महाराष्ट्र के पंढ़ारपुर शहर स्थित 900 साल पुराने विथोभा मंदिर में वर्षो से उच्च जाति के पुरुष पुरोहित धार्मिक कार्य करते रहे हैं, लेकिन इस मंदिर के इतिहास में एक नया अध्याय उस वक्त जुड़ जाएगा जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर पहली बार महिला व निचली जातियों के पुरोहितों को भी नियुक्त किया जाएगा। विट्ठल रुक्मिणी टेंपल ट्रस्ट (वीआरटीटी) के अध्यक्ष अन्ना डेंगे ने बताया, "यह मंदिरों में पूजा और धार्मिक कार्य में ब्राह्मणों के प्रभुत्व को समाप्त करने की किसी मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया गया पहला प्रयास है। हम इस बात को लेकर बेहद उत्सुक हैं कि पूजा और धार्मिक कार्य सभी जातियों विशेषकर गैर ब्राह्मण जातियों के लोग कर सकें।"
डेंगे ने कहा, "हम 18 मई के बाद उम्मीदवारों का साक्षात्कार करेंगे और उनकी नियुक्ति पर फैसला करेंगे जो कि अस्थायी और कांट्रेक्ट पर आधारित होगी, जिनका मेहनताना उनकी योग्यता के आधार पर तय होगा।"वीआरटीटी ने यह कदम चार दशक से लंबित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उठाया है। न्यायालय ने इस मंदिर की कमाई और धार्मिक कार्यो पर बडवे और उतपत परिवार के दावे को खारिज कर दिया है।
दोनों परिवारों ने बी.डी. नाडकर्णी कमिटी की सिफारिश के बाद राज्य सरकार की तरफ से 1968 में कंपनी को अपने अधिकार में ले लेने के फैसले को चुनौती दी थी। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री डेंगे ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने मंदिर की कमाई में पिछले कुछ महीने में महत्वपूर्ण बदलाव ला दिया है।
वीआरटीटी के पास कई आवेदन आए हैं और कई लोग मुफ्त काम करने के लिए तैयार हो गए हैं, क्योंकि वे इसे ईश्वर की सेवा मानते हैं। ये उत्साहित आवेदक अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी), मराठा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं।