सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भारतीय नौसेना से निवृत और देश के पहले विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को मुंबई नौसैनिक अड्डा से जहाज तोड़ने वाली दारुखाना गोदी ले जाने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति बी. एस. चौहान और न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी ने 70 वर्ष पुराने विमान वाहक पोत को स्थान बदलने की अनुमति दी। सरकार ने अदालत से आग्रह किया था कि विक्रांत की स्थिति अत्यंत जीर्णशीर्ण हो गई है और इसमें लगातार गिरावट आती जा रही है। इसका न तो मरम्मत किया जा सकता है और न ही दुरुस्त किया जा सकता है।
सरकार की दलील का सामाजिक कार्यकर्ता किरण पैगणकर ने विरोध किया। उन्होंने नई जगह पर पोत की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि पोत के लिए नौसेना अड्डा सबसे सुरक्षित स्थल है। पैगणकर ने सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दायर कर आईएनएस विक्रांत को एक संग्रहालय में तब्दील करने की मांग की और अदालत ने पांच मई को यथास्थिति बहाल रखने का आदेश देते हुए नोटिस जारी किया।
सरकार ने यथास्थिति आदेश को निरस्त करने की मांग करते हुए कहा कि वह केवल आईएनएस विक्रांत को नई जगह स्थानांतरित करना चाहती है, तोड़ना नहीं। जनवरी 2014 में आईएनएस विक्रांत को नीलामी में खरीदने वाली कंपनी आईबी कामर्शियल प्रा. लि. विक्रांत को शुक्रवार को स्वयं दारुखाना ले जाएगी।
ब्रिटिश रॉयल नेवी में एचएमएस हरक्युलिस के नाम वाले इस पोत की तली 14 अक्टूबर, 1943 को डाली गई थी और 1945 में इसका जलावतरण हुआ था। भारत ने 1957 में इसे खरीदा और 16 फरवरी 1959 को इसे नौसेना में शामिल किया गया। 31 जनवरी, 1997 को विक्रांत नौसेना से निवृत हुआ।