंड का फैसला सुनाया गया है।